अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (17) खंड तीन

4. आशीष प्राप्त करने की इच्छा नष्ट होने पर नकारात्मकता फैलाना

नकारात्मकता फैलाने की एक और अभिव्यक्ति है। कुछ लोग कहते हैं, “मैंने इतने सालों तक परमेश्वर में विश्वास किया और मुझे क्या हासिल हुआ?” जब ऐसे लोग नकारात्मकता फैलाते हैं तो उनकी मुख्य बात यह होती है, “मुझे क्या हासिल हुआ?”—यानी उन्होंने कुछ भी हासिल नहीं किया। उनका मानना है कि परमेश्वर में विश्वास रखते समय परमेश्वर के घर या परमेश्वर से कोई लाभ या आशीष पाना बहुत कठिन है, और लोगों को बहुत सारा प्रेम अर्पित करना चाहिए और उनमें अविश्वसनीय सहनशक्ति होनी चाहिए, और तुरंत नतीजे पाने के लिए बेताब नहीं होना चाहिए। जहाँ तक लोगों को उजागर करने, उनकी काट-छाँट करने, उनका शोधन करने और उनकी भ्रष्टता को स्वच्छ करने वाले वचनों की बात है, वे मानते हैं कि ये केवल सतही, ऊँचे लगने वाले शब्दाडंबर हैं जिन पर पूरी तरह विश्वास नहीं किया जा सकता; वे सोचते हैं कि अगर उन्होंने परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास किया तो उन्हें बहुत बड़ा नुकसान उठाना होगा। उन्हें लगता है कि लाभ और फायदा पाना और साथ ही अपनी आकांक्षाओं और इच्छाओं को साकार करना हर समय सबसे जरूरी होता है, और वे सत्य का अभ्यास करते हैं या नहीं, यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं है—वे मानते हैं कि अगर वे बुराई नहीं करते हैं तो इतना ही काफी है और कलीसिया उन्हें नहीं हटाएगी। इन नकारात्मक शब्दों को सुनकर ज्यादातर लोग कैसा महसूस करते हैं? क्या वे मन-ही-मन इन वचनों को स्वीकारते और इनसे सहमत होते हैं या फिर इनसे थोड़ी घृणा करते हैं और यह सोचते हैं कि ये लोग स्वार्थी, नीच, दुष्ट, और घिनौने हैं और इन्हें पहचान कर उजागर और प्रतिबंधित कर सकते हैं और इन्हें नकारात्मकता और मृत्यु फैलाने से रोक सकते हैं? क्या ज्यादातर लोग ऐसे नकारात्मक शब्दों को अस्वीकार करते हैं और इनकी निंदा करते हैं या वे उनसे गुमराह होकर नकारात्मक बन सकते हैं? कुछ लोग इन शब्दों को सुनने के बाद और यह देखते हुए कि उनके हाथ खाली हैं, सोचते हैं, “क्या यह सच नहीं है! मुझे भी कुछ हासिल नहीं हुआ है। परमेश्वर के घर में मुझे बस तीन वक्त का खाना मिलता है, मैं हमेशा व्यस्त रहता हूँ और मैंने वाकई और कुछ भी हासिल नहीं किया है।” क्या तुम लोगों के भी ऐसे विचार हैं? क्या तुम लोग भी ऐसा ही महसूस करते हो? जो लोग सत्य समझते हैं वे कहेंगे, “तुम्हारे यह कहने का क्या मतलब है कि तुमने कुछ भी हासिल नहीं किया है? हमने परमेश्वर से बहुत कुछ हासिल किया है! हमने इतने सारे सत्यों को समझा है!” मगर कुछ लोग उनसे असहमत होते हुए कह सकते हैं, “यह कहना बहुत यथार्थवादी नहीं लगता कि हमने ‘बहुत कुछ’ हासिल किया है। हमें बस थोड़ा-सा अनुग्रह प्राप्त हुआ है, अपने कर्तव्य निभाने के कुछ अवसर मिले हैं, आचरण करने के बारे में हमने कुछ धर्म-सिद्धांतों को समझा है, हम विभिन्न स्थानों से आये कई भाई-बहनों से मिले हैं और हमने उन्हें जाना है, और अपने क्षितिज को काफी व्यापक बनाया है। इसे तो बस थोड़ा-सा हासिल किया जाना ही माना जाएगा।” तुम लोग इनमें से किस श्रेणी में आते हो? इन सभी श्रेणियों के लोग मौजूद हैं, है ना? (हाँ।) हम इस पर दो पहलूओं से चर्चा करेंगे। सबसे पहले, आओ उन लोगों के बारे में बात करते हैं जो हमेशा अनुग्रह पाने की खातिर परमेश्वर में विश्वास रखते हैं—क्या वे सत्य हासिल करने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं ताकि वे उद्धार प्राप्त कर सकें? (नहीं, वे आशीष पाने के लिए विश्वास रखते हैं।) तो, क्या परमेश्वर ने उन्हें थोड़ा-सा अनुग्रह, सुरक्षा, दयालुता, प्रबुद्धता और रोशनी दी है? (परमेश्वर ने उन्हें इनमें से बहुत-सी चीजें दी हैं।) यह कहा जा सकता है कि परमेश्वर में विश्वास रखने वाले हर एक व्यक्ति को परमेश्वर की सुरक्षा मिली है। क्या परमेश्वर की सुरक्षा ठोस है? क्या वास्तविक जीवन में इसके कुछ उदाहरण हैं? लोगों को किस तरह की सुरक्षा मिली है? (एक अपेक्षाकृत स्पष्ट प्रकार यह है कि परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद हम अब संसार की दुष्ट प्रवृत्तियों से प्रभावित नहीं होते हैं। हम पतन में नहीं पड़ते या नाइट क्लबों में जाने, धूम्रपान करने और शराब पीने जैसी दुष्ट चीजों का अनुसरण नहीं करते हैं। कम से कम हम इन चीजों में शामिल नहीं होते और मेरा मानना है कि हम इस मामले में काफी सुरक्षित हैं।) यह एक बहुत ही ठोस पहलू है जिसे लोग देख सकते हैं और व्यक्तिगत रूप से इसका अनुभव कर सकते हैं। संसार की दुष्ट प्रवृत्तियों से प्रभावित और गुमराह नहीं होना, एक इंसान की तरह जीना और एक इंसान की तरह सामान्य मानवता के भीतर रहना—यह परमेश्वर की सुरक्षा का एक व्यावहारिक उदाहरण और सबूत है। क्या और भी कुछ है? (बुरी आत्माओं से बाधित नहीं होना और परमेश्वर की सुरक्षा में रहने में सक्षम होना।) यह भी एक व्यावहारिक उदाहरण है। क्या ज्यादातर लोगों ने यह अनुभव किया है? क्या तुम लोग इसमें छिपे अर्थ को समझ सकते हो? कुछ लोग कहते हैं, “अविश्वासी भी बुरी आत्माओं से बाधित नहीं होते हैं। कितने अविश्वासी बुरी आत्माओं से बाधित होते हैं?” क्या यह कथन सही है? क्या तुम लोगों को लगता है कि यह कथन तथ्यों के अनुरूप है? (मेरे कई सहपाठियों को बुरी आत्माओं ने बाधित किया है। कुछ लोग नींद में पक्षाघात की समस्या का अनुभव करते हैं और कुछ अन्य लोगों को आवाजें सुनाई देती हैं। वे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते और नहीं जानते कि क्या हो रहा है। वे हर जगह जाकर इलाज कराते हैं मगर इसे ठीक नहीं कर पाते, वे डर और भय में जीते हैं; यह पीड़ादायक है। हालाँकि, मुझे कभी भी इस तरह से बाधित या पीड़ित नहीं होना पड़ा क्योंकि मैंने बचपन से ही परमेश्वर में विश्वास रखा है। ज्यादातर समय, मेरा दिल अपेक्षाकृत स्थिर और शांत महसूस करता है।) परमेश्वर के सच्चे विश्वासियों को यह चिंता नहीं सताती है। हम रूपांतरण विकार से पीड़ित होने या बुरी आत्माओं द्वारा बाधित या ग्रसित होने के बारे में चिंता नहीं करते; हम नहीं डरते क्योंकि हमारे पास परमेश्वर है। इसके अलावा वास्तविक जीवन में अविश्वासी लगातार चेहरा पढ़ने, फेंग शुई और भाग्य बताने के बारे में बात करते हैं—पश्चिम में तो ज्योतिष विद्या भी है। कुछ लोग प्रसिद्ध बौद्ध प्रतिमाओं, बुरी आत्माओं और मूर्तियों की आराधना करते हैं और कुछ लोग ऐसा नहीं करते, मगर चाहे वे ऐसा करें या न करें, वे सभी कुछ हद तक इन चीजों से प्रभावित और अवरोधित हैं। उदाहरण के लिए, घर से निकलने से पहले वे थोड़ा सोचते हैं कि कौन-सी दिशा शुभ है और कौन-सी अशुभ। दुकान खोलते समय वे तय करते हैं कि काउंटर को किस स्थिति में रखने से पैसे आएँगे और किस स्थिति में रखने से पैसे नहीं आएँगे, दुकान में कौन-सी चीजें रखनी चाहिए, धन को आकर्षित करने के लिए किन मूर्तियों की आराधना करनी चाहिए और फेंग शुई को बाधित करने से बचने के लिए कुछ चीजें कहाँ रखनी चाहिए। घर बदलते समय वे परिवार के लिए भविष्य की समृद्धि सुनिश्चित करने और दुर्घटनाओं से बचने के लिए शुभ समय निर्धारित करते हैं और यह पता लगाते हैं कि कौन-से समय अशुभ हैं। यहाँ तक कि छात्र भी प्रवेश परीक्षाएँ देते समय इन मान्यताओं से प्रभावित होते हैं। परीक्षा के दिन वे विफलता दर्शाने वाले शब्द कहने से बचते हैं और इसके बजाय “प्रगति” और “कामयाबी” जैसे शब्द कहते हैं। जीवन का हर एक पहलू—बच्चों के स्कूल जाने से लेकर माता-पिता के अपने दैनिक जीवन जीने, पैसे कमाने, घर बदलने, नौकरी तलाशने, साथ ही बच्चों की शादी वगैरह—सब कुछ अन्य बातों के साथ ही तथाकथित फेंग शुई और भाग्य से प्रभावित होता है। तो, जब लोग इन चीजों से प्रभावित होते हैं तो कौन-सी चीज उन्हें रोक रही होती है? बुरी आत्माएँ उन्हें रोक रही होती हैं; ये सभी चीजें बुरी आत्माओं द्वारा नियंत्रित होती हैं। तो फिर लोग उन बुरी आत्माओं की आराधना क्यों करते हैं? वे इन चीजों से क्यों प्रभावित होते हैं? घर बदलने जैसी छोटी-सी बात के लिए लोग हमेशा इस पर विचार क्यों करते हैं कि किस समय काम शुरू करना शुभ होगा और किस समय नहीं, कौन-सा सामान पहले हटाना शुभ होगा और कौन-सा सामान नहीं हटाना शुभ होगा? उन्हें हमेशा इन चीजों पर विचार क्यों करना पड़ता है? क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो बुरी आत्माएँ अपना काम करेंगी, उन्हें पीड़ित और प्रताड़ित करेंगी। इन मामलों से तुम लोगों को क्या पता चलता है? यही कि पूरी मानवजाति बुराई के नियंत्रण में रहती है। बुरे कौन हैं? सबसे ज्यादा बुरे शैतान और राक्षस हैं और थोड़े कम बुरे अलग-अलग जगहों पर रहने वाली बुरी आत्माएँ हैं जो अलग-अलग जातियों के लोगों को काबू में करती हैं। मानव जीवन का हर पहलू इन बुरी आत्माओं से बाधित और नियंत्रित होता है। यहाँ तक कि घर बनाते समय मुख्य बीम की स्थापना के दौरान लोग थोड़ी अच्छी किस्मत के लिए लाल कपड़ा लटकाते और पटाखे फोड़ते हैं और निर्माण में शामिल सभी मजदूर आर्थिक समृद्धि लाने और दुर्घटनाओं से बचने के लिए लाल कपड़े पहनते हैं। इन सभी चीजों के बारे में कुछ विशेष आवश्यकताएँ और कहावतें हैं, साथ ही वर्जनाएँ भी हैं और उन्हें वर्जनाओं से बचते हुए इन कहावतों का पालन करना चाहिए। उदाहरण के लिए, कुछ लोग अक्सर कठिनाइयों का सामना करते हैं और उनके लिए चीजें सुचारु रूप से नहीं चलतीं—वे अपनी नौकरी खो देते हैं, उनकी पत्नियाँ उन्हें छोड़ देती हैं और उनके पास घर पर कुछ भी नहीं बचता। वे अपने गिरवी रखे घर का ऋण भी नहीं चुका पाते और कुछ भी ठीक नहीं चल रहा होता है। उन्होंने कुछ भी बुरा नहीं किया तो उनके साथ ये सब क्यों होता है? कोई और विकल्प नहीं होने पर, वे नकली देवताओं और बुरी आत्माओं की आराधना करने लगते हैं या अपनी किस्मत बदलने के लिए फौरन किसी से अपनी फेंग शुई की जाँच करवाते हैं और ऐसा करने के बाद चीजें धीरे-धीरे उनके लिए अच्छी होने लगती हैं। वे पहले इन चीजों पर विश्वास नहीं करते थे मगर जब समस्याएँ आती हैं तो वे गंभीरता से नकली देवताओं और बुरी आत्माओं की आराधना करते हैं और कुछ भी करने से पहले उन्हें शकुन-विद्या या भाग्य बताने वालों से परामर्श करना होता है। क्या इस तरह से जीना थकाऊ नहीं है? (हाँ।) यह एकदम थकाऊ है! हालाँकि वे चाहते हैं मगर वे स्वतंत्र रूप से और आराम से जी नहीं सकते या इन कहावतों और नियमों की विवशताओं से नहीं बच सकते हैं। अगर वे इन नियमों को तोड़ते हैं तो बुरी आत्माएँ कार्य करती हैं और उन्हें बाधित करती हैं, वे बुरी आत्माएँ जबरन उन्हें अपने वश में कर लेती हैं, और अपने जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए उन्हें रोज उनकी आराधना करनी पड़ती है। लेकिन जो लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हैं वे इन सामंती अंधविश्वासों या बुरी आत्माओं की क्रियाओं से बंधे नहीं होते। वे बिना किसी वर्जना के अपना घर बदल सकते हैं या अपनी मर्जी से कहीं भी जा सकते हैं। चीन की मुख्य भूमि में कम्युनिस्ट पार्टी हमेशा धार्मिक विश्वासों को दबाती है और उन पर अत्याचार करती है। अगर कोई विश्वासी अब किसी स्थान पर नहीं रह सकता है तो उसे फौरन वहाँ से चले जाना चाहिए—क्या उसे इसके लिए कोई शुभ दिन या शुभ घड़ी चुनने की जरूरत है या किसी की आराधना करनी होगी? नहीं। वह परमेश्वर से प्रार्थना करता है, और परमेश्वर उसकी रक्षा करता है। सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है—वह इन चीजों से बंधा नहीं है। जब भी वह कुछ खाना चाहे या घर से बाहर निकलना चाहे तो क्या उसे पंचांग देखने की जरूरत है या यह देखना है कि यह किसी वर्जना का उल्लंघन तो नहीं करता? नहीं, वह परमेश्वर से प्रार्थना करता है, और सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है। जब लोग परमेश्वर के प्रभुत्व और संप्रभुता के अधीन रहते हैं तो परमेश्वर की सुरक्षा और मार्गदर्शन से बुरी आत्माएँ और गंदे राक्षस, बड़े और छोटे दोनों ही, रास्ते से दूर रहते हैं; वे परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोगों को परेशान करने की हिम्मत नहीं करते हैं। क्या ये लोग सुरक्षित नहीं हैं? क्या वे स्वतंत्रता और सहजता से नहीं रह रहे हैं? (हाँ, रह रहे हैं।) क्या यह बड़ा अनुग्रह है? (हाँ।) इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुमने अभी तक सत्य प्राप्त किया है या नहीं, अगर तुम परमेश्वर में ईमानदारी से विश्वास रखने वाले व्यक्ति हो तो तुम परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित और चुने गए व्यक्ति हो और जब तुम परमेश्वर के सामने आते हो तो वह इस तरह से तुम्हारी रक्षा करता है, तुम्हें इस तरह के अनुग्रह का आनंद लेने देता है। यह कितना बड़ा अनुग्रह है! तुम्हारी व्यक्तिगत सुरक्षा और तुम्हारी सभी गतिविधियाँ सुरक्षित और संरक्षित रहती हैं, परमेश्वर इन चीजों की जिम्मेदारी खुद लेता है और उनकी रक्षा करता है इसलिए तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। ज्यादातर समय लोग प्रार्थना भी नहीं करते या सचेत रूप से आत्म-चिंतन नहीं करते, “मैं परमेश्वर से प्रार्थना करूँगा और परमेश्वर से मेरी रक्षा करने के लिए कहूँगा। मुझे आशा है कि सब कुछ ठीक होगा और कुछ भी बुरा नहीं होगा।” तुम्हें प्रार्थना करने की भी आवश्यकता नहीं है। जब तक तुम्हारे दिल में यह सरल विश्वास है कि “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ; सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है,” परमेश्वर अपना काम करेगा। लोग परमेश्वर से ऐसे महान अनुग्रह का आनंद लेते हैं—क्या यह बस थोड़ा-सा हासिल करना है? (यह बहुत कुछ हासिल करना है।) परमेश्वर संसार में एकमात्र संप्रभु है। तुम्हारा जीवन और तुम्हारी सारी संपत्ति परमेश्वर के हाथों में है, इस संप्रभु के हाथों में तुम्हारा दिल शांत, स्थिर और निश्चिंत महसूस करता है और तुम्हें किसी भी चीज के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है। चाहे तुम्हें परमेश्वर के बारे में कितना भी ज्ञान हो या तुम कितने भी सत्य समझते हो, तुम अपने दिल में इस बारे में पूरी तरह से निश्चित हो सकते हो। सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है। अगर परमेश्वर में विश्वास रखने वालों के दिलों में उसके लिए जगह है और वे सत्य समझते हैं तो बुरी आत्माएँ उन्हें बाधित करने, नुकसान पहुँचाने या उनके पास आने की हिम्मत नहीं कर सकतीं। नतीजतन, विश्वासियों को उन अनावश्यक प्रक्रियाओं में शामिल होने की कोई जरूरत नहीं है। यह इतना बड़ा अनुग्रह है—तुम अभी भी कैसे कह सकते हो कि तुम्हें परमेश्वर में विश्वास रखने से कुछ भी हासिल नहीं हुआ है? क्या तुममें अंतरात्मा की कमी नहीं है? किसी भी और बात पर ध्यान दिए बिना सीधे यह दावा करना कि तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ है अपने आप में अंतरात्मा की कमी को साबित करता है और इससे साबित होता है कि तुम्हारी अंतरात्मा पूरी तरह से खराब है; बाकी चीजों के बारे में और कुछ कहने की जरूरत नहीं है।

परमेश्वर लोगों को मुफ्त में सत्य और जीवन प्रदान करता है, बदले में कुछ भी माँगे बिना लोगों को अपने वचन प्रदान करता है। हालाँकि लोगों को लग सकता है कि उनका आध्यात्मिक कद अभी भी अपरिपक्व है, उन्होंने ज्यादा सत्य नहीं समझा है और जो थोड़ा-बहुत वे समझते हैं उसे वे स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं कर सकते, बस ये चीजें परमेश्वर ने उन्हें दी हैं, ये स्नेह और प्रेम—यह कितना बड़ा अनुग्रह है! परमेश्वर ने लोगों को सबसे कीमती चीजें दी हैं; लोगों को परमेश्वर से संसार की सबसे कीमती चीजें मिली हैं। चाहे तुमने इसे महसूस किया हो या नहीं, परमेश्वर पहले ही मनुष्य को ये सब दे चुका है। लोगों को अब भी किस बात की शिकायत है? क्या वे इन चीजों को पाने के लायक हैं? परमेश्वर द्वारा चुने गए लोग संसार में सबसे अधिक खुशहाल लोग हैं। तुम चयनित हो और परमेश्वर ने तुम्हें चुना है; तुम संसार के सबसे खुशहाल और भाग्यशाली लोगों में से एक हो। तुम यह कैसे कह सकते हो कि तुमने कुछ भी हासिल नहीं किया है? तुम सबसे खुशहाल और भाग्यशाली लोगों में से एक बन गए हो क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हें चुना है और इस प्रकार बुरी आत्माएँ और गंदे राक्षस तुम्हारे करीब आने की हिम्मत नहीं करते हैं। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या इसका मतलब यह है कि मेरा रुतबा और पहचान सम्मानजनक हो गई है?” क्या ऐसा कहा जा सकता है? ऐसा नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह सब परमेश्वर के प्रेम और परमेश्वर के कार्यों के कारण है। लोगों ने बहुत कुछ हासिल किया है! सिर्फ इस जीवन में ही लोगों ने इतना कुछ प्राप्त किया है; आखिर लोग यह सब प्राप्त करने के योग्य कैसे हैं? कुछ लोग जो परमेश्वर में विश्वास रखते हैं वे सत्य का अनुसरण बिल्कुल नहीं करते और फिर भी कहते रहते हैं, “मैंने इतने सालों से परमेश्वर में विश्वास रखकर क्या हासिल किया है?” क्या तुम लोग खुद इसका हिसाब नहीं लगा सकते? तुम्हारा दिल जानता है कि तुम सत्य समझते हो या नहीं, तुमने कितनी कम बुराई की है और इससे भी बढ़कर तुम्हारा दिल जानता है कि तुमने अनुग्रह का कितना आनंद लिया है। अगर तुम्हारे दिल में ये बातें स्पष्ट हैं तो तुम ऐसी बातें नहीं कहोगे जिनमें अंतरात्मा की इतनी कमी है। कुछ लोग यह भी कहते हैं, “परमेश्वर का घर मुझे रोटी, कपड़ा और आश्रय भी देता है।” क्या यह परमेश्वर के अनुग्रह और सुरक्षा की तुलना में बहुत मामूली नहीं है? क्या यह जिक्र करने लायक भी नहीं है? लेकिन जिनके पास अंतरात्मा है उन्हें लगता है कि भले ही यह जिक्र करने लायक नहीं है फिर भी यह परमेश्वर के अनुग्रह का हिस्सा है। परमेश्वर का अनुग्रह अथाह है; परमेश्वर ने लोगों को बहुत कुछ दिया है! जहाँ तक उन भौतिक चीजों की बात है तो परमेश्वर के परिप्रेक्ष्य से, वह उन्हें गिनता भी नहीं है।

परमेश्वर के कार्यों का एक पहलू लोगों की रक्षा करना है और दूसरा उन्हें उद्धार के मार्ग पर ले जाना है ताकि उन्हें बचाया जा सके। लोगों ने परमेश्वर के इस स्नेह और उनके प्रति उसके प्रेम का आनंद लिया है और परमेश्वर ने उन्हें भरपूर अनुग्रह प्रदान किया है! इसके अलावा कुछ ऐसा है जो सबसे महत्वपूर्ण है : वह सत्य जो परमेश्वर ने लोगों को प्रदान किया है यानी ऐसे वचन जिन्हें मानव इतिहास में किसी भी युग में किसी ने न तो कभी सुने या न ही प्राप्त किए। परमेश्वर ने चाहे जितनी बार भी मानवता की रचना की हो उसने कभी यह काम नहीं किया या ये वचन नहीं बोले। मानवता से संबंधित सभी रहस्य जैसे लोग क्या सहन कर सकते हैं, क्या ग्रहण कर सकते और क्या समझ सकते हैं—परमेश्वर ने तुम लोगों को यह सब बताया है। क्या इन रहस्यों, इन सत्यों को किसी भी मात्रा से मापा जा सकता है? उन्हें मापा नहीं जा सकता; लोग कई जन्मों में अपने इस आनंद को समाप्त नहीं कर सकते। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर के ये वचन लोगों के अस्तित्व की नींव हैं और वे अनंत काल तक अस्तित्व में रह सकते हैं। अगर तुम वास्तव में इतने भाग्यशाली हो कि बचकर अनंत काल तक जीवित रह जाते हो तो परमेश्वर के ये वचन और सत्य अनंत काल तक तुम्हारा भरण-पोषण कर सकते हैं। अनंत काल का क्या मतलब है? इसका मतलब है समय से सीमित नहीं होना, इसका मतलब है असीम होना। अगर हम इसका शाब्दिक अर्थ लें तो इसका मतलब है कोई अंत नहीं होना—अनंत काल तक जीना, ठीक परमेश्वर की तरह। परमेश्वर के ये वचन और सत्य उस समय तक मौजूद रह सकते हैं। “उस समय” मानवीय भाषा में व्यक्त की गई समय की एक अवधारणा और परिभाषा है मगर इसका वास्तविक अर्थ है अनिश्चित काल तक। मुझे बताओ, परमेश्वर के इन वचनों का मूल्य बड़ा है या नहीं? यह बहुत बड़ा है! अगर तुम उनका अनुसरण नहीं करते तो इसमें तुम्हारा ही नुकसान है; यह तुम्हारी बेवकूफी है। लेकिन अगर तुम उनका अनुसरण करते हो तो ये वचन तुम्हारे लिए एक ऐसा मूल्य रखते हैं जो केवल इस जीवनकाल से कहीं आगे तक जाता है; यह अनंत काल तक फैला हुआ है। वे हमेशा तुम्हारे लिए प्रभावी और उपयोगी रहेंगे और उनका मूल्य और अर्थ हमेशा रहेगा, वे अनंत काल तक तुम्हारा भरण-पोषण करेंगे। अगर तुम इन वचनों को समझो, उन्हें प्राप्त करो और उनके अनुसार जियो तो तुम अनंत काल तक जी सकोगे। सरल शब्दों में कहूँ तो तुम मृत्यु का स्वाद चखे बिना हमेशा जीवित रहोगे। क्या लोग इसी के सपने नहीं देखते हैं? अनगिनत युग बीत चुके होंगे, अनगिनत लोग मर चुके होंगे मगर तुम फिर भी जीवित रहोगे। तुम किस साधन से जीवित रहोगे? परमेश्वर के वचनों और सत्य के माध्यम से तुममें इस तरह जीने की योग्यता होगी। तुम इस निरंतर जीवन का क्या करोगे? तुम्हारे पास परमेश्वर का आदेश, परमेश्वर की अगुआई और एक मकसद भी है। तुम्हारा मकसद क्या है? परमेश्वर चाहता है कि तुम उसके वचनों को जीते हुए उसका महिमागान करो और उसकी गवाही दो। यह परमेश्वर के वचनों का मूल्य है। इस युग में लोग जो सत्य और वचन सुनते हैं, जिनके संपर्क में आते हैं और जिन्हें अनुभव करते हैं उनका मूल्य और महत्व अनंत काल तक अस्तित्व में रहेगा। वह अनंत काल तक अस्तित्व में क्यों रहेगा? परमेश्वर के ये वचन कोई धर्मशास्त्र, सिद्धांत, नारा या किसी तरह का ज्ञान नहीं हैं बल्कि ये जीवन के वचन हैं। अगर तुम इन वचनों को प्राप्त करते हो, उनके अनुसार जीते हो और उनके अनुसार जीवित रहते हो तो परमेश्वर तुम्हें जीवित रहने देगा और मरने नहीं देगा। यानी वह तुम्हें नष्ट नहीं करेगा या तुम्हारा जीवन नहीं छीनेगा—वह तुम्हें जीवित रहने देगा। क्या यह एक महान आशीष नहीं है? (हाँ, यह महान आशीष है।) इन वचनों के जरिये परमेश्वर पहले ही तुम्हें इस जीवन में इस आशीष का पूर्वानुभव कराना चाहता है और चाहता है कि आने वाले संसार में तुम इसे प्राप्त करो। यह परमेश्वर का वादा है। परमेश्वर ने मानवता से जो बहुत बड़ा वादा दिया है उसे देखते हुए, क्या लोगों को बहुत कुछ मिला है? (हाँ।) परमेश्वर ने मानवता से इतना बड़ा वादा किया है, सभी को इस बारे में बताया है। उसने तुम्हें इसके बारे में बताया है और अनुमति दी है कि तुम आकर मुफ्त में इसे ले जाओ। तुम्हें अपना जीवन बलिदान करने या अपनी सारी संपत्ति सौंपने की जरूरत नहीं है; तुम्हें केवल परमेश्वर के वचनों को सुनने और परमेश्वर की अपेक्षाओं और उसकी इच्छाओं के अनुसार काम करने की जरूरत है और तुम परमेश्वर से यह वादा प्राप्त कर सकते हो। क्या परमेश्वर ने मानवता को बहुत कुछ नहीं दिया है? तुम लोग वर्तमान में इस वादे को प्राप्त करने के मार्ग पर हो : हालाँकि तुमने इसे अभी तक पूरी तरह से प्राप्त नहीं किया है पर क्या तुमने कम प्राप्त किया है? परमेश्वर ने मानवता से जो वादा दिया है उसे देखते हुए लोगों ने काफी कुछ प्राप्त किया है। उन्हें एक महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त हुआ है; उन्होंने कुछ भी नहीं खोया या कोई नुकसान नहीं उठाया है। उन्होंने थोड़ा-बहुत समय लगाया है और उनकी देह ने कुछ कष्ट सहे होंगे। उन्होंने थोड़ा सा व्यक्तिगत घरेलू आनंद, व्यक्तिगत दैहिक सुखों और इच्छाओं को त्यागा होगा, अपनी कुछ आकांक्षाओं, रुचियों और इच्छाओं वगैरह को त्यागा होगा। लेकिन सत्य समझने, उद्धार पाने और परमेश्वर के वादे को प्राप्त करने की तुलना में वे सभी व्यक्तिगत संभावनाएँ, लक्ष्य और महत्वाकांक्षाएँ जिक्र करने लायक भी नहीं हैं क्योंकि वे केवल तुम्हें नरक में ले जा सकती हैं और परमेश्वर तुम्हें उन चीजों के लिए अपना वादा नहीं देगा। इसके विपरीत, जब लोग एक सीमित समय देते हैं, एक ऐसी कीमत देते हैं जिसे चुकाने के लिए वे तैयार और सक्षम हैं तो आखिरकार वे सत्य को समझ जाते हैं और परमेश्वर के सृजन के बाद से मानवता द्वारा न समझे गए कुछ रहस्यों, स्व-आचरण के सिद्धांतों, सभी घटनाओं और चीजों के कुछ निश्चित सारों और मूल कारणों, आदि को समझ जाते हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें परमेश्वर के बारे में कुछ ज्ञान प्राप्त होता है और वे उसका भय मानने में सक्षम होते हैं। यह सब प्राप्त करने के बाद, क्या इतनी कीमत चुकाना उचित नहीं है? लोगों की क्या शिकायतें हैं? वे यह क्यों कहते हैं कि उन्होंने परमेश्वर में विश्वास रखने से कुछ भी हासिल नहीं किया है? क्या उनकी अंतरात्मा पूरी तरह से सड़ नहीं गई है? तुमने इतना अधिक हासिल किया है और फिर भी तुम संतुष्ट नहीं हो। तुम्हें और क्या चाहिए? अगर तुम्हें राष्ट्रपति या अरबपति बना दिया जाए तो क्या तुम तब संतुष्ट होओगे? अगर परमेश्वर तुम्हें ये चीजें दे दे तो तुम उसके नहीं हो जाओगे। परमेश्वर ऐसे लोगों को प्राप्त नहीं करना चाहता है।

लोग हमेशा कहते हैं कि उन्होंने परमेश्वर में विश्वास रखने से कुछ भी हासिल नहीं किया है, जिससे पता चलता है कि उनमें अंतरात्मा का अभाव है, सत्य समझने की क्षमता की कमी है, वे सत्य का अनुसरण नहीं करते और वे बहुत निम्न चरित्र के लोग हैं। ऐसे लोगों को अन्य बातों के साथ ही परमेश्वर क्या करता है, परमेश्वर लोगों से क्या अपेक्षा करता है और परमेश्वर ने लोगों को क्या प्रदान किया है, इन बातों की कोई शुद्ध समझ नहीं होती है। आखिरकार जब कुछ ऐसा होता है जिससे वे थोड़े नाराज हो जाते हैं तो उनके अंदर भरा हुआ गुस्सा तुरंत फूट पड़ता है : “मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने से क्या हासिल हुआ है? मेरी देह ने बहुत कुछ सहा है। मैंने कलीसिया द्वारा मुझे सौंपे गए सभी कर्तव्य निभाए हैं। चाहे कितना भी कठिन या थकाऊ काम क्यों न हो मैंने कभी शिकायत नहीं की; चाहे कितनी भी बड़ी कठिनाइयाँ हों मैंने कभी कुछ नहीं कहा। मैंने कभी परमेश्वर के घर से कोई माँग नहीं की। अपने महान प्रेम और महान निष्ठा से मुझे क्या हासिल हुआ? अगर मुझे ही कुछ नहीं मिला तो दूसरों को कुछ भी मिलने की उम्मीद तो और भी कम है!” उसके कहने का अर्थ है : “तुम लोगों ने उतना नहीं दिया जितना मैंने दिया है, तुमने वह कीमत नहीं चुकाई जो मैंने चुकाई है; अगर मुझे कुछ भी नहीं मिला तो तुम लोगों को क्या कुछ मिल सकता है? तुम सभी लोगों को सावधान रहना चाहिए; मूर्ख मत बनो!” क्या ऐसे लोगों में अंतरात्मा की कमी नहीं है? जिस व्यक्ति के पास अंतरात्मा नहीं हो वह हमेशा मूर्खतापूर्ण और जिद्दी बातें करता है। वह परमेश्वर द्वारा बोले गए अनेक सत्यों में से एक को भी नहीं समझ पाता, या उसकी अनेक शुद्ध और सकारात्मक बातों और कथनों को नहीं समझ पाता बल्कि वह हठपूर्वक अपने ही दृष्टिकोण से चिपके रहता है : “मैं परमेश्वर के लिए कष्ट सहता हूँ और कीमत चुकाता हूँ इसलिए परमेश्वर को मुझे आशीष देना चाहिए और मुझे दूसरों से ज्यादा प्राप्त करने देना चाहिए। अगर नहीं तो मैं अपना गुस्सा निकालूँगा, मैं फट पड़ूँगा, मैं गालियाँ दूँगा! मैं जो भी चाहूँ वह परमेश्वर को मुझे देना चाहिए और अगर मुझे वह नहीं मिलता तो परमेश्वर धार्मिक नहीं है और मैं कहूँगा कि मैंने कुछ भी प्राप्त नहीं किया है—यह स्पष्ट सत्य बोलना है!” क्या उसमें मानवता की कमी नहीं है? जिस व्यक्ति में मानवता की कमी है उसके शब्द निश्चित ही दृढ़ नहीं रह सकते, सत्य के अनुरूप होना तो दूर की बात है; उससे सत्य की अपेक्षा करना थोड़ा ज्यादा हो जाएगा। किसी व्यक्ति के बोले गए शब्द वैध अनुरोध, वैध कथन होने चाहिए, न कि तोड़-मरोड़कर पेश किए गए तर्क; चाहे कोई भी उसे सुने या उसका मूल्यांकन करे, उसे दृढ़ रहना चाहिए। लेकिन खराब मानवता वाले लोगों के शब्द और क्रियाकलाप दृढ़ नहीं रह सकते। जब वे नखरे दिखाते हैं और अपनी शिकायतें जाहिर करते हैं तो कुछ लोग सोचते हैं, “वे यह क्यों कहते हैं कि उन्होंने कुछ भी हासिल नहीं किया? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर के घर ने किसी तरह उनके साथ अन्याय किया हो? क्या ऐसा है कि परमेश्वर के घर के कुछ काम सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं और उन पर रोशनी नहीं डाली जा सकती? वह व्यक्ति आम तौर पर कठिनाइयाँ सहने और कीमत चुकाने में काफी सक्षम लगता है मगर आज वह इतना अधिक भड़का हुआ है, कहता है कि उसने कुछ भी हासिल नहीं किया; ऐसा लगता है कि उसे वाकई कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ है। क्या यह एक सभ्य व्यवहार वाले व्यक्ति को गुस्सा दिलाना नहीं है? मुझे सावधानी बरतनी चाहिए; मुझे उतनी कठिनाई नहीं सहनी चाहिए या उतनी कीमत नहीं चुकानी चाहिए जैसा कि मैं पहले अपने कर्तव्य निभाते समय करता था!” इस तरह कुछ भ्रमित लोग जिनमें विवेक की कमी होती है, प्रभावित हो जाते हैं।

जो लोग अक्सर नकारात्मकता फैलाते हैं, अगर उनके पास वास्तव में व्यक्त करने के लिए दृष्टिकोण या विचार हैं तो उन्हें पहले बोल लेने दो और फिर उनके विचारों को उजागर करो। उनके बोलने के बाद हर कोई समझ जाएगा : “उन्हें लगता है कि उन्होंने जो कीमत चुकाई है वह उस लाभ के बराबर नहीं है जो उन्होंने प्राप्त किया है। उन्हें लगता है कि उन्हें कोई लाभ नहीं मिला है और उन्हें नुकसान उठाना पड़ा है इसलिए वे अब अनिच्छुक हो गए हैं। वे परमेश्वर के बारे में शिकायत कर रहे हैं, परमेश्वर से अनुग्रह और लाभों की माँग करते हुए सौदेबाजी करने की उम्मीद कर रहे हैं!” क्या आम आदमी ऐसे व्यक्ति को बोलते हुए सुनकर उसे पहचान सकता है? जब हर कोई उसे पहचानने में सक्षम हो जाए तो उस व्यक्ति से कहो, “क्या तुम्हारी बात पूरी हो गई? अगर तुम्हारे पास कहने को और कुछ नहीं है तो अपना मुँह बंद रखो, नहीं तो खुद ही बेवकूफ बन जाओगे। अगर तुम्हारी दुष्ट प्रकृति सबके सामने उजागर हो जाती है और तुरंत उस पर लगाम नहीं लगाई जाती तो यह जन आक्रोश को भड़काएगी। जब हर कोई तुम्हें उजागर करेगा और ठुकराएगा तो पछतावे के लिए बहुत देर हो चुकी होगी।” उन्हें इस तरह से चेतावनी दो और ऐसा करके तुम उन्हें रोक दोगे। या फिर तुम यह भी कह सकते हो : “अगर तुम्हें लगता है कि तुमने सब खो दिया है तो तुम्हें परमेश्वर पर विश्वास रखने की जरूरत नहीं है। तुम्हें लगता है कि तुमने कुछ भी हासिल नहीं किया है तो तुम असल में क्या हासिल करना चाहते हो? अगर तुम धन कमाना और अमीर बनना चाहते हो या ऊँचा पद पाना चाहते हो तो मुझे माफ करना, मगर ये ऐसी चीजें नहीं हैं जिन्हें कोई चाहने मात्र से प्राप्त कर सकता है; ये परमेश्वर द्वारा निर्धारित मामले हैं। परमेश्वर का प्रकटन और मनुष्य के उद्धार का उसका कार्य लोगों को ये चीजें देने के लिए नहीं है। जहाँ तुम्हें ये सब मिले वहीं चले जाओ; परमेश्वर का घर संसार नहीं है, यह राक्षसों और शैतानों को संतुष्ट नहीं कर सकता। बेहतर होगा कि तुम परमेश्वर के घर से या भाई-बहनों से ऐसी चीजों की माँग न करो; अगर तुम परमेश्वर से ये चीजें माँगने की हिम्मत करते हो तो तुम उसके स्वभाव को नाराज करोगे और उसका गुस्सा भड़काओगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर ने लोगों को भरपूर अनुग्रह दिया है और उसने लोगों को उनके जीवन बनने के लिए और भी अधिक सत्य प्रदान किए हैं। सत्य प्राप्त करने को मूल्यवान नहीं समझना तुम्हारी मूर्खता और अज्ञानता है।” हर कोई उन्हें इस तरह से धिक्कारता और उनकी काट-छाँट करता है। इस अभ्यास के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है? या फिर तुम कह सकते हो : “परमेश्वर के घर पर तुम्हारा कोई उधार नहीं है। परमेश्वर के लिए तुम्हारा खपना और कर्तव्य निभाना तुम्हारी अपनी इच्छा थी। क्या तुम्हें कोई अंदाजा है कि जब से तुमने परमेश्वर पर विश्वास रखना और कर्तव्य निभाना शुरू किया है, तुमने परमेश्वर के कितने अनुग्रह का आनंद उठाया है? अगर तुममें जरा-सी भी अंतरात्मा है तो तुम्हें परमेश्वर से यह नहीं कहना चाहिए कि तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ है; तुम्हें परमेश्वर के समक्ष आकर अपनी समस्याओं को पहचानना चाहिए। अगर तुम वाकई यह मानते हो कि परमेश्वर सत्य है, परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह सत्य है और उसके वचन सत्य हैं तो तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए; तुम्हें शिकायत नहीं करनी चाहिए। तुम्हारा वर्तमान रवैया ऐसा नहीं है जो परमेश्वर में विश्वास रखने वाले व्यक्ति का होना चाहिए, न ही यह ऐसा रवैया है जो सत्य खोजने वाले व्यक्ति का होना चाहिए। तुम विद्रोह करने की कोशिश कर रहे हो, परमेश्वर के साथ अपनी पुरानी समस्याओं को फिर से उठाने की कोशिश कर रहे हो! तुम परमेश्वर से अलग होने और सारा हिसाब चुकता करने की कोशिश कर रहे हो! मगर न तो परमेश्वर पर और न ही परमेश्वर के घर पर तुम्हारा कुछ भी बकाया है। अगर तुम परमेश्वर के घर के साथ हिसाब चुकता करने जा रहे हो तो जल्दी करो और उसका घर छोड़ दो। परमेश्वर के घर को परेशान मत करो वरना तुम उसका क्रोध भड़का दोगे और वह तुम्हें मार डालेगा। यह कोई अच्छा परिणाम नहीं होगा। अगर तुममें जरा भी अंतरात्मा या विवेक है तो तुम्हें शांत होकर प्रार्थना करनी चाहिए और खोजना चाहिए, यह देखना चाहिए कि क्या परमेश्वर में अपने विश्वास के तुम्हारे अनुसरण के पीछे निहित परिप्रेक्ष्य में कोई गड़बड़ तो नहीं है और तुम जिस मार्ग पर चल रहे हो क्या वह वही है जिस पर परमेश्वर चाहता है कि तुम चलो। तुम्हारी परमेश्वर से इतनी सारी अनुचित माँगें हैं, इतनी बड़ी नाराजगी है; यह दर्शाता है कि तुम्हारे अनुसरण में कुछ गड़बड़ है। तुममें इतनी गहरी नाराजगी सिर्फ एक या दो दिन में पैदा नहीं हुई है; यह लंबे समय से बन रही है। या फिर ऐसा हो सकता है कि जब से तुमने परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया है तब से तुम गलत दृष्टिकोण के साथ उसके समक्ष आते रहे हो और उसने जो कुछ भी कहा उसके प्रति तुम सुन्न बने रहे और इसलिए तुम्हें कोई पछतावा या ऋणी होने की भावना महसूस नहीं होती है। शायद यही कारण है कि आज चीजें ऐसी हो गई हैं। बेहतर होगा कि तुम जल्द-से-जल्द अपराध कबूल करो और पश्चात्ताप करो; पश्चात्ताप करने के लिए अभी भी समय है। अगर तुम ऐसा नहीं करते हो और बुराई करना और नकारात्मकता फैलाना जारी रखते हो तो तुम दानव, मसीह-विरोधी बन जाओगे। जब परमेश्वर का घर तुम्हें बाहर निकाल देगा, तब तुम्हारे पास बचाए जाने का कोई मौका नहीं रहेगा—परमेश्वर का घर जिसकी निंदा करता है उसकी निंदा परमेश्वर भी करता है। हम तुम्हें यह चेतावनी कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखते हुए कष्ट सहने और कीमत चुकाने की तुम्हारी क्षमता को ध्यान में रखकर दे रहे हैं। हम तुम्हें एक मौका दे रहे हैं। अगर तुम अपने तरीके पर अड़े रहते हो और सलाह सुनने से इनकार करते हो और परमेश्वर का घर तुम्हें बाहर निकालने का फैसला करता है तो अब तुम भाई या बहन नहीं रह जाओगे। तुम्हारे पास बचाए जाने की कोई उम्मीद नहीं होगी। जब वह समय आएगा तो तुमने वाकई कुछ भी हासिल नहीं किया होगा। तब पछतावा मत करना। अब तुम्हारे लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि तुम अपने विचारों, दृष्टिकोणों और अपने अनुसरण की दिशा को बदल डालो। अब हमेशा कुछ हासिल करने की कोशिश मत करो। परमेश्वर के वचनों को सुनो; देखो कि परमेश्वर लोगों के भ्रष्ट स्वभावों के बारे में जो कुछ भी उजागर करता है उसमें से तुम कितना चिंतन-मनन कर सकते और कितना अपने भीतर जान सकते हो। क्या तुमने उन समस्याओं का समाधान किया है जिन्हें तुम अपने भीतर पहचान सकते हो जिन्हें तुम स्पष्ट रूप से देख सकते हो? क्या तुमने परमेश्वर के खिलाफ अपने विद्रोह को पहचाना है? क्या तुमने उसका समाधान किया है? अभी तुम्हारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि तुम हमेशा परमेश्वर से हिसाब-किताब बराबर करना चाहते हो—यह समस्या क्या है? क्या इस समस्या का समाधान नहीं किया जाना चाहिए? तुम हमेशा किसी इरादे से, किसी लेन-देन को ध्यान में रखते हुए परमेश्वर में विश्वास रखते हो; तुम हमेशा आशीष पाने को उत्सुक रहते हो, अपनी मेहनत, खुद को खपाने और दैहिक पीड़ा के बदले में स्वर्ग के राज्य के आशीषों का सौदा करने की उम्मीद करते हो—क्या यह डाकुओं वाला तर्क नहीं है? तुम लोग यह क्यों नहीं देखते कि परमेश्वर किस तरह के लोगों को आशीष देता है, लोगों से परमेश्वर की क्या अपेक्षाएँ हैं, परमेश्वर ने लोगों से क्या कहा है और परमेश्वर के वादे प्राप्त करने के लिए लोगों को क्या हासिल करने की आवश्यकता है? अगर तुम सच में परमेश्वर में विश्वास रखते हो और वाकई उद्धार पाना चाहते हो तो हमेशा परमेश्वर से कुछ पाने की कोशिश मत करो। तुम्हें यह देखना होगा कि तुम परमेश्वर के कितने वचनों को व्यवहार में लाए हो, और क्या तुम परमेश्वर के वचनों का पालन करने वाले व्यक्ति हो। परमेश्वर के वचनों का पालन करना परमेश्वर की अपेक्षाओं और सत्य सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करना और जीना है, न कि केवल थोड़ा दैहिक कष्ट सहना और थोड़ी कीमत चुकाना। तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव दूर नहीं हुआ है और तुम जो भी कीमत चुकाते हो और जो भी कष्ट सहते हो उसके पीछे तुम्हारे अपने इरादे हैं। परमेश्वर इसे स्वीकार नहीं करता; वह ऐसी कीमत नहीं चाहता। अगर तुम परमेश्वर से हिसाब-किताब निपटाने पर जोर देते हो, अगर तुम परमेश्वर से बहस करने और लड़ने पर जोर देते हो तो तुम उसके स्वभाव को नाराज कर रहे हो, वह तुम्हें तुम्हारे रास्ते चलने देगा, दंडित होने के लिए नरक में जाने देगा। यह बुराई करने का प्रतिफल है। तुमने परमेश्वर के बहुत-से आशीषों और अनुग्रहों का आनंद लिया है और उसने तुम्हें कुछ विशेष भौतिक चीजें दी हैं। तुम्हें वह पहले ही मिल चुका है जो तुम्हें मिलना चाहिए—तुम परमेश्वर से और क्या चाहते हो?” अगर तुमने इन वचनों पर संगति की तो क्या इन्हें सुनकर थोड़ी-बहुत अंतरात्मा और विवेक वाले व्यक्ति की शिकायती मनोदशा कुछ ठीक नहीं हो जाएगी? क्या ये शुद्ध समझ-बूझ वाले वचन सत्य के अनुरूप हैं? (हाँ।) अगर किसी व्यक्ति में मानवता और विवेक है तो वह उन्हें समझ और स्वीकार सकता है। केवल वे लोग जिनमें मानवता नहीं है, जो अंतरात्मा और विवेक से रहित हैं वे ही यह सोचेंगे कि ये वचन उन्हें छलने की कोशिश कर रहे हैं, वे बड़ी-बड़ी बातें हैं, विश्वास करने लायक नहीं हैं और वे प्रत्यक्ष अनुग्रह या भौतिक आशीषों की तरह मूर्त रूप से लाभकारी नहीं हैं। इसलिए इससे पहले कि वे उन मूर्त लाभों को देखें, तुम जो कुछ भी कहते हो वह बेकार है; वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे। वे शायद तुम्हारे सामने इसका विरोध न करें मगर तुम्हारी पीठ पीछे वे अभी भी अपने दिलों में विरोध करते रहेंगे, समय-समय पर नकारात्मकता फैलाएँगे, अपने योगदानों का प्रदर्शन करते रहेंगे, उन कठिनाइयों को गिनाते रहेंगे जो उन्होंने सहन की हैं, साथ ही यह भी बताएँगे कि परमेश्वर का घर उनके साथ कैसा व्यवहार करता है, वे परमेश्वर के घर को कैसे सहन करते हैं—वे हमेशा इन बातों को अपने दिलों में रखते हैं। उनके साथ जो कुछ भी हो, अगर उन्हें वह नहीं मिलता जो वे चाहते हैं तो उनका जानवर बाहर आ जाता है, वे क्रोध में फट पड़ते हैं, अपना अपमानजनक व्यवहार दिखाते हैं और नकारात्मकता फैलाते हैं। क्या तुम्हें अब भी ऐसे व्यक्ति को मनाने की कोशिश करनी चाहिए? अगर थोड़ा-सा उकसाने के बाद वे अभी भी वही चरित्र प्रदर्शित करते हैं, उनकी पुरानी समस्याएँ वापस आ जाती हैं और उनकी दानवी प्रवृत्ति फिर से भड़क जाती है तो क्या किया जाना चाहिए? तब प्रतिबंध लगाने का समय आ गया है। उन्हें पश्चात्ताप करने का मौका मत दो। उनका कुछ नहीं हो सकता; वे मूर्ख, जिद्दी अभागे लोग हैं। वे किस मायने में “मूर्ख, जिद्दी अभागे” हैं? इस मायने में कि वे सच्चे मार्ग को स्वीकार नहीं करते और न ही सकारात्मक चीजों को स्वीकारते हैं। इसके बजाय, वे तोड़-मरोड़कर पेश किए गए तर्कों, पाखंडों और भ्रांतियों को अपनाते हैं, मूर्त लाभ प्राप्त करने, फायदा लेने और नुकसान न उठाने के अपने दृष्टिकोण से चिपके रहते हैं। चाहे परमेश्वर का घर सत्य के बारे में कैसे भी संगति करे वे हमेशा कहते हैं, “ये सब अच्छी लगने वाली बातें हैं। कौन कुछ अच्छी बातें नहीं कह सकता? अगर तुम्हारा नुकसान हुआ होता तो तुम ऐसा नहीं कह रहे होते।” वे इस तरह के दृष्टिकोणों से हठपूर्वक चिपके रहते हैं और जब कोई अप्रिय घटना घटती है या वे नुकसान उठाते हैं तो उन्हें लगता है कि उन्होंने परमेश्वर में विश्वास रखकर कुछ भी हासिल नहीं किया है और वे फिर से नकारात्मकता फैलाने लगते हैं। क्या उन्हें अभी भी एक मौका दिया जाना चाहिए? अब और मौके नहीं मिलेंगे। अगर वे अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से नहीं निभाते हैं बल्कि दूसरों को बाधित करते हैं तो उन्हें तुरंत रोको और प्रतिबंधित कर दो। उन्हें खुलकर बोलने की अनुमति मत दो। अगर वे नकारात्मकता फैलाना और दूसरों को बाधित करना जारी रखते हैं तो उनके प्रति और अधिक शिष्टता मत दिखाओ। उन्हें जल्दी से दूर कर दो। यह प्रेमहीन होना नहीं है, क्या ऐसा है? (नहीं।) उन्हें संगति में चम्मच से सत्य खिलाया गया है मगर वे इसे ग्रहण नहीं कर सकते, चाहे इस पर कैसे भी संगति की जाए—यह क्या दर्शाता है? ऊपरी तौर पर यह व्यक्ति गैर-विश्वासी लगता है मगर सार में वह एक शैतान है। ऐसे लोग परमेश्वर से अनुग्रह और आशीष माँगने, लाभ प्राप्त करने परमेश्वर के घर आए हैं, और जब तक वे उन्हें प्राप्त नहीं कर लेते वे आराम नहीं करेंगे। अगर उन्हें कुछ समय तक विश्वास रखने के बाद कोई लाभ नहीं मिलता तो उनका शैतानी स्वभाव भड़क उठेगा; वे परमेश्वर के प्रति अपना असंतोष बाहर उड़ेलेंगे, बुराई करेंगे और बाधा पैदा करेंगे। यह एक राक्षस है। उन्होंने जो थोड़ा बहुत कष्ट सहा है और खुद को खपाया है वह मूल रूप से परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करना नहीं है। वे केवल सौदा करने, अपने लिए लाभ और आशीष पाने के लिए हैं। जब उन लोगों पर मुसीबत आती है जो हमेशा परमेश्वर में अपने विश्वास से कुछ हासिल करना चाहते हैं और वे नकारात्मक और कमजोर होते हैं तो वे हमेशा कहते हैं, “मैंने परमेश्वर में विश्वास रखकर कुछ भी हासिल नहीं किया है।” फिर, वे हार मानकर लापरवाही से काम करने लगते हैं, प्रतिशोध लेने की कोशिश करते हैं और अक्सर असंतोष की अपनी भावनाएँ बाहर उड़ेलने के लिए नकारात्मकता फैलाते हैं। हम पहले ही इस बारे में संगति कर चुके हैं कि ऐसे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए : उनसे सिद्धांतों के अनुसार निपटा जाना चाहिए। अगर वे सत्य स्वीकार सकते हैं और गारंटी दे सकते हैं कि वे भविष्य में और बाधा पैदा नहीं करेंगे तो उन्हें कलीसिया में बने रहने का एक और मौका दिया जा सकता है। अगर वे हमेशा कलीसिया के काम और जीवन को बाधित करने और नुकसान पहुँचाने के लिए तत्पर रहते हैं तो उन्हें दूर कर दो। यह कलीसिया के काम की रक्षा करने और यह सुनिश्चित करने के लिए है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग बिना किसी बाधा के कलीसियाई जीवन जी सकें। इसी सिद्धांत के आधार पर यह निर्णय लिया जाता है और यह तरीका अपनाया जाता है। यह उचित है।

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