अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (4) खंड एक

मद पाँच : कार्य के प्रत्येक मद की स्थिति और प्रगति की अद्यतन जानकारी और समझ बनाए रखो, और कार्य में आने वाली समस्याएँ ठीक करने, विचलन सही करने और त्रुटियों को तुरंत सुधारने में सक्षम रहो, ताकि वह सुचारु रूप से आगे बढ़े

आज की संगति अगुआओं और कार्यकर्ताओं की पाँचवीं जिम्मेदारी पर है : “कार्य के प्रत्येक मद की स्थिति और प्रगति की अद्यतन जानकारी और समझ बनाए रखो, और कार्य में आने वाली समस्याएँ ठीक करने, विचलन सही करने और त्रुटियों को तुरंत सुधारने में सक्षम रहो, ताकि वह सुचारु रूप से आगे बढ़े।” हम इस जिम्मेदारी पर ध्यान केंद्रित करेंगे ताकि नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों का गहन-विश्लेषण करें, यह देखें कि क्या नकली अगुआ इस कार्य में अपनी जिम्मेदारियाँ निभाते हैं और क्या वे अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान रहते हैं और अपना कार्य अच्छे ढंग से क्रियान्वित करते हैं।

नकली अगुआ ऐशो-आराम में लिप्त रहते हैं और कार्य को समझने के लिए जमीनी स्तर पर गहराई से नहीं जुड़ते

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की पाँचवीं जिम्मेदारी में सबसे पहले उल्लेख है “कार्य की प्रत्येक मद की स्थिति और प्रगति की अद्यतन जानकारी और समझ बनाए रखना।” “कार्य की प्रत्येक मद की स्थिति” से क्या आशय है? इसका आशय है कि कार्य की किसी खास मद की मौजूदा स्थिति कैसी है? अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यहाँ क्या समझना चाहिए? उदाहरण के लिए : कार्मिक कौन-से विशेष काम कर रहे हैं, वे किन गतिविधियों में व्यस्त हैं, क्या ये गतिविधियाँ जरूरी हैं, क्या ये काम अहम और महत्वपूर्ण हैं, ये कार्मिक कितने दक्ष हैं, क्या कार्य सुचारु रूप से आगे बढ़ रहा है, क्या कार्मिकों की संख्या कार्यभार के बराबर है, क्या हरेक व्यक्ति को पर्याप्त काम दिए गए हैं, क्या कोई ऐसा मामला है जिसमें किसी विशेष काम के लिए बहुत ज्यादा कार्मिक हों—जहाँ बहुत थोड़े-से कार्य के लिए बहुत ज्यादा कार्मिक हों और ज्यादातर लोग निठल्ले हों—या ऐसे मामले हैं जहाँ कार्यभार बहुत ज्यादा है मगर कार्मिक बहुत कम हैं और निरीक्षक प्रभावी ढंग से निर्देश देने में असफल है, जिससे कार्य दक्षता कम हो गई है और प्रगति धीमी हो गई है। ये सभी वे स्थितियाँ हैं जिन्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं को समझना चाहिए। इसके अतिरिक्त कार्य की प्रत्येक मद को क्रियान्वित करते समय क्या कोई बाधाएँ पैदा कर रहा है या चीजें बिगाड़ रहा है, क्या कोई प्रगति को रोक रहा है या उसे क्षीण कर रहा है, क्या किसी प्रकार का हस्तक्षेप या लापरवाही हो रही है—ये भी वे चीजें हैं जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को समझनी चाहिए। तो वे इन समस्याओं की समझ कैसे हासिल करते हैं? हो सकता है कि कुछ अगुआ कभी-कभार फोन करके पूछें, “क्या तुम लोग अभी व्यस्त हो?” उन लोगों से यह सुनकर कि वे बहुत व्यस्त हैं, हो सकता है वे कहें, “अच्छा, अगर तुम लोग व्यस्त हो तो मुझे तसल्ली है।” इस प्रकार कार्य करने के बारे में तुम क्या सोचते हो? इस प्रश्न के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है? क्या यह प्रश्न पूछना अहम और आवश्यक है? यह नकली अगुआओं के कार्य की विशेषता है—वे बस खानापूर्ति कर रहे हैं। वे बस थोड़ा-सा सतही कार्य करके संतुष्ट रहते हैं जिससे उनकी अंतरात्मा को थोड़ा-सा चैन मिले, मगर वे वास्तविक कार्य करने पर ध्यान केंद्रित नहीं करते, कार्य की मौजूदा स्थिति को समझने के लिए जमीनी स्तर तक जाना, प्रत्येक टीम तक जाना तो बहुत दूर की बात है। उदाहरण के लिए, क्या कार्मिक व्यवस्थाएँ उपयुक्त हैं, कार्य कैसे किया जा रहा है, क्या कोई समस्या खड़ी हुई है—नकली अगुआ इन असली समस्याओं के बारे में पूछताछ नहीं करते, बल्कि ऐसी अनजानी जगह ढूँढ़ लेते हैं जहाँ हवा या धूप की तेजी सहे बिना खा-पी और मजे ले सकें। वे महज पत्र भेज देते हैं या कभी-कभार अपनी ओर से किसी से पूछताछ करवा लेते हैं, यह सोचकर कि इन सबका मतलब अपना काम कर देना है। यही नहीं, हो सकता है वे भाई-बहनों को दस-पंद्रह दिनों तक दिखें ही नहीं। जब भाई-बहनों से पूछा जाता है, “तुम लोगों का अगुआ किस कार्य में व्यस्त है? क्या वह कोई ठोस कार्य कर रहा है? क्या वह तुम लोगों को मार्गदर्शन देता है और समस्याएँ हल करता