अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (23) खंड दो

आओ, अवसरवादियों की विशेषताओं को संक्षेप में प्रस्तुत करें। पहली विशेषता यह है कि वे इस मामले को गंभीरता से नहीं लेते कि परमेश्वर का अस्तित्व है या नहीं। अगर तुम उनसे पूछते हो कि क्या परमेश्वर का अस्तित्व है तो वे कहेंगे, “शायद है। वैसे उसका अस्तित्व न भी हो तो भी ठीक है। मैं यहाँ सिर्फ वास्तव में यह देखने के लिए हूँ कि परमेश्वर द्वारा की गई भविष्यवाणियाँ सच होंगी या नहीं और महा प्रलय आएँगी या नहीं।” उनके विचारों और दृष्टिकोणों में उनका रवैया यह है कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि परमेश्वर का अस्तित्व है या नहीं। तो फिर क्या परमेश्वर में विश्वास रखना और कलीसिया में शामिल होना उनके लिए मजाक नहीं है? (हाँ।) परमेश्वर में उनकी आस्था एक साधारण विश्वास है, यह एक खेल की तरह है और यह सत्य या उनके जीवन मार्ग से असंबद्ध है। परमेश्वर का अस्तित्व हो या न हो, उन्हें वास्तव में कोई परवाह नहीं है; अस्तित्व है तो ठीक, और नहीं है तो भी ठीक। कुछ लोग यह कहते हुए उनका खंडन करते हैं कि परमेश्वर का अस्तित्व नहीं है, और वे इससे बेचैन नहीं होते या ऐसे लोगों से नफरत नहीं करते। अगर लोग कहते हैं कि परमेश्वर का अस्तित्व है तो वे कहते हैं, “अगर उसका अस्तित्व है तो है। बहरहाल, अगर तुम मानते हो तो उसका अस्तित्व है; अगर नहीं मानते हो तो नहीं है।” यह उनका दृष्टिकोण है। क्या ऐसे लोग सच्चे विश्वासी होते हैं? वे छद्म-विश्वासी हैं, है ना? (हाँ।) परमेश्वर का अस्तित्व है या नहीं यह उनके लिए महत्वहीन है, तो क्या परमेश्वर में उनके विश्वास में ईमानदारी है? वे संभवतः ईमानदार नहीं हो सकते। अवसरवादी लोगों की पहली विशेषता क्या है? (वे इस मामले को बहुत गंभीरता से नहीं लेते कि परमेश्वर का अस्तित्व है या नहीं।) यह पहली विशेषता है।

अवसरवादी लोगों की दूसरी विशेषता क्या है? वह यह है कि वे सकारात्मक और नकारात्मक चीजों में भेद करने को लेकर बहुत गंभीर नहीं होते हैं। वे नहीं पहचान पाते कि कौन-सी कहावतें, लोग, घटनाएँ और चीजें सकारात्मक हैं, और कौन-सी नकारात्मक, और वे इस बात को गंभीरता से नहीं लेते। उनके लिए अच्छी चीजें बुरी बनाई जा सकती हैं और बुरी चीजें अच्छी, ठीक गैर-विश्वासियों की कहावत की तरह, “हजार बार बोला गया झूठ सच हो जाता है”; यह कहावत उनके लिए वैध है। अगर तुम उनसे पूछो कि सत्य क्या है, तो वे यकीनन नहीं कहेंगे कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, क्योंकि वे इसे नहीं स्वीकारते। तो वे क्या कहेंगे? उनका सच्चा दृष्टिकोण यह है कि हजार या दस हजार बार बोला गया झूठ सच हो जाएगा, यानी अगर बहुत-से लोग कोई बात कहते हैं, तो वे मान लेंगे कि यह सच है। यह वैसा ही है जैसा गैर-विश्वासी कहते हैं : “दुनिया में पहले-पहल कोई राह नहीं थी, लेकिन ज्यादा लोग चलते गए और राह बनती गई।” उन्हें परवाह नहीं होती कि सही क्या है और गलत क्या है, न्यायसंगत क्या है और दुष्ट क्या; वे मानते हैं कि जिस किसी में बहुत बड़ी योग्यता है वह सही है, और जो भी बेकार और अक्षम है वह नकारात्मक। वे बिल्कुल नहीं मानेंगे कि परमेश्वर जो भी कहता और करता है सब सकारात्मक होते हैं, न ही वे यह मानेंगे कि परमेश्वर लोगों से सकारात्मक चीजों की वास्तविकताएँ जीने की अपेक्षा करता है। ये लोग ऐसी भ्रांतियाँ भी बोलेंगे, “तुम कहते हो कि परमेश्वर ही सत्य है, और परमेश्वर के वचन सभी सकारात्मक चीजों की वास्तविकता हैं। क्या इसका यह अर्थ है कि संसार में कोई सकारात्मक चीजें हैं ही नहीं? क्या संसार में भी सकारात्मक चीजें और सत्य नहीं हैं?” क्या यह बकवास नहीं है? क्या यह एक भ्रांति नहीं है? (हाँ।) ये लोग अपने कथनों और क्रियाकलापों के