अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (19) खंड दो
ख. कलीसिया के चुनावों में हेराफेरी करने वाले बुरे लोगों से निपटने के लिए सिद्धांत
बुरे लोगों द्वारा चुनाव में हेराफेरी की कोई घटना होने के बाद, यह जरूरी है कि चुनाव दुबारा कराए जाएं। यह किस तरह से कराया जाना चाहिए? (चुनाव के नतीजों को रद्द करके दूसरा चुनाव कराया जाना चाहिए।) यह एक तरीका है। इस चुनाव में बुरे लोगों द्वारा किस तरह से हेराफेरी की गई थी, इसके बारे में अंदरूनी जानकारी को खुले तौर पर सार्वजनिक किया जाना चाहिए, ताकि सभी को पता चले कि चुनाव प्रक्रिया कैसी थी और नतीजे कैसे आये थे। इस अंदरूनी जानकारी के सामने आने के बाद, चुनाव के नतीजों को रद्द करके दोबारा चुनाव कराया जाना चाहिए। इस तरह के चुनाव को परमेश्वर के चुने हुए ज्यादातर लोगों की स्वीकृति नहीं होनी चाहिए; और चाहे कोई भी चुना गया हो—नतीजे स्वीकार नहीं किए जा सकते। सामान्य परिस्थितियों में, सत्य पर संगति करके और अंदरूनी कहानी को उजागर करके, चुनाव के नतीजों को नकारा जा सकता है और दोबारा चुनाव कराया जा सकता है। मगर कभी-कभी, कुछ विशेष परिस्थितियों में, भले ही कुछ गिने-चुने लोगों को पता चले कि चुनाव के नतीजों में शैतान के सेवकों ने हेराफेरी की थी और जो व्यक्ति चुना गया है वह बिल्कुल भी काम नहीं कर सकता और सिर्फ एक कठपुतली है, क्योंकि कलीसिया में ज्यादातर लोग बुरे लोगों द्वारा गुमराह किए गए हैं और अभी भी शैतान के सेवकों के पक्ष में खड़े हैं, जबकि केवल थोड़े-बहुत लोगों के पास कुछ विवेक है और उन्हें अंदरूनी जानकारी पता है—और कोई भी इन गिने-चुने लोगों पर विश्वास नहीं करता या जब वे बोलते हैं तो उनकी बात कोई नहीं सुनता—वे अलग-थलग और शक्तिहीन हैं, और उनके पास मूल रूप से स्थिति को पलटने की ताकत नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में, तुम चुनाव में हेराफेरी के बारे में अंदर की कहानी को उजागर करना चाह सकते हो, मगर स्थिति को स्पष्ट रूप से समझना आसान नहीं होगा। उस स्थिति में, ऊँचे स्तर के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इसकी रिपोर्ट करने के अलावा, तुम लोग और क्या कर सकते हो? अगर तुम कलीसियाई जीवन जीना जारी रखते हो, तो तुम्हें बहिष्कृत कर दिया जाएगा। किसी और कलीसिया की सभाओं में भाग लेना सही नहीं लगता, क्योंकि वहाँ के लोग यूँ ही किसी अजनबी की मेजबानी नहीं कर सकते। इससे तुम वाकई दुविधा में पड़ जाते हो! तुम देखते हो कि चुने गए कलीसिया अगुआ में बुरी मानवता है, वह राक्षस है, और वह ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसे चुना जाना चाहिए, तो तुम उसे देखते ही गुस्सा हो जाते हो। तुम सभाओं में जाने से असहज महसूस करते हो, मगर न जाना कोई विकल्प नहीं है। अगर तुम नहीं जाते हो और कलीसिया से अपने सभी संबंध तोड़ देते हो, तो तुम अपना कलीसियाई जीवन खो दोगे, जो कि तुम नहीं कर सकते। तो क्या इस समस्या का कोई अच्छा समाधान है? इसके लिए बुद्धि लगानी होगी। अगर तुम जल्दबाजी में इन लोगों को उजागर करते हो तो इसका क्या परिणाम होगा? वे लोग तुम्हें दबाने, दूर भगाने के लिए एकजुट हो सकते हैं, या अगर चीजें वाकई अच्छी नहीं हुईं तो वे तुम्हें बाहर भी निकाल सकते हैं, जिससे तुम अन्याय का शिकार हो सकते हो। यह सबसे संभावित परिणाम है। तो सबसे अच्छा समाधान क्या है? (कुछ ऐसे भाई-बहनों के साथ मिलकर काम करना जिनमें विवेक है और इन लोगों द्वारा गुप्त रूप से चुनाव में हेराफेरी करने के बुरे कर्मों के सभी सबूत इकट्ठा करना। ऊँचे स्तर के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इसकी रिपोर्ट करना और गुमराह भाई-बहनों को वापस लाने के लिए जल्द-से-जल्द उनके साथ सत्य पर संगति करना।) क्या इसे एक अच्छा समाधान मानेंगे? क्या इस तरह की चीजें जल्दबाजी में करना ठीक है? जल्दबाजी करने का क्या परिणाम होता है? (इससे अनजाने में दुश्मन सतर्क हो सकता है।) जब इस तरह के मामलों से तुम्हारा सामना होता है तो क्या तुम लोग डरते या घबराते हो? क्या तुम्हें डरना या घबराना चाहिए? (नहीं।) सैद्धांतिक रूप से, तुम्हें डरना नहीं चाहिए—तुम्हारी तर्क-शक्ति तुम्हें यही बताती है। मगर लोगों की वास्तविक स्थिति क्या है? सबसे अहम बात यह है कि लोग सत्य समझते हैं या नहीं। अगर लोग सत्य नहीं समझते और केवल अपना संकल्प रखते हैं तो वे अंदर से डरे ही रहेंगे। जब तुम डरे हुए होते हो, तो चाहे तुम कुछ भी या कैसे भी करो, क्या तब नतीजे पाना आसान होता है? (नहीं।) जब तुम डरे हुए होते हो तो तुम कैसी दशा में होते हो? तुम इन लोगों की शक्ति से डरते हो, इस बात से डरते हो कि उन्हें पता चल जाएगा कि तुमने उन्हें पहचान लिया है और तुम उनसे सावधान रहते हो, और इस बात से भी डरते हो कि जब वे देखेंगे कि तुम उनके पक्ष में नहीं हो, तो वे तुम्हें दबाएँगे और सम्मिलित नहीं होने देंगे, आखिरकार तुम कलीसिया से बाहर कर दिए जाओगे। तुम्हारे दिल में ये चिंताएँ होंगी। जब तुम ऐसी चिंताएँ रखते हो तो क्या तुम्हारे पास इन लोगों से बातचीत करने, उनके द्वारा पैदा की गई समस्याएँ हल करने या उनके बुरे कर्मों को उजागर करने के लिए बुद्धि, साहस और साधन हो सकते हैं, ताकि भाई-बहनों को थोड़ी पहचान हो और वे गुमराह न हों? काम करने का सबसे उचित तरीका क्या है? जब तुम डरे हुए होते हो, तो क्या तुम कमजोर स्थिति में नहीं होते? पहली बात, तुम कमजोर और निष्क्रिय होते हो। एक बात तो यह है कि तुममें परमेश्वर के प्रति दृढ़ आस्था नहीं है, और दूसरी बात, तुम यह सोचते हो, “तो ये बुरे लोग सफल हो गए हैं। ऐसा कैसे है कि फिलहाल मैं ही इस मामले की पहचान कर पा रहा हूँ? क्या दूसरों में कोई समझदारी है? अगर मैं दूसरों को सच्चाई बता दूँ, तो क्या वे मुझ पर विश्वास करेंगे? अगर वे मुझ पर विश्वास नहीं करेंगे, तो क्या वे मुझे उजागर कर देंगे? अगर वे सब मिलकर मुझसे निपटने के लिए तैयार हो जाएँ, और मैं अकेला और शक्तिहीन रह जाऊँ, तो क्या वे बुरे लोग मुझे बाहर निकालने के लिए तरह-तरह के बहाने ढूँढ़ेंगे?” क्या तुम्हारे मन में ऐसी चिंताएँ नहीं होंगी? जब तुम्हें ऐसी चिंताएँ होंगी, तो तुम उन लोगों से कैसे निपटोगे? तुम उनके साथ सबसे उपयुक्त तरीके से और बुद्धिमानी से बातचीत कैसे कर सकते हो? इस समय, क्या तुम्हारे पास कोई दिशा या मार्ग नहीं है? सटीकता से कहूँ तो जब तुम सबसे ज्यादा डरे हुए और कमजोर होते हो, तुम उनसे निपटने या उनके साथ बातचीत करने और उनके द्वारा पैदा की गई समस्याओं को सुलझाने में असमर्थ होते हो। तो इस समय तुम्हारे लिए सबसे अच्छा नजरिया क्या है? क्या यह खुद को बचाने के लिए आगे बढ़कर पहले हमला करना, उनका सामना करना और उनके बुरे कर्मों को उजागर करना है? क्या यह उचित तरीका है? (नहीं।) यह उचित तरीका क्यों नहीं है? क्योंकि तुमने सोचा नहीं है कि कैसे काम करना है, तुम उनके सार को नहीं देख सकते, और न ही तुम यह जानते हो कि उन्हें कैसे उजागर किया जाए, फिर जो लोग गुमराह हो चुके हैं वे सत्य स्वीकार करके अपना रास्ता बदल सकते हैं या नहीं, यह तो दूर की बात है। तुम इन सभी चीजों में से कुछ नहीं जानते, और तुम इस बात को लेकर स्पष्ट भी नहीं हो कि तुम्हारे लिए सबसे ज्यादा लाभकारी और प्रभावी समाधान क्या है। भले ही अभी तक तुम्हारी नकारात्मकता एक निश्चित स्तर तक नहीं पहुँची है, पर कम से कम तुम्हारी वर्तमान स्थिति कमजोर और भयावह है, और अंदर-ही-अंदर कई चिंताएँ तुम्हें सता रही हैं। चाहे ये चिंताएँ जायज हों या तुम्हारी कमजोरी और भय के कारण हों, संक्षेप में, ये तथ्य हैं। जब ये तथ्य सामने आते हैं, तो सबसे अच्छा समाधान इंतजार करना और कुछ न करना सीखना है। कुछ न करने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि चुनाव के बारे में सही स्थिति को उन लोगों के सामने उजागर करने में जल्दबाजी न करना जो भ्रमित हो गए हैं, और नवनिर्वाचित कलीसिया अगुआओं या उन लोगों के समूह का विरोध करने में जल्दबाजी न करना जिन्होंने चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी की है। उन्हें उजागर मत करो; इस समय, तुम्हें इंतजार करना सीखना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “इंतजार करना बहुत निष्क्रिय होना है; मुझे और कितना इंतजार करना होगा?” इसके लिए बहुत लंबे समय तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है। इंतजार करने के दौरान, प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर के सामने आओ, परमेश्वर के वचन पढ़ो, और सत्य खोजो। ऐसी परिस्थितियों में, जब तुम सबसे ज्यादा भयभीत और कमजोर होते हो, तुम्हारी प्रार्थनाएँ सबसे सच्ची और ईमानदार होती हैं। तुम्हें मार्गदर्शन और सुरक्षा के लिए परमेश्वर की आवश्यकता होती है; तुम्हें परमेश्वर पर भरोसा करना होगा। जैसे-जैसे तुम प्रार्थना करोगे, तुम्हारा भय धीरे-धीरे कम होता जाएगा और फिर पूरी तरह खत्म हो जाएगा। जब तुम्हारा भय पूरी तरह से खत्म हो जाएगा, तो क्या तुम कम कमजोर नहीं हो जाओगे? (हाँ।) तुम्हारी चिंताएँ भी कम होती जाएँगी। ये भय, कमजोरियाँ और चिंताएँ हवा में गायब नहीं हो जातीं; बल्कि, बदलाव की इस प्रक्रिया के दौरान, तुम धीरे-धीरे कुछ चीजों को समझने लगते हो। तुम कौन-सी चीजें समझने लगोगे? एक बात तो यह है कि तुम जान जाओगे कि इन लोगों से कैसे निपटना है, किसे पहले उजागर करना है, और कैसे इस तरह से बोलना और काम करना है जिससे परमेश्वर के घर के कार्य को लाभ हो। इसके अलावा, तुम इन लोगों के व्यवहार की प्रकृति को भी जान जाओगे। तुम इन चीजों को कैसे समझ पाते हो? अपने इंतजार की प्रक्रिया के दौरान सत्य की खोज करके ही तुम धीरे-धीरे उन्हें समझ पाते हो। जब तुम इसे स्पष्टता से देखोगे, तो तुम खुद ही विचार करोगे कि तुम्हें किस तरह से बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए, किससे बात करना उचित है, और किस तरह से बात करनी चाहिए ताकि वे प्रभावित हों, जिससे उन्हें चुनाव में हेराफेरी करने वाले बुरे लोगों के बारे में तथ्यों का पता चले, और वे अपना रास्ता बदल सकें, चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी करने वालों के असली चेहरों को पहचान सकें और यह भेद पहचान सकें कि तथाकथित निर्वाचित अगुआ वास्तव में कैसा व्यक्ति है। तुममें इस तरह की बुद्धि होगी और तुम्हारे क्रियाकलाप भी व्यवस्थित होंगे। तो ये सकारात्मक लाभ कैसे प्राप्त होते हैं? ये सभी लाभ तुम्हारे इंतजार की प्रक्रिया के दौरान परमेश्वर द्वारा तुम्हें दिए जाते हैं। उनमें से कुछ पवित्र आत्मा के कार्य और प्रबुद्धता के कारण प्राप्त होते हैं, और कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें परमेश्वर अपने वचनों में तुम्हें देखने और समझने देता है। परमेश्वर के वचन कहते हैं कि बिना तैयारी के युद्ध न लड़ो। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि चाहे तुम शैतान के विरुद्ध लड़ रहे हो या शैतान के सेवकों के बुरे कर्मों को उजागर कर रहे हो, तुम शैतान के साथ चाहे किसी भी तरह से लड़ो, तुम्हें खुद मजबूत होना, सत्य सिद्धांतों को समझना चाहिए, शैतान और बुरे लोगों के सार और बुरे कर्मों को समझने और फिर उन्हें उजागर करने में सक्षम होना चाहिए। ऐसा करने से ही तुम आखिरकार अच्छे नतीजे प्राप्त करोगे। एक बार जब तुम इन चीजों को समझ जाओगे, तो क्या तुम्हारे भय, कमजोरियाँ और चिंताएँ कम प्रबल और कम स्पष्ट नहीं हो जाएँगी? तुम्हें अब इतना डर नहीं लगेगा। तुम्हें जो चीजें महसूस होती हैं, वे धीरे-धीरे बदल जाएँगी; तुम पाओगे कि तुम उतने कमजोर नहीं हो जितने कि पहली बार ऐसी स्थिति आने पर थे। इसके बजाय, तुम पहले से कहीं ज्यादा मजबूत और आत्मविश्वासी महसूस करोगे और तुम्हें पता होगा कि क्या करना है। इस मुकाम पर, फिर से परमेश्वर से प्रार्थना करो और उससे सही अवसर तैयार करने के लिए कहो, और तब जाकर कार्रवाई करो। स्थिति के बारे में ऊँचे स्तर के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को रिपोर्ट करो और साथ ही उन लोगों के साथ संगति करो जिनमें अच्छी मानवता है और जो ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, मगर वे भ्रमित और गुमराह हो गए थे क्योंकि वे सत्य नहीं समझते थे; उनके सामने चुनाव में हेराफेरी करने वाले बुरे लोगों के बारे में अंदरूनी जानकारी उजागर करो। एक बार जब तुम इनमें से एक या दो लोगों को जीत लेते हो, तो तुम्हारा डर मूल रूप से गायब हो जाएगा। तुम्हें एहसास होगा कि यह सब मानवीय शक्ति पर निर्भर रहकर नहीं किया जा सकता है, आवेग पर भरोसा करके तो बिल्कुल नहीं किया जा सकता; तुम क्षणिक आवेग या गुस्से पर या अस्थायी, तथाकथित न्याय की भावना पर भरोसा नहीं कर सकते—ये सब बेकार की चीजें हैं। परमेश्वर तुम्हारे लिए सही समय निकालेगा और प्रबुद्ध करेगा कि तुम्हें क्या कहना है, और तुम जो कुछ समझते हो उसके आधार पर, वह कदम-दर-कदम तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा, तुम्हें अनुसरण करने का मार्ग देगा। शुरुआत में कमजोर और भयभीत होने से लेकर सिद्धांतों और मार्ग की खोज करने और समझने तक—इस अवधि के दौरान, तुम अभी भी इन बुरे लोगों के साथ सामान्य रूप से बातचीत कर सकते हो। सामान्य बातचीत के दौरान, लोगों के दिमाग खाली नहीं होते हैं; उनके मन में कुछ-न-कुछ चलता रहता है। जब तुम सत्य खोजते और प्रार्थना कर रहे होते हो, तुम इन लोगों पर ध्यान देते हो। तुम गौर कर क्या देखते हो? तुम यह देखते हो कि वे किस तरह का मार्ग अपना रहे हैं और उनका सार वास्तव में क्या है। अगर वे जो कहते हैं वह सही है और कलीसिया के कार्य के सिद्धांतों के अनुरूप है, तो तुम उनकी बात सुन सकते हो; अगर उनकी बातें कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालती हैं, तो तुम उन्हें सावधान किए बिना उनके साथ “सौहार्दपूर्ण” तरीके से बातचीत करने का एक बुद्धिमान तरीका अपनाते हुए, न सुनने या कुछ समय के लिए टालने का बहाना बना सकते हो। उनके साथ “सौहार्दपूर्ण” तरीके से बातचीत करते हुए, तुम उनके बुरे कर्मों के सबूत इकट्ठा करते हो, उनके ऐसे विभिन्न क्रियाकलापों और भ्रांतियों के आधार पर उन्हें पहचानते हो जो सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं और आगे पुष्टि करते हैं कि ये लोग शैतान के सेवक हैं। इस तरह से अभ्यास करने से तुम उनके द्वारा बेबस नहीं होते हो और साथ ही अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य को भी पूरा करते हो—एक बुद्धिमान व्यक्ति यही करता है। केवल मानवता, बुद्धि और सत्य के प्रति प्रेम रखने वाले लोग ही सही मार्ग पर चल सकते हैं। बिना बुद्धि वाले लोग जो बेधड़क और बेपरवाही से काम करते हैं, हमेशा उतावलेपन और आवेग पर निर्भर रहते हैं, चाहे वे कुछ भी कर रहे हों या वे किसी भी परिस्थिति का सामना कर रहे हों, उनके क्रियाकलापों से अक्सर खराब नतीजे ही निकलते हैं। ऐसे लोग न केवल कलीसिया के काम में विघ्न-बाधा डालते हैं बल्कि खुद पर बहुत सारी अनावश्यक परेशानियाँ और मुसीबतें भी लाते हैं। वहीं, बुद्धिमान लोग अलग होते हैं। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें वे प्रतीक्षा करते हैं, ध्यान से देखते और खोज करते हैं, सही समय, परमेश्वर की व्यवस्थाओं और आयोजन का इंतजार करते हैं। इंतजार की अवधि के दौरान, वे परमेश्वर के इरादों की तलाश करने, एक उद्देश्य के साथ परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने, सत्य के सिद्धांतों को ज्यादा सटीकता से समझने और परमेश्वर के इरादों के अनुसार काम करने में सक्षम होते हैं। वे उतावलेपन में लोगों से लड़ने या वाद-विवाद में शामिल होने के बजाय, एक अच्छी लड़ाई लड़ने और परमेश्वर के लिए गवाही देने के लिए परमेश्वर के वचनों और सत्य का उपयोग करते हैं।
जब बुरे लोगों द्वारा चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की बात आती है तो सबसे महत्वपूर्ण यह नहीं है कि तुम इन लोगों की असलियत पहचान सकते हो या नहीं या फिर उन्हें उजागर करने की तुम्हारी योजना कैसी है; सबसे जरूरी है समय रहते उच्च स्तर को स्थिति की रिपोर्ट देना। तुम्हें उनसे निपटने के लिए बुद्धि का उपयोग करना चाहिए, परमेश्वर के समय का इंतजार करना चाहिए, परमेश्वर के इरादे खोजने चाहिए और अपने कर्तव्य से पीछे हटे बिना सत्य सिद्धांतों को खोजना चाहिए। ऐसा करने का अंतिम नतीजा क्या होगा? तुम अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य को पूरा करोगे। उच्च स्तर पर स्थिति की रिपोर्ट देने और समाधान खोजने से न केवल समस्या हल होती है, बल्कि तुम्हें अंतर्दृष्टि भी मिलती है, तुम्हारा विवेक और बुद्धि बढ़ती है, आध्यात्मिक कद बढ़ता है और परमेश्वर में तुम्हारी आस्था मजबूत होती है। शैतान का सामना करने के अनुभव से लोगों को बहुत कुछ हासिल होता है और यह उनके लिए बहुत फायदेमंद होता है। वहीं दूसरी ओर, मान लो कि तुम उतावलेपन और आवेग में आकर इन लोगों से तीखी लड़ाई लड़ने लगते हो और उनसे आमने-सामने बहस करते हुए कहते हो, “तुम लोग चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी कर रहे हो। भले ही तुम लोगों के पास बहुत शक्ति है, मैं तुम्हारे सामने नहीं झुकूँगा और मैं तुम लोगों से नहीं डरता!” ऐसे रवैये का नतीजा यह होता है कि तुम्हें कलीसिया से निकाल दिया जाता है, जिससे तुम महीनों तक घर पर रोते और कष्ट सहते रहते हो; मगर फिर भी तुम परमेश्वर के इरादों को नहीं समझते : “परमेश्वर, मैं इस झंझट में क्यों फँस गया? क्या तुम मुझे नहीं चाहते? क्या तुम्हें मेरी परवाह नहीं है?” महीनों तक तुम नए धर्मोपदेशों और भजनों से अनजान रहते हो, इस बात से अनजान रहते हो कि कलीसिया क्या काम कर रही है, तुम अपने कर्तव्य नहीं निभा पाते हो, पूरी तरह से अलग-थलग पड़ जाते हो और बिल्कुल अंधकार में गिर जाते हो। हर दिन, रोने के अलावा तुम सिर्फ चिंता में डूबे रहते हो। तुम इस माहौल में परमेश्वर से प्रार्थना करना या उसके वचनों को खाना-पीना नहीं सीखते, जटिल परिस्थितियों में सत्य सिद्धांतों को खोजना तो दूर की बात है; तुम्हारी बुद्धि का जरा भी विकास नहीं हो पाता है। कुछ महीनों तक रोने के बाद आखिरकार एक दिन कोई तुम्हें कलीसिया में वापस ले आता है और इस अवधि के दौरान तुमसे अपने अनुभव साझा करने के लिए कहता है, मगर तुम सिर्फ रोते हुए शिकायत ही करते हो : “मेरे साथ बहुत गलत हुआ है! मैंने कलीसिया में बाधा नहीं डाली। मैं बुरा इंसान नहीं हूँ; मुझे बुरे लोगों द्वारा फँसाया गया था।” जब तुमसे यह पूछा जाता है, “इस अवधि के दौरान तुमने क्या सबक सीखे? क्या तुमने कुछ भी हासिल किया?” तो तुम जवाब देते हो, “मैं क्या हासिल कर पाता? उन्होंने मुझे अलग-थलग कर दिया, परमेश्वर के वचनों की किताबें और भजन मुझसे छीन लिए और मैं कोई धर्मोपदेश भी नहीं सुन पाया। मैं सिर्फ आस्था के बारे में बात कर सकता था और कभी-कभी कुछ भजन गा लेता था जो मुझे याद थे। मैंने कुछ भी हासिल नहीं किया। शुक्र है कि परमेश्वर ने मुझे वापस लाने का समय तैयार कर दिया; नहीं तो, मैं बाहर जाकर पैसे कमाने के लिए व्यापार करने की सोच रहा था, क्योंकि वैसे भी उद्धार की कोई उम्मीद नहीं थी। परमेश्वर मुझे नहीं चाहता था और मैं विश्वास रखना जारी नहीं रख सकता था। मेरा दिल पूरी तरह से अंधकार में था।” अंत में तुम जोड़ते हो, “परमेश्वर की भेड़ों को परमेश्वर कभी नहीं त्यागेगा” और यह निष्कर्ष निकालते हो। इतनी महत्वपूर्ण और विशेष घटना का अनुभव करके इतना कम हासिल करना—क्या यह थोड़ा दयनीय नहीं है? क्या यह अनुचित नहीं है? ऐसी बड़ी स्थिति का सामना करते हुए तुमने कोई सबक नहीं सीखा और अपनी बुद्धि या आस्था को नहीं बढ़ाया; भले ही तुम अभी भी दिल से परमेश्वर में विश्वास रखते हो, पर तुम्हें शैतान, राक्षसों और मसीह-विरोधियों ने इतना अधिक सताया है कि तुमने लगभग विश्वास रखना ही बंद कर दिया। क्या तुम अभी भी परमेश्वर के लिए गवाही दे सकते हो? क्या तुम निकम्मे कायर नहीं हो? घर पर रोने का क्या फायदा? तुम रो-रोकर अँधे ही क्यों न हो जाओ, क्या इससे कोई मदद मिलेगी? क्या यह मसीह-विरोधियों की समस्या हल कर सकता है? बुरा इंसान सफल हो गया है और अंत में तुम्हारे पास कहने को बस यही है, “परमेश्वर की भेड़ों को परमेश्वर कभी नहीं त्यागेगा,” और तुमने कुछ भी हासिल नहीं किया। तुम्हारे पास बुद्धि नहीं है और चीजों को करने के तरीके नहीं हैं, तुम परमेश्वर द्वारा दिए गए मार्ग के अनुसार परमेश्वर को खोजना और उसके सामने आकर उसके वचनों और सत्य को लेकर शैतान के खिलाफ लड़ना नहीं जानते हो। तुम आम तौर पर जो धर्म-सिद्धांत बोलते हो उसका तुम्हें कोई फायदा नहीं होता; जब ऐसे मामलों का सामना करने की बात आती है तो रोने के अलावा तुम्हें बस यही लगता है कि तुम्हारे साथ गलत हुआ है और तुम शिकायत करते हो—तुम एक निकम्मे कायर हो। निकम्मों कायरों की अक्सर कई अभिव्यक्तियाँ होती हैं, जो उनकी प्रमुख विशेषताएँ भी होती हैं। सबसे पहले, वे रोते हैं। दूसरा, उन्हें लगता है कि उनके साथ अन्याय हुआ है। तीसरा, वे अपने दिलों में शिकायत करते हैं। अपने दिलों में, वे यह भी कहते हैं, “परमेश्वर, तुम कहाँ हो? तुम्हें मेरी परवाह क्यों नहीं है? शैतान ने मुझे बहुत नुकसान पहुँचाया है, मैं जीवित नहीं रह सकता। मुझे जल्दी से बचा लो!” परमेश्वर कहता है, “तुम एक निकम्मे कायर हो, मनुष्य की चमड़ी में लिपटा हुआ कचरा हो। अगर तुम्हें परमेश्वर में विश्वास है तो डर किस बात का? शैतान से डरने की क्या बात है?” शैतान काम करते समय चाहे कोई भी षड्यंत्र और साजिश क्यों न रचे, हम डरते नहीं हैं। हमारे पास परमेश्वर है, हमारे पास सत्य है। परमेश्वर हमें बुद्धि देगा। परमेश्वर हर चीज पर संप्रभुता रखता है; सब कुछ परमेश्वर के आयोजन के अधीन है। तुम किससे डरते हो? रोना बस यही दर्शाता है कि तुम कायर और अयोग्य हो; तुम कचरे का टुकड़ा हो, प्राणवायु की बरबादी हो! रोने का मतलब है कि तुम शैतान के साथ समझौता कर रहे हो और शैतान से दया की भीख माँग रहे हो। क्या परमेश्वर ऐसे निकम्मे कायरों को पसंद करता है? (नहीं।) परमेश्वर तुम्हें एक निकम्मा कायर, मूर्ख, कचरे का टुकड़ा मानता है, जिसके पास कोई गवाही और कोई बुद्धि नहीं है। तुमने जो सत्य समझा था, उसका क्या हुआ? क्या तुमने परमेश्वर द्वारा उजागर किए गए मसीह-विरोधियों और शैतान की अभिव्यक्तियों के बारे में ज्यादा नहीं सुना है? क्या तुम इन बातों की असलियत समझ या पहचान नहीं सकते? क्या तुम्हें नहीं पता कि वे शैतान हैं? अगर तुम जानते हो कि वे शैतान हैं तो तुम्हें किस बात का डर है? तुम परमेश्वर से क्यों नहीं डरते और उससे भयभीत क्यों नहीं होते? क्या तुम शैतान से डरकर परमेश्वर को नाराज करने से नहीं डरते? क्या यह दुष्टतापूर्ण कृत्य नहीं है? जब ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं तो तुम डर जाते हो और तुम्हारे पास कोई समाधान, कोई बुद्धि या प्रत्युपाय नहीं होता। इतने वर्षों तक धर्मोपदेश सुनने से तुम्हें क्या हासिल हुआ? क्या यह सब व्यर्थ हो गया है? क्या ऐसे बेकार कायर अपनी गवाही में दृढ़ रह सकते हैं? (नहीं।) जब ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं जहाँ शैतान और बुरे लोग चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करते हैं, तो चाहे तुम अकेले और शक्तिहीन हो या तुम्हारे पास वास्तव में कुछ ऐसे भाई-बहनें हों जो तुमसे एकमत हों, तो कार्रवाई करने में जल्दबाजी मत करो। सबसे पहले, इंतजार करना सीखो। फिर, खोजना सीखो। इंतजार करने और खोजने के दौरान, अपना कर्तव्य मत छोड़ो। इंतजार करने का क्या मतलब है? इसका मतलब है सही समय और मौके के लिए परमेश्वर का इंतजार करना। और तुम्हें क्या खोजना चाहिए? परमेश्वर में विश्वास रखने और उसका अनुसरण करने में तुम्हें जिन सिद्धांतों और मार्ग पर चलना चाहिए उन्हें खोजो; परमेश्वर के इरादों के अनुरूप काम करने का तरीका खोजो, और यह खोजो कि शैतान और मसीह-विरोधी शक्तियों के विरुद्ध लड़ने के लिए काम कैसे करें ताकि हम शैतानी शक्तियों पर विजय प्राप्त करके विजेता बनें। अगर तुम अकेले हो, तो तुम्हें परमेश्वर से अधिक प्रार्थना करनी चाहिए, इंतजार करना और सत्य खोजना चाहिए। अगर दो-तीन लोग तुम्हारे साथ एकमत हैं तो तुम मिलकर संगति, प्रार्थना, इंतजार और खोज कर सकते हो। जब परमेश्वर ने उपयुक्त समय तैयार कर दिया हो, तो परमेश्वर से शक्ति और बुद्धि के लिए प्रार्थना करो, ताकि तुम जो कुछ भी करो या कहो वह उचित हो। ऐसा करने से, एक ओर तो तुम सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाते हो, वहीं दूसरी ओर, तुम शैतान को भी दृढ़ता से और प्रभावी ढंग से उजागर कर सकते हो; साथ ही, तुम शैतान के सेवकों और मसीह-विरोधियों की साजिशों को पूरी तरह से उजागर और विफल कर सकते हो। क्या यह उचित है? ये तरीके, उपाय, मार्ग और सिद्धांत तुम लोगों को बताए गए हैं, इसलिए यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम उन्हें कैसे लागू करते हो। क्या यह मार्ग पर्याप्त रूप से स्पष्ट है? (हाँ।) तो फिर, जब ऐसे मामलों से तुम लोगों का सामना हो, तो इस सिद्धांत के अनुसार अभ्यास करना। ऐसा करना आसान है।
कलीसिया के हर एक चुनाव के दौरान, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ ही परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर भी चुनाव कार्य की सुरक्षा करने की जिम्मेदारी और दायित्व होता है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सत्य और चुनाव सिद्धांतों पर संगति करने के काम की जिम्मेदारी लेनी चाहिए; परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपनी हर समस्या सामने लानी चाहिए और फिर इन समस्याओं को हल करने के लिए सत्य पर संगति की जानी चाहिए। केवल इस तरह से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि चुनाव सुचारू रूप से चले। एक बात तो यह है कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के घर के चुनाव सिद्धांतों का सख्ती से पालन करना चाहिए और परमेश्वर के घर में हर एक चुनाव का काम इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर करना चाहिए। दूसरी बात, उन्हें चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने वाले बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों से भी सावधान रहना चाहिए। ये लोग शैतान के सेवक हैं, शैतान के साथी हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उनसे एकदम सावधान और सतर्क रहना चाहिए, चुनावों के दौरान परदे के पीछे से चीजों में हेराफेरी करने और चुनाव की प्रक्रिया में गुप्त रूप से धांधली करने के लिए कुछ छल-कपट करने और चोरी-छिपे की जाने वाली कार्रवाइयों में लिप्त होने के उनके प्रयासों के प्रति सतर्क रहना चाहिए। अगर यह पता चलता है कि चुनाव में वाकई बुरे लोगों ने हेराफेरी की थी, जिसके कारण सही उम्मीदवार को शामिल नहीं होने दिया गया और ज्यादातर लोगों को इस तरह गुमराह किया गया कि गलत व्यक्ति—जो पद के लिए उपयुक्त नहीं है—अगुआ चुन लिया जाए; अगर ऐसी स्थिति आती है तो अभी भी इसका एक समाधान है। चुने गए व्यक्ति की वास्तविक स्थिति को उजागर किया जाना चाहिए। अगर ज्यादातर लोग सहमत हैं तो दोबारा चुनाव कराया जा सकता है। शैतान और बुरे लोगों की हेराफेरी से किया गया चुनाव, सत्य सिद्धांतों के आधार पर सामान्य रूप से कलीसिया द्वारा कराए गए चुनाव का नतीजा नहीं है। यह सकारात्मक चीज नहीं है और आज नहीं तो कल सच सामने आ ही जाएगा, सब उजागर हो जाएगा और तब चुनाव को रद्द कर दिया जाएगा। यह मानते हुए, अगर तुम ऐसी स्थितियों का सामना करते हो, तो तुम्हें कैसे काम करना चाहिए? तुम्हें कभी भी और कहीं भी शैतान के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए, न कि हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना चाहिए। अगर तुम डरपोक, भ्रमित व्यक्ति या निकम्मे कायर हो, तो तुम उनके साथ समझौता करके उनसे साँठ-गाँठ कर सकते हो या उनसे इतनी बुरी तरह हार सकते हो कि तुम नकारात्मक हो जाओगे और ठीक होने में असमर्थ होगे। कुछ लोग बस हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं, वे कहते हैं, “मैं वैसे भी कलीसिया का अगुआ नहीं बन सकता। कोई भी सेवा करे, एक ही बात है। जिसमें भी क्षमता हो, वह आगे बढ़कर सेवा कर सकता है! अगर कोई मसीह-विरोधी सेवा करना चाहता है, तो इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं, और जब तक वह मुझे नहीं निकालता, तब तक सब ठीक है।” जो लोग ऐसा कहते हैं वे अच्छे लोग नहीं हैं। वे कल्पना नहीं कर सकते कि अगर कोई मसीह-विरोधी अगुआ के रूप में सेवा करता है तो इसके क्या परिणाम होंगे, न ही वे यह सोच सकते हैं कि इसका परमेश्वर में उनके विश्वास और उनके उद्धार पर क्या प्रभाव पड़ेगा। सत्य को समझने वाले ही इसकी असलियत देख सकते हैं। वे कहेंगे : “अगर कोई मसीह-विरोधी कलीसिया का अगुआ बन जाता है, तो परमेश्वर के चुने हुए लोग पीड़ित होंगे। खासकर वे लोग जो सत्य का अनुसरण करते हैं, न्याय की भावना रखते हैं और तत्परता से अपना कर्तव्य निभाते हैं, उन सभी को दबाया और बाहर किया जाएगा। केवल भ्रमित और खुशामदी लोग ही फायदे में रहेंगे, और वे पिंजरे में कैद और मसीह-विरोधी की शक्ति के नियंत्रण में लाए गए होंगे।” लेकिन जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते वे कभी भी इन बातों पर विचार नहीं करते। वे सोचते हैं : “इंसान बचाए जाने के लिए ही परमेश्वर पर विश्वास रखता है। हर कोई अपने चुने गए मार्ग पर चलता है। अगर कोई मसीह-विरोधी अगुआ बन भी जाता है, तो इसका मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अगर मैं बुरे काम नहीं करूँगा, तो वह मुझे दबा या निकाल नहीं सकता या कलीसिया से बाहर नहीं कर सकता।” क्या यह सही दृष्टिकोण है? (नहीं।) अगर परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से कोई भी कलीसिया के चुनावों के बारे में चिंतित नहीं होता, और वे किसी मसीह-विरोधी को सत्ता प्राप्त करने देते हैं, तो परिणाम क्या होंगे? क्या यह वास्तव में उतना ही सरल होगा, जितना लोग कल्पना करते हैं? कलीसियाई जीवन किस प्रकार के परिवर्तनों से गुजरेगा? यह सीधे तौर पर परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश से संबंधित है। अगर किसी कलीसिया में किसी मसीह-विरोधी की सत्ता रहती है, तो क्या होगा? उस कलीसिया में सत्य की और न ही परमेश्वर के वचन की सत्ता रहेगी—इसके बजाय, वहाँ छद्म-विश्वासियों और शैतान की सत्ता होगी। हालाँकि सभाओं में अभी भी परमेश्वर के वचन पढ़े जाते होंगे, लेकिन बोलने के अधिकार पर मसीह-विरोधियों का नियंत्रण रहता है। क्या मसीह-विरोधी सत्य के बारे में स्पष्ट रूप से संगति कर सकता है? क्या मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को स्वतंत्र रूप से और बिना किसी रोक-टोक के सत्य के बारे में संगति करने दे सकता है? यह असंभव है। एक बार जब किसी मसीह-विरोधी के पास सत्ता आती है तो वहाँ ज्यादा से ज्यादा बाधाएँ और गड़बड़ियाँ होंगी, कलीसियाई जीवन के नतीजे लगातार कमजोर होते जाएँगे और परमेश्वर के चुने हुए लोग इकट्ठा होने पर ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर पाएँगे, जिससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के लिए कठिनाइयाँ उत्पन्न होंगी। परमेश्वर के चुने हुए लोगों की समस्याएँ भी अधिकाधिक बढ़ती जाएँगी और वे हल नहीं की जा सकेंगी, और कुछ लोग जो सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हैं उनका मार्ग भी बाधित हो जाएगा; कलीसियाई जीवन का माहौल पूरी तरह से बदल जाएगा, मानो काले बादलों ने छाकर सूर्य को अवरुद्ध कर दिया हो। ऐसे में, क्या कलीसियाई जीवन में अभी भी आनंद बना रहेगा? इस पर निश्चित रूप से बहुत ही बुरा असर पड़ेगा। कलीसिया में सत्य का अनुसरण करने वाले लोग कम ही होते हैं। अगर इन गिने-चुने लोगों को दबाया और बाहर किया जाता है तो यह कहा जा सकता है कि कलीसियाई जीवन खत्म हो जाएगा। अगर लोग इस परिणाम की असलियत नहीं समझ पाते हैं तो वे चुनावों पर ध्यान नहीं देंगे या उनकी परवाह नहीं करेंगे। अगर ज्यादातर लोग चुनावों को गंभीरता से नहीं लेते, सिद्धांतों का पालन नहीं करते, चुनावों को लेकर बहुत नकारात्मकता से पेश आते हैं, और नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों से संकेत लेते हैं, तो जैसे ही बुरे लोग या जो सत्य से प्रेम नहीं करते वे कलीसिया के अगुआ बनेंगे, तो परमेश्वर के चुने हुए ज्यादातर लोगों को अपने जीवन प्रवेश में नुकसान उठाना पड़ेगा। इसलिए, कलीसिया के चुनावों के नतीजे सीधे तौर पर परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन की प्रगति और कलीसिया के भविष्य को प्रभावित करते हैं। परमेश्वर के चुने हुए लोगों को इसे स्पष्ट रूप से समझना चाहिए और बिल्कुल भी नकारात्मक रवैया नहीं अपनाना चाहिए। कुछ भ्रमित लोग इस मामले की असलियत नहीं जान पाते; वे हमेशा अपनी कल्पनाओं पर भरोसा करते हुए यह सोचते हैं, “कलीसिया में हर कोई ईमानदार विश्वासी है, इसलिए कोई भी चुना जा सकता है; अगर वह कोई भाई या बहन है, तो वह अगुआ हो सकता है।” वे कलीसिया के चुनावों को बहुत सरलता से देखते हैं, जिससे कई नकारात्मक, गलत विचार और दृष्टिकोण सामने आते हैं। अगर झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को वाकई अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में चुन लिया जाता है तो कलीसिया का काम खराब हो जाएगा और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को यकीनन नुकसान पहुँचेगा। तब जाकर, लोगों को यह एहसास होगा कि सिद्धांतों के अनुसार चुनाव कराना कितना महत्वपूर्ण है।
हर कलीसिया में खुशामद करने वाले कुछ लोग होते हैं। इन खुशामदी लोगों को कुकर्मियों द्वारा चुनावों में हेराफेरी करने और उनमें गड़बड़ करने की बिल्कुल भी पहचान नहीं होती है। भले ही कुछ लोगों को थोड़ी-सी पहचान हो, वे इसे अनदेखा कर देते हैं। कलीसियाई चुनावों में उठने वाले मुद्दों के प्रति उनका रवैया यह होता है, “चीजों को वैसे ही चलने दो अगर वे किसी को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित न करती हों।” उन्हें लगता है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कौन अगुआ बनता है, कि इसका उनसे कोई लेना-देना नहीं है। जब तक वे खुशी-खुशी अपना दैनिक जीवन जी सकते हैं, तब तक वे ठीक रहते हैं। तुम इस तरह के लोगों के बारे में क्या सोचते हो? क्या ये सत्य से प्रेम करने वाले लोग हैं? (नहीं।) ये किस किस्म के लोग हैं? ये खुशामदी लोग हैं, और इन्हें छद्म-विश्वासी भी कहा जा सकता है। ये लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं; वे सिर्फ एक आसान जीवन जीना चाहते हैं, और दैहिक सुख-सुविधाओं का लालच करते हैं। वे बेहद स्वार्थी और बेहद चालाक होते हैं। क्या समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं? चाहे कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में हो, चाहे पद सँभालने वाला व्यक्ति कोई भी हो, वे बहुत पसंद किए जाते हैं, वे अपने सामाजिक संबंधों को सफलतापूर्वक सँभाल सकते हैं, और बड़े आराम से रह सकते हैं; चाहे कोई भी राजनीतिक आंदोलन छिड़ जाए, वे उसमें नहीं उलझते हैं। ये किस किस्म के लोग हैं? ये सबसे धोखेबाज, सबसे चालाक लोग हैं, जिन्हें “धूर्त लोगों” और “स्थितियों से निपटने में अभ्यस्त” के रूप में जाना जाता है। वे शैतान के फलसफों के अनुसार जीवन जीते हैं, उनमें लेश मात्र भी सिद्धांत नहीं होता है। जो भी सत्ता में होता है, वे उसी की सेवा करते हैं, उसी की खुशामद करते हैं, उसी के गीत गाते हैं। वे अपने वरिष्ठों को बचाने के अलावा कुछ नहीं करते हैं, और उन्हें कभी भी नाराज नहीं करते हैं। उनके वरिष्ठ चाहे कितने भी बुरे कर्म क्यों न करें, वे न तो उनका विरोध करते हैं और न ही उनका समर्थन करते हैं, बल्कि अपने विचारों को अपने दिल की गहराइयों में छिपाए रखते हैं। चाहे सत्ता में कोई भी हो, उन्हें काफी पसंद किया जाता है। शैतान और शैतान राजा इस तरह के व्यक्ति को पसंद करते हैं। शैतान राजा इस तरह के व्यक्ति को क्यों पसंद करते हैं? क्योंकि वह शैतान राजाओं के मामलों को बिगाड़ता नहीं है और उनके लिए बिल्कुल भी खतरा नहीं बनता है। इस किस्म का व्यक्ति अपने स्व-आचरण में सिद्धांतहीन होता है, और अपने आचरण के लिए उसके पास कोई आधार नहीं होता, और उसमें ईमानदारी और गरिमा का अभाव होता है; वह बस समाज के रुझानों का अनुसरण करता है और शैतान राजाओं के सामने सिर झुकाता है, उनकी पसंद के अनुसार खुद को ढाल लेता है। क्या कलीसिया में ऐसे भी लोग नहीं हैं? क्या ऐसे लोग विजेता हो सकते हैं? क्या वे मसीह के अच्छे सैनिक हैं? क्या वे परमेश्वर के गवाह हैं? जब कुकर्मी और मसीह-विरोधी अपने सिर उठाते हैं और कलीसिया के कार्य में विघ्न डालते हैं, तो क्या ऐसे लोग उठ खड़े हो सकते हैं और उनके खिलाफ जंग छेड़ सकते हैं, उन्हें उजागर कर सकते हैं, पहचान सकते हैं और त्याग सकते हैं, उनके बुरे कर्मों का अंत कर सकते हैं और परमेश्वर के लिए गवाही दे सकते हैं? यकीनन वे ऐसा नहीं कर सकते हैं। ये धूर्त लोग वे नहीं हैं जिन्हें परमेश्वर पूर्ण बनाएगा या जिन्हें वह बचाएगा। वे कभी भी परमेश्वर के लिए गवाही नहीं देते हैं या उसके घर के हितों को बनाए नहीं रखते हैं। परमेश्वर की नजर में, ये उसका अनुसरण करने वाले या उसके प्रति समर्पण करने वाले लोग नहीं हैं, बल्कि वे लोग हैं जो आँख मूँदकर मुसीबत खड़ी करते हैं, और शैतान के गिरोह के सदस्य हैं—ये वही लोग हैं जिन्हें वह अपना कार्य पूरा करने के बाद हटा देगा। परमेश्वर ऐसे दुष्टों को सँजोकर नहीं रखता है। उनके पास न तो सत्य है और न ही जीवन है; वे जानवर और शैतान हैं; वे परमेश्वर के उद्धार के और उसके प्रेम का आनंद लेने के लायक नहीं हैं। इसलिए, परमेश्वर ऐसे लोगों को बड़ी आसानी से त्याग देता है और हटा देता है, और कलीसिया को उन्हें छद्म-विश्वासियों के रूप में फौरन बाहर निकाल देना चाहिए। उनके पास परमेश्वर के लिए सच्चा दिल नहीं है, तो क्या परमेश्वर उन्हें वास्तविक पोषण देगा? क्या वह उन्हें प्रबुद्ध करेगा और उनकी मदद करेगा? वह ऐसा नहीं करेगा। जब कलीसिया के चुनावों के दौरान हस्तक्षेप और विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न होती हैं, और चुनाव के नतीजे कुकर्मियों द्वारा नियंत्रित और प्रभावित होते हैं, तो ये लोग परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने के लिए परमेश्वर के पक्ष में बिल्कुल भी खड़े नहीं होंगे। वे कुकर्मियों और मसीह विरोधियों के खिलाफ लड़ने के लिए, और शैतान की शक्तियों के खिलाफ अंत तक लड़ने के लिए सत्य सिद्धांतों का बिल्कुल भी पालन नहीं करेंगे। वे ऐसा बिल्कुल भी नहीं करेंगे, उनमें ऐसा करने की हिम्मत नहीं है। इसलिए, जो लोग परमेश्वर के लिए गवाही दे सकते हैं, उन्हें इन लोगों को पहचान लेना चाहिए और इन लोगों के साथ उन सत्यों की संगति नहीं करनी चाहिए जिन्हें वे समझते हैं या शैतान को पहचानने के बारे में संगति नहीं करनी चाहिए। अगर तुम उनके साथ इन चीजों की संगति करते भी हो, तो यह बेकार जाएगा; वे सत्य के पक्ष में नहीं खड़े होंगे। सहकर्मियों और साझेदारों को चुनते समय, तुम्हें ऐसे लोगों को बाहर रखना चाहिए और उन्हें नहीं चुनना चाहिए। तुम्हें उन्हें क्यों नहीं चुनना चाहिए? क्योंकि वे धूर्त लोग हैं; वे परमेश्वर के पक्ष में नहीं खड़े होंगे, सत्य के पक्ष में नहीं खड़े होंगे, और शैतान के खिलाफ लड़ने के लिए दिल और दिमाग से तुम्हारे साथ एकजुट नहीं होंगे। अगर तुम उन पर विश्वास करके उन्हें अपनी आंतरिक बातें बताते हो, तो तुम बेवकूफ हो और शैतान के लिए हँसी का पात्र बन जाओगे। ऐसे लोगों के साथ सत्य की संगति मत करो या उन्हें प्रोत्साहन मत दो, और उनसे कोई उम्मीद मत रखो, क्योंकि परमेश्वर इन लोगों को बिल्कुल नहीं बचाता है। ये ऐसे लोग नहीं हैं जो परमेश्वर के साथ एकदिल और एकमन हों; ये दूर से जंग का नजारा देखने वाले दर्शक हैं, ये धूर्त लोग हैं। इस किस्म के लोग सिर्फ जोश-खरोश को देखने और आँख मूँदकर मुसीबत खड़ी करने के लिए परमेश्वर के घर में घुसपैठ करते हैं। इनमें न्याय की भावना नहीं होती है और न ही जिम्मेदारी की कोई समझ होती है; यहाँ तक कि इनमें उन भले लोगों के लिए सहानुभूति तक नहीं होती है जो कुकर्मियों द्वारा चोट पहुँचाए गए होते हैं। ऐसे लोगों को राक्षस और शैतान बुलाना सबसे उपयुक्त है। अगर न्याय की भावना वाला कोई व्यक्ति कुकर्मियों को उजागर करता है, तो वे उसका हौसला भी नहीं बढ़ाएँगे या उसे नैतिक समर्थन भी नहीं देंगे। इसलिए, इन लोगों पर कभी भरोसा मत करो; ये धूर्त लोग, गिरगिट, स्थितियों से निपटने में अभ्यस्त हैं। ये परमेश्वर के सच्चे विश्वासी नहीं हैं, बल्कि ये शैतान के सेवक हैं। इन लोगों को कभी बचाया नहीं जा सकता है, और परमेश्वर उन्हें नहीं चाहता है; यह परमेश्वर की स्पष्ट इच्छा है। ज्यादातर कलीसियाओं में शायद ऐसे लोग होते हैं। उन्हें पहचानने के लिए अपनी कलीसिया में जरा नजर घुमाओ। जब कुछ होता है तो उनके साथ कभी भी सत्य पर संगति मत करो और उन्हें यह मत बताओ कि वास्तव में तुम्हारे साथ क्या चल रहा है। ऐसे लोगों से सावधान रहो और उनसे मत उलझो। ऐसे लोगों को ढूँढ़ो जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास और न्याय की भावना रखते हैं—जब वे देखते हैं कि परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँच रहा है, कलीसिया के कार्य और कलीसियाई जीवन की व्यवस्था को बाधित किया जा रहा है या उसमें हेराफेरी की जा रही है तो वे व्यग्र और क्रोधित हो जाते हैं; वे कलीसिया को बाधित करने वाले इन बुरे लोगों से बहुत गहराई तक नफरत करते हैं; वे आगे बढ़कर बुरे लोगों को उजागर करना चाहते हैं और एकजुट होकर बुरे राक्षसों के खिलाफ लड़ने के लिए ऐसे लोगों को खोजने के लिए उत्सुक हैं जो सत्य समझते हों। ऐसे लोगों के साथ संगति करो और शैतान के खिलाफ लड़ने के लिए उनसे हाथ मिलाओ। ये लोग विजेता हैं, मसीह के अच्छे सैनिक हैं; केवल इन लोगों का ही मसीह के राज्य में हिस्सा है। उन सभी खुशामदी लोगों, बूढ़े साँपों, गिरगिटों, और सुन्न और मंदबुद्धि लोगों को बेनकाब किया जा चुका है; वे हटा दी जाने वाली वस्तुएँ हैं। वे भाई-बहन नहीं हैं, ना ही वे परमेश्वर के घर के लोग हैं, बल्कि छद्म-विश्वासी और अवसरवादी हैं जो भरोसे के लायक नहीं हैं। इन लोगों से निपटने का यही तरीका है : अगर वे बुराई कर सकते हैं तो उन्हें दूर कर दो; अगर वे बुरे लोग नहीं हैं और कलीसिया को बाधित करने में बुरे लोगों का साथ नहीं देते हैं तो वे अस्थायी रूप से कलीसिया में रह सकते हैं, जबकि तुम उनके पश्चात्ताप की राह देख रहे हो। पहली बात, इन लोगों के स्वभावों, मानवता और विभिन्न मामलों के प्रति उनके विचारों और रवैये को देखो और उन्हें समझो, और ऐसे लोगों के सार को समझो और इसका भेद पहचानो। साथ ही, जब बुरे लोग चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करें तो इन खुशामदी लोगों से सावधान रहना जो बुरे लोगों के पक्ष में खड़े हैं, उनके सेवकों और साथियों के रूप में काम कर रहे हैं। संक्षेप में, चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने वाले बुरे लोगों के सभी अनुचित व्यवहारों के लिए, परमेश्वर के वचनों के अनुसार अपने विवेक का इस्तेमाल करना जरूरी है; जब तुम उनके सार को स्पष्टता से देखोगे तो तुम जान जाओगे कि सिद्धांतों के अनुसार उनसे उचित तरीके से कैसे निपटना है।
अभी-अभी हमने चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की कुछ घटनाओं और कुछ लोगों के क्रियाकलापों के बारे में संगति की। हालाँकि हर पहलू पर बात नहीं की गई, मगर इन मुद्दों को हल करने के सिद्धांतों पर मूल रूप से संगति की गई। जैसे ही तुम लोग कलीसिया के भीतर चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने वाले लोगों को देखो, तुम्हें आगे बढ़कर उन्हें रोकना चाहिए। आज्ञाकारी मत बनो और खुशामदी लोगों की तरह व्यवहार मत करो। अगर कोई हमेशा चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की कोशिश करता है, तो जैसे ही यह प्रवृत्ति दिखाई दे, भाई-बहनों को एक साथ आगे आकर उन्हें रोकना और उजागर करना चाहिए। अगर वे भ्रम में ऐसा कर रहे हैं, वे नहीं जानते कि इसे चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने के रूप में गिना जाता है, तो तुम लोग उन्हें यह समझा सकते हो : “तुम जो कर रहे हो वह चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करना है। शैतान के सेवक की भूमिका मत निभाओ। यह कलीसिया के अगुआओं का चुनाव है, मेयर या टाउनशिप प्रमुखों का चुनाव नहीं। इस काम को करने के लिए परमेश्वर के घर के अपने विनियम और अपने सिद्धांत हैं। मानवीय इरादों को इसमें शामिल नहीं किया जाना चाहिए; हमें इस काम के लिए सत्य सिद्धांतों का सख्ती से पालन करना चाहिए। अगर तुम्हारी काबिलियत कम है और तुम सत्य सिद्धांतों को नहीं समझ सकते या अगर तुम बूढ़े और भ्रमित हो, और तुम्हें चुनावों में भाग लेने के लिए आवश्यक बौद्धिकता की कमी है, तो तुम मतदान करने से पीछे हटकर केवल नतीजे का इंतजार कर सकते हो, मगर किसी भी तरह से तुम्हें चुनाव में हेराफेरी या गड़बड़ी नहीं करनी चाहिए या हस्तक्षेप और विघ्न-बाधाएँ पैदा नहीं करनी चाहिए; ये बुरे कर्म हैं और परमेश्वर इससे घृणा करता है। ऐसे बुरे कर्मों की हमेशा निंदा की जाती है; ऐसा व्यक्ति कभी मत बनो या ना ही कभी इस मार्ग पर चलो। अगर तुम वास्तव में मनुष्य हो, तो चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी मत करो, क्योंकि जब यह एक तथ्य बन जाएगा, तो तुम्हारा चरित्र चित्रण शैतान के सेवक के रूप में करके कलीसिया से बाहर कर दिया जाएगा।” अगर चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने वाले लोगों का पता चले, तो कम काबिलियत वाले लोग जो यह नहीं समझते कि वास्तव में क्या हुआ है, उनके साथ प्यार से संगति की जा सकती है, उनका समर्थन किया जा सकता है, और उनकी आपूर्ति और मदद की जा सकती है। फिर उन लोगों का क्या जो सत्य सिद्धांतों से पूरी तरह अवगत होने के बाद भी, जानबूझकर चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी करते हैं, यहाँ तक कि इसके खिलाफ चेतावनी को भी अनदेखा करते हैं? उनके लिए भी एक समाधान है : उन्हें अब चुनावों में भाग लेने की अनुमति नहीं है; उनसे उनके चुनाव अधिकार छीन लिए जाने चाहिए। संक्षेप में, चुनावों में हेराफेरी करने और गड़बड़ी करने के सभी कृत्यों को समान रूप से पहचाना जाना चाहिए, रोका जाना चाहिए और स्थिति को पलटने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। चुनाव के गलत नतीजे आने और कलीसिया के काम को बाधित करने और नुकसान पहुँचाने से रोकने के लिए, इस तरह के व्यवहारों और क्रियाकलापों को कलीसिया में बिल्कुल भी होने नहीं दिया जाना चाहिए।
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