अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (3) खंड एक

मद तीन : उन सत्य सिद्धांतों के बारे में संगति करो, जिन्हें प्रत्येक कर्तव्य को ठीक से निभाने के लिए समझा जाना चाहिए (भाग दो)

पिछली सभा में हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की दूसरी जिम्मेदारी के बारे में अतिरिक्त संगति की थी, जिसमें जीवन प्रवेश की कठिनाइयों के बारे में बात की गई थी, और नकली अगुआओं के कुछ तौर-तरीकों और अभिव्यक्तियों को उजागर किया गया था। फिर, हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की तीसरी जिम्मेदारी—उन सत्य सिद्धांतों पर संगति करना जिन्हें प्रत्येक कर्तव्य को ठीक से निभाने के लिए समझा जाना चाहिए—से संबंधित कई मामलों पर चर्चा की थी और यह उजागर किया था और इस पर गहन-विश्लेषण किया था कि नकली अगुआओं के रवैये, तौर-तरीकों और अभिव्यक्तियों के माध्यम से इन मामलों के प्रति उनका “नकलीपन” कहाँ प्रकट होता है, दूसरे शब्दों में, अगुआ के रूप में अपनी जिम्मेदारियों के निर्वाह में नकली अगुआ कैसे विफल होते हैं। इन मामलों की सूची बनाओ। (उनमें से एक मामला परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों की छपाई के बारे में था। उस नकली अगुआ ने कोई ठोस काम नहीं किया था, वह बस खोखले तरीके से धर्म-सिद्धांतों की बातें करता था। उसने विशिष्ट रूप से सत्य सिद्धांतों पर संगति भी नहीं की थी, न ही थोड़ा सा भी वास्तविक काम किया था।) इस मामले में उस नकली अगुआ ने वास्तविक काम नहीं किया, एक अगुआ और कार्यकर्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में वह विफल रहा, और उसने इस काम में शामिल पेशेवर आवश्यकताओं, विशेष सिद्धांतों और ध्यान देने योग्य बिंदुओं पर स्पष्ट रूप से संगति नहीं की। उसने केवल कुछ नारे लगाए और कुछ खोखले शब्द बोले, और फिर सोचा कि उसने अच्छा काम किया है। हमने और क्या चर्चा की थी? (परमेश्वर के लिए पंख वाले कोट खरीदने की घटना भी थी।) इस घटना ने नकली अगुआओं के बारे में क्या समस्या उजागर की थी? (इसने उजागर किया था कि नकली अगुआ वास्तविक काम नहीं करते, और उनमें मानवता और विवेक बिल्कुल नहीं होता।) जब किसी ने मेरे लिए कोई कपड़ा खरीदा, तो वे अगुआ उसकी जाँच करने में लग गए—क्या यह उस काम का हिस्सा है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए? (नहीं, ऐसा नहीं है।) उन्होंने वह काम किया जो उन्हें नहीं करना चाहिए था—ऐसा होने में क्या समस्या है? (वे अपने उचित काम पर ध्यान नहीं दे रहे थे।) यह नकली अगुआओं की एक अभिव्यक्ति है। इस अभिव्यक्ति ने पहले तो उजागर किया कि नकली अगुआ अपने उचित काम पर ध्यान नहीं देते हैं, और दूसरे, इससे उजागर हुआ कि उनमें विवेक नहीं है और वे केवल घृणास्पद कार्य करते हैं जिनमें विवेक और मानवता नहीं होती। तुम लोगों ने केवल उदाहरणों को याद कर लिया है, लेकिन तुमने उन मुद्दों की असलियत नहीं समझी जिन्हें इन उदाहरणों से स्पष्ट किया गया था, या इन मुद्दों के सार की असलियत नहीं समझी जिनका इन उदाहरणों के माध्यम से गहन-विश्लेषण करने का इरादा था। नकली अगुआओं द्वारा अपने उचित काम पर ध्यान नहीं देने के बारे में मैंने और क्या उदाहरण दिए थे? (एक पेस्ट्री बनाने वाला था जो परमेश्वर के लिए पेस्ट्री बनाता रहता था। परमेश्वर ने उसे ऐसा नहीं करने के लिए कहा, लेकिन अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने उसे ऐसा करने की अनुमति देना जारी रखा, और यहाँ तक कि खुद पेस्ट्री का स्वाद भी चखा।) इस उदाहरण ने नकली अगुआओं की किन समस्याओं को उजागर किया? (कि वे अपने उचित काम पर ध्यान नहीं देते, या वह काम नहीं करते हैं जो उन्हें करना चाहिए, और उस काम को करने पर जोर देते हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए।) प्राथमिक रूप से, इसने उजागर किया कि नकली अगुआ अपने उचित काम पर ध्यान नहीं देते और अपने काम के केंद्र और केंद्र बिंदु को समझने में असफल रहते हैं। साथ ही, नकली अगुआओं की एक गंभीर समस्या है। यह क्या है? (वे परमेश्वर के वचनों का पालन नहीं करते, या परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार काम का क्रियान्वयन नहीं करते।) क्या कोई और कुछ बताना चाहता है? (वे आध्यात्मिक होने का दिखावा करते हैं और परमेश्वर के बोझ के लिए विचारशीलता दिखाते हैं, लेकिन वास्तव में वे बुरे काम करते हुए बस बेकाबू हो जाते हैं।) यह उनकी समस्याओं में से एक और समस्या है। कोई और? (कार्य करने से पहले, वे परमेश्वर की अपेक्षाओं को समझने की कोशिश नहीं करते; इसके बदले, वे परमेश्वर की इच्छाओं की जगह पर अपनी कल्पनाओं का प्रयोग करते हैं।) यह विवेक के अभाव की श्रेणी में आता है। कोई और? (परमेश्वर के लिए वस्त्र की खरीद के मामले में नकली अगुआओं ने जो रवैया अपनाया, उससे उनमें सामान्य मानवता के अभाव का पता चला।) उनमें सामान्य मानवता के किस पहलू की कमी है? वे व्यवहार के नियमों को नहीं समझते और उनमें शिष्टाचार नहीं है। क्या यही मामला नहीं है? (हाँ, है।) वास्तव में, तुम लोगों ने जो बातें बताई हैं वे गौण हैं; मुख्य मुद्दा क्या है? अगुआ बन जाने के बाद, वे रुतबे और विशेष व्यवहार के लाभों का आनंद लेना चाहते हैं और आराम का लालच करते हैं। उदाहरण के लिए, वे कुछ पेस्ट्री खाना चाहते हैं, और जब देखते हैं कि कोई व्यक्ति खाना अच्छा पकाता है, तो अपनी लालसा को संतुष्ट करने के लिए वे उनके बनाए भोजन में से कुछ खाने के बारे में सोचते हैं। कितनी उबकाई लाने वाली बात है कि वे अपने उचित काम पर ध्यान नहीं देते या वास्तविक काम नहीं करते, पर इन सब से ऊपर, वे आराम और स्वादलोलुपता के सुखों का लालच करते हैं। वे अपने रुतबे के लाभों का आनंद भोगते हुए अपनी स्वादलोलुपता को संतुष्ट करने के लिए परमेश्वर के लिए वस्तुओं को चखने और जाँचने के बहानों का इस्तेमाल करते हैं। ये सभी नकली अगुआओं की अभिव्यक्तियाँ हैं। यद्यपि इन अभिव्यक्तियों को मसीह विरोधियों के स्वभाव सार की तुलना में क्रूर या दुष्ट नहीं कहा जा सकता, फिर भी नकली अगुआओं की मानवता इतनी खराब होती है कि लोग उससे घृणा करें। जहाँ तक उनके चरित्र की बात है, उनमें अंतरात्मा और विवेक अपेक्षा से कम होता है; उनकी मानवता काफी निचले दर्जे की और गंदी होती है, और उनमें सत्यनिष्ठा कम होती है। इन उदाहरणों से देखा जा सकता है कि नकली अगुआ वास्तविक कार्य नहीं कर सकते। यह एक तथ्य है।

नकली अगुआ कार्य करने के सिद्धांतों पर संगति नहीं कर सकते

आज हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के आधार पर नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों को उजागर करना जारी रखेंगे। नकली अगुआ मूलतः कलीसिया के आवश्यक, महत्वपूर्ण कार्य करने में असमर्थ होते हैं। वे बस कुछ सरल, सामान्य मामलों को निपटाते हैं; उनका काम कलीसिया के समग्र कार्य में महत्वपूर्ण या निर्णायक भूमिका नहीं निभाता और उसके वास्तविक नतीजे नहीं निकलते। उनकी संगति मूल रूप से केवल कुछ घिसे-पिटे और सामान्य विषयों पर होती है, इसमें निरे घिसे-पिटे शब्द और धर्म-सिद्धांत होते हैं और यह अत्यंत खोखली, सामान्य और विवरणहीन होती है। उनकी संगति में केवल वही चीजें होती हैं जिन्हें लोग शाब्दिक रूप से कुछ पढ़कर समझ सकते हैं। ये