अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (25) खंड तीन
ङ. अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा पाना
इसके बाद हम पाँचवें प्रकार के लोगों के बारे में संगति करेंगे, वे लोग जो अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा सकते। क्या यह गंभीर समस्या है? शाब्दिक दृष्टिकोण से देखें तो अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा पाना कोई बड़ी समस्या नहीं लगती। कुछ लोगों के मन में इन व्यक्तियों का बुरे लोगों के रूप में चरित्र-चित्रण करने के बारे में कुछ विचार हो सकते हैं : “लोगों के पास मुँह हैं तो वे कभी भी और कहीं भी अपना मुँह खोल सकते हैं; वे कभी भी और कहीं भी मामलों पर चर्चा कर सकते हैं। क्या अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा पाने वाले लोगों को उन बुरे लोगों की श्रेणी में रखना थोड़ा ज्यादा नहीं हो जाएगा जिन्हें बाहर निकाल दिया जाना चाहिए?” तुम लोगों का इस बारे में क्या ख्याल है? (अगर वे कलीसियाई जीवन या कलीसिया के कार्य में बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा करते हैं जिससे प्रतिकूल परिणाम सामने आते हैं तो उन्हें भी बाहर निकाल दिया जाना चाहिए।) ऐसे लोगों के साथ समस्या अपनी जबान पर लगाम नहीं लगाने की नहीं है; यह उनकी मानवता की समस्या है। अगर वे भाई-बहनों, कलीसियाई जीवन और कलीसिया के कार्य में बाधाएँ पैदा करते हैं या उनके शब्द विश्वासघात करने और कलीसिया को धोखा देने के बराबर हैं और यहाँ तक कि परमेश्वर के घर और परमेश्वर के नाम को भी शर्मिंदा करते हैं तो ऐसे व्यक्तियों से जरूर निपटा जाना चाहिए। आओ सबसे पहले उन लोगों की अभिव्यक्तियों पर चर्चा करें जो अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा सकते और फिर जानेंगे कि उनसे कैसे निपटना है। क्या जो लोग अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा सकते, उन्हें “बड़बोला” कहा जा सकता है? (हाँ।) ऐसी बात है? क्या यह ऐसे लोगों की विशेषता है? क्या बड़बोला होने का मतलब मूर्ख होना और इस बात से अनजान होना है कि क्या कहना चाहिए या क्या नहीं; यानी परिणामों पर विचार किए बिना जो मन में आए वह बोल देना है? क्या अपनी जबान पर लगाम नहीं लगाने का यही मतलब है? (नहीं।) कुछ लोग बोलने और संवाद करने में अच्छे होते हैं; वे सीधे-सादे, अपेक्षाकृत सरल और ईमानदार होते हैं। वे अक्सर अपने अंदरूनी सोच-विचार, भ्रष्टता के अपने खुलासों, अपने अनुभवों और यहाँ तक कि अपनी गलतियों को भी दूसरों के साथ साझा करते हैं। लेकिन ये व्यक्ति जरूरी नहीं कि मूर्ख हों या अपनी जबान पर लगाम लगाने में असमर्थ हों। ऐसा लगता है कि वे हर चीज के बारे में बात करते हैं और काफी सरल और ईमानदार हैं; मगर जब अत्यंत गंभीर मुद्दों की बात आती है, ऐसे मुद्दे जो परमेश्वर या परमेश्वर के घर को शर्मिंदा कर सकते हैं, या ऐसे मुद्दे जो भाई-बहनों या कलीसिया के साथ उनके विश्वासघात से जुड़े हो सकते हैं, जिससे वे यहूदा बन सकते हैं तो वे एक शब्द भी नहीं बोलते। इसे अपनी जबान पर लगाम लगाना कहते हैं। इसलिए ऐसा नहीं है कि सीधे-सादे लोग, बड़बोले लोग या जो बोलने में अच्छे होते हैं, वे अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा सकते। यहाँ अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा पाने का क्या मतलब है? अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा पाने का मतलब है बिना सिद्धांतों के बोलना और श्रोताओं, अवसर या संदर्भ को ध्यान में रखे बिना, बेपरवाही से बात करना। इसके अलावा इसमें कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने के बारे में पता नहीं होना या इस बात की बिल्कुल भी परवाह नहीं करना कि इससे भाई-बहनों या कलीसियाई जीवन को कोई फायदा होता है या नहीं, और बस कुछ भी बोल देना भी शामिल है। “बस कुछ भी बोल देने” का क्या परिणाम होता है? यह परमेश्वर के घर और भाई-बहनों के हितों के साथ अनजाने में किया गया विश्वासघात है। अपने बेपरवाह भाषण और अपनी जबान पर लगाम लगा पाने में असमर्थता के कारण वे अनजाने में अविश्वासियों को परमेश्वर के घर के खिलाफ फायदा उठाने का मौका देते हैं, अविश्वासियों को कुछ भाई-बहनों का मजाक उड़ाने की अनुमति देते हैं, और अविश्वासियों और परमेश्वर में विश्वास नहीं रखने वाले लोगों को कई ऐसी बातें बता देते हैं जो उन्हें नहीं जाननी चाहिए। इसका नतीजा यह होता है कि ये लोग परमेश्वर के घर के मामलों और कलीसिया के आंतरिक मामलों पर खुलकर टिप्पणी करते हैं और अपमानजनक टिप्पणियाँ करते हैं, और परमेश्वर की निंदा और तिरस्कार करने वाली बातें कहते हैं। वे भाई-बहनों, कलीसिया और परमेश्वर के घर के कार्य के बारे में अफवाहें भी गढ़ सकते हैं जिससे प्रतिकूल परिणाम सामने आते हैं। यह परमेश्वर के घर के कार्य में बाधा डालना है और यह बुरे कर्म के समान है। कुछ व्यक्ति यह जानने और छानबीन करने पर विशेष ध्यान देते हैं कि कलीसिया में अगुआ और कार्यकर्ता कौन हैं; वे उनके परिवार के लोगों के पते, भाई-बहनों की व्यक्तिगत जानकारी, कलीसिया के वित्तीय और लेखांकन कार्य, लेखा कर्मियों और कलीसिया से बहिष्कृत या निष्कासित लोगों की सूची के बारे में जानना चाहते हैं। वे कलीसिया की कार्य व्यवस्थाओं के बारे में जानने पर भी विशेष ध्यान देते हैं। ऐसा व्यवहार अत्यधिक संदिग्ध है और यह संकेत दे सकता है कि वे बड़े लाल अजगर के मुखबिर या जासूस हैं। अगर यह जानकारी अविश्वासी राक्षसों तक पहुँच जाती है, जिससे बड़े लाल अजगर को उनके बारे में पता चल सकता है तो इसके परिणाम अकल्पनीय होंगे। कुछ लोग मूर्खता और अज्ञानता के कारण इस जानकारी को या इसके कुछ हिस्से को अपने अविश्वासी परिवार के सदस्यों के साथ साझा कर सकते हैं, जो फिर इसे फैलाते हैं या बड़े लाल अजगर के एजेंटों को दे देते हैं। इससे जोखिम पैदा हो सकता है और कलीसिया के कार्य में कई परेशानियाँ आ सकती हैं, जिसके अकल्पनीय परिणाम हो सकते हैं। कलीसिया के ये आंतरिक मामले अक्सर कुछ लोगों द्वारा जो बिना किसी झिझक के सब कुछ बता देते हैं, अनजाने में परिवार के अविश्वासी सदस्यों के साथ साझा किए जाते हैं। और यहाँ तक कि वे अपने अविश्वासी रिश्तेदारों और दोस्तों को भी सब कुछ बता देते हैं। इससे कलीसिया के आंतरिक मामले उनके शब्दों के जरिये बाहरी दुनिया में निरंतर फैलते जाते हैं। इस तरह से जानकारी लीक होने के क्या परिणाम होते हैं? उनके परिवार के कई अविश्वासी सदस्यों, रिश्तेदारों और दोस्तों को कलीसिया के कई आंतरिक मामलों या भाई-बहनों के घर के पते, उनके असली नाम और निजी वैवाहिक मामलों के बारे में पता चल जाता है, जिनके बारे में शायद भाई-बहनों को खुद भी नहीं पता होगा। कलीसिया के ये मामले लीक कैसे हो जाते हैं? अविश्वासियों को उनके बारे में कैसे पता चलता है? कलीसिया के भीतर “संवाददाता” होते हैं! ऐसे लोगों को क्या कहा जाता है? (वे जो अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा सकते।) बिल्कुल सही। वे कलीसिया के दैनिक जीवन में होने वाली हर बात या भाई-बहनों से जुड़ी बातों को अपने परिवार के अविश्वासी सदस्यों के साथ साझा करते हैं, जैसे कि किसी बहन का तलाक हो जाना, किसी दूसरी बहन के पति का कारोबार में पैसा गँवा देना या उसका कोई अवज्ञाकारी बेटा होना, या किसी भाई या बहन का कोई घर खरीदना वगैरह। वे उन भाई-बहनों के बारे में भी बात करते हैं जिन्हें बड़े लाल अजगर ने गिरफ्तार कर लिया था और वे यहूदा बन गए थे या फिर जो अपनी गवाही में दृढ़ रहे, और वे यह भी जिक्र करते हैं कि कलीसिया के अगुआओं ने उनके साथ काट-छाँट की। घर पर उनकी बातचीत पूरी तरह से इन विषयों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। यहाँ तक कि उनके परिवार के सदस्य उन्हें अगुआओं, भाई-बहनों या कलीसिया में किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने में मदद करने की सलाह देते हैं और रणनीतियाँ सुझाते हैं जो उनके साथ अच्छे से नहीं रहता है, उनके लिए चुनौती खड़ी करता है या उन्हें उजागर करता है। भाई-बहनों के बीच सभाओं में, ऐसे व्यक्ति विशेष रूप से आज्ञाकारी और अच्छे व्यवहार वाले दिखाई देते हैं, कम बोलते हैं, बातचीत करने में अच्छे नहीं होते, अपने भ्रष्ट स्वभावों के बारे में कभी बात नहीं करते, अपनी अनुभवजन्य समझ के बारे में कभी संगति नहीं करते और शायद ही कभी प्रार्थना करते हों। वे भाई-बहनों के साथ सतर्कता से पेश आते हैं जबकि अपने परिवार के अविश्वासी सदस्यों के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं मानो वे परमेश्वर के घर के सदस्य हों। वे अपने परिवार के सदस्यों को कलीसिया के बारे में बिना किसी चूक के सारी जानकारी देते हैं, उनके साथ सब कुछ साझा करते हैं, यहाँ तक कि कलीसिया द्वारा परमेश्वर के वचन की पुस्तकों की छपाई, कलीसिया में किसके पास क्या प्रतिभाएँ हैं, और भी बहुत कुछ—इन सभी चीजों पर उनके परिवार के सदस्यों और उन लोगों के साथ मिलकर चर्चा की जाती है जो परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं। ऐसा करने के पीछे उनका उद्देश्य चाहे कुछ भी हो, अंतिम परिणाम यह होता है कि वे कलीसिया के कार्य और भाई-बहनों को धोखा देते हैं। उन्हें कलीसिया के हर एक प्रमुख सदस्य की स्थिति के बारे में पता होता है। बेशक, ये लोग उनकी पीठ पीछे की चर्चाओं और आलोचनाओं के विषय भी होते हैं और यहाँ तक कि वे गुप्त रूप से धोखा देने वाले भी बन सकते हैं। अगर किसी के साथ उनका अच्छा संबंध है तो वे अपने परिवार के सामने उस व्यक्ति की लगातार तारीफ करते हैं। इसके विपरीत, अगर किसी के साथ उनका खराब संबंध है तो वे अपने परिवार के सामने उस व्यक्ति को लगातार गाली देते हैं, यहाँ तक कि अपने परिवार को भी गाली देने में शामिल कर लेते हैं, भाई-बहनों को बेवकूफ कहते हैं या फिर कहते हैं कि वे अच्छे नहीं हैं। ये व्यक्ति भाई-बहनों को उन अपमानजनक शब्दों से अपमानित करते हैं जिनका इस्तेमाल अविश्वासी करते हैं। वे अविश्वासियों के समान हैं; वे पूरी तरह से छद्म-विश्वासी हैं; वे जरा भी अच्छे लोग नहीं हैं और ऐसे व्यक्तियों को तुरंत बाहर निकाल दिया जाना चाहिए।
बड़े लाल अजगर के देश में परमेश्वर में विश्वास रखने वाले हर एक व्यक्ति की जानकारी गोपनीय रखी जानी चाहिए; यहाँ तक कि जब परमेश्वर के चुने हुए लोग विदेश चले जाते हैं तब भी उनकी जानकारी निजी रहनी चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि बड़े लाल अजगर के जासूस दुनिया के हर देश में फैले हुए हैं, जो परमेश्वर में विश्वास रखने वालों की जानकारी इकठ्ठा करने के विशेष लक्ष्य से हर जगह घुसपैठ करते रहते हैं। चीन की मुख्य भूमि में परमेश्वर का अनुसरण करने वाले भाई-बहनों के लिए स्थिति बहुत कठिन और खतरनाक है। यहाँ तक कि जब वे विदेश चले जाते हैं तब भी कुछ हद तक खतरा बना रहता है। अगर बड़े लाल अजगर के जासूस उनकी जानकारी इकठ्ठा करते हैं तो जहाँ एक ओर उनके प्रत्यर्पण का जोखिम होगा, वहीं दूसरी ओर कम से कम चीन की मुख्य भूमि में उनके परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों को फँसाया जा सकता है। सुरक्षा कारणों से और व्यक्तियों के सम्मान के लिए सभी को भाई-बहनों की व्यक्तिगत जानकारी गोपनीय रखनी चाहिए और इसे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखने वालों के साथ साझा नहीं करनी चाहिए। जो लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हैं उनके बीच भी, व्यक्ति की सहमति के बिना दूसरों के सामने उसकी व्यक्तिगत जानकारी का यूँ ही खुलासा नहीं करना चाहिए। भाई-बहनों, कलीसिया के कार्य, किसी व्यक्ति द्वारा निभाए जाने वाले कर्तव्यों, संगति में साझा किए गए अनुभवों या इस तरह की अन्य जानकारी को अपने खाली समय में अविश्वासियों के साथ बातचीत का विषय बनाना बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जा सकता। उनके साथ इन मामलों पर चर्चा करने के क्या परिणाम होते हैं? क्या कोई सकारात्मक या रचनात्मक नतीजा होता है? (नहीं।) इस तरह की चर्चाओं का परिणाम यह होता है कि ये अविश्वासी राक्षस उनका लाभ उठाते हैं, मजाक उड़ाते हैं, उनकी आलोचना करते हैं और यहाँ तक कि उन्हें गाली देते हैं और बदनाम भी करते हैं। क्या यह अच्छा है? (नहीं।) तुम लोगों को जाँच करनी चाहिए कि क्या कलीसिया के भीतर ऐसी गुप्त मंशा रखने वाले व्यक्ति हैं जो कलीसिया के कार्य और कलीसियाई जीवन की वास्तविक स्थितियों जैसी जानकारी के बारे में अविश्वासियों और अपने परिवार के अविश्वासी सदस्यों के साथ बेझिझक चर्चा करते हैं—साथ ही इन बातों की चर्चा भी करते हैं कि कौन वास्तव में परमेश्वर में विश्वास रखता है, कौन सत्य का अनुसरण करता है, कौन अपने कर्तव्य निभाता है, कौन अपने कर्तव्य नहीं निभाता, कौन अक्सर नकारात्मक रहता है, किसकी आस्था भ्रमित है और यहाँ तक कि भाई-बहनों की व्यक्तिगत जानकारी और उनकी परिस्थितियों के बारे में भी चर्चा करते हैं। ऐसे व्यक्तियों की जाँच करो। कुछ ऐसे मामले हैं जिनके बारे में कलीसिया के भीतर के लोगों को भी नहीं जानना चाहिए, फिर भी ऐसे व्यक्तियों के परिवार के अविश्वासी सदस्य कलीसिया के लोगों से ज्यादा इन मामलों के बारे में जानते हैं—और उनके बारे में ज्यादा स्पष्टता से जानते हैं। ऐसा कैसे होता है? यह कलीसिया के अंदर के मौजूद किसी मुखबिर का “योगदान” है। यह मुखबिर अपने परिवार के सदस्यों के साथ इस तरह पेश आते हैं मानो वे कलीसिया के अगुआ हों; कलीसिया में वे जो कुछ भी देखते हैं उनके बारे में अपने “अगुआओं” को रिपोर्ट करते हैं ताकि वे अपने परिवार की चापलूसी करते हुए उनके साथ अपने भावनात्मक संबंध को मजबूत बना सकें। यह स्पष्ट है कि कलीसिया के इन सभी मामलों में उन मुखबिरों ने विश्वासघात किया है जो अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा सकते। वे भाई-बहनों का सम्मान नहीं करते, न ही वे परमेश्वर के घर के कार्य और उसके हितों की रक्षा करते हैं। वे परमेश्वर के घर और कलीसिया को समाज या सार्वजनिक