अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (13) खंड तीन

III. घरेलू मामलों के बारे में बकबक करना, व्यक्तिगत संबंध बनाना और व्यक्तिगत मामले सँभालना

इसके बाद आओ, तीसरे मुद्दे पर संगति करते हैं : घरेलू मामलों के बारे में बकबक करना, व्यक्तिगत संबंध बनाना और व्यक्तिगत मामले सँभालना। तीसरे मुद्दे में निहित ये समस्याएँ, जिन पर हम अपनी संगति में बात करेंगे, स्पष्ट रूप से कलीसियाई जीवन में नहीं होनी चाहिए। कलीसियाई जीवन जीते समय लोग परमेश्वर के वचन खाने-पीने, परमेश्वर के वचन साझा करने, सत्य पर संगति करने और अपनी व्यक्तिगत अनुभवजन्य गवाहियों पर संगति करने आते हैं और साथ ही परमेश्वर के इरादे खोजते हैं और सत्य की समझ तलाशते हैं। तो क्या कलीसियाई जीवन में घरेलू मामलों के बारे में बकबक करना, व्यक्तिगत संबंध बनाना और व्यक्तिगत मामले सँभालना जैसी समस्याएँ रोकी और प्रतिबंधित की जानी चाहिए? (हाँ।) कुछ लोग कहते हैं, “क्या एक-दूसरे का अभिवादन करना ठीक नहीं है? अगर दो लोग अपेक्षाकृत घनिष्ठ और पहले से ही परिचित हैं और वे कलीसियाई जीवन के दौरान मिलते हैं और थोड़ी देर बातचीत करते हैं तो क्या यह घरेलू मामलों के बारे में बकबक करना है? क्या इसे भी प्रतिबंधित किया जाना चाहिए?” क्या तीसरा मुद्दा इस तरह की समस्याएँ संदर्भित करता है? (नहीं।) स्पष्ट रूप से, ऐसा नहीं है। अगर सरल, विनम्र अभिवादन पर भी प्रतिबंध लगाया जाएगा, तो लोग भविष्य में मिलने पर बोलने से डरेंगे। तीसरे मुद्दे—घरेलू मामलों के बारे में बकबक करना, व्यक्तिगत संबंध बनाना और व्यक्तिगत मामले सँभालना—में ये तीन ही पद शामिल हो सकते हैं, लेकिन ये पद जिन समस्याओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे सरल विनम्र अभिवादन या बातचीत नहीं हैं। वे वो बुरे क्रियाकलाप हैं जो कलीसियाई जीवन को गड़बड़ कर सकते हैं, उसमें बाधा डाल सकते हैं और उसे नुकसान पहुँचा सकते हैं। चूँकि वे विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करते हैं, इसलिए वे संगति करने लायक हैं। क्या संगति करनी चाहिए? आखिर कौन-सी समस्याएँ, लोगों द्वारा बोले गए कौन-से शब्द, उनके द्वारा की गई कौन-सी चीजें और लोगों के कौन-से भाषण, व्यवहार और आचरण कलीसिया के काम को अस्त-व्यस्त करने के स्तर तक पहुँच सकते हैं। आओ कुछ विशिष्ट उदाहरणों पर चर्चा करके यह देखें कि क्या ये समस्याएँ गंभीर हैं, क्या ये विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करती हैं और क्या इन्हें रोकना और प्रतिबंधित करना चाहिए।

कलीसियाई जीवन में कुछ लोग अक्सर तुच्छ पारिवारिक मामलों और अपनी धारणाओं और विचारों के बारे में इस तरह बात करते हैं मानो वे चर्चा के मुख्य विषय हों। एक महिला कहती है : “समाज अब बहुत अंधकारमय हो गया है; गैर-विश्वासियों के साथ मेलजोल रखना और उनके बीच रहना बहुत थकाऊ है। गैर-विश्वासी कुछ भी करने में सक्षम हैं; यह वाकई असहनीय है!” तब कुछ भाई-बहन कहते हैं, “हम परमेश्वर में विश्वास करते हैं; चाहे हम किसी भी परिस्थिति का सामना करें, हमें विवेक का इस्तेमाल करने और सत्य और अभ्यास के मार्ग खोजने