अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (24) खंड दो
शैतानी राज्यों द्वारा शत्रुता और निगरानी के प्रति हमारा रवैया कैसा होना चाहिए? क्या हमें उसे ठुकराना चाहिए और उससे बचना चाहिए या बस उसे नजरअंदाज कर देना चाहिए? पहले, इस बारे में सोचो : क्या कलीसिया को उसके द्वारा किए जा रहे किसी भी कार्य की उनकी निगरानी से डर लगता है? (नहीं।) क्या हमारी कोई गुप्त गतिविधियाँ हैं? क्या हम कोई राज्य-विरोधी या सरकार-विरोधी राजनीतिक बयान देते हैं? (नहीं।) यह दृढ़ता के साथ कहा जा सकता है। परमेश्वर में विश्वास रखने में राजनीति में भाग लेना कभी भी शामिल नहीं होता। तुम लोगों में से ज्यादातर लोग तीन वर्ष से अधिक समय से परमेश्वर में विश्वास रखे हुए हो, कुछ बीस-तीस वर्ष से भी रखे हुए हैं। धर्मोपदेश सुनने के इन तमाम वर्षों में क्या कभी किसी ने कलीसिया को कोई राज्य-विरोधी या समाज-विरोधी बयान देते हुए सुना है? (नहीं।) बिल्कुल भी नहीं; परमेश्वर का घर कभी भी राजनीति पर चर्चा नहीं करता। यही नहीं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया परमेश्वर द्वारा स्थापित है, यह पृथ्वी पर परमेश्वर के राज्य का पूर्वानुभव है, यह किसी व्यक्ति द्वारा गठित संगठन नहीं है, न ही किसी व्यक्ति द्वारा स्थापित है। तो परमेश्वर ने कौन-सा कार्य करने के लिए कलीसिया को स्थापित किया? यह समाज-विरोधी, धर्म-विरोधी या राजनीति-विरोधी कार्य में संलग्न होने का कार्य नहीं है। तो फिर कलीसिया का कार्य क्या है? पहला, इसका मुख्य कार्य यह शुभ समाचार फैलाना है कि मानवजाति को बचाने के लिए अंत के दिनों में परमेश्वर देहधारी हुआ है, जिससे मानवजाति को परमेश्वर द्वारा व्यक्त सभी सत्य स्वीकार करने की अनुमति मिलती है ताकि वे परमेश्वर की ओर मुड़ सकें और उसकी आराधना कर सकें। दूसरा, इसमें सत्य के लिए लालायित लोगों को परमेश्वर के वचनों का न्याय और ताड़ना स्वीकार करने, शुद्ध होने और अंततः उद्धार प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के सामने लाना शामिल है। यह परमेश्वर द्वारा स्थापित कलीसिया द्वारा हाथ में लिया गया कार्य है और यह कलीसिया के अस्तित्व की महत्ता और मूल्य है। यह राजनीति, व्यापार, उद्योग, टेक्नॉलॉजी या समाज के किसी भी दूसरे क्षेत्र से अप्रासंगिक और असंबद्ध है; यह इन चीजों से पूरी तरह असंबंधित है। तो फिर कलीसिया के भीतर परमेश्वर के उद्धार कार्य का सार क्या है? सबसे सरल और सटीक शब्दों में कहूँ तो, यह मानवजाति का प्रबंधन करना है। मानवजाति का प्रबंधन करने की विशिष्ट विषयवस्तु में लोगों को परमेश्वर के सामने, परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में लाना शामिल है, जिससे वे शुद्ध होकर उद्धार प्राप्त करने के लिए परमेश्वर का न्याय और ताड़ना स्वीकार कर सकें। मानवजाति का प्रबंधन करने का यह विशिष्ट कार्य है। कलीसिया जिस भी कार्य में संलग्न होती है, वह परमेश्वर के प्रबंधन, परमेश्वर की योजना से संबद्ध होता है और निस्संदेह इसमें परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचन शामिल होते हैं; इसका सांसारिक लोगों द्वारा हाथ में लिए गए विभिन्न कामों से कोई संबंध नहीं होता। इसलिए, कलीसिया के बारे में कोई भी जानकारी का, चाहे वह उसकी शिक्षाओं, कार्मिकों, प्रशासनिक संरचनाओं, उसके कार्य की स्थिति या कलीसिया की वित्तीय स्थिति से संबंधित हो, किसी देश, किसी समाज, किसी जाति, किसी धर्म या किसी मानव समूह से कोई संबंध नहीं होता—लेशमात्र भी संबंध नहीं होता है। इसलिए, इन बातों को ध्यान में रखते हुए, चाहे वह सत्ताधारी दल हो या धार्मिक समूह हों या सामाजिक समूह हों, उनका कलीसिया की निगरानी करने के लिए लोगों को भेजना विशुद्ध रूप से क्या है? (एक अनावश्यक कार्यवाही।) “एक अनावश्यक कार्यवाही” एक औपचारिक अभिव्यक्ति है। सामान्य कहावत क्या है? करने के लिए कुछ बेहतर नहीं होना है, है ना? मेरे नजरिये से, यह ठीक वही है; उनके दिन बहुत ज्यादा सुख-सुविधा और आराम से भरे हुए हैं, इसलिए वे कलीसिया की निगरानी करने के लिए इन कुछ निठल्ले व्यक्तियों को भेज देते हैं, यहाँ तक कि इसे एक राजनीतिक काम, एक गंभीर काम के रूप में लेते हैं—यह पूरी तरह से बेतुका है! उस प्रयास से शैक्षणिक या धर्मार्थ संस्थाएँ खोलना काफी बेहतर होगा। यह बहुत अधिक दैहिक सुख के कारण निठल्ले बन जाने का, उचित कामों पर ध्यान केंद्रित नहीं करने का मामला है! अगर पूरी मानवजाति परमेश्वर की कलीसिया जैसी होती और परमेश्वर स्वयं चरवाही और अगुआई करता तो यह दुनिया, यह मानवजाति अनावश्यक संस्थाओं, खर्चों और मुसीबतों से बहुत बच पाती। कम-से-कम जासूसी संगठनों और पुलिस विभागों जैसी एजेंसियों का, इन सुरक्षा क्षेत्रों का कोई काम नहीं होता और उन्हें खत्म करके दूसरे कार्यों में लगा दिया गया होता।
जिन व्यक्तियों को कलीसिया की निगरानी का काम सौंपा जाता है वे एक मिशन पर होते हैं। कलीसिया में घुसपैठ करने पर उनका प्रमुख काम ये कुछ पहलू हैं जिन पर हमने संगति की है; कलीसिया में कुछ बुनियादी और अहम स्थितियों को समझ लेने के बाद, वे अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी सूचना देते हैं। उनके विचार, राय या कार्य के पीछे के उनके उद्देश्य चाहे जो हों, कलीसिया में इन निगरानी करने वालों की मौजूदगी से भाई-बहनों को इशारा मिलना चाहिए कि वे सतर्क रहें और उनसे बुद्धिमत्ता से निपटें। क्या यह दृष्टिकोण सही है? (हाँ, है।) तो फिर क्या बहुत अधिक चिंता की जरूरत है? (नहीं।) हमें ऐसे व्यक्तियों के प्रकटन को कैसे लेना चाहिए? इसके लिए दो सिद्धांत हैं, यह बहुत सरल है। अगर वे पूछताछ करते हुए और जानकारी खोजते हुए इधर-उधर घूमते हैं तो इससे वे साफ तौर पर एक जासूस या भेदिया के रूप में चिह्नित हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति बेहद नीच और ढीठ मानवता वाले होते हैं; वे कलीसिया में गंभीर बाधाएँ डालते हैं। सिर्फ उनकी मौजूदगी ही लोगों के बीच अशांति पैदा कर देती है, उन्हें परमेश्वर के सामने आने से रोक देती है। सभाएँ और कर्तव्य निर्वहन भी बाधित और प्रभावित हो जाते हैं और सुरक्षा संकट में पड़ जाती है। ऐसे व्यक्ति से कैसे निपटना चाहिए? (उन्हें कलीसिया से बाहर निकाल दो।) सही है; अगर वे कलीसियाई जीवन या कलीसियाई कार्य में बाधाएँ डालते हैं तो उन्हें सीधे दूर कर देना चाहिए। तो फिर क्या उनसे छिपने या डरने की कोई जरूरत है? (नहीं।) कुछ लोग विदेशों में जासूसों से सामना होने पर घबरा जाते हैं और इधर-उधर छिप जाते हैं, मानो मुख्यभूमि में उन्होंने पुलिस को देख लिया हो। जब कुछ भाई-बहन फुटकर कामों के लिए बाहर जाते हैं और उनका सामना जासूसों से हो जाता है जो उनसे सवाल पूछते हैं और जब वे देखते हैं कि उनके सवाल पूछने का लहजा पुलिस की पूछताछ की तरह कितना डराने-धमकाने वाला है तो वे इतना डर जाते हैं कि वे अपने काम पूरे किए बिना ही भाग जाते हैं। मैं कहता हूँ, “तुम इतने दब्बू कैसे हो सकते हो? भागने की क्या जरूरत है? डरने की क्या बात है? बड़े लाल अजगर के राष्ट्र में बहुत सारे भाई-बहनों को पकड़ लिया गया था मगर वे निडर रहे; वे यहूदा नहीं बने, वे अपनी गवाही में दृढ़ बने रहे। तो फिर, तुम तो पहले ही विदेश आ चुके हो, क्या तुम अब भी इतने ज्यादा भयभीत हो सकते हो? तुमने कोई कानून नहीं तोड़ा है; डरने की क्या बात है?” कुछ लोग कहते हैं : “वे हमेशा मेरे करीब आने की कोशिश करते हैं और वे हमेशा मुझसे पूछताछ करते रहते हैं।” क्या तुम उनसे वापस सवाल नहीं पूछ सकते? तुम कह सकते हो, “मुझसे पूछताछ करने का तुम्हें क्या हक है? क्या मैं तुम्हें जानता हूँ? क्या तुम बड़े लाल अजगर के कोई अधिकारी हो जो पहचान पत्रों की जाँच करता है? तुम किसका प्रतिनिधित्व करते हो? मुझसे और सवाल पूछे तो मैं तुम पर मुकदमा कर दूँगा!” क्या उनसे डरने की कोई जरूरत है? (नहीं।) कुछ लोग ऐसे जासूसों से सामना होने पर बोलने की हिम्मत नहीं करते और डर के मारे जल्दी से भाग जाते हैं। कुछ भ्रमित लोग बिल्कुल भी भेद नहीं पहचान पाते और यहाँ तक कि इन शैतानी जासूसों और चाटुकारों को सुसमाचार का उपदेश देने का प्रयास भी करते हैं। कुछ प्रयासों के बाद उन्हें एहसास होता है, “यह ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास है। वह बड़े लाल अजगर के किसी अधिकारी जैसा क्यों लगता है?” यह महसूस करके कि कुछ गड़बड़ है, वे हार मान लेते हैं। वे बाद में इस बारे में सोचते हैं : “परमेश्वर मेरी रक्षा कर रहा है; शुक्र है कि मैंने उन्हें कोई व्यक्तिगत जानकारी नहीं दी। कैसी झूठी चेतावनी है!” वे इतने भयभीत हैं कि अब किसी से भी मिलने पर यूँ ही सुसमाचार का प्रचार करने की हिम्मत नहीं करते। दरअसल, ऐसे जासूस भी सचमुच हुए हैं जिन्हें प्रचार के जरिए कलीसिया में लाया गया था। वे भेदिए हैं जिन्हें बड़े लाल अजगर ने कलीसिया में प्रत्यारोपित किया है, वे शैतान द्वारा जानबूझकर व्यवस्थित किए गए हैं। वे भेड़ों की पोशाक में भेड़ियों के समान हैं जो परमेश्वर के वचनों को खाए-पिए बिना या सत्य पर संगति किए बिना कलीसिया में घुसपैठ करते हैं, हमेशा कलीसिया के बारे में जानकारी के लिए जासूसी करते रहते हैं और व्यक्तिगत विवरणों में ताक-झाँक करते रहते हैं। एक बार यह पता चल जाए कि उनका व्यवहार संदेहास्पद है या वे कलीसिया में पहले ही बाधाएँ खड़ी कर चुके हैं तो उन्हें तुरंत दूर कर देना चाहिए—बड़े लाल अजगर के भेदियों को, शैतान के नौकरों को कलीसिया में बिल्कुल भी बाधा नहीं डालने देना चाहिए। जो भी तुम्हें मिले उसे बाहर निकाल दो; उन पर जरा भी दया मत दिखाओ! अगर कोई किसी जासूस के साथ मिल-जुलकर रहता हो, प्रेम की भावना से वह हमेशा जासूस से दयालुता से पेश आने को तैयार रहता हो, पूछे गए सभी सवालों के जवाब देता हो, जासूस के चाटुकार की भूमिका निभाता हो, तो ऐसी तलछट को सीधे निष्कासित कर देना चाहिए! संदेहास्पद व्यक्तियों पर करीब से नजर रखनी चाहिए और उनकी जाँच-परख करनी चाहिए; कलीसिया के बारे में एक भी विवरण उन्हें नहीं बताना चाहिए, खास तौर से यह कि अगुआ और कार्यकर्ता कौन हैं। अगर किसी जासूस को किसी जानकारी का पता लगने दिया जाता है तो इससे कलीसिया और भाई-बहनों के लिए कभी भी एक छिपा हुआ खतरा या विपत्ति खड़ी हो सकती है। इसलिए जब कोई व्यक्ति संदेहास्पद लगे, अगर वह कभी भी परमेश्वर के वचनों को खाता-पीता न हो या सत्य पर संगति न करता हो तो यकीनन वह एक छद्म-विश्वासी है और उसे तुरंत बाहर निकाल देना सही है। ऐसा व्यक्ति अगर जासूस न भी हो तो भी वह अच्छा व्यक्ति नहीं है और उसे बाहर निकाल देना किसी भी तरह से अन्यायपूर्ण नहीं है। अगर कोई व्यक्ति जासूस के बहुत करीब दिखाई दे और वह कलीसिया के साथ गद्दारी करने में सक्षम हो तो उसे हर परिस्थिति में तुरंत बाहर निकाल देना चाहिए। ऐसी तलछट और बदमाश लोग कलीसिया और भाई-बहनों के लिए सिर्फ विपत्ति ही ला सकते हैं। वे रक्षक कुत्तों से भी बदतर हैं; वे बुरे कर्म न भी करें तो भी उन्हें बाहर निकाल देना चाहिए। अब बड़ा लाल अजगर पतन की कगार पर है लेकिन वह अपनी पराजय और विनाश स्वीकारने को राजी नहीं है। उसका परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गिरफ्तार कर उत्पीड़ित करना जारी है, और वह परमेश्वर के घर में घुसपैठ करने के लिए जासूसी अभियान चलाता रहता है। उसका कलीसियाई कार्य में बाधा डालना और इसे बिगाड़ना कभी थमा नहीं है। अब, कुछ जाहिर तौर से संदेहास्पद व्यक्ति उजागर हो गए हैं। जानकारी इकट्ठा करने के उनके प्रयासों से हलचल मच गई है जिससे दूसरों के लिए उनकी असलियत जानना आसान हो गया है। एक बार जब वे खुद को उजागर कर देते हैं तो कलीसिया उन्हें बाहर निकाल देती है। लेकिन क्या सभी धूर्त जासूस उजागर हो चुके हैं? हो ही नहीं सकता। हर जगह की कलीसियाओं में बड़े लाल अजगर के एजेंटों द्वारा घुसपैठ होना मुमकिन है। बड़े लाल अजगर द्वारा पकड़े जाने के बाद कुछ व्यक्ति शैतान द्वारा धमकियों, प्रलोभनों और विभिन्न दूसरे उपायों से विवश किए जाते हैं कि वे उसकी ओर से कार्य करें और फिर कलीसिया में घुसपैठ करें। ये छिपे हुए जासूस हैं। ऐसे भेदिए विश्वासघाती और धूर्त होते हैं, जिनमें थोड़ी चतुरता और अक्ल होती है। गैर-विश्वासियों के शब्दों में उनमें थोड़ी क्षमता होती है। कलीसिया की निगरानी करते समय वे अप्रकट रूप से ऐसा करते हैं, चुपचाप और छिपकर कार्य करते हैं, अपने पारस्परिक क्रियाकलापों में कभी भी अपने सच्चे इरादों का खुलासा नहीं करते। ज्यादातर लोगों को उनसे बातचीत के समय कोई आभास नहीं होता; वे यह नहीं जानते कि जासूस जानकारी इकट्ठा कर रहा है, न ही वे परमेश्वर में विश्वास रखने के प्रति जासूस के विकर्षण को महसूस करते हैं। इससे पहले कि ज्यादातर लोगों को यह एहसास हो कि जासूस वहाँ कलीसिया की निगरानी करने के लिए है, जासूस कलीसिया की बुनियादी स्थिति को शायद पहले ही समझ चुका होता है। ऊपर से ऐसे व्यक्ति कलीसिया या ज्यादातर लोगों को बाधित नहीं करते, तो फिर उनसे कैसे निपटना चाहिए? उनके द्वारा की जा रही कलीसिया की निगरानी से निपटने के लिए क्या हमें कोई उपाय या समाधान करने चाहिए? जैसा पहले कहा गया है, क्या कलीसिया उनके द्वारा किसी भी पहलू की निगरानी से डरती है? (नहीं।) हमारी कलीसिया का अस्तित्व और कार्य की विभिन्न मदें जिन में वह संलग्न होती है, वे सार्वजनिक रूप से और ईमानदारी से की जाती हैं; कार्य की ये मदें मानवजाति के बीच सबसे ज्यादा न्यायपूर्ण हैं। अगर कोई संगठन कलीसिया के किसी पहलू को समझना चाहता है तो कलीसिया की अनुभवजन्य गवाहियाँ सार्वजनिक रूप से ऑनलाइन प्रसारित की जाती हैं—हर कोई उन्हें अपनी पसंद से देख सकता है। कोई रहस्य नहीं हैं, कोई गैर-कानूनी गतिविधियाँ नहीं हैं और निश्चित रूप से सामाजिक व्यवस्था के लिए कोई विघ्न या कथनी और करनी में कोई विरोधाभास नहीं हैं। इस तरह अगर वे चोरे-छिपे कलीसिया की स्थिति की खोजबीन और निगरानी करते हैं तो उन्हें करने दो। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? एजेंटों के रूप में कार्य करने वाले इन व्यक्तियों के पास एक खास पेशेवर मानक होता है और साधारण लोग यह पता नहीं लगा सकते कि परदे के पीछे वे वास्तव में कौन-से कार्य करते हैं। तो, अगर वे बाधाएँ पैदा नहीं करते तो उन को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है; बस उन्हें रहने दो। इसके अलावा, ये छद्म-विश्वासी, नास्तिक और राजनीतिक गतिविधियों में संलग्न व्यक्ति कलीसियाई जीवन के आदी नहीं होते, न ही उसमें रुचि रखते हैं। कलीसिया में, जहाँ हर दिन लोग परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, न्याय और ताड़ना स्वीकारते हैं और स्वयं को जानने, परमेश्वर को जानने और स्वभाव में परिवर्तन के बारे में चर्चा करते हैं, ऐसा कैसे हो सकता है कि वे काँटों या सुइयों पर चलने या यातना से गुजरने जैसा महसूस न करें? प्रत्येक सभा में वे गर्म तवे पर पड़ी चींटियों की तरह तिलमिलाते हैं; वे कलीसिया में रहने के लिए खुद को मजबूर करने में अनिच्छुक महसूस करते हैं। वे अपने दिलों में समझते हैं कि कलीसिया सिर्फ एक कलीसिया है और कोई राजनीतिक कार्य में संलग्न संगठन नहीं है। कलीसिया की निगरानी करने और उसके बारे में जानने से, और उसके वास्तविक कार्यों से अवगत होने से वे इस तथ्य के बारे में शिक्षित हो जाते हैं कि परमेश्वर सभी चीजों और मानवजाति के भाग्य पर संप्रभु है, जिससे उनके क्षितिज का विस्तार होता है ताकि वे इतनी अज्ञानता में न रहें। वे भी सृजित प्राणी हैं, फिर भी वे यह तक नहीं जानते कि मनुष्य परमेश्वर द्वारा सृजित है, जो यह दर्शाता है कि वे कितने मूर्ख और तुच्छ हैं! क्या उन्हें कलीसिया में रहने देने से कोई जोखिम है? अगर वे कलीसिया या भाई-बहनों के