अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (4) खंड दो

किसी कलीसिया के अगुआ के पास कम-से-कम अंतरात्मा और विवेक तो होना ही चाहिए और उसे कुछ सत्य भी समझने चाहिए—तभी वह कोई बोझ महसूस कर सकेगा। बोझ महसूस करने की अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? अगर वे यह देखते हैं कि कुछ लोग निराश हो रहे हैं, कुछ लोग विकृत समझ वाले हैं, कुछ परमेश्वर के घर की परिसंपत्तियों को बर्बाद कर रहे हैं, कुछ अपना कार्य लापरवाही से कर रहे हैं, कुछ अपने कर्तव्य निभाते समय उचित कामों को नहीं कर रहे हैं, कुछ हमेशा आडंबरयुक्त बातें करते हुए वास्तविक कार्य नहीं करते हैं...और उन्हें यह पता चलता है कि कलीसिया में ढेर सारी समस्याएँ मौजूद हैं और उनका समाधान जरूरी है, और वे यह देखते हैं कि इतना अधिक कार्य नहीं किया गया है तो इससे उनके मन में बोझ की भावना जागती है। अगुआ बनने के बाद से ऐसा लगता है मानो उनके अंदर निरंतर एक आग जल रही हो; अगर उन्हें किसी समस्या का पता चलता है और वे उसे नहीं सुलझा पाते तो वे चिंतित और व्याकुल हो जाते हैं, खा-पी नहीं पाते या सो नहीं पाते। सभाओं के दौरान जब कुछ लोग अपने कार्य में उन समस्याओं की सूचना देते हैं जिन्हें अगुआ समझ नहीं पाता और तुरंत हल नहीं कर पाता तो अगुआ हार नहीं मानता; उसे लगता है कि उसे इस समस्या को सुलझाना चाहिए। प्रार्थना करने, खोजने और दो दिन तक सोचने के बाद जब वह जान जाता है कि इसे कैसे सुलझाना है तो वह समस्या को तेजी से सुलझा देता है। समस्या सुलझाने के बाद वह मुस्तैदी से कुछ दूसरे कार्यों की जाँच करता है और एक दूसरी समस्या का पता लगाता है जिसमें एक ही काम में बहुत सारे लोग लगे हुए हैं और इसमें कार्मिकों को घटाने की जरूरत है। फिर वह फौरन सभा बुलाता है, स्थिति की एक स्पष्ट तस्वीर पता करता है, कार्मिकों की संख्या घटाता है और उचित व्यवस्थाएँ करता है और इस तरह से समस्या हल हो जाती है। बोझ वहन करने वाले अगुआ चाहे किसी भी कार्य का निरीक्षण कर रहे हों, वे हमेशा समस्याएँ पहचान लेते हैं। पेशेवर कौशल या सिद्धांत विरोधी किसी भी समस्या को वे पहचानने, उसके बारे में पूछताछ करने और उसकी समझ हासिल करने में सक्षम होंगे और जब उन्हें किसी समस्या का पता चल जाता है तो वे उसे तुरंत दूर कर देते हैं। बुद्धिमान अगुआ और कार्यकर्ता केवल कलीसिया के कार्य, पेशेवर ज्ञान और सत्य सिद्धांतों से संबंधित समस्याओं का समाधान करते हैं। दैनिक जीवन की छोटी-छोटी बातों पर वे कोई ध्यान नहीं देते। वे परमेश्वर द्वारा सौंपे गए सुसमाचार फैलाने के काम के हर पहलू का ध्यान रखते हैं। वे हर उस समस्या के बारे में पूछते और उसका निरीक्षण करते हैं जिसे वे देख या जान पाते हैं। यदि वे उस समय समस्या का समाधान स्वयं नहीं कर पाते तो वे अन्य अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर संगति करते हैं, सत्य सिद्धांत खोजते हैं और उसे हल करने के तरीकों के बारे में सोचते हैं। यदि उनके सामने ऐसी कोई बड़ी समस्या आती है जिसका वे वास्तव में समाधान नहीं कर पाते तो वे तुरंत ऊपरवाले से खोजते हैं और ऊपरवाले को इसे सँभालने और हल करने देते हैं। ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता अपने कामकाज में सिद्धांतों पर चलने वाले होते हैं। चाहे जो समस्याएँ हों, अगर उन्होंने उन समस्याओं को देख लिया है तो वे उन्हें छोड़ते नहीं हैं; वे हर समस्या को पूरी तरह से समझने और एक-एक कर उनका समाधान करने पर जोर देते हैं। अगर उनका अच्छी तरह से समाधान नहीं होता है तो भी यह आश्वासन दिया जा सकता है कि ये समस्याएँ फिर से पैदा नहीं होंगी। इसे ही अपना कर्तव्य पूरे दिल, शक्ति और दिमाग से निभाना कहते हैं, पूरी तरह से अपनी जिम्मेदारियाँ निभाना कहते हैं। जो नकली अगुआ और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य नहीं करते या वास्तविक समस्याओं को हल करने पर ध्यान केंद्रित नहीं करते, वे अपने सामने की समस्याओं का पता नहीं लगा सकते और नहीं जानते कि कौन-सा कार्य किया जाना चाहिए। अगर वे देखते हैं कि भाई-बहन अपने कर्तव्य निभाने में व्यस्त हैं तो वे पूरी तरह संतुष्ट होते हैं, महसूस करते हैं कि यह उनके वास्तविक कार्य का नतीजा है; वे सोचते हैं कि कार्य के तमाम पहलू काफी अच्छे हैं और उनके लिए व्यक्तिगत रूप से करने के लिए कुछ ज्यादा नहीं है या सुलझाने के लिए कोई समस्या नहीं है, इसलिए वे फिर अपने रुतबे के फायदों का मजा लेने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वे भाई-बहनों के बीच हमेशा दिखावा करना चाहते हैं और अपनी शेखी बघारना चाहते हैं। वे जब भी भाई-बहनों को देखते हैं तो वे कहते हैं, “एक अच्छे विश्वासी बनो। अपना कर्तव्य अच्छे से निभाओ। आधे-अधूरे मन से काम मत करो। अगर तुम शरारत करते हो या मुसीबत खड़ी करते हो तो मैं तुम्हें बरखास्त कर दूँगा!” वे सिर्फ अपना रुतबा जताना और लोगों को भाषण देना जानते हैं। सभाओं के दौरान वे हमेशा यह पूछते हैं कि कार्य में कौन-सी समस्याएँ मौजूद हैं और क्या उनके अधीनस्थ लोगों को कोई कठिनाई है, लेकिन जब दूसरे अपनी समस्याएँ और कठिनाइयाँ बताते हैं तो वे उन्हें सुलझा नहीं सकते। इसके बावजूद वे अभी भी खुश रहते हैं और अभी भी एक साफ अंतरात्मा के साथ जीवन जीते हैं। अगर भाई-बहन कोई कठिनाई या समस्या नहीं बताते तो उन्हें लगता है कि वे अपना काम बहुत अच्छे ढंग से कर रहे हैं और वे आत्मसंतुष्ट हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि कार्य के बारे में पूछने का काम ही उन्हें सौंपा गया था और ऐसे में जब समस्याएँ उत्पन्न होती हैं और ऊपरवाला इसकी जिम्मेदारी का मूल कारण उन्हें बताता है तो वे स्तब्ध रह जाते हैं। दूसरे लोग उनके सामने कार्य की कठिनाइयाँ और समस्याएँ प्रस्तुत करते हैं, फिर भी वे यह शिकायत करते हैं कि वे उन्हें सुलझाने के लिए सत्य क्यों नहीं खोजते। वास्तविक समस्याओं को खुद सुलझाए बिना वे यह जिम्मेदारी अपने नीचे वाले पर्यवेक्षकों पर डाल देते हैं और विशिष्ट काम करने वाले लोगों को सख्ती से फटकारते हैं। यह फटकार उन्हें अपने गुस्से से राहत दिलाने में मदद करती है और वे साफ अंतरात्मा से यहाँ तक मानते हैं कि वे वास्तविक कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कभी भी समस्याओं का पता लगाने या उन्हें सुलझाने को लेकर चिंतित या व्याकुल महसूस नहीं किया है, न ही वे इस कारण अच्छे से खाने या सोने में असमर्थ रहे हैं—उन्होंने कभी भी इस प्रकार की कठिनाई नहीं सही है।

हर बार जब मैं किसी खेत कलीसिया में जाता हूँ तो कुछ समस्याएँ सुलझाता हूँ। हर बार मेरे वहाँ जाने का यह कारण नहीं होता कि मुझे कोई विशेष मसला मिल गया है जिसका समाधान करना है; यह बस फुरसत निकालकर घूमने-फिरने और यह देखने के लिए है कि कलीसिया की विभिन्न टीमों का कार्य कैसा चल रहा है और प्रत्येक टीम के लोगों की स्थितियाँ कैसी हैं। मैं पर्यवेक्षकों को बातचीत के लिए इकट्ठा करता हूँ, उनसे पूछता हूँ कि इस दौरान वे क्या कार्य करते रहे हैं, किस प्रकार की समस्याएँ हैं और उन्हें कुछ समस्याएँ उठाने देता हूँ और फिर मैं इस बारे में संगति करता हूँ कि इन्हें कैसे सुलझाया जाए। उनके साथ संगति करते समय मैं कुछ नई समस्याएँ भी पता लगा सकता हूँ। एक प्रकार की समस्या इस बात से संबंधित है कि अगुआ और कार्यकर्ता अपना कार्य कैसे करते हैं; दूसरी है उनकी जिम्मेदारियों के दायरे में कार्य की समस्याएँ। इसके अतिरिक्त, मैं इस बारे में भी उनकी मदद और मार्गदर्शन करता हूँ कि कोई विशिष्ट कार्य कैसे करें, कार्य को कैसे क्रियान्वित करें, क्या कार्य करें और फिर अगली बार उसकी खोज-खबर लें, उनसे यह पूछें कि पिछली बार उन्हें जो कार्य सौंपा गया था वह कैसे आगे बढ़ा है। ऐसी निगरानी, आग्रह और खोज-खबर जरूरी है। हालाँकि यह बड़े तामझाम और होहल्ले से नहीं किया जाता, एलान करने के लिए लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल नहीं किया जाता, यह विशेष काम उन कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं के जरिये संचारित और क्रियान्वित किया जाता है जो वास्तविक कार्य कर सकते हैं। इस तरह प्रत्येक टीम का कार्य व्यवस्थित होकर प्रगति करता है, कार्य-दक्षता में सुधार आता है और नतीजे बेहतर होते हैं। अंत में प्रत्येक टीम का हर सदस्य यह जानकर कि उसे क्या और कैसे करना चाहिए, अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभा सकता है। कम-से-कम प्रत्येक सदस्य अपना कर्तव्य निभा रहा होता है, उन सभी के हाथ में काम होते हैं और वे जो करते हैं वह परमेश्वर के घर की आवश्यकताओं के अनुसार किया जाता है और यह सिद्धांतों के अनुसार भी किया जाता है। क्या यह कुछ नतीजे हासिल करना नहीं है? क्या नकली अगुआ इस तरह काम करना जानते हैं? नकली अगुआ सोच-विचार करेंगे : “तो ऊपरवाला इस तरह से कार्य को क्रियान्वित करता है : बातचीत के लिए कुछ लोगों को साथ बुलाना, सभी लोग एक छोटी-सी किताब में नोट्स लिखते हैं और नोट्स लेने के बाद ऊपरवाले का कार्य समाप्त हो जाता है। अगर ऊपरवाला अपना कार्य इस तरह करता है तो हम भी उसी तरह करेंगे।” इस प्रकार नकली अगुआ इस ढंग से नकल करते हैं। वे प्रत्यक्ष बातों की नकल करते हैं, लेकिन अंत में वे जरा भी वास्तविक कार्य नहीं करते, कोई भी वह कार्य क्रियान्वित नहीं करते जो उन्हें करने के लिए कहा गया था, बस बेकार की बातें करते हुए वक्त बरबाद करते हैं। कभी-कभी मैं साग-सब्जियों के खेतों और ग्रीनहाउसों में भी यह देखने जाता हूँ कि कोंपलें कैसे बड़ी हो रही हैं या सर्दियों में ग्रीनहाउस में कितनी फसलें उगाई जा सकती हैं और उनकी कितनी बार सिंचाई करनी चाहिए। ये काम चाहे छोटे हों या बड़े, सभी में साग-सब्जी उगाने से जुड़े तकनीकी मुद्दे जुड़े होते हैं और अगर कोई उन्हें मेहनत से करे तो उन्हें पूरा कर सकता है। नकली अगुआ अपना नकलीपन मुख्य रूप से कहाँ दिखाते हैं? सबसे प्रमुख है वास्तविक कार्य न करना; वे बस कुछ ऐसे काम करते हैं जो उन्हें अच्छा दिखाते हैं और वे मान लेते हैं कि काम पूरा हो गया और फिर वे अपने रुतबे के फायदों के मजे लेने लगते हैं। वे इस प्रकार का कार्य चाहे जितना भी करें, क्या इसका यह अर्थ है कि वे वास्तविक कार्य कर रहे हैं? ज्यादातर नकली अगुआ सत्य को अशुद्ध रूप से समझते हैं, सिर्फ कुछ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को समझते हैं, जिससे वास्तविक कार्य ठीक से करना बहुत मुश्किल हो जाता है। नकली अगुआओं का एक तबका तो सामान्य मामलों से संबंधित समस्याएँ भी नहीं सुलझा सकता; उनमें स्पष्ट रूप से कम काबिलियत होती है और आध्यात्मिक समझ नहीं होती है। ऐसे लोगों को विकसित करने की कोई अहमियत नहीं है। कुछ नकली अगुआओं में थोड़ी काबिलियत तो होती है, लेकिन वे वास्तविक कार्य नहीं करते और वे दैहिक सुख-सुविधाओं में लिप्त रहते हैं। जो लोग दैहिक सुख-सुविधाओं में लिप्त होते हैं, वे सूअरों से ज्यादा अलग नहीं हैं। सूअर अपने दिन सोने और खाने में बिताते हैं। वे कुछ नहीं करते। फिर भी, एक साल तक उन्हें खाना खिलाने की कड़ी मेहनत के बाद जब पूरा परिवार साल के अंत में उनका मांस खाता है तो यह कहा जा सकता है कि वे किसी काम आए हैं। अगर कोई नकली अगुआ सुअर की तरह रखा जाता है, जो रोज तीन बार मुफ्त में खाता-पीता है, मोटा-तगड़ा हो जाता है, लेकिन कोई वास्तविक कार्य नहीं करता और निखट्टू रहता है तो क्या उसे रखना व्यर्थ नहीं रहा? क्या वह किसी काम आया? वह सिर्फ परमेश्वर के कार्य में विषमता ही हो सकता है और उसे हटा देना चाहिए। सचमुच, नकली अगुआ की अपेक्षा सुअर पालना बेहतर है। नकली अगुआओं के पास “अगुआ” की उपाधि हो सकती है, वे इस पद पर आसीन हो सकते हैं और दिन में तीन बार अच्छी तरह खा सकते हैं और परमेश्वर के कई अनुग्रहों का आनंद ले सकते हैं और वर्ष के अंत तक खा-खाकर मोटे और गुलाबी हो गए होते हैं—लेकिन काम के बारे में क्या? देखो कि इस वर्ष तुम्हारे कार्य में क्या कुछ हासिल हुआ है : क्या इस वर्ष कार्य के किसी भी क्षेत्र में तुम्हें परिणाम प्राप्त हुए हैं? तुमने कौन-सा वास्तविक कार्य किया? परमेश्वर का घर यह नहीं कहता कि तुम हर काम पूर्णता से करो, लेकिन तुम्हें मुख्य काम अच्छी तरह से करना ही चाहिए—उदाहरण के लिए, सुसमाचार का काम या फिल्म निर्माण का काम, पाठ-आधारित काम, इत्यादि। ये सभी फलदायी होने चाहिए। सामान्य परिस्थितियों में तीन से पाँच महीने के बाद हर काम में कोई परिणाम और उपलब्धि हासिल होनी चाहिए; अगर एक वर्ष के बाद भी कोई उपलब्धि नहीं मिलती तो यह एक गंभीर समस्या है। तुम्हारी जिम्मेदारी के दायरे में कौन-सा काम सबसे फलदायी रहा है? किसके लिए तुमने सबसे बड़ी कीमत चुकाई है और वर्ष भर सबसे ज्यादा कष्ट उठाया है। इस उपलब्धि को पेश कर आत्म-चिंतन करो कि क्या तुमने वर्ष भर परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद लेकर कोई मूल्यवान उपलब्धि हासिल की है; तुम्हारे दिल में इसका स्पष्ट भान होना चाहिए। इस पूरे समय जब तुम परमेश्वर के घर का खाना खा रहे थे और परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद उठा रहे थे, तब तुम क्या कर रहे थे? क्या तुमने कुछ हासिल किया है? अगर तुमने कुछ भी हासिल नहीं किया है तो तुम बस खानापूर्ति कर रहे हो, तुम एक पक्के नकली अगुआ हो। क्या ऐसे नकली अगुआओं को बरखास्त कर हटा देना चाहिए? (हाँ।) ऐसे नकली अगुआओं से आमना-सामना होने पर क्या तुम लोग उनका भेद पहचान सकते हो? क्या तुम देख सकते हो कि वे नकली अगुआ हैं, बस मुफ्त में खाना पाने के लिए खानापूर्ति कर रहे हैं? वे तब तक खाते रहते हैं जब तक कि उनके मुँह चुपड़ नहीं जाते, लेकिन वे कभी भी कार्य को लेकर चिंतित या व्याकुल प्रतीत नहीं होते, किसी भी विशिष्ट काम में न तो भाग लेते हैं और न ही उसके बारे में पूछताछ करते हैं। अगर वे पूछताछ करते भी हैं तो किसी वजह से ही करते हैं; वे तभी ऐसा करते हैं जब ऊपरवाला उन पर नतीजों के लिए दबाव डालता है, वरना उन्हें परवाह नहीं होती। वे हमेशा मौज-मस्ती में लिप्त रहते हैं, अक्सर फिल्में या टीवी कार्यक्रम देखते रहते हैं। वे कार्य दूसरों को सौंप देते हैं और जब दूसरे सभी लोग अपने कर्तव्य निभाने में व्यस्त रहते हैं तो वे आराम फरमाते हैं और मौज-मस्ती करते हैं। अगर कोई समस्या हो और उससे निपटने के लिए तुम उन्हें ढूँढ़ने की कोशिश करो तो वे कहीं नहीं दिखेंगे, मगर खाने के वक्त वे कभी देर नहीं करते। खाने-पीने के बाद जब सभी लोग काम पर लौट जाते हैं तो वे थोड़ा और खाली वक्त निकाल लेते हैं। अगर तुम उनसे पूछो, “तुम जाकर काम की जाँच क्यों नहीं करते? सभी लोग तुम्हारे मार्गदर्शन और तुम्हारी व्यवस्थाओं की प्रतीक्षा कर रहे हैं!” तो वे कहते हैं : “मेरी प्रतीक्षा क्यों? तुम सब लोग खुद इसे कर सकते हो, तुम सब लोग जानते हो कि यह कैसे करना है—क्या यह वैसा ही नहीं है जब मैं आसपास नहीं होता? क्या मैं थोड़ा आराम नहीं कर सकता?” “क्या यह आराम करना है? तुम बस फिल्में देख रहे हो!” “मैं पेशेवर कौशल सीख रहा हूँ, मैं यह अध्ययन कर रहा हूँ कि फिल्मों की शूटिंग कैसे की जाती है।” यहाँ तक कि वे बहाने भी पेश कर देते हैं। वे एक के बाद एक फिल्म देखते हैं और जब रात में सभी लोग आराम करते हैं तो वे भी करते हैं। हर दिन वे बस इसी तरह खानापूर्ति करते हैं, लेकिन किस हद तक? सभी लोगों को वे अप्रिय लगते हैं, सबको वे अजीब महसूस करवाते हैं और आखिरकार कोई भी उन पर ध्यान नहीं देता। मुझे बताओ, अगर इस तरह का अगुआ प्रभारी न हो तो क्या तब भी कार्य प्रगति कर सकेगा? उसके बिना क्या पृथ्वी घूमना बंद कर देती है? (यह घूमती रहती है।) तो फिर उसे उजागर किया जाना चाहिए ताकि हर कोई यह देख सके कि वह उचित काम नहीं कर रहा है और किसी को उससे बेबस नहीं होना चाहिए। ऐसे नकली अगुआ जो उचित काम नहीं करते उन्हें उजागर करना और उनका गहन-विश्लेषण किया जाना चाहिए ताकि हर कोई उनका भेद पहचान ले और फिर उन्हें पद छुड़वाने के लिए कार्यमुक्त कर देना चाहिए! ऐसे नकली अगुआओं से सामना होने पर क्या तुम उनका भेद पहचान सकते हो? नकली अगुआओं के बिना क्या तुम सब लोग यूँ महसूस करोगे कि मानो तुम लोग बिना कप्तान के नाविक हो? क्या तुम लोग स्वतंत्र रूप से कार्य पूरा कर कामों को अंजाम दे सकते हो? अगर नहीं, तो फिर तुम लोग खतरे में हो। इस प्रकार के नकली अगुआओं के आमने-सामने जो अपना कर्तव्य उचित ढंग से नहीं निभाते, उदाहरण बनकर अगुआई नहीं करते और ऑनलाइन चैटिंग करने में समय गँवाते हैं—क्या तुम लोग इस प्रकार की स्थिति में भेद पहचान सकते हो? क्या तुम लोग भी उनसे प्रभावित होकर फालतू की बातों में लग जाओगे और अपने कर्तव्यों में विलंब करोगे? क्या तुम अभी भी ऐसे नकली अगुआओं का अनुसरण कर सकते हो? (नहीं।)

