अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (2) खंड चार

मद तीन : उन सत्य सिद्धांतों के बारे में संगति करो, जिन्हें प्रत्येक कर्तव्य को ठीक से निभाने के लिए समझा जाना चाहिए (भाग एक)

लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए नकली अगुआ केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत बोल सकते हैं

इसके बाद, हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की तीसरी जिम्मेदारी—उन सत्य सिद्धांतों के बारे में संगति करना जिन्हें प्रत्येक कर्तव्य को ठीक से निभाने के लिए समझा जाना चाहिए—पर संगति करेंगे। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं का महत्वपूर्ण और मौलिक कार्य है, और हम इस जिम्मेदारी के आधार पर नकली अगुआओं की अभिव्यक्तियों पर संगति और उनका गहन-विश्लेषण करेंगे। लोगों को अपने कर्तव्य अच्छी तरह से करने के लिए जिन सत्य सिद्धांतों को समझना चाहिए उन पर स्पष्ट रूप से संगति करने की किसी अगुआ या कार्यकर्ता की क्षमता इस बात का सबसे अच्छा संकेत है कि क्या उसके पास सत्य वास्तविकता है, और यह इस बात के निर्धारण की कुंजी है कि क्या वह वास्तविक कार्य को अच्छी तरह से कर सकता है। आओ, अब देखें कि नकली अगुआ इस कार्य को कैसे संभालते हैं। नकली अगुआओं का एक लक्षण यह है कि वे सत्य सिद्धांतों से जुड़ी किसी भी समस्या को पूरी तरह से समझाने या स्पष्ट करने में असमर्थ होते हैं। अगर कोई उनसे कुछ जानना चाहता है तो वे उसे केवल कुछ खोखले शब्द और धर्म-सिद्धांत भर बता सकते हैं। जब उन्हें ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़े जिनका समाधान किया जाना हो, तो वे अक्सर इस तरह के कथनों में उत्तर देते हैं, “तुम सभी इस कर्तव्य को निभाने में माहिर हो। अगर तुम लोगों को कोई समस्या है, तो तुम्हें खुद ही उसका समाधान निकालना चाहिए। मुझसे मत पूछो; मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूँ और मुझे इसकी समझ नहीं है। इसे तुम लोग अपने आप हल करो।” कुछ लोग जवाब दे सकते हैं कि “हम तुमसे इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि हम समस्या का समाधान नहीं कर पा रहे हैं; अगर हम इसे हल कर पाते, तो तुमसे नहीं पूछते। हम सत्य सिद्धांतों से जुड़ी इस समस्या को नहीं समझते।” नकली अगुआ जवाब देंगे कि “क्या मैं तुम लोगों को पहले ही सिद्धांत नहीं बता चुका हूँ? अपने कर्तव्य अच्छी तरह से निभाओ और विघ्न-बाधा न पैदा करो। तुम अब भी किस बारे में पूछ रहे हो? तुम्हें जैसे ठीक लगे वैसे इसे संभालो! परमेश्वर के वचन पहले ही बोले जा चुके हैं : परमेश्वर के घर के हितों को प्राथमिकता दो।” इससे वे लोग पूरी तरह से भ्रमित हो जाते हैं और सोचते हैं, “यह तो समस्या का समाधान नहीं है!” नकली अगुआ अपने कार्य को इसी तरह लेते हैं; वे केवल इसका निरीक्षण करते हैं, औपचारिकता निभाते हैं और कभी समस्याओं का समाधान नहीं करते। लोग चाहे जो भी समस्याएँ उठाएँ, नकली अगुआ उन्हें खुद सत्य खोजने के लिए कहते हैं। वे अक्सर लोगों से पूछते हैं, “क्या तुम्हें कोई समस्या है? तुम्हारा जीवन प्रवेश कैसा है? क्या तुम अपने कर्तव्यों को अनमने ढंग से निभा रहे हो?” वे लोग जवाब देते हैं, “कभी-कभी, मैं खुद को अनमनी स्थिति में पाता हूँ और प्रार्थना के माध्यम से इसे हल कर खुद को ठीक कर लेता हूँ, लेकिन मैं अभी भी अपने कर्तव्य निभाने के सत्य सिद्धांतों को नहीं समझता।” नकली अगुआ कहते हैं, “क्या मैंने पिछली सभा में तुम्हारे साथ विशिष्ट सिद्धांतों पर संगति नहीं की थी? मैंने तो तुम्हें परमेश्वर के वचनों के कई अंश भी सुनाए थे। क्या तुम्हें अब तक समझ नहीं जाना चाहिए था?” वास्तव में वे सभी धर्म-सिद्धांत समझते हैं, फिर भी वे अभी अपनी समस्याओं को हल करने में असमर्थ हैं। नकली अगुआ बड़ी-बड़ी बातें भी करते हैं, “तुम इसे हल क्यों नहीं कर सकते? तुमने परमेश्वर के वचनों को ठीक से पढ़ा ही नहीं है। यदि तुम अधिक प्रार्थना करो और परमेश्वर के वचन और अधिक पढ़ो तो तुम्हारी सभी समस्याएँ हल हो जाएँगी। तुम लोगों को एक साथ चर्चा करना और रास्ता निकालना सीखना होगा, फिर तुम्हारी समस्याएँ अंततः हल हो जाएँगी। जहाँ तक पेशेवर समस्याओं की बात है तो उनके बारे में मुझसे मत पूछो; मेरी जिम्मेदारी काम का निरीक्षण करने की है। मैंने अपना काम पूरा कर लिया है और बाकी काम ऐसे पेशेवर मामले हैं जिन्हें मैं नहीं समझता।” नकली अगुआ अक्सर लोगों को टालने और सवालों से बचने के लिए “मुझे समझ में नहीं आता, मैंने इसे कभी नहीं सीखा, मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूँ” जैसे कारण और बहाने गिनाते हैं। वे काफी विनम्र लग सकते हैं; परंतु यह नकली अगुआओं से जुड़ी एक गंभीर समस्या को उजागर करता है—उन्हें कुछ कामों के पेशेवर ज्ञान से जुड़ी समस्याओं की कोई समझ नहीं होती है, वे अशक्त महसूस करते हैं और बेहद अजीब और शर्मिंदा दिखते हैं। फिर वे क्या करते हैं? वे सभाओं के दौरान सबके साथ संगति करने के लिए सिर्फ परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश जुटा सकते हैं और लोगों को प्रेरित करने के लिए कुछ धर्म-सिद्धांतों के बारे में बात कर सकते हैं। थोड़े दयालु किस्म के अगुआ लोगों के प्रति चिंता दिखाकर समय-समय पर उनसे पूछ सकते हैं, “क्या हाल ही में तुम्हें अपने जीवन में किसी कठिनाई का सामना करना पड़ा है? क्या तुम्हारे पास पर्याप्त कपड़े हैं? क्या तुम में से कोई ऐसा है जो दुर्व्यवहार कर रहा है?” यदि हर कोई कहता है कि उन्हें ऐसी कोई समस्या नहीं है तो वे जवाब देते हैं, “तो कोई समस्या नहीं है। तुम लोग अपना काम जारी रखो; मुझे दूसरे मामले देखने हैं” और वे इस डर से तुरंत वहाँ से चले जाते हैं कि कोई सवाल पूछकर उनसे समाधान करने के लिए कह सकता है जिससे वे शर्मनाक स्थिति में पड़ सकते हैं। नकली अगुआ इसी तरह काम करते हैं—वे किसी भी वास्तविक समस्या का समाधान नहीं कर सकते। कलीसिया के कार्य को वे कैसे प्रभावी ढंग से कार्यान्वित कर सकते हैं? नतीजतन, अनसुलझी समस्याओं का ढेर अंततः कलीसिया के कार्य में बाधा डालता है। यह नकली अगुआओं की कार्यशैली का एक प्रमुख लक्षण और अभिव्यक्ति है।

अपने काम में नकली अगुआ केवल उपदेश देने के प्रति उत्साहित होते हैं, और उन्हें सबसे ज्यादा शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलना पसंद होता है, और यह सोचकर कि जब तक वे लोगों को उनके कर्तव्य निर्वहन में ऊर्जावान और व्यस्त रखते हैं, तो यह उनके द्वारा अच्छा काम करने के समान ही है, उन्हें लोगों को प्रोत्साहित करने और सांत्वना देने वाले शब्द बोलना पसंद होता है। इसके अतिरिक्त, नकली अगुआ हर व्यक्ति के दैनिक जीवन की स्थिति का ध्यान रखने के बारे में जुनूनी होते हैं। वे अक्सर लोगों से पूछते हैं कि क्या उन्हें इस संबंध में कोई कठिनाई आ रही है, और अगर वास्तव में कोई कठिनाई होती है, तो वे उन कठिनाइयों को हल करने में मदद करने के लिए तैयार होते हैं। वास्तव में वे इन सामान्य मामलों में खुद को व्यस्त रखते हैं, कभी-कभी तो भोजन भी नहीं करते, और अक्सर देर रात तक जागते हैं और सुबह जल्दी उठ जाते हैं। उनकी इतनी व्यस्तता और कड़ी मेहनत के बाद भी कलीसिया के कार्य से संबंधित समस्याएँ और अपने कर्तव्य करते समय परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामने आने वाली कठिनाइयाँ अनसुलझी क्यों रहती हैं? ऐसा इसलिए है कि नकली अगुआ कभी भी कर्तव्य करने से संबंधित सत्य सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से नहीं समझा सकते। उनके शब्द और धर्म-सिद्धांत, और उपदेश पूरी तरह से निष्प्रभावी होते हैं और वे वास्तविक मुद्दों को बिल्कुल भी हल नहीं कर सकते हैं। वे चाहे जितना बोलें या चाहे जितने भी व्यस्त या थके हुए हों, कलीसिया का कार्य कभी आगे नहीं बढ़ता। यद्यपि बाहर से हर कोई अपने कर्तव्यों का पालन करता हुआ दिखाई देता है, लेकिन वे बहुत से वास्तविक परिणाम प्राप्त नहीं करते, क्योंकि नकली अगुआ कर्तव्य करने से जुड़े सत्य सिद्धांतों पर संगति करने या वास्तविक मुद्दों को हल करने के लिए सत्य का उपयोग करने में सक्षम नहीं होते—इसलिए वे कर्तव्य निर्वहन से जुड़ी बहुत-सी समस्याओं को हल करने में असमर्थ होते हैं। उदाहरण के लिए, एक बार परमेश्वर के घर को परमेश्वर के वचनों की किताबें छापने की जरूरत थी और एक अगुआ को इस कार्य का प्रभारी बनाने के लिए दो व्यक्तियों का चयन करना था। लोगों को चुनने के लिए क्या मानक हैं? उनकी मानवता अपेक्षाकृत अच्छी होनी चाहिए, उन्हें विश्वसनीय होना चाहिए और जोखिम उठाने में सक्षम होना चाहिए। व्यक्तियों के चयन के बाद, इस अगुआ ने उनसे कहा, “आज, मैंने तुम दोनों को एक काम सौंपने के लिए बुलाया है : परमेश्वर के घर में एक किताब है जिसे छपवाना है, और मैं चाहता हूँ कि तुम एक छापाखाना ढूँढ़ो और जब प्रतियाँ छप जाएँ, तो उन्हें तुरंत परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बाँट दो, ताकि वे बिना किसी देरी के परमेश्वर के वचनों को खा-पी सकें। क्या तुम लोग इस कार्य को करने का दृढ़ संकल्प करते हो? क्या तुम यह दायित्व और यह जोखिम उठाने के लिए तैयार हो?” दोनों व्यक्तियों का मानना था कि इसके माध्यम से परमेश्वर उन्हें ऊपर उठा रहा था, इसलिए उन्होंने हामी भर दी। फिर अगुआ ने उनसे पूछा, “क्या तुम लोगों में परमेश्वर के आदेश को पूरा करने का संकल्प है? क्या तुम शपथ लेने के लिए तैयार हो?” फिर दोनों व्यक्तियों ने शपथ लेते हुए कहा, “यदि हम परमेश्वर के आदेश को पूरा न कर सके और इस काम में गड़बड़ी करें, जिससे परमेश्वर के घर के कार्य को नुकसान हो, तो हम पर स्वर्ग से गर्जन के साथ बिजली गिर जाए। आमीन!” अगुआ ने कहा, “साथ ही, हमें सत्य पर संगति करने की आवश्यकता है। अब इस काम को करते हुए क्या तुम व्यवसाय कर रहे हो? क्या तुम लोगों से कर्मचारी के रूप में काम करने के लिए कहा जा रहा है?” दोनों व्यक्तियों ने उत्तर दिया, “नहीं, यह हमारा कर्तव्य है।” अगुआ ने कहा, “चूँकि यह तुम्हारा कर्तव्य है, इसलिए तुम्हें परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करना चाहिए। तुम परमेश्वर को परेशान नहीं कर सकते या उसे चिंता में नहीं डाल सकते। जोखिम उठाने के लिए तैयार होना ही पर्याप्त नहीं है; तुम्हें अपना कर्तव्य निष्ठा के साथ निभाना चाहिए। जब तुम समस्याओं का सामना करते हो, तो तुम्हें अधिक प्रार्थना करनी चाहिए और एक दूसरे से परामर्श करना चाहिए। जो मन में आए वही मत करने लगो, अपनी मनमर्जी मत चलाओ। मैंने तुम दोनों को साथ क्यों रखा है? ऐसा इसलिए है ताकि जब कोई समस्या सामने आए तो तुम चीजों पर चर्चा कर सको, जिससे तुम्हारे लिए कार्रवाई करना आसान हो जाए। यदि तुम किसी सहमति पर नहीं पहुँच पाते तो प्रार्थना करो। तुम दोनों को अपनी निजी राय छोड़ देनी चाहिए, और केवल तभी काम करना चाहिए जब तुम्हारे बीच सहमति हो। मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम दोनों इस काम को सफलतापूर्वक पूरा कर लोगे!” अंत में, इस अगुआ को अपने कर्तव्य अच्छी तरह से करने के तरीकों के बारे में परमेश्वर के वचनों का एक अंश मिला, और उन तीनों ने इसे कई बार पढ़ते हुए प्रार्थना की। इसके साथ ही यह मान लिया गया कि मामला उन्हें सौंप दिया गया है और अगुआ की जिम्मेदारी पूरी हो गई है। इस काम में अगुआ का प्रदर्शन कैसा था? अगुआ और उन दोनों व्यक्तियों को भी काफी संतुष्टि महसूस हुई। दूर से देखने वालों ने टिप्पणी की, “यह अगुआ वास्तव में काम करवाने के बारे में कुछ बातें जानता है; उसका भाषण सुव्यवस्थित और अच्छे आधार वाला है, और वह चरणबद्ध तरीके से काम करता है। सबसे पहले उसने उन दोनों को कार्य सौंपा, फिर उन्होंने उनके विचारों और दृष्टिकोणों से जुड़े मुद्दों को सुलझाया, और अंत में, उसने कुछ कठोर शब्द कहे, उन्हें शपथ दिलाई और प्रतिज्ञा करवाई। उसने वास्तव में इस कार्य को विधिवत किया और वह वास्तव में अगुआ की उपाधि का हकदार है—वह अनुभवी है और बोझ उठाता है।” अंत में, अगुआ ने उनसे कहा, “याद रखो : किताबें छापना कोई आसान काम नहीं है, यह ऐसा काम नहीं है जिसे कोई साधारण व्यक्ति कर सके। यह कार्य मैंने या परमेश्वर के घर ने तुम्हें नहीं सौंपा है; यह परमेश्वर का आदेश है। तुम्हें उसे निराश नहीं करना चाहिए। जब तक तुम इस कार्य को अच्छी तरह से पूरा करोगे, तुम्हारा जीवन आगे बढ़ेगा, और तुम्हारे पास वास्तविकता होगी।” सैद्धांतिक ढंग से देखें तो, इन शब्दों में कोई सिद्धांत संबंधी मुद्दे नहीं थे; उन्हें कमोबेश सही माना जा सकता था। तो आओ, इस मामले का विश्लेषण करें और देखें कि इस नकली अगुआ में “नकलीपन” कहाँ अभिव्यक्त हुआ। क्या अगुआ ने इस कार्य से संबंधित पेशेवर और तकनीकी पहलुओं जैसे विभिन्न विस्तृत मुद्दों पर कोई निर्देश दिए? क्या उसने किन्हीं विशिष्ट सत्य सिद्धांतों या आवश्यक मानकों पर संगति की? (नहीं।) उसने केवल कुछ खोखले और अर्थहीन शब्द कहे—ऐसे शब्द जो अधिकांश लोग अक्सर कहते हैं, ऐसे शब्द जिनमें कोई वजन नहीं होता। चूँकि अगुआ व्यक्तिगत रूप से बोल रहा था और निर्देश दे रहा था, इसलिए लोगों ने इन शब्दों को सामान्य से अधिक वजनदार माना, लेकिन वास्तव में, वे कुछ अप्रासंगिक बातें थीं और पुस्तकों की छपाई से संबंधित किसी भी वास्तविक मुद्दे को हल करने पर उनका कोई प्रभाव नहीं था। तो, पुस्तक छपाई में शामिल कुछ विशिष्ट मुद्दे क्या हैं? हमें उन पर चर्चा करनी चाहिए और देखना चाहिए कि क्या इस अगुआ ने जो काम किया वह किसी नकली अगुआ का काम था।

पहली बात यह कि किताबों की छपाई में टाइपसेटिंग, और फिर पाठ की प्रूफरीडिंग, विषय-सूची और मुख्य पाठ का प्रारूप तैयार करना शामिल होता है, साथ ही कागज का वजन, रंग और गुणवत्ता आदि भी शामिल हैं। किताब का आवरण-पृष्ठ भी तैयार करना होता है, वह लचीला होगा या कठोर, और आवरण-पृष्ठ के लिए डिजाइन, रंग, पैटर्न और फॉन्ट आदि का भी चयन करना होता है। अंत में, बाइंडिंग का चयन करना होता है, गोंद से चिपकाया जाए या सिलाई की जाए। ये सभी मुद्दे हैं जो पुस्तक मुद्रण के दायरे में आते हैं। क्या अगुआ ने इनमें से किसी पर चर्चा की? (नहीं।) एक और मुद्दा छापाखाने की तलाश का है : क्या छपाई और बाइंडिंग की मशीनें अत्याधुनिक हैं, छपाई और बाइंडिंग की गुणवत्ता कैसी है, और मूल्य निर्धारण—क्या उसे सिद्धांतों और दायरों के साथ-साथ इन सभी चीजों के बारे में निर्देश नहीं देने चाहिए थे? यदि अगुआ ने कहा होता, “ये चीजें मुझे समझ में नहीं आती हैं; बस जो भी हो, देख लो,” तो क्या वह उपयोगी अगुआ होता? क्या उसके द्वारा बोले गए अप्रासंगिक शब्द पुस्तक मुद्रण में शामिल विभिन्न विस्तृत मुद्दों का स्थान ले सकते हैं? (नहीं।) और फिर भी, इस नकली अगुआ को विश्वास था कि उसके शब्द ऐसा कर सकते हैं। उसने सोचा, “मैंने पहले ही बहुत सारे सत्यों पर संगति की है, और मैंने उन्हें सभी सिद्धांत बता दिए हैं। उन्हें ये बातें समझ में आनी चाहिए!” यह “चाहिए” इस नकली अगुआ का तर्क और समस्या का समाधान करने का तरीका है। अंत में, जब किताबें छपीं, तो बहुत घटिया और बहुत पतला कागज होने के कारण मुद्रित सामग्री दोनों तरफ से दिख रही थी, जिससे बुजुर्गों और कमजोर दृष्टि वाले लोगों के लिए इस किताब को पढ़ना बहुत कष्टदायक और कठिन था। पुस्तक प्रकाशन के अंतिम चरण, बाइंडिंग प्रक्रिया का मुद्दा भी था—बाइंडिंग मानक के अनुसार है या नहीं, यह बात पुस्तक की समग्र गुणवत्ता और जीवनकाल को प्रभावित करती है। क्योंकि अगुआ ने निर्देश नहीं दिए थे, और जिन्होंने इस कार्य को अंजाम दिया उनके पास सिद्धांतों और अनुभव की कमी थी, और वे गैर-जिम्मेदाराना सौदेबाजी में लगे हुए थे, छापाखाने वाले ने घटिया काम किया और लागत निकालने के लिए घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया, और अंत में ये किताबें जब भाई-बहनों को दी गईं, तो दो महीने के भीतर ही उनके पन्ने अलग होने लगे। आवरण और पन्ने अलग-अलग हो गए, और छपाई का पूरा काम व्यर्थ हो गया। यह किसकी जिम्मेदारी थी? अगर किसी को जवाबदेह ठहराना हो, तो प्रत्यक्ष जिम्मेदारी उन दो व्यक्तियों की होगी जो किताबों की छपाई के प्रभारी थे, और अप्रत्यक्ष जिम्मेदारी उस नकली अगुआ की होगी। नकली अगुआ के पास एक बहाना भी था, उसने कहा “इस काम के खराब होने के लिए तुम मुझे दोषी नहीं ठहरा सकते; मैं तो यह काम जानता ही नहीं! मैंने कभी किताबें नहीं छापी हैं, और मेरे पास कोई छापाखाना भी नहीं है। मुझे इन चीजों के बारे में कैसे पता होगा?” क्या यह बहाना ठीक है? एक अगुआ के रूप में यह काम तुम्हारी जिम्मेदारियों के दायरे में आता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह किसी पेशे, कौशल, एक तरह के ज्ञान या सत्य से संबंधित काम है, तुम्हें इसके हर हिस्से को समझने की जरूरत नहीं है, लेकिन तुम जो नहीं जानते क्या उसे जानने का तुमने प्रयास किया है? क्या तुमने अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता और कर्तव्यनिष्ठ तरीके से पूरा किया है? कुछ लोग कह सकते हैं कि “मैं अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना चाहता हूँ, लेकिन मुझे यह काम समझ में ही नहीं आता। मैं सीखने की चाहे जितनी भी कोशिश करूँ, मैं इसे सीख नहीं सकता!” इसका मतलब है कि अगुआ के रूप में तुम मानक स्तर के नहीं हो; तुम सरासर नकली अगुआ हो। भाई-बहनों को किताबों की खराब गुणवत्ता के कारण कुछ नाराजगी महसूस हुई, तो उन्होंने कहा, “हालाँकि इन किताबों पर हमें पैसे खर्च नहीं करने पड़े, लेकिन इनकी गुणवत्ता बहुत खराब है! इस अगुआ ने अपना काम कैसे किया? उसने इस काम को किस तरह अंजाम दिया?” जब अगुआ ने यह सुना, तो उसने सवाल किया “क्या तुम इसके लिए मुझे दोषी ठहरा सकते हो? मैं छापाखाने का मालिक नहीं हूँ, और इसमें मेरा निर्णय ही अंतिम नहीं है। इसके अलावा, क्या इस काम से परमेश्वर के घर के लिए पैसे नहीं बचे? क्या परमेश्वर के घर के लिए पैसे बचाना गलत है?” अगुआ के शब्द सही थे, वे गलत नहीं थे; अगुआ को कानूनी जिम्मेदारी लेने की जरूरत नहीं थी। परंतु, समस्या यह थी कि किताबों की छपाई पर खर्च किया गया पैसा बर्बाद हो गया। भाई-बहनों को वितरित की गई किताबों के पन्ने दो महीने के भीतर ही अलग होकर निकलने लगे। इसका खामियाजा किसे भुगतना चाहिए? क्या यह अगुआ की जिम्मेदारी नहीं थी? यह तुम्हारे काम के दायरे में हुआ था, उस समय हुआ था जब तुम अगुआ के रूप में सेवारत थे, तो क्या तुम्हें जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए? यह दोष तुम्हें लेना होगा; तुम अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते! कुछ लोग अनुचित तरीके से भी बोल सकते हैं, कह सकते हैं, “मैंने पहले कभी यह काम नहीं किया है। क्या मुझसे उस काम में गलतियाँ नहीं हो सकतीं जिसे मैंने पहले कभी नहीं किया हो?” सिर्फ इस कथन के आधार पर जाना जा सकता है कि तुम अपने काम के अयोग्य हो, और तुम्हें बरखास्त कर दिया जाना चाहिए। तुम अगुआ बनने के लिए उपयुक्त नहीं हो; तुम वास्तव में नकली अगुआ ही हो। बहुत सारे सुखद लगने वाले शब्द बोलना, लेकिन कोई वास्तविक काम न करना—यह नकली अगुआ की सबसे स्पष्ट अभिव्यक्ति है।

कुछ नकली अगुआ जमीन पर अपने पैर जमाए हुए वास्तविक काम की हर मद को ठीक से और ठोस तरीके से करने में असमर्थ होते हैं। वे केवल कुछ सामान्य मामलों को ही संभाल सकते हैं, और फिर भी मानते हैं कि वे अगुआ के रूप में मानक स्तर के हैं, वे अद्भुत हैं, और वे अक्सर डींग हाँकते हुए कहते हैं, “मुझे कलीसिया में हर चीज की चिंता करनी होती है, और मुझे हर समस्या से निपटना होता है। क्या कलीसिया मेरे बिना चल सकती है? अगर मैं तुम लोगों के लिए सभाएँ आयोजित नहीं करता, तो क्या तुम लोग रेत के ढेर की तरह बिखर नहीं जाते? अगर मैं फिल्म निर्माण कार्य पर नजर नहीं रखता और उसे बनाए रखने में मदद नहीं करता, तो क्या लोग इसमें लगातार बाधा नहीं पहुँचाते? क्या फिल्म निर्माण कार्य सुचारू रूप से आगे बढ़ सकता था? यद्यपि मैं भजनों के काम में बस एक आम आदमी हूँ, लेकिन अगर मैं अक्सर तुम्हारे काम का निरीक्षण करने नहीं आता, तुम लोगों के लिए दृढ़ता से डटा नहीं रहता, और तुम्हारे लिए सभाएँ आयोजित नहीं करता, तो क्या तुम लोग उन भजनों का निर्माण कर सकते थे? इन चीजों को समझने में तुम लोगों को कितना समय लगेगा?” ये कथन उचित और सही लग सकते हैं, लेकिन यदि तुम ध्यान से देखो, तो पता चलेगा कि इन नकली अगुआओं के पर्यवेक्षण में विभिन्न पेशेवर कार्य किस तरह से आगे बढ़ रहे हैं? क्या वे सत्य सिद्धांतों पर स्पष्ट रूप से संगति कर सकते हैं? (नहीं।) एक बार, एक फिल्म निर्माण टीम ने पोशाक के रंगों के मुद्दे पर सुझाव माँगा। उन्होंने कई स्टिल शॉट लिए, और उन शॉट्स में पृष्ठभूमि और लोग अलग-अलग थे, लेकिन पोशाकें मूल रूप से एक ही रंग योजना में थीं—वे सभी भूरे और पीले रंग की थीं। मैंने पूछा, “ये क्या हो रहा है? वे इन रंगों के कपड़े क्यों पहन रहे हैं?” उन्होंने कहा कि इन रंगों को जानबूझकर चुना गया है, उन्होंने बड़ी मेहनत और प्रयास से इन्हें बाजार से हासिल किया है। मैंने कहा, “तुमने ये रंग क्यों चुने? क्या ऊपरवाले ने तुम्हें इस बारे में निर्देश दिए थे? क्या ऊपरवाले ने तुम्हें विभिन्न रंगों का उपयोग करने और रंगों को गरिमापूर्ण और सभ्य रखने का निर्देश नहीं दिया था? यह परिणाम कैसे आया?” अंत में, पूछताछ के बाद, कुछ लोगों ने कहा, “दूसरे रंग पर्याप्त गरिमापूर्ण और सभ्य नहीं लगते, या परमेश्वर में विश्वास करने वालों या संतों द्वारा पहने जाने वाले रंगों जैसे नहीं लगते। विश्वासियों को जो पहनना चाहिए, उससे केवल यही रंग योजना अधिक मेल खाती है। इसलिए, सभी का साझा विचार था कि इस तरह के रंगों के कपड़े पहनने से परमेश्वर का सबसे अधिक महिमामंडन होता है और परमेश्वर के घर की छवि सबसे अच्छे ढंग से प्रदर्शित होती है।” मैंने कहा, “मैंने तुम लोगों को इन रंगों में कपड़े पहनने के लिए कभी नहीं कहा। बहुत सारे गरिमापूर्ण और सभ्य रंग हैं। सोचो कि इंद्रधनुष कितना सुंदर है जिसे परमेश्वर ने मानवजाति के साथ अपनी वाचा के संकेत के रूप में स्थापित किया है। लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, जामुनी, बैंगनी—उसमें हर रंग का प्रतिनिधित्व है सिवाय उनके जिन्हें तुम लोगों ने पहना है। तुमने उन रंगों को क्यों चुना?” क्या उनके अगुआ ने इन मामलों के बारे में जाँच-पड़ताल करने का ठोस काम किया था? मैं कह सकता हूँ कि उसने यह काम बिल्कुल नहीं किया। अगर अगुआ के पास शुद्ध समझ होती और वह वास्तव में सत्य और परमेश्वर की अपेक्षाओं को समझता, तो फिल्म निर्माण टीम के सदस्य ऐसी वेशभूषा नहीं चुनते और इस बारे में ऊपरवाले से सलाह नहीं लेते। वेशभूषा का मुद्दा निचले स्तर पर हल किया जा सकता था, लेकिन नकली अगुआ इस पर ध्यान देने में अक्षम रहा। इसके बजाय, उसने बेशर्मी से ऊपरवाले से इसके बारे में पूछा। क्या ऐसे व्यक्ति की काट-छाँट नहीं की जानी चाहिए? यह नकली अगुआ इतनी आसान समस्या को भी हल नहीं कर सका—वह किस काम का है? तुम बस कचरा हो! तुम्हें परमेश्वर का महिमामंडन करने और उसकी गवाही देने के लिए कहा गया था, लेकिन तुम परमेश्वर का अपमान कर बैठे। क्या तुम बहुत कुछ नहीं समझते? क्या तुम ज्ञान और धर्मसिद्धांतों का खजाना नहीं बता सकते? फिर, वे सभी धर्म-सिद्धांत और वह सारा ज्ञान इस स्थिति में अप्रभावी क्यों रहे? तुम वेशभूषा के मुद्दे की जाँच करने और उसे हल करने में भी कैसे विफल हो सकते हो? क्या तुमने वह प्रभाव डाला है जो तुम्हें एक अगुआ के रूप में डालना चाहिए? क्या तुमने वे जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं जो तुम्हें एक अगुआ के रूप में निभानी चाहिए? यह नकली अगुआ की अभिव्यक्ति है। किसी भी विशिष्ट कार्य में, नकली अगुआओं में सिद्धांतों की समझ का अभाव होता है। वे सत्य की विकृत समझ के किसी भी मुद्दे को समय पर सुधारने और उसका समाधान करने में, और इसके माध्यम से लोगों को दिशा और एक मार्ग खोजने में सक्षम बनाने में असमर्थ होते हैं। नकली अगुआ केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं और नारे लगाते हैं; वे कोई भी ठोस काम करने में असमर्थ होते हैं।

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