अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (24) खंड तीन

II. व्यक्ति की मानवता के आधार पर

अब हम दूसरी श्रेणी की ओर बढ़ते हैं, जो उनकी मानवता है। किसी व्यक्ति की मानवता की अभिव्यक्तियों के जरिए हम यह पहचानते और निर्धारित करते हैं कि क्या वह व्यक्ति सचमुच परमेश्वर में विश्वास रखता है और क्या वह कलीसिया में बने रहने लायक है। अगर मानवता की अपनी अभिव्यक्तियों और खुलासों और अपनी मानवता के सार के आधार पर वे सच्चे भाई-बहन न हों, कलीसिया में रहने के लिए उपयुक्त न हों, उनकी मौजूदगी भाई-बहनों को बाधित करती हो, और—अपने व्यवहार के आधार पर—वे उन लोगों से संबंधित हों जिन्हें कलीसिया से बहिष्कृत या निष्कासित कर दिया जाना चाहिए, तो कलीसिया को इन व्यक्तियों को बहिष्कृत या निष्कासित करने के लिए तदनुरूप योजनाएँ तेजी से तैयार करनी चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की चौदहवीं जिम्मेदारी पर संगति हर तरह के बुरे लोगों को बहिष्कृत या निष्कासित करने को लेकर है। मानवता के चश्मे से देखा जाए तो इन व्यक्तियों की मानवता निश्चित रूप से खराब और बुरी है; सरल भाषा में कहूँ तो, वे बिल्कुल अच्छे नहीं हैं। उनकी मानवता की अभिव्यक्तियों के आधार पर उन्हें कलीसिया से बहिष्कृत या निष्कासित कर देना चाहिए, ताकि उन्हें कलीसिया में गड़बड़ी पैदा करना और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के कलीसियाई जीवन और उनके कर्तव्य निर्वहन को प्रभावित करना जारी रखने से रोका जा सके। तो किन अभिव्यक्तियों के जरिए हम किसी व्यक्ति की मानवता अच्छी या बुरी होने का फैसला लेते हैं और इस तरह निर्णय करते हैं कि क्या कलीसिया को उन्हें बहिष्कृत या निष्कासित कर देना चाहिए? दूसरी श्रेणी—मानवता—को सारांशित करने पर, उसमें भी अनेक बिंदु हैं, लेकिन चलो पहले हम प्रथम बिंदु पर संगति करें।

क. तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करना

पहला बिंदु उन लोगों के बारे में है जो तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करते हैं। तुम सबने यकीनन इस प्रकार के व्यक्ति को अक्सर देखा होगा। तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करने की मुख्य अभिव्यक्ति क्या होती है? यह बिना सिद्धांतों के बोलना है, हमेशा मंसूबों और उद्देश्यों के साथ विवाद भड़काना है, जिससे प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। स्पष्ट रूप से, इन लोगों की कथनी में गंभीर समस्याएँ होती हैं जिनकी जड़ें उनके खराब स्वभाव और मानवता की कमी में होती हैं, जिसके कारण वे तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करते हैं। इस शब्द के परिप्रेक्ष्य से देखें तो “तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने” का मतलब अक्सर यह दावा करना है कि जो तथ्य है वह झूठ है, और जो झूठ है वह तथ्य है; यह काले को सफेद और सफेद को काला कर देना है, और यहाँ तक कि तथ्यों को असत्य विवरणों से अलंकृत करना, बेबुनियाद आरोप उछालना, निराधार फैसले करना, और मनमाने ढंग से बोलना भी है। ऐसे लोग चीजों को कभी भी सकारात्मक रूप से नहीं देखते; उनकी बातों से लोग शिक्षित नहीं होते और लोगों को कोई लाभ या मदद नहीं मिलती। उनके साथ बातचीत करने, जुड़ने और संवाद करने के दौरान, उनको बोलते हुए सुनने की क्रिया से लोगों के दिल अक्सर अंधकार और गंदगी में डूब जाते हैं, यहाँ तक कि वे अपने विश्वास में आस्था तक खो देते हैं, जिससे उनमें परमेश्वर में विश्वास रखने का रुझान नहीं रह जाता और वे आध्यात्मिक भक्ति कार्यों और सभाओं के दौरान अपने मन को शांत नहीं कर सकते। वे अक्सर सही और गलत के दावों और ऐसे व्यक्तियों द्वारा फैलाई गई अफवाहों से मन और आत्मा में अशांत हो जाते हैं, और वे हर किसी को प्रतिकूल दृष्टि से देखने लग जाते हैं और दूसरों में खामियों के अलावा कुछ भी नहीं देखते। अक्सर, तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करते हुए सुनने के बाद लोगों की सामान्य सोच बाधित हो जाती है और मामलों पर उनके सही दृष्टिकोण भी बाधित हो जाते हैं जिससे उनके लिए यह पहचान कर पाना कठिन हो जाता है