अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (22) खंड एक

पिछली बार, हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की तेरहवीं जिम्मेदारी के बारे में संगति की थी : “परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों द्वारा बाधित किए जाने, गुमराह किए जाने, नियंत्रित किए जाने और गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाए जाने से बचाओ, और उन्हें मसीह-विरोधियों को पहचानने और अपने दिलों से त्यागने में सक्षम बनाओ।” अब, आओ समीक्षा करें : अगुआओं और कार्यकर्ताओं की तेरहवीं जिम्मेदारी की विशिष्ट विषयवस्तु से संबंधित कौन-सी विशिष्ट मदों पर हमने संगति की थी? (हमने पाँच मदों पर संगति की थी : उजागर करना, काट-छाँट करना, गहन-विश्लेषण करना, प्रतिबंध लगाना और निगरानी करना।) ये पाँच विशिष्ट मदें अगुआओं और कार्यकर्ताओं की इस जिम्मेदारी में शामिल विशिष्ट कार्य हैं; अगुआओं और कार्यकर्ताओं को मसीह-विरोधियों के संबंध में ये विशिष्ट कार्य करना जरूरी है। तो, इन कार्यों के संबंध में झूठे अगुआओं में कौन-सी अभिव्यक्तियाँ होती हैं? क्या हमने पिछली बार भी कुछ बारीकियों पर संगति की थी? (हाँ।) झूठे अगुआओं की अभिव्यक्तियाँ निम्नानुसार हैं : पहली अभिव्यक्ति यह है कि वे लोगों को नाराज करने से डरते हैं और मसीह-विरोधियों को हटाने या निष्कासित करने का साहस नहीं जुटा पाते। दूसरी यह है कि वे मसीह-विरोधियों को नहीं पहचान सकते। तीसरी यह है कि वे मसीह-विरोधियों के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं। चौथी यह है कि वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के प्रति गैर-जिम्मेदार होते हैं। गैर-जिम्मेदारी कैसी दिखाई देती है? मसीह-विरोधियों द्वारा उत्पन्न बाधाओं का सामना करने और गुमराह किए जाने पर झूठे अगुआ भाई-बहनों की सुरक्षा नहीं कर सकते, मसीह-विरोधियों के बुरे कार्यों को उजागर नहीं कर सकते, शैतान के षड्यंत्रों को उजागर नहीं कर सकते, और मसीह-विरोधियों की पहचान करने में भाई-बहनों की मदद करने के लिए सत्य पर संगति नहीं कर सकते—वे ऐसा कार्य नहीं करते हैं। इसके अलावा, ऐसे लोग जिनका आध्यात्मिक कद छोटा है और जिनमें विवेक की कमी है, जिन्हें मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किया जाता है, वे न केवल बहाली का कार्य करने में विफल होते हैं, अपितु “तुम इसी लायक हो” जैसी अमानवीय बातें भी कहते हैं। गैर-जिम्मेदारी की यह एक विशिष्ट अभिव्यक्ति है जो दर्शाती है कि झूठे अगुआओं को कलीसिया के काम की कोई चिंता नहीं है। ये अभिव्यक्तियाँ झूठे अगुआओं के तब के विशिष्ट कार्यकलाप और दृष्टिकोण हैं जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह और परेशान करते हैं। इस काम के प्रति उनका विशिष्ट रवैया गैर-जिम्मेदाराना और विश्वासघात का है। वे मसीह-विरोधियों को अनुमति देने के लिए अनेक बहाने बनाते हैं और विभिन्न तरीके इस्तेमाल करते हैं, मसीह-विरोधियों के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं, जबकि कलीसिया के काम और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के अधिकारों और हितों की सुरक्षा करने में विफल रहते हैं। यदि झूठे अगुआ मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को परेशान करने, गुमराह करने, नियंत्रित करने, और गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाने जैसी समस्याओं का तुरंत समाधान कर सकें, और फिर मसीह-विरोधियों को प्रतिबंधित और अलग-थलग कर सकें, और हटा सकें या निष्कासित कर सकें, तो परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सबसे ज्यादा सुरक्षा प्राप्त होगी। परन्तु, अगुआओं के रूप में, वे इस काम के लिए अयोग्य हैं। एक निश्चित परिप्रेक्ष्य में, ऐसा कहा जा सकता है कि वे गुप्त रूप से मसीह-विरोधियों की सुरक्षा कर रहे हैं और उनके लिए मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं, और ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह करना, नियंत्रित करना, और गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाना जारी रख सकें, और कलीसिया के सामान्य जीवन और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के कर्तव्य पालन में बाधा डाल सकें। झूठे अगुआओं की ये विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं।

मद चौदह : सभी प्रकार के बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को तुरंत पहचानो और फिर बहिष्कृत या निष्कासित कर दो (भाग एक)

