अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (28) खंड तीन
ठ. मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति
आओ हम अगली अभिव्यक्ति “मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति” पर एक नजर डालें। क्या तुम्हें पता है कि किस तरह के लोगों में मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति होती है? क्या कलीसिया में तुम लोग इस प्रकार के किसी व्यक्ति से मिले हो जिसमें मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति हो? इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी उम्र, लिंग या दुनिया में उनका पेशा क्या है, अगर वे हमेशा मुसीबत मोल लेते हैं और हमेशा ऐसी चीजें करते हैं जो कानूनों और विनियमों का उल्लंघन करती हैं, कलीसिया पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं और सुसमाचार कार्य में बड़ी बाधाएँ पैदा करती हैं, तो कलीसिया को ऐसे लोगों से तुरंत निपटना चाहिए। सबसे पहले, उन्हें एक चेतावनी दो और अगर परिस्थिति बहुत ही गंभीर है, तो उन्हें निष्कासित कर दो या उन्हें बाहर निकाल दो। तुम उनके प्रति शिष्टाचार बिल्कुल नहीं दिखा सकते। मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोग किस प्रकार के होते हैं? मिसाल के तौर पर, कुछ लोग, दुनिया में व्यापार करते समय या कारखाने चलाते समय संदिग्ध व्यक्तियों के साथ मेलजोल रखते हैं और अक्सर ऐसी चीजें करते हैं जो कानूनों और विनियमों का उल्लंघन करती हैं। आज वे करों की चोरी कर रहे हैं या कम कर दे रहे हैं; कल वे धोखाधड़ी और छल करेंगे या किसी की मौत का कारण बनने पर कानूनी मामलों में फँस जाएँगे। इन चीजों के कारण उन्हें अक्सर अदालती सम्मन मिलते रहते हैं, उनके दिन मुकदमों से निपटने में बीत जाते हैं और वे लगातार विवादों में उलझे रहते हैं। क्या ऐसे लोग ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रख सकते हैं? यह नामुमकिन है। ऐसे भी कुछ लोग हैं जो परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा तो करते हैं, लेकिन बहुत ही अजीब और असामान्य तरीके से व्यवहार करते हैं। आज वे विपरीत लिंग के लोगों को परेशान कर रहे हैं; तो हो सकता है कि कल वे किसी का यौन उत्पीड़न करें और उनकी रिपोर्ट कर दी जाए। क्या तुम कहोगे कि इन लोगों में मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति है? (हाँ।) तो क्या ऐसे लोग ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रख सकते हैं? (नहीं।) ये मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोग परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद भी हमेशा समाज के संदिग्ध व्यक्तियों के साथ मेलजोल रखते हैं और लगातार विवादों का कारण बनते हैं, जैसे कि भावनात्मक मामलों, पैसों, संपत्ति या व्यक्तिगत हितों से जुड़े विवाद। ऐसे कुछ लोग हमेशा होते हैं जो उनके किसी रिश्ते में तनाव पैदा करने वाली किसी घटना के कारण या उनके गलत तरीके से कमाए गए फायदे बराबर नहीं बाँटे जाने के कारण उनके लिए मुसीबत खड़ी करने की फिराक में रहते हैं। कभी-कभी जब भाई-बहन उनके घर जाते हैं, तो ऐसे संदिग्ध लोगों से उनकी मुलाकात हो सकती है। यहाँ तक कि जब वे सभाओं में होते हैं या अपना कर्तव्य कर रहे होते हैं, तब भी ये संदिग्ध लोग कभी-कभी उनके दरवाजे पर आ धमकते हैं या उन्हें परेशान करने वाले संदेश भेजते हैं, इसलिए मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोगों की संगत में जो भी होता है, उसके उनकी मुसीबत में घसीटे जाने की संभावना रहती है; खास तौर पर, कलीसिया के कार्य और प्रतिष्ठा को इन लोगों द्वारा घसीटे जाने और नुकसान पहुँचाए जाने की संभावना और भी ज्यादा रहती है। मुझे बताओ, क्या ऐसे लोगों के लिए कलीसिया में रहना अच्छा है? (नहीं।) इस तरह के व्यक्ति को भी बाहर निकाल देना चाहिए और उससे निपटना चाहिए।
ऐसे भी कुछ लोग हैं जो समाज में चाहे किसी भी पेशे में हों, हमेशा सरकार, सरकारी अधिकारियों या कुछ सामाजिक समूहों और जानी-मानी हस्तियों से मनमुटाव रखना चाहते हैं। आज वे सरकार के अनुचित क्रियाकलापों को उजागर कर रहे हैं; और कल वे किसी समूह या संगठन पर मुकदमा दायर कर देंगे, नुकसानों की भरपाई की माँग करेंगे; परसों वे किसी जानी-मानी हस्ती के निजी जीवन को उजागर करेंगे जिससे लोग उनकी तलाश करते हुए आ धमकेंगे। क्या यह मुसीबत मोल लेना है? (हाँ।) परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करने के बाद भी वे सामाजिक मामलों में लगातार शामिल रहना चाहते हैं। जब वे कुछ ऐसा देखते हैं जो उन्हें असंतुष्ट और नाराज कर देता है, तो वे अपना दिखावा करने के लिए हमेशा न्याय के लिए खड़े होना चाहते हैं या मामले के सही और गलत पहलुओं पर राय देने के लिए कोई टिप्पणी या लेख लिखना चाहते हैं। अंत में क्या होता है? वे कुछ भी हासिल नहीं करते हैं, बल्कि खुद को एक बहुत बड़ी मुसीबत में डाल लेते हैं, मुकदमों में फँस जाते हैं और अपनी प्रतिष्ठा बर्बाद कर लेते हैं। और समाज में हमेशा ऐसे कुछ संदिग्ध लोग होते हैं जो उनकी तलाश में रहते हैं, उनसे बदला लेना चाहते हैं या उनके खिलाफ कार्रवाई करना चाहते हैं, इसलिए वे बेहद डर-डरकर जीते हैं। इस तरह के जीवन से भाग निकलने और मुसीबत से बचने के लिए वे कई घर खरीद लेते हैं और यह दलील देते हैं, “जैसा कि लोग कहते हैं, ‘एक चालाक खरगोश के पास तीन बिल होते हैं।’ मेरे तीन घरों में से सिर्फ एक के बारे में ही लोगों को पता है; बाकी दो के बारे में किसी को नहीं पता। मैं उन्हें कलीसिया द्वारा उपयोग किए जाने और भाई-बहनों के ठहरने के लिए बचाए रख रहा हूँ।” क्या तुम्हें लगता है कि भाई-बहनों का वहाँ रहना सुरक्षित होगा? (नहीं होगा।) उनकी सारी बातें बहुत अच्छी लगती हैं और ऐसा करने के पीछे उनके इरादे भी अच्छे होते हैं, लेकिन उनके चरित्र और मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति के दोष के कारण उनके घर में रहने की हिम्मत भला कौन करेगा? अगर तुम वहाँ रहे, तो हो सकता है कि लोग तुम्हें उनके परिवार का सदस्य मान लें। अगर कोई उन्हें पीटना चाहता हो, लेकिन उन्हें ढूँढ़ नहीं पा रहा हो, तो क्या वह उनके बजाय तुम्हें नहीं पीट देगा? कुछ लोगों में मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति होती है। जब वे यूँ ही गाड़ी में घूम रहे होते हैं और किसी सुनसान जगह से गुजरते हैं, तो वहाँ बीच रास्ते में हो सकता है कि कोई उन्हें रोक ले और उन्हें खींचकर गाड़ी से बाहर निकाल ले, फिर उन्हें बहुत बुरी तरह से पीटे और चेतावनी दे। उन्हें पता होता है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने पहले किसी को नाराज कर दिया था और वे खुद पर यह मुसीबत ले आए और वह नाराज व्यक्ति उन्हें सताना चाहता था। क्या वे बिल्कुल इसी लायक नहीं हैं? इस प्रकार का व्यक्ति ही मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाला व्यक्ति होता है। परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करने के बाद, कलीसिया चाहे किसी भी मामले पर चर्चा क्यों ना कर रही हो, वह हमेशा अपनी टाँग अड़ाना चाहता है; वह उस मामले पर अपनी राय जताना चाहता है, कुछ टिप्पणियाँ देना चाहता है और यह प्रयास भी करता रहता है कि लोग उसकी बात सुनें। अगर कलीसिया उसके सुझाव नहीं अपनाती है, तो वह पूरी तरह से असंतुष्ट और नाराज हो जाता है, वह अपनी क्षमताओं से पूरी तरह से बेखबर होता है। उसे चाहे कितने भी नुकसान क्यों ना उठाने पड़ें, वह उन्हें कभी भी याद नहीं रखता है या अपनी असफलताओं से सबक नहीं सीखता है। ऐसे लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हुए भी मुसीबत का कारण बनते हैं। एक बात तो यह है कि वे सत्य नहीं समझते हैं, लेकिन फिर भी हमेशा कलीसिया के कार्य में शामिल होना चाहते हैं, हर चीज में दखल देने का प्रयास करते हैं जिससे कलीसियाई कार्य में विघ्न-बाधाएँ पैदा हो जाती हैं। दूसरी बात यह है कि जब भी वे किसी भाई या बहन के साथ बहुत समय बिताते हैं, तो वे उनके लिए भी मुसीबत ले आते हैं। मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोग बहुत ही बड़ी सिरदर्दी होते हैं। क्या तुम्हें लगता है कि मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोग गड़बड़ी नहीं मचाने वाले लोग होते हैं? क्या ऐसे लोग अपनी मर्यादा में रहते हैं? (नहीं।) यकीनन वे अपनी मर्यादा में रहने वाले लोग नहीं होते हैं। आम तौर पर, सभ्य जीवन जीने वाले लोग अपनी मर्यादा में रहने की प्रवृत्ति रखते हैं। जब तक सामाजिक मामलों का परमेश्वर में उनके विश्वास से कोई लेना-देना नहीं होता है, वे उनमें बिल्कुल भी शामिल नहीं होते हैं या उनके बारे में पूछताछ नहीं करते हैं। इसे तर्कसंगत होना, बदलते दौर को समझना और चीजों का मतलब समझना कहते हैं। यह समाज और मानवजाति बहुत ही दुष्ट और जटिल हैं। जैसा कि अविश्वासी कहते हैं, “इस अराजक युग और अराजक दुनिया में लोगों को अपनी रक्षा करना सीखना पड़ेगा।” इसके अलावा, तुम हमेशा सामाजिक मामलों पर टिप्पणी करते रहते हो और उनमें शामिल होना चाहते हो, लेकिन यह वह मार्ग नहीं है जिस पर जीवन में तुम्हें चलना चाहिए। उन चीजों को करना बेकार है और यह जीवन में सही मार्ग नहीं है। भले ही तुम निष्पक्ष रूप से बात कर पाते हो, फिर भी इसे उचित उद्देश्य नहीं माना जाता है। क्यों नहीं? क्योंकि इस दुनिया में कोई निष्पक्षता नहीं है; बुरे चलन इसकी अनुमति नहीं देते हैं। अगर तुम परमेश्वर के घर में सही मायने में निष्पक्ष और ईमानदार शब्द बोल पाते हो, तो उसका मूल्य और महत्व है। लेकिन अगर तुम इस दुष्ट, भ्रष्ट और अराजक मनुष्यों की दुनिया में निष्पक्ष और ईमानदार शब्द बोलते हो, तो ऐसे शब्द आसानी से मुसीबत को दावत देते हैं और खतरा ले आते हैं। क्या ऐसे शब्द बोलना बहुत बेवकूफी नहीं होगी? ऐसा करने से ना सिर्फ तुम उस तरीके से नहीं जी पाओगे जिसका मूल्य है, बल्कि इससे तुम पर मुसीबतों का पहाड़ भी टूट पड़ेगा। इसलिए, होशियार लोग देख पाते हैं कि ये सामाजिक मामले आफत हैं और वे उनसे दूरी बना लेते हैं और उनसे बचते हैं, जबकि बेवकूफ लोग उनकी तरफ चले जाते हैं और अपने लिए मुसीबत खड़ी कर लेते हैं। खास तौर पर, कुछ लोग कुछ दिनों तक मार्शल आर्ट में प्रशिक्षण लेने के बाद कुछ आकर्षक पैंतरे सीख जाते हैं और थोड़ी शोहरत हासिल कर लेते हैं और फिर न्याय के लिए लड़ना चाहते हैं, गरीबों की मदद करने के लिए अमीरों को लूटना चाहते हैं। वे एक शूरवीर या तलवारबाज की भूमिका निभाना चाहते हैं, जगह-जगह जाकर गलत चीजों को सही करते रहते हैं और यहाँ तक कि कहीं अन्याय होता देखने पर मदद करने के लिए खुद ही आगे आ जाते हैं। नतीजतन, यह मुसीबत खड़ी हो जाती है—वे यह नहीं समझते हैं कि समाज बहुत ही जटिल है। मुझे बताओ, जब तुम मदद करने के लिए आगे आओगे, तो क्या तुम कुछ लोगों को नाराज नहीं कर दोगे? क्या तुम उन लोगों की बड़े ध्यान से बनाई योजनाओं को बर्बाद नहीं कर दोगे? (हाँ।) जब तुम उन लोगों की बड़े ध्यान से बनाई योजनाओं को बर्बाद कर दोगे, तो क्या वे तुम्हें यूँ ही छोड़ देंगे? (नहीं।) तुम कह सकते हो, “मैं एक न्यायोचित उद्देश्य पूरा कर रहा हूँ,” लेकिन अगर यह कोई न्यायोचित उद्देश्य भी हो, तो भी यह नहीं चलेगा—यह दुनिया तुम्हें न्यायोचित उद्देश्य पूरा नहीं करने देगी। अगर तुमने ऐसा किया, तो तुम्हारे लिए यह मुसीबत मोल लेना होगा। यह बात बेवकूफों को समझ नहीं आती है, वे दुनिया की असलियत देख नहीं पाते हैं। वे हमेशा यही सोचते हैं कि चूँकि वे शूरवीर हैं, इसलिए उन्हें दूसरों की मदद करने के लिए आगे आना चाहिए। लेकिन अंत में वे किसी की बड़े ध्यान से बनाई गई योजनाएँ बिगाड़ देते हैं और वह व्यक्ति उनसे बदला लेना चाहता है और मामले को अनदेखा करने से इनकार कर देता है। वे इसी तरह से आपदा को दावत देते हैं। दूसरा व्यक्ति चुपके से उसका नाम, वह कहाँ रहता है, उसकी पारिवारिक स्थिति क्या है, उसके परिवार के सदस्य कौन हैं, क्या उस इलाके में उसका दबदबा है और उसके खिलाफ सबसे अच्छी कार्रवाई कैसे करनी चाहिए, इन चीजों के बारे में पता लगाना शुरू कर देता है। एक बार जब वह इन सभी चीजों को स्पष्ट तौर पर समझ जाता है, तो फिर वह उस “शूरवीर” पर अपनी चालें चलना शुरू कर देता है, जिसके जीवन में उस क्षण से कठिनाइयाँ बढ़ने लगती हैं। इस प्रकार के लोग अक्सर मुसीबत मोल ले लेते हैं और चाहे उन्हें कितने भी बड़े नुकसान क्यों ना उठाने पड़ें, वे कभी भी अपना सबक नहीं सीखते हैं। फिर से जब उन्हें कुछ ऐसा दिखता है जो उन्हें अन्यायपूर्ण लगता है, तब भी वे न्याय के लिए लड़ना और आगे बढ़कर मदद करना चाहते हैं। वे ना सिर्फ खुद पर मुसीबत ले आते हैं बल्कि अपने परिवार को भी खतरे में डाल देते हैं और कभी-कभी अपने आसपास के दोस्तों या सहकर्मियों को भी इसमें घसीट लेते हैं। अगर वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और कलीसिया में प्रवेश करते हैं, तो वे भाई-बहनों को भी खतरे में डाल सकते हैं। मिसाल के तौर पर, अगर वे समाज में किसी मुसीबत में फँस जाते हैं और कोई उनसे बदला लेना चाहता है और उस व्यक्ति को यह पता होता है कि तुम उनके साथ सभाओं में जाते हो, तो वह व्यक्ति इनकी व्यक्तिगत और पारिवारिक स्थिति के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए तुम्हारे पास आ सकता है। तो क्या तुम उस व्यक्ति को यह जानकारी दोगे या नहीं दोगे? अगर तुमने जानकारी दे दी, तो यह उनके साथ विश्वासघात करने के बराबर होगा जिससे उन पर मुसीबत आएगी; अगर तुमने जानकारी नहीं दी, तो वह व्यक्ति तुम्हें सता सकता है। इस दुनिया में बुरे लोगों की तादाद बहुत ही ज्यादा है और सभी बुरे लोगों में विवेक नहीं होता है। अगर किसी ने उन्हें अपमानित किया, तो वे बदला लेने के लिए कोई भी रास्ता अपनाएँगे। क्या यही बात नहीं है? (हाँ।) मुसीबत मोल लेने वाले लोग चाहे किसी भी प्रकार की मुसीबत में क्यों ना फँस जाएँ, इससे उनके कर्तव्य निर्वहन में परेशानी और बाधाएँ पैदा हो जाती हैं और यह कलीसिया के कार्य को भी अलग-अलग स्तर तक प्रभावित कर सकता है। अगर कोई लगातार मुसीबत मोल लेता है, तो क्या तुम लोगों को लगता है कि उसके साथ सत्य की संगति करने से यह समस्या हल हो सकती है? (नहीं।) इस प्रकार के लोगों में अक्सर सही सूझ-बूझ की कमी होती है। मुसीबत में फँसने पर भी वे इसे मुसीबत की तरह नहीं देखते हैं; यहाँ तक कि उन्हें यह भी लग सकता है कि उनमें न्याय की समझ है। ऐसे मामलों में, उनके साथ सत्य की संगति करना बेकार है क्योंकि वे विकृत समझ वाले लोग हैं, वे बेतुके व्यक्ति हैं। बेतुके व्यक्ति आसानी से सत्य स्वीकार नहीं करते हैं। हो सकता है कि कुछ लोग कहें, “उन्हें कठिनाई हो रही है; हम उन्हें नजरअंदाज कैसे कर सकते हैं? हम उन पर दया दिखाने से खुद को कैसे रोक सकते हैं? हमें उनके साथ प्रेम से पेश आना चाहिए।” उनके साथ प्रेम से पेश आना ठीक है, लेकिन क्या वे इसे स्वीकार कर पाते हैं? अगर वे सत्य बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं और अपने विचारों में जकड़े रहते हैं, तो क्या तुम्हारा लगातार उनके साथ सत्य की संगति करना उचित है? (नहीं।) यह उचित क्यों नहीं है? (इस प्रकार के लोग परमेश्वर में ईमानदारी से विश्वास नहीं रखते हैं। उनका सार छद्म-विश्वासियों का सार है। अगर हम उनके साथ सत्य की संगति कर भी लें, तो भी इससे समस्या का समाधान नहीं होगा और तब भी वे कलीसिया में बहुत सारी मुसीबत ला सकते हैं।) तो क्या इस प्रकार के लोगों को बाहर निकाल देना चाहिए? (हाँ, ऐसा ही करना चाहिए।)
एक और प्रकार के लोग हैं जिनमें मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति होती है। वे कलीसिया में भाई-बहनों को कुछ खास चीजें करने के लिए हमेशा उकसाते रहते हैं। मिसाल के तौर पर, वे कहते हैं : “सरकार ने जो कार्रवाई की और जो नीति बनाई वह अनुचित है। ईसाई होने के नाते, हमें धार्मिकता का अभ्यास करना चाहिए, हमें अपनी आवाज उठानी चाहिए और हम बुजदिलों की तरह चुप नहीं बैठ सकते। हमें तख्तियाँ और झंडे लेकर सड़कों पर जलूस निकालना चाहिए, हमें भाई-बहनों, हमारी कलीसिया और पूरी मानवजाति की भलाई के लिए लड़ना चाहिए!” और इसका क्या नतीजा निकलता है? उनके जुलूस निकालने से पहले ही सरकार को इसका पता चल जाता है और अदालत सम्मन भेज देती है। मुझे बताओ, ऐसे लोगों का होना कलीसिया के लिए खुशकिस्मती की बात है या बदकिस्मती की? (बदकिस्मती की।) कुछ लोग कहते हैं : “पता चला है कि हमारी कलीसिया में एक बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति है—यह व्यक्ति अगुआई करने के लिए उपयुक्त है! जरा हमारी कलीसिया के लोगों को देखो; वे सभी दब्बू और हुक्म बजाने वाले लोग हैं, समाज में उनका कोई दबदबा नहीं है। वे डरपोक हैं और किसी भी बड़े मामले का सामना करने की हिम्मत नहीं करते हैं और वे मुसीबत मोल लेने से बहुत डरते हैं। यह व्यक्ति अलग है—वह बहादुर, अंतर्दृष्टि वाला और निर्णायक है; उसका समाज में दबदबा भी है, वह सक्षम है और जब वह अन्याय होते देखता है, तो उठ खड़े होने और आगे बढ़ने की हिम्मत करता है। यहाँ तक कि जब उसे किसी कानूनी मामले का सामना करना पड़ता है, तो वह घबराता नहीं है और ना ही बेचैन होता है। उसकी मानसिक क्षमता उसे अधिकारी बनने के लिए स्वाभाविक रूप से उपयुक्त बनाती है। अगर यह व्यक्ति राजनीति में होता, तो वह या तो प्रतिनिधि होता या कम-से-कम किसी प्रांत का गवर्नर तो जरूर होता। हम उतने अच्छे नहीं हैं। इसलिए, कलीसिया को उसे अगुआ बनने के लिए चुनना चाहिए। अगर उसने हमारी अगुआई की, तो हम यकीनन उद्धार प्राप्त करेंगे!” कुछ बेवकूफ लोग समाज में मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोगों को विशेष रूप से ऊँचा सम्मान देते हैं और उन्हें आदर्श मानते हैं, यहाँ तक कि उन्हें कलीसियाई अगुआओं के रूप में चुनना चाहते हैं। क्या तुम लोगों को लगता है कि यह उचित है? (नहीं।) यह उचित क्यों नहीं है? क्या कलीसिया को ऐसे “सक्षम लोगों” की जरूरत नहीं है? (कलीसिया को ऐसे लोगों की जरूरत नहीं है। कलीसियाई अगुआओं को परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सभाओं में एक साथ परमेश्वर के वचन को खाने और पीने, सत्य का अनुसरण करने और सुसमाचार फैलाने के लिए अपना कर्तव्य करने में उनकी अगुआई करनी चाहिए। भले ही ऊपरी तौर पर ऐसा लगे कि इन लोगों में तथाकथित बहादुरी, अंतर्दृष्टि और निर्णायकता है, लेकिन वे इस तरह का कार्य करने में असमर्थ हैं और कलीसिया में लगातार मुसीबत लाते रहेंगे। इसलिए, वे कलीसिया अगुआ बनने के लिए उपयुक्त नहीं हैं।) मैं तुम्हें बताता हूँ, इस तरह के व्यक्ति का कलीसिया में रहना एक गलती है और ऐसे लोगों को अगुआ के रूप में चुनना और भी ज्यादा विनाशकारी होगा। वे कलीसिया को कहाँ लेकर जाएँगे? वे कलीसिया को एक धार्मिक समूह में बदल देंगे! वह इसलिए क्योंकि जब उन्हें समाज में अन्याय होते दिखाई देंगे, तो वे मुकदमे दायर करेंगे; जब वे बुरे लोगों को गरीबों को डराते-धमकाते देखेंगे, तो वे उनके लिए लड़ेंगे; जब वे भ्रष्ट अधिकारियों को लोगों को बुरी तरह से नुकसान पहुँचाते देखेंगे, तो वे स्वर्ग की तरफ से न्याय की हिमायत करना चाहेंगे। नतीजतन, धीरे-धीरे तुम सब भी न्याय के लिए लड़ने वाले शूरवीर बन जाओगे। इस तरह से क्या तुम्हें अब भी उद्धार प्राप्त हो सकता है? ऊपरी तौर पर, मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोग काफी योग्य लग सकते हैं, लेकिन अंत में क्या होता है? उन सभी को कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालने के कारण हटा दिया जाता है, क्योंकि वे जिस मार्ग पर चलते हैं वह सही मार्ग नहीं है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किस तरह की मुसीबत मोल लेते हैं, वे सही मार्ग पर नहीं चल रहे हैं और ना ही वे परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चल रहे हैं। वे जो कुछ भी करते हैं उसका कलीसिया से, परमेश्वर के कार्य से या परमेश्वर के इरादों से कोई लेना-देना नहीं होता है; वे जो कुछ भी करते हैं वह परमेश्वर के इरादों से दूर होता है और सही मार्ग से हट जाता है। मुसीबत मोल लेने की उनकी प्रकृति यह है कि वे दानवों से निपट रहे हैं और उनके साथ उलझ गए हैं; दानव उन्हें परेशान किए जा रहे हैं। इसलिए, परमेश्वर के घर को अपने और ऐसे लोगों के बीच एक स्पष्ट रेखा खींचनी चाहिए। अगर वे बार-बार मुसीबत मोल लेते हैं, चाहे कोई भी उन्हें सलाह देने का प्रयास करे, वे सुनने से इनकार करते हैं और अपनी गलतियों से सबक सीखे बिना मुसीबत मोल लेते हैं, यहाँ तक कि बेतहाशा गलत काम भी करते हैं, तो उन्हें कलीसिया छोड़ने के लिए राजी करना चाहिए। तुम कह सकते हो : “देखो तुमने कितनी सारी मुसीबत मोल ली है, यह कलीसिया के कार्य में कितनी बड़ी बाधा बनी हुई है और कितने सारे लोगों का कर्तव्य निर्वहन प्रभावित हुआ है। तुम्हें इस बात का एहसास कैसे नहीं होता है? तुम्हारा मन बहुत ही विशाल है—यह इतना विशाल है कि पूरी की पूरी दुनिया इसमें समा सकती है। तुम जैसे व्यक्ति को दुनिया में आगे बढ़ना चाहिए; तुम्हें अपना विकास करना चाहिए और देश पर शासन करना चाहिए, दुनिया में शांति लानी चाहिए। तुम उच्च-स्तरीय अधिकारियों से मेलजोल रखने के लिए उपयुक्त हो; सिर्फ तभी तुम रोजमर्रा के जीवन से ऊपर उठ सकते हो और अपने पंख फैलाकर ऊँची उड़ान भर सकते हो। सारा दिन परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोगों के साथ रहना—क्या यह तुम्हारी विशाल महत्वाकांक्षाओं को पूरा होने से रोक नहीं देगा और पंख फैलाकर उड़ने की तुम्हारी क्षमता को सीमित नहीं कर देगा? हमें देखो—हममें से किसी की भी विशाल आकांक्षाएँ नहीं हैं। हम पूरी तरह से परमेश्वर में विश्वास रखने, कुछ सत्य समझने के लिए परमेश्वर के और ज्यादा वचन पढ़ने और कम बुरा करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं और फिर शायद हम परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त कर सकें—बस इतना ही। हम सभी सांसारिक लोगों द्वारा बदनाम और अपमानित किए गए ऐसे लोग हैं जिन्हें दुनिया ने ठुकरा दिया है, इसलिए तुम्हें हम जैसे लोगों से मेलजोल नहीं रखना चाहिए। अगर तुम दुनिया में वापस चले जाओ और वहाँ प्रयास करो, तो तुम ज्यादा खुश रहोगे; हो सकता है कि तुम्हें बड़ी सफलता मिल जाए और तुम अपनी महत्वाकांक्षाएँ पूरी कर सको।” क्या उन्हें कलीसिया छोड़ने के लिए इस तरह से राजी करना उचित है? क्या यह इस मुद्दे को हल करने का एक अच्छा तरीका है? (हाँ।) कलीसिया को ऐसे छद्म-विश्वासियों से इसी तरह से निपटना चाहिए; इस मामले को इस तरीके से हल करना पूरी तरह से सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है।
कौन से दूसरे प्रकार के लोग मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति रखते हैं? एक प्रकार का व्यक्ति है जो विपरीत लिंग के लोगों में विशेष रूप से लोकप्रिय होता है और हमेशा संदिग्ध व्यक्तियों से इश्कबाजी करता रहता है। वह कोई उचित रूमानी रिश्ता नहीं बनाता है; बल्कि वह विपरीत लिंग के बहुत-से लोगों के साथ बहुत करीबी और अनुचित रिश्ते बनाए रखता है। क्योंकि वह इन रिश्तों को ठीक से नहीं सँभाल पाता है, इसलिए हो सकता है कि वह जिन लोगों से इश्कबाजी करता है वे एक दूसरे से जलने लग जाएँ या यहाँ तक कि एक-दूसरे से बदला भी लें। क्या यह उसके लिए मुसीबत की बात है? (हाँ।) यह भी एक बड़ी मुसीबत है। हो सकता है कि कुछ लोग इन मामलों की परवाह ना करें, लेकिन ऐसी चीजें अक्सर उनके निजी जीवन और उनकी आस्था में मुसीबत लाती हैं और ये उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा को भी प्रभावित कर सकती हैं। ये मुसीबतें लगातार उनका पीछा करती हैं और जो लोग अक्सर उनसे बातचीत करते हैं उन्हें भी इन चीजों में फँसना पड़ता है। वे विपरीत लिंग के इन व्यक्तियों के साथ चाहे सही मायने में रूमानी रिश्ते में हों या सिर्फ एक-दूसरे से इश्कबाजी कर रहे हों और एक-दूसरे का उपयोग कर रहे हों, हम ऐसे मामलों को लेकर चिंतित नहीं हैं। हमें किस बात की चिंता है? हमें इस बात की चिंता है कि वे जो मुसीबतें लेकर आते हैं, कहीं उनका भाई-बहनों या कलीसिया पर कोई नुकसानदेह प्रभाव तो नहीं पड़ेगा। अगर कोई प्रभाव पड़ता है, तो कलीसिया को यह मुद्दा हल करने और उससे निपटने के लिए कदम उठाना चाहिए, उन्हें इन मुसीबतों से उचित रूप से निपटने की सलाह देनी चाहिए। जहाँ तक यह प्रश्न है कि वे इससे कैसे निपटते हैं, हम उसमें दखल नहीं देंगे। उन्हें चाहे कैसे भी सलाह क्यों ना दी जाए, अगर फिर भी वे सुनने से इनकार करते हैं और इन मुसीबतों से नहीं निपटते हैं या इन्हें हल नहीं करते हैं, तो उन्हें अलग-थलग कर देना चाहिए और एक चेतावनी देनी चाहिए : “तुम सबसे पहले अपनी व्यक्तिगत मुसीबतें निपटाओ। जब वे निपट जाएँ, तो तुम अपना कर्तव्य करना फिर से शुरू कर सकते हो। अगर तुम उनसे ठीक से नहीं निपटते हो, तो तुम अलग-थलग ही रहोगे।” वैसे तो वे विश्वासी हैं और अपना कर्तव्य भी कर सकते हैं—जो शायद कोई महत्वपूर्ण कर्तव्य भी हो—लेकिन क्योंकि उनके व्यक्तिगत जीवन में गंभीर समस्याएँ हैं और वे जो मुसीबत मोल लेते हैं, वह कलीसिया के कार्य को प्रभावित कर सकती है, इसलिए कलीसिया अगुआ इसे अनदेखा नहीं कर सकते, क्योंकि ये मुसीबतें जोखिम पैदा कर सकती हैं। मिसाल के तौर पर, वे जिन लोगों से रिश्ते बनाते हैं, हो सकता है कि उन्हें इन लोगों से कलीसिया के कुछ हालात या भाई-बहनों की व्यक्तिगत जानकारी का पता चल जाए। अगर उन्होंने यह जानकारी बुरे इरादों वाले व्यक्तियों या बड़े लाल अजगर को दे दी, तो यह कलीसिया और भाई-बहनों दोनों के लिए नुकसानदेह होगा। इसलिए, कलीसिया के लिए ये सभी मुसीबतें या संभावित जोखिम वही लोग लेकर आते हैं, लिहाजा कलीसिया को चाहिए कि वह उनसे पहले अपनी व्यक्तिगत मुसीबतें हल करने के लिए कहे। अगर वे इन मुसीबतों को पूरी तरह से निपटा लेते हैं, तो परमेश्वर का घर उनके हालात के आधार पर उन्हें फिर से स्वीकारने का फैसला ले सकता है। लेकिन अगर वे मुसीबतें हल करने का कोई प्रयास नहीं करते हैं और फिर भी अपना कर्तव्य करना चाहते हैं, तो क्या किया जाना चाहिए? (उन्हें अपना कर्तव्य करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।) ऐसे में उन्हें कलीसिया छोड़ने के लिए राजी करना चाहिए या बाहर निकाल देना चाहिए। संक्षेप में, चाहे वे कलीसिया अगुआ हों या भाई-बहन, एक बार जब उन्हें यह पता चल जाता है कि कलीसिया में मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोग हैं, तो उन्हें सिद्धांतों के अनुसार इस मामले पर ध्यान देना चाहिए और इसे तुरंत निपटाना चाहिए। उन्हें इसे निपटाने और हल करने के लिए तब तक प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए जब तक कि ये लोग भाई-बहनों के लिए खतरा नहीं बन जाते या कलीसिया के कार्य में मुसीबत पैदा नहीं करते।
कुछ लोग मुसीबत की शुरुआत करने में देर नहीं करते हैं और मारपीट और गाली-गलौज करने में लग जाते हैं। उन्हें हमेशा लगता है कि वे जबर्दस्त मुक्का मार सकते हैं, दुनिया में हर किसी को हमेशा हराना चाहते हैं या अगर उन्हें मार्शल आर्ट के कुछ आकर्षक पैंतरे आते हैं, तो वे हमेशा दूसरों पर हिंसा और शक्ति का उपयोग करना चाहते हैं। क्या इस तरह के लोगों में भी मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति नहीं होती है? (हाँ।) फिर ऐसे लोग भी हैं जो जहाँ भी जाते हैं अपनी मर्यादा में नहीं रहते हैं। वे नियम नहीं मानते हैं या सार्वजनिक व्यवस्था का पालन नहीं करते हैं और हमेशा स्वच्छंद बने रहना चाहते हैं। गाड़ी चलाते समय वे जानबूझकर लाल बत्ती का उल्लंघन करते हैं या जहाँ अनुमति नहीं है वहाँ जानबूझकर बाएँ मुड़ते हैं; फिर जब पुलिस उन्हें रोकती है और जुर्माना लगाती है, तो वे इसे स्वीकारने से इनकार कर देते हैं और उस पुलिस अफसर की शिकायत करना चाहते हैं। देखा तुमने, वे किसी की भी शिकायत करने की हिम्मत करते हैं। भले ही पुलिस कानून के अनुसार कार्य करती हो, फिर भी वे उसकी शिकायत करना चाहते हैं—वे कानून का अनादर करते हैं। क्या ये कमअक्ल लोग भी मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति नहीं रखते हैं? (हाँ।) मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाला यह व्यक्ति सोचता है कि उसके पास भरोसा करने के लिए परमेश्वर है क्योंकि वह उसमें विश्वास रखता है और उधर कलीसिया के पास बड़ी तादाद में लोग हैं और उसका बहुत दबदबा है; इसलिए वे किसी भी चीज से नहीं डरते हैं। अपनी क्षमताओं का दिखावा करने और यह दिखाने के लिए कि वे कितने डरावने हैं, वे हर जगह बेतहाशा बुरे कर्म करते फिरते हैं। कानूनी झमेलों में पड़ने के बाद भी उनमें अपने तरीके बदलने की जागरूकता नहीं आती है। अंत में वे क्या कहते हैं? “यह दुनिया सच में बुरी है। मुझे बस न्याय के लिए खड़े होने के कारण गिरफ्तार किया गया। यह दुनिया सच में अन्यायी है!” वे अब भी अपनी गलतियाँ मानने से इनकार करते हैं। वे खुद ही अपने लिए मुसीबत को भड़काते हैं और फिर भी यही शिकायत करते हैं कि उनके साथ अन्याय हुआ है। क्या यह बिल्कुल बेतुका नहीं है? (हाँ, है।) दुनिया चाहे कितनी भी बुरी और अँधेरी क्यों न हो, इन लोगों का मुसीबत की शुरुआत करना बेवकूफी है। परमेश्वर ने कभी किसी से मुसीबत की शुरुआत करने के लिए नहीं कहा है और ना ही उसने किसी को न्याय के लिए लड़ने और स्वर्ग की तरफ से न्याय लागू करने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखने के झंडे का उपयोग करने के लिए कहा है। कुछ लोग कहते हैं, “इस दुनिया के कानून सत्य नहीं हैं, इसलिए उनका पालन करने की कोई जरूरत नहीं है।” भले ही कानून सत्य ना हो, लेकिन परमेश्वर ने कभी तुमसे यह तो नहीं कहा है कि तुम अपनी इच्छा से कानून तोड़ सकते हो और ना ही उसने तुमसे यह कहा है कि तुम हत्या या आगजनी कर सकते हो। परमेश्वर तुमसे कानून का पालन करने, समाज में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने, नैतिक मानकों का पालन करने और जहाँ भी तुम जाते हो वहाँ के नियम मानने, उत्तेजक नहीं होने और मुसीबत मोल नहीं लेने के लिए कहता है। अगर तुमने कानून तोड़ा, तो तुम्हें खुद ही इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा—परमेश्वर के घर से यह उम्मीद मत करना कि वह तुम्हारी तरफ से जिम्मेदारी लेगा, क्योंकि यह व्यक्तिगत व्यवहार है और तुम्हें सिर्फ एक व्यक्ति के रूप में दर्शाता है; परमेश्वर के घर ने कभी तुम्हें कुछ भी गैर-कानूनी करने का निर्देश नहीं दिया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम किस देश में मामले निपटा रहे हो, परमेश्वर का घर तुम्हें कानून जानने और वकील की सलाह लेने के लिए कहता है। वकील जो भी कहे वह उचित है, तुम्हें वही करना चाहिए। अगर वकील ने तुम्हें एक विशेष तरीके से कार्य करने की सलाह नहीं दी है और तुम बिना सोचे-विचारे कार्य करते हो, मामले बिगाड़ देते हो और कानून तोड़ते हो, तो तुम्हें खुद ही इसका नतीजा भुगतना पड़ेगा—परमेश्वर के घर में मुसीबत मत लाओ। भले ही वकील का सुझाया तरीका सबसे अच्छा विकल्प ना हो, फिर भी तुम्हें वकील की सलाह ही माननी चाहिए। जब तक यह कानूनी है और परमेश्वर के घर को कोई बड़ा नुकसान नहीं पहुँचाता है, तब तक इसे किया जा सकता है। परमेश्वर के घर ने हमेशा लोगों से वकीलों की सलाह लेने और कानून के अनुसार मामले निपटाने के लिए कहा है। लेकिन कुछ लोग सोचते हैं, “परमेश्वर का घर दुनिया का हिस्सा नहीं है, इसलिए हमें दुनिया के चलन का पालन नहीं करना चाहिए! कानून सत्य का प्रतिनिधित्व नहीं करता है—सिर्फ परमेश्वर ही सत्य है और परमेश्वर सर्वोच्च है। हम सिर्फ सत्य और परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं!” यह बात सही है, लेकिन तुम अब भी इसी दुनिया में रह रहे हो और तुम्हें बहुत-से वास्तविक मुद्दों से निपटना पड़ता है। इसलिए, तुम कानून का उल्लंघन नहीं कर सकते और ना ही तुम सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन कर सकते हो। परमेश्वर की सर्वोच्चता परमेश्वर की पहचान और उसकी स्थिति के बारे में है; यह तुम्हारे लिए गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल होने या समाज में निरंकुश होकर कार्य करने, जो चाहो वह करने और हर जगह मुसीबत मोल लेने का कारण नहीं है। परमेश्वर ने कुछ भी करने में कानून तोड़ने के लिए ना कभी किसी को बढ़ावा दिया है और ना ही किसी से इसकी अपेक्षा की है, बल्कि वह तुमसे कानून का पालन करने और सामाजिक नियमों को मानने के लिए कहता है, वह कहता है कि अगर तुम कानून तोड़ते हो और तुम्हें सजा दी जाती है, तो तुम्हें सजा स्वीकार लेनी चाहिए और कोई समस्या पैदा नहीं करनी चाहिए या मुसीबत मोल नहीं लेनी चाहिए। अगर तुम हमेशा मुसीबत मोल लेते रहते हो, हमेशा यही सोचते हो कि चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, इसलिए परमेश्वर तुम्हारा समर्थन कर रहा है और इसलिए तुम किसी चीज से नहीं डरते, तो मैं तुम्हें बता देता हूँ, तुम गलत समझ रहे हो! परमेश्वर सभी चीजों का सामना करने में तुम्हारी निडरता का समर्थन नहीं करता है और परमेश्वर का घर तुम्हारे बदमाशों वाले तर्क की कीमत नहीं चुकाएगा। ऐसा कभी मत सोचना कि सिर्फ इसलिए कि परमेश्वर के घर में बहुत-से लोग हैं और उसका बहुत दबदबा है, तो तुम जो चाहो कर सकते हो। अगर तुम इस तरीके से सोचते हो, तो तुम गलत हो। यह शैतान का तर्क है। परमेश्वर के घर ने कभी ऐसा कुछ नहीं कहा है और ना ही परमेश्वर ने। परमेश्वर का घर किसी को भी इस तरह से कार्य करने के लिए बढ़ावा नहीं देता है। यह सच है कि परमेश्वर के घर में बहुत-से लोग हैं, लेकिन लोगों की तादाद—चाहे बहुत हो या कम—किसी का समर्थन करने, किसी को बहादुर बनाने या किसी को मुसीबत से बचाने और बिगड़े मामले शांत करने के लिए नहीं है। परमेश्वर लोगों को इसलिए चुनता है ताकि वे उसका अनुसरण करें और उसकी इच्छा के अनुसार चलें ताकि वे सृजित प्राणियों के रूप में मानक स्तर के हो सकें और सृजित प्राणियों का कर्तव्य पूरा कर सकें। यह इसलिए नहीं है कि तुम दुनिया के खिलाफ जा सको, यह इसलिए नहीं है कि तुम दुनिया में बड़बोले विचार बड़बड़ा सको और निश्चित रूप से दुनिया को सबक सिखाना तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं है। परमेश्वर में विश्वास रखना धारा के खिलाफ जाने के बारे में नहीं है; इसका धारा के खिलाफ जाने या दुनिया से नफरत करने से कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए, लोगों के लिए परमेश्वर के इरादों को गलत मत समझो और परमेश्वर में विश्वास रखने के महत्व का गलत मतलब मत लगाओ या उसे गलत मत समझो। परमेश्वर किस उद्देश्य से लोगों को चुनता है? (इस उद्देश्य से कि लोग परमेश्वर का अनुसरण करें, परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलें और सृजित प्राणियों का कर्तव्य करें।) परमेश्वर लोगों को इसलिए चुनता है ताकि वह उन्हें प्राप्त कर सके, सच्चे सृजित प्राणियों को प्राप्त कर सके और सही मायने में परमेश्वर की आराधना करने वाले मनुष्यों को प्राप्त कर सके; यह इसलिए है ताकि एक ऐसी नई मानवजाति निकलकर आए जो परमेश्वर की आराधना कर सके। परमेश्वर लोगों को इस उद्देश्य से नहीं चुनता है कि वे इस दुनिया या मानवजाति के खिलाफ जाएँ। इसलिए मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोगों को जितना हो सके कलीसिया से और उन जगहों से दूर रखना चाहिए जहाँ लोग अपना कर्तव्य करते हैं, ताकि दूसरों के कर्तव्य निर्वहन को प्रभावित होने से बचाया जा सके।
जहाँ तक मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोगों की बात है, वे चाहे किसी भी तरह की मुसीबत क्यों ना मोल लें, अगर इससे कलीसिया में मुसीबत आती है और भाई-बहनों का कर्तव्य निर्वहन प्रभावित होता है, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कदम उठाना चाहिए और यह मामला हल करना चाहिए। इसे बेकाबू बिल्कुल नहीं छोड़ना चाहिए। उन्हें तुरंत परिस्थिति को समझना चाहिए और उसके बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए, समस्या की जड़ को स्पष्ट करना चाहिए और फिर एक उचित समाधान सोचना चाहिए और समस्या से निपटना चाहिए। इससे क्यों निपटना चाहिए? एक बात तो यह है कि ये मुसीबतें कलीसिया के कार्य, कलीसियाई जीवन या भाई-बहनों के कर्तव्य निर्वहन को प्रभावित कर सकती हैं। दूसरी बात यह है कि चाहे दूसरे लोग इन मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोगों को प्रतिभाशाली लोगों के रूप में देखें या आवारा और बदमाश लोगों के रूप में, अगर वे मुसीबत लाते हैं, तो उनसे समय रहते निपट लेना चाहिए। तो उनसे कैसे निपटना चाहिए? यह मुसीबत से निपटने के बारे में नहीं है, बल्कि यह इसे लाने के लिए जिम्मेदार लोगों से निपटने के बारे में है। उन्हें कलीसिया से दूर करके परेशानी की जड़ हल हो जाती है और इस तरह से मुद्दे से निपटा जाता है। तुम्हें कभी भी सिर्फ इसलिए नरमी नहीं बरतनी चाहिए क्योंकि मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले कुछ लोग तुम्हें सक्षम या गुणी नजर आते हैं। अगर तुम उनके साथ नरमी बरत पाते हो, तो तुम वाकई बहुत ही भ्रमित व्यक्ति हो और कलीसिया अगुआ बनने के लिए अयोग्य हो और भाई-बहनों को तुम्हें तुम्हारे पद से हटा देना चाहिए। अगर तुम परमेश्वर के घर के हितों का और भाई-बहनों का बचाव नहीं करते हो, बल्कि बुरे लोगों और मुसीबत पैदा करने वालों की रक्षा करते हो, यहाँ तक कि उन्हें बेहद पूजते हो, उन्हें सम्मानित अतिथि और गुणी व्यक्ति मानते हो, सोचते हो कि वे ऐसे प्रतिभाशाली लोग हैं जो कलीसिया में मुश्किल से मिलते है, तुम बड़े कार्यों के लिए उनका उपयोग करते हो और यहाँ तक कि उनके लिए उनकी परेशानियाँ भी कम करते हो—तो तुम कलीसिया अगुआ की भूमिका के लिए पूरी तरह से अयोग्य हो। तुम एक भ्रमित व्यक्ति और नकली अगुआ हो और तुम्हें बर्खास्त कर देना चाहिए और हटा देना चाहिए। अगर कोई कलीसिया अगुआ सलाह मानने से इनकार कर देता है और किसी ऐसे बुरे व्यक्ति की रक्षा करने पर अड़ जाता है जिसमें मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति है या बड़े कार्यों के लिए उसका उपयोग करता है, तो भाई-बहनों को ना सिर्फ इस अगुआ को हटा देना चाहिए, बल्कि उसे और मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले इस व्यक्ति को एक साथ कलीसिया से बाहर निकाल देना चाहिए। क्या तुम मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले व्यक्ति को पूजते नहीं हो? वह भी महसूस करता है कि तुम उसकी रक्षा करते हो और तुम लोगों की इतनी अच्छी दोस्ती भी है—तो फिर माफ करना, तुम दोनों को ही चले जाना होगा। परमेश्वर के घर को तुम दोनों में से किसी की भी जरूरत नहीं है! अगर किसी कलीसिया में मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले व्यक्ति हैं और ऊँचे स्तर के अगुआ इस बात से अनजान हैं, जबकि कलीसिया अगुआ भ्रमित है और भेद पहचान नहीं पाता है, तो सत्य समझने वाले भाई-बहनों को इस मुद्दे को हल करने के लिए कदम उठाना चाहिए। एक बात तो यह है कि उन्हें तुरंत इस मामले की रिपोर्ट ऊँचे स्तर के अगुआओं को कर देनी चाहिए। इसके अलावा, उन्हें संगति करने और नकली अगुआ का भेद पहचानने के लिए दूसरे भाई-बहनों के साथ एकजुट होना चाहिए। एक बार जब यह पक्का हो जाता है कि वे नकली अगुआ हैं, तो उन्हें बर्खास्त कर देना चाहिए या हटा देना चाहिए और एक नया अगुआ चुनना चाहिए—कोई ऐसा व्यक्ति जो परमेश्वर के घर के हितों, कलीसिया के कार्य और कलीसियाई जीवन का बचाव कर सके। क्या इस तरीके से अभ्यास करना उचित है? (हाँ।) इस कलीसिया अगुआ और मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले उस व्यक्ति को एक साथ दूर कर दो। क्या ये वही दो लोग नहीं हैं जो अपने एक जैसे बुरे गुणों के कारण मिलजुलकर रहते हैं, एक दूसरे से ईर्ष्या करते हैं और एक-दूसरे की सराहना करते हैं? तो फिर उनकी इच्छा पूरी कर दो और उन्हें एक साथ दुनिया में वापस जाने दो—परमेश्वर का घर ऐसे लोगों को नहीं चाहता है। अगर वे कलीसिया में रहे, तो वे सिर्फ मुसीबत मोल लेंगे और मुसीबत पैदा करेंगे जिससे कलीसिया के कार्य को बहुत नुकसान पहुँचेगा। उन्हें दूर कर देना चाहिए। वे चाहे जहाँ भी जाना चाहें और चाहे कितनी भी बड़ी मुसीबत मोल लेना चाहें, यह उनका अपना मामला है। जो भी हो, इसका कलीसिया से कोई लेना-देना नहीं है और कलीसिया इस मामले में नहीं फँसेगी। क्या इससे मुद्दा हल नहीं हो जाएगा? (हाँ।) यह समाधान काफी अच्छा है। इसके साथ ही बारहवीं अभिव्यक्ति पर हमारी संगति समाप्त होती है जो मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोगों के बारे में थी।
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