कि क्या सही है और क्या गलत। जो लोग पहचान नहीं कर पाते, वे अनजाने ही तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने वाले लोगों की कही हुई कुछ बातों के कारण अक्सर बहक जाते हैं और प्रलोभन में पड़ जाते हैं। वे सोचते हैं, “उन लोगों ने किसी को हानि नहीं पहुँचाई है, वे सभाओं में सामान्य ढंग से भाग लेते हैं, कभी-कभी वे दान-धर्म और दूसरों की मदद भी करते हैं और उन्होंने कोई खराब काम नहीं किया है।” लेकिन ऐसे व्यक्तियों के साथ उनकी बातचीत के परिणाम अक्सर ये होते हैं कि वे सही और गलत के मुद्दों में और प्रलोभन में फँस जाते हैं, और वे लोगों के बीच भावनात्मक उलझनों की मझधार में और अनुचित अंतर्वैयक्तिक संबंधों की मझधार में फँस जाते हैं। ये लोग जो तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं, लोगों के बीच के उपयुक्त संबंधों को बाधित करने और लोगों के मन के भीतर की विशुद्ध समझ को नष्ट करने की विशेषज्ञता रखते हैं। उनकी दृष्टि में जो भी व्यक्ति आपस में अच्छा रिश्ता रखते हैं और जो एक-दूसरे का सहारा और मददगार हो सकते हैं, वे उनके गुप्त हमलों और आलोचनाओं का निशाना बन जाते हैं। उसी तरह, जो भी व्यक्ति अपना कर्तव्य थोड़ी वफादारी से निभाता है और खुद को थोड़ा-बहुत खपाता है, वह भी उनके हमलों का निशाना बन जाता है। कोई चीज चाहे कितनी भी अच्छी या सकारात्मक क्यों न हो, वे उसे बदनाम करने के तरीके ढूँढ़ लेते हैं। वे हर चीज के बारे में अप्रत्यक्ष आलोचनाएँ करते हैं, हर मामले पर टिप्पणी करते हैं और सभी मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण रखते हैं। ये दृष्टिकोण बिल्कुल भी सच्चे दृष्टिकोण नहीं होते; बल्कि वे बकवास करते हैं, सच्चे तथ्यों और झूँठों के बीच भ्रम पैदा करते हैं और काले को सफेद और सफेद को काला करते हैं; यहाँ तक कि, किसी लक्ष्य को प्राप्त करने की खातिर या लोगों के बीच कलह के बीज बोने के लिए या कुछ लोगों को बदनाम करने के लिए वे तथ्यों को झूठे विवरणों से अलंकृत करके और निराधार आरोप लगाकर जानबूझकर और लापरवाही से बातें गढ़ने की हद तक चले जाते हैं और बिना बात का बतंगड़ बनाते हैं। जो लोग तथ्यों से अनजान होते हैं, वे उन्हें बोलते हुए सुनकर सोचते हैं कि उनके दावे उचित लगते हैं और संभवतः झूठे नहीं हो सकते और इस तरह गुमराह हो जाते हैं। इस प्रकार का व्यक्ति जो तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करता है, वह हर सकारात्मक मामले की अप्रत्यक्ष आलोचना करता है। क्या यह इस कारण से है कि उसमें न्याय की भावना है? (नहीं।) वह उन लोगों के प्रति अवज्ञापूर्ण होता है और उनका आदर नहीं करता, जो सक्रियता से अपना काम करते हैं, जो वफादार होते हैं और उत्साह के साथ खुद को खपाते हैं और जिनमें अंतरात्मा और विवेक होता है। तो इन व्यक्तियों की लापरवाह बातों का कारण क्या है? इसकी जड़ कहाँ है? वे हमेशा तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना क्यों पसंद करते हैं? (क्योंकि उनकी मानवता खराब है।) सही है; यह खराब मानवता के कारण है। अगर उनकी मानवता अच्छी होती तो वे तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत नहीं करते। बोलना अंतरात्मा और तार्किकता पर आधारित होना चाहिए; कोई व्यक्ति हर मोड़ पर विकृत सिद्धांत और पाखंड नहीं उगल सकता। तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने की जड़ खराब मानवता है। ऐसे लोग जो भी बोलते हैं उसमें कड़वाहट होती है; हल्के-फुल्के ढंग से कहूँ तो वे दूसरों के बारे में राय बना रहे होते हैं, लेकिन वास्तव में उनके शब्दों में निंदा करने और शाप देने की द्वेषपूर्ण मंशा के कुछ तत्व होते हैं और भड़कावे, ईर्ष्या, अवज्ञा, नफरत के कुछ संकेत होते हैं, और उनके शब्दों से गिरे हुए लोगों को लात मारने का आभास भी होता है। संक्षेप में कहूँ तो उनकी तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने की यही मुख्य विशेषताएँ हैं। इन विशेषताओं के अलावा, ऐसे लोगों में एक और सामान्य लक्षण होता है : वे उन लोगों से नाराज होते हैं जिनके पास वह होता है जो उनके पास नहीं होता, और वे उन लोगों पर हँसते