अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (20) खंड एक
मद बारह : उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं; उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को बदलो; इसके अतिरिक्त, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें (भाग आठ)
हमने पिछली सभा में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी पर संगति समाप्त की। क्या तुम लोगों ने इस संगति की विषय-वस्तु से स्वयं की तुलना की है? क्या तुम इस संगति पर चिंतन-मनन करते रहे हो? जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं और जिनमें न्याय की भावना और थोड़ी मानवता होती है, वे जब एक बार मेरी संगति सुन लेते हैं तो वे सत्य समझने के बाद उसका अभ्यास कर सकते हैं। सबसे पहले, वे जिन सत्यों को समझते हैं उनका मिलान अपनी स्थिति से कर सकते हैं, सत्य के आधार पर अपनी जाँच कर सकते हैं, अपनी समस्याओं की पहचान कर सकते हैं, और फिर इन समस्याओं का समाधान करने के लिए असल जिंदगी में और कर्तव्य निभाते समय कुछ मामलों और परिवेशों का इस्तेमाल कर सकते हैं। धीरे-धीरे जिस सत्य को वे समझते हैं, उसके संबंध में, वे उन सिद्धांतों को समझ लेते हैं जिनका लोगों को अभ्यास और पालन करना चाहिए। एक बात तो यह है कि उन्हें स्वयं के बारे में गहरी समझ और ज्ञान प्राप्त होता है, और दूसरी बात यह है कि वे अधिक व्यावहारिक और सटीक रूप से समझ पाते हैं कि सत्य वास्तव में क्या कहता है और उसमें क्या निहित है। हालाँकि, जो सत्य से प्रेम नहीं करते और जो इससे विमुख हैं, भले ही वे कितना भी सत्य क्यों न सुन ले, उनमें कोई जागरूकता या बदलाव नहीं आता है। उनकी दशा, कर्तव्य निभाते समय उनके रवैये, उनके द्वारा साधे जा रहे लक्ष्यों, जीवनशैली और आचरण के सिद्धांतों में बिल्कुल भी बदलाव नहीं होता है। वे अपनी इच्छा से कार्य करना और जीवन जीना जारी रखते हैं; इन सत्यों का उन पर कोई प्रभाव नहीं होता, और न ही वे अपने बारे में चिंतन करने और खुद को उस हद तक जानने में सक्षम होते हैं कि वे खुद से घृणा करने लगें। यदि वे खुद से घृणा करने की हद तक नहीं पहुँच सकते, तो वे निश्चित तौर पर सच्चा पश्चाताप नहीं कर सकते हैं। सच्चे पश्चाताप के बिना, कोई सच्चा प्रवेश नहीं होता; सच्चे प्रवेश के बिना निश्चित तौर पर स्वभाव में कोई बदलाव नहीं होता है। इसलिए, कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करने वाले अनेक लोग यद्यपि वे सभा में भी शामिल होते हैं, कर्तव्य भी निभाते हैं, कई वर्षों से धर्मोपदेश भी सुन रहे होते हैं, और अक्सर भाई-बहनों के साथ बातचीत भी करते हैं, फिर भी उन्हें खुद की कोई समझ नहीं होती, उनमें कोई बदलाव दिखाई नहीं देता, और परमेश्वर में उनकी आस्था में कतई वृद्धि नहीं होती है। वे परमेश्वर का अनुसरण अपनी शुरूआती धारणाओं और कल्पनाओं के साथ और आशीर्वाद प्राप्त करने के इरादे और इच्छा के साथ करते हैं। भले ही उन्होंने कितने ही वर्षों से परमेश्वर में विश्वास किया हो, परमेश्वर में विश्वास करने का उनका नजरिया, चीजों के संबंध में उनके विचार, अनुसरण की उनकी पद्धतियाँ और उनके द्वारा साधे जाने वाले लक्ष्यों, और अपना कर्तव्य निभाते समय उनके रवैयों में कतई कोई बदलाव नहीं होता है। उनके वर्तमान प्रकाशन और उनके द्वारा जी गई अभिव्यक्तियाँ सत्य का अनुसरण न करने का परिणाम हैं। हमनें अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारह जिम्मेदारियों पर संगति की, फिर भी कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं के व्यवहार में कतई कोई बदलाव नहीं हुआ है। अपने कर्तव्य निभाने और परमेश्वर की अपेक्षाओं के प्रति उनके रवैयों में कतई कोई बदलाव नहीं हुआ है। संगति की विषयवस्तु ने उन लोगों को स्मरण कराने, उनका निरीक्षण करने और उन्हें प्रोत्साहित करने का काम किया जो अपेक्षाकृत सत्य का अनुसरण करते हैं, तथा जिनमें कुछ मानवता है और जिनके अंतःकरण में थोड़ी जागरूकता है। हालाँकि, इसका उन चंद लोगों पर कोई प्रभाव नहीं हुआ जो ज्यादा हठी हैं, धूर्त हैं, और सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं। ऐसा क्यों है? क्योंकि सत्य के प्रति इन लोगों का रवैया प्रतिरोध और घृणा का है। भले ही सत्य पर कितनी भी संगति की जाए, उनका रवैया वैसे का वैसा ही रहता है : “चाहे जो हो, मैं अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ और परमेश्वर का अनुसरण कर रहा हूँ; मैं सचमुच परमेश्वर के लिए स्वयं को खपा रहा हूँ। चाहे मैं कैसा भी व्यवहार करुँ, जब तक मैं अंत तक दृढ़ रहूँगा, मुझे आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है!” क्या इस तरह की सोच का कोई कारण है? उनमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है और वे पूरी तरह बेशर्म हैं, है न? क्या यह हठधर्मिता और किसी भी हालत में पश्चात्ताप करने से इंकार करना नहीं है? (है।)
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी है : “उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं; उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को बदलो; इसके अतिरिक्त, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें।” पहले, हमने इस जिम्मेदारी की हमारी संगति को बारह मुद्दों में विभाजित किया था। इन बारह मुद्दों की विषयवस्तु मुख्य रूप से इस बात से जुड़ी है कि जब कलीसिया में गड़बड़ियाँ और बाधाएँ उत्पन्न करने वाले विभिन्न प्रकार के लोग, घटनाएँ और चीजें दिखाई देती हैं तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इन समस्याओं से कैसे निपटना और उन्हें कैसे सँभालना चाहिए ताकि परमेश्वर के घर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था को सुरक्षित करने के प्रभाव को प्राप्त किया जा सके, और इस प्रकार उन भूमिकाओं और उन जिम्मेदारियों को पूरा किया जा सके जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को निभानी चाहिए। हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की इस जिम्मेदारी के दायरे में इनमें से प्रत्येक मुद्दे की कुछ विशेष अभिव्यक्तियों पर संगति करते हुए और कुछ विशिष्ट उदाहरण देकर प्रत्येक मुद्दे पर विस्तार से संगति की है। सिद्धांतों के संदर्भ में बात करें तो जिस विषयवस्तु पर संगति की जा रही है वह काफी व्यावहारिक है। यद्यपि हो सकता है कि दिए गए उदाहरण हरेक चीज को शामिल न करें, लेकिन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों के अनिवार्य मुद्दों की स्पष्ट रूप से संगति की गई है। विशेष रूप से, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में तुम लोगों को कलीसिया में उत्पन्न होने वाली विभिन्न समस्याओं का समाधान करने के लिए सत्य के इस पहलु को समझना चाहिए। सबसे पहले, तुम्हें संगति की गई विषयवस्तु से उन वचनों को खोजने की जरूरत है जिनसे समस्याओं के सार का गहन-विश्लेषण किया जा सके और उन्हें समस्याओं से परस्पर संबंधित किया जा सके। समस्याओं के सार को समझने से तदनुरूप समाधान को ढूँढ़ना और सत्य सिद्धांतों के अनुसार समस्याओं का समाधान करना आसान हो जाता है। समस्या का समाधान करने से पहले इसके सार को समझना महत्वपूर्ण है। एक बार समस्या के सार को समझ लेने के बाद तुम्हें इस समस्या को सँभालने के लिए सिद्धांतों को अच्छे से समझना और पकड़ बनानी चाहिए। दोनों पहलु अपरिहार्य हैं : एक है समस्या का सार, और दूसरा है ऐसी समस्याओं के समाधान के लिए सिद्धांत। ये वो चीजें हैं जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को स्पष्ट होनी चाहिए। केवल इन दोनों सिद्धांतों को समझकर ही तुम सभी समस्याओं का सटीक हल कर सकते हो और विभिन्न मदों में शामिल लोगों, घटनाओं और चीजों को उचित ढंग से सँभाल सकते हो, बजाय इसके कि तुम विनियम लागू करो और तिल का ताड़ बना दो। फिलहाल, जब कुछ अगुआ और कार्यकर्ता खास मुद्दों को सँभालते हैं, तो आंशिक रूप से वे विनियमों का पालन करते हैं, और आंशिक रूप से वे मुद्दों का सार समझने में विफल हो जाते हैं, जिससे आसानी से लोगों के साथ गलत व्यवहार होता है और वे मुद्दों से भटक जाते हैं। इसके लिए मुद्दों के विवरण, विशिष्टताओं और संदर्भ की स्पष्ट समझ जरूरी है। इसके अलावा, यह निर्धारित करने के लिए कि वह किस श्रेणी में आता है, उस व्यक्ति के सतत व्यवहार को देखना महत्वपूर्ण है। केवल इन पहलुओं पर महारत हासिल करके ही सिद्धांतों के अनुसार मुद्दों को सँभाला जा सकता है। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अपना कार्य करते समय समस्याओं पर केवल विनियम लागू करते हैं और तिल का ताड़ बनाते हैं, जबकि वे इसमें शामिल लोगों के वास्तविक सार को ठीक से नहीं समझ पाते, क्या वे भले हैं या बुरे, क्या उनका व्यवहार आदतन है या बस कभी-कभार का गुनाह है। वे इन पहलुओं को नहीं पहचान पाते हैं, इसलिए उनसे गलतियाँ होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है। ऐसे मामलों में, यदि कलीसिया मतदान करवा सकती है, तो इससे कुछ गलतियों से प्रभावी रूप से बचा जा सकता है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के कार्य में इन विचलनों और गलतियों की मौजूदगी सर्वाधिक स्पष्ट तरीके से खुलासा कर सकती है कि उनमें विवेक है या नहीं और वे सिद्धांतों के अनुसार मामलों को सँभाल सकते हैं या नहीं। इससे यह भी खुलासा होता है कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास सत्य वास्तविकता है या नहीं। यदि कई वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास करने वाला अगुआ या कार्यकर्ता इन वास्तविक समस्याओं को नहीं सँभाल सकता है, तो यह पर्याप्त सबूत है कि यह अगुआ या कार्यकर्ता सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति नहीं है।
अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा निभाई जानेवाली जिम्मेदारियों, उनके द्वारा पालन किए जाने वाले सिद्धांतों, और उनके कार्य के दायरे को समझने के बाद, हमें संगति करने के इस चरण के विषय पर लौटना चाहिए : नकली अगुआओं को उजागर करना। यह मुख्य विषय है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी के संबंध में हम आज जिस विषय पर संगति करेंगे वो ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें नकली अगुआ अपनी जिम्मेदारी की अवहेलना करते हैं और वास्तविक कार्य न करने की उनकी अभिव्यक्तियाँ हैं। सबसे पहले, आओ बारहवीं जिम्मेदारी की विषयवस्तु पढ़ें। (संख्या बारह : उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं; उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को बदलो; इसके अतिरिक्त, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें।) बारहवीं जिम्मेदारी कार्य के उन तीन पहलुओं का स्पष्ट रूप से उल्लेख करती है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को समझने चाहिए। यह नकली अगुआओं को उजागर करने से कैसे संबंधित है? (सबसे पहले, हमें इस कार्य में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की तमाम जिम्मेदारियों को समझना चाहिए। फिर, हम तुलना करते हैं यह देखने के लिए कि नकली अगुआओं ने इन जिम्मेदारियों को पूरा किया है या नहीं, और नकली अगुआओं की क्या अभिव्यक्तियाँ हैं; उन्हें इस मानक से मापना अपेक्षाकृत सटीक है।) सही कहा। कोई व्यक्ति नकली अगुआ है या नहीं, इसका भेद आँखों से उसका चेहरा देखकर नहीं पहचाना जाता है कि उसके नाक-नक्श अच्छे हैं या बुरे, न ही यह देखकर किया जाता है कि बाहर से उसने कितनी पीड़ा सही है या कितनी दौड़-धूप की है। इसके बजाय, तुम्हें यह देखना चाहिए कि वह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी करता है या नहीं और वास्तविक समस्याएँ हल करने के लिए सत्य का उपयोग कर सकता है या नहीं। उनका आकलन करने का यह एकमात्र सटीक मानक है। कोई व्यक्ति नकली अगुआ है या नहीं, इसका गहन-विश्लेषण, पहचान और निर्धारण करने का यही सिद्धांत है। केवल इसी तरह से आकलन उचित, सिद्धांतों के अनुरूप, सत्य के अनुसार और सभी के लिए निष्पक्ष हो सकता है। नकली अगुआ या नकली कार्यकर्ता के रूप में किसी का चरित्रांकन पर्याप्त तथ्यों पर आधारित होना चाहिए। यह एक-दो घटनाओं या अपराधों पर आधारित नहीं होना चाहिए, अस्थायी भ्रष्टता के प्रकाशन को इसके आधार के रूप में तो बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। किसी के चरित्रांकन का एकमात्र सटीक मानक यह है कि क्या वह वास्तविक कार्य कर सकता है और क्या वह समस्याएँ हल करने के लिए सत्य का उपयोग कर सकता है, साथ ही क्या वह एक सही व्यक्ति है, क्या वह ऐसा व्यक्ति है जो सत्य से प्रेम करता है और परमेश्वर को समर्पित हो सकता है, और क्या उसमें पवित्र आत्मा का कार्य और प्रबुद्धता है। केवल इन्हीं कारकों के आधार पर किसी का एक नकली अगुआ या नकली कार्यकर्ता के रूप में चरित्रांकन सही ढंग से किया जा सकता है। ये कारक यह आकलन और निर्धारण करने के मानक और सिद्धांत हैं कि कोई व्यक्ति नकली अगुआ या नकली कार्यकर्ता है या नहीं।
तीन काम जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बारहवीं जिम्मेदारी के दायरे में करने चाहिए
I. विघ्न-बाधा उत्पन्न करने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करना
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी में तीन कार्य या तीन चरण शामिल हैं। इस कार्य को पूरा करने के लिए इन तीन चरणों का पालन करके, इस कार्य के सिद्धांतों को कायम रखा जाता है, और इस कार्य की जिम्मेदारियाँ पूरी की जाती हैं। ये तीन कार्य कौन से हैं? (पहला, उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं। दूसरा, उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को बदलो। तीसरा, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें।) ये तीन कार्य बारहवीं जिम्मेदारी में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए अपेक्षाएँ हैं। शुरूआत करें तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए पहली अपेक्षा उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करना है, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया के जीवन में गड़बड़ियाँ करते और बाधाएँ डालते हैं। इसका उद्देश्य शीघ्रता और सटीकता से पहचान करना है, सुस्ती और असंवेदनशीलता से जवाब देना नहीं है, न ही अंधाधुँध और लापरवाही से निरूपण करना है—अविवेकपूर्ण निरूपण स्वीकार्य नहीं हैं। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अपनी खराब काबिलियत और भ्रम के कारण छुटपुट मामलों को लेकर लोगों की बेतहाशा काट-छाँट करते हैं और उन्हें उपदेश देते हैं, मनमाने ढंग से उनका निरूपण करते हैं और सिद्धांतों का पालन किए बगैर आँख मूँदकर चीजों को परिभाषित करते हैं। इस तरह कार्य करना सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। इसलिए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के घर में कम से कम विभिन्न लोगों, घटनाओं, और चीजों को पहचानने में सक्षम होना चाहिए। केवल विवेक से ही वे शीघ्रता और सटीकता से कलीसिया में उत्पन्न होनेवाली विभिन्न समस्याओं की पहचान कर सकते हैं। विभिन्न लोगों, घटनाओं, और चीजों को पहचानने की योग्यता हासिल करने के लिए सबसे पहली अपेक्षा क्या है? सबसे पहले, यह समझना आवश्यक है कि अलग-अलग तरह के लोगों के लिए परमेश्वर की अपेक्षाएँ क्या है, और साथ ही परमेश्वर अलग-अलग लोगों और उनमें विकसित होने वाली अलग-अलग अवस्थाओं को कैसे परिभाषित करता है। इसके अतिरिक्त, इस बात का गहन-विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है कि विभिन्न नकारात्मक अवस्थाएँ कैसे उत्पन्न होती हैं और उनके मूल क्या हैं। इसके अलावा, व्यक्ति को विभिन्न लोगों, घटनाओं, और चीजों के परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव को समझना चाहिए। इन शर्तों को पूरा करने का क्या आधार है? अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले कौन-से कार्य का बीड़ा उठाना चाहिए? यदि अगुआ और कार्यकर्ता हमेशा अलग-थलग रहें, और नौकरशाहों की तरह काम करें और भाई-बहनों के साथ बातचीत नहीं करें, भाई-बहनों की विभिन्न अवस्थाओं को नहीं समझें, अलग-अलग तरह के लोगों के साथ निकट संपर्क नहीं रखें, और उनमें विस्तृत अवलोकन और गहन समझ की कमी हो, तो क्या यह स्वीकार्य है? निश्चित तौर पर यह स्वीकार्य नहीं है। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अक्सर अपने कमरों में छिपकर आध्यात्मिक भक्ति करने और अनुभवात्मक गवाही लेख लिखने का बहाना बनाते हैं, ताकि वे कलीसिया के कार्य को अनदेखा कर सकें और उसे समझ न सकें। सतही तौर पर, ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे अपने कमरों में छिपकर कलीसिया के मामलों पर काम कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में, उन्होंने खुद को कलीसिया के काम और परमेश्वर के चुने हुए लोगों से पहले ही अलग कर लिया है। क्या काम करने का यह तरीका कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों में मौजूद समस्याओं का समाधान कर सकता है? क्या इससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपने कर्तव्य अच्छे ढंग से निभाने में मदद मिल सकती है? जब वे गवाही लेख लिखने के लिए अपने कमरों में छिपते हैं, तो क्या वे परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हैं? इसलिए, यह दृष्टिकोण अनुचित है। बारहवीं जिम्मेदारी के अनुसार, अगुआओं और कार्यकर्ताओं का पहला कार्य परमेश्वर के वचनों और सत्य सिद्धांतों के आधार पर कलीसिया के काम में गड़बड़ी करने और बाधा डालने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की शीघ्रता से पहचान करना है। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कलीसियाई जीवन में गहराई से शामिल होना सिर्फ इसलिए है ताकि वे गड़बड़ियाँ करने और बाधाएँ डालने वाले लोगों, घटनाओं और चीजों की शीघ्रता और सटीकता से पहचान कर सकें?” क्या यह समझ सही है? (नहीं।) यह एक विकृत समझ है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं का अपने कार्य के प्रति सही रवैया और दृष्टिकोण होना चाहिए और उन्हें इसमें बुनियादी स्तर तक जाना चाहिए। केवल इस तरीके से वे समस्याओं की शीघ्रता और सटीकता से पहचान सकते हैं और उनका समाधान कर सकते हैं। यदि वे खुद को बुनियादी स्तर तक नहीं उतारेंगे और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के साथ नहीं रहेंगे, तो कलीसिया के काम में सभी समस्याओं की पहचान करना मुश्किल होगा। यदि लोगों द्वारा रिपोर्ट करने और समाधान मांगने के बाद वे कुछ समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, तो इस कार्य का प्रभाव बेहद सीमित होगा। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए सबसे गलत तरीका है खुद को बंद कर लेना और बंद दरवाजों के पीछे काम करना, प्राचीन विद्वानों की तरह, जो स्वयं को पूरी तरह से संतों की पुस्तकों के अध्ययन करने में पूरी तरह से समर्पित हो जाते थे और बाहरी मामलों पर कोई ध्यान नहीं देते थे। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए यह रवैया और जीवनशैली अस्वीकार्य है। तुम अकेले अपने कमरे में रहो, धर्मोपदेशों को सुनो, परमेश्वर के वचनों को पढ़ो, आध्यात्मिक भक्ति के नोट लिखो, और धर्मोपदेश लिखो, लेकिन क्या कुछ धर्म-सिद्धांतों और वचनों को प्राप्त कर लेने का यह अर्थ है कि तुम सत्य समझते हो? क्या इसका यह अर्थ है कि तुम सत्य द्वारा उजागर किए गए लोगों के वास्तविक हालात और सत्य अवस्थाओं को समझते हो? (नहीं।) इसलिए यद्यपि अगुआओं और कार्यकर्ताओं के जीवन में आध्यात्मिक भक्ति का जीवन अनिवार्य है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण चीज है कार्य करने की सही पद्धतियाँ और जीवनशैली।
II. बुरे लोगों को तुरंत रोकना और प्रतिबंधित करना
बारहवीं जिम्मेदारी में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए रेखांकित दूसरी अपेक्षा है कि जब वे कलीसिया के काम में गड़बड़ी करने और विघ्न-बाधा उत्पन्न करने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों को पहचान लें, तो उन्हें शीघ्रता और सटीकता से निर्णय लेने में सक्षम होना चाहिए। उनके लिए विभिन्न लोगों और घटनाओं की प्रकृति की स्पष्ट रूप से पहचान करना और यह समझना जरूरी है कि वे कलीसियाई जीवन को कैसे प्रभावित करती हैं, क्या वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों की दशाओं, जीवन प्रवेश, और कर्तव्य निर्वहन को खतरे में डालती, बाधित करती या नुकसान पहुँचाती हैं, और क्या वे लोगों के कर्तव्य निर्वहन के परिणाम को प्रभावित करती हैं—अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इन मामलों का शीघ्रता और सटीकता से आकलन और मूल्यांकन करना चाहिए। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है। यदि उनमें इसके लिए बुद्धि का अभाव है और उनमें सही काबिलियत नहीं है, तो वे कलीसिया के कार्य को करने में असमर्थ होंगे। इसके अलावा, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति तीव्र प्रतिक्रिया और विवेक रखना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, जब कलीसिया में विवाद उत्पन्न होते हैं और विभिन्न गड़बड़ियाँ और विघ्न-बाधाएँ घटित होती हैं, तो तुम समस्या को पहचान नहीं सकते हो और मान लेते हो कि यह मामूली समस्या है, जिसके परिणामस्वरूप कई लोग प्रभावित होते हैं और अपने कर्तव्यों को सही से नहीं निभा पाते हैं। क्या ऐसा अगुआ और कार्यकर्ता सुन्न और अंधा नहीं है? (हाँ।) अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ यह समस्या है। जब तुम्हें पता लगता है कि कोई व्यक्ति कलीसिया के काम में गड़बड़ी कर रहा और विघ्न-बाधा डाल रहा है, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? सबसे पहले, तुम्हें मुद्दे की गंभीरता सुनिश्चित करने और ऐसे लोगों के सार का मूल्यांकन और आकलन करने और कलीसिया के काम और कलीसियाई जीवन पर ऐसी चीजों के प्रभाव और परिणामों को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। ऐसे निर्णय का क्या आधार होना चाहिए? यह परमेश्वर के वचनों और सत्य पर आधारित होना चाहिए। कुछ लोगों का कहना है, “तुम इसे परमेश्वर के वचनों पर कैसे आधारित करते हो? मुझे यह बेकार की बात लगती है।” वास्तव में, यह बेकार की बात नहीं है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? जब तुम्हारे सामने ऐसी चीजें आती हैं या तुम उनके बारे में देखते या सुनते हो, तो तुम्हें बस परमेश्वर के वचनों से उजागर हुए मुद्दों की उनसें तुलना करनी होती है। यह देखो कि परमेश्वर के वचन किस प्रकार ऐसे लोगों और मामलों को उजागर करते हैं और उनका गहन-विश्लेषण करते हैं, और परमेश्वर इन मुद्दों को किस प्रकार निरूपित करता है, जैसे कि वह किस प्रकार नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों को उजागर करता है, या किस प्रकार वह विभिन्न लोगों के भ्रष्ट स्वभावों को उजागर करता है, इत्यादि। फिर, तुम उन वचनों के अनुसार इन मामलों की तुलना करो और उनका गहन-विश्लेषण करो, और भाई-बहनों के साथ संगति करके और अपने खुद के अवलोकन से, तुम आखिरकार तुम्हें दिखाई देने वाले लोगों, घटनाओं, और चीजों का सटीक आकलन और चित्रांकन कर सकते हो, और समनुरूपी समाधान तैयार कर सकते हो। जो लोग गड़बड़ी करने और विघ्न-बाधा डालने वालों के रूप में निर्धारित किए जाते हैं उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए? लोग उन्हें पहचाने इसके लिए न केवल उन्हें उजागर और उनका गहन-विश्लेषण किया जाना चाहिए, अपितु उन्हें रोकना और प्रतिबंधित भी करना चाहिए, और जिन लोगों में बार-बार चेतावनी देने के बावजूद भी कोई सुधार नहीं होता है, उन्हें हटा देना चाहिए। उन्हें रोकने और प्रतिबंधित करने की पद्धतियाँ और विशेष दृष्टिकोण क्या हैं? (उनकी काट-छाँट करो और उन्हें चेतावनी दो।) क्या काट-छाँट करना सही तरीका है? (हाँ।) उनके कार्यों को उजागर करना, उनकी सर्वाधिक गंभीर समस्याएँ बताना, उनके सार का गहन-विश्लेषण करना, और चेतावनियाँ देना—क्या ये सभी साध्य तरीके नहीं हैं? बेशक, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें परमेश्वर के वचनों को पढ़कर सुनाया जाए और उन्हें मनाने और उनका गहन-विश्लेषण करने के लिए परमेश्वर के वचनों को आधार के रूप में उपयोग किया जाए। यदि वे सत्य को स्वीकार नहीं करते हैं और अपनी गलतियों को मानने से दृढ़ता से इंकार करते हैं, तो अधिक गंभीर उपायों की जरूरत होगी। सबसे पहले, उन्हें चेतावनी दो, फिर कलीसिया के प्रशासनिक आदेशों का इस्तेमाल करके उन्हे लापरवाही से गलत काम करने और भाई-बहनों को बाधित करने से रोको। उनकी काट-छाँट और फिर उनकी निगरानी भी की जानी चाहिए। ये सभी तरीके आवश्यक हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कलीसिया का काम अच्छे ढंग से हो रहा है और लोगों को बचाया जा सके, और मार्गदर्शन करके उन्हें सही मार्ग पर लाया जा सके। इन तरीकों का इस्तेमाल करने से निश्चित रूप से अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे। एक बात तो यह है कि लोगों को समझाने और उन्हें उजागर करने के लिए उस सत्य का उपयोग करो जिसे लोग समझते हैं, उनके स्वभाव और सार का गहन-विश्लेषण करो, उनके कार्यों की प्रकृति और उनके कारण होने वाले गंभीर परिणामों को उजागर करो—लोग कम से कम इतना तो कर सकते हैं। अगला कदम है परमेश्वर के वचनों के अनुसार उनका गहन-विश्लेषण और उनकी पहचान करना, और तदनुसार उन्हें चित्रांकित करना। यदि वे सलाह मान लें, इसे स्वीकार करें, और पश्चाताप करें, तो बेशक वह सर्वोत्तम होगा। हालाँकि, यदि वे इसे स्वीकार नहीं करते और कलीसिया के काम में विघ्न डालना जारी रखते हैं, तो फिर क्या करना चाहिए? उस मामले में, विनम्र होने की कोई जरूरत नहीं है। परमेश्वर के घर के पास प्रशासनिक आदेश होते हैं, और इस अवसर पर, परमेश्वर के घर के प्रशासनिक आदेशों के अनुसार व्यक्ति को रोका और प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। यदि व्यक्ति नया विश्वासी है और उसका आध्यात्मिक कद छोटा है और वह सत्य नहीं समझता है, तो उसकी प्रेम से मदद की जा सकती है; तुम उसे स्वयं को जानने में मदद करने के लिए सत्य की संगति कर सकते हो। जो लोग सत्य को स्वीकार कर और पश्चाताप कर सकते हैं उन्हें रोकने, प्रतिबंधित करने, या काट-छाँट करने की कोई जरूरत नहीं है। यदि वे सत्य स्वीकार नहीं करते, तो यह छिछली नींव या छोटे आध्यात्मिक कद और सत्य को नहीं समझने का मामला नहीं है; यह उनकी मानवता की समस्या है। ऐसे लोगों के लिए, उन्हें रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए प्रशासनिक प्रबंधन और प्रशासनिक दंड का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। अंतिम प्रभाव जो प्राप्त होता है वह है कलीसिया के कार्य और कलीसियाई जीवन की सामान्य व्यवस्था को कायम रखना, जिससे कलीसियाई जीवन व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ सके। इसे चीजों को पूरी तरह बदलना कहा जाता है, और अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपने कार्य में यह प्रभाव प्राप्त करना चाहिए। केवल इस प्रभाव को प्राप्त करके की वे अपनी जिम्मेदारी पूरी करते हैं। यदि अगुआ और कार्यकर्ता उत्पन्न होने वाली समस्याओं को नजरंदाज करते हैं और बस चंद शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के साथ अनमने ढंग से जवाब देते हैं या साधारण तरीके से चंद शब्दों के साथ कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी करने और विघ्न-बाधा डालने वाले लोगों को डाँटते और काट-छाँट करते हैं, तो क्या इस समस्या का समाधान हो सकता है? इससे न केवल समस्या का समाधान नहीं होता, अपितु कलीसिया में भी अत्यधिक अव्यवस्था फैल जाती है—अधिकांश लोग अपना कर्तव्य निभाने की इच्छा खो देते हैं और विभिन्न स्तरों पर बाधित होते हैं, जिससे उनके कर्तव्य-निर्वहन पर असर पड़ता है। क्या ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने अपनी जिम्मेदारी पूरी की है? (नहीं।) इससे पता चलता है कि ये अगुआ और कार्यकर्ता अपने काम में सक्षम नहीं हैं।
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