अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (27) खंड तीन
झ. किसी भी समय छोड़ने में सक्षम होना
नौवीं अभिव्यक्ति है : “किसी भी समय छोड़ने में सक्षम होना।” इस प्रकार का व्यक्ति जो किसी भी समय परमेश्वर का घर छोड़ने में सक्षम होता है, कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो सिर्फ तभी छोड़ता है जब वह किसी विशेष परिस्थिति का सामना करता है या जब वह किसी ऐसी बड़ी आपदा का सामना करता है जो किसी औसत व्यक्ति के सहने की क्षमता से परे होती है, उसकी सीमा से बाहर होती है। बल्कि वह किसी भी समय छोड़ने में सक्षम होता है—यहाँ तक कि वह एक छोटी सी बात के कारण भी छोड़ सकता है; एक छोटी सी बात के कारण भी उसमें अब अपना कर्तव्य न करने, अब परमेश्वर में विश्वास न रखने और परमेश्वर का घर छोड़ने की इच्छा जाग सकती है। इस प्रकार का व्यक्ति बहुत तकलीफदेह भी होता है। ऊपरी तौर पर वह यहूदा प्रकार के लोगों से थोड़ा बेहतर लग सकता है, लेकिन वह किसी भी समय और किसी भी जगह परमेश्वर का घर छोड़ने में सक्षम होता है। वह भाई-बहनों के साथ विश्वासघात करने में सक्षम होता है या नहीं, यह अनिश्चित है। क्या तुम लोगों को लगता है कि इस तरह का व्यक्ति भरोसेमंद होता है? (नहीं।) तो क्या उसके पास आचरण के सिद्धांत होते हैं? क्या उसके पास परमेश्वर में विश्वास रखने की नींव होती है? (नहीं।) क्या वह सही मायने में विश्वास रखने का कोई संकेत दिखाता है? (नहीं।) तो फिर वह किस तरह का व्यक्ति होता है? (एक छद्म-विश्वासी है।) वह परमेश्वर में विश्वास रखता है और अपना कर्तव्य ऐसे करता है मानो यह सब कुछ एक मजाक हो। वह उस व्यक्ति की तरह है जो उचित कार्यों पर ध्यान नहीं देता है, सोया सॉस खरीदने के लिए बाहर जाते हुए जो सड़क पर कलाबाजों या कलाकारों को रोचक दृश्य पेश करते हुए देखता है तो उस जोशभरे परिवेश में खो जाता है और सोया सॉस खरीदना भूल जाता है, जिससे उचित कार्यों में देरी हो जाती है। इस तरह के लोग किसी भी चीज में ज्यादा समय तक नहीं लगे रहते हैं; वे अनमने और अस्थिर होते हैं। परमेश्वर में उनका विश्वास भी उनकी दिलचस्पी पर आधारित होता है—उन्हें लगता है कि परमेश्वर में विश्वास रखना काफी मजेदार है, लेकिन किसी मोड़ पर जब इसमें उनकी दिलचस्पी समाप्त हो जाती है, तो वे बिना किसी हिचकिचाहट के तुरंत छोड़ देते हैं। छोड़ने वाले कुछ लोग तुरंत व्यवसाय में लग जाते हैं, कुछ आधिकारिक करियर वाले मार्ग का अनुसरण करने लगते हैं, कुछ रूमानी रिश्ते बनाते हैं और शादी की तैयारी करने लगते हैं, और कुछ जो जल्द अमीर बनना चाहते हैं वे सीधे कसीनो चले जाते हैं। लोग कहते हैं कि अगर किसी को तीन दिनों तक न देखा हो तो उसके बाद उसे नई नजर से देखना चाहिए। जो व्यक्ति किसी भी समय परमेश्वर का घर छोड़ने में सक्षम हो, अगर तुम उसे सिर्फ एक दिन भी न देखो, तो उससे दोबारा मिलने पर वह बिल्कुल एक अलग व्यक्ति की तरह होता है। कल वह शालीन और उचित तरीके से कपड़े पहने हुए था, अच्छा व्यवहार करने वाला और आकर्षक दिख रहा था। यहाँ तक कि उसने परमेश्वर से प्रार्थना भी की थी और उसका चेहरा आँसुओं से लगातार भीग रहा था, वह कह रहा था कि वह परमेश्वर के लिए अपनी जवानी समर्पित करना और अपना खून बहाना चाहता है, परमेश्वर के लिए जान देना चाहता है, अपनी अंतिम साँस तक वफादार रहना चाहता है और राज्य में प्रवेश करना चाहता है। उसने ऐसे बुलंद नारे लगाए, लेकिन कुछ ही देर बाद वह कसीनो चला गया। कल वह अपना कर्तव्य निभाकर खुश था और सभा के दौरान उसने चमकते चेहरे के साथ और जोश से उबलते हुए परमेश्वर के वचन पढ़े, और डबडबाई आँखों से विलाप करने की हद तक भावुक हो गया। तो फिर आज वह सीधे कसीनो कैसे भाग गया? वह घर जाने की इच्छा किए बिना देर रात तक जुआ खेलता रहा, भरपूर मौजमस्ती करता रहा और जोश में उबलता रहा। कल भी वह सभाओं में शामिल हो रहा था, लेकिन आज वह कसीनो भाग गया है—तो इनमें से वास्तव में कौन-सी अभिव्यक्ति उसका असली रूप है? (बाद वाला ही उसका असली रूप है।) अगर कोई सत्य नहीं समझता है, तो वह वाकई यह असलियत नहीं पहचान सकता है कि आखिर यह व्यक्ति है क्या। ये दो अभिव्यक्तियाँ, पहले की और बाद की, दोनों ही वास्तव में एक ही व्यक्ति द्वारा प्रदर्शित की जाती हैं—तो ऐसा कैसे लगता है कि जैसे इन्हें दो अलग-अलग लोग प्रदर्शित करते हैं? ज्यादातर लोग इस तरह के व्यक्ति की असलियत नहीं पहचान पाते हैं। तुम देखते हो कि परमेश्वर में विश्वास रखने वाले के रूप में वह अक्सर सभाओं में शामिल होता है, बुराई नहीं करता है और अपना कर्तव्य निभाने में कष्ट सहने और कीमत चुकाने में काफी समर्थ होता है। जब वह कंप्यूटर के सामने बैठता है, तो वह ध्यान केंद्रित करने वाला और उद्यमी होता है, कड़ी मेहनत करता है और इसमें अपना दिल लगा देता है। तुम सोचोगे कि परमेश्वर में विश्वास रखने वाला व्यक्ति होने के नाते वह माहजोंग नहीं खेलेगा, है ना? लेकिन सिर्फ एक दिन उसे न देखने के बाद, तुम देखते हो कि वह जुआ खेलने के लिए माहजोंग हॉल या कसीनो भाग गया है। और वह एक अव्वल दर्जे का माहजोंग खिलाड़ी है—वह बिल्कुल भी किसी ऐसे व्यक्ति की तरह नहीं दिखता है जो परमेश्वर में विश्वास रखता हो! उसने तुम्हें पूरी तरह से चकरा दिया है—क्या वह परमेश्वर में विश्वास रखने वाला व्यक्ति है या माहजोंग खेलने वाला अविश्वासी? वह इतनी जल्दी भूमिकाएँ कैसे बदल सकता है? जब वह परमेश्वर में विश्वास रखता है, तो क्या उसके दिल में परमेश्वर होता है? (नहीं।) वह परमेश्वर में सिर्फ इसलिए विश्वास रखता है ताकि मौज-मस्ती कर सके और समय बिता सके, यह देख सके कि परमेश्वर में विश्वास रखने का क्या अर्थ है और क्या यह उसके जीवन में खुशी ला सकता है। अगर वह खुश नहीं है, तो वह किसी भी समय छोड़ने में सक्षम है। उसने जीवन भर विश्वास रखने की योजना कभी नहीं बनाई, और निश्चित रूप से उसने जीवन भर अपना कर्तव्य करने और परमेश्वर का अनुसरण करने की योजना तो कभी भी नहीं बनाई। तो उसने क्या योजना बनाई है? अपने मन में, अगर उसने सही मायने में परमेश्वर में विश्वास रखना है, तो कम-से-कम इससे उसकी मौज-मस्ती करने की क्षमता में बाधा नहीं आनी चाहिए, इसमें कोई कार्य करना शामिल नहीं होना चाहिए, और फिर भी इससे यह आश्वासन मिलना चाहिए कि वह एक सुखी जीवन जी सकता है। अगर उसे रोज परमेश्वर के वचन पढ़ने पड़ें और सत्य के बारे में संगति करनी पड़े, तो उसे दिलचस्पी नहीं होगी या वह खुश नहीं होगा। एक बार जब वह इससे ऊब जाएगा, तो वह कलीसिया छोड़ देगा और दुनिया में वापस भाग जाएगा। वह सोचता है, “जीवन आसान नहीं है, इसलिए लोगों को अपने साथ बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए। हमें खुद अपनी किस्मत का मालिक होना चाहिए और अपने देह के साथ बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम हर रोज खुश रहें—आजादी से जीने का यही एकमात्र तरीका है। परमेश्वर में विश्वास रखने में कोई दुराग्रह नहीं होना चाहिए। देखो मैं कितना सहज हूँ—जहाँ भी खुशी होती है, वहीं मैं चला जाता हूँ। अगर मैं खुश नहीं हूँ, तो मैं छोड़ दूँगा। मैं अपने लिए चीजें असुविधाजनक क्यों बनाऊँ? अपने आचरण का मेरा सर्वोच्च सिद्धांत है किसी भी समय छोड़ने में सक्षम होना, ‘स्वछंद विचारों वाला विश्वासी’ होना—इस तरह से जीना कितना आरामदायक और निश्चिंत है!” इस तरह के लोग अक्सर किस तरह के गाने गाते हैं? “मत पूछो मुझसे कि मैं कहाँ से आया हूँ, मेरा अपना शहर बहुत दूर है।” अगर यह नहीं, तो वे और क्या गाते हैं? “बस एक बार क्यों ना जीया जाए आजादी से?” जब उन्हें लगता है कि अब यह उबाऊ होता गया है या मजेदार नहीं रहा, तो वे जल्दी से छोड़ देते हैं, सोचते हैं, “जब दुनिया में देखने के लिए बहुत कुछ है, तो एक ही जगह पर टिके क्यों रहें?” वे दूसरी किस मशहूर कहावत का उपयोग करते हैं? “एक पेड़ की खातिर पूरा जंगल क्यों छोड़ दें?” तुम लोग क्या सोचते हो—क्या इस तरह के लोगों में सच्चा विश्वास होता है? (नहीं, वे छद्म-विश्वासी हैं।) जब छद्म-विश्वासियों की बात आती है, तो चूँकि हम इस बारे में बात कर रहे हैं कि उनकी सभी समस्याएँ मानवता की समस्याएँ हैं, ऐसे लोगों की मानवता में वास्तव में क्या गलत है? क्या तुम लोगों को लगता है कि इस तरह के लोगों ने कभी ऐसे प्रश्नों पर विचार किया है कि लोगों को कैसा आचरण करना चाहिए, किस मार्ग पर चलना चाहिए या जीवन जीते समय जीवन के बारे में किस तरह का दृष्टिकोण और मूल्य अपनाने चाहिए? (नहीं।) तो इस तरह के व्यक्ति की मानवता में क्या समस्या है? (इस तरह के व्यक्ति में सामान्य मानवता वाले जमीर और विवेक की कमी होती है; वह ऐसे प्रश्नों पर विचार नहीं करता है।) यह तो निश्चित है। इसके अलावा, सटीक रूप से कहा जाए तो इस तरह के व्यक्ति में आत्मा नहीं होती है; वह बस एक चलती-फिरती लाश होता है। उसके पास इस संबंध में अपनी कोई अपेक्षा नहीं होती है कि आचरण कैसे करना चाहिए या किस मार्ग पर चलना चाहिए, और न ही वह इन चीजों पर विचार करता है। उसका इन चीजों पर विचार न करने का कारण यह है कि वैसे तो बाहर से उसका रंग-रूप एक मनुष्य का है, लेकिन उसका सार वास्तव में एक चलती-फिरती लाश का है, एक खोखला खोल है। जब मानव जीवन और उत्तरजीविता के मामलों की बात आती है, तो इस तरह के व्यक्ति का रवैया जीवन में बस लक्ष्यहीन होकर चलते रहने का होता है। विशिष्ट रूप से कहा जाए तो “जीवन में लक्ष्यहीन होकर चलते रहना” का अर्थ है बस जैसे-तैसे काम चलाते रहना और मृत्यु की प्रतीक्षा करना, सीखना नहीं और जाहिल बने रहना, अपने दिन खाने-पीने और मौज-मस्ती करने में बिताना। वे वहीं जाते हैं, जहाँ खुशी होती है और वही करते हैं, जो उन्हें खुश और आनंदित महसूस करवाता है और देह में आरामदायक महसूस करवाता है। लेकिन वे ऐसी हर चीज से बचते और दूर रहते हैं जिसके कारण उनकी देह को कष्ट होता है या आंतरिक पीड़ा होती है; वे बस यह चाहते ही नहीं कि उनकी देह कष्ट सहे। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कष्ट सहकर जीवन का अनुभव करते हैं। या विभिन्न चीजों से गुजरकर और उनका अनुभव कर वे ऐसा करते हैं कि उनका जीवन खाली न रहे और वे इससे कुछ प्राप्त कर सकें। अंत में वे इस बारे में निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि किस मार्ग पर चलना चाहिए और किस तरह का व्यक्ति होना चाहिए। जीवन के अनुभवों के जरिए वे बहुत कुछ प्राप्त करते हैं। एक बात यह है कि वे कुछ खास लोगों की असलियत पहचानने में समर्थ होते हैं; इसके अलावा, वे यह निष्कर्ष निकालने में समर्थ होते हैं कि एक व्यक्ति को विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों को सँभालने के लिए किन सिद्धांतों और विधियों का उपयोग करना चाहिए और व्यक्ति को अपना पूरा जीवन कैसे जीना चाहिए। अंत में वे जो निष्कर्ष निकालते हैं वह चाहे सत्य के अनुरूप हो या उसके खिलाफ जाए, वे कम-से-कम इस पर तो विचार करते ही हैं। दूसरी तरफ जो लोग किसी भी समय परमेश्वर का घर छोड़ने में सक्षम होते हैं, उन्हें सत्य का अनुसरण करने या परमेश्वर में विश्वास रखने में अपना कर्तव्य करने में कोई दिलचस्पी नहीं होती है। वे हमेशा अपनी कामुक इच्छाएँ और अपनी प्राथमिकताएँ संतुष्ट करने के अवसरों की तलाश में रहते हैं और कभी भी अपना कर्तव्य करने में लगन से कोई पेशेवर कौशल सीखना, अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करना या एक सार्थक जीवन जीना नहीं चाहते हैं। वे बस अविश्वासियों की तरह बनना चाहते हैं, हर रोज खुश और आनंदित होना चाहते हैं। इस प्रकार वे जहाँ भी जाते हैं, वहाँ मौज-मस्ती और मनोरंजन की तलाश में रहते हैं, ताकि बस अपने हितों और जिज्ञासा को संतुष्ट कर सकें। अगर उन्हें एक कर्तव्य करते रहना पड़ता है, तो वे दिलचस्पी खो देते हैं और अब उनमें इसे करते रहने की प्रेरणा नहीं रहती है। इस तरह के लोगों में जीवन के प्रति रवैया बस जैसे-तैसे आगे बढ़ने का होता है। ऊपरी तौर पर लगता है जैसे वे बहुत ही स्वतंत्र और सहज होकर जीते हैं, दूसरों के साथ चीजों को लेकर हंगामा नहीं करते हैं। वे रोज हँसमुख और निश्चिंत दिखाई देते हैं, वे जहाँ भी जाते हैं वहाँ परिस्थितियों के अनुकूल ढलने में समर्थ होते हैं। कुछ तो मानवीय संबंधों के सांसारिक रीति-रिवाजों या परंपराओं से अप्रभावित और अनियंत्रित भी लगते हैं, जिससे बाहर से यह छवि मिलती है कि वे असाधारण हैं और आम भीड़ से ऊपर हैं। लेकिन वास्तव में, उनका सार एक चलती-फिरती लाश का, किसी आत्मा रहित चीज का होता है। जो लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, लेकिन किसी भी समय कलीसिया छोड़ने में सक्षम होते हैं, वे कभी भी अपने किसी भी कार्य में लंबे समय तक नहीं लगे रहते हैं—वे सिर्फ एक अस्थायी उत्साह बनाए रख पाते हैं। लेकिन जमीर और विवेक वाले लोग अलग होते हैं। वे चाहे कोई भी कर्तव्य कर रहे हों, उसे गंभीरता से सीखते हैं और अच्छी तरह से करने का प्रयास करते हैं। वे कुछ हासिल करने और कुछ उपयोगिता रचने में समर्थ होते हैं। यह देखते हुए कि वे कुछ कर सकते हैं, बेकार नहीं बल्कि उपयोगी लोग हैं, एक बात तो यही है कि वे अपने आसपास के लोगों की मान्यता प्राप्त करने में समर्थ होते हैं और साथ ही अंदर से आत्मविश्वास महसूस कर सकते हैं। यही वह न्यूनतम चीज है जो सामान्य मानवता वाला जमीर और विवेक युक्त व्यक्ति हासिल कर सकता है। लेकिन जो लोग जीवन में लक्ष्यहीन होकर चलते रहते हैं, वे इन चीजों के बारे में कभी नहीं सोचते हैं। वे जहाँ भी जाते हैं, वहाँ बस खाते-पीते और मौज-मस्ती करते रहते हैं। बाहर से ऐसा लग सकता है कि वे बहुत आजादी से और आराम से रहते हैं, लेकिन वास्तव में ऐसे लोगों के दिमाग में कोई विचार नहीं होता है। वे जो कुछ भी करते हैं उसमें कभी गंभीर नहीं होते हैं; वे हमेशा सतही और कुछ समय के उत्साह से प्रेरित होते हैं, कभी भी कुछ भी हासिल नहीं करते हैं। वे जीवन भर जैसे-तैसे चलते रहना चाहते हैं और वे जहाँ भी जाते हैं, वहाँ यही रवैया अपनाए रहते हैं—यहाँ तक कि परमेश्वर में उनका विश्वास भी इसका अपवाद नहीं है। तुम देख सकते हो कि एक निश्चित अवधि के दौरान ऐसा लगता है जैसे वे अपना कर्तव्य करने के बारे में काफी गंभीर हैं और कष्ट सहने और कीमत चुकाने में समर्थ हैं, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कौन उन्हें उनकी समस्याओं की तरफ ध्यान दिलाता है या उन्हें बताता है कि चीजें कैसे करनी हैं, वे इसे कभी भी गंभीरता से नहीं लेते हैं और सत्य बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं। वे बस जैसे चाहे वैसे कार्य करते हैं—जब तक वे खुश हैं, उनके लिए सब कुछ ठीक है। और अगर वे खुश नहीं हैं, तो वे मौज-मस्ती करने चले जाते हैं, किसी की सलाह पर ध्यान नहीं देते हैं। वे अपने दिलों में सोचते हैं, “मैंने तो वैसे भी लंबे समय तक परमेश्वर में विश्वास रखने की योजना कभी नहीं बनाई।” अगर कोई उनकी काट-छाँट करता है, तो वे तुरंत छोड़ने में सक्षम होते हैं। यह उन लोगों की एक अभिव्यक्ति है जो किसी भी समय कलीसिया छोड़ने में सक्षम हैं।
जो लोग किसी भी समय कलीसिया छोड़ने में सक्षम हैं, उनमें एक और प्रकार की अभिव्यक्ति होती है। कुछ लोग—चाहे उन्होंने कितने वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा हो, चाहे वे नींव वाले लोग दिखते हों या न दिखते हों और चाहे उन्होंने पहले कोई भी कर्तव्य निभाया हुआ हो—एक बार जब वे किसी ऐसी विशेष परिस्थिति का सामना करते हैं जिसमें उनके अपने व्यक्तिगत हित शामिल होते हैं, तो वे अचानक सिरे से गायब हो सकते हैं। किसी भी समय ऐसा हो सकता है कि दूसरे लोग उनसे संपर्क खो बैठें और अब उन्हें कलीसिया में और नहीं देखें, साथ ही उन्हें पता भी न हो कि उनके साथ क्या चल रहा है। कुछ लोगों का सामना जब विपरीत लिंग के किसी ऐसे व्यक्ति से होता है जो उन्हें पटाने का प्रयास करता है, तो वे अपना कर्तव्य निभाना बंद कर देते हैं और उनसे रूमानी मुलाकात करने चले जाते हैं, इस कारण उनसे संपर्क करना पूरी तरह से असंभव हो जाता है। ऐसे भी दूसरे लोग हैं जिनके बच्चे शादी की आयु तक पहुँच चुके हैं और वे अपने बच्चों की शादी की व्यवस्था करने में व्यस्त हो जाते हैं, तो वे अब अपना कर्तव्य नहीं करते हैं और अब सभाओं में भाग नहीं लेते हैं। चाहे कोई भी उन्हें ढूँढ़े, उन्हें दरवाजे से लौटा दिया जाता है। कुछ लोग अपने माता-पिता या जीवनसाथी के बीमार पड़ने और अस्पताल में भर्ती होने पर या अपने घर में कोई बड़ी घटना या कोई अप्रत्याशित आपदा आने पर—अगर वे परमेश्वर में सच्चे विश्वासी हैं—यह कहकर स्पष्टीकरण देते हैं, “हाल ही में घर में कुछ ऐसे मामले हुए हैं जिन्हें सँभालना मेरे लिए जरूरी है, इसलिए मैं सभाओं में शामिल नहीं हो सकता। मुझे छुट्टी का अनुरोध करने की जरूरत है और अगर तुम लोग कोई उपयुक्त व्यक्ति ढूँढ़ लेते हो तो कृपया बिना देरी किए उसे कुछ समय के लिए मेरा कर्तव्य सँभालने के लिए कह दो।” कम-से-कम वे कोई सूचना और स्पष्टीकरण तो देंगे ही। लेकिन जो लोग किसी भी समय कलीसिया छोड़ने में सक्षम होते हैं, वे बिना एक भी शब्द कहे कलीसिया से संपर्क तोड़ देते हैं और भाई-बहन चाहे कितना भी प्रयास कर लें, वे उनसे संपर्क नहीं कर पाते हैं। ऐसा नहीं है कि उनके पास संपर्क का कोई साधन न हो—उन तक किसी भी तरीके से पहुँचा जा सकता है—लेकिन वे वास्तव में भाई-बहनों से संपर्क करना ही नहीं चाहते हैं या उन्हें उत्तर नहीं देना चाहते हैं। वे कहते हैं, “मुझे तुमसे संपर्क क्यों करना चाहिए? मैं अपना कर्तव्य स्वेच्छा से करता हूँ; मुझे इसके लिए भुगतान नहीं किया जाता है। अगर मैं छोड़ना चाहता हूँ, तो मैं छोड़ दूँगा! अगर मेरे घर पर कुछ चल रहा है तो वह मेरा निजी मामला है। मैं तुम्हें सूचित करने के लिए बाध्य नहीं हूँ और तुम्हें जानने का कोई अधिकार नहीं है!” कुछ लोग एक-दो महीनों के लिए छोड़कर चले जाते हैं और फिर शर्म महसूस किए बिना ही अपनी हाजिरी दर्ज कराने लौट आते हैं, वे ऐसे पेश आते हैं मानो कुछ हुआ ही न हो। दूसरे लोग दो-तीन वर्षों के लिए छोड़ देते हैं और उनसे बिल्कुल संपर्क नहीं हो पाता है। कलीसिया के लोग परिस्थिति से अनजान होने के कारण सोचते हैं कि चूँकि इस प्रकार के व्यक्ति ने कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा है, इसलिए यह असंभव है कि वह कलीसिया छोड़ देगा। वे मान लेते हैं कि कुछ अप्रत्याशित हुआ होगा और चिंता करते हैं कि कहीं उसे सीसीपी ने गिरफ्तार तो नहीं कर लिया। दरअसल बात सिर्फ यह है कि वह व्यक्ति अब परमेश्वर में विश्वास नहीं रखना चाहता और भाई-बहनों को सूचित किए बिना ही छोड़कर चला गया है। कुछ लोग लगभग दस दिनों के लिए छोड़ देते हैं और फिर लौट आते हैं; इसका अर्थ यह नहीं है कि उन्होंने विश्वास रखना बंद कर दिया है। कुछ लोग छोड़ देते हैं और फिर दो-तीन वर्षों के लिए चले जाते हैं—क्या तुम लोग कहोगे कि उन्होंने विश्वास रखना बंद कर दिया है? (हाँ।) उन्होंने सचमुच विश्वास रखना बंद कर दिया है और उनके नाम काट दिए जाने चाहिए। यह कोई साधारण प्रस्थान नहीं है; उन्होंने विश्वास रखना बंद कर दिया है। मानवीय परिप्रेक्ष्य से इसे अब विश्वास न रखना कहा जाता है। परमेश्वर इसे कैसे देखता है? परमेश्वर की नजर में इसे परमेश्वर को नकारना, परमेश्वर का अनुसरण न करना कहते हैं और यह परमेश्वर को अस्वीकार करना है। लेकिन वे अपने परिप्रेक्ष्य से सोचते हैं, “मैंने परमेश्वर को अस्वीकार नहीं किया है; मैं अब भी अपने दिल में परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ!” देखा? वे बस इसे हल्के में टाल देते हैं। ऐसे भी दूसरे लोग हैं जो सभाओं में शामिल होना और अपना कर्तव्य निभाना सिर्फ इसलिए बंद कर देते हैं कि उनका मिजाज खराब है या वे अंदर से परेशान हैं, कि उन्हें लगता है कि अपना कर्तव्य करना बहुत कठिन और थकाऊ है या उनकी थोड़ी काट-छाँट की गई है। वे अपने हाथ में लिए हुए कार्य के बारे में कुछ भी समझाए बिना ही चले जाते हैं और कहते हैं, “कोई भी मुझसे संपर्क न करे। मैं खुश नहीं हूँ और अब विश्वास नहीं रखना चाहता!” जब वे उखड़े हुए होते हैं तो ऐसा एक-दो वर्ष तक चल सकता है। उनका गुस्सा वाकई बहुत खराब होता है—वे एक-दो वर्षों तक इससे बाहर नहीं निकल पाते हैं! कुछ लोग कलीसिया में अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कार्य स्वीकार करते हैं, लेकिन वे न सिर्फ इस कार्य को अच्छी तरह से करने में विफल होते हैं, बल्कि वे अँधाधुँध ढंग से गलत कर्म भी करते हैं, जिससे कलीसिया के कार्य में गड़बड़ियाँ और बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। बाद में भाई-बहन उन्हें नहीं चुनते हैं और संगति में उन्हें पहचान भी लेते हैं और उजागर भी कर देते हैं। इसलिए वे सोचने लगते हैं, “क्या यह मेरे खिलाफ आलोचना सत्र है? मैंने बस कार्य ठीक से नहीं किया, क्या यह वाकई इतनी बड़ी बात है? वे क्यों इस तरह से संगति कर रहे हैं और मुझे उजागर कर रहे हैं? मैंने इन सारे वर्षों में कभी ऐसी शिकायत नहीं सही! परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले मैं ही हमेशा दूसरों को फटकारता रहता था; कभी किसी ने मुझे नहीं फटकारा। मैंने पहले कभी ऐसा कष्ट कब सहा है? तुम सभी मुझ पर धौंस जमा रहे हो, मुझे अपमानित महसूस करवा रहे हो। मैं अब विश्वास नहीं रखूँगा!” बस इसी तरह वे विश्वास रखना बंद कर देते हैं। ऐसा सिर्फ नौजवान लोग ही नहीं कहते हैं—कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें परमेश्वर में विश्वास रखते हुए आठ-दस वर्ष हो चुके होते हैं और उनकी आयु चालीस से पचास के बीच होती है, लेकिन वे भी दुखी होने पर ऐसी चीजें कह सकते हैं। क्या ऐसे लोगों के दिलों में परमेश्वर के लिए कोई जगह होती है? क्या वे परमेश्वर में विश्वास रखने को जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीज मानते हैं? जब व्यक्ति की काट-छाँट की जाए या वह आपदाओं या असफलताओं का सामना करे तो थोड़ा-सा नकारात्मक और कमजोर महसूस करना सामान्य है, लेकिन इन चीजों के कारण उसे परमेश्वर में विश्वास रखना बंद नहीं करना चाहिए। ऐसे लोग परमेश्वर में सच्चे विश्वासी नहीं होते हैं। परमेश्वर में सच्चे विश्वासी तब भी अपने विश्वास में दृढ़ रह सकते हैं जब उन्हें गिरफ्तार किया और सताया जाता है—सिर्फ इन्हीं लोगों के पास गवाही होती है। कुछ लोग जब किसी प्राकृतिक आपदा का सामना करते हैं, तब अगर भाई-बहनों को इस बारे में पता नहीं होता या उन्हें थोड़ी देर से पता चलता है और वे समय पर उनकी मदद नहीं करते हैं, तो वे सोचने लगते हैं, “यहाँ मैं कठिनाइयों का सामना कर रहा हूँ और कोई भी मेरी तरफ ध्यान नहीं दे रहा है। तो वे मुझे नीची नजर से देखते हैं! परमेश्वर में विश्वास रखना निरर्थक है। मैं अब विश्वास नहीं रखूँगा!” सिर्फ इतनी छोटी-सी बात के कारण वे परमेश्वर में विश्वास रखना बंद कर सकते हैं। यह उन लोगों की एक अभिव्यक्ति है जो किसी भी समय कलीसिया छोड़ने में सक्षम होते हैं।
जो लोग किसी भी समय कलीसिया छोड़ने में सक्षम होते हैं, उनके लिए एक और परिस्थिति है। सीसीपी उन्हें अपने पक्ष में करने के लिए एक अच्छी नौकरी की पेशकश करती है और उनसे कहती है, “तुम परमेश्वर में विश्वास रखकर कुछ नहीं कमाते हो। भला तुम्हारे पास क्या संभावनाएँ हो सकती हैं? हमने एक विदेशी कंपनी में तुम्हारे लिए एक ऊँचे मासिक वेतन, अच्छे फायदों और श्रम बीमा वाला पद ढूँढ़ निकाला है। परमेश्वर में विश्वास रखने में तुम्हारे लिए कोई भविष्य नहीं है; नौकरी करना, पैसे कमाना और एक अच्छा जीवन जीना इससे बेहतर है।” अंत में वे कलीसिया छोड़ देते हैं और नौकरी करने चले जाते हैं। कोई कहता है, “यह व्यक्ति कल तक कलीसिया में अपना कर्तव्य निभा रहा था। फिर आज उसने क्यों अपना सामान समेट लिया और चला गया है?” वह नौकरी करने और पैसे कमाने जा रहा है; वह अब परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता है। वह एक भी शब्द कहे बिना छोड़ देता है और इसके बाद वह भाई-बहनों से अलग रास्ते पर निकल जाता है, एक अलग मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति बन जाता है। वह शोहरत और फायदे के पीछे भागना चाहता है, बड़ा आदमी बनना और दूसरों से अलग दिखना चाहता है और अब परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता है। ऐसे लोग भी हैं जो सुसमाचार का उपदेश देते समय किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जो उन्हें अच्छा लगता है, वे उसके साथ मेलजोल बढ़ाते हैं और उसके साथ जीवन बिताने चले जाते हैं। वे न सिर्फ अपना कर्तव्य करना बंद कर देते हैं, बल्कि वे परमेश्वर में विश्वास रखना भी बंद कर देते हैं। घर पर उनके माता-पिता अब भी अनजान हैं, उन्हें लगता है कि वे परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। असल में वे बहुत पहले ही छूमंतर हो चुके हैं—कौन जाने, शायद अब तक उनके बच्चे भी हो चुके हों। अपना कर्तव्य करना इतना महत्वपूर्ण है, फिर भी वह सुसमाचार प्रचार करने जैसा महत्वपूर्ण कार्य भी छोड़ सकता है। जब वे किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जो उन्हें अच्छा लगता है या जिसे वे अच्छे लगते हैं, तो उस व्यक्ति के कुछ सरल से पटाने और लुभाने वाले शब्द उन्हें ले जाने के लिए पर्याप्त होते हैं। वे इतने ओछे और बेपरवाह होते हैं कि वे किसी भी समय और जगह परमेश्वर को छोड़ सकते हैं और परमेश्वर के साथ विश्वासघात कर सकते हैं। ऐसे लोगों ने चाहे कितने भी वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा हो या उन्होंने कितने भी धर्मोपदेश क्यों न सुने हों, फिर भी वे थोड़ा-सा भी सत्य नहीं समझते हैं। उनके लिए परमेश्वर में विश्वास रखना बिल्कुल भी महत्वपूर्ण नहीं है और अपना कर्तव्य करना भी कोई मायने नहीं रखता है—आशीषें प्राप्त करने की खातिर उन्हें लगता है कि उनके पास ये चीजें करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। जैसे ही कोई व्यक्तिगत मामला या पारिवारिक मुद्दा सामने आता है, वे अचानक छोड़ने में सक्षम होते हैं। जब वे थोड़ी-सी प्राकृतिक आपदा का सामना करते हैं तो वे अचानक विश्वास रखना बंद कर सकते हैं। कोई भी चीज परमेश्वर में उनके विश्वास में दखल दे सकती है; किसी भी मामले के कारण वे नकारात्मक बन सकते हैं और अपना कर्तव्य छोड़ सकते हैं। वे किस तरह के लोग हैं? यह प्रश्न सही मायने में गहन चिंतन के योग्य है!
परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।