अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (24) खंड एक
मद चौदह : सभी प्रकार के बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को तुरंत पहचानो और फिर बहिष्कृत या निष्कासित कर दो (भाग तीन)
विभिन्न प्रकार के बुरे लोगों को पहचानने के मानक और आधार
I. परमेश्वर में विश्वास रखने के उद्देश्य के आधार पर
पिछली सभा में हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की चौदहवीं जिम्मेदारी पर संगति की : “सभी प्रकार के बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को तुरंत पहचानो और फिर बहिष्कृत या निष्कासित कर दो।” इस जिम्मेदारी की विषयवस्तु के आधार पर हमने विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न लोगों की विभिन्न अभिव्यक्तियों को संक्षेप में प्रस्तुत किया और फिर इन विभिन्न व्यक्तियों को उनकी अभिव्यक्तियों के आधार पर पहचाना। इन व्यक्तियों को पहचानने के जरिए हमने उन बुरे लोगों को स्पष्ट रूप से पहचानने का लक्ष्य बनाया जिन्हें पहचानने और बहिष्कृत करने की परमेश्वर के घर को जरूरत है—यानी, जिन्हें परमेश्वर के घर में रहने की अनुमति नहीं है और जो बहिष्कृत किए जाने के निशाने पर हैं। पिछली दो बार, हमने विभिन्न प्रकार के बुरे लोगों को तीन पहलुओं के जरिए पहचानने और श्रेणीबद्ध करने के बारे में संगति की। आज, हम इन विभिन्न प्रकार के बुरे लोगों को तीन पहलुओं के जरिए श्रेणीबद्ध करने के बारे में विभिन्न बारीकियों पर संगति जारी रखेंगे। सबसे पहले, चौदहवीं जिम्मेदारी और उसमें सूचीबद्ध तीन विशिष्ट श्रेणियों को पढ़ो। (अगुआओं और कार्यकर्ताओं की चौदहवीं जिम्मेदारी : “सभी प्रकार के बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को तुरंत पहचानो और फिर बहिष्कृत या निष्कासित कर दो।” पहला, परमेश्वर में विश्वास रखने का व्यक्ति का उद्देश्य; दूसरा, व्यक्ति की मानवता; तीसरा, अपने कर्तव्य के प्रति व्यक्ति का रवैया।) पढ़ने के बाद, क्या तुम लोग पिछली दो संगतियों की बुनियादी विषयवस्तु को कुछ हद तक याद कर पाते हो? (हाँ।) आओ पहले अपनी पिछली संगति की विषयवस्तु की समीक्षा करें। (पिछली बार, परमेश्वर ने परमेश्वर में विश्वास रखने के व्यक्ति के उद्देश्य के बारे में संगति की थी, और इस विषय के बिंदु चार से आठ तक को शामिल किया था : चौथा, अवसरवादिता में संलिप्त होना; पाँचवाँ, कलीसिया के सहारे जीवन-यापन करना; छठवाँ, शरण लेना; सातवाँ, किसी समर्थक को ढूँढ़ना, आठवाँ, राजनीतिक लक्ष्यों का अनुसरण करना।) पिछली संगति में इन पाँच बिंदुओं पर चर्चा की गई थी। इन पाँच प्रकार के लोगों की बुनियादी अभिव्यक्तियों और उनमें प्रकट भ्रष्ट सार के बारे में संगति के जरिए, उनके व्यवहारों, परमेश्वर में विश्वास रखने के उनके इरादों और उद्देश्यों, और परमेश्वर से उनकी निरंतर माँगों को देखते हुए, क्या इन लोगों को भाई-बहन माना जाना चाहिए और कलीसिया में रहना चाहिए? (नहीं, ऐसे लोगों को दूर कर देना चाहिए क्योंकि परमेश्वर में उनका विश्वास सत्य के अनुसरण या उद्धार के अनुसरण के लिए नहीं है। उनके सबके अपने व्यक्तिगत इरादे और मंसूबे होते हैं, इस आशा में कि वे अपने लिए चालाकी से फायदे बटोरेंगे और परमेश्वर के घर में लाभ प्राप्त करेंगे। वे ऐसे लोग नहीं हैं जो परमेश्वर में वास्तव में विश्वास रखते हैं; वे सभी छद्म-विश्वासी हैं।) अगर छद्म-विश्वासियों को कलीसिया से बाहर नहीं निकाला गया, तो वे कलीसियाई कार्य और भाई-बहनों को क्या हानि पहुँचा सकते हैं? (वे न तो परमेश्वर के वचन को खाते-पीते हैं, न ही परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हैं; वे सत्य को स्वीकारे बिना कलीसिया में बने रहते हैं। यही नहीं, वे नकारात्मकता और धारणाएँ फैला सकते हैं और इस तरह विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न कर सकते हैं, और एक नकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं।) ये अभिव्यक्तियाँ मूल रूप से लोगों को नजर आती हैं।
पिछली संगति में जिन पाँच किस्म के लोगों की अभिव्यक्तियों पर चर्चा की गई थी, उन्हें देखते हुए, क्या कोई ऐसी विशेषता है जो इन लोगों में समान है? (हाँ।) उनकी समान विशेषता क्या है? (ये सभी लोग छद्म-विश्वासी हैं।) (वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते हैं, सत्य में विश्वास नहीं रखते हैं, और सत्य में दिलचस्पी नहीं रखते हैं।) यह उनके सार से संबंधित है। चूँकि वे सत्य में विश्वास नहीं रखते हैं, इसलिए वे सत्य को स्वीकार नहीं करेंगे। सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करने वालों का सार छद्म-विश्वासी का सार होता है। छद्म-विश्वासियों की पहचान क्या है? वे अवसरवादिता में संलिप्त होने, कलीसिया के सहारे जीवन-यापन करने, आपदाओं से बचने, सहारा और खाने का टिकाऊ जुगाड़ खोजने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। इनमें से कुछ लोग कृपादृष्टि प्राप्त करने और आधिकारिक