अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (19) खंड तीन
विघ्न-बाधा उत्पन्न करने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों का सारांश
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी में वे विभिन्न लोग, घटनाएँ और चीजें शामिल हैं जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा डालती हैं। हमने संगति के लिए इन्हें ग्यारह मुद्दों में बाँट दिया है। हर एक मुद्दे में बताई गई बाधाओं और गड़बड़ियों की समस्याएँ या घटनाएँ लोगों के कर्तव्य निर्वहन और परमेश्वर में उनकी सच्ची आस्था से जुड़ी हैं। उन्हें इतनी सावधानी से क्यों बाँटा गया है? मैं हर मुद्दे को संगति और गहन-विश्लेषण के लिए क्यों उठाता हूँ? हर मुद्दे के शीर्षक से देखें तो इन चीजों को करने वाले लोगों की मानवता अच्छी नहीं है। पहले मुद्दे—सत्य पर संगति करते समय अक्सर विषय से भटक जाना, जिसे गंभीर नहीं माना जाता—को छोड़कर बाकी सभी मुद्दों की प्रकृति काफी गंभीर है। इन सभी अभिव्यक्तियों में बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा करने की प्रकृति होती है, और वे सभी कलीसिया के कार्य में गड़बड़ियाँ और विघ्न-बाधाएँ पैदा करते हैं; यही कारण है कि हम उन्हें एक-एक करके संगति और गहन-विश्लेषण के लिए उठाते हैं। जब कलीसियाई जीवन में या अपने कर्तव्य निर्वहन की प्रक्रिया में ये मुद्दे उठते हैं, तो लोगों को विशेष रूप से सतर्क रहकर उन्हें पहचानना चाहिए और उनकी असलियत जाननी चाहिए। जब लोग बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा करने वाली घटनाएँ होते हुए देखें, तो उन्हें रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए आगे आना चाहिए। जहाँ तक पहले मुद्दे, “सत्य पर संगति करते समय अक्सर विषय से भटक जाने” की बात है, लोग कभी-कभी अनजाने में ऐसा करते हैं, इसमें शामिल परिस्थितियाँ और इसकी प्रकृति बहुत गंभीर नहीं होती; लेकिन अगर वे अक्सर विषय से भटक जाते हैं और असंगत बातें करते हैं, जिससे उनके श्रोता खिन्न हो जाते हैं और इस तरह कलीसियाई जीवन में कोई अच्छे नतीजे हासिल नहीं होते, तो इसके परिणामस्वरूप कलीसिया के काम में बाधा और गड़बड़ी पैदा होती है। बाकी मुद्दों का जिक्र करने की भी जरूरत नहीं है; उनमें से कोई भी कलीसिया के काम और कलीसियाई जीवन की व्यवस्था में बाधा और गड़बड़ी पैदा करने के लिए काफी है। इसलिए, इनमें से हर एक मुद्दे पर विस्तार से संगति करना, उसका विश्लेषण और उसका गहन-विश्लेषण करना जरूरी है। जब दुर्भावनापूर्ण घटनाएँ घटती हैं, अगर तुम्हारे पास कलीसिया को बाधित करने वाले बुरे कर्मों के बारे में समझ और ज्ञान हो, तो तुम्हें उन्हें रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए खड़े होना चाहिए। मोटे तौर पर कहें तो यह एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना है; संक्षेप में, कम से कम, यह कलीसिया का सदस्य होने के कर्तव्य और जिम्मेदारी को पूरा करना है। क्या तुम्हें यही करने में सक्षम नहीं होना चाहिए? (हाँ।) अगर तुम ऐसा करने में असमर्थ हो तो इसके क्या परिणाम होंगे? ऐसा करने में असमर्थ होने का चरित्र चित्रण हम कैसे करें? कम से कम इसका मतलब है कि तुम भ्रमित हो; इसके अलावा, तुम ऐसे निकम्मे कायर हो जो शैतान से डरता है। साथ ही, जब शैतान और राक्षस परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था को बाधित करने के लिए प्रकट होते हैं, तो तुम लोग उदासीन और शक्तिहीन बने रहते हो, कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाते, और शैतान के विरुद्ध खड़े होकर लड़ाई लड़ने और परमेश्वर के लिए गवाही देने के लिए तुम्हारे पास आस्था और साहस की कमी होती है। ऐसी स्थिति में, तुम एक बेकार इंसान हो, जो परमेश्वर का अनुयायी होने के लायक नहीं है।
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी में कलीसिया में होने वाली विभिन्न प्रकार की घटनाएँ शामिल हैं जो परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ करती और बाधा डालती हैं। हर एक घटना अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ ही आम भाई-बहनों के परमेश्वर के प्रति रवैये से जुड़ी होती है। यह हर व्यक्ति के अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियों के प्रति रवैये और साथ ही परमेश्वर के घर के कार्य को बाधित करने वाली इन नकारात्मक घटनाओं और चीजों के प्रति उनके रुख और दृष्टिकोण से भी जुड़ी होती है। बेशक, यह इससे भी जुड़ी होती है कि ऐसा व्यक्ति जिसने कई वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास रखा है और धर्मोपदेश सुने हैं, क्या उसके पास शैतान के खिलाफ लड़ने और इन नकारात्मक घटनाओं और चीजों के सामने आने पर परमेश्वर की गवाही देने के लिए पर्याप्त आध्यात्मिक कद और आस्था है या नहीं। क्या यह मुख्य मुद्दों से संबंधित है? यह व्यक्ति के रुख और जिस मार्ग पर वह चलता है उसके साथ ही परमेश्वर, सत्य और अपने कर्तव्य के प्रति उसके रवैये से संबंधित है। इसलिए, इन वचनों को सुनने के बाद, तुम लोगों को यह समझना चाहिए कि ये लोगों के लिए परमेश्वर की अपेक्षाएँ हैं। उन्हें ऐसे धर्म-सिद्धांत, नियम या विनियम मत मानो जिनका पालन किया जाना चाहिए और जिन्हें लागू किया जाना चाहिए, बल्कि सत्य समझने के लिए उन पर ज्यादा चिंतन-मनन करो, फिर उनका अभ्यास करते हुए उनमें प्रवेश करो, इस प्रकार परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा करो। जब बुरे लोग कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी करते और बाधा डालते हैं, तो निष्क्रिय होकर खड़े मत रहो, तरह-तरह के बहाने बनाकर अपनी जिम्मेदारी से मत भागो, यह मत कहो कि तुम्हें परमेश्वर में विश्वास रखे कुछ ही समय हुआ है, तुम्हारा आध्यात्मिक कद छोटा है या तुम अभी बहुत छोटे हो, इत्यादि। जब परमेश्वर कार्य की जाँच करता है, जब वह तुम्हारा रवैया देखने के लिए परिवेशों का आयोजन करता है, तो वह तुम्हारी उम्र नहीं देखता, यह नहीं देखता कि तुमने कितने वर्षों से उसमें विश्वास रखा है या तुमने कभी क्या कीमत चुकाई थी और तुमने क्या उपलब्धियाँ हासिल की हैं; परमेश्वर उस पल में तुम्हारा रवैया देखना चाहता है। अगर तुमने अक्सर इन मामलों पर कभी चिंतन-मनन नहीं किया है या इनके बारे में कभी नहीं खोजा है, और तुम हर मामले को भ्रमित स्थिति में बिना कुछ भी याद रखे, बिना सत्य खोजे, बिना कोई सबक सीखे या परमेश्वर द्वारा आयोजित विभिन्न परिवेशों को गंभीरता से लिए बिना ही जाने देते हो, अगर तुम बुरे लोगों को बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा करते हुए देखकर भाग जाते हो और कभी भी परमेश्वर के घर को इसकी रिपोर्ट नहीं करते या अपना रवैया नहीं दिखाते, तो भले ही तुमने कुकर्म में हिस्सा नहीं लिया, मगर इस मामले में तुम्हारे व्यवहार ने पहले ही तुम्हारे रुख और दृष्टिकोण का खुलासा कर दिया है—तुम शैतान के पक्ष में खड़े बस एक दर्शक हो। परमेश्वर हर चीज की जाँच-पड़ताल करता है और तुम उसे धोखा नहीं दे सकते। इसलिए, जब ये नकारात्मक मामले सामने आते हैं, जब तुम्हें उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों का पता चलता है जो कलीसिया के कार्य और कलीसियाई जीवन की सामान्य व्यवस्था में गड़बड़ी करती और बाधा डालती हैं, तो यह स्पष्ट रूप से परमेश्वर के प्रति तुम्हारे रवैये को प्रकट कर देता है। ऐसा हो सकता है कि तुम्हें परमेश्वर पर विश्वास रखे कुछ ही समय हुआ हो, तुम अभी अपेक्षाकृत कमउम्र हो और तुम्हारा आध्यात्मिक कद छोटा है, लेकिन अगर इन चीजों के घटने पर तुम सिद्धांतों के अनुसार काम करते हो, और बुरे लोगों को रोकने, प्रतिबंधित करने या यहाँ तक कि उन्हें उजागर करने की कोशिश करते हो, जोखिम उठाते हो और अपनी खुद की सुरक्षा की परवाह न करते हुए आगे बढ़कर परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करते हो—अगर तुम्हारे पास ऐसा दिल है, तो परमेश्वर के प्रति तुम्हारा रवैया और साथ ही परमेश्वर की गवाही देने और शैतान के विरुद्ध लड़ने का तुम्हारा दृढ़ संकल्प एक गवाही बन जाएगा जिसे लोगों के साथ-साथ परमेश्वर भी देखेगा। लोगों के बुरे कर्म, उनका परमेश्वर को चकमा देना और उससे छिपना, अपनी जिम्मेदारियों से बचना, शैतान के कुकर्म करने पर उसके आगे झुकना और समझौता करना—परमेश्वर यह सब देखेगा और एक दिन इन बुरे कर्मों का निपटारा होगा और एक फैसला आएगा। मगर इसी तरह, जब लोग परमेश्वर के घर और भाई-बहनों की ओर से बोलने के लिए शैतान की गड़बड़ियों और बाधाओं के खिलाफ खड़े होते हैं, परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने के लिए शैतान के खिलाफ लड़ते हैं, परमेश्वर की गवाही देने की आकांक्षा के साथ सत्य खोजते हैं, तो भले ही वे कभी-कभी शक्तिहीन और अकेले महसूस करते हों, उनमें बुद्धि की कमी हो, सत्य की केवल उथली समझ हो या वे सत्य के बारे में संगति करना चाहते हों मगर खुद को स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं कर पाते हों, जिसके कारण कुछ लोग उनका मजाक उड़ाते हैं और उन्हें नीची नजरों से देखते हैं, मगर परमेश्वर की नजरों में वह उनकी ईमानदारी को देखता है; वह इन क्रियाकलापों और व्यवहारों को अच्छे कर्म मानता है। बुरे कर्मों का एक दिन फैसला किया जाएगा और परमेश्वर के सामने उनका निष्कर्ष निकलेगा और अच्छे कर्मों के साथ भी यही होगा—मगर इन दोनों प्रकार के व्यवहारों में से प्रत्येक का निष्कर्ष पूरी तरह से अलग होगा। बुरे कर्मों का उचित प्रतिफल मिलेगा, और अच्छे कर्मों का बदला अच्छे व्यवहार से चुकाया जाएगा। परमेश्वर ने बहुत पहले से ही हर एक व्यक्ति के लिए यह निर्धारित कर दिया है, बस वह इस इंतजार में है कि अच्छाई को इनाम देने और बुराई को दंडित करने से पहले परमेश्वर के कार्य की अवधि के दौरान लोगों की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ सामने आकर निर्धारित तथ्य बन जाएँ।
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी में लोगों, घटनाओं और चीजों से संबंधित ग्यारह समस्याएँ शामिल हैं जो कलीसिया के कार्य में गड़बड़ करती और बाधा डालती हैं। क्या ये ग्यारह समस्याएँ महत्वपूर्ण हैं? क्या वे लोगों का स्पष्ट रूप से खुलासा करती हैं? जब तुम लोग हर समस्या के बारे में संगति करते हो, तो तुम्हें इसमें ज्यादा मेहनत करनी चाहिए ताकि तुम सत्य स्पष्टता से समझ सको। इसमें यह शामिल है कि लोग न्याय और सकारात्मक चीजों को कैसे कायम रखते हैं, परमेश्वर की गवाही को कैसे कायम रखते हैं; इसमें यह भी शामिल है कि लोग शैतान से लड़ने के लिए, शैतान का चेहरा उजागर और बेनकाब करने के लिए, शैतान के बुरे कर्मों को रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए कैसे आगे बढ़ते हैं—ये दो पहलू शामिल हैं। जब शैतान कलीसिया के कार्य में गड़बड़ करता और बाधा डालता है, तो क्या तुम कोई भूमिका निभाते हो? तुम क्या भूमिका निभाते हो? क्या तुमने वह किया है जिसकी परमेश्वर तुमसे अपेक्षा करता है? क्या तुमने उन दायित्वों और जिम्मेदारियों को पूरा किया है जिन्हें परमेश्वर के अनुयायी को पूरा करना चाहिए? जब ये समस्याएँ सामने आती हैं, तो क्या तुम समझौता करते हो, सिद्धांतों के बिना मामले सँभालते हो और खुशामदी बनकर बीच का रास्ता अपनाते हो या फिर तुम शैतान के बुरे कर्मों को रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए खड़े होते हो और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने के लिए अन्य सच्चे भाई-बहनों के साथ एकमत होकर काम करते हो? तुम किसकी रक्षा करते हो? क्या तुम बुरे लोगों के हितों और शैतान के हितों की रक्षा करते हो या परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करते हो? अगर कलीसिया के काम में गड़बड़ करने और बाधा डालने वाली कोई बात होती है और तुम कुछ नहीं करते, केवल खुशामदी व्यक्ति की तरह काम करते हो और खुद को बचाते हो, यह ध्यान रखते हो कि तुम अपने पारस्परिक संबंधों को अच्छी तरह सँभाल सको और उसे कोई नुकसान न हो; तुम कलीसिया के कार्य में बाधा उत्पन्न होने के बारे में कभी भी चिंतित या व्यग्र महसूस नहीं करते, बुरे लोगों के बुरे कर्मों के प्रति कोई घृणा या क्रोध महसूस नहीं करते, परमेश्वर के घर और सभी भाई-बहनों के हितों के लिए कोई बोझ नहीं उठाते, परमेश्वर के प्रति किसी भी तरह से ऋणी महसूस नहीं करते और न ही कोई आत्म-ग्लानि महसूस करते हो, तो तुम खतरे में हो। अगर परमेश्वर की नजरों में तुम अंदर से लेकर बाहर तक एक खुशामदी व्यक्ति हो, जो कुछ भी घटित होने पर निष्क्रिय रूप से बस हाथ पर हाथ धरे देखता रहता है और उससे बचता है, अपनी किसी भी जिम्मेदारी या दायित्व को तनिक भी पूरा नहीं करता, तो तुम सचमुच खतरे में हो और परमेश्वर द्वारा हटाए जा सकते हो। अगर परमेश्वर के मन में तुम्हें श्रम तक नहीं करने देने का विचार आता है और वह तुमसे तंग हो जाता है, तो इस मुकाम पर तुम्हारा हटाया जाना तय है, जो बेहद खतरनाक है! जब परमेश्वर कहता है कि वह अब तुम जैसे लोगों को नहीं देखना चाहता और वह तुम जैसे लोगों को परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य या श्रम करते हुए देखकर अहमियत नहीं देता है, तो तुम एक दिन, आने वाले समय में किसी ही पल कलीसिया से हटाए जा सकते हो, जो तुम्हारा भाग्य बदल देगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर के साथ तुम्हारा रिश्ता अब सामान्य नहीं है या तुमने खुद को परमेश्वर से दूर कर लिया है और उसे धोखा दिया है और यह इसी का नतीजा है। क्या तुम इस तथ्य को देख सकते हो? जब तुम इस तथ्य को समझ जाओगे, तब चाहे तुम इसे स्वीकार पाओ या नहीं, तुम्हारे दिल की सारी खूबसूरत उम्मीदें एक पल में गायब हो जाएँगी।
जब लोग पहली बार परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, तो उनका दिल उत्साही होता है। हालाँकि वे अपने भविष्य की मंजिल या संभावनाएँ नहीं देख सकते, उन्हें हमेशा यही महसूस होता है कि वे परमेश्वर पर निर्भर हो सकते हैं। वे हमेशा सुंदर और सकारात्मक चीजों की आकांक्षा रखते हैं। यह शक्ति कहाँ से आती है? लोग नहीं जानते; वे इसे समझ ही नहीं पाते : “सभी लोग एक जैसे होते हैं, सभी एक ही हवा में जीते हैं और एक ही सूरज के नीचे रहते हैं। फिर ऐसा क्यों है कि अविश्वासियों के दिलों में इन चीजों की कमी होती है, जबकि हमारे पास नहीं?” क्या यह एक रहस्य नहीं है? यह ताकत परमेश्वर से आती है। यह बेहद कीमती चीज है; लोग इसके साथ पैदा नहीं होते हैं। अगर यह सभी के पास जन्म से होती, तो वे एक जैसे होते; मानवजाति के बीच कोई ऊँच-नीच, कुलीन या घटिया का कोई भेद नहीं होता और न ही परमेश्वर में विश्वास रखने और न रखने वालों के बीच कोई अंतर होता। जो उनके पास नहीं है, वह तुम्हारे पास हो सकता है; तुम्हारे पास वह सबसे कीमती चीज हो सकती है जो मानवता के बीच मौजूद है। इसे सबसे कीमती चीज क्यों कहते हैं? क्योंकि ठीक इसी आशा और अपेक्षा के कारण, तुम परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्यों को पूरा करने पर ध्यान देते हुए उसे सुस्थिर ढंग से कर सकते हो। किसी व्यक्ति के उद्धार पाने में सक्षम होने के लिए यह सबसे बुनियादी शर्त है। इसी अपेक्षा के कारण तुम्हारे पास एक अवसर होता है और परमेश्वर के लिए खुद को खपाने, एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने और एक नेक इंसान, बचाया गया इंसान बनने के लिए तत्पर होने का थोड़ा-सा संकल्प है। इससे मिलने वाले लाभ बहुत अधिक हैं। तो यह चीज कहाँ से आती है? यह परमेश्वर से आती है; यह परमेश्वर द्वारा दी जाती है। हालाँकि, जब परमेश्वर किसी को और नहीं चाहता, तब यह चीज उससे छीन ली जाती है। वह अब सुंदर चीजों के लिए नहीं तरसता या उनकी अपेक्षा नहीं करता; वह अब उनसे कोई उम्मीद नहीं रखता। उसका दिल अंधकारमय होकर डूबने लगता है। वह किसी भी सुंदर या सकारात्मक चीज और साथ ही परमेश्वर के वादों का अनुसरण करने का उत्साह खो देता है। वह एक अविश्वासी जैसा बन गया है। एक बार जब यह चीज खो जाती है, तब क्या वह व्यक्ति परमेश्वर के घर में रहकर परमेश्वर में विश्वास रखना और उसका अनुसरण करना जारी रख सकता है? क्या परमेश्वर में उसकी आस्था का मार्ग समाप्त नहीं हो गया है? जब तुम अनुसरण करने का संकल्प होने की यह पूर्वापेक्षा खो देते हो, तो तुम चलती-फिरती लाश बन जाते हो। “चलती-फिरती लाश” होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तुम अब परमेश्वर के वचनों को नहीं समझ सकते। जब तुममें यह पूर्वापेक्षा होती है, तो तुम परमेश्वर के वचनों को समझ सकते हो, आशा रख सकते हो, तुम्हारी आस्था प्रेरित हो सकती है और यह पूर्वापेक्षा तुम्हें सत्य का अनुसरण करने की प्रेरणा दे सकती है। लेकिन, जब तुम यह मूलभूत पूर्वापेक्षा खो देते हो, तो यह प्रेरणा गायब हो जाती है। तुममें परमेश्वर के वचनों को सुनने के लिए कोई उत्साह या रुचि नहीं होती। वादे और अपेक्षाएँ अब तुम्हें दिलचस्प नहीं लगतीं या तुम्हें प्रेरित नहीं करतीं। तुम्हारे लिए, परमेश्वर के वचन उच्च-स्तरीय सिद्धांत बन गए हैं। तुम उनके लिए कोशिश नहीं करते और परमेश्वर अब तुम्हें प्रबुद्ध नहीं करता। तुम परमेश्वर के वचनों से कोई सत्य प्राप्त नहीं कर सकते। क्या परमेश्वर में आस्था का यह मार्ग तुम्हारे लिए समाप्त नहीं हो गया है? जब बात यहाँ तक पहुँच जाती है, तो परमेश्वर पहले ही तुम्हें ठुकरा चुका होता है; क्या तुम अभी भी परमेश्वर को अपना मन बदलने के लिए मजबूर कर सकते हो? यह आसान नहीं होगा। जब परमेश्वर यह निश्चित कर लेता है कि वह किसी व्यक्ति को अब और नहीं चाहता, तो वह व्यक्ति अंदर से ऐसा ही महसूस करता है। जब यह चीज छीन ली जाती है, तो परमेश्वर में विश्वास रखने, अपने कर्तव्य निभाने और बचाए जाने जैसे विभिन्न मामलों के प्रति तुम्हारा रवैया पहले से पूरी तरह अलग हो जाएगा। कभी जो उत्साहपूर्ण अनुसरण रहा था, उस पर अब विचार करने पर तुम्हें यह दुरूह, समझ से परे और अविश्वसनीय लगेगा। जब तुम इसे अविश्वसनीय पाओगे तो यह तुलना करने पर कि अपने पिछले स्वरूप के मुकाबले तुम अब कैसे हो, तुम्हारी आंतरिक दशा में गुणात्मक बदलाव आ चुका होगा; तुम पूरी तरह से अलग इंसान होगे, तुम पहले जैसे व्यक्ति नहीं होगे। ऐसा क्यों होगा? ऐसा इसलिए नहीं होगा क्योंकि परिवेश बदल गया है; क्योंकि तुम बड़े हो गए हो और ज्यादा षड्यंत्र रचने लग गए हो; क्योंकि तुमने ज्यादा अनुभव और जीवन की अंतर्दृष्टि प्राप्त कर ली है, जिसने तुम्हारे विचारों और दृष्टिकोणों को बदल दिया है। बल्कि, ऐसा इसलिए होगा क्योंकि परमेश्वर ने अपना मन बदल लिया है, उसके विचार बदल गए हैं और साथ ही तुम्हारे प्रति उसका रवैया और अपेक्षाएँ बदल गई हैं। तो तुम खुद की जगह एक अलग व्यक्ति बन गए हो। अब इसे देखते हुए, अगर कोई व्यक्ति वह चीज खो देता है जो परमेश्वर ने उसे दी तो है, मगर जिसे वह सबसे मामूली, सबसे महत्वहीन चीज मानता है, तो अब वह व्यक्ति पीड़ा में फँस जाएगा और कोई खुशी न होगी। इसलिए, कभी भी उस स्थिति तक मत पहुँचो। अगर ऐसा होता है, तो तुम्हें यह महसूस हो सकता है कि तुम्हारे कंधों से एक भार उतर गया है, तुम आजाद हो गए हो, तनावमुक्त हो गए हो, अब तुम्हें परमेश्वर में विश्वास रखने या अपने कर्तव्यों का पालन करने की कोई जरूरत नहीं है, और तुम अविश्वासियों की तरह, पिंजरे से निकले पक्षी की तरह आजादी और स्वछंदता से जी सकते हो। मगर यह सिर्फ क्षणिक आराम, खुशी और आत्म-भोग है। जैसे-जैसे तुम आगे बढ़ोगे, अपने आगे के मार्ग की ओर देखोगे—क्या तुम तब भी इतने खुश होगे? नहीं, तुम खुश नहीं होगे। आगे तुम्हारे लिए मुश्किल समय आने वाला है! जब तुम सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व में रहते हो, तो चाहे सृष्टिकर्ता तुम्हारे लिए चीजों को कैसे भी आयोजित करे, वह तुम्हारे साथ क्या और कैसे करता है, वह तुम्हारे लिए कितने भी परीक्षण और क्लेश लाता है, तुम कितना भी कष्ट सहते हो, या भले ही कोई नासमझी, उलझनें और अन्य चीजें उत्पन्न होती हों, कम से कम तुम्हें यह लगेगा कि तुम परमेश्वर के हाथों में हो, तुम परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हो और तुम्हारा दिल शांत होता है। मगर जब परमेश्वर तुम्हें नहीं चाहता और तुम यह नहीं समझ पाते कि परमेश्वर अब तुम्हारे साथ किस तरह व्यवहार करता है और तुम इस भरोसे को खो देते हो, तो ऐसा लगता है जैसे पूरा संसार तुम्हारे चारों ओर टूटकर बिखर गया है। यह ठीक वैसा ही है जैसे जब तुम बच्चे थे और केवल यही सोचते थे, “मेरी माँ सबसे प्यारी है, माँ मेरी परवाह करती है और मुझे सबसे ज्यादा प्यार करती है, माँ नहीं मर सकती।” जब तुम माँ के बीमार पड़ने की खबर सुनते, तो तुमसे यह बर्दाश्त नहीं होता। तुम सोचते कि अगर तुम्हारी माँ वास्तव में मर गई, तो आसमान टूट पड़ेगा और तुम जी नहीं पाओगे। यही तर्क परमेश्वर में विश्वास रखने पर भी लागू होता है। परमेश्वर में व्यक्ति की आस्था में उसे सबसे अधिक शांति और खुशी परमेश्वर में विश्वास रखने, परमेश्वर पर भरोसा करने और यह विश्वास करने से मिलती है कि उसकी नियति सृष्टिकर्ता के हाथों में है। व्यक्ति में स्थिरता की भावना इस सच्चे विश्वास और निर्भरता से आती है। जब तुम्हें लगता है कि यह विश्वास और निर्भरता खत्म हो गई है और तुम्हारा दिल अभी-अभी खोदे गए किसी गड्ढे की तरह खाली महसूस करता है, तब क्या तुम्हारा सब कुछ खत्म नहीं हो गया है? अपनी निर्भरता को खोने के बाद क्या तुममें जीवन जीने की ताकत बची रहती है? ऐसे लोग चलती-फिरती लाशों जैसे होते हैं, जो अपने अंत की प्रतीक्षा करते हुए बस अपना पेट भरते रहते हैं।
अब कुछ लोग लगातार खराब व्यवहार करते हैं, लगातार बुराई करते हैं और अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी करते और बाधा डालते हैं और उसे नुकसान पहुँचाते हैं, यहाँ तक कि परमेश्वर के घर के हितों को भी काफी नुकसान पहुँचाते हैं। उन्होंने कभी भी परमेश्वर के प्रति ईमानदारी या निष्ठा नहीं दिखाई है, समर्पण करना तो दूर की बात है। इसलिए, परमेश्वर ने उन्हें कभी स्वीकार नहीं किया है। वे बुरे लोग हैं जिन्होंने आशीष पाने के इरादे से परमेश्वर के घर में घुसपैठ की है। परमेश्वर उन्हें प्रवेश करने की अनुमति इसलिए देता है ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग सबक सीख सकें और उनकी समझ बढ़े। हालाँकि वे भी उन लोगों में से हैं जिन्हें बुलाया गया है, मगर उन्हें उनके लगातार प्रदर्शित व्यवहार के कारण चुना नहीं गया है। उनकी स्थिति कैसी है? तुम लोग छानबीन कर सकते हो; उनमें से किसी का भी जीवन ठीक नहीं चल रहा है। जो लोग परमेश्वर पर भरोसा करते हैं और कभी भी, कहीं भी उसका पोषण प्राप्त करते हैं, उनका जीवन स्तर उन लोगों से मूल रूप से भिन्न होता है जिन्हें परमेश्वर का पोषण और मदद नहीं मिलती है और वे परिस्थितियों का सामना करते हुए हमेशा अथाह गड्ढे में गिर जाते हैं। जिन लोगों को परमेश्वर का पोषण नहीं मिलता है, उनके पास कोई शांति या खुशी नहीं होती है, वे पूरे दिन भय, बेचैनी, अशांति और चिंता का अनुभव करते हैं। वे किस तरह के दिन बिताते हैं? क्या अथाह गड्ढे में दिन बिताना आसान है? नहीं, यह आसान नहीं है। इस अथाह गड्ढे को किनारे करो, अगर तुम लगातार कुछ दिन नकारात्मकता में ही बिता लो, तो भी तुम बहुत पीड़ित होगे। इसलिए, वर्तमान समय को सँजोओ और इस महान अवसर को हाथ से मत जाने दो। परमेश्वर के छह-हजार-वर्षीय प्रबंधन कार्य में अपना कर्तव्य निभाना सम्मान की बात है। यह हर व्यक्ति के लिए सम्मान की बात है। यह अपमान की बात नहीं है; मुख्य बात यह है कि तुम परमेश्वर से मिले इस सम्मान से किस तरह से पेश आते हो और उसका बदला कैसे चुकाते हो। परमेश्वर ने तुम्हें ऊपर उठाया है; उसकी दयालुता की सराहना करना मत भूलो। तुम्हें परमेश्वर के अनुग्रह का ऋण चुकाना आना चाहिए। तुम्हें इसका ऋण कैसे चुकाना चाहिए? परमेश्वर को तुम्हारा पैसा या तुम्हारा जीवन नहीं चाहिए और न ही वह तुम्हारे परिवार से विरासत में मिली कोई संपत्ति चाहता है। परमेश्वर क्या चाहता है? परमेश्वर तुम्हारी ईमानदारी और निष्ठा चाहता है। यह ईमानदारी और निष्ठा कैसे अभिव्यक्त होती है? यह इस तरह अभिव्यक्त होती है कि परमेश्वर चाहे जो कहे, तुम्हें एक ईमानदार दिल के साथ और परमेश्वर के वचनों के अनुसार भरसक प्रयास करना चाहिए। परमेश्वर के वचन क्या हैं? वे सत्य हैं। एक बार जब तुम सत्य को मानकर स्वीकार लेते हो, तो तुम्हें इसे कैसे लागू करना चाहिए? तुम्हें सत्य सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करना चाहिए। ठीक वैसा ही करो जैसा कि परमेश्वर कहता है। सत्य का अभ्यास करने को लेकर मुँह से मत बोलो और फिर परिस्थितियों से सामना होने पर अपनी मर्जी से काम करो, बाद में बहाने बनाओ और ऐसी छिपी हुई और कपटी बातें बोलो—यह ईमानदारी और निष्ठा का अभाव होना है और परमेश्वर यह नहीं देखना चाहता है। किसी व्यक्ति में सबसे कीमती चीज ईमानदारी होती है। ईमानदारी वाले व्यक्ति को कैसा व्यवहार करना चाहिए? तुम्हें ठीक वैसा ही करना चाहिए जैसा परमेश्वर अपेक्षा करता है, अडिग रहते हुए परमेश्वर के वचनों का पालन करना चाहिए। भले ही तुम इसे हद से ज्यादा करो मानो तुम विनियमों का पालन कर रहे हो—और जब दूसरे इसे देखें तो तुम्हें थोड़ा बेवकूफ समझें—फिर भी तुम इसकी परवाह नहीं करते और परमेश्वर के वचनों के अनुसार कार्यकलाप करना जारी रखते हो, परमेश्वर लोगों से यही ईमानदारी चाहता है। अगर तुम हमेशा षड्यंत्र और धूर्तता से काम लेते हो और दूसरों की नजरों में कभी मूर्ख दिखने को तैयार नहीं हो, अपने हितों को थोड़ा भी नुकसान नहीं पहुँचाना चाहते, तो तुम सत्य का अभ्यास करने में असमर्थ हो, क्योंकि तुममें ईमानदारी नहीं है। जिन लोगों में ईमानदारी की कमी होती है और फिर भी वे धोखेबाजी की चालें चलने की कोशिश करते हैं, वे बहुत ही अधिक चालाक होते हैं और परमेश्वर उन्हें पसंद नहीं करता। जब वे परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करते हैं, तो वे चुन-चुनकर काम करते हैं, केवल वही करते हैं जो उनके लिए फायदेमंद हो और जो उनके लिए फायदेमंद नहीं है उसे करने से बचते हैं। वे आम तौर पर सुखद बातें करते हैं, सिर्फ शानदार लगने वाले विचारों के अलावा कुछ नहीं बोलते, मगर जब समस्याएँ सामने आती हैं, तो वे छिप जाते हैं, उनका कोई अता-पता तक नहीं मिलता और जब दूसरे लोग समस्याएँ हल कर लेते हैं तो वे फिर से वापस आ जाते हैं। ऐसा व्यक्ति किस तरह का कमीना है? जब कोई चीज उसके लिए फायदेमंद होती है, तो वह पहल करता है और आगे बढ़ता है, दूसरों की तुलना में ज्यादा सक्रिय होता है। लेकिन जब उसके व्यक्तिगत हित दाँव पर होते हैं, तो वे पीछे हट जाते हैं और नकारात्मक हो जाते हैं। वे अपने सभी सुखद लगने वाले शब्द, अपना रुख और अपने दृष्टिकोण खो देते हैं। परमेश्वर इस तरह के व्यक्ति को पसंद नहीं करता। वह ऐसे चालाक व्यक्ति की जगह किसी ऐसे व्यक्ति को ज्यादा पसंद करेगा जो दूसरों की नजरों में बेवकूफ प्रतीत होता है।
XII. राजनीति पर बात करना
हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी में शामिल ग्यारह समस्याओं के बारे में संगति पूरी कर ली है। इन ग्यारह समस्याओं के अलावा, आओ एक और समस्या के बारे में बात करें। भले ही यह समस्या कलीसियाई जीवन में आम तौर पर नहीं देखी जाती, मगर यहाँ इसकी बात करना जरूरी है, जिससे यह बारहवीं समस्या बन जाएगी—राजनीति पर बात करना। क्या कलीसियाई जीवन में राजनीतिक विषयों पर बात करना उचित है? (नहीं।) कलीसियाई जीवन परमेश्वर के वचनों को पढ़ने, परमेश्वर की आराधना करने और परमेश्वर के बारे में अपनी समझ और परमेश्वर के वचनों के अनुभवजन्य ज्ञान को साझा करने के लिए है। हालाँकि, इस दौरान कुछ लोग राजनीति के बारे में लंबी-चौड़ी बातें करते हैं, जैसे कि राजनीतिक परिस्थितियाँ, राजनीतिक हस्तियाँ, राजनीतिक परिदृश्य, राजनीतिक दृष्टिकोण और राजनीतिक रुख। क्या यह उचित है? जब परमेश्वर द्वारा सभी चीजों और मानवजाति पर संप्रभुता रखने के विषयों पर बात की जाती है, तो कुछ लोग यंत्रवत ढंग से यह विचार लागू करते हैं कि राजनीतिक हस्तियाँ भी परमेश्वर के हाथों में हैं, वे कहते हैं कि कुछ राजनीतिक हस्तियाँ भी परमेश्वर में विश्वास और उसका अनुसरण करती हैं, और यहाँ तक कि आध्यात्मिक नोट और न जाने क्या-क्या चीजें लिखती हैं। क्या यह दूसरों को उलझन में डालना नहीं है? कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं, “हम ईसाइयों को इस राजनेता का समर्थन करना चाहिए क्योंकि वह न सिर्फ एक विश्वासी है, बल्कि हम विश्वासियों के हितों की भी रक्षा करता है। वह हमारे जैसा ही है और हमें उसका समर्थन करते हुए उसे चुनना चाहिए।” कलीसियाई जीवन में, वे इस राजनीतिक व्यक्ति को बड़े पैमाने पर बढ़ावा भी देते हैं। क्या यह उचित है? क्या ईसाई राजनीति में भाग लेते हैं? (नहीं।) इसमें भाग लेने से बचने के लिए तुम क्या कर सकते हो? सबसे पहले, चाहे तुम किसी भी पार्टी का समर्थन करते हो या तुम्हारे राजनीतिक दृष्टिकोण कुछ भी हों, उन्हें कलीसियाई जीवन में बात के लिए मत लाओ। बेशक, यह बात और भी ज्यादा अहम है कि अलग-अलग राजनीतिक दृष्टिकोण रखने वाले लोगों के बीच कलीसियाई जीवन में वाद-विवाद भी नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर तुम्हारे और किसी अन्य व्यक्ति के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं और तुम अलग-अलग राजनीतिक हस्तियों का समर्थन करते हो, तो तुम लोग एक-दूसरे से मिलने पर इस बारे में बात कर सकते हो; इसकी अनुमति है, मगर तुम सभाओं में ऐसा कुछ बिल्कुल नहीं कर सकते। तुम दोनों एक-दूसरे को निजी संदेश भेज सकते हो, मिलकर बातचीत कर सकते हो या तुम अपने चेहरे लाल हो जाने तक बहस भी कर सकते हो, इसमें कोई भी हस्तक्षेप नहीं करेगा; यह एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत एक नागरिक का अधिकार है। मगर कलीसियाई जीवन में, तुम केवल एक देश के नागरिक नहीं हो; इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के सदस्य हो। इस व्यवस्था में, यही तुम्हारी पहचान है। राजनीतिक विषयों या राजनीतिक हस्तियों से संबंधित विषयों को कलीसिया में मत लाओ। तुम जो बात करते हो, वह सिर्फ तुम्हारे व्यक्तिगत रुख और दृष्टिकोण को दर्शाता है, कलीसिया के नहीं। कलीसिया को न तो राजनीति में और न ही किसी राजनीतिक व्यवस्था, व्यक्ति, नेता या समूह में कोई दिलचस्पी है, क्योंकि इन मामलों में सत्य शामिल नहीं होता है और इनका परमेश्वर में विश्वास करने से कोई संबंध नहीं है। राजनीति से संबंधित कोई भी विषय कलीसियाई जीवन में नहीं लाया जाना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “तो क्या कलीसियाई जीवन के बाहर सभी का मिलकर इस विषय पर बात करना ठीक है?” ऐसा न करना ही बेहतर है। अगर तुम अलग-अलग राजनीतिक दृष्टिकोणों वाले अविश्वासियों के बीच बात में शामिल होना चाहते हो, तो यह तुम्हारी मर्जी है; यह तुम्हारी आजादी है और परमेश्वर का घर इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा। लेकिन जब कलीसिया के सदस्य एक साथ मिलते हैं या औपचारिक सभाओं के दौरान, इन राजनीतिक दृष्टिकोणों या तर्कों को मुख्य विषय मत बनाओ और यह झूठा दिखावा मत करो कि तुम्हारे राजनीतिक दृष्टिकोणों का परमेश्वर के वचनों, सत्य या परमेश्वर की संप्रभुता से कोई लेना-देना है। तुम्हारे राजनीतिक दृष्टिकोणों का सत्य से बिल्कुल भी कोई लेना-देना नहीं है, उनके बीच दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है, इसलिए ऐसा दिखावा मत करो!
कुछ लोग राजनीति पर बात करना चाहते हैं, मगर घर पर इस विषय पर बात करने वाला कोई नहीं होता, इसलिए ऐसी बातचीत कभी नहीं हो पाती है। यह देखकर कि सभी भाई-बहन वयस्क हैं, उन्हें लगता है कि उन्हें राजनीति पर बात करने और अपने राजनीतिक दृष्टिकोणों की भड़ास निकालने का एक रास्ता मिल गया है। वे इस अच्छे अवसर को पाकर उत्साहित होते हैं, राजनीतिक दृष्टिकोण, वर्तमान घटनाओं और अंतर्राष्ट्रीय स्थिति के बारे में बात करना चाहते हैं। वे कुछ इस तरह से इन पर बात शुरू करते हैं, “ये सभी परमेश्वर की संप्रभुता के अधीन हैं। मानवजाति की राजनीति और ये राजनेता भी परमेश्वर की संप्रभुता के अधीन हैं। परमेश्वर उन्हें नियुक्त करता है।” इस प्रस्तावना के बाद, वे राजनीति और वर्तमान घटनाओं पर विस्तार से बात करना शुरू करते हैं और इस तरह से बात समाप्त करते हैं, “राजनीति परमेश्वर की संप्रभुता से बच नहीं सकती; इस सबमें परमेश्वर के अच्छे इरादे हैं।” अगर लोग इन मामलों की असलियत नहीं समझ सकते, तो उन्हें इन पर लापरवाही से बात नहीं करनी चाहिए। सत्य पर संगति करना सत्य पर संगति करना ही है; यहाँ राजनीति या राजनीतिक हस्तियों पर बात मत करो। राजनीति पर बात करना सत्य की संगति करना नहीं है, यह लोगों को गुमराह करना है। अगर तुम राजनीति पर बात करना चाहते हो, तो राजनीति से प्यार करने वाले लोगों का एक समूह खोजकर खुद उनसे बात करो; तुम जी भर कर बात कर सकोगे। कलीसिया में हमेशा इन विषयों पर बात करके तुम क्या हासिल करना चाहते हो? क्या तुम जानबूझकर लोगों को तुम्हारी प्रशंसा करने और तुम्हें अगुआ चुनने के लिए मजबूर करना चाहते हो? ये गुप्त मंशाएँ हैं! जो लोग राजनीति पर बात करना पसंद करते हैं, वे ऐसे लोग हैं जो अपने उचित कामों में नहीं लगे हैं और निश्चित रूप से सत्य का अनुसरण नहीं कर रहे हैं। कलीसिया की सभाओं में कभी भी राजनीतिक विषयों पर बात मत करो। कुछ लोग कहते हैं, “अगर हम लोकतांत्रिक चुनावों, राजनीतिक व्यवस्थाओं और स्वतंत्र देशों की नीतियों के बारे में बात नहीं कर सकते, तो बड़े लाल अजगर के देश में उच्च अधिकारियों की राजनीति और घोटालों के बारे में क्या कहोगे, जैसे कि एक भ्रष्ट अधिकारी ने कितना सोना लूटा है और उसके पास कितनी रखैलें हैं? क्या हम इन चीजों पर बात कर सकते हैं?” क्या इन विषयों से तुम्हें घृणा नहीं होती? तुम इन घिनौनी चीजों की इतनी परवाह क्यों करते हो? ऐसा क्यों है कि मुझे इन मामलों के बारे में परवाह करना और पढ़ना घिनौना लगता है? कुछ लोग इन चीजों में खास रुचि रखते हैं, उन्हें ये बिल्कुल भी घिनौनी नहीं लगतीं। वे इन चीजों के बारे में ऑनलाइन पढ़ने के इच्छुक होते हैं, जब भी उनके पास समय होता है, वे यही करते हैं। इन चीजों को पढ़कर उनका दिल सहज, सुरक्षित और संतुष्ट महसूस करता है। ऐसा क्यों है कि वे परमेश्वर के वचनों को पढ़कर इतना संतुष्ट महसूस नहीं करते? क्या यह थोड़ा घिनौना नहीं है? क्या यह उचित कामों की उपेक्षा करना नहीं है? ऐसे उत्तम समय के दौरान, आँगन में टहलना, ताजी हवा में साँस लेना और नजारों को निहारना भी तुम्हारे मिजाज को खुश कर देगा। मगर कुछ लोग ऐसा करना ही नहीं चाहते हैं; इसके बजाय, जब भी उनके पास कुछ खाली समय होता है, वे बस कंप्यूटर पर नजर गड़ाए रहते हैं, समाचार देखते हैं और गपशप करते हैं—किस भ्रष्ट अधिकारी ने कितनी रखैलें रखी हुई थीं, किस भ्रष्ट अधिकारी की कितनी संपत्तियाँ उसके घर से जब्त की गईं, बड़े लाल अजगर के किस उच्च अधिकारी ने किसको नीचे गिराया या किसने किसकी हत्या की। वे आम तौर पर इन चीजों की परवाह करते हैं। इस जानकारी को इकट्ठा करने के बाद वे ज्ञान से भरपूर महसूस करते हैं, जिसे वे फिर सभाओं में सबके साथ बाँटते हैं। क्या यह जहर फैलाना नहीं है? क्या उन राक्षसों के लिए कुकर्म करना सामान्य बात नहीं है? कुछ लोग कहते हैं, “उनके लिए कुकर्म करना सामान्य बात है, मगर वे जो कुछ भयानक काम करते हैं तुम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते।” उनकी कल्पना करने का क्या फायदा? क्या तुम्हें दिमाग इसलिए दिया गया है ताकि तुम यह कल्पना कर सको कि वे क्या-क्या दुष्ट काम करते हैं? क्या यह तुम्हारे उचित कामों की उपेक्षा नहीं है? क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि कुछ अकल्पनीय दुष्टता को जानना तुम्हें दूसरों से श्रेष्ठ बनाता है? इससे तुम्हें क्या लाभ हो सकता है? क्या इससे तुम और ज्यादा घृणित महसूस नहीं करोगे? ये लोग जो अपने उचित कामों की उपेक्षा करते हैं, वे हमेशा राजनीतिक परिदृश्य के इन भद्दे, घृणित मामलों की परवाह करते हैं। क्या वे सीधे-सादे लोग नहीं हैं? अपना जीवन जीने के बजाय हमेशा उनके मामलों की चिंता क्यों करें? क्या यह बेवकूफी नहीं है? क्या यह ऐसे लोग होना नहीं है जो बेकार की चीजें करते हैं? कुछ लोग कहते हैं, “बड़ा लाल अजगर विश्वासियों को सताता है। उन्हें बड़े लाल अजगर से घृणा करनी चाहिए। यकीनन विश्वासियों को भी बड़े लाल अजगर के उच्च अधिकारियों के घोटालों, भ्रष्टता, दुर्व्यवहार और स्वछंद कामुक व्यवहार के साथ-साथ उनके द्वारा किए जाने वाले अनुचित कामों में दिलचस्पी होगी। क्या विश्वासियों को इन घोटालों के उजागर होने पर खुशी से ताली नहीं बजानी चाहिए?” क्या तुम इन चीजों को पाने के लिए परमेश्वर पर विश्वास और उसका अनुसरण करते हो? कलीसिया में राजनीतिक मामलों के बारे में बात करना, विशेष रूप से बड़े लाल अजगर के उच्च अधिकारियों के उजागर किए गए घोटालों के बारे में बात करना, सबसे घिनौना है। तुम्हें इस पर बिल्कुल भी बात नहीं करनी चाहिए! मुझसे इस बारे में बात तो बिल्कुल मत करो, मुझे यह घिनौना लगता है! मैं तुमसे कह रहा हूँ, न इसके बारे में बात करो और न ही इस बारे में पढ़ो, नहीं तो एक दिन ऐसा आएगा जब तुम्हें उन चीजों को पढ़ने का पछतावा होगा। जब तुम्हें इसका पछतावा होगा, तब तुम्हें पता चलेगा कि यह कैसा महसूस होता है; ये चीजें घिनौनेपन की हदें पार कर सकती हैं। इन चीजों के बारे में बहुत ज्यादा सुनने और पढ़ने से कोई फायदा नहीं होता। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि इनसे कोई फायदा नहीं होता? क्योंकि इन घिनौनी बातों से अपना दिमाग भरने के बाद तुममें परमेश्वर के वचनों को सुनने की इच्छा ही नहीं रह जाएगी। हालाँकि इन विषयों में राजनीति शामिल है, मगर ये मामले और भी ज्यादा घिनौने हैं। अगर तुम इन चीजों के बारे में बात करना चाहते हो, तो कुछ अविश्वासियों से दिल खोलकर बात कर लो, उनसे जो चाहो वह कहो, पर चाहे जो भी हो, कलीसियाई जीवन में या भाई-बहनों के बीच इनके बारे में बात मत करो। कुछ लोग कहते हैं, “बड़े लाल अजगर के उच्च अधिकारियों के घिनौने और दुष्ट कर्मों के बारे में बात करने से भाई-बहन बेहतर ढंग से पहचान कर पाते हैं और वे अपना गुस्सा निकाल पाते हैं।” गुस्सा निकालने का क्या फायदा है? क्या गुस्सा निकालना गवाही देना है? यह तुम्हारा दायित्व है या कर्तव्य? इन चीजों के बारे में बात करना बेकार है, इनका कोई मूल्य नहीं है। तुम बड़े लाल अजगर के दुष्ट कर्मों को चाहे कितना भी उजागर करो, परमेश्वर इसे याद नहीं रखेगा। इसके विपरीत, अगर तुम इस बारे में बात करते हो कि तुमने बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न का अनुभव कैसे किया, कैसे तुमने उसके भय और धमकियों से आजाद होकर उन पर विजय प्राप्त की, कैसे तुमने परमेश्वर पर भरोसा किया और ऐसे परिवेश में अपनी गवाही में दृढ़ रहे, तो परमेश्वर इसे स्वीकारता है। मगर राजनीति के बारे में बात करने का जीवन प्रवेश से कोई लेना-देना नहीं है, और परमेश्वर इसे स्वीकार नहीं करता। कुछ लोग कहते हैं, “मैं बड़े लाल अजगर के अधिकारियों की भ्रष्टता को उजागर करता हूँ, वे एक बार के भोजन पर कैसे दसियों हजार युआन खर्च कर देते हैं या वे आलीशान होटलों पर कितना खर्च करते हैं; क्या यह ठीक है?” इन सबका तुमसे क्या लेना-देना है? क्या यह संसार और यह समाज ऐसा ही नहीं है? तुम किसके लिए खड़े हो रहे हो? यह परमेश्वर के लिए गवाही देना नहीं है, न तो यह बड़े लाल अजगर के सार को उजागर करना है, और न ही यह बड़े लाल अजगर के खिलाफ विद्रोह करने की अभिव्यक्ति है। लोगों को भ्रमित मत करो या पाखंडी मत बनो; इनमें से कुछ भी सत्य का अभ्यास करना नहीं है। भ्रष्ट अधिकारियों और राजनेताओं के घूस लेने की हमें परवाह नहीं है, न ही यह ऐसी चीज है जिसे हमें उजागर करने की जरूरत है। इन मामलों पर ध्यान मत दो। ये चीजें पूरे इतिहास में शैतान के शासन में मौजूद रही हैं, और वे जो कुछ भी करते हैं उसका हमारे परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने या परमेश्वर के लिए गवाही देने से कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए चाहे जो भी हो जाए, उन विषयों को “परमेश्वर के लिए गवाही देने के लिए बड़े लाल अजगर के खिलाफ विद्रोह करने और उसे उजागर करने” के विषय में मत मिलाओ, और इन अजीब, घिनौने और दुष्ट मामलों को कलीसियाई जीवन या भाई-बहनों के बीच बात के लिए मत लाओ। अगर तुम वाकई राजनीति पर बात करना चाहते हो, तो अविश्वासियों के साथ बात करो। तुम निजी तौर पर उन लोगों के साथ चाहे कैसे भी बात करो जो ऐसे शौक रखते हैं, यह सब ठीक है। यह तुम्हारा अपना शौक और रुचि है; यह तुम्हारी स्वतंत्रता और अधिकार है, और कोई भी इसमें हस्तक्षेप नहीं करता है। लेकिन सभा के समय और भाई-बहनों के सामने, इन मामलों पर बात मत करो। अगर कोई सुनने को तैयार भी हो, तो भी उसके बारे में बात मत करो, क्योंकि इसका प्रभाव कलीसियाई जीवन और परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सत्य की समझ पर पड़ता है।
चाहे वे राजनीति से संबंधित हों या राजनेताओं के निजी जीवन के घोटालों से, इन विषयों को कलीसियाई जीवन में बात के लिए मत लाओ। अगर किसी को कलीसियाई जीवन में सभाओं की विषय-वस्तु में कोई दिलचस्पी नहीं है और वह हमेशा इन मामलों पर बात करना पसंद करता है, हर सभा में उनके बारे में बात करता है, तो फिर भाई-बहनों को क्या करना चाहिए? उन्हें ऐसे लोगों को यह कहते हुए प्रतिबंधित करना चाहिए, “यह सभा का समय है, उन फालतू चीजों के बारे में बात मत करो। अगर तुम उनके बारे में बात करना चाहते हो, तो घर जाकर वही करो!” अगर उन्हें रोका नहीं जा सकता और वे अभी भी उनके बारे में बात करना जारी रखते हैं तो क्या करना चाहिए? उन्हें बाहर निकाल दो, और तब तक वापस मत आने दो जब तक वे चुप न हो जाएँ। एक और तरीका भी है जो इससे भी ज्यादा प्रभावी है : जैसे ही वे राजनीति पर बात करने के लिए अपना मुँह खोलें, तो भाई-बहन उन्हें अकेले बात करने के लिए छोड़कर दूसरे कमरे में जा सकते हैं। संक्षेप में, राजनीति पर बात करना पसंद करने वाले लोग निश्चित रूप से मौजूद हैं। ऐसे लोग उचित कामों को नजरंदाज करते हैं, सत्य का अनुसरण नहीं करते, अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से निभाने के बारे में चिंतन नहीं करते, यह नहीं सोचते कि कलीसिया के काम में क्या कठिनाइयाँ हैं या भाई-बहनों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, वे यह भी नहीं सोचते कि उनकी अपनी कौन-सी वास्तविक समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिए—वे इन उचित मामलों के बारे में नहीं सोचते। बल्कि, वे केवल उन घिनौने, कुटिल मामलों के बारे में सोचते हैं, और उनको लेकर विशेष रूप से उत्साही होते हैं। खासकर अब, जबकि सूचना बड़े पैमाने पर मौजूद है और सभी प्रकार के माध्यमों से सुलभ है—इससे ये लोग अपने शौक और रुचियों को संतुष्ट कर सकते हैं। हम उनके शौक और रुचियों में हस्तक्षेप नहीं करते, मगर परमेश्वर के घर में एक विनियम है कि सभाओं में राजनीतिक विषयों पर बात करना कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालने की समस्या में शामिल है। इस प्रकार, कलीसियाई जीवन के दौरान और जब भाई-बहन एक साथ मिलते हैं, तो इन विषयों पर सख्ती से प्रतिबंध लगा होता है। कुछ लोग कहते हैं, “ये विषय प्रतिबंधित हैं, मगर हमारे विभिन्न राजनीतिक दृष्टिकोणों का क्या, हमें कौन सी पार्टी पसंद या नापसंद है, हम किसे वोट देते हैं या नहीं देते—क्या कलीसिया इनमें हस्तक्षेप करती है?” आओ इस बात को जरा स्पष्ट करें : तुम जिसे चाहो उसे वोट दो, जिसे चाहो पसंद करो—कलीसिया इन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती, यह तुम्हारी अपनी आजादी है। क्या यह हस्तक्षेप न करना पहले से ही बड़ी उदारता नहीं है? तुमने एक नागरिक के रूप में अपने दायित्वों और मानवाधिकारों का पूरा आनंद उठाया है; क्या यह सम्मान पर्याप्त नहीं है? यह पहले से ही काफी अच्छा है; और फिर भी तुम कलीसिया में बिना किसी सीमा के और अपने दिल की संतुष्टि होने तक बोलना चाहते हो? यह नियमों के खिलाफ है। अगर ऐसे लोगों से तुम्हारा सामना होता है, तो उन्हें प्रतिबंधित करने का कोई तरीका खोजो। सबसे पहले, उनके साथ यह कहते हुए स्पष्टता से संगति करो, “क्या तुम अपनी आस्था में नए हो? क्या तुम पहली बार सभा में आए हो और तुम्हें परमेश्वर के घर के नियमों के बारे में नहीं पता है? तो मैं तुम्हें बता दूँ : यह सभा करने की जगह है और यह सभा का समय है। तुम्हारा जो भी राजनीतिक दृष्टिकोण या विचार हों, तुम्हें उन्हें कलीसिया में बिल्कुल नहीं फैलाना चाहिए और न ही सभाओं में उनके बारे में बात करनी चाहिए। हम इसे सुनना नहीं चाहते और न ही हम इन चीजों के बारे में तुम्हारी बातें सुनने के लिए बाध्य हैं। तुमने गलत जगह चुनी है। सभा के बाद, जब तुम यहाँ से चले जाओ, तो जो चाहे कह सकते हो; कोई भी हस्तक्षेप नहीं करेगा। यह तुम्हारी आजादी है।” अगर वे तुम्हारी बातों को समझते हैं और याद रखते हैं, और अगली बार इनके बारे में बात नहीं करते हैं, तो ठीक है, उन्होंने अपनी ओर से थोड़ा विवेक दिखाया है। लेकिन अगर संगति करने के बाद भी वे इसी तरह से बोलना जारी रखते हैं, हर सभा में हमेशा राजनीतिक दृष्टिकोण साझा करते हैं, तो क्या उन्हें बोलने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए? (बिल्कुल।) चाहे वे राजनीति में शामिल हों या नहीं, अगर कोई राजनीतिक विषयों पर बात करता है, तो इसे गुट बनाने, रुतबे के लिए होड़ करने, नकारात्मकता फैलाने और ऐसे अन्य व्यवहारों के साथ उन तमाम लोगों, घटनाओं और चीजों के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए जो परमेश्वर के घर के कार्य में विघ्न-बाधा डालते हैं। ऐसे लोगों के साथ कोई शिष्टाचार नहीं दिखाया जा सकता; उन्हें निश्चित रूप से रोका और प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। बेशक, जो लोग राजनीति की बात करते हैं वे यह जरूरी नहीं कि बुरे या अच्छे हों; यह भी हो सकता है कि उन्हें ये मुद्दे और विषय पसंद हों। मगर हम यकीन से कह सकते हैं कि ये लोग वास्तव में सत्य का अनुसरण नहीं करते। संक्षेप में, इन लोगों से निपटने के सिद्धांत पर पहले ही स्पष्ट रूप से बात की जा चुकी है : उन्हें परमेश्वर के घर के विनियम बताओ। अगर उन्हें स्पष्ट रूप से समझाने के बाद भी वे राजनीतिक विषयों के बारे में बात करना जारी रखते हैं और चेतावनियों पर ध्यान नहीं देते, तो उन्हें अलग-थलग कर दो। वे पश्चात्ताप करने के बाद ही कलीसियाई जीवन जीना जारी रख सकते हैं। अगर वे कभी पश्चात्ताप नहीं करते, तो उन्हें सभाओं में मत आने दो। इस मामले से निपटना इतना सरल होना चाहिए। किसी सरल मामले को जटिल मत बनाओ, इससे किसी को कोई लाभ नहीं होता।
24 जुलाई 2021
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