नकली अगुआ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में आने वाली वास्तविक समस्याओं को बिल्कुल हल नहीं कर सकते; खासकर वे लोगों की धारणाओं, कल्पनाओं और भ्रष्ट स्वभावों के खुलासों का समाधान करने में और भी कम सक्षम होते हैं। मुख्य बात यह है कि नकली अगुआ परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित महत्वपूर्ण कार्यो, जैसे कि सुसमाचार कार्य, फिल्म निर्माण कार्य या पाठ-आधारित कार्य को अपने कंधे नहीं ले सकते। खास तौर पर जब पेशेवर ज्ञान से जुड़े कार्य की बात आती है, तो हो सकता है कि नकली अगुआ यह अच्छी तरह जानते हों कि इन क्षेत्रों में वे खास जानकार नहीं हैं, लेकिन वे इनका अध्ययन नहीं करते, न ही वे शोध करते हैं, और दूसरों को विशिष्ट निर्देशन दे पाने या उनसे संबंधित किसी भी समस्या का समाधान करने में वे और भी कम सक्षम होते हैं। फिर भी वे बेशर्मी से सभाओं का आयोजन कर खोखले सिद्धांतों के बारे में अंतहीन बातें करते हैं और शब्द और धर्म-सिद्धांत बघारते रहते हैं। नकली अगुआ अच्छी तरह जानते हैं कि वे इस तरह का कार्य नहीं कर सकते, फिर भी वे विशेषज्ञ होने का दिखावा करते हैं, दंभपूर्ण व्यवहार करते हैं और दूसरों पर धौंस जमाने के लिए हमेशा बड़े-बड़े धर्म-सिद्धांतों का इस्तेमाल करते हैं। वे किसी के सवालों का जवाब देने में असमर्थ होते हैं, फिर भी वे दूसरों को झिड़कने के बहाने और कारण ढूँढ़ लेते हैं और पूछते हैं कि वे अपने पेशे को क्यों नहीं सीखते, वे सत्य की खोज क्यों नहीं करते और वे अपनी समस्याओं को हल करने में असमर्थ क्यों हैं। ये नकली अगुए इन क्षेत्रों में अँगूठाटेक होने और किसी भी समस्या का समाधान न कर सकने के बावजूद दूसरों को ऊँचे-ऊँचे उपदेश देते हैं। ऊपरी तौर पर वे दूसरे लोगों को बहुत व्यस्त दिखाई देते हैं, मानो वे बहुत सारा काम करने के योग्य हैं और क्षमतावान हैं, लेकिन वास्तव में वे कुछ भी नहीं हैं। नकली अगुए वास्तविक कार्य करने में बिल्कुल असमर्थ होते हैं, फिर भी वे उत्साहपूर्वक खुद को व्यस्त रखते हैं, और किसी वास्तविक समस्या को हल करने में सक्षम हुए बिना सभाओं में हमेशा एक ही साधारण सी बातें बोलते हैं और बार-बार खुद को दोहराते हैं। लोग इससे बहुत तंग आ जाते हैं और इससे कोई शिक्षा लेने में असमर्थ होते हैं। इस तरह का कार्य बहुत ही खराब है और इससे कोई नतीजा नहीं मिलता है। नकली अगुआ इसी तरह काम करते हैं और इसके कारण कलीसिया के कार्य में देरी होती है। फिर भी नकली अगुआओं को लगता है कि वे बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं और वे बहुत सक्षम हैं, जबकि सच्चाई यह है कि उन्होंने कलीसिया के कार्य का एक भी पहलू अच्छी तरह से नहीं किया होता है। उन्हें नहीं पता होता कि उनके उत्तरदायित्व के दायरे में आने वाले अगुआ और कार्यकर्ता मानकों के अनुरूप हैं या नहीं, न ही वे जानते हैं कि विभिन्न टीमों के अगुआ और सुपरवाइजर अपने कार्य का बीड़ा उठाने में सक्षम हैं या नहीं, और वे न तो इसका ध्यान रखते हैं और न ही यह पूछते हैं कि भाई-बहनों को अपने कर्तव्य निभाने में कोई समस्या तो नहीं आई। संक्षेप में कहें तो नकली अगुआ अपने काम में किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर सकते, फिर भी वे पूरी कर्मठता से व्यस्त रहते हैं। दूसरे लोगों के परिप्रेक्ष्य से देखने पर नकली अगुआ कठिनाई झेलने में सक्षम लगते हैं, कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं और हर दिन भागदौड़ में बिताते हैं। भोजन के समय उन्हें खाने की मेज पर बुलाना पड़ता है और वे सोने के लिए भी बहुत देर से जाते हैं। फिर