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की तेरहवीं जिम्मेदारी के बारे में संगति समाप्त करने के बाद, आज हम चौदहवीं जिम्मेदारी के बारे में संगति करेंगे। चौदहवीं जिम्मेदारी की विषयवस्तु कुछ मायनों में तेरहवीं जिम्मेदारी के समान ही है। चौदहवीं जिम्मेदारी में अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जो विशिष्ट कार्य करना होता है वह कार्य न केवल मसीह-विरोधियों से संबंधित होता है अपितु विभिन्न बुरे लोग भी उसमें शामिल होते हैं, जो इसके दायरे को तेरहवीं जिम्मेदारी से अधिक व्यापक बना देता है। चौदहवीं जिम्मेदारी के बारे में संगति करने से पहले, आओ पहले इसकी विषयवस्तु को पढ़ो। (अगुआओं और कार्यकर्ताओं की चौदहवीं जिम्मेदारी : “सभी प्रकार के बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को तुरंत पहचानो और फिर बहिष्कृत या निष्कासित कर दो।”) यह वाक्य लंबा नहीं है, लेकिन जब उस विशिष्ट कार्य की बात आती है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना जरूरी होता है, तो यह उतना सरल नहीं है जितना सतही तौर पर दिखाई देता है। इस वाक्य में उल्लिखित अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ वास्तव में क्या हैं? अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जो कार्य करना जरूरी होता है उस कार्य का निशाना कौन लोग होते हैं? (विभिन्न बुरे लोग और मसीह-विरोधी।) वह कौन-सा विशिष्ट कार्य है जिसे करना जरूरी है? (तुरंत उन्हें पहचानना। एक बार उनकी पहचान हो जाने पर, उन्हें हटाना या निष्कासित करना।) बिना किसी विलंब के तुरंत उन्हें पहचानना; एक बार संकेतों की पहचान हो जाने पर, सटीक निर्णय लिए जाने चाहिए और सटीक लक्षण बताए जाने चाहिए, और उसके बाद शामिल व्यक्तियों को हटा कर उनसे निपटा जाना चाहिए। वास्तव में, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जो विशिष्ट कार्य करना जरूरी होता है उसमें दो काम शामिल होते हैं : लोगों को पहचानना और समस्याओं को हल करना। सतही तौर पर, यह सरल लगता है : पहले पहचान करो, फिर उन विभिन्न बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को निशाना बनाकर तुरंत समाधान और उपाय करो जिन्हें परमेश्वर का घर हटाना या निष्कासित करना चाहता है। इस परिप्रेक्ष्य में, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए, बिना किसी ज्यादा कठिनाई के, अच्छे से यह काम करना और इस जिम्मेदारी को पूरा करना आसान लगता है, क्योंकि परमेश्वर के घर ने पहले भी विभिन्न लोगों को पहचानने और उन्हें हटाने की बारीकियों पर व्यापक संगति की है, और इस मामले पर बहुत कुछ कहा जा चुका है। सतही तौर पर, चौदहवीं जिम्मेदारी में शामिल कार्य कुछ मायनों में इससे पहले संगति की गई बारहवीं और तेरहवीं जिम्मेदारियों की विशिष्ट विषयवस्तु के समान लगता है, लेकिन चौदहवीं जिम्मेदारी में, अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा किए जाने वाले कार्य का निशाना न केवल मसीह-विरोधी हैं अपितु विभिन्न बुरे लोग भी हैं। इससे दायरा बढ़ जाता है ताकि विभिन्न प्रकार के बुरे लोगों को शामिल किया जाए, जिसके लिए सुव्यवस्थित और विशिष्ट संगति की अपेक्षा होती है। क्योंकि यह एक ही प्रकार के बुरे व्यक्तियों की अभिव्यक्तियों के बारे में नहीं है, अपितु विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों की अभिव्यक्तियों के बारे में है, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की चौदहवीं जिम्मेदारी के बारे में संगति करते समय, हम इस कार्य के निशानों को निर्दिष्ट करने पर फोकस करेंगे। यह एक पहलू है। इसके अलावा, इन लोगों के साथ किस तरह व्यवहार करना है—उन्हें प्रतिबंधित किया जाए, अलग-थलग किया जाए, हटाया जाए, या निष्कासित किया जाए—हम अगली संगति में इस बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

कलीसिया क्या है

इस कार्य के बारे में विस्तार से संगति करने से पहले, आओ पहले एक गौण विषय पर चर्चा करें। यह गौण विषय सुविख्‍यात हो सकता है, या यह ऐसा विषय हो सकता है जिसके बारे में तुम लोगों को विशिष्ट जानकारी न हो? विषय क्या है? यह है “कलीसिया क्या है?” यह विषय कैसा प्रतीत होता है? कुछ लोग कहेंगे, “तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के बारे में संगति कर रहे हो, इसलिए बस विशेष रूप से उस बारे में संगति करो। कलीसिया क्या है इस बारे में संगति क्यों करना? क्या यह इस विषय से संबंधित है?” सतही तौर पर, यह असंबंधित प्रतीत हो सकता है, और कुछ लोग यह भी कहेंगे, “यह पूरी तरह से असंबंधित विषय है। इस पर संगति क्यों करनी?” भले ही तुम लोग कैसे भी सोचो, इन विचारों को एक तरफ रख दो और पहले यह विचार करो कि कलीसिया क्या है। एक बार इस शब्द, इस पदनाम “कलीसिया”, की परिभाषा पर स्‍पष्ट रूप से संगति कर दी जाए, तो तुम लोग जान जाओगे कि हम इस विषय पर संगति क्यों कर रहे हैं।

I. कलीसिया के बारे में अनेक तरह की समझ

कलीसिया क्या है इस बारे में संगति करने का अर्थ है “कलीसिया” नाम की स्पष्ट और सटीक व्याख्या प्रदान करना; इसका अर्थ है “कलीसिया” शब्द की विशिष्ट और सटीक परिभाषा बताना। सबसे पहले, तुम लोग चर्चा कर सकते हो कि तुम लोग “कलीसिया” शब्द को कैसे समझते और बूझते हो। कलीसिया क्या है? आओ सैद्धांतिक व्याख्या से आरंभ करें और फिर अधिक विशिष्ट और अपेक्षाकृत व्यावहारिक परिभाषा की ओर बढ़ें। (मेरी समझ में यह एक ऐसा स्थान है जहाँ परमेश्वर में दिल से विश्वास करने वाले और सत्य का अनुसरण करने वाले भाई-बहन परमेश्वर की आराधना करने के लिए एकत्र होते हैं, उसे कलीसिया कहा जाता है।) यह परिभाषा उल्लेख करती है कि कलीसिया किस प्रकार का स्थान है; यह मूल रूप से मूर्त, भौतिक निकाय है। यह सैद्धांतिक परिभाषा है। क्या यह परिभाषा सटीक है? क्या इसमें कुछ त्रुटियाँ हैं? सिद्धांत की दृष्टि से, यह परिभाषा स्वीकार्य है। इसके बारे में और कौन बता सकता है? (मैं थोड़ा और बताऊँगी। परमेश्वर के रूप और कार्य और उसके सत्य अभिव्यक्त करने के कारण, लोगों का एक समूह बना हुआ है जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं; वे जो समागम बनाते हैं उसे कलीसिया कहा जाता है।) यह परिभाषा वर्णन करती है कि कलीसिया किस प्रकार का समागम है। यह भी एक औपचारिक, सैद्धांतिक परिभाषा है। (मैं जोड़ूँगा कि लोगों के इस समूह के पास पवित्र आत्मा का कार्य होता है, और जब वे परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के लिए एकत्र होते हैं, तो पवित्र आत्मा का प्रबोधन होता है, और वे सत्य का अभ्यास करने और जीवन में आगे बढ़ने में सक्षम होते हैं। कलीसिया ऐसे लोगों की एक सभा है।) कलीसिया की परिभाषा में जोड़ा गया यह कथन बताता है कि कलीसिया किस प्रकार की सभा है—इस सभा के लिए योग्यताएँ परमेश्वर के वचनों को खाना और पीना, पवित्र आत्मा का कार्य होना, और जीवन में आगे बढ़ना है। यह भी मूल रूप से कलीसिया की औपचारिक, सैद्धांतिक परिभाषा है। क्या कोई कुछ और जोड़ना चाहता है? (यह लोगों का समूह है जो परमेश्वर के वचनों को अभ्यास के सिद्धांत के रूप में लेता है, और जो सत्य और मसीह द्वारा शासित होता है। यह समूह परमेश्वर के कार्य को अनुभव कर सकता है, सत्य स्वीकार कर सकता है, जीवन में आगे बढ़ सकता है, और इसे बचाया जा सकता है। ऐसे समूह को कलीसिया कहा जाता है।) यह “समूह” ठीक अभी बताए गए “समागम” के समान ही है। और कोई कुछ जोड़ना चाहता है? यदि तुम लोगों के पास और कुछ जोड़ने के लिए नहीं है, तो तुम लोग ऊपर बताई गई चार विवेचनाओं को फिर से बता सकते हो; अर्थात्, तुम लोगों ने परमेश्वर में विश्वास की शुरुआत से लेकर अब तक कलीसिया की परिभाषा क्या मानी है। सैद्धांतिक रूप से इसे परिभाषित करना आसान होगा, है ना? उदाहरण के लिए, उन लोगों के समूह को कलीसिया कहा जा सकता है जो दिल से परमेश्वर का अनुसरण करते हैं और उसकी आराधना करते हैं; या उस समूह को कलीसिया कहा जा सकता है जो परमेश्वर की इच्छा का पालन करता है, परमेश्वर के प्रति समर्पण का प्रयास करता है, और परमेश्वर की आराधना करता है; या उस समूह को कलीसिया कहा जा सकता है जिसके पास पवित्र आत्मा का कार्य है, पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन है, और परमेश्वर की उपस्थिति है, और जो परमेश्वर की आराधना करने में सक्षम है। क्या ये कलीसिया की सैद्धांतिक परिभाषाएँ नहीं हैं? (हाँ।) तुम सभी लोग कलीसिया की परिभाषा में इन योग्यताओं की विषयवस्तु को समझते और जानते हो, है ना? (बिल्कुल।) तो, इसे दोहराओ। (कलीसिया उन लोगों के समूह को कहते हैं जो दिल से परमेश्वर में विश्वास करते हैं और मसीह का अनुसरण करते हैं। एक सच्ची कलीसिया के पास पवित्र आत्मा का कार्य और परमेश्वर का मार्गदर्शन होता है; यह मसीह और सत्य द्वारा शासित होती है, यहीं पर परमेश्वर के अनुयायी परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते हैं, परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हैं, और जीवन प्रवेश पाते हैं। यह सच्ची कलीसिया है। कलीसिया धार्मिक समुदायों से भिन्न होती है। कलीसिया धार्मिक अनुष्ठानों या परमेश्वर की आराधना करने के बाह्य रूपों में शामिल नहीं होती है।) यह मूल रूप से कलीसिया की सैद्धांतिक परिभाषा है। उदाहरण के लिए, कलीसिया को ऐसे स्थान के रूप में या परिभाषित करना जहाँ परमेश्वर द्वारा बुलाए गए लोग इकट्ठा होते हैं, या कलीसिया को लोगों के ऐसे संगठन के रूप में परिभाषित करना जो ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते, उसका अनुसरण, उसके प्रति समर्पण और उसकी आराधना करते हैं, या कलीसिया को परमेश्वर द्वारा बुलाए गए लोगों के समागम के रूप में परिभाषित करना, इत्यादि—ये नाम विश्वासियों के विभिन्न समूहों द्वारा कलीसिया की कुछ बुनियादी समझ या परिभाषाओं को दर्शाते हैं। चलो हम इस पर गौर नहीं करते हैं कि अलग-अलग धर्म और संप्रदाय कलीसिया को कैसे परिभाषित करते हैं—परमेश्वर का अनुसरण करने वाले हमारे जैसों के लिए, कलीसिया की क्या परिभाषा है? यह बस उन लोगों का एक समूह है जो दिल से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, जिनके पास पवित्र आत्मा का कार्य होता है, परमेश्वर का मार्गदर्शन होता है, और परमेश्वर के वचनों को खा और पी सकते हैं, सत्य का अनुसरण कर सकते हैं, परमेश्वर के प्रति समर्पण का प्रयास कर सकते हैं, और परमेश्वर की आराधना कर सकते हैं। चाहे इसे किसी स्थान, समागम, सभा, समूह, समुदाय, या किसी अन्य रूप में परिभाषित किया जाए—जो भी शब्द इस्तेमाल किया जाए—परिभाषा के लिए योग्यताएँ मूलतः ये ही हैं। लोगों की कलीसिया के प्रति बुनियादी समझ से, “कलीसिया” नाम को परिभाषित करने के लिए तुम लोगों द्वारा इस्तेमाल की गई योग्यताओं से, यह स्पष्ट है कि एक बार जब लोग परमेश्वर का अनुसरण करने लगते हैं और कुछ सत्य समझने लगते हैं, तो कलीसिया के बारे में उनकी समझ यह होती है कि यह कोई सामान्‍य समुदाय या समूह नहीं है। इसके बजाय, यह परमेश्वर में गहन विश्वास, परमेश्वर के वचनों को पढ़ने, पवित्र आत्मा का कार्य होने और परमेश्वर के प्रति समर्पण करने और उसकी आराधना करने में सक्षम होने से, या जीवन प्रवेश, स्वभाव में बदलाव, परमेश्वर के लिए गवाही देने, इत्यादि से जुड़े पहलुओं से संबंधित है। इस तरह से देखें तो, जब परमेश्वर ने अपना कार्य शुरू कर दिया है, तो अधिकांश लोगों के दिलों में “कलीसिया” नाम ने ज्यादा गहरी, ज्यादा विशिष्ट समझ और बूझ प्राप्त कर ली है, जो कलीसिया के बारे में परमेश्वर के विचार से अधिक घनिष्ठता से जुड़ी हुई है। यह अब एक भवन, एक सामाजिक समुदाय, विभाग, संस्था या कुछ और जैसी साधारण चीज नहीं है; बल्कि इसका संबंध परमेश्वर में विश्वास करने, परमेश्वर के वचनों, सत्य और परमेश्वर की आराधना जैसी चीजों से है।