है?” तो वे जवाब देते हैं, “इसका तो जिक्र भी मत करो, हमने महीने भर से अपने अगुआ को देखा ही नहीं है। उसने हमारे लिए जो पिछली सभा की, उसके बाद वह फिर कभी नहीं आया और अभी हमारी बहुत-सी समस्याएँ हैं और इन्हें सुलझाने के लिए हमारी मदद करने वाला कोई नहीं है। दूसरा कोई रास्ता नहीं है; प्रार्थना करने, सिद्धांत खोजने, कार्य पर चर्चा करने और मिलकर सहयोग करने के लिए हमारे समूह के पर्यवेक्षक और भाई-बहनों को साथ आना पड़ता है। यहाँ अगुआ प्रभावी नहीं है; हम अभी अगुआ विहीन हैं।” यह अगुआ अपना कार्य कितने अच्छे ढंग से कर रहा है? ऊपरवाला इस अगुआ से पूछता है, “पिछली फिल्म पूरी हो जाने के बाद क्या तुम्हें कोई नई पटकथा मिली? तुम अभी किस चीज का फिल्मांकन कर रहे हो? काम की प्रगति कैसी है?” अगुआ जवाब देता है, “मैं नहीं जानता। पिछली फिल्म के बाद मैंने उनके साथ एक सभा की थी, जिसके बाद वे सब जोश में आ गए थे, निराश नहीं थे और उन्हें कोई कठिनाई नहीं थी। उसके बाद से हम नहीं मिले हैं। अगर आप उनकी मौजूदा स्थिति के बारे में जानना चाहते हैं तो आपकी खातिर मैं उनसे बात कर पूछ सकता हूँ।” “तुमने स्थिति के बारे में समझने के लिए उनसे पहले क्यों नहीं बात की?” “क्योंकि मैं बहुत अधिक व्यस्त हूँ, हर जगह सभाओं में जा रहा हूँ। अभी उनकी बारी नहीं आई है। मैं केवल तभी स्थिति समझ पाऊँगा जब अगली बार उनके साथ सभा करूँगा।” कलीसिया के कार्य के प्रति उनका यह रवैया होता है। फिर ऊपरवाला कहता है, “तुम मौजूदा स्थिति या फिल्म निर्माण कार्य में आने वाली समस्याओं से अवगत नहीं हो तो सुसमाचार कार्य की प्रगति कैसी चल रही है? किस देश में सुसमाचार कार्य आदर्श रूप में सर्वोत्तम ढंग से फैल चुका है? किस देश के लोगों में अपेक्षाकृत अच्छी काबिलियत है और वे तेजी से समझते हैं? किस देश में कलीसियाई जीवन बेहतर है?” “ओह, मेरा ध्यान केवल सभाओं पर केंद्रित था, मैं इन चीजों के बारे में पूछना भूल गया।” “तो फिर सुसमाचार टीम में कितने लोग गवाही देने में सक्षम हैं? कितने लोगों को गवाही देने के लिए विकसित किया जा रहा है? कलीसिया के कार्य और कलीसियाई जीवन के लिए किस देश में कौन-सा व्यक्ति जिम्मेदार है और इसकी खोज-खबर लेता है? कौन सिंचन और चरवाही करता है? क्या विभिन्न देशों के नए कलीसियाई सदस्यों ने कलीसियाई जीवन जीना शुरू कर दिया है? क्या उनकी धारणाएँ और कल्पनाएँ पूरी तरह सुलझ चुकी हैं? कितने लोगों ने सच्चे मार्ग में अपनी जड़ें जमा ली हैं और वे अब धर्मावलंबियों से गुमराह नहीं हो रहे हैं? एक-दो वर्ष परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद कितने लोग अपना कर्तव्य निभा सकते हैं? क्या तुम इन मामलों को समझते और पकड़ते हो? कार्य में जब समस्याएँ पैदा होती हैं तो उन्हें कौन हल कर सकता है? क्या तुम जानते हो कि सुसमाचार टीम में कौन-सा समूह या कौन-से व्यक्ति अपने कार्य के लिए जिम्मेदार हैं और वास्तविक परिणाम लाते हैं?” “मैं नहीं जानता। यदि आप जानना चाहते हैं तो आपके लिए मैं पूछ सकता हूँ। अगर आप जल्दी में नहीं हैं तो जब समय होगा मैं पूछ लूँगा; अभी मैं व्यस्त हूँ!” क्या इस अगुआ ने कोई ठोस कार्य किया है? (नहीं।) वह हर चीज के लिए कहता है “मैं नहीं जानता”; जिस घड़ी उससे सवाल किया जाता है वह तभी उसके बारे में पूछता है, तो वह किस काम में व्यस्त है? वह सभाओं के लिए या कार्य की जाँच के लिए चाहे किसी भी टीम के पास जाए, वह कार्य में समस्याएँ पहचानने में असफल होता है और वह नहीं जानता कि उन्हें कैसे सुलझाना है। अगर तुम विभिन्न लोगों की स्थितियों और चरित्र की असलियत को एक बार में नहीं जान सकते, तो क्या तुम्हें कम-से-कम कार्य में मौजूद मुद्दों, फिलहाल कौन-सा कार्य किया जा रहा है और वह किस चरण तक प्रगति कर चुका है, इसकी खोज-खबर लेकर उन्हें समझना और पकड़ना नहीं चाहिए? लेकिन नकली अगुआ इतना भी नहीं कर सकते; क्या वे अंधे नहीं हैं? भले ही वे कार्य की खोज-खबर लेने और जाँच करने के लिए कलीसिया की विभिन्न टीमों के पास जाएँ, तो भी वे वास्तविक स्थिति बिल्कुल नहीं समझते, अहम समस्याओं को पहचान नहीं सकते और भले ही वे कुछ समस्याएँ पता लगा लें, तो भी वे उन्हें सुलझा नहीं सकते।