नियुक्ति हासिल करने के लिए कुछ मामलों के जरिये सरकार से संबंध बनाने की चाह में राजनीतिक लक्ष्यों के पीछे भी भागते हैं। ऐसे लोगों में से हर आखिरी व्यक्ति छद्म-विश्वासी है। वे परमेश्वर में अपने विश्वास में ये मंशाएँ और इरादे लेकर चलते हैं, और वे अपने दिलों में पूरे यकीन से यह विश्वास नहीं करते हैं कि कोई परमेश्वर भी है। अगर वे उसे स्वीकार कर भी लें, तो वे ऐसा संदेहपूर्वक करते हैं, क्योंकि वे जिन विचारों से चिपके रहते हैं, वे नास्तिक वृत्ति के हैं। वे सिर्फ उन्हीं चीजों पर विश्वास करते हैं जिन्हें वे इस भौतिक दुनिया में देख पाते हैं। हम क्यों कहते हैं कि वे यह विश्वास नहीं करते हैं कि कोई परमेश्वर भी है? क्योंकि वे सर्वसम्मति से ये तथ्य मानते या स्वीकारते नहीं हैं कि परमेश्वर ने स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीजें बनाई हैं, और यह भी कि मानवजाति को बनाने के बाद परमेश्वर उसकी अगुवाई करता और उस पर संप्रभुता रखता आया है। इस तरह, वे संभवतः इस तथ्य पर विश्वास नहीं कर सकते हैं कि परमेश्वर देहधारी हो सकता है। अगर वे यह विश्वास नहीं करते हैं कि परमेश्वर देहधारी हो सकता है, तो क्या वे परमेश्वर द्वारा व्यक्त सभी सत्यों पर विश्वास करने और उन्हें मानने के काबिल हैं? (वे नहीं हैं।) अगर वे परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्यों पर विश्वास नहीं करते हैं, तो क्या वे यह विश्वास करते हैं कि परमेश्वर मानवजाति को बचा सकता है और क्या वे मानवजाति को बचाने की उसकी प्रबंधन योजना में विश्वास करते हैं? (वे नहीं करते हैं।) वे इनमें से किसी पर भी विश्वास नहीं करते हैं। उनके अविश्वास की जड़ क्या है? वह यह है कि वे विश्वास नहीं करते हैं कि परमेश्वर का अस्तित्व है। वे नास्तिक और भौतिकवादी हैं। वे मानते हैं कि भौतिक दुनिया में वे जिन चीजों को देख पाते हैं सिर्फ वही चीजें वास्तविक हैं। वे मानते हैं कि शोहरत, लाभ और रुतबा सिर्फ साजिशों और अनुचित साधनों के जरिये हासिल किए जा सकते हैं। वे मानते हैं कि समृद्ध होने और सुखी जीवन जीने का एकमात्र तरीका शैतानी फलसफों के अनुसार जीना है। वे मानते हैं कि उनकी किस्मत सिर्फ उनके अपने हाथ में है, और यह कि उन्हें सुखी जीवन को बनाने और हासिल करने के लिए खुद पर भरोसा करना चाहिए। वे परमेश्वर की संप्रभुता या उसकी सर्वशक्तिमत्ता में विश्वास नहीं रखते हैं। वे सोचते हैं कि अगर वे परमेश्वर पर भरोसा करेंगे, तो उनके पास कुछ नहीं होगा। अंततः, वे यह नहीं मानते हैं कि परमेश्वर के वचन सब कुछ पूरा कर सकते हैं, और वे परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता में विश्वास नहीं रखते हैं। यही कारण है कि परमेश्वर में उनके विश्वास में इरादे और उद्देश्य उत्पन्न होते हैं, जैसे कि अवसरवादिता में संलिप्त होना, कलीसिया के सहारे जीवन-यापन करना, शरण लेना, किसी समर्थक को ढूँढ़ना, विपरीत लिंग के व्यक्ति से दोस्ती करना, और राजनीतिक लक्ष्यों का अनुसरण करना—अपने लिए आधिकारिक पद और एक स्थिर भोजन स्रोत सुरक्षित करना। ये लोग यह नहीं मानते कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है, ठीक इसी कारण वे अपने इरादों और लक्ष्यों के साथ कलीसिया में दुस्साहस और अनैतिक ढंग से घुसपैठ कर लेते हैं और वे कलीसिया में अपनी प्रतिभाओं का उपयोग करना चाहते हैं या अपनी कामनाओं को साकार करना चाहते हैं। इसका यह अर्थ है कि वे आशीष प्राप्त करने के अपने इरादे और इच्छा को पूरा करने के लिए कलीसिया में घुसपैठ कर रहे हैं; वे कलीसिया में शोहरत, लाभ और रुतबा हासिल करना चाहते हैं, और ऐसा करके वे अपने लिए एक स्थिर भोजन स्रोत हासिल करेंगे। उनके व्यवहार और उनके प्रकृति सार से कोई भी यह देख सकता है कि परमेश्वर में विश्वास रखने के उनके उद्देश्य, मंशाएँ और इरादे जायज नहीं हैं, और उनमें से कोई भी सत्य को स्वीकार नहीं करता है, उनमें से कोई भी ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता है—वे कलीसिया में घुसपैठ करें भी, तो भी वे सिर्फ खाली जगह ही भर रहे हैं, कोई भी सकारात्मक भूमिका नहीं निभा रहे हैं। इसलिए, कलीसिया को ऐसे लोगों को स्वीकार नहीं करना चाहिए। वैसे तो ये लोग कलीसिया में घुसपैठ कर चुके हैं, लेकिन वे परमेश्वर के चुने हुए लोग नहीं हैं, बल्कि वे दूसरे लोगों के अच्छे इरादों के कारण लाए गए हैं। “वे परमेश्वर के चुने हुए लोग नहीं हैं”—इसे कैसे समझना चाहिए? इसका यह अर्थ है कि परमेश्वर ने उन्हें पूर्वनियत नहीं किया या चुना नहीं है; वह उन्हें अपने कार्य के लक्ष्यों के रूप में नहीं देखता है; न ही उसने उन्हें ऐसे इंसानों के रूप में पूर्वनियत किया है जिन्हें वह बचाएगा। एक बार जब ये लोग कलीसिया में घुसपैठ कर लेते हैं, तो हम जाहिर तौर पर उन्हें भाई-बहन नहीं मान सकते हैं, क्योंकि वे ऐसे लोग नहीं हैं जो सही मायने में सत्य को स्वीकार करते हैं या परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पण करते हैं। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “चूँकि वे ऐसे भाई-बहन नहीं हैं जो सही मायने में परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, तो कलीसिया उन्हें बहिष्कृत या निष्कासित क्यों नहीं कर देती है?” परमेश्वर का इरादा यह है कि उसके चुने हुए लोग इन लोगों से पहचान करना सीख सकें और इस तरह शैतान की साजिशों को पहचान सकें और शैतान को अस्वीकार कर सकें। जब परमेश्वर के चुने हुए लोग भेद पहचानने लगते हैं तो इन छद्म-विश्वासियों को दूर कर देना चाहिए। पहचान करने का लक्ष्य इन छद्म-विश्वासियों को उजागर करना है जिन्होंने अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं के साथ परमेश्वर के घर में घुसपैठ की है और उन्हें कलीसिया से बाहर निकालना है, क्योंकि ये लोग परमेश्वर के सच्चे विश्वासी नहीं हैं, और वे ऐसे लोग तो बिल्कुल नहीं हैं जो सत्य को स्वीकारते हैं और उसका अनुसरण करते हैं। उनके कलीसिया में बने रहने से कुछ भी भला नहीं होगा—बल्कि बहुत नुकसान ही होगा। पहली बात, कलीसिया में घुसपैठ करने के बाद, ये छद्म-विश्वासी कभी भी परमेश्वर के वचनों को खाते-पीते नहीं हैं और सत्य का थोड़ा-सा भी अंश स्वीकार नहीं करते हैं। वे हमेशा परमेश्वर के वचनों और सत्य को छोड़कर अन्य चीजों पर चर्चा करते रहते हैं, जिससे दूसरों के दिल परेशान हो जाते हैं। वे सिर्फ कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी करेंगे और बाधा डालेंगे, जिससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को नुकसान पहुँचेगा। दूसरी बात, अगर वे कलीसिया में रह जाते हैं, तो वे ठीक अविश्वासियों की तरह ही कुकर्म करते हुए उधम मचाएँगे, कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी करेंगे और बाधा डालेंगे, और कलीसिया को कई छिपे हुए खतरों में डाल देंगे। तीसरी बात, अगर वे कलीसिया में रह भी गए, तो वे खुशी से सेवाकर्मियों के रूप में कार्य नहीं करेंगे, और वे थोड़ी सेवा कर भी दें, तो भी यह सिर्फ आशीष प्राप्त करने के लिए होगा। अगर वह दिन आए जब उन्हें पता चले कि वे आशीष प्राप्त नहीं कर सकते हैं, तो वे गुस्से में आग-बबूला हो जाएँगे, और कलीसिया के कार्य में बाधा डालेंगे और उसे खराब कर देंगे। इसका समर्थन करने के बजाय, उन्हें यथाशीघ्र कलीसिया से बाहर निकाल देना ही बेहतर है। चौथी बात, ये छद्म-विश्वासी गुट बना सकते हैं और मसीह-विरोधियों का समर्थन और उनका अनुसरण कर सकते हैं, जिससे कलीसिया के भीतर एक बुरी शक्ति तैयार हो सकती है जो इसके कार्य के लिए एक बड़ा खतरा बन सकती है। इन चार विचारों की रोशनी में, यह जरूरी है कि परमेश्वर के घर में घुसपैठ करने वाले इन छद्म-विश्वासियों को पहचान कर उजागर किया जाए और फिर उन्हें बाहर निकाल दिया जाए। कलीसिया के कार्य में सामान्य प्रगति बनाए रखने, और कारगर तरीके से यह बचाव करने का यही एकमात्र तरीका है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर के वचनों को खा-पी सकें और सामान्य रूप से कलीसियाई जीवन जी सकें, और इस प्रकार परमेश्वर में विश्वास के सही मार्ग में प्रवेश कर सकें। ऐसा इसलिए है क्योंकि कलीसिया में इन छद्म-विश्वासियों की घुसपैठ से परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को बहुत ज्यादा नुकसान पहुँचता है। ऐसे कई लोग हैं जो उन्हें पहचान नहीं पाते हैं, बल्कि उन्हें भाई-बहन मानते हैं। कुछ लोग, यह देखकर कि उनमें कुछ खूबियाँ या शक्तियाँ है, उन्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में सेवा करने के लिए चुनते हैं। कलीसिया में नकली अगुआ और मसीह-विरोधी इसी तरह से पनपने शुरू होते हैं। उनके सार को देखते हुए, यह समझा जा सकता है कि उनमें से कोई भी यह विश्वास नहीं करता है कि परमेश्वर का अस्तित्व है, या यह कि उसके वचन ही सत्य हैं, या कि वह सभी पर संप्रभु है। परमेश्वर की नजर में वे गैर-विश्वासी हैं। वह उन पर कोई ध्यान नहीं देता है, और पवित्र आत्मा उन पर कार्य नहीं करेगा। इसलिए, उनके सार के आधार पर, वे परमेश्वर के उद्धार के लक्ष्य नहीं हैं, और यकीनन वे उसके द्वारा पूर्वनियत या चुने हुए लोग नहीं हैं। परमेश्वर संभवतः उन्हें बचा नहीं सका। चाहे इसे किसी भी नजरिये से देखा जाए, इनमें से कोई भी छद्म-विश्वासी परमेश्वर के चुने हुए लोगों में नहीं है। उन्हें फौरन और सटीक रूप से पहचान लेना चाहिए, और फिर बाहर निकाल देना चाहिए। उन्हें दूसरों को परेशान करने के लिए कलीसिया में छिपे नहीं रहने देना चाहिए। ये छद्म-विश्वासी अलग-अलग उद्देश्यों और मंशाओं से कलीसिया में घुसपैठ करते हैं और हो सकता है कि तुम शुरुआत में इनकी असलियत न जान पाओ या इनका भेद न पहचान पाओ। लेकिन, समय बीतने के साथ, जब तुम उनसे अक्सर बातचीत करोगे और उनके साथ ज्यादा व्यवहार करोगे, तो तुम उन्हें ज्यादा से ज्यादा समझने लगोगे, और तुम्हें वे अलग-अलग अभिव्यक्तियाँ और भी स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगेंगी जो बताती हैं कि वे छद्म-विश्वासी हैं। तो, क्या परमेश्वर के वचनों के आधार पर उन्हें पहचानना आसान नहीं है? (बिल्कुल आसान है।) अगर परमेश्वर के सभी चुने हुए लोग छद्म-विश्वासियों का भेद पहचान सकते हैं तो फिर उन्हें बेनकाब करने और बाहर निकाल देने का समय आ गया है। चाहे उनका चरित्र जैसा भी हो, उनका सामाजिक रुतबा कुछ भी हो, या कलीसिया में उनकी वरिष्ठता कितनी भी ज्यादा क्यों न हो, अगर कई वर्षों तक धर्मोपदेश सुनने के बाद भी वे सत्य को स्वीकार नहीं कर पाते हैं और उनके दिल परमेश्वर के बारे में धारणाओं से भरे रहते हैं, तो वे पहले से ही छद्म-विश्वासियों के रूप में बेनकाब हो चुके हैं। परमेश्वर में विश्वास रखने में उनके उद्देश्य और अभिव्यक्तियों को ध्यान में रखते हुए, बेशक वे ऐसे लोग हैं जिन्हें बहिष्कृत या निष्कासित कर देना चाहिए। कलीसिया को यह स्वच्छता कार्य हरेक अवधि में करना चाहिए।
परमेश्वर में विश्वास रखने के उद्देश्य के विषय में आठ बिंदु शामिल थे, यानी ऐसे आठ प्रकार के लोग हैं जिनकी अभिव्यक्तियाँ हमारे लिए विभिन्न प्रकार के बुरे लोगों की पहचान करने और फिर उनका सटीक चरित्र चित्रण करने और उसी अनुसार उनसे निपटने के लिए पर्याप्त हैं। संक्षेप में कहूँ तो, ये आठ प्रकार के लोग कलीसिया में नहीं रह सकते। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “क्या इन आठ प्रकार के लोगों में से प्रत्येक इन आठ लक्षणों में से केवल एक ही लक्षण प्रदर्शित करता है?” जरूरी नहीं कि ऐसा ही हो; परमेश्वर में विश्वास रखने के कुछ लोगों के उद्देश्य में चार या पाँच बिंदु शामिल होते हैं—वे शरण लेते हैं, कलीसिया के सहारे जीवन-यापन करते हैं, अवसरवादिता में संलिप्त होते हैं, राजनीतिक लक्ष्यों का अनुसरण करते हैं, और यादृच्छिकता से विपरीत लिंग के व्यक्ति की तलाश करते हैं, अविवेकपूर्ण तरीके से दूसरों को लुभाने के लिए कलीसिया में घुसपैठ करते हैं। परमेश्वर में विश्वास रखने के कुछ लोगों के उद्देश्य में दो बिंदु शामिल हो सकते हैं—एक है कलीसिया में एक अधिकारी बनने का प्रयास करना, और दूसरा है अवसरवाद के जरिए आशीष खोजना, या हो सकता है कि कुछ लोग विपरीत लिंग के व्यक्ति की तलाश करें और साथ ही कलीसिया के सहारे जीवन-यापन करें। स्पष्ट रूप से, ये लोग परमेश्वर के घर में फायदा उठाने की दृष्टि से आते हैं, काम करवाने में अपनी मदद के लिए, अपने लिए मेहनत करवाने के लिए परमेश्वर के घर या भाई-बहनों के इस्तेमाल का इरादा रखते हैं; अपने उद्देश्यों को हासिल करने और अपनी इच्छाएँ पूरी करने के लिए वे भाई-बहनों से सेवा करवाने के लिए हर संभव साधन आजमाते हैं। संक्षेप में कहूँ तो, इन छद्म-विश्वासियों और अवसरवादियों का, जिन्होंने कलीसिया में घुसपैठ की है और जिन्हें बहिष्कृत या निष्कासित किया जाना चाहिए, परमेश्वर के घर में आने का जाहिर उद्देश्य मुफ्त की रोटी तोड़ना है, और अपने निजी फायदे के लिए स्थिति का लाभ उठाना है। चाहे उनकी कथनी हो या करनी, उनके उद्देश्य को हमेशा अस्पष्ट रूप से पहचाना जा सकता है। ये लोग सत्य को बिल्कुल स्वीकार नहीं करते और उन्हें सत्य में जरा भी रुचि नहीं है; कभी-कभी वे विकर्षण या प्रतिरोध की मनःस्थितियाँ और रवैये भी दिखाते हैं। कलीसिया उनके लिए चाहे जिस भी कर्तव्य की व्यवस्था करे, वे केवल उन्हें फायदा होने पर ही अनिच्छा से सहयोग करते हैं। अगर उनका कोई फायदा न हो तो वे आंतरिक रूप से प्रतिरोध करते हैं, और नकारात्मकता और निष्क्रियता प्रकट करते हैं, और यहाँ तक कि विकर्षण या इनकार भी प्रकट करते हैं। वे थोड़ा बहुत काम तभी करते हैं जब उन्हें फायदा हो; उसके बिना वे या तो काम से जी चुराते हैं या निष्क्रियता से खानापूर्ति करते हैं। काम के अहम क्षणों में, वे लुका-छिपी खेलते हैं, गायब होकर कलीसियाई कार्य की उपेक्षा करते हैं। इन अभिव्यक्तियों से यह स्पष्ट है कि परमेश्वर में उनका विश्वास महज मुफ्त की रोटी तोड़ना है; सेवा करने के लिए उनका इस्तेमाल करना भी फायदे से ज्यादा नुकसान करता है।
झ. कलीसिया की निगरानी करना
आज हम परमेश्वर में विश्वास रखने के व्यक्ति के उद्देश्य के विषय के अंतिम बिंदु पर संगति करेंगे। पहले बताए गए आठ बिंदुओं के अलावा, एक और प्रकार का व्यक्ति है जिसका परमेश्वर में विश्वास रखने का उद्देश्य और इरादा जायज नहीं है। उन्हें कौन-सी बात ऊपर बताये गए उन लोगों से अलग करती है जो पूरी तरह से लाभों से अभिप्रेरित होते हैं, और शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागने के लिए हरसंभव प्रयास करते हैं? इस प्रकार का व्यक्ति अधिकारी बनने, रुतबे या भोजन के स्थायी स्रोत के लिए, या अपने जीवन को अधिक सुविधाजनक बनाने आदि के लिए कलीसिया में प्रवेश नहीं करता; उसका एक उद्देश्य होता है जिसका पता लगाना साधारण लोगों के लिए मुश्किल होता है। यह उद्देश्य क्या है? यह कलीसिया की निगरानी और नियंत्रण करना है। कलीसिया की निगरानी करना परमेश्वर में विश्वास रखने के किसी के उद्देश्य के विषय का नौवाँ बिंदु है। ये लोग कलीसिया में प्रवेश करते हैं ताकि कलीसिया की निगरानी कर सकें, जिसका लक्ष्य कलीसिया के विकास की दिशा पर नियंत्रण करना होता है। उन्हें भेजने वाले लोग, उनके वरिष्ठ या अधिकारी, हो सकता है कि सरकार, किसी धार्मिक समूह या किसी सामाजिक संगठन का प्रतिनिधित्व करते हों। चूँकि वे कलीसिया से अपरिचित होते हैं, जिज्ञासा से भरे होते हैं और यहाँ तक कि कलीसिया की उत्पत्ति, स्थापना और अस्तित्व को लेकर भी असहज रहते हैं, वे कलीसिया को गहराई से समझने, कलीसिया की संरचना और उसके कार्य और विभिन्न परिस्थितियों के बारे में जानने के इरादे रखते हैं। इसलिए, कुछ लोगों को निगरानी करने के लिए कलीसिया भेज दिया जाता है। जो लोग कलीसिया की निगरानी करने का काम हाथ में लेते हैं, चाहे वे सरकार से आएँ, धार्मिक समूहों से आएँ, या सामाजिक संगठनों से, परमेश्वर में विश्वास रखने का उनका एक उद्देश्य होता है, जोकि सच्चे भाई-बहनों के उद्देश्य से बिल्कुल अलग होता है। वे यहाँ परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने नहीं आए हैं; वे परमेश्वर में विश्वास रखने और उसे स्वीकारने के आधार पर परमेश्वर के वचनों, सत्य और परमेश्वर के उद्धार को स्वीकारने नहीं आए हैं। परमेश्वर में उनका विश्वास किसी संगठन द्वारा उन्हें दिए गए राजनीतिक लक्ष्य या काम से जुड़ा होता है। इस प्रकार, कलीसिया की निगरानी करना, कलीसिया में उनके घुसपैठ करने और परमेश्वर में उनके विश्वास रखने का उद्देश्य और साथ ही उनके वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उन्हें सौंपा गया काम भी है; यह वह काम है जो वे अपना वेतन पाने के लिए करते हैं।
जो लोग कलीसिया की निगरानी करने के लिए उसमें घुसपैठ करते हैं, वे किस चीज की निगरानी करते हैं? वे अनेक पहलुओं की निगरानी करते हैं, जैसे कि कलीसिया की शिक्षाएँ, उसके लक्ष्य, उसके द्वारा वकालत की गई बातें, उसके द्वारा किए जाने वाले कार्य, और उसके सदस्यों के विचार और नजरिए, जिससे वे यह आकलन करते हैं कि क्या इससे सरकार, धर्मों या समाज को कोई हानि हो सकती है। वे भाषण के संदर्भ में किसी असामाजिक, सरकार-विरोधी या राज्य-विरोधी बयानों की जाँच करते हैं। शिक्षाओं के संदर्भ में, वे इस बात की निगरानी करते हैं कि कलीसिया द्वारा समर्थित विचार वास्तव में क्या हैं। हो सकता है कि जब ये लोग कलीसिया में घुसपैठ करें तो तुम्हारे लिए इन व्यक्तियों को खोज पाना आसान न हो, क्योंकि हो सकता है कि वे सभाओं के दौरान बिना झपकियाँ लिए बातों को ध्यान से सुनें और गंभीरता से नोट्स लिखें। हो सकता है कि वे ईमानदारी से प्रत्येक सभा में दिए गए विभिन्न व्यक्तियों के भाषणों को संक्षेप में प्रस्तुत भी करें, अंततः विभिन्न लोगों के विचारों और नजरियों को यह देखने के लिए संक्षेप में प्रस्तुत कर श्रेणीबद्ध करें कि कौन-से विचार और नजरिये राष्ट्रीय सरकार के हितों और अपेक्षाओं से मेल खाते हैं और कौन-से राज्य के शासन के लिए हानिकारक हैं, सरकार के प्रतिकूल हैं इत्यादि। वे कलीसिया के सदस्यों के इन गहरे पैठे दृष्टिकोणों को सावधानी से संक्षेप में श्रेणीबद्ध कर सकते हैं, और उनके रिकॉर्ड रख सकते हैं। वे ऐसा क्यों करते हैं? क्योंकि यह उनका काम है, उनका कार्य है; उन्हें अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित करना होगा। उनके काम-काज का पहला हिस्सा है : कलीसिया की शिक्षाओं और इसके सभी सदस्यों की वैचारिक प्रवृत्तियों को समझना। एक बार जब उन्हें यकीन हो जाता है कि इन प्रवृत्तियों में समाज या राज्य के प्रति हानिकारक तत्व हैं, या अगर वे मानते हैं कि इनसे कुछ उग्र विचार और दृष्टिकोण उभरते हैं, तो वे तुरंत अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी सूचना देते हैं और बताते हैं, ताकि उपयुक्त उपाय किए जा सकें। उनका उद्देश्य सबसे पहले कलीसिया की शिक्षाओं को समझना होता है—कलीसिया की निगरानी करने में यह उनके मुख्य कामों में से एक है—इसके बाद कलीसिया के कार्मिकों के बारे में जानकारी आती है। उदाहरण के लिए, वे जानकारी जुटाते हैं कि कलीसिया के वरिष्ठ अगुआ कौन हैं, उनके रिहायशी पते, आयु, रंग-रूप, शैक्षणिक स्तर, रुचियाँ और अभिरुचियाँ, स्वास्थ्य की स्थितियाँ, दैनिक जीवन में उनके बोलने के विषय, उनके जाने की जगहें, उनके द्वारा किए जाने वाले काम, और साथ ही उनका दैनिक कार्य का समय और कार्य की विषयवस्तु आदि की जानकारी जुटाते हैं। वे इस बात पर गौर करते हैं कि क्या इन अगुआओं ने सरकार के विरुद्ध, धर्मों के विरुद्ध या सामाजिक प्रवृत्तियों के विरुद्ध कोई बयान दिए हैं, या कोई क्रियाकलाप किए हैं, और बाकी चीजों के साथ-साथ राष्ट्र की शासन प्रणाली और मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम के प्रति इन अगुआओं की प्रतिक्रियाएँ क्या हैं। ये सभी वे पहलू हैं जिन्हें कलीसिया की निगरानी करने वाले लोग समझना चाहते हैं। इसके अतिरिक्त, वे कलीसिया की संरचना और प्रशासनिक संरचनाओं पर भी निरंतर ध्यान देते हैं। उदाहरण के लिए, वे जानकारी रखते हैं कि कलीसिया के अगुआ और कार्यकर्ता कौन हैं, किस स्तर के अगुआओं को बर्खास्त किया गया है, उन्हें बर्खास्त किए जाने के बाद उनके लिए क्या इंतजाम किए गए थे, किन अगुआओं को गिरफ्तार किया गया है, और किन लोगों ने बाद में उनका कार्यभार सँभाला है। वे दूसरी विशिष्ट जानकारियों के अलावा यह जानकारियाँ जुटाते हैं कि उत्तराधिकारी की आयु, लिंग क्या है, उन्होंने परमेश्वर में कितने वर्ष से विश्वास रखा है, उनका शैक्षणिक स्तर क्या है और—क्या वे प्रतिभाशाली यूनिवर्सिटी स्नातक हैं—क्या देश या समाज पर वे कोई नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, और क्या सरकारी विभागों में कार्य करने के लिए संभावित रूप से उनकी भरती की जा सकती है। वे उन विशिष्ट कलीसियाई अगुआओं का भी पता लगाना चाहते हैं जो उनका स्थान ले रहे हैं या बर्खास्त किए जा रहे हैं। यानी, कार्मिकों की स्थिति, विशिष्ट प्रशासनिक कार्य और कलीसिया की संरचना, ये सभी वे पहलू हैं जिनसे वे परिचित होने का लक्ष्य रखते हैं। इसके अतिरिक्त, वे इस पूरी जानकारी को समझना चाहते हैं कि कलीसिया में कार्यों की कितनी मदें हैं, कितने समूह हैं और बाकी चीजों के अलावा प्रत्येक समूह के पर्यवेक्षकों का ब्योरा क्या है। वे यहाँ-वहाँ जाकर पूछताछ और जाँच-परख करते हैं और सीखते हैं, और अपना कार्य बहुत विस्तार से करते हैं। कलीसिया में घुसपैठ करने वाले इस प्रकार के लोगों का काम और पूरा किया जाने वाला कार्य, कलीसिया की स्थिति के तमाम पहलुओं और वहाँ के घटनाक्रम को तुरंत समझना है जिससे कि वे कलीसिया की निगरानी का उद्देश्य हासिल कर सकें। उदाहरण के लिए, इसमें यह शामिल है कि विदेशों में कलीसिया कैसे विकसित हो रही है, सुसमाचार कितने देशों में फैल चुका है और किन देशों में कलीसियाएँ स्थापित हो चुकी हैं—उन्हें इन तमाम चीजों को समझना होता है। कलीसिया की निगरानी में वे मुख्य रूप से ये कार्य करते हैं : पहला है, कलीसिया की शिक्षाओं को समझना; दूसरा, कलीसिया के कार्मिकों की स्थिति को समझना; और तीसरा, कलीसियाई कार्य की स्थिति और उसकी हाल की प्रमुख गतिविधियों को समझना। वे पूर्ण रूप से, शैतान, बड़े लाल अजगर के सहयोगी और चाकर की तरह कार्य करते हैं; वे शैतान के सच्चे नौकर हैं।
इस प्रकार के लोग जो कलीसिया की निगरानी करते हैं, वे कलीसिया की शिक्षाओं, कार्मिकों, कार्य प्रवृत्तियों, कलीसिया के पैमाने और दूसरे पहलुओं से संबंधित जानकारी को समझने के उद्देश्य से कलीसिया में घुसपैठ करते हैं। वे इनमें से प्रत्येक पहलू को समझने और फिर अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी सूचना देने का उद्देश्य रखते हैं, जो कभी भी स्थिति के आधार पर कलीसिया से निपटने के लिए तदनुरूप नीतिगत योजनाएँ या उपाय तैयार कर सकते हैं। संक्षेप में कहूँ तो, वे कलीसिया की निगरानी नेक इरादे से बिल्कुल भी नहीं करते हैं। वरना, यह देखते हुए कि यह न तो उनके लिए धन-दौलत लाता है न ही कोई लाभ, वे अभी भी कलीसिया की निगरानी क्यों करेंगे? क्या यह इसलिए नहीं है कि वे कलीसिया के अस्तित्व को लेकर असहज हैं? वे नहीं मानते कि परमेश्वर द्वारा स्थापित और अगुआई की गई कलीसिया ऐसे लोगों से बनी है जो विशुद्ध रूप से परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, राज्य, समाज या राजनीतिक समूहों और संगठनों से कोई संबंध नहीं रखते। लेकिन वे कलीसिया को चाहे कैसे भी देखें, वे असहज ही रहते हैं। क्यों? क्योंकि वे नास्तिक हैं, परमेश्वर को नहीं स्वीकारते और सत्य से भी नफरत करते हैं। इसलिए, वे विश्वासियों का दमन करने और उन्हें गिरफ्तार करने और साथ ही कलीसिया की निगरानी करने जैसे मूर्खतापूर्ण और बेतुके कार्य करने में सक्षम होते हैं। वे कलीसिया के विरुद्ध निगरानी और प्रतिरोध के उपाय क्यों अपनाते हैं? क्योंकि उनकी सबसे बड़ी चिंता यह है कि बहुत अधिक सदस्यों वाली, बहुत ज्यादा बड़ी हो रही कलीसिया देश, सरकार और समाज पर अहम प्रभाव डालेगी, यह पारंपरिक संस्कृतियों और पारंपरिक धार्मिक समूहों को प्रभावित करेगी और उनके लिए खतरा बनेगी। कलीसिया के विरुद्ध उनकी निगरानी और प्रतिरोध के पीछे यही वास्तविक कारण है। इसलिए, वे कलीसिया की निगरानी और प्रतिरोध करने को एक ऐसे राजनीतिक काम के रूप में लेते हैं जिसका क्रियान्वयन होना है।
कलीसिया के भीतर उसकी निगरानी करने वाले इस प्रकार के लोगों को पहचानना शायद आसान न हो, क्योंकि उनके छिपे हुए मंसूबे होते हैं और वे खुद को कहीं गहरे छिपाए होते हैं ताकि दूसरे उनका पता न लगा सकें। इस प्रकार, हो सकता है कि वे कलीसिया में बहुसंख्यकों के साथ जाएँ, कुछ असामान्य किए बिना, विशेष रूप से अच्छा व्यवहार करें, और कलीसिया द्वारा किए गए कार्य को लेकर कभी कोई मतभेद व्यक्त न करें। लेकिन इन व्यक्तियों में एक विशेषता होती है : वे परमेश्वर में विश्वास रखने को लेकर उदासीन होते हैं, इस बारे में न तो बहुत सक्रिय और न ही बहुत निष्क्रिय। वे उन्हें सौंपे गए कुछ कर्तव्य कर सकते हैं, लेकिन कभी भी अपनी व्यक्तिगत विवरण का खुलासा नहीं करते, जैसे कि वे कहाँ काम करते हैं, उनकी पारिवारिक स्थिति कैसी है या क्या उन्होंने पहले परमेश्वर में विश्वास रखा था। अगर कोई किसी सरकारी विभाग में कार्य करने का जिक्र करता है तो वे बहुत टालमटोल करते हैं, सरकार, राजनीति, नीतियों या धर्म पर कोई राय देने से बचते हैं। उनके व्यवहार की विशेषता यह है कि वे किसी भी संवेदनशील विषय से बच कर रहते हैं; वे न तो सरकार की आलोचना करते हैं न ही उसकी प्रशंसा, न वे उसकी नीतियों या शासन प्रणाली पर चर्चा करते हैं। जब कोई यह बताता है कि अमुक व्यक्ति एक जासूस है तो वे बहुत घबरा जाते हैं और हो सकता है कि वे तुरंत खुद को बचाने की कोशिश में लग जाएँ। घबराने के अलावा, हो सकता है तुम उनकी निगाहों में ऐसे संवेदनशील विषयों से बचने की प्रवृत्ति भी देखो; उनकी असलियत समझ सकने वाले किसी भी व्यक्ति से वे बचकर रहते हैं। इसके अतिरिक्त, उन्हें अज्ञात स्थानों से अक्सर फोन आते हैं, या कलीसिया से असंबद्ध रहस्यमय व्यक्ति उनसे संपर्क कर बातचीत करते हैं और जैसे ही वे इनमें से किसी का फोन उठाते हैं, वे दूसरों से परे हट जाते हैं। अगर इन क्षणों में संयोग से कोई उन्हें देख ले तो वे स्पष्ट रूप से परेशान हो जाते हैं, शरमाते हैं और बेहद असहज दिखाई देते हैं, इस डर से कि हो सकता है कि उनकी पहचान का पता चल जाए। कलीसिया के बारे में चोरी-छिपे जानकारी इकट्ठा करने के अलावा, वे समय-समय पर भाई-बहनों से स्थिति के बारे में पूछताछ करते हैं और ऐसे सवाल पूछते हैं, “तुम परमेश्वर में कितने वर्षों से विश्वास कर रहे हो? क्या तुम्हारे माता-पिता विश्वास रखते हैं? क्या तुम्हारे परिवार के सदस्य मुख्यभूमि में रहते हैं? मुख्यभूमि में रहने वाले तुम्हारे परिवार के सदस्यों में से कौन-कौन परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, और वे कितने वर्षों से विश्वास रख रहे हैं? उनकी आयु क्या है? तुम लोगों की स्थानीय कलीसिया में कितने लोग हैं? उन सबका काम अभी कैसा चल रहा है?” समय-समय पर, वे संवेदनशील और निजी जानकारी खोजने का प्रयास करते हैं जिसका खुलासा करने को लोग अनिच्छुक होते हैं। अगर कोई संवेदनशील निजी जानकारी साझा करने को अनिच्छुक है तो भाई-बहनों के बीच सामान्य बातचीत में कोई भी जानबूझकर या सक्रियता से उससे उस जानकारी के बारे में नहीं पूछता। लेकिन यह व्यक्ति ऐसे मामलों पर विशेष ध्यान देता है, यहाँ तक कि कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं या महत्वपूर्ण कार्य के प्रभारी लोगों की गतिविधियों की टोह भी लेता रहता है, इन लोगों के कंप्यूटरों और मोबाइल फोनों में मौजूद जानकारी को हासिल करने या उनका पता जानने की कोशिश करता है, इन विवरणों की अच्छी तरह से खोजबीन करने पर जोर देता है। अगर उसका ध्यान इस बात पर जाता है कि किसी खास अगुआ ने सभा में भाग नहीं लिया है तो वह पूछेगा, “अमुक व्यक्ति आज सभा में मौजूद नहीं है। वह क्या कर रहा है?” अगर कोई बताता है कि वह व्यस्त है तो वह आगे खोजबीन करेगा : “किस चीज में व्यस्त है? क्या वह उन नए विश्वासियों का फिर से सिंचन कर रहा है? ये नए विश्वासी कौन हैं? उन्होंने कब विश्वास रखना शुरू किया? ऐसा कैसे है कि मैं इस बारे में नहीं जानता?” वे और गहराई तक घुसते जाते हैं। भाई-बहन कहते हैं, “अगर हमें नहीं जानना चाहिए, तो चलो, नहीं पूछते। क्यों पूछते रहें? यह जीवन प्रवेश के बारे में नहीं है, इसमें सत्य शामिल नहीं है; जानने की कोई जरूरत नहीं है।” इसके जवाब में घुसपैठिया कहता है, “लेकिन ये परमेश्वर के घर के मामले हैं, कलीसियाई कार्य के; हम इस बारे में क्यों नहीं जान सकते? हम सभी परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, थोड़ा-सा जान लेने से कोई नुक्सान नहीं होता। अगर तुम लोग नहीं जानना चाहते तो इसका अर्थ है कि तुम कलीसियाई कार्य या कलीसिया के अगुआओं की परवाह नहीं करते। अगुआ वास्तव में किससे मिलने गया था? कितने नए विश्वासी मौजूद हैं? वे कहाँ हैं? मैं भी उनसे मिलना चाहता हूँ।” वे हमेशा इन मामलों के बारे में पूछते रहते हैं।
एक और काम है जिस पर कलीसिया की निगरानी करने वाले सबसे ज्यादा ध्यान देते हैं, और वह है कलीसिया की वित्तीय स्थिति को समझना। एक लिहाज से, वे कलीसिया के वित्त के स्रोतों को समझने का प्रयास करते हैं। वे जानना चाहते हैं कि क्या कलीसिया ने कारखाने या उद्यम स्थापित किए हैं, क्या उसके अपने स्वेटशॉप यानी श्रमिकों का शोषण करने वाले कारखाने हैं, क्या वह बाल मजदूरों को काम पर लगाती है, और क्या कलीसिया के कार्यों की विभिन्न मदों में लाभदायक उपक्रम शामिल हैं। उदाहरण के लिए, क्या कलीसिया द्वारा वीडियो, फिल्मों, भजनों के निर्माण और परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों के मुद्रण से लाभ होता है या क्या कलीसिया इनसे बहुत ज्यादा लाभ कमाती है; कलीसिया के वित्त के स्रोत क्या हैं; क्या कोई ऐसे संपन्न व्यक्ति हैं जो कलीसिया को सहारा देने के लिए दान देते हैं; क्या इन व्यक्तियों में राजनीतिक अभिजात्य वर्ग या अरबपति और खरबपति लोग शामिल हैं—वे इन विवरणों को समझना चाहते हैं। कलीसिया की प्रशासनिक संरचनाओं और वित्तीय स्रोतों को समझने के अलावा, उनका लक्ष्य कलीसिया के वित्त की देखरेख को भी समझना है, और इसके पीछे उनका उद्देश्य इन निधियों के प्रवाह पर नजर रखना है। कलीसिया अपना पैसा कैसे खर्च करती है, क्या वह किसी गैरकानूनी गतिविधि में शामिल है, क्या वह सामाजिक अभिजात्य वर्ग को संगठित करती है, या संयुक्त रूप से तानाशाह सरकारों का विरोध करने और मानवाधिकारों को कायम रखने आदि के लिए विभिन्न सामाजिक संगठनों और समूहों के साथ गठजोड़ करती है—ये भी कुछ महत्वपूर्ण स्थितियाँ हैं जिन्हें समझने का वे लक्ष्य रखते हैं। कुछ लोग प्रश्न करते हैं : “क्या कलीसिया की निगरानी का कार्य सिर्फ बड़े लाल अजगर के राष्ट्र द्वारा ही हाथ में लिया जाता है?” क्या यह कथन सटीक है? दरअसल, पूरी दुनिया और पूरा मानव समाज परमेश्वर का प्रतिरोध करता है। सिर्फ तानाशाह शासन के अधीनस्थ देश ही परमेश्वर का प्रतिरोध नहीं करते; तथाकथित ईसाई देशों में भी सत्ता में बैठे अधिकांश लोग नास्तिक और गैर-विश्वासी होते हैं और आस्था रखने वाले या ईसाई धर्म का ढोल पीटने वाले सत्ताधारी लोगों के बीच भी, सत्य स्वीकार सकने वाले लोगों की संख्या बहुत कम ही होती है। ज्यादातर लोग सत्य स्वीकार करना तो दूर रहा, उसे मानते भी नहीं। तो, क्या ये लोग जो परमेश्वर में विश्वास रखते हैं अभी भी उसका प्रतिरोध करते हैं? उदाहरण के लिए, क्या इस्राएल में ईसाई धर्म, कैथोलिक मत और यहूदी धर्म में ऊपरी वर्ग ऐसे लोगों से बना है जो सत्य स्वीकारते हैं? बिल्कुल नहीं। उनमें से कोई भी परमेश्वर के कार्य की खोजबीन करने नहीं आता; उनमें से एक भी सत्य स्वीकार नहीं कर सकता। सटीक रूप से कहूँ तो वे सबके-सब छद्म-विश्वासी हैं; वे सब परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं और मसीह-विरोधी हैं। वे परमेश्वर के कार्य में बाधा डालते हैं और उसे बिगाड़ देते हैं, और परमेश्वर का अनुसरण करने वाले लोगों को क्रूरता से दबाते और उत्पीड़ित करते हैं, जो अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य के साथ उनके व्यवहार से सिद्ध होता है। कौन-सा संप्रदाय अपने विश्वासियों को आजादी से सच्चे मार्ग की खोजबीन करने देता है, बाहर के प्रचारकों को सुनने देता है या अजनबियों का स्वागत करने देता है? एक भी संप्रदाय यह नहीं कर सकता। कौन-सी जाति या राष्ट्र कलीसिया के प्रति मित्रतापूर्ण है? (कोई भी नहीं।) यदि वे तुम्हें थोड़ी धार्मिक स्वतंत्रता और साँस लेने की खुली जगह दे दें, इतना ही बहुत प्रशंसनीय है। क्या तुम अब भी उनसे इसके अलावा और समर्थन पाने की उम्मीद करते हो? जब परमेश्वर की कलीसिया प्रकट होती है या जब कलीसिया सुसमाचार का प्रचार करना शुरू करती है तो ये लोग जो परमेश्वर के अस्तित्व में बिल्कुल भी विश्वास नहीं रखते और जो परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्यों के प्रति एक खास विकर्षण और घृणा महसूस करते हैं, फिर एक विशेष काम हाथ में लेते हैं, और वह है कलीसिया की करीब से निगरानी करने के लिए व्यक्तियों को नियुक्त करना। “निगरानी” का अर्थ यहाँ चौकसी बरतना है, समझना और नियंत्रण करना है; यानी हर दौर में कलीसिया के सभी पहलुओं पर सख्ती से चौकसी बरतना, उन्हें समझना और उन पर नियंत्रण करना। कुछ लोग कहते हैं : “उन्होंने सार्वजनिक रूप से परमेश्वर के कार्य की निंदा या विरोध नहीं किया है, न ही हमने अपने स्थानीय जीवन में उत्पीड़न या अत्याचार सहा है। हमें लगता है कि परमेश्वर में विश्वास रखना, सभा करना, अपना कर्तव्य निभाना और सुसमाचार फैलाना बड़े लाल अजगर के राष्ट्र के बजाय विदेशों में बहुत बेहतर और ज्यादा सुरक्षित है। हमने किसी हस्तक्षेप का अनुभव नहीं किया है।” सिर्फ इस कारण से कि कोई हस्तक्षेप नहीं रहा और तुम्हें थोड़ी आजादी दे दी गई, तुम्हें कलीसिया की निगरानी करने के उनके कार्य को नकारना नहीं चाहिए। जो थोड़ी-सी धार्मिक आजादी तुम्हें दी गई है, वह एक बुनियादी सामाजिक संस्था है; तुम जिनका आनंद ले रहे हो, वे तुम जिस देश में रहते हो उसके नागरिकों के महज बुनियादी अधिकार हैं। इन बुनियादी अधिकारों का आनंद लेने का अर्थ यह नहीं है कि राष्ट्रीय सरकार, सामाजिक समूह या धार्मिक संसार ने परमेश्वर के कार्य और कलीसिया के कार्य को स्वीकार लिया है, वे मित्रवत हो गए हैं या अब कोई शत्रुता और निगरानी नहीं है। क्या बात ऐसी नहीं है? (है।) यह मामला अमूर्त नहीं है, है ना? (नहीं, यह अमूर्त नहीं है।)
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