II. कलीसिया के अस्तित्व का मूल्य और उसके द्वारा किया कार्य

जहाँ तक कलीसिया की विशिष्ट संकल्पना और परिभाषा की बात है, तो हम अभी ही निष्कर्ष पर पहुँचने की जल्दबाजी नहीं करेंगे। “कलीसिया” नाम या इसकी परिभाषा की बुनियादी संकल्पना का ज्ञान होने के बाद, क्या तुम लोगों को कलीसिया के अस्तित्व के महत्व, कलीसिया के अस्तित्व से उत्पन्न कार्य, और लोगों में कलीसिया द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका जैसी चीजों के बारे में स्पष्टता है? क्या इन पहलुओं की विषयवस्तु भी कलीसिया की परिभाषा से संबंधित है? सीधे शब्दों में कहें, तो कलीसिया जो कार्य करती है वह इसके अस्तित्व का महत्व है। उदाहरण के लिए, एक घर की बात करें—इस घर का क्या उद्देश्य है? इसमें रहने वाले और इसे इस्तेमाल करने वाले लोगों के लिए इसका क्या मूल्य और महत्व है? कम से कम, यह हवा और बरसात से आश्रय तो प्रदान करता है, जो इसके मूल्यों में से एक है; दूसरा मूल्य है कि जब तुम बेहाल और थके हुए होते हो और तुम्हारे पास ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ तुम आराम कर सको, तो घर एक ऐसा स्थान है जहाँ तुम आराम कर सकते हो और शांति तथा संतोष से रह सकते हो। इसे घर कहा जाता है, लेकिन तुम्हारे लिए इसका कार्य क्या है? यह हवा और बरसात से आश्रय, विश्राम, आराम, स्वतंत्रता का आनंद लेने की क्षमता, इत्यादि प्रदान करता है; ये कार्य तुम्हारे लिए इस घर का मूल्य हैं। अब, एक बार फिर से, कलीसिया की क्या भूमिका है? इसके गठन और अस्तित्व का मूल्य और महत्व क्या है? सीधे शब्दों में कहें, तो कलीसिया क्या काम करती है, यह कौन-सी भूमिका निभाती है? क्या तुम्हें इसकी स्पष्ट जानकारी है? कलीसिया को कौन-सा विशिष्ट कार्य या किस प्रकार का कार्य करना चाहिए, और इस कार्य का दायरा क्या होना चाहिए, ताकि इसे कलीसिया कहा जा सके, इस कार्य को करने के लिए एक सच्ची कलीसिया को क्या करना चाहिए? कलीसिया की परिभाषा के संबंध में यह थोड़ी वि‍षयवस्तु है जिस पर संगति की जानी चाहिए। सबसे पहले, कलीसिया क्या काम करती है? (मुख्‍य रूप से, यह परमेश्वर के वचनों का प्रसार करती है, परमेश्वर के कार्य की गवाही देती है, और सुसमाचार का प्रसार करती है, जिससे अधिकाधिक लोग परमेश्वर के समक्ष आ सकें और उसके उद्धार को स्वीकार कर सकें।) क्या यह विशिष्ट कार्य है? (हाँ।) यह कलीसिया के अस्तित्व का महत्व है और इसके द्वारा किए जाने वाले विशिष्ट कार्यों में से एक है, लेकिन यह सब कुछ नहीं है। परमेश्वर के वचनों का प्रसार करना और परमेश्वर के कार्य की गवाही देना विशिष्ट कार्य है। इस कार्य के लिए कौन जिम्मेदार है? वर्तमान सुसमाचार टीम जिम्मेदार है। कलीसिया और कौन-सा कार्य करती है? (भाई-बहनों को एक साथ एक स्थान पर एकत्र करना, परमेश्वर के वचनों को खाना और पीना, और परमेश्वर के वचनों की संगति करना, उन्हें निरंतर सत्य समझने और अपना कर्तव्य सामान्य रूप से निभाने में सक्षम बनाना।) यह विशिष्ट कार्य परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने, सत्य समझने, और अपने कर्तव्य सामान्य रूप से निभाने के लिए लोगों की अगुआई करना है। परमेश्वर के वचनों का प्रसार कलीसिया का प्रमुख और महत्वपूर्ण कार्य है। परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने, सत्य समझने, और अपने कर्तव्य सामान्य रूप से निभाने के लिए लोगों की अगुआई करना कलीसिया का अनिवार्य कार्य है; यह आंतरिक रूप से निर्देशित होता है। ये दो कार्य, एक बाह्य और एक आंतरिक, कलीसिया के अस्तित्व से उत्पन्न कार्य हैं। उन्हें वे दो महत्वपूर्ण कार्य भी कहा जा सकता है जो कलीसिया को करने चाहिए। क्या कोई और कार्य हैं? (एक अन्य कार्य परमेश्वर के न्याय का अनुभव करने में लोगों की अगुआई करना है ताकि वे शुद्ध हो सकें और स्वभाव में बदलाव ला सकें।) यह कलीसिया का विशिष्ट आंतरिक कार्य है। ये सभी कार्य जो तुम लोगों ने बताए हैं मूल रूप से प्रतिनिधिक कार्य हैं। परमेश्वर के कार्य का अनुभव करना विशिष्ट कार्य है जैसे कि विभिन्न परिवेशों का अनुभव करना, न्याय, ताड़ना, काट-छाँट इत्यादि का अनुभव करना, और आखिरकार स्वभाव में बदलाव और उद्धार प्राप्त करना। कलीसिया के गठन और अस्तित्व का लोगों पर यह प्रभाव और असर होता है। परमेश्वर के वचनों का प्रसार करने और परमेश्वर की गवाही देने का कार्य केवल सुसमाचार टीम द्वारा ही नहीं किया जाता है; इसे विभिन्न अनुभवजन्य गवाही लेखों, भजनों, विभिन्न वीडियो और फिल्मों, इत्यादि के माध्यम से भी किया जाता है, जो परमेश्वर के वचनों का प्रसार करने के कार्य में शामिल विशिष्ट विषयवस्तु और परियोजनाएँ भी हैं। इसके अलावा, कलीसियाई जीवन से संबंधित कार्य हैं : सत्य समझने के लिए परमेश्वर के वचनों को खाना और पीना, परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने में सक्षम होना और परमेश्वर को जानना, और कर्तव्य निभाने की प्रक्रिया के दौरान परमेश्वर के कार्य और उसके द्वारा व्यवस्थित विभिन्न परिवेशों का अनुभव करना ताकि स्वभाव में बदलाव और उद्धार प्राप्त हो सके। कलीसिया के गठन के बाद इसके अस्तित्व के आधार पर उत्पन्न कई कार्य हैं। इन मुख्य कार्यों के अलावा, क्या कोई गौण कार्य हैं? गौण कार्य क्या हैं? वे गैर-महत्वपूर्ण या सामान्य विषयों के कार्य हैं, जिनका, हालाँकि, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए सत्य का अनुसरण करने और अपना कर्तव्य निभाने में कुछ लाभ भी है; ये कार्य लोगों के जीवन विकास और मामलों में उनके विचारों को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। विशेष परिस्थितियों में, क्या लोगों की दैहिक उत्तरजीविता संबंधित सामान्य विषयों का कार्य जो कलीसिया के कार्य से उत्पन्न होता है, कलीसिया के आवश्यक कार्य के रूप में गिना जाता है? उदाहरण के लिए, खेती करना, पशुपालन करना और अन्य गतिविधियाँ जो अपना कर्तव्य निभाने वाले लोगों के लिए कुछ आवश्यक भोजन प्रदान करती हैं—क्या इन्हें कलीसिया के अनिवार्य कार्य के रूप में गिना जाता है? (नहीं।) अपना कर्तव्य निभाने वाले उन लोगों के लिए कंप्‍यूटर, उपकरण और अन्य चीजें प्रदान करने के बारे में क्या कहा जाएगा—क्या इन्हें कलीसिया के अनिवार्य कार्य के रूप में गिना जाता है? (नहीं।) फिर कलीसिया का अनिवार्य कार्य किसे कहा जाता है? इसमें कलीसिया की परिभाषा शामिल है। तुम लोगों द्वारा दी गई कलीसिया की पिछली परिभाषाएँ अच्छी थीं; मैं उनसे काफी संतुष्ट था क्योंकि तुम्हारी परिभाषाओं की योग्यताएँ लोगों के जीवन प्रवेश, परमेश्वर में उनके सच्चे विश्वास और उसका अनुसरण करने, परमेश्वर को जानने, और यहाँ तक कि स्वभाव में बदलाव, परमेश्वर के प्रति समर्पण, और परमेश्वर की आराधना करने जैसे उच्चतर सत्यों से संबंधित हैं। इस बिंदु के मद्देनजर, कलीसिया का अस्तित्व लोगों के दैहिक जीवन और रुचियों से संबंधित चीजों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं है, जैसे उन्हें गर्म रखना और उन्हें खाना खिलाना, उन्हें स्वस्थ रखना, या उनकी सँभावनाओं की तलाश करना। कलीसिया का अस्तित्व लोगों की दैहिक उत्तरजीविता को सहारा देने, या उन्हें दैहिक जीवन का बेहतर आनंद उठाने देने के लिए नहीं है। कुछ लोगों का कहना है, “यह सही नहीं है। हमारे दैहिक जीवन और उत्तरजीविता का परमेश्वर के वचनों में उल्लेख किया गया है, जो हमें स्वस्थ रहने के लिए कुछ आधुनिक कलाएँ और ज्ञान सीखने के बारे में बताते हैं। क्या ये हमारे अस्तित्व से संबंधित नहीं हैं?” क्या इन्हें कलीसिया का अनिवार्य कार्य माना जाता है? (नहीं।) चूँकि कलीसिया विश्वासियों से बनी होती है और लोगों की जिंदगी में खाना, वस्त्र, आश्रय, परिवहन, और रोजाना की जरूरतें स्वाभाविक रूप से शामिल होती हैं, इसलिए कलीसिया इन मुद्दों को आवश्यकतानुसार हल करने में मदद करती है। इनका समाधान होने के बाद, लोग सोचते हैं, “हमारी रोजाना की जरूरतों के लिए कलीसिया भी जिम्मेदार है। यह कलीसिया का नियमित कार्य और अनिवार्य कार्य है।” क्या यह गलतफहमी नहीं है? (बिल्कुल है।) इस गलतफहमी का कारण क्या है? (वे इस बात को लेकर स्पष्ट नहीं हैं कि कलीसिया का अनिवार्य कार्य क्या है।) वे अब भी इसे लेकर अस्पष्टता की स्थिति में क्यों हैं? क्या उनकी समझ में कोई समस्या नहीं है? (हाँ, है।) उनकी समझ में समस्या क्यों है? यह काबिलियत का मामला है। अंततः, बात खराब काबिलियत पर ही आ जाती है।

कलीसिया के अनिवार्य कार्य के संबंध में, तीन मदों के बारे में अभी बताया गया था : एक है परमेश्वर के वचनों की गवाही देना और उनका प्रसार करना। दूसरी है परमेश्वर के वचन खाने और पीने में लोगों की अगुआई करना, परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करना, और सत्य समझने, परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने, और अपना कर्तव्य बेहतर ढंग से निभाने में लोगों की मदद करना। और एक अन्य मद है परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने, परमेश्वर की संप्रभुता का अनुभव करने और परमेश्वर के वचनों की समझ के आधार पर स्वभाव में बदलाव लाने के लिए भ्रष्ट स्वभाव को त्यागने में उनकी अगुआई करना। इन सब का एक ही उद्देश्य है कि लोगों को उद्धार प्राप्त हो सके। इन तीन मदों को अच्छे से संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है; ये वे कार्य हैं जो कलीसिया को करने और वे मानवजाति, कलीसिया के सदस्यों और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए कलीसिया के अस्तित्व का मूल्य और महत्व हैं। लेकिन इसे पर्याप्त रूप से विस्तारपूर्वक नहीं बताया गया है। इन अनिवार्य कार्यों के अतिरिक्त, इस बारे में फिर से विचार करो कि लोगों को कलीसियाओं के द्वारा किए जाने वाले इस कार्य के अनुभव के अलावा और कौन से अन्य लाभ प्राप्त होते हैं। (लोग भिन्न-भिन्न लोगों, घटनाओं, और चीजों को पहचानना सीखते हैं।) भिन्न-भिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों को पहचानना कुछ हद तक इसके करीब है; यह कलीसिया के अनिवार्य कार्य से संबंधित है। जब हम अनिवार्य कार्य की बात करते हैं, तो हम प्रतिनिधिक कार्य की बात कर रहे होते हैं। हमने जिसकी अभी संगति की वे लोगों को प्राप्त होने वाले सकारात्मक लाभ, या कलीसियाओं द्वारा किए जाने वाले उन कुछ कार्यों के बारे में है, लोग जिनमें शामिल होते हैं या जिनका अनुभव करते हैं। इन अनिवार्य कार्यों के अलावा, कलीसिया के अस्तित्व का एक अन्य महत्व मानवजाति, दुनिया और अंधकार के प्रभाव को समझने में लोगों की मदद करना है। क्या यह तुम लोगों द्वारा संगति किए गए तीन कार्यों के अलावा कलीसिया का एक अनिवार्य कार्य है? क्या यह एक विशिष्ट कार्य है? (हाँ, है।) पहले तीन कार्यों की तुलना में, इसे गौण कार्य समझा जाता है। इसे गौण क्यों समझा जाता है? क्योंकि यह प‍हले तीन कार्यों के अनुभव से लोगों को प्राप्त हुआ परिणाम है—यह परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने, परमेश्वर के वचन खाने और पीने, सत्य समझने, अपने खुद के भ्रष्ट स्वभाव को समझने और परमेश्वर को जानने से प्राप्त होता है। इसका परिणाम यह होता है कि लोग इस दुष्ट मानवजाति, इस अंधकारमयी दुनिया और अंधकार के प्रभाव को समझने लगते हैं। क्या यह परिणाम अभी आंशिक रूप से प्राप्त हुआ है? (हाँ।) क्या यह कलीसिया के अस्तित्व का मूल्य नहीं है? क्या यह वह कार्य और प्रभाव नहीं है जो कलीसिया के अस्तित्व का परमेश्वर का अनुसरण करने वाले लोगों पर होना चाहिए? (हाँ।) एक बात तो यह है कि इसका अभीष्ट प्रभाव पड़ता है; इसके अतिरिक्त, कलीसियाएँ भी सकारात्मक और सक्रिय रूप से इस कार्य को अंजाम दे रही हैं। इस कार्य में कौन-सी विशिष्ट परियोजनाएँ शामिल हैं? उदाहरण के लिए, परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा गिरफ्तारी और यातना का अनुभव करने के बारे में फिल्में बनाना—एक बात तो यह है कि ये उन लोगों द्वारा प्रस्तुत गवाहियाँ हैं जो शैतान के क्रूर उत्पीड़न से पीड़ित होने पर परमेश्वर का अनुसरण करते हैं; दूसरी बात यह है कि ये उजागर करती हैं कि कैसे यह दुष्ट मानवजाति, यह अंधकारमयी दुनिया और अंधकार का प्रभाव परमेश्वर और सत्य का विरोध और निंदा करते हैं, और साथ ही ये उन भिन्न-भिन्न तरीकों को उजागर करती हैं जिनसे वे परमेश्वर का अनुसरण करने वाले लोगों को क्रूरता से सताते हैं। इन चीजों को उजागर करते हुए, ये फिल्में लोगों को इस दृष्टिकोण से मानवजाति, दुनिया और अंधकार के प्रभाव को समझने में मदद करती हैं। कुछ लोगों का कहना है, “‘मानवजाति और दुनिया को समझने’ से तुम्हारा क्या मतलब है?” तुम सभी लोगों के विचार से इसका क्या मतलब है? (अंधकार और मानवजाति तथा दुनिया की दुष्टता को समझना, और साथ ही इस सार को समझना कि सारी मानवजाति परमेश्वर की दुश्मन है।) सही है। इसका अर्थ है मानवजाति की दुष्टता और अंधकार को समझना, तथा परमेश्वर के शत्रु के रूप में समस्त मानवजाति के कुरूप चेहरों और असली रंगों को समझना। यातना और व्यक्तिगत अनुभवजन्य गवाहियों के वीडियो कलीसिया द्वारा किए जाने वाले इस कार्य के विशिष्ट उदाहरण हैं। इसके अलावा, पारंपरिक संस्कृति, मानव के नैतिक दृष्टिकोणों, कुछ नस्लीय समूहों या जातियों के विचारों, और साथ ही चीन में ताओवाद और कन्फ्यूशीवाद के पारंपरिक धर्म-सिद्धांतों, कुछ छद्म सत्यों, और लोगों को बाँध कर रखने वाले और उनके विचारों को सीमित रखने वाले परिवार के नियमों और पालन-पोषण को उजागर करना—इन्हें उजागर करने का क्या उद्देश्य है? कौन-सी श्रेणी का कार्य इसके अंतर्गत आता है? क्या मैंने पहले “अपमान के जख्म हरे रखने के लिए सूखी लकड़ी पर सोना और पित्त चाटना” वाली कहानी में जिस विषयवस्तु का गहन-विश्लेषण किया था वह दुनिया, मानवजाति और अंधकार के प्रभाव को समझने का हिस्सा नहीं है? (हाँ, है।) यह इस कार्य की विशिष्ट विषयवस्तु का एक उदाहरण है। इसलिए, यह भी एक विशिष्ट कार्य है जिसे कलीसिया द्वारा किया जाना चाहिए। संक्षेप में, एक दृष्टि से, कलीसिया का कार्य लोगों का सत्य के माध्यम से सत्य वास्तविकता की ओर सकारात्मक रूप से मार्गदर्शन करना है, जो उन्हें परमेश्वर के प्रति समर्पण करने की ओर अग्रसर करता है। दूसरे दृष्टिकोण से, कलीसिया का कार्य शैतानी, अंधकारमयी दुनिया को उजागर करना, सत्य और परमेश्वर के प्रति शैतान की शत्रुता के विभिन्न कृत्यों को उजागर करना, और मानव समाज में बुरी प्रवृत्तियों, भ्रष्‍ट मानवजाति के भिन्न-भिन्न विचारों और धारणाओं, और साथ ही उनके पाखंडों और भ्रांतियों इत्यादि को उजागर करना है, ताकि लोग इस दुष्ट युग की असली प्रकृति और सार समझ सकें। क्या यह कलीसिया का अनिवार्य कार्य नहीं है? (हाँ, है।) वास्तव में, तुम लोगों ने कलीसिया के कार्य से पहले ही बहुत कुछ प्राप्त कर लिया है और महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त कर लिए हैं। जब बात कलीसिया के लोगों की आती है, तो चाहे वे सत्य में रुचि लेने वाले लोग हों, या वे लोग हों जिनकी सत्य में कोई रुचि नहीं है, तीन से पाँच वर्षों तक परमेश्वर का अनुसरण करने के बाद, सत्य के बारे में संगति करने के लिए सभाओं के माध्यम से परमेश्वर के वचनों का प्रार्थना-पाठ करने के बाद और अविश्वासियों से उत्पीड़न और अपमान का अनुभव करने के बाद, बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों और सभी तरह के अन्य लोगों, घटनाओं और चीजों से बाधाओं का अनुभव करने के बाद, वे अनजाने में, इस अंधेरी दुनिया, दुष्ट मानवजाति, सत्तारूढ़ अधिकारियों और संपूर्ण दुनिया के अंधकारमयी प्रभाव को पहचानने और समझने लगेंगे। उन्हें ये लाभ प्राप्त होते हैं। और ये लाभ कैसे प्राप्त होते हैं? क्या ये कलीसियाओं के अस्तित्व के कारण आते हैं? क्या ये क‍लीसियाओं द्वारा किए जाने वाले कार्य के कारण आते हैं? (हाँ।) एक तरफ, लोगों ने परमेश्वर के वचनों, कार्य और स्वभाव की कुछ समझ प्राप्त की है; और दूसरी तरफ, उन्होंने दुनिया, मानवजाति, और अंधकार के प्रभाव के प्रति तदनुरूपी जागरूकता और विवेक भी प्राप्त किया है। लोगों पर इन दो लाभों के परिणाम एवं सकारात्मक प्रभाव ही वे चीजें हैं जो उन्हें उद्धार प्राप्त करने के लिए हासिल करनी चाहिए।

कलीसिया के कार्य को संक्षेप में इस प्रकार कहा जा सकता है कि यह परमेश्वर के वचनों और कार्य का प्रसार करना और गवाही देना, और परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने में लोगों की अगुआई करना है ताकि वे सत्य समझ सकें, परमेश्वर के वचनों का अभ्यास कर सकें और अपने कर्तव्यों को बेहतर ढंग से निभा सकें। इसके अलावा, सत्य की समझ की बुनियाद पर, वे परमेश्वर के कार्य का अनुभव कर सकें, अपने भ्रष्ट स्वभावों को त्याग सकें और स्वभाव में बदलाव हासिल कर सकें। इन तीन पहलुओं के अलावा, इसमें दुष्ट मानवजाति, अंधकारमयी दुनिया, और अंधकार के प्रभाव को समझने में लोगों की मदद करना शामिल है। यद्यपि कलीसिया के कार्य की परियोजनाएँ अधिक नहीं हैं, लेकिन विशिष्ट विषयवस्तु बेहद व्यापक है। सारी विषयवस्तु परमेश्वर के वचनों, सत्य, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागने, और परमेश्वर के प्रति समर्पण करने से संबंधित है; बेशक, यह व्यक्ति को बचाए जाने से ज्यादा संबंधित है। यह कलीसिया का कार्य है और कलीसिया के अस्तित्व का मूल्य है। कलीसिया के कार्य का हर पहलू परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश से गहराई से संबंधित है क्योंकि इसमें परमेश्वर के वचनों के साथ लोगों का व्यवहार, परमेश्वर के प्रति उनका रवैया, उनका उद्धार, और दुनिया, मानवजाति और अंधकार के प्रभाव के प्रति उनके विचार और दृष्टिकोण शामिल होते हैं। संक्षेप में, कलीसिया का अस्तित्व प्रत्येक व्यक्ति से घनिष्ठता से जुड़ा हुआ है, और कलीसिया का कार्य, और इसके अस्तित्व का मूल्य और महत्व, परमेश्वर का उद्धार स्वीकार करने वाले प्रत्येक व्यक्ति से अवियोज्य है।