एक बार एक फिल्म निर्माण टीम एक ऐसी चुनौतीपूर्ण फिल्म की शूटिंग की तैयारी कर रही थी, जैसी उन्होंने पहले कभी नहीं बनाई थी। क्या वे इस फिल्म की पटकथा को हाथ में लेने के लिए उपयुक्त थे, क्या निर्देशक और पूरे कर्मीदल में इस कार्य को पूरा करने की क्षमता थी—उनका अगुआ इन स्थितियों से अवगत नहीं था। उसने सिर्फ इतना कहा, “तुम लोगों ने एक नई पटकथा हाथ में ली है। तो आगे बढ़ो और इसकी शूटिंग करो। मैं तुम्हारा साथ दूँगा और तुमसे खोज-खबर लेता रहूँगा। तुम लोग भरसक बढ़िया काम करो और कठिनाइयाँ आने पर परमेश्वर से प्रार्थना करो और परमेश्वर के वचनों के अनुसार उन्हें सुलझाओ।” और फिर वह चला गया। यह अगुआ किसी भी मौजूदा कठिनाई को देख या पहचान नहीं पा रहा था; क्या इस तरह काम अच्छे ढंग से किया जा सकता है? फिल्म निर्माण टीम को पटकथा मिलने के बाद निर्देशक और टीम के सदस्य अक्सर पटकथा का विश्लेषण करते और वेशभूषा और चित्रांकन पर विचार-विमर्श करते, लेकिन उन्हें कोई अंदाजा नहीं था कि फिल्म की शूटिंग कैसे की जाए; वे आधिकारिक रूप से निर्माण शुरू करने में असमर्थ थे। क्या मौजूदा स्थिति यही नहीं है? क्या मौजूदा समस्याएँ यही नहीं हैं? क्या ये वे मसले नहीं है जिन्हें अगुआ को सुलझाना चाहिए? अगुआ ने हर दिन सभाओं में बिताया, कई दिनों की सभाओं के बाद भी किसी वास्तविक समस्या का समाधान नहीं किया गया और अभी भी फिल्मांकन सामान्य ढंग से आगे नहीं बढ़ पाया। क्या अगुआ कोई बदलाव ला पाया था? (नहीं।) वह मनोबल बढ़ाने के लिए सिर्फ नारे लगाता रहा : “हम निठल्ले नहीं बैठ सकते, हम परमेश्वर के घर से खैरात नहीं ले सकते!” वह लोगों को भाषण भी देता : “तुम लोगों में कोई अंतरात्मा नहीं है, बिना किसी भावना के परमेश्वर के घर से खैरात ले रहे हो—क्या तुम्हें कोई शर्म नहीं है?” उसके यह कहने के बाद सबकी अंतरात्मा ने थोड़ी फटकार महसूस की : “हाँ, काम इतनी धीमी गति से चल रहा है और हम यों ही हर दिन तीन बार खाना खा रहे हैं—क्या यह खैरात लेना नहीं है? हमने वास्तव में कोई कार्य नहीं किया है। तो फिर कार्य में पैदा हो रही इन समस्याओं को कौन सुलझाएगा? हम नहीं सुलझा सकते, इसलिए हम अगुआ से पूछते हैं, लेकिन अगुआ इन समस्याओं को सुलझाने के तरीके के बारे में संगति किए बिना बस हमसे मनोयोग से प्रार्थना करने, परमेश्वर के वचन पढ़ने और सामंजस्यपूर्ण सहयोग करने को कहता है।” अगुआ ने हर दिन शूटिंग स्थल पर सभाएँ कीं लेकिन ये समस्याएँ बिल्कुल नहीं सुलझ पाईं। समय के साथ कुछ लोगों की आस्था ठंडी पड़ गई और वे हताशा की स्थिति में चले गए क्योंकि उन्हें आगे का रास्ता नजर नहीं आया और वे नहीं जानते थे कि फिल्मांकन कैसे किया जाए। उन्होंने अपनी आखिरी उम्मीद अगुआ पर लगा रखी थी, इस आशा से कि वह कुछ वास्तविक समस्याएँ हल कर पाएगा, लेकिन यह अगुआ तो अंधे के बराबर था, न वह इस पेशे को सीख रहा था न ही वह इस पेशे को समझने वाले लोगों के साथ संगति, विचार-विमर्श और खोज कर रहा था। वह अक्सर परमेश्वर के वचनों की पुस्तक हाथ में लेकर कहता था, “मैं आध्यात्मिक भक्ति के लिए परमेश्वर के वचनों का पाठ कर रहा हूँ। मैं खुद को सत्य से लैस कर रहा हूँ। कोई मुझे परेशान न करे, मैं व्यस्त हूँ!” आखिर में अधिकाधिक समस्याओं का ढेर लगता गया, जिससे कार्य लगभग ठप पड़ गया, फिर भी नकली अगुआ सोच रहा था कि वह बहुत बड़ा कार्य कर रहा है। ऐसा क्यों था? वह मानता था कि चूँकि उसने सभाएँ की थीं, कार्य की स्थिति के बारे में पूछताछ की थी, समस्याओं की पहचान की थी, परमेश्वर के वचन साझा किए थे, लोगों की स्थितियाँ बताई थीं और सभी लोगों ने इन स्थितियों से अपनी तुलना की थी और अपना कर्तव्य अच्छे ढंग से निभाने का संकल्प लिया था, इसलिए एक अगुआ के रूप में उसकी जिम्मेदारी पूरी हो चुकी थी और उसने वह सब कर दिया था जिसकी उससे उम्मीद की जा सकती थी—अगर पेशेवर पहलुओं से संबंधित विशेष कामों का अच्छे से प्रबंधन न किया जा सके, तो यह अगुआ की चिंता का विषय नहीं था। यह किस प्रकार का अगुआ है? कलीसिया का कार्य आधा पंगु होने की स्थिति में पहुँच चुका था, फिर भी वह जरा भी चिंतित या परेशान नहीं था। अगर ऊपरवाला पूछताछ या आग्रह न करे तो अगुआ इस बात का जिक्र किए बिना कि उसके नीचे क्या चल रहा है और कोई भी समस्या सुलझाए बिना बस खींचता रहेगा। क्या इस प्रकार के अगुआ ने अपनी अगुआई की जिम्मेदारियाँ निभाईं? (नहीं।) तो वह सभाओं में पूरा दिन किस बारे में बोल रहा था? वह लक्ष्यहीन ढंग से बड़बड़ाता था, महज धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देता था और नारे लगाता था। अगुआ कार्य की वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं करता था, लोगों की लापरवाह और नकारात्मक