हैं जिनके पास वह नहीं होता जो उनके पास होता है। क्या उनकी मानवता अच्छी है? (नहीं।) इस प्रकार के व्यक्ति जो उन लोगों से नाराज होते हैं जिनके पास वह होता है जो उनके पास नहीं होता, और जो उन लोगों पर हँसते हैं जिनके पास वह नहीं होता जो उनके पास होता है, वे हर ऐसे व्यक्ति के प्रति इर्ष्यालु होते हैं जो उनसे बेहतर होता है और उसकी पीठ पीछे वे उसकी बुराई करते हैं, उसकी आलोचना और निंदा करते हैं; जबकि अगर कोई उनसे हीन हो, वे उसकी खिल्ली उड़ाते हुए हँसते हैं, उस व्यक्ति का मजाक उड़ाने, उसे ताने मारने और नीचा दिखाने को तैयार रहते हैं। वे किसी भी मामले को सही ढंग से समझ नहीं सकते या उससे सबसे बुनियादी मानवीय नैतिक मूल्यों के आधार पर निपट नहीं सकते। उन्हें किसी के लिए आशीषों की कामना करने की जरूरत नहीं है, न ही उन्हें किसी के लिए यह कामना करने की जरूरत है कि उसका भला हो या उसका मनचाहा काम हो जाए, न यह कामना करने की जरूरत है कि वे सही मार्ग पर चलें; लेकिन, कम-से-कम उन्हें बिना कोई द्वेष पाले दूसरों का सही ढंग से आकलन करना चाहिए—वे इसमें भी विफल होते हैं। उनके तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने के पीछे कारण क्या है? स्पष्ट रूप से, उनकी कथनी के जरिए और दूसरों के प्रति उनके रवैये के जरिए और वे क्या सोचते हैं और अपने दिलों की गहराई में वे दूसरों से किस तरह से पेश आते हैं, इसके जरिए यह स्पष्ट हो जाता है कि इस प्रकार के लोगों की मानवता द्वेषपूर्ण है। हालाँकि इस प्रकार के लोग तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने के लिए सिर्फ अपने मुँह का उपयोग करते हैं, फिर भी इन क्रियाकलापों के पीछे वे उपलब्धियाँ और लक्ष्य होते हैं जो वे हासिल करना चाहते हैं, और साथ ही उनके दिल की गहराई में लोगों और मामलों के प्रति उनके सच्चे नजरिये और रवैये होते हैं। अभी के लिए इस बात को छोड़ दें कि जो लोग तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करते हैं, क्या वे सत्य को अच्छे ढंग से समझते हैं, और क्या वे ऐसे लोग हैं जो सत्य से प्रेम करते हैं, अपनी मानवता के इस लक्षण—तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करना—के आधार पर, क्या वे कलीसिया के भाई-बहनों पर कोई अच्छा, प्रेरणाप्रद या सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं? (नहीं।) बिल्कुल नहीं!

आओ कुछ विशिष्ट उदाहरणों पर गौर करें कि तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने वाले लोगों में किस प्रकार की अभिव्यक्तियाँ होती हैं। उदाहरण के लिए मान लो कि एक बहन है जिसका परिवार बहुत धनाढ्य है लेकिन सुसमाचार का प्रचार करने और परमेश्वर के बारे में गवाही देने की खातिर, उस महिला ने दैहिक सुख को त्याग दिया है और अपना कर्तव्य निभाने के लिए घर छोड़ दिया है। मुझे बताओ, सामान्य लोग इस स्थिति को किस तरह से देखेंगे? क्या वे उसकी सराहना और उससे ईर्ष्या नहीं करेंगे? कम से कम, वे सोचेंगे कि अपना कर्तव्य करने के लिए दैहिक सुख को त्याग देने में सक्षम होने के लिए वह बहन प्रशंसनीय है और अनुकरणीय है। लेकिन जो लोग तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करते हैं, वे उस पर कैसी टिप्पणी करते हैं? वे कहते हैं, “वह सारा दिन बाहर जाकर सुसमाचार का प्रचार करने के लिए एक अमीर इंसान का जीवन छोड़ रही है; अगर वह यों ही करती रही तो देर-सवेर उसका पति उसे लात मार कर निकाल देगा! क्या परमेश्वर में विश्वास रखना केवल आशीष प्राप्त करने और मजे लेने के बारे में नहीं है? उसे देखो, आशीष पाकर भी वह नहीं जानती कि उनके मजे कैसे लें, मन लगाकर अपना कर्तव्य निभाने के लिए अपने परिवार और करियर को त्याग रही है; क्या यह बेवकूफी नहीं है? अगर मेरा परिवार इतना धनी होता तो मैं बस घर बैठ कर मजे लेता।” मुझे बताओ, क्या उन शब्दों में एक भी वाक्य ऐसा है जो मानवता के अनुरूप है, जो दूसरों को शिक्षित करता है? (नहीं।) जो लोग पहचान कर सकते हैं, वे यह सुनकर सोचेंगे, “क्या यह तथ्यों को विकृत करना नहीं है? किसी विश्वासी के लिए खुद को परमेश्वर के लिए खपाने के लिए हर चीज का त्याग करना और