अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (23) खंड चार

छ. किसी समर्थक को ढूँढ़ना

लोगों का परमेश्वर में विश्वास रखने का सातवाँ प्रयोजन किसी समर्थक को ढूँढ़ना होता है। क्या तुम लोगों ने कभी ऐसे लोगों को देखा है? वैसे यह थोड़ी विशेष स्थिति है; हालाँकि ऐसे लोग ज्यादा नहीं होते, मगर वे होते जरूर हैं। ऐसा इस कारण से है कि परमेश्वर की कलीसियाएँ न सिर्फ चीन में, बल्कि एशिया, यूरोप, अमेरिका, और अफ्रीका के विभिन्न देशों में भी प्रकट हुई हैं, और इसलिए ये अवसरवादी और छद्म-विश्वासी उन कलीसियाओं के साथ ही सामने आएँगे। चाहे इन लोगों के सामने आने की संभावना जितनी भी हो, किसी भी स्थिति में, उनके एक बार सामने आ जाने पर, तुम लोगों को उनका सामना कर उन्हें पहचानना होगा, और इन छद्म-विश्वासियों को कोई रुतबा हासिल करके कलीसिया में बाधाएँ डालने से रोकना होगा। अगर तुम लोग सोचते हो कि ये समस्याएँ मौजूद नहीं हैं, क्योंकि वे सामने नहीं आई हैं, या तुमने उनका सामना नहीं किया है, तो यह एक बेवकूफी भरा ख्याल है। एक बार इन समस्याओं के पैदा हो जाने पर अगर तुम उन्हें पहचान न पाओ और उन्हें हल करने का तरीका न जानो, तो वे कलीसिया, परमेश्वर के घर, भाई-बहनों, और कलीसिया के कार्य के लिए भयानक छिपे हुए खतरे लेकर आएँगी। इसलिए, इससे पहले कि कुछ हो, तुम्हें जान लेना चाहिए कि किन मसलों का सामना करना चाहिए और उन्हें कैसे सुलझाना चाहिए। यही सर्वोत्तम तरीका है; यह तुम्हारे लिए एक अदृश्य रक्षा कवच के रूप में कार्य करता है। परमेश्वर में विश्वास रखने के सातवें प्रयोजन में जिन लोगों का जिक्र किया गया है, अर्थात् जो किसी समर्थक को ढूँढ़ने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उनकी संख्या कम नहीं है। इस समाज में हर जगह अन्याय, भेदभाव और दमन भरा हुआ है। समाज के सभी स्तरों में रह रहे लोग समाज के विभिन्न अन्यायों के प्रति घृणा और नफरत से भरे हुए हैं और वे गुस्से से भी भरे हुए हैं। लेकिन इंसानी दुनिया के अन्यायों से तब तक बच निकलना आसान नहीं है, जब तक तुम इससे गायब न हो जाओ। अगर कोई इस दुनिया में जीता है, अगर वह इन लोगों के बीच जीता है—तो कमोबेश, किसी-न-किसी हद तक—धौंस खाएगा और अपमानित होगा, और यहाँ तक कि कुछ ताकतवर शक्तियों द्वारा उसका पीछा और उत्पीड़न भी किया जाएगा। इन विभिन्न अन्यायों और असमानताओं ने लोगों के मानस में बहुत तनाव पैदा किया है, जिससे उन पर खासा मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ा है, और बेशक लोगों के सामान्य जीवन में अनेक असुविधाएँ आई हैं। नतीजतन, कुछ लोग एक खास विचार बनाए बिना नहीं रह सकते : “कोई व्यक्ति स्वयं को समाज में स्थापित कर सके, इसके लिए उसके पीछे एक शक्ति होनी चाहिए जिस पर भरोसा किया जा सके। जब वे कठिनाइयों का सामना करते हैं, और उन्हें मदद चाहिए होती है, या जब वे अकेले और असहाय होते हैं, तो फिर उनका साथ देने और फैसले लेने, उनके सामने आई तकलीफों और समस्याओं को सुलझाने या उनके जीवन यापन हेतु अनिवार्य चीजें सुनिश्चित करने के लिए लोगों का कोई समूह होगा।” इसलिए, वे ऐसा समर्थन खोजने का प्रयास करते हैं। बेशक, इनमें से कुछ लोग आखिरकार कलीसिया को ढूँढ़ लेते हैं। वे मानते हैं कि कलीसिया के लोग दिल से एकजुट होते हैं, एक ही लक्ष्य की ओर कार्य करते हैं, प्रत्येक की अपनी आस्था होती है, उनके इरादे नेक होते हैं और वे दूसरों के प्रति दयालुता से कार्य करते हैं, सामाजिक द्वंद्वों से दूर रहते हैं, और समाज की बुरी प्रवृत्तियों से खुद को दूर रखते हैं। जो लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उनके लिए कलीसिया निस्संदेह समाज और दुनिया में महान न्याय का प्रतीक है; लोगों के मन में कलीसिया में रहने वाले लोगों की एक सकारात्मक, अच्छी और दयालु छवि भी होती है। कुछ लोग परमेश्वर में विश्वास रखना इसलिए चुनते हैं क्योंकि वे समाज के सबसे निचले तबके में होते हैं, जिनके पास समाज में किसी भी प्रकार की शक्ति नहीं होती है, और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी अच्छी नहीं होती है। वे शिक्षा प्राप्त करने, दोस्त बनाने, नौकरी ढूँढ़ने या तरह-तरह के काम करने में विभिन्न कठिनाइयों का सामना करते हैं, इसलिए वे मानते हैं कि जीवित रहने और समाज में खुद को स्थापित करने में उनकी मदद करने के लिए कुछ लोग होने चाहिए। उदाहरण के लिए, नौकरी ढूँढ़ते समय अगर वे खुद के भरोसे रहते हैं, निरुद्देश्य होकर एक के बाद एक नौकरी के अवसर खंगालते हैं, तो हो सकता है कि कोई उपयुक्त नौकरी हाथ लगे बिना ही उनकी सारी जमा पूँजी खत्म हो जाए। लेकिन अगर उनकी तलाश में ईमानदारी से उनकी सहायता करने वाले भरोसेमंद लोगों की मदद मिल जाए, तो उन्हें बहुत कम मुश्किलें झेलनी पड़ेंगी और नौकरी ढूँढ़ने में लगाया गया वक्त भी बहुत कम हो जाएगा। इसलिए, वे मानते हैं कि अगर वे किसी ऐसे समर्थक को ढूँढ़ सकें, तो समाज की हर चीज—शिक्षा प्राप्त करने, नौकरी ढूँढ़ने, यहाँ तक कि उनके दैनिक जीवन और जीवित रहने—से निपटने के लिए उनके पास अपने व्यक्तिगत प्रभाव का प्रयोग करके उनका साथ देने के लिए कुछ लोग होंगे, जोशीले लोगों का एक समूह होगा जो परदे के पीछे से उनकी मदद करेगा। इस तरह, जब उन्हें कलीसिया मिल जाती है, तो उन्हें लगता है कि उन्हें सही जगह मिल गई है। समाज में खुद को स्थापित करने और शांतिपूर्ण जीवन पाने के लिए कलीसिया उनके लिए एक बहुत अच्छा विकल्प बन जाती है। उदाहरण के लिए, चाहे किसी डॉक्टर के पास जाना हो, खरीददारी करनी हो, बीमा करवाना हो, घर खरीदना हो, स्कूल चुनने में अपने बच्चों की मदद करनी हो, या कोई भी मामला सँभालना हो, उन्हें कलीसिया में हमेशा इन मसलों को सुलझाने के लिए हाथ बढ़ाकर मदद करने वाले प्रेमपूर्ण लोग मिल सकते हैं। इस तरह उनका जीवन बहुत ज्यादा सुविधाजनक हो जाता है, वे समाज में अब उतने अकेले नहीं रह जाते, और मामले सँभालने में आने वाली कठिनाइयाँ बहुत कम हो जाती हैं। इसलिए, उनके लिए परमेश्वर में विश्वास रखने हेतु कलीसिया में आना वास्तव में ठोस लाभ प्रदान करता है। यहाँ तक कि यदि वे डॉक्टर के पास जा रहे हों तो भाई-बहन उनकी मदद करने के लिए अस्पताल में अपने परिचितों का पता लगा लेंगे; खरीददारी में बढ़िया सौदों के लिए वे उनका उपयोग कर सकते हैं, और यहाँ तक कि अंदरूनी जानकारी वाली कीमतों पर घर खरीद सकते हैं। कलीसिया में भाई-बहनों की मदद से, ये सभी समस्याएँ हल हो जाती हैं। उन्हें लगता है, “परमेश्वर में विश्वास रखना बहुत