स्थितियों को दूर नहीं करता था और नहीं जानता था कि सत्य सिद्धांतों के अनुसार लोगों के कार्य के मसलों का कैसे समाधान किया जाए। नतीजतन, संपूर्ण परियोजना ठप पड़ गई और लंबी अवधि तक उसमें कोई प्रगति नहीं देखी जा सकी। फिर भी अगुआ बिल्कुल भी चिंतित नहीं था। क्या यह नकली अगुआओं के वास्तविक कार्य न करने की अभिव्यक्ति नहीं है? नकली अगुआओं की इस अभिव्यक्ति का सार क्या है? क्या यह जिम्मेदारी की गंभीर उपेक्षा नहीं है? अपने कार्य की गंभीर उपेक्षा करना, अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने में विफल होना—नकली अगुआ ठीक यही करते हैं। तुम मौके पर सिर्फ इसलिए बने रहते हो ताकि वास्तविक समस्याओं को सुलझाए बिना बस खानापूर्ति करो। तुम मौके पर सिर्फ लोगों को धोखा देने के लिए बने रहते हो; तुम कोई वास्तविक कार्य नहीं करते, भले ही सारा समय वहीं रहो तो भी इससे कुछ भी हाथ नहीं आएगा। कार्य और पेशेवर पहलुओं में विभिन्न समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जिनमें से कुछ को तुम हल कर सकते हो, पर हल करते नहीं हो—यह पहले ही जिम्मेदारी की गंभीर उपेक्षा है। यही नहीं, तुम अपनी दृष्टि और मन दोनों से दृष्टिहीन हो : कभी-कभी जब तुम्हें समस्याओं का पता लगता भी है तो भी तुम उनके सार की असलियत नहीं जान पाते। तुम उन्हें नहीं सुलझा सकते, लेकिन तुम उन्हें सँभालने में सक्षम होने का ढोंग करते हो, बड़ी मुश्किल से सँभालते हो जबकि तुम सत्य को समझने वाले लोगों के साथ संगति करने या उनसे परामर्श करने से सरासर इनकार करते हो और ऊपरवाले को न तो सूचना देते हो, न ही उससे खोजते हो। ऐसा क्यों है? क्या तुम काट-छाँट किए जाने से डरते हो? डरते हो कि ऊपरवाला तुम्हारे बारे में सच जान जाएगा और तुम्हें बरखास्त कर देगा? क्या यह परमेश्वर के घर के कार्य को जरा-सा भी कायम रखे बिना रुतबे पर ध्यान केंद्रित करना नहीं है? इस प्रकार की मानसिकता के साथ तुम अपना कर्तव्य अच्छे से कैसे निभा सकते हो?

कोई अगुआ या कर्मी चाहे जो भी महत्वपूर्ण कार्य करे और उस कार्य की प्रकृति चाहे जो हो, उसकी पहली प्राथमिकता यह समझना और पकड़ना है कि कार्य कैसे चल रहा है। चीजों की खोज-खबर लेने और प्रश्न पूछने के लिए उन्हें व्यक्तिगत रूप से वहाँ होना चाहिए और उनकी सीधी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। उन्हें केवल सुनी-सुनाई बातों के भरोसे नहीं रहना चाहिए या दूसरे लोगों की रिपोर्टों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। बल्कि उन्हें अपनी आँखों से देखना चाहिए कि कार्मिकों की स्थिति क्या है और काम कैसे आगे बढ़ रहा है और समझना चाहिए कि कठिनाइयाँ क्या हैं, कोई क्षेत्र ऊपरवाले की अपेक्षाओं के विपरीत तो नहीं है, कहीं सिद्धांतों का उल्लंघन तो नहीं हुआ, कहीं कोई बाधा या गड़बड़ी तो नहीं है, आवश्यक उपकरण की या पेशेवर कामों से जुड़े कार्य में निर्देशात्मक सामग्री की कमी तो नहीं है—उन्हें इन सब पर नजर रखनी चाहिए। चाहे वे कितनी भी रिपोर्टें सुनें या सुनी-सुनाई बातों से वे कितना भी कुछ छान लें, इनमें से कुछ भी व्यक्तिगत दौरे पर जाने की बराबरी नहीं करता; चीजों को अपनी आँखों से देखना अधिक सटीक और विश्वसनीय होता है। एक बार वे स्थिति के सभी पक्षों से परिचित हो जाएँ, तो उन्हें इस बात का अच्छा अंदाजा हो जाएगा कि क्या चल रहा है। उन्हें खासतौर पर इस बात की स्पष्ट और सटीक समझ होनी चाहिए कि कौन अच्छी क्षमता का है और विकसित किए जाने योग्य है, क्योंकि इसी से वे लोगों को सटीक ढंग से विकसित कर उनका उपयोग कर पाते हैं जो इस बात के लिए अहम है कि अगुआ और कार्मिक अपना काम ठीक से करें। अगुआओं और कर्मियों के पास अच्छी काबिलियत वाले लोगों को विकसित और प्रशिक्षित करने का मार्ग और सिद्धांत होने चाहिए। इतना ही नहीं, उन्हें कलीसिया के कार्य में मौजूद विभिन्न प्रकार की समस्याओं और कठिनाइयों को हल करने की अच्छी पकड़ और गहरी समझ होनी चाहिए और उन्हें पता होना चाहिए कि मुश्किलों को कैसे दूर किया जाए, उनके पास अपने विचार और सुझाव भी होने चाहिए कि काम को कैसे आगे बढ़ाना है और इसकी भविष्य की क्या संभावनाएँ हैं। अगर वे बहुत आसानी से, बिना किसी संदेह या आशंका के ऐसी चीजों के बारे में स्पष्टता से बोलने में सक्षम हों तो यह काम करना बहुत आसान हो जाएगा। और इस प्रकार कार्य करके अगुआ अपनी जिम्मेदारियाँ निभा रहा होगा, है ना? उन्हें कार्य की उपरोक्त समस्याओं का समाधान