कुछ नकली अगुआ पेटू और आलसी होते हैं, जो कड़ी मेहनत के बजाय आराम पसंद करते हैं। वे न तो काम करना चाहते हैं और न ही चिंता करना चाहते हैं, कोशिश करने और जिम्मेदारी लेने से बचते हैं, केवल आराम में लिप्त रहना चाहते हैं। उन्हें खाना और खेलना पसंद है और वे निहायत आलसी होते हैं। एक नकली अगुआ था जो सुबह तभी उठता जब और सारे लोग खाना खा चुके होते और रात में वह तब भी टीवी देखता रहता जब बाकी लोग आराम कर रहे होते। खाना पकाने की जिम्मेदारी वाला एक भाई इसे और बर्दाश्त नहीं कर सका और उसने अगुआ की आलोचना की। क्या तुम लोगों को लगता है कि वे एक रसोइये की बात सुनेंगे? (नहीं।) मान लो किसी अगुआ या कार्यकर्ता ने उन्हें यह कहकर डाँटा होता, “तुम्हें और अधिक परिश्रमी होने की जरूरत है; जो काम करने की जरूरत हो, उसे जरूर किया जाना चाहिए। एक अगुआ के रूप में तुम्हें अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए, फिर चाहे कोई भी कार्य हो; तुम्हें सुनिश्चित करना चाहिए कि उसमें कोई समस्या न हो। अब जब यह समस्या पता चल चुकी है और तुम इसे हल करने के लिए मौजूद नहीं हो, तो इससे काम प्रभावित होता है। यदि तुम लगातार इस तरह से काम करोगे तो क्या इससे कलीसिया के कार्य में देरी नहीं होगी? क्या तुम यह जिम्मेदारी उठा सकते हो?” क्या वे इसे सुनेंगे? जरूरी नहीं है कि वे सुनें। ऐसे नकली अगुआओं के मामले में निर्णय लेने वाले समूह को उन्हें तुरंत बरखास्त कर देना चाहिए और उनके लिए अन्य कार्य व्यवस्थाएँ करनी चाहिए, उन्हें वही करने देना चाहिए जो वे करने में सक्षम हों। यदि वे किसी काम के लायक नहीं हैं, जहाँ भी जाते हैं मुफ्तखोरी करना चाहते हैं, कुछ भी करने में असमर्थ हैं, तो उन्हें कोई भी कर्तव्य निभाने की अनुमति दिए बिना दफा कर दो। वे कर्तव्य निभाने के सुपात्र नहीं हैं; वे मनुष्य नहीं हैं, उनमें सामान्य मानवता की अंतरात्मा और विवेक नहीं हैं, वे बेशर्म हैं। कामचोरों जैसे इन नकली अगुआओं की असलियत पहचान लिए जाने के बाद इन्हें सीधे बरखास्त कर दिया जाना चाहिए; इन्हें प्रेरित करने की कोशिश करने की कोई आवश्यकता नहीं होती और उन्हें निगरानी में रहने का कोई अवसर नहीं दिया जाना चाहिए, न ही उनके साथ सत्य पर संगति करना आवश्यक है। क्या उन्होंने पर्याप्त सत्य नहीं सुने हैं? यदि उनकी काट-छाँट की जाए तो क्या वे बदल सकते हैं? वे नहीं बदल सकते। अगर किसी की काबिलियत कम है, कभी-कभी वह बेतुके विचार रखता है या अज्ञानता के कारण पूरी तस्वीर देखने में विफल रहता है, लेकिन वह मेहनती है, बोझ उठाता है और आलसी नहीं है तो ऐसा व्यक्ति अपने कर्तव्य निभाने में विचलन के बावजूद अपनी काट-छाँट होने पर पश्चात्ताप कर सकता है। कम-से-कम वह एक अगुआ की जिम्मेदारियों को जानता है और यह जानता है कि उसे क्या करना चाहिए, उसके