बढ़िया है! नौकरी ढूँढ़ना, मामले सँभालना, और खरीददारी जैसे सारे काम अब सुविधाजनक हैं! मुझे जब भी किसी चीज की जरूरत होती है, मुझे बस एक फोन करना होता है, या समूह में एक संदेश डालना होता है, और फिर सभी लोग एकजुट होकर मदद का हाथ बढ़ाते हैं। कलीसिया में बहुत सारे दयालु लोग हैं; मामले सँभालना अब बहुत सुविधाजनक है! कोई समर्थक ढूँढ़ना आसान नहीं था, इसलिए कुछ भी हो जाए, मैं कलीसिया नहीं छोडूँगा। लेकिन परमेश्वर के घर की सभाओं में हमेशा परमेश्वर के वचनों का पाठ करना और सत्य पर संगति करना शामिल होता है, जो मुझे अजीब लगता है और दुविधा में डाल देता है। मैं परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने को तैयार नहीं हूँ, और जब भी मैं सत्य पर संगति सुनता हूँ तो विमुख हो जाता हूँ। लेकिन अगर मैं न सुनूँ, तो काम नहीं चलेगा—मैं उन्हें नहीं छोड़ सकता। वे मेरी इतनी अधिक मदद करते हैं। अगर मैं सुनने से इनकार कर दूँ तो मुझे शर्मिंदगी महसूस होगी, और यह कहना भी अजीब होगा कि अब मैं विश्वास नहीं रखता, इसलिए मुझे साथ देना पड़ता है और अच्छी बातें बोलनी पड़ती हैं।” अपने दिलों में वे वास्तव में विश्वास नहीं रखना चाहते, लेकिन वे इस भावना को सिर्फ दबाकर रख सकते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “तुम उन लोगों को हमेशा केवल भाई-बहनों से मामले सँभालने को कहते हुए और जब भाई-बहन मदद करते हैं तो उन्हें बहुत खुश होते हुए देखते हो—क्या तुम सिर्फ इस बात से ही पहचान सकते हो कि परमेश्वर में विश्वास रखने का उनका प्रयोजन किसी समर्थक को ढूँढ़ना है?” इन अभिव्यक्तियों के अलावा, इस बात पर गौर करो कि क्या वे आमतौर पर परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं और सत्य पर संगति करते हैं, क्या वे अपना कर्तव्य निभा सकते हैं और खुद में कोई वास्तविक बदलाव ला सकते हैं; इससे तुम जान सकोगे कि क्या वे परमेश्वर में ईमानदारी से विश्वास रखते हैं। जो लोग किसी समर्थक को ढूँढ़ते हैं, वे परमेश्वर में सिर्फ इसलिए विश्वास रखते हैं ताकि अपने मामले सँभालने के लिए और अपने जीवन की कठिनाइयाँ दूर करने के लिए कलीसिया और भाई-बहनों का इस्तेमाल कर सकें। लेकिन वे कभी भी अपने कर्तव्य निर्वहन का जिक्र नहीं करते, न ही वे परमेश्वर के वचन खाते-पीते हैं या उन पर संगति करते हैं। जैसे ही वे काम करवाने के किसी बढ़िया तरीके के बारे में सुनते हैं, वे बड़े जोश में आ जाते हैं; वे बिना रुके बड़बड़ाने लगते हैं, यहाँ तक कि उन्हें बीच में टोका भी नहीं जा सकता। लेकिन जब उनके कर्तव्य निर्वहन या ईमानदार होने और झूठ नहीं बोलने या दूसरों को धोखा नहीं देने की बात आती है, तो वे गूंगे बन जाते हैं। उन्हें दिल से इन चीजों में रुचि नहीं होती—तुम चाहे जितने भी जूनून से बोलो, वे कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाते और बातचीत में शामिल नहीं होते; यहाँ तक कि वे लगातार तुम्हें रोकने और विषय को अपनी रुचि की किसी चीज की ओर घुमाने की कोशिश करते हैं। भाई-बहनों से अपने लिए काम करवाने और अपने लिए मेहनत करवाने के तरीकों के बारे में सोचने में अपना दिमाग लगाते हैं, और भाई-बहनों को कर्तव्य निभाने या इंसान के परमेश्वर के लिए खपने का जिक्र करने का कोई अवसर देना नहीं चाहते। अगर कोई यह सलाह देता है कि वे अपना कर्तव्य निभाएँ और परमेश्वर के लिए खुद को खपाएँ, तो वे जल्दी से उसके बदले पेश करने के लिए अपना खुद का कोई अत्यावश्यक मामला ढूँढ़ लेते हैं; जब भाई-बहन उनके लिए यह मामला सँभाल रहे होते हैं, तो वे अनिच्छा से परमेश्वर के घर के लिए थोड़ा प्रयास करते हैं, भाई-बहनों के निवेदन को थोड़ा-सा पूरा कर देते हैं, और उनका व्यक्तिगत मामला व्यवस्थित हो जाने पर वे भाई-बहनों के प्रति ठंडे पड़ जाते हैं। कलीसिया से संपर्क बनाए रखने, इस समर्थक यानी कलीसिया और इन सहायकों यानी भाई-बहनों को न खोने के लिए वे अपने लिए उपयोगी हर किसी के साथ करीबी संपर्क बनाए रखते हैं, अक्सर उनके बारे में चिंता करते हुए पूछताछ करते रहते हैं, और रिश्ते बनाए रखने के लिए चिंता भरे लेकिन निष्ठाहीन शब्द बोलते हैं। वे इस बारे में बातें करते हैं कि परमेश्वर के अस्तित्व में उन्हें कितना अधिक विश्वास है, परमेश्वर उन्हें कितने आशीष देता है, परमेश्वर उन पर कितना अनुग्रह करता है, और कैसे वे अक्सर आँसू बहाते हैं, परमेश्वर के प्रति ऋणी महसूस करते हैं, और परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करने के लिए तैयार रहते हैं—यह भाई-बहनों को धोखा देने और उनकी मदद हासिल करने के लिए होता है। एक बार जब कोई शोषण के लायक नहीं रह जाता, तो वे तुरंत उसे ब्लॉक कर देते हैं और उससे संपर्क की जानकारी हटा देते हैं। जो लोग उनके लिए सबसे अधिक लाभकारी होते हैं, जो सर्वाधिक शोषण के लायक होते हैं, उनकी वे बड़े जोश से चापलूसी और सेवा करते हैं और उनके करीब आ जाते हैं। जो लोग शोषण के लायक नहीं होते, उन्हीं की तरह जिनका समाज में कोई प्रभाव या रुतबा नहीं होता, और जो समाज के सबसे निचले दर्जे पर होते हैं जिनका कोई सहारा नहीं होता, वे उन पर एक नजर भी नहीं डालते। वे केवल उन्हीं के साथ संबंध रखते हैं जो शोषण के लायक होते हैं, और समाज में जिनके संपर्क हैं, और जिन्हें वे सक्षम लोगों के रूप में देखते हैं। वे कलीसिया के लिए सिर्फ तभी मेहनत कर सकते हैं और तकलीफें सह सकते हैं जब उन्हें कलीसिया या भाई-बहनों से कुछ चाहिए हो। वास्तव में, इस तरह के छद्म-विश्वासियों की अभिव्यक्तियाँ अत्यंत स्पष्ट होती हैं। घर में, वे कभी भी परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ते, कठिनाइयाँ न होने पर वे कभी भी परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करते, और बड़ी अनिच्छा के साथ कलीसियाई जीवन में भाग लेते हैं। वे कर्तव्य निभाने के बारे में नहीं पूछते, और कलीसिया के कार्य में खुद को शामिल करने के लिए पहल नहीं करते; खास तौर पर, वे कभी भी खतरनाक कार्य में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेते। यदि वे ऐसा करने को राजी हो जाएँ, तो भी वे बड़ी बेसब्री दिखाते हैं, और जब उन्हें करने के लिए बुलाया या आमंत्रित किया जाता है सिर्फ तभी वे अनिच्छा से थोड़ी मेहनत कर देते हैं। ये छद्म-विश्वासियों की अभिव्यक्तियाँ हैं। परमेश्वर के वचनों का पाठ नहीं करना, कर्तव्य नहीं निभाना—हालाँकि वे अनिच्छा से कलीसिया के जीवन में भाग लेते हैं, लेकिन यह उनके बहुत बड़े समर्थक यानि कलीसिया के भाई-बहनों के समुदाय को खो देने से बचने के लिए होता है। सिर्फ भविष्य में खुद के लिए मामले सँभालना आसान करने के लिए ही वे इन लोगों से रिश्ते बनाए रखते हैं। एक बार जब ऐसे लोग समाज में पाँव जमा लेते हैं, उन्हें बस जाने और अपना जीवन शुरू करने की जगह मिल जाती है, एक बार जब वे दुनिया में कुछ हासिल कर लेते हैं, और एक शानदार भविष्य के लिए प्रभाव और संभावनाएँ हासिल कर चुके होते हैं, तो वे तुरंत और बेझिझक कलीसिया छोड़ देंगे, भाई-बहनों से संबंध तोड़ लेंगे, और संपर्क खो देंगे। अगर सुसमाचार का कोई ऐसा संभावित प्राप्तकर्ता है जिसके साथ उनका अच्छा रिश्ता है, और उस व्यक्ति को सुसमाचार का उपदेश देने के लिए तुम उनसे संपर्क करना चाहते हो, तो तुम उन तक पहुँचने में सक्षम नहीं हो पाओगे। वे न सिर्फ कलीसिया से संबंध तोड़ लेते हैं, बल्कि कुछ विशेष लोगों से दोस्ती भी खत्म कर देते हैं। क्या वे पहले ही छद्म-विश्वासियों के रूप में खुद को पहले ही प्रकट नहीं कर चुके हैं? (हाँ।) तो कलीसिया को ऐसे लोगों से कैसे निपटना चाहिए? (उन्हें बाहर निकाल दो।) क्या हमें उन्हें एक मौका देना चाहिए, उनकी कमजोरी और उनके जीवन की कठिनाइयों के प्रति समझ दिखानी चाहिए, और उन्हें और ज्यादा सहारा और मदद देनी चाहिए ताकि वे यह विश्वास कर सकें कि परमेश्वर का अस्तित्व है, सत्य में रुचि ले सकें, और परमेश्वर के लिए खुद को ईमानदारी से खपा सकें? क्या यह कार्य करना जरूरी है? (नहीं।) क्यों नहीं? (क्योंकि ये लोग यहाँ परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए बिल्कुल नहीं आए हैं।) सही है, वे परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए नहीं आए हैं; उनका लक्ष्य बहुत स्पष्ट है—वे यहाँ किसी समर्थक को ढूँढ़ने आए हैं। तो क्या ऐसे लोगों से सत्य पर संगति करने के कोई परिणाम निकल सकते हैं? (नहीं।) वे इसे आत्मसात नहीं करेंगे; वे इसकी कद्र नहीं करते, उन्हें इसकी जरूरत नहीं है, और उन्हें इसमें रुचि नहीं है।

हमें उन लोगों का वर्णन कैसे करना चाहिए जो बस किसी समर्थक को ढूँढ़ने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं? उन्हें ऐसे लोगों के रूप में वर्णित करना बहुत सटीक है जो अपने हितों को किसी भी दूसरी चीज से आगे रखते हैं। अगर वे देखते हैं कि कोई व्यक्ति उनके लिए उपयोगी और लाभकारी है, तो वे उस व्यक्ति द्वारा कहा गया कोई भी काम करेंगे; यहाँ तक कि वे उसके दिए हुए किसी भी आदेश या सभी आदेशों को मानेंगे। वे अपने हितों को किसी भी दूसरी चीज से आगे रखते हैं; अगर कोई चीज उनके हितों को पूरा करती है, तो यह ठीक है। अगर तुम उनसे कहते हो कि परमेश्वर में विश्वास रखने से आशीष और लाभ मिलेंगे, तो वे उसमें यकीनन विश्वास रखेंगे और तुम जो भी करने के लिए कहोगे, वे वह काम करेंगे। अगर समाज में मामले सँभालने की तुम्हारी क्षमता उनकी जरूरतें पूरी करती है और उन्हें लाभ पहुँचाती है, तो वे निश्चित रूप से तुम्हारे साथ जुड़े रहेंगे। लेकिन, तुम्हारे साथ उनके जुड़ने का यह अर्थ नहीं है कि वे परमेश्वर में वास्तव में विश्वास रख सकेंगे, न ही इसका यह अर्थ है कि वे तुम्हारी तरह ईमानदारी से परमेश्वर के लिए खुद को खपाएँगे। भले ही वे तुम्हारे साथ मिल-जुलकर रहते हों, और तुम लोगों के