करने के तरीकों से भली-भाँति परिचित होना चाहिए और उन्हें अक्सर इन बातों के बारे में सोचते रहना चाहिए। कठिनाइयाँ आने पर उन्हें सबके साथ इन बातों पर संगति और चर्चा करनी चाहिए और समस्याओं का समाधान करने के लिए सत्य खोजना चाहिए। इस प्रकार दोनों पाँव दृढ़ता से जमीन पर रखे हुए वास्तविक कार्य करने से ऐसी कोई कठिनाई नहीं होगी जिसका समाधान न किया जा सके। क्या नकली अगुआ जानते हैं कि इसे कैसे करना चाहिए? (नहीं।) नकली अगुआ सिर्फ दिखावा करना और लोगों को धोखा देना जानते हैं, वे जिन चीजों को नहीं समझते उन्हें समझने का दिखावा करते हैं, किसी भी वास्तविक समस्या को सुलझाने में असमर्थ होते हैं और खुद को सिर्फ फालतू मामलों में व्यस्त रखते हैं। जब उनसे पूछा जाता है कि वे किस काम में व्यस्त थे तो वे कहते हैं, “हमारे रहने की जगह में कुछ मसनदों की कमी थी और फिल्म निर्माण टीम के पास वेशभूषा के लिए कपड़े की कमी थी, इसलिए मैं खरीदने चला गया। एक बार रसोईघर में चीजों की कमी हो गई और रसोइया बाहर नहीं जा सका, तो मुझे ही बाहर जाकर कुछ खरीदारी करनी पड़ी और मैंने रास्ते में आटे की कुछ थैलियाँ उठा लीं। ये तमाम काम मुझे ही करने पड़े।” वे वास्तव में बहुत व्यस्त थे। क्या वे अपने उचित कामों को नजरअंदाज नहीं कर रहे हैं? अगुआ के रूप में अपनी जिम्मेदारियों के दायरे में आने वाले कार्य की बात आने पर वे जरा भी परवाह नहीं करते या जरा भी बोझ नहीं उठाते और सिर्फ खानापूर्ति करने की कोशिश करते हैं। उनकी काबिलियत का बहुत कमजोर होना और उनका दृष्टि और दिमाग दोनों से विहीन होना वैसे ही काफी गंभीर समस्या है, फिर भी वे कोई बोझ नहीं उठाते और आरामतलब होते हैं, अक्सर कई-कई दिन किसी बढ़िया जगह में ऐश करते हैं। जब किसी को कोई समस्या होती है और समाधान के लिए उनकी ओर देखता है, तो वे कहीं नजर नहीं आते और कोई भी नहीं जानता कि वे असल में कहाँ व्यस्त हैं। वे अपने समय का खुद प्रबंधन करते हैं। इस हफ्ते एक सुबह वे एक टीम के लिए सभा करते हैं, दोपहर में आराम फरमाते हैं और फिर शाम को वे विचार-विमर्श करने के लिए सामान्य मामलों के प्रभारी लोगों की सभा करते हैं। अगले हफ्ते वे बाहरी मामलों के प्रभारी लोगों की सभा करते हैं और लापरवाही से पूछते हैं, “क्या कोई कठिनाई है? क्या इस दौरान तुमने परमेश्वर के वचनों का पाठ किया है? क्या गैर-विश्वासियों से अपने संपर्क से तुम बेबस या बाधित हुए हो?” ये कुछ सवाल पूछने के बाद वे सभा समाप्त कर देते हैं। पलक झपकते ही एक महीना गुजर जाता है। उन्होंने क्या कार्य किया है? हालाँकि उन्होंने प्रत्येक टीम के लिए बारी-बारी से सभाएँ कीं, फिर भी उन्होंने किसी भी टीम के कार्य की स्थिति के बारे में कुछ भी नहीं जाना, न ही उन्होंने इस बारे में पता लगाया या पूछताछ की, या प्रत्येक टीम के कार्य में न तो वे शामिल हुए और न ही उसे निर्देशित किया। उन्होंने कार्य में भाग नहीं लिया, उसकी खोज-खबर नहीं ली या कोई दिशा-निर्देश नहीं दिया, लेकिन उन्होंने कुछ चीजें समय के पाबंद होकर कीं : समय पर खाना, समय पर सोना और समय पर सभाएँ करना। उनका जीवन काफी नियमित है, वे अपना खूब ख्याल रखते हैं लेकिन उनका कार्य निष्पादन मानक स्तर का नहीं होता है।

कुछ अगुआ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ बिल्कुल भी नहीं निभाते, कलीसिया का अनिवार्य कार्य नहीं करते, बल्कि सिर्फ कुछ तुच्छ सामान्य मामलों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वे रसोई के प्रबंधन में माहिर होते हैं, हमेशा पूछते हैं, “आज हम क्या खाने वाले हैं? क्या हमारे पास अंडे हैं? कितना मांस बचा है? अगर खत्म हो गया है तो मैं जाकर कुछ खरीद लाता हूँ।” वे रसोईघर के कार्य को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं, बिना वजह रसोईघर में टहलते रहते हैं, हमेशा ज्यादा मछली, ज्यादा मांस खाने के बारे में सोचते हैं, ज्यादा मजे लेते हैं और बिना किसी हिचक के खाना खाते हैं। जब प्रत्येक टीम के लोग काम करने में व्यस्त होते हैं, अपने कर्तव्य अच्छे ढंग से निभाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तब ये अगुआ सिर्फ बढ़िया खाने और बढ़िया आरामदेह जीवन जीने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। अगुआ बनने के बाद से वे न सिर्फ कलीसिया के कार्य के बारे में चिंतित नहीं रहे और कड़ी मेहनत करने से बचते रहे, बल्कि उन्होंने खुद को हट्टा-कट्टा और गुलाबी गालों वाला बनाए रखने का भी ख्याल रखा है। वह क्या काम है जो वे हर दिन करते हैं? वे कोई भी वास्तविक कार्य ठीक से किए बिना या किसी भी वास्तविक समस्या को हल किए बिना कुछ सामान्य मामलों के कार्यों, कुछ तुच्छ मामलों में व्यस्त रहते हैं। फिर भी वे अपने दिलों में कोई पछतावा महसूस नहीं करते हैं। सभी नकली अगुआ कलीसिया का अहम कार्य नहीं करते, न ही वे कोई वास्तविक समस्या सुलझाते हैं। अगुआ बनने के बाद से वे सोचते हैं, “मुझे विशेष कार्य करने के लिए कुछ लोगों को तलाशने की जरूरत है और फिर मुझे वह काम खुद करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।” वे मानते हैं कि एक बार जब वे कार्य की प्रत्येक मद के लिए पर्यवेक्षकों की व्यवस्था कर लेंगे, तो फिर उनके लिए कुछ भी करने को नहीं बचेगा। वे मानते हैं कि यही अगुआई का कार्य करना है और अब वे अपने रुतबे के लाभों का आनंद लेने के हकदार हैं। वे किसी भी वास्तविक कार्य में भाग नहीं लेते, कोई खोज-खबर नहीं लेते या दिशा-निर्देश नहीं देते हैं और वे समस्याएँ सुलझाने के लिए खोज-बीन या शोध नहीं करते। क्या वे एक अगुआ की जिम्मेदारियाँ निभाते हैं? क्या कलीसिया का कार्य इस तरह से अच्छे से किया जा सकता है? जब ऊपरवाला उनसे पूछता है कि कार्य कैसा चल रहा है तो वे कहते हैं, “कलीसिया का सारा कार्य सामान्य है। कार्य की प्रत्येक मद को एक पर्यवेक्षक सँभाल रहा है।” इस बारे में और अधिक प्रश्न करने पर कि कार्य में कोई समस्या तो नहीं है, वे जवाब देते हैं, “मुझे नहीं पता। शायद कोई समस्या नहीं है!” नकली अगुआ का अपने कार्य के प्रति यही रवैया होता है। एक अगुआ के रूप में तुम खुद को सौंपे गए कार्य के प्रति पूरी गैर-जिम्मेदारी दिखाते हो; ये सब दूसरों को सौंप दिए जाते हैं और खुद तुम्हारी ओर से कोई खोज-खबर नहीं ली जाती, कोई पूछताछ नहीं होती और समस्याएँ सुलझाने में कोई सहायता नहीं दी जाती—तुम बस वहाँ हाथ झाड़कर काम कराने वाले मुखिया की तरह बैठे रहते हो। क्या तुम अपनी जिम्मेदारी की उपेक्षा नहीं करते? क्या तुम एक अधिकारी की तरह काम नहीं कर रहे हो? कोई विशेष कार्य न करना, कार्य की खोज-खबर न लेना, किसी भी वास्तविक समस्या को न सुलझाना—क्या ऐसे अगुआ महज सजावट की वस्तु नहीं हैं? क्या वे नकली अगुआ नहीं हैं? यह नकली अगुआ की बानगी है। नकली अगुआ का कार्य वास्तव में कार्य में भाग लिए बिना या उसकी खोज-खबर लिए बिना, काम में आने वाली समस्याओं को खोजना या पहचानना नहीं, बस सिर्फ मुँह चलाना और आदेश जारी करना है। समस्याओं को पहचानने के बाद भी वे उनका समाधान नहीं करते हैं। वे सिर्फ हाथ झाड़कर काम कराने वाले मुखिया की तरह कार्य करते हैं, यह सोचते हैं कि इसे ही कार्य करना कहते हैं। और फिर इस तरह अगुआई करके भी उनके मन की शांति भंग नहीं होती; वे हर दिन आराम से जीते हैं और हर पल खुश रहते हैं। ऐसा कैसे है कि वे अभी भी मुस्कुराते रहते हैं? मुझे एक तथ्य का पता चला है : ऐसे लोग बेहद बेशर्म होते हैं। वे वास्तव में एक अगुआ की तरह कार्य नहीं करते, वे काम करने के लिए बस कुछ लोगों की व्यवस्था कर देते हैं और मान लेते हैं कि काम हो गया। तुम उन्हें कभी भी कार्यस्थल पर नहीं देखते; कलीसिया के कार्य की प्रगति या नतीजों के बारे में उन्हें कुछ भी पता नहीं होता, फिर भी वे सोचते हैं कि वे अगुआ के रूप में योग्य हैं और मानकों पर खरे उतरते हैं। यह बिल्कुल भी वास्तविक कार्य न करने वाले एक नकली अगुआ की बानगी है। नकली अगुआओं के पास कलीसिया के कार्य का बोझ नहीं होता, चाहे जितनी भी समस्याएँ आएँ, वे न तो चिंतित होते हैं और न ही व्याकुल; वे सिर्फ कुछ सामान्य कार्य करके संतुष्ट हो जाते हैं और फिर सोचते हैं कि उन्होंने वास्तविक कार्य कर लिया है। ऊपरवाला चाहे किसी भी तरह से नकली अगुआओं को उजागर करे, वे भीतर से बुरा महसूस नहीं करते, न ही वे इस प्रकाशन में खुद को देखते हैं; वे जरा भी आत्म-चिंतन या पछतावा नहीं करते। क्या ऐसे लोग अंतरात्मा और विवेक से रिक्त नहीं हैं? कोई व्यक्ति जिसमें वास्तव में अंतरात्मा और विवेक है, वह कलीसिया के कार्य से इस तरह पेश आ सकता है? निश्चित रूप से नहीं।