में सक्षम होना चाहिए। अगर तुम इस तरह से जियोगी तो तुम थक नहीं जाओगी।” फिर भी वह कहती है, “परमेश्वर का वचन सत्य है, लेकिन यह रामबाण नहीं है। मुझे चिंता थी कि मेरे पति का किसी के साथ प्रेम-संबंध है और यह बात सच निकली—उसने मुझसे कम उम्र की और ज्यादा सुंदर लड़की ढूँढ़ ली। मैं जीवन कैसे बिताऊँगी?” इस तरह से बड़बड़ाते हुए वह दुखी होकर रोने लगती है। उसका इस तरह से बोलना दूसरे कुछ लोगों के दुख उभार देता है। उसके जैसी दुर्दशा वाले कुछ लोग तुरंत उसके साथ जुड़ जाते हैं और वहीं पर बातचीत करना शुरू कर देते हैं। दो घंटे की सभा के दौरान वह विस्तार से चर्चा करती है कि कैसे उसके पति के प्रेम-संबंध होने के बाद उसके और उसके पति के बीच बहस हुई, कैसे उसने अपनी साझा संपत्ति हस्तांतरित करने के तरीकों के बारे में सोचने की कोशिश की, कैसे उसने तलाक के बाद होने वाले नुकसान से बचने के लिए एक वकील से सलाह ली, इत्यादि। क्या यह ऐसा विषय है जिस पर कलीसियाई जीवन में चर्चा करनी चाहिए? (नहीं।) अगर तुम्हारे पारिवारिक मामले अनसुलझे हैं और सभाओं में भाग लेने में तुम्हारा जी नहीं लगता तो बेहतर है कि तुम मत आओ। कलीसिया का सभा-स्थल तुम्हारे लिए अपनी व्यक्तिगत भड़ास निकालने की जगह नहीं है, न ही यह घरेलू मामलों के बारे में बकबक करने की जगह है। अगर तुम घर पर कठिनाइयों का सामना कर रहे हो और इन मुद्दों से उलझना, विवश होना या प्रतिबंधित होना नहीं चाहते हो और परमेश्वर के इरादे समझने के लिए सत्य खोजना और ये सभी मुद्दे छोड़ना चाहते हो तो तुम सभा के दौरान अपनी समस्याओं पर संक्षेप में संगति कर सकते हो, ताकि भाई-बहन तुम्हारी मदद करने के लिए सत्य पर संगति कर सकें। इससे तुम्हें परमेश्वर के इरादे समझने और मजबूत बनने, इन मुद्दों से विवश नहीं होने, नकारात्मकता और कमजोरी से बाहर निकलने और अपने लिए सही और सबसे उपयुक्त मार्ग चुनने में मदद मिल सकती है। यही वह चीज है जिसके बारे में तुम्हें संगति करनी चाहिए। लेकिन अगर तुम ये चिड़चिड़ाहट पैदा करने वाली तुच्छ चीजें अपने घर से कलीसियाई जीवन में लेकर आते हो ताकि यहाँ उनका बोझ उतारकर उनके बारे में उपदेश दे सको और ज्यादातर लोग शर्मिंदगी के कारण तुम्हें रोकते-टोकते नहीं, बल्कि बस धैर्य जुटाकर तुम्हें इन परेशान करने वाली तुच्छ चीजों के बारे में बात करते हुए सुनने के लिए खुद को मजबूर करते हैं तो क्या यह उचित है? क्या यह प्रेम दिखाना है? क्या यह सहनशील और धैर्यवान होना है? तुम्हारा यह व्यवहार कलीसियाई जीवन में पहले ही बाधा डाल चुका है। इससे किसे कष्ट होता है? इससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को कष्ट होता है। खास तौर पर चीन की मुख्य भूमि के परिवेश में, जहाँ सभा करना आसान नहीं है और विश्वासियों को हर जगह छिपना पड़ता है, यहाँ तक कि उन्हें सब कुछ पहले से ही तय करना पड़ता है—अगर कोई व्यक्ति इन तमाम चिड़चिड़ाहट पैदा करने वाले पारिवारिक मामलों का बोझ सबके द्वारा सुनने और टिप्पणी करने के लिए सभा-स्थल पर उतारता है, तो क्या यह उचित है? ज्यादातर लोग सभाओं में सत्य और परमेश्वर के इरादे समझने के लिए आते हैं, न कि ये चिड़चिड़ाहट पैदा करने वाली तुच्छ बातें सुनने के लिए, न ही तुम्हें घरेलू मामलों के बारे में बकबक करते सुनने के लिए। कुछ लोग कहते हैं, “मेरा कोई और करीबी नहीं है, इसलिए भाई-बहनों से इस बारे में बात करने में क्या बुराई है?” तुम इस बारे में बात कर सकते हो, लेकिन समय महत्वपूर्ण है। सभा के समय से पहले या बाद में अगर दूसरा पक्ष सुनने के लिए तैयार हो तो तुम इस बारे में बात कर सकते हो; यह तुम्हारी स्वतंत्रता है और परमेश्वर का घर तुम्हें प्रतिबंधित नहीं करेगा। लेकिन ऐसे मामलों के बारे में बात करने के लिए तुम अब जो स्थान और समय चुनते हो, वह सही नहीं है। यह कलीसियाई जीवन में सभा के दौरान होता है और पारिवारिक मामलों के बारे में तुम्हारी अंतहीन बातचीत भाई-बहनों को लगातार परेशान करती है और इसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। क्या यह नियम नहीं है? बेशक यह नियम है। नियमों को नहीं समझना अस्वीकार्य है, क्योंकि यह बिना विवेक के क्रियाकलाप करने और दूसरों को परेशान करने की वजह बन सकता है। बाधा डालने वाले व्यवहार, भाषण और आचरण प्रतिबंधित किए जाने चाहिए; यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है, साथ ही यह सभी भाई-बहनों की भी जिम्मेदारी है। कुछ लोगों के पास आमतौर पर सभाओं में संगति करने के लिए बहुत कम सामग्री होती है, लेकिन जब भी उनके पारिवारिक जीवन में समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, वे इन चिड़चिड़ाहट पैदा करने वाली तुच्छ बातों का बोझ दूसरों पर उतार देते हैं ताकि वे सुन सकें। क्या दूसरे उन्हें सुनने के लिए मजबूर हैं? क्या वे तुम्हारे लिए सही-गलत का फैसला करने के लिए बाध्य हैं? उनकी ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। वे चीजें तुम्हारे निजी मामले हैं और तुम्हें उन्हें खुद सँभालना चाहिए; तुम्हें सभा के समय के दौरान अपने निजी मामलों के बारे में बात नहीं करनी चाहिए। यह नियमों के विरुद्ध और अतार्किक है और ऐसा व्यवहार प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

कुछ लोगों के बच्चे विश्वविद्यालय जाते हैं और वे अपने बच्चों की संभावनाओं के बारे में चिंता करना शुरू कर देते हैं, उनके लिए संपर्क तलाशते हैं और लगातार सोचते हैं, “हमारे परिवार में कोई सरकारी अधिकारी नहीं है; विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद मेरा बेटा किस तरह की नौकरी पा सकता है? उसके भविष्य का क्या होगा? क्या वह मेरे बुढ़ापे में मुझे सहारा दे पाएगा? मुझे यह सुनिश्चित करने का कोई तरीका खोजना होगा कि स्नातक होने के बाद उसे अच्छी नौकरी मिल जाए।” सभाओं में आकर वे कहते हैं, “मेरा बेटा बहुत आज्ञाकारी है। वह न सिर्फ ईश्वर में मेरी आस्था का समर्थन करता है, बल्कि विश्वविद्यालय की पढ़ाई पूरी करने के बाद खुद भी ईश्वर में विश्वास करना चाहता है। लेकिन एक बात है, भले ही हम ईश्वर में विश्वास करते हों, फिर भी हमें जीविका कमानी पड़ती है, है ना? पता नहीं, स्नातक होने के बाद उसे किस तरह की नौकरी मिल पाएगी। अभी अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियाँ कौन-सी हैं? फलाँ बहन, मैंने सुना है कि तुम्हारे पति एक प्रबंधक हैं। क्या वे इसमें किसी तरह की मदद कर सकते हैं? मेरा बेटा शिक्षित है, उसने दुनिया देखी है, उसमें मुझसे बेहतर काबिलियत है और वह कंप्यूटर का अच्छा जानकार है; वह भविष्य में परमेश्वर के घर में कर्तव्य निभा सकता है। लेकिन फिलहाल नौकरी मिलने का मामला पहले हल होना जरूरी है; अगर उसे नौकरी नहीं मिली तो यह उसके साथ अन्याय होगा।” हर बार जब वे सभा में आते हैं तभी ये मामले उठाते हैं और बातचीत अंतहीन चलती रहती है। वे देखते हैं कि कौन उनके साथ सहानुभूति रख सकता है और फिर उन लोगों के साथ संबंध बनाने की कोशिश करते हैं। सभाओं के दौरान वे उनके करीब जाने की कोशिश करते हैं, उनकी पसंद पूरी करते हैं, यहाँ तक कि उन्हें उपहार भी देते हैं, कभी-कभी उनके लिए स्वादिष्ट भोजन ले आते हैं या उन्हें छोटी-मोटी चीजें खरीदकर दे देते हैं। क्या यह व्यक्तिगत संबंध बनाना और आधार तैयार करना नहीं है? आधार तैयार करने का क्या उद्देश्य होता है? इसका उद्देश्य अपने व्यक्तिगत मामले सँभालने, अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए दूसरों का इस्तेमाल करना होता है। सभाओं के दौरान वे भाई-बहनों को अनुभवजन्य गवाही साझा करते हुए सुनने के इच्छुक नहीं होते, वे परमेश्वर के घर द्वारा उनके लिए जिस भी काम की व्यवस्था की जाती है उसे अनदेखा करते हैं और उन भाई-बहनों की बात सुनने के लिए तैयार नहीं होते जो उनकी हालत के बारे में उनकी मदद करने और उन्हें सलाह देने की कोशिश करते हैं। वे सिर्फ अपने बेटे को नौकरी मिलने के बारे में विशेष रूप से उत्साहित होते हैं और इसके बारे में अंतहीन बातें करते हैं। वे न सिर्फ जो भी दिख जाता है उसी से बात करते हैं, बल्कि सभाओं के दौरान भी बात करते हैं। संक्षेप में, वे इस मामले में विशेष रूप से सजग रहते हैं और इसमें बहुत मेहनत करते हैं। हर सभा में वे इस मामले पर बात करने के लिए भाई-बहनों का कुछ समय लेते हैं। यहाँ तक कि अपने अनुभवों के बारे में संगति करते समय भी वे इसका जिक्र करना नहीं भूलते और तब तक बोलते रहते हैं जब तक कि हर कोई अधीर नहीं हो जाए और घृणा से नहीं भर जाए, और ज्यादातर लोग उन्हें रोकने में बहुत शर्मिंदगी महसूस करते हैं। इस बिंदु पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए और उन्हें यह कहते हुए रोकना चाहिए, “हर कोई तुम्हारी स्थिति से अवगत है। अगर कोई भाई-बहन मदद करने का इच्छुक है तो यह तुम लोगों का व्यक्तिगत संबंध है। अगर दूसरे लोग मदद करने के इच्छुक नहीं हैं तो तुम्हें उन्हें मजबूर नहीं करना चाहिए। तुम्हारे बेटे को नौकरी खोजने में मदद करना भाई-बहनों का दायित्व या जिम्मेदारी नहीं है; यह तुम्हारा व्यक्तिगत मामला है और इसके लिए तुम्हें भाई-बहनों का परमेश्वर के वचन खाने-पीने और सत्य पर संगति करने का कीमती समय नहीं लेना चाहिए। अपने व्यक्तिगत मामलों के बारे में संगति करके दूसरों के साथ परमेश्वर के वचन खाने-पीने में हस्तक्षेप मत करो। सभा के बाद तुम जिससे चाहो उससे बात कर सकते हो, जिससे चाहो मदद माँग सकते हो, लेकिन इस बारे में बात करने के लिए सभा के समय का उपयोग मत करो। व्यक्तिगत मामले सँभालने के लिए सभा के समय का उपयोग करना विवेकहीन और शर्मनाक है; यह कलीसियाई जीवन में व्यवधान डालने की एक अभिव्यक्ति है। यह मामला यहीं रुक जाना चाहिए।” अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यही करना चाहिए।

सभाओं के दौरान कुछ बुजुर्ग महिलाओं को पता चलता है कि मेजबान परिवारों की युवा बहनें सुंदर और ईमानदार हैं और वास्तव में परमेश्वर में विश्वास और सत्य का अनुसरण करती हैं, इसलिए वे उन्हें पसंद करने लगती हैं और चाहती हैं कि वे युवा बहनें उनकी बहुएँ बन जाएँ। वे न सिर्फ सभाओं के दौरान हर वक्त इसकी चर्चा करती हैं, बल्कि जब भी वे सभाओं में आती हैं तो उन युवा बहनों पर थोड़ा उपकार कर देती हैं और उनका विशेष खयाल रखती हैं। यहाँ तक कि जब युवा बहनें असहमत होती हैं, तो भी वे लगातार उनका सिर खाती रहती हैं, उन्हें परेशान करती हैं और उनका पीछा नहीं छोड़तीं। वे किस तरह की महिलाएँ हैं? क्या वे घटिया चरित्र की नहीं हैं? चूँकि वे सब आस्था से बहनें हैं, इसलिए ज्यादातर लोग ये मुद्दे हल करने के लिए सिर्फ परमेश्वर के इरादों और उसके वचनों पर संगति कर सकते हैं। लेकिन कुछ लोगों में जमीर, विवेक और आत्म-जागरूकता की कमी होती है, उनकी व्यक्तिगत इच्छाएँ बहुत ज्यादा होती हैं और वे बिना किसी शर्म के, जो भी उनकी स्वार्थपूर्ण इच्छाएँ होती हैं उन्हें सफलतापूर्वक पूरा करना चाहते हैं। इस तरह सभाओं के दौरान कुछ लोग शिकार बन जाते हैं और असहज महसूस करते हैं। क्या यह दूसरों के लिए बाधाएँ डालना नहीं है? ऐसी स्थितियों में क्या करना चाहिए? कलीसिया के अगुआओं को कलीसियाई जीवन और भाई-बहनों के बीच इस तरह के मामले प्रतिबंधित कर हटाने के लिए आगे आना चाहिए। इसके अलावा, कुछ लोग सभाओं में तमाम तरह की मनःस्थितियाँ लेकर आते हैं—उनका बेटा कपूत है, उनकी बहू हमेशा सामान अपने मायके ले जाती है, सास-बहू के झगड़े...। वे इन चिड़चिड़ाहट पैदा करने वाली तुच्छ बातों के बारे में हर सभा में बात करते हैं और अपनी शिकायतों की शुरुआत इससे करते हैं : “परमेश्वर जो कुछ भी कहता है वह सच है; मानवजाति अब कितनी भ्रष्ट हो गई है! मेरे बेटे और बहू को ही देखो, उनमें जमीर की कमी है, विवेक की कमी है—यह मानवता की वही कमी है जिसके बारे में परमेश्वर बात करता है, वे जानवरों से भी बदतर हैं। मेमने भी पाले जाते समय घुटने टेकना जानते हैं, लेकिन मेरा बेटा पत्नी के आते ही माँ को भूल जाता है!” हर बार जब वे सभाओं में जाते हैं तो ये शिकायतें व्यक्त करते हैं। ऐसे लोग भी हैं जो सभाओं में आकर अपनी कंपनियों के मामलों के बारे में बात करते हैं—कौन दफ्तर में अच्छा प्रदर्शन करता है और ज्यादा बोनस पाता है; अगले महीने कौन पदोन्नत होगा जबकि उनके पदोन्नत होने की कोई उम्मीद नहीं है; किसका ड्रेसिंग सेंस सबसे अच्छा है और कौन सबसे ब्रांडेड सामान खरीदता है; किसने एक अमीर पति से शादी की है...। जो लोग लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास करते हैं और जिनके पास कुछ आधार होता है, वे ऐसी बात नहीं सुनना चाहते और इससे विकर