अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (29) खंड चार

ग. लोगों को सुसमाचार प्रचार के लिए भेजते समय पालन किए जाने वाले सिद्धांत

महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वालों की सुरक्षा के संदर्भ में कार्य का एक और क्षेत्र है जिस पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ध्यान देना चाहिए, जो अपने कर्तव्य निभाने के लिए बाहर जाने वाले लोगों की सुरक्षा करना है। लोगों को अपना कर्तव्य निभाने के लिए बाहर भेजते समय किन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए? सबसे पहले, लोगों की उम्र और लिंग के साथ-साथ उनकी अंतर्दृष्टि और जीवन के अनुभव के बारे में विचार करना चाहिए—अगुआ और कार्यकर्ता इस मामले में भ्रमित या लापरवाह नहीं हो सकते। उदाहरण के लिए, अगर तुम सुसमाचार कर्मियों को सुसमाचार प्रचार के लिए किसी अनजान जगह पर भेज रहे हो तो किस तरह के लोगों को भेजना उपयुक्त होगा? (कुछ अंतर्दृष्टि और बुद्धिमत्ता वाले लोगों को।) अगर किसी कलीसिया में बहुत सारे उपयुक्त लोग नहीं हैं, वहाँ ज्यादातर युवा लोग हैं जिनके पास जीवन का अनुभव और अंतर्दृष्टि नहीं है, जो समस्याओं से सामना होने पर परिस्थितियों को सँभालना नहीं जानते—खासकर चुनौतीपूर्ण समस्याओं को—जो सिद्धांतों के बिना बोलते हैं और जिनमें बुद्धिमत्ता की भी कमी है तो वे कार्य करने में असमर्थ होंगे। अगर ऐसे लोगों को भेजा जाता है तो वे न केवल समस्याओं को सुलझाने में नाकामयाब होंगे, बल्कि वे कार्य को प्रभावित और उसमें देरी भी कर सकते हैं। इसलिए लोगों को अपना कर्तव्य निभाने के लिए बाहर भेजते समय परिपक्व मानवता और बुद्धिमत्ता वाले लोगों को चुनना जरूरी है—केवल ऐसे लोग ही उपयुक्त हैं। अगर पर्याप्त उपयुक्त लोग मौजूद नहीं हैं तो युवा लोगों को अपने कर्तव्य निभाने में बड़े लोगों के साथ सहयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए, मान लो कि 25 या 26 साल की किसी युवा बहन को अगर किसी अनजान जगह पर अपना कर्तव्य निभाने के लिए भेजा जाता है तो काफी समय से परमेश्वर में विश्वास रखने, आस्था रखने, आध्यात्मिक कद होने और लंबे समय से अपना कर्तव्य निभाने के बावजूद भी वह यह नहीं जान पाएगी कि खुद को कैसे सुरक्षित रखा जाए—ऐसी स्थिति में, समाज में अनुभव रखने वाले किसी स्थानीय भाई या बहन को उसके साथ कर्तव्य निभाने में सहयोग के लिए भेजना जरूरी होगा। बेशक, अगर किसी कर्तव्य का स्थान कोई परिचित इलाका या ऐसी जगह है जहाँ पहले से ही कोई कलीसिया है, तो युवा भाई और बहन वहाँ जा सकते हैं। लेकिन अगर लोग सुसमाचार प्रचार के लिए या अन्य कार्य करने के लिए किसी अनजान जगह पर खासकर खराब सार्वजनिक सुरक्षा वाली जगह पर जा रहे हैं तो उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा पर विचार करना जरूरी होगा। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए, चाहे वे किसी को भी काम करने के लिए बाहर भेज रहे हों, सुरक्षा सबसे पहली चीज है जिस पर उन्हें विचार करना चाहिए। अगर यह स्पष्ट नहीं है कि संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता किस तरह के लोग हैं या क्या ये लोग गलत काम कर सकते हैं, तो सुसमाचार प्रचार करने के लिए लोगों को भेजते समय सावधानी बरतनी चाहिए। मैंने सुना है कि पहले कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अक्सर युवा बहनों को—करीब 18 या 19 वर्ष की या 20-22 वर्ष के आस-पास की बहनों को—सुसमाचार प्रचार के लिए अनजान जगहों पर भेजते थे; और पता चला है कि उनके साथ कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ भी घटीं हैं। वास्तव में चाहे जो भी हुआ हो, आखिरकार यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा काम करते समय पूरी तरह से विचारशील नहीं होने का मामला था। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपने काम में इन चीजों को ध्यान में रखना चाहिए और उन्हें बहुत कम उम्र के भाई-बहनों को अपने कर्तव्य निभाने के लिए अनजान और खतरनाक जगहों पर नहीं भेजना चाहिए। एक बार किसी अगुआ ने 18 या 19 साल की दो बहनों को सुसमाचार प्रचार के लिए भेजा था। जब किसी ने कहा कि वे इसके लिए बहुत छोटी और अनुपयुक्त हैं तो अगुआ ने यह सोचकर उनके बजाय किसी 21 साल की बहन को भेजा, “तुमने कहा कि 19 वर्ष वाली बहन बहुत छोटी है तो मैंने 21 साल की बहन को ढूँढ़ लिया। यह तो बड़ी है, है ना?” इस अगुआ की काबिलियत कैसी थी? उसमें विचलनों की संभावना थी, है ना? (बिल्कुल।) 