अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (14) खंड एक
हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के बारे में कितने समय से संगति कर रहे हैं? (साढ़े चार महीनों से।) इस पर इतने लंबे समय तक संगति करने के बाद क्या अब तुम लोगों को अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जो विशिष्ट कार्य करना चाहिए, उसकी कुछ हद तक स्पष्ट समझ है? (हाँ, इस बारे में हमारी समझ कुछ हद तक स्पष्ट है।) यह पहले से अधिक स्पष्ट होनी चाहिए। मेरी संगति इतनी विशिष्ट और स्पष्ट है कि अगर कोई अभी भी नहीं समझता तो इसका मतलब होगा कि वह बौद्धिक रूप से अपंग है, है ना? (हाँ।) अब इसे देखते हुए क्या तुम्हें लगता है कि अच्छा अगुआ या कार्यकर्ता बनना आसान है? (यह आसान नहीं है।) इसके लिए कौन-से गुण होने आवश्यक हैं? (इसके लिए व्यक्ति में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए आवश्यक काबिलियत और मानवता के साथ-साथ सत्य वास्तविकता और जिम्मेदारी की भावना होनी आवश्यक है।) कम से कम, व्यक्ति में जमीर, विवेक और निष्ठा और उसके बाद काबिलियत और कार्यक्षमता होनी ही चाहिए। जब व्यक्ति में ये तमाम गुण होते हैं तो वह अच्छा अगुआ या कार्यकर्ता हो सकता है और अपनी जिम्मेदारियाँ निभा सकता है।
मद बारह : उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं; उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को बदलो; इसके अतिरिक्त, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें (भाग दो)
पिछली सभा में हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की बारहवीं मद पर संगति की थी : “उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं; उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को बदलो; इसके अतिरिक्त, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें।” इस मद में हमने मुख्य रूप से पहले इस बारे में संगति की थी कि कौन-से लोग, घटनाएँ और चीजें परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था को अस्त-व्यस्त करती हैं। अगर अगुआ और कार्यकर्ता कलीसिया के भीतर विघ्न-बाधाएँ डालने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों को रोकना और प्रतिबंधित करना चाहते हैं और इस कार्य को अच्छी तरह से करना चाहते हैं तो उन्हें पहले यह जानना और समझना चाहिए कि कौन-से लोग, घटनाएँ और चीजें परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था को अस्त-व्यस्त करती हैं। इसके बाद उन्हें इनका मिलान कलीसिया के वास्तविक कार्य और वास्तविक कलीसियाई जीवन में लोगों, घटनाओं और चीजों से करना चाहिए और फिर उन्हें रोकने और प्रतिबंधित करने जैसे विभिन्न कार्य करने चाहिए। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं से की जाने वाली एक अपेक्षा है। अपनी पिछली सभा में हमने कलीसिया के कार्य और कलीसियाई जीवन को अस्त-व्यस्त करने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों के बारे में संगति की थी, जिसकी शुरुआत कलीसियाई जीवन से संबंधित लोगों, घटनाओं और चीजों से की थी। हमने कलीसियाई जीवन में उन लोगों, घटनाओं और चीजों को भी वर्गीकृत किया था, जिनकी प्रकृति कलीसियाई जीवन में विघ्न-बाधाएँ डालने की होती है। कुल कितने मुद्दे थे? (ग्यारह। पहला, सत्य पर संगति करते समय अक्सर विषय से भटक जाना; दूसरा, लोगों को गुमराह करने और उनसे सम्मान प्राप्त करने के लिए शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलना; तीसरा, घरेलू मामलों के बारे में बकबक करना, व्यक्तिगत संबंध बनाना और व्यक्तिगत मामले सँभालना; चौथा, गुट बनाना; पाँचवाँ, रुतबे के लिए होड़ करना; छठा, कलह के बीज बोना; सातवाँ, लोगों पर हमला कर उन्हें सताना; आठवाँ, धारणाएँ फैलाना; नौवाँ, नकारात्मकता प्रकट करना; दसवाँ, निराधार अफवाहें फैलाना; और ग्यारहवाँ, चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करना।) छठा मुद्दा है कलह के बीज बोना, जिसकी प्रकृति अस्त-व्यस्त करने की है, लेकिन अन्य दुष्कर्मों की तुलना में यह एक छोटी समस्या है। इसे बदलकर “अनुचित संबंधों में लिप्त होना” करो तो इसकी प्रकृति कलह के बीज बोने से ज्यादा गंभीर होती है। सातवाँ मुद्दा लोगों पर हमला कर उन्हें सताना है। इसे बदलकर “आपसी हमलों और मौखिक झगड़ों में लिप्त होना” करो—क्या यह प्रकृति में ज्यादा गंभीर और ज्यादा विशिष्ट और प्रासंगिक नहीं है? (हाँ, है।) आपसी हमले और मौखिक झगड़े कलीसियाई जीवन में आम तौर पर पैदा होने वाली समस्या है जो विघ्न-बाधाओं से संबंधित है। इन दो मुद्दों को इस तरह से संशोधित करना उन्हें ज्यादा प्रासंगिक और कलीसियाई जीवन के भीतर उत्पन्न होने वाली समस्याओं के ज्यादा करीब बनाता है। ग्यारहवाँ मुद्दा चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करना है। इसे “चुनावों में हेरफेर और गड़बड़ी करना” में बदल दो। यह सिर्फ शब्दों का बदलाव है; इसकी प्रकृति वही रहती है, बस मात्रा तीव्र हो जाती है—यह मुद्दा अब विघ्न-बाधाएँ पैदा करने की प्रकृति से ज्यादा संबंधित हो गया है।
विभिन्न लोग, घटनाएँ और चीजें जो कलीसियाई जीवन को अस्त-व्यस्त करती हैं
V. रुतबे के लिए होड़ करना