पास अंतरात्मा है और जिम्मेदारी का भाव है और उसके पास दिल है। परंतु जो लोग आलसी हैं, कड़ी मेहनत के बजाय आराम पसंद करते हैं और बोझ से मुक्त हैं, वे बदल नहीं सकते। उनके दिल में कोई बोझ नहीं है; चाहे कोई भी उनकी काट-छाँट कर ले, सब बेकार है। कुछ लोग कहते हैं, “फिर अगर परमेश्वर का न्याय, ताड़ना, परीक्षण और शोधन उन पर आ पड़े तो क्या यह उनके बोझ-मुक्त होने की समस्या को बदल देगा?” इसे बदला नहीं जा सकता; यह व्यक्ति की प्रकृति से निर्धारित होता है, जैसे कि कोई कुत्ता गंदगी खाने की अपनी आदत नहीं बदल सकता। जब भी तुम किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हो जो आलसी है, बोझ-मुक्त है और एक अगुआ के रूप में भी कार्य करता है, तो तुम सुनिश्चित हो सकते हो कि वह एक नकली अगुआ है। कुछ लोग कह सकते हैं, “तुम उसे नकली अगुआ कैसे कह सकते हो? उसकी काबिलियत अच्छी है, वह चालाक है, वह चीजों की असलियत समझ सकता है और योजनाएँ बना सकता है। दुनिया में उसने व्यापारों का प्रबंधन किया है, सीईओ के रूप में कार्य किया है; वह जानकार, अनुभवी और दुनियादार है!” क्या ये गुण उसके आलसी होने और बोझ न उठाने की समस्या को सुलझा सकते हैं? (नहीं।)

जो लोग अत्यधिक आलसी होते हैं, वे किस प्रकार की अभिव्यक्तियाँ और विशेषताएँ प्रदर्शित करते हैं? पहले, वे जो कुछ भी करते हैं, बेमन से करते हैं, उसे जैसे-तैसे निपटाते हैं, धीमी गति से चलते हैं, आराम फरमाते हैं और जब भी संभव होता है उसे टाल देते हैं। दूसरे, वे कलीसिया के कार्य पर ध्यान नहीं देते। उनके विचार से, जो कोई इस काम के बारे में चिंता करना पसंद करता है, कर सकता है। वे नहीं करेंगे। अगर वे खुद किसी काम के बारे में चिंता करते भी हैं, तो यह उनकी अपनी शोहरत, लाभ और रुतबे के लिए होता है—उनके लिए बस यही मायने रखता है कि वे रुतबे के लाभ उठा पाएँ। तीसरे, वे अपने काम में कठिनाई से दूर भागते हैं; यह स्वीकार नहीं कर सकते कि उनका कार्य थोड़ा भी थकाने वाला हो; ऐसा होने पर वे बहुत नाराज हो जाते हैं और कठिनाई सहने या कीमत चुकाने को तैयार नहीं होते। चौथे, वे जो भी कार्य करते हैं उसमें जुटे रहने में असमर्थ होते हैं, उसे हमेशा आधे में ही छोड़ देते हैं और पूरा नहीं कर पाते। अगर वे अस्थायी रूप से अच्छी मनःस्थिति में हैं तो मौज-मजे के लिए कुछ काम कर सकते हैं, लेकिन अगर किसी चीज के लिए दीर्घकालिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता हो और वह उन्हें व्यस्त रखती हो, उसमें बहुत ज्यादा सोचने-विचारने की जरूरत हो और वह उनकी देह थका देती हो तो समय बीतने के साथ वे बड़बड़ाना शुरू कर देते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ अगुआ कलीसियाई कार्य के प्रभारी होते हैं और उन्हें पहले-पहल यह नया और ताजा लगता है। वे सत्य की अपनी संगति में बहुत अभिप्रेरित होते हैं और जब वे देखते हैं कि भाई-बहनों को समस्याएँ हैं तो वे उनकी मदद कर उनका समाधान करने में सक्षम रहते हैं। लेकिन कुछ समय तक लगे रहने के बाद उन्हें अगुआई का काम बहुत थकाऊ लगता है और वे निराश हो जाते हैं—वे इसके बदले कोई आसान काम पकड़ लेना चाहते हैं और कठिनाई सहने को तैयार नहीं होते। ऐसे लोगों में लगन की कमी होती है। पाँचवें, एक और विशेषता जो आलसी लोगों को अलग करती है, वह है वास्तविक कार्य करने की उनकी अनिच्छा। जैसे ही उनकी देह को कष्ट होता है, वे अपने काम से बचने और भागने के बहाने बनाते हैं और वह काम किसी और को सौंप देते हैं। लेकिन जब वह व्यक्ति काम पूरा कर देता है तो वे बेशर्मी से पुरस्कार खुद बटोर लेते हैं। आलसी लोगों की ये पाँच प्रमुख विशेषताएँ हैं। तुम लोगों को यह जाँच करनी चाहिए कि क्या कलीसियाओं में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के बीच ऐसे आलसी लोग हैं। अगर तुम्हें कोई मिले तो उसे तुरंत बरखास्त कर दिया जाना चाहिए। क्या आलसी लोग अगुआओं के रूप में अच्छा काम कर सकते हैं? चाहे उनमें किसी भी प्रकार की काबिलियत हो या उनकी मानवता की गुणवत्ता कैसी भी हो, अगर वे आलसी हैं तो वे अपना काम ठीक से नहीं कर पाएँगे और वे काम और महत्वपूर्ण मामलों में देरी करेंगे। कलीसिया का कार्य बहुआयामी होता है; इसके हर पहलू में कई विस्तृत काम शामिल होते हैं और समस्याएँ हल करने के लिए सत्य के बारे में संगति करने की आवश्यकता होती है, ताकि उसे अच्छी तरह से किया जा सके। इसलिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कर्मठ होना चाहिए—काम की प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए उन्हें हर दिन ढेर सारी बातें करनी पड़ती हैं और ढेर सारा काम करना पड़ता है। अगर वे बहुत कम बोलें या बहुत कम काम करें तो कोई परिणाम नहीं निकलेगा। इसलिए अगर कोई अगुआ या कार्यकर्ता आलसी व्यक्ति है तो वह निश्चित रूप से नकली अगुआ है और वास्तविक कार्य करने में अक्षम है। आलसी लोग वास्तविक कार्य नहीं करते, खुद कार्य-स्थलों पर जाना तो दूर की बात है और वे समस्याएँ हल करने या किसी विशिष्ट कार्य में स्वयं को संलग्न करने के इच्छुक नहीं होते। उन्हें किसी भी कार्य में आने वाली समस्याओं की जरा भी समझ या पकड़ नहीं होती। उन्हें दूसरों की बातें सुनकर, जो चल रहा है उसका केवल सतही और अस्पष्ट अंदाजा होता है और वे थोड़े-से धर्म-सिद्धांत का उपदेश देकर जैसे-तैसे काम निपटाते हैं। क्या तुम लोग इस तरह के अगुआ का भेद पहचानने में सक्षम हो? क्या तुम यह बताने में सक्षम हो कि वह नकली अगुआ है? (एक हद तक।) आलसी लोग जो भी कर्तव्य निभाते हैं, उसमें लापरवाह होते हैं। कर्तव्य चाहे कोई भी हो, उनमें लगन नहीं होती, वे रुक-रुककर काम करते हैं और जब भी उन्हें कोई कष्ट होती है तो वे अंतहीन शिकायतें करते जाते हैं। जो भी उनकी आलोचना या काट-छाँट करता है, वे उसे अपशब्द कहते हैं जैसे कोई कर्कशा सड़कों पर लोगों का अपमान कर रही हो, हमेशा दूसरों पर अपना गुस्सा निकालना चाहते हैं और अपना कर्तव्य नहीं निभाना चाहते। उनके अपना कर्तव्य न निभाना चाहने से क्या पता चलता है? इससे पता चलता है कि वे बोझ नहीं उठाते, जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं होते और वे आलसी लोग हैं। वे कष्ट सहना या कीमत चुकाना नहीं चाहते। यह बात खासकर अगुआओं और कार्यकर्ताओं पर लागू होती है : अगर अगुआ और कार्यकर्ता बोझ नहीं उठाते तो क्या वे अगुआओं या कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी कर सकते हैं? बिल्कुल भी नहीं।

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