लिए परमेश्वर के वचनों को कसौटी के रूप में नहीं लेते। उदाहरण के लिए, जब वे कोई भ्रांति व्यक्त करते हैं, और तुम उनकी बात काटते हो, तो वे कहेंगे, “तुम सोचते हो कि तुम सही हो, और मैं सोचता हूँ कि मैं सही हूँ, तो चलो, असहमत होने पर सहमत हो जाते हैं। किसी को जो अच्छा लगता है, वही सही है।” यह कैसा दृष्टिकोण है? क्या यह चीजों को छिपाने की कोशिश नहीं है? (हाँ।) यह एक मूर्खतापूर्ण और भ्रमित दृष्टिकोण है; ये लोग सकारात्मक और नकारात्मक चीजों के बीच भेद करने को लेकर ईमानदार नहीं हैं। इस बारे में ईमानदार न होने का क्या अर्थ है? इसका मतलब यह है कि वे अपने दिल से नहीं मान सकते कि परमेश्वर जिन सभी सकारात्मक चीजों की बात करता है, वे सत्य से संबंधित हैं, वे सत्य के अनुरूप हैं, और परमेश्वर से आती हैं, और परमेश्वर जिन नकारात्मक चीजों के बारे में बोलता है वे सत्य के विपरीत होती हैं, और शैतान से आती हैं। वे इस तथ्य को नहीं स्वीकारते और हमेशा अवधारणाओं को धुंधला कर देना चाहते हैं। दूसरों के द्वारा पहचाने जाने और निंदित होने से बचने के लिए वे कभी भी सकारात्मक और नकारात्मक चीजों के बीच भेद करने को लेकर ईमानदार नहीं होते, वे कभी भी अपने सच्चे विचार उजागर नहीं करते, हमेशा गोलमोल ढंग से बोलते हैं, और लोगों को कभी नहीं बताते कि वे वास्तव में क्या सोच रहे हैं। वे किससे बात कर रहे होते हैं उस हिसाब से अलग-अलग बातें कहते हैं, जरूरत के अनुसार स्थिति के साथ पूरी तरह से समायोजित हो जाते हैं। हर लिहाज से, ये लोग सत्य या परमेश्वर के अस्तित्व में रुचि नहीं रखते। यह अवसरवादी लोगों की दूसरी अभिव्यक्ति है। वे सकारात्मक और नकारात्मक चीजों के बीच भेद करने को लेकर ज्यादा ईमानदार नहीं होते।

इन अवसरवादी लोगों में और कौन-सी विशेषताएँ होती हैं? ये लोग परिस्थितियों के अनुरूप ढलने में खास माहिर होते हैं और हमेशा चीजें जैसे विकसित होती हैं उस आधार पर चुनते हैं कि उन्हें रुकना है या छोड़कर जाना है। कलीसिया में शामिल होते समय ही वे हर कदम की योजना बना लेते हैं और अपने बाहर निकलने की रणनीति और अपनी संभावनाओं की काफी तैयारी कर चुके होते हैं। अपने दिलों में हिसाब-किताब करके वे इस बारे में योजनाएँ बनाते हैं कि परमेश्वर के वचनों के साकार होने पर क्या करना है और कुछ वर्षों के बाद भी इनके साकार नहीं होने पर क्या करना है। ऐसा व्यक्ति कलीसिया में प्रवेश करने के बाद कलीसिया के कार्य के प्रति कभी भी पूरी तरह से प्रतिबद्ध नहीं होता है। इसके बजाय, वह अपने अगले कदम तय करने के लिए कलीसिया के विकास, कलीसिया का उसके प्रति रवैया और उसके साथ व्यवहार और दूसरे कारकों की निरंतर जाँच-परख करता है। क्या इन लोगों के विचार बहुत पेचीदा नहीं हैं? (हाँ।) हालाँकि वे कलीसिया में शामिल हो गए हैं, फिर भी उनका परिप्रेक्ष्य हमेशा अस्थायी ही होता है, एक संविदा कर्मी की तरह, वे हमेशा “तन यहाँ और मन कहीं और,” वाली दशा में रहते हैं, उनके दिमाग में षड्यंत्र और साजिशें चलती रहती हैं। परमेश्वर में विश्वास रखने और कलीसिया में शामिल होने का उनका चुनाव बस अनिच्छा से किया हुआ समझौता होता है, न कि कोई आध्यात्मिक जरूरत या परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करने के आधार पर परमेश्वर का अनुसरण करने और मानव जीवन के सही मार्ग पर चलने की इच्छा। उनमें इसके लिए आस्था का अभाव होता है। ये लोग प्रतीक्षा करो और देखो वाले रवैये के साथ परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, वे अपने दिलों में हिसाब करते हैं : “अगर परमेश्वर में विश्वास रखने से मुझे इस जीवन में सौ गुना मिले और आने वाली दुनिया में अनंत जीवन मिले, बचाए जाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का मौका मिले, तो मैं अनुसरण करूँगा और विश्वास रखूँगा। अगर मुझे ये चीजें नहीं मिल सकतीं, तो मैं कभी भी किसी भी स्थिति में कलीसिया छोड़ दूँगा और विश्वास रखना बंद कर दूँगा।” वे परमेश्वर में विश्वास, पूरी तरह से आशीष प्राप्त करने की अवसरवादी आशा से ही रखते हैं। अगर उन्हें आशीष नहीं मिल सकते, तो वे किसी भी वक्त और किसी भी स्थिति में अपने कर्तव्यों का परित्याग कर सकते हैं, और अपने लिए एक दूसरा रास्ता बना सकते हैं, क्योंकि उनके दिलों ने कभी भी कलीसिया में जड़ें नहीं जमाई हैं, न ही उन्होंने वास्तव में परमेश्वर में विश्वास रखने और परमेश्वर का अनुसरण करने का मार्ग चुना है।

इन अवसरवादी लोगों की ये तीन मुख्य विशेषताएँ हैं : वे इस बात को गंभीरता से नहीं लेते कि परमेश्वर का अस्तित्व है या नहीं, वे सकारात्मक और नकारात्मक चीजों में गंभीरता से भेद नहीं करते और वे कभी भी किसी भी स्थिति में कलीसिया छोड़कर जा सकते हैं। भाई-बहन उनसे चाहे जितना भी अच्छा व्यवहार करें, अगर चीजें उनके हितों से मेल नहीं खातीं या उनकी मौजूदा जरूरतों को पूरा नहीं करतीं, तो वे कलीसिया छोड़कर जा सकते हैं। लेकिन जब उनके पास जाने के लिए कहीं जगह नहीं होती है, तो वे वापस लौट आना चुन लेते हैं। वापस लौट आने के बाद भी वे सत्य का अनुसरण नहीं करते, और किसी भी समय दोबारा कलीसिया छोड़कर जा सकते हैं। वे किस प्रकार के नीच लोग हैं? उनका आना-जाना बहुत बेपरवाह लगता है; वे परमेश्वर में ईमानदारी से विश्वास नहीं रखते। ये अवसरवादी लोगों की विशेषताएँ हैं; अपने सार के लिहाज से, वे छद्म-विश्वासी हैं। कुछ लोग तीन से पाँच वर्ष तक विश्वास कायम रख सकते हैं, कुछ लोग आठ से दस वर्ष तक कायम रख सकते हैं, लेकिन उनका प्रयोजन महज अवसरवादिता से आशीष प्राप्त करने का प्रयास करना होता है। ऐसे लोग सरल नहीं होते। यहाँ तक कि वे अब तक मुख्यभूमि चीन के सख्त, उत्पीड़न वाले परिवेश को सहते रहे हैं—क्या यह कुछ हद तक ऐसा नहीं है जैसे “अपमान के जख्म हरे रखने के लिए सूखी लकड़ी पर सोना और पित्त चाटना”? कुछ लोग दस वर्ष तक विश्वास रखने के बाद अब डटे नहीं रह पाते, इसलिए वे शिकायत करते हैं : “दस साल हो गए हैं। मेरी जवानी कलीसिया में व्यर्थ हो गई। अगर ये दस साल मैंने दुनिया में कड़ी मेहनत कर बिताए होते, तो मैं कितना पैसा कमा सकता था? हो सकता है कि मैं मैनेजर बन जाता, और शायद मेरे पास बहुत सारी संपत्ति होती।” फिर वे बेचैन हो जाते हैं। उन्होंने सिर्फ अपनी अल्प जिज्ञासा और आशीषों की इच्छा पूरी करने के लिए दस वर्ष तक परमेश्वर में विश्वास रखा, लेकिन उन्होंने कभी भी सत्य का अनुसरण नहीं किया। नतीजतन, उन्होंने कुछ भी हासिल नहीं किया। उन्हें परमेश्वर में विश्वास रखने का पछतावा होता है, यहाँ तक कि वे यह कहकर खुद को कोसते भी हैं, “बेवकूफ, निकम्मे! तूने चौड़ी आसान सड़क पर चलने के बजाय इस तकलीफदेह रास्ते पर चलने के लिए जोर दिया। किसी ने तुझे मजबूर नहीं किया; यह तेरा अपना चयन था!” कुछ लोग दस वर्ष तक विश्वास रखने के बाद भी छोड़ सकते हैं, अचानक बिना कुछ सोचे-समझे छोड़ सकते हैं। समाज में दो-तीन साल बिताने के बाद वे पाते हैं कि समाज में काम करना उतना सहज या आसान नहीं है जितना उन्होंने कल्पना की थी, और अविश्वासी दुनिया उतनी रंगीन या आदर्श नहीं है जैसे लगती थी; उनके लिए बाहरी दुनिया में कहीं भी निर्वाह करना उतना आसान नहीं है। इस बारे में सोचने के बाद, वे पाते हैं कि कलीसिया अब भी बेहतर है, इसलिए वे बेशर्मी से वापस आ जाते हैं। लौट आने पर वे कहते हैं, “परमेश्वर में विश्वास रखना अच्छी बात है; गैर-विश्वासी बुरे हैं, हमेशा लोगों को धौंस देते रहते हैं। दुनिया में बहुत दुख है। इतने वर्ष परमेश्वर के वचन पढ़े बिना, कलीसिया का जीवन जिए बिना, मैं अंधकार में डूब गया, हर दिन रोता रहा, अपने दांत पीसता रहा; मुझे इतना ज्यादा सताया गया है कि अब मैं इंसान जैसा नहीं लगता। परमेश्वर में विश्वास रखना ही बेहतर है!” वे घोषणा करते हैं कि परमेश्वर में विश्वास रखना बेहतर है, लेकिन वास्तव में ऐसा इसलिए है कि उन्होंने सुना कि दुनिया में बहुत सारी विपत्तियाँ हैं, और मानवजाति को जल्द ही एक महाविपत्ति का अनुभव होने वाला है। जमीन-जायदाद, गाड़ियाँ और मकान होना बेकार है; केवल आस्था वाले लोग ही बचाए जा सकते हैं। इसलिए वे फिर से परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए वापस लौट आते हैं। क्या यह व्यक्ति अवसरवादी नहीं है? (हाँ।) अवसरवादी लोग कलीसिया को कभी भी छोड़कर जा सकते हैं। यदि वे देखते हैं कि कलीसिया में वापस लौटने से आशीष पाने की उम्मीद है, तो वे किसी भी समय वापस भी आ सकते हैं। वापस लौटने के बाद, वे पछतावे के कुछ शब्द बोल सकते हैं और बता सकते हैं कि वे फिर कभी परमेश्वर को नहीं छोड़ेंगे, लेकिन यह देखने के बाद कि दुनिया में शांति और सुकून है, और वे अभी भी कुछ अच्छे दिनों का आनंद ले सकते हैं, तो वे किसी भी समय दोबारा कलीसिया छोड़कर जा सकते हैं। वे परमेश्वर के घर और कलीसिया को क्या समझते हैं? वे उसे एक मुक्त बाजार समझते हैं, जब चाहें आ-जा सकते हैं। मुझे बताओ, अगर ऐसे लोगों को बाहर निकाल दिया जाता है या वे अपने-आप छोड़कर चले जाते हैं, फिर अगर वे वापस आना चाहें तो क्या कलीसिया को उन्हें वापस लेना चाहिए? (नहीं।) उन्हें वापस नहीं लेना चाहिए। उन्हें वापस लेना एक गलती है और इससे सिद्धांतों का उल्लंघन होता है। ये लोग कलीसिया के सदस्यों के मानकों पर खरे नहीं उतरते। वे कभी भी कलीसिया छोड़कर जा सकते हैं, और आशीष प्राप्त करने के लिए वे कभी भी कलीसिया में वापस घुस सकते हैं, लेकिन इस पूरे समय में वे सत्य कभी नहीं स्वीकारते। इससे साबित होता है कि वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। ऐसे लोग हमेशा बहिष्कृत और निष्कासित किए जाने के लक्ष्य होंगे। कलीसिया को उन्हें बाहर निकाल देना चाहिए और उनसे कहना चाहिए : “पछताओ मत। एक बार तुम चले गए तो तुम लौट कर नहीं आ सकते। कलीसिया तुम्हारे लिए दूसरी बार दरवाजा नहीं खोलेगी। सिद्धांत यही है।” कुछ लोग कहते हैं : “उस वक्त वे मूर्ख थे, लेकिन अब उनका बर्ताव बहुत अच्छा है। वे छोटे-से मेमने जितने ही आज्ञाकारी हैं, दर-दर भटकने वाले बेघर इंसान जितने ही दयनीय हैं। जब भी वे भाई-बहनों को देखते हैं, वे अपने पछतावे और कृतज्ञता के बारे में बात करते हैं, पछतावे में रो-रो कर उनकी आँखें लाल हो जाती हैं। वे बेहद दयनीय दिखाई देते हैं, और स्वीकारोक्ति का उनका रवैया बहुत अच्छा होता है। हमें उन्हें वापस आने देना चाहिए।” क्या यहाँ ऐसा कोई वाक्य है जो सिद्धांतों से मेल खाता है? (नहीं।) तीन वर्ष या यहाँ तक कि दस वर्ष से विश्वास रखने के बाद भी वे दृढ़ता से और बेझिझक कलीसिया छोड़कर जा सकते हैं। वे किस प्रकार के नीच हैं? क्या वे सच्चे विश्वासी हैं? (नहीं।) जब शुरुआत में उन्होंने परमेश्वर का अनुसरण करना चुना, तो क्या उनमें ईमानदारी थी? नहीं। अगर उनमें जरा भी ईमानदारी होती, तो वे कलीसिया को छोड़कर जाने को उतने दृढ़संकल्प नहीं होते। सामान्यतः किसी के मन में अधिक-से-अधिक ऐसे विचार तब आते हैं, जब वह कमजोर होता है, उदास होता है, या जब चीजें उसके लिए अच्छे ढंग से नहीं हो रही होतीं हैं, लेकिन वह परमेश्वर में तीन, पाँच या यहाँ तक कि दस वर्ष से विश्वास रखने के बाद कोई दूसरा तरीका ढूँढ़ने के लिए कभी भी कलीसिया छोड़ने का दृढ़ता से निर्णय नहीं लेगा। अगर वह अपनी मर्जी से कलीसिया छोड़ सकता है, तो यह दर्शाता है कि सच्चे मार्ग को स्वीकारते समय और शुरु में कलीसिया में शामिल होते समय वह