स्थान की तरह मानते हैं, भाई-बहनों पर लापरवाही से टिप्पणी और उनकी आलोचना करते हैं मानो वे अविश्वासी हों, यहाँ तक कि वे छद्म-विश्वासियों और अविश्वासियों के साथ मिलकर भाई-बहनों की खुलेआम आलोचना करते हैं। यही नहीं, कुछ लोग अगुआओं द्वारा काट-छाँट किए जाने के बाद या भाई-बहनों के साथ मतभेद, विवाद और असहमति के बाद घर जाकर तमाशा खड़ा करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि उनके परिवार को इसके बारे में सब पता चल जाए। इसका परिणाम यह होता है कि उनका परिवार कलीसिया को गिराने और धोखा देने के मकसद से अगुआओं या भाई-बहनों से प्रतिशोध लेना चाहता है। क्या यह अच्छी घटना है? (नहीं।) उनका कलीसिया के आंतरिक मामलों को परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ बेझिझक साझा करना और इस तरह की बातें करना कि कितने भाई-बहन कलीसियाई जीवन जीते हैं, और हर कोई कौन-सा कर्तव्य निभाता है—वे किस तरह के दुष्ट हैं? क्या वे सच्चे विश्वासी हैं? (नहीं।) क्या वे परमेश्वर के घर के सदस्य हैं? क्या उन्हें भाई या बहन कहा जा सकता है? (नहीं।) ऐसे मुखबिरों और छिपे हुए गद्दारों को कलीसिया के भीतर रखना, चाहे अतीत में, वर्तमान में या भविष्य में, परमेश्वर के घर और भाई-बहनों के लिए बहुत बड़ी परेशानी खड़ी करेगा। भले ही वे कलीसियाई जीवन में कई बुरे कर्म करते नहीं दिखते हों फिर भी परमेश्वर के घर के बारे में अविश्वासियों, शैतानों और राक्षसों को गुप्त रूप से विभिन्न जानकारी देने के परिणाम और प्रभाव बेहद हानिकारक हैं! क्या ऐसे घिनौने लोगों को कलीसिया में रहने दिया जाना चाहिए? (नहीं।) क्या वे परमेश्वर के घर के सदस्य कहलाने लायक हैं? क्या वे भाई-बहनों के समान व्यवहार किए जाने लायक हैं? (नहीं।) ऐसे लोगों से कैसे निपटा जाना चाहिए? (उन्हें जितनी जल्दी हो सके बाहर निकाल देना चाहिए।) उन्हें जितनी जल्दी हो सके बाहर निकाल देना चाहिए! उन्हें बाहर निकालो! उन्हें बाहर निकालने का यही कारण है : “तुम अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा सकते, तुम यह पहचानने में विफल हो जाते हो कि तुम्हारे लिए क्या अच्छा है, जो हाथ तुम्हें खाना खिलाता है तुम उसी को काटते हो। तुम परमेश्वर में विश्वास रखकर उसके अनुग्रह का आनंद लेते हो और साथ ही भाई-बहनों की मदद, प्रेम, धैर्य और देखरेख का भी आनंद लेते हो फिर भी तुम इस तरह से भाई-बहनों और कलीसिया को धोखा देते हो। तुम बिल्कुल भी अच्छे नहीं हो; दफा हो जाओ!” भाई-बहनों के मामले, कलीसिया के मामले और परमेश्वर के घर के किसी भी कार्य के बारे में अविश्वासियों को नहीं बताना चाहिए, न ही बेकार की बातचीत के विषय के रूप में उनका इस्तेमाल करना चाहिए। वे इसके लायक नहीं हैं! जो कोई भी ऐसी जानकारी फैलाता है, वह घृणा का पात्र बन जाता है, जिसे कलीसिया को बाहर निकाल देना चाहिए और भाई-बहनों को उन्हें ठुकरा देना चाहिए। भाई-बहनों और कलीसिया को धोखा देने और अनौपचारिक बातचीत में कलीसिया के अंदरूनी मामलों को अविश्वासियों के साथ साझा करने के उनके क्रियाकलापों के आधार पर, वे निस्संदेह गद्दार, मुखबिर और बुरे लोग हैं जिन्हें कलीसिया से बाहर निकाल दिया जाना चाहिए। भाई-बहन कलीसिया के भीतर किए जाने वाले किसी भी कार्य के बारे में जरूरत के मुताबिक संगति और चर्चा करने के लिए स्वतंत्र हैं—जैसे कि किसे बाहर निकाला जाना चाहिए या कुछ घटनाओं का घटित होना—मगर इसे अविश्वासियों के साथ बिल्कुल भी साझा नहीं किया जाना चाहिए, न ही इसके बारे में अविश्वासियों के परिवार के सदस्यों से बात करनी चाहिए। खास तौर पर, छोटे आध्यात्मिक कद के नए भाई-बहनों की व्यक्तिगत और पारिवारिक परिस्थितियों के बारे में बाहरी लोगों को नहीं बताना चाहिए। अगर तुम्हें इसे अपने तक सीमित रखना मुश्किल लगता है तो तुम्हें परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, आत्म-संयम सीखने के लिए उस पर भरोसा करना चाहिए और कुछ सार्थक गतिविधियों में शामिल होना चाहिए। अगर तुम वास्तव में खुद पर काबू नहीं रख सकते तो तुम्हें इसका समाधान खोजने के लिए सबसे पहले कलीसिया में रिपोर्ट करनी चाहिए ताकि प्रतिकूल परिणामों को रोका जा सके क्योंकि ऐसी जानकारी फैलाने से समस्याएँ पैदा होने की सबसे अधिक संभावना होती है। उदाहरण के लिए, किसी का निजी फोन नंबर, घर का पता, कोई व्यक्ति कितने सालों से परमेश्वर में विश्वास रख रहा है, उसका व्यक्तिगत परिवार और वैवाहिक स्थिति जैसी चीजें संवेदनशील विषय हैं। इनका सत्य या जीवन प्रवेश से कोई लेना-देना नहीं है; वे व्यक्तिगत गोपनीयता से संबंधित हैं। केवल एजेंट और मुखबिर ही इन मामलों की विशेष रूप से जाँच-पड़ताल करते हैं। अगर तुम्हें ऐसे मामलों के बारे में जानने और इन्हें फैलाने में मजा आता है तो यह किस तरह के स्वभाव का संकेत देता है? यह कुछ हद तक घिनौना है! सत्य का अनुसरण करने के बजाय गप्पे लड़ाने पर ध्यान देना, मुखबिर या जासूस के रूप में काम करना और बड़े लाल अजगर की सेवा करना—क्या यह घिनौना और बहुत ही दुष्ट नहीं है? जो कोई भी विशेष रूप से संवेदनशील विषयों और दूसरों के निजी मामलों के बारे में पूछताछ और छानबीन करता है, और बेपरवाही से ऐसी जानकारी फैलाता है, वह गुप्त मंशाएँ रखने वाला और छद्म-अविश्वासी है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों को ऐसे व्यक्तियों से विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए। अगर ऐसे लोग पश्चात्ताप नहीं करते हैं तो उनका कलीसियाई जीवन रोक दिया जाना चाहिए क्योंकि भाई-बहनों को धोखा देना सबसे अनैतिक, घृणित और शर्मनाक काम है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों को ऐसे व्यक्तियों से दूर रहना चाहिए। कलीसियाई जीवन में लोगों को इन मामलों के बारे में पूछताछ करने और इनकी चर्चा करने से रोका जाना चाहिए क्योंकि उनका सत्य की संगति से कोई लेना-देना नहीं है और उनके बारे में बात करने से दूसरों को कोई लाभ नहीं होता।
परमेश्वर के घर में विभिन्न प्रशासनिक आदेश और विनियम हैं जिनका परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पालन करना चाहिए। अन्य बातों के साथ ही कलीसिया के आंतरिक मामले, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के कार्मिक समायोजन, कलीसिया की स्वच्छता का कार्य और ऊपरवाले की व्यवस्थाएँ जैसी बातें कलीसिया के भीतर लापरवाही से नहीं फैलाई जानी चाहिए ताकि छद्म-विश्वासियों और बुरे लोगों को शैतान के सामने विश्वासघात करने से रोका जा सके। इसका कारण यह है कि परमेश्वर का घर समाज से अलग है; परमेश्वर चाहता है कि लोग सत्य का अनुसरण करें, परमेश्वर का वचन ज्यादा पढ़ें, ज्यादा चिंतन और संगति करें। केवल परमेश्वर के वचनों का प्रचार करने और परमेश्वर के लिए गवाही देने से ही उचित माहौल बन सकता है; केवल ज्यादा से ज्यादा अनुभवजन्य गवाहियाँ साझा करने से ही ऐसा माहौल बन सकता है। इसके अलावा, परमेश्वर के घर में बहुत-से ऐसे नए विश्वासी हैं जो केवल थोड़े समय पहले से ही परमेश्वर में विश्वास रख रहे हैं। जाहिर है कि कुछ छद्म-विश्वासियों का अभी तक खुलासा नहीं हुआ है। विशेष रूप से, विश्वास के पहले पाँच या दस साल लोगों की वास्तविकता प्रकट करने का समय होता है; इस दौरान यह निश्चित नहीं होता कि कौन दृढ़ रह सकता है और कौन नहीं, और न ही यह पता होता है कि कलीसिया में बाधा डालने में सक्षम कितने बुरे लोग अभी भी मौजूद हैं। हमेशा व्यक्तिगत जानकारी और इस तरह के बाहरी मामलों को, साथ ही सत्य की संगति से असंबंधित मामलों को बेतहाशा फैलाने से कई प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं। उदाहरण के लिए कोई पूछ सकता है, “यह अगुआ कहाँ से आया है? वह कहाँ रहता है?” परमेश्वर के चुने हुए लोगों को यह संवेदनशील जानकारी जानने की कोई जरूरत नहीं है। कोई और पूछ सकता है, “परमेश्वर के घर को परमेश्वर के वचनों की एक पुस्तक छापने में कितना खर्च आता है?” क्या यह जानना उपयोगी है? (नहीं।) क्या छपाई के खर्चे का तुमसे कोई लेना-देना है? क्या तुमसे इसके लिए पैसे लिए गए हैं? इसका तुमसे कोई नाता नहीं लगता, है ना? कुछ लोग पूछ सकते हैं, “अभी परमेश्वर के घर में उच्च-स्तर के अगुआ कौन लोग हैं?” अगर वे सीधे तौर पर तुम्हारी अगुआई नहीं कर रहे हैं तो क्या इस बारे में नहीं जानना तुम्हें प्रभावित करता है? (नहीं।) चीन की मुख्य भूमि में इन चीजों को जानना एक समस्या हो सकती है। अगर तुम बड़े लाल अजगर द्वारा पकड़े जाते हो और वह तुम्हें गंभीर यातना देता है तब अगर तुम इन बातों को नहीं जानते हो तो चाहे वह तुम्हें कैसे भी मारे-पीटे, तुम कुछ भी नहीं बता पाओगे और इसलिए तुम यहूदा नहीं बनोगे। लेकिन अगर तुम्हें जानकारी होगी और तुम उनकी भयंकर मार-पीट को नहीं सह पाते हो तो तुम अपना मुँह खोलकर यहूदा बन सकते हो। उस समय तुम सोच सकते हो, “फिर मैंने बिना सोचे-समझे वो सवाल क्यों पूछे? इनके बारे में नहीं जानना बेहतर होता। अगर मुझे पीट-पीटकर मार भी दिया जाए तो भी मैं उन बातों से अनजान रहता; अगर मैं जवाब देना भी चाहता तो भी कोई जवाब नहीं दे पाता। उस स्थिति में मैं यहूदा नहीं बनता। मैंने अब अपना सबक सीख लिया है; सत्य से असंबंधित इन मामलों के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानना ही सबसे अच्छा है। ऐसी चीजों के बारे में पूछताछ करने से कोई फायदा नहीं है; इनके बारे में नहीं जानना ही बेहतर है।” और कुछ अन्य लोग पूछ सकते हैं, “परमेश्वर के घर में ऐसी कितनी टीमें हैं जो विशेषज्ञता वाले काम कर रही हैं?” इससे तुम्हारा क्या लेना-देना है? बस वही काम करो जो तुम्हारी टीम को सौंपा गया है। इस बारे में नहीं जानने से तुम्हारे अपने कर्तव्य को सामान्य रूप से करने, अपनी आस्था में सत्य का अनुसरण करने या कलीसियाई जीवन जीने की तुम्हारी क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ता; इससे कुछ भी प्रभावित नहीं होता है। इसके बारे में नहीं जानने से सत्य का अनुसरण करने या विश्वासी के रूप में उद्धार प्राप्त करने में तुम्हें कोई बाधा नहीं आती तो फिर पूछने की क्या जरूरत है? “क्या ज्यादातर भाई-बहन शहरी इलाकों से हैं या ग्रामीण इलाकों से? क्या वे शिक्षित हैं या अशिक्षित?” क्या ये सब जानना उपयोगी है? (नहीं।) क्या हुआ अगर वे सभी ग्रामीण इलाकों से हैं? और क्या हुआ अगर वे सभी शहरों से हैं? इसका सत्य से कोई लेना-देना नहीं है। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “सुसमाचार कार्य अब कैसे फैल रहा है?” इसके बारे में थोड़ी पूछताछ करना ठीक है मगर कुछ लोग अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए विस्तार से पूछते हैं कि सुसमाचार कार्य कितने देशों में फैल चुका है, जो अनावश्यक है। अगर उन्हें यह पता भी हो तो इसका उन पर क्या प्रभाव होगा? ऐसी जानकारी होने से क्या लाभ होगा? अगर तुम्हारे पास सत्य वास्तविकता नहीं है तो इस बारे में जानने के बाद भी नहीं रहेगी; यह ज्ञान तुम्हें अपने कर्तव्यों को ठीक से निभाने में या तुम्हारे जीवन प्रवेश में कोई सहायता नहीं करेगा। कुछ सामान्य मामलों के बारे में पूछताछ नहीं करना ही ठीक है; वास्तव में इनके बारे में नहीं जानना ही बेहतर है। बहुत ज्यादा जानना एक बोझ है। अगर ऐसी जानकारी बाहर फैल जाती है तो यह एक समस्या और अपराध बन जाती है। इन बातों को जानना अच्छा नहीं है : जितना ज्यादा तुम जानोगे, उतनी ही ज्यादा तुम्हारे लिए मुसीबत हो सकती है। जो लोग सत्य समझते हैं वे जानते हैं कि क्या कहा जाना चाहिए और क्या नहीं कहा जाना चाहिए। भ्रमित लोग जिनमें आध्यात्मिक समझ की कमी होती है, बात करते समय अंदरूनी और बाहरी लोगों के बीच भेद करने में विफल होते हैं, वे केवल बकवास करते हैं। इसलिए इन मामलों के बारे में कलीसिया के उन लोगों को नहीं बताया जाना चाहिए जो सत्य नहीं समझते। इन बातों को जानने से किसी भी तरह का लाभ नहीं होता है। एक तो ये लोग समस्याएँ सुलझाने में मदद नहीं कर सकते। दूसरा, ये कलीसिया के कार्य की रक्षा नहीं कर सकते। और तीसरा, उन्हें परमेश्वर के घर के बारे में अच्छी बातें कहने की कोई जरूरत नहीं है। परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं और परमेश्वर के सभी कार्य धार्मिक हैं—क्या उन छद्म-विश्वासियों और अविश्वासियों से चापलूसी और खुशामद करवाने की कोई जरूरत है जिनमें आध्यात्मिक समझ की कमी है? बिल्कुल नहीं। भले ही पूरे संसार में एक भी प्राणी परमेश्वर का अनुसरण न करे या उसकी आराधना न करे, परमेश्वर का दर्जा और सार अपरिवर्तित रहेगा। परमेश्वर परमेश्वर है, सदा-सर्वदा अप्रभावित, परिस्थितियों में किसी भी बदलाव से अपरिवर्तित। परमेश्वर की पहचान और दर्जा सदा के लिए अपरिवर्तनीय है। परमेश्वर में विश्वास रखने वालों को ये सत्य समझने चाहिए। वे छद्म-विश्वासी और अविश्वासी लोग अंदरूनी और बाहरी लोगों के बीच भेद किए बिना बोलते और काम करते हैं—क्या उनका बहुत ज्यादा जानना परमेश्वर के घर के कार्य के लिए फायदेमंद है? क्या उनका परमेश्वर के घर के कार्य के बारे में जानना जरूरी है? वे यह जानकारी पाने के लायक नहीं हैं! कुछ लोग पूछ सकते हैं, “क्या ये सभी मामले रहस्य हैं और इसलिए इन्हें जाना नहीं जा सकता?” इस मुकाम तक परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद, क्या तुम लोगों को लगता है कि इन मामलों में कोई रहस्य है? (नहीं।) मगर परमेश्वर के चुने हुए लोगों में ईमानदारी और गरिमा होती है; उन्हें अविश्वासियों द्वारा चर्चा या उपहास का विषय बिल्कुल नहीं बनाया जाना चाहिए। परमेश्वर का घर, कलीसिया और भाई-बहन, चाहे समूह में हों या व्यक्तिगत रूप से, सभी में गरिमा होती है; वे सभी सकारात्मक हैं और किसी को भी उन्हें दूषित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। जो कोई भी इस तरह से काम करता है जिससे शैतानों और राक्षसों को मनमाने ढंग से परमेश्वर के घर की प्रतिष्ठा को दूषित करने और लापरवाही से उसे बदनाम करने या नुकसान पहुँचाने या भाई-बहनों की प्रतिष्ठा को चोट पहुँचाने का मौका मिलता है, तो वह शापित है! इसलिए कलीसिया उन लोगों की मौजूदगी की बिल्कुल भी अनुमति नहीं देती है जो अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा सकते। उनकी पहचान होते ही उन्हें बाहर निकाल दिया जाना चाहिए! क्या यह नजरिया सिद्धांतों के अनुरूप है? (बिल्कुल है।)
कुछ लोग भाई-बहनों से बात करते समय, संवाद करते समय, उनसे मिलते-जुलते या संपर्क करते समय खास तौर पर सावधानी और सतर्कता बरतते हैं मगर घर पहुँचते ही वे बड़बोले हो जाते हैं, सब कुछ उगल देते हैं, यहाँ तक कि भाई-बहनों की व्यक्तिगत जानकारी भी जिससे उनके परिवार के अविश्वासी सदस्य जो आस्था नहीं रखते हैं और जो केवल नाममात्र का विश्वास करते हैं, उन्हें कलीसिया के मामलों के बारे में बहुत कुछ पता चल जाता है। ऐसा व्यक्ति एक मुखबिर, एक गद्दार—एक यहूदा—है और ठीक उसी तरह का व्यक्ति है जिसे कलीसिया को बाहर निकाल देना चाहिए। वह जितने समय तक कलीसिया में रहेगा, भाई-बहनों के बारे में उसे उतनी ही ज्यादा जानकारी मिलेगी, वह उतना ही ज्यादा विश्वासघात करेगा और अविश्वासियों के पास मौके का फायदा उठाने और अपमान करने के लिए उतने ही ज्यादा मामले होंगे। अगर तुम्हें इस बात का डर नहीं है कि ऐसा व्यक्ति विश्वासघात करके यह जानकारी अविश्वासियों को दे देगा तो उसे कलीसिया में रहने दो; अगर तुम नहीं चाहते कि तुम्हारी व्यक्तिगत जानकारी और कलीसिया के आंतरिक मामले उसके मुँह से फैलें तो तुम्हें इस मुखबिर को जल्द से जल्द बाहर निकाल देना चाहिए। क्या यह उचित है? (हाँ।) ऐसे व्यक्तियों के प्रति कोई नरमी नहीं दिखाई जानी चाहिए; उनके मन में कोई अच्छे इरादे नहीं होते और वे खुद भी कुछ अच्छे नहीं होते। ऐसे लोग उन दो प्रकार के लोगों की तुलना में कैसे हैं जिनका पहले जिक्र किया गया है, जो प्रतिशोध की तरफ झुके होते हैं और जो स्वच्छंद और असंयमित होते हैं? ये बेहतर हैं या बदतर? (बदतर।) ये व्यक्ति शायद अपने कर्तव्य भी निभा सकते हैं, थोड़ी-बहुत मेहनत कर सकते हैं और थोड़ी कठिनाई भी झेल सकते हैं; परमेश्वर का घर उनसे जो कुछ भी करने को कहता है वे वही कर सकते हैं और इनकार नहीं करते, मगर एक समस्या है : वे अविश्वासियों को परमेश्वर के घर के बारे में सब कुछ बता देते हैं। वे हर दिन एक गद्दार, एक मुखबिर की भूमिका निभाते हैं। सिर्फ इसी कारण से कलीसिया उन्हें बर्दाश्त नहीं कर सकती और कलीसिया को उन्हें बाहर निकाल देना चाहिए। समझ रहे हो? (हाँ।) चाहे वे कलीसिया के भीतर खुश हों या नाखुश, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन उन्हें भड़काता है, कौन उनके साथ मिल-जुलकर रहता है, उन्हें कलीसिया अगुआ बनाया जाता है या बर्खास्त किया जाता है—चाहे कुछ भी हो, उन्हें हमेशा अपने परिवार के अविश्वासी सदस्यों के साथ हर जानकारी साझा करनी ही है। वे सुनिश्चित करते हैं कि उनके परिवार के अविश्वासी सदस्यों और अविश्वासियों को तुरंत सूचित किया जाए और वे कलीसिया की आंतरिक स्थिति को तुरंत समझें। ऐसे व्यक्तियों के लिए तुम्हें बिल्कुल भी कोई नरमी या दया नहीं दिखानी चाहिए; जैसे ही ऐसे किसी व्यक्ति का पता चले उसे बाहर निकाल दो। यह तरीका कैसा है? (उचित है।) क्या इस तरह से काम करना निर्दयता है? (नहीं।) यह निर्दयता नहीं है। तुम उनके साथ भाई-बहनों जैसा व्यवहार करते हो मगर वे परमेश्वर के घर के हितों या भाई-बहनों के हितों की बिल्कुल भी रक्षा नहीं करते हैं। इसके बजाय वे हर मोड़ पर परमेश्वर के घर और भाई-बहनों के हितों के साथ गद्दारी करते हैं। तुम उन्हें अपना परिवार मानते हो मगर क्या वे तुम्हें अपना परिवार मानते हैं? (नहीं।) तो फिर उनके प्रति नरमी मत दिखाओ; अगर उन्हें बाहर निकालने की जरूरत है तो बाहर निकाल दो। अब तक क्या तुम लोगों का सामना ऐसे व्यक्तियों से हुआ है? (हाँ। उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को भाई-बहनों के बारे में सब कुछ बता दिया और कभी-कभी वे कलीसिया के भीतर के कुछ विशेष मामलों और विशिष्ट व्यवस्थाओं के बारे में मौका मिलते ही अपने परिवार के सदस्यों को सूचित कर देते थे। फिर उनके परिवार के सदस्य कलीसिया की पीठ पीछे कलीसिया के बारे में गपशप करने के लिए मसाला जुटा लेते थे।) क्या ऐसे व्यक्तियों को बाहर निकाल दिया गया? (हाँ।) बाहर निकाले जाने के बाद क्या उन्होंने शिकायत की? उन्हें यह अनुचित लग सकता है क्योंकि वे सोचते हैं, “मैंने तो कुछ भी नहीं किया; यह प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन नहीं है, न ही मैंने गड़बड़ियाँ या बाधाएँ पैदा की, तो मुझे क्यों बाहर निकाला गया?” क्या तुम लोगों को लगता है कि उनके क्रियाकलापों की प्रकृति गड़बड़ियाँ या और बाधाएँ पैदा करने से ज्यादा गंभीर है? (हाँ।) क्या ऐसे लोगों को छुटकारा दिलाया जा सकता है? क्या उनके लिए बदलना आसान है? (नहीं।) तुम ऐसा क्यों कहते हो कि यह आसान नहीं होगा? कौन-से पहलू से यह पता चलता है कि उनके लिए बदलना मुश्किल है? (वे परमेश्वर के घर का हिस्सा नहीं हैं, वे भाई या बहन नहीं हैं; उनमें छद्म-विश्वासियों और अविश्वासियों का सार है।) यही उनका सार है। तो तुम यह कैसे बता सकते हो कि वे अविश्वासी और छद्म-विश्वासी हैं? (कलीसिया में उनकी जो भी भावनाएँ होती हैं, वे अपने परिवार के सामने उन्हें प्रकट करते हैं जो यह दर्शाता है कि चाहे कुछ भी हो जाए वे इसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकार नहीं करते और कोई सबक तो बिल्कुल नहीं सीखते हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के कार्य का अनुभव नहीं करते और सत्य स्वीकार नहीं करते इसलिए उनमें छद्म-विश्वासियों का सार है।) उनका यह सार स्पष्ट कर दिया गया है। वे अपने परिवार के सामने अपनी भावनाएँ प्रकट करते हैं और हर चीज को अपनी भावनाओं के आधार पर देखते हैं। तुम यह कैसे बता सकते हो कि वे परमेश्वर के घर का हिस्सा नहीं, बल्कि अविश्वासी हैं जिन्होंने परमेश्वर के घर में घुसपैठ की है? (क्योंकि वे परमेश्वर के घर के हितों के साथ गद्दारी कर सकते हैं, गद्दारों और मुखबिरों के रूप में काम कर सकते हैं और क्योंकि वे मूल रूप से ऐसे लोग नहीं हैं जो परमेश्वर के घर के कार्य और हितों की रक्षा करते हैं। इस तरह इन व्यक्तियों का दिल परमेश्वर के घर से एकमत नहीं है।) यह स्पष्टीकरण सटीक नहीं है। मैं समझाता हूँ। भले ही ये लोग कलीसियाई जीवन में भाग लेते हैं और अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं मगर क्या उन्होंने कभी भाई-बहनों को अपना परिवार माना है? सीधे शब्दों में कहें तो क्या उन्होंने भाई-बहनों को अपना माना है? (नहीं।) तो फिर वे भाई-बहनों को क्या मानते हैं? (बाहरी लोग।) सही कहा, वे उन्हें बाहरी लोगों, विरोधियों के रूप में देखते हैं। तो फिर वे परमेश्वर के घर और कलीसिया को क्या मानते हैं? क्या यह उनके लिए सिर्फ एक कार्यस्थल नहीं है? (हाँ।) वे परमेश्वर के घर और कलीसिया को ऐसा मानते हैं मानो वे अविश्वासी संसार की कंपनियाँ या संगठन हों; वे भाई-बहनों को बाहरी लोगों, विरोधियों के रूप में देखते हैं जिनसे सावधान रहना चाहिए। इस प्रकार वे भाई-बहनों के बारे में विभिन्न प्रकार की जानकारी और विभिन्न वास्तविक स्थितियों को आसानी से उन लोगों को बता सकते हैं जो मूल रूप से परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं। वे जानते हैं कि इन अविश्वासी लोगों के पास कहने के लिए कुछ भी अच्छा नहीं होगा और वे भाई-बहनों की बदनामी और परमेश्वर के घर का अपमान भी कर सकते हैं—वे यह सब जानते हैं फिर भी बेझिझक इन अविश्वासियों के सामने भाई-बहनों और कलीसिया की स्थितियों का बेपरवाही से खुलासा करते हैं। जाहिर है कि वे भाई-बहनों को बाहरी लोगों, विरोधियों के रूप में देखते हैं और जब भी कोई अप्रिय स्थिति उत्पन्न होती है वे तुरंत भाई-बहनों का मजाक उड़ाने, उनका अपमान करने और उनकी पीठ-पीछे उनके खिलाफ काम करने के लिए अविश्वासियों से हाथ मिला लेते हैं, इस प्रकार वे अपनी इच्छाओं को संतुष्ट करते हैं। उन्हें लगता है कि कलीसिया में किसी भाई या बहन की आलोचना करना संभव नहीं होगा क्योंकि अगर वे कलीसिया के मामलों या भाई-बहनों के बारे में भाई-बहनों के सामने चर्चा करते हैं तो उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे जो उनके लिए प्रतिकूल होंगे। मगर अपने परिवार के साथ इन मामलों पर चर्चा करने से बिना कोई परिणाम झेले उनका व्यक्तिगत उतावलापन, इच्छाएँ और भावनाएँ पूरी तरह से संतुष्ट हो जाती हैं क्योंकि परिवार आखिर परिवार ही है जो उन्हें धोखा नहीं देगा। लेकिन भाई-बहनों के साथ ऐसा नहीं है, वे कहीं भी और कभी भी उनकी रिपोर्ट कर सकते हैं, उन्हें उजागर कर सकते हैं, उनकी काट-छाँट कर सकते हैं और यहाँ तक कि उन्हें उनके कर्तव्यों और पदों से भी वंचित कर सकते हैं। इसलिए यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं है कि वे भाई-बहनों को अपने विरोधी मानते हैं। विरोधी वह व्यक्ति होता है जिससे सावधान रहना चाहिए। इसलिए वे भाई-बहनों से बात नहीं करते, न उनके साथ संगति करते हैं और न ही उनके सामने कुछ उजागर करते हैं। इसके बजाय वे घर पर अपने परिवार के अविश्वासी सदस्यों के साथ “कलीसियाई जीवन” जीते हैं, जहाँ वे सब कुछ साझा करते हुए अपने दिल की बात कह देते हैं। वे बिना किसी झिझक के अपने विचारों, मतों, कुंठाओं, असंतोष और अपने सभी विकृत विचारों को व्यक्त करते हैं, ऐसा करने में उन्हें राहत और खुशी मिलती है। उनके परिवार के सदस्य उनसे घृणा नहीं करते बल्कि उनकी मदद और सहयोग करते हैं। अगर वे कलीसिया में इस तरह से बात करें तो छद्म-विश्वासियों के रूप में उनकी असली प्रकृति पूरी तरह से उजागर हो जाएगी, और कलीसिया को उन्हें बाहर निकालना ही होगा। इसलिए वे भाई-बहनों को परिवार के रूप में नहीं बल्कि विरोधियों के रूप में देखते हैं। यह एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि वे खुद को कभी भी कलीसिया का हिस्सा नहीं मानते। इसलिए कलीसिया के साथ जो कुछ भी होता है, चाहे वह धार्मिक संसार से मानहानि और तिरस्कार हो, अविश्वासियों से निराधार अफवाहें और उपहास हो, या राष्ट्रीय सरकार द्वारा फँसाया जाना और उत्पीड़न हो, यह सब उनके लिए व्यक्तिगत रूप से बेकार और महत्वहीन है। मान लो कि वे वास्तव में ऐसा महसूस करते : “अगर कलीसिया की छवि को नुकसान पहुँचता है और परमेश्वर के नाम का अपमान होता है तो विश्वासियों के रूप में हमारी गरिमा को गंभीर चुनौती मिलती है। इसी वजह से मैं कभी भी कलीसिया के मामलों या परमेश्वर के घर के मामलों पर अविश्वासियों के साथ चर्चा नहीं करूँगा, उन्हें इसके बारे में गपशप करने और हँसने का मौका नहीं दूँगा। यहाँ तक कि खुद को बचाने के लिए भी मैं अपने परिवार के अविश्वासी सदस्यों के साथ परमेश्वर के घर के मामलों के बारे में बात नहीं करूँगा”—अगर उनमें ऐसी जागरूकता होती तो क्या वे अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा पाते? तो वे ऐसा क्यों नहीं कर सकते? यह स्पष्ट है कि वे मूल रूप से खुद को परमेश्वर के घर का हिस्सा नहीं मानते हैं, न ही वे खुद को विश्वासी मानते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “तुम्हारे शब्द गलत हैं। अगर वे खुद को परमेश्वर के घर का हिस्सा नहीं मानते तो फिर सभाओं में क्यों आते?” परमेश्वर में विश्वास रखने वालों में सभी प्रकार के लोग हैं। क्या हमने पहले इस बारे में संगति नहीं की है? ऐसे कई लोग हैं जो विभिन्न अनुचित मंशाओं और इरादों से परमेश्वर में विश्वास रखने लगते हैं और यह उनमें से एक प्रकार है। मनोरंजन के लिए, बोरियत दूर करने के लिए या आध्यात्मिक पोषण पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखने वाले—क्या ऐसे छद्म-विश्वासी आम नहीं हैं? क्या ऐसे लोग बड़ी संख्या में नहीं मिल सकते? (बिल्कुल।) वे खुद को परमेश्वर के विश्वासी भी नहीं मानते हैं। बेशक, कलीसिया का सारा कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों का अपने कर्तव्यों को निभाना उनके लिए कोई चिंता का विषय नहीं है, वे उन पर कोई ध्यान नहीं देते। इस प्रकार वे कलीसिया की कार्य स्थिति, कलीसिया के आंतरिक मामलों और यहाँ तक कि भाई-बहनों के बीच होने वाले किसी भी मुद्दे पर बिना सोचे-विचारे और हल्के ढंग से अविश्वासियों के साथ चर्चा कर सकते हैं। अपनी बात पूरी करने के बाद अविश्वासी गपशप, बदनामी और व्यंग्य करना शुरू कर देते हैं मगर इससे उन्हें रत्ती भर भी परेशानी नहीं होती है। वे अविश्वासियों के साथ मिलकर भाई-बहनों के साथ गाली-गलौज भी कर सकते हैं, परमेश्वर के घर की आलोचना कर सकते हैं और परमेश्वर के घर के कार्य और कार्य व्यवस्थाओं पर टिप्पणी कर सकते हैं। क्या वे परमेश्वर के विश्वासी हैं? (नहीं।) सच्चे विश्वासी कभी भी इस तरह से काम नहीं करेंगे। भले ही यह उनकी अपनी गरिमा और हितों की रक्षा करने की खातिर हो, वे कभी भी उस हाथ को नहीं काटेंगे जो उन्हें खाना खिलाता है और कलीसिया से बाहर के लोगों का पक्ष नहीं लेंगे। क्या ऐसा नहीं है? (हाँ।) इसलिए ऐसे व्यक्ति बुरे लोग और छद्म-विश्वासी हैं जिन्हें बाहर निकाल दिया जाना चाहिए। जितनी जल्दी उन्हें बाहर निकाल दिया जाएगा उतनी ही जल्दी कलीसिया में शांति आएगी।
चलो अब तुम लोगों के बारे में बात करते हैं। उदाहरण के लिए, अगर तुम्हारे माता-पिता परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते या अगर तुम्हारे भाई-बहन या सबसे अच्छे दोस्त परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते मगर वे तुम्हारे विश्वास का विरोध नहीं करते हैं और वास्तव में इसका समर्थन करते हैं तो क्या तुम उनसे कलीसिया में होने वाली हर चीज के बारे में बात करोगे? मान लो कि तुम्हारी कोई महिला दोस्त पूछती है, “क्या तुम लोगों की कलीसिया में कोई ऐसा आदमी है जिसे एक साथी की तलाश हो? क्या कोई ऐसा है जो खासकर निष्कपट, लंबा, अमीर और सुंदर है?” अविश्वासियों के बीच कुछ सुसभ्य लोग भी अपने दिन बिताने के लिए एक सुसभ्य साथी खोजना चाहते हैं। तुम्हारी दोस्त किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ना चाहती है जो परमेश्वर में विश्वास रखता हो तो क्या तुम उसे बताने के लिए तैयार होगे? (नहीं।) तुम्हें उसे कहना चाहिए, “विश्वासियों के लिए तुम्हारा स्नेह बेकार है। तुम एक अविश्वासी हो और मूलतः विश्वासियों के साथ तुम्हारा मेल नहीं जमेगा। तुम्हारी भाषा एक नहीं है; तुम अलग-अलग मार्ग पर चलते हो! खुद को देखो, तुम इतने भड़कीले कपड़े पहनती हो—हमारी कलीसिया में कौन-सा भाई तुम्हें पसंद करेगा?” तुम उसके बारे में बहुत ऊँचा नहीं सोचते तो क्या तुम उससे कलीसिया के मामलों के बारे में बात कर सकते हो? (नहीं।) बस कुछ शब्द बोलोगे और पूरी तरह से अलग-अलग दृष्टिकोणों के कारण बातचीत खत्म हो जाएगी। भले ही कुछ अविश्वासियों की विश्वासियों के बारे में अच्छी धारणा हो और भले ही वे तुम्हारे विश्वासी बनने के बाद भी तुमसे दोस्ती बनाए रखें, क्या तुम उनके साथ कलीसिया के अंदरूनी मामलों या अपने कर्तव्यों को निभाने में आने वाली कठिनाइयों को साझा करने के लिए तैयार होगे? (नहीं।) भले ही वे परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास का समर्थन करते हों, उनके साथ कलीसिया के मामलों पर चर्चा करने का क्या फायदा है? उदाहरण के लिए, कुछ भाई-बहनों ने यहूदा बने बिना, बड़े लाल अजगर की यातना और पूछताछ के सामने दृढ़ता दिखाई है। यह एक ऐसी गवाही है जिसकी प्रशंसा अविश्वासी भी करते हैं—क्या तुम इसे उनके साथ साझा करने के लिए तैयार होगे? (नहीं।) तुम इस पर चर्चा करने के लिए तैयार क्यों नहीं होगे? (ऐसे मामले उनके लिए अप्रासंगिक हैं और वे इन अनुभवजन्य गवाहियों को नहीं समझ सकते।) वे समझ ही नहीं पाएँगे। इन मामलों पर चर्चा करने से क्या नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं? (वे इसके बजाय कलीसिया की आलोचना कर सकते हैं।) वे आलोचना करेंगे : “खुद को इतने कष्ट में क्यों डालते हो? राष्ट्रीय सरकार के खिलाफ क्यों जाते हो?” देखा, एकमात्र टिप्पणी उनकी प्रकृति को उजागर कर सकती है। इसे राष्ट्रीय सरकार के खिलाफ जाना कैसे माना जा सकता है? यह स्पष्ट है कि देश पर शासन करने वाला शैतान राजा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचा रहा है, उन्हें जीने का कोई रास्ता नहीं छोड़ रहा है। यहाँ तक कि जब वे इसे देखते हैं तब भी नहीं जानने का नाटक करते हैं। यह स्पष्ट है कि वे इस तरह से बोलते हैं जो सत्य को पलट देता है और तथ्यों को तोड़-मरोड़ देता है। तुम उनके साथ और क्या चर्चा कर सकते हो? तुम उनसे परमेश्वर में आस्था से संबंधित किसी भी चीज के बारे में बात नहीं कर सकते; तुम उन्हें इसके बारे में कुछ भी नहीं बता सकते। जो लोग अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा सकते वे अविश्वासियों को कलीसिया के बारे में सब कुछ बता सकते हैं। जाहिर तौर पर वे छद्म-विश्वासी हैं; वे शैतान हैं जो किसी भ्रम में परमेश्वर के घर में आ जाते हैं, वे जानवर हैं जो उसी हाथ को काटते हैं जो उन्हें खिलाता है, उनमें अंतरात्मा या विवेक का लेशमात्र भी अंश नहीं होता है। परमेश्वर के घर या कलीसिया के हितों या प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, उनका अपना कोई भी हित प्रभावित नहीं होता और उन्हें जरा भी दुख महसूस नहीं होता; इस प्रकार वे बिना किसी संकोच के अविश्वासियों और परमेश्वर में विश्वास न रखने वाले लोगों से कलीसिया के अंदरूनी मामलों के बारे में बेपरवाही से बात कर सकते हैं। क्या ऐसे लोग घृणित हैं? (हाँ!) क्या एक छद्म-विश्वासी जो भाई-बहनों को परिवार के रूप में नहीं देखता मगर अविश्वासियों को अपना परिवार मानता है, सत्य स्वीकार सकता है? (नहीं।) क्या वह यह मान सकता है कि परमेश्वर सत्य है? (नहीं।) क्या एक ऐसा व्यक्ति जो खुद को कलीसिया का सदस्य नहीं मानता, परमेश्वर द्वारा मनुष्य के उद्धार के वचनों को सुनने के बाद सत्य का अनुसरण करने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए अपने हितों को दरकिनार कर सकता है? (नहीं।) उनकी दैनिक गतिविधियों में केवल कलीसिया के हितों से गद्दारी करना, बाहरी लोगों का पक्ष लेना और मुखबिरों, यहूदाओं, गद्दारों के रूप में काम करना शामिल है, मानो यही उनका मकसद है। वे उचित मार्ग पर नहीं चलते बल्कि बुराई करने के लिए जीते हैं; वे मरने और शापित होने के लायक हैं! ये यहूदा, गद्दार और शैतान के सेवक जो उसी हाथ को काटते हैं जो उन्हें खिलाता है, वे नकारात्मक दुष्ट हैं, वे मानवजाति के लिए हानिकारक हैं और सभी उनसे घृणा करते हैं। तो क्या कलीसिया का उनसे निपटना और उन्हें बाहर निकालना बिल्कुल उचित नहीं है? (हाँ।) यह बिल्कुल उचित है! अगर तुम लोगों को धोखा दिया जाता है तो क्या तुम इसे नापसंद नहीं करोगे? अगर कलीसिया या परमेश्वर के घर से गद्दारी की जाए तो हो सकता है ज्यादातर लोग गहरी सहानुभूति न रखें या बहुत व्यथित महसूस न करें; वे बस अंदर से थोड़ा असहज होंगे क्योंकि आखिर वे इसके सदस्य हैं। मगर क्या होगा अगर कलीसिया में कोई अविश्वासियों के साथ तुम्हारा सौदा कर दे और इस सौदे के कारण अविश्वासी लोग तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करें, तुम्हारा अपमान करें, मजाक उड़ाएँ, तुम्हारी आलोचना और निंदा करें? तब तुम्हें कैसा लगेगा? क्या तब तुम कलीसिया और परमेश्वर के घर द्वारा झेले गए अपमान और शर्म का अनुभव नहीं करोगे? (हाँ।) इस दृष्टिकोण से देखें तो क्या ऐसे व्यक्तियों को बाहर निकालना उचित है? (हाँ।) उन्हें बाहर निकाल देना चाहिए; उनके प्रति नरमी दिखाने की कोई जरूरत नहीं है। जहाँ तक उन लोगों की बात है जो अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा सकते, अपने आचरण के तरीके और वे जो कुछ जीते हैं उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियों के आधार पर, वे कलीसिया के भीतर छद्म-विश्वासी हैं, एक प्रकार के बुरे व्यक्ति हैं जिन्हें बाहर निकाल देना चाहिए। चाहे उनके क्रियाकलाप गुप्त रूप से किए गए हों या खुलेआम, जैसे ही यह पता चलता है कि वह व्यक्ति अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा सकता और उसका मानवता सार एक संपूर्ण छद्म-विश्वासी का है तो तुरंत अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उसकी रिपोर्ट करो और भाई-बहनों को इसकी सूचना दो। ऐसे व्यक्तियों की समय रहते और सटीकता से पहचान की जानी चाहिए और फिर उन्हें जितनी जल्दी हो सके कलीसिया से बाहर निकाल देना चाहिए। उन्हें कलीसिया, कलीसिया के कार्य या भाई-बहनों के साथ कोई मेलजोल मत करने दो; उन्हें पूरी तरह से बाहर निकालना ही सही कार्रवाई है। इसके साथ ही मानवता की इस अभिव्यक्ति—अपनी जबान पर लगाम न लगा पाना—पर संगति पूरी होती है।
आज जिन तीन प्रकार के लोगों के बारे में संगति की गई है, क्या वे उन दो प्रकार के लोगों की तुलना में ज्यादा गंभीर हैं जिनके बारे में पहले संगति की गई थी? (हाँ।) उनकी परिस्थितियाँ बदतर हैं, उनकी मानवता ज्यादा नीच और घिनौनी है और वे कलीसिया के हितों और सभी भाई-बहनों को ज्यादा नुकसान पहुँचाते और प्रभावित करते हैं। इसलिए इन तीन प्रकार के लोगों को हल्के में मत लेना; उनसे सतर्कता बरतते हुए सावधान रहना चाहिए और अनुचित व्यवहार में लिप्त नहीं होना चाहिए। अगर किसी की पहचान इन तीन प्रकार के लोगों में से किसी एक के रूप में की जाती है तो उसे तुरंत उजागर करके पहचाना जाना चाहिए और फिर जितनी जल्दी हो सके उससे निपटा जाना चाहिए। अगर वह कोई महत्वपूर्ण कर्तव्य निभा रहा है तो तुरंत उसका कर्तव्य सँभालने के लिए किसी और को खोजो और फिर उसे उस कर्तव्य से हटाकर बाहर निकाल दो। समझे? (समझ गए।) कलीसिया के भाई-बहनों की विभिन्न अवस्थाएँ, अलग-अलग समय पर उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियाँ, कलीसिया का कार्य और यहाँ तक कि इसके कुछ आंतरिक मामलों पर केवल भाई-बहनों के बीच ही चर्चा और संगति करने की अनुमति दी जा सकती है। ऐसा इसलिए है ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोगों को परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों की स्पष्ट समझ और अंतर्दृष्टि प्राप्त हो सके, जिससे वे सत्य सिद्धांतों के अनुसार काम करने की योग्यता हासिल कर सकें। लेकिन एक सिद्धांत स्पष्ट होना चाहिए : चाहे वे सत्य हों या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश से संबंधित सिद्धांत हों, या फिर सामान्य मामलों के लिए विनियम हों, उनके बारे में अविश्वासियों के साथ चर्चा करने की अनुमति बिल्कुल भी नहीं है, नहीं तो फिर अविश्वासी टिप्पणी करेंगे और उँगली उठाएँगे। इसकी पूरी तरह से मनाही है। कुछ लोग कह सकते हैं, “अगर इसकी पूरी तरह से मनाही है तो क्या इसका मतलब यह है कि यह एक प्रशासनिक आदेश है?” इसे इस तरह देखा जा सकता है; जो कोई भी जानकारी बाहर फैलाएगा उसे उसके अनुरूप परिणाम भुगतने होंगे। उसे परिणाम क्यों भुगतने होंगे? क्योंकि जो लोग कलीसिया के आंतरिक मामलों को बाहर फैलाते हैं वे कलीसिया या भाई-बहनों की रक्षा नहीं करते और आसानी से कलीसिया और भाई-बहनों को धोखा दे सकते हैं। क्योंकि वे गद्दारों और यहूदाओं की तरह काम करते हैं इसलिए उनके प्रति अब और नरमी नहीं दिखानी चाहिए या उन्हें भाई-बहन या परिवार नहीं मानना चाहिए। उनसे गद्दारों और यहूदाओं के रूप में निपटा जाना चाहिए और उन्हें सीधे कलीसिया से बाहर निकाल दिया जाना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “मुझे बड़बोलेपन की बुरी आदत थी, मैं बेपरवाही से बात करता था। अब जब मैं ऐसी हरकतों के परिणाम देख रहा हूँ तो बेपरवाही से बात करने की हिम्मत नहीं करता।” अच्छा है। अब जब तुमने यह कहा है तो तुम्हारे व्यवहार पर नजर रखी जाएगी। अगर तुम सच में पश्चात्ताप करते हो और बदल जाते हो, अब बेपरवाही से जानकारी नहीं फैलाते हो या भाई-बहनों के हितों के साथ विश्वासघात नहीं करते हो, और अपनी जबान पर लगाम लगा सकते हो तो परमेश्वर का घर तुम्हें एक और अवसर देगा। अगर फिर से यह पता चलता है कि तुमने ऐसा किया है, तुमने कोई जानकारी फैलाई है तो तुम्हारे प्रति कोई नरमी नहीं दिखाई जाएगी—कलीसिया के भाई-बहन तुम्हें बाहर निकालने के लिए एकजुट होंगे। जब ऐसा होगा तब तुम रोना मत या यह शिकायत मत करना कि तुम्हें पहले से चेतावनी नहीं दी गई थी। अब जब सब कुछ स्पष्टता से समझाया गया है, अगर फिर से ऐसा होता है तो परमेश्वर का घर बिल्कुल भी नरमी नहीं बरतेगा। समझे? (समझ गए।) अगर तुम लोग किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हो जो यह समझ नहीं पाया है तो उसे समझाओ; आज हमने जो संगति की है उसके आधार पर उसे सुझाव दो। अगर तुम लोग किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हो जिसमें इस व्यवहार के लक्षण दिखाई देते हैं या जिसने पहले कभी इस तरह से काम किया है तो उससे बात करो, उसे चेतावनी दो और उसे ऐसे क्रियाकलापों की प्रकृति और परिणामों के बारे में सूचित करने के साथ ही इन मामलों और लोगों के प्रति परमेश्वर के घर के रवैये के बारे में भी बताओ। चीजों को स्पष्ट करने के बाद यह देखने के लिए उस पर नजर रखो कि क्या वह पश्चात्ताप कर सकता है और भविष्य में वह क्या करेगा। अगर वह बदल जाता है और अब इस तरह से काम नहीं करता है तो उसे वापस स्वीकार कर उसके साथ भाई-बहनों जैसा व्यवहार किया जा सकता है। लेकिन अगर वह जिद्दी बनकर पश्चात्ताप नहीं करता है और गुप्त रूप से इस तरह से काम करना जारी रखता है तो जब भी तुम्हें ऐसा कोई व्यक्ति मिले, उसे बाहर निकाल दो। अगर तुम्हें ऐसा कोई जोड़ा मिलता है तो उन दोनों को बाहर निकाल दो; अगर तुम्हें कोई समूह मिलता है तो पूरे समूह को बाहर निकाल दो। कोई नरमी मत बरतो। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या मैं अपने परिवार के उन लोगों से बात कर सकता हूँ जो कभी विश्वास रखते थे मगर बाद में बाहर निकाल दिए गए?” ऐसा प्रतीत होता है कि जो लोग अपनी जबान चलाना और गप्पे लड़ाना पसंद करते हैं, उन्हें खुद पर काबू पाना आसान नहीं लगता, वे हमेशा अड़ियल बनकर पूछते हैं कि क्या ऐसा करने की अनुमति है। तुम लोगों का क्या ख्याल है, क्या ऐसा करने की अनुमति है? (नहीं।) किसी से भी बात करने की अनुमति नहीं है क्योंकि इससे आसानी से परिणाम भुगतने पड़ते हैं। ऐसे सभी लोगों से यहूदाओं की तरह निपटा जाना चाहिए। जो लोग अविश्वासी हैं, जिन्हें बाहर निकाल दिया गया है, जो तुम्हारे करीबी हैं, जो भरोसेमंद हैं, जो परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास का समर्थन करते हैं, जो परमेश्वर में विश्वास रखने के बारे में अनुकूल धारणा रखते हैं और जो नाममात्र के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, केवल कलीसियाई जीवन जीते हैं और परमेश्वर के वचनों को थोड़ा-बहुत पढ़ते हैं मगर अपना कर्तव्य बिल्कुल नहीं निभाते, उनसे बात नहीं करनी चाहिए—अगर कोई ऐसा करता है तो उससे यहूदा की तरह निपटा जाएगा। समझे? (समझ गए।) अपने कर्तव्य नहीं निभाने वाले लोगों में और कौन-कौन शामिल हैं? क्या इसमें कलीसिया के सामान्य सदस्य शामिल हैं? (हाँ।) इस बात को मत भूलना; मूर्ख मत बनना। तुम लोगों को सिद्धांतों की भी अच्छी समझ होनी चाहिए। अंत में केवल यहूदा बनने और परमेश्वर के घर को धोखा देने, अनजाने में भाई-बहनों के साथ विश्वासघात करने और फिर उस पर गर्व महसूस करने के लिए विश्वास रखना जारी मत रखो। अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा पाना और यहाँ तक कि कलीसिया के कार्य और भाई-बहनों के साथ विश्वासघात करना एक गंभीर अपराध है। परमेश्वर ऐसी बुराई करने वाले हर एक व्यक्ति का लेखा-जोखा रखता है। अब जब यह सब तुम्हें स्पष्टता से समझा दिया गया है और तुम समझ गए हो, अगर तुम इसे दोहराते हो तो यह कोई साधारण अपराध नहीं रह जाएगा; यह प्रशासनिक आदेश का उल्लंघन होगा जो तुम्हें बाहर निकाले जाने का रास्ता बनाता है और तुम उद्धार पाने के अधिकार से भी वंचित हो जाओगे। समझे? (समझ गए।)
11 दिसंबर 2021
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