भौतिक सुखों के पीछे न भागना सहज रूप से सकारात्मक चीज है, लेकिन ये इस बात की निंदा कर रहे हैं।” अगर कोई व्यक्ति जो पहचान नहीं कर सकता, वह यह सुने तो गुमराह और बाधित हो जाएगा; परमेश्वर में विश्वास रखने का उसका जोश और चीजों को त्याग देने और अपना कर्तव्य निभाने के लिए खुद को खपाने का उसका उत्साह तुरंत कम हो जाएगा। हालाँकि जो लोग तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करते हैं, वे कम ही शब्द बोलते हैं, मगर दूसरों पर उनसे पड़ने वाला नकारात्मक प्रभाव जबरदस्त होता है, जो किसी को कुछ समय के लिए निराश महसूस करवाने और उबरने में असमर्थ बनाने के लिए काफी होता है। क्या बात ऐसी नहीं है? (हाँ, है।) प्रशंसनीय प्रतीत होने वाले सिर्फ थोड़े-से शब्द कुछ लोगों को सुनाई देने पर उन्हें विषाक्त कर सकते हैं। इससे ऐसे जहरीले शब्द बोल सकने वाले लोगों की मानवता के बारे में क्या पता चलता है? (यह खराब है।) क्या उनके शब्दों में ऐसा कोई वाक्य है जिसे सुनने पर किसी की आस्था बढ़ सकती है? (नहीं।) ये तमाम शब्द क्या हैं? मोटे तौर पर कहूँ तो ये तमाम शब्द छद्म-विश्वासियों के हैं; एक भी वाक्य उन लोगों द्वारा नहीं बोला जाना चाहिए जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं। अधिक विशिष्ट रूप से कहूँ तो इन लोगों द्वारा बोला गया एक भी वाक्य लेश मात्र भी मानवता को नहीं दर्शाता है। मानवता के अभाव का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है नैतिक मूल्यों का नहीं होना। नैतिकता नहीं होने का क्या मतलब है? बहन के पास अच्छी जीवन स्थितियाँ और एक धनाढ्य परिवार है, और इन लोगों का रवैया क्या होता है? क्या यह महज ईर्ष्या होती है जिसके बाद शुभकामनाएँ होती हैं और फिर आगे बढ़ जाया जाता है? (नहीं।) तो फिर उनका रवैया क्या होता है? ईर्ष्या, आक्रोश, गुस्सा और अपने दिलों में शिकायतें पालना : “क्या वह महिला इतना पैसा पाने के योग्य है? मेरे पास इतना पैसा क्यों नहीं है? परमेश्वर उसे क्यों आशीष देता है, मुझे क्यों नहीं?” वह बहन धनी और समृद्ध है, इसलिए वे सच्ची सराहना या शुभकामना के एक भी शब्द के बिना उससे ईर्ष्या और नफरत महसूस करते हैं। यह सबसे बुनियादी नैतिकता का भी पूर्ण अभाव दर्शाता है। बहन अमीर है इसलिए वे उसके प्रति नफरत पालते हैं, इस बिंदु तक कि वे उसकी संपत्ति लूटने या उसे धोखा देकर सब-कुछ ले लेने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा, यह बहन एक धनी परिवार में रहती है, फिर भी वह अच्छी जीवन स्थितियों और भौतिक सुख-सुविधाओं को छोड़ कर अपना कर्तव्य निभाने के लिए जाने में सक्षम है; परमेश्वर के किसी विश्वासी के लिए यह बधाई योग्य चीज है, यह सराहना और ईर्ष्या योग्य है। लोगों को उसे शुभकामनाएँ देनी चाहिए और उसके करीब आने और उसका अनुकरण करने का प्रयास करना चाहिए। लेकिन क्या इन लोगों के पास जो तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करते हैं, ऐसा कुछ कहने के लिए होता है? (नहीं।) वे किस तरह बोलते हैं? प्रत्येक वाक्य में कर्कश शब्द और नफरत का संकेत होता है। वे ऐसा क्यों बोल सकते हैं? इस कारण से कि वे अपनी ही स्थिति से नाखुश और असंतुष्ट होते हैं, गुस्सा पालते हैं और इस तरह वे अपना गुस्सा इस अमीर बहन पर निकालते हैं। परमेश्वर के विश्वासी के रूप में, किसी को खास तौर पर ऐसे लोगों की प्रशंसा और सराहना करनी चाहिए और उनसे सीखना और उनका अनुकरण करना चाहिए जो सक्रियता से अपना कर्तव्य निभाने और सत्य का अनुसरण करने में सक्षम होते हैं। बहन की खूबियों से सीखकर अपनी कमजोरियों की भरपाई करने के बजाय ये लोग बेवकूफ कहकर उसका मजाक उड़ाते हैं, और यह भी उम्मीद करते हैं कि उसका पति उसे तलाक दे देगा; वे उसका पतन देखने को आतुर हैं। अगर उस बहन को उसका पति सचमुच तलाक दे दे तो फिर क्या वे खुशी महसूस नहीं करेंगे? क्या उनकी इच्छा पूरी नहीं हो जाएगी? यह उनकी सच्ची भावनाओं और साथ ही उनकी मंशा और प्रयोजन को भी दर्शाता है। वे दूसरों का शुभ नहीं चाहते; अच्छा काम करने वाले या उनसे बेहतर किसी भी व्यक्ति को देखकर वे ईर्ष्या और गुस्से से भर जाते हैं। परमेश्वर में किसी की आस्था चाहे कितनी भी सशक्त क्यों न हो, अगर वह व्यक्ति उनसे बेहतर हो, तो बात बिल्कुल नहीं बनेगी। उनमें बिल्कुल भी मानवता नहीं होती और वे आशीष का या शिक्षित करने वाला एक भी शब्द बोलने में अक्षम होते हैं। वे ऐसे शब्द क्यों नहीं बोल सकते? क्योंकि उनकी मानवता बहुत बुरी है! ऐसा नहीं है कि वे बोलना नहीं चाहते या उनके पास सही शब्द नहीं हैं; बल्कि बात यह है कि उनके दिल ईर्ष्या, गुस्से और आक्रोश से भरे हुए हैं जिससे उनके लिए आशीष के शब्द बोलना नामुमकिन हो जाता है। तो फिर क्या यह तथ्य कि उनके दिल ऐसी भ्रष्ट चीजों से भरे हुए हैं, यह संकेत दे सकता है कि उनकी मानवता द्वेषपूर्ण है? (हाँ।) यह संकेत दे सकता है। उनके ऐसे भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करने के कारण दूसरों के लिए पहचान पाना आसान हो जाता है, और दूसरे उनके भ्रष्ट सार की असलियत समझ सकते हैं।

एक और उदाहरण प्रस्तुत है। एक बहन थी जिसका परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले, हमेशा अपनी जेठानी से झगड़ा होता रहता था। बाद में, उन दोनों ने परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया और परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने के जरिए उन दोनों ने कुछ सत्यों को समझ लिया। उन्हें एहसास हुआ कि व्यक्ति को कैसा आचरण करना चाहिए और दूसरों के साथ कैसे मिल-जुलकर रहना चाहिए, और जैसे-जैसे उनकी भ्रष्टता का खुलासा हुआ, वे एक-दूसरे के सामने खुलने और खुद को जानने की कोशिश करने में सक्षम हो सकीं जिससे उनका रिश्ता अधिक सामंजस्यपूर्ण हो गया। कुछ लोग उनसे ईर्ष्या कर कहने लगे, “उन्हें देखो, परिवार के तमाम लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और जेठानी-देवरानी बिल्कुल सगी बहनों जैसी हैं। क्या यह सब परमेश्वर में उनकी आस्था के कारण नहीं है? गैर-विश्वासियों के परिवार मिल-जुलकर बिल्कुल नहीं रह सकते, हमेशा वे, यहाँ तक कि एक ही माँ से जन्मे भाई-बहन भी, एक-दूसरे से लड़ते और होड़ करते रहते हैं। विश्वासी काफी बेहतर होते हैं; जेठानी-देवरानी भले ही सगी बहनें नहीं होतीं, लेकिन जब तक वे परमेश्वर में विश्वास रखती हैं, समान लक्ष्यों का अनुसरण करती हैं, एक ही मार्ग पर चलती हैं और एक ही भाषा बोलती हैं, तब तक उनकी भावनाएँ एक-दूसरे के अनुकूल होती हैं, जो अद्भुत है!” यह दर्शाता है कि जो लोग परमेश्वर में सच्चे दिल से विश्वास रखते हैं, वे गैर-विश्वासियों से भिन्न होते हैं। विभिन्न परिवारों के लोग सामान्य लक्ष्यों और अनुसरणों के साथ एक साथ आते हैं, परमेश्वर के घर में और परमेश्वर के सामने सुसंगत होते हैं। यह कहने का उद्देश्य लोगों को यह जानने देना है कि यह परमेश्वर के वचनों और कार्य का प्रभाव है, परमेश्वर द्वारा लोगों को दिया हुआ अनुग्रह है। यह ऐसी चीज है जो गैर-विश्वासियों के पास नहीं होती और वे इसका आनंद नहीं ले सकते। कम से कम, यह सुनने के बाद किसी को लगेगा कि परमेश्वर में विश्वास रखना और परमेश्वर में आस्था के प्रति अनुकूल धारणा रखना अच्छी बात है। लेकिन जो व्यक्ति तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करता है, उसे इस बारे में क्या कहना है उसे सुनें : “हम्म! तुम देख सकते हो कि वे जेठानी-देवरानी बाहर से मिल-जुलकर रहती हुई-सी लगती हैं, सभाओं के दौरान सब कुछ सामंजस्यपूर्ण लगता है—लेकिन क्या वे कभी-कभी एक-दूसरे से झगड़ती नहीं हैं? तुम नहीं जानते कि वे बुरी तरह से बहस करती थीं!” दूसरे कहते हैं, “उनके पहले विवाद और बहस करने का कारण यह था कि वे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखती थीं, और सत्य नहीं समझती थीं। अब उनके बीच बहुत अच्छी बनती है! यह इसलिए कि वे दोनों अब परमेश्वर में विश्वास रखती हैं, कुछ सत्य समझती हैं, और संगति में एक-दूसरे से खुल कर बात कर सकती हैं, और अपनी भ्रष्टताओं को जान सकती हैं, और अक्सर अपने कर्तव्य साथ मिलकर निभाती हैं। हालाँकि उनके बीच अभी भी थोड़ा मनमुटाव है, वे आम तौर पर एक-दूसरे से अपनी गलतियाँ स्वीकार सकती हैं, और अपने हर काम में एक-दूसरे से सलाह-मशविरा कर सकती हैं। यह ऐसी चीज है जो कोई भी गैर-विश्वासी हासिल नहीं कर सकता, अपने खून के रिश्ते वालों के साथ भी नहीं।” तब भी, तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति कहता है, “किस परिवार में झगड़े नहीं होते? जेठानी-देवरानी को छोड़ दो, सगी बहनें भी झगड़ती हैं, है ना? अभी जो सामंजस्य उनके बीच दिखाई देता है वह बस दूसरों को दिखाने के लिए है। उनके ससुर की मृत्यु होने दो, मैं यह नहीं मान सकता कि वे विरासत को लेकर नहीं लड़ेंगी! क्या परमेश्वर में विश्वास रखना सिर्फ एक कामना, एक प्रकार की आध्यात्मिक सांत्वना नहीं है? क्या वे इसके कारण इतनी सारी दौलत छोड़ सकते हैं? हो ही नहीं सकता!” क्या इन शब्दों में एक भी ऐसा बयान है जो तथ्यों से मेल खाता है? क्या इनमें लोगों के कल्याण के लिए कोई कामना है, कोई आशीष है? (नहीं।) क्या इनमें दूसरों को परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद लेते देखकर, यह व्यक्तिगत भावना व्यक्त करने वाली कोई चीज है कि परमेश्वर में विश्वास रखना सचमुच अच्छा है? (नहीं।) तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने वालों की नजर में, भाई-बहनों के बीच होने वाले ये व्यक्तिगत परिवर्तन सभी धोखाधड़ी हैं; परमेश्वर में विश्वास रखने से होने वाली सत्य की प्राप्ति और स्वभाव में परिवर्तन सब झूठे हैं; वे यकीन नहीं करते कि परमेश्वर लोगों का शुद्धिकरण कर सकता है, परमेश्वर लोगों को बदल सकता है। उनके शब्दों से कोई न सिर्फ उनके द्वारा लोगों का मनमाना न्याय, नफरत और शाप देख सकता है, बल्कि लोगों पर परमेश्वर के कार्य और वचनों द्वारा प्राप्त प्रभाव के प्रति अविश्वास और इनकार देखा जा सकता है। जेठानी-देवरानी के बीच अच्छा रिश्ता होता है और परमेश्वर में अपने विश्वास के कारण वे साथ होने पर एक दूसरे को सहिष्णुता और धैर्य दिखाती हैं। यह व्यक्ति जो तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करता है, अपने दिल में असहज और असंतुष्ट महसूस करता है और इसलिए वह बहनों के बीच कलह पैदा करने का हर संभव उपाय करने की कोशिश करता है, अगर वह जेठानी-देवरानी के मिलने पर उनमें बहस करवा कर उन्हें लड़वा सके तो खुश हो जाता है। यह किस प्रकार का रंग-ढंग है? यह किस प्रकार की मानसिकता है? उसकी मानसिकता को देखते हुए, क्या यह थोड़ा विकृत नहीं है? (हाँ, है।) उसके रंग-ढंग के लिहाज से, क्या यह घिनौना नहीं है? (हाँ, है।) फिर भी इस प्रकार के लोग कलीसियाई जीवन में भाग लेते हैं और उन लोगों के बीच जो अपने कर्तव्य निभाते हैं, ऐसे लोगों की कमी नहीं है। ये लोग आम तौर पर “जहरीली जबान” वाले कहे जाते हैं। दरअसल, ऐसा नहीं है कि सिर्फ उनकी जबान जहरीली होती है; उनका आंतरिक संसार बेहद अंधकारमय और जहरीला होता है! भाई-बहन चाहे जितनी भी अच्छी अनुभवजन्य गवाहियाँ साझा करें, उनकी नजरों में ये सभी कृत्रिम और कल्पनात्मक होती हैं और उनमें कुछ भी विशेष नहीं होता है। परमेश्वर चाहे किसी पर भी न्याय और ताड़ना का कार्य करे जिससे महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त होते हों, जैसे कि वे खड़े होकर अपने अनुभव साझा करने और परमेश्वर की गवाही देने में सक्षम हो जाते हैं—ये व्यक्ति गहरे में इसका तिरस्कार करते हैं और सोचते हैं, “उसमें इतनी बड़ी बात क्या है? इतने सारे धर्मोपदेश सुनने के बाद, क्या किसी को थोड़ी समझ हासिल नहीं होगी? तुम बस एक अनुभवजन्य गवाही लेख लिखकर संतुष्ट हो जाते हो, स्वयं को एक विजेता समझते हो? मैं देखना चाहूँगा कि जब भविष्य में चीजें बिगड़ जाएँगी, तो क्या तुम तब भी परमेश्वर के बारे में शिकायत करोगे। अगर परमेश्वर तुम्हारे बच्चे को छीन ले, तो मैं देखना चाहूँगा कि तुम रोते हो कि नहीं और क्या तुम तब भी परमेश्वर में विश्वास रख पाते हो!” तुम लोगों को क्या लगता है, उनके दिलों में क्या भरा होता है? क्या यह कामना नहीं होती कि पूरी दुनिया में अराजकता हो, क्या यह डर नहीं होता कि लोग सही रास्ते पर चल रहे हैं? संक्षेप में कहूँ तो किसी के परिवार में चाहे कुछ भी हो जाए, उन्हें उस पर कुछ टिप्पणियाँ करनी ही है, लेकिन वे चाहे कुछ भी कहें, इन सभी लोगों में एक विशेषता होती है, जो