अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (3) खंड तीन

अभी-अभी मैंने कई तरह के लोगों के बारे में संगति की है जो खाने, सोने और मनोरंजन के लालची होते हैं। एक और तरह का व्यक्ति होता है। शुरू में जब पर्यवेक्षकों का चयन किया जा रहा होता है, तो लगता है कि ऐसा व्यक्ति हर तरह से इस भूमिका के लिए उपयुक्त है, और भाई-बहन सभी उन्हें चुनने के इच्छुक होते हैं। उन्हें लगता है कि इस व्यक्ति में अच्छी मानवता है, वह उत्साही है, अपने पेशे में कुशल है, साथ ही टीम में हर लिहाज से सबसे अच्छा और सबसे मजबूत है, जिससे वह पर्यवेक्षक पद के लिए एक स्पष्ट विकल्प बन जाता है। परंतु, चुने जाने के कुछ समय बाद, इस व्यक्ति को अक्सर नींद आने लगती है, यहाँ तक कि सभाओं के दौरान भी। जब दूसरे उनसे बात करते हैं, तो वह हमेशा भ्रमित रहता है और सवालों के अप्रासंगिक जवाब देता है। वह पहले तो ऐसा नहीं था, तो अचानक ऐसा क्यों लगता है कि वह एक अलग व्यक्ति बन गया है? बाद में, किसी को अनजाने में पता चलता है कि इस पर्यवेक्षक की किसी खास व्यक्ति के साथ बातचीत से ऐसा लगता है कि उन दोनों के बीच कोई रोमांटिक रिश्ता है, और अटकलें लगाई जाने लगती हैं कि क्या वे वास्तव में रोमांटिक रिश्ते में हैं। जैसे-जैसे यह मामला अधिक स्पष्ट होता जाता है, यह पर्यवेक्षक पहले से अधिक उलझन में पड़ता जाता है। जब भी उससे कोई सवाल पूछा जाता है या किसी चीज के बारे में बात की जाती है, तो पहले की तरह उसके जवाब तुरंत नहीं होते, और वे पहले की तरह स्पष्ट और समझने योग्य नहीं लगते। वह वे काम जो किसी पर्यवेक्षक को करने चाहिए कम और कम करने लगता है, और अपना कर्तव्य निभाने में उसका उत्साह कम और कम होता जाता है। ऐसा लगता है जैसे वह कोई अलग व्यक्ति बन गया है; वह पहले की तुलना में अपने कपड़ों और व्यक्तिगत साज-सज्जा में अधिक रुचि रखने लगता है। यहाँ एक समस्या है। पहले, काम की व्यस्तता के दौरान, वह शायद ही कभी नहाता था, लेकिन अब वह दिन में दो बार अपना चेहरा धोता है, और अपने बालों में कंघी करता है और मौका मिलते ही खुद को आईने में देखता है, और बार-बार दूसरों से पूछता है, “क्या तुम्हें लगता है कि हाल ही में मेरी त्वचा गोरी या काली हो गई है? ऐसा क्यों लगता है कि मेरा रंग साँवला हो गया है?” लोग जवाब देते हैं, “पर्यवेक्षक होते हुए तुम्हारे लिए इन चीजों के बारे में बात करना बहुत ही तुच्छ बात है—गोरा या काला होने से किसी चीज पर क्या फर्क पड़ता है?” वह लगातार इन तुच्छ विषयों के बारे में बात करता है, और अपना काम करने के मूड में नहीं होता। उसे जब भी मौका मिलता है, वह कपड़ों, महिलाओं, पुरुषों, प्रेम और लोग किस तरह का जीवनसाथी चुनते हैं, आदि पर चर्चा करता है, लेकिन वह कभी इस बात पर चर्चा नहीं करता कि लोगों के कर्तव्यों के पालन से संबंधित क्या समस्याएँ हैं या उन्हें कैसे हल किया जाए। क्या इसमें कोई समस्या नहीं है? क्या वह अभी भी काम कर सकता है? (नहीं, वह नहीं कर सकता।) उसकी मानसिकता बदल गई है, और कर्तव्य करने के मामले अब उसके विचारों में नहीं हैं। इसके बजाय, उसका दिमाग पूरे दिन इन विचारों में उलझा रहता है कि कोई रोमांटिक रिश्ता कैसे बनाए, कैसे कपड़े पहने, और किसी विपरीत लिंगी को कैसे आकर्षित करे। गैर-विश्वासियों के बीच एक मुहावरा है : “प्यार में पड़ना।” क्या यह प्यार है? नहीं, यह गहरा गड्ढा है! एक बार जब तुम इसमें प्रवेश कर जाते हो, तो तुम वापस नहीं आ सकते। क्या अपने कर्तव्यों का पालन करने वाले कर्मियों के बीच ऐसे लोग हैं? (हाँ, हैं।) यद्यपि परमेश्वर का घर रोमांटिक साथी की तलाश करने वाले लोगों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करता, पर अगर वे ऐसा करने में कलीसिया के जीवन में व्यवधान डालते हैं और कलीसिया के कार्य को प्रभावित करते हैं, तो उन लोगों को दूर करने की आवश्यकता है। उन जोड़ों को अपने आप बाहर जाकर मिलना-जुलना करना चाहिए और दूसरों को प्रभावित नहीं करना चाहिए। यदि तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसने अपना पूरा जीवन परमेश्वर के लिए खपाने के लिए समर्पित कर दिया है, और तुमने रोमांटिक संबंधों में लिप्त नहीं होने का संकल्प लिया है, तो खुद को परमेश्वर के लिए खपाने पर ध्यान केंद्रित करो। यदि तुम्हारा कोई रोमांटिक संबंध बन गया है और अब तुम्हारा काम करने का मन नहीं करता है, तो तुम्हें पर्यवेक्षक का कर्तव्य नहीं निभाना चाहिए, और तब परमेश्वर का घर इस पद के लिए किसी अन्य व्यक्ति को चुन लेगा। तुम्हारे रोमांटिक संबंध की वजह से परमेश्वर के घर के कार्य में देरी नहीं होनी चाहिए या उसके कार्य पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। कार्य जारी रहना चाहिए। यह कैसे जारी रह सकता है? किसी ऐसे पर्यवेक्षक को चुनकर जो किसी रोमांटिक संबंध में न हो, जिसके पास सुदृढ़ व्यावसायिक कौशल हों और जो काम कि जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले सके, जिसे तुम काम सौंप सको। परमेश्वर का घर हमेशा इसी तरह से कार्य करता है, और यह सिद्धांत अपरिवर्तित रहता है। कुछ पर्यवेक्षक कहते हैं, “मेरे रोमांटिक संबंधों से मेरे काम पर असर नहीं पड़ता; मुझे प्रभारी बने रहने दो।” क्या हम इस कथन पर विश्वास कर सकते हैं? (नहीं, हम विश्वास नहीं कर सकते।) हम इस पर विश्वास क्यों नहीं कर सकते? क्योंकि तथ्य सबके सामने हैं! जब कोई व्यक्ति किसी रोमांटिक रिश्ते में होता है, तो वह केवल अपने रोमांटिक साथी के बारे में सोचता है, और उसका दिल इन मामलों में उलझा रहता है, और इसलिए अक्सर सभाओं के दौरान उसे नींद आने लगती है और वह अपने कर्तव्य पूरा नहीं कर पाता। इसलिए, परमेश्वर का घर ऐसे व्यक्तियों के साथ जिस तरह से व्यवहार करता है वह उचित और सिद्धांतों के अनुरूप है। परमेश्वर का घर तुम्हें मिलने-जुलने से नहीं रोकता है, न ही यह मिलने-जुलने की तुम्हारी स्वतंत्रता से तुम्हें वंचित करता है। तुम किसी के साथ अपने दिल की इच्छा के अनुसार मिलना-जुलना कर सकते हो : यह तुम्हारा अपना निर्णय है, जब तक कि तुम्हें इसका पछतावा न हो, और बाद में तुम्हें इसके बारे में रोना न पड़े। कुछ पर्यवेक्षकों को रोमांटिक रिश्ते के कारण बर्खास्त कर दिया गया है। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या रोमांटिक रिश्ते में होने के बाद किसी व्यक्ति को परमेश्वर में विश्वास करने की अनुमति नहीं है?” परमेश्वर के घर ने ऐसा कभी नहीं कहा। क्या ऐसा है कि परमेश्वर का घर उन सभी लोगों को अस्वीकार या निष्कासित करता है जिनके रोमांटिक रिश्ते हैं? (नहीं।) यदि तुम किसी रोमांटिक रिश्ते में हो, तो तुम पर्यवेक्षक या अगुआ या कार्यकर्ता नहीं हो सकते, और यदि तुम अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए समर्पित नहीं हो, तो तुम्हें कलीसिया में पूर्णकालिक कर्तव्य छोड़ देना चाहिए। क्या किसी ने कहा है कि तुम्हें अब परमेश्वर में विश्वास करने की अनुमति नहीं है, या तुम्हें निष्कासित कर दिया जाएगा? क्या किसी ने ऐसा कहते हुए कोई फैसला सुनाया है कि तुम्हें बचाया नहीं जा सकता, या तुम्हें शाप दिया जाएगा? (नहीं।) परमेश्वर के घर ने कभी ऐसी बातें नहीं कही हैं। परमेश्वर का घर तुम्हारी व्यक्तिगत पसंद और स्वतंत्रता में बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं करता; यह तुम्हारी किसी भी स्वतंत्रता को बिल्कुल भी नहीं छीनता—यह तुम्हें स्वतंत्रता देता है। परंतु, जब इस तरह के पर्यवेक्षक की बात आती है, तो उनके साथ व्यवहार करने के लिए परमेश्वर के घर का सिद्धांत उन्हें बर्खास्त करना और उनकी जगह लेने के लिए एक उपयुक्त व्यक्ति को ढूँढ़ना है। यदि वे कर्तव्य जारी रखने के लिए उपयुक्त हैं, तो उन्हें बरकरार रखा जा सकता है। यदि नहीं, तो उन्हें विदा कर दिया जाएगा। उनके साथ कोई मारपीट या मौखिक दुर्व्यवहार या अपमान नहीं होगा। यह कोई शर्मनाक बात नहीं है; यह बहुत सामान्य बात है। तो जब कुछ लोगों को उनके रोमांटिक संबंधों के कारण पद से हटा दिया जाता है या साधारण कलीसियाओं में भेज दिया जाता है, तो क्या यह शर्मनाक है? इसका केवल यह संकेत हो सकता है कि उनमें अपने कर्तव्यों को निभाने की निष्ठा कम है, वे सत्य में रुचि नहीं रखते, और अपने स्वयं के जीवन प्रवेश के लिए बिल्कुल भी दायित्व नहीं उठाते हैं। इस तरह के पर्यवेक्षक अपने उचित काम पर ध्यान नहीं देते—वे केवल रोमांटिक संबंधों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिसके कारण कलीसिया के कार्य में देरी होती है, और वे पहले ही कलीसिया के कार्य की प्रगति को प्रभावित कर चुके होते हैं—क्या यह गंभीर समस्या नहीं है? (हाँ, है।) इसलिए, इस तरह के पर्यवेक्षक को बनाए रखना उचित नहीं है और उन्हें उनके पद से हटा दिया जाना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “क्या उन्हें हटाना थोड़ी जल्दबाजी नहीं है?” यदि उनके रोमांटिक रिश्ते की शुरुआत से लेकर उनके हटाए जाने तक, केवल एक या दो दिन ही बीते हैं, तो इसे जल्दबाजी माना जा सकता है। लेकिन अगर तीन से पाँच महीने बीत चुके हैं, तो क्या इसे तब भी जल्दबाजी माना जाएगा? (नहीं।) कार्रवाई काफी धीमी गति से की गई है, जबकि पहले ही काम में बहुत विलंब हो चुका होता है—तुम लोग इसके बारे में चिंतित क्यों नहीं हो? क्या यह कोई समस्या नहीं है? (हाँ, यह समस्या है।)

नकली अगुआ उन पर्यवेक्षकों के बारे में कभी पूछताछ नहीं करते जो वास्तविक कार्य नहीं कर रहे होते हैं या जो अपने उचित कार्यों पर ध्यान नहीं दे रहे होते हैं। उन्हें लगता है कि उन्हें बस एक पर्यवेक्षक चुनना है और मामला खत्म; और कि बाद में पर्यवेक्षक सभी कार्य-संबंधी मामलों को अपने आप सँभाल सकता है। इसलिए नकली अगुआ जब-तब बस सभाएँ आयोजित करता है लेकिन काम का पर्यवेक्षण नहीं करता, न ही पूछता है कि काम कैसा चल रहा है और किसी काम को हाथ न लगाने वाले उच्चाधिकारियों की तरह व्यवहार करता है। अगर कोई पर्यवेक्षक से जुड़ी समस्या लेकर आता है तो नकली अगुआ कहेगा, “यह तो मामूली-सी समस्या है, कोई बड़ी बात नहीं है। इसे तो तुम लोग खुद ही सँभाल सकते हो। मुझसे मत पूछो।” समस्या की रिपोर्ट करने वाला व्यक्ति कहता है, “वह पर्यवेक्षक आलसी पेटू है। वह केवल खाने और मनोरंजन पर ध्यान केंद्रित रखता है, एकदम निकम्मा है। वह अपने काम में थोड़ा-सा भी कष्ट नहीं उठाना चाहता, काम और जिम्मेदारियों से बचने के लिए हमेशा छलपूर्वक ढिलाई बरतता है और बहाने बनाता है। वह पर्यवेक्षक बनने लायक नहीं है।” नकली अगुआ जवाब देगा, “जब उसे पर्यवेक्षक चुना गया था, तब तो वह बहुत अच्छा था। तुम जो कह रहे हो, वह सच नहीं है और अगर सच है भी तो यह सिर्फ एक अस्थायी अभिव्यक्ति है।” नकली अगुआ पर्यवेक्षक की स्थिति के बारे में अधिक जानने की कोशिश नहीं करेगा, बल्कि उस पर्यवेक्षक के बारे में अपनी पिछली धारणाओं के आधार पर ही इस मामले में राय बनाएगा और फैसला सुनाएगा। चाहे कोई भी पर्यवेक्षक से जुड़ी समस्याओं की रिपोर्ट करे, नकली अगुआ उसे अनदेखा करेगा। पर्यवेक्षक वास्तविक काम नहीं कर रहा है और कलीसिया का काम लगभग ठप हो गया है, लेकिन नकली अगुआ को कोई परवाह नहीं होती, ऐसा लगता है कि उसका इससे मतलब ही नहीं है। यह वैसे भी बुरी बात है कि जब कोई व्यक्ति पर्यवेक्षक के मुद्दों की रिपोर्ट करता है तो अगुआ आँख मूँद लेता है। लेकिन सबसे घृणा करने योग्य क्या होता है? जब लोग उसे पर्यवेक्षक के गंभीर मुद्दों के बारे में बताते हैं तो वह उन्हें सुलझाने की कोशिश नहीं करेगा और दुनियाभर के बहाने बनाएगा : “मैं इस पर्यवेक्षक को जानता हूँ, वह सच में परमेश्वर में विश्वास करता है, उसे कभी कोई समस्या नहीं होगी। यदि कोई छोटी-मोटी समस्या हुई भी तो परमेश्वर उसकी रक्षा करेगा और उसे अनुशासित करेगा। अगर उससे कोई गलती हो भी जाती है तो वह उसके और परमेश्वर के बीच का मामला है—हमें इससे चिंतित होने की जरूरत नहीं है।” नकली अगुआ इसी तरह अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार काम करते हैं। वे सत्य समझने और आस्था होने का दिखावा करते हैं लेकिन वे कलीसिया के काम में गड़बड़ी कर देते हैं—हो सकता है कलीसिया का काम ठप तक हो जाए, फिर भी वे इससे अनजान होने का ढोंग करते हैं। क्या नकली अगुआ बहुत हद तक कागज सरकाने वाले बाबुओं जैसा व्यवहार नहीं कर रहे हैं? वे स्वयं कोई वास्तविक कार्य करने में अक्षम होते हैं और समूह अगुआओं और पर्यवेक्षकों के कार्य के बारे में सूक्ष्मता से ध्यान भी नहीं देते—वे इसकी न तो खोज-खबर करते हैं, न ही इस बारे में पूछताछ करते हैं। लोगों के बारे में उनका नजरिया उनकी अपनी सोच और कल्पनाओं पर आधारित होता है। वे किसी को कुछ समय के लिए अच्छा काम करते देखते हैं तो उन्हें लगता है कि वह व्यक्ति हमेशा ही अच्छा काम करेगा, उसमें कोई बदलाव नहीं आएगा; अगर कोई कहता है कि इस व्यक्ति के साथ कोई समस्या है तो वह उस पर विश्वास नहीं करता, अगर कोई उन्हें उस व्यक्ति के बारे में चेतावनी देता है तो वह उसे अनदेखा कर देता है। क्या तुम्हें लगता है कि नकली अगुआ बेवकूफ होता है? वे बेवकूफ और मूर्ख होते हैं। उन्हें क्या चीज बेवकूफ बनाती है? वे यह मानते हुए लोगों पर सहर्ष विश्वास कर लेते हैं कि चूँकि जब उन्होंने इस व्यक्ति को चुना था तो इस व्यक्ति ने शपथ ली थी, संकल्प किया था और आँसू बहाते हुए प्रार्थना की