19 वर्ष से केवल दो वर्ष बड़ी होने के कारण—क्या उसे जीवन का अनुभव हो सकता था? क्या उसे समाज का अनुभव हो सकता था? कठिनाइयों या खतरनाक स्थितियों का सामना करते समय क्या वह रोने लगी होगी? भले ही वह उस बहन से दो साल बड़ी थी, मगर वह अभी भी बहुत छोटी थी और इस काम के लिए सक्षम नहीं थी। कम से कम, ऐसे भाई या बहन को ढूँढ़ना जरूरी है जो अपनी उम्र के 30 या 40 के दशक में हों या फिर 50 या 60 के दशक में हों—वे बड़े होते हैं और समाज में अनुभव रखते हैं; परिस्थितियों का सामना करते समय उनके पास उन्हें सँभालने की बुद्धिमत्ता होती है, वे कोई भी खतरनाक स्थिति पैदा होने से रोक सकते हैं। युवा लोगों ने कई चीजों को नहीं देखा होता है या अनुभव नहीं किया होता है और वे नहीं जानते कि उन्हें कैसे सँभालना है; खतरे का सामना करते समय शायद उन्हें इसका एहसास तक न हो, जिससे घटनाओं का होना आसान हो जाता है। बड़े लोग इस समाज और इस मानवजाति में अधिक दुष्टता देख चुके होते हैं, वे लोगों के प्रति ज्यादा सतर्क होते हैं। समाज में अपने अनुभव और वास्तविक जीवन से प्राप्त ज्ञान के आधार पर वे कुछ उचित फैसले ले सकते हैं, जैसे कि कुछ स्थितियों में किस तरह का खतरा उत्पन्न हो सकता है, खतरे का स्तर कितना अधिक है, कौन बुरे लोग हैं और कुछ लोग किस तरह की चीजें कर सकते हैं। खतरनाक स्थितियों का सामना करते समय उनके पास खतरे से बचने की बुद्धिमत्ता भी होती है। वहीं दूसरी ओर, युवा लोगों में अनुभव की कमी होती है। परिस्थितियों का सामना करते समय, वे संभावित खतरनाक परिणामों का अनुमान नहीं लगा सकते। इसलिए जब सुरक्षा से जुड़ी समस्याओं की बात आती है तो युवा लोगों की तुलना में बड़े लोग ज्यादा विचारशील होते हैं। जब अगुआ और कार्यकर्ता लोगों के लिए बाहर जाकर अपने कर्तव्य निभाने की व्यवस्था करें, तो उन्हें स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपने कर्तव्य निभाने में युवा लोगों का सहयोग करने के लिए उम्र में अपेक्षाकृत बड़े लोगों को भेजना चाहिए, जिनके पास बुद्धिमत्ता और अनुभव है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इन मामलों में पूरी तरह से विचारशील होना चाहिए।

कलीसिया का कार्य चाहे किसी भी देश में किया जाए, अपने कर्तव्य निभाने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना ऐसा काम है जिस पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पूरा ध्यान देना चाहिए। चाहे किसी को कोई भी काम करने के लिए भेजा जाए, उसके पास एक निश्चित काबिलियत और थोड़ी क्षमता होनी चाहिए ताकि वह उस काम को करने में सक्षम हो और उसकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके; विशेष रूप से, यह उन इलाकों या देशों में और भी ज्यादा जरूरी है जहाँ जन सुरक्षा की स्थिति खराब है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपने कर्तव्य निभाने वालों की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए, लापरवाही से इसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “कोई बात नहीं। हम परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभा रहे हैं—हमारे पास परमेश्वर की सुरक्षा है, इसलिए कोई नहीं मरेगा। हमारे साथ संभवतः क्या गलत हो सकता है?” क्या उनका ऐसा कहना सही है? (नहीं।) क्यों नहीं? (इस तरह से बोलना गैर-जिम्मेदाराना है और यह दृष्टिकोण वास्तविकता से बहुत अलग भी है।) लोगों को अपनी उन जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिए जिन्हें वे पूरा करने में सक्षम हैं और उन चीजों पर ध्यान देना चाहिए जिन पर वे विचार करने में सक्षम हैं; उन्हें परमेश्वर की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए या भाई-बहनों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। परमेश्वर लोगों की सुरक्षा कर सकता है, लेकिन अगर तुम उन समस्याओं पर विचार नहीं करते जिन पर तुम विचार करने में सक्षम हो और तुम परमेश्वर की परीक्षा लेने के लिए भाई-बहनों की सुरक्षा को दाँव पर लगा देते हो तो परमेश्वर तुम्हें बेनकाब कर देगा—किसने तुम्हें इतना मूर्ख बनाया कि तुम ऐसी बेवकूफी भरी चीजें करते हो! इसलिए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस तरह की बातों को गैर-जिम्मेदाराना चीजें करने के बहाने के रूप में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए; अपने कर्तव्य निभाने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना तुम्हारी जिम्मेदारी है और तुम्हें अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए। जब तुम हर उस चीज पर ध्यान दे चुके होते हो जिसके बारे में सोचने और जिसे करने में तुम सक्षम हो, उसके बाद जिस बारे में तुमने विचार नहीं किया है उसे लेकर परमेश्वर कैसे काम करेगा, यह परमेश्वर का अपना मामला है और इसका तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। कुछ लोग बिना सोचे-विचारे सारी जिम्मेदारी परमेश्वर पर डालकर कहते हैं, “लोगों की सुरक्षा के लिए परमेश्वर जिम्मेदार है, हमें डरने की जरूरत नहीं है; हम जैसे चाहें वैसे प्रचार कर सकते हैं। परमेश्वर के साथ सब कुछ स्वतंत्र और मुक्त है; हमें उन चीजों को लेकर परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है!” क्या इस तरह का बयान सही है? (नहीं।) इस तरह के बयान के हिसाब से, जब घटनाएँ घटे तो लोगों को सिद्धांत खोजने की कोई जरूरत नहीं है; अगर ऐसा होता तो परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए सत्य का क्या काम होता? यह बेकार होता। इन वर्षों में परमेश्वर ने लोगों को सिखाने के लिए धैर्यपूर्वक और कड़ी मेहनत से बहुत सारे वचन बोले हैं ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग उसके इरादों के अनुसार जीवन जीने, सत्य का अनुसरण करने, इस बुरे संसार में और इस बुरी मानवजाति के बीच आचरण करने का तरीका सीख सकें। परमेश्वर की परीक्षा लेना तुम्हारा काम नहीं है, न ही यह तुम्हारा काम है कि तुम शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के अनुसार और सिद्धांतों के बिना अपनी मनमर्जी से काम करो। सुसमाचार प्रचार में अच्छा काम करने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। ऐसा करने के लिए, उन्हें सबसे पहले अपने कर्तव्य निभाने वालों की विशिष्ट परिस्थितियों का पता लगाना और उन्हें समझना होगा, उपयुक्त लोगों को भेजना होगा और यह भी समझना होगा कि लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न स्थितियों में क्या करना चाहिए। अगर कोई जगह विशेष रूप से अव्यवस्थित है, वहाँ कोई जान-पहचान वाला नहीं है और जो कोई भी वहाँ सुसमाचार प्रचार करने जाता है उसकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती, तो फिलहाल वहाँ लोगों को मत भेजो; यह जोखिम मत लो, अनावश्यक त्याग मत करो। चाहे कोई भी कर्तव्य या कोई भी कार्य किया जा रहा हो, इसके लिए तुम्हें संसार में जाने या अपने जीवन को खतरे में डालने की जरूरत नहीं है, न ही तुम्हें अपनी सुरक्षा या अपने जीवन को दाँव पर लगाने की कोई जरूरत है। बेशक, चीन के परिवेश में अपना कर्तव्य निभाने के लिए खतरा मोल लेना ही पड़ता है। सरकार परमेश्वर में विश्वास रखने वालों को सताती है और यह अच्छी तरह से जानते हुए भी कि खतरा है, तुम्हें परमेश्वर में विश्वास रखना, परमेश्वर का अनुसरण करना और अपना कर्तव्य निभाना चाहिए; तुम अपने कर्तव्य को त्याग नहीं सकते और कोई भी कार्य रोका नहीं जा सकता। विदेशों में स्थितियाँ बिल्कुल अलग हैं—कुछ चीन के समान सत्तावादी देश हैं जबकि अन्य देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देशों में सुसमाचार प्रचार का काम सुचारु रूप से आगे बढ़ सकता है और काम के विभिन्न हिस्सों को भी अधिक सुचारु रूप से पूरा किया जा सकता है। मगर सत्तावादी लक्षणों वाले कुछ देशों में लोग असभ्य और पिछड़े होते हैं और उनके लिए सच्चे मार्ग को स्वीकारना आसान नहीं होता। जब उन्हें सुसमाचार सुनाया जाता है तो न केवल वे इसकी जाँच नहीं करते, बल्कि बिना सोचे-समझे इसकी निंदा भी करते हैं और यहाँ तक कि पुलिस को स्थिति की रिपोर्ट भी कर सकते हैं। ऐसे मामलों में, लोगों को वहाँ सुसमाचार प्रचार के लिए मत भेजो; इसके बजाय ऐसी जगहें ढूँढ़ो जहाँ कार्य करने के लिए सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। ये सभी ऐसी चीजें हैं जिन पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सावधानी से विचार करना चाहिए। उदाहरण के लिए, मलेशिया, इंडोनेशिया या भारत जैसे देशों में, जिनकी धार्मिक पृष्ठभूमि बहुत जटिल है, कुछ धार्मिक संप्रदायों का बहुत प्रभाव होता है और वे पूरे समाज को इस हद तक नियंत्रित करते हैं कि सरकारें भी इन धर्मों के प्रभाव के आगे घुटने टेक देती हैं। ऐसे देशों में सुसमाचार प्रचार करने के लिए और लोगों को मत भेजो; केवल स्थानीय कलीसियाओं द्वारा सुसमाचार प्रचार करना ही पर्याप्त है। कुछ देशों में, अलग-अलग राज्यों या प्रांतों में स्थिति अलग-अलग होती है, स्थानीय कानून और विनियम राष्ट्रीय कानूनों और विनियमों से भिन्न होते हैं। जैसे, कुछ इलाकों की विशेष धार्मिक पृष्ठभूमि होती है, उन इलाकों में कलीसिया और राज्य एकीकृत होते हैं। कुछ मामलों में, धार्मिक अगुआओं के पास स्थानीय सरकारी अधिकारियों से भी ज्यादा अधिकार होते हैं और वे कुछ राष्ट्रीय नीतियों का खुलेआम उल्लंघन कर सकते हैं। अगर तुम ऐसे इलाकों में जाकर सुसमाचार प्रचार करते हो तो संभावित सुरक्षा जोखिम होंगे। ये संभावित जोखिम तुम्हारे बारे में अफवाहें गढ़ने या तुम्हें खदेड़ने तक सीमित नहीं हैं—तुम्हें गिरफ्तार करके बिना किसी आरोप के जेल में बंद किया जा सकता है, यहाँ तक कि तुम्हें यातना देकर अपंग बनाया जा सकता है या जान से मारा भी जा सकता है और सरकार इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी। वास्तव में, ज्यादातर धार्मिक संप्रदायों के अगुआ बाहरी धर्मों से नफरत करते हैं। क्योंकि उनका प्रभाव बहुत ज्यादा है और वे किसी भी कानून द्वारा नियंत्रित नहीं हैं; कोई भी उन्हें जवाबदेह ठहराने की हिम्मत नहीं करता, चाहे वे सुसमाचार कार्यकर्ताओं पर कितनी भी क्रूरता से अत्याचार क्यों न करें; यहाँ तक कि स्थानीय सरकारी अधिकारी भी उन्हें नाराज नहीं करना चाहते। जैसै ही तुम उनके इलाके में सुसमाचार प्रचार करने लगोगे, वे जैसे चाहें वैसे तुम्हें सता सकते हैं। इसलिए, लोगों को कहीं भी सुसमाचार प्रचार के लिए भेजते समय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बहुत सतर्कता बरतनी चाहिए। सबसे पहले, उन्हें उस जगह की स्थिति के बारे में छानबीन करना और जानना चाहिए—क्या वहाँ विश्वास रखने की स्वतंत्रता है, धार्मिक ताकतें कितनी शक्तिशाली हैं और अगर वहाँ सुसमाचार प्रचार करने वाले लोगों की रिपोर्ट की जाती है तो क्या परिणाम हो सकते हैं। लोगों को वहाँ भेजना है या नहीं, यह तय करने से पहले इन बातों को स्पष्ट रूप से समझना चाहिए। अगर किसी जगह के बारे में जानने के बाद पता चलता है कि यह सुसमाचार प्रचार के लिए उपयुक्त नहीं है तो वहाँ लोगों को प्रचार करने के लिए भेजने की इजाजत किसी को भी नहीं है। यह भी उस कार्य का एक हिस्सा है जो सुसमाचार कार्यकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किया जाना चाहिए। कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं की समझ विकृत होती है और वे कहते हैं, “कोई बात नहीं; परमेश्वर हमारी रक्षा करेगा। चुनौती जितनी कठिन होगी, हमें उसका उतना ही डटकर सामना करना चाहिए। उस जगह पर प्रभु में विश्वास रखने वाले बहुत-से लोग हैं, तो हम वहाँ जाकर सुसमाचार प्रचार क्यों न करें?” कोई उनसे कहता है, “वहाँ निजी जेलें हैं। अगर हम सुसमाचार प्रचार के लिए वहाँ गए तो न सिर्फ हमें हिरासत में ले लिया जाएगा, बल्कि हम वहाँ मर भी सकते हैं। हम नहीं जा सकते!” वे बेवकूफ नकली अगुआ इस पर विचार करते हैं, “बड़े लाल अजगर के पास बहुत-सी जेलें हैं, मगर हम उससे नहीं डरते—तो हमें वहाँ की निजी जेलों से क्यों डरना चाहिए? जेलें हमारे शरीर को तो पकड़ सकती हैं, मगर हमारे दिलों को नहीं! डरो मत—बस चले जाओ!” फिर वे लोगों की एक के बाद एक टोली भेजते हैं और अंत में उनमें से कोई भी वापस नहीं आता; उन्हें हिरासत में ले लिया जाता है। नकली अगुआ चौंक जाते हैं। यहाँ समस्या क्या है? (ऐसे नकली अगुआ बेवकूफ हैं।) ऐसे नकली अगुआ बदमाश हैं; वे गैर-जिम्मेदार हैं, लोगों को खतरे में धकेलते हैं। वे खुद क्यों नहीं जाते? अगर वे खतरे से नहीं डरते तो उन्हें पहले जाना चाहिए। अगर वे वहाँ जाकर सुरक्षित वापस लौटते हैं, लोगों को हासिल करते हैं तो अन्य लोग उनके पीछे जा सकते हैं। चाहे कुछ भी हो, सुसमाचार प्रचार करते समय लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। उन इलाकों में जोखिम बिल्कुल मत लो जो खतरनाक हैं और सुसमाचार प्रचार के लिए उपयुक्त नहीं हैं। यह मत मानो कि चीन की मुख्य भूमि के बाहर कोई भी जगह सुरक्षित है; यह एक भ्रम है, एक विकृत समझ है। सिर्फ अज्ञानी लोग ही इस तरह सोचते हैं—ऐसे लोग इस संसार के बारे में बहुत कम समझते हैं! यह मत मानो कि चूँकि ज्यादातर पश्चिमी देशों में विश्वास रखने की स्वतंत्रता है और वहाँ ऐसे कई लोग हैं जो प्रभु में विश्वास रखते हैं, इसलिए तुम खुलेआम सुसमाचार प्रचार कर सकते हो और धार्मिक संसार कितना अंधकारमय और बुरा है यह उजागर करने वाले विभिन्न प्रकार के बयान खुलेआम दे सकते हो; अगर तुम ऐसा करते हो तो परिणाम अकल्पनीय होंगे। चाहे धार्मिक लोगों के सामने हो या फिर अविश्वासियों के, सुसमाचार प्रचार करते समय तुम्हें यह समझना चाहिए कि तुम भ्रष्ट मानवजाति का सामना कर रहे हो, उस मानवजाति का जो परमेश्वर का विरोध करती है। इस मामले को ज्यादा सरलता से मत लो।

अगर अगुआ और कार्यकर्ता सुसमाचार कार्यकर्ताओं की सुरक्षा की गारंटी चाहते हैं तो उन्हें इस मुद्दे के सभी पहलुओं पर पूरी तरह से विचार करना चाहिए; और अगर कोई समस्या उत्पन्न होती है तो उसे तुरंत सँभाला जाना चाहिए और उसके बाद, सिद्धांत और अभ्यास का मार्ग खोजने के लिए अनुभवों और सबकों का सारांश तैयार करना चाहिए; यह निर्धारित करना चाहिए कि आगे कैसे अभ्यास करना है—यह भी कार्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसे जरूर किया जाना चाहिए। कुछ ऐसे मामले हैं जिनके बारे में अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने पहले विचार नहीं किया या जिनसे उनका सामना नहीं हुआ है; समस्याएँ उत्पन्न होने के बाद उनका सारांश तैयार करना चाहिए : “क्या हमें अभी भी वैसी जगह पर जाना चाहिए? क्या लोगों को भेजने का यह तरीका सही है? क्या हमें सुसमाचार प्रचार या कोई अन्य महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए अगले चरणों की योजनाएँ, रणनीति या दिशा बदलनी चाहिए?” सारांश तैयार करने की निरंतर प्रक्रिया में अगुआओं और कार्यकर्ताओं को धीरे-धीरे कार्य के तरीके और सिद्धांत निर्धारित करने चाहिए, ताकि जितना ज्यादा वे कार्य करें, यह उतना ही विशिष्ट हो और अपेक्षित मानक पर खरा उतरे, कम आकस्मिकताएँ हों या कोई आकस्मिकताएँ हों ही नहीं या यहाँ तक कि महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को कोई जोखिम न उठाना पड़े। यह नतीजा हासिल करने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अक्सर अनुभवों का सारांश तैयार करना चाहिए और सुसमाचार प्रचार करते समय विभिन्न इलाकों में सामने आने वाले विभिन्न परिवेशों और स्थितियों की समझ हासिल करनी चाहिए। वे जितनी ज्यादा और जितनी सटीक जानकारी प्राप्त करेंगे, मामलों को सँभालने के सिद्धांत और योजनाएँ उतनी ही ज्यादा सटीक होंगी, जिससे आखिरकार लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का नतीजा हासिल होगा। इस तरह यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि सुसमाचार प्रचार का काम व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़े।

III. सुरक्षा कार्य पर ध्यान न देने वाले अगुआओं और कार्यकर्ताओं से कैसे निपटें

कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं में कम काबिलियत होती है और उनमें जिम्मेदारी की भावना नहीं होती; वे वास्तविक कार्य नहीं कर पाते और वास्तविक कार्य करने में बहुत आलसी भी हैं। जिन इलाकों के लिए वे जिम्मेदार हैं वहाँ महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वाले लोग अक्सर सुरक्षा जोखिमों का सामना करते हैं, जिसके कारण उन्हें कहीं और जाना या स्थानांतरित होना पड़ता है, जिससे वे शांत मन से अपना कर्तव्य निभाने में असमर्थ होते हैं। यहाँ तक कि जो चीजें नहीं होनी चाहिए वे भी अक्सर होती हैं। उदाहरण के लिए, किसी अगुआ या कार्यकर्ता को ऐसा मेजबान घर मिलता है जो निचले इलाके में स्थित है। जब भारी बारिश और बाढ़ की संभावना होती है तो घर के डूब जाने के डर से वहाँ रहने वाले भाई-बहनों को पहले ही वहाँ से हटना पड़ता है—काम के उपकरण, बर्तन, कड़ाही और बाकी सारी चीजें लेकर लगातार दो दिनों तक चलना पड़ता है। इससे सभी बुरी तरह थक जाते हैं और निराशा में उनके मुँह लटक जाते हैं। वे कहते हैं, “हम हर कुछ दिनों में जगह बदल रहे हैं, हमेशा भागते रहते हैं। यह सिलसिला कब खत्म होगा? क्या हमें ऐसा सुरक्षित और भरोसेमंद घर नहीं मिल सकता जहाँ हम सामान्य रूप से अपना कर्तव्य निभा सकें?” ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता इतना छोटा-सा काम भी नहीं कर सकते; उनके अधीन रहने वाले भाई-बहन न तो ठीक से खा पाते हैं, न अच्छे से सो पाते हैं और न ही उनके पास पर्याप्त आवास होता है। वे हमेशा अस्थायी रूप से रहते हैं, हर कोई किसी भी समय आपदा से भागने के लिए तैयार रहता है। जैसे ही उनकी रोजमर्रा की चीजों का इस्तेमाल पूरा होता है, वे जल्दी से उन्हें पैक कर देते हैं, क्योंकि किसी भी समय ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है जहाँ परिवार के पंजीकरण की जाँच की घोषणा की जा सकती है। वास्तव में, हर कोई जानता है कि इसका मतलब परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोगों को खोजना है, इसलिए उन्हें किसी भी समय दूसरी जगह जाने के लिए तैयार रहना पड़ता है। इसी वजह से, कर्तव्य निभाने वाले लोग हमेशा डरे हुए रहते हैं और उनमें सुरक्षा की भावना नहीं होती। क्या इससे उनके कर्तव्य के नतीजे प्रभावित नहीं होते? क्या यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा किए जाने वाले कार्य से संबंधित नहीं है? (बिल्कुल है।) वे यह कार्य कैसा कर रहे हैं? (वे इसे खराब तरीके से कर रहे हैं, अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं।) कुछ अगुआ और कार्यकर्ता गैर-जिम्मेदार होते हैं और उनमें समर्पण की कमी होती है। उनकी खुद की रहने की स्थिति उच्च मानकों वाली नहीं हैं; अगर उन्हें हवा और बारिश से बचने के लिए कोई जगह मिल जाए तो यही काफी है। इसलिए, वे भाई-बहनों के रहने के लिए भी सुरक्षित और स्थायी जगह खोजने की पूरी कोशिश नहीं करते। कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं में कम काबिलियत होती है; वे नहीं जानते कि किस तरह का परिवेश शांत और रहने के लिए उपयुक्त है या फिर भाई-बहनों के लिए अपना कर्तव्य निभाने के लिए उपयुक्त है। वे किसी निचली जगह पर स्थित घर किराये पर लेते हैं जिसे कोई और किराये पर नहीं लेना चाहता; और भाई-बहनों के वहाँ रहने के कुछ दिनों बाद ही उन्हें एक्जिमा हो जाता है, पूरे शरीर पर खाज-खुजली होने लगती है। यह क्या हो रहा है? घर बहुत नम है, फर्श से पानी रिस रहा है। क्या कोई ऐसी जगह पर रह सकता है? ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता इस समस्या को भी हल नहीं कर सकते, वे कर्तव्य निभाने के लिए एक उपयुक्त घर नहीं ढूँढ़ सकते—यह कैसी काबिलियत है? कुछ अन्य अगुआ और कार्यकर्ता ऐसे घर किराये पर लेते हैं जिनमें लगातार बारिश का पानी टपकता रहता है, हवा के झोंके अंदर आते हैं, कोई साउंड प्रूफिंग नहीं है या फिर इंटरनेट, पानी या बिजली नहीं है—कोई वहाँ कैसे रह सकता है? वे अच्छे घरों को नजरंदाज करके इन खराब घरों को किराये पर लेने पर जोर देते हैं—क्या इससे मामलों में बाधा नहीं आती? भले ही भाई-बहन खुले में परेशान नहीं हो रहे हैं, मगर घर की कई बुनियादी सुविधाएँ उन्हें नहीं मिल रही हैं; इससे तो उनके लिए तंबू में रहना ही बेहतर होता। भले ही ज्यादातर भाई-बहन कठिनाई सहने के आदी हों, उन्हें लगे कि इस स्तर की कठिनाई सहना कोई बड़ी बात नहीं है और वे इसे सह सकते हैं, मगर क्या हर कुछ दिन में लगातार इस तरह सताए जाने से उनके कर्तव्य निर्वहन पर प्रभाव नहीं पड़ेगा? इसलिए, अगर अगुआओं और कार्यकर्ताओं में कम काबिलियत है और उनमें जिम्मेदारी की भावना नहीं है तो वे इस काम का बोझ नहीं उठा सकते; उन्हें तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए और किसी ऐसे व्यक्ति को नियुक्त करने की सिफारिश करनी चाहिए जो यह काम अच्छी तरह कर सकता हो, ताकि वे ज्यादातर महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों के जीवन और कर्तव्य निर्वहन को प्रभावित न करें। महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वालों के लिए नियुक्ति स्थानों की व्यवस्था करने में हर एक पहलू पर विचार करने की जरूरत नहीं है, मगर कम से कम रहने का बुनियादी परिवेश जरूर सुनिश्चित किया जाना चाहिए। जब यह चीज सुनिश्चित होगी तभी कलीसिया का काम प्रभावित नहीं होगा। क्या यह काम करना आसान है? (बिल्कुल आसान है।) यह कहना तो सरल है कि इसे करना आसान है, लेकिन अगर अगुआ और कार्यकर्ता कम काबिलियत वाले भ्रमित लोग हैं और उनमें जिम्मेदारी की भावना नहीं है तो वे इस काम को नहीं कर सकते। जब अगुआ और कार्यकर्ता यह काम नहीं कर सकते या इसे अच्छी तरह से नहीं कर सकते, तो बहुत-से लोगों को इसके परिणाम भुगतने पड़ते हैं, वे हर दिन ऐसे जीते हैं जैसे वे किसी अकाल से भाग रहे हों—वे इस तरह अपना कर्तव्य कैसे निभा सकते हैं? कुछ नकली अगुआ सत्य सिद्धांत नहीं समझते, फिर भी वे चर्चा में बने रहना पसंद करते हैं। वे काम को अच्छी तरह से नहीं कर सकते, फिर भी पीछे हटने से इनकार करते हैं, अपने पद से चिपके रहते हैं और उसे नहीं छोड़ते। ऐसे अगुआओं से कैसे निपटा जाना चाहिए? (उन्हें बर्खास्त कर देना चाहिए।) उन्हें बर्खास्त करना आसान है; समस्या यह है कि क्या उनका काम सँभालने के लिए कोई बेहतर व्यक्ति है या नहीं। अगर नहीं, तो क्या तुम लोग इस काम का बोझ उठा सकते हो? क्या तुम यह गारंटी ले सकते हो कि महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों के पास रहने का स्थायी परिवेश होगा? अगर कोई एक व्यक्ति इसे नहीं सँभाल सकता तो क्या तुम में से तीन या पाँच लोग एक साथ सहयोग करके इस काम का बोझ उठा सकते हो? अगर तुम लोग भी इस काम को नहीं सँभाल सकते—अगर तुम इतना आसान काम भी नहीं कर सकते, एक बुनियादी आवासीय परिवेश भी सुनिश्चित नहीं कर सकते—तो तुम लोगों को फिलहाल थोड़ी और कठिनाई और पीड़ा सहनी होगी। अगर तुम अभी भी अपना कर्तव्य निभाने में लगे रहते हो और परमेश्वर यह देखकर कि कठिनाई सहने का तुम्हारा संकल्प काफी दृढ़ है, किसी ऐसे व्यक्ति को भेजता है जो चीजों को भरोसेमंद तरीके से सँभालता है और काम करने के लिए समस्याएँ हल कर सकता है तो तुम लोगों के दुख के दिन खत्म हो जाएँगे और इनकी जगह अच्छे दिन आ जाएँगे। अगर इन समस्याओं को हल करने के लिए ऐसा कोई व्यक्ति नहीं आता है तो तुम लोगों को अपना भाग्य स्वीकारना होगा—कठिनाई सहना तुम्हारी नियति है, तुम्हें यह झेलना ही होगा; तुम्हें अपना दिल शांत करके इसे सहना होगा। वास्तव में, इतनी कठिनाई सहना सार्थक है; यह जेल में रहने और यातना सहने से कहीं बेहतर है। कम से कम तुम्हें यातना या पूछताछ का सामना तो नहीं करना पड़ता; तुम अभी भी परमेश्वर के वचन पढ़ सकते हो, अपना कर्तव्य निभा सकते हो और भाई-बहनों के साथ मिलकर कलीसियाई जीवन जी सकते हो। भले ही रास्ते में कुछ डर, नाकामियाँ और अड़चनें हैं और तुम्हें अक्सर जगह बदलनी पड़ती है, फिर भी यह तुम्हारे जीवन का एक असाधारण अनुभव है, जिससे तुम सबक सीख कर कुछ हासिल कर सकते हो। क्या यह काफी अच्छा नहीं है? (बिल्कुल है।) लोगों में कठिनाई सहने का संकल्प होना चाहिए और परमेश्वर को उसकी इच्छानुसार आयोजन करने देना चाहिए। अगर तुम वाकई यह कठिनाई नहीं सह सकते तो तुम अपने दिल में ईमानदारी से परमेश्वर से प्रार्थना कर सकते हो : “परमेश्वर, हम तुझसे विनती करते हैं कि हम पीड़ित लोगों पर ध्यान दे—हम कितने दयनीय हैं! हम बिना किसी शिकायत या पछतावे के तेरा अनुसरण करते हैं! हम प्रार्थना करते हैं कि तेरे प्रति हमारी इस अटूट निष्ठा को देखते हुए हमारे इस कठिनाई भरे जीवन का अंत कर दे! हम तुझसे विनती करते हैं कि हमारे लिए उपयुक्त जगह खोजने के लिए किसी उपयुक्त अगुआ या कार्यकर्ता को भेज दे! हम लगातार खुले में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं, हर दिन इधर से उधर भाग रहे हैं और पता नहीं कि यह सिलसिला कब तक जारी रहेगा। हम अब और जगह नहीं बदलना चाहते—हमारे लिए एक स्थायी निवास स्थान खोज दे!” क्या इस तरह से प्रार्थना करना उचित है? तुम इस तरह से प्रार्थना कर सकते हो; परिवेश की आवश्यकताओं के हिसाब से तुम्हें इस तरह प्रार्थना करनी चाहिए।

दूसरे नजरिये से देखें तो कठिनाई सहना इतनी बुरी बात नहीं है; थोड़ी कठिनाई सहने से तुम्हारी इच्छाशक्ति निखर सकती है। अपनी इच्छाशक्ति निखरने का क्या मतलब है? यही कि लगातार इस कठिनाई को सहने से तुम इसके प्रति सुन्न हो जाते हो और इसे कठिनाई नहीं मानते; चाहे तुम कितनी भी कठिनाई सहो, तुम्हें अब दर्द महसूस नहीं होता। लेकिन परिस्थितियों का सामना करते हुए तुम्हें कुछ सबक सीखने चाहिए, कुछ अंतर्दृष्टि हासिल करनी चाहिए और लोगों का भेद पहचानना सीखना चाहिए। अगर किसी अगुआ या कार्यकर्ता में बहुत कम काबिलियत है और वह नियुक्ति स्थानों की व्यवस्था करने का काम भी ठीक से नहीं कर सकता, तो वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पोषण कैसे देगा और उनका नेतृत्व कैसे कर सकेगा? ऐसे लोग अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लायक नहीं हैं। परमेश्वर के घर के पास किराये पर घर लेने के लिए पैसों की कमी नहीं है और वह भाई-बहनों को बिना किसी स्थायी जगह के यूँ भटकते नहीं देखना चाहेगा। परमेश्वर का घर लोगों को हमेशा कठिनाई सहने या हर दिन कठिन जीवन जीने की वकालत नहीं करता, हालाँकि बेशक वह लोगों को कोई कठिनाई सहने देने से कतराता भी नहीं है। लेकिन अगर अगुआ और कार्यकर्ता नियुक्ति स्थानों की व्यवस्था करने का काम भी नहीं सँभाल सकते और कोई भी काम सही से करना उनके लिए वास्तव में एक संघर्ष है, तो उनके पास घमंड करने के लिए क्या बचा है? उनमें से हर कोई दिखने में अच्छा है, हर किसी के पास डिप्लोमा है और हर कोई रुतबे वाला व्यक्ति है, फिर भी इस छोटे से मामले को सँभालना उनके लिए एक संघर्ष है। ऐसे मामले में कुछ भी नहीं किया जा सकता—तुम इसे बस परमेश्वर से आया मानकर स्वीकार सकते हो। लोगों को यह कठिनाई सहनी ही चाहिए; तुम्हें परमेश्वर को उसकी इच्छानुसार आयोजन करने देना चाहिए। यह सही है। क्या पता एक दिन इस कठिनाई के बाद बेहतर दिन आएँ और इस तरह का जीवन नहीं जीना पड़े। चाहे तुम किसी भी तरह के परिवेश में हों, तुम्हें समर्पण का रवैया बनाए रखना चाहिए और शिकायत नहीं करनी चाहिए। अगर कोई अगुआ या कार्यकर्ता भरोसेमंद नहीं है और काम अच्छी तरह से नहीं करता है, तो इससे अपनी ईमानदारी और परमेश्वर के प्रति निष्ठा प्रभावित मत होने दो; न ही इससे परमेश्वर के प्रति अपना समर्पण और परमेश्वर के प्रति समर्पण का रवैया प्रभावित होने दो। इस तरह तुम इस मामले में दृढ़ रहोगे। अगुआ और कार्यकर्ता बस साधारण लोग हैं। अगर उनकी काबिलियत कम है और वे काम नहीं कर सकते या अगर वे नकली अगुआ हैं जो अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करते, तो यह उनकी व्यक्तिगत समस्या है और इसका परमेश्वर के घर से कोई लेना-देना नहीं है। परमेश्वर के घर ने उन्हें इस तरह काम करने के लिए नहीं कहा था; बात बस इतनी है कि उनकी गैर-जिम्मेदारी के कारण उन्हें बेनकाब किया गया है। वे परमेश्वर के घर द्वारा उन्हें सौंपे गए कार्य को पूरा नहीं कर सकते और इस प्रकार उन्हें केवल बर्खास्त किया जा सकता है और हटाया जा सकता है। ऐसी परिस्थितियों में, जब परमेश्वर के चुने हुए लोग इस कठिनाई को सहते हैं, तो उन्हें इसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकारना चाहिए और परमेश्वर को उसकी इच्छानुसार आयोजन करने देना चाहिए। भले ही अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने काम अच्छी तरह से नहीं किया हो या उन्हें कोई समस्या हो, यह तथ्य कि परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है, कभी नहीं बदलेगा। तुम्हारा परमेश्वर का अनुसरण करना, परमेश्वर के प्रति समर्पण करना और परमेश्वर के वचन स्वीकारना कभी नहीं बदलना चाहिए। ये शाश्वत सत्य हैं। अपना कर्तव्य निभाते समय चाहे कोई भी अप्रिय मामला सामने क्यों न आए, तुम्हें उसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकारना चाहिए और उसमें से सबक सीखने चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के सामने खुद को शांत करके उससे प्रार्थना करनी चाहिए और खुद को बाहरी संसार से प्रभावित नहीं होने देना चाहिए। तुम्हें विभिन्न परिवेशों के अनुकूल होना सीखना चाहिए और सभी प्रकार के परिवेशों में परमेश्वर के कार्य का अनुभव करना सीखना चाहिए। केवल इसी तरह से तुम जीवन प्रवेश प्राप्त कर सकते हो। कुछ लोगों का आध्यात्मिक कद छोटा होता है; जब कठिनाई आती है तो वे शिकायत करते हैं और दुखी हो जाते हैं, बेचैनी महसूस करते हैं और परमेश्वर में आस्था खो देते हैं—यह बेहद बेवकूफी भरा और अज्ञानतापूर्ण है! जो अगुआ और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य नहीं करते, उन्हें उजागर करके हटा दिया गया है, मगर इसका तुमसे क्या लेना-देना है? उनके द्वारा चीजों को गलत तरीके से व्यवस्थित करने के कारण तुम नकारात्मक और परमेश्वर से दूर क्यों हो गए? क्या यह पूरी तरह से विद्रोही नहीं है? (बिल्कुल है।) जब लोग कुछ गलत करते हैं तो तुम उन्हें पहचानकर अस्वीकार कर सकते हो, मगर परमेश्वर को या सत्य को अस्वीकार मत करो। सत्य गलत नहीं है, परमेश्वर गलत नहीं है। परमेश्वर का मूल इरादा यह नहीं है कि लोग ऐसी कठिनाई सहें; मगर भ्रष्ट मानवजाति के लिए थोड़ी कठिनाई सहना वास्तव में जरूरी है। थोड़ी कठिनाई सहने में तुम्हारा ही फायदा है; इसका फायदा यह है कि तुम सबक सीखते हो और समस्याएँ हल करने के लिए सत्य खोजना सीखते हो। अगर तुम विभिन्न प्रकार की कठिनाइयाँ सह सकते हो तो तुममें थोड़ी सहनशीलता आती है और सभी प्रकार के परिवेशों में अपनी गवाही में दृढ़ रहने में सक्षम बन जाते हो। कठिनाई सहने में सक्षम होने से परमेश्वर के प्रति समर्पण करने का तुम्हारा संकल्प निखरता है। यह परमेश्वर का मूल इरादा है और वह नतीजा है जो परमेश्वर तुममें देखना चाहता है। अगर तुम परमेश्वर के इरादों को समझकर उसके इरादों के अनुसार कार्य और अभ्यास कर सकते हो; अगर तुम किसी भी प्रकार के लोगों या परिवेशों का सामना करने पर परमेश्वर को त्यागने से बच सकते हो; और अगर तुम सत्य का अभ्यास करना सीख सकते हो, परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकते हो, सही समझ और रवैया रख सकते हो, परमेश्वर में अडिग आस्था बनाए रख सकते हो और चाहे तुम्हारा शरीर कितना भी कष्ट क्यों न सहे, तुम अपने दिल में परमेश्वर के बारे में शिकायत करने या उससे दूर होने से बच सकते हो; तो तुम्हारे पास आध्यात्मिक कद है।

अगुआओं और कार्यकर्ताओं को महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वालों की सुरक्षा करनी चाहिए, उन्हें बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से बचाकर रखना चाहिए। इस काम में कई बारीकियाँ शामिल हैं। पहली बात, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह समझना चाहिए कि इन विस्तृत कार्यों को विशेष रूप से कैसे कार्यान्वित किया जाए। इसके अलावा, कुछ विशेष परिस्थितियों का सामना करते समय, उन्हें सटीक फैसले लेने चाहिए और फिर परिस्थितियों को सँभालने के लिए उपयुक्त सिद्धांत खोजने चाहिए और विशिष्ट योजनाएँ बनानी चाहिए। अंतिम लक्ष्य सभी प्रकार के महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। केवल इस तरह ही इस बात की गारंटी ली जा सकती है कि सुसमाचार प्रचार का काम व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ेगा। इस सिद्धांत का पालन करना सही है; इस कार्य को करने में अगुआओं और कार्यकर्ताओं का लक्ष्य और सिद्धांत यही है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता इस लक्ष्य और सिद्धांत का सटीक रूप से पालन करते हैं, तो वे मूलतः इस कार्य को करने में मानक पर खरे उतरते हैं। इस कार्य में और कौन-सी समस्याएँ शामिल हैं? कुछ लोग कहते हैं, “मैं पहले कभी अगुआ या कार्यकर्ता नहीं रहा, न ही इस तरह के मामलों से मेरा सामना हुआ है। मैं नहीं जानता कि इस कार्य में मुझे क्या करना चाहिए और न ही मुझे इसे करना आता है। तो मुझे यह करने की जरूरत नहीं है—तुम्हारे सुरक्षित होने या नहीं होने की परवाह किसे है? तुम लोग खुद ही इसे सँभालो।” क्या उनके लिए इस मामले से पल्ला झाड़ लेना स्वीकार्य है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को हटा देना चाहिए। अगर तुम वास्तविक कार्य नहीं करते तो तुम किस काम के हो? क्या हम तुम्हारी खूबसूरती के कारण सजावट के लिए तुम्हें रखते हैं? ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बर्खास्त करके हटा देना चाहिए; उन्हें बिना कोई कार्य किए किसी पद पर रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। नकली अगुआ वास्तविक कार्य नहीं करते—उनके पास अंतरात्मा या विवेक नहीं है, है ना? अगर उनके पास वाकई अंतरात्मा और विवेक होता तो वे समस्याएँ आने पर उन्हें सुलझाने के लिए सत्य क्यों नहीं खोजते? कोई भी सब कुछ जानकर पैदा नहीं होता; हर कोई समय के साथ चीजें सीखता है। अगर तुम सत्य खोज सकते हो तो तुम काम को अच्छी तरह से करने का तरीका खोज लोगे। अगर तुममें जिम्मेदारी की भावना है तो तुम काम को अच्छी तरह से करने का तरीका सोच लोगे। अगुआई का काम करना वास्तव में इतना मुश्किल नहीं है; अगर कोई सत्य खोज सकता है, तो काम को अच्छी तरह से करना आसान है। इसके अलावा, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास साझेदार होते हैं; अगर दो या तीन लोग एक दिल और दिमाग वाले हैं तो कोई भी काम पूरा करना आसान होता है। वर्तमान में, कई अगुआ और कार्यकर्ता प्रशिक्षण ले रहे हैं; वे समस्याएँ हल करने के लिए सभी चीजों में सत्य खोजने का प्रशिक्षण ले रहे हैं। इस समय, कम से कम कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अगुआई के काम में सक्षम हैं और सुसमाचार फैलाने का कार्य अच्छी तरह से पूरा कर सकते हैं, है ना? (सही है।) तो आज की संगति हम यहीं पर रोकते हैं। फिर मिलेंगे!

20 जुलाई 2024

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