ईमानदार नहीं था; उसकी गुप्त मंशाएँ और लक्ष्य थे—इसे कहने का कोई दूसरा तरीका नहीं है। ऐसे लोगों को स्पष्ट रूप से पहचाना जाना चाहिए। वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। परमेश्वर में उनका विश्वास और परमेश्वर का उनका अनुसरण आशीष प्राप्त करने की अवसरवादी आशा के लिए है। ऐसे लोगों को अवसरवादियों के रूप में निरूपित किया जाता है और एक बार उनका भेद पहचाने जाने के बाद उन्हें कलीसिया से बाहर निकाल देना चाहिए। अगर वे कलीसिया नहीं छोड़ते, और कलीसिया के भीतर अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए स्थिति का फायदा उठाते रहते हैं, तो यह इसलिए है कि कोई भी उनकी असलियत पहचानने में सक्षम नहीं है। लेकिन इन अवसरवादियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों पर आज की संगति के जरिए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को ऐसे लोगों की स्पष्ट समझ और पहचान हो जानी चाहिए। एक बार यह पता चल जाए कि वे परमेश्वर के वचन कभी नहीं पढ़ते या परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करते, परमेश्वर के कार्य या परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्यों में रुचि नहीं रखते, सकारात्मक चीजों में रुचि नहीं रखते, और उन्हें गंभीरता से नहीं लेते, तो उनसे काफी सतर्क रहना चाहिए। परमेश्वर में विश्वास रखने में उनकी मंशाओं और प्रयोजनों को देखना जरूरी है, और कलीसिया के प्रति उनके रवैये का, सत्य के प्रति उनके रवैये का और परमेश्वर के प्रति उनके रवैये का पता लगाना जरूरी है। अगर यह स्पष्ट दिखाता है कि उनमें सही रवैया नहीं है, वे सत्य का अनुसरण करने और अपना कर्तव्य निभाने के प्रति खास तौर पर उदासीन हैं, किसी तरह की कोई रुचि नहीं दिखाते हैं, और परमेश्वर के वचनों के प्रति उनका रवैया हमेशा संशयात्मक रहता है, तो इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि ये लोग अवसरवादी और छद्म-विश्वासी हैं। उस स्थिति में, उन्हें भाई-बहन नहीं माना जाना चाहिए; वे कलीसिया का हिस्सा नहीं हैं। बल्कि उन्हें कलीसिया से बाहर निकाल देना चाहिए। उन्होंने वर्षों से विश्वास रखा है और फिर भी वे सत्य स्वीकार नहीं करते; क्या उन लोगों के साथ सत्य पर संगति करते रहना लाभकारी होगा? क्या उनके प्रायश्चित्त करने की प्रतीक्षा करते रहना उचित होगा? अब ऐसे लोगों पर कार्य मत करो, और उनके प्रायश्चित्त करने की प्रतीक्षा मत करो। अगर वे अपना कर्तव्य निभाने को तैयार नहीं हैं, और फिर भी कलीसिया छोड़े बिना यहीं रुके रहना चाहते हैं, तो कलीसिया के अगुआओं को उन्हें अक्लमंदी से अलग-थलग करने का तरीका ढूँढ़ना चाहिए। क्या यह उपयुक्त है? (हाँ।) एक बार इन लोगों की अवसरवादियों के रूप में पहचान हो जाने पर वे विभिन्न बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों की श्रेणियों में वर्गीकृत हो चुके होते हैं। बुरे लोग और छद्म-विश्वासी होने के कारण वे कलीसिया से बहिष्कृत और निष्कासित कर दिए जाने के सिद्धांत और शर्तें पूरी करते हैं। उन्हें जल्द बाहर निकाल देना निश्चित रूप से देर से बाहर निकालने से बेहतर है। उन्हें जल्द बाहर निकाल देने से कई मुसीबतों से बचा जा सकता है, और फिर उन्हें व्यथित महसूस करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ऐसे लोगों को तुम्हें स्पष्ट रूप से बता देना चाहिए : “तुम्हें अपने दिल में यह हिसाब लगाने की जरूरत नहीं है कि कब छोड़ कर जाना है या कैसे छोड़ना है, और तुम्हें यह भी हिसाब लगाने की जरूरत नहीं है कि तुम्हें रुकना है या छोड़कर जाना है। परमेश्वर का घर और परमेश्वर लोगों को मजबूर नहीं करते हैं; अगर तुम छोड़ना चाहते हो, तो कलीसिया तुमसे रुकने का आग्रह करने की कोशिश नहीं करेगी। लेकिन एक बात