पिछली बार हमने चौथे मुद्दे—गुट बनाना—तक संगति की थी। इस बार हम पाँचवें मुद्दे—रुतबे के लिए होड़ करना—पर संगति करेंगे। रुतबे के लिए होड़ करने का मामला ऐसी समस्या है, जो कलीसियाई जीवन में अक्सर पैदा होती है और यह ऐसी चीज है, जिसका दिखना असामान्य नहीं है। रुतबे के लिए होड़ करने के अभ्यास में कौन-सी दशाएँ, व्यवहार और अभिव्यक्तियाँ शामिल हैं? रुतबे के लिए होड़ करने की कौन-सी अभिव्यक्तियाँ परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधाओं की समस्या से संबंधित हैं? चाहे हम जिस भी मुद्दे या श्रेणी पर संगति करें, वह “उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करना है, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में गड़बड़ियाँ करते और बाधाएँ डालते हैं” के बारे में मद बारह में जो कुछ कहा गया है उससे संबंधित होनी चाहिए। इसे विघ्न-बाधा के स्तर तक पहुँचना चाहिए और इसी प्रकृति से संबंधित होना चाहिए—तभी वह संगति और विश्लेषण के लायक होता है। रुतबे के लिए होड़ करने की कौन-सी अभिव्यक्तियाँ परमेश्वर के घर के काम को अस्त-व्यस्त करने की प्रकृति से जुड़ी हैं? सबसे आम है लोगों का रुतबे के लिए कलीसिया के अगुआओं के साथ होड़ करना, जो मुख्य रूप से उनके द्वारा अगुआओं की कुछ चीजों और त्रुटियों का फायदा उन्हें बदनाम करने और उनकी निंदा करने के लिए उठाने में अभिव्यक्त होता है, और जानबूझकर उनकी भ्रष्टता का प्रकाशन और उनकी मानवता और काबिलियत की विफलताएँ और कमियाँ उजागर करने में प्रकट होता है, खासकर जब बात उनके द्वारा अपने काम में या लोगों को सँभालने में किए गए विचलनों और गलतियों की हो। यह रुतबे के लिए कलीसिया के अगुआओं के साथ होड़ करने की सबसे आम तौर पर दिखने वाली और सबसे मुखर अभिव्यक्ति है। इसके अलावा, ये लोग इस बात की परवाह नहीं करते कि कलीसिया के अगुआ अपना काम कितनी अच्छी तरह से करते हैं, वे सिद्धांतों के अनुसार कार्य करते हैं या नहीं, या उनकी मानवता के साथ कोई समस्या है या नहीं, और बस इन अगुआओं के प्रति अवज्ञाकारी होते हैं। वे अवज्ञाकारी क्यों होते हैं? क्योंकि वे भी कलीसिया-अगुआ बनना चाहते हैं—यह उनकी महत्वाकांक्षा, उनकी इच्छा होती है, इसलिए वे अवज्ञाकारी होते हैं। चाहे कलीसिया-अगुआ कैसे भी काम करते हों या कैसे भी समस्याओं से निपटते हों, ये लोग हमेशा उनसे संबंधित खामियाँ पकड़ते हैं, उनकी आलोचना और निंदा करते हैं, यहाँ तक कि चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने, तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने और चीजों को जितना हो सके, बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की हद तक चले जाते हैं। वे उन मानकों का उपयोग नहीं करते, जिनकी अपेक्षा परमेश्वर का घर अगुआओं और कार्यकर्ताओं से यह मापने के लिए करता है कि क्या यह अगुआ सिद्धांतों के अनुसार कार्य करता है, क्या वह सही व्यक्ति है, क्या वह सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति है और क्या उसमें जमीर और विवेक है। वे अगुआओं का मूल्यांकन इन सिद्धांतों के अनुसार नहीं करते। इसके बजाय वे अपने ही इरादों और लक्ष्यों के आधार पर लगातार मीन-मेख निकालते हैं और शिकायतें गढ़ते हैं, अगुआओं या कार्यकर्ताओं के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए चीजें ढूँढ़ते हैं, उनकी पीठ पीछे उनके द्वारा की गई उन चीजों के बारे में अफवाहें फैलाते हैं जो सत्य के अनुरूप नहीं होतीं या उनकी कमियाँ उजागर करते हैं। उदाहरण के लिए, वे कह सकते हैं कि : “अमुक अगुआ ने एक बार एक गलती की और ऊपरवाले ने उसकी काट-छाँट की थी और तुममें से किसी को इसके बारे में पता नहीं चला था। देखो, वह दिखावा करने में कितना माहिर है।” वे इस बात पर विचार और इस बात की परवाह नहीं करते कि क्या यह अगुआ या कार्यकर्ता परमेश्वर के घर द्वारा विकसित किए जाने का लक्ष्य है या क्या यह मानक स्तर का अगुआ या कार्यकर्ता है, वे बस उसकी आलोचना करते रहते हैं, तथ्यों को तोड़ते-मरोड़ते रहते हैं और उसकी पीठ पीछे उसके खिलाफ तुच्छ चालें चलते रहते हैं। और वे ये चीजें किस उद्देश्य से करते हैं? यह रुतबे के लिए होड़ करना है, है न? वे जो कुछ भी कहते और करते हैं, उसका एक उद्देश्य होता है। वे कलीसिया के काम पर विचार नहीं करते, और अगुआओं और कार्यकर्ताओं के बारे में उनका मूल्यांकन परमेश्वर के वचनों या सत्य पर आधारित नहीं होता, परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं या उन सिद्धांतों पर तो बिल्कुल आधारित नहीं होता जिनकी अपेक्षा परमेश्वर को मनुष्य से होती है, बल्कि यह उनके अपने इरादों और लक्ष्यों पर आधारित होता है। वे अगुआओं या कार्यकर्ताओं की हर बात का खंडन करते हैं और फिर अपनी “अंतर्दृष्टियाँ” पेश करते हैं। अगुआ और कार्यकर्ता जो कुछ भी कहते हैं, चाहे उसमें से कितना भी सत्य के अनुरूप क्यों न हो, वे उसे ज़रा भी नहीं स्वीकारते। नेता और कार्यकर्ता जो कुछ भी कहते हैं, वे उसे नकार देते हैं और अपनी अलग राय पेश करते हैं। खासकर जब कोई अगुआ या कार्यकर्ता खुलकर अपने बारे में बात करता है और आत्म-ज्ञान के बारे में बोलते हुए खुद को पूरी तरह से उजागर कर देता है, और बात करता है, तो वे और भी अधिक प्रसन्न होते हैं और सोचते हैं कि उन्हें मौका मिल गया है। कौन-सा मौका? उस अगुआ या कार्यकर्ता को बदनाम करने का मौका, हर किसी को यह बताने का मौका कि इस अगुआ या कार्यकर्ता की काबिलियत खराब है, यह कमजोर हो सकता है, यह भी भ्रष्ट मनुष्य है, यह भी अपने काम में अक्सर गलतियाँ करता है और यह किसी और से बेहतर नहीं है। यह उनके लिए उस अगुआ या कार्यकर्ता के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए कुछ ढूँढ़ने का मौका होता है, उस अगुआ या कार्यकर्ता की निंदा करने, उसे उखाड़ फेंकने और नीचे गिराने के लिए हर किसी को उकसाने का अवसर होता है। और इन सभी व्यवहारों और कार्यों के पीछे की प्रेरणा कुछ और नहीं बल्कि रुतबे के लिए होड़ करना होता है। अगर चुनाव के सिद्धांतों और परमेश्वर के घर में लोगों को विकसित कर उनका उपयोग करने के सिद्धांतों का पालन किया जाए तो सामान्य परिस्थितियों में ऐसे व्यक्ति कभी अगुआ या कार्यकर्ता नहीं चुने जाएँगे। यह ऐसी चीज है जिसकी वे असलियत जान चुके हैं और जिसे वे स्पष्ट रूप से समझ चुके हैं, इसलिए वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं पर हमला कर उनकी निंदा करने के लिए किसी भी उपाय का सहारा लेते हैं। कोई भी अगुआ या कार्यकर्ता क्यों न बने, वे बस उनके प्रति अवज्ञाकारी रहते हैं और हमेशा उनमें मीन-मेख निकालते रहते हैं और उनके बारे में गैर-जिम्मेदाराना, आलोचनात्मक टिप्पणियाँ करते रहते हैं। भले ही इन अगुआओं और कार्यकर्ताओं के क्रियाकलापों या शब्दों में कुछ भी गलत न हो, फिर भी वे हमेशा उनमें कोई न कोई गलती निकाल ही लेते हैं—असल में वे जो समस्याएँ निकालते हैं वे सैद्धांतिक नहीं, बल्कि विशुद्ध रूप से तुच्छ मुद्दे होते हैं। तो वे इन तुच्छ मुद्दों के पीछे क्यों पड़े हैं? वे ऐसी चीजों पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं की इतनी खुलकर आलोचना और निंदा कैसे कर पाते हैं? उनका एक ही लक्ष्य होता है और वह है सत्ता और रुतबे के लिए होड़ करना। चाहे परमेश्वर का घर नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के बारे में कैसे भी संगति करे, वे उन अभिव्यक्तियों को कभी खुद से नहीं जोड़ते, बल्कि उन्हें सभी स्तरों के अगुआओं और कार्यकर्ताओं से ही जोड़ते हैं। जब उन्हें कोई मेल मिल जाता है तो वे सोचते हैं, “अब मेरे पास सबूत है; मुझे आखिरकार उनके खिलाफ इस्तेमाल कर लाभ उठाने के लिए कुछ मिल गया है और मुझे एक अच्छा अवसर हासिल हो गया है।” फिर वे इन अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उजागर करने, उनकी आलोचना करने, उनका आलोचनात्मक आकलन करने और उनके द्वारा किए जाने वाले हर काम की निंदा करने में और भी ज्यादा बेलगाम हो जाते हैं। उनके द्वारा उठाए गए कुछ मुद्दे ऊपर से थोड़े समस्यामूलक लग सकते हैं, लेकिन सिद्धांतों के आधार पर मापने पर वे महत्वपूर्ण नहीं होते। तो वे उन्हें क्यों उठाते हैं? यह किसी अन्य कारण से नहीं बल्कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उजागर करने के लिए होता है, जिसका उद्देश्य उनकी निंदा कर उन्हें हराना होता है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता नकारात्मकता में धकेल दिए जाते हैं, दया की भीख माँगते हैं और उनके सामने झुक जाते हैं, अगर भाई-बहन देखते हैं कि ये अगुआ हमेशा नकारात्मक और कमजोर रहते हैं और कार्य करते समय अक्सर गलतियाँ करते हैं, और फिर उन्हें अगुआ नहीं चुनते, अगर इन अगुआओं के सत्य पर संगति करते समय अब भाई-बहन उन्हें ध्यान से नहीं सुनते और अगर इन अगुआओं द्वारा कार्य को कार्यान्वित करने पर अब लोग सक्रियता और ईमानदारी से सहयोग नहीं करते, तो रुतबे के लिए होड़ करने वाले लोग प्रसन्न होंगे और उनके पास लाभ उठाने का अवसर होगा। यही वह परिदृश्य है जिसे वे सबसे ज्यादा देखना चाहते हैं और जिसके घटित होने की सबसे ज्यादा उम्मीद करते हैं। यह सब करने के पीछे उनका क्या लक्ष्य होता है? यह सत्य समझने और नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों को पहचानने में लोगों की मदद करने के लिए नहीं होता, न ही यह लोगों को परमेश्वर के सामने लाने के लिए होता है। इसके बजाय, उनका उद्देश्य अगुआओं और कार्यकर्ताओं को हराना और गिराना होता है, ताकि हर कोई अगुआ के रूप में सेवा करने के लिए उन्हें ही सबसे उपयुक्त उम्मीदवार समझे। इस बिंदु पर उनका लक्ष्य पूरा हो जाता है और उन्हें बस भाई-बहनों द्वारा उन्हें अगुआ के रूप में नामित किए जाने का इंतजार करना होता है। क्या कलीसिया में ऐसे लोग हैं? उनके स्वभाव कैसे हैं? ये व्यक्ति स्वभाव से दुष्ट होते हैं, वे सत्य से बिल्कुल भी प्रेम नहीं करते और उसका अभ्यास भी नहीं करते; वे सिर्फ सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं। उन लोगों के बारे में क्या कहा जाए, जो कुछ सत्य समझते हैं और जिनमें थोड़ी भेद पहचानने की क्षमता होती है—क्या वे ऐसे लोगों को सत्ता पर काबिज होने देना चाहेंगे? क्या वे उनकी शक्ति के अधीन होने के लिए तैयार होंगे? (नहीं।) क्यों नहीं? अगर ज्यादातर लोग ऐसे व्यक्तियों का स्वभाव सार स्पष्ट रूप से देख सकते हैं तो क्या वे फिर भी उन्हें अगुआ चुनेंगे? (नहीं।) वे नहीं चुनेंगे, जब तक कि तमाम लोग अभी-अभी न मिले हों और एक-दूसरे से बहुत परिचित न हों। लेकिन जब वे परिचित हो जाते हैं और स्पष्ट रूप से देख लेते हैं कि कौन-से व्यक्ति खराब काबिलियत वाले हैं और कौन-से भ्रमित हैं, कौन-से दुष्ट और कपटी स्वभाव वाले बुरे लोग हैं, कौन-से लोग रुतबे के लिए होड़ करने और मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने के लिए उत्सुक रहते हैं, कौन-से लोग सत्य का अनुसरण कर सकते हैं और अपने कर्तव्य निष्ठापूर्वक निभा सकते हैं, इत्यादि, जब वे विभिन्न लोगों का प्रकृति-सार और श्रेणियाँ समझ लेते हैं, तब अगुआओं का चुनाव अपेक्षाकृत सटीक और सिद्धांतों के अनुसार होता है।
क्या ज्यादातर लोग किसी ऐसे व्यक्ति को अगुआ चुनना पसंद करेंगे जो हमेशा रुतबे के लिए होड़ करता रहता है या वे किसी ऐसे व्यक्ति को चुनेंगे जिसकी काबिलियत और कार्यक्षमता अपेक्षाकृत औसत है लेकिन जो मेहनती और दृढ़ है? जब यह स्पष्ट न हो कि इन दो व्यक्तियों का चरित्र कैसा है, उनका प्रकृति सार क्या है या वे किस मार्ग पर हैं तो ज्यादातर लोग किसे अगुआ चुनना पसंद करेंगे? (दूसरे को, उसको जो दृढ़ है।) ज्यादातर लोग दूसरे को चुनेंगे। जो लोग हमेशा रुतबे के लिए होड़ करते रहते हैं, उनकी अभिव्यक्तियाँ उनकी मानवता और सार का प्रमाण होती हैं। क्या ज्यादातर लोग उनकी अभिव्यक्तियों की असलियत जान नहीं सकते और उनकी अभिव्यक्तियों के भेद पहचान नहीं सकते? लोग कहेंगे, “यह व्यक्ति हमेशा कलीसिया की अगुआ के लिए मुश्किलें खड़ी करता रहता है; इसकी महत्वाकांक्षाएँ कलीसिया के अगुआ का रुतबा पाने पर टिकी हैं, यह उसकी जगह अगुआ बनना चाहता है। जबसे वह कलीसिया की अगुआ चुनी गई है, तभी से इसने हमेशा उसे निशाना बनाया और नापसंद किया है। यह हमेशा उसे ढिठाई से जवाब देता है और जो कुछ भी वह करती है, उसमें दोष निकालता है, जानबूझकर उसकी हरसंभव खामी पकड़ने की कोशिश करता है, उसकी आलोचना करता है और उसकी पीठ पीछे उसकी कमियाँ उजागर करता है। खास तौर पर सभाओं के दौरान या काम के बारे में संगति करते समय अगर वह एक पल के लिए भी अपनी बात स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं कर पाती तो यह बहुत ज्यादा अधीरता दिखाते हुए उसे बीच में ही टोक देता है। यहाँ तक कि वह उसका उपहास भी करता है, उसकी हँसी उड़ाता है, उसे ताने देता है और उस पर हँसता है; वह हर मोड़ पर उसके लिए मुश्किलें खड़ी करता है और उसे शर्मनाक स्थितियों में फँसाता है।” ये व्यवहार सबके सामने आने पर क्या ज्यादातर लोग इस व्यक्ति को पहचान नहीं पाएँगे? (हाँ, पहचान पाएँगे।) तो, क्या यह उसके अगुआ का पद हथियाने में सहायक है? यकीनन नहीं। रुतबे के लिए होड़ करने वाले ये लोग चतुर हैं या मूर्ख? स्पष्ट रूप से वे मूर्ख हैं, बेवकूफ हैं। एक और गंभीर समस्या है : ये लोग शैतान हैं और इनकी प्रकृति अपरिवर्तनीय है! सत्ता और रुतबे के लिए इनकी इच्छा बेकाबू है, इस हद तक बेकाबू है कि ये लोग अपना होशो-हवास तक खो बैठते हैं, जो सामान्य मानवता में पाई जाने वाली चीज नहीं है। यह इच्छा सामान्य मानवता की तार्किकता और जमीर की सीमाएँ पार कर जाती है और अनैतिकता के स्तर तक पहुँच जाती है। ये लोग समय, स्थान या संदर्भ की परवाह किए बिना इसी तरह से कार्य करते हैं, परिणामों पर भी विचार नहीं करते, अपने क्रियाकलापों के प्रभाव की परवाह करने की तो बात ही छोड़ दो। ये रुतबे के लिए होड़ करने वाले लोगों की सबसे विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ और नजरिये हैं। जब भी काम के बारे में कोई सभा या संगति होती है, जैसे ही तमाम लोग एक साथ आते हैं, ये व्यक्ति खीझ दिलाने वाली मक्खियों की तरह गड़बड़ी पैदा कर कलीसियाई जीवन, और सत्य पर संगति की सामान्य व्यवस्था खराब कर देते हैं। ऐसे व्यवहारों और नजरियों में इस व्यवस्था को अस्त-व्यस्त करने की प्रकृति होती है। क्या ऐसे व्यक्तियों को प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए? गंभीर मामलों में क्या उन्हें बहिष्कृत या निष्कासित नहीं किया जाना चाहिए? (हाँ, किया जाना चाहिए।) कभी-कभी बुरे लोगों को प्रतिबंधित करने के लिए सिर्फ कलीसिया के अगुआओं की ताकत पर निर्भर रहना कुछ हद तक कमजोर, छिट-पुट प्रयास हो सकता है—अगर बुरे लोगों द्वारा उत्पन्न विघ्न-बाधाओं की गंभीरता को स्पष्ट रूप से देखने और उनके सार को अच्छी तरह से समझने के बाद भाई-बहन ऐसे बुरे व्यक्तियों को रोकने और प्रतिबंधित करने में कलीसिया के अगुआओं के साथ एकजुट हो सकें, तो क्या यह ज्यादा प्रभावी नहीं होगा? (हाँ, होगा।) अगर कोई कहता है, “बुरे लोगों को प्रतिबंधित करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है, इसका हम साधारण विश्वासियों से कोई लेना-देना नहीं है। हम इसकी चिंता नहीं करेंगे! बुरे लोग कलीसिया के अगुआओं के साथ रुतबे के लिए होड़ करते हैं; वे उनके साथ रुतबे के लिए होड़ करते हैं जिनके पास रुतबा होता है। हमारे पास रुतबा नहीं है; वे हमसे कुछ छीनने की कोशिश नहीं करते। किसी भी सूरत में यह हमें प्रभावित नहीं करता। उन्हें जैसे चाहे होड़ करने दो। अगर कलीसिया के अगुआओं में योग्यता है तो उन्हें उनको प्रतिबंधित करना चाहिए; अगर नहीं है तो उन्हें जैसा वे चाहें वैसा करने देना चाहिए। इसका हमसे क्या लेना-देना है?” क्या यह दृष्टिकोण अच्छा है? (नहीं।) यह अच्छा क्यों नहीं है? (वे कलीसिया की सामान्य व्यवस्था कायम नहीं रखते।) इसे और ज्यादा उपयुक्त शब्दों में कहें तो, कलीसिया की सामान्य व्यवस्था किसे संदर्भित करती है? क्या यह सामान्य कलीसियाई जीवन को संदर्भित नहीं करती? (हाँ, करती है।) इसमें सामान्य और व्यवस्थित कलीसियाई जीवन शामिल है—इसमें परमेश्वर के वचनों को व्यवस्थित तरीके से खाना-पीना शामिल है, जिसका अर्थ है कि ऐसे कलीसियाई जीवन में जहाँ पवित्र आत्मा कार्य करता है, परमेश्वर मौजूद रहता है और मार्गदर्शन करता है, लोग प्रार्थना करते हुए परमेश्वर के वचन पढ़ सकते हैं, उन पर संगति कर सकते हैं और व्यक्तिगत अनुभव साझा कर सकते हैं, और साथ ही पवित्र आत्मा से प्रबोधन और मार्गदर्शन प्राप्त कर प्रकाश भी प्राप्त कर सकते हैं। परमेश्वर के चुने हुए लोगों को कलीसियाई जीवन में इसी का आनंद लेना चाहिए। अगर कुछ लोग इस सामान्य व्यवस्था को नष्ट करते हैं तो उन्हें सिद्धांतों के अनुसार रोका और प्रतिबंधित किया जाना चाहिए और बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। यह सिर्फ अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी और दायित्व नहीं है, बल्कि उन सभी की जिम्मेदारी और दायित्व है जो सत्य समझते हैं और भेद पहचानने की क्षमता रखते हैं। बेशक यह सबसे अच्छा होगा अगर कलीसिया के अगुआ इस कार्य की अगुआई कर सकें, भाई-बहनों के साथ इन व्यक्तियों के क्रियाकलापों की प्रकृति के बारे में संगति कर सकें और इस बारे में भी संगति कर सकें कि अपनी अभिव्यक्तियों के आधार पर ये व्यक्ति किस प्रकार के लोग हैं और भाई-बहनों को ऐसे व्यक्तियों का भेद कैसे पहचानना चाहिए और उनकी असलियत कैसे जाननी चाहिए। अगर इन बुरे लोगों को प्रतिबंधित नहीं किया गया और सभी भाई-बहन उनके द्वारा बाधित, गुमराह किए जाते रहे और ठगे जाते रहे और कलीसिया के अगुआ उन बुरे लोगों के बजाय खुद ही अलग-थलग पड़ गए तो यह कलीसिया पंगु हो जाएगी और यहाँ अनिवार्य रूप से अराजकता फैल जाएगी। क्या ऐसी परिस्थितियों में सामान्य कलीसियाई जीवन जारी रह सकता है? अगर यह जारी नहीं रह सकता तो क्या कलीसिया की सभाएँ तब भी फलदायी होंगी? क्या परमेश्वर के चुने हुए लोग तब भी ऐसी सभाओं से कुछ हासिल करेंगे? अगर परमेश्वर के चुने हुए लोग उनसे कुछ हासिल नहीं करते तो परमेश्वर ऐसी सभाओं को आशीष देता है या उनसे घृणा करता है? बेशक परमेश्वर उनसे घृणा करता है। पवित्र आत्मा के कार्य और परमेश्वर के आशीष के बिना सभाएँ कलीसियाई जीवन नहीं मानी जा सकतीं, बल्कि वे किसी सामाजिक समूह की बैठकें बन जाती हैं। क्या कोई अव्यवस्थित कलीसियाई जीवन पसंद करता है? क्या वह किसी के लिए शिक्षाप्रद या लाभदायक होता है? (नहीं।) अगर इस अवधि में तुमने किसी भी सभा से अपने जीवन प्रवेश के संदर्भ में कुछ भी हासिल नहीं किया है तो यह समय तुम्हारे लिए मूल्यवान या अर्थपूर्ण नहीं रहा है; तुमने यह समय गँवा दिया है। क्या इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हारे जीवन प्रवेश को नुकसान पहुँचा है? (हाँ।) अगर किसी सभा के दौरान बुरे लोग रुतबे के लिए होड़ कर रहे हों और किसी कलीसिया के अगुआ के साथ विवाद और बहस कर रहे हों और नतीजतन लोग चिंतित महसूस करने लगें, पूरी सभा में एक गंदा माहौल व्याप्त हो जाए और वह शैतान की दुष्ट ऊर्जा से भर जाए, और अगर, कौन सही है और कौन गलत जैसे विषयों पर बहस करने के अलावा कोई भी प्रार्थना करने और सत्य खोजने के लिए परमेश्वर के सामने नहीं आता और कोई भी सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करता तो इस तरह की सभा के बाद परमेश्वर में तुम्हारी आस्था बढ़ेगी या घटेगी? जब सत्य की बात आएगी तो क्या तुम उसे ज्यादा समझोगे और ज्यादा प्राप्त करोगे या विवादों से तुम्हारा मन परेशान हो जाएगा और तुम कुछ भी प्राप्त नहीं करोगे? कभी-कभी तुम सोच सकते हो, “मुझे समझ में नहीं आता कि लोग परमेश्वर में विश्वास क्यों करते हैं। परमेश्वर में विश्वास करने का क्या मतलब है? ये लोग इस तरह से कैसे व्यवहार कर सकते हैं? क्या ये अभी भी परमेश्वर में विश्वास करते हैं?” शैतानों और दानवों की एक गड़बड़ी के कारण लोगों के दिल परेशान और भ्रमित हो जाते हैं; उन्हें लगता है कि परमेश्वर में विश्वास करना व्यर्थ है और वे परमेश्वर में विश्वास करने का मूल्य नहीं जानते और उनके मन विचलित हो जाते हैं। अगर ऐसे मामलों के बारे में हर कोई सुन्न और धीमा होने के बजाय सतर्क और विशेष रूप से संवेदनशील और तेज हो सके तो जब बुरे लोग कलीसियाई जीवन में रुतबे के लिए होड़ करने के लिए अक्सर कुछ कहते या करते हैं तो ज्यादातर लोग तुरंत समझ जाते हैं कि कोई समस्या है जिसे हल करने की आवश्यकता है। वे तुरंत भेद पहचान जाएँगे कि इन स्थितियों में कौन हेरफेर कर रहा है और उसका स्वभाव सार क्या है, वे तुरंत मुद्दे की गंभीरता समझ जाएँगे और शीघ्र ही बुरे लोगों को रोकने और प्रतिबंधित करने में सक्षम होंगे, उन्हें कलीसिया से दूर कर देंगे और उन्हें कलीसिया के भीतर लोगों को बाधित और विवश करने से रोकेंगे। क्या यह ज्यादातर लोगों के लिए लाभदायक और शिक्षाप्रद नहीं होगा? (हाँ, होगा।)
अगर तुम लोग ऐसी परिस्थितियों का सामना करते हो जहाँ बुरे लोग रुतबे के लिए होड़ करते हैं तो तुम उनसे कैसे निपटोगे? बहुमत की क्या राय है? (हम इस व्यवहार को रोकेंगे।) बस रोकोगे? तुम इसे कैसे रोकोगे? क्या तुम उन्हें बोलने से मना करोगे या कहोगे, “हमें तुम्हारी बातें पसंद नहीं हैं, इसलिए भावी सभाओं में कम बोलना!” क्या यह काम करेगा? क्या वे तुम्हारी बात सुनेंगे? (नहीं।) तो तुम्हें क्या करना चाहिए? तुम्हें परमेश्वर के वचन के अनुसार उनके इरादों, प्रेरणाओं और प्रकृति सार को अच्छी तरह से उजागर कर उनका गहन-विश्लेषण करने की आवश्यकता है, ताकि भाई-बहन ऐसे लोगों और उनके क्रियाकलापों की प्रकृति को पहचानकर उनके प्रति सतर्क हो सकें, न कि खुशामदी इंसान बनें और सिर्फ कलीसिया के अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा बुरे लोगों को उजागर करने का इंतजार करें और तब कोई रुख अपनाएँ और कहें, “उन्हें अब सभाओं में नहीं आने देना चाहिए।” क्या खुशामदी इंसान होना अच्छा है? (नहीं, यह अच्छा नहीं है।) ऐसी स्थितियों से सामना होने पर क्या ज्यादातर लोग उन बुरे लोगों से भिड़ने के बजाय इन मामलों से बचना और दूर रहना पसंद नहीं करते, ताकि वे उन्हें अपमानित करने से बच सकें और बाद में उन्हें उनके साथ बातचीत करना असहज न लगे? क्या ज्यादातर लोग खुशामदी इंसान होने के सांसारिक आचरण के सिद्धांत का पालन नहीं करते? (हाँ, करते हैं।) तो यह एक समस्या है। मान लो किसी कलीसिया में अस्सी प्रतिशत लोग खुशामदी इंसान हैं और जब वे ऐसे बुरे व्यक्तियों को कलीसियाई जीवन में अगुआओं जैसे रुतबे, श्रेष्ठता और पदों के लिए होड़ करते देखते हैं तो कोई भी उन्हें रोकने या प्रतिबंधित करने के लिए खड़ा नहीं होता, बहुमत का दृष्टिकोण होता है : “परेशानी जितनी कम हो उतना अच्छा है। मैं उन्हें भड़काने का जोखिम नहीं उठा सकता, इसलिए क्या मैं उनसे बच नहीं सकता? मैं उनसे दूर ही रहूँगा और बस बात खत्म हो जाएगी। उन्हें होड़ करने दो; जब समय आएगा, परमेश्वर उन्हें दंड देगा। इसका मुझसे क्या लेना-देना है!” इन परिस्थितियों में क्या कलीसियाई जीवन अभी भी फलदायी हो सकता है? ज्यादातर लोग आलसी और आश्रित हैं; जब कलीसिया के अगुआ चुन लिए जाते हैं तो वे अपना काम पूरा हुआ मान लेते हैं और बस कलीसिया के अगुआओं द्वारा सब-कुछ किए जाने का इंतजार करते हैं। अगर तुम उनसे पूछते हो कि क्या उनकी कलीसिया में परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें वितरित कर दी गई हैं, क्या कलीसियाई जीवन में कोई विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न हुई हैं या क्या कोई हमेशा शब्द और धर्म-सिद्धांत झाड़ता है या रुतबे के लिए अगुआओं से होड़ करता है, तो वे कहते हैं, “इन सब चीजों के बारे में कलीसिया के अगुआ जानते हैं। मैं उनके बारे में नहीं जानता और मुझे उनके बारे में परेशान होने की जरूरत नहीं है। जब समय आएगा तो अगुआ उन्हें सँभाल लेंगे।” वे किसी भी चीज के बारे में चिंता या पूछताछ नहीं करते, उन्हें किसी भी चीज के बारे में जानकारी नहीं होती और वे कलीसियाई जीवन में शामिल किसी भी ऐसे व्यक्ति, घटना या चीज के बारे में न तो जानते हैं और न ही उसकी परवाह करते हैं, जिसके बारे में उन्हें जानना चाहिए। जब बात यह आती है कि कलीसिया में दिखाई देने वाले ये बुरे लोग रुतबे के लिए होड़ करते समय क्या कहते हैं और क्या करते हैं, साथ ही कलीसियाई जीवन में वे क्या व्यवधान और प्रभाव डालते हैं तो वे इसके प्रति पूरी तरह से उदासीन होते हैं और इन चीजों के बारे में जाँच-पड़ताल या पूछताछ नहीं करते। यह सब खत्म होने के बाद अगर तुम उनसे पूछते हो कि क्या उन्होंने भेद पहचानने की कोई क्षमता हासिल की है, क्या वे बुरे लोगों और उनकी अभिव्यक्तियों को पहचान सकते हैं तो वे इसके अलावा कुछ नहीं कह सकते, “कलीसिया के अगुआओं से पूछो; वे सब-कुछ जानते हैं।” क्या ऐसा व्यक्ति गुलाम नहीं है? वह गुलाम, कायर और बेकार है और अधम जीवन जी रहा है। जिन स्थितियों में बुरे लोग रुतबे के लिए होड़ करते है, उनके लिए विवेक, सार-सँभाल और समाधान की आवश्यकता होती है। यह सिर्फ कलीसिया के अगुआओं की जिम्मेदारी नहीं है; यह परमेश्वर के चुने हुए तमाम लोगों की भी जिम्मेदारी है। ज्यादातर अगुआ औसत व्यक्ति की तुलना में कुछ ज्यादा सत्य समझते हैं, इन मुद्दों के प्रति सतर्क रहते हैं और इन लोगों के क्रियाकलापों के उद्देश्य और उनका सार देख सकते हैं। साथ ही, ज्यादातर लोगों को व्यावहारिक रूप से सबक सीखने चाहिए और उनका विवेक बढ़ना चाहिए, और उन्हें कलीसिया में उन लोगों के साथ मिलकर एकजुट होना चाहिए जिनमें न्याय की भावना है और जो सत्य समझते हैं और सत्य का अनुसरण करते हैं, ताकि कलीसियाई जीवन को अस्त-व्यस्त करने वाले इन बुरे व्यक्तियों के खिलाफ उचित कार्रवाई कर सकें। बिना कुछ किए इंतजार करते रहने और सिर्फ थोड़ी-बहुत संगति सुनने, अपना दायरे का थोड़ा विस्तार करने और इन समस्याओं का सामना करते समय अपने दिल में इस मामले के बारे में कुछ जागरूकता रखने और फिर अपना कार्य हो गया, ऐसा समझने के बजाय उन्हें ऐसे लोगों को अलग-थलग कर देना चाहिए या हटा देना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि कलीसियाई जीवन सिर्फ कलीसिया के अगुआओं से ही संबंधित नहीं है और अच्छा कलीसियाई जीवन जीना और कलीसियाई जीवन की सामान्य व्यस्था बनाए रखना सिर्फ कलीसिया के अगुआओं की जिम्मेदारी नहीं है—इसे बनाए रखने के लिए सभी के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है।
जो लोग रुतबे के लिए होड़ करते हैं—पाँचवें मुद्दे में वर्णित प्रकार के लोग—कलीसियाई जीवन में अक्सर दिखाई देते हैं। उनकी सबसे स्पष्ट अभिव्यक्ति कलीसिया के अगुआओं के साथ रुतबे के लिए होड़ करना और उसके बाद उन लोगों के साथ रुतबे के लिए होड़ करना है जो अच्छी काबिलियत रखते हैं और सापेक्ष शुद्धता के साथ सत्य समझते हैं, जिनमें आध्यात्मिक समझ होती है और जो भाई-बहनों के बीच सत्य सिद्धांतों को समझते हैं और जो अक्सर इन व्यक्तियों को चुनौती देते हैं। ये लोग अक्सर कलीसियाई जीवन में कुछ शुद्ध समझ और प्रकाश पर संगति करते हैं, कुछ व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हैं जो मूल्यवान होते हैं और व्यावहारिक समझ देते हैं; इससे भाई-बहनों को बहुत मदद और शिक्षा मिलती है। उनकी संगति सुनने के बाद भाई-बहनों के पास एक मार्ग होता है, वे जानते हैं कि परमेश्वर के वचन का अभ्यास और अनुभव कैसे करें और अपनी समस्याएँ कैसे हल करें। वे परमेश्वर के मार्गदर्शन के लिए बहुत आभार महसूस करते हैं और साथ ही उन लोगों की प्रशंसा और सम्मान करते हैं जिनके पास सत्य की शुद्ध समझ और व्यावहारिक अनुभव होते हैं। इस प्रकार वे इन व्यक्तियों को बहुत सम्मान देते हैं और उनके करीब आ जाते हैं। कलीसियाई जीवन में परमेश्वर को प्रसन्न करने वाली इन सकारात्मक चीजों का उभरना रुतबे के लिए होड़ करने वाले लोग सबसे कम देखना चाहते हैं। जब भी वे किसी को व्यावहारिक अनुभवों पर संगति करते हुए देखते हैं तो असहज और ईर्ष्यालु और खास तौर से बेढंगे हो जाते हैं। अपने बेढंगेपन में वे अवज्ञा, तिरस्कार और असंतोष का व्यवहार प्रदर्शित करते हैं, अक्सर अपने दिलों में गणना करते हैं कि व्यावहारिक अनुभव रखने वाले और सत्य समझने वाले लोगों को कैसे मूर्ख दिखाया जाए, साथ ही भाई-बहनों को उनकी खामियाँ और कमियाँ कैसे दिखाई जाएँ ताकि वे उन्हें बहुत सम्मान न दें या उनके करीब न जाएँ। इसलिए रुतबे के लिए होड़ करने वाले लोग कुछ बातें कहने और कुछ क्रियाकलाप करने के लिए बाध्य होते हैं। वे उन लोगों पर हमला कर उन्हें बाहर कर देते हैं जो अनुभवजन्य गवाहियाँ साझा करते हैं और जिनकी सत्य पर लगातार संगति भाई-बहनों के जीवन प्रवेश में पोषण और सहायता प्रदान करती है। वे अक्सर सकारात्मक चरित्रों का गलत फायदा उठाकर उनकी कमियाँ उजागर करते हैं, जिसका उद्देश्य परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उन सभी से दूर करना होता है जो अक्सर सत्य पर संगति करते हैं और अनुभवजन्य गवाहियाँ साझा करते हैं। संक्षेप में, रुतबे के लिए होड़ करने वाले लोग नकारात्मक चरित्र होते हैं जो कलीसिया में घुसपैठ कर शैतान के सेवकों की भूमिका निभाते हैं।
परमेश्वर में विश्वास करने से पहले अपने अंतरंग संबंधों में गलतियाँ कर देने वाली एक बहन ने विश्वासी बनने के बाद पश्चात्ताप किया और फिर कभी ऐसी गलतियाँ नहीं कीं। उसे अपने पिछले अपराधों के बारे में खास तौर से पछतावा हुआ और इस प्रकार उसने भाई-बहनों के साथ खुलकर संगति की। खुलकर संगति करने का क्या उद्देश्य और सिद्धांत होता है? यह आपसी समझ को बढ़ावा देना और भाई-बहनों के बीच आंतरिक बाधाएँ खत्म करना होता है। ज्यादातर भाई-बहन सत्य समझने के बाद अपनी भ्रष्टता के खुलासों और पिछले अपराधों के बारे में खुलकर संगति कर सकते हैं और साथ ही परमेश्वर के उद्धार के लिए आभार और प्रशंसा भी व्यक्त कर सकते हैं। क्या इस तरह खुलकर संगति करना उचित है? (हाँ।) सत्य समझने के बाद ज्यादातर भाई-बहन इस तरह खुलकर संगति कर पाते हैं; क्या यह कोई समस्या है? (नहीं।) परमेश्वर में विश्वास करने से पहले अपने अंतरंग संबंधों या अन्य मामलों में कुछ गलतियाँ करना लोगों के लिए बहुत सामान्य बात है। कुछ लोग इन गलतियों के बारे में बोल सकते हैं, जबकि कुछ लोग खुद को छिपाते और छद्मवेश धारण करते हैं और चाहे दूसरे लोग खुलकर खुद को उजागर करने का कितना भी अभ्यास क्यों न करें, वे खुद कुछ नहीं कहते। वे मानते हैं कि ये गलतियाँ उनके वे शर्मनाक रहस्य हैं जिनके बारे में वे किसी को नहीं बता सकते, वरना उनकी प्रतिष्ठा, इज्जत और नेकनामी हवा हो जाएगी। लेकिन कुछ लोग चीजों को अलग तरह से समझते हैं; वे मानते हैं कि चूँकि वे परमेश्वर में विश्वास करने लगे हैं और उन्होंने परमेश्वर का उद्धार स्वीकार कर लिया है, इसलिए उन्हें अब अपने पिछले गलत कामों और स्वयं द्वारा अपनाए गए गलत मार्गों के बारे में खुलकर संगति करनी चाहिए और उन्हें विश्लेषण के लिए प्रस्तुत करना चाहिए और ये सिर्फ ऐसी चीजें हैं जिनसे वे शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए इंसानों के रूप में गुजरे हैं। अब वे खुलकर बात करने, खुद को उजागर करने और संगति करने में सक्षम हैं। चाहे अतीत का सारांश देना हो या उसे समाप्त करना हो, यह तथ्य कि ये लोग ऐसा कर सकते हैं, यह साबित करता है कि सत्य का अभ्यास करने के प्रति उनका क्या रवैया है : वे सत्य का अभ्यास करने के लिए तैयार हैं और उनमें इसका अभ्यास करने का संकल्प है। व्यक्ति वास्तव में किस तरह से अभ्यास करता है, यह उसकी समझ और संकल्प पर निर्भर करता है। लेकिन खुलकर बात करना और खुद को उजागर करना निश्चित रूप से कोई गलती नहीं है, पाप तो बिल्कुल नहीं है। इसका इस्तेमाल किसी के खिलाफ फायदा उठाने के लिए नहीं करना चाहिए और इसे वह सबूत तो बिल्कुल नहीं बनाना चाहिए, जिसे कोई दूसरा व्यक्ति उस पर हमला करने के लिए इस्तेमाल करे। ज्यादातर लोग इस मामले को सही तरीके से ले सकते हैं, यानी उनकी समझ शुद्ध और सत्य सिद्धांतों के अनुसार होती है। लेकिन बुरे व्यक्ति गलत इरादे रखते हैं; वे लोगों का मजाक उड़ाने, उनके साथ खिलवाड़ करने और उनकी आलोचना करने के लिए उनकी खामियाँ पकड़ने पर जोर देते हैं। ऐसे बुरे कर्म बिल्कुल स्पष्ट होते हैं। जो लोग खुद को उजागर करने, अपने बारे में खुलकर बोलने और अपनी भ्रष्टता और स्वयं द्वारा अपनाए गए गलत मार्गों पर संगति करने में सक्षम होते हैं, वे सत्य और परमेश्वर के वचनों के प्रति अपने नजरिये में धार्मिकता के लिए भूखे और प्यासे दिल रखते हैं। नतीजतन, जब वे परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं तो अनजाने ही कुछ व्यावहारिक समझ और अंतर्दृष्टियाँ प्राप्त कर लेते हैं। ये व्यावहारिक समझ और अंतर्दृष्टियाँ उन्हें अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों और असंख्य स्थितियों का सामना करने के लिए अभ्यास करने का मार्ग खोजने में मदद करती हैं, जिससे उन्हें सत्य की कुछ वास्तविक अनुभवजन्य समझ प्राप्त होती है। इन वास्तविक अनुभवजन्य समझ के बारे में संगति करना दूसरों के लिए शिक्षाप्रद और मददगार होता है; भाई-बहन इन व्यक्तियों को प्रशंसा और सम्मान से देखेंगे और कहेंगे, “तुम्हारे व्यावहारिक अनुभव वास्तव में अद्भुत हैं। उनके बारे में सुनने के बाद मैं गहराई से सहानुभूति रख सकता हूँ। मैं देखता हूँ कि तुम्हारा अभ्यास करने का तरीका सही है और उसे परमेश्वर का आशीष प्राप्त है। मैं भी अपनी धारणाएँ और पूर्वाग्रह छोड़ने और अपने मन का बोझ हटाने का इच्छुक हूँ; मैं तुम्हारी तरह एक सरल तरीके से सत्य का अभ्यास करना और परमेश्वर से प्रबोधन और मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहता हूँ। यही सही मार्ग है।” क्या ये अभिव्यक्तियाँ बिल्कुल सामान्य नहीं हैं? क्या भाई-बहनों के बीच ऐसा संबंध बनना बहुत सही नहीं है? यह एक तरह का अंतर्वैयक्तिक संबंध है जो उन लोगों के बीच पाए जाने वाले संबंध से भिन्न है जो परमेश्वर में विश्वास नहीं करते; यह ऐसा संबंध है जिसकी परमेश्वर अनुमति देता है और जिसे वह देखना चाहता है। जब भाई-बहनों के बीच ऐसा सामान्य संबंध मौजूद होता है, तभी कलीसियाई जीवन सामान्य हो सकता है। लेकिन कुछ बुरे या दुर्भावनापूर्ण इरादे वाले लोग हमेशा होंगे, जो व्यावहारिक अनुभव रखने वाले, धार्मिकता के लिए प्यासे और सत्य के लिए भूखे, और अनुभवी लोगों की प्रशंसा और सम्मान करने वाले लोगों पर हमला करने, उन्हें नीचा दिखाने और बहिष्कृत करने के लिए खड़े होते हैं। वे इन व्यक्तियों पर हमला क्यों करते हैं? उनका उद्देश्य कलीसिया के भीतर एक निश्चित रुतबे के लिए होड़ करने के अलावा और कुछ नहीं होता। चूँकि वे सत्य से प्रेम नहीं करते और न ही सत्य का अनुसरण करते हैं, इसलिए वे सभी को गुमराह करने और उनसे उच्च सम्मान प्राप्त करने के लिए नकली अनुभव गढ़कर सत्य का अनुसरण करने वाले होने का दिखावा करते हैं। यह वाँछित रुतबा और शक्ति प्राप्त करने के लिए लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने के शैतान के तरीकों का उपयोग करना है। ऐसी घटनाएँ हर जगह कलीसियाओं में अक्सर होती हैं और सभी को दिखाई देती हैं। अगर तुम लोग यह पाते हो कि कुछ भाई-बहनों में सत्य वास्तविकता है, वे सभाओं में परमेश्वर के वचनों की वास्तविक अनुभवजन्य समझ पर संगति कर सकते हैं और उन्होंने बहुत-से लोगों की प्रशंसा प्राप्त की है, फिर भी किसी कारण से उन पर हमला किया जाता है, उनसे बदला लिया जाता है और कुछ लोगों द्वारा उन्हें पीड़ित किया जाता है, तो तुम लोगों को सतर्क हो जाना चाहिए और पहचानना चाहिए कि किस तरह के लोग इस व्यवहार में शामिल हैं। सत्य का अनुसरण करने वालों पर अक्सर हमला कर उन्हें बहिष्कृत क्यों किया जाता है? यहाँ असल में चल क्या रहा है? यह निश्चित रूप से समस्या की तरफ इशारा करता है।
कलीसियाई जीवन में उन लोगों पर कड़ी नजर रखनी चाहिए जो अक्सर अगुआओं और कार्यकर्ताओं की गलतियाँ निकालते रहते हैं। इसके अलावा, कुछ लोग अक्सर उन लोगों का उपहास करते हैं, उनका मजाक उड़ाते हैं या उन पर आक्रमण करते हैं जो अपेक्षाकृत सत्य का अनुसरण करते हैं और परमेश्वर के वचनों के लिए लालायित रहते हैं। इन नकारात्मक चरित्रों की भी बारीकी से निगरानी करनी चाहिए और उन पर नजर रखनी चाहिए ताकि यह देखा जा सके कि उनकी अगली हरकतें क्या होंगी। अगर कोई व्यक्ति कलीसिया के अगुआओं की कमियाँ उजागर कर सकता है या कलीसियाई जीवन में भाग लेते हुए, बिना किसी उचित कारण के उन लोगों पर आक्रमण कर सकता है जिनमें सत्य वास्तविकता है तो निश्चित रूप से कोई समस्या है और इसके पीछे अवश्य ही कोई कारण है; यह निश्चित रूप से अकारण नहीं होता। भाई-बहनों को ऐसे व्यक्तियों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए क्योंकि यह कोई छोटी बात नहीं है। कभी-कभी बस व्यावहारिक अनुभव की गवाही सुनने और अपने दिल में पूर्ण आनंद महसूस करने के बाद या बस थोड़ा-सा प्रकाश और समझ प्राप्त करने के बाद व्यक्ति बुरे लोगों द्वारा बोले गए कुछ भ्रामक शब्दों से भ्रमित हो सकता है और इस तरह वह सब खो सकता है जो उसने अभी-अभी प्राप्त किया था। जब कोई व्यक्ति थोड़ी-सी आस्था बनाना शुरू ही करता है, तभी वह बुरे लोगों द्वारा परेशान किए जाने से अपनी मूल स्थिति में लौट जाता है; जब वह सत्य और परमेश्वर के वचन के लिए थोड़ी प्यास और साथ ही सत्य का अभ्यास करने का थोड़ा संकल्प पैदा करना शुरू ही करता है, तभी वह बुरे लोगों द्वारा परेशान किए जाने से अपनी हिम्मत हार जाता है और प्रेरणा खो देता है और फिर झगड़े के इस स्थान को जल्दी से छोड़कर चला जाना चाहता है। क्या ये परिणाम गंभीर हैं? ये बहुत गंभीर हैं। इसलिए कलीसिया में अगर कोई ऐसा व्यक्ति है जो हमेशा किसी ऐसी चीज पर विवाद शुरू कर देता है जो उसकी इच्छाओं के अनुरूप नहीं होती, इस बात पर बहस करता है कि कौन सही है, सही और गलत पर बहस करता है, यहाँ तक कि इस बात पर भी झगड़ता है कि कौन श्रेष्ठ है और कौन तुच्छ, तो ऐसा व्यक्ति कलीसिया के लिए खतरे की घंटी होना चाहिए। देखो कि वह कलीसिया में क्या भूमिका निभाता है, क्या नतीजे लाता है और इसके जरिये तुम देख सकते हो कि उसका प्रकृति सार क्या है।
परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।