कलीसिया को जो विशिष्ट कार्य करने की आवश्यकता होती है, उसके बारे में संगति करने के बाद आओ “कलीसिया” के नाम और कलीसिया के अस्तित्व के महत्व के बारे में लोगों की अनुचित परिभाषाओं और दृष्टिकोणों पर चर्चा करें। सबसे पहले तो लोग कलीसिया को एक अपेक्षाकृत आरामदायक जगह मानते हैं, एक ऐसी जगह जो गर्मजोशी और धूप से भरी होती है, एक अपेक्षाकृत मित्रवत जगह जो संघर्ष, युद्ध, हत्या या रक्तपात से मुक्त होती है—एक आदर्श जगह जिसके लिए लोगों के दिल तरसते हैं, जो खुशियों से भरी होती है। यहाँ न तो ईर्ष्या या कलह है, न कोई षड्यंत्र, न बुरी प्रवृत्तियाँ, और न ही अविश्वासी दुनिया में पाई जाने वाली कोई अन्य घटनाएँ होती हैं। इसे एक आदर्श आश्रयगृह के रूप में देखा जाता है जहाँ लोग अपने दिल के लंगर डाल सकते हैं। भले ही “कलीसिया” नाम के बारे में लोगों की कल्पनाएँ कितनी भी सुंदर क्यों न हों, कुल मिलाकर लोग कलीसिया में एक निश्चित मात्रा में आत्मिक पोषण पाते हैं। इस आत्मिक पोषण का लोगों के लिए अधिक ठोस प्रकार्य होता है : जब वे कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो वे कलीसिया में आकर अपनी परेशानियों को व्यक्त कर सकते हैं, और कलीसिया उनकी चिंताओं को कम करने और उनकी कठिनाइयों को हल करने में उनकी मदद कर सकती है। उदाहरण के लिए, अगर वे काम या जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हैं, अगर उनके बच्चे आज्ञा नहीं मानते, अगर उनके पति या पत्नी के कोई नाजायज संबंध हैं, अगर सास-बहू के बीच संघर्ष होते हैं, अगर सहकर्मियों या पड़ोसियों से विवाद होते हैं, अगर उनके बच्चों को तंग किया जाता है, अगर उनकी जमीन किसी स्थानीय तानाशाह द्वारा हड़प ली जाती है, और इसी तरह की अन्य समस्याएँ होती हैं—इन चीजों के होने पर, लोग आशा करते हैं कि कलीसिया में कोई उनके लिए खड़ा हो सके और इन मुद्दों को हल करने और सुलझाने में उनकी मदद कर सके। लोगों के मन में, कलीसिया एक ऐसी ही जगह है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि लोगों के मन में कलीसिया एक शरणस्थल, एक आदर्श जन्नत चिंताओं को कम करने और कठिनाइयों को हल करने की जगह, हिंसा खत्म करने और भले लोगों को शांति से जीने देने की जगह, और न्याय की रक्षा करने की जगह है। अगर जीवन कठिन हो जाता है तो कलीसिया को राहत प्रदान करनी चाहिए; अगर खाने के लिए सब्जियाँ नहीं हैं और पकाने के लिए चावल नहीं हैं तो कलीसिया को उनका वितरण करना चाहिए; अगर पहनने के लिए कपड़े नहीं हैं तो कलीसिया को उन्हें खरीदना चाहिए; अगर कोई बीमार हो जाता है तो कलीसिया को इलाज के लिए भुगतान करना चाहिए। जब किसी को काम में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तो कलीसिया के भाई-बहनों को मदद का हाथ बढ़ाना चाहिए, अपनी जान पहचान वालों से संपर्क करना चाहिए, संबंधों का लाभ उठाना चाहिए या मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिए। जब किसी के बच्चे कॉलेज में प्रवेश की परीक्षा दे रहे होते हैं, तो वे कलीसिया का रुख करते हैं ताकि और अधिक लोग उनके लिए प्रार्थना कर सकें और यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि उनके बच्चे सफलतापूर्वक कॉलेज में प्रवेश पा सकें। चाहे किसी भी प्रकार की कठिनाइयों से सामना हो, जब तक कोई कलीसिया में आता है, इन सभी कठिनाइयों को हल किया जा सकता है और सुलझाया जा सकता है। भले ही किसी को दुष्ट लोगों के हाथों अत्याचार सहना पड़े, कलीसिया इन सभी चीजों को सुलझा सकती है क्योंकि इसके बहुत सारे सदस्य हैं और इसकी बहुत प्रतिष्ठा है। कई लोगों का प्रोत्साहन और समर्थन पाकर, व्यक्ति डरपोक नहीं रहेगा या गुंडों द्वारा धमकाए जाने से नहीं डरेगा। तंग किए जाने पर, बहिष्कृत किए जाने पर और कोई तरीका न होते हुए जीविका कमाने के लिए समाज में निरंतर संघर्ष करते हुए भी व्यक्ति कलीसिया से मदद और अच्छी सलाह प्राप्त कर सकता है और उपयुक्त काम पा सकता है। ये सभी बातें, तथा और भी बहुत कुछ, ऐसी भूमिकाएँ हैं जो लोग मानते हैं कि एक कलीसिया को निभानी चाहिए और वह कार्य है जो इसे करना चाहिए। लोगों के विचारों और धारणाओं, या कलीसिया से उनकी मांगों के आधार पर यह स्पष्ट है कि वे निस्संदेह कलीसिया को एक कल्याणकारी संस्थान, कोई धर्मार्थ संगठन, विवाह के लिए जोड़ियाँ बनाने वाली या नौकरियाँ दिलाने वाली एजेंसी, या रेड क्रॉस सोसाइटी के रूप में देखते हैं। कुछ लोग तो यहाँ तक सोचते हैं कि वे चाहे कितने भी सक्षम क्यों न हों या समाज और मानवजाति में उनका कोई भी स्थान हो, उन्हें हमेशा एक शक्तिशाली इकाई पर निर्भर रहने की आवश्यकता होती है। जब वे समाज में कठिनाइयों का सामना करते हैं या सत्ताधारियों का सामना करते हैं, तो उन्हें एक मजबूत शक्ति की आवश्यकता होती है जो उनका समर्थन करे, उनके लिए बोले, उनके लिए व्यवस्था करे और उनके अधिकारों और हितों के लिए लड़े। उनके दृष्टिकोण में कलीसिया इस भूमिका को निभा सकती है और उनके अपेक्षित उद्देश्य को प्राप्त कर सकती है, इसलिए कलीसिया उनके लिए एकमात्र विकल्प बन जाती है। यह स्पष्ट है कि वे कलीसिया को एक सामाजिक संघ या संगठन के रूप में देखते हैं, जैसे कि शिक्षकों का संघ, परिवहन संघ, किसानों का संघ, महिलाओं का संघ, बुजुर्गों का संघ इत्यादि—इस प्रकार के सामाजिक समूह और संगठन। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोगों की कलीसिया की परिभाषाएँ वास्तव में क्या हैं, एक कलीसिया जो कार्य करती है और कलीसिया की सही परिभाषा के आधार पर यह स्पष्ट है कि लोगों के कलीसिया के प्रति दृष्टिकोण और माँगें बिल्कुल गलत और अमान्य हैं और लोगों को इन्हें नहीं मानना चाहिए। कलीसिया “धनवानों से लूटकर गरीबों को खिलाने,” हिंसा को समाप्त करने और भले लोगों को शांति से जीने देने, या न्याय को बनाए रखने की जगह नहीं है और न ही यह दुनिया की मदद करने और लोगों को बचाने की जगह है और न ही लोगों की चिंताओं को दूर करने और उनकी कठिनाइयों को हल करने की जगह है। कलीसिया कोई धर्मार्थ संगठन, या कल्याण संस्थान, या कोई सामाजिक संघ नहीं है। कलीसिया की स्थापना और उपस्थिति सामाजिक समूह या संगठन के रूप में कार्य करने के लिए नहीं होती है। कलीसिया को केवल कुछ आवश्यक कार्य करने होते हैं, जैसे कि परमेश्वर के वचनों की गवाही देना और उनका प्रसार करना, लोगों की परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने, परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने, और अपने भ्रष्ट स्वभावों को त्यागकर उद्धार प्राप्त करने में अगुआई करना, इसके अलावा कलीसिया की समाज या किसी जातीय समूह को कोई भी कार्य या सहायता प्रदान करने की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है। इसके अतिरिक्त, कलीसिया लोगों के अधिकारों और हितों के लिए लड़ने का स्थान नहीं है और न ही इसकी कोई जिम्मेदारी होती है कि लोगों के दैहिक जीवन, सामाजिक स्थिति, नौकरी के पद, वेतन, सामाजिक कल्याण आदि को सुनिश्चित करे। अपनी धारणाओं में, लोग मानते हैं कि कलीसिया के कार्यों में हिंसा समाप्त करना और भले लोगों को शांति से जीने देना, न्याय बनाए रखना, लोगों की चिंताओं को दूर करना और उनकी कठिनाइयों को हल करना, दुनिया की मदद करना और लोगों को बचाना, और लोगों के अधिकारों और हितों के लिए लड़ना—मूल रूप से ये सभी कार्य शामिल हैं। इसलिए, लोग मानते हैं कि कलीसिया उनकी तात्कालिक मददगार है और यह कि किसी भी कठिनाई को कलीसिया द्वारा हल और ठीक किया जा सकता है। स्पष्ट रूप से, लोग कलीसिया को एक सामाजिक संस्थान, संगठन, या समूह के रूप में देखते हैं। लेकिन क्या कलीसिया ऐसी कोई संस्था है? (नहीं है।) अगर लोग यह मानते हैं कि कलीसिया के कार्य और भूमिकाएँ हिंसा समाप्त करना, भले लोगों को शांति से जीने देना, न्याय बनाए रखना, लोगों की चिंताओं को दूर करना और उनकी कठिनाइयों को हल करना, दुनिया की मदद करना और लोगों को बचाना, और लोगों के अधिकारों और हितों के लिए लड़ना आदि हैं, तो ऐसी कलीसिया को कलीसिया नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसका परमेश्वर के वचनों, पवित्र आत्मा के कार्य या लोगों को बचाने के परमेश्वर के कार्य से कोई संबंध नहीं है। ऐसे समूह या संगठन को बस एक समूह या संगठन कहा जाना चाहिए, जिसका कलीसिया से कोई संबंध नहीं है, और न ही कलीसिया के कार्य से कोई जुड़ाव है। अगर कोई संगठन, परमेश्वर में विश्वास करने के नाम पर, सेवाओं में भाग लेने, परमेश्वर की आराधना करने, बाइबल पढ़ने, प्रार्थना करने, भजन गाने और स्तुति करने जैसी गतिविधियों में संलग्न होता है, या भले ही इसके पास औपचारिक सभाएँ और आराधना, साथ ही तथाकथित बाइबल अध्ययन सभाएँ, प्रार्थना सभाएँ, सहकर्मी सभाएँ, विचार-विनिमय सभाएँ आदि हों, इसके सदस्यों और संरचना का प्रकार चाहे जो भी हो, इनका सच्ची कलीसिया से कोई संबंध नहीं है। तो, वास्तव में एक सच्ची कलीसिया क्या है? यह कैसे अस्तित्व में आती है? सच्ची कलीसिया परमेश्वर के प्रकट होने, उसके कार्य, और मानवजाति को बचाने के लिए उसके द्वारा व्यक्त किए गए सत्य के कारण बनती है। यह तब बनती है जब लोग परमेश्वर की वाणी सुनते हैं, उसकी ओर मुड़ते हैं, और उसके कार्य के प्रति समर्पण करते हैं। यही एक सच्ची कलीसिया है। एक कलीसिया का संगठन और स्थापना मनुष्यों द्वारा नहीं किया जाता, बल्कि इसे परमेश्वर स्वयं स्थापित करता है और व्यक्तिगत रूप से इसकी अगुआई और चरवाही करता है। इसलिए, परमेश्वर की अपनी कलीसियाओं के लिए आदेश होते हैं। एक कलीसिया का उद्देश्य परमेश्वर के वचनों का प्रसार करना, परमेश्वर के कार्य की गवाही देना, लोगों को परमेश्वर की आवाज सुनने, उसके समक्ष लौटने, परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार करने, उसके कार्य का अनुभव करके परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त करने और परमेश्वर के लिए गवाही देने में मदद करना है—यह बस इतना ही सरल है। यही एक कलीसिया के अस्तित्व का मूल्य और महत्व है।

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

संबंधित सामग्री

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें