अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (18) खंड चार
घ. परमेश्वर के वचनों की गलत व्याख्या करने वाली और परमेश्वर के कार्य की आलोचना करने वाली कई प्रकार की निराधार अफवाहों का भेद पहचानना
हमने अभी जिन विभिन्न प्रकार की अफवाहों की बात की है वे कहाँ से आती हैं? वे बड़े लाल अजगर, धार्मिक संसार और अविश्वासियों से आती हैं। बाहरी दुनिया से आई अफवाहों के अलावा, कलीसिया के भीतर की चीजों के बारे में भी कुछ बातें और गपशप भी हैं। यहाँ तक कि परमेश्वर, परमेश्वर के कार्य, परमेश्वर के दिन और परमेश्वर के कुछ वचनों के बारे में पूरी तरह से झूठे दावे, और साथ ही परमेश्वर और उसके कार्य से जुड़े कुछ रहस्य भी हैं, जिन्हें लोग अपनी कल्पनाओं और धारणाओं के आधार पर, या गलत जानकारी और निराधार अटकलों के निरंतर प्रसार के आधार पर बनाते हैं। और क्योंकि लोग ऐसी बातों, गपशप और दावों को अलंकृत करके पेश करते हैं, इसलिए ये अफवाहें बनती हैं। एक बार अफवाहें बन जाने के बाद, कुछ लोग जिनका अफवाहों के प्रति झुकाव होता है, उन्हें फैलाने के काम को लेकर उत्साही हो जाते हैं, अफवाहों को वास्तविक मानते हैं और उन्हें हर जगह फैलाते हैं, उनका इतना सजीव और विस्तृत वर्णन करते हैं कि कुछ लोग जो वास्तविक स्थिति से अनजान हैं, और जो सत्य को नहीं समझते हैं और मूर्ख और अज्ञानी हैं, वे सचमुच इन अफवाहों से गुमराह हो जाते हैं। एक बार गुमराह होने पर, क्या वे प्रभावित और परेशान होते हैं? (हाँ, होते हैं।) ये कलीसिया में उत्पन्न होने वाले सामान्य मुद्दे भी हैं। भले ही ये अफवाहें उन अफवाहों की तुलना में फीकी हैं जो परमेश्वर और परमेश्वर के घर की बदनामी करती हैं और उस पर हमला करती हैं—वे न तो परमेश्वर की बदनामी करती हैं और न ही उसका तिरस्कार करती हैं—और भले ही वे परमेश्वर के कार्य में कोई गड़बड़ी या क्षति नहीं पहुँचाती हैं, फिर भी वे कुछ लोगों के जीवन प्रवेश को प्रभावित करती हैं और उन्हें रोका जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, जब कुछ लोग कुछ भ्रामक टिप्पणियाँ सुनते हैं, तो वे उन पर दिल से विश्वास कर लेते हैं और अपने नजदीकी लोगों में उन्हें तेजी से फैला देते हैं। जैसे-जैसे अफवाहें फैलती हैं, विवरण अधिकाधिक और पूर्ण होते जाते हैं, और अंततः अफवाहें वास्तविक घटनाओं की तरह लगने लगती हैं। समय, स्थान और पात्रों जैसे तत्व सभी अपनी जगह पर होते हैं—ऐसी अफवाहें सार्वजनिक रूप से फैलाए जाने योग्य होने की शर्तों को पूरा करती हैं, है ना? क्या जानकारी फैलाई जा रही है? अफवाह फैलाने वाला कहता है, “आज मुझे तुम लोगों को कुछ महत्वपूर्ण बातें बतानी हैं। अगर मैं ऐसा नहीं करूँगा तो मैं अंदर से असहज महसूस करूँगा; मैं परमेश्वर के वचनों को पढ़ने पर भी ध्यान केंद्रित नहीं कर पाऊँगा। मैं इस मामले को लेकर बहुत उत्साहित हूँ। अब परमेश्वर में विश्वास रखने वाले हम लोगों के पास आखिरकार उम्मीद है!” जब हर कोई उम्मीद के बारे में सुनता है, तो वे रुचि लेने लगते हैं और जोश में आ जाते हैं; यह विषय बेहद दमदार है। उनका कहना है, “परमेश्वर का कार्य शीघ्र समाप्त होने वाला है। परमेश्वर ने अपने कार्य की समाप्ति के विषय में जो भविष्यवाणी पहले की थी, उसके कई संकेत पहले ही प्रकट हो चुके हैं। उदाहरण के लिए, चाँद और सूर्य की स्थिति, पूरब और पश्चिम के हालात, प्रत्येक देश में परमेश्वर के चुने हुए लोगों की संख्या, कितने लोग अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम हैं, इत्यादि—परमेश्वर के कार्य की समाप्ति के ये संकेत अब हमारे सामने हैं। हमें शीघ्रता से तैयार होने की जरूरत है!” किसी ने पूछा, “हमें क्या तैयारी करनी चाहिए?” अफवाह फैलाने वाला कहता है, “हमें अच्छे कर्म करने चाहिए, भोजन तैयार करना चाहिए, और शीघ्रता से अपनी सारी बचत परमेश्वर को भेंट कर देनी चाहिए, फिर हम एक अच्छे गंतव्य को सुरक्षित कर सकते हैं।” उसका यह भी कहना है, “फलाँ-फलाँ साल और महीने में, फलाँ-फलाँ तारीख को, और फलाँ-फलाँ समय पर, हमें एक विशिष्ट स्थान पर एकत्र होना है जहाँ परमेश्वर हमें ले जाने के लिए हमारा इंतजार कर रहा होगा। परमेश्वर कहता है, ‘यदि तुम लोग हर एक चीज का त्याग नहीं करते हो, तो तुम लोग मेरे शिष्य होने के लायक नहीं हो, और मेरे अनुयायी होने के लायक नहीं हो।’ अब आखिरकार परमेश्वर का दिन आ गया है, और परमेश्वर के वचन पूर्ण हो गए हैं। हमें सारी सांसारिक चीजों को छोड़ देना चाहिए, न केवल अपने भविष्य और करियर बल्कि हमारे परिवार, रिश्तेदारों, और दैहिक रिश्तों को भी छोड़ देना चाहिए। हमें सारी सांसारिक उलझनों को त्याग देना चाहिए; हम परमेश्वर से मिलने जा रहे हैं!” अधिकांश लोग पूछते हैं, “क्या यह सत्य है?” अफवाह फैलाने वाला कहता है, “हाँ, मैंने अपना घर और कार बेच दी है और अपनी बचत के पैसे को निकाल लिया है। यदि तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है तो परमेश्वर के वचनों को पढ़ो। एक अध्याय में, किसी खास वाक्य का अर्थ समझने पर एक पते का खुलासा होता है, और दूसरे अध्याय में, किसी खास अंश का अर्थ समझने पर साल और महीने का खुलासा होता है...।” इसे सुनकर, क्या कोई ऐसा है जो रोमांचित न हुआ हो? क्या कोई ऐसा है जो इन शब्दों का भेद पहचानता हो? क्या ये वो चीजें नहीं हैं जिनके बारे में लोग बेहद चिंता करते हैं? क्या ये वो चीजें नहीं हैं जिनकी लोगों ने लंबे समय से उम्मीद लगाई है? कुछ लोग, यह सुनने के बाद और फिर परमेश्वर के वचनों को पढ़कर और यह सोचकर कि यह सचमुच मेल खाता है, बैकअप योजना बनाने पर विचार करने लगते हैं। भले ही कुछ लोग अंदर से संशय में हैं, फिर भी वे यह सोचते हुए आशा करते हैं कि यह सत्य हो, “भले ही निर्दिष्ट वर्ष और दिन थोड़ा दूर हैं, कम से कम एक सटीक तारीख और समय तो है, इसलिए हमें उम्मीद है।” भले ही वे वास्तव में इस पर विश्वास नहीं करते, फिर भी वे इस पर कुछ हद तक ध्यान देते हैं। यह ध्यान देना क्या दर्शाता है? यह दर्शाता है कि लोग इन चीजों से आसानी से प्रभावित और परेशान हो जाते हैं। एक बार जब इस तरह की अफवाह कलीसिया में व्यापक रूप से फैलने लगती है, तो 80 से 90 प्रतिशत लोग बेहद उत्साहित हो जाएँगे, और भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ेगा, यह सोचकर कि, “जिस दिन की हम उम्मीद कर रहे थे वह आखिरकार आ ही गया! परमेश्वर ने हमारी प्रार्थनाएँ सुन ली हैं! परमेश्वर हमसे प्रेम करता है और उसने हमें त्यागा नहीं है!” सभाओं के दौरान ऐसे विषयों को फैलाने के क्या परिणाम होंगे? क्या यह हर व्यक्ति की भावनाओं को प्रभावित करेगा? लोग चाहकर भी इसे अस्वीकार नहीं कर पाएँगे; अफवाह का हर वाक्य उनके दिल पर लगेगा, जिससे विश्वास न करना असंभव हो जाएगा। लोगों के इन शब्दों पर विश्वास करने की सबसे अधिक संभावना है; भले ही वे सौ प्रतिशत निश्चित न हों, फिर भी वे चाहते हैं कि यह सच हो, यह सोचते हुए, “इस बात पर चिंतन-मनन करते हुए कि हमने परमेश्वर का अनुसरण करते हुए कितनी कठिनाइयों को सहन किया है—दुनिया द्वारा अस्वीकार किए जाने, सरकार द्वारा सताए जाने, धार्मिक संसार द्वारा सताए जाने, मुश्किल से सांस ले पाने, निरंतर भय में जीने के हालात—ये दिन कब समाप्त होंगे? अब, परमेश्वर का दिन आखिरकार आ ही गया है!” ये विचार तुम्हारे दिल को झकझोर देते हैं : “हमने परमेश्वर के लिए खुद को इतना खपाया है, परमेश्वर का अनुसरण करने में हमारा विश्वास इतना दृढ़ है; जो हम सुन रहे हैं वह सच होना चाहिए। हमें इस दुनिया में अब और भटकना और कष्ट नहीं सहना चाहिए—हम इस लायक हैं कि हमारे साथ ऐसा न हो!” जब तुम्हारे मन में यह विचार आता है, और तुम इस अफवाह से इतने आश्वस्त और जोश में हो, तो क्या तुम अभी भी परमेश्वर के वचनों को पढ़ना चाहते हो? इस समय, क्या परमेश्वर के वचनों का कोई अंश पढ़ना अनावश्यक नहीं लगता? तुम्हें लगता है : “ऐसा क्यों है कि परमेश्वर के वचनों की अनुभवजन्य समझ को साझा करना अब इतना अनावश्यक लगता है? अब परमेश्वर से प्रार्थना करने की कोई आवश्यकता नहीं है, है ना? परमेश्वर का दिन आ गया है, और हम जल्द ही परमेश्वर से आमने-सामने मिलेंगे, तो क्या अब परमेश्वर से प्रार्थना करने का मतलब यह नहीं होगा कि हम परमेश्वर का सम्मान नहीं करते हैं? जब हम देह में रहते हुए परमेश्वर से दूर होते हैं, तो हमें अपनी लालसा को कम करने के लिए परमेश्वर के वचनों को पढ़ने की आवश्यकता होती है। अब, हम इस दुनिया से परे जाने वाले हैं और जल्द ही परमेश्वर से व्यक्तिगत रूप से मिलेंगे, इसलिए परमेश्वर के वचनों को पढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। अब हम जो कुछ भी करते हैं, वह उस विशिष्ट वर्ष, महीने, दिन और समय पर परमेश्वर से मिलने जितना महत्वपूर्ण नहीं है। यह कितनी अद्भुत चीज होगी! उस स्थान पर उस दिन परमेश्वर से मुलाकात की तुलना में, परमेश्वर के वचनों को पढ़ना निरर्थक प्रतीत होता है।” तुम अब और परमेश्वर के वचनों को पढ़ने पर ध्यान नहीं लगा सकते हो। तुम्हारा दिल बेचैन हो गया है, उस दिन के जल्द आने के लिए तड़प रहा है! क्या इस मनोदशा को व्यक्त करना कठिन नहीं है? ऐसी अफवाहें लोगों को बहुत पसंद आती हैं और कलीसिया में बहुत आसानी से फैल सकती हैं। एक व्यक्ति उन्हें दो लोगों तक फैलाता है, दो लोग दस लोगों तक, और अफवाहें ज्यादा से ज्यादा फैलती चली जाती हैं, एक कलीसिया से दो कलीसिया तक, दो कलीसिया से पाँच तक, और व्यापक रूप से फैल जाती हैं। इसके क्या परिणाम होते हैं? ये अफवाहें लोगों को परमेश्वर पर संदेह करने, खुद को परमेश्वर से दूर करने, मानवजाति को बचाने में परमेश्वर के सच्चे प्रेम को भूलने, अपने कर्तव्य को भूलने और जिस मार्ग पर उन्हें चलना चाहिए उसे भूलने का कारण बनती हैं। इसके बजाय, वे एकनिष्ठ होकर परमेश्वर के दिन को आते हुए देखने में लगे रहते हैं और देखते हैं कि क्या उन्हें आशीष मिल सकता है। जब वह दिन सचमुच आता है और कुछ नहीं होता है, केवल तभी लोगों को एहसास होता है कि अफवाहों पर विश्वास करने से उनके जीवन को नुकसान पहुँचा है। क्या तब तुम पहले की तरह वापस आ सकते हो, सुसभ्य तरीके से व्यवहार कर सकते हो, अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हो, दोनों पैरों को जमीन पर रखकर सत्य का अनुसरण कर सकते हो, सभी चीजों में सत्य सिद्धांतों की तलाश कर सकते हो, परमेश्वर के वचनों के अनुसार व्यवहार कर सकते हो और अपना कर्तव्य निभा सकते हो? समय पहले ही बीत चुका होगा और उसे वापस नहीं लाया जा सकता। इसके लिए कौन दोषी है? खुद को दोषी ठहराओ कि तुम कभी भी सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति नहीं बने। तुम हमेशा ख्याली पुलाव बनाते रहे और इसका नतीजा यह हुआ कि तुम अफवाहों के झांसे में आ गए।
जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं लेकिन सत्य को नहीं समझते हैं, एक अफवाह उन्हें अथाह गर्त में ले जा सकती है और उन्हें बर्बाद कर सकती है। अथाह गर्त का क्या अर्थ है? मूल रूप से, तुम्हारा परमेश्वर में सामान्य विश्वास था और उम्मीद थी कि तुम्हें बचा लिया जाएगा, लेकिन एक अफवाह ने तुम्हें भटका दिया। इस बात का एहसास हुए बिना कि शैतान तुम्हें गुमराह कर रहा है, तुमने शैतान द्वारा बोले हुए शैतानी शब्दों पर विश्वास कर लिया और उसका अनुसरण किया। तुम उस मार्ग पर चलते हो और उसका अनुसरण करते हो जो शैतान ने तुम्हारे लिए निर्धारित किया है, और तुम जितनी दूर जाते हो तुम्हारे दिल का अँधेरा उतना ही बढ़ता जाता है और तुम परमेश्वर से और दूर होते चले जाते हो। जब तुमने परमेश्वर को पूरी तरह छोड़ दिया और ठुकरा दिया है, तो तुम्हारे दिल में न केवल परमेश्वर के बारे में संदेह है, बल्कि इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि तुम्हारे दिल में परमेश्वर को लेकर शिकायतें और परमेश्वर को नकारने की प्रवृत्ति विकसित हो गई है। जब तुम इस स्थिति में पहुँच जाते हो, तो क्या यह तुम्हारे रास्ते का अंत नहीं है? क्या यह अथाह गर्त नहीं है? क्या यह कुछ ऐसा है जिसे तुम देखना चाहते हो? जब तुम इस स्थिति में पहुँच जाते हो, तो क्या तुम अभी भी उद्धार प्राप्त कर सकते हो? नहीं, और वापस मुड़ना बेहद मुश्किल है। क्यों? क्योंकि परमेश्वर ने काम करना बंद कर दिया है, पवित्र आत्मा ने काम करना बंद कर दिया है, और तुम अंधकार से भरे हुए हो। तुम्हारे और परमेश्वर के बीच एक ऊँची दीवार खड़ी कर दी गई है। यह दीवार क्या है? यह वो धारणाएँ, कल्पनाएँ, और अफवाहें हैं जो शैतान ने तुम्हारे अंदर डाल दी हैं, और व्यक्तिगत इच्छाएँ भी हैं। सकारात्मक चीजों जैसे कि परमेश्वर की पहचान, सार, दर्जा वगैरह के बारे में तुम्हारा ज्ञान अचानक धुंधला पड़ जाता है और यहाँ तक कि धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। यह बेहद भयावह है। क्या यह अथाह गर्त में गिरना नहीं है? (बिल्कुल।) जब तुम ऐसी स्थिति में फँसते हो, तो क्या तुम अभी भी कठिनाई झेल सकते हो और अपना कर्तव्य निभाने की कीमत चुका सकते हो? क्या तुम अभी भी उद्धार प्राप्त करने के लिए सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चल सकते हो? मैं तुम्हें बताता हूँ, वापस मुड़ना बेहद मुश्किल है। यह भटक जाना है! यदि तुम एक पल के लिए सतर्क नहीं हो और गुमराह हो जाते हो, तो केवल एक अफवाह के अकल्पनीय नतीजे हो सकते हैं। इसलिए, जब परमेश्वर के कार्य के बारे में कलीसिया में ऐसी अफवाहें दिखाई पड़ती हैं, तो उन्हें तुरंत रोका और प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। लोगों को गुमराह करने और उन्हें सही मार्ग से भटकाने के लिए किसी को भी हवा-हवाई बातें नहीं बनानी चाहिए, और ऐसे सभी प्रकार के झूठ नहीं गढ़ने चाहिए, जिनके बारे में सुनना लोगों को अच्छा लगता है। भले ही लोगों को ये विषय पसंद हों, फिर भी इन पर अपने दिल में ध्यान केन्द्रित करने और इनका प्रचार करने से क्या लाभ होगा? क्या लाभ प्राप्त हो सकता है? कुछ लोग कहते हैं, “वह व्यक्ति जो चाहे कह सकता है, क्योंकि यह उसका मुँह है। इसलिए, वो जैसा चाहे उसे बोलने दो।” यह उस बात पर निर्भर करता है कि क्या कहा जा रहा है। अगर यह कुछ ऐसा है जो लोगों को शिक्षित करता है, तो यह कहा जा सकता है और इसका प्रचार किया जा सकता है—इसका प्रचार किसी भी तरह से किया जा सकता है। लेकिन ये अफवाहें लोगों को थोड़ा-सा भी शिक्षित नहीं करती हैं; वे केवल लोगों को गुमराह करती हैं और उनका ध्यान भटकाती हैं, उनके अनुसरण को बाधित करती हैं और उन्हें सही रास्ते से भटका देती हैं, परमेश्वर के साथ उनके संबंध को प्रभावित करती हैं, उनके सामान्य कर्तव्य निर्वहन को प्रभावित करती हैं, और कलीसिया के कार्य की सामान्य व्यवस्था को प्रभावित करती हैं। एक बार जब लोग इन अफवाहों को स्वीकार लेते हैं, तो यह उस भूलभुलैया में फँसने जैसा है जिससे वे बच नहीं सकते हैं। इसलिए, जब तुम इन अफवाहों को सुनो, यदि कोई व्यक्ति तुम्हें अकेले में उनके बारे में बताता है, तो तुम्हें उनको अस्वीकार कर देना चाहिए। यदि वह दूसरों के बीच उनके बारे में बोलता है, तो तुम्हें न केवल उनको अस्वीकार कर देना चाहिए बल्कि उन्हें उजागर करके उनका गहन-विश्लेषण भी करना चाहिए—और ज्यादा लोगों को गुमराह मत होने दो। विशेषकर उन लोगों के मामले में जो एक या दो साल, या दो या तीन साल से विश्वासी हैं, वे अभी भी गंतव्य, परमेश्वर के साथ मुलाकात और ऊपर उठाए जाने के मामलों की असलियत नहीं देख पाते हैं, उनमें अभी तक सत्य में रुचि विकसित नहीं हुई है, और उनके पास सत्य का अनुसरण करने और अपने विश्वास में स्वभावगत परिवर्तन का प्रयास करने का कोई मार्ग नहीं है। ऐसी स्थितियों में, वे इन अफवाहों से सबसे आसानी से गुमराह और प्रभावित होते हैं, और एक बार जब वे गुमराह हो जाते हैं, तो परिणाम अकल्पनीय होते हैं। यह जहर खाने जैसा है; भले ही कोई विषहर दवा हो, फिर भी क्या तुम्हारे शरीर को नुकसान नहीं पहुँचा है? यदि तुम बच भी जाओ तो क्या तुम्हारे शरीर को होने वाली पीड़ा और क्षति को नजरअंदाज किया जा सकता है? इसलिए, जब इन अफवाहों का सामना करो, तो तुम्हें उनका भेद पहचान कर उन्हें खारिज कर देना चाहिए, और उन्हें कहानियों या वास्तविक घटनाओं के तौर पर नहीं मानना चाहिए। कुछ लोग विशेष रूप से इन अफवाहों में रुचि लेते हैं और इन्हें हर जगह प्रसारित करते और फैला देते हैं, और दूसरों के साथ ऐसे साझा करते हैं जैसे ये सत्य हों। इसकी प्रकृति क्या है? क्या यह शैतान के सेवक के तौर पर काम करना नहीं है? ऐसे लोगों की काट-छाँट की जानी चाहिए और उन्हें चेतावनी भी दी जानी चाहिए। यदि वे पश्चात्ताप नहीं करते हैं, तो उन्हें बाहर निकाल देना चाहिए। अगर किसी समय उन्हें होश आ जाता है और वे कहते हैं, “अफवाहें फैलाना गलत था; मैं शैतान का सेवक बनकर काम कर रहा था, और मैं फिर कभी ऐसी अफवाहें नहीं फैलाऊँगा,” तो उन पर नजर रखी जा सकती है : अगर वे पश्चात्ताप करते हैं और अच्छा व्यवहार दिखाते हैं, तो उन्हें अस्थायी रूप से कलीसिया में वापस स्वीकार किया जा सकता है। अगर वे फिर से ऐसी गलती करते हैं, तो उन्हें दूर कर देना चाहिए।
परमेश्वर के कार्य के बारे में अफवाहें इन्हीं तक सीमित नहीं हैं। लोग विश्लेषण और पड़ताल करने के लिए अपनी कल्पनाओं और धारणाओं, और साथ ही अपने दिमाग का उपयोग करते हैं; वे परमेश्वर के वचनों और विभिन्न भविष्यवाणियों, और साथ ही समाज और दुनिया में होने वाली विभिन्न आपदाओं, संकेतों और घटनाओं की पड़ताल करते हैं, यहाँ तक कि परमेश्वर के कार्य पर स्वतंत्र रूप से टिप्पणी करने के लिए अपने सपनों पर भरोसा करते हैं—वे कई अफवाहें गढ़ते हैं। बहुत से लोग नियमित रूप से परमेश्वर के वचनों को नहीं पढ़ते हैं, या नियमित रूप से सत्य के लिए कड़ी मेहनत नहीं करते हैं, और अपने कर्तव्य निभाते समय सिद्धांतों की तलाश करने में नियमित रूप से कड़ी मेहनत तो बिल्कुल भी नहीं करते हैं। इसके बजाय, वे ऐसे सवालों पर विचार करते हैं, “परमेश्वर का प्रकटन और कार्य कैसे शुरू हुआ? यह सब किसने शुरू किया? लोगों ने क्या भूमिका निभाई? कौन-सी घटनाएँ घटीं?” वे इन बाहरी घटनाओं, और कलीसिया की प्रशासनिक संरचना, कर्मियों वगैरह की बारीकी से पड़ताल करते हैं। इस पूरी पड़ताल के बाद, वे सबका सारांश बनाते हैं और कुछ तथाकथित नियम या घटनाएँ लेकर आते हैं और उन्हें कलीसिया में इस तरह फैला देते हैं जैसे कि वे सत्य हों। उन्हें फैलाते समय, वे उनका सुस्पष्ट और विस्तृत तरीके से वर्णन करते हैं; और भेद न पहचान सकने वाले लोग यह भी सोच सकते हैं कि वे परमेश्वर के कार्य की चर्चा कर रहे हैं। हालाँकि, समझदार लोग सोचते हैं, “कहीं तुम बकवास तो नहीं कर रहे हो और पाखंड और भ्रांतियाँ तो नहीं फैला रहे हो? कहीं तुम परमेश्वर के कार्य की आलोचना तो नहीं कर रहे हो? यह समझ और अनुभव साझा करना नहीं है—यह सत्य से असंबंधित है। यह अफवाहें गढ़ना है और इसे तुरंत रोका जाना चाहिए; अन्यथा, कुछ लोग गुमराह हो जाएँगे!” ये भ्रांतियाँ और पाखंड, जिनका संबंध अफवाहों से है, सत्य के अनुरूप नहीं हैं और लोगों की सत्य की समझ को बाधित करते हैं। जब कलीसिया में अफवाहें फैलाने का कार्य दिखाई देता है, तो इसे तुरंत रोक दिया जाना चाहिए।
कुछ अफवाहें ऐसी भी हैं जो परमेश्वर के कार्य की आलोचना करने वाले शैतानी शब्द हैं। उदाहरण के लिए, परमेश्वर किससे प्रेम करता है, किसे बचाता है और किसे पूर्ण बनाता है, इस बारे में कुछ लोग अपनी तुच्छ चतुराई का इस्तेमाल करते हुए, यह कहकर अवलोकन और सारांश प्रस्तुत करते हैं, “दुनिया में जो लोग सक्षम हैं, और जिन्होंने अधिकारियों के रूप में सेवा की है, और जो उद्यमों में विभाग प्रमुख या सीईओ रहे हैं, जब वे परमेश्वर के घर में आते हैं, तो सीधे अगुआ बन जाते हैं या तुरंत सामान्य मामलों और वित्त का प्रभार सँभाल लेते हैं। ये वो लोग हैं जिन्हें परमेश्वर पूर्ण बनाता है।” क्या यह अफवाहें गढ़ना नहीं है? बेशक यह अफवाहें गढ़ना है। अफवाह क्या होती है? यह गैर-जिम्मेदाराना ढंग से बात करना, बिना सोचे-विचारे निर्णय लेना और इस तरीके से निराधार निष्कर्ष निकालना जो तथ्यों के अनुरूप नहीं है; ये सभी शब्द अफवाहें हैं। अन्य लोग कहते हैं, “फलाँ-फलाँ लोगों ने दसियों हजार युआन का चढ़ावा चढ़ाया। उनका विश्वास महान है, वे राज्य में प्रवेश कर सकते हैं।” इससे बिना पैसे वाले लोग नकारात्मक हो जाते हैं और परेशान महसूस करते हैं; वे कहते हैं, “भले ही मैंने भी काफी चढ़ावा चढ़ाया है, लेकिन यह उतना नहीं है जितना उन्होंने एक बार में चढ़ाया है। क्या इसका मतलब यह है कि मुझे बचाया नहीं जा सकता और पूर्ण नहीं बनाया जा सकता? क्या परमेश्वर मेरे जैसे व्यक्ति को नहीं चाहता है?” फिर अफवाहें गढ़ने वाले अन्य लोग कहते हैं, “अमीर व्यक्ति राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता है; परमेश्वर गरीब को चाहता है।” वे गरीब लोग फिर प्रसन्न हो जाते हैं : “भले ही मैंने ज्यादा चढ़ावा नहीं चढ़ाया है, मैं अभी भी राज्य में प्रवेश कर सकता हूँ, जबकि अमीर लोगों को छोड़ दिया जाएगा।” अफवाहें गढ़ने वाले जो कुछ भी कहते हैं, उसका असर किसी न किसी तरह से गरीब लोगों पर पड़ता है; वे इस तथ्य को नहीं देख पाते कि यह सब सिर्फ अफवाहें और शैतानी शब्द हैं। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे सत्य को नहीं समझते और उन्हें भेद पहचानना नहीं आता है, इसलिए वे लगातार गुमराह होते रहते हैं। जो लोग अफवाहें गढ़ते हैं और जो उन्हें फैलाते हैं, वे सभी दानव हैं। भले ही वे कितना भी कहें, तुम्हें नहीं पता कि कौन से शब्द सत्य हैं और कौन से शब्द असत्य हैं, ये शब्द वास्तव में कहाँ से आते हैं, इन शब्दों को फैलाने के पीछे उनका वास्तविक मंतव्य क्या है, और वे कौन से लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हैं। यदि कोई व्यक्ति इन चीजों की असलियत नहीं जान पाता है और आँख मूँद कर अफवाहें स्वीकार लेता है और फैलाता है, तो क्या यह उसे मूर्ख नहीं बनाता है? क्या मूर्ख को कमीना भी नहीं कहा जाता है? भले ही यह भोंडा शब्द है, लेकिन मुझे यह बिल्कुल उपयुक्त जान पड़ता है। यह उपयुक्त क्यों है? क्योंकि ऐसे लोग गैर-जिम्मेदारी से बोलते हैं। वे लापरवाही से अफवाहें फैलाते हैं, कुछ घटनाओं के आधार पर लापरवाही से निष्कर्ष निकालते और अफवाहें गढ़ते हैं, और फिर लापरवाही से इन अफवाहों को फैलाते हैं और उनका वर्णन इस तरह करते हैं जैसे कि वे वास्तविक घटनाएँ हों—नतीजतन यह कुछ लोगों को प्रभावित और परेशान करता है। वे परमेश्वर के वचनों को नहीं पढ़ते या सत्य को नहीं समझते; वे अपने दिन कलीसिया में अफवाहें फैलाने और बकवास करने में बिताते हैं। आज, वे किसी को बहुत सारा चढ़ावा चढ़ाते हुए देखते हैं और कहते हैं कि उस व्यक्ति को बचाया जा सकता है। कल, वे किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो जेल जाकर भी यहूदा नहीं बना है, तो वे कहते हैं, “वह व्यक्ति परमेश्वर के साथ एकमन है। वह राज्य में प्रवेश कर सकता है और एक अच्छी मंजिल पा सकता है। भविष्य में, वह परमेश्वर के घर में बीस शहरों पर शासन करेगा; हम साधारण पैदल सैनिक उससे अपनी तुलना नहीं कर सकते।” क्या यह शैतानी वार्ता नहीं है? क्या ये अफवाहें नहीं हैं? (हाँ।) इन शब्दों को कहने वाले लोगों के मंतव्य और लक्ष्य चाहे जो भी हों, क्या ऐसे शब्द कुछ लोगों को प्रभावित और परेशान नहीं करेंगे? कुछ लोगों में आस्था कम होती है, और जब वे ये अफवाहें और शैतानी शब्द सुनते हैं, तो वे चिंतन करने लगते हैं : “क्या मुझे बचाया जा सकता है? क्या परमेश्वर मुझसे प्रसन्न होता है?” अपने दिल में वे पूरे दिन इन चीजों के बारे में सोचते रहते हैं, उनके बारे में झिझकते और चिंता करते रहते हैं। अफवाहें गढ़ने वालों की बेबुनियाद बकवास की वजह से, उन्हें लगता है कि उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं है, इसलिए वे परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना करते हैं : “परमेश्वर, क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करते? मैंने तुम्हारे लिए बहुत कुछ त्याग किया है। मैं तुम्हें कब संतुष्ट कर पाऊँगा?” उनके पास शिकायतों का अंबार है। कुछ भी नहीं हुआ है, तो ये शिकायतें कहाँ से आती हैं? ये उन अफवाहों की वजह से हैं—इन लोगों के दिल में जहर घोला गया है और उनका पतन हो गया है। वे जो भी भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं या जो भी अपराध उन्होंने किए हैं, उसके लिए उन्हें कोई पछतावा या अपराध बोध नहीं होता, इसके कारण वे कभी रोते नहीं हैं—एक आँसू भी नहीं—लेकिन जब वे अफवाह फैलाने वालों को यह कहते हुए सुनते हैं कि उनके जैसे लोगों को बचाए जाने की कोई उम्मीद नहीं है, तो वे तुरंत व्यथित महसूस करते हैं। क्या वे प्रभावित नहीं हुए हैं? वे प्रभावित और परेशान हुए हैं। ये लोग अपरिपक्व आध्यात्मिक कद के हैं, सत्य को नहीं समझते हैं, और बहुत मूर्ख हैं। जो लोग अफवाहें गढ़ते हैं वे ऐसे लोगों को आसानी से ठगने लायक समझते हैं और इसलिए उन्हें धोखा देने के लिए कुछ अफवाहें गढ़ते हैं। आज वे कहते हैं कि तुम्हारे बचाए जाने की उम्मीद है और तुम खुश हो; कल वे कहते हैं कि तुम्हारे बचाए जाने की कोई उम्मीद नहीं है और तुम रोते हो और परेशान हो जाते हो। तुम उनकी बात क्यों सुनते हो? तुम हमेशा उनसे बेबस क्यों रहते हो? क्या अंतिम निर्णय उनका होता है? अधिक से अधिक, वे केवल विदूषक हैं। यहाँ तक कि उनका भाग्य भी परमेश्वर के हाथों में है, तो दूसरों का मूल्यांकन करने के लिए उनके पास क्या योग्यता है? यह कहने के लिए उनके पास क्या योग्यता है कि किसे बचाया जा सकता है और किसे नहीं, या किस तरह के लोगों को पूर्ण बनाया जा सकता है और किसे नहीं? क्या वे सत्य को समझते हैं? उनके कौन से शब्द परमेश्वर के इरादों और परमेश्वर के वचनों के अनुरूप हैं? उनका एक भी शब्द परमेश्वर के वचनों के अनुरूप नहीं है, तो फिर तुम उन पर विश्वास क्यों करते हो? तुम उनसे परेशान क्यों हो? क्या यह मूर्खता के कारण नहीं है? (हाँ।) चाहे यह मूर्खता और अज्ञानता के कारण हो या क्योंकि तुम्हारा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है और तुम सत्य को नहीं समझते हो, किसी भी मामले में, जो लोग कलीसिया में अफवाहें फैलाते हैं वे सबसे अधिक घृणित हैं। उनका भेद पहचानना चाहिए, उन्हें उजागर करना चाहिए और फिर प्रतिबंधित करना या बाहर निकाल देना चाहिए।
कुछ लोग कहते हैं, “फलाँ व्यक्ति को देखो, उसके नैन-नक्श कितने अच्छे हैं; इसी कारण से उसे कलीसिया अगुआ चुना गया था। फलाँ महिला समाज में सफल हुई, उसे देखने वाला हर व्यक्ति उसे पसंद करता है; जब वह परमेश्वर में विश्वास करने लगी, तो भाई-बहन भी उसे पसंद करने लगे, और परमेश्वर भी उसे पसंद करने लगा।” क्या इन शब्दों में एक भी सही कथन है? (नहीं।) क्यों? (वे सत्य के अनुरूप नहीं हैं।) सही कहा, ये शब्द सत्य के अनुरूप नहीं हैं, वे सारी शैतानी बातें हैं। कुछ लोगों का कहना है, “फलाँ-फलाँ व्यक्ति का परिवार अमीर है, उनकी रहन-सहन की स्थिति अच्छी है, और वे ज्ञानवान हैं। इसलिए, परमेश्वर के घर में, वे वित्त और सामान्य मामलें सँभालते हैं। वे उपयोगी हैं और इस कर्तव्य को निभा सकते हैं। यह परमेश्वर का विधान है।” क्या “परमेश्वर का विधान” जोड़ने से यह कथन सत्य के अनुरूप बन गया है? क्या यह शैतानी बात नहीं है? ऐसी शैतानी बात को सामूहिक रूप से अफवाह कहा जाता है। कोई भी गैर-जिम्मेदाराना कथन जो तथ्यों के अनुरूप नहीं है, जो परमेश्वर द्वारा निर्धारित तथ्यों का खंडन करता है, वे बेपरवाह शब्द और मनमाने निष्कर्ष हैं; ऐसे सारे कथन अफवाहें हैं। उन्हें अफवाहों के रूप में चित्रित क्यों किया जाता है? क्योंकि ये कथन, एक बार जारी हो जाने पर, कुछ लोगों की सामान्य मानसिकता और लक्ष्यों के अनुसरण को बाधित करेंगे और नुकसान पहुँचाएँगे, इसलिए उन्हें अफवाहों के रूप में चित्रित किया जाता है। परमेश्वर के वचनों के अनुसार, परमेश्वर केवल यह कहता है कि लोगों का जन्म स्थान, पारिवारिक पृष्ठभूमि, रंग-रूप, शिक्षा का स्तर वगैरह परमेश्वर द्वारा निर्धारित होते हैं; उसने लोगों को कभी नहीं बताया है कि रंग-रूप, सामाजिक पृष्ठभूमि या किसी श्रेणी के लोगों की जन्मजात स्थितियाँ धन्य होने की स्थितियाँ हैं। परमेश्वर लोगों से केवल एक मानक की अपेक्षा करता है कि वे सत्य का अनुसरण करने में सक्षम हों और परमेश्वर के प्रति समर्पण हासिल करें। यह सबसे महत्वपूर्ण है। यदि परमेश्वर के वचन स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहते हैं, और यह केवल लोगों की व्यक्तिपरक कल्पनाओं या उनके अनुमानों से उपजा है, तो ऐसे कथनों को भी अफवाह माना जाता है। लोग हमेशा अपने अवलोकन और समझ के माध्यम से, और इसके अतिरिक्त अपनी स्वयं की धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर यह आकलन करना चाहते हैं कि क्या किसी को आशीष दिया जा सकता है या नहीं। फिर, वे दूसरों के सत्य के अनुसरण को प्रभावित करने के लिए इन भ्रांतियों को जारी करते हैं, मनमाने ढंग से निर्णय लेते हैं कि किसे बचाया जा सकता है और किसे नहीं, कौन परमेश्वर के लोग हैं, और कौन श्रमिक हैं। ये सब अफवाहें हैं। अफवाहों के संबंध में, हम उन्हें शैतानी शब्द भी कह सकते हैं। चाहे किसी भी तरह की अफवाहें या शैतानी शब्द दिखाई दें, कलीसिया अगुआओं को तुरंत उन्हें रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए आगे आना चाहिए; बेशक, अगर किसी भाई-बहन को भेद पहचानना आता है, तो उसे भी आगे आकर यह गहन-विश्लेषण करना चाहिए और भेद पहचानना चाहिए कि अफवाहें कहाँ से आती हैं और उनकी प्रकृति क्या है। जब इन भाई-बहनों को इन चीजों की समझ हो जाती है, तो वे इन अफवाहों का खंडन करने और उन पर वाद-विवाद करने के लिए खड़े हो सकते हैं, और अफवाहें फैलाने वालों को प्रतिबंधित भी कर सकते हैं, सामूहिक रूप से उनके खिलाफ आवाज उठा सकते हैं। उन्हें यह कैसे करना चाहिए? सबके सामने उन लोगों की खुलेआम निंदा करके : “तुम जो कह रहे हो वह सब अफवाहें और शैतानी बातें हैं, यह परमेश्वर के वचनों के अनुरूप नहीं है, न ही यह हमारी आवश्यकताओं के अनुरूप है। अगर तुम चेतावनियों के बावजूद अफवाहें फैलाना जारी रखते हो, तो हम तुम्हें बाहर निकाल देंगे, ताकि तुम्हें अफवाहें गढ़ने और कलीसिया में गड़बड़ी पैदा करने का कोई मौका न मिले!” यह अभ्यास कैसा है? (अच्छा है।) इस तरह से करना सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है। यदि तुम अपनी व्यक्तिगत अनुभवजन्य समझ की संगति करते हो, लोगों को शिक्षित करने वाली बातें कहते हो, तो तुम जो भी बोलते हो वह ठीक है। तुम अपनी पसंद के किसी भी शब्द का उपयोग कर सकते हो, चाहे वह औपचारिक हो या बोलचाल की भाषा; इन सबकी अनुमति है। एकमात्र चीज जो तुम्हें नहीं करनी चाहिए वह है अफवाहें फैलाना।
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