थी, यानी वह भरोसे के लायक है और काम का प्रभार रखते हुए उसके साथ कभी कोई समस्या नहीं होगी। नकली अगुआओं को लोगों की प्रकृति की कोई समझ नहीं होती; वे भ्रष्ट मानवजाति की असल स्थिति से अनजान होते हैं। वे कहते हैं, “पर्यवेक्षक के रूप में चुने जाने के बाद कोई कैसे बदल सकता है? इतना गंभीर और विश्वसनीय प्रतीत होने वाला व्यक्ति कामचोरी कैसे कर सकता है? वह कामचोरी नहीं करेगा, है न? उसमें बहुत ईमानदारी है।” चूँकि नकली अगुआओं की अपनी कल्पनाओं और अनुभूतियों में बहुत ज्यादा आस्था होती है, यह अंततः उन्हें कलीसिया के काम में उत्पन्न होने वाली कई समस्याओं का समय पर समाधान करने में असमर्थ बना देती है और संबंधित पर्यवेक्षक को तुरंत बर्खास्त करने और उसे दूसरी जगह भेजने से रोकती है। वे प्रामाणिक नकली अगुआ हैं। और यहाँ मुद्दा क्या है? क्या नकली अगुआओं के अपने काम के प्रति रवैये का अनमनेपन से कोई संबंध है? एक लिहाज से वे देखते हैं कि बड़ा लाल अजगर पागलों की तरह परमेश्वर के चुने हुए लोगों की गिरफ्तारियाँ कर रहा है, इसलिए वे खुद को सुरक्षित रखने के लिए यूँ ही किसी को भी प्रभारी चुन लेते हैं कि इससे उनकी समस्या सुलझ जाएगी और उन्हें इस पर और ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होगी। वे मन ही मन क्या सोचते हैं? “यह बहुत ही शत्रुतापूर्ण परिवेश है, कुछ समय के लिए मुझे छिप जाना चाहिए।” यह भौतिक सुखों का लोभ है, है न? एक अन्य संदर्भ में नकली अगुआओं में यह घातक कमी होती है : वे अपनी कल्पनाओं के आधार पर लोगों पर जल्दी भरोसा कर लेते हैं। और यह सत्य को न समझने के कारण होता है, है न? परमेश्वर के वचन भ्रष्ट लोगों के सार का खुलासा कैसे करते हैं? जब परमेश्वर ही लोगों पर भरोसा नहीं करता तो वे क्यों करें? नकली अगुआ बहुत घमंडी और आत्मतुष्ट होते हैं, है न? वे यह सोचते हैं, “मैं इस व्यक्ति को परखने में गलत नहीं हो सकता, जिस व्यक्ति को मैंने उपयुक्त समझा है उसके साथ कोई समस्या नहीं होनी चाहिए; वह निश्चित रूप से ऐसा नहीं है जो खाने, पीने और मस्ती करने में रमा रहे, आराम पसंद करे और मेहनत से नफरत करे। वह पूरी तरह से भरोसेमंद और विश्वसनीय है। वह बदलेगा नहीं; अगर वह बदला तो इसका मतलब होगा कि मैं उसके बारे में गलत था, है न?” यह कैसा तर्क है? क्या तुम कोई विशेषज्ञ हो? क्या तुम्हारे पास एक्सरे जैसी दृष्टि है? क्या तुममें विशेष कौशल है? तुम किसी व्यक्ति के साथ एक-दो साल तक रह सकते हो, लेकिन क्या तुम उसके प्रकृति सार को पूरी तरह से उजागर करने वाले किसी उपयुक्त वातावरण के बिना यह देख पाओगे कि वह वास्तव में कौन है? अगर परमेश्वर ऐसे लोगों को उजागर न करे तो तुम्हें तीन या पाँच वर्षों तक उनके साथ रहने के बाद भी यह जानने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा कि उनका प्रकृति सार किस तरह का है। और जब तुम उनसे शायद ही कभी मिलते हो, शायद ही कभी उनके साथ होते हो तो यह भी कितना सच होगा? किसी की अस्थायी छवि या किसी के द्वारा उनके सकारात्मक मूल्यांकन के आधार पर नकली अगुआ प्रसन्नतापूर्वक उन पर भरोसा कर लेते हैं और ऐसे व्यक्ति को कलीसिया का काम सौंप देते हैं। इसमें क्या वे अत्यधिक अंधे नहीं हो जाते हैं? क्या वे उतावली से काम नहीं ले रहे हैं? और जब नकली अगुआ इस तरह से काम करते हैं तो