विशेष रूप से अच्छे संबंध हों, इसका अनिवार्य रूप से यह अर्थ नहीं है कि तुम एक ही भाषा बोलते हो, एक ही मार्ग पर चलते हो, और एक ही चीज का अनुसरण करते हो। इसलिए, तुम्हें ऐसे लोगों से गुमराह नहीं होना चाहिए। ये लोग चालाक हैं, और इनके पास दूसरे लोगों के साथ बातचीत करने की युक्तियाँ हैं। परमेश्वर में विश्वास रखने का उनका प्रयोजन किसी समर्थक को ढूँढ़ना है, सत्य का अनुसरण करना और उद्धार प्राप्त करना नहीं। यह दिखाता है कि उनका चरित्र कितना नीच और अंधकारमय है! वे कलीसिया में ऐसे लोगों को ढूँढ़ने आते हैं जिनका वे शोषण कर सकें, और वे अपने लिए विभिन्न लाभ पाने की साजिश करते हैं। क्या इसका यह अर्थ नहीं है कि ऐसे लोग बिना किसी नैतिक संकोच के कार्य करने और हर तरह की शर्मनाक चीजें करने में सक्षम होते हैं? (हाँ।) सिर्फ इस तथ्य से कि परमेश्वर में विश्वास रखने का उनका प्रयोजन किसी समर्थक को ढूँढ़ना और आजीविका चलाना है, यह स्पष्ट है कि ये लोग जरा भी अच्छे नहीं हैं, और वे नीच चरित्र के, स्वार्थी, घिनौने, कमीने और घने अंधकार में जीने वाले लोग हैं। इसलिए, इन लोगों से निपटने का कलीसिया का सिद्धांत भी उसी तरह उन्हें पहचान कर बहिष्कृत या निष्कासित कर देना है। एक बार जब तुम पहचान लो कि वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं, वे कोई रास्ता तलाशने और फायदा उठाने के लिए कलीसिया में आए हैं, अपने मामले सँभलवाने और अपनी सेवा करवाने के लिए भाई-बहनों का शोषण करना चाहते हैं, तो ऐसे मामलों में अगुआओं और कार्यकर्ताओं और भाई-बहनों को मुस्तैदी से और सटीक ढंग से स्थिति को सँभालना चाहिए। कलीसिया या भाई-बहनों की सुरक्षा को खतरा पहुँचाए बिना उन्हें यथाशीघ्र बहिष्कृत या निष्कासित कर दो। उन्हें भाई-बहनों के बीच घात लगाए छिपे नहीं रहने देना चाहिए। वे परमेश्वर के उद्धार के लक्ष्य नहीं हैं। जब ऐसे लोग तुम लोगों के बीच घात लगाए छिपे रहते हैं, तो यह देखने के लिए कि कौन शोषण करने के लायक है वे सभी लोगों पर निरंतर लालची और चौकस नजर बनाए रखते हैं। वे हमेशा हिसाब लगाते रहते हैं कि क्या कलीसिया में ऐसे लोग हैं जिनका वे इस्तेमाल कर सकते हैं—किसके रिश्तेदार अस्पतालों में काम करते हैं, कौन बीमारियों का इलाज करना जानता है या किसके पास खुफिया इलाज हैं, कौन दुकानों में थोक मूल्यों पर चीजें दिलवा सकता है, किस भाई के परिवार के पास कार डीलरशिप है, कौन अंदरूनी जानकारी वाली कीमतों पर घर दिलवा सकता है—वे इन मामलों की खास तौर पर खोजबीन करते हैं। ये लोग अपने हिसाब-किताब में बहुत सतर्क रहते हैं! वे छोटी-छोटी बातों का भी हिसाब रखते हैं, वे भाई-बहनों के खिलाफ षड्यंत्र भी करना चाहते हैं और उनका फायदा उठाने की साजिश करना चाहते हैं। वे हर किसी की पारिवारिक पृष्ठभूमि की खोजबीन करते हैं, और सभी को अपने षड्यंत्रों और साजिशों के दायरे में रखते हैं। क्या ऐसे लोगों से बातचीत करते समय तुम्हारे दिल को शांति महसूस हो सकती है? (नहीं।) अगर शांति न हो तो क्या किया जाना चाहिए? तुम्हें ऐसे लोगों से सतर्क रहना चाहिए। ये लोग गलत मंशाओं से परमेश्वर में विश्वास रखते हैं; वे यहाँ सत्य या उद्धार का अनुसरण करने के लिए नहीं हैं, बल्कि किसी समर्थक को ढूँढ़ने, आजीविका