आम तौर पर थोड़ी-सी भी अंतरात्मा और विवेक युक्त लोग नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों के प्रकाशन के बारे में सुनने और इन वर्णनों से अपनी तुलना करने के बाद किसी-न-किसी हद तक यह देखने में सक्षम होंगे कि इन वर्णनों में किसी न किसी हद तक उनकी बात हो रही है। ऐसे में उनके चेहरे लाल हो जाएँगे, वे बेचैन हो जाएँगे, उनके दिल असहज हो जाएँगे, वे परमेश्वर का ऋणी महसूस करेंगे और वे चुपचाप संकल्प लेंगे : “पहले मैं देह के आराम में लिप्त रहता था, अपना कार्य अच्छे से नहीं करता था, अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभाता था, वास्तविक कार्य नहीं करता था, सवाल पूछे जाने पर अनजान रहता था, हमेशा काम से बचना चाहता था, हमेशा दिखावा करता था, मैं इस बात से डरता था कि जब दूसरे देख लेंगे कि मेरे साथ वास्तव में क्या चल रहा है तो मेरी प्रतिष्ठा और रुतबा खत्म हो जाएगा और मेरे पास अगुआ का जो पद है वह कायम नहीं रह पाएगा। सिर्फ अब जाकर मैं यह देख रहा हूँ कि ऐसा व्यवहार शर्मनाक है और यह जारी नहीं रह सकता। मुझे कार्रवाई करने में थोड़ा अधिक ईमानदार होना चाहिए और मेहनत करनी चाहिए। अगर मैं अच्छे से कार्य करने में विफल होता रहा तो यह क्षमायोग्य नहीं होगा—मेरी अंतरात्मा मुझ पर आरोप लगाएगी!” इस प्रकार के नकली अगुआओं में अब भी थोड़ी मानवता और अंतरात्मा होती है; कम-से-कम उनकी अंतरात्मा तो जागरूक है। मैं जब उन्हें उजागर करता हूँ तो इसे सुनकर वे खुद को इन वचनों में देखते हैं और परेशान हो जाते हैं; वे चिंतन करते हैं : “मैंने कोई वास्तविक कार्य नहीं किया है, न ही कोई वास्तविक समस्या सुलझाई है। मैं परमेश्वर के आदेश या अगुआ की पदवी के लायक नहीं हूँ। तो फिर मुझे क्या करना चाहिए? मुझे सुधार करना चाहिए; अब से मुझे कड़ी मेहनत शुरू कर देनी चाहिए और वास्तविक समस्याएँ हल करनी चाहिए, हरेक विशेष कार्य में भाग लेना चाहिए, कामचोरी से बचना चाहिए, दिखावा करने से बचना चाहिए और अपनी पूरी क्षमता से कार्य करना चाहिए। परमेश्वर लोगों के दिलों और अंतरतम के विचारों की जाँच-पड़ताल करता है, परमेश्वर हरेक की असलियत जानता है; चाहे मैं चीजें अच्छे ढंग से करूँ या खराब ढंग से, इन्हें पूरे दिल से करना सबसे महत्वपूर्ण है। अगर मैं यह भी नहीं कर सकता, तो भी क्या मुझे मनुष्य कहा जा सकता है?” स्वयं के बारे में इस प्रकार आत्मचिंतन करने को अंतरात्मा होना कहा जाता है। तुम अंतरात्मा-विहीन लोगों को चाहे जैसे भी उजागर कर लो, उनका चेहरा लाल नहीं होता, न ही उनके दिल की धड़कन तेज होती है; वे बस वही करते रहते हैं जो वे चाहते हैं। भले ही वे खुद को परमेश्वर के प्रकाशन में देख लें, वे इसके बारे में उदासीन रहते हैं : वे सोचते हैं, “ऐसा नहीं है कि मेरा नाम लिया गया था। मैं क्यों डरूँ? मेरी काबिलियत अच्छी है, मैं प्रतिभाशाली हूँ; मेरे बगैर परमेश्वर के घर का काम नहीं चल सकता! मैं कोई वास्तविक कार्य नहीं करता हूँ तो क्या हुआ? मैं इसे खुद नहीं करता, लेकिन किसी और से करवा देता हूँ, तो यह काम हो तो रहा है, है ना? किसी भी स्थिति में तुम मुझे जो भी काम करने को कहते हो, मैं तुम्हारे लिए वह करवा देता हूँ, भले ही मैं इसे करने के लिए किसी की भी व्यवस्था करूँ। मेरी काबिलियत अच्छी है, इसलिए मैं होशियारी से कार्य करता हूँ। भविष्य में मैं खानापूर्ति करता रहूँगा और जैसे चाहूँ वैसे जीवन के मजे लेता रहूँगा।” मैं वास्तविक कार्य न करने को लेकर नकली अगुआओं का चाहे जैसे गहन-विश्लेषण करूँ या उन्हें उजागर करूँ, ये लोग जस के तस बने रहते हैं, पूरी तरह से बेखबर : “दूसरे जो सोचना चाहते हैं, उन्हें सोचने दो और वे मुझे जैसे देखना चाहें वैसा देखने दो—मैं तो यह काम नहीं करूँगा!” क्या ऐसे नकली अगुआओं में अंतरात्मा होती है? (नहीं।) यह चौथी बार है कि हमने नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों को उजागर करने के बारे में संगति की है और हर बार जब मैं ऐसे व्यक्तियों को उजागर करता हूँ, तो जरा-सी भी अंतरात्मा वाले लोग अत्यधिक व्यग्र हो जाते हैं, अपना कार्य अच्छे ढंग से न करने के कारण असुरक्षित महसूस करते हैं और चुपचाप संकल्प लेते हैं कि जल्दी से प्रायश्चित्त करेंगे और पूरी तरह बदल जाएँगे। जबकि अंतरात्मा-विहीन लोग बेहद बेशर्म होते हैं; उन्हें कुछ भी महसूस नहीं होता। चाहे मैं जैसे भी संगति करूँ, वे अपने दिन पहले की तरह ही गुजारते हैं और जैसा चाहते हैं वैसे ही जीवन का मजा लेते हैं। जब तुम उनसे पूछते हो, “कुछ लोग सुसमाचार कार्य के लिए जिम्मेदार हैं, कुछ अनुवाद कार्य के लिए और कुछ दूसरे लोग फिल्म निर्माण कार्य के लिए—तुम किस विशिष्ट कार्य के लिए जिम्मेदार हो?” तो वे कहते हैं : “हालाँकि मैंने कोई विशिष्ट कार्य नहीं किया है, मैं हर चीज की निगरानी करता हूँ। मैं उनके लिए सभाएँ करता हूँ।” अगर तब तुम उनसे पूछते हो, “तुम एक महीने में कितनी सभाएँ करते हो?” तो वे जवाब देंगे : “कम-से-कम हर महीने एक बड़ी सभा और हर पखवाड़े एक छोटी सभा।” और जब तुम उनसे पूछते हो, “सभाएँ करने के अलावा तुमने और कौन-सा विशिष्ट कार्य किया है?” तो वे कहेंगे : “सभाओं में इतना व्यस्त रहते हुए मैं कौन-सा विशिष्ट कार्य कर सकता हूँ? इसके अलावा मेरे प्रबंधन का दायरा इतना व्यापक है कि मेरे पास विशिष्ट कार्य के लिए समय ही नहीं है।” ये नकली अगुआ महसूस करते हैं कि वे पूरी तरह से सही हैं—वे बिल्कुल स्थिर और टिकाऊ अगुआ हैं! उन्हें चाहे जैसे भी उजागर किया जाए या चाहे उनकी कैसी भी काट-छाँट की जाए, वे इसको लेकर लेशमात्र भी परेशान नहीं होते। अगर मुझसे कोई विशेष कार्य करवाया जाता, जैसे कि पाँच लोगों के लिए खाना पकाना, लेकिन मैंने चार लोगों के लिए ही पर्याप्त खाना बनाया हो, तो पर्याप्त खाना न बनाने को लेकर मैं असहज महसूस करता और सबको अच्छे ढंग से खाना न खिलाने के लिए मैं खुद को दोषी महसूस करता। फिर मैं सोचता कि इसकी भरपाई कैसे की जाए, यह सुनिश्चित करता कि अगली बार सही हिसाब करूँ ताकि हरेक को पर्याप्त खाना मिले। और अगर किसी ने कहा कि खाने में बहुत ज्यादा नमक है, तब भी मुझे बुरा लगता। मैं पूछता कि किस व्यंजन में नमक ज्यादा है, फिर दूसरों से पूछता कि क्या मिर्च-मसाले ठीक पड़े हैं। हालाँकि सबको खुश करना बहुत कठिन है, फिर भी मुझे अपनी भूमिका अच्छे से निभाने की भरसक कोशिश करनी चाहिए। इसे ही अपनी जिम्मेदारी निभाना कहा जाता है; लोगों के पास यही विवेक होना चाहिए। तुम्हें हमेशा अपनी जिम्मेदारियाँ निभानी चाहिए; तुम्हारा काम चाहे जो भी हो, तुम्हें उसमें खुद भाग लेना चाहिए। अगर कोई दूसरी राय दे—भले ही वह चाहे कोई भी हो—और तुम्हें एहसास होता है कि तुम गलत हो और उसे सुनने के बाद तुम बुरा महसूस करते हो, तो तुम्हें सुधार करना चाहिए और तुम्हें भविष्य में दिल लगाकर काम करना चाहिए, उसे अच्छी तरह से करना चाहिए, भले ही इसमें थोड़ा कष्ट सहना पड़े। नकली अगुआओं में यह भावना नहीं होती, इसलिए वे जरा भी कष्ट नहीं सहते। नकली अगुआओं के प्रकाशन के बारे में ये तथ्य सुनने के बाद वे कुछ भी महसूस नहीं करते, अभी भी अपने भोजन का मजा लेते हैं, चैन की नींद लेते हैं और वैसी ही खुशनुमा मनःस्थिति में जीते हैं और अपने कंधों पर भारी बोझ उठाने की भावना महसूस नहीं करते या अपने दिलों में अपराध बोध का दर्द महसूस नहीं करते। ये किस प्रकार के लोग होते हैं? ऐसे लोगों के चरित्र में एक समस्या होती है : उनमें अंतरात्मा नहीं होती, वे विवेक से रिक्त होते हैं और उनका चरित्र अधम होता है। बड़े लंबे समय तक नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों को उजागर करने के बावजूद—पोषण और संगति करने का सकारात्मक परिप्रेक्ष्य हो या उन्हें उजागर करने और उनका गहन-विश्लेषण करने का नकारात्मक परिप्रेक्ष्य हो, दोनों ही परिप्रेक्ष्यों से—नकली अगुआओं का एक हिस्सा अभी भी अपनी ही समस्याओं को पहचान नहीं पाता, न ही वह कभी आत्म-चिंतन और प्रायश्चित्त करने का इरादा रखता है। अगर ऊपरवाले की ओर से कोई निरीक्षण और आग्रह नहीं किया जाए, तो वे अभी भी काम में भरसक खानापूर्ति करेंगे और जरा भी रास्ता बदले बिना चलते रहते हैं। चाहे मैं उन्हें जितना भी उजागर करूँ, वे बिना परेशान हुए और बिल्कुल बेखबर वहाँ बैठे रहते हैं। क्या वे बहुत ज्यादा बेशर्म नहीं हैं? इस प्रकार के लोग अगुआ या कार्यकर्ता बनने के योग्य नहीं हैं; वे ऐसे अधम चरित्र वाले हैं कि वे शर्मो-हया नहीं जानते! जहाँ तक सामान्य लोगों की बात है, अगर कोई उनकी कमियों, खामियों या उनके किसी भी अनुपयुक्त या सिद्धांतों के विरुद्ध किए हुए काम का जिक्र कर दे—विशिष्ट रूप से उजागर किए जाने को छोड़ भी दें—उनके लिए सहन करना कठिन होगा और वे परेशान और अपमानित महसूस करेंगे और सोचेंगे कि खुद को कैसे बदलें और सुधारें। जबकि ये नकली अगुआ अपने कार्य को पूरी तरह से बिगाड़ लेते हैं और फिर भी साफ अंतरात्मा के साथ जीवन जीते हैं, चिंतित या व्याकुल नहीं होते और उन्हें किसी भी तरह उजागर किया जाए वे उससे पूरी तरह बेखबर होते हैं—यहाँ तक कि वे छिपने और ऐश करने के स्थान भी ढूँढ़ लेते हैं और कभी कहीं नजर नहीं आते। वे वास्तव में कोई शर्मो-हया नहीं जानते!

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