यह है कि वे आशा करते हैं कि किसी का भी भला न हो—वे हर किसी के बारे में ऐसी बात करते हैं जैसे कि उनमें कोई गुण है ही नहीं; उन्हें दूसरों के बारे में इस तरह बात करने में खुशी मिलती है जैसे वे कचरा हों और वे दूसरों के दुर्भाग्य पर हमेशा खुश होते हैं। अगर किसी का परिवार धनी हो, तो वे ईर्ष्या, क्रोध और नफरत करने लगते हैं, और अपने दिलों में निरंतर शिकायत करते हैं और कामना करते हैं कि परमेश्वर उस व्यक्ति का धन और उसे प्राप्त अनुग्रह छीनकर उन्हें दे दे। इन लोगों द्वारा लोगों की पीठ पीछे की शिकायतों को सुन पाना असहनीय होता है। क्या वे किसी भी तरह से परमेश्वर के विश्वासियों जैसे हैं? बेशक, इस प्रकार के लोग भेस बदलने में भी माहिर होते हैं। उनके दिल चाहे कितने भी दुर्भावनापूर्ण और अंधकारमय क्यों न हों, सभाओं में भाई-बहनों की मौजूदगी में वे भी अपनी समझ और अंतर्दृष्टियों पर संगति करेंगे, खुद को छिपाने के लिए शानदार धर्म-सिद्धांत उगलेंगे, अपनी “गौरवशाली,” अच्छी छवि गढ़ेंगे। लेकिन परदे के पीछे, वे इंसानों की तरह बात या कार्य नहीं करते हैं। ज्यादातर लोगों ने यदि इनके साथ बातचीत नहीं की है और वे नहीं जानते कि उनकी सच्ची अभिव्यक्तियाँ क्या हैं या उनके दिलों की गहराई में क्या दबा हुआ है, तो सिर्फ सभाओं में उनको सही ढंग से बोलते सुनकर वे यह पता नहीं लगा पाएँगे कि उनकी मानवता कितनी नीच या दुष्ट है या उनका चरित्र कितना गिरा हुआ है, बल्कि वे उनके बारे में अच्छा भी सोचेंगे। केवल उनके साथ ज्यादा वक्त बिताने और परदे के पीछे के जीवन में उनके क्रियाकलापों और व्यवहारों को समझने के बाद ही लोग धीरे-धीरे उन्हें पहचान पाते हैं और उनसे घृणा महसूस करने लगते हैं। इसलिए, किसी को सिर्फ सभाओं में उसके द्वारा बोले गए मीठे शब्दों के आधार पर नहीं पहचानना चाहिए; परदे के पीछे के जीवन में उसके क्रियाकलापों और शब्दों की भी जाँच-परख करनी चाहिए ताकि उसके सार और वास्तविक चेहरे की असलियत देख सके।

जो लोग तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करते हैं, उनकी इंसानों की तरह नहीं बोलने के अलावा एक और विशेषता भी होती है : वे हर व्यक्ति और हर चीज पर टिप्पणी करना चाहते हैं, उन पर भी जिनसे वे अपरिचित होते हैं या जिनके साथ उन्होंने पहले कभी बातचीत नहीं की है, और दूसरे लोगों के जीवन की छोटी-से-छोटी बात को भी नहीं छोड़ते। उनके टिप्पणी करने का परिणाम यह होता है कि कोई चीज चाहे कितनी भी सकारात्मक क्यों न हो, उनकी बातों से वह नकारात्मक चीज में बदल जाती है; कोई चीज चाहे कितनी भी सही क्यों न हो, उनके घिनौने होंठों से गुजरने पर वह नकारात्मक चीज में विकृत हो जाती है। इससे उन्हें खुशी मिलती है, जिससे वे अच्छी तरह खा-पी सकते हैं और गहरी नींद सो पाते हैं। मुझे बताओ, यह किस प्रकार का प्राणी है? उदाहरण के लिए, अगर कुछ भाई-बहनों को इस वर्ष अच्छी आमदनी हुई है और वे आर्थिक रूप से बेहतर हैं—वे थोड़ी ज्यादा भेंट चढ़ा रहे हैं, दसवें हिस्से से ज्यादा—तो वे ईर्ष्यालु हो जाते हैं और कहते हैं, “तुम इस वर्ष इतनी ज्यादा भेंट क्यों चढ़ा रहे हो? परमेश्वर किसी व्यक्ति के अच्छे या बुरे होने का निर्धारण इस बात से नहीं करता कि तुम कितनी भेंट चढ़ाते हो। तुम्हारी आतुरता का क्या तुक है? परमेश्वर के घर में पैसे की कमी नहीं है।” अप्रिय शब्द फिर बाहर आ जाते हैं, है ना? उचित या सत्य के अनुरूप कोई चीज चाहे कोई भी करे, उन्हें यह आपत्तिजनक लगता है और वे अपने दिलों में घोर नाराजगी महसूस करते हैं। वे तुम पर पकड़ हासिल करने के लिए हर संभव उपाय करते हैं, तुम पर हमला करने, तुम्हें दोष देने और तुम्हारी निंदा करने के बहाने ढूँढ़ते रहते हैं, जब तक कि वे तुम्हें परास्त न कर दें और तुम्हारी सकारात्मकता को ठोक-पीट कर बाहर न निकाल दें जिससे तुम पूरी तरह भ्रमित हो जाओ और क्या सही है और क्या नहीं, यह भेद करने में असमर्थ हो जाओ। फिर वे खूब हँसते हैं, भीतर से तुम्हारा मजाक उड़ाते हैं और अपने आप से कहते हैं, “तुम्हारी बस इतनी ही औकात है और तुम अनुभवजन्य गवाही की बात करते हो!” यह दानव है, जो अपना सच्चा रूप दिखा रहा है, है