चलाने और अपने लिए कोई रास्ता ढूँढ़ने के लिए हैं। ऐसे लोग खास तौर पर स्वार्थी, घिनौने और धूर्त होते हैं। वे कोई कर्तव्य नहीं करते और परमेश्वर के लिए खुद को नहीं खपाते हैं। जब कलीसिया को किसी काम के लिए उनकी जरूरत होती है, तो वे कहीं नहीं मिलते, और मामला खत्म हो जाने के बाद वे दोबारा प्रकट हो जाते हैं। ये लोग सिर्फ फायदा उठाना जानते हैं, और उन्हें कलीसिया में रहने देने का कोई लाभ नहीं है; उन लोगों को यथाशीघ्र बाहर निकालने के लिए विभिन्न तरीके आजमाने चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “क्या वास्तव में एक व्यक्ति से निपटने के लिए विभिन्न तरीकों की जरूरत होगी?” कलीसिया में हर प्रकार के लोग हैं; उनमें से कई सिर्फ किसी समर्थक को ढूँढ़ने और कोई रास्ता तलाशने, आशीष प्राप्त करने, या आपदाओं से बचने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। अंतर केवल इन मंशाओं की गंभीरता में ही होता है; कुछ लोग एक प्रकार का व्यवहार प्रदर्शित करते हैं, जबकि दूसरे किसी और प्रकार का। इसलिए, अलग-अलग लोगों से अलग-अलग ढंग से पेश आना चाहिए; सिर्फ यही सिद्धांतों से मेल खाता है। जहाँ तक किसी समर्थक को ढूँढ़ने वाले इन छद्म-विश्वासियों की बात है, उन्हें मुस्तैदी से बाहर निकाल देना चाहिए। उन्हें कलीसिया में मुफ्त की रोटी मत तोड़ने दो। वे भाई-बहनों से अपने लिए मामले सँभालने को कहते हैं—चूँकि वास्तव में मामले सँभालने में उनकी मदद करने के लिए थोड़ी-सी सहायता देने की ही जरूरत होती है, तो उन्हें यह थोड़ी-सी सहायता भी क्यों नहीं दी जानी चाहिए? पहली बात यह है, जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण बात है, कि ये लोग सच्चे विश्वासी नहीं हैं; वे पक्के छद्म-विश्वासी हैं। दूसरी बात यह है कि ये लोग विश्वास नहीं रखने वालों से सच्चे विश्वासियों में नहीं बदल सकते। ये वे लोग नहीं हैं जिन्हें परमेश्वर ने पूर्वनियत किया है और चुना है; वे उसके उद्धार के लक्ष्य नहीं हैं—बल्कि वे बुरे कर्म करने वाले लोग हैं जिन्होंने कलीसिया में घुसपैठ की है। तीसरी बात यह है कि ये लोग पूरी कलीसिया में दौड़ते-भागते रहते हैं, उनके सामने आया हुआ मामला चाहे जितना भी बड़ा क्यों न हो, हमेशा भाई-बहनों से मदद माँगते फिरते हैं, जिससे भाई-बहनों को अनजाने में ही परेशानी होती है, और इस दौरान कलीसिया में ऐसा गंभीर नकारात्मक माहौल बन जाता है जो हरेक के लिए हानिकारक होता है। इसलिए, सिर्फ किसी समर्थक को ढूँढ़ने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखने वाले इन दानवों को यथाशीघ्र बाहर निकाल देना सर्वश्रेष्ठ है। अगर तुमने उनकी पहचान नहीं की है, या तुम्हें अभी यह बोध नहीं हुआ है कि वे इस प्रकार के व्यक्ति हैं, तो तुम उन्हें जाँच-परख के लिए रोके रख सकते हो। जब एक बार तुम यह पहचान लो और असलियत समझ लो कि वे उन बुरे लोगों में से हैं जिन्हें परमेश्वर के घर को बाहर निकाल देना चाहिए, तो झिझको मत और न ही उनके प्रति कोई शिष्टाचार दिखाओ। सभी लोगों से विचार-विमर्श करके सहमति बना लेने के बाद तुम उन्हें बाहर निकाल सकते हो। यदि कलीसिया के अगुआ और कार्यकर्ता इस मामले को नजरअंदाज करते हैं, और अगर ज्यादातर भाई-बहन पुष्टि करें कि वे