अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (19) खंड एक

मद बारह : उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं; उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को बदलो; इसके अतिरिक्त, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें (भाग सात)

विभिन्न लोग, घटनाएँ और चीजें जो कलीसियाई जीवन को अस्त-व्यस्त करती हैं

अनुचित रिश्तों में लगे रहने वालों से निपटने के लिए सिद्धांत

परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा डालने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं, और चीजों से जुड़े मामलों को हमने कुल ग्यारह मुद्दों में बाँट दिया है। इससे पहले, हमने छठे मुद्दे पर संगति की थी—अनुचित संबंधों में लिप्त होना। इसका मुख्य रूप से क्या मतलब है? दूसरों को बेधड़क लुभाना और कामुक इच्छाओं वाले संबंधों में लिप्त होना। इस पहलू के बारे में क्या संगति की गई थी? जब ऐसे लोग कलीसिया में दिखाई दें तो उनसे कैसे निपटा जाना चाहिए? इसके क्या समाधान हैं? क्या हमें आँखें मूँदकर इसे नजरंदाज कर देना चाहिए या सत्य सिद्धांतों के अनुसार समस्या का समाधान करना चाहिए? क्या हमें इससे बचना चाहिए या इसमें शामिल लोगों को प्रेम से प्रभावित करना चाहिए? क्या हमें उनसे सत्य पर संगति करनी चाहिए या उन्हें चेतावनी देकर निकाल देना चाहिए? इससे निपटने का सबसे उचित तरीका क्या है? (इसमें शामिल लोगों को चेतावनी देना और प्रतिबंधित करना। अगर उन्हें प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है तो उन्हें बाहर निकाल देना चाहिए।) उन्हें कैसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए? क्या ऐसा करना आसान है? जब ऐसे मामले होते हैं तो आम तौर पर इसमें शामिल लोगों को प्रतिबंधित करना इतना आसान नहीं होता। कुछ लोग ऐसी स्थिति को देखकर इसे अनुचित मानते हैं, मगर वे कुछ भी बोलने से शर्माते हैं। कुछ लोग अप्रत्यक्ष रूप से इसकी ओर इशारा कर सकते हैं, मगर जरूरी नहीं कि इसमें शामिल लोग उस पर ध्यान दें। उन सभी लोगों की मानवता कैसी है जो बेधड़क दूसरों को लुभा सकते हैं? क्या वे गरिमापूर्ण और ईमानदार लोग हैं? क्या वे संतों की मर्यादा वाले लोग हैं? क्या वे गरिमा और शर्म की भावना रखने वाले लोग हैं? (नहीं।) अगर कोई उन्हें सिर्फ शब्दों से याद दिला दे या सामान्य रूप से सत्य पर संगति कर दे तो क्या इससे समस्या हल हो सकती है? नहीं हो सकती। जब ऐसा कुछ होता है तो इसका मतलब है कि यह बात लंबे समय से उनके मन में घूम रही थी। उस समय, क्या इसे नियंत्रित करना आसान होता है? क्या उनकी मदद करने और उन्हें प्यार से प्रभावित करने की कोशिश करने से समस्या हल हो सकती है? (नहीं।) तो सबसे अच्छा समाधान क्या है? ऐसे लोगों को निकाल बाहर करना, उन्हें उन लोगों से अलग कर देना जो ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, और उन्हें दूसरों को बाधित करना और नुकसान पहुँचाना जारी नहीं रखने देना।

आजकल कुछ कलीसियाओं में पुरुषों और महिलाओं द्वारा एक-दूसरे को लुभाने की घटनाएँ लगातार सामने आ रही हैं। ये लोग मौका मिलते ही एक-दूसरे को लुभाते हैं, खास तौर पर कामुकतापूर्ण व्यवहार करते हैं और उनमें शर्म की कोई भावना नहीं होती है। मैंने एक ऐसे आदमी के बारे में सुना था जिसने कई महिलाओं को लुभाया; वह गंभीर रिश्ते में शामिल नहीं होता था, बल्कि बेधड़क किसी भी महिला को लुभाता और उससे चिपकता रहता था। कुछ लोग कहते हैं, “वह बस सामान्य रूप से बातचीत कर रहा है; उसका बातचीत करने का तरीका ऐसा ही है।” ज्यादातर लोग बातचीत करने के इस तरीके को अशोभनीय, विद्रोही और घिनौना मानते हैं। क्या यह एक समस्या नहीं है? क्या इससे यह साबित हो सकता है कि ऐसे संबंध अनुचित हैं? अगर दो लोगों का अंतरंग मेलजोल न केवल उनके अपने कर्तव्य निर्वहन को, बल्कि दूसरों के कर्तव्य निर्वहन को भी प्रभावित करता है तो उन्हें प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए। उन्हें कलीसियाई जीवन में अंतरंग मेलजोल करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, खास तौर से पूर्णकालिक कर्तव्य वाली कलीसिया में तो इसकी अनुमति बिल्कुल नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि यह दूसरों के कर्तव्य निर्वहन को तो प्रभावित करता ही है और कलीसिया के कार्य के लिए भी हानिकारक है। जब वे अपने कर्तव्यों पर ध्यान लगा सकें तो अपने कर्तव्य निभाने के लिए पूर्णकालिक कलीसिया में वापस आ सकते हैं। कुछ लोग गंभीर संबंधों में लिप्त नहीं होते, बल्कि बेधड़क दूसरों को लुभाते और उनसे चिपके रहते हैं, वे कामुक इच्छाओं से खेलते हैं, कलीसियाई जीवन को बाधित करते हैं, लोगों की मनोदशा को प्रभावित करते हैं और दूसरों को बाधित करते हैं। यह स्थिति कलीसिया के कार्य में बाधा डालती है और इसे सिद्धांतों के अनुसार सँभाला और हल किया जाना चाहिए; इन लोगों को समय रहते अलग कर देना चाहिए और निकाल देना चाहिए। क्या इस समस्या को सँभालना आसान है? किसी को भी कलीसियाई जीवन और कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा नहीं डालने देना चाहिए, और ऐसे मुद्दों को सिद्धांतों के अनुसार सँभालना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “जिन परिस्थितियों में इन लोगों से निपटने के बाद उनके कर्तव्यों की जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं होगा, उनसे निपटा नहीं जा सकता; उन्हें बस अपनी मर्जी से दूसरों को लुभाते रहने देना चाहिए। वे दूसरों को कैसे भी लुभाएँ, उन्हें इसकी अनुमति दे देनी चाहिए।” क्या परमेश्वर के घर में ऐसा कोई नियम है? क्या पिछली सभा की संगति में ऐसे लोगों से निपटने के बारे में कोई सिद्धांत था? (नहीं।) ऐसी स्थितियों से सामना होने पर, कलीसिया अगुआ और निरीक्षक उलझन में पड़ जाते हैं और वे नहीं जानते कि उनसे कैसे निपटा जाए, फिर ये लोग कलीसिया में दूसरों को बेधड़क लुभाने लगते हैं, जिससे ज्यादातर लोग असहज महसूस करते हैं और वे इससे सीख नहीं पाते हैं, वे अपने दिलों में घृणा महसूस करते हैं मगर बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते और उन्हें इसे सहते रहना पड़ता है। अगुआओं और निरीक्षकों का मानना है कि कलीसिया का कार्य और परमेश्वर का घर इन लोगों के बिना नहीं चल सकता; अगर इन बेधड़क लुभाने वालों को दूर भेज दिया जाए तो काम करने के लिए लोग कम हो जाएँगे। क्या यह तर्क सही है? (नहीं।) इसमें क्या गलत है? (ये लोग काम नहीं कर सकते; उनका काम करने का कोई इरादा नहीं है।) यह बात एकदम सही है। तुम लोगों को क्या लगता है कि किस तरह के लोग दूसरों को बेधड़क लुभाने में सक्षम हैं? उनमें बिल्कुल भी संयम नहीं होता; वे छद्म-विश्वासी, अविश्वासी होते हैं। बात सिर्फ यही नहीं है कि वे सत्य से प्रेम नहीं करते, सत्य से विमुख होते हैं, उनमें आस्था की कमी है, वे युवा हैं और उनकी नींव उथली है—समस्या बस इतनी ही नहीं है। क्या सभी अविश्वासी जो परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, दूसरों को बेधड़क लुभाने में सक्षम हैं? क्या वे सभी कामुकतापूर्ण गतिविधियों में लिप्त होने में सक्षम हैं? उनमें से मुट्ठी भर लोग, कुछ गिने-चुने लोग अभी भी निष्ठा और गरिमा को महत्व देते हैं, अपनी प्रतिष्ठा की परवाह करते हैं और अपने आचरण का एक आधार रखते हैं। परमेश्वर के ये तथाकथित विश्वासी अविश्वासियों से थोड़े भी बेहतर नहीं हैं, तो क्या उन्हें अविश्वासी और छद्म-विश्वासी कहना अतिशयोक्ति होगी? (नहीं।) भले ही ये लोग परमेश्वर के घर में कुछ श्रम कर सकते हैं, मगर अपनी प्रकृति के मामले में, वे छद्म-विश्वासी और अविश्वासी हैं। वे जो कुछ भी करते हैं उसमें कोई सिद्धांत नहीं होता और वे बिना किसी आधार, गरिमा और शर्म की भावना के आचरण करते हैं। अविश्वासी इस विचार का भी समर्थन करते हैं, “जैसे पेड़ को उसकी छाल की जरूरत है वैसे ही लोगों को आत्मसम्मान की जरूरत है”; फिर भी ये लोग अपने आत्मसम्मान को बनाए नहीं रखना चाहते, तो क्या वे सत्य की चाह रख सकते हैं? क्या वे गंभीरता से परमेश्वर के लिए खुद को खपा सकते हैं? क्या वे अपने कर्तव्य में सिद्धांतों के अनुसार काम कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं! वे शुद्ध रूप से श्रम कर रहे हैं। श्रम करने वाले लोगों में कोई सत्य नहीं होता; उनका श्रम बाधा डालता है और गड़बड़ी पैदा करता है, कर्तव्य पालन के मानक पर खरा नहीं उतरता। भले ही बाहरी रूप से वे अपना कर्तव्य निभाते हुए प्रतीत होते हैं, तुम उनके साथ सिद्धांतों पर कैसी भी संगति कर लो, वे तुम्हारी एक नहीं सुनते। वे अपनी मनमानी करते हैं, सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते। जब ये लोग धर्मोपदेश सुनते हैं, तो उनके व्यवहार और हाव-भाव से उनके छद्म-विश्वासी होने का सार उजागर होता है। अन्य लोग सीधे बैठकर गंभीरता से और ध्यानपूर्वक सुनते हैं, मगर ये लोग कैसे सुनते हैं? कुछ लोग मेज के सहारे आराम करते हैं, बार-बार अंगड़ाई और जम्हाई लेते हैं, ठीक से नहीं बैठते, मनुष्य जैसे तो बिल्कुल नहीं दिखते। वे किस तरह के लोग हैं जो मनुष्य जैसे नहीं दिखते? वे मनुष्य तो बिल्कुल नहीं हैं; वे केवल मनुष्य की खाल पहनते हैं। जब तुम लोग इस तरह के “सरीसृपों” के समूह को धर्मोपदेश सुनने के लिए आते देखते हो तो तुम्हें कैसा लगता है? क्या इससे तुम्हें असहज महसूस नहीं होता? (होता है।) यह समूह घिनौना लगता है और उन्हें देखकर मुझे बोलने का मन नहीं करता। मैं मनुष्यों से बात करता हूँ, “सरीसृपों” से नहीं। जो लोग इस तरह से धर्मोपदेश सुनते हैं, क्या उनकी दशाएँ उनके कर्तव्य निभाते जाने के साथ सुधर सकती हैं? क्या परमेश्वर में उनकी आस्था बढ़ सकती है और क्या वे अपने कर्तव्य पालन के साथ सत्य को अधिक स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं? बिल्कुल नहीं! चाहे वे अपने कर्तव्य को कैसे भी निभाएँ, उनका आध्यात्मिक कद और आस्था नहीं बढ़ती। वे बिना किसी जागरूकता, आत्मग्लानि या अनुशासन के दैहिक वासनाओं और भ्रष्ट स्वभावों के भीतर जीते हुए सब कुछ मनमाने ढंग से और बिना किसी संयम के करते हैं—वे गैर-मानव हैं! ऐसे लोगों के लिए, उनके द्वारा की गई अन्य बुरी चीजों या सिद्धांतों का उल्लंघन करने और परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाने वाले उनके क्रियाकलापों पर विचार किए बिना, केवल अनुचित संबंधों में लिप्त होना ही उन्हें बाहर निकालने के लिए पर्याप्त है। यह बहुत ही सरल मामला है, फिर भी कलीसिया अगुआ और निरीक्षक बस अपने सिर खुजाते रह जाते हैं, वे नहीं जानते कि इससे कैसे निपटना है। इस मामले से निपटना बहुत आसान है; इस पर पहले संगति की जा चुकी है। इससे सिद्धांतों के अनुसार निपटना चाहिए और जिन्हें बाहर निकालना जरूरी है उन्हें निकाल देना चाहिए। ज्यादा सोच-विचार मत करो; परमेश्वर के घर का काम उनके बिना भी अच्छे से चलता रहेगा। मुझे बताओ, अगर किसी को कहीं कुत्ते का मल या मल दिखे तो उसे क्या करना चाहिए? उसे तुरंत साफ कर देना चाहिए; अगर समय रहते साफ नहीं किया गया तो मक्खियाँ और मच्छर तुरंत आ जाएँगे और ऐसी जगह पर लोगों को शांति नहीं मिल सकती। इन सबसे मेरा क्या मतलब है? (कलीसिया में अनुचित संबंधों में लिप्त होने की समस्या को हल करने के लिए, पहला कदम उन घृणित छद्म-विश्वासियों का सफाया करना है।) हाँ, मेरा बिल्कुल यही मतलब है। अगर कलीसिया में “कुत्ते के बदबूदार मल” किस्म के लोग होंगे तो वे यकीनन कुछ “बदबूदार मक्खियों” को भी आकर्षित करेंगे। कुत्ते के बदबूदार मल को साफ करने से ये मक्खियाँ अपने आप ही गायब हो जाएँगी। क्या यह समाधान नहीं है? क्या यह समाधान उचित है? (हाँ।) ऐसी समस्याओं से निपटने के दौरान, कुछ कलीसिया अगुआओं को हमेशा चिंता रहती है, वे कहते हैं, “अगर हम दूसरों को बेधड़क लुभाने वाले लोगों का सफाया कर दें तो क्या काम करने वाले लोग कम नहीं पड़ जाएँगे?” क्या यह कोई समस्या है? (नहीं।) क्यों नहीं? इस चिंता का समाधान कैसे किया जाना चाहिए? भले ही उनकी चिंता जायज हो, यह सोचकर कि अगर लोगों से माँगें बहुत सख्त हों और जो लोग काम कर सकते हैं उन्हें दूर कर दिया गया तो कार्य के इस हिस्से को करने के लिए कोई नहीं होगा, क्या उनकी जगह अन्य सक्षम लोगों को ढूँढ़ना आसान नहीं होगा? (हाँ।) और अगर स्थानापन्न लोग तुरंत न भी मिलें तो बाद में उपयुक्त लोग मिल जाने पर परमेश्वर के घर के कार्य को प्रभावित किए बिना काम पूरा किया जा सकता है। परमेश्वर का घर ऐसे लोगों का समर्थन नहीं करता जो सही काम नहीं करते। अगर वे पश्चात्ताप करके सही तरीके से काम कर सकते हैं तो वे काम करना जारी रख सकते हैं, लेकिन अगर वे पश्चात्ताप नहीं करते हैं तो उन्हें अपना कर्तव्य निभाने से अयोग्य घोषित कर देना चाहिए। क्या यह न्यायसंगत और उचित नहीं है? परमेश्वर का घर छद्म-विश्वासियों और अविश्वासियों का समर्थन करने के बजाय श्रमिकों का समर्थन करेगा। क्या यह सिद्धांत सही है? (हाँ।) यह किस तरह से सही है? भले ही कोई श्रमिक सत्य का अनुसरण न करे, फिर भी वह श्रम करने के लिए तैयार रहता है, और परमेश्वर के घर में अच्छे व्यवहार के साथ और आज्ञाकारी तरीके से पूरा प्रयास करता है। भले ही वह केवल श्रम कर रहा हो, मगर वह निष्ठावान है और कम से कम बुरा इंसान तो नहीं है। परमेश्वर का घर इस तरह के लोगों को बनाए रखता है। अगर कोई व्यक्ति बुरा और घृणित है, हमेशा कुटिल और बेईमान अभ्यासों में लिप्त रहता है, और अगर वह अच्छी तरह से श्रम भी नहीं कर सकता और श्रमिक के मानक पर खरा नहीं उतरता है तो ऐसा इंसान अविश्वासी है और परमेश्वर का घर उसे बनाए नहीं रखता है। ऐसा नहीं है कि वह श्रमिक है इसलिए परमेश्वर का घर उसे बनाए नहीं रखता है, बल्कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उसका श्रम मानक के अनुरूप भी नहीं है और उसका श्रम बस एक लेनदेन है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वह हमेशा बुराई करना और गड़बड़ी पैदा करना चाहता है, हमेशा कलीसिया में कुटिल और बेईमान अभ्यासों में लिप्त रहने की कोशिश करता है, कलीसिया की कार्य व्यवस्था बिगाड़ता है और ज्यादातर लोगों के कर्तव्य निर्वहन को प्रभावित करता है। ऐसे लोग कलीसिया के माहौल को भ्रष्ट करते हुए परमेश्वर का नाम बदनाम करते हैं—उन्हें निकाल बाहर करने से ज्यादा उचित और कुछ नहीं हो सकता। जहाँ कहीं भी “कुत्ते के बदबूदार मल” किस्म के लोग हों, उनका तुरंत सफाया कर देना चाहिए। समझ गए? (हाँ।)

XI. चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ करना

आज हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी पर संगति करना जारी रखेंगे : “उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं; उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को बदलो; इसके अतिरिक्त, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें।” इस बारहवीं जिम्मेदारी की ग्यारहवीं समस्या क्या है? (चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करना।) हमने पहले भी मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों पर संगति करने और उन्हें उजागर करने के दौरान चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने के विषय पर थोड़ी संगति की है, है न? (हाँ।) परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्था में कलीसिया के चुनावों के नियम शामिल हैं। चुनाव साल में एक बार हो सकते हैं और कुछ विशेष परिस्थितियों में भी चुनाव हो सकते हैं। सभी कलीसियाओं को सभी स्तरों पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं का चयन परमेश्वर के घर द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के अनुसार करना चाहिए। चुनावों के नियमों में चुनाव के सिद्धांत, लोगों को चुनने के मानदंड, चुनावों के तरीके और रास्ते, और ध्यान देने वाले विभिन्न मामले शामिल हैं, जिनके बारे में भाई-बहनों को चुनावों के दौरान पता होना चाहिए। बेशक, हर चुनाव से पहले, सभी स्तरों के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को चुनाव सिद्धांतों के सभी पहलुओं पर संगति करनी चाहिए, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग उन्हें स्पष्ट रूप से समझ सकें। इस तरह, चुनाव के नतीजे बेहतर होंगे। आज हम चुनावों के विवरण पर संगति नहीं करेंगे; आज की संगति का मुख्य विषय चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की कुछ अभिव्यक्तियाँ हैं।

क. चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ करने की अभिव्यक्तियाँ

कलीसिया के चुनावों में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवारों का चयन करने के संबंध में परमेश्वर के घर द्वारा निर्धारित चुनाव सिद्धांतों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। अगर चुनाव सिद्धांतों का उल्लंघन करके चुनाव के अन्य तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है तो यह झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों की करतूत है। परमेश्वर के घर को ऐसे उल्लंघनों को प्रतिबंधित करके चुनावों में हेराफेरी करने वाले मुख्य व्यक्तियों की जाँच करनी चाहिए और उनसे निपटना चाहिए। कलीसिया के चुनावों के दौरान, विभिन्न लोगों को बेनकाब किया जाएगा और लोगों की विभिन्न मानसिकताएँ उजागर होंगी। कुछ लोग अगुआ के रूप में चुने जाने या अपने लिए फायदेमंद लोगों के चयन के लिए परदे के पीछे बहुत-से शातिराना पैंतरे आजमाते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग इस बात से डरते हैं कि जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं उन्हें अगुआ के रूप में चुन लिया जाएगा जिससे उनके रुतबे को खतरा होगा, और इसलिए वे इन लोगों की पीठ पीछे उनके द्वारा दिखाई गई कमजोरियों और की गई गलतियों पर अपना मूल्यांकन देने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं, उन्हें मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले अभिमानी और आत्मतुष्ट लोग बताकर उनकी निंदा आदि करते हैं, और यह सब केवल इसलिए करते हैं कि वे चुनाव हार जाएँ। अन्य लोग, अगुआ के रूप में चुने जाने के लिए, चुनाव के दौरान लोगों को रिश्वत देने के लिए अच्छी चीजें खरीदते हैं या लुभावने शब्दों के साथ उनसे वादे करते हैं, और दूसरों को भड़काने और बहकाने के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग भी करते हैं कि किसके पक्ष में या किसके खिलाफ वोट देना है। चाहे वे किसी भी साधन और तरीके का उपयोग करें, वे सभी चुनावों में हेराफेरी करने और चुनाव के नतीजों को प्रभावित करने के लिए होते हैं। कलीसिया द्वारा बार-बार चुनावों के सिद्धांतों पर संगति करने के बावजूद—जैसे कि ऐसे लोगों को चुनना जिनकी मानवता अच्छी है, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और जो सामान्य रूप से कर्तव्य निभाने में भाई-बहनों की अगुआई कर सकते हैं, जो सामान्य रूप से परमेश्वर के वचनों को पढ़ सकते हैं, सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हैं और ऐसे ही कई अन्य सिद्धांत—ये लोग सुनते ही नहीं हैं और छल-कपट करना चाहते हैं। छल-कपट करने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि वे हमेशा धोखा देना चाहते हैं। वे कभी भी खुले तौर पर यह मूल्यांकन नहीं करते कि कौन अच्छा है और कौन नहीं, वे हमेशा छल-कपट करना चाहते हैं और परदे के पीछे रहकर कुटिल साजिशों और दाँव-पेंच में शामिल रहते हैं। वे परदे के पीछे से यह साजिश भी रचते हैं कि किसे चुना जाए और किसे नहीं, ताकि सभी लोग एकमत हो जाएँ। क्या यह छल-कपट नहीं है? क्या यह धोखाधड़ी नहीं है? (बिल्कुल है।) क्या यह सत्य सिद्धांतों के अनुसार खुले और पारदर्शी तरीके से चुनावों की सुरक्षा करना है? नहीं, ऐसा नहीं है—वे चुनावों में हेराफेरी करने के ढीठ प्रयास में मानवीय साजिशों और तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। चुनावों में हेराफेरी करने में उनका क्या उद्देश्य है? वे चुनाव के नतीजों को नियंत्रित करना चाहते हैं, वे खुद चुने जाना चाहते हैं, और अगर वे चुने नहीं जा सकते तो यह तय करना चाहते हैं कि कौन चुना जाएगा, इसलिए वे परदे के पीछे से छल-कपट करते हैं। वे कलीसिया के कार्य या भाई-बहनों के जीवन प्रवेश के बारे में विचार नहीं करते। वे परमेश्वर के घर या भाई-बहनों के हितों के बारे में नहीं सोचते; वे केवल अपने व्यक्तिगत हितों की परवाह करते हैं। जब चुनाव होते हैं तो उनके अपने इरादे और इच्छाएँ उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता होती हैं। तो वे चुनावों में हेराफेरी क्यों करना चाहते हैं? अगर कोई वास्तव में भाई-बहनों को परमेश्वर के सामने और सत्य वास्तविकता में लाना चाहता है तो क्या वह इस तरह से काम करेगा? क्या उसकी ऐसी महत्वाकांक्षाएँ होंगी? क्या वह ऐसा व्यवहार प्रदर्शित करेगा? नहीं, वह ऐसा नहीं करेगा। केवल गुप्त मंशाओं, महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं वाले लोग ही इस तरह से काम करेंगे जो कलीसिया के चुनावों में हेराफेरी करना चाहते हैं। कलीसिया के भीतर, वे कुछ ऐसे लोगों को अपने साथ जोड़ते हैं जो उनके साथ अच्छी तरह से घुल-मिल जाते हैं, जो उनके विचार साझा करते हैं और जिनकी मंशाएँ और लक्ष्य समान होते हैं, और साथ ही वे कुछ ऐसे लोगों को भी अपने जाल में फँसा लेते हैं जो आम तौर पर कमजोर होते हैं, सत्य का अधिक अनुसरण नहीं करते, और भ्रमित, अज्ञानी होते हैं, जो आसानी से बहकाए और अपने लाभ के लिए नियंत्रित किए जा सकते हैं, ताकि कलीसिया के चुनाव कार्य में बाधा डालने वाली शक्ति गठित की जा सके। कलीसिया का विरोध करने में उनका उद्देश्य खुद का चयन कराना और चुनाव के नतीजों में अंतिम फैसला करना है। वे अपने पूर्व-निर्धारित लोगों को चुनना चाहते हैं, जो उनके लिए फायदेमंद हों। अगर ये लोग चुने जाते हैं तो उनकी साजिश सफल होगी। इस तरह के चुनाव का नतीजा सही होगा या फिर गलत? (गलत।) यह निश्चित रूप से गलत होगा। बुरे लोगों की धांधली वाले चुनाव द्वारा चुने जाने वाले लोग निश्चित रूप से बुरे लोगों के लिए ही फायदेमंद होंगे। वे इन बुरे लोगों के लिए फायदेमंद क्यों होंगे? क्योंकि बुरे लोग तब अपनी मनमर्जी से और बेधड़क काम कर सकते हैं और कलीसिया में बेकाबू हो सकते हैं और कोई भी उन्हें उजागर या प्रतिबंधित करने की हिम्मत नहीं करेगा। उन्हें निकाला नहीं जाएगा, जबकि जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं उन्हें उनके द्वारा बहिष्कृत किया जाएगा और दबाया जाएगा, और कलीसिया बुरे लोगों का शासन-क्षेत्र बन जाएगी। यह स्पष्ट है कि बुरे लोगों द्वारा हेराफेरी किए गए चुनाव का अंतिम नतीजा निश्चित रूप से गलत होगा; यह यकीनन लोकप्रिय राय के खिलाफ जाता है और सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। कलीसिया अगुआओं और भाई-बहनों को चुनावों के दौरान इन लोगों के सभी व्यवहारों और क्रियाकलापों के बारे में पता होना चाहिए और उनसे सतर्क रहना चाहिए। उन्हें इस बारे में भ्रमित नहीं होना चाहिए। जैसे ही किसी चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी के संकेत मिलें तो इसमें शामिल लोगों को प्रतिबंधित करने के लिए तुरंत उपाय किए जाने चाहिए, और अगर इन लोगों को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता तो उन्हें अलग-थलग कर दिया जाना चाहिए। ये लोग विशेष रूप से दुस्साहसी और बेलगाम होते हैं, उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल होता है। चुनावों में गड़बड़ी करने और नतीजों में हेराफेरी करने के लिए, वे यकीनन परदे के पीछे से छल-कपट करेंगे, कई तरह की बातें कहेंगे और करेंगे। इस बारे में क्या किया जाना चाहिए? इस मामले को सँभालना आसान है। अगर कलीसिया अगुआओं को समस्या का पता चलता है तो उन्हें इसे उजागर करना और इसका प्रचार करना चाहिए; इस मामले की गंभीरता और परिणामों के बारे में और इस तरह के क्रियाकलापों की प्रकृति के बारे में भाई-बहनों से संगति करानी चाहिए। आखिर में, उन्हें कुछ कदम भी उठाने चाहिए। उन्हें कैसे कदम उठाने चाहिए? जो कोई भी हमेशा परदे के पीछे से छल-कपट करता है और चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की कोशिश करता है, उसके साथ निष्ठुर तरीके से निपटा जाना चाहिए और उसे चुनावों में भाग लेने से रोक दिया जाना चाहिए। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि उसका वोट नहीं गिना जाएगा। चाहे कितने भी लोग चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी करने में शामिल हों, उनके सभी वोट रद्द कर दिए जाने चाहिए और उन्हें चुनाव में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। चाहे कोई भी व्यक्ति गुमराह या बाधित किया गया हो, अगर उसने चुनाव में हेराफेरी करने वाले तरीकों का पालन किया है और जानबूझकर चुनाव को नुकसान पहुँचाने के लिए बुरे लोगों के साथ साँठगाँठ की है, तो परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उसे उजागर करने और चुनाव में भाग लेने के उसके अधिकार को रद्द करने के लिए आगे आना चाहिए। क्या यह अच्छा तरीका है? (हाँ।) यह पूरी तरह से कलीसिया के कार्य की सुरक्षा करने के लिए किया जाता है। क्या तुम प्रतिबंधों को मानने से इनकार नहीं करते? क्या तुम परमेश्वर के घर के चुनाव सिद्धांतों को स्वीकारने से इनकार नहीं करते? क्या अंतिम फैसला तुम खुद नहीं लेना चाहते? अगर अंतिम फैसला तुम लेते हो तो यह शैतान ही होगा जो अंतिम फैसला ले रहा होगा। परमेश्वर का घर और कलीसिया ऐसी जगहें हैं जहाँ सत्य का शासन है; शैतान को फैसले लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती। चूँकि तुम छल-कपट करना चाहते हो और जानबूझकर इस चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी करना चाहते हो, तो बात सरल है—तुम्हारा वोट रद्द कर दिया जाता है। चाहे तुम किसी को भी वोट दो, इसका कोई फायदा नहीं है; तुम्हारी कोई भी राय मान्य नहीं है और भले ही तुम चुनाव में भाग लेने पर जोर दो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। परमेश्वर के घर में प्रशासनिक आदेश और विनियम हैं और इस चुनाव में भाग लेने का तुम्हारा अधिकार छीनकर रद्द कर दिया गया है। अगर तुम फिर भी अगले चुनाव में बाधा डालते हो तो चुनावों में भाग लेने का तुम्हारा अधिकार पूरी तरह से रद्द कर दिया जाएगा और आगे से तुम्हें भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी। जो लोग चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने के लिए हमेशा छल-कपट करते हैं उनसे इसी तरह निपटना चाहिए।

जब भी कलीसिया में चुनाव होता है, हर बार कुछ ऐसे बुरे लोग होते हैं जो बेचैन होने लगते हैं : कुछ लोग चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की कोशिश में परदे के पीछे रहकर छल-कपट करते हैं, जबकि कुछ लोग अगुआ के पद के लिए दूसरों के साथ खुलेआम प्रतिस्पर्धा करने को उत्सुक रहते हैं, तब तक बहस करते हैं जब तक कि उनका चेहरा लाल न हो जाए, यहाँ तक कि वे उतावलेपन से काम लेने, हिंसा का सहारा लेने और मारपीट करने के कगार पर पहुँच जाते हैं, जिससे भाई-बहन दुविधा में पड़ जाते हैं कि किसकी सुनें या किसे चुनें। चुनाव के दौरान, वे सत्य पर संगति नहीं करते, न ही वे इस बात पर बात करते हैं कि वे कलीसिया का कार्य कैसे करेंगे, काम में कौन से रास्ते होंगे या अगुआ के रूप में चुने जाने पर वे काम के लिए कौन-से विचार और योजनाएँ प्रस्तुत करेंगे। इसके बजाय, वे अन्य उम्मीदवारों की खामियों को उजागर करना और उन पर हमला करना सुनिश्चित करते हैं, साथ ही एक समूह के लोगों को दूसरे समूह के खिलाफ होने के लिए प्रेरित करते हैं, ताकि कलीसिया में बँटवारे की स्थिति पैदा हो जाए। ऐसा चुनाव क्या बन जाता है? यह कुछ ऐसा बन जाता है जिससे कलीसिया बँट जाती है। चुनाव के नतीजे आने से पहले ही कलीसिया बँट चुकी होती है। कलीसिया में चुनाव के दौरान क्या ऐसी घटना सामने आनी चाहिए? क्या यह सामान्य घटना है? नहीं, ऐसा नहीं है। अगर तुम अगुआ बनना चाहते हो और मानते हो कि तुम्हारे पास कुछ योग्यताएँ और बोझ उठाने की भावना है और तुम इस काम के योग्य हो तो तुम परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार चुनाव में भाग ले सकते हो। बेशक, तुम अपनी ताकत और सद्गुण भी बता सकते हो, अपनी समझ और अनुभवों पर संगति कर सकते हो, ताकि भाई-बहन आश्वस्त हो सकें और तुम पर भरोसा कर सकें कि तुम कलीसिया की अगुआई का काम कर सकोगे। तुम्हें अगुआ के रूप में चुने जाने के अपने लक्ष्य को दूसरों पर हमला करके हासिल नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे लोग आसानी से गुमराह हो सकते हैं और नकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं। छोटे आध्यात्मिक कद वाले और विवेकहीन भाई-बहन आसानी से तुम्हारे द्वारा गुमराह किए जा सकते हैं और उन्हें पता नहीं होगा कि किसे चुनना है, और कलीसिया भी अराजकता में फँसकर बँटवारे का दंश झेल सकती है। क्या यह शैतान को शोषण करने का अवसर देना नहीं होगा? संक्षेप में, सिद्धांतों का पालन किए बिना चुनाव में भाग लेना, हमेशा महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ रखना और अगुआ के रूप में चुने जाने के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए घिनौने तरीकों का इस्तेमाल करना, ये सभी चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की प्रकृति के तरीके हैं और अनुचित चुनावी व्यवहार हैं। बेशक, कुछ लोग उचित व्यवहार करते हैं जिन्हें इससे अलग माना जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर कोई उम्मीदवार कलीसिया के विभिन्न कामों को अच्छी तरह से करने के तरीके पर संगति करता है, जैसे कि सुसमाचार कार्य, पाठ-आधारित काम और दैनिक साधारण मामलों के कार्य, या कलीसियाई जीवन को कैसे बेहतर बनाया जाए, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश की कठिनाइयों को कैसे हल किया जाए वगैरह, ये सब उचित तरीके है। अपने दृष्टिकोण और समझ को सही तरीके से व्यक्त करने, कलीसिया के कार्य के बारे में अपनी सोच और योजनाओं को साझा करने जैसी चीजें इत्यादि—ये सभी सामान्य भाषण और व्यवहार का हिस्सा हैं, और ये कलीसिया द्वारा निर्धारित चुनाव सिद्धांतों के अनुरूप हैं। इनके अलावा, चुनाव की अवधियों के दौरान प्रदर्शित कोई भी अनुचित व्यवहार जो विशेष रूप से स्पष्ट है, उस पर लोगों को नजर रखनी चाहिए। लोगों को इनके प्रति सतर्क रहना चाहिए और इन्हें पहचानना चाहिए—लापरवाह मत बनो।

कुछ लोग अपने कर्तव्यों का पालन न करने और कलीसियाई जीवन में भाग न लेने के लिए अक्सर काम में व्यस्त होने, अपने परिवार में कई समस्याएँ होने या अनुपयुक्त माहौल होने का बहाना बनाते हैं। लेकिन जब कलीसिया के अगुआओं को चुनने का समय आता है तो ये कठिनाइयाँ अचानक खत्म हो जाती हैं, और वे इस अवसर के लिए अच्छे से कपड़े पहनकर तैयार होकर चुनाव में भाग लेने के लिए आ जाते हैं। उन्होंने लंबे समय से अपना चेहरा नहीं दिखाया है, मगर कलीसिया के चुनाव की बेहतरीन खबर सुनते ही वे उत्सुकता से दौड़े आते हैं। वे किसलिए आ रहे हैं? वे चुनाव के लिए, कलीसिया अगुआ के पद के लिए, इस “आधिकारिक पद” के लिए आ रहे हैं। ऐसे लोग बड़ी चालाकी से काम लेते हैं। इस डर से कि दूसरों को संदेह होगा कि वे कलीसिया अगुआ बनना चाहते हैं, वे चुनाव का जिक्र करने से बचते हैं और लोगों की प्रशंसा पाने के लिए सिर्फ अपनी समझ और अनुभवों के बारे में संगति करने पर ध्यान देते हैं। वे सार्वजनिक तौर पर परमेश्वर के वचनों को खाते-पीते हैं, परमेश्वर के वचनों पर संगति करने में सबकी अगुआई करते हैं और अपनी खुद की अनुभवजन्य गवाही साझा करते हैं। वास्तव में, वे आम तौर पर कलीसियाई जीवन में शायद ही कभी भाग लेते हैं और शायद ही कभी सत्य पर संगति करते हैं, और न ही वे किसी अनुभवजन्य समझ के बारे में बोलने में सक्षम होते हैं। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव करीब आते हैं, वे पहले से बहुत अलग हो जाते हैं। वे कलीसियाई जीवन में सक्रियता से भाग लेते हैं और प्रार्थना करने, भजन गाने और संगति करने के लिए उत्सुक रहते हैं; वे विशेष रूप से प्रेरित और सक्रिय दिखाई देते हैं और प्रमुखता से सामने आते हैं। सभाओं के बाद, वे भाई-बहनों के साथ पारिवारिक मामलों के बारे में बातचीत करने और संबंध बनाने के मौके खोजते हैं। जब वे किसी कलीसिया अगुआ को देखते हैं तो कहते हैं, “आप इन दिनों बहुत अच्छे नहीं दिख रहे। मेरे घर पर खजूर रखे हैं; मैं आपके लिए थोड़े खजूर लेकर आऊँगा।” जब वे किसी बहन को देखते हैं तो कहते हैं, “मैंने सुना है कि आपके परिवार को आर्थिक कठिनाइयाँ हो रही हैं। क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ? मैं आपको कुछ कपड़े दे सकता हूँ।” वे पहले के मुकाबले में अब हर सभा में विशेष रूप से सक्रिय होते हैं। पहले, वे बस उपस्थिति दर्ज कराने के लिए कभी-कभार आ जाते थे और चाहे कोई भी उन्हें सभा में बुलाए, वे व्यस्त होने का बहाना बना देते थे। मगर चुनाव की अवधि के दौरान, वे अचानक सामने आकर हर सभा में भाग लेने लगते हैं और एक भी सभा नहीं छोड़ते। हर सभा में, भाई-बहन चुनाव से संबंधित मुद्दों और सिद्धांतों के बारे में संगति करते हैं और बेशक इसमें वे भी शामिल होते हैं। इस दौरान, वे भाई-बहनों के साथ अच्छे संबंध बनाने की पूरी कोशिश करते हैं, उनमें से कुछ लोगों को आकर्षित करने का प्रयास भी करते हैं। यहाँ तक कि वे भाई-बहनों के सामने कई बार चढ़ावा भी चढ़ाते हैं, जिससे ज्यादातर लोग हैरान रह जाते हैं और सोचते हैं, “उन्होंने इतने लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास किया है, मगर हमने उन्हें पहले कभी चढ़ावा चढ़ाते नहीं देखा। वे इस बार इतने उदार क्यों बन रहे हैं? क्या उन्होंने वाकई खुद को पूरी तरह बदल लिया है?” कुछ मूर्ख और अज्ञानी लोग जो मामलों का आकलन नहीं कर सकते, वे सोचते हैं कि यह व्यक्ति वास्तव में बदल गया है, उन्होंने पहले इस व्यक्ति के बारे में गलत अनुमान लगाया था और अनजाने में उनके दिलों में उसके बारे में अनुकूल छवि पनपने लगती है; वे सोचते हैं, “इस व्यक्ति का परिवार समृद्ध है; लोगों के साथ उसके अच्छे संबंध हैं और उसे काम करवाने के तरीके आते हैं। अगर वह कलीसिया अगुआ बन जाता है तो वह कलीसिया के लिए कई काम करवा सकेगा। क्या इससे सुसमाचार प्रचार में और कुछ ऐसे भाई-बहनों की मेजबानी करने में कलीसिया को मदद नहीं मिलेगी, जिन्हें सताया जा रहा है और जो कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं? अगर वह इतना ही सक्रिय रह सका तो बहुत अच्छा होगा, मगर मुझे नहीं पता कि वह ऐसा करना जारी रख पाएगा या नहीं या फिर क्या वह हमारी कलीसिया का अगुआ बनने को तैयार होगा।” क्या कुछ लोगों को गुमराह करके मूर्ख नहीं बनाया गया है? यह व्यक्ति जो कुछ भी करता रहा है, उसका फल दिखने लगा है, है न? चीजें सही ढंग से हो रही हैं और नतीजे जल्द ही आने वाले हैं। वे यही चाहते हैं, है न? (हाँ।) इसके अलावा, वे किसी व्यक्ति को दो जोड़ी कपड़े देते हैं, किसी को टोकरी भर सब्जियाँ देते हैं, तो किसी और को थोड़े स्वास्थ्य अनुपूरक दे देते हैं, यह पक्का करते हैं कि सबकी देखरेख हो। इस कारण लोग सोचते हैं, “अगर यह व्यक्ति कलीसिया का अगुआ बन गया तो क्या वह एक महान चरवाहा नहीं बनेगा? क्या वह ऐसा व्यक्ति नहीं है जिस पर ज्यादातर लोग भरोसा करना चाहते हैं?” क्या यही सही समय नहीं है? क्या भाई-बहन आसानी से ऐसे व्यक्ति को नहीं चुन लेंगे? यह व्यक्ति शिक्षित, वाक्पटु है और समाज में उसका एक खास रुतबा है। अगर कलीसिया को गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ता है तो वह भाई-बहनों की रक्षा कर सकता है। अगर भाई-बहनों में से किसी के भी परिवार को कोई कठिनाई होती है तो वह मदद का हाथ बढ़ा सकता है और जब ज्यादा लोगों की जरूरत होगी तो वह कलीसिया के काम में भी मदद कर सकता है। लेकिन एक बात है जिसके बारे में ज्यादातर लोग अनिश्चित हैं : “वह पहले सत्य का अनुसरण नहीं करता था और लंबे समय तक शायद ही कभी सभाओं में शामिल होता था। मगर अब चुनाव का समय आया है तो वह आनन-फानन में कुछ सभाओं में शामिल हुआ है। अगर उसे अगुआ के रूप में चुना जाता है तो क्या वह सत्य समझेगा? अगर वह सत्य नहीं समझता है और केवल इन लोगों की रक्षा कर सकता है या उन्हें कुछ लाभ प्रदान कर सकता है तो क्या वह सत्य समझने में लोगों की मदद कर सकेगा? क्या वह लोगों को परमेश्वर के सामने ला सकेगा? इसमें संदेह है।” कुछ लोगों के दिलों में संदेह है, जबकि अन्य लोग पहले से ही इस व्यक्ति के लाभों से प्रभावित और खरीदे जा चुके हैं। क्या यह स्थिति बहुत खतरनाक नहीं है? एक अकेला वोट चुनाव जीतने में उसकी मदद कर सकता है। चुनाव का अंतिम नतीजा चाहे जो भी हो, क्या ऐसे लोगों के क्रियाकलाप और व्यवहार उचित हैं? (नहीं।) सबसे उपयुक्त क्षणों में, वे दान देते हैं, चढ़ावा चढ़ाते हैं और कुछ वास्तविक कठिनाइयों को हल करने में भाई-बहनों की मदद करते हैं। जब कुछ भाई-बहन अपने घर बदलते हैं तो वे परिवहन की व्यवस्था कर देते हैं और जब कुछ भाई-बहनों के परिवारों के पास पैसे की कमी होती है तो वे उन्हें कुछ पैसे उधार दे देते हैं। जब किसी के पास फोन नहीं होता तो वे उसे एक फोन खरीद देते हैं और जब किसी के पास कंप्यूटर नहीं होता है तो वे अपना कंप्यूटर उसे दे देते हैं। ... वे ये काम सबसे उपयुक्त क्षणों में, सबसे अहम मौकों पर करते हैं। यह कैसा व्यवहार है? क्या अगुआ के पद के लिए प्रतिस्पर्धा करने के इरादे के साथ, अकथ्य रहस्यों और उद्देश्यों के साथ ये काम करना, चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करना नहीं है? (बिल्कुल है।) वे पहले या बाद में नहीं आते, बल्कि अगुआ के चुनाव के समय ही दिखाई देते हैं। क्या वे अकथ्य रहस्यों को नहीं छिपा रहे हैं? यह और ज्यादा स्पष्ट नहीं हो सकता; वे पक्के तौर पर ऐसे रहस्य छिपा रहे होंगे जिनका उल्लेख तक नहीं किया जा सकता। ऐसा तो नहीं है कि अचानक उनकी अंतरात्मा जाग गई और वे कुछ अच्छे कर्म करना चाहते हैं; उनका लक्ष्य कलीसिया अगुआ के पद के लिए खड़ा होना, कलीसिया का प्रभारी बनना, और कलीसिया और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गलत ढंग से नियंत्रण में करना है। क्या वे इन लोगों को इसलिए नियंत्रित करना चाहते हैं ताकि वे वास्तव में उनके लिए काम कर सकें? (नहीं।) तो वे क्या करना चाहते हैं? वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को काबू में करना चाहते हैं, कलीसिया पर नियंत्रण करना चाहते हैं और कलीसिया में एक ऐसा पद निर्धारित करना चाहते हैं जहाँ वे अधिकारी के रूप में काम कर सकें और खुद फैसले ले सकें। क्या ये असामान्य तरीके और अभ्यास चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने के रूप में नहीं गिने जाते हैं? (बिल्कुल।)

कलीसिया के चुनावों के दौरान, कुछ लोग जो इस बात से डरते हैं कि उन्हें पर्याप्त वोट नहीं मिलेंगे वे खुद को वोट देते हैं। क्या यह बेतुका और अजीब नहीं लगता? किसी व्यक्ति की खुद को वोट देने की प्रकृति क्या है? क्या यह आत्मविश्वास की कमी, बेशर्मी या अत्यधिक महत्वाकांक्षा की अभिव्यक्ति नहीं है? यह सब कुछ है। उन्हें चुनाव न जीतने का डर है, इसलिए उनके पास खुद के लिए वोट करने के अलावा कोई और चारा नहीं बचता है—यह आत्मविश्वास की कमी है। उनमें वो बात नहीं है पर फिर भी वे अगुआ बनना चाहते हैं; इस डर से कि दूसरे उन्हें वोट नहीं देंगे, वे खुद के लिए वोट करते हैं। क्या यह बेशर्मी नहीं है? इसके अलावा, उनकी अत्यधिक महत्वाकांक्षा उनके निर्णय को इस हद तक प्रभावित करती है कि वे अपने गौरव को खिड़की से बाहर फेंक देते हैं और ईमानदारी और गरिमा से रहित हो जाते हैं : “अगर तुम मुझे वोट नहीं दोगे तो मैं अगुआ नहीं बन पाऊँगा; मुझे हर हाल में कलीसिया अगुआ बनना है। अगर मैं अगुआ नहीं बन सकता तो फिर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं करूँगा!” वे अगुआ बनने, अधिकारी के रूप में काम करने पर जोर देते हैं, जीवन में केवल तभी सहज और संतुष्ट महसूस करते हैं जब उनके पास रुतबा होता है—उनकी कितनी जबरदस्त महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ होती हैं! वे पद को बहुत ज्यादा सँजोते हैं, सिर्फ अगुआ बनने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। अगुआ होने में इतना क्या लाभ है? अगर तुम रुतबे के लाभों को महत्व नहीं देते और इसके कारण जो विशेष बर्ताव किया जाता है, उसका आनंद नहीं लेते, तो क्या तुम तब भी इस पद की लालसा करते? क्या तुम तब भी खुद के लिए वोट करते? क्या तुम्हारी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ तब भी इतनी बड़ी होतीं? क्या तुम तब भी रुतबे को इतना अधिक सँजोते? नहीं, तुम ऐसा नहीं करते। ऐसे लोग हमेशा चुनावों में हस्तक्षेप करना और उसके लिए मेहनत करना चाहते हैं, वे किसी भी छल-कपट का सहारा लेते हैं। भले ही उन्हें खुद लगता हो कि इस तरह से काम करना शर्मनाक है, यह पारदर्शी या ईमानदार नहीं है, और कुछ हद तक अपमानजनक है, थोड़ा विचार करने के बाद, वे सोचते हैं, “जो भी हो, जरूरी तो अगुआ के रूप में चुना जाना है!” यह बेशर्मी है। वे लोकतांत्रिक देशों के चुनावों में इस्तेमाल होने वाली बहस के तरीकों की नकल भी करना चाहते हैं, जहाँ उम्मीदवार एक-दूसरे की कमियाँ उजागर करते हैं, एक-दूसरे की आलोचना और एक-दूसरे पर हमला करते हैं, और झगड़ों में शामिल होते हैं, वे कलीसिया के चुनावों में ये पैंतरे अपनाते हैं—क्या यह एक गंभीर गलती नहीं है? क्या यह ऐसे पैंतरे अपनाने के लिए गलत जगह नहीं है? अगर तुम इन अनुचित और अनैतिक क्रियाकलापों में लिप्त होने के लिए कलीसिया में आते हो और चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की कोशिश करते हो, तो मैं तुम्हें बता दूँ, तुमने ऐसा करने के लिए गलत जगह चुनी है! यह परमेश्वर का घर है, समाज नहीं; जो कोई भी चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करता है, उसकी निंदा की जाएगी। कलीसिया में, चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की कोशिश में चाहे जो भी तर्क, बहाने या तरीके इस्तेमाल किए जाएँ, उनका समर्थन नहीं किया जा सकता और यह बुरा कर्म है—यह हमेशा बुरा कर्म ही रहेगा! जो लोग चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की कोशिश करते हैं उनकी निंदा की जाती है। ऐसे लोगों को परमेश्वर के घर के सदस्य या भाई-बहनों के रूप में नहीं देखा जाता, बल्कि इनका चरित्र चित्रण शैतान के सेवकों के रूप में किया जाता है। शैतान के सेवक किस तरह की चीजें करते हैं? उन्हें वे सब चीजें करने में महारत है जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा डालते हैं। चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने वाले लोग ये नकारात्मक भूमिकाएँ निभा रहे हैं, शैतान के सेवकों का काम कर रहे हैं। कलीसिया जो भी काम करती है, ये लोग उसमें गड़बड़ करने और नष्ट करने के लिए उठ खड़े होते हैं, वे परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं और विनियमों की अवहेलना करते हैं, परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों की अवहेलना करते हैं, और इससे भी बढ़कर वे परमेश्वर की अवहेलना करते हैं। वे परमेश्वर के घर में जो चाहे वो करने की कोशिश करते हैं, कलीसिया के विभिन्न मामलों में हेराफेरी करते हैं, और इससे भी बढ़कर वे कलीसिया के सदस्यों को बहकाते हैं, यहाँ तक कि कलीसिया के चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की हद तक चले जाते हैं। वे किस तरह से कलीसिया के कर्मियों को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं? वे कलीसिया के चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने के मौके ढूँढ़ते हैं। शैतान के इन सेवकों द्वारा किसी चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी करने के बाद, चुनाव विफल हो जाता है। अगर शैतान के इन सेवकों की मर्जी चले और वे कलीसिया अगुआ बन जाएँ, तो चुनाव का नतीजा सही होगा या गलत? बेशक यह गलत होगा। सत्य पर संगति करके और सीखे गए सबक का सारांश प्रस्तुत करके दोबारा चुनाव कराया जाना चाहिए।

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