अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (2) खंड तीन

नकली अगुआओं के काम के दुष्प्रभाव और परिणाम

जब लोगों के जीवन प्रवेश में आने वाली तमाम कठिनाइयों की बात आती है, तो नकली अगुआ क्या करते हैं? जब लोग कठिनाइयों के इन आठ प्रकारों में से किसी एक के अंतर्गत आने वाली किसी भी तरह की स्थिति का सामना करते हैं तो क्या नकली अगुआ इसे पहचान सकते हैं, और इन लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए परमेश्वर के वचनों और अपने स्वयं के अनुभवजन्य ज्ञान का उपयोग कर सकते हैं? दुर्भाग्य से, जब लोग कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो ये नकली अगुआ केवल सतही प्रयास करते हैं, बस कुछ उथली, बेमतलब की और अप्रासंगिक टिप्पणियाँ करते हैं जिनका लोगों के स्वभाव और लोगों की समस्याओं को हल करने में वास्तविक कठिनाइयों से कोई संबंध नहीं होता। उदाहरण के लिए, नकली अगुआ अक्सर कहते हैं कि “तुम सत्य से प्रेम नहीं करते!” इस तरह से वे लोगों की वास्तविक कठिनाइयों को हल करने और उनके सार को चित्रित करने का प्रयास करते हैं। वे लोगों को किसी छोटी-सी समस्या या स्थिति का भी हल परमेश्वर के वचनों में खोजने में मदद नहीं कर सकते, न ही वे सत्य पर संगति करके इसे हल कर सकते हैं। इसके बजाय, वे कुछ धर्म-सैद्धांतिक और असंबंधित टिप्पणियाँ करते हैं, या वे समस्या का फायदा उठाते हैं और लोगों को पश्चात्ताप करने का अवसर दिए बिना उन्हें पूरी तरह से खारिज करने के लिए बात का बतंगड़ बना देते हैं। वास्तव में, यदि किसी के पास परमेश्वर के वचन समझने की क्षमता है और आध्यात्मिक समझ है, तो वह परमेश्वर के वचनों में इन आठ पहलुओं का प्रकाशन पा सकता है, यह मुश्किल नहीं है। परंतु, चूँकि नकली अगुआओं में आध्यात्मिक समझ नहीं होती, उनकी काबिलियत कम होती है, और उनमें समझने की क्षमता का अभाव होता है, साथ ही यह भी एक तथ्य है कि उनमें से कुछ तो बस उत्साही होते हैं, कुछ करने के उत्सुक होते हैं, पाखंडी होते हैं, और आध्यात्मिक व्यक्ति होने का दिखावा करते हैं, वे दूसरे लोगों की समस्याओं को बिल्कुल हल नहीं कर सकते। जब लोगों के सामने आने वाली विभिन्न समस्याओं की बात आती है, तो नकली अगुआ उन्हें इन शब्दों में सलाह देते हैं, “परमेश्वर का कार्य इतना आगे बढ़ चुका है; तुम अभी भी ईर्ष्या और दूसरों से विवाद क्यों कर रहे हो? क्या तुम्हारे पास इसके लिए समय है? इस पर लड़ने का क्या फायदा है? क्या इस बात पर लड़े बिना तुम काम नहीं चला सकते?” “परमेश्वर का कार्य इतना आगे आ चुका है, लेकिन तुम अभी भी इतने भावुक हो, और तुम इसे जाने नहीं दे सकते। देर-सवेर, ये भावनाएँ तुम्हारी जान ले लेंगी!” “परमेश्वर का कार्य इतना आगे आ चुका है, तो तुम अब भी भोजन और कपड़ों के बारे में इतने चिंतित क्यों हो? क्या तुम कोई खास पोशाक पहने बिना काम नहीं चला सकते? क्या तुम चमड़े के जूते खरीदे बिना काम नहीं चला सकते? तुम्हें परमेश्वर के वचनों और अपने कर्तव्य के बारे में अधिक सोचना चाहिए!” “जब तुम पर कोई बात आन पड़े, तो परमेश्वर से अधिक प्रार्थना करो। तुम्हारे साथ कुछ भी हो, एक ही सबक है: परमेश्वर के प्रति समर्पण करना सीखना और उसकी संप्रभुता और व्यवस्था को समझना।” क्या यह सलाह वास्तविक समस्याओं को हल कर सकती है? बिल्कुल नहीं। अन्यथा, वे कहते हैं, “शैतान ने लोगों को गहराई से भ्रष्ट कर दिया है। भावुक होकर, क्या तुम परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह नहीं कर रहे हो? खुद को नहीं जानकर क्या तुम परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह नहीं कर रहे हो?” समस्या चाहे जो हो, नकली अगुआ नहीं जानते कि किसी व्यक्ति के सार या स्थिति का गहन-विश्लेषण करने के लिए सत्य की संगति कैसे करें, वे यह नहीं समझ पाते कि लोगों की स्थितियाँ कैसे उत्पन्न होती हैं, और न ही वे उनकी स्थितियों के आधार पर, उनकी समस्याओं को हल करने के लिए सत्य की संगति, उचित सहायता और प्रावधान प्रदान कर पाते हैं। इसके बजाय, वे हमेशा एक ही बात कहते हैं : “परमेश्वर से प्रेम करो! अपने कर्तव्य करने के लिए कड़ी मेहनत करो, तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, और जब तुम समस्याओं का सामना करो तो अधिक प्रार्थना करो!” “सब कुछ परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्था के भीतर है। सब कुछ परमेश्वर के हाथ में है!” “सत्य की खोज किए बिना काम नहीं चलेगा। तुम्हें परमेश्वर के वचनों को और अधिक पढ़ना चाहिए। परमेश्वर के वचन सब कुछ स्पष्ट कर देते हैं, लेकिन लोग बस सत्य से प्रेम नहीं करते!” “आपदाएँ आने ही वाली हैं, सभी चीजों का अंतिम परिणाम निकट है, और परमेश्वर का कार्य समाप्त हो रहा है, लेकिन तुम्हें बेचैनी नहीं है। मनुष्यों के पास कितने दिन बचे हैं? परमेश्वर का राज्य आ गया है!” नकली अगुआ बस ये बेतुकी बातें कहते हैं, कभी भी विभिन्न समस्याओं का विशिष्ट और गहन विश्लेषण नहीं करते, न ही लोगों को वास्तविक प्रावधान या सहायता प्रदान करते हैं। या तो वे लोगों को पढ़ने के लिए परमेश्वर के वचनों से कुछ अंश ढूँढ़ते हैं, या वे उनसे निपटने की अप्रासंगिक सलाह देते हैं। अंत में क्या होता है? नकली अगुआओं से हुए नुकसान के चलते लोग न केवल अपने भ्रष्ट स्वभाव को नहीं जान पाते, बल्कि वे यह भी नहीं जानते हैं कि उनका अपना चरित्र कैसा है, वे किस तरह के व्यक्ति हैं, और उनका प्रकृति सार कैसा है; वे इस बारे में स्पष्ट नहीं होते कि उनकी अपनी काबिलियत कैसी है, उनमें समझने की क्षमता है या नहीं, या वे किस मार्ग पर हैं। वे अपने दिल में जिन सांसारिक और चलन की चीजों से प्रेम करते हैं और महत्व देते हैं, उन्हें अब भी पकड़े रखते हैं, और कोई भी उन्हें इन चीजों को समझने, उनका गहन-विश्लेषण करने या विश्लेषण करने में मदद नहीं करता। ये नकली अगुआओं के काम के परिणाम हैं। जब समस्याएँ खड़ी होती हैं, तो वे या तो लोगों को बहुत बुरी तरह से झाड़ते हैं, मनमाने ढंग से उनकी निंदा करते हैं और गलत तरीके से उन पर आरोप लगाते हैं, या वे लोगों को यथार्थ से परे सलाह और सबक देते हैं, या वे गलत तुलनाएँ करने के लिए परमेश्वर के वचनों का जबरदस्ती उपयोग करते हैं। जो लोग उन्हें सुनते हैं, वे सोचते हैं, “मुझे ऐसा लगता है कि मैं समझ रहा हूँ, लेकिन ऐसा भी लगता है कि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा—यह ऐसा है कि उन्होंने जो कहा वह मैंने शायद समझ लिया है, लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि मैं नहीं समझ पाया हूँ। ऐसा क्यों है? अगुआ जो कुछ भी कहता है वह सही है, लेकिन मैं अपने दिल में इस मुद्दे से छुटकारा क्यों नहीं पा रहा हूँ? मैं इस कठिनाई का समाधान क्यों नहीं ढूँढ़ पा रहा हूँ? मैं अभी भी इस तरह क्यों सोचता हूँ और क्यों ये चीजें करना चाहता हूँ? मैं यह क्यों नहीं समझ पाता हूँ कि मुद्दे का सार और मूल कहाँ है? अगुआ कहता है कि मुझे सत्य से प्रेम नहीं है, और मैं स्वीकार करता हूँ कि मुझे सत्य से प्रेम नहीं है, लेकिन मैं इस स्थिति से बाहर क्यों नहीं निकल पा रहा हूँ?” क्या इन अगुआओं का कोई प्रभाव पड़ा है? हालाँकि उन्होंने बात की है और काम किया है, पर यह सब बहुत बड़ी उलझन है, और इसका वह प्रभाव नहीं पड़ा जो होना चाहिए था। उन्होंने लोगों को परमेश्वर के इरादे समझने, परमेश्वर के वचनों से अपनी तुलना करने, अपनी स्थितियाँ सटीक रूप से समझने या अपनी कठिनाइयों को हल करने में सक्षम नहीं बनाया है। जहाँ तक उन अड़ियल, बेशर्म लोगों की बात है जो सत्य बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते, जब वे इन अगुआओं को गंभीरतापूर्वक और धैर्यपूर्वक डांटते हुए सुनते हैं, तो उनका सारा उत्साह ठंडा पड़ जाता है। साथ ही, वे इन अगुआओं द्वारा कहे गए शब्दों को बार-बार दोहराते हैं—अगुआ जब पहला भाग समाप्त करते हैं, तब ये लोग उसके अगले भाग पर आ जाते हैं, और वे जल्दी ही अधीर होकर कहते हैं, “और मत कहो। मैं पहले से ही तुम्हारी सारी बातें समझ चुका हूँ। यदि तुम बोलना जारी रखोगे तो मेरा जी मिचलाने लगेगा और उल्टी होने को आएगी!” फिर भी, अगुआ कहते रहते हैं, “तुम सत्य से प्रेम नहीं करते। अगर तुम सत्य से प्रेम करते तो तुम मेरी कही हर बात समझ जाते।” वे जवाब देते हैं, “मुझे सत्य से प्रेम हो या न हो, किंतु तुमने ये शब्द इतनी बार दोहराए हैं कि उनमें कुछ भी नया नहीं है, और मैं उन्हें सुनते-सुनते थक गया हूँ!” नकली अगुआ विनियमों से सख्ती से चिपके हुए और कुछ खास वाक्यांशों पर अड़े रहते हुए इस तरह से काम करते हैं, वे लोगों की वास्तविक कठिनाइयों को हल करने में पूरी तरह विफल रहते हैं। अगर कोई परमेश्वर के बारे में धारणाएँ रखता है, तो नकली अगुआ कहते हैं कि वह व्यक्ति खुद को नहीं जानता। अगर किसी में मानवता कम है, वह लोगों के साथ घुल-मिल नहीं पाता, और उसके सामान्य अंतर्वैयक्तिक संबंध नहीं हैं, तो नकली अगुआ कहते हैं कि वह और इस मामले में शामिल दूसरा व्यक्ति, दोनों ही दोषी हैं, वह उन दोनों को उपदेश देते हैं, उन दोनों पर दोष मढ़ते हुए कहते हैं, “ठीक है, अब तुम दोनों का हिसाब बराबर हो गया। हमें अपने कार्यों में निष्पक्ष और औचित्यपूर्ण होना चाहिए, बिना किसी पक्षपात के सभी के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। जो कोई भी तार्किक बात करता है, वह सत्य से प्रेम करता है, जबकि जो बिना तर्क के बोलते हैं उन्हें अपना मुँह बंद कर लेना चाहिए, कम बोलना चाहिए और भविष्य में बोलना कम और काम ज्यादा करना चाहिए। जो कोई भी सही बात कहता हो उसे अधिक सुना जाना चाहिए।” क्या यह किसी समस्या का समाधान करना है? क्या यह काम करना है? क्या यह बच्चों को बहलाने और लोगों को बेवकूफ बनाने जैसी बात नहीं है? नकली अगुआ भले ही व्यस्त दिखें, लेकिन वे किसी की समस्याएँ हल नहीं कर सकते। उनका काम कितना प्रभावी है? यह रद्दी और बेतुका है! ये गैर-विश्वासियों के काम हैं।

परमेश्वर में विश्वास करने के अपने अनुभव के दौरान, लोग अक्सर कुछ कठिनाइयों का सामना करते हैं, और नकली अगुआ उनमें से किसी का भी समाधान नहीं कर सकते। नकली अगुआ कुछ उन प्रत्यक्ष कठिनाइयों को भी हल नहीं कर सकते जिन्हें सिर्फ कुछ शब्दों से ठीक किया जा सकता है, और वे उन पर बहुत ज्यादा हंगामा भी करते हैं और हर छोटी-मोटी समस्या को बड़ा मुद्दा बना देते हैं। कुछ लोग बुरे नहीं होते, बस उनकी मानवता के लिहाज से उनमें शिष्टाचार की थोड़ी कमी होती है, वे बुनियादी शिष्टाचार नहीं समझते, और थोड़े गंदे होते हैं। नकली अगुआ इन छोटी-मोटी समस्याओं को पकड़ कर उन पर बहुत ज्यादा हंगामा करते हैं, भाई-बहनों से उन पर चर्चा करवाते हैं, उनकी आलोचना करते हैं और उनकी निंदा करते हैं। यह सब उन लोगों पर एक स्थायी छाप छोड़ने के उद्देश्य से होता है ताकि वे वैसा व्यवहार जारी रखने की हिम्मत न करें। क्या यह जरूरी है? क्या यह समस्याओं को हल करने का कोई तरीका है? क्या यह समस्याओं को हल करने के लिए सत्य का उपयोग करना है? (नहीं।) जब तक किसी व्यक्ति की मानवता में कोई बड़ी समस्या न हो, और वह व्यक्ति बुरा न हो और ईमानदारी से खुद को खपा सकता हो, तब तक, उन पर काम करना जारी रखना, उन्हें चेताते रहना, उन्हें सहायता, संगति और समर्थन प्रदान करना पर्याप्त है, बशर्ते वे इन्हें स्वीकार कर रहे हों। यदि लोग लगातार ऐसा व्यवहार करते हैं, तो उनके चरित्र में कोई समस्या होती है या उनका स्वभाव क्रूर होता है, और तब कठोर कटाई-छँटाई और अनुशासन आवश्यक है। यदि वे इसे स्वीकार करने से इनकार करें, तो या तो उनका कर्तव्य निलंबित कर दिया जाना चाहिए, या उन्हें हटा दिया जाना चाहिए। नकली अगुआ इसकी असलियत नहीं समझ सकते, न ही वे इस तरह से कार्य करते हैं; जब वे ऐसे दुष्ट लोगों का सामना करते हैं, तो वे उनके साथ भाई-बहनों की तरह व्यवहार करते हैं, उन्हें सहायता और समर्थन प्रदान करते हैं। क्या यही काम करना है? क्या यह समस्याओं को हल करने के लिए सत्य का उपयोग करना है? (नहीं।) नकली अगुआओं का काम बेतुका, बचकाना और हास्यास्पद होता है, और उसमें कुछ भी परमेश्वर के इरादों के अनुरूप नहीं होता। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें तुम देख सकते हो कि वे आम आदमी हैं, उनमें आध्यात्मिक समझ नहीं है और वे बिना सिद्धांतों के लापरवाही से कार्य करते हैं। इसी तरह, वे लोगों के जीवन में आने वाली विभिन्न कठिनाइयों की असलियत नहीं जान सकते या उन्हें सटीक तरीके से नहीं समझ सकते। नतीजतन, समाधान के उनके प्रयास अविश्वसनीय रूप से अनाड़ी, मूर्खतापूर्ण और किसी आम आदमी की तरह के लगते हैं। जो लोग उनकी मदद स्वीकार करते हैं, वे भी असहज और दबे हुए महसूस करते हैं। समय बीतने पर, कुछ लोग आस्था भी खो देते हैं, और कहते हैं, “अगुआ ने मेरे साथ इतनी बार संगति की है, तो मैं क्यों नहीं बदला? मैं बार-बार क्यों पूर्वावस्था में पँहुच जाता हूँ? क्या ऐसा है कि मेरी मानवता विशेष रूप से कमजोर है, और मैं बचाए जाने लायक नहीं हूँ?” कुछ लोग तो यह कहते हुए संदेह भी पालते हैं कि, “क्या मेरी आत्मा में कुछ गड़बड़ है? क्या मुझमें बुरी आत्माएँ सक्रिय हैं? क्या परमेश्वर मुझे नहीं बचाएगा? क्या इसका मतलब यह नहीं है कि मेरे लिए कोई आशा नहीं है?” ये नकली अगुआओं के काम के परिणाम हैं। अपने काम में, वे एक चीज को दूसरी चीज समझ लेते हैं, और वे हास्यास्पद, बेतुके, मूर्खतापूर्ण और अनाड़ियों जैसे तरीके से काम करते हैं, जिसके कारण अंततः वास्तव में सत्य का अनुसरण करने वाले कुछ लोगों के सामने आने वाली विभिन्न कठिनाइयों का त्वरित समाधान नहीं हो पाता। इसके परिणामस्वरूप उन लोगों में नकारात्मकता और कमजोरी पैदा होती है, साथ ही परमेश्वर और उसके कार्य के बारे में कुछ धारणाएँ और गलतफहमियाँ भी पैदा होती हैं। वे कहते हैं, “मैंने परमेश्वर के बहुत सारे वचन पढ़े हैं, तो मेरी समस्या का समाधान क्यों नहीं हो सकता? क्या परमेश्वर के वचन वास्तव में लोगों को बचा सकते हैं और बदल सकते हैं?” उनके दिलों में संदेह पैदा होता है, और वे भ्रम में फँस जाते हैं। इसलिए, जब नकली अगुआ काम करते हैं, तो वे बहुत सारे सकारात्मक परिणाम नहीं देते हैं, लेकिन वे बहुत सारी नकारात्मक और प्रतिकूल चीजों को जन्म देते हैं। उनका काम न केवल परमेश्वर के बारे में लोगों की धारणाओं, संदेहों और आलोचनाओं को दूर करने में विफल रहता है, बल्कि इसके विपरीत, वह परमेश्वर के बारे में उनकी गलतफहमियों और सतर्कता को बढ़ाता है। कई वर्षों तक आस्था रखने के बाद भी, इन लोगों के मुद्दे अनसुलझे रह जाते हैं। जब वे नकली अगुआओं द्वारा गुमराह कर गलत दिशा में ले जाए जा रहे होते हैं, तो परमेश्वर के बारे में उनकी गलतफहमियाँ और सतर्कता और भी गहरी हो जाती है। ऐसा होने पर, क्या वे जीवन प्रवेश प्राप्त कर सकते हैं?

सत्य और मनुष्य के स्वभाव में परिवर्तन जैसी सकारात्मक चीजों के बारे में नकली अगुआओं की समझ बहुत-से लोगों के सकारात्मक चीजों के प्रति दृष्टिकोण और रवैये को प्रभावित कर सकती है। जब नकली अगुआ कोई काम नहीं कर रहे होते हैं तब अलग बात है—लेकिन जैसे ही वे काम करना शुरू करते हैं, विचलन सामने आते हैं और प्रतिकूल परिणाम उत्पन्न होते हैं। इन कलीसियाओं में एक अनुचित माहौल बन जाता है, यानी, अक्सर कुछ गलत और बेहूदा कहावतें उत्पन्न हो जाती हैं, और वहाँ के लोग परमेश्वर के वचनों में अक्सर आने वाले आध्यात्मिक शब्दों को नहीं समझ पाते हैं, न ही यह जानते हैं कि उन्हें कैसे लागू करें, जबकि इन नकली अगुआओं द्वारा अक्सर बोले जाने वाले तथाकथित आध्यात्मिक शब्द और कहावतें इन कलीसियाओं में व्यापक रूप से फैल जाती हैं। इन चीजों का लोगों पर कम प्रभाव नहीं होता : वे न केवल लोगों को परमेश्वर के वचनों और सत्य का अधिक व्यावहारिक और सटीक ज्ञान प्राप्त करने में मदद नहीं कर पाते, या उसके वचनों में अभ्यास का सटीक मार्ग खोजने में सक्षम नहीं बना पाते, बल्कि इसके उलट, वे वास्तव में लोगों को सत्य का अधिक विकृत, सैद्धांतिक और धर्म-सैद्धांतिक ज्ञान देते हैं, और साथ ही, वे लोगों को अभ्यास के मार्ग के बारे में और अधिक भ्रमित कर देते हैं। ऐसा करके नकली अगुआ लोगों का दृष्टिपथ बाधित करते हैं और सत्य की उनकी शुद्ध समझ को प्रभावित करते हैं। इन कामों को करने में नकली अगुआओं का क्या प्रभाव होता है? वे क्या भूमिका निभाते हैं? उन्हें विघ्न-बाधा डालने वाले व्यक्ति के रूप में चित्रित करना कुछ हद तक अतिशयोक्ति हो सकती है, लेकिन उन्हें हर जगह भागते-कूदते रहने वाले मसखरे कहना बिल्कुल भी अतिशयोक्ति नहीं है। जब मैंने काम के इस चरण को शुरू किया ही था, तो मैं कुछ व्यक्तियों से मिला और जब मैं उनकी बातें सुन रहा था, तो उनमें से एक ने किसी व्यक्ति की स्थिति के बारे में सवाल किया, तो एक अन्य व्यक्ति अचानक बोल उठा, “वह तो जलकर खाक हो गया।” जब मैंने पूछा, “जलकर खाक हो गया? इसका क्या मतलब है?”, तो उसने जवाब दिया “जलकर खाक हो जाने का मतलब है कि उसको बर्खास्त कर दिया गया है और शायद उसने विश्वास करना बंद कर दिया है।” मैंने कहा, “यह तो बहुत ही क्रूर शब्द है—यह तो किसी व्यक्ति के लिए कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता। क्या मैंने कभी ऐसा कुछ कहा है? ऐसा कैसे है कि मुझे इस शब्द के बारे में पता ही नहीं है? मैंने तो कभी किसी को इस तरह से चित्रित नहीं किया है, या यह नहीं कहा है कि यदि कोई अपना कर्तव्य करना बंद कर देता है या परमेश्वर में विश्वास करना छोड़ देता है, तो वह ‘जलकर खाक हो जाता है।’ यह शब्द कहाँ से आया?” बाद में, मुझे पता चला कि यह वाक्यांश एक बुजुर्ग विश्वासी, एक बूढ़े रूढ़िवादी से पैदा हुआ था। वह बहुत विद्वान था, लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास करता था, और वरिष्ठ था। जब उसने यह वाक्यांश बोला, तो भ्रमित लोगों के उस समूह ने विवेक का प्रयोग नहीं किया और उससे इसे सीख लिया, और यह एक लोकप्रिय वाक्यांश बन गया। क्या तुम लोगों को लगता है कि यह वाक्यांश सही है? क्या इसका कोई आधार है? क्या यह सटीक है? (नहीं, यह सटीक नहीं है।) हमें इसे कैसे लेना चाहिए? क्या इसे कलीसिया में चलते रहने देना चाहिए? (नहीं, ऐसा नहीं होना चाहिए।) इसे उजागर किया जाना चाहिए और इसकी आलोचना की जानी चाहिए, और इसका जड़ से समाधान किया जाना चाहिए। बाद में, आलोचना और गहन-विश्लेषण के बाद, इन भ्रमित लोगों ने इसे कहने की हिम्मत नहीं की, लेकिन हो सकता है कुछ अनजान व्यक्ति अभी भी इसे गुप्त रूप से निजी तौर पर इस्तेमाल करते हों। हो सकता है वे लोग सोचते हों कि यह एक बहुत ही आध्यात्मिक वाक्यांश है जो एक “सुप्रसिद्ध व्यक्ति” से चलन में आया है और मानते हों कि इसका उपयोग जारी रहना चाहिए। क्या तुम लोगों के अगुआ इसी तरह के अभ्यासों में लगे हैं? क्या उन्होंने तुम लोगों के जीवन प्रवेश को, स्वभाव में परिवर्तन को या जिस मार्ग पर तुम लोगों को चलना चाहिए उसे, नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है? (अतीत में, सुसमाचार का प्रचार करते समय एक नकली अगुआ ने एक बार कहा था, “परमेश्वर न्याय और ताड़ना के माध्यम से हम पर जीत हासिल करता है, इसलिए जब हम धार्मिक लोगों में सुसमाचार का प्रचार करते हैं, तो हमें उनसे कठोर लहजे में बात करने और उन्हें डाँटने की आवश्यकता होती है; उन्हें तभी जीता जा सकता है।”) यह कथन उचित लग सकता है, लेकिन क्या यह सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है? क्या परमेश्वर ने लोगों को ऐसा करने का निर्देश दिया था? क्या परमेश्वर का वचन कहता है कि “सुसमाचार का व्यापक रूप से प्रचार करते समय, तुम्हें उठकर लोगों को लोहे के डंडे से नियंत्रित करना चाहिए, सुसमाचार का व्यापक रूप से प्रचार करने के लिए न्याय और ताड़ना का उपयोग करना चाहिए”? (नहीं।) तो, यह कथन कहाँ से आया? स्पष्ट रूप से, यह किसी नकली अगुआ के दिमाग से निकला एक सिद्धांत है जिसके पास आध्यात्मिक समझ नहीं है। सतह पर, यह कथन ऐसा लग सकता है कि इसमें कोई समस्या नहीं है : “संपूर्ण मानवजाति को परमेश्वर के न्याय और ताड़ना से गुजरना होगा। यदि वे इसे सीधे परमेश्वर के वचनों से प्राप्त नहीं कर सकते, तो क्या वे इसे अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त नहीं कर सकते? हर हाल में, यही वह प्रभाव है जिसे प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के वचन हैं—संपूर्ण मानवजाति पर विजय प्राप्त करना। क्या उनके लिए इसे बाद में पाने के बजाय पहले पाना बेहतर नहीं होगा? परमेश्वर के कार्य करने से पहले, हम यह निवारक उपाय करेंगे, ताकि लोग एक प्रकार की प्रतिरक्षा विकसित कर सकें। फिर जब परमेश्वर वास्तव में उनका न्याय करेगा और उन्हें ताड़ना देगा, तो वे लोग परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह नहीं करेंगे, उसका विरोध नहीं करेंगे, या उसे धोखा नहीं देंगे। यह परमेश्वर की भावनाओं को ठेस पहुँचाने से रोकेगा। क्या यह अच्छी बात नहीं है?” सतह पर, हर वाक्य सही लगता है, और सैद्धांतिक रूप से, यह तर्कसंगत लगता है। परंतु, क्या यह एक सत्य सिद्धांत है? सुसमाचार के प्रचार के लिए परमेश्वर के घर में क्या नियम निर्धारित हैं? क्या लोगों को ऐसा करने की आवश्यकता है? (नहीं।) इसलिए, यह सिद्धांत मान्य नहीं है, और जिस व्यक्ति ने इसे प्रस्तावित किया है वह नकली अगुआ है।

नकली अगुआ अक्सर आध्यात्मिक होने का दिखावा करते हैं, लोगों को गुमराह करने और भटकाने के लिए कुछ ऊपर से अच्छे लगने वाली भ्रांतियाँ बोलते हैं। यद्यपि सतही तौर पर लग सकता है कि इन भ्रांतियों में कोई समस्या नहीं है लेकिन इनका लोगों के जीवन प्रवेश पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, ये लोगों को परेशान और गुमराह कर सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलने में बाधा डालती हैं। इन छद्म-आध्यात्मिक शब्दों के कारण कुछ लोगों में परमेश्वर के वचनों के प्रति संदेह और प्रतिरोध पैदा होता है, उनमें धारणाएँ पैदा होती हैं, यहाँ तक कि ये परमेश्वर के बारे में गलतफहमियाँ और परमेश्वर से सतर्क रहने का भाव भी पैदा करती हैं, और फिर वे परमेश्वर से दूर चले जाते हैं। नकली अगुआओं की छद्म-आध्यात्मिक बातों का लोगों पर यही प्रभाव पड़ता है। जब किसी कलीसिया के सदस्य किसी नकली अगुआ द्वारा गुमराह और प्रभावित किए जा रहे होते हैं, तो वह कलीसिया एक धर्म बन जाती है, ठीक ईसाई या कैथोलिक धर्म की तरह, जिसमें लोग केवल मनुष्य की बातों और शिक्षाओं का पालन करते हैं। वे सब पौलुस की शिक्षाओं की आराधना करने लगते हैं, परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करने के बजाय प्रभु यीशु के वचनों के स्थान पर पौलुस की बातों का उपयोग करने की हद तक चले जाते हैं। परिणामस्वरूप, वे सभी पाखंडी फरीसी और मसीह-विरोधी बन जाते हैं। इस प्रकार, वे परमेश्वर द्वारा शापित और निंदित होते हैं। पौलुस की तरह, नकली अगुआ खुद को ऊंचा उठाकर अपनी ही गवाही देते हैं, वे लोगों को गुमराह और परेशान करते हैं। वे उन्हें भटकाकर धार्मिक अनुष्ठानों में उलझा देते हैं और जिस तरह से ये लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं वह धार्मिक लोगों के समान ही हो जाता है जिससे परमेश्वर में उनकी आस्था के सही पथ पर उनके प्रवेश में देरी होती है। नकली अगुआ लोगों को निरंतर गुमराह और बाधित करते हैं और वे लोग तब ढेरों छद्म-आध्यात्मिक सिद्धांत और कथन पैदा कर देते हैं। ये सिद्धांत, कहावतें और प्रथाएं सत्य के बिल्कुल विपरीत होती हैं और इनका इससे कोई लेना-देना नहीं होता। फिर भी, नकली अगुआ द्वारा जब लोग गुमराह किए और भटकाए जा रहे होते हैं तो वे इन चीजों को सकारात्मक चीजों की तरह, सत्य की तरह ग्रहण करते हैं। वे भ्रमवश इन बातों को सत्य मान लेते हैं, सोचते हैं कि जब तक वे अपने हृदय में इन चीजों पर विश्वास करते रहेंगे और उन्हें स्पष्टता से बोल सकेंगे और जब तक इन चीजों से सभी लोग सहमत रहेंगे तब उन्होंने सत्य को पा लिया होगा। इन विचारों और दृष्टिकोणों से भ्रमित होकर, लोग न तो सत्य समझ पाते हैं और न ही वे परमेश्वर के वचनों का अभ्यास या अनुभव करने में समर्थ हो पाते हैं, सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना तो दूर की बात है। इसके विपरीत, वे परमेश्वर के वचनों से और भी दूर होकर सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने से और अधिक वंचित हो जाते हैं। कागज पर, नकली अगुआ जो कहते हैं और जो नारे लगाते हैं, उनमें कुछ भी गलत नहीं है, वे सब बातें सही होती हैं। फिर उन्हें कुछ भी हासिल क्यों नहीं होता? उसकी वजह यह है कि नकली अगुआ जो समझते और जानते हैं वह बहुत उथला होता है। वह सब धर्म-सिद्धांत होता है, जिसका परमेश्वर के वचनों में सत्य वास्तविकता से, परमेश्वर की अपेक्षाओं या उसके इरादों से कोई लेना-देना नहीं होता। सच तो यह है कि नकली अगुआ जिन सिद्धांतों का प्रचार करते हैं, वे सत्य वास्तविकता से बहुत दूर होते हैं—अगर सटीक तौर पर कहा जाए तो, उनका सत्य से कोई वास्ता नहीं होता और न ही परमेश्वर के वचनों से कोई लेना-देना होता है। तो जब नकली अगुआ अक्सर इन शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का बखान करते हैं, तो उनका संबंध किन चीजों से होता है? वे हमेशा सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में असमर्थ क्यों होते हैं? यह सीधे तौर पर नकली अगुआओं की काबिलियत से जुड़ा होता है। यह पूरी तरह से प्रमाणित है कि नकली अगुआओं में काबिलियत की कमी होती है और वे सत्य समझने की क्षमता नहीं रखते। चाहे वे कितने भी वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखते हों, वे सत्य को नहीं समझेंगे और उनका जीवन प्रवेश नहीं होगा और यह भी कहा जा सकता है कि चाहे वे कितने भी वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास रखें, उनके लिए सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना आसान नहीं होगा। यदि एक नकली अगुआ को बरखास्त नहीं किया जाता और उसे पद पर बने रहने दिया जाता है, तो किस प्रकार के परिणाम सामने आएँगे? उनकी अगुआई और अधिक लोगों को धार्मिक अनुष्ठानों और विनियमों की ओर, शब्दों और धर्म-सिद्धांतों की ओर, अस्पष्ट धारणाओं और कल्पनाओं की ओर आकर्षित करेगी। मसीह-विरोधियों के विपरीत, नकली अगुआ लोगों को अपने सामने या शैतान के सामने आने के लिए अगुआई नहीं करते, लेकिन यदि वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उसके वचनों के सत्य वास्तविकता में न ले जा पाएँ, तो क्या परमेश्वर के चुने हुए लोग उसका उद्धार प्राप्त करने में सक्षम होंगे? क्या वे परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जा सकेंगे? बिल्कुल नहीं। यदि परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य वास्तविकता में प्रवेश न कर सकें, तो क्या वे अभी भी शैतान की सत्ता के अधीन नहीं जी रहे हैं? क्या वे अभी भी शैतान की सत्ता के अधीन रहने वाले पतित नहीं हैं? क्या इसका मतलब यह नहीं है कि वे नकली अगुआओं के हाथों बर्बाद हो जाएँगे? इसीलिए नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों के काम के परिणाम मूलतः एक जैसे होते हैं। इनमें से कोई भी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को न तो सत्य समझा सकता है, न वास्तविकता में प्रवेश कराकर उनका उद्धार कर सकता है। वे दोनों ही परमेश्वर के चुने हुए लोगों को हानि पहुँचाते हैं और तबाह कर देते हैं। दोनों के परिणाम बिल्कुल एक जैसे हैं।

नकली अगुआओं के कुछ पाखंड और भ्रांतियाँ क्या हैं? बाद में इनका सारांश खुद निकाल लेना। मैं ये काम तुम लोगों पर छोड़ रहा हूँ ताकि देख सकूँ कि तुम लोग इन्हें पहचान पाते हो या नहीं। क्या तुम लोगों के आसपास के अगुआओं ने कभी ऐसे शब्द कहे हैं जो ऊपर से आध्यात्मिक या मानवीय भावनाओं के अनुरूप, सही और सच्चे लगते हों, लेकिन वे तुम्हारे जीवन प्रवेश का प्रावधान करने और तुम्हारी असली परेशानियों को हल करने में असफल रहते हों? यदि तुम्हें इन शब्दों की समझ नहीं है और यहाँ तक कि तुम उन्हें पसंद भी करते हो और उन्हें दिल में रखते हो, और उन्हें खुद पर हावी होने और हर समय अपनी अगुआई करने, और हर समय अपने विचारों और व्यवहार को प्रभावित करने देते हो, तो क्या इसके परिणाम काफी गंभीर नहीं होंगे? (हाँ, होंगे।) तो तुम्हारे लिए इन मुद्दों की जड़ तक जाना, यह पता लगाना आवश्यक है कि कौन-सी चीजें पाखंड और भ्रांतियाँ हैं जो लोगों को इस हद तक गिरा सकती हैं कि परमेश्वर में उनकी आस्था धार्मिक विश्वास में बदल जाती है, जिसके परिणामस्वरूप वे परमेश्वर का विरोध करते हैं और परमेश्वर द्वारा अस्वीकार कर दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए, मान लो कि कोई व्यक्ति कहता है, “अगुआ बनने का प्रयास मत करो। अगुआ बनने के बाद यदि तुम्हें बरखास्त कर दिया जाता है या हटा दिया जाता है, तो तुम्हारे पास साधारण विश्वासी बने रहने का भी मौका नहीं होगा।” क्या इस तरह की बातें नकली अगुआओं के पाखंड और भ्रांतियाँ हैं? (हाँ, हैं।) क्या ऐसा है? नकली अगुआओं के पाखंडों और भ्रांतियों को मसीह विरोधियों से अलग किया जाना चाहिए; उनमें घालमेल मत करो। उस व्यक्ति के ऐसी बातें कहने का क्या मतलब है? इन शब्दों में क्या प्रेरणाएँ छिपी हैं? क्या उनके भीतर कुछ संदिग्ध है? स्पष्टतः उन बातों में लोगों को गुमराह करने के इरादे वाली एक चाल है, उनका मतलब है कि अन्य लोगों को अगुआ बनने का प्रयास करने से बचना चाहिए, ऐसा करने का अच्छा परिणाम नहीं निकलेगा। ऐसा कहने का उसका उद्देश्य है कि लोग अगुआ बनने का विचार त्याग दें, ताकि कोई भी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए उनके साथ प्रतिस्पर्धा न करे, जिससे वे आराम से हमेशा के लिए अगुआ बने रह सकें। साथ ही, वे लोगों से कह रहे हैं, “यही वह तरीका है जिससे परमेश्वर का घर अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ व्यवहार करता है, जब उसे तुम्हारी जरूरत होती है तो वह तुम्हें प्रोत्साहित करता है और जब उसे तुम्हारी जरूरत नहीं होती है तो वह तुम्हें सबसे निचले पायदान पर धकेल देता है, जिससे तुम्हें एक साधारण विश्वासी होने का भी कोई मौका न मिले।” इन शब्दों की प्रकृति क्या है? (परमेश्वर के विरुद्ध ईशनिंदा।) किस तरह का व्यक्ति परमेश्वर के विरुद्ध ईशनिंदा वाले शब्द बोलता है? (मसीह-विरोधी।) इन शब्दों में दो बुरे इरादे हैं जो दो परिणामों को जन्म दे सकते हैं : एक तो दूसरों को यह बताना है कि वे पद के लिए बिल्कुल भी प्रतिस्पर्धा न करें, जिससे उनकी अपनी स्थिति सुरक्षित रहे; दूसरा इरादा है परमेश्वर को गलत समझने, परमेश्वर पर विश्वास करना बंद करने और इसके बजाय उन पर विश्वास करना शुरू करने के लिए तुम्हें मजबूर करना। यह मसीह-विरोधियों का सबसे स्पष्ट प्रकार है। ऐसा लगता है कि तुम लोगों में समझने की क्षमता नहीं है; मैंने पहले भी इसके उदाहरणों के बारे में बात की है। तुम लोग न केवल लापरवाह और कमजोर याददाश्त वाले हो, बल्कि तुम्हारी समझने की क्षमता भी कम है। तुम लोग इतने स्पष्ट मसीह-विरोधी को भी नहीं पहचान सकते। क्या नकली अगुआ ऐसी बातें कहेंगे? क्या वे जानबूझकर और खुले आम लोगों को गुमराह करेंगे और परमेश्वर का विरोध करेंगे? (नहीं।) हालाँकि नकली अगुआ जो कहते और करते हैं, वह सब ऊपर से समस्यारहित लग सकता है, लेकिन उनके काम में सिद्धांतों का अभाव होता है और वे परिणाम प्राप्त नहीं कर सकते। नकली अगुआ लोगों की किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर सकते, उन्हें परमेश्वर में विश्वास के सही मार्ग पर नहीं ला सकते, या उन्हें परमेश्वर के सामने नहीं ले जा सकते। वे जो कुछ भी कहते हैं, वह ठीक होता है, उन्होंने अपने काम में बिल्कुल भी कोताही नहीं की होती है, उनमें जोश और जुनून होता है, और ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि उनमें आस्था है, दृढ़ संकल्प है, और वे कठिनाइयाँ सहने और कीमत चुकाने को तैयार हैं। इसके अलावा, ऐसा लगता है कि उनमें अविश्वसनीय सहनशक्ति है और वे हर तरह की थकान और कठिनाई के बावजूद दृढ़ बने रहने में सक्षम हैं। बात बस इतनी है कि उनकी काबिलियत और समझने की क्षमता कम है, और उनमें सत्य की सटीक समझ नहीं है। समझ की इस कमी से निपटने के लिए वे क्या करते हैं? वे इस समस्या के हल के लिए विनियमों और धर्म-सिद्धांतों के साथ-साथ उन आध्यात्मिक सिद्धांतों का उपयोग करते हैं, जिनके बारे में वे अक्सर बात करते हैं। उनकी अगुआई में कुछ वर्ष रहने के बाद, लोगों के बीच सभी प्रकार के धर्म-सिद्धांत, विनियम और बाह्य अभ्यास उत्पन्न हो जाते हैं। लोग इन धर्म-सिद्धांतों, विनियमों और अभ्यासों का पालन करते हैं, और मानते हैं कि वे सत्य का अभ्यास कर रहे हैं और सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में, वे तब भी सत्य वास्तविकता से बहुत दूर होते हैं! ये चीजें जब लोगों के दिल में भर जाती हैं, उन पर हावी हो जाती हैं और उनकी अगुआई करने लगती हैं, तो समाधान मुश्किल हो जाता है। प्रत्येक मामले का व्यक्तिगत रूप से सटीक और गहन-विश्लेषण किया जाना चाहिए ताकि लोग उन्हें समझ सकें। फिर, लोगों को बताया जाना चाहिए कि सत्य, धर्म-सिद्धांत, नारे और विनियम क्या हैं, और सत्य की सही समझ, सटीक कथन और सत्य सिद्धांत क्या हैं। इन सभी का व्यक्तिगत रूप से समाधान करने की आवश्यकता होती है; अन्यथा, जो लोग अपेक्षाकृत अच्छे व्यवहार वाले, नियमों का पालन करने वाले और आध्यात्मिकता का अनुसरण करने वाले होते हैं, वे नकली अगुआओं द्वारा गुमराह और बर्बाद हो जाएँगे। ये लोग धर्मनिष्ठ लग सकते हैं, कठिनाई को सहने और कीमत चुकाने में सक्षम हो सकते हैं, और कठिनाइयाँ सामने आने पर प्रार्थना करने में सक्षम हो सकते हैं। परंतु, जब परमेश्वर वापस आता है, तो धार्मिक लोगों की ही तरह, उन लोगों में से कोई भी उसे नहीं पहचानता, उनमें से कोई भी यह स्वीकार नहीं करता कि परमेश्वर फिर से नया कार्य कर रहा है और वे सभी उसका विरोध करते हैं। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि नकली अगुआओं और मसीह विरोधियों ने उन्हें गुमराह किया होता है—उन्होंने ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रखने वाले बहुत से लोगों को नुकसान पहुँचाया है और बर्बाद कर दिया है।

नकली अगुआ केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं—लोगों को वे जो समझाते हैं वह केवल धर्म-सिद्धांत है, सत्य नहीं, और जो वे लोगों को दिखाते हैं वह केवल झूठी आध्यात्मिकता है। शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने के क्या परिणाम होते हैं? झूठी आध्यात्मिकता, झूठी समझ, झूठा ज्ञान, झूठा अभ्यास और झूठा अनुपालन—ये सब झूठ है। यह “झूठ” कैसे पैदा होता है? यह नकली अगुआओं द्वारा सत्य की विकृत, एक तरफा और सतही समझ रखने और सत्य के सार को समझने में पूरी तरह से विफल होने के कारण होता है। नकली अगुआ लोगों के सामने बहुत सारे नियम, शब्द और धर्म-सिद्धांत, साथ ही कुछ नारे और सिद्धांत लेकर आते हैं। वे लोग परमेश्वर के सच्चे इरादों को बिल्कुल नहीं समझते, और विभिन्न जटिल परिस्थितियों का सामना होने पर वे नहीं जानते कि उन्हें कैसे संभालें, उनके प्रति कैसा रवैया अपनाएँ, या परमेश्वर के इरादों को कैसे समझें। क्या ऐसे व्यक्ति परमेश्वर के सामने आ सकते हैं? क्या वे परमेश्वर को स्वीकार कर सकते हैं और उसका विरोध करना बंद कर सकते हैं? नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते। इसलिए, तुम लोगों के लिए नकली अगुआओं के पाखंडों और भ्रांतियों का सारांश बनाना और उनके बारे में समझ हासिल करना महत्वपूर्ण और आवश्यक है। सारांश बनाते समय, लोगों को गुमराह करने के लिए मसीह विरोधियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भ्रांतियों से उन्हें अलग करना आवश्यक है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की दूसरी जिम्मेदारी—हर तरह के व्यक्ति की स्थितियों से परिचित होना, और जीवन प्रवेश से संबंधित जिन विभिन्न कठिनाइयों का वे अपने वास्तविक जीवन में सामना करते हैं, उनका समाधान करना—के बारे में हम नकली अगुआओं के विभिन्न अभ्यासों और उनकी समस्याओं के सार का गहन-विश्लेषण करके अपनी संगति का समापन करेंगे।

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