क्या वे बेहद गैर-जिम्मेदार नहीं होते? ऊपर के अगुआ और कार्यकर्ता उनसे पूछते हैं, “क्या तुमने उस पर्यवेक्षक के काम की जाँच की है? उसका चरित्र और काबिलियत कैसी है? क्या वह अपने काम में जिम्मेदार है? क्या वह काम को सँभाल सकता है?” नकली अगुआ जवाब देते हैं, “वह निश्चित रूप से सँभाल सकता है! जब उसे चुना गया था तो उसने प्रतिज्ञा की थी और संकल्प लिया था। मेरे पास अभी भी उनकी लिखित शपथ है। उसे काम की जिम्मेदारी लेने में सक्षम होना चाहिए।” नकली अगुआओं के इन शब्दों के बारे में तुम क्या सोचते हो? वे मानते हैं कि चूँकि इस व्यक्ति ने अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए प्रतिज्ञा की है, इसलिए वह निश्चित रूप से उसका पालन करने में सक्षम होगा। क्या इस कथन में सत्यता है? आजकल कितने लोग वास्तव में अपनी प्रतिज्ञाओं का पालन कर सकते हैं? कितने ऐसे ईमानदार लोग हैं जो अपने संकल्पों के अनुसार काम करते हैं? किसी व्यक्ति के प्रतिज्ञा करने मात्र का मतलब यह नहीं है कि वह वास्तव में इसे पूरा कर सकता है। मान लो कि तुम उनसे पूछते हो, “क्या तुम गारंटी दे सकते हो कि यह पर्यवेक्षक बदलेगा नहीं? क्या तुम उसकी आजीवन निष्ठा की गारंटी दे सकते हो? जब परमेश्वर लोगों को उजागर करना चाहता है तो उसे उन्हें परखने के लिए विभिन्न वातावरण स्थापित करने पड़ते हैं। तुम किस आधार पर कहते हो कि वह विश्वसनीय है? क्या तुमने उसकी जाँच की है?” नकली अगुआ जवाब देते हैं, “इसकी कोई जरूरत नहीं है। सभी भाइयों और बहनों ने अपने अनुभवों के आधार पर जानकारी दी है कि वह विश्वसनीय है।” यह कथन भी गलत है। क्या कोई व्यक्ति मात्र इसलिए सचमुच अच्छा है क्योंकि भाई-बहनों ने जानकारी दी है कि वह ऐसा है? क्या सभी भाई-बहनों के पास सत्य होता है? क्या वे सभी चीजों की असलियत समझ सकते हैं? क्या सभी भाई-बहन इस व्यक्ति से परिचित हैं? यह कथन तो और भी घिनौना है! वास्तव में वह व्यक्ति बहुत पहले ही बेनकाब हो चुका है। उसने पवित्र आत्मा का कार्य खो दिया है और आसान चीजों से प्रेम करने और कड़ी मेहनत से नफरत करने, पेटू और आलसी होने और अपने उचित काम पर ध्यान न देने जैसे उसके नीच लक्षण पहले ही उजागर हो चुके हैं। अभी भी पूरी तरह से अनभिज्ञ नकली अगुआओं के अलावा हर कोई बहुत पहले ही उसकी असलियत जानता है—मात्र नकली अगुआ ही अब भी उस पर इतना भरोसा करते हैं। इन नकली अगुआओं का क्या उपयोग है? क्या वे निकम्मे नहीं हैं? कुछ मामले तो ऐसे भी हैं, जहाँ ऊपरवाला कुछ पर्यवेक्षकों की जाँच और पूछताछ के लिए मौके पर जाकर उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियों के बारे में जान लेता है, जबकि अगुआ पूरी तरह से अँधेरे में रहते हैं। क्या यह कोई समस्या नहीं है? ये अगुआ प्रामाणिक नकली अगुआ हैं। वे असली काम नहीं करते, वे मात्र कागजी काम करते हैं और किसी भी काम को हाथ न लगाने वाले बॉस की तरह वे थोड़ा-बहुत काम करते हैं और फिर उसी के आधार पर जीवनयापन करते हैं और सोचते हैं कि उन्हें आनंद लेने का अधिकार है, कुछ भी हो जाए पर एक तिनका भी तोड़ने की जहमत नहीं उठाते। तुम्हें रुतबे के फायदों का आनंद लेने का क्या अधिकार है? यह तो सरासर बेशर्मी है! जब नकली अगुआ काम करते हैं तो वे कभी किसी काम की जाँच नहीं करते, वे काम की प्रगति के बारे में पूछताछ नहीं करते और निश्चित ही विभिन्न टीम पर्यवेक्षकों की परिस्थितियों पर गौर नहीं करते। वे मात्र काम सौंपते हैं और पर्यवेक्षकों की व्यवस्था करते हैं और फिर उन्हें लगता है कि उनका काम पूरा हो गया, उनका काम खत्म हो गया है, हमेशा के लिए खत्म हो गया है। वे मानते हैं, “इस काम को कोई सँभाल रहा है, इसलिए अब यह मेरा काम नहीं है। मैं आनंद ले सकता हूँ।” क्या यह काम करना है? इसमें कोई संदेह नहीं कि जो कोई भी इस तरह से काम करता है वह नकली अगुआ है—नकली अगुआ जो कलीसिया के कार्य में देरी करता है और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाता है।

नकली अगुआ कभी भी विभिन्न टीम पर्यवेक्षकों की कार्य स्थितियों के बारे में नहीं पूछते या उनकी निगरानी नहीं करते। वे विभिन्न टीमों के पर्यवेक्षकों और विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार कार्मिकों के जीवन प्रवेश के साथ ही कलीसिया के कार्य और उनके कर्तव्यों के साथ-साथ परमेश्वर में आस्था, सत्य और स्वयं परमेश्वर के प्रति उनके रवैयों के बारे में भी न तो पूछते हैं, न ही इसकी निगरानी करते हैं या इस बारे में समझ रखते हैं। वे नहीं जानते कि इन व्यक्तियों में कोई परिवर्तन या विकास हुआ है या नहीं, न ही वे उनके कार्य से जुड़ी विभिन्न संभावित समस्याओं के बारे में जानते हैं; खासकर वे कार्य के विभिन्न चरणों में होने वाली त्रुटियों और विचलनों के कारण कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में नहीं जानते, साथ ही वे यह भी नहीं जानते कि इन त्रुटियों और विचलनों को कभी सुधारा गया है या नहीं। वे इन सभी चीजों से पूरी तरह से अनभिज्ञ होते हैं। अगर उन्हें इन विस्तृत स्थितियों के बारे में कुछ भी पता नहीं होता तो समस्याएँ आने पर वे निष्क्रिय हो जाते हैं। परंतु नकली अगुआ अपना काम करते समय इन विस्तृत मुद्दों की बिल्कुल परवाह नहीं करते। वे मानते हैं कि विभिन्न टीम पर्यवेक्षकों की व्यवस्था करने और उन्हें काम सौंप देने पर उनका कार्य पूरा हो जाता है—इसे काम को अच्छी तरह से करना समझा जाता है और यदि अन्य समस्याएँ आती हैं तो वे उनकी चिंता का विषय नहीं हैं। चूँकि नकली अगुआ विभिन्न टीम पर्यवेक्षकों की देख-रेख करने, उनका निर्देशन करने और उन पर निगरानी रखने में विफल रहते हैं और इन क्षेत्रों में अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से नहीं निभाते, नतीजतन कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी हो जाती है। इसे ही अगुआओं और कार्यकर्ताओं का अपनी जिम्मेदारियों में लापरवाही बरतना कहते हैं। परमेश्वर मानव हृदय की गहराइयों की पड़ताल कर सकता है; यह क्षमता मनुष्य में नहीं है। इसलिए काम करते समय लोगों को ज्यादा मेहनती होने और चौकस रहने की जरूरत है, कलीसिया के कार्य की सामान्य प्रगति सुनिश्चित करने के लिए नियमित रूप से कार्यस्थल पर जाकर निगरानी, देख-रेख और निर्देशन करने की जरूरत है। साफ है कि नकली अगुआ अपने कार्य में पूरी तरह गैर-जिम्मेदार होते हैं और वे कभी भी विभिन्न कामों की देख-रेख, निगरानी या निर्देशन नहीं करते हैं। परिणामस्वरूप कुछ पर्यवेक्षक यह नहीं जानते कि कार्य में आने वाली विभिन्न समस्याओं को कैसे हल किया जाए और कार्य करने में लगभग पर्याप्त रूप से सक्षम न होने के बावजूद वे पर्यवेक्षक की