अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (21) खंड एक

मसीह-विरोधियों और उन लोगों के बीच कैसे अंतर किया जाए जिनका स्वभाव मसीह-विरोधी है

सत्य के प्रति उनके रवैये के आधार पर उनमें अंतर करना

आज हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के संबंध में संगति करना जारी रखेंगे। औपचारिक रूप से संगति आरंभ करने से पहले, आओ मसीह-विरोधियों से संबंधित एक विषय की समीक्षा करें जिस पर पहले संगति की गई थी : मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों को उन लोगों से कैसे अलग किया जाए जिनका सार मसीह-विरोधी है और इन दो प्रकार के लोगों के बीच क्या अंतर है। पहले, हम इस बात पर संगति करेंगे कि मसीह-विरोधियों का भेद कैसे पहचाना जाए; यह बहुत मुश्किल काम नहीं है। सबसे पहले, तुम्हें स्पष्ट रूप से यह देखना चाहिए कि मसीह-विरोधी कौन-सी स्पष्ट विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं, ताकि तुम यह निर्धारित करते हुए थोड़े समय में ही असली मसीह-विरोधी की पहचान कर सको कि वह निश्चित रूप से कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसका स्वभाव मसीह-विरोधियों वाला है या जो मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल रहा है। इस तरह, तुम्हें मसीह-विरोधियों के बारे में भेद की पहचान हो जाएगी और वे तुम्हें फिर कभी गुमराह नहीं कर पाएँगे, फँसा नहीं पाएँगे और नियंत्रित नहीं कर पाएँगे। अब सबसे महत्वपूर्ण बात मसीह-विरोधी प्रकृति सार वाले लोगों और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के बीच स्पष्ट भिन्नताओं को पहचानने में सक्षम होना है। इन दो प्रकार के लोगों का भेद पहचानने के लिए, तुम्हें पहले उनकी मुख्य विशेषताओं को समझना चाहिए। कुछ लोग केवल रोजाना के जीवन में मसीह-विरोधियों की भ्रष्टता के खुलासे को ही समझ पाते हैं, जैसे कि अपने रुतबे का दावा करने और दूसरों को उपदेश देने की उनकी प्रवृत्तियाँ, लेकिन वे मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार को नहीं समझ पाते हैं। क्या यह ठीक है? (नहीं।) ऐसे लोग भी हैं जो कहते हैं कि मसीह-विरोधियों की सबसे महत्वपूर्ण अभिव्यक्तियाँ उनका अहंकार और दंभ है; वे सभी अहंकारी और दंभी लोगों का चरित्र-चित्रण मसीह-विरोधियों के रूप में करते हैं। क्या यह सही है? (नहीं।) यह सही क्यों नहीं है? क्योंकि अहंकार और दंभ मसीह-विरोधियों की सबसे महत्वपूर्ण अभिव्यक्तियाँ नहीं हैं; वे भ्रष्ट स्वभाव हैं जो सभी भ्रष्ट मनुष्यों में होते हैं। हर व्यक्ति में अहंकारी और दंभी स्वभाव होता है, इसलिए सभी अहंकारी और दंभी लोगों का चरित्र-चित्रण मसीह-विरोधियों के रूप में करना एक गंभीर गलती है। तो मसीह-विरोधियों की अनिवार्य अभिव्यक्तियाँ क्या हैं, जो ए‍क नजर में मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले लोगों के बीच अनिवार्य अंतर पैदा कर सकती हैं और व्यक्ति को यह भेद पहचानने में सक्षम बना सकती हैं कि इन दो प्रकार के लोगों का सार भिन्न है और ऐसे लोगों के साथ अलग तरीके से व्यवहार किया जाना चाहिए? कार्यकलाप, व्यवहार और स्वभाव जैसे कुछ पहलुओं में, क्या इन दो प्रकार के लोगों के बीच समानताएँ और समरूपताएँ हैं? (हाँ।) यदि तुम ध्यानपूर्वक नहीं देखते, गंभीरता से अंतर नहीं करते या अपने दिल में इन दो प्रकार के लोगों के स्वभाव और सार की सटीक समझ नहीं रखते और इनका भेद नहीं पहचान पाते, तो इन लोगों के साथ ऐसा व्यवहार करना बहुत आसान है मानो वे एक ही प्रकार के लोग हों। तुम शायद मसीह-विरोधी को मसीह-विरोधी स्वभाव वाला व्यक्ति समझने की भूल कर बैठो और इसके उलट भी, यानी आसानी से इस तरह के गलत निर्णय हो सकते हैं। तो इन दो प्रकार के लोगों के बीच कौन-सी मुख्य विशेषताएँ और अंतर हैं जिनसे कोई व्यक्ति पुख्‍ता सबूत के साथ अंतर कर पाता है कि कौन मसीह-विरोधी है और कौन मसीह-विरोधी स्वभाव वाला व्यक्ति है? तुम लोग इस विषय से परिचित नहीं होगे, तो आओ तुम लोगों के विचार सुनते हैं। (मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के बीच अंतर करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक पहलू सत्य के प्रति उनके रवैये को जानना है; दूसरा उनकी मानवता को जानना है। सत्य के प्रति अपने रवैये में, मसीह-विरोधी सत्य से नफरत करते हैं और इसे बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते। चाहे वे कितने भी बुरे कर्म करें जिनसे विघ्न-बाधा उत्पन्न होती है और चाहे तुम उनके साथ कैसे भी संगति करो या उनकी काट-छाँट करो, वे इसे स्वीकार नहीं करते और बिल्कुल भी पश्चात्ताप नहीं करते। मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों को सत्य समझ नहीं आने या सिद्धांतों की समझ नहीं होने पर वे गलत चीजें भी कर सकते हैं, लेकिन जब उनकी काट-छाँट होती है, तो वे सत्य को स्वीकार सकते हैं, आत्म-चिंतन कर सकते हैं और खुद को जान सकते हैं; वे पछतावा महसूस करके पश्चात्ताप करने में सक्षम होते हैं। सत्य के प्रति उनके रवैये के परिप्रेक्ष्य से, मसीह-विरोधियों का सार यह है कि वे सत्य से नफरत करते हैं, जबकि मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग सत्य को स्वीकार सकते हैं। उनकी मानवता के परिप्रेक्ष्य से, मसीह-विरोधी बुरे लोग हैं जिनमें अंतरात्मा या शर्म की भावना नहीं होती, जबकि मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों में अंतरात्मा और शर्म की भावना होती है।) तुमने दो विशेषताओं का उल्लेख किया; क्या इस विषय-वस्तु पर पहले भी संगति की गई है? क्या इन्हें स्पष्ट विशेषताएँ माना जाता है? (हाँ।) सत्य के प्रति मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों का रवैया पूरी तरह से अलग है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु है और यह स्पष्ट विशेषताओं वाली अभिव्यक्ति है। मसीह-विरोधी सत्य से विमुख होते हैं और इसे बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते। वे यह स्वीकारने के बजाय मरना पसंद करेंगे कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं। तुम चाहे सत्य के बारे में कैसे भी संगति करो, वे आंतरिक रूप से इसका विरोध करते हैं और इससे विमुख होते हैं। वे भीतर ही भीतर तुम्हें कोस भी सकते हैं, तुम्हारा मजाक उड़ा सकते हैं और तुमसे नफरत कर सकते हैं, तुम्हारा अपमान कर सकते हैं। मसीह-विरोधियों की सत्य से दुश्मनी होती है; यह एक स्पष्ट विशेषता है। और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों की विशेषताएँ क्या हैं? सटीक और निष्पक्ष होने के लिए, मसीह-विरोधी स्वभाव के साथ ही थोड़ी अंतरात्मा और विवेक वाले लोग अपनी धारणाओं को बदल सकते हैं और जब दूसरे लोग उनके साथ सत्य पर संगति करें तो वे सत्य को स्वीकार सकते हैं। यदि उनकी काट-छाँट की जाए, तो वे समर्पण भी कर सकते हैं। यानी जब तक मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उनमें से अधिकांश अलग-अलग स्तर पर सत्य को स्वीकार सकते हैं। संक्षेप में, मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग स्वयं परमेश्वर के वचनों को पढ़ने, परमेश्वर के अनुशासन और प्रबोधन को स्वीकारने या भाई-बहनों की काट-छाँट, मदद और समर्थन जैसे तरीकों से सत्य को स्वीकार सकते हैं और समर्पण कर सकते हैं। यह एक स्पष्ट विशेषता है। लेकिन मसीह-विरोधी अलग हैं। चाहे कोई भी सत्य की संगति करे, वे न तो सुनते हैं और न ही समर्पण करते हैं। उनका एक ही रवैया होता है : वे सत्य को स्वीकारने के बजाय मरना पसंद करते हैं। चाहे तुम उनकी कैसे भी काट-छाँट करो, सब बेकार है। भले ही तुम सत्य की यथासंभव स्पष्ट रूप से संगति करो, वे इसे स्वीकार नहीं करते; वे आंतरिक रूप से इसका विरोध भी करते हैं और इससे विमुख महसूस करते हैं। क्या ऐसे स्वभाव वाला कोई व्यक्ति जो सत्य से नफरत करता है, परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकता है? निश्चित रूप से नहीं। इसलिए, मसीह-विरोधी परमेश्वर के दुश्मन हैं और वे ऐसे लोग हैं जो छुटकारे से परे हैं।

उनकी मानवता के आधार पर उनमें अंतर करना

अभी-अभी तुम लोगों ने मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों और मसीह-विरोधियों के बीच अंतर करने के लिए एक अन्य विशेषता का भी उल्लेख किया, जो मानवता के परिप्रेक्ष्य से है। इस विशेषता के बारे में कुछ और संगति कौन करना चाहेगा? (मसीह विरोधियों में विशेष रूप से दुर्भावनापूर्ण मानवता होती है; वे लोगों को दबा और सता सकते हैं, और चाहे वे कितनी भी बुराई करें, वे पश्चात्ताप करना नहीं जानते।) यह सही है, मसीह विरोधियों की मुख्य विशेषता उनकी दुर्भावनापूर्ण मानवता, उनकी बेशर्मी और उनमें अंतरात्मा और विवेक की कमी है। चाहे वे कलीसिया में कितने भी बुरे कर्म करें या कलीसिया के काम को कितना भी नुकसान पहुँचाएँ, वे इसे शर्मनाक नहीं मानते, न ही वे खुद को पापी मानते हैं। चाहे परमेश्वर का घर उन्हें उजागर करे या भाई-बहन उनकी काट-छाँट करें, वे बेफिक्र रहते हैं, और उन्हें भर्त्सना या परेशानी महसूस नहीं होती। मानवता की दृष्टि से यह मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्ति है। उनकी मुख्य विशेषताएँ अंतरात्मा और विवेक की कमी, शर्म की कमी और अत्यंत दुष्ट स्वभाव हैं। जो कोई भी उनके हितों पर असर डालता है, वे उसकी आलोचना करते हैं और उसे सताते हैं, उनमें बदला लेने की विशेष रूप से प्रबल इच्छा होती है, वे किसी को भी नहीं छोड़ते, यहाँ तक कि अपने रिश्तेदारों को भी नहीं। मसीह-विरोधी इतने दुष्ट होते हैं। दूसरी ओर, मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग, चाहे वे कितनी भी भ्रष्टता दिखाएँ, जरूरी नहीं कि वे बुरे लोग हों। चाहे उनकी मानवता में कितनी भी कमियाँ या खामियाँ हों, वे कोई भी गलती करें या कितने भी मामलों में विफल हों और ठोकर खाएँ, वे आत्म-चिंतन करने के बाद उससे सबक सीख सकते हैं। जब वे काट-छाँट किए जाने का सामना करते हैं, तो अपनी गलतियों को स्वीकारने और पछतावा महसूस करने में सक्षम होते हैं; और जब भाई-बहन उनकी आलोचना करते हैं या उन्हें उजागर करते हैं—भले ही वे खुद का थोड़ा बचाव करने की कोशिश करें और उस समय इसे स्वीकारने के लिए अनिच्छुक हों—तो वे वास्तव में अपने दिल में अपनी गलती स्वीकार कर समर्पण कर चुके होते हैं। इससे साबित होता है कि वे अभी भी सत्य को स्वीकार सकते हैं और उन्हें सुधारा जा सकता है। जब वे गलतियाँ करते हैं या किसी समस्या का सामना करते हैं, तो उनकी अंतरात्मा और विवेक अभी भी काम कर सकता है; वे जागरूक होते हैं, सुन्न और भावनाहीन नहीं होते या हठी नहीं होते और चीजों को स्वीकारने से इनकार नहीं करते। इसके अतिरिक्त, भले ही इस प्रकार के लोगों में मसीह-विरोधी स्वभाव होता है, वे अपेक्षाकृत सहानुभूतिपूर्ण और कुछ हद तक दयालु होते हैं। जब वे विभिन्न मामलों का सामना करते हैं, तो मानवता के संदर्भ में वे जो विशेषताएँ प्रदर्शित करते हैं, उन्हें—सबसे उपयुक्त और समझने में आसान तरीके से—अपेक्षाकृत उचित रूप में वर्णित किया जा सकता है। यदि उनकी गंभीरता से काट-छाँट की जाए, तो वे ज्यादा से ज्यादा अपने दिल में थोड़ी नाराजगी महसूस कर सकते हैं, लेकिन उनकी मानवता की अभिव्यक्ति से इसे देखने पर, यह देखा जा सकता है कि वे अभी भी शर्म महसूस करते हैं, उनकी अंतरात्मा उन्हें दोषी ठहराने में सक्षम है और उनका विवेक एक निश्चित संयमित करने वाला प्रभाव डाल सकता है। यदि वे परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाते हैं या किसी भाई-बहन को नुकसान पहुँचाते हैं, तो वे हमेशा अंदर से बेचैन महसूस करते हैं और उन्हें लगता है कि उन्होंने परमेश्वर को निराश किया है। ये अभिव्यक्तियाँ मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों में भिन्न स्तरों तक प्रकट होती हैं। भले ही वे चीजों के होने के बाद तुरंत सुधार न करें या सही विकल्प न चुनें और सही तरीके से अभ्यास न करें, फिर भी इन लोगों के दिलों में जागरूकता की भावना होती है। उनकी अंतरात्मा उन्हें दोषी ठहराती है; वे जानते हैं कि उन्होंने गलत किया है और उन्हें फिर से ऐसा नहीं करना चाहिए, और उन्हें यह भी लगता है कि वे अच्छे लोग नहीं हैं—सूक्ष्म रूप से, उन सभी में ये भावनाएँ हो सकती हैं। इसके अलावा, समय के साथ उनकी दशा बदल जाएगी और वे सच्चा पश्चात्ताप करेंगे। उन्हें गहरा पछतावा महसूस होगा, इस बात का अफसोस होगा कि उन्होंने शुरू में सही विकल्प नहीं चुने या सही तरीके से अभ्यास नहीं किया। ये अभिव्यक्तियाँ वास्तव में भ्रष्ट मनुष्यों की सबसे आम और साधारण अभिव्यक्तियाँ हैं। लेकिन मसीह-विरोधी लोग विशेष हैं; वे मनुष्य नहीं बल्कि दानव हैं। चाहे उनके बुराई या पाप करने के बाद कितना भी समय क्यों न बीत जाए, उन्हें बिल्कुल भी कोई पछतावा नहीं होता; वे अंत तक जिद्दी और दृढ़ बने रहते हैं। मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग साधारण काट-छाँट का सामना करने पर समर्पण कर सकते हैं। जब गंभीर काट-छाँट का सामना करना पड़ता है, तो वे अपने मामले में बहस कर सकते हैं, चीजों को नकार सकते हैं और उस समय इसे स्वीकारने से इनकार कर सकते हैं, लेकिन बाद में वे आत्म-चिंतन करने और खुद को जानने में सक्षम होते हैं, पछतावा महसूस करते हैं और पश्चात्ताप करते हैं। भले ही कोई उनका मजाक उड़ाए और मानवताहीन बताकर उनकी आलोचना करे, उन्हें दिलों में दर्द महसूस हो सकता है लेकिन वे उस व्यक्ति से नहीं लड़ेंगे या उसे दुश्मन नहीं मानेंगे। वे दूसरे व्यक्ति को समझकर यह भी सोच सकते हैं, “उस गलती के लिए मैं खुद को ही दोषी ठहरा सकता हूँ; दूसरे मेरे साथ जैसा भी व्यवहार करते हैं, मैं उससे बेहतर व्यवहार के लायक नहीं हूँ।” ये अभिव्यक्तियाँ अलग-अलग लोगों में भिन्न स्तरों तक प्रकट होती हैं। संक्षेप में, ये खुलासे मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों, भ्रष्ट स्वभाव वाले लोगों की सामान्य और स्वाभाविक अभिव्यक्तियाँ हैं और यहीं पर वे स्पष्ट रूप से मसीह-विरोधियों से भिन्न होते हैं। इन दो दशाओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों के माध्यम से, यह तुरंत स्पष्ट हो जाता है कि कौन से व्यक्ति बुरे लोग और मसीह-विरोधी हैं, और कौन से ऐसे लोग हैं जो केवल मसीह-विरोधी स्वभाव वाले हैं लेकिन बुरे लोग नहीं हैं।

इस आधार पर उनमें अंतर करना कि वे सचमुच पश्चात्ताप करते हैं या नहीं

मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के बीच अंतर के दो पहलुओं का अभी-अभी उल्लेख किया गया : पहला पहलू है सत्य के प्रति उनका रवैया; सत्य के प्रति लोगों का रवैया ही परमेश्वर के प्रति उनका रवैया है। इस पहलू में, इन दो प्रकार के लोगों के बीच एक स्पष्ट भिन्नता है। दूसरा पहलू है, मानवता की दृष्टि से भी इन दोनों प्रकार के लोगों के बीच एक स्पष्ट अनिवार्य अंतर है। ये दोनों विशेषताएँ बेहद स्पष्ट हैं; वे बिल्कुल अलग तरह के लोग हैं। इन दो अंतरों के अलावा, एक और पहलू यह है कि बुराई करने के बाद उनमें पश्चात्ताप की कोई अभिव्यक्ति होती है या नहीं। मसीह-विरोधी लोगों के मामले में, चाहे वे कोई भी बुरे कर्म करें—चाहे वे लोगों को सताएँ, स्वतंत्र राज्य स्थापित करें, रुतबे के लिए परमेश्वर से होड़ करें, चढ़ावे की चोरी करें या कुछ और करें—भले ही वे सीधे तौर पर उजागर हो जाएँ, वे यह स्वीकार नहीं करते कि ये कर्म उन्होंने किए हैं। अगर वे उन्हें स्वीकार नहीं करते, तो क्या वे पश्चात्ताप कर सकते हैं? वे पश्चात्ताप करने के बजाय मरना पसंद करेंगे। वे अपने बुरे कर्मों के तथ्यों को स्वीकार नहीं करते। भले ही उन्हें एहसास हो कि उजागर करना पूरी तरह से सही है, वे इसका प्रतिरोध और विरोध करते हैं। वे इस बात पर बिल्कुल भी चिंतन-मनन नहीं करेंगे कि वे गलत राह पर हैं या यह नहीं कहेंगे, “मुझे मसीह-विरोधी के रूप में चित्रित किया गया है। यह बहुत खतरनाक है, और मुझे पश्चात्ताप करने की आवश्यकता है।” उनके मन में इस तरह के विचार बिल्कुल भी नहीं होते। उनकी मानवता में ये गुण नहीं होते। इसलिए, मसीह-विरोधियों की एक स्पष्ट विशेषता होती है : चाहे वे कितने भी वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास रखें, वे सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते और उनमें कोई वास्तविक बदलाव दिखाई नहीं देते। जब वे पहली बार परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करते हैं, तो वे भीड़ में अलग दिखना, सत्ता और लाभ के लिए होड़ करना, लोगों को सताना, गुट बनाना और कलीसिया को बाँटना पसंद करते हैं। सत्ता पर कब्जा करने की उनकी कोशिश का उद्देश्य कलीसिया के सहारे जीना और एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करना है। तीन से पाँच साल तक विश्वास रखने के बाद, जब तुम उन्हें दोबारा देखते हो, तो वे बिना किसी बदलाव के उन्हीं अभिव्यक्तियों और विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं। आठ या दस साल बाद भी, वे वैसे ही बने रहते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “शायद 20 साल विश्वास रखने के बाद वे बदल जाएँ!” क्या वे बदल सकते हैं? (नहीं।) वे नहीं बदलेंगे। वे यही अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं, चाहे वे गिने-चुने लोगों के साथ बातचीत कर रहे हों या ज्यादातर लोगों के साथ, चाहे वे सामान्य कर्तव्य निभा रहे हों या अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हों। वे कभी पश्चात्ताप नहीं करते या पीछे नहीं हटते, अंत तक उसी मार्ग पर चलते रहते हैं। वे बिल्कुल पश्चात्ताप नहीं करेंगे। मसीह-विरोधी ऐसे ही होते हैं। जहाँ तक मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों की बात है, भले ही कुछ लोग बुरे न हों, लेकिन उनमें भी भ्रष्ट स्वभाव होते हैं। वे अहंकार, कपट, स्वार्थ, नीचता और अन्य प्रकार की भ्रष्टता प्रकट करते हैं। वे खराब मानवता भी प्रदर्शित करते हैं। जब वे पहली बार परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करते हैं, तो वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए होड़ भी करना चाहते हैं, लोगों की प्रशंसा पाने के लिए अलग दिखना चाहते हैं, और अगुआ बनने और सत्ता हासिल करने की महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ रखते हैं। ये अभिव्यक्तियाँ भ्रष्ट मनुष्यों में कुछ न कुछ सीमा तक मौजूद हैं और मसीह-विरोधियों से बहुत अलग नहीं हैं। हालाँकि, परमेश्वर में विश्वास रखने की प्रक्रिया में, वे परमेश्वर के वचनों के न्याय और प्रकाशन का अनुभव करके कुछ सत्य समझ पाते हैं, और उनके द्वारा इन भ्रष्ट स्वभावों का प्रकटन कम से कमतर होता जाता है। इन भ्रष्ट स्वभावों का प्रकटन कम से कमतर क्यों होता जाता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि सत्य समझने के बाद, उन्हें एहसास होता है कि ये व्यवहार और अभिव्यक्तियाँ भ्रष्ट स्वभावों के खुलासे हैं। केवल इस बिंदु पर उनकी अंतरात्मा जाग जाती है और उन्हें दिखाई देता है कि वे अत्यधिक भ्रष्ट हैं और वाकई उनमें एक इंसान होने की झलक भी नहीं है। फिर वे सत्य का अनुसरण करने के लिए इच्छुक हो जाते हैं और इस बारे में सोचते हैं कि इन भ्रष्ट स्वभावों को कैसे दूर किया जाए और वे अपने बंधन से कैसे मुक्त हो सकते हैं, और कैसे ऐसा व्यक्ति बन सकते हैं जो सत्य का अनुसरण और अभ्यास करता है। यह अभिव्यक्ति क्या है? क्या यह धीरे-धीरे पश्चात्ताप करना नहीं है? (हाँ।) परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने की प्रक्रिया में, वे अपनी समस्याओं का पता लगाते हैं, अपने भ्रष्ट स्वभावों को पहचानते हैं, और अपनी विभिन्न दशाओं को समझते हैं। वे अपनी मानवता के सार को भी जान जाते हैं और उनकी अंतरात्मा अधिक से अधिक जागरूक हो जाती है; उन्हें अधिक से अधिक यह महसूस होता है कि वे गहराई तक भ्रष्ट हैं और परमेश्वर के उपयोग के लिए अयोग्य हैं, उन्होंने परमेश्वर की घृणा अर्जित की है और वे भीतर से खुद से नफरत करते हैं। अनजाने में, वे धीरे-धीरे अपने दिल की गहराई में पश्चात्ताप करते हैं, और इस पश्चात्ताप के साथ कुछ मामूली बदलाव होते हैं, ऐसे मामूली बदलाव जो उनके व्यवहार में देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, शुरू में जब कोई उनकी समस्याओं को उजागर करता था तो वे नाराज हो जाते थे, शर्मिंदगी के मारे गुस्से से लाल हो जाते थे, वे खुद के बारे में समझाने और खुद को सही ठहराने की कोशिश करते थे, अपना बचाव करने के लिए अलग-अलग बहाने और तर्क ढूँढ़ने का हर संभव प्रयास करते थे। हालाँकि, निरंतर अनुभवों के माध्यम से उन्हें एहसास हो जाता है कि यह व्यवहार गलत है और वे इस दशा और व्यवहार को सुधारना शुरू कर देते हैं, सही विचारों को स्वीकारने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, दूसरों के साथ सामंजस्यपूर्ण सहयोग के लिए प्रयास करते हैं। जब उन पर कोई मुसीबत आती है, तो वे दूसरों से खोजना और उनके साथ संगति करना सीखते हैं, वे दिल से संवाद करना और दूसरों के साथ सौहार्दपूर्ण तरीके से रहना सीखते हैं। क्या ये पश्चात्ताप की अभिव्यक्तियाँ हैं? (हाँ।) परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद, वे धीरे-धीरे मसीह-विरोधियों द्वारा प्रकट किए जाने वाले कुछ स्वभावों, व्यवहारों और अभिव्यक्तियों की सच्ची समझ प्राप्त कर लेते हैं। फिर वे धीरे-धीरे अपने भ्रष्ट स्वभावों को त्याग देते हैं, जीवन जीने के अपने पहले के गलत तरीकों को त्यागने में सक्षम होते हैं, प्रसिद्धि और रुतबे के पीछे भागना छोड़ देते हैं, और सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने, आचरण करने और अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम होते हैं। ऐसा बदलाव कैसे आता है? क्या यह सत्य को स्वीकारने और लगातार खुद को बदलने और पश्चात्ताप करने से होता है? (हाँ।) ये सभी चीजें निरंतर पश्चात्ताप की प्रक्रिया से प्राप्त होती हैं। इसके बाद उनकी दशा निश्चित रूप से बेहतर होती है, जैसे-जैसे उनका अनुभव गहरा होता है, उनका आध्यात्मिक कद भी बढ़ता जाता है, और जब उन पर कोई मुसीबत आती है, तो वे आत्म-चिंतन करने में सक्षम होते हैं। चाहे उन्हें नाकामियों या विफलताओं का सामना करना पड़े या उनकी काट-छाँट की जाए, वे इन मामलों को परमेश्वर के सामने लाते हैं और उससे प्रार्थना करते हैं; परमेश्वर के वचनों को पढ़ते समय उनसे अपनी भ्रष्ट दशा को सह-संबंधित कर सकते हैं, उसका गहन-विश्लेषण कर सकते हैं और उसे समझ भी सकते हैं। हालाँकि वे अभी भी भ्रष्टता प्रकट कर सकते हैं और जब उन पर मुसीबतें आती हैं तो गलत विचार पनप सकते हैं, वे आत्म-चिंतन करने और खुद के खिलाफ विद्रोह करने में सक्षम होते हैं। जब तक वे इन मुद्दों के बारे में जागरूक होते हैं, वे उन्हें हल करने और पश्चात्ताप करने के लिए लगातार सत्य की तलाश कर सकते हैं। भले ही यह प्रगति बहुत धीमी होती है और नतीजे न्यूनतम होते हैं, वे अपने दिल की गहराइयों में लगातार बदल रहे हैं। इस प्रकार के लोग हमेशा एक सक्रिय, सकारात्मक, आत्म-प्रेरित रवैया और खुद को बदलने और पश्चात्ताप करने की दशा बनाए रखते हैं। हालाँकि वे कभी-कभी प्रसिद्धि और रुतबे के लिए दूसरों के साथ होड़ करते हैं और अलग-अलग स्तर तक मसीह-विरोधियों की कुछ अभिव्यक्तियों और क्रियाकलापों को प्रकट करते हैं, थोड़ी काट-छाँट, न्याय और ताड़ना या परमेश्वर के अनुशासन का अनुभव करने के बाद, ये भ्रष्ट स्वभाव अलग-अलग स्तर तक त्याग दिए जाते हैं और बदल दिए जाते हैं। इन नतीजों की प्राप्ति का मुख्य मूल कारण यह है कि इस प्रकार का व्यक्ति अपने दिल की गहराइयों में अपने भ्रष्ट स्वभावों और उसके द्वारा चुने गए गलत रास्तों के संबंध में चिंतन-मनन कर सकता है, उन्हें समझ सकता है, और खुद को बदल सकता है। भले ही उनके बदलाव से होने वाले परिवर्तन, विकास और लाभ बहुत कम हैं, और प्रगति बहुत धीमी है, इस हद तक कि शायद उन्हें खुद भी पता न लगे, ऐसे अनुभवों के तीन से पाँच वर्षों के बाद, वे स्वयं में कुछ परिवर्तन महसूस कर सकते हैं, और उनके आस-पास के लोग भी इसे देख सकते हैं। किसी भी मामले में, मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों और मसीह-विरोधियों के बीच एक अंतर होता है। इस संबंध में मुख्य विशेषता क्या है? (मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग पश्चात्ताप करने में सक्षम होते हैं।) जब वे कुछ गलत करते हैं, कोई अपराध करते हैं या काट-छाँट, न्याय और ताड़ना का अनुभव करते हैं या फिर ताड़ना या अनुशासन का सामना करते हैं, तो वे पश्चात्ताप कर सकते हैं। यहाँ तक कि जब उन्हें एहसास होता है कि उन्होंने गलत किया है या कोई गलती की है, तो वे आत्म-चिंतन कर सकते हैं और अपने दिलों में खुद को बदलने और पश्चात्ताप करने का रवैया रख सकते हैं। यह एक विशिष्ट अंतर है जो मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों को मसीह-विरोधियों से पूरी तरह से अलग करता है।

मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के बीच अंतर का सारांश

जो लोग मसीह-विरोधी हैं वे जीते-जागते शैतान हैं। यह कहा जा सकता है कि वे शैतान के रूप में जीते हैं; वे दानव और शैतान हैं जो लोगों को दिखाई देते हैं। तो फिर, आओ मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के बीच अंतर का सारांश प्रस्तुत करें। सत्य के प्रति उनका रवैया एक पहलू है। मसीह-विरोधी सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं। हालाँकि वे मौखिक रूप से स्वीकार सकते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, सकारात्मक चीजें हैं, ये ऐसे वचन हैं जो लोगों के लिए फायदेमंद हैं, ये सभी सकारात्मक चीजों के लिए मानदंड हैं और लोगों को उन्हें स्वीकारना चाहिए, उनके प्रति समर्पित होना चाहिए और उनका अभ्यास करना चाहिए—हालाँकि वे यह सब कह सकते हैं—लेकिन वे परमेश्वर के वचनों को बिल्कुल भी अभ्यास में नहीं ला पाते। वे उनका अभ्यास क्यों नहीं करते? क्योंकि वे अपने दिलों में सत्य को स्वीकार नहीं करते। वे खुद बोलते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, लेकिन पूरी तरह से अलग मंशा से : वे यह इस तथ्य को छिपाने के लिए कहते हैं कि वे सत्य को स्वीकार नहीं करते और लोगों को गुमराह करने के लिए ऐसा कहते हैं। सिर्फ इसलिए कि मसीह-विरोधी शब्द और धर्म-सिद्धांत बोल सकते हैं, इसका अर्थ यह नहीं है कि वे अपने दिलों में यह स्वीकारते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं। वे सत्य को व्यवहार में नहीं ला पाते क्योंकि वे मूल रूप से परमेश्वर के वचनों के सत्य को अपने दिलों में स्वीकार नहीं करते; वे सत्य को स्वीकारने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए सत्य का अभ्यास करने को तैयार नहीं हैं। दूसरी ओर, मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग जरूरी नहीं कि मसीह-विरोधी हों। उनमें से कुछ लोग, अलग-अलग स्तर तक सत्य को, सकारात्मक चीजों को और सही शब्दों को स्वीकार सकते हैं और उसके प्रति समर्पित हो सकते हैं—यह एक अंतर है। मसीह-विरोधी सार वाले लोग सत्य के प्रति शत्रुता रखते हैं और उससे मुँह मोड़ लेते हैं, लेकिन मसीह-विरोधी स्वभाव वाले कुछ लोग सत्य को स्वीकार सकते हैं और उसका अभ्यास कर सकते हैं। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और परमेश्वर के कार्य का कई वर्षों तक अनुभव करने से, सत्य के प्रति उनका रवैया कुछ हद तक बदल सकता है। उन्हें दिल की गहराई में महसूस होता है कि भले ही वे इसे अभ्यास में लाने में असमर्थ हैं, लेकिन सत्य उत्तम है और यह सही है। बात सिर्फ इतनी है कि वे सत्य से प्रेम नहीं करते या इसमें उनकी उतनी रुचि नहीं होती है, इसलिए इसका अभ्यास करते समय कुछ प्रयास और संघर्ष करना पड़ता है। इसलिए, मसीह-विरोधी स्वभाव के साथ ही थोड़ा जमीर और विवेक रखने वाले लोग अलग-अलग स्तर पर सत्य को स्वीकार सकते हैं। कम से कम, अपने दिलों की गहराई में, वे सत्य को लेकर प्रतिरोधी नहीं होते या उससे दूर नहीं भागते हैं और वे सत्य से विमुख नहीं होते हैं। अधिकांश लोग इस तरह की दशा में होते हैं और सत्य के प्रति इस तरह की अभिव्यक्ति प्रदर्शित करते हैं। ऐसे लोगों का वर्णन करने का यह तरीका न तो उन्हें अच्छा बनाता है और न ही उन्हें कलंकित करता है। यह काफी स्पष्ट है, है न? (हाँ।) दूसरा पहलू उनमें मानवता के परिप्रेक्ष्‍य से अंतर करना है, यानी उनकी अंतरात्मा, विवेक और उनकी मानवता की अच्छाई या बुराई के आधार पर उनमें अंतर करना। जिस किसी के पास बुरी मानवता है, जो सत्य को स्वीकार नहीं करता है, और विशेष रूप से सत्य से विमुख है, वह निश्चित रूप से एक छद्म-विश्वासी या मसीह-विरोधी है। कुछ लोग विशेष रूप से सत्य से प्रेम नहीं करते और उसमें रुचि नहीं रखते हैं। जब दूसरे लोग सत्य की संगति करते हैं, तो वे उनींदे और उदासीन हो जाते हैं। हालाँकि, इस प्रकार के लोगों में बुरी मानवता नहीं होती और वे दूसरों को नहीं सताते हैं। यदि तुम परमेश्वर के इरादों, सत्य सिद्धांतों या परमेश्वर के घर के नियमों के बारे में संगति करते हो, तो वे सत्य को सुन सकते हैं और उसे स्वीकारने और उसके लिए प्रयास करने के लिए इच्छुक होते हैं, लेकिन हो सकता है कि वे सत्य को अभ्यास में लाने में सक्षम न हों। यदि वे अगुआ बन जाते हैं, तो हो सकता है कि वे सत्य को समझने या परमेश्वर के सामने लाने में तुम्हारी अगुआई करने में सक्षम न हों, लेकिन वे तुम्हें बिल्कुल भी नहीं सताएँगे। यह मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों की मानवता है। किसी भी मामले में मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों की मानवता उतनी बुरी नहीं होती है; वे अलग-अलग स्तर तक सत्य को स्वीकार सकते हैं। इसके विपरीत, मसीह-विरोधी लोगों में न केवल अंतरात्मा और विवेक की कमी होती है, बल्कि उनमें बेहद शातिर मानवता भी होती है। मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों में अंतरात्मा की समझ और कुछ विवेक होता है, और वे कुछ मामलों को तर्कसंगत रूप से सँभाल सकते हैं। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के घर की आवश्यकताओं से निपटते समय, कलीसिया में विभिन्न लोगों से निपटने में और सकारात्मक और नकारात्मक चीजों से निपटने में क्या विकल्प चुनना है और किसका पक्ष लेना है, वे इन मामलों और ऐसे अन्य मामलों में अंतर कर सकते हैं और अंततः वे अपनी अंतरात्मा के आधार पर सही विकल्प चुनने में समर्थ होते हैं। इस प्रकार के लोगों में इतनी बुरी मानवता नहीं होती और वे अपेक्षाकृत दयालु होते हैं। एक और अंतर है, जिसके बारे में हमने अभी संगति की, वह यह है कि मसीह-विरोधी स्वभाव वाले कुछ लोग ऐसे होते हैं जो सत्य को स्वीकार सकते हैं, और जब वे गलत करते हैं, तो उस पर चिंतन-मनन कर सकते हैं और उनमें पश्चात्ताप करने वाला दिल हो सकता है। इसके विपरीत, मसीह-विरोधी इन दो अभिव्यक्तियों को बिल्कुल भी प्रदर्शित नहीं करते हैं। वे जिद्दी और अपरिवर्तनीय होते हैं क्योंकि वे सत्य से विमुख होते हैं, सत्य को स्वीकार नहीं करते और उनमें बेहद शातिर मानवता होती है। इस प्रकार के लोगों के लिए खुद को बदलना और पश्चात्ताप करना असंभव होता है। कोई व्यक्ति वास्तव में पश्चात्ताप कर सकता है या नहीं, यह मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि उसके पास अंतरात्मा और विवेक है या नहीं, और सत्य के प्रति उसका रवैया कैसा है। मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग, क्योंकि उनमें बुरी मानवता नहीं होती, उनमें थोड़ी अंतरात्मा और विवेक होता है, और वे कुछ सत्य को अलग-अलग स्तर तक स्वीकार सकते हैं, उनमें खुद को बदलने की क्षमता होती है। जब वे गलतियाँ या अपराध करते हैं, तो वे काट-छाँट किए जाने के बाद पश्चात्ताप कर सकते हैं। यह निर्धारित करता है कि मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के पास बचाए जाने की आशा है, जबकि मसीह-विरोधी लोगों को छुटकारा मिलना नामुमकिन हैं; वे दानवों और शैतान के हैं। ये कई विशेषताएँ मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के बीच अनिवार्य अंतर हैं। क्या यह सारांश काफी वस्तुगत है? (हाँ।) मसीह-विरोधियों की इन कई विशेषताओं के बारे में, हमने जिन विस्तृत अभिव्यक्तियों के बारे में संगति की है, वे बिना किसी कलंक के वस्तुगत और तथ्यों के अनुरूप हैं। परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों ने इसका सामना किया है और इसे देखा है; मसीह-विरोधी लोग ठीक ऐसे ही हैं। जहाँ तक मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों की बात है, हमने विभिन्न अभिव्यक्तियों को उजागर भी किया है, जो सभी लोगों को दिखाई देती हैं और बिना किसी दिखावे के तथ्यों के अनुरूप हैं।

मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों की मानवता में कई कमियाँ और खामियाँ होती हैं, और वे अलग-अलग हद तक विभिन्न भ्रष्ट स्वभावों को भी प्रकट करते हैं। इन भ्रष्ट स्वभावों की हर किसी में कुछ स्पष्ट विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ होती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग विशेष रूप से अहंकारी होते हैं, कुछ विशेष रूप से जोड़-तोड़ करने वाले और धोखेबाज होते हैं, कुछ विशेष रूप से कट्टर होते हैं, कुछ विशेष रूप से आलसी होते हैं, इत्यादि। ये मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों की अभिव्यक्तियाँ हैं और ये ऐसे लोगों की मानवता की विशेषताएँ हैं। हालाँकि इन लोगों के दिलों में कुछ दया होती है—सरल शब्दों में कहें तो वे कुछ हद तक नेकदिल होते हैं—मामलों का सामना करने पर, उन्हें स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाया जा रहा है, लेकिन क्योंकि वे दूसरों को नाराज करने से डरते हैं, वे अपने खोल में दुबके कछुए के समान हो जाते हैं, शैतान के फलसफे के अनुसार जीते हैं और सत्य सिद्धांतों को कायम रखने के लिए अनिच्छुक होते हैं। भले ही अंतर्मन में उन्हें महसूस होता है कि उन्हें इस तरह से कार्य नहीं करना चाहिए और इस तरह से कार्य करके वे परमेश्वर के साथ गलत कर रहे हैं, फिर भी वे खुशामदी बनने से खुद को रोक नहीं पाते। ऐसा क्यों है? क्योंकि वे मानते हैं कि जीने और जीवित रहने के लिए, उन्हें शैतान के फलसफे पर भरोसा करना चाहिए, और केवल इस तरह से वे खुद को बचा सकते हैं। इसलिए, वे खुशामदी बनने का चुनाव करते हैं और सत्य का अभ्यास नहीं करते। अपने दिलों में उन्हें महसूस होता है कि इस तरह से काम करके, वे अंतरात्मा विहीन और मानवता से रहित हैं; वे मानव नहीं हैं और एक रखवाली करने वाले कुत्ते से भी बदतर हैं। हालाँकि, खुद को धिक्कारने के बाद, जब किसी दूसरी स्थिति का सामना करते हैं, तब भी वे पश्चात्ताप नहीं करते और अभी भी उसी तरह से काम करते हैं। वे हमेशा कमजोर रहते हैं और हमेशा अपराध बोध से ग्रसित होते हैं। इससे क्या साबित होता है? इससे साबित होता है कि भले ही मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग खुद मसीह-विरोधी नहीं होते, लेकिन उनकी मानवता में समस्याएँ और कमियाँ होती हैं, इसलिए वे निश्चित रूप से बहुत अधिक भ्रष्टता प्रकट करते हैं। ऐसे व्यक्ति की समग्र अभिव्यक्तियों को देखा जाए तो वह पूरी तरह से ऐसा व्यक्ति है जिसमें शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट किए जाने पर भी कोई बदलाव नहीं होता; वह बिल्कुल वही है जिसे परमेश्वर शैतान की संतान कहता है। मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग मसीह-विरोधियों से कैसे बेहतर हैं? सटीक रूप से कहें तो भले ही जिन लोगों में मसीह-विरोधी स्वभाव है लेकिन मसीह-विरोधी सार नहीं है, वे शैतान के विभिन्न भ्रष्ट स्वभावों को प्रकट करते हैं, वे निश्चित रूप से बुरे लोग नहीं हैं। उनकी स्थिति वैसी ही है जैसा कि आम तौर पर कहा जाता है कि फलाँ व्यक्ति न तो विश्वासघाती और बुरा है और न ही वह भला है; बात सिर्फ इतनी है कि ऐसे लोग ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, पश्चात्ताप करने के इच्छुक होते हैं, और काट-छाँट के बाद सत्य को स्वीकार सकते हैं, उनमें कुछ समर्पण भाव होता है। हालाँकि वे बुरे लोग नहीं हैं और उन्हें अभी भी परमेश्वर द्वारा बचाए जाने की आशा है, लेकिन वे परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के उस मानक से बहुत दूर हैं जिसके बारे में परमेश्वर बात करता है! कुछ लोग तीन से पाँच साल तक परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और उनमें कुछ बदलाव और प्रगति होती है। कुछ लोग आठ से दस साल तक परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और उनमें बिल्कुल भी कोई प्रगति नहीं होती। कुछ लोग तो बिना किसी महत्वपूर्ण बदलाव के 20 साल तक परमेश्वर में विश्वास रखते हैं; वे अभी भी वैसे ही हैं जैसे पहले थे। वे हठपूर्वक अपनी धारणाओं से चिपके रहते हैं। बात सिर्फ इतनी है कि उन्होंने परमेश्वर के वचनों को सुना है और वे परमेश्वर के घर के विभिन्न नियमों और विनियमों से नियंत्रित हैं, इसलिए उन्होंने बड़ी गलतियाँ नहीं की हैं, ऐसे बुरे कर्म नहीं किए हैं जो परमेश्वर के घर को गंभीर नुकसान पहुँचाएँ, और उनकी वजह से बड़ी आपदाएँ नहीं आई हैं। मसीह-विरोधी स्वभाव वाले सभी लोग निश्चित रूप से अंत में परमेश्वर द्वारा बचाए नहीं जा सकते। उनमें से ज्यादातर संभवतः श्रमिक हैं और उनमें से कुछ निश्चित रूप से हटा दिए जाएँगे। किसी भी मामले में, भले ही वे बुरे लोग नहीं हैं, मगर वे खराब मानवता वाले लोग हैं। उनके परिणाम और गंतव्य निश्चित रूप से समान नहीं होंगे। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि वे सत्य को स्वीकार सकते हैं या नहीं और वे अपना मार्ग कैसे चुनते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “तुम्हारे शब्द विरोधाभासी हैं। क्या तुमने नहीं कहा कि ये लोग खुद को बदल सकते हैं और पश्चात्ताप कर सकते हैं?” मेरा मतलब यह है कि ये लोग, कुछ संदर्भों और विभिन्न परिवेशों में, अलग-अलग स्तर तक सत्य स्वीकार सकते हैं। “अलग-अलग स्तर तक” का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि कुछ लोगों में तीन से पाँच साल तक परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद थोड़ा बदलाव आता है, और 10 से 20 साल बाद महत्वपूर्ण बदलाव आता है। कुछ लोग 10 से 20 साल तक परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और फिर भी वैसे ही रहते हैं जैसे वे पहली बार विश्वास रखना शुरू करते समय थे; वे हमेशा चिल्लाते रहते हैं, “मुझे पश्चात्ताप करना चाहिए, मुझे परमेश्वर के प्यार का मूल्य चुकाना चाहिए!” लेकिन वास्तव में उनमें कोई बदलाव नहीं होता। चूँकि उनमें अंतरात्मा का बोध है, सिर्फ इसीलिए उनके दिल में यह इच्छा होती है और वे खुद को बदलने और पश्चात्ताप करने के लिए तैयार होते हैं। हालाँकि, इच्छा होने का मतलब सत्य का अभ्यास करने में सक्षम होना नहीं है, न ही यह वास्तविकता में प्रवेश करने के बराबर है। इच्छा होने का मतलब केवल सत्य का प्रतिरोध न करना, सत्य से विमुख न होना, सत्य की खुलेआम बदनामी न करना, खुलेआम आलोचना न करना, निंदा न करना या परमेश्वर की ईश-निंदा न करना है—यह केवल ये अभिव्यक्तियाँ हैं। लेकिन इसका मतलब वास्तव में सत्य के प्रति समर्पित होने, सत्य को स्वीकारने और उसका अभ्यास करने में सक्षम होना नहीं है, न ही इसका मतलब देह और अपनी इच्छाओं के खिलाफ विद्रोह करने में सक्षम होना है। क्या यह एक निष्पक्ष तथ्य है? (हाँ।) यह बिल्कुल ऐसा ही है। किसी व्यक्ति की मानवता में थोड़ी अंतरात्मा और विवेक होने और थोड़ा पश्चात्ताप करने वाला दिल होने का मतलब यह नहीं है कि उसके पास भ्रष्ट स्वभाव नहीं है। मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले लोग अनिवार्य रूप से मसीह-विरोधियों से अलग होते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे ऐसे लोग हैं जो सत्य को स्वीकार सकते हैं और उसके प्रति समर्पित हो सकते हैं। इसका यह भी अर्थ नहीं है कि वे सत्य वास्तविकता वाले लोग हैं या वे ऐसे लोग हैं जिनसे परमेश्वर प्रेम करता है। इन पहलुओं के बीच मूलभूत अंतर हैं; वे पूरी तरह से भिन्न हैं। मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग मानवता, सत्य के प्रति उनके रवैये और मसीह-विरोधियों की तुलना में उनके पश्चात्ताप के स्तर के मामले में निश्चित रूप से बहुत बेहतर हैं। हालाँकि, जिस मानक से परमेश्वर लोगों को तोलता है, वह इस बात पर आधारित नहीं है कि वे मसीह-विरोधियों से किस तरह भिन्न हैं; यह मानक नहीं है। परमेश्वर किसी व्यक्ति की मानवता को तोलता है, चाहे उसमें अंतरात्मा और विवेक हो या नहीं, चाहे वह सत्य से प्रेम करता हो और उसे स्वीकारता हो या नहीं, चाहे वह निष्ठा से अपने कर्तव्य निभाता हो या नहीं, चाहे वह परमेश्वर के प्रति समर्पित हो या नहीं, और चाहे वह सत्य को प्राप्त कर सकता हो और उद्धार प्राप्त कर सकता हो या नहीं। ये वे मानक हैं जिनसे परमेश्वर लोगों को परखता है। परमेश्वर ने मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के लिए विभिन्न अपेक्षाएँ रखी हैं। परमेश्वर इन अपेक्षाओं का उपयोग मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों को परखने के लिए करता है, जिसका उद्देश्य उन्हें बचाना है। इसे इस तरह से सुनने के बाद, तुम इसे समझ गए, है न? सबसे पहले, तुम्हें यह स्पष्ट होना चाहिए कि चाहे तुममें मसीह-विरोधियों का कितना भी स्वभाव क्यों न हो, अगर तुम सत्य को स्वीकार सकते हो, तो तुम मसीह-विरोधी नहीं हो। भले ही तुम मसीह-विरोधी नहीं हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि तुम परमेश्वर के प्रति समर्पण करने वाले व्यक्ति हो। सत्य से दूर नहीं भागने या सत्य से विमुख न होने का मतलब यह नहीं है कि तुम सत्य का अभ्यास करने वाले और उसके प्रति समर्पण करने वाले व्यक्ति हो। थोड़ी अंतरात्मा और विवेक होने, अपेक्षाकृत दयालु होने और मसीह-विरोधियों से बेहतर मानवता होने का मतलब जरूरी नहीं है कि तुम एक अच्छे व्यक्ति हो। किसी व्यक्ति के अच्छे या बुरे होने को परखने का मानक मसीह-विरोधियों की मानवता पर आधारित नहीं है। चाहे मसीह-विरोधी कितने भी बुरे काम क्यों न करें, वे कभी भी उन्हें स्वीकार नहीं करते और न ही पश्चात्ताप करते हैं, बल्कि उसी तरह से काम करना जारी रखते हैं; वे कभी पीछे नहीं हटते, और वे अंत तक परमेश्वर का विरोध करते हैं। हालाँकि मसीह-विरोधी स्वभाव वाले कुछ लोग ईमानदारी से खुद को बदलना और पश्चात्ताप करना चाहते हैं, लेकिन खुद को थोड़ा बदलने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें सच्चा पश्चात्ताप है। पश्चात्ताप करने का संकल्प होने का मतलब सत्य समझने, सत्य प्राप्त करने और जीवन प्राप्त करने में सक्षम होना नहीं है।

कुछ लोग कहते हैं, “मैं मसीह-विरोधी नहीं हूँ, इसलिए मैं मसीह-विरोधियों से बेहतर हूँ और मसीह-विरोधियों से कम भ्रष्ट हूँ।” क्या ये शब्द सही हैं? क्या यह एक विकृत समझ है? (हाँ, यह विकृत समझ है।) मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग अपने भ्रष्ट स्वभाव में मसीह-विरोधियों के समान ही होते हैं, लेकिन उनका प्रकृतिसार भिन्न होता है। इसके बारे में सोचो—क्या यह कथन सही है? (हाँ।) फिर इसे समझाओ। (मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों में भी मसीह-विरोधियों की तरह ही भ्रष्ट स्वभाव होते हैं। उन दोनों में ही अहंकारी और दुष्ट स्वभाव होते हैं, और वे दोनों ही रुतबे के पीछे भागते हैं। हालाँकि, उनका मानवता सार भिन्न होता है। मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों में अंतरात्मा की कुछ समझ होती है, और वे अलग-अलग स्तर तक सत्य को स्वीकार सकते हैं। वे सत्य से विमुख नहीं होते और सत्य से नफरत नहीं करते। दूसरी ओर, मसीह-विरोधी सार वाले लोगों में दुर्भावनापूर्ण मानवता सार होता है। उनमें अंतरात्मा की कोई समझ नहीं होती, और वे सत्य से विमुख होते हैं और सत्य से नफरत करते हैं। वे पश्चात्ताप नहीं करेंगे।) उन सभी में भ्रष्ट स्वभाव होते हैं, तो परमेश्वर मसीह-विरोधी सार वाले लोगों को मसीह-विरोधी और अपना शत्रु क्यों बताता है? (यह मुख्य रूप से सत्य के प्रति उनके रवैये पर आधारित है। मसीह-विरोधी सत्य से विमुख होते हैं और सत्य से नफरत करते हैं, और सत्य से नफरत करना वास्तव में परमेश्वर से नफरत करना है।) और कुछ? (मसीह-विरोधियों का सार दानवों का होता है।) क्या दानवों का सार रखने वाले लोगों को बचाए जाने की कोई आशा है? (नहीं।) ये लोग सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते और बचाए नहीं जा सकते। यह देखते हुए कि दोनों प्रकार के लोगों के स्वभाव भ्रष्ट हैं, तो बचाए जा सकने वाले और बचाए नहीं जा सकने वाले लोगों के बीच क्या अंतर है? सिर्फ उनके भ्रष्ट स्वभाव के संदर्भ में, ये दोनों तरह के लोग एक जैसे हैं, तो ऐसा क्यों है कि मसीह-विरोधियों को नहीं बचाया जा सकता, जबकि मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले लेकिन मसीह-विरोधी सार नहीं रखने वाले लोगों के पास बचाए जाने को लेकर आशा की किरण है? (मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले लोग मसीह-विरोधियों की तरह नहीं होते, जो सत्य और सकारात्मक चीजों के प्रति काफी शत्रुता रखते हैं। भले ही वे विशेष रूप से सत्य से प्रेम नहीं करते, लेकिन वे सत्य से दूर नहीं भागते और इसे अलग-अलग स्तर तक स्वीकार सकते हैं, थोड़ा-थोड़ा करके बदल सकते हैं। इसके अलावा, उनकी मानवता में अंतरात्मा की कुछ समझ होती है, मसीह-विरोधियों के विपरीत जिनमें शर्म की कोई भावना नहीं होती।) बचाए जाने की आशा यहीं निहित है; यह अनिवार्य अंतर है। मसीह-विरोधियों के सार को देखा जाए तो इस प्रकार के व्यक्ति को छुटकारा मिलना नामुमकिन है और उसे बचाए जाने की कोई आशा नहीं है। भले ही तुम उसे बचाना चाहो, तुम नहीं बचा सकते; वह बदल नहीं सकता। वह शैतान के भ्रष्ट स्वभाव वाला साधारण प्रकार का व्यक्ति नहीं है, बल्कि दानवों और शैतान के जीवन सार वाला व्यक्ति है। इस प्रकार के व्यक्ति को बिल्कुल भी नहीं बचाया जा सकता। इसके विपरीत, भ्रष्ट स्वभाव वाले साधारण लोगों का सार क्या है? उनके पास केवल भ्रष्ट स्वभाव होते हैं; हालाँकि, उनके पास एक निश्चित मात्रा में अंतरात्मा और विवेक होता है, और वे कुछ सत्यों को स्वीकार सकते हैं। इसका मतलब है कि सत्य इन लोगों पर एक निश्चित प्रभाव डाल सकता है, जिससे उन्हें बचाए जाने की आशा मिलती है। यह इस प्रकार का व्यक्ति है जिसे परमेश्वर बचाता है। मसीह-विरोधियों को बिल्कुल भी नहीं बचाया जा सकता, लेकिन क्या मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले लोगों को बचाया जा सकता है? (हाँ।) अगर हम कहते हैं कि उन्हें बचाया जा सकता है, तो यह वस्तुगत नहीं है। हम केवल यह कह सकते हैं कि उन्हें बचाए जाने की आशा है—यह अपेक्षाकृत वस्तुगत है। अंततः, यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि उसे बचाया जा सकता है या नहीं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या वह वास्तव में सत्य स्वीकार सकता है, सत्य का अभ्यास कर सकता है और सत्य के प्रति समर्पित हो सकता है। इसलिए, केवल यह कहा जा सकता है कि इस प्रकार के व्यक्ति को बचाए जाने की आशा है। तो मसीह-विरोधियों को बचाए जाने की कोई आशा क्यों नहीं है? क्योंकि वे मसीह-विरोधी हैं; उनकी प्रकृति शैतान की है। वे सत्य के प्रति शत्रुता रखते हैं, परमेश्वर से नफरत करते हैं, और सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं। क्या परमेश्वर फिर भी उन्हें बचा सकता है? (नहीं।) परमेश्वर भ्रष्ट मनुष्यों को बचाता है, शैतान और दानवों को नहीं। परमेश्वर उन लोगों को बचाता है जो सत्य स्वीकारते हैं, न कि उन नीच लोगों को जो सत्य से नफरत करते हैं। क्या इससे यह स्पष्ट हो जाता है? (हाँ।) हम कुछ लोगों की विकृत समझ से बचने के लिए इस तरह से संगति करते हैं। मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के बीच अंतर करने के बाद, कुछ लोग सोचते हैं कि वे मसीह-विरोधी नहीं हैं और इसका मतलब है कि वे एक सुरक्षित क्षेत्र में हैं, उन्होंने वास्तव में अपने लिए सुरक्षित शरण ले ली है और निश्चित रूप से भविष्य में उन्हें निकाला, निष्कासित किया या हटाया नहीं जाएगा। क्या यह एक विकृत समझ है? बचाए जाने की आशा रखने का मतलब यह नहीं है कि किसी को बचा लिया जाएगा। इस आशा के लिए अभी भी लोगों को इसे ग्रहण करने की आवश्यकता है। सत्य के प्रति तुम्हारा रवैया मसीह-विरोधियों से भिन्न है। तुम सत्य से विमुख नहीं हो, या तुम्हारी मानवता मसीह-विरोधियों से थोड़ी बेहतर है; तुम्हारे पास अंतरात्मा की थोड़ी समझ है, तुम अपेक्षाकृत दयालु हो, दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचाते हो, जब तुम कुछ गलत करते हो तो पश्चात्ताप करना जानते हो, और खुद को बदल सकते हो। इन कुछ गुणों के होने मात्र का मतलब है कि तुम्हारे पास सत्य को स्वीकारने, सत्य का अभ्यास करने और बचाए जाने के लिए बुनियादी स्थितियाँ हैं। लेकिन मसीह-विरोधी न होने का मतलब यह नहीं है कि तुम बचा लिए जाओगे। तुम मसीह-विरोधी नहीं हो, लेकिन तुम अभी भी एक भ्रष्ट इंसान हो। क्या सभी भ्रष्ट इंसानों को बचाया जा सकता है? जरूरी नहीं। भले ही कोई मसीह-विरोधी या बुरा व्यक्ति न हो, जब तक वह सत्य का अनुसरण नहीं करता, तब तक उसे बचाया नहीं जा सकता। परमेश्वर द्वारा लोगों का उद्धार सत्य को स्वीकारने और उसका अनुसरण करने से प्राप्त होता है। लोगों के भ्रष्ट स्वभाव परमेश्वर के विरोधी हैं। जब तक किसी व्यक्ति में भ्रष्ट स्वभाव मौजूद हैं, तब तक वह परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह कर सकता है, परमेश्वर की अवहेलना कर सकता है, परमेश्वर को धोखा दे सकता है, इत्यादि। इसलिए, उन्हें परमेश्वर के वचनों के न्याय, ताड़ना, परीक्षण और शोधन को स्वीकारने की आवश्यकता है; उन्हें परमेश्वर के वचनों की आपूर्ति और मार्गदर्शन, परमेश्वर की काट-छाँट, अनुशासन और दंड इत्यादि की आवश्यकता है—परमेश्वर द्वारा किए जाने वाले किसी भी कार्य में कोई कमी नहीं हो सकती। इसलिए, बचाए जाने के लिए, एक बात तो यह है कि परमेश्वर के कार्य की आवश्यकता है, और इसके अतिरिक्त, लोगों में सहयोग करने का संकल्प होना चाहिए। उन्हें कठिनाई सहने और कीमत चुकाने में सक्षम होने की आवश्यकता है, सत्य को समझने के बाद सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने की आवश्यकता है, इत्यादि। अंत के दिनों में परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने और सत्य को समझने के आधार पर, देहधारी परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने का बेहद दुर्लभ आशीष प्राप्त करने का यही एकमात्र तरीका है। यह इतना सरल है। ठीक है, आओ इस विषय पर संगति यहीं समाप्त करें।

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