अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (23) खंड पाँच
ज. राजनीतिक लक्ष्यों का अनुसरण करना
आगे, हम आठवें प्रयोजन के बारे में संगति करेंगे : राजनीतिक प्रयोजनों और राजनीतिक लक्ष्यों के साथ परमेश्वर में विश्वास रखना। ऐसे लोगों के सामने आने की संभावना बहुत अधिक नहीं है, लेकिन संभावना चाहे जितनी भी हो, अगर इन लोगों के सामने आने का कोई मौका है, तो हमें उनकी कुछ मिसालों की सूची बनाकर उन्हें उजागर करना चाहिए, उनके बारे में संगति करनी चाहिए और उन्हें निरूपित करना चाहिए। हमें यह इसलिए करना चाहिए ताकि सभी लोग उन्हें पहचान जाएँ, और फिर उन्हें यथाशीघ्र बाहर निकाला जा सकेगा, जिससे कलीसिया और भाई-बहनों पर आने वाली परेशानी और खतरे को रोका जा सकेगा। यह कलीसिया और भाई-बहनों की रक्षा के लिए है। इसलिए, जो लोग राजनीतिक लक्ष्य लेकर परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, वे ऐसे लोग होते हैं जिन्हें हमें पहचान लेना चाहिए और जिनसे हमें सतर्क रहना चाहिए, और ये बुरे लोग भी हैं जिन्हें कलीसिया को यथाशीघ्र बाहर निकाल देना चाहिए। जिन लोगों के राजनीतिक लक्ष्य होते हैं, उनकी अभिव्यक्तियाँ कौन-सी होती हैं? वे तुमसे अपने सच्चे विचार नहीं बताएँगे। वे साफ तौर पर यह नहीं कहेंगे, “मैं बस राजनीति में रुचि रखता हूँ, मुझे राजनीति में भाग लेना पसंद है, इसलिए मैं राजनीतिक लक्ष्यों और राजनीतिक प्रयोजनों से परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, और किसी दूसरे कारण से नहीं। तुम लोग मुझसे अपने हिसाब से निपट सकते हो।” क्या वे ऐसा कहेंगे? (नहीं।) तो उनकी कौन-सी अभिव्यक्तियाँ होती हैं जिनसे तुम यह पहचान पाते हो कि वे राजनीतिक लक्ष्य रखते हैं? यानी कि वे ऐसे कौन-से शब्द बोलते हैं, ऐसे कौन-से काम करते हैं, उनके कौन-से हाव-भाव, नजर और बोलने के लहजे तुम्हारी इस बात की पुष्टि करने के लिए काफी है कि परमेश्वर में विश्वास रखने का उनका प्रयोजन शुद्ध नहीं है? वे चाहे जो भी कहें या करें, वे चीजों को अपने दिलों में छिपाकर रखते हैं, और कोई उनकी थाह नहीं पा सकता। उनकी एक विशेष पहचान और पृष्ठभूमि होती है; उनकी बातों और व्यवहार से यह देखा जा सकता है कि उनके पास षड्यंत्र और साजिशें हैं, और उनके बोलने और काम करने का तरीका रणनीतिक है। जब वे बोलते हैं, तो एक औसत व्यक्ति उनकी असली मंशाओं या विचारों को नहीं समझ सकता और उसे यह नहीं पता होता कि वे ऐसी बातें क्यों कहते हैं। हालाँकि बाहर से ये लोग परमेश्वर में विश्वास रखने या सत्य पर संगति करने के प्रति कोई शत्रुता या कोई आलोचना नहीं दिखाते, और यहाँ तक कि इन चीजों के प्रति थोड़ा अनुराग भी दिखा सकते हैं, फिर भी तुम्हें बस लगता है कि वे थोड़े अजीब हैं—वे दूसरे भाई-बहनों से अलग हैं और समझ से थोड़े परे हैं। तुम आम तौर पर ऐसे लोगों के साथ क्या करते हो जो समझ से थोड़े परे होते हैं? क्या तुम बस साधारण तरीके से ही उनसे सतर्क रहते हो? या क्या तुम उनकी खोजबीन करने की पहल करते हो और पता लगाते हो कि उनके साथ वास्तव में क्या चल रहा है? (हमें उन्हें ध्यान से देखना चाहिए।) कोई व्यक्ति चाहे कुछ भी कर रहा हो, आम तौर पर छोटी-सी समयावधि में उसका प्रयोजन और लक्ष्य आसानी से उजागर नहीं होते। लेकिन जैसे-जैसे ज्यादा समय बीतता है—अगर वे बिल्कुल कुछ भी न करें तो अलग बात है—जब वे कार्य करेंगे, तो निश्चित रूप से उनका पर्दाफाश हो जाएगा। उनकी छोटी-छोटी बातों को देखो और उनमें सुराग ढूँढ़ने की कोशिश करो—उनकी बातों और व्यवहार से, उनके क्रियाकलापों के पीछे के इरादों और दिशाओं से, और बोलते समय उनके शब्दों और लहजे से तुम कुछ जानकारी और सुराग पा सकते हो। ऐसा करने में सक्षम होना इस बात पर निर्भर करता है कि क्या तुम काम में बहुत सावधान हो, और क्या तुममें एक खास स्तर की बुद्धिमत्ता और काबिलियत है। कुछ मूर्ख समाज में मौजूद खतरों और क्रूरता को पहचानने में सक्षम नहीं होते हैं; उनकी मुलाकात चाहे जिससे भी हो, वे उससे बातचीत का सिर्फ एक ही तरीका इस्तेमाल करते हैं। नतीजतन, जब उनकी मुलाकात राजनीतिक लक्ष्य रखने वाले चालबाज और धूर्त राजनीतिज्ञों से होती है, तो वे आसानी से यहूदा बन कर कलीसिया का सौदा करने के साधन बन जाते हैं, और अनजाने ही मूर्खतापूर्ण काम करके कलीसिया को फँसा देते हैं।
राजनीतिक लक्ष्य रखने वाले इन लोगों की अभिव्यक्तियाँ वास्तव में क्या होती हैं? इन लोगों की एक खास सामाजिक पृष्ठभूमि होती है; वे ऐसे व्यक्ति होते हैं जो राजनीतिक हलकों में घुलमिल जाते हैं। राजनीतिक हलकों में उनका रुतबा चाहे जो हो, चाहे वे अधिकारी हों, फुटकर काम करते हों, या राजनीतिक हलकों में पाँव जमाने की तैयारी कर रहे हों, संक्षेप में कहें, तो इन लोगों की समाज में एक राजनीतिक पृष्ठभूमि होती है; यह एक जटिल और विशेष स्थिति होती है। चाहे ये लोग परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखते हों या नहीं, उनके अनुसरणों, उनके चलने के रास्तों और उनके प्रकृति सार को परखा जाए तो क्या ये लोग ऐसे बन सकते हैं जो परमेश्वर में ईमानदारी से विश्वास रखते हैं? क्या वे छद्म-विश्वासियों से, राजनीति को लेकर उत्साहित रहने वाले राजनीतिज्ञों से परिवर्तित होकर ऐसे लोग बन जाएँगे जो ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रखते हैं? (नहीं।) क्या तुम निश्चित हो? या कोई संभावना है? (बिल्कुल नहीं।) यह यकीनन असंभव है। परमेश्वर में विश्वास रखना और राजनीति दो भिन्न मार्ग हैं; ये दोनों मार्ग विपरीत दिशाओं में विकसित होते हैं, उनमें कोई समानताएँ नहीं है, और वे बिल्कुल भी एक-दूसरे को काट नहीं सकते। ये पूरी तरह से भिन्न मार्ग हैं। इसलिए, जिन लोगों के राजनीतिक लक्ष्य हैं या जिन्हें राजनीति से प्रेम है और जो राजनीति को लेकर उत्साहित हैं, भले ही वे बिना किसी स्पष्ट राजनीतिक प्रयोजन के परमेश्वर में विश्वास रखते हों, फिर भी उनके मन में दूसरे प्रयोजन होते हैं; और यह सुनिश्चित है कि उनका प्रयोजन सत्य प्राप्त करना या स्वयं को बचाना नहीं होता है। कम-से-कम यह निर्धारित किया जा सकता है कि वे परमेश्वर में ईमानदारी से विश्वास नहीं रखते। वे केवल इस दंतकथा को मानते हैं कि परमेश्वर है, लेकिन परमेश्वर के अस्तित्व या इस तथ्य को स्वीकार नहीं करते कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है। इस तरह, ये लोग कभी भी राजनीति को लेकर उत्साहित रहने वाले छद्म-विश्वासियों से उन सच्चे विश्वासियों में कभी भी परिवर्तित नहीं होंगे जो परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखते हैं, परमेश्वर का कार्य स्वीकार सकते हैं और परमेश्वर का न्याय और ताड़ना स्वीकार सकते हैं।
राजनीतिक लक्ष्य रखने वाले इन छद्म-विश्वासियों के परमेश्वर में विश्वास रखने के वास्तव में क्या प्रयोजन होते हैं? इसका संबंध उनके अनुसरणों और उन पेशों से है जिनमें वे संलग्न होते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग शानदार राजनीतिक लक्ष्यों और अभिलाषाओं आदि के साथ, किसी राजनीतिक हलके में हमेशा कुछ खास व्यक्तिगत माँगें रखते हैं, जो—चाहे वे जो भी हों—सबकी सब राजनीति से संबंधित होती हैं। “राजनीति” का क्या तात्पर्य है? सरल शब्दों में कहें, तो यह सरकार, सत्ता और शासन से संबंधित है। इसलिए, राजनीतिक लक्ष्यों के साथ परमेश्वर में उनका विश्वास बेशक उनके राजनीतिक अनुसरणों से संबंधित है। तो उनके लक्ष्य क्या हैं? वे कलीसिया के लोगों की तरफ क्यों आकर्षित होते हैं? वे अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए कलीसिया नाम की इस संस्थान का, कलीसिया के लोगों की बड़ी संख्या का और कलीसिया में मौजूद विभिन पेशों और सामाजिक तबकों के इन लोगों के प्रभाव का उपयोग करना चाहते हैं। कलीसिया की शिक्षाओं, कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों के परिचालनों और कलीसियाई जीवन जीने के परमेश्वर के चुने हुए लोगों के तरीकों, उनके कर्तव्य के अभ्यास आदि के बारे में जानने के बाद, वे खुद को कलीसिया में एकीकृत करने का प्रयास करते हैं। वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा अक्सर प्रयोग में लाई गई आध्यात्मिक शब्दावली और विभिन्न अभिव्यक्तियों को दृढ़ता से मन में बसा लेते हैं, और आशा करते हैं कि एक दिन वे इन चीजों का उपयोग करके सभी लोगों को अपनी बात सुनने के लिए, उनका इस्तेमाल करने के लिए इकट्ठा कर सकेंगे, और इस तरह अपने राजनीतिक लक्ष्य हासिल कर लेंगे। ठीक जैसा कि गैर-विश्वासी कहते हैं, कुछ समय तक खिचड़ी पकते रहने के बाद, जब वे झंडा उठाकर लोगों को विद्रोह करने के लिए खड़ा कर पाएँगे, तो ज्यादा लोग उनकी पुकार का जवाब देंगे और उनके पीछे चलेंगे, ताकि वे अपने प्रतिद्वंद्वियों से लड़ने के लिए कलीसिया के लोगों के एक हिस्से को हासिल कर अपनी शक्ति बना सकें। आधुनिक चीनी इतिहास में ऐसी चीजें कई बार हो चुकी हैं। उदाहरण के लिए, चिंग सामाज्य के दौरान श्वेत कमल विद्रोह और ताइपिंग विद्रोह ऐसे उदाहरण रहे हैं, जहाँ राजनीतिक लक्ष्य रखने वाले लोगों ने सरकार से लड़ने के लिए धर्म का उपयोग किया। उनके धर्मों की शिक्षाएँ सच्चे मार्ग से भटक गई थीं, और उनमें ऐसे कई बेतुके और हास्यास्पद पहलू थे जो जरा भी सत्य के अनुरूप नहीं थे। राजनीतिक लक्ष्य रखने वालों ने लोगों के मनों को एकजुट करने, उनके मनों को बाँधने और उनके मनों को प्रभावित कर उनमें अपनी विचारधारा भरने के लिए ऐसी शिक्षाओं का उपयोग किया। अंततः उन्होंने अपने राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने के लिए इस विशेष विचारधारा से प्रेरित किए गए इन लोगों का शोषण किया। शुरू से ही, जब राजनीतिक लक्ष्य रखने वाले ये लोग परमेश्वर में विश्वास रखने लगते हैं, तो ये कलीसिया का नाम ही है जिसके प्रति वे आकर्षित होते हैं। यानी, वे संस्थान के नाम यानी कि कलीसिया के तले अपनी पहचान और अपने लक्ष्यों को छिपा सकते हैं—यह एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि वे सोचते हैं कि अगर वे परमेश्वर में विश्वास रखने के बैनर के नीचे अपने राजनीतिक विचारों को फैलाते हैं, तो कलीसिया के लोगों के मन में अपनी विचारधारा भरना बहुत आसान हो जाएगा, और इस बात की संभावना है कि ये लोग प्रसिद्ध लोगों की आराधना कर उनकी बात सुनने लगें। परिणामस्वरूप, राजनीतिक लक्ष्य रखने वाले ये लोग कलीसिया के लोगों को प्रयोग की वस्तुओं के रूप में देखने लगते हैं। वे मानते हैं कि कलीसिया को वह स्थान बनाना बहुत आसान है जहाँ वे अपनी पहचान छिपा सकते हैं, और कलीसिया के सदस्य ऐसी वस्तुएँ हैं जिनका वे आसानी से उपयोग कर सकते हैं—सरल शब्दों में कहें, तो वे चीजों को इसी दृष्टि से देखते हैं। इसलिए, कलीसिया में शामिल होने का उनका प्रयोजन यह आशा करना है कि एक दिन जब उनके दिन चढ़ेंगे, तो वे अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों से लड़ सकेंगे और सत्ता हासिल कर सकेंगे—यही उनका राजनीतिक लक्ष्य है। वे परमेश्वर में विश्वास रखने के नाम के बहाने का इस्तेमाल उन लोगों की संख्या में वृद्धि करने के लिए करना चाहते हैं जो उनके राजनीतिक प्रभाव क्षेत्र में उनकी आराधना और उनका अनुसरण करते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “हो सकता है कि उनका यह प्रयोजन हो, लेकिन अगर वे कोई चाल नहीं चलते, तो हम अधिक-से-अधिक सिर्फ यही देख सकते हैं कि वे छद्म-विश्वासी या झूठे विश्वासी हैं। हम यह कैसे समझ सकते हैं कि उनके स्पष्ट राजनीतिक प्रयोजन हैं?” यह कठिन नहीं है। बस ध्यान से देखने में समय लगाओ। अगर उनके राजनीतिक लक्ष्य हैं, तो वे निश्चित रूप से कार्रवाई करेंगे। अगर वे कार्रवाई नहीं करना चाहते, तो उन्होंने कलीसिया में घुसपैठ क्यों की होती? अगर उन्होंने अभी तक कार्रवाई नहीं की है, तो यह इसलिए है कि उन्हें अवसर नहीं मिल पाया है। एक बार उन्हें अवसर मिल जाए तो वे उसी अनुसार कार्य करेंगे। उदाहरण के लिए, अगर सरकार कोई गलत नीति बना दे, या परमेश्वर के चुने हुए लोगों को दबाए और उन्हें गिरफ्तार करे, तो भाई-बहन ज्यादा-से-ज्यादा इस मामले पर विचार-विमर्श कर उसे समझेंगे और बस बात यहीं समाप्त हो जाएगी। चाहे जो भी हो, परमेश्वर में विश्वास रखना, अपने कर्तव्य निभाना और परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण करना ही वे बाते हैं जो महत्वपूर्ण हैं। छोटी-छोटी बातों के लिए वे बड़े उद्देश्य को नहीं खोएँगे; वे परमेश्वर में विश्वास रखना और उसी तरह अपने कर्तव्य करते रहना जारी रखेंगे जैसे उन्हें आमतौर पर करते रहना चाहिए। लेकिन राजनीतिक लक्ष्य रखने वाले लोग भिन्न होते हैं। वे इस मामले में बात का बतंगड़ बनाएँगे, इसे बेकाबू ढंग से उजागर करेंगे और व्यापक रूप से प्रचारित करेंगे, और अपने राजनीतिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सभी को सरकार के खिलाफ खड़े होने के लिए बेतहाशा उकसाना चाहेंगे, और वे अपने लक्ष्य हासिल होने तक नहीं रुकेंगे। राजनीति में शामिल होने की खातिर, वे परमेश्वर में विश्वास रखने और अपने कर्तव्य निभाने के मामलों को पूरी तरह दरकिनार कर देते हैं, और मनुष्य से परमेश्वर की अपेक्षाओं और परमेश्वर के इरादों को नजरअंदाज कर देते हैं। वे इतने अधिक पागल होते हैं—क्या लोग उन्हें अभी भी पहचान नहीं सकेंगे? ऐसे व्यक्ति परमेश्वर का अनुसरण करते हैं या राजनीति का? कुछ लोग जिनमें पहचानने की क्षमता नहीं होती, वे आसानी से गुमराह हो जाते हैं। राजनीति करने वाले ये लोग नहीं जानते कि सत्य क्या है, और यह तो वे बहुत कम ही समझते हैं कि परमेश्वर का कार्य लोगों के भ्रष्ट स्वभावों को दूर करना है, और उन्हें शैतान के प्रभाव से बचाना है। वे सोचते हैं कि मानवाधिकारों और राजनीति से जुड़ने का अर्थ न्याय की भावना का होना और परमेश्वर के प्रति समर्पण करना है। क्या राजनीति और मानवाधिकारों से जुड़ना इस बात को दर्शाता है कि किसी व्यक्ति में सत्य वास्तविकता है? क्या यह दर्शाता है कि कोई व्यक्ति परमेश्वर के प्रति समर्पण करता है? तुम चाहे जितने भी अच्छे ढंग से मानवाधिकारों और राजनीति को सँभालते हो, क्या यह दर्शाता है कि तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव स्वच्छ कर दिया गया है? क्या यह दर्शाता है कि सत्ता सँभालने की तुम्हारी आकांक्षा और इच्छा स्वच्छ कर दी गई है? बहुत-से लोग इन मसलों की असलियत को नहीं देख सकते हैं। ऊपरी तौर पर तो सुन यात-सेन भी एक ईसाई था। खतरे में पड़ने पर उसने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह उसे बचाए। उसने अपना पूरा जीवन क्रांति करते हुए बिताया था—क्या उसे परमेश्वर की स्वीकृति मिली? क्या वह ऐसा व्यक्ति था जिसने सत्य का अभ्यास किया और परमेश्वर के प्रति समर्पण किया? क्या उसके पास परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने की अनुभवजन्य गवाही थी? उसके पास इनमें से कुछ भी नहीं था। बुलाए जाने के बाद, पौलुस ने लगातार सुसमाचार का प्रचार किया और बहुत कष्ट सहे, लेकिन क्योंकि उसने वास्तव में प्रायश्चित्त नहीं किया था, उसके पास जीवन प्रवेश नहीं था, उसने बार बार वही पुराने पाप किए थे, और वह हर अवसर पर अपनी ही बड़ाई कर अपनी ही गवाही देता था, इसलिए वह मसीह-विरोधी बन गया और उसे दंड दिया गया। चाहे जो हो, सत्य स्वीकारे बिना परमेश्वर में विश्वास रखना, हमेशा शोहरत और रुतबे के पीछे भागना, और हमेशा एक अतिमानव या महात्मा बनने की चाह रखना बहुत खतरनाक होता है। राजनीतिक लक्ष्य रखने वाले सभी लोग मसीह-विरोधी होते हैं। ये लोग अपनी राजनीतिक अभिलाषाओं को साकार करने को आसानी से नहीं छोड़ेंगे और अपनी राजनीतिक शक्ति के रूप में हमेशा विश्वासियों को उकसाने और उन पर विजय पाने के अवसर तलाशते रहेंगे। अगर किसी दिन वे देखें कि विश्वासी आसानी से शोषित नहीं हो रहे हैं, वे केवल सत्य से प्रेम करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं, और वे लोगों का नहीं, केवल मसीह का अनुसरण करते हैं, केवल तभी वे इन विश्वासियों को पूरी तरह से छोड़ेंगे।
मूलतः राजनीतिक लक्ष्य रखने वाले लोगों के दिमाग में पूरी तरह से राजनीति से संबंधित विचार भरे रहते हैं—सत्ता और प्रभाव, शासन, साजिशें, राजनीतिक उपाय, आदि। वे यह नहीं समझते कि परमेश्वर में विश्वास रखना क्या होता है, आस्था क्या है, सत्य क्या है, या यह तो बिल्कुल भी नहीं समझते कि परमेश्वर के प्रति कैसे समर्पण करें। वे यह भी नहीं समझते कि स्वर्ग की इच्छा क्या है। उनके जीवित रहने के सिद्धांत हैं “मनुष्य प्रकृति को जीत लेगा” और “किसी व्यक्ति की नियति उसी के हाथ में होती है।” इसलिए, ऐसे लोगों को बदलने की कोशिश करना असंभव है और एक मूर्खतापूर्ण विचार है। ये लोग अक्सर कलीसिया के भाई-बहनों के बीच राजनीतिक दृष्टिकोण फैलाते हैं, उन्हें राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने और राजनीति में भाग लेने के लिए उकसाते हैं। यह बहुत स्पष्ट है कि परमेश्वर में विश्वास रखने का उनका प्रयोजन राजनीतिक लक्ष्यों से प्रेरित होता है। यह सार दूसरे लोगों द्वारा शीघ्र और आसानी से पहचाना जा सकता है। ये लोग आस्था, सही मार्ग पर चलने और स्वर्ग की इच्छा के प्रति समर्पण करने को लेकर बिल्कुल अनजान होते हैं—वे मानते हैं कि राजनीतिक चालों से किसी भी व्यक्ति के विचार और मार्ग बदले जा सकते हैं, और वे खास तौर पर मानते हैं कि किसी व्यक्ति की नियति को इंसानी उपायों और तरीकों के जरिए बदला जा सकता है। इसलिए, वे परमेश्वर द्वारा रची गई प्रकृति की व्यवस्थाओं के गूढ़ मगर स्पष्ट मामलों और मनुष्य की नियति पर परमेश्वर की संप्रभुता से पूरी तरह अनजान होते हैं; इन मामलों में वे आम लोग होते हैं, और वे इन मामलों को बिल्कुल नहीं समझ सकते। ऐसा कहने का मेरा क्या तात्पर्य है? अगर तुम्हें ऐसा कोई व्यक्ति मिले जिसका परमेश्वर में विश्वास रखने का प्रयोजन राजनीतिक लक्ष्यों से प्रेरित है, तो तुम्हें उसे बदलने या मनाने की बिल्कुल कोशिश नहीं करनी चाहिए, और उसके साथ बहुत सारे सत्यों पर संगति करने की भी जरूरत नहीं है। ऐसे लोगों से सतर्क रहने के अलावा, तुम्हें विभिन्न स्तरों के कलीसियाई अगुआओं या विश्वसनीय भाई-बहनों को यथाशीघ्र उनके बारे में सूचित कर देना चाहिए, और फिर उन्हें कलीसिया से बाहर निकालने का तरीका ढूँढ़ना चाहिए। तुम्हें दूसरे लोगों को अँधेरे में रखकर, खुद चोरी-छिपे और चुपचाप उनसे सतर्क नहीं रहना चाहिए। तो किस प्रकार के लोग ऐसे लोगों को थोड़ा पहचान सकते हैं जो राजनीति के बारे में बात करना पसंद करते हैं और जिनके राजनीतिक लक्ष्य होते हैं? क्या ये लोग उम्र में बड़े होते हैं या जवान? क्या ये भाई होते हैं या बहन? (बड़ी उम्र के भाई।) सही है; बड़ी उम्र के भाई, यानी जिन्हें सामाजिक अनुभव है, जिनका राजनीति से संपर्क रहा है, या जिन्हें राजनीतिक रूप से उत्पीड़ित किया गया है—जिन लोगों में इन मामलों की अंतर्दृष्टि है—वे राजनीतिक मुद्दों को अपेक्षाकृत स्पष्ट रूप से बूझ सकते हैं। स्वाभाविक रूप से, वे उन लोगों को थोड़ा पहचानने की कोशिश कर सकते हैं जो राजनीति में संलग्न रहते हैं, और खास तौर पर वे उनकी महत्वकांक्षाओं और इच्छाओं, और साथ ही उनके विचारों, दृष्टिकोणों, सपनों और अभिलाषाओं को अपेक्षाकृत स्पष्ट रूप से बूझ सकते हैं। इसलिए, वे इन लोगों को दूसरों की अपेक्षा ज्यादा तेजी से पहचान सकते हैं। जब एक बार कोई यह पहचान लेता है कि इन लोगों के पास राजनीतिक लक्ष्य हैं और वे छद्म-विश्वासी हैं, तो उन्हें उनसे सतर्क रहना चाहिए और इन छद्म-विश्वासियों को उजागर कर देना चाहिए। साथ-ही, उन्हें उन मूर्ख और अज्ञानी लोगों की भी रक्षा करनी चाहिए जो सत्य नहीं समझते हैं, उन्हें गुमराह और शोषित होने से और कलीसिया की अंदरूनी जानकारी अनजाने ही दूसरों के साथ साझा करने से रोकना चाहिए। जितनी जल्दी हो सके, कलीसिया के अगुआओं को सूचित करना और इस मुद्दे पर उनसे विचार-विमर्श करना, और उनसे अधिक उम्र वाले लोगों या थोड़े सत्य समझने वाले और थोड़े ऊँचे आध्यात्मिक कद वाले लोगों को राजनीतिक लक्ष्य वाले इन लोगों के प्रति सतर्क रहने के लिए सूचित करना जरूरी है। यह महत्वपूर्ण है कि छद्म-विश्वासियों के रूप में इन लोगों के सार को स्पष्ट रूप से देखने में दूसरों की मदद की जाए, और इस तरह उनके द्वारा शोषित होने से मूर्ख और अज्ञानी भाई-बहनों की रक्षा की जा सके। अगर तुम इन मामलों की असलियत नहीं समझ सकते, और जब कुछ कुटिल, धूर्त, चालबाज लोग तुमसे कुछ बातें और चर्चा करें और तुम पहचान न पाओ, तो तुम उनके पूछे बिना ही स्वेच्छा से अपनी असली स्थिति और अपनी जानकारी के सारे राज खोल दोगे, और अनजाने ही यहूदा बन जाओगे। क्या ऐसे लोग होते हैं? (हाँ।) बोलते समय तुम नहीं जानते कि दूसरा व्यक्ति मन में क्या प्रयोजन छुपाए हुए है और तुम उससे भाई-बहन जैसा व्यवहार करते हो, बिना सोचे-समझे अपने दिल की तमाम बातें बता देते हो—बोलने के बाद, तुम यह नहीं जानते कि इसके क्या परिणाम होंगे। दूसरों को ऐसे लोगों से सतर्क रहते हुए देखकर तुम कहते हो, “तुम बहुत ज्यादा सतर्क हो। भाई-बहनों के बीच छिपाना क्या?” तुम्हें इस बात का एहसास नहीं होता है कि दूसरे लोग क्यों नहीं बोलते—इसी को मूर्ख होना कहते हैं।
राजनीतिक लक्ष्य रखने वाले लोग निश्चित रूप से छद्म-विश्वासी भी होते हैं, क्योंकि वे सत्य से प्रेम नहीं करते और वे सत्य स्वीकार नहीं करेंगे। भले ही वे परमेश्वर में विश्वास रखें, वे पूरी तरह बुरे लोगों की उस श्रेणी में आते हैं जो मसीह-विरोधी होते हैं। ऐसे लोगों के प्रति सतर्क रहना वास्तव में सबसे निष्क्रिय तरीका है। सक्रिय तरीका उनके बारे में पहले ही पता लगा लेना है, और जितनी जल्दी हो सके उनसे निपटकर उन्हें निष्कासित कर देना है, ताकि कलीसिया और भाई-बहनों पर कोई मुसीबत आने से रोक सकें। क्योंकि ये लोग कलीसिया में कभी भी और कहीं भी दूसरों को प्रभावित कर सकते हैं, और कभी भी किसी भी स्थिति में कलीसिया की सामान्य व्यवस्था को नष्ट कर सकते हैं, इसलिए ऐसे छद्म-विश्वासियों को बरदाश्त मत करते रहो और धैर्य मत दिखाते रहो। उन्हें प्रायश्चित्त करने का एक और मौका मत दो; बेवकूफी मत करो। एक बार पता लगते ही, भविष्य के दुर्भाग्य को रोकने के लिए उन्हें यथाशीघ्र निष्कासित कर देना चाहिए। ऐसा करने का प्रयोजन, उन लोगों को गुमराह होने, इस्तेमाल होने और शैतान और राक्षसों की कठपुतलियाँ बनने से रोकना है, जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं। बेशक, इस क्षण तुम्हें जो सबसे अधिक करना चाहिए वह राजनीतिक लक्ष्य रखने वाले लोगों को कलीसिया के बारे में कोई अहम जानकारी पाने से रोकना है। तुम उन्हें जितनी जल्दी पहचान कर निष्कासित कर दोगे, भाई-बहनों का उनसे उतना ही कम संपर्क होगा, और वे उतना ही कम उनके द्वारा गुमराह और प्रभावित किए जाएँगे। इसलिए, समय के लिहाज से, ऐसे लोगों से देर से नहीं बल्कि जल्द-से-जल्द निपटकर निष्कासित कर देना बेहतर है—जितनी जल्दी करो उतना बेहतर है। सक्रिय होना निष्क्रिय होने से बेहतर है। राजनीतिक लक्ष्य रखने वाले लोग दुर्भावनापूर्ण होते हैं; उनमें संभवतः कलीसिया और परमेश्वर के घर के लिए कुछ भी करने में कोई ईमानदारी नहीं हो सकती। अगर वे भाई-बहनों को गुमराह नहीं कर सकते, उनका इस्तेमाल नहीं कर सकते, तो वे पूरी तरह अपमानित हो जाएँगे, और यहाँ तक कि अलविदा कहे बिना ही स्वेच्छा से कलीसिया छोड़ देंगे। परमेश्वर में विश्वास रखने के आठवें प्रयोजन : राजनीतिक लक्ष्यों का अनुसरण करना, इस पर हमारी संगति यहीं समाप्त होती है।
30 अक्तूबर 2021
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