तुम्हारे मन में स्पष्ट हो जानी चाहिए : अगर तुम सुनिश्चित हो चुके हो कि तुम परमेश्वर के घर के व्यक्ति नहीं हो, और तुम कलीसिया का सदस्य बनने को तैयार नहीं हो, तो यथाशीघ्र छोड़कर चले जाओ; देरी मत करो। इसमें सबका भला है। अगर तुम परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखते हो, परमेश्वर के वचनों को सत्य के रूप में स्वीकार कर सकते हो, और सच्चाई से कलीसिया में शामिल होने को तैयार हो, तो तुम न्यायोचित रूप से कलीसिया के सदस्य हो। लेकिन अभी तुम नहीं हो। तुम अवसरवादिता के लिए आए हो, और हो सकता है कि यह बात तुम खुद नहीं जानते, लेकिन हमने पहचान लिया है—परमेश्वर के वचनों, सत्य और सभी प्रकार के लोगों से निपटने के कलीसिया के सिद्धांतों के अनुसार—तुम एक अवसरवादी हो। तुम कलीसिया छोड़कर जाने के लिए उपयुक्त समय का हिसाब लगाते रहते हो; यह बड़ी तकलीफ की बात है। तुम्हें उपयुक्त समय का पता लगाने की जरूरत नहीं है; तुम अभी जा सकते हो। परमेश्वर के प्रकटन और कार्य को लेकर तुम हमेशा अनिश्चित रहते हो, तो मैं तुम्हें अभी साफ तौर पर बता देता हूँ : तुम्हें अब चीजों पर विचार करने या उनकी जाँच-पड़ताल करने की जरूरत नहीं है, तुम्हें चीजों को अपने लिए कठिन बनाने की जरूरत नहीं है—तुम अभी कलीसिया छोड़कर जा सकते हो, परमेश्वर के घर के दरवाजे खुले हैं, परमेश्वर का घर तुम्हें नहीं रोकेगा, वह लोगों को मजबूर नहीं करता है।” क्या ऐसा करना उपयुक्त है? (हाँ।) उन्हें “बाहर जाने का रास्ता” दे दो; उन्हें अपनी भावनाओं, अपनी देह, अपनी संभावनाओं और रुकने या छोड़कर जाने के मसले से निरंतर परेशान होते हुए, हर दिन यहाँ बेहद घबराते हुए यातना मत सहने दो। इन चीजों से वे चाहे जितना भी सताए जाएँ, इनका कभी कोई अंजाम नहीं निकलता। वे अभी भी अपने दिलों में विचार करते रहते हैं कि कब छोड़कर जाना है, कैसे छोड़ना है, अगर वे जल्दी छोड़कर चले गए तो क्या उन्हें नुकसान और दुर्भाग्य भुगतना पड़ेगा, और अगर वे ज्यादा समय तक रुक गए तो क्या उन्हें आशीष मिलेंगे। क्या होगा अगर उनके छोड़कर जाने के बाद परमेश्वर के वचन साकार हो जाएँ? क्या होगा अगर वे छोड़कर न जाएँ और परमेश्वर के वचन पूरे न हों? इन चीजों के बारे में उन्हें निरंतर चिंता करने और व्याकुल होने की जरूरत नहीं है। चूँकि वे सच्ची इच्छा से परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं, इसलिए उन्हें यथाशीघ्र छोड़कर चले जाना चाहिए। उन्हें अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश करते हुए और ऐसा होने का दिखावा करते हुए जोकि वे नहीं हैं, यहाँ नहीं रहना चाहिए। मुझे बताओ, क्या उन्हें ऐसा परामर्श देना और इस बात को इस तरह सँभालना अच्छा है? (हाँ।) क्या अवसरवादियों को बहिष्कृत या निष्कासित करने के लिए विभिन्न बुरे लोगों की श्रेणी में रखना ज्यादती है? (नहीं।) कुछ लोग कहते हैं : “ऐसे लोगों को बुरे लोग कैसे माना जा सकता है?” छद्म-विश्वासियों में कितने लोग अच्छे होते हैं? परमेश्वर की दृष्टि में, परमेश्वर में विश्वास रखने वालों और परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकारने वालों का स्वभाव सार भी बुरा माना जाता है, उनकी बात तो छोड़ ही दो जो पूरी तरह से परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते और परमेश्वर का अस्तित्व नहीं स्वीकारते। तो क्या उन्हें बुरे लोगों की श्रेणी में रखना ज्यादती है? (नहीं।) कुछ भी हो, उन्हें अभी भी इंसान कहा जा रहा है—बुरे इंसान। यह पहले ही काफी अच्छी बात है कि उन्हें बुरे राक्षस की श्रेणी में नहीं रखा जा रहा है। उन्हें बुरे लोगों की श्रेणी में रखना पूरी तरह से उपयुक्त और सटीक है; इसमें कोई ज्यादती नहीं है। ऐसे बुरे लोग भी उन विभिन्न प्रकार के लोगों में हैं जिन्हें परमेश्वर के घर द्वारा बहिष्कृत या निष्कासित किया जाना है। यह चौथे प्रकार का छद्म-विश्वासी है, जिसका परमेश्वर में विश्वास रखने का प्रयोजन अवसरवादी है।

अवसरवादियों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? इन लोगों के साथ अपनी बातचीत से, और उनके स्वभावों, दृष्टिकोणों, रवैयों या उनके द्वारा प्रकट मानवता को देखकर तुम लोगों ने कौन-सी मुख्य विशेषताएँ पाई हैं? उन्हें संक्षेप में प्रस्तुत करो। (अवसरवादी शुरू में सत्य का अनुसरण करने के लिए परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं। वे सुनते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पनप रही है, तो वे लाभ खोजते हुए सिर्फ इस आशा से परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए आते हैं कि उन्हें परमेश्वर के घर से कुछ लाभ और आशीष मिलेंगे। और अगर थोड़े समय बाद उन्हें ये चीजें प्राप्त नहीं होतीं, तो वे छोड़कर जाना चाहते हैं। ये लोग ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते, और परमेश्वर में विश्वास रखने में उन्हें लेशमात्र भी रुचि नहीं होती।) अवसरवादियों के साथ सबसे बड़ी समस्या क्या है? प्रमुख मुद्दा यह है कि उन्हें सत्य में रुचि नहीं होती है, लेकिन उन्हें आशीष प्राप्त करने में सबसे अधिक रुचि होती है, इसलिए उनके लिए सत्य स्वीकारना सबसे कठिन है। कुछ लोग कहते हैं : “तुम उन्हें सिर्फ इस कारण से बहिष्कृत या निष्कासित नहीं कर सकते कि वे सत्य में रुचि नहीं रखते, सही है ना?” इन लोगों का सत्य में रुचि का अभाव मुख्य रूप से इस बात में प्रदर्शित होता है कि वे कभी भी परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ते या सत्य पर संगति नहीं करते। अगर वे किसी को सत्य पर संगति करते हुए और स्वयं को जानने या समस्याएँ सुलझाने के लिए सत्य खोजने के बारे में बताते हुए सुनते हैं, तो वे अपने दिलों में एक विशेष विमुखता महसूस करते हैं, वे बिल्कुल रुचि नहीं लेते, और ऊंघने लगते हैं। वे इन चीजों से बेहद विमुख होते हैं, यहाँ तक कि वे दूसरों को सत्य पर संगति से बाधित करने के लिए बेकार की गपशप में लगा देते हैं, विपत्तियों के बारे में बात करते हैं, और परमेश्वर द्वारा संकेत और चमत्कार प्रदर्शित करने के बारे में चर्चा करते हैं। नतीजतन, जो कुछ लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, वे इन विषयों के बारे में सुनने पर जोश में आ जाते हैं और चर्चा में शामिल हो जाते हैं। क्या यह कलीसियाई जीवन को खुलेआम बाधित करना नहीं है? वे अपने दैनिक जीवन में विरले ही परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, और कभी-कभार पढ़ते भी हैं तो शायद इस कारण से कि कोई बात उन्हें अंदर से परेशान कर रही होती है। वे सभाओं में परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने या परमेश्वर के वचनों पर संगति करने में रुचि नहीं लेते। वे सिर्फ इन बातों से संबंध रखते हैं : “परमेश्वर का दिन कब आएगा? महा प्रलय कब समाप्त होगी? हम स्वर्ग के राज्य के आशीषों का आनंद कब ले पाएँगे?” वे हमेशा इन चीजों के बारे में सोचते रहते हैं। अगर कोई भी इन विषयों पर चर्चा नहीं करता तो वे ऑनलाइन खोजने लगते हैं, और खोजने के बाद, वे सभाओं के दौरान इन बातों को फैलाना शुरू कर देते हैं। उनके दिल इन चीजों में डूब जाते हैं। जब तक वे दूसरों को उन विषयों पर संगति करते हुए सुनते हैं जिनमें वे रुचि रखते हैं, तो कुछ बोलकर वे संगति में शामिल हो सकते हैं। लेकिन जैसे ही उन्हें सत्य या परमेश्वर के वचनों से संबंधित विषयवस्तु सुनाई पड़ती है, वे सुनना नहीं चाहते। वे झपकियाँ लेने लगते हैं, कुछ लोग तो चले भी जाते हैं और कुछ दूसरे सीधे न बैठकर कुलबुलाने लगते हैं—वे तमाम किस्म की भद्दी अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं। तुम कहते हो, “चलो, परमेश्वर के वचनों पर संगति करते हैं।” वे कहते हैं, “मैं प्यासा हूँ, मुझे थोड़ा पानी चाहिए।” तुम कहते हो, “चलो, स्वयं को जानने के बारे में संगति करते हैं,” या “चलो, हम कर्तव्य निभाने की विस्तृत बातों पर संगति करते हैं; देखें कि इस बारे में परमेश्वर के वचन क्या कहते हैं, और सत्य सिद्धांत क्या हैं।” वे कहते हैं, “मुझे कुछ काम है। मैं जा रहा हूँ। तुम लोग अपनी बातों का आनंद लो।” वे परमेश्वर के वचनों और सत्य पर संगति करने से मना करने और नकारने के लिए हर तरह के बहाने ढूँढ़ते हैं। यह स्पष्ट रूप से इस तथ्य को उजागर करता है कि वे न सिर्फ सत्य से प्रेम नहीं करते बल्कि सत्य से विमुख भी हैं और अपने दिलों की गहराई से सत्य का प्रतिरोध करते हैं। जब भी परमेश्वर के वचनों और सत्य का जिक्र होता है, वे खुलेआम उसका विरोध नहीं करते या बहस नहीं करते, बल्कि उन्हें नकारने और उनसे बचने के तमाम बहाने ढूँढ़ लेते हैं। क्या ये व्यवहार स्पष्ट रूप से नहीं दिखा सकते कि वे अवसरवादी हैं? क्या यह स्पष्ट रूप से नहीं दर्शाता कि वे छद्म-विश्वासी हैं, किसी विशेष प्रयोजन से, अवसरवादिता के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं? (हाँ।) कुछ लोग कहते हैं : “तुम कहते हो कि वे छद्म-विश्वासी हैं और ईमानदारी से परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते, तो वे अब तक विश्वास रखने में कैसे सक्षम रहे हैं, और अभी भी कलीसिया के कार्य के लिए कड़ी मेहनत कर रहे और कष्ट सह रहे हैं?” अभी हमने जिन व्यवहारों का जिक्र किया, क्या वे इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए काफी नहीं हैं? ये व्यवहार यह साबित करने के लिए काफी हैं कि हमने सटीक ढंग से उनका भेद पहचाना और उन्हें श्रेणीबद्ध किया है। इसलिए यह मापने के लिए कि परमेश्वर में विश्वास रखने का किसी का प्रयोजन अवसरवादी है या नहीं, तुम्हें यह इस आधार पर मापना और इसका भेद पहचानना चाहिए कि उसका रवैया परमेश्वर, परमेश्वर के कार्य, सत्य और सकारात्मक और नकारात्मक चीजों के प्रति क्या है। यही सबसे सटीक है। उसके बाहरी व्यवहार और क्रियाकलापों के आधार पर मापना सटीक और वस्तुनिष्ठ नहीं है। सिर्फ उसके सच्चे आंतरिक विचारों और परमेश्वर और सत्य के प्रति उसके रवैयों से मसलों का खुलासा होता है; वह किस प्रकार का व्यक्ति है, इसे निरूपित करने के लिए यही सबसे सटीक मानक हैं। अब क्या तुम लोग बुनियादी रूप से उन लोगों के बारे में स्पष्ट हो जिनका परमेश्वर में विश्वास रखने का प्रयोजन अवसरवादी है? क्या तुम सभी लोग इस प्रकार के लोगों से मिल चुके हो? (हाँ।) ऐसे लोगों के लिए यथाशीघ्र छोड़कर जाना बेहतर है। अगर वे ईमानदारी से सेवा करने को तैयार हों, तो उन्हें अनिच्छा से रखा जा सकता है। लेकिन अगर वे अपने कर्तव्य नहीं निभाते, और कोई सेवा नहीं कर सकते, बल्कि कलीसिया के कार्य और कलीसियाई जीवन को बाधित करते हैं और उस पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, तो उन्हें यथाशीघ्र बाहर कर देना चाहिए। छद्म-विश्वासियों को बाहर निकालने का यही सिद्धांत है। परमेश्वर के घर को ऐसे लोग चाहिए जो ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रखते हों, और सत्य से प्रेम करते हों; उसे वफादार सेवाकर्मियों की जरूरत है। उसे संख्या बढ़ाने के लिए छद्म-विश्वासियों या हिचकिचाते हुए विश्वास रखने वालों की बिल्कुल जरूरत नहीं है। कलीसिया को भी संख्या बढ़ाने के लिए किसी की जरूरत नहीं है। इस विषय पर आज हम अपनी संगति यहीं समाप्त करेंगे।

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

संबंधित सामग्री

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें