अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (26) खंड पाँच

छ. लगातार व्यभिचारी गतिविधियों में लिप्त रहना

सातवें प्रकार में वे लोग आते हैं जो व्यभिचारी गतिविधियों में लिप्त रहते हैं, यह एक ऐसा समूह है जिसका आम तौर पर उल्लेख होता रहता है। वैसे तो उनकी मानवता की अभिव्यक्तियाँ बहुत बुरी नहीं होती हैं—जैसे कि कलह के बीज बोने या बुरे कर्म करने और बाधाएँ उत्पन्न करने जैसा कुछ नहीं होता—इन सभी में एक विशेषता समान होती है, जो यह है कि विपरीत लिंग के साथ इनके रिश्तों में हमेशा समस्याएँ और घटनाएँ होती रहती हैं। अवसरों की उपलब्धता चाहे कैसी भी हो, उनके साथ ऐसी समस्याएँ हमेशा प्रकट होती रहती हैं और अगर कोई अवसर नहीं होता है तो वे अवसर बना लेते हैं, जिससे ऐसी “कहानियाँ” वैसे भी बनती रहती हैं। चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, दूसरा व्यक्ति कोई भी हो या वह व्यक्ति उनसे कितना भी दूर क्यों न हो, उनके साथ समय-समय पर ऐसी घटनाएँ होती ही रहती हैं। किस तरह की घटनाएँ? वे किसी के साथ डेट पर जाते हैं या हमेशा किसी के करीब जाना चाहते हैं या उनके मन में किसी के लिए भावनाएँ उत्पन्न होने लगती हैं या वे किसी पर अपनी नजरें जमा लेते हैं, वगैरह-वगैरह। वे सामान्य रूप से जीने और सामान्य रूप से अपने कर्तव्य करने में विफल रहते हैं, लगातार कामुक इच्छाओं के प्रभाव में रहते हैं। यानी, आम परिस्थितियों में जहाँ सामान्य लोग ऐसे मुद्दों में शामिल नहीं होंगे, वे बार-बार शामिल होते हैं। उन्हें अपने लिए अवसर बनाने के लिए किसी विशेष स्थिति या किसी व्यक्ति की जरूरत नहीं पड़ती; ये घटनाएँ बस स्वाभाविक रूप से हो जाती हैं। ऐसी घटनाएँ होने के बाद दुष्परिणाम चाहे कुछ भी हों, लोगों के एक समूह या किसी विशेष व्यक्ति को हमेशा इसकी कीमत चुकाने के लिए मजबूर किया जाता है। वे क्या कीमतें चुकाते हैं? उनके कर्तव्य का निर्वहन प्रभावित होता है; कलीसियाई कार्य में देरी होती है और बाधा आती है; कुछ युवा परेशान हो जाते हैं और प्रलोभन में पड़ जाते हैं और परमेश्वर में विश्वास रखने और अपने कर्तव्य करने में दिलचस्पी खो देते हैं; और यहाँ तक कि कुछ लोगों से उनके कर्तव्य छूट जाते हैं या वे उन्हें छोड़ देते हैं। व्यभिचारी गतिविधियों में लिप्त होने वाले लोग बहुत ही ज्यादा परेशान करने वाले होते हैं। हर मोड़ पर विपरीत लिंग के सदस्य उनके इर्द-गिर्द झुंड बनाए रहते हैं, उनके करीब आ जाते हैं, उनके साथ इश्कबाजी करते हैं और यहाँ तक कि मजाकिया छेड़छाड़ में भी लगे रहते हैं। वैसे तो सारभूत प्रकृति की कोई गंभीर समस्या उत्पन्न नहीं हो सकती है, लेकिन जब परमेश्वर के चुने हुए लोग अपने कर्तव्य करते हैं तो उनकी सामान्य दशाओं को व्यभिचारी लोग गंभीर रूप से बिगाड़ देते हैं। वे जहाँ भी जाते हैं, वहाँ दूसरों के लिए, कार्य के लिए और कलीसिया के लिए मुसीबत और बाधाएँ लेकर आते हैं, यहाँ तक कि कोई भी अवसर मिलने पर वे विपरीत लिंग के उन सदस्यों को जो उन्हें आकर्षक लगते हैं, मोहित करते हैं और उनसे प्रेम संबंध बनाते हैं। यह अत्यधिक परेशानी की बात है। एक बार जब वे किसी के प्रेम में पड़ जाते हैं तो वह व्यक्ति दुर्भाग्य के लिए अभिशप्त हो जाता है, वह अब सामान्य रूप से परमेश्वर में विश्वास रखने या अपने कर्तव्य करने में असमर्थ हो जाता है। इसके दुष्परिणामों की कल्पना करना भी असंभव है। वह व्यक्ति मोहित करने वाले से संपर्क किए बिना या उससे मिले बिना रह ही नहीं पाता है और जिस दौरान वह अपने कर्तव्य करने में व्यस्त रहता है वह शादी करने या घर बसाने में असमर्थ होता है और यह रिश्ता अटूट बना रहता है। अंत में क्या होता है? वह बेहद दर्दनाक कष्ट सहना शुरू कर देता है! अगर वह तब तक कष्ट सहता रहा जब तक कि उसे आपदाओं में दंडित नहीं किया जाता, तो उसके लिए यह पूरी तरह से समाप्त हो जाता है और उसके बचाए जाने की उम्मीद चकनाचूर हो जाती है। कुछ लोग एक बार अपराध करते हैं और काट-छाँट किए जाने पर पश्चात्ताप नहीं करते हैं, लेकिन वे दूसरी या यहाँ तक कि तीसरी बार भी अपराध करते हैं, दो-तीन वर्षों में तीन-चार रिश्ते बना लेते हैं, जो परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए और कलीसियाई जीवन के लिए बाधा बनता है और इससे परमेश्वर के चुने हुए लोग उनसे नफरत करने लगते हैं। यह उन पर एक ऐसा दाग छोड़ जाता है जिसका पछतावा उन्हें जीवन भर रहता है।

कुछ लोग चूँकि थोड़ा-बहुत अच्छे दिखते हैं और उनमें कुछ हद तक लालित्य और कुछ गुण और प्रतिभाएँ हैं या उन्होंने किसी महत्वपूर्ण कार्य की जिम्मेदारी ली है, इसलिए विपरीत लिंग के सदस्य उनसे हमेशा मक्खियों की तरह चिपके रहते हैं, उन्हें घेरे रहते हैं। कुछ लोग उन्हें खाना परोसते हैं, कुछ उनके लिए बिस्तर लगाते हैं, कुछ उनके कपड़े धोते हैं, कुछ उनके लिए स्वास्थ्यवर्धक दवाएँ और सौंदर्य-प्रसाधन खरीदते हैं और उन्हें छोटे-छोटे तोहफे देते हैं, वगैरह-वगैरह। वे सभी आगंतुकों का स्वागत करते हैं, अपने दिल में जानते हैं कि दूसरों का उनके साथ ऐसा व्यवहार करना अनुचित है, लेकिन इसे कभी नहीं ठुकराते हैं, एक ही समय में विपरीत लिंग के कई सदस्यों को मोहित करते हैं। वे लोग उस व्यभिचारी व्यक्ति की सेवा करने के लिए एक दूसरे से होड़ करते हैं, एक दूसरे से मुकाबला करते हैं और जलते हैं, जबकि वह इस भावना का आनंद लेता रहता है, खुद को बहुत ही आकर्षक मानता है। दरअसल, वयस्क लोग पुरुषों और महिलाओं के मामलों को अच्छी तरह से समझते हैं, और यहाँ तक कि कुछ नाबालिग भी इन्हें समझते हैं; सिर्फ बेवकूफ, मंदबुद्धि या मानसिक रूप से बीमार लोग ही इन्हें समझ नहीं पाते हैं। ये लोग विपरीत लिंग के सदस्य की सेवा करने और उसे खुश करने के लिए इतने जबर्दस्त तरीके से मुकाबला क्यों करते हैं? यह सब कुछ मोहित करने की इच्छा से जुड़ा हुआ है, है ना? इसे शब्दों में बयान करने की कोई जरूरत नहीं है; हर किसी को पता है कि क्या चल रहा है। यह एक ऐसी चीज है जिसके बारे में लोग अच्छी तरह से जानते हैं, एक ऐसी चीज है जो स्पष्ट रूप से अनुचित है, फिर भी वह व्यक्ति इससे मना नहीं करता है, बल्कि चुपचाप स्वीकार कर लेता है—इसे क्या कहते हैं? इसे इश्कबाजी कहते हैं। उसे पता है कि यह पुरुषों और महिलाओं के बीच मोहित करने के बारे में है, लेकिन देह की कामुक इच्छाएँ संतुष्ट करने से मिलने वाले रोमांच की खातिर वह मना नहीं करना चाहता है। उसे लगता है कि यह उत्तेजना एक तरह का आनंद है, जो दुनिया के किसी भी स्वादिष्ट भोजन से बेहतर है, इसलिए वह मना नहीं करता है। जब उक्त व्यक्ति मना नहीं करता है तो उसे मोहित करने वाले लोग और भी खुश हो जाते हैं, वे मान लेते हैं वह व्यक्ति उन्हें पसंद करता है और वे मन ही मन स्थिति का आनंद लेते हैं। और वह व्यक्ति सोचता है कि जब तक कोई ठोस संबंध नहीं बना है तब तक इसे कोई गंभीर चीज नहीं मानी जाती है, अविश्वासियों के बीच और भी बदतर व्यभिचार होता है और ज्यादा-से-ज्यादा इसे मोहित करना ही माना जाता है जो कि सामान्य प्रेम संबंध जैसा है। लेकिन क्या प्रेम संबंध ऐसा होना चाहिए? आज एक व्यक्ति के साथ, कल किसी और के साथ, बेतहाशा बार-बार किसी के भी साथ प्रेम संबंध बनाने और मोहित करने में लिप्त होना। ऐसे व्यभिचारी लोग जहाँ भी जाते हैं, अपनी कामुक इच्छाएँ बाहर निकालने, दिखावा करने और मोहित करने में लिप्त होने को प्राथमिकता देते हैं। वे जितने ज्यादा लोगों को मोहित करते हैं, उतनी ही ज्यादा उन्हें खुशी महसूस होती है। अंत में क्या होता है? बार-बार दिखावा करने के बाद कुछ भाई-बहन उनके व्यवहार को पहचान जाते हैं और सामूहिक रूप से ऊँचे स्तर के अगुआओं को एक पत्र लिखते हैं। जाँच से उनके दावे सच साबित हो जाते हैं और व्यभिचारी व्यक्ति को कलीसिया से दूर कर दिया जाता है। तो देखा क्या होता है? क्या परमेश्वर में विश्वास रखने का उनका मार्ग यहीं समाप्त नहीं हो जाता है? उनका परिणाम प्रकट हो जाता है। उनके क्रियाकलाप और व्यवहार, जो लोगों को बर्दाश्त के बाहर लगते हैं, वे परमेश्वर के लिए और भी घिनौने हैं। इन लोगों द्वारा प्रदर्शित व्यवहार न तो लोगों के बीच उचित संबंधों को दर्शाता है, न ही यह सामान्य मनुष्य की जरूरतों को दर्शाता है। उनके क्रियाकलाप सिर्फ एक शब्द से वर्णित किए जा सकते हैं : “व्यभिचार।” व्यभिचार का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है विपरीत लिंग के लोगों के साथ संबंधों में अँधाधुँध लिप्त रहना, अपनी इच्छानुसार दूसरों को गैर-जिम्मेदार तरीके से मोहित करना और विपरीत लिंग के सदस्यों को ललचाना और परेशान करना। यह हवस के साथ खेलना है और ऐसा कीमत या दुष्परिणामों पर विचार किए बिना करना है। अगर अंत में कोई व्यक्ति लालच में आ जाता है और उनके साथ इश्कबाजी करने लगता है तो वे इसे मानने से इनकार कर देते हैं और कहते हैं, “मैं तो यूँ ही मजाक कर रहा था। क्या तुमने इसे गंभीरता से ले लिया? दरअसल मेरा यह मतलब नहीं था; तुम इसका ज्यादा ही मतलब निकाल रहे हो।” क्या यह किसी दुष्ट का लोगों को ललचाना नहीं है? एक व्यक्ति को ललचाने के बाद वे अपने अगले निशाने की तलाश करते हैं, दूसरों को मोहित करते हैं। वे कितने भयानक और दुष्ट हैं! किसी को मोहित करने के बाद वे इसे मानने से इनकार कर देते हैं। अगर कोई ऐसे व्यक्ति द्वारा गुमराह हो जाता है और फँस जाता है तो क्या यह घिनौना नहीं है? (है।) क्या दूसरों को लापरवाही से मोहित करने वाले लोग द्वेषपूर्ण नहीं हैं? (हैं।) परमेश्वर के घर ने शुरू से ही कहा है कि अगर किसी व्यक्ति की शादी की उम्र हो गई है और वह वयस्क है तो परमेश्वर का घर उसके सामान्य प्रेम संबंधों या उसकी शादी करने और सामान्य तरीके से साथ रहकर दिन बिताने का विरोध नहीं करता है और वह उन्हें ऐसा करने की अनुमति देता है और उन्हें इसमें शामिल होने की आजादी देता है। लेकिन कई शर्तें हैं : व्यभिचारी गतिविधियों में लिप्त होने की अनुमति नहीं है; विपरीत लिंग को अँधाधुँध ढंग से मोहित करने और इश्कबाजी करने और यूँ ही परेशान करने की अनुमति नहीं है। परमेश्वर का घर प्रेम संबंध बनाने को प्रतिबंधित नहीं करता है लेकिन यह अँधाधुँध ढंग से मोहित करने की अनुमति नहीं देता है। अँधाधुँध ढंग से मोहित करने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है विपरीत लिंग के किसी सदस्य को परेशान करना और ऐसा करने के बाद यह न मानना कि उन्होंने ऐसा किया है। वे जिन लोगों को परेशान करते हैं वे उनका सच्चा प्यार नहीं हैं; वे लंबे समय के रिश्ते बनाने या शादी करने का इरादा नहीं रखते हैं, बल्कि दूसरे व्यक्ति को सिर्फ मोहित करना, उसके साथ खिलवाड़ करना, उससे मजे लेना, रोमांच की तलाश करना, कई साथियों से रिश्ते बनाना, एक ऐय्याश की तरह व्यवहार करना चाहते हैं—इसे व्यभिचार कहा जाता है। कलीसिया में व्यभिचार की अनुमति नहीं है और अगर ऐसा होता है तो इसमें लिप्त लोगों को कलीसिया से लोगों को बाहर निकालने के सिद्धांतों के अनुसार सँभाला जाना चाहिए। यकीनन, सुसमाचार टीमों में सुसमाचार का उपदेश देने वाले लोगों को ऐसे हालात उत्पन्न करने की अनुमति नहीं है, चाहे वे पूर्णकालिक कर्तव्य वाली कलीसियाओं से हों या साधारण कलीसियाओं से। अगर कोई व्यक्ति दूसरों को अँधाधुँध ढंग से मोहित करने के लिए सुसमाचार का उपदेश देने की आड़ लेता है, सहयोग करने के लिए सिर्फ विपरीत लिंग के सदस्यों को चुनता है या सिर्फ विपरीत लिंग के सदस्यों को ही सुसमाचार का उपदेश देता है और इस तरह अनुचित रिश्ते बनाने के लिए इस मौके का फायदा उठाता है तो इससे परमेश्वर के सुसमाचार कार्य में विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ऐसे लोगों को तुरंत दूर कर देना चाहिए।

विपरीत लिंग के सदस्य ढूँढ़ने और व्यभिचारी गतिविधियों में लिप्त होने के लिए कुछ लोग उम्र की बिल्कुल परवाह नहीं करते हैं और उनकी कोई आयु सीमा नहीं होती है। वे रत्ती भर शर्म के बिना जितना हो सके उतने ज्यादा लोगों को मोहित करने का प्रयास करते हैं। कुछ लोग विपरीत लिंग के सदस्यों को मोहित करके अपनी कामुक इच्छाएँ ही संतुष्ट नहीं करते हैं—वे यह भी माँग करते हैं कि दूसरा पक्ष उनके जीवन-निर्वाह के खर्च का भुगतान करे, उन्हें चीजें खरीदकर दे, वगैरह-वगैरह। अगर तुम्हें ऐसे लोगों का पता चलता है या कोई ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट करता है तो उन्हें तुरंत सँभाला जाना चाहिए। एकमात्र समाधान यही है कि इन लोगों को दूर कर दिया जाए, उन्हें हमेशा के लिए दूर कर दिया जाए। ऐसा इसलिए है क्योंकि जिन लोगों के साथ ऐसे मसले हैं, उनके लिए यह एक अस्थायी समस्या नहीं है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए है जो शादीशुदा हैं—घर में जीवनसाथी होने के बावजूद वे सुसमाचार का उपदेश देने के बहाने विशिष्ट रूप से विपरीत लिंग के लोगों को अपना निशाना बनाते हैं। वे किसी भी तरह का व्यक्ति ढूँढ़ते हैं, चाहे वह अमीर हो या गरीब और अगर उन्हें अपनी पसंद का कोई मिल जाता है तो वे उसके साथ भाग भी सकते हैं, यहाँ तक कि अब सुसमाचार का उपदेश भी नहीं देते हैं—वास्तव में वे अब परमेश्वर में विश्वास रखते ही नहीं हैं। अगर ऐसे लोगों का जल्दी ही पता लगाया जा सके तो उन्हें दूसरा मौका दिए बिना और आगे की निगरानी की जरूरत के बिना सुसमाचार का उपदेश देने वालों की श्रेणी से तुरंत और हमेशा के लिए हटा देना चाहिए। क्या तुम समझ रहे हो? कुछ लोग कहते हैं, “कुछ लोगों के लिए जीवन कठिन है। अगर वे परिवार बनाने के लिए विपरीत लिंग के किसी व्यक्ति को मोहित करते हैं और दूसरा व्यक्ति परमेश्वर में विश्वास रख सकता है और अपने साथी का साथ दे सकता है तो क्या यह दोनों पक्षों के लिए ही एक फायदेमंद स्थिति नहीं होगी?” मैं तुमसे कहता हूँ, ऐसे लोगों को जितनी जल्दी हो सके हटा देना चाहिए; वे इसमें पारिवारिक जीवन के लिए बिल्कुल भी नहीं हैं, बल्कि व्यभिचारी गतिविधियों में लिप्त होने के लिए हैं। मैं इतना निश्चित क्यों हूँ? अगर वे व्यभिचारी गतिविधियों में लिप्त होने वाले प्रकार के नहीं होते तो परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करने के बाद वे इस तरह का व्यवहार बिल्कुल भी जारी नहीं रखते और उन्हें यह घिनौना लगता, विशेष रूप से अगर वे शादीशुदा होते। अभी पूरी दुनिया में व्यभिचारी और दुष्ट प्रवृत्तियाँ चलन में हैं; लोग अपनी हवस में लिप्त रहते हैं और इस बात पर मुकाबला करते हैं कि कौन बिना किसी रोक-टोक के विपरीत लिंग के ज्यादा सदस्यों को मोहित कर सकता है, क्योंकि यह समाज और यह मानवजाति इन कार्यों की निंदा या उपहास नहीं करती है। इसलिए लोग सोचते हैं कि अगर वे व्यभिचारी गतिविधियों में लिप्त होकर और अपनी देह बेचकर पैसे कमा सकते हैं तो यह कौशल या क्षमता की निशानी है। वे इसे गर्व करने की चीज के रूप में देखते हैं। लेकिन परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद इन मामलों पर लोगों के विचार पूरी तरह से बदल जाते हैं। उन्हें देह की कामुक इच्छाओं को सँभालने का सही तरीका मिल जाता है, जिसमें सबसे पहली और सबसे महत्वपूर्ण जो चीज शामिल है वह है संयम। संयम कैसे रखा जा सकता है? लोगों को शर्म से परिचित होना चाहिए और उनमें शर्म की भावना होनी चाहिए। इसे ही सामान्य मानवता कहते हैं। हर किसी में कामुक इच्छाएँ होती हैं, लेकिन लोगों को खुद को संयमित करने का तरीका पता होने की जरूरत है, उनमें शर्म की भावना होने की जरूरत है। भले ही उनके मन में इस तरह के कुछ विचार हों, फिर भी उन्हें खुद को संयमित करना चाहिए क्योंकि वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और उनमें जमीर और विवेक है। उन्हें अपने मन के अनुचित विचारों के साथ बिल्कुल नहीं चलना चाहिए, उन्हें खुली छूट तो बिल्कुल भी नहीं देनी चाहिए। उन्हें इन मुद्दों को हल करने के लिए सत्य खोजना चाहिए। भले ही वे नए विश्वासी हों जो सत्य नहीं समझते हैं, फिर भी उन्हें खुद को मानवीय नैतिकता के सबसे मूलभूत मानकों पर कसना चाहिए। अगर तुममें इस स्तर के संयम की भी कमी है तो तुममें सामान्य मानवता की और सामान्य मानवता के जमीर और विवेक की कमी है। सभी प्रकार के जानवर एक निश्चित व्यवस्था को मानते हैं और इस संबंध में नियमों का पालन करते हैं, लापरवाही से कार्य नहीं करते हैं; मनुष्यों के रूप में लोगों के लापरवाही से कार्य करने की संभावना और भी कम होनी चाहिए और उनमें और ज्यादा संयम होना चाहिए। अगर तुममें इस स्तर के संयम और आत्म-नियंत्रण की भी कमी है तो तुम सत्य खोजने और उसका अभ्यास करने की उम्मीद कैसे कर सकते हो? अगर तुम अपनी दुष्ट हवस को ही हल नहीं कर सकते तो तुम अपने भ्रष्ट स्वभाव कैसे हल कर पाओगे? परमेश्वर का प्रतिरोध करने और उसके साथ विश्वासघात करने की तुम्हारी प्रकृति को हल करना तो और भी असंभव होगा, है ना? (हाँ।) अगर तुम देह की कामुक इच्छाओं को ही सँभाल नहीं पाते हो तो तुम अपने भ्रष्ट स्वभाव हल करने की उम्मीद कैसे कर सकते हो? इसके बारे में सोचो भी मत। तुम इसे हासिल नहीं कर पाओगे।

कुछ लोग सुसमाचार का उपदेश देते समय हमेशा प्रेम संबंध बनाने के अवसर ढूँढ़ते हैं और ऐसी घटनाएँ अक्सर होती रहती हैं। जो लोग अपने उचित कार्यों को नजरअंदाज करते हैं और आदतन प्रेम संबंध बनाते हैं, उन्हें हटा दिया जाता है और सँभाला जाता है, जबकि कभी-कभार अपराध करने वालों को चेतावनी दी जाती है। एक बार जब दुष्ट स्वभावों वाले इन व्यक्तियों को सही परिस्थितियाँ मिल जाती हैं और वे किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जिसे वे प्रेमी मानते हैं तो वे प्रलोभन में पड़ जाते हैं। इस तरह से परमेश्वर में विश्वास रखकर आशीष प्राप्त करने का उनका इरादा उनकी दुष्ट हवस के बीच छूमंतर हो जाता है। जैसे ही वे किसी रूमानी रिश्ते में प्रवेश करते हैं, वे बाकी सभी चीजों को नजरअंदाज कर देते हैं, यहाँ तक कि धन्य होने का अपना इरादा भी छोड़ देते हैं और सिर्फ देह की खुशी का अनुसरण करते हैं। एक या दो अपराधों के बाद वे खुद को थोड़ा दोषी और व्यथित महसूस कर सकते हैं, लेकिन तीन-चार बार अपराध करने के बाद यह व्यभिचार बन जाता है। एक बार जब व्यभिचार शुरू हो जाता है तो उसके बाद वे खुद को और दोषी या व्यथित महसूस नहीं करते हैं क्योंकि शर्म की वह परत जो व्यक्ति की मानवता की निचली रेखा है, उसमें पहले से ही दरार पड़ चुकी होती है। अब वे व्यभिचार को शर्मनाक नहीं मानते हैं और इसलिए इसमें लिप्त रहना जारी रखते हैं। जो लोग व्यभिचार में लिप्त रहना जारी रख सकते हैं, वे विशेष रूप से अपनी कामुक इच्छाओं के वश में रहते हैं, कोई संयम नहीं दिखाते हैं। ऐसे लोगों को कलीसिया में रहने की अनुमति नहीं है और उन्हें दूर कर देना चाहिए; उन्हें खुली छूट मत दो या उन्हें रखने के लिए कोई बहाना मत बनाओ। सुसमाचार का उपदेश देने के लिए परमेश्वर के घर में लोगों की कमी नहीं है; वहाँ सीटें भरने के लिए ऐसे ऐय्याश लोगों की जरूरत नहीं है क्योंकि इससे परमेश्वर के नाम का घोर अपमान होता है। इसलिए सुसमाचार का उपदेश देने वाली टीम में ऐसे व्यक्तियों के बारे में अगर कोई व्यक्ति तुम्हें रिपोर्ट करता है या तुम्हें व्यक्तिगत रूप से उनका पता चलता है तो तुम्हें पता होना चाहिए कि क्या करना है। अगर कुछ नए विश्वासियों के साथ यह मुद्दा है तो तुम लोगों को सबसे पहले इस मुद्दे के संबंध में सत्य की संगति करनी चाहिए, सभी को यह बता देना चाहिए कि व्यभिचार के कृत्य करने वालों के प्रति कलीसिया के सिद्धांत और रवैये क्या हैं। कम-से-कम उन्हें एक शुरुआती चेतावनी दी जानी चाहिए ताकि उन्हें इसमें पड़ने से और सुसमाचार का उपदेश देने को ऐसे व्यवहारों में लिप्त होने के अवसर के रूप में उपयोग करने से रोका जा सके, अंत में प्रभारियों या अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इससे संबंधित सत्य सिद्धांतों पर पहले संगति नहीं करने के लिए दोषी ठहराना चाहिए। इसलिए इससे पहले कि ऐसी घटनाएँ हों, इससे पहले कि कुछ लोग ऐसे व्यक्तियों और मामलों के प्रति परमेश्वर के घर के रवैये के बारे में जानें, जब लोग इन मुद्दों के बारे में अस्पष्ट हों तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उनके साथ सुनिश्चित और स्पष्ट रूप से इन सिद्धांतों के बारे में संगति करनी चाहिए ताकि वे जान जाएँ कि ये मामले किस तरह के व्यवहार और प्रकृति के अंतर्गत आते हैं, और ऐसे मामलों और व्यक्तियों के प्रति परमेश्वर के घर का रवैया क्या है। जब इन सिद्धांतों के बारे में पूरी तरह से संगति कर ली जाए, उसके बाद अगर वे अब भी अपने खुद के रास्ते से चिपके रहते हैं और इन सिद्धांतों को जानने के बावजूद अपने तरीकों पर अड़े रहते हैं तो उन्हें सँभाला जाना चाहिए और उनका निपटान किया जाना चाहिए, उन्हें हटा देना चाहिए। अगर कलीसिया में ऐसे व्यक्ति दिखाई देते हैं जो दूसरों को मोहित करके अक्सर घटनाओं का कारण बनते हैं या विपरीत लिंग के सदस्यों को बार-बार परेशान करते हैं तो निश्चित रूप से उनमें समस्याएँ हैं। भले ही कोई गंभीर मुद्दा नहीं हुआ हो, फिर भी अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इन व्यक्तियों को चेतावनी देनी चाहिए और उन्हें सँभालना चाहिए या उन्हें उन जगहों से हटा देना चाहिए जहाँ लोग अपने कर्तव्य निभाते हैं; गंभीर मामलों में उन्हें सीधे हटा देना चाहिए। इसी के साथ लोगों की मानवता की अभिव्यक्तियों के सातवें पहलू के संबंध में हमारी संगति यहीं समाप्त होती है।

18 दिसंबर 2021

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें