अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (2) खंड पाँच
नकली अगुआ वास्तविक कार्य नहीं करते, न ही अपने उचित कार्य पर ध्यान देते हैं
कुछ नकली अगुआ कोई भी ठोस काम करने में असमर्थ होते हैं, लेकिन वे कुछ महत्वहीन सामान्य मामलों को सँभालते हैं, और सोचते हैं कि यही ठोस काम करना है, यह उनकी जिम्मेदारियों के दायरे में आता है। इसके अलावा, वे इन मामलों को बहुत गंभीरता से सँभालते हैं और वास्तव में बहुत प्रयास करते हैं, उन्हें बहुत ही सभ्य तरीके से पूरा करते हैं। उदाहरण के लिए, कलीसिया में एक व्यक्ति था जो पहले पेस्ट्री शेफ के रूप में काम करता था। एक दिन, उसने भले मन से फैसला किया कि उसे बस मेरे लिए पेस्ट्री बनानी है, और इस बारे में मुझे बताए बिना ऐसा करने की तैयारी करने लगा। उसने अपने अगुआओं से पूछा कि क्या इसकी अनुमति है, और उन्होंने कहा, “आगे बढ़ो। अगर उनका स्वाद अच्छा हुआ, तो हम उन्हें परमेश्वर को अर्पित करेंगे। अगर नहीं हुआ, तो हम सब उन्हें खा लेंगे।” उसे अगुआओं की अनुमति प्राप्त हो गई थी जिससे यह काम वैध और उचित बन गया, इसलिए उसने जल्दी से सामग्री इकट्ठा की और यह कहते हुए एक घान पेस्ट्रियाँ तैयार कीं, “मुझे नहीं पता कि उनका स्वाद अच्छा होगा या नहीं, या ये परमेश्वर को संतुष्ट कर सकेंगी या नहीं, या वे परमेश्वर के स्वाद के मुताबिक होंगी या नहीं।” अगुआओं ने जवाब दिया, “कोई बात नहीं। हम थोड़े से समय और अपने स्वास्थ्य का बलिदान करेंगे, और परमेश्वर के लिए थोड़ा जोखिम उठाएँगे। हम पहले उन्हें चखेंगे और परमेश्वर के लिए उन्हें परखेंगे। अगर वे वास्तव में अच्छे नहीं लगते और हम परमेश्वर से उन्हें खाने के लिए कहते हैं, तो वह हमसे नाराज होगा और बहुत निराश महसूस करेगा। इसलिए, अगुआओं के रूप में, इस मामले की जाँच करने की जिम्मेदारी और दायित्व हमारा है। ठोस काम करना यही है।” इसके बाद, थोड़ी भी “जिम्मेदारी की भावना” रखने वाले सभी समूह प्रमुखों ने उन पेस्ट्रियों का स्वाद चखा। उन्हें चखने के बाद, उन्होंने समीक्षा करते हुए कहा कि “इस घान के लिए ओवन बहुत गर्म था, तापमान बहुत अधिक था, और इनसे अंदरूनी गर्मी पैदा हो सकती है—ये थोड़ी कड़वी भी हैं। यह ठीक नहीं है! हमें एक जिम्मेदार रवैया अपनाते हुए एक और घान बनाकर चखना चाहिए!” इस घान को चखने के बाद उन्होंने कहा, “यह लगभग सही है। इसमें मक्खन जैसा स्वाद है, अंडे का स्वाद है, और तिल का भी। यह वास्तव में एक पेस्ट्री शेफ के योग्य है! चूँकि ये बहुत सारी हैं और परमेश्वर अकेले इन सबको नहीं खा सकता, इसलिए इनमें से 10-20 पेस्ट्रियों को एक छोटे जार में डाल कर चखने के लिए नमूने के रूप में परमेश्वर को पेश किया जाए। अगर परमेश्वर को वे स्वादिष्ट लगे, तो हम उन्हें ज्यादा मात्रा में बना सकते हैं।” उन्होंने मुझे एक जार दिया और मैंने उनमें से दो को चखा। मुझे लगा कि वे स्वाद बदलने के लिए तो ठीक हैं, लेकिन मुख्य भोजन के रूप में अनुपयुक्त हैं, इसलिए मैंने उन्हें और नहीं खाया। कुछ लोगों ने तो यह भी सोचा कि उन पेस्ट्रियों को परमेश्वर के घर के किसी सदस्य ने घर पर बनाया था, वे प्रेम, निष्ठा और भय से भरी हुई थीं और बहुत महत्व रखती थीं, हालाँकि उनका स्वाद बस ठीक-ठाक था। बाद में मैंने पेस्ट्री का जार वापस कर दिया। मुझे ऐसी चीजों में कोई दिलचस्पी नहीं है और मुझे उन्हें खाने की इच्छा भी नहीं होती। इसके अलावा, अगर मुझे पेस्ट्री खाने की इच्छा होगी, तो बिना बहुत पैसे खर्च किए मैं बाजार से विभिन्न स्वादों और विभिन्न देशों की पेस्ट्री खरीद सकता हूँ। बाद में, मैंने उनसे कहा, “मैं तुम्हारी इस भावना की कद्र करता हूँ, लेकिन कृपया मेरे लिए और पेस्ट्री मत बनाना। मैं उन्हें नहीं खाऊँगा, और अगर मुझे कुछ चाहिए तो मैं उन्हें खुद ही खरीद लूँगा। अगर जरूरत पड़ी तो बस जब मैं तुमसे कहूँ, तब उन्हें बना लेना; अगर मैं तुमसे उन्हें बनाने के लिए नहीं कहता, तो तुम्हें उन्हें फिर से बनाने की जरूरत नहीं है।” क्या यह समझना आसान नहीं था? अगर वे अच्छे आचरण वाले और आज्ञाकारी होते, तो वे मेरे वचनों को याद रखते और उन्हें फिर से नहीं बनाते। जब परमेश्वर बोलता है, तो “हाँ” का मतलब “हाँ” होता है, “नहीं” का मतलब “नहीं” होता है, और “कुछ भी मत बनाओ” का मतलब है “कुछ भी मत बनाओ।” परंतु, कुछ समय बीतने के बाद उन्होंने मुझे पेस्ट्री के दो और जार भेजे। मैंने उनसे कहा, “क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि अब इन्हें मत बनाना?” उन्होंने उत्तर दिया, “ये पिछली बार से अलग हैं।” मैंने उत्तर दिया, “भले ही वे अलग हों, फिर भी वे पेस्ट्री हैं। पेस्ट्री बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैं विनम्रता नहीं दिखा रहा हूँ—अगर मुझे कुछ चाहिए होगा, तो मैं तुम लोगों को बता दूँगा। क्या तुम मानवीय भाषा नहीं समझ सकते? इन्हें अब और मत बनाना।” क्या ये शब्द समझ में आते हैं? (हाँ।) फिर भी उन्हें बनाने वाला व्यक्ति हमेशा क्यों भूल जाता था? यदि उसके अगुआ उसे नियंत्रण में रख सकते थे, और उसके साथ सक्रिय सहयोग करने या उसे ऐसा करने का प्रोत्साहन देने से मना कर सकते थे, और उसे तुरंत रोक सकते थे, तो क्या पेस्ट्री बनाने वाला व्यक्ति फिर भी ऐसा करने की हिम्मत करता? कम से कम, वह यह काम इतनी निर्भीकता और असावधानी से नहीं करेगा। तो, इस स्थिति में उन अगुआओं का क्या प्रभाव था? उन्होंने हर बात का सूक्ष्म प्रबंधन किया, हर चीज में अपनी नाक घुसेड़ी, और मेरी ओर से जाँच करने का कार्यभार सँभाला। वे इतने “प्रेमपूर्ण” थे कि उसका वर्णन शब्दातीत है। क्या यही वह काम है जो उन्हें करना चाहिए था? परमेश्वर के घर के काम के सिद्धांतों के भीतर ऐसा करने के कोई निर्देश नहीं थे, और मैंने उन्हें यह काम नहीं सौंपा था; लोगों ने ही इसे शुरू किया था, मैंने ऐसा अनुरोध नहीं किया था। तो इन अगुआओं ने इस काम को अग्र-सक्रियता से क्यों किया? यह नकली अगुआओं की अभिव्यक्ति है : अपने उचित काम पर ध्यान न देना। कलीसिया में बहुत सारे काम थे जिन पर उन्हें आगे की कार्रवाई, निरीक्षण और आग्रह करने की आवश्यकता थी, और बहुत सारी वास्तविक समस्याएँ थीं जिनके समाधान के लिए उन्हें सत्य पर संगति करने की आवश्यकता थी, लेकिन उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया। इसके बजाय, वे रसोई में मेरे लिए पेस्ट्री चखने बैठे रहे। इस मामले में, वे काफी गंभीर थे और उन्होंने बहुत प्रयास किए। क्या नकली अगुआ ऐसा नहीं करते? क्या यह बहुत घिनौनी बात नहीं है? मैंने कभी ऐसी उम्मीद नहीं की थी कि कुछ समय के बाद यह मामला फिर से सामने आएगा। पेस्ट्री बनाने वाला व्यक्ति मेरे लिए फिर से पेस्ट्री बनाना शुरू करना चाहता था। मैंने एक अगुआ से विशेष रूप से कहा, “तुम जाकर इस समस्या का समाधान करो। तुम्हें उसे यह स्पष्ट रूप से समझाना होगा। अगर उसने फिर से ऐसा किया तो मैं तुम्हें जवाबदेह ठहराऊँगा!” कलीसिया में इतना सारा काम है कि कोई भी काम उन्हें कुछ समय के लिए व्यस्त रख सकता है। वे इतने निठल्ले क्यों थे? क्या वे यहाँ मोटे होने या बेकार की गपशप करने आए हैं? यह जगह उन चीजों के लिए नहीं है। इसके बाद, इस मामले के बारे में कोई और खबर नहीं मिली। मेरे एक बार निर्देशित करने के बाद उस अगुआ ने कोई सूचना नहीं दी। जो भी हो, किसी ने मुझे फिर से वे छोटी पेस्ट्रियाँ नहीं भेजीं, जो काफी राहत की बात थी। इस घटना के मद्देनजर, क्या हम कह सकते हैं कि ये अगुआ अपने उचित काम पर ध्यान नहीं दे रहे थे? (हाँ।) यह मामला इतना गंभीर भी नहीं है; इससे भी गंभीर मामले हैं।
मैं आसपास का जायजा लेने, अगुआओं से मिलने, कुछ काम के लिए निर्देश देने और कुछ मुद्दों को सुलझाने अक्सर कुछ कलीसियाओं में जाता रहता हूँ। कभी-कभी, मुझे इन कलीसियाओं में दोपहर का खाना खाना पड़ता है, जिससे यह सवाल उठता है कि भोजन कौन बनाएगा। अगुआ इतने जिम्मेदार थे कि उन्होंने किसी ऐसे व्यक्ति को चुना जिसका दावा था कि वह शेफ है। मैंने कहा, “वह शेफ है या नहीं, यह महत्वपूर्ण नहीं है; जो मायने रखता है वह यह है कि मुझे सादा खाना पसंद है। मुझे भोजन सामग्री का असली स्वाद लेना पसंद है। खाना बहुत ज्यादा नमकीन, तेलयुक्त या उत्तेजक नहीं होना चाहिए। सर्दियों में मुझे कुछ गर्म खाने की जरूरत होती है। साथ ही, खाना कम पका हुआ नहीं बल्कि अच्छी तरह से पका हो और पचने में आसान हो।” क्या मैंने इन सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से नहीं बताया? क्या इन्हें हासिल करना आसान था? इन्हें याद रखना और करना दोनों ही चीजें आसान थीं। जिस भी गृहिणी ने तीन से पाँच साल तक खाना बनाया हो, वह इन सिद्धांतों को समझ सकती है और अपेक्षित परिणाम हासिल कर सकती है। इसलिए, मेरा खाना बनाने के लिए शेफ खोजने पर जोर देने की जरूरत नहीं थी; कोई ऐसा व्यक्ति जो घरेलू खाना बना सके वह पर्याप्त होता। हालाँकि, ये अगुआ इतने “प्रेमपूर्ण” थे कि जब उन्होंने मेरी मेजबानी की तो भोजन तैयार करने के लिए एक “शेफ” खोजने पर जोर दिया। शेफ द्वारा आधिकारिक तौर पर मेरे लिए खाना पकाने से पहले, अगुआओं को जाँच करनी थी। उन्होंने यह सब कैसे किया? उन्होंने शेफ से मोमो और शोरबेदार नूडल बनवाया, और उसे कुछ व्यंजन तलने के लिए कहा। सभी अगुआओं और विभिन्न समूहों के प्रमुखों ने उन्हें चखा, और उन्हें सभी व्यंजन काफी अच्छे लगे। अंत में, उन्होंने शेफ से मेरे लिए खाना पकाने को कहा। अगुआओं के स्वाद परीक्षण के परिणामों और इसमें शामिल मुद्दों की प्रकृति की बात को छोड़कर, आओ पहले इस शेफ द्वारा तैयार किए गए भोजन के बारे में बात करते हैं। पहली बार जब मैं गया, तो शेफ ने कुछ व्यंजन तले, और हर कोई काफी संतुष्ट था। दूसरी बार, शेफ ने मोमो बनाए। पहला मोमो खाने के बाद, मुझे लगा कि कुछ गड़बड़ है—यह थोड़ा मसालेदार था। मेरे आस-पास के अन्य लोगों ने भी कहा कि मोमो थोड़े तीखे थे, और उन्हें लगा कि उनकी जीभ पर सूजन आने लगी है। फिर भी, चूँकि मोमो ही एकमात्र मुख्य व्यंजन थे, इसलिए तेज मसालेदार होने के बावजूद मुझे वे खाने पड़े। उन मोमो के भरावन में कोई मिर्च दिख नहीं रही थी, इसलिए मैंने उसके मसालेदार होने का जो भी कारण था, उसे नजरअंदाज कर दिया और भोजन खत्म किया। नतीजतन, उस शाम मेरे शरीर में एलर्जी शुरू हो गई। मेरे शरीर के कई हिस्सों में लगातार खुजली होने लगी, और मैं खुजलाता रहा; मैं खुद को तब तक खुजलाता रहा जब तक कि खून नहीं निकल आया। तब जाकर मुझे बेहतर महसूस हुआ। तीन दिनों तक मुझे खुजली होती रही, फिर धीरे-धीरे कम हो गई। इस एलर्जी के बाद मुझे एहसास हुआ कि मोमो में निश्चित रूप से काली मिर्च डाली गई थी; अन्यथा, वे इतने मसालेदार नहीं होते। मैंने उन्हें सूचित किया था कि वे काली मिर्च जैसी तीखी सामग्री न डालें क्योंकि मैं उन्हें बर्दाश्त नहीं कर सकता। परंतु, उन्होंने अपने स्वादानुसार काफी मात्रा में इसका प्रयोग किया, जो सामान्य से अधिक थी; उन मोमो को खाने पर काफी तीखी सनसनाहट हो रही थी। शेफ खाना पकाने में सामग्री का अनुपात भी सही नहीं रख पाया, उसने इतनी काली मिर्च डाली कि किसी को भी एलर्जी हो जाए। बाद में, मैंने उससे कहा, “कभी भी उन मसालेदार सामग्रियों को दोबारा मत डालना। मैं उन्हें बर्दाश्त नहीं कर सकता। अगर तुममें वाकई थोड़ी-सी भी मानवता है, तो ऐसा दोबारा मत करना। अगर तुम अपने लिए खाना बनाते हो, तो मैं तुम्हारे खाने में हस्तक्षेप नहीं करूँगा। परंतु, अगर तुम मेरे लिए खाना बना रहे हो, तो उनमें से कुछ भी मत डालो। मेरे अपेक्षित मानकों का पालन करो।” क्या वह ऐसा कर सकता था? क्या अगुआओं को यह काम नहीं सँभालना चाहिए था? दुर्भाग्य से, किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया और उन्हें जो करना चाहिए उनमें से कोई काम नहीं किया। एक बार, जब शेफ फिर से खाना बनाने वाला था, तो उसने डिश में डालने के लिए कुछ काली मिर्च उठाई, और पास में मौजूद किसी व्यक्ति ने यह देख लिया और उसे रोक दिया। उसकी सख्त निगरानी में, शेफ को उसे डालने का अवसर नहीं मिला। अगुआ इतनी छोटी-सी समस्या का भी समाधान नहीं कर सके—तब, वे क्या कर सकते थे? जब शेफ खाना बना रहा था, तो उसे चखने के बारे में वे काफी सक्रिय थे। कई लोग इसे चखने गए। यह घर का बना सामान्य भोजन था; इसमें चखने लायक क्या था? क्या तुम सभी पाक विशेषज्ञ हो? क्या अगुआ बनने के बाद तुम अचानक सब कुछ समझने लगे हो? क्या तुम स्वास्थ्य के सिद्धांत समझते हो? क्या परमेश्वर के घर ने तुम्हारे ऐसा करने के लिए व्यवस्था की थी? मैंने तुम्हें मेरी ओर से भोजन चखने का काम कब सौंपा या कब तुम्हें नियुक्त किया? तुम लोग बहुत तर्कहीन हो, और तुम्हें जरा भी शर्म नहीं है! अगर किसी में थोड़ी भी शर्म है तो वह इतना खुल्लमखुल्ला, इतना घिनौना, इतना तर्कहीन काम नहीं करेगा। इससे दिखता है कि इन लोगों में जरा भी शर्म नहीं है—उन्होंने मेरे लिए भोजन चखा! तुम लोगों ने मेरे बताए किसी भी सिद्धांत का न पालन किया, न उन्हें पूरा किया। जो भी तुम्हें अच्छा और तुम्हारे स्वाद के अनुकूल लगा, तुमने शेफ से वही पकाने के लिए कहा। क्या यह मेरे लिए खाना बनवाना है? क्या यह अपने लिए खाना बनवाना नहीं है? क्या तुम लोग अगुआओं के रूप में इसी तरह से काम करते हो? लाभ उठाने और खामियों का फायदा उठाने का कोई अवसर नहीं छोड़ना, और यहाँ तक कि मुझे खुश करने की कोशिश करके मेरे पसंदीदा बनने की कोशिश करना—अगर तुम मेरे पसंदीदा बनना चाहते हो, तो मुझे नुकसान मत पहुँचाओ! क्या यह सद्गुणों की कमी नहीं है? क्या यह अनुचित इरादे पालना नहीं है? वे बेशर्म हैं और अनुचित इरादे रखते हैं, फिर भी वे सोचते हैं कि वे बहुत निष्ठावान हैं! उन्होंने जो कुछ किया, क्या उसमें से कोई भी काम अगुआओं को वास्तव में करना चाहिए? (नहीं।) उन्होंने जो कुछ भी किया, उसका कोई मानक नहीं था। उन्हें यह भी नहीं पता था कि अमुक भोजन स्वास्थ्यकर है या अस्वास्थ्यकर, फिर भी उन्होंने सोचा कि वे यहाँ आकर मेरे लिए स्वास्थ्य और भोजन विशेषज्ञ की भूमिका निभा सकते हैं! किसने निर्धारित किया कि जब मेरे लिए खाना पकाने की बात हो तो उन्हें जाँच करनी चाहिए? क्या कलीसिया में यह निर्धारित शर्त है? क्या परमेश्वर के घर ने यह व्यवस्था की है? कलीसिया के काम के विभिन्न मदों में बहुत कमियाँ थीं, बहुत लोगों को परमेश्वर के बारे में गलतफहमियाँ थीं और वे सत्य बिल्कुल भी नहीं समझते थे, फिर भी तुमने उन चीजों पर काम नहीं किया। इसके बजाय, तुमने रसोई जैसे छोटे-से क्षेत्र में प्रयास किए, और अपनी “जिम्मेदारी” निभाई। तुम सरासर नकली अगुआ हो, पाखंडी हो! तुम मेरे सामने ही चीजों की जाँच कर रहे थे—तुम लोगों की समझ में क्या आया? क्या तुमने मुझसे सलाह ली? तुम अपने विचार व्यक्त कर रहे थे या मेरे? यदि तुम मेरे विचार व्यक्त कर रहे होते, और मैंने तुमसे इसे आगे पहुँचाने के लिए कहा होता, तो तुम लोग जो कर रहे थे वह सही होता। यह तुम्हारी जिम्मेदारी होती। अगर तुम मेरे नहीं, बल्कि अपने विचार व्यक्त कर रहे थे, और दूसरों को उसे सुनने और स्वीकार करने के लिए जोर देकर बाध्य कर रहे थे, तो इस कार्य की प्रकृति क्या है? मुझे बताओ, क्या मुझे इससे घृणा नहीं होगी? मैं वहीं था, और उन्होंने मुझसे एक शब्द भी नहीं पूछा कि मैं क्या खाता हूँ या मेरी क्या जरूरतें हैं—उन्होंने मेरी स्वीकृति के बिना ही बस निर्णय ले लिए, और मेरी पीठ पीछे मनमाने ढंग से आदेश दिए। क्या वे मेरा प्रतिनिधि बनने की कोशिश कर रहे थे? यह नकली अगुआओं के अनियंत्रित तरीके से कुकर्म करते हुए आध्यात्मिक होने का दिखावा करने, परमेश्वर के बोझ पर विचार करने का दिखावा करना है, और सत्य समझने का दिखावा करना है, और बस पाखंड करना है। क्या यह कुछ ज्यादा नहीं है? क्या यह अपने आप में बहुत घृणित और घिनौना नहीं है? (हाँ, है।) क्या तुम लोगों को इससे कोई अंतर्दृष्टि मिली? क्या तुमने इससे कोई सबक सीखा? इनमें से प्रत्येक मामला पिछले से ज्यादा घृणित है, और एक और मामला है जो और भी ज्यादा घृणित है।
इस सर्दी में, किसी दयालु व्यक्ति ने मुझे हंस के भीतरी पंखों से बना एक “सुंदर” कोट खरीद दिया। इसकी सुंदरता कोट के रंग या शैली में नहीं थी, बल्कि इसकी ऊँची कीमत और आला दर्जे की उच्च गुणवत्ता में थी; यह मूल्यवान था। गैर-विश्वासियों के बीच एक कहावत है, “हजार मील दूर से भेजा गया हंस का पंख छोटा-सा उपहार हो सकता है, लेकिन उसके पीछे गहरी भावनाएँ होती हैं।” सो, इस कोट से न केवल भावनाएँ जुड़ी थीं, बल्कि यह वास्तव में बहुत महँगा था। कोट को देखने से पहले ही मैं सुन चुका था कि यह अच्छा दिखता है और लाल रंग का बढ़िया डिजाइन वाला कोट है, और यह एक अच्छा एहसास देता है। मैंने इसके बारे में सुना था, इसका मतलब है कि कुछ लोगों ने पहले से ही वास्तविक वस्तु को जरूर देखा था—यानी, बहुत से लोगों ने उसे पहले ही देख लिया था, मोटे तौर पर इसे नाप लिया था, और इसकी बारीकी से जाँच करने के बाद बातें कर रहे थे, जैसे कि, “मैं इस ब्रांड को जानता हूँ,” “इसका रंग बढ़िया है, यह काफी सुंदर है!” “तुम देख लो तो, मुझे भी इसे दिखाना” आदि और बस इसी तरह यह खबर फैल गई। मुझे नहीं पता कि इस खबर को मेरे कानों तक पहुँचने में और मुझे इसके बारे में थोड़ा-बहुत जानने में कितना समय लगा। क्या तुम लोग इसमें कोई समस्या देख सकते हो? कोट को मैं देखूँ उससे पहले ही उसे कई अन्य लोगों ने देखा, इधर-उधर किया और प्रदर्शित किया। क्या यह कोई समस्या नहीं है? क्या लोग मेरी चीजों को सहजता से देख, छू और प्रदर्शित कर सकते हैं? (नहीं।) किसकी चीजों को लोग सहजता से छू और देख सकते हैं? (कोई भी ऐसा नहीं चाहेगा और किसी को भी ऐसा नहीं करना चाहिए।) तो, क्या मेरी चीजें और भी अधिक वर्जित नहीं होनी चाहिए? कुछ लोग कहते हैं, “उन्हें वर्जित क्यों होना चाहिए? तुम सार्वजनिक व्यक्ति हो। क्या मशहूर हस्तियों और सितारों की निजी जिंदगी हमेशा उजागर नहीं होती? वे कहाँ खेलते हैं, कहाँ सौंदर्य उपचार करवाते हैं, किसके साथ जुड़ते हैं, कौन-से ब्रांड पहनते हैं—क्या ये सभी चीजें सार्वजनिक नहीं होतीं? तुम्हारी चीजें क्यों उजागर नहीं होनी चाहिए?” क्या मैं कोई मशहूर हस्ती हूँ? मैं मशहूर हस्ती नहीं हूँ, और तुम मेरे प्रशंसक नहीं हो। तुम कौन हो? तुम साधारण व्यक्ति, सृजित प्राणी और भ्रष्ट मनुष्य हो। मैं कौन हूँ? (परमेश्वर।) मैं कोई लोक प्रसिद्ध हस्ती नहीं हूँ; मुझे तुम्हारे सामने सब कुछ उजागर करने, तुम्हें सारी जानकारी देने या तुम्हें हर चीज के बारे में सूचित करने की बाध्यता नहीं है। तो, तुम मेरी किसी चीज को क्यों छू रहे हो? क्या ऐसा करना घृणित काम नहीं है? क्या मैंने तुम्हें आदेश दिया था कि तुम मेरी इस चीज को देखो और इसकी जाँच करो? नहीं। फिर भी कुछ लोगों ने इसे लेने और धृष्टतापूर्वक इसे देखने की हिम्मत की, और इसे इधर-उधर एक-दूसरे को देखने के लिए भी दिया। तुम्हें इसे एक-दूसरे को देने का अधिकार किसने दिया? क्या यह तुम्हारा दायित्व है? यदि तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, तो हम एक-दूसरे के लिए अजनबी हैं। परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास के कारण ही मैं जानता हूँ कि तुम कौन हो, लेकिन मैं नहीं जानता कि तुम्हारा परिवार, दैनिक जीवन या वित्तीय परिस्थितियाँ कैसी हैं, और मैं जानना भी नहीं चाहता। क्या हम करीबी हैं? मैं तुम्हारा यार, दोस्त या साथी नहीं हूँ। हम परिचित नहीं हैं, और हमारा संबंध उस बिंदु तक नहीं पहुँचा है जहाँ मेरी हर चीज तुम्हारे देखने के लिए खुली हो। क्या तुम मुझे अपनी सारी चीजें देखने और सबको दिखाने और छूने के लिए दोगे? जब लोग बाजार से कोई चीज घर लाते हैं, तो उसे भी कीटाणुरहित करने के लिए कई बार धोना पड़ता है! क्या जिन चीजों को दूसरे लोगों ने लापरवाही से छुआ होता है, उनसे घिन नहीं आती? क्या तुम स्वयं को बाहरी लोगों की तरह पेश करने में विफल नहीं रहे हो? तुम्हें मेरे कोट का निरीक्षण करने के लिए किसने नियुक्त किया? क्या मैं तुम पर भरोसा करता हूँ? क्या मेरे कोट को लापरवाही से छूने से पहले तुमने अपने हाथ धोए हैं? क्या मुझे तुमसे गहरी चिढ़ नहीं होगी? क्या तुम इस बारे में स्पष्ट हो? तुम इतने बेशर्म क्यों हो? तुममें कितना कम विवेक है! तुमने कई सालों तक परमेश्वर में विश्वास किया है और इतने सारे उपदेश सुने हैं; फिर तुममें जरा-सा भी तर्क कैसे नहीं है? परमेश्वर के चढ़ावे को लापरवाही से खोलना, उसके कपड़ों को, उसकी चीजों को लापरवाही से छूना—यह किस तरह की समस्या है? जब मैं देखता हूँ कि इन चीजों की पैकिंग खोल कर फेंक दी गई है, तो मुझे क्रोध कैसे नहीं आएगा? मुझे इन चीजों से गहरी चिढ़ होती है और मैं ऐसे लोगों से घृणा करता हूँ। मैं उन्हें दोबारा नहीं देखना चाहता, और मैं निश्चित रूप से इन लोगों के साथ जुड़ना नहीं चाहता जो सूअरों और कुत्तों से भी बदतर हैं! याद रखो, हर व्यक्ति की अपनी गरिमा होती है, और मेरी तो और भी ज्यादा है। मेरी चीजों में शामिल मत हो; अन्यथा, मैं तुम्हें नापसंद करूँगा और अत्यधिक घृणा करूँगा!
संभव है कि ऊपरी तौर पर नकली अगुआ बड़ी बुराइयाँ न करें या पूरी तरह से विश्वासघाती खलनायक न हों। परंतु, उनके बारे में सबसे घृणास्पद बात यह है कि वे देख सकते हैं कि वास्तविक कार्य किया जाना है, लेकिन वे उसे नहीं करते, वे अच्छी तरह जानते हैं कि वे मुद्दों को हल नहीं कर सकते, किंतु वे सत्य की तलाश नहीं करते, वे बुरे लोगों को बाधाएँ डालते देखते हैं, लेकिन वे उनसे नहीं निपटते, और इसके बजाय वे केवल बाहरी सामान्य मामलों का ध्यान रखते हैं। वे कम महत्वपूर्ण मुद्दों और तुच्छ मामलों पर कड़ी नजर रखते हैं और उन्हें नियंत्रित करते हैं, लेकिन वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश से संबंधित कोई भी कार्य नहीं करते, न ही सत्य सिद्धांतों के विरुद्ध जाने वाले विभिन्न मामलों की परवाह करते हैं। इसके बजाय, वे केवल ऐसे कार्य करते हैं जिसका संबंध सत्य से नहीं होता। ये सरासर नकली अगुआ हैं। नकली अगुआ कलीसिया के काम की विभिन्न मदों में शामिल सत्य सिद्धांतों से पूरी तरह अनभिज्ञ होते हैं। यदि अगुआओं और कार्यकर्ताओं के सिद्धांतों और मानकों के आधार पर मापा जाए, तो नकली अगुआ मूर्ख और बेवकूफ होते हैं। कलीसिया के काम में आने वाली समस्याएँ चाहे कितनी भी गंभीर क्यों न हों, और भले ही वे उनकी नाक के नीचे ही हों, नकली अगुआ उन्हें न देख सकते हैं, न हल कर सकते हैं, और ऊपरवाले को खुद आकर उन समस्याओं को हल करना पड़ता है। क्या ये लोग नकली अगुआ नहीं हैं? (हाँ, हैं।) वे वास्तव में नकली अगुआ हैं। उदाहरण के लिए, कलीसिया के पाठ आधारित कार्य में, किन पुस्तकों की प्रूफरीडिंग की जानी चाहिए और किन पुस्तकों का अनुवाद किया जाना चाहिए—ये कलीसिया के महत्वपूर्ण कार्य हैं। पुस्तकों की प्रूफरीडिंग और अनुवाद करने के बारे में क्या कोई सिद्धांत हैं? इस कार्य में निश्चित रूप से सिद्धांत हैं, यह अत्यधिक सिद्धांत-आधारित है, और वास्तव में इसके लिए विशेष रूप से संगति और मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है; लेकिन नकली अगुआ यह काम नहीं कर सकते। जब वे भाई-बहनों को अपने कर्तव्यों में व्यस्त देखते हैं, तो दिखावा करते हुए कहते हैं, “पाठ आधारित कार्य और अनुवाद कार्य विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। तुम्हें इस कार्य को अच्छी तरह से करने में दिल लगाना चाहिए, और मैं तुम्हारे सभी मुद्दों का समाधान कर दूँगा।” जब कोई व्यक्ति वास्तव में कोई मुद्दा उठाता है, तो ये नकली अगुआ कहते हैं, “मैं इस मामले को नहीं समझता। विदेशी भाषाओं से अनुवाद के मामले में मैं बिल्कुल आम आदमी हूँ। परमेश्वर से प्रार्थना करो और उससे निर्देश प्राप्त करो।” जब यह कहते हुए कोई दूसरा मुद्दा उठाता है, “हमें कुछ भाषाओं का अनुवाद करने के लिए उपयुक्त लोग नहीं मिल रहे हैं, हमें इस बारे में क्या करना चाहिए?”, तो नकली अगुआ जवाब देते हैं, “मैं इस मामले में आम आदमी हूँ। तुम लोग इसे खुद ही सँभाल लो।” क्या ऐसा कहने से समस्या हल हो सकती है? वे यह कहते हुए कि, “मैं आम आदमी हूँ; मैं इस पेशे को नहीं समझता,” कोई बहाना ढूँढ़ते हैं और इस तथ्य को छिपा ले जाते हैं कि वे अपना काम नहीं कर रहे हैं, और इस तरह वे उस समस्या से बचते हैं जिसे उन्हें हल करना चाहिए। नकली अगुआ इसी तरह काम करते हैं। जब कोई सवाल उठाता है, तो नकली अगुआ कहते हैं, “परमेश्वर से प्रार्थना करो और उससे मांगो; मैं इस पेशे को नहीं समझता, लेकिन तुम लोग समझते हो।” यह बात विनम्र लग सकती है, क्योंकि वे स्वीकार कर रहे हैं कि वे अक्षम हैं और पेशे को नहीं समझते हैं, लेकिन वास्तव में, वे अगुआई का काम बिल्कुल नहीं कर सकते। बेशक अगुआ होने का अनिवार्य रूप से यह मतलब नहीं है कि उनमें हर तरह के पेशे की समझ हो, लेकिन उन्हें समस्याओं के समाधान के लिए आवश्यक सत्य सिद्धांतों की संगति स्पष्ट रूप से करनी चाहिए, फिर चाहे समस्याएँ जिस किसी पेशे से संबंधित हों। अगर लोग सत्य सिद्धांतों को समझते हैं तो समस्याओं को उसी के अनुसार हल किया जा सकता है। नकली अगुआ समस्याओं को हल करने के लिए सत्य सिद्धांतों की संगति से बचने के लिए “मैं इस काम से अनजान हूँ; मैं इस पेशे को नहीं समझता” जैसे कारण गिनाते हैं। यह वास्तविक कार्य करना नहीं है। अगर नकली अगुआ समस्याओं को हल करने से बचने के लिए ऐसे कारण गिनाते हैं कि “मैं इस काम से अनजान हूँ; मैं इस पेशे को नहीं समझता” तो वे अगुआई के कार्य के लिए उपयुक्त नहीं हैं। सबसे अच्छी बात यह होगी कि वे इस्तीफा दे दें और किसी और को अपनी जगह लेने दें। लेकिन क्या नकली अगुआओं के पास इस तरह का विवेक होता है? क्या वे इस्तीफा दे पाएँगे? नहीं दे पाएँगे। वे तो यहाँ तक सोचते हैं, “लोग क्यों कहते हैं कि मैं कोई कार्य नहीं कर रहा हूँ? मैं हर दिन सभाएँ करता हूँ और इतना व्यस्त रहता हूँ कि मैं समय पर भोजन भी नहीं कर पाता और कम सो पाता हूँ। कौन कहता है कि समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा है? मैं उनके साथ सभाएँ और संगति करता हूँ और उनके लिए परमेश्वर के वचनों के अंश ढूँढ़ता हूँ।” मान लो कि तुम उनसे पूछते हो कि, “कोई कह रहा था कि उसे कुछ भाषाओं के लिए उपयुक्त अनुवादक नहीं मिल रहे हैं। तुमने इस विशिष्ट समस्या का समाधान कैसे किया?” इस पर वे कहेंगे, “मैंने उनसे कहा कि मैं इस पेशे को नहीं समझता, और उनसे इस पर चर्चा करने और इसे खुद सँभालने के लिए कहा।” फिर तुम उनसे कहते हो कि, “इस समस्या में चढ़ावे का खर्च और कलीसिया के कार्य की प्रगति शामिल है। वे अपने आप निर्णय नहीं ले सकते, उनकी इस समस्या को हल करने के लिए तुम्हें निर्णय लेने और सत्य सिद्धांतों की खोज करने की आवश्यकता है। क्या तुमने ऐसा किया?” वे जवाब देंगे : “मैंने कैसे नहीं किया? मैंने किसी भी काम में देरी नहीं की। अगर उस भाषा का अनुवाद करने वाला कोई नहीं है, तो उन्हें बस दूसरी भाषा में अनुवाद करना चाहिए!” तुम देख रहे हो कि नकली अगुआ वास्तविक कार्य नहीं कर सकते, फिर भी वे ढेरों बहाने बनाते हैं। यह सचमुच बेशर्मी और घिनौनापन है! तुम्हारी काबिलियत इतनी खराब है, तुम किसी भी पेशे को नहीं समझते और पेशेवर काम की हर मद से जुड़े सत्य सिद्धांतों की समझ तुममें नहीं है—तुम्हारे अगुआ होने का क्या फायदा? तुम बस मूर्ख और निकम्मे हो! जब तुम कोई वास्तविक कार्य कर नहीं सकते, तो फिर तुम अब भी कलीसिया के अगुआ के रूप में क्यों सेवारत हो? तुममें विवेक है ही नहीं। चूँकि तुममें आत्म-जागरूकता की कमी है, इसलिए तुम्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों की प्रतिक्रियाएँ सुननी चाहिए और यह मूल्यांकन करना चाहिए कि क्या तुम अगुआ होने के मानक पूरा करते हो। फिर भी, नकली अगुआ इन बातों पर कभी विचार नहीं करते। अगुआ के रूप में उनकी कई सालों की सेवा के दौरान कलीसिया के कार्य में चाहे जितनी भी देरी हुई हो और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश का कितना भी नुकसान हुआ हो, उन्हें इसकी परवाह नहीं होती। यह सरासर नकली अगुआओं का बदसूरत चेहरा है।
इस बारे में सोचो कि अगुआ और कार्यकर्ता अपना काम कैसे करते हैं—क्या यह उससे मेल खाता है जो मैंने अभी तुम्हें बताया है? क्या कोई ऐसा है जो वास्तविक काम नहीं करता है, और क्या तुम उन्हें नकली अगुआ के रूप में पहचान सकते हो? यदि तुम उन्हें नकली अगुआ के रूप में पहचानते हो, तो आज से तुम्हें उन्हें अगुआ नहीं मानना चाहिए; तुम्हें उनके साथ किसी अन्य व्यक्ति की तरह व्यवहार करना चाहिए। यह अभ्यास का सटीक सिद्धांत है। कुछ लोग सोच सकते हैं, “क्या इसका मतलब उनके साथ भेदभाव करना, उन्हें नीचा दिखाना या उन्हें अलग-थलग करना है क्योंकि वे नकली अगुआ हैं?” नहीं, ऐसा नहीं है। वे वास्तविक काम नहीं कर सकते, और वे केवल कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत और कुछ खोखले शब्द बोल सकते हैं ताकि टालमटोल करके तुम्हें धोखा दे सकें। यह सब तुम्हें एक तथ्य बताता है, जो यह है कि वे तुम्हारे अगुआ नहीं हैं। तुम्हें अपने काम में आने वाली किसी भी समस्या या कठिनाई के लिए उनसे निर्देश मांगने की आवश्यकता नहीं है। यदि आवश्यक हो, तो तुम ऊपरवाले को इसकी सूचना देकर और उस समस्या को सँभालने और हल करने के बारे में ऊपरवाले से परामर्श करके उनसे बच सकते हो। मैंने तुम्हें अभ्यास का पूरा मार्ग सिखाया है, लेकिन तुम काम कैसे करते हो यह तुम लोगों पर निर्भर है। मैंने कभी नहीं कहा कि सभी अगुआ परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित होते हैं, कि तुम्हें उनकी बात जरूर सुननी चाहिए और उनका पालन करना चाहिए, और यह कि भले तुम उन्हें नकली अगुआ समझते हो तब भी तुम्हें उनकी बात सुननी ही चाहिए। मैंने तुमसे ऐसा कभी नहीं कहा। मैं अब जो संगति कर रहा हूँ वह यह है कि नकली अगुआओं को कैसे पहचाना जाए। जब तुम किसी को नकली अगुआ के रूप में पहचान लेते हो, तो तुम उसकी बात स्वीकार कर सकते हो और उसका पालन कर सकते हो, अगर वह सही है और सत्य के अनुरूप है। परंतु, यदि वह किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकता, और वह तुम्हारे साथ टालमटोल करता है और काम की प्रगति को प्रभावित करता है, तो तुम्हें उसकी अगुआई स्वीकार करने की जरूरत नहीं है। अगर तुम खुद सिद्धांतों को समझ सकते हो, तो तुम्हें उनके अनुसार कार्य करना चाहिए। अगर तुम समझ नहीं सकते, अनिश्चित हो, या सिद्धांतों के बारे में निश्चित नहीं हो, तो तुम्हें सत्य की खोज करनी चाहिए और समस्या से निपटने के लिए एक-दूसरे के साथ चर्चा करनी चाहिए। अगर तुम चर्चा के बाद भी कोई निर्णय नहीं ले पा रहे हो, तो समस्या के बारे में ऊपरवाले को बताओ और उससे इस बारे में सलाह लो। समस्याओं को हल करने के ये सभी अच्छे तरीके हैं—कोई भी कठिनाई ऐसी नहीं है जिसका समाधान नहीं किया जा सके।
चलो, आज हम अपनी संगति यहीं समाप्त करते हैं। अलविदा!
16 जनवरी 2021
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