ना? क्या ये शैतान के किसी नौकर, किसी मसीह-विरोधी के शब्द नहीं हैं? (हाँ, हैं।) मैं इस प्रकार के व्यक्ति के बारे में जितना ज्यादा बोलता हूँ, उतना ही क्रोधित और विकर्षित हो जाता हूँ। क्या तुम लोग कभी ऐसे व्यक्तियों से मिले हो? उनका रंग-रूप और चेहरे के लक्षण चाहे जैसे भी हों, वे जब भी तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने वाले होते हैं तो उनके हाव-भाव अजीबोगरीब हो जाते हैं : उनके होंठ मुड़ जाते हैं, आँखें तिरछी हो जाती हैं, वे अब दूसरों से नजरें नहीं मिलाते और कुछ लोगों के नैन-नक्श अपनी जगह से खिसके हुए-से लगते हैं। यह एक संकेत है जो तुम तक पहुँचाया जा रहा है, जो तुम्हें बताता है कि वे अब इंसानों के बजाय किसी और तरह से बोलेंगे। तब तुम क्या करोगे? तुम इस संकेत को प्राप्त करोगे या उसे रोक दोगे? (रोक देंगे।) तुम्हें खुद को उनसे यह कहकर दूर कर लेना चाहिए : “मत बोलो; मैं इसे नहीं सुनना चाहता। तुम बहुत ज्यादा गपशप करते हो। अगर तुम इंसान की तरह नहीं बोलने जा रहे हो तो फिर मुझसे दूर रहो। मैं तुम्हारे द्वारा उत्पन्न किए जा रहे व्यवधानों का शिकार नहीं होना चाहता; मैं इन अनुचित अंतर्वैयक्तिक संबंधों में नहीं फँसना चाहता, मैं तुम जैसे किसी व्यक्ति पर ध्यान नहीं दूँगा।” जाँच-परख करो और देखो कि तुम लोगों में से कौन तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करता है, किसका आचरण ऐसा है और फिर तुरंत उनसे दूर हो जाओ। इन लोगों की मानवता की विशेषता क्या है? यह जहरीले ढंग से बोलना है, या बोलचाल की भाषा में कहें, तो उनके पास “जहरीली जबान” है। उनके जहरीले शब्दों को उजागर करके तुम उनके द्वारा दिए गए विभिन्न बयानों को समझ सकते हो; उनके बयानों के जरिए तुम उनके आंतरिक संसार को देख सकते हो और निर्धारित कर सकते हो कि वास्तव में उनका मानवता सार क्या है और क्या वे बुरे लोग हैं। इस प्रकार के लोग जो तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करते हैं, अपने द्वारा दिए गए विभिन्न संकेतों और बयानों के जरिए दूसरों को उन्हें बुरे लोगों के रूप में स्पष्ट रूप से चिन्हित करने देते हैं। इस प्रकार के लोग बहिष्कृत या निष्कासित किए जाने के मानक पर पूरी तरह से खरे उतरते हैं; उनके प्रति जरा भी दया नहीं दिखाई जा सकती। उन्हें बाहर निकाल दिया जाना चाहिए और उन्हें कलीसिया के भीतर बाधाएँ डालने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।

हमने अभी-अभी उस प्रकार के लोगों की विशेषताओं पर संगति की है जो तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करते हैं, और परमेश्वर में उनके विश्वास की स्थिति और उनकी मानवता की अभिव्यक्तियों से यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि वे उस प्रकार के व्यक्ति हैं जो सत्य से विमुख हैं और जो सत्य से प्रेम नहीं करते हैं। उनकी मानवता इस हद तक बुरी है कि तर्क उनके भीतर प्रवेश नहीं कर सकता और उनमें सबसे बुनियादी मानवीय नैतिकताओं तक की कमी होती है; बात बस इतनी है कि उनके विशेष मामले में उनकी खराब मानवता की विशेषता यह है कि वे खास तौर पर तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करते हैं। वे जो शब्द बोलते हैं उनसे उनकी मानवता की विशेषता और उनके मानवता सार को देखा जा सकता है; स्पष्ट रूप से इस प्रकार के लोग खराब मानवता वाले व्यक्ति होते हैं। उनकी मानवता किस हद तक खराब है? यह बुरी होने की सीमा तक खराब होती है, और इस तरह उन्हें बुरे लोगों के श्रेणी में रख देती है। यह इस कारण से है कि जो शब्द वे आम तौर पर बोलते हैं वे कभी-कभार शिकायती और थोड़ी ईर्ष्या व्यक्त करने वाले या कभी-कभार थोड़ी इंसानी कमजोरी दिखाने वाले नहीं होते; उनकी अभिव्यक्तियाँ एक सामान्य साधारण भ्रष्ट स्वभाव की नहीं होतीं, बल्कि यह साबित करने के लिए पर्याप्त होती हैं कि उन्हें बुरे लोगों के रूप में श्रेणीबद्ध किया जा सकता है। यह प्रथम प्रकार का व्यक्ति है : वे लोग जो तथ्यों और झूठों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना पसंद करते हैं।

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