भूमिका में बने रहते हैं। अंततः कार्य में बार-बार देरी होती है और वे इसे पूरी तरह से बिगाड़ देते हैं। नकली अगुआओं द्वारा पर्यवेक्षकों की स्थितियों के बारे में पूछताछ न करने, उनकी देख-रेख न करने या उसके बारे में निगरानी न करने का यही दुष्परिणाम होता है, जो पूरी तरह से नकली अगुआओं की अपनी जिम्मेदारी के प्रति लापरवाही के कारण होता है। चूँकि नकली अगुआ कार्य का निरीक्षण नहीं करते, उस पर निगरानी नहीं रखते या उसके बारे में नहीं पूछते और स्थिति को तुरंत समझ नहीं पाते, इसलिए वे इस बात से अनजान रहते हैं कि पर्यवेक्षक वास्तविक कार्य कर रहे हैं या नहीं, कार्य कैसे आगे बढ़ रहा है और क्या इससे कोई वास्तविक नतीजे मिले हैं। जब उनसे पूछा जाता है कि पर्यवेक्षक किस काम में व्यस्त हैं या वे कौन से खास काम सँभाल रहे हैं तो नकली अगुआ जवाब देते हैं, “मुझे नहीं पता, लेकिन वे हर सभा में मौजूद होते हैं और हर बार जब मैं उनसे कार्य के बारे में बात करता हूँ तो वे कभी किसी समस्या या कठिनाई का जिक्र नहीं करते।” नकली अगुआओं का मानना है कि जब तक पर्यवेक्षक अपना कार्य नहीं छोड़ते और ढूँढ़ने पर हमेशा मौजूद मिलते हैं, तब तक उनके साथ कोई समस्या नहीं है। नकली अगुआ इसी तरह काम करते हैं। क्या यह “नकलीपन” की अभिव्यक्ति नहीं है? क्या यह अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभाने में विफलता नहीं है? यह जिम्मेदारी की गंभीर उपेक्षा है! अपने काम में नकली अगुआ मात्र दिखावा करने पर ध्यान देते हैं और वास्तविक परिणाम के लिए प्रयास नहीं करते। ऊपरी तौर पर वे अक्सर सभाएँ करते हैं और औसत व्यक्ति से ज्यादा व्यस्त दिखाई देते हैं। परंतु इस बात का पता नहीं चलता कि उन्होंने वास्तव में कौन-सी समस्याएँ हल की हैं, उन्होंने कौन-से विशिष्ट कार्य ठीक से सँभाले हैं और उन्होंने क्या परिणाम प्राप्त किए हैं। नकली अगुआओं समेत कोई भी इन चीजों के बारे में कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे सकता। लेकिन एक बात पक्की है : कार्यस्थल पर लोगों को चाहे जो भी समस्या हो, ये नकली अगुआ कहीं नहीं मिलते; किसी ने उन्हें कार्यस्थल पर लोगों की समस्याएँ हल करते हुए कभी नहीं देखा होता। तो नकली अगुआ पूरे दिन क्या काम करते हैं? उनकी सभाएँ किन समस्याओं को हल करती हैं? कोई भी निश्चित रूप से नहीं जानता और अनसुलझे मुद्दों के जमा हुए ढेर का अंततः तब पता चलता है जब उनके काम का निरीक्षण किया जाता है। ऊपरी तौर पर नकली अगुआ वास्तव में काफी व्यस्त दिखते हैं—लगता है कि वे “अनेक मामलों से निपट रहे हैं।” परंतु जब कोई उनके काम के परिणामों की जाँच करता है तो वह पूरी तरह से गड़बड़झाला निकलता है; सब कुछ अस्त-व्यस्त होता है, जिसमें कुछ भी मूल्यवान नहीं होता और यह स्पष्ट होता है कि इन नकली अगुआओं ने जरा भी वास्तविक कार्य नहीं किया है। उन वास्तविक समस्याओं की भरमार होने के बावजूद जिन्हें उन्होंने अनसुलझा छोड़ दिया है, नकली अगुआओं की अंतरात्मा जागृत नहीं होती और उन्हें कोई आत्म-ग्लानि नहीं होती। इसके अलावा, वे बहुत आत्मतुष्ट होते हैं और सोचते हैं कि वे बहुत अच्छे हैं; वे वास्तव में विवेकहीन होते हैं। इस तरह के लोग कलीसिया में अगुआ या कार्यकर्ता होने के लायक नहीं होते।

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