उस प्रकार के व्यक्ति हैं जो सिर्फ किसी समर्थक को ढूँढ़ने और कोई रास्ता खोजने के लिए ही परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, तो झूठे अगुआओं से चर्चा किए बिना उन्हें बाहर निकाल देने का तुम्हें पूरा अधिकार है। ऐसा करना सही और पूरी तरह से सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है। यह तुम लोगों का अधिकार है, तुम लोगों का दायित्व है, तुम्हारी जिम्मेदारी है; यह तुम लोगों की स्वयं की रक्षा के लिए है। बेशक, जब उन भाई-बहनों का कठिनाइयों से सामना होता है जो सच्चे विश्वासी हैं, तो अपनी सर्वोत्तम क्षमता के अनुसार स्नेहमय सहायता और समर्थन से या फिर भौतिक सहायता के जरिए उनकी मदद करने की भरसक कोशिश करना हमारी जिम्मेदारी और दायित्व है। यही है भाई-बहनों के बीच का प्रेम, उन लोगों का प्रेम है जो परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। लेकिन हमारी इस बात की कोई जिम्मेदारी या दायित्व नहीं है कि हम छद्म-विश्वासियों की मदद करें, क्योंकि वे भाई-बहन नहीं हैं, और इस अनुग्रह या ऐसी मदद के योग्य नहीं हैं। यही सिद्धांतों के अनुसार लोगों से पेश आना है। परमेश्वर में विश्वास रखने के सातवें प्रयोजन पर हमारी संगति यहाँ समाप्त होती है। इस प्रकार के लोगों के बारे में और अधिक विशेष उदाहरण देने की कोई जरूरत नहीं है। संक्षेप में कहें तो, जिस भी व्यक्ति का परमेश्वर में विश्वास रखने का प्रयोजन किसी समर्थक को ढूँढ़ना है, उस व्यक्ति को कलीसिया से बहिष्कृत या निष्कासित कर देना चाहिए। एक बार जब अगुआ और कार्यकर्ता पहचान लें कि कलीसिया में ऐसे लोग हैं, तो उन्हें उन लोगों को मुस्तैदी से बाहर निकाल देना चाहिए। ऐसे हरेक व्यक्ति को बाहर निकाल दो, किसी को मत छोड़ो। अगर ज्यादातर भाई-बहन बेसहारा महसूस करने और अब और ज्यादा बरदाश्त न कर पाने के बिंदु तक पहले ही शोषित किए जा चुके हों, और फिर भी अगुआ और कार्यकर्ता यह कहकर उनका बचाव करते हैं कि, “उनकी अपनी मुश्किलें हैं; हमें उनकी मदद करनी चाहिए,” तो ऐसे अगुआओं से कह देना चाहिए : “वे परमेश्वर के सच्चे विश्वासी नहीं हैं। वे किसी भी उस व्यक्ति को अनदेखा करते हैं जो परमेश्वर के वचनों पर उनके साथ संगति करता है, और बताए जाने पर अपना कर्तव्य नहीं निभाते। उनका परमेश्वर के लिए खुद को खपाने का कभी कोई इरादा नहीं था, और वे बस भाई-बहनों को अपने मामले सँभालने के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं। ऐसे छद्म-विश्वासियों की मदद करने की हमारी कोई जिम्मेदारी या दायित्व नहीं है!” भले ही कलीसिया का अगुआ अनुमति न दे, तो भी तुम लोगों के पास बहुमत के साथ एकजुट होकर उन्हें कलीसिया से बाहर निकाल देने का अधिकार है। इस बिंदु पर अगर कलीसिया का अगुआ फिर भी राजी न हो, तो ऊपर के लोगों को मामले की सूचना दो; अगुआ को अलग-थलग कर दो, और उसे आत्म-चिंतन करने दो। एक बार वह राजी हो जाए, तो तुम लोग उसकी अगुआई को दोबारा स्वीकार सकते हो। अगर वह असहमति जारी रखता हो, तो तुम लोग उसे निकाल सकते हो और एक नए अगुआ का पुनः चुनाव कर सकते हो। यह परमेश्वर में विश्वास रखने का सातवाँ प्रयोजन है : किसी समर्थक को ढूँढ़ना।

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