लिए कोई खतरा या बाधा पैदा नहीं करते, तो उन्हें रहने दो। जब कभी वे ऐसा कुछ करें जिससे बाधा पैदा हो तो वह उनके उजागर होने की घड़ी होती है और वही उनसे निपटने का सही समय होता है। तथ्यों और साक्ष्य के आधार पर, उन्हें तुरंत पहचान लो और उनका चरित्र चित्रण करो—उनका मिशन खत्म हो जाता है और कलीसिया स्वाभाविक रूप से उन्हें निष्कासित कर देती है। क्या उनसे निपटने का यह तरीका सही है? (हाँ।) कुछ लोग पूछते हैं, “क्या कलीसिया का कार्य सार्वजनिक रूप से और ईमानदारी से नहीं किया जाता है? लोगों द्वारा निगरानी को प्रतिबंधित क्यों करें?” इसका लक्ष्य मुख्य रूप से बड़े लाल अजगर, शैतान का शासन है। उसके द्वारा कलीसिया की निगरानी करने का उद्देश्य दमन, गिरफ्तारी और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को हानि पहुँचाना है; इसलिए परमेश्वर का घर अपनी निगरानी की इजाजत नहीं देता ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उत्पीड़न और नर-संहार से रोका जा सके। अगर लोकतांत्रिक देशों या धार्मिक समूहों के व्यक्ति सच्चे मार्ग की खोजबीन करने आते हैं तो वे ऑनलाइन देख सकते हैं या कलीसिया से संपर्क कर सकते हैं। कलीसिया ऐसे किसी भी व्यक्ति का स्वागत करती है जो ईमानदारी से सत्य खोजता है। लेकिन अगर दूसरा पक्ष बुरी मंशाएँ पाले हुए है और गलत और सही को विकृत करने और कलीसिया को बदनाम करने का प्रयास करता है तो परमेश्वर का घर अपनी निगरानी की इजाजत कैसे दे सकता है? क्या उन्हें निगरानी की इजाजत देना बेहद बेवकूफी नहीं होगी? क्या यह मूर्खतापूर्ण और अज्ञानतापूर्ण नहीं होगा? (हाँ।) परमेश्वर के घर ने सत्य खोजने वालों का हमेशा स्वागत किया है और वह उनका गर्मजोशी से स्वागत करता है, जो पूरी तरह से परमेश्वर के इरादों के अनुसार है। अगर लोग यह नहीं समझते तो यह उनकी मूर्खता और अज्ञानता के कारण है। कलीसिया की बाहरी मामलों की नीति सार्वजनिक रूप से और ईमानदारी से संचालित होती है, पूरी तरह से सत्य सिद्धांतों से मेल खाती है, और अक्ल और बुद्धिमत्ता से परिपूर्ण है। अगर कोई इन सकारात्मक चीजों को नहीं समझ सकता तो वह एक बेतुका और भ्रमित व्यक्ति है। कुछ लोग कहते हैं, “अगर भेदिए या शैतान के नौकर कलीसिया के बारे में जान लेते हैं तो क्या हमें ईमानदार होकर उनके सवालों का सच्चाई से जवाब देना चाहिए?” दानवों और शैतानों को सत्य बताना बेवकूफी है; इससे कोई व्यक्ति ईमानदार नहीं बन जाता, बल्कि शैतान का चाटुकार बन जाता है। जब शैतान की किस्म के लोग कलीसिया की स्थितियों के बारे में जानना और समझना चाहते हैं तो परमेश्वर के चुने हुए लोगों की कोई जिम्मेदारी नहीं है कि उन्हें बताएँ। वे सत्य स्वीकार नहीं कर सकते और कोई सद्भावना नहीं रखते, इसलिए हमारे पास उनसे कहने को कुछ भी नहीं है! यह करना उतावला होना नहीं, बल्कि बुद्धिमान होना है। कुछ लोग पूछते हैं, “अगर वे मुझसे पूछें, ‘तुम लोगों की कलीसिया की अगुआई कौन करता है? उसने कितने वर्ष विश्वास रखा है?’ तो क्या मैं उन्हें बता सकता हूँ?” तुम्हें उनसे पूछना चाहिए, “हमारे अगुआ के बारे में जानने का तुम्हारा उद्देश्य क्या है? पहले मुझे बताओ, मैं उस पर विचार करूँगा और फैसला लूँगा कि तुम्हें बताऊँ या नहीं।” क्या यह जवाब बुद्धिमत्तापूर्ण है? (हाँ, है।) इसे सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना कहा जाता है। समझ रहे हो? जैसे-जैसे सुसमाचार कार्य फैलता है, और धीरे-धीरे कलीसिया में लोगों की संख्या बढ़ती है, समय-समय पर विभिन्न देशों और क्षेत्रों में हर कहीं कलीसियाओं में भेदिए और एजेंट प्रकट हो सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों के लिए, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बस यह बता देना काफी होगा कि वे उनके साथ बुद्धिमानी से पेश आएँ। अगर यह पता चले कि वे विघ्न-बाधाएँ पैदा करते हैं, तो फिर उन्हें तुरंत बाहर निकाल देना चाहिए। ज्यादातर लोगों को इन एजेंटों के बात करने और कार्य करने के तरीके या उनके आचरण की थोड़ी समझ और पहचान होनी चाहिए और उन्हें उनसे बातचीत करते समय यकीनन थोड़ी जागरूकता या बोध होगा। अगर कलीसिया में केवल थोड़े-से भाई-बहनों का ध्यान ऐसे व्यक्तियों पर जाए मगर वे सुनिश्चित न हों कि वे जासूस या भेदिए हैं या नहीं, तो उनसे सावधानी और बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से पेश आना चाहिए। अगर ज्यादातर लोगों ने ध्यान दिया हो तो वे एक-दूसरे को सूचित कर सकते हैं, और निवारक कदम उठा सकते हैं। अगर संदेहास्पद जासूस कलीसिया या भाई-बहनों के प्रति मित्रता न दिखाएँ, निरंतर भाई-बहनों को फँसाने और कलीसिया में बाधा डालने का प्रयास करें, और हमेशा कलीसिया को बदनाम करने के साक्ष्य ढूँढ़ते रहें, यहाँ तक कि भाई-बहनों की तस्वीरें लेते रहें या रिकॉर्डिंग करते रहें, या जो वे जानना चाहते हैं वह जानकारी निकालने के लिए बहकावे और प्रलोभन का उपयोग करें, तो एक बार पता चल जाने पर ऐसे व्यक्तियों को बेरोकटोक जाने नहीं दिया जा सकता—उन्हें कलीसिया से तुरंत बाहर निकाल दिया जाना चाहिए। हो सकता है कि तुम लोगों का पहले ऐसी स्थितियों से सामना न हुआ हो, इसलिए मैं तुम लोगों को पहले से ही सचेत कर रहा हूँ। यह तुम्हारी समझ को व्यापक बनाने, मानवजाति, समाज, राजनीति और दुनिया को जानने के बारे में है—यह इतना ही अधिक अंधकारमय और इतना ही अधिक बुरा है।
परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए व्यक्ति के नौवें उद्देश्य—कलीसिया की निगरानी करना—के बारे में बुनियादी विषयवस्तु पर संगति यहीं समाप्त होती है। क्या हर चीज पर स्पष्ट संगति की गई है? (हाँ।) जो लोग कलीसिया की निगरानी करते हैं, उनका लक्ष्य किन विषयवस्तुओं की निगरानी करना होता है? (कलीसिया की शिक्षाएँ, कार्मिक स्थितियाँ, कार्य स्थितियाँ, और वित्तीय स्थिति।) मूल रूप से ये चार क्षेत्र हैं जिनके बारे में वे सबसे अधिक चिंतित रहते हैं। इन चार पहलुओं में क्या शामिल होते हैं? इनमें वे चीजें शामिल होती हैं जिनके बारे में वे सबसे अधिक चिंतित रहते हैं : समाज, राष्ट्र और धार्मिक संसार पर कलीसिया की मौजूदगी का प्रभाव। वे इस बात को लेकर भी चिंतित रहते हैं कि कलीसिया राजनीति में शामिल होने और सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए धर्म का इस्तेमाल कर सकती है, और वे इसे एक सबसे बड़े छिपे हुए खतरे के रूप में देखते हैं। इस तरह वे कलीसिया का दमन और उत्पीड़न करते हैं और उस पर प्रतिबंध लगाते हैं, और इसके सदस्यों को गिरफ्तार करते हैं। बड़े लाल अजगर का राष्ट्र सभी धार्मिक विश्वासों पर प्रतिबंध लगाता है, कुछ देश कुछ विश्वासों पर प्रतिबंध लगाते हैं और ज्यादातर देश डरते हैं कि कहीं सत्य सत्ताधारी न हो जाए और लोग सत्य स्वीकार न कर लें, जो उनके राज के लिए खतरा है। संक्षेप में कहूँ तो, किसी जगह पर परमेश्वर जितना अधिक कार्य करता है और जितना अधिक सत्य व्यक्त करता है और किसी कलीसिया में पवित्र आत्मा का कार्य जितना अधिक होता है, विभिन्न सरकारों द्वारा उनकी निगरानी करने और उन्हें शत्रुता से देखने की संभावना उतनी ही ज्यादा हो जाती है। इसलिए सरकारें कलीसिया की स्थिति के बारे में जानने और उसे समझने के लिए अक्सर एजेंटों को सच्चे मार्ग की खोजबीन करने वाले लोगों के भेस में भेजती हैं, ताकि कलीसिया की गतिविधियों की निगरानी कर सकें। इसके अतिरिक्त, अन्य चिंताओं के अलावा वे कलीसियाई कार्य की प्रवृत्तियों को समझने का प्रयास करती हैं, यह देखने के लिए कि क्या कलीसिया राजनीति में शामिल है, क्या यह कलीसियाई कार्य करने की आड़ में कुछ राजनीतिक गतिविधियों में भाग तो नहीं लेती है या क्या विदेशी धार्मिक शक्तियों से इसके कोई संबंध हैं। ये वे चीजें हैं जिनको वे समझना चाहती हैं और जिनके बारे में वे चिंतित रहती हैं। यही नहीं, कलीसिया की वित्तीय स्थिति भी एक ऐसी चीज है जिसे वे समझना चाहती हैं। वे विचार करती हैं : “कलीसिया की संख्या बढ़ गई है और यह तेजी से विकसित हुई है—इसका पैसा कहाँ से आता है? कौन-से संगठन या धनी व्यक्ति उसे दान देते हैं?” संक्षेप में कहूँ तो ऐसी कोई भी चीज नहीं है जिस बारे में हम नहीं सोचें कि इस पर उन्होंने विचार नहीं किया है। क्यों? क्योंकि वे बुरे हैं; वे बुरे इंसान हैं। कलीसिया की स्थिति को समझने के उनके प्रयास कलीसिया के अस्तित्व को लेकर उनकी अत्यधिक चिंता से निकलते हैं, उन्हें डर है कि कलीसिया ज्यादा लोगों को प्रभावित कर सकती है, जो उनके राज्य के लिए खतरा पैदा करेगा; कलीसिया के संबंध में वे ठीक इसी बात को लेकर चिंतित रहते हैं। कलीसिया द्वारा हाथ में लिया गया कार्य चाहे जितना भी उचित और जायज क्यों न हो, वे फिर भी यकीन नहीं करते। क्यों? क्योंकि वे छद्म-विश्वासी, नास्तिक और भौतिकवादी हैं—भौतिकवादी लोग बस यही कर सकते हैं। ये चार स्थितियाँ हैं जिनके बारे में वे चिंता करते हैं। हमने अभी इन चार स्थितियों के बारे में ऐसे व्यक्तियों की चिंताओं के पीछे के कारणों और उद्देश्यों को समझने के बाद उनसे निपटने के उचित तरीके से संबंधित दो सिद्धांतों पर संगति की। इन सिद्धांतों का सरल सारांश प्रस्तुत करो और उनके बारे में बताओ। (अगर वे कलीसिया में बाधाएँ उत्पन्न करें, तो उन्हें दूर कर दो; अगर वे बाधाएँ उत्पन्न न करें, तो उनके बारे में परेशान होने की जरूरत नहीं है।) अगर वे बाधाएँ उत्पन्न करें, हर जगह जासूसी करें और दहशत फैलाएँ, तो बिना किसी दया के उन्हें दूर कर दो; अगर वे बाधाएँ खड़ी न करें, और ज्यादातर लोगों का ध्यान उन पर न जाए या वे उन्हें पहचान न सकें, तो उनकी अनदेखी करो। एक बार जब वे स्पष्ट रूप से देखेंगे कि यह सचमुच कलीसियाई कार्य है, ये पूरी तरह से धार्मिक गतिविधियाँ हैं और राजनीति में बिल्कुल शामिल नहीं हैं, तो इस बात की पुष्टि होते ही वे अपने आप चले जाएँगे। धार्मिक स्थितियों को समझने के लिए लोकतांत्रिक देश यह तरीका अपनाते हैं। इस बात का पहले भी जिक्र किया जा चुका है कि मानवजाति अत्यंत जटिल है। मानवजाति की जटिलता का कारण क्या है? क्या यह मानवजाति की बुराई से उत्पन्न नहीं हुई है? (हाँ।) मानवजाति की बुराई का उद्गम कैसे हुआ? ऐसा क्यों है कि मानवजाति बुरी है? इस कारण से कि शैतान ने मानवजाति को बहुत गहराई तक भ्रष्ट कर दिया है। इसे सरल भाषा में कैसे कहा जाता है? ऐसे कि शैतान ने लोगों को राक्षसों में बदल दिया है; पूरी मानवजाति दानवों के राज्य के अधीन है, जहाँ बहुत सारे बड़े और छोटे दानव हैं, इसलिए लोग जहाँ सभाएँ करते हैं वे राक्षसों के शहर बन गए हैं। जब बहुत-से राक्षस एक साथ सभा करते हैं, तो स्थिति जटिल हो जाती है; वे हर प्रकार के बुरे कर्म करने और हर तरह की नापाक गतिविधियों में संलग्न होने में सक्षम होते हैं। क्योंकि सभी दानव बुरे होते हैं, और उनके बीच हमेशा संघर्ष होता है और वे एक-दूसरे के साथ कभी संगत नहीं हो सकते, इससे मामले पेचीदा हो जाते हैं। जब परमेश्वर में सच्चे दिल से विश्वास रखने वाले लोग एक साथ आते हैं, तो यह बहुत आसान होता है; वे सब परमेश्वर के वचन पढ़ने और कलीसियाई जीवन जीने को तैयार होते हैं, और उन सभी को अपने कर्तव्य निभाने और उचित कामों में संलग्न होने में आनंद आता है। वे कुटिल और नापाक गतिविधियों में भाग नहीं लेते—ज्यादा से ज्यादा हो सकता है कि वे थोड़ी भ्रष्टता प्रकट करें। केवल ऐसे ही लोग परमेश्वर में आस्था के जरिए उद्धार प्राप्त कर सकते हैं। दानव कभी भी परमेश्वर में आस्था के जरिए बचाए नहीं जा सकते क्योंकि कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं होती। दानव दशकों या शताब्दियों तक भी परमेश्वर में विश्वास रख लें, तो भी वे नहीं बदलेंगे, जो ऐसा तथ्य है जो सभी को दिखाई देता है। अब, बहुत-सी कलीसियाओं ने उन लोगों को दूर कर दिया है जो दानव हैं, जो एक अच्छी बात है और पूरी तरह से परमेश्वर के इरादों से मेल खाती है। कुछ कलीसियाओं में आधे लोग दानव होते हैं, जबकि दूसरी कलीसियाओं में दानव कम संख्या में होते हैं। क्या ऐसी कलीसियाओं में कलीसियाई कार्य को क्रियान्वित करना आसान है? निश्चित रूप से नहीं। अगर दानवों को दूर कर दिया जाए और सिर्फ भ्रष्ट मानवजाति ही रह जाए, तो कलीसियाई कार्य करना बहुत आसान हो जाता है। सबसे दयनीय स्थिति तब होती है जब कुछ कलीसियाओं में झूठे अगुआ या मसीह-विरोधी सत्ता में होते हैं और दानव अगुआई की भूमिका में होते हैं; फिर उन कलीसियाओं में परमेश्वर के चुने हुए लोग वास्तव में पीड़ित होते हैं। तुम्हीं बताओ, क्या सत्ता में बैठे झूठे अगुआ या मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए शांति और आनंद ला सकते हैं? झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों के ख्याल और विचार पूरी तरह से बुरे और सत्य के विपरीत होते हैं। अगर दस-बीस जीवित राक्षस उनका समर्थन करते हों, तो ऐसी कलीसिया में रहना ऐसी जगह रहने जैसा है जहाँ राक्षस इकठ्ठा होते हैं, किसी दानवराज द्वारा नियंत्रित राक्षसों की मांद में रहने जैसा है; यह किसी कीमा बनाने की मशीन के भीतर रहने जैसा है, जो तुम्हारे मन और आत्मा दोनों को बेचैन कर देगा। हर दिन तुम्हारे विचारों पर ऐसी चीजें हावी होंगी जैसे किससे लड़ना-झगड़ना है, किससे मित्रता करनी है और किसके करीब होना है, किससे बचना और सतर्क रहना है, वगैरह-वगैरह; तुम्हारे पास शांति का माहौल भी नहीं होगा, निरंतर लेशमात्र भी सुकून के बिना, भय और घबराहट में जियोगे। क्या यह कीमा बनाने की मशीन में रहने जैसा नहीं है? (हाँ, है।) यह बुरा समाज, यह बुरी मानवजाति प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक समूह या संगठन से एक ही तरह से पेश आती है, सभी पर एक ही राय और दृष्टिकोण लागू करती है। इसी तरह से वे कलीसिया के प्रति भी बेचैन होते हैं, जोकि एक अपेक्षाकृत सकारात्मक संस्था है और वे उसे भी नहीं बख्शते। चाहे जो हो, हम उनसे जिस ढंग से पेश आते हैं, वह सिद्धांतयुक्त होता है, है ना?
परमेश्वर में विश्वास रखने के नौवें उद्देश्य—कलीसिया की निगरानी करना—पर अब पूरी तरह से संगति की जा चुकी है, और अगुआओं और कार्यकर्ताओं की चौदहवीं जिम्मेदारी की पहली श्रेणी की पूरी विषयवस्तु पर भी मूल रूप से संगति की जा चुकी है। परमेश्वर में विश्वास रखने के छद्म-विश्वासियों और नास्तिकों के उद्देश्यों के सारांश में मूल रूप से ये मुद्दे शामिल होते हैं। अंतिम उद्देश्य जिस पर संगति की गई थी वह विषयवस्तु के मामले में पिछले उद्देश्यों से थोड़ा भिन्न है। जब कलीसिया की निगरानी करने वाले लोग कलीसिया में घुसपैठ करते हैं तो वे मुफ्त भोजन, रुतबे या जीवन और काम की सुख-सुविधाओं के पीछे नहीं भागते हैं, बल्कि वे राजनीतिक उद्देश्य लेकर आते हैं। उनके उद्देश्य चाहे जो भी हों, एक बार जब हम उनकी असलियत समझ कर उन्हें पहचान लेते हैं, तो हमें तुरंत उचित कार्यवाही करनी चाहिए, इन व्यक्तियों को बहिष्कृत या निष्कासित कर देना चाहिए, उन्हें कलीसिया में ज्यादा समय तक घात लगाकर बैठे रहने की बिल्कुल भी अनुमति नहीं देनी चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए यह एक महत्वपूर्ण काम है। परमेश्वर में विश्वास रखने के उनके उद्देश्य के आधार पर, पहचानो और तय करो कि कौन सच्चे भाई-बहन—परमेश्वर के चुने हुए लोग—हैं और कौन विभिन्न प्रकार के बुरे लोग हैं जिन्हें कलीसिया को बहिष्कृत या निष्कासित कर देना चाहिए; इन बुरे लोगों की तुरंत पहचान करो, और फिर उन्हें बहिष्कृत या निष्कासित करने के लिए तुरंत अनुकूल तरीका अपनाओ। बुरे लोगों के विभिन्न प्रकारों को पहचानने और श्रेणीबद्ध करने की पहली श्रेणी है : परमेश्वर में विश्वास रखने का किसी का उद्देश्य। हमने इस पर अपनी संगति समाप्त कर ली है।
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