अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (20) खंड तीन

बारहवीं जिम्मेदारी के संदर्भ में नकली अगुआओं की अभिव्यक्तियों का गहन-विश्लेषण करना

I. नकली अगुआओं में कम काबिलियत होती है और वे गड़बड़ियों और बाधाओं की समस्याओं को पहचान नहीं पाते

अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बारहवीं जिम्मेदारी में रेखांकित किए गए इन कार्यों को करना चाहिए; हमें अब और ज्यादा विशिष्ट उदाहरणों पर संगति नहीं करनी चाहिए। आज की संगति का विषय नकली अगुआओं द्वारा ये कार्य किए जाने के समय उनकी विशिष्ट अभिव्यक्तियों को उजागर करना और यह पहचान करना है कि कौन-से व्यवहार नकली अगुआओं के सार को दर्शाते हैं और किस व्यक्ति को ऐसा निरूपित करने के लिए उपयोग में लाए जा सकते हैं। यही आज की संगति का मुख्य विषय है। सबसे पहले, इस कार्य में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए अपेक्षा है परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा डालने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत पहचान करना। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए तुरंत पहचान अपेक्षित मानक है। जब भी कुछ सामने आता है, जैसे ही किसी गड़बड़ी का हल्का सा भी संकेत मिलता है, जैसे कि बुरे लोगों के चालबाजियाँ शुरू करने के संकेत, या किसी के परेशानी पैदा करने के संकेत मिलते हैं, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इसे भाँप लेना चाहिए और सतर्क हो जाना चाहिए। यदि वे सुन्न और मंदबुद्धि हैं, तो यह परेशानी वाली बात होगी। खासकर उन स्थितियों में जहाँ बुरे लोग विघ्न डाल रहे हैं, जैसे ही यह समस्या उभरनी शुरू होती है और यह अस्पष्ट होता है कि इन लोगों का वास्तव में क्या करने का इरादा है या स्थिति कैसी बनेगी—अर्थात्, जब अगुआ और कार्यकर्ता अभी भी इस मामले की असलियत नहीं जान पाते हैं—तो उन्हें आँख मूँदकर कार्य नहीं करना चाहिए या इन लोगों को समय से पहले ही सचेत नहीं करना चाहिए ताकि गलत निर्णय से बचा जा सके। हालाँकि, इसका यह अर्थ नहीं है कि स्थिति पर ध्यान न दिया जाए और उससे अनजान रहा जाए। इसके बजाए, इसका अर्थ है कि इंतजार करो और देखो कि स्थिति कैसी बनती है और इन लोगों के इरादे, लक्ष्य, और मंशा क्या हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह कार्य करने की जरूरत है। जब स्थिति एक हद तक विकसित हो जाती है और ये लोग नकारात्मकता और भ्रांतियाँ फैलाने लगते हैं जिससे परमेश्वर के चुने हुए लोग बाधित होते हैं, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। उन्हें बेहिचक इन लोगों के बुरे कर्मों को उजागर करने, उनका गहन-विश्लेषण करने, और उन पर प्रतिबंध लगाने के लिए आगे आना चाहिए, जिससे दूसरे लोगों को सबक सीखने और बुरे लोगों को पहचानने और उनकी असलियत जानने में मदद मिल सके। गड़बड़ियाँ और बाधाएँ उत्पन्न करने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों को तुरंत और सटीकता से पहचानने की यह प्रक्रिया है—अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए यह कार्य करने के यही मायने हैं। इस कार्य का मुख्‍य लक्ष्य कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी करने और बाधा डालने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों को पहचानना, और फिर उनका तुरंत समाधान करना है। यही है जो अगुआ और कार्यकर्ता हासिल कर सकते हैं। तो, इस कार्य में नकली अगुआओं की क्या अभिव्यक्तियाँ हैं? हम नकली अगुआओं का किस प्रकार गहन-विश्लेषण कर सकते हैं और उन्हें कैसे पहचान सकते हैं? स्पष्ट रूप से, नकली अगुआ कलीसिया के कार्य में बुरे लोगों द्वारा उत्पन्न की जाने वाली बाधाओं को तुरंत और सटीकता से नहीं पहचान सकते हैं। नकली अगुआओं द्वारा कलीसिया के कार्य के निष्पादन में यह सबसे स्पष्ट मुद्दा है—उन्हें बुरे लोगों द्वारा कलीसिया के कार्य में उत्पन्न की गई बाधाओं के संबंध में कोई विवेक नहीं होता है। ऐसा कहने का क्या कारण है कि नकली अगुआ समस्याओं की पहचान नहीं कर सकते या समस्या के सार की असलियत नहीं जान सकते? कुछ लोगों के क्रियाकलाप स्पष्ट रूप से कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी और बाधाएँ पैदा करते हैं, लेकिन नकली अगुआ समस्याओं को पहचान या समझ नहीं सकते हैं; वे अंधे होते हैं। कुछ लोग कलीसिया में नकारात्मकता फैलाते हैं, दूसरे लोगों को गुमराह और बाधित करते हैं। दूसरे गुट बना लेते हैं, गुप्त रूप से संदिग्ध लेनदेन में संलिप्त होते हैं, कुछ लोगों के बारे में उनकी पीठ पीछे राय बनाते हैं। फिर भी कुछ लोग लापरवाही से एक दूसरे को बहकाते हैं और एक दूसरे के साथ छेड़खानी करते हैं। नकली अगुआ इन चीजों को न देखने का नाटक करता है; वह इन मुद्दों की गंभीरता और इस बात से पूरी तरह अनजान होता है कि अगर इन मुद्दों का समाधान नहीं हुआ तो कितने लोगों का सत्य का अनुसरण और कर्तव्य निर्वहन प्रभावित होगा, और साथ ही उनके क्या परिणाम होंगे, इसलिए वह उन्हें नजरंदाज कर देता है। जब कुछ लोग मुद्दों पर ध्यान देते हैं और उनके बारे में नकली अगुआ को रिपोर्ट करते हैं, तो शायद नकली अगुआ कहे, “वे सभी भाई-बहन हैं—कौन है जो कोई भ्रष्टाचार नहीं दिखाता? किसमें भावनाएँ और इच्छाएँ नहीं होतीं? दूसरों का हल्के में मूल्यांकन या निंदा न करो!” चाहे कलीसिया में कोई बात कितनी भी बेतुकी, दुष्ट या सत्य के विपरीत क्यों न हो, नकली अगुआ उसे देखते ही नहीं हैं। सभाओं के दौरान कुछ लोग हमेशा इस तरह की नकारात्मक बाते करते हैं जैसे कि, “वे कहते रहते हैं कि परमेश्वर का दिन निकट है—वह वास्तव में कब आएगा?” कुछ भाई-बहन अनजाने में इससे प्रभावित हो जाते हैं, लेकिन नकली अगुआ की क्या प्रतिक्रिया होती है? वे इसे सामान्य कमजोरी मानते हैं और यह देखने में विफल रहते हैं कि यह नकारात्मकता फैलाना है, दूसरों को गुमराह और बाधित करना है। कुछ भाई-बहन अपने कर्तव्य निर्वहन में स्‍पष्ट रूप से प्रभावित होते हैं। वे अब सुसमाचार का प्रचार नहीं करना चाहते हैं और सकारात्मक या सक्रिय रूप से सभाओं में शामिल होना बंद कर देते हैं। हर बार जब सभा होती है, तो उन्हें शामिल होने के लिए बुलाना पड़ता है। फिर भी, नकली अगुआ इसे समस्या के रूप में नहीं देखता है। वह इस बात पर ध्यान नहीं देता कि यह समस्या उत्पन्न होने पर कलीसिया में हरेक में क्या बदलाव होते हैं। वह बस यांत्रिक रूप से विनियम के तौर पर सभाएँ आयोजित करता है, इस बात से अनजान कि पर्दे के पीछे क्या हो रहा है, लोगों की दशाओं में क्या बदलाव आ रहे हैं, लोगों की क्या समस्याएँ हैं, उन्हें किसने उत्पन्न किया, मुख्य अपराधी कौन हैं, समस्याओं की उत्पत्ति किससे हुई, और किन मुद्दों को हल करने की आवश्यकता है—वह इनमें से कुछ भी नहीं समझ पाता। क्या ऐसा इसलिए है कि वह अंधा है और वह चीजों का अनुभव नहीं कर पाता है? (नहीं।) चूँकि वह अंधा नहीं है, तो फिर ऐसा क्यों है कि जब कलीसिया में इतनी गंभीर गड़बड़ियाँ, बाधाएँ और स्पष्ट भ्रांतियाँ दिखाई देती हैं, तो भी वह उन्हें देखने या पहचानने में विफल होता है? स्पष्ट रूप से, यह अगुआ अंधा है और इसमें आध्यात्मिक समझ की कमी है। कुछ लोगों का कहना है, “भले ही वह इन समस्याओं को पहचान नहीं पाता है, वह सभाओं के दौरान परमेश्वर के वचन पढ़कर लोगों को सुना सकता है। इस बात की परवाह किए बिना कि जो वह पढ़ रहा है वह लोगों को समझ आता है या नहीं या इससे कोई परिणाम मिलता है या नहीं, वह लगातार परमेश्वर के वचनों को पढ़ता रहता है। केवल इस कारण से, उसे अच्छा अगुआ माना जा सकता है।” वह केवल परमेश्वर के वचनों को पढ़ने पर ध्यान देता है—यदि इससे कोई परिणाम प्राप्त नहीं होते, तो क्या यह महज औपचारिकता नहीं है? यदि वह समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता, तो लोगों को सभाओं से क्या लाभ हो सकता है? तो क्या यह अगुआ एक नकली अगुआ है? (हाँ।) इस कार्य को करते समय नकली अगुआ की एक अभिव्यक्ति अंधापन है। वह अंधा है—इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि समस्या उसके सामने कितनी स्पष्ट है या उसके आसपास घटित हो रही हो, वह उसे देख या पहचान नहीं सकता। बाहरी तौर पर, ऐसा लग सकता है कि वह परमेश्वर के वचनों को औसत व्यक्ति से अधिक सँजोता है, लेकिन वह यह नहीं समझता कि परमेश्वर के वचन किस बारे में हैं, वह किन लोगों का उल्लेख करता है, या वह किन स्थितियों को संबोधित करता है—वह परमेश्वर के वचनों को वास्तविक जीवन से नहीं जोड़ सकता है। तो वह किस समझ की संगति करता है? क्या उसकी संगति सत्य के अनुरूप होती है? क्या वह वास्तविक समस्याओं का समाधान कर सकता है? (नहीं।) जब वह प्रचार करता है तो खोखले व्याख्यान देता है, जैसे कि उसे सत्य की बड़ी समझ हो, लेकिन वह कलीसिया में बुरे लोगों द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले स्पष्ट विघ्नों को पहचान नहीं सकता, इसके बजाय वह नाटक करता है जैसे कुछ हुआ ही न हो। क्या यह दर्शाता है कि वह सत्य समझता है और उसके पास विवेक है? क्या उसे परमेश्वर के वचनों की वास्तविक समझ है? (नहीं।) यदि वह सामान्य रूप से परमेश्वर के वचनों को पढ़ सकता है, तो वह समस्याओं को देखने और उनका समाधान करने के लिए उनका उपयोग क्यों नहीं कर सकता? ऐसा क्यों है कि जब वह परमेश्वर के वचनों को पढ़ता है, तो उसका मन कभी नहीं खुलता? परमेश्वर के वचनों को पढ़ते समय वे उसमें उत्सुकता क्यों नहीं दिखाते? इस मुद्दे की जड़ क्या है? वह अंधा क्यों है? उसके अंधेपन का क्या कारण है? (ऐसा इसलिए है क्योंकि उसमें परमेश्वर के वचनों को समझने की योग्यता नहीं है और उसकी काबिलियत बहुत खराब है।) सही कहा। ऐसा नहीं है कि वह आँखों से अंधा है, लेकिन उसका दिल अंधा है। अंधा दिल होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है बहुत खराब काबिलियत और परमेश्वर के वचनों को समझने की योग्यता की कमी। चाहे वह परमेश्वर के कितने भी वचन क्यों न पढ़ ले, वह इन्हें केवल सतही तौर पर समझता है। वह इन्हें विभिन्न लोगों, घटनाओं, चीजों और स्थितियों से सम्बद्ध नहीं कर सकता जो कलीसिया में दिखाई पड़ती हैं, न ही वह सत्य सिद्धांतों के अनुसार विभिन्न समस्याओं से पेश आ सकता है, उन्हें सँभाल और उनका समाधान कर सकता है। यह उसके अंधेपन का मूल है—उसमें खराब काबिलियत है और वह इस कार्य के लायक नहीं है। इसलिए, चाहे वह कितनी भी लगन से पढ़ाई करे और कठोर प्रशिक्षण ले, और अपनी क्षमता की कमी को पूरा करने के लिए वह कितनी भी मेहनत से काम क्यों न करे, क्या वह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों को पूरा कर सकता है? वह पूरा नहीं कर सकता। ये लोग बहुत दयनीय हैं। चाहे वे अपने आपको शब्दों और धर्म-सिद्धांतों से कितना भी सज्जित कर लें, वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं कर सकते या इस कार्य को अंजाम नहीं दे सकते हैं।

अभी-अभी हमने इन नकली अगुआओं की अभिव्यक्ति के बारे में संगति की, जो यह है कि वे न तो यह देख सकते हैं कि बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के कार्यकलापों से कलीसिया में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं, न ही वे बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के सार की असलियत जान पाते हैं। ऐसे मामलों का सामना करते समय जहाँ बुरे लोग विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करते हैं, कभी-कभी उन्हें मामूली संकेत मिल सकता है, या, चाहे फिर यह उनके अनुभव, एहसास या सहज बोध से हो, उन्हें बस समझ आ जाता है कि कुछ बिल्कुल ठीक नहीं है, कि उस व्यक्ति के भाव, उसकी आँखों की अभिव्यंजना, और उसके शब्दों में कुछ असामान्य बात है। उन्हें थोड़ा एहसास हो सकता है, लेकिन वे बहुत सारी चीजों की असलियत नहीं जान पाते हैं, और वे अधिकांश समस्याओं को पहचान पाने में विफल रहते हैं। किस कारण से वे समस्याओं के सार की असलियत नहीं जान पाते हैं? इसमें एक दूसरा मुद्दा शामिल है। वे इतने मेहनती हैं, कि अपने कमरों में रहकर सारा दिन धर्मोपदेश लिखते हैं, अपनी आध्यात्मिक भक्ति के बारे में नोट बनाते हैं, परमेश्वर के वचनों की अपनी समझ और अनुभवों को लिखते हैं, भजन सीखते हैं, प्रतिदिन कितनी बार प्रार्थना करनी है, परमेश्वर के कितने वचनों को पढ़ना है, और कितने धर्मोपदेश सुनने हैं, और कितने समय में अनुभवजन्य गवाही लेख लिखना है उसके लक्ष्य तय करते हैं—वे इन सभी कार्यों को पूरा करते हैं, तो ऐसा क्यों है कि चीजों के घटित होने पर वे अभी भी उनकी असलियत नहीं जान पाते हैं? वे सत्य नहीं समझते। वे केवल वचनों और धर्म-सिद्धांतों को गंभीरता से बोल सकते हैं और वे वास्तविक समस्याओं को हल नहीं कर सकते हैं। कुछ लोग हमेशा दूसरे लोगों को गुमराह करने के लिए वचन और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, और नकली अगुआ इसकी असलियत नहीं जान पाते हैं। हालाँकि कभी-कभी उन्हें समझ आ जाता है कि कुछ गलत है, कोई समस्या हो सकती है, यह देखकर कि वे लोग बुरे दिखाई नहीं पड़ते हैं, वे फिर भी भ्रमित तरीके से मुद्दे को जाने देते हैं। वे ऐसी समस्याओं का भेद पहचानने में सत्य सिद्धांत खोजने में समर्थ नहीं होते और भले ही उन्होंने ऐसे लोगों की दशाओं और सार को उजागर करने वाले परमेश्वर के वचनों को पढ़ा हो, उन्हें यह जानकारी नहीं होती कि उन्हें इन परिस्थितियों से कैसे जोड़ा जाए। उनके विचार अस्पष्ट हैं और वे इन चीजों की असलियत नहीं जान पाते हैं। जब वे प्रयास करना चाहते हैं, तो उन्हें पता नहीं होता कि इसे स्पष्ट कैसे किया जाए। वे समस्या के सार को समझाए बिना और इस बारे में स्पष्ट रूप से बताए बिना लंबे समय तक बातचीत करते हैं कि ऐसे लोगों की समग्र अभिव्यक्तियाँ कैसी है, उनकी मानवता, उनका लक्ष्य, कर्तव्य निर्वहन और परमेश्वर के लिए खुद को खपाने का संकल्प कैसा है या सत्य के प्रति उनका रवैया कैसा है और क्या वे ऐसे लोग हैं जो सत्य को स्वीकार करते हैं। ये नकली अगुआ इन मामलों की असलियत नहीं जान सकते या इन मामलों को स्पष्ट रूप से समझा नहीं सकते हैं। भले ही उन्हें पता चल जाए कि समस्या है, वे अपनी बात स्पष्ट किए बिना, बड़बड़ाते हैं, और बहुत कुछ बोलते हैं। उनके श्रोताओं को भेद पहचानने, उनकी बातों से प्रमुख मुद्दों को निकालने, और उनके शब्दों का विश्लेषण करने में समर्थ होना चाहिए ताकि वे उनके द्वारा पूछे जाने वाले सवालों को जान सकें, यह जान सकें कि जिस व्यक्ति का वे वर्णन कर रहे हैं उसकी समग्र दशा कैसी है और अंततः उस व्यक्ति के सार का निरूपण कर सकें—कि वह व्यक्ति बुरा है या भला, कि वह सत्य की तलाश करने वाला कोई व्यक्ति है या सिर्फ एक मजदूर है। जब तुम किसी नकली अगुआ को किसी मुद्दे के बारे में बताने या कोई सवाल पूछने के लिए कहते हो, तो वह कभी भी मुद्दे का मूल और सार या उसके मूल बिंदु को स्पष्ट रूप से नहीं बता पाता है। संक्षेप में, नकली अगुआ का उन समस्याओं के प्रति कोई विशेष रवैया नहीं होता है जिनकी वह असलियत नहीं जान पाता है, और जिन मामलों में उसे कुछ संकेत मिल सकते हैं, वह अभी भी इन समस्याओं के सार की असलियत नहीं जान पाता है। यहाँ तक कि जब कुछ लोग नकारात्मकता जाहिर करते हैं और धारणाएँ फैलाते हैं, जिसका कलीसिया के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, वह इसकी भी असलियत नहीं जान पाता है। वह किसी समस्या के सतही स्तर या उसके शुरुआती चरण से उसके सार की असलियत नहीं जान पाता है या उसका निरूपण नहीं कर पाता है। बेशक, समस्या के सार की असलियत जानना कोई आसान काम नहीं है। कलीसिया के कार्य में सबसे महत्वपूर्ण चीज परमेश्वर के वचनों के आधार पर विभिन्न लोगों के सार की असलियत जानना है। जो लोग सत्य समझते हैं वे इसे पा सकते हैं, लेकिन नकली अगुआ और नकली कार्यकर्ता इसे नहीं पा सकते। जब वे मसीह-विरोधियों को कलीसिया के कार्य में विघ्न डालते हुए देखते हैं, तो वे समस्या के सार की असलियत नहीं जान पाते हैं और मसीह-विरोधियों का यह कहते हुए बचाव भी करते हैं, “वे बस कुछ भ्रष्ट स्वभावों का खुलासा कर रहे हैं, और थोड़े अहंकारी, स्वेच्छाचारी और मनमाने हैं। वे अभी भी अपना कर्तव्य निभाने के दौरान कठिनाई झेल सकते हैं। इसलिए हमें उनकी आलोचना या निन्दा नहीं करनी चाहिए; हमें इस मामले को बड़ा मुद्दा नहीं बनाना चाहिए।” दूसरे लोग पूछते हैं, “यदि वे अपना कर्तव्य निभाने के दौरान कठिनाई झेल सकते हैं, तो क्या वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं? क्या उन्होंने पर्दे के पीछे लोगों को उकसाया, गुमराह किया, या फुसलाया है? क्या उन्होंने अपनी बड़ाई और अपने लिए गवाही दी है?” नकली अगुआ इन मामलों की असलियत नहीं जान पाते हैं। ऐसे भी कुछ लोग हैं, जो परमेश्वर की गवाही देने के नाम पर, जानबूझकर परमेश्वर को बदनाम करते हैं और ईशनिंदा करते हैं और परमेश्वर के बारे में अपनी धारणाओं का गहन-विश्लेषण करते हुए और अपनी धारणाओं को जानने की बात करते हुए जानबूझकर आधारहीन अफवाहें फैलाते हैं। उन्हें ऐसा करते हुए सुनने के बाद, नकली अगुआओं को लग सकता है कि उन्होंने जो कहा वह थोड़ा अलग है, लेकिन वे मुद्दे की गंभीरता की असलियत नहीं जान पाते हैं, और न ही वे इन शब्दों के नकारात्मक प्रभाव और गंभीर परिणामों को देख पाते हैं। अतः, ठीक नकली अगुआओं की नाक के तले होने वाली विभिन्न विघ्न-बाधाओं पर या तो वे बिल्कुल देख ही नहीं पाते, या अगर देख भी लिया तो उन्हें यह जानकारी नहीं होती कि उनका वर्णन कैसे करना है या परमेश्वर के वचनों और इन स्थितियों के बीच संबंध कैसे जोड़ना है। ये बेहद स्पष्ट मामले उनके लिए गड़बड़झाला बन जाते हैं। नकली अगुआ मूर्ख होते हैं। कलीसिया में, वे यह भेद नहीं पहचान पाते कि कौन लोग सत्य की तलाश कर रहे हैं, और कौन लोग सच्चे विश्वासी हैं जो सत्य को स्वीकार कर सकते हैं। वे यह भेद नहीं पहचान पाते कि कौन-से लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं लेकिन अभी भी श्रम करने में समर्थ हैं, और अधिकांशतः मोल चुकाने और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने के इच्छुक हैं, और कभी-कभी नकारात्मक शब्द बोलने के बावजूद अपेक्षाकृत आज्ञाकारी और समर्पित हैं। वे यह भेद भी नहीं पहचान पाते हैं कि कौन-से लोग पूरी तरह से नकारात्मक भूमिकाएँ निभाते हैं, नकारात्मकता फैलाते हैं और दूसरों का आकलन करते हैं, और हमेशा परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं और परमेश्वर के घर में कार्य की सभी मदों से संबंधित नियमों और अपेक्षाओं के बारे में धारणाएँ रखते हैं, और इन चीजों को स्वीकार करने की बजाय प्रतिरोध का रवैया रखते हैं, और इन चीजों के प्रति विशेष तौर पर असम्मानजनक होते हैं, इस हद तक कि वे उनका आकलन भी करने लगते हैं। संक्षेप में, नकली अगुआ किसी भी प्रकार के लोगों की असलियत नहीं जान पाते हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि कलीसिया में कुछ लोग ऐसे हैं जो अक्सर गलत धारणाएँ फैलाते हैं, नकारात्मकता फैलाते हैं और सभाओं के दौरान परमेश्वर के वचन भी नहीं पढ़ते हैं। वे हमेशा गुट बनाकर ईर्ष्या और कलह में लिप्त रहते हैं। कुछ लोग हमेशा अगुआ बनना चाहते हैं, हमेशा कलीसिया पर पलना चाहते हैं और हमेशा परमेश्वर के घर की संपत्ति हड़पना चाहते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बाहरी तौर पर कुछ अच्छे व्यवहार के नजर आते हैं लेकिन अपने कर्तव्यों में कोई सकारात्मक भूमिका नहीं निभाते हैं। नकली अगुआ इन नकारात्मक चरित्रों की असलियत नहीं जान पाते हैं और उनका वर्गीकरण नहीं कर पाते हैं। वे यह असलियत भी नहीं जान पाते हैं कि ये लोग कौन-सा मार्ग ले रहे हैं, उनका सार क्या है, और वे सत्य को स्वीकार करने वाले लोग हैं या नहीं। क्या नकली अगुआओं की काबिलियत के साथ यह एक समस्या नहीं है? इन नकली अगुआओं की काबिलियत अत्यधिक खराब होती है। वे जो कुछ भी करते हैं उसे पूरी तरह गड़बड़ कर देते हैं, और जिस किसी काम को वे अपने हाथ में लेते हैं वह पूरी तरह से अव्यवस्थित हो जाता है।

कुछ लोग परमेश्वर के घर के लिए चीजें खरीदते समय बिना सिद्धांतों के चढ़ावे खर्च करते हैं और बिना अनुमति प्राप्त किए मनमाने ढंग से चीजें खरीदते हैं। नकली अगुआ यह देखकर यहाँ तक कहते हैं, “हालाँकि उन्होंने थोड़ा ज्यादा पैसा खर्च किया, लेकिन उनके इरादे अच्छे थे। परमेश्वर के घर के लिए चीजें खरीदते समय, हमें सबसे अच्छी चीजें खरीदनी चाहिए; यह पैसे की बर्बादी नहीं है। क्या चढ़ावे का इस तरह से इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए?” क्या उनके शब्दों में सिद्धांत हैं? (नहीं।) तो, ये किस प्रकार के शब्द हैं? क्या वे भ्रमित नहीं हैं? सिद्धांतहीन शब्द भ्रमित शब्द होते हैं, और आधारहीन शब्द भी भ्रमित शब्द होते हैं। कुछ लोग कलीसियाई जीवन के दौरान अक्सर शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं; वे विशेष रूप से वाक्पटु होते हैं, और संरचित तरीके से बात करते हैं जो काफी सुव्यवस्थित लगता है, और उनके पास बोलने का उत्कृष्ट कौशल होता है। ऐसे लोगों के बारे में नकली अगुआ क्या कहता है? “हमारा कलीसियाई जीवन पूरी तरह से फलाँ-फलाँ पर निर्भर करता है। वे सबसे ज्यादा स्पष्ट वक्ता हैं और उन्हें परमेश्वर के वचनों की सबसे ज्यादा समझ है। उनके बिना, हमारा कलीसियाई जीवन अविश्वसनीय रूप से रूखा और अरुचिकर हो जाएगा।” उन्हें तो पता ही नहीं होता कि ये लोग केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत बोल रहे हैं। चाहे कोई व्यक्ति उन्हें कितना भी सुन ले, वह कोई शिक्षा नहीं पाएगा, सत्य नहीं समझेगा, या यह नहीं जान पाएगा कि अपनी दशा को समझने और अपनी समस्याओं को हल करने के लिए सत्य को स्वयं से कैसे जोड़ा जाए। नकली अगुआओं की चापलूसी और उकसावे के तहत शब्द और धर्म-सिद्धांत बघारने वाले लोग, जो सुर्खियों में रहना पसंद करते हैं, और यहाँ तक कि जो लोग अक्सर अपने भाषणों में विषय से भटक जाते हैं, और प्रत्येक सभा में अनावश्यक, निरर्थक और व्यापक विषयों पर बड़बड़ाते रहते हैं, उन सभी को बोलने का अवसर दिया जाता है। नकली अगुआ उनका भेद पहचानने में असमर्थ होते हैं और उन्हें प्रतिभावान लोग भी मानते हैं, और यह कहते हुए उनकी चापलूसी करते हैं, “तुम लोग इतना अच्छा बोलते हो; तुम अनुभवजन्य गवाही लेख क्यों नहीं लिखते हो? कितनी शर्म की बात है!” कलीसिया में, विश्वविद्यालय के उन छात्रों, प्रोफेसरों और बुद्धिजीवियों को नकली अगुआओं द्वारा खजाना माना जाता है। वे कहते हैं, “ये बुद्धिजीवी और प्रोफेसर प्रतिभावान व्यक्ति हैं। उनका व्यापक अनुभव है और समाज में उनका नाम है। अगर वे कलीसिया में अगुआ और कार्यकर्ता बन जाते हैं, तो और ज्यादा कार्य किया जा सकता है, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को और ज्यादा लाभ और ज्यादा फायदा मिल सकता है। भविष्य में, कलीसिया का कार्य पूरी तरह से उन पर निर्भर करेगा। हमारी अगुआई कर रहे इन बुद्धिजीवियों के साथ, परमेश्वर में हमारी आस्था निश्चित रूप से आशीष लाएगी।” अतः, जिन कलीसियाओं में नकली अगुआ उपस्थित हैं, वहाँ वे लोग जिनका समाज में रुतबा है, जो ज्ञानी हैं, जो सुवक्ता हैं, जो शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के बारे में खोखली बातें करते हैं, जिनकी कुछ प्रतिष्ठा है, इत्यादि—ये सभी लोग जिनके पास कुछ भी सत्य वास्तविकता नहीं है—कलीसिया में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हो जाते हैं और नकली अगुआओं द्वारा उन्हें कलीसिया की मुख्य ताकतों और यहाँ तक कि तथाकथित स्तंभों के रूप में माना जाता है। जब कलीसिया में कुछ होता है, तो नकली अगुआ कहते हैं, “जाओ और फलाँ-फलाँ से पूछो; वह अमुक कंपनी का सीईओ था,” “जाओ और फलाँ-फलाँ से पूछो; वह अमुक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थी,” या “जाओ और फलाँ-फलाँ से पूछो; वह एक लॉ फर्म में श्रेष्ठ वकील था।” नकली अगुआ इन लोगों को कलीसिया के स्तंभों और मुख्‍य ताकतों के रूप में मानते हैं। क्या ऐसी परिस्थितियों में कलीसिया का जीवन अच्छा हो सकता है? (नहीं।) तो नतीजा क्या है? ये तथाकथित मुख्य ताकतें और स्तंभ गुप्त रूप से या खुलकर भी रुतबे की होड़ में रहते हैं और गुट बना लेते हैं, और अक्सर धारणाएँ और आधारहीन अफवाहें फैलाते हैं। कलीसिया में जो भाई-बहन सच्चे विश्वासी हैं, सत्य से प्रेम करते हैं, सत्य को स्वीकार कर सकते हैं, और जिनमें सत्य का शुद्ध बोध है उन्हें अक्सर उनके द्वारा अलग-थलग कर दिया जाता है और उनका दमन किया जाता है। ये तथाकथित प्रतिष्ठित सामाजिक हस्तियाँ, चाहे अपने कर्तव्यों का पालन करते समय या कोई भी कार्य करते समय, कोई निष्ठा नहीं रखते हैं और कभी भी सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते हैं—वे पूरी तरह से अविश्वासी समाज के तरीकों का पालन करते हैं। अतः ऐसी कलीसिया में, जो लोग सचमुच सत्य का अनुसरण करते हैं, जिनके पास शुद्ध समझ है और जिनमें थोड़ी मानवता और न्याय की भावना है, उनके पास बोलने का कोई स्थान नहीं होता, बोलने का कोई अधिकार नहीं होता, और निश्चित रूप से निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं होता है। कलीसिया में चाहे जो भी हो, तथाकथित प्रमुख सदस्यों का यह समूह ही सदैव अंतिम निर्णयकर्ता होता है। नकली अगुआ इन लोगों को आदर्श मानते हैं और इन पर आँख मूँद कर विश्वास करते हैं, इसलिए जब भी कुछ होता है तो समाधान के लिए वे आखिरकार उनके भरोसे रहते हैं। अगर ये लोग सत्य का अनुसरण करते होते और सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करते होते, तो यह अच्छी बात होती। लेकिन, इनमें से अधिकांश लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं। उनके पास कुछ ज्ञान और शिक्षा होती है, उनका सामाजिक रुतबा होता है, और इन सबसे बढ़कर, उनमें धोखेबाज और कपटी इंसानियत होती है, और वे वाक्पटु होते हैं तथा दूसरों को गुमराह करने में माहिर होते हैं। मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार सटीक रूप से यही है। नकली अगुआओं के इन लोगों पर भरोसा करने का क्या परिणाम होता है? वे कलीसिया के कार्य को और कलीसिया के जीवन की व्यवस्था को पूरी तरह बिगाड़ देते हैं, और वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को पूरी तरह बर्बाद कर देते हैं, जिसकी वजह से कलीसिया अपनी गवाही पूरी तरह से खो देती है। कुछ नकली अगुआ कलीसिया में एक प्रभावशाली और ताकतवर व्यक्ति रखने की उम्मीद करते हैं जो राजनीति और वर्तमान घटनाओं को समझता हो, और वे सोचते हैं, “यदि ऐसा कोई व्यक्ति कलीसिया के स्तर का विस्तार कर सके, इसके प्रभाव को बढ़ा सके, और इसकी प्रतिष्ठा को बढ़ा सके, तो सुसमाचार फैलाने के कार्य आशाजनक होगा। वह सचमुच जश्न का कारण होगा!” नकली अगुआओं द्वारा नियंत्रित कलीसियाओं में, कलीसियाई जीवन के दौरान कुछ लोग राजनीति, वर्तमान घटनाओं, अंतरराष्ट्रीय हालात, और घरेलू हालात के बारे में विस्तार से बात करते हैं; वे उच्च-स्तर की राजनीतिक हस्तियों के निजी जीवन पर चर्चा करते हैं और इन राजनीतिक हस्तियों की साजिशों और खुल्लमखुल्ला षड्यंत्रों का स्पष्ट और तार्किक तरीके से विश्लेषण भी करते हैं। नकली अगुआ ईर्ष्या से लार टपकाते कहते हैं, “आखिरकार, हमारी कलीसिया में दिखावे को बनाए रखने में हमारी मदद करने के लिए एक प्रभावशाली और ताकतवर व्यक्ति है! मैं हमेशा निराश, हताश महसूस करता था, और लगता था कि मैं अपना सिर ऊँचा नहीं रख सकता, क्योंकि हमारी कलीसिया में ऐसे प्रभावशाली और ताकतवर व्यक्ति की कमी थी। लेकिन अब हमारी कलीसिया में ऐसा व्यक्ति है। इसलिए, हमें इस व्यक्ति को वह करने देना और बोलने देना चाहिए जो भी वह चाहता है, और उसे आजादी देनी चाहिए। क्या परमेश्वर का घर आजादी और मानव अधिकारों का अभ्यास नहीं करता है? क्या राज्य का युग मानव अधिकारों पर बल नहीं देता है?” नकली अगुआ राजनीति के बारे में बात करना और प्रसिद्ध लोगों पर टिप्पणियाँ करना पसंद करने वाले, अक्सर लोगों के बीच बड़े-बड़े और खोखले विचारों के बारे में बोलने वाले लोगों को अद्भुत खजाने के रूप में मानते हैं और उन्हें कलीसिया के स्तंभों और मुख्‍य आधार के रूप में विकसित करना चाहते हैं। इसलिए, वे अक्सर उन्हें प्रोत्साहित और उनकी प्रशंसा करते हैं, इस डर से कि अगर वे नकारात्मक हो गए तो उससे कलीसिया का कार्य प्रभावित होगा। संक्षेप में, ये नकली अगुआ सुन्न और अंधे हैं। वे कलीसिया के कार्य में गड़बड़ करने और बाधा डालने वाले विभिन्न लोगों को तुरंत नहीं पहचान पाते हैं। अगर वे उन्हें पहचान भी लेते हैं, तो वे बुरे लोगों के सार की असलियत नहीं जान पाते हैं। वे मसीह-विरोधियों की श्रेणी में आने वाले स्पष्ट रूप से बुरे लोगों की असलियत भी नहीं जान पाते हैं, जैसे कि वे लोग जो गुट बना लेते हैं और स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लेते हैं। जब वे मसीह-विरोधियों को गुट बनाते, अपनी चीजें दिखाते, तथा अपनी अपार शक्ति के साथ अपनी मर्जी से कार्य करते देखते हैं, तो नकली अगुआ उनका मूल्यांकन कैसे करते हैं? “यह व्यक्ति असाधारण है, वह वास्तव में उल्लेखनीय है! मैंने पहले इस प्रतिभा पर ध्यान नहीं दिया था; वह मुझसे बहुत बेहतर है, उसके सामने तो मैं कुछ नहीं हूँ। उसकी क्षमताओं को तो देखो—वह जिम्मेदारियाँ उठाने और बातों को भुला देने में सक्षम है, शिष्टता से बात करता है और अपनी बात पर कायम रहता है। दूसरी ओर, मैं किसी काम का नहीं हूँ; मैं एक डरपोक छोटी लड़की की तरह हूँ।” वह मसीह-विरोधियों की बहुत प्रशंसा करता है, उनके सामने झुक जाता है, और स्वेच्छा से उनका अनुयायी बन जाता है। नकली अगुआओं की इस अभिव्यक्ति की एक विशेषता अंधापन है, और दूसरी सुन्नता है। कुल मिलाकर नकली अगुआओं की इस समस्या का सार खराब काबिलियत है।

लोगों के पास आँखें हैं ताकि वे चीजें देख सकें। कोई चीज देखने के बाद व्यक्ति का दिमाग प्रतिक्रिया देगा और निर्णय लेगा और निर्णय लेने के बाद वह व्यक्ति नजरिया बना लेगा और अभ्यास का मार्ग प्राप्त करेगा। यह साबित करता है कि वह अंधा नहीं है—चाहे वह कुछ भी देखे, उसकी प्रतिक्रिया सामान्य होती है और उसे पता है कि इसका सामना कैसे करना है और इसे कैसे सँभालना है। यह सामान्य सोच वाला व्यक्ति है। लोग जो कुछ देखते हैं उसके लिए प्रतिक्रिया देने की उनकी एक प्रक्रिया होती है; वे इस पर चिंतन-मनन करेंगे और ज्यादा या थोड़ा बहुत विचार करेंगे। जैसे-जैसे उनके विचार खुलते हैं, उस चीज की एक तस्वीर धीरे-धीरे उनके मन में बनने लगती है, और वे अपना खुद का नजरिया, रवैया और दृष्टिकोण विकसित कर लेते हैं। तो, इन चीजों को उत्पन्न करने की पूर्व-शर्त क्या है? व्यक्ति की आँखें चीजों को देखने, फिर एकत्र जानकारी को विचार करने के लिए उसके दिमाग और मन को स्थानांतरित करने में सक्षम होनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति अपनी आँखों से चीजों को देख सकता है, तो वह अंधा नहीं है, और फिर वह विचार और चिंतन-मनन कर सकता है, जागरूकता, रवैया और नजरिया बना सकता है, और अंततः सही निष्कर्ष निकाल सकता है। बेशक, इन निष्कर्षों पर पहुँचने में कुछ समय लगता है। इन निष्कर्षों पर पहुँचने से पहले जागरूकता, रवैये और नजरिये रखने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि व्यक्ति का मन सक्रिय है, सुन्न नहीं है, जो साबित करता है कि व्यक्ति जिंदा है, मरा नहीं है। नकली अगुआओं में खराब काबिलियत होती है। यह किन तरीकों से खराब है? नकली अगुआओं में इन दोनों गुणों की कमी होती है। उनकी आँखें खुली होती हैं लेकिन वे चीजों को घटित होते या खुलते हुए नहीं देख सकते हैं जो‍ कि अंधापन है। इसके अलावा, जब वे चीजों को देखते हैं, तो उनका दिमाग कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है, वे कोई नजरिया या विचार नहीं बना पाते हैं, और उनके पास राय बनाने और उससे निष्कर्ष निकालने के साधन या सही तरीके नहीं होते हैं। यह आत्मा की सुन्नता है। आत्मा से सुन्न लोग किसी भी चीज का भेद नहीं पहचान पाते हैं, उनके पास सही मूल्यांकन या सटीक निर्णय नहीं होते हैं, और आखिरकार, वे सही निष्कर्ष नहीं निकाल पाते हैं, और उन्हें पता नहीं होता कि उनके हाथ में जो मामले हैं उनके प्रति कैसा परिप्रेक्ष्य रखना है, उन्हें सँभालना कैसे है, या उनका समाधान कैसे करना है। यह सुन्न और मूर्ख होना है। जब कोई व्यक्ति अपनी आत्मा में इस हद तक सुन्न और मूर्ख हो जाता है कि कुछ घटित होने पर भी वह कोई प्रतिक्रिया नहीं करता, तो वह मृत अवस्था है—यह मामले का बिल्कुल सही तरीके से वर्णन करना है। अभी के लिए हम इस बात को एक तरफ रख देते हैं कि नकली अगुआ वास्तव में मर चुके हैं या नहीं, और बस इतना कहें कि उनमें कम काबिलियत है। आखिर यह कितनी कम है? भले ही कितनी भी महत्वपूर्ण घटना क्यों न हुई हो, वे इसे नहीं देख पाते हैं, और अगर वे इसे देख भी लेते हैं, तो वे इसकी असलियत नहीं जान पाते हैं। उदाहरण के लिए, भले ही नकली अगुआ कितनी भी देर तक काम क्यों न कर लें, वे इस संबंध में कोई निष्कर्ष नहीं निकाल पाते हैं कि मामले का सार क्या है, इसे वर्गीकृत कैसे करना है, इसे निरूपित कैसे करना है या इसके निरूपण का आधार क्या है; उन्हें पता नहीं होता कि इन चीजों का मूल्यांकन कैसे करना है, और उनका मूल्यांकन करने के लिए उनके कोई मानक या सिद्धांत नहीं होते हैं। वे भ्रमित लोग हैं जिनकी आध्यात्मिक समझ कम होती है। पहले काम में नकली अगुआओं की यह प्राथमिक अभिव्यक्ति है। वे अंधे, मूर्ख, नासमझ और सुन्न हैं, फिर भी वे अगुआ बनना चाहते हैं। क्या इससे चीजों में विलंब नहीं हो रहा है? क्या यह बेहद परेशानी वाली बात नहीं है? यदि किसी ने पहले कभी अगुआ के रूप में सेवा नहीं की है, और यदि वह बस पहली मर्तबा किसी चीज का सामना कर रहा है, और इस मामले का परमेश्वर के वचनों में उल्लेख नहीं है और लोगों ने भी इसे नहीं सुना है—इसका मतलब है, अगर उसे इस मामले का कोई अनुभव या ज्ञान नहीं है—तो ऐसी परिस्थितियों में उस व्यक्ति को सही अंतर्दृष्टि, रवैया और नजरिया विकसित करने में समय लगेगा। लेकिन नकली अगुआओं को सुन्न और अंधा क्यों कहा जाता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि मैंने अनेक वचन बोले हैं, लेकिन भले ही मैं चीजों को कितना ही उजागर और उनका कितना ही गहन-विश्लेषण क्यों न कर लूँ, या कितने भी उदाहरण क्यों न दे लूँ, नकली अगुआओं को मेरे वचन सुनने के बाद मामलों के बारे में केवल जानकारी मिल पाती है, लेकिन उनसे वे सत्य सिद्धांत नहीं समझ पाते। इसके अलावा, मैं जितना अधिक बोलता हूँ, वे उतना ही भ्रमित हो जाते हैं। उनका कहना है, “इतने ज्यादा मामलों, इतने ज्यादा वचनों, इतनी ज्यादा कहानियों को कौन याद रख सकता है और वास्तविक जीवन के साथ उनका संबंध कौन जोड़ सकता है? इतना ज्यादा मत कहो, मुझे इतना ज्यादा आत्मसात करने और इसे समझने में परेशानी हो रही है। मुझे बस इतना बताओ कि इस व्यक्ति को कैसे सँभालना है : उन्हें निष्कासित कर दिया जाना चाहिए या रखना चाहिए?” क्या यह सुन्नता नहीं है? यह अत्यधिक सुन्नता है! वास्तव में, यह कहना कि वे सुन्न हैं उन्हें कुछ छूट देता है, चूँकि यह व्यक्ति युवा, या शायद अशिक्षित हो सकता है, या हो सकता है कि वह उम्रदराज और थोड़ा भ्रमित भी हो—ऐसे कहने से उसका स्वाभिमान बच जाता है। लेकिन वास्तव में, यह खराब काबिलियत और सत्य को समझने की क्षमता की कमी है। इस स्पष्टीकरण से यह बात स्पष्ट हो जाती है।

यदि कलीसिया में गंभीर विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न होती हैं और नकली अगुआ इन समस्याओं के सार की असलियत नहीं जान पाते हैं, तो क्या वे अगुआई के कार्य के योग्य हैं? क्या उनकी अगुआई में भाई-बहनों का बचाव हो सकता है? क्या कलीसिया का कार्य, वह परिवेश जिसमें भाई-बहन अपना कर्तव्य निभाते हैं, कलीसियाई जीवन की सामान्य व्यवस्था को बचाया और बनाए रखा जा सकता है? ये सबसे बुनियादी चीजें हैं जिन्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं को हासिल करना चाहिए। क्या नकली अगुआ इन चीजों को हासिल कर सकता है? नहीं, वह हासिल नहीं कर सकता। वह उन लोगों, घटनाओं और चीजों को पहचान भी नहीं पाता या उनकी असलियत भी नहीं जान पाता जो विघ्न-बाधाएँ पैदा करते हैं, तो वह अपने कार्य के अगले चरण की ओर आगे कैसे बढ़ सकता है? वह सबसे बुनियादी चीजों का भेद भी नहीं जान पाता है, जैसे कि भला इंसान कौन होता है, बुरा आदमी कौन होता है, धोखेबाज कौन होता है, या पाखंडी कौन होता है—तो वह कलीसिया के कार्य को कैसे सँभाल सकता है? वह ऐसा करने में असमर्थ है। ऐसा नहीं है कि वह जानबूझकर वास्तविक कार्य नहीं करता है, या वह आलसी है और रुतबे के फायदों में लिप्त रहता है; बस इतना है कि उसकी खराब काबिलियत है और वह अपना कार्य करने में असमर्थ है। यह समस्या का सार है। बेहद खराब काबिलियत वाले लोग केवल शब्दों और धर्म-सिद्धांतों की बात कर सकते हैं, और विनियमों का पालन कर सकते हैं; सभाओं के दौरान, वे केवल दूसरों को बहला फुसलाकर और प्रोत्साहित करके ऐसी बातें कह सकते हैं, “परमेश्वर में अच्छी तरह से विश्वास रखो! तुम ऐसे समय में शारीरिक सुखों में कैसे लिप्त हो सकते हो? तुम अभी भी धन और सांसारिक चीजों की लालसा कैसे कर सकते हो? परमेश्वर को कितना दुःख हुआ होगा!” वे केवल इस तरह के धर्मोपदेश दे सकते हैं। जब विघ्न, बाधाओं, और नकारात्मकता फैलाने जैसे विभिन्न बुरे कार्य होते हैं, तो वे उन्हें देख या पहचान नहीं पाते हैं। भाई-बहन कलीसिया का सामान्य जीवन जीना चाहते हैं लेकिन वे ऐसा करने में असमर्थ होते हैं, और वे अपने कर्तव्य निभाने के लिए उचित परिवेश चाहते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं मिल पाता। नकली अगुआ इन समस्याओं का हल नहीं कर सकता है, तो उसका क्या उपयोग है? भाई-बहन कलीसियाई जीवन जीना चाहते हैं, सत्य समझना चाहते हैं और अपनी कठिनाइयों और नकारात्मक दशाओं का समाधान करना चाहते हैं। वे उत्सुकता से उम्मीद करते हैं कि इन वास्तविक समस्याओं को हल करने के लिए अगुआ और कार्यकर्ता स्पष्ट और पूर्ण रूप से सत्य की संगति कर पाएँ। यदि एक ऐसी कलीसिया है जहाँ सत्ता नकली अगुआ के पास है, तो क्या इन वास्तविक समस्याओं का समाधान हो सकता है? नकली अगुआ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के दिल को नहीं समझ पाता है, और न ही उसे उनकी कठिनाइयाँ दिखाई देती हैं। इसके बजाए, वह शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलना और बड़े-बड़े, खोखले विचारों को बड़बड़ाना जारी रखता है, जिसकी वजह से परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अत्यधिक निराशा होती है। कौन व्यक्ति अभी भी नियमित रूप से सभाओं में उपस्थित होना चाहेगा? क्या नकली अगुआ परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील हो सकते हैं, और उन बुरे लोगों, छद्म-विश्वासियों, अवसरवादियों, और व्यभिचारी लोगों को, जो दुष्ट हैं और सांसारिक चीजों से प्रेम करते हैं, परमेश्वर के वचनों और अपेक्षाओं के अनुसार कलीसिया से दूर कर सकते हैं, उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों के काम में हस्तक्षेप करने और उन्हें बाधित करने से रोक सकते हैं, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को एक सामान्य कलीसियाई जीवन जीने में सक्षम बना सकते हैं? क्या नकली अगुआ इसे हासिल कर सकते हैं? वे इसे हासिल नहीं कर सकते। जब कोई व्यक्ति ऐसा अनुरोध करता है, तो नकली अगुआ क्या कहते हैं? “तुम बहुत ही उधम मचाते हो! क्या तुम्हें लगता है कि तुम ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति हो जो परमेश्वर से प्रेम करता है और कर्तव्य निभाने में वफादार रहना चाहता है? ऐसा कौन नहीं चाहता? वे भी परमेश्वर में विश्वास करते हैं और परमेश्वर द्वारा चुने गए हैं। हालाँकि उनमें कुछ समस्याएँ हैं, लेकिन हमें उनके साथ सही तरीके से पेश आना चाहिए। हमेशा दूसरों में दोष मत ढूँढ़ो। इस अवसर का लाभ उठाओ और अपने बारे में विचार करो और खुद के बारे में और अधिक जानने का प्रयास करो; तुम्हें सहनशील और धैर्यवान होना सीखना चाहिए।” नकली अगुआ भ्रमित और अंधे होते हैं, और विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ व्यवहार करने के उनके कोई सिद्धांत नहीं होते। वे उन लोगों की असलियत नहीं जान पाते जिन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए या बाहर निकाल दिया जाना चाहिए, इसके बजाए वह इन लोगों को जो चाहे करने देते हैं और कलीसिया में अत्याचारियों की तरह काम करते हैं, उन्हें काम करने के लिए भरपूर जगह देते हैं, जिससे कलीसिया में अव्यवस्था फैल जाती है, इस हद तक कि कुछ कलीसियाओं में विविधता के स्तर को एक वाक्यांश में वर्णित किया जा सकता है : वे वास्तव में भली-बुरी चीजों का जमावड़ा हैं। बुरे लोग, छद्म-विश्वासी, व्यभिचारी, स्थानीय अत्याचारी, और यहाँ तक कि कुछ लोग जो थोड़ा-सा भी खतरा आने पर कलीसिया और भाई-बहनों को धोखा दे देंगे, ये सभी इन कलीसियाओं में एक साथ मिल जाते हैं। नकली अगुआ इन लोगों की असलियत नहीं जान पाते हैं, और वे उन्हें सँभाल या उनका समाधान नहीं कर पाते। अतः, ऐसे अंधे और सुन्न नकली अगुआ की अगुआई में, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बचाया नहीं जा सकता और कलीसिया का कार्य और कलीसियाई जीवन की सामान्य व्यवस्था को बनाए रखा नहीं जा सकता। ऐसे लोग जो सत्य से प्रेम करते हैं और सत्य को स्वीकार करने के इच्छुक हैं, वे ऐसे मिश्रित कलीसियाई जीवन में सत्य को कैसे समझ और प्राप्त कर सकते हैं? क्या उन लोगों के दिल में पीड़ा नहीं होगी? यदि कोई कलीसिया अगुआ कलीसिया के कार्य, कलीसियाई जीवन की सामान्य व्यवस्था, या भाई-बहनों के लिए उनका कर्तव्य निभाने के लिए परिवेश को सही ढंग से सँभाल नहीं सकता है, या इन चीजों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता है, तो यह अगुआ निःसंदेह नकली अगुआ है। उसे नकली अगुआ की उपाधि क्यों दी जाती है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वह अंधा और सुन्न है, जिस कारण बुरे लोग बार-बार कलीसिया के काम में गड़बड़ करते और बाधा डालते हैं; इसके अलावा, जब इसके परिणाम पहले ही सामने आ चुके होते हैं, तब भी वह मुद्दों को तुरंत और सही ढंग से सँभाल और हल नहीं कर सकता है, न ही वह कलीसिया के काम और भाई-बहनों के कलीसियाई जीवन को ठीक से बनाए रख सकता है। विनम्रता से कहें तो ऐसे अगुआ अपने काम में सक्षम नहीं हैं; सटीक रूप से कहें तो वे अपनी जिम्मेदारियों में गंभीर रूप से विफल रहे हैं। यद्यपि वे अगुआ के रूप में सेवा करते हैं, फिर भी वे बुरे लोगों और शैतान के चाकरों के हितों की रक्षा करते हैं, जबकि कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश की उपेक्षा करते हैं। वे उन बुरे लोगों का बचाव करते हैं और उन्हें अनदेखा करते हैं जो भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाने की कीमत पर कलीसिया के जीवन में विघ्न और बाधाएँ डालते हैं। यद्यपि उनकी क्षमता और अभिव्यक्तियों को देखते हुए वे केवल खराब काबिलियत वाले हैं और अपने कार्य में अक्षम हैं और उन्हें मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित नहीं किया जा सकता है, फिर भी कलीसिया के कार्य पर उनके कार्यकलापों के दुष्परिणाम गंभीर हैं। उनके कार्यों की प्रकृति उन मसीह-विरोधियों की तरह ही है जो स्वतंत्र राज्य स्थापित करते हैं और भाई-बहनों का दमन करते हैं। दोनों ही बुरे लोगों की रक्षा करते हैं और उन्हें अनदेखा करते हैं और शैतान के चाकरों की अनदेखी कर उन्हें कलीसिया में मनमर्जी से काम करने देते हैं। बात बस इतनी है कि नकली अगुआ खुलेआम और निर्लज्जता से बुराई नहीं करते और मसीह-विरोधियों की तरह कलीसिया के काम में बाधा नहीं डालते। वे जानबूझकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित नहीं करते और उनसे अपनी आज्ञा नहीं मनवाते, परन्तु अंतिम परिणाम वही होता है जो मसीह-विरोधियों द्वारा स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का होता है। दोनों का परिणाम यह होता है कि जो भाई-बहन सत्य से प्रेम करते हैं और ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाते हैं, उन्हें नुकसान पहुँचाया जाता है, उन्हें बर्बाद किया जाता है, और उनके पास जीने का कोई रास्ता नहीं बचता। ऐसे परिवेश और कलीसियाई जीवन में, ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करने वाले भाई-बहनों के लिए जीवन में प्रगति करना, और अपने कर्तव्यों को सामान्य रूप से निभाना बहुत कठिन होता है। स्वाभाविक रूप से, सुसमाचार फैलाने का कार्य और कलीसिया के विभिन्न कार्य भी बहुत बाधित होते हैं और सामान्य रूप से विकसित नहीं हो पाते हैं। यह नकली अगुआओं की पहली अभिव्यक्ति है जिसका हम बारहवीं जिम्मेदारी के संबंध में गहन-विश्लेषण कर रहे हैं—अपने आस-पास के लोगों, घटनाओं और चीजों पर ध्यान न देना और उनकी असलियत नहीं जान पाना। यह अभिव्यक्ति ऐसे लोगों को नकली अगुआ के रूप में निरूपित करने के लिए पर्याप्त है।

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