भी, उनके काम के नतीजे अच्छे नहीं होते। अगर तुम ध्यान से नहीं देख रहे होगे, तो ऊपरी तौर पर ऐसा लगेगा कि हर काम हो रहा है और हर कोई अपने कर्तव्य निभाने में व्यस्त है, लेकिन अगर तुम ध्यान से देखोगे, सावधान रहोगे और कार्य का ईमानदारी से निरीक्षण करोगे तो असली स्थिति सामने आ जाएगी। उनके दायित्व के दायरे में आने वाला हर कार्य गड्ड-मड्ड होता है, उसकी कोई संरचना या व्यवस्था नहीं मिलेगी। कार्य की हर मद में समस्याएँ या यहाँ तक कि झोल भी मिलेंगे। ये समस्याएँ उत्पन्न होने का संबंध नकली अगुआओं के सत्य सिद्धांतों को न समझने और अपनी धारणाओं, कल्पनाओं और उत्साह के आधार पर काम करने से जुड़ा है। नकली अगुआ कभी भी सत्य सिद्धांतों के बारे में संगति नहीं करते, न ही वे समस्याओं को हल करने के लिए कभी सत्य खोजते हैं। उनमें स्पष्ट रूप से आध्यात्मिक समझ की कमी होती है और वे अगुआई का काम करने में सक्षम नहीं होते, और वे केवल कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत बघार सकते हैं और सत्य को बिल्कुल नहीं समझते, फिर भी वे जिन चीजों को नहीं जानते उन्हीं को जानने का दिखावा कर खुद को विशेषज्ञ के रूप में पेश करने की कोशिश करते हैं। वे जो काम करते हैं वह बस औपचारिकता होता है। जब कोई समस्या आती है तो वे बिना सोचे-समझे इस पर विनियम लागू करते हैं। वे बस आँख मुँदकर ढेरों गतिविधियाँ करते रहते हैं जिनका कोई वास्तविक नतीजा नहीं निकलता। क्योंकि ये नकली अगुआ सत्य सिद्धांतों को नहीं समझते और केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हुए दूसरों को विनियमों के पालन की सलाह देते हैं, इसलिए कलीसिया के कार्य की हर मद की प्रगति धीमी हो जाती है और कोई स्पष्ट नतीजा प्राप्त नहीं होता। किसी नकली अगुआ के कुछ समय से काम कर रहे होने का सबसे स्पष्ट दुष्परिणाम यह होता है कि अधिकांश लोग सत्य को समझने में असमर्थ रहते हैं, उन्हें नहीं पता होता कि जब कोई भ्रष्टता प्रकट करता है या धारणाएँ विकसित करता है तो उसे कैसे पहचानते हैं, और वे उन सत्य सिद्धांतों को तो निश्चित रूप से नहीं समझते जिनका पालन उन्हें अपने कर्तव्य निभाने के दौरान करना चाहिए। अपने कर्तव्य निभाने वाले और न निभाने वाले लोग बिल्कुल सुस्त, अनियंत्रित और अनुशासनहीन होते हैं और बिखरी हुई रेत की तरह अव्यवस्थित होते हैं। उनमें से अधिकांश लोग कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत तो बघार सकते हैं लेकिन अपने कर्तव्य निभाते समय वे केवल विनियमों का पालन करते हैं; वे नहीं जानते कि समस्याओं को हल करने के लिए सत्य कैसे खोजें। चूँकि नकली अगुआ स्वयं यह नहीं जानते कि समस्याओं को हल करने के लिए सत्य कैसे खोजें, तो इस काम में वे दूसरों की अगुआई कैसे कर सकते हैं? दूसरे लोगों पर चाहे जो भी बीते, नकली अगुआ उन्हें केवल यह कहकर प्रोत्साहित कर सकते हैं, “हमें परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना चाहिए!” “हमें अपने कर्तव्यपालन में निष्ठावान होना चाहिए!” “जब हमारे साथ कुछ घटित हो, तो हमें पता होना चाहिए कि प्रार्थना कैसे करनी है और हमें सत्य सिद्धांत जरूर खोजने चाहिए!” नकली अगुआ अक्सर ये नारे और धर्म-सिद्धांत उच्च स्वर में बोलते हैं और इसका कोई नतीजा नहीं निकलता है। उनकी बातें सुनने के बाद भी लोग नहीं समझ पाते कि सत्य सिद्धांत क्या हैं और उनके पास अभ्यास का मार्ग नहीं होता है। लोगों पर जब कोई विपत्ति आती है तो ऊपरी तौर पर वे प्रार्थना करते हैं और वे अपने कर्तव्य निभाने में निष्ठावान होने की इच्छा रखते हैं—लेकिन उन सभी में ऐसे मामलों की समझ नहीं होती है कि निष्ठावान होने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए, परमेश्वर के इरादों को समझने के लिए उन्हें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए और जब वे किसी समस्या का सामना कर रहे हों तो उन्हें सत्य सिद्धांतों की समझ हासिल करने के लिए कैसे खोज करनी चाहिए। जब लोग नकली अगुआओं से पूछते हैं तो वे कहते हैं, “जब तुम पर कोई संकट आए तो परमेश्वर के वचनों को और अधिक पढ़ो, अधिक प्रार्थना करो और सत्य पर अधिक संगति करो।” लोग उनसे पूछते हैं कि “यह कार्य किन सिद्धांतों से जुड़ा है?” तो वे कहते हैं, “परमेश्वर के वचन पेशेवर कार्यों के मामले में कुछ नहीं कहते और मैं भी उस कार्य क्षेत्र को नहीं समझता। यदि तुम लोग समझना चाहते हो तो खुद शोध करो—मुझसे मत पूछो। मैं सत्य को समझने में तुम्हारा मार्गदर्शन करता हूँ, पेशेवर कार्यों के मामलों में नहीं।” सवालों से बचने के लिए नकली अगुए इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। और इसके परिणामस्वरूप अधिकांश लोग अपने कर्तव्य निभाने का जुनून होने के बावजूद नहीं जानते कि सत्य सिद्धांतों के आधार पर कैसे कार्य करना है, न ही वे यह जानते हैं कि अपने कर्तव्य निभाते समय सिद्धांतों का पालन कैसे करना है। नकली अगुआओं की जिम्मेदारी के दायरे के हर एक काम के नतीजे देखते हुए अधिकांश लोग अपना कार्य करने के लिए अपने ज्ञान, सीख और खूबियों पर भरोसा कर रहे हैं और वे ऐसे मामलों से अनभिज्ञ हैं कि परमेश्वर की विशिष्ट अपेक्षाएँ क्या हैं, कर्तव्य निभाने के सिद्धांत क्या हैं और कोई कार्य कैसे करें कि उससे परमेश्वर के लिए गवाही देने का नतीजा प्राप्त हो, और सुसमाचार को कैसे और अधिक प्रभावी ढंग से प्रसार करें कि परमेश्वर के प्रकट होने के लिए लालायित सभी लोग उसकी वाणी सुन लें, सच्चे मार्ग को परख लें और जितनी जल्दी हो सके परमेश्वर के पास लौट आएँ। ऐसा क्यों है कि वे इन चीजों से अनभिज्ञ हैं? इसका सीधा संबंध नकली अगुआओं की वास्तविक कार्य करने में विफलता से जुड़ा है। इसका मुख्य कारण यह है कि नकली अगुआ खुद नहीं जानते कि सत्य सिद्धांत क्या हैं या लोगों को किन सिद्धांतों को समझना और उनका अनुसरण करना चाहिए। वे सिद्धांतों के बिना काम करते हैं और वे अपने कर्तव्यों में अभ्यास के सिद्धांत और मार्ग खोजने में लोगों की अगुआई कभी नहीं करते। जब किसी नकली अगुआ को कोई समस्या मिलती है तो वह उसे स्वयं हल नहीं कर सकता और दूसरों के साथ उस पर संगति और खोज नहीं करता, जिसके कारण हर काम बार-बार नए सिरे से करने की जरूरत पड़ती है। यह न केवल वित्तीय और भौतिक संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि लोगों की ऊर्जा और समय की भी बर्बादी है। ऐसे दुष्परिणामों का संबंध सीधे तौर पर नकली अगुआओं की बहुत खराब काबिलियत और गैरजिम्मेदारी से हैं। हालाँकि यह नहीं कहा जा सकता है कि नकली अगुआ जानबूझकर बुराई करते हैं और विघ्न पैदा करते हैं, पर इतना कहा जा सकता है कि वे अपने काम में सत्य सिद्धांतों की तलाश बिल्कुल नहीं करते और कि वे हमेशा अपनी इच्छा के आधार पर काम करते हैं। यह निश्चित है। नकली अगुआ सत्य सिद्धांतों को नहीं समझते, न ही वे दूसरों के साथ उनके बारे में स्पष्ट रूप से संगति कर सकते हैं; इसके बजाय, वे लोगों को अपनी मर्जी से काम करने की खुली छूट देते हैं। यह अनजाने ही कुछ कार्य प्रभारियों को मनमाने ढंग से और स्वेच्छानुसार विशिष्ट काम करने और जो जी में आए वह करने की ओर ले जाता है। इसके परिणामस्वरूप, न केवल थोड़े ही वास्तविक नतीजे मिलते हैं, बल्कि कलीसिया का कार्य भी गड्ड-मड्ड हो जाता है। जब किसी नकली अगुआ को बर्खास्त किया जाता है तो न केवल वे आत्मचिंतन नहीं करते या खुद को नहीं जानते, बल्कि वे कुतर्क रचकर बहस भी करते हैं और सत्य को जरा भी स्वीकार नहीं करते, और पश्चात्ताप करने का उनका बिल्कुल भी इरादा नहीं होता। वे यह कहते हुए कि वे निश्चित रूप से अच्छी तरह से काम कर सकते हैं, वे परमेश्वर के घर से एक और मौका भी माँग सकते हैं। क्या तुम लोग उन पर विश्वास करते हो? वे खुद को बिल्कुल नहीं जानते, न ही वे सत्य को स्वीकारते हैं। तब क्या वे अपने तौर-तरीके बदल सकते हैं? उनके पास सत्य वास्तविकता नहीं है, तो क्या वे अच्छी तरह से कार्य कर सकते हैं? क्या यह संभव है? उन्होंने इस बार काम अच्छी तरह से नहीं किया—यदि उन्हें एक और मौका दिया जाए तो क्या वे इसे अच्छी तरह से कर पाएँगे? ऐसा संभव नहीं है। निश्चितता के साथ कहा जा सकता है कि नकली अगुआओं में काम करने की क्षमता नहीं होती; कभी-कभी वे बहुत मेहनत कर सकते हैं और बहुत व्यस्त हो सकते हैं, लेकिन यह बिना सोची-समझी व्यस्तता होती है, जिसका कोई फल नहीं मिलता। इतना यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि नकली अगुआओं की काबिलियत बहुत कम होती है, कि वे सत्य को बिल्कुल नहीं समझते और यह भी कि वे वास्तविक कार्य नहीं कर सकते। इससे कार्य में कई समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, लेकिन वे सत्य के बारे में संगति कर उनका समाधान करने में असमर्थ होते हैं और विनियमों के पालन के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए वे केवल कुछ खोखले धर्म-सिद्धांतों का उपयोग करते हैं और परिणामस्वरूप वे कार्य को गड्ड-मड्ड कर इसे अस्त-व्यस्त छोड़ देते हैं। नकली अगुआओं के कार्य करने का यही तरीका है और इसके यही दुष्परिणाम होते हैं। सभी अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इसे एक चेतावनी के रूप में लेना चाहिए।

कलीसिया के भीतर दिखाई देने वाले विभिन्न असंतोषजनक मसले सीधे नकली अगुआओं से संबंधित होते हैं—इस समस्या से बचा नहीं जा सकता। इन नकली अगुआओं में सत्य को पूरी तरह समझने की क्षमता का अभाव होता है, फिर भी वे सोचते हैं कि वे सब कुछ समझते और हासिल कर लेते हैं, और फिर वे अपनी कल्पनाओं और धारणाओं के आधार पर कार्य करते हैं। वे सत्य सिद्धांतों या परमेश्वर द्वारा अपेक्षित मानकों के बारे में अपनी समझ की कमी का समाधान करने के लिए कभी सत्य की खोज नहीं करते। मैंने बहुत से अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत की है, और मैं उनसे अक्सर मिलता हूँ। मुलाकात होने पर मैं उनसे पूछता हूँ, “क्या तुम्हारी कोई समस्या है? क्या तुम लोगों ने काम में मौजूद समस्याओं का लेखाजोखा रखा है? क्या ऐसी कोई समस्या है जिसे तुम अपने बूते हल नहीं कर सकते?” जब मैं अपनी बात खत्म करता हूँ तो वे शून्य भाव से देखते हैं, और उनके दिलों में संदेह होते हैं : “हम अगुआ हैं; क्या हमारी कोई समस्या हो सकती है? अगर होती, तो क्या कलीसिया का कार्य बहुत पहले ही बाधित नहीं हो गया होता? यह किस किस्म का सवाल है? हम धर्मोपदेश और संगति सुनते हैं, और परमेश्वर के वचनों को अपने हाथों में थामे रहते हैं। कलीसिया की अगुआई करने वाले हम जैसे बहुत से लोग हैं, इतना सब होने पर भी तुम चिंतित कैसे हो सकते हो? यह सवाल पूछकर तुम स्पष्ट रूप से हमें कम आँक रहे हो। हमारे पास समस्याएँ कैसे हो सकती हैं? अगर हमारे पास समस्याएँ होतीं, तो हम अगुआ नहीं होते। तुम्हारा सवाल बहुत अनुचित है!” जब भी मैं उनसे पूछता हूँ कि क्या उन्हें कोई समस्या है, तो वे ऐसी ही स्थिति में होते हैं—वे सभी सुन्नता और मंदबुद्धि के प्रतिरूप हैं। कलीसिया के कार्य के विभिन्न मदों में बहुत सारी समस्याएँ हैं, लेकिन ये लोग उन्हें देख या खोज नहीं पाते। व्यक्तिगत जीवन प्रवेश से संबंधित मुद्दों या कार्य में मौजूद जिन मुद्दों में सत्य सिद्धांत शामिल होते हैं, वे उन्हें सामने लाने में असमर्थ होते हैं। चूँकि वे इन मुद्दों को सामने नहीं ला सकते, इसलिए मैं उनसे पूछता हूँ, “परमेश्वर के वचनों के अनुवाद का कार्य कैसे आगे बढ़ रहा है? क्या तुम्हें पता है कि अभी कितनी भाषाओं में अनुवाद किया जाना चाहिए? किन भाषाओं में पहले अनुवाद किया जाना चाहिए और किन भाषाओं में बाद में? किन भाषाओं के लिए परमेश्वर के वचनों की पुस्तक की कितनी प्रतियाँ छापी जानी चाहिए?” वे जवाब देते हैं, “आह, उनका अनुवाद चल रहा है।” मैं उनसे पूछता हूँ, “अनुवाद कहाँ तक आगे बढ़ा? क्या कोई समस्या है?” वे जवाब देते हैं, “मुझे नहीं पता; मुझे पूछना होगा।” मुझे उनसे इन चीजों के बारे में पूछना होता है, और उन्हें जवाब नहीं मालूम होते। तो, वे पूरे समय क्या काम कर रहे थे? मैं उनसे पूछता हूँ, “क्या तुमने उन मुद्दों को हल किया जिनके बारे में भाई-बहनों ने पिछली बार सवाल किया था?” वे जवाब देते हैं, “मैंने उनके साथ एक सभा आयोजित की थी—पूरे एक दिन की सभा।” मैं उनसे पूछता हूँ, “क्या सभा के बाद मुद्दे हल हो गए थे?” वे जवाब देते हैं, “क्या तुम्हारा मतलब है कि अगर अभी भी समस्याएँ हैं, तो हमें एक और सभा करनी चाहिए?” मैं कहता हूँ, “मैं यह नहीं पूछ रहा हूँ कि तुमने सभा आयोजित की या नहीं। मैं पूछ रहा हूँ कि क्या पेशेवर मुद्दे हल हो गए। क्या ये लोग सिद्धांतों को समझते हैं? क्या उन्होंने अपने कर्तव्यों के पालन में किसी सिद्धांत का उल्लंघन किया है? क्या तुम्हें कोई समस्या मिली है?” वे जवाब देते हैं, “ओह, समस्याएँ? मैं उन्हें हल कर चुका हूँ। मैंने भाई-बहनों के लिए एक सभा आयोजित की थी।” क्या ऐसी बातचीत जारी रखी जा सकती है? (नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।) क्या इस बातचीत को सुनकर तुम लोगों को गुस्सा नहीं आता? (हाँ, आता है।) ये अगुआ कैसे हैं? क्या ये केवल छद्म-आध्यात्मिक मूर्ख नहीं हैं? उनमें अगुआओं और कार्यकर्ताओं की काबिलियत नहीं है; वे अंधे हैं, उन्हें समझ नहीं आता कि काम कैसे करना है, और वे हर सवाल के जवाब में कहते हैं, “मुझे नहीं पता”, और जब तुम उनसे और सवाल पूछते रहते हो तो वे जवाब देते हैं, “वैसे भी, मैंने एक सभा की थी; बस अब रहने दो!” क्या इन अगुआओं ने वास्तव में काम किया है? क्या वे मानक स्तर के अगुआ हैं? (नहीं।) ये नकली अगुआ हैं। क्या तुम लोगों को इस तरह के अगुआ पसंद हैं? अगर तुम्हारा सामना ऐसे अगुआओं से हो, तो तुम लोगों को क्या करना चाहिए? जब कुछ अगुआ भाई-बहनों से मिलते हैं, तो वे कहते हैं, “आज तुम्हारे सामने चाहे जो मुद्दे हों, आओ, सबसे पहले इस बात पर संगति करते हैं कि कर्तव्यों को अच्छी तरह से कैसे निभाया जाए।” तब कुछ लोग कहते हैं, “हमें अपने कर्तव्यों में पेशेवर तकनीकों से जुड़े एक मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है : क्या हमें उन पेशेवर तकनीकों का उपयोग करना चाहिए जो गैर-विश्वासियों के बीच लोकप्रिय हैं?” क्या यह ऐसी समस्या नहीं है जिसे अगुआओं को हल करना चाहिए? यदि कुछ मुद्दों को भाई-बहनों के बीच संगति के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता, तो अगुआओं को उन्हें हल करने के लिए कदम उठाना चाहिए—यह अगुआओं की जिम्मेदारियों से जुड़ा मामला है। नकली अगुआ इन समस्याओं के सामने आने पर क्या करते हैं? वे कहते हैं, “यह एक पेशेवर मुद्दा है; यह तुम्हारी समस्या है, इसका मुझसे क्या मतलब? इस मुद्दे पर तुम स्वयं संगति करो, लेकिन पहले मैं तुम लोगों के लिए एक सभा आयोजित करने जा रहा हूँ। आज की सभा में हम सामंजस्यपूर्ण सहयोग पर संगति करेंगे। तुमने जो प्रश्न अभी पूछा है वह सामंजस्यपूर्ण सहयोग से संबंधित है। तुम लोगों को चीजों पर चर्चा करने और एक साथ संगति करने, और अधिक शोध करने में सक्षम होना चाहिए; किसी को भी आत्मतुष्ट नहीं होना चाहिए, और सभी को किसी भी ऐसे निर्णय को स्वीकार करना चाहिए जिसे बहुमत का समर्थन प्राप्त है—क्या यह सामंजस्यपूर्ण सहयोग का प्रश्न नहीं है? ऐसा लगता है कि तुम लोग सामंजस्यपूर्ण सहयोग करना नहीं जानते, या समस्याएँ आने पर उन पर चर्चा करना नहीं जानते। तुम मुझसे हर समस्या के बारे में पूछते हो। तुम मुझसे किसलिए पूछ रहे हो? क्या मैं इन चीजों को समझता हूँ? अगर मैं समझता, तो क्या तुम लोगों के पास करने के लिए कुछ होता? तुम मुझसे हर चीज के बारे में पूछते हो। क्या यह ऐसी समस्या है जिसे मुझे सँभालना चाहिए? मैं केवल सत्य पर संगति करने का जिम्मेदार हूँ; पेशेवर मुद्दों को तुम खुद हल करो। मुझे उनकी क्या चिंता? वैसे भी, मैंने पहले ही तुम लोगों के साथ संगति की है और तुम लोगों को सामंजस्यपूर्ण सहयोग करने के लिए कहा है—यदि तुम लोग ऐसा नहीं कर सकते तो यह कर्तव्य मत निभाओ। मैंने अपनी संगति समाप्त कर ली है; जाकर समस्या खुद हल करो।” क्या ये अगुआ समस्याएँ हल करना जानते हैं? (नहीं, वे नहीं जानते।) यह नहीं जानते हुए भी कि यह काम कैसे करना है, वे खुद को बहुत न्यायसंगत समझते हैं, और जिम्मेदारी से बचने में माहिर होते हैं। सभी तरह से ऐसा प्रतीत होता है कि वे अपना काम कर चुके होते हैं, वे निरीक्षण करने के लिए घटनास्थल पर पहुँचे होते हैं, और काम में ढिलाई नहीं बरत रहे होते हैं। परंतु, वे वास्तविक काम नहीं कर सकते या वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते, जिसका अर्थ है कि वे नकली अगुआ हैं। क्या तुम इस तरह के नकली अगुआ को पहचान सकते हो? किसी भी समस्या से सामना होने पर, वे प्रासंगिक सत्य पर संगति नहीं कर सकते : वे केवल कुछ खोखले धर्म-सिद्धांत और सिद्धांत बोलते हैं जो सुनने में काफी ऊँचे और गहन लगते हैं, और जब लोग उन्हें सुनते हैं, तो वे न केवल सत्य नहीं समझ पाते हैं, बल्कि भ्रमित और दिशाभ्रमित भी महसूस करते हैं। यही वह काम है जो नकली अगुआ करते हैं।

“उन सत्य सिद्धांतों पर संगति करना जिन्हें प्रत्येक कर्तव्य को ठीक से निभाने के लिए समझा जाना चाहिए” के कार्य में नकली अगुआ पूरी तरह से उजागर हो जाते हैं। वे सत्य सिद्धांतों पर संगति करने, या लोगों को उनके कर्तव्यों के निर्वाह में सत्य सिद्धांतों का पालन और अभ्यास करने के लिए प्रेरित करने में या सत्य वास्तविकता समझने और उसमें प्रवेश करने में उनकी अगुआई करने में असमर्थ होते हैं—वे उन जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर सकते जो अगुआओं को करनी चाहिए। और इतना ही नहीं, वे विभिन्न कार्यों के पर्यवेक्षकों और विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार कार्मिकों की परिस्थितियों से भी अवगत नहीं रह पाते, और भले ही इस पर कुछ हद तक उनकी पकड़ हो, लेकिन वह सटीक नहीं होती। इससे काम के विभिन्न मदों में भारी व्यवधान पड़ते हैं और नुकसान होते हैं। ये नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं जिन्हें हम आज अगुआओं और कार्यकर्ताओं की चौथी जिम्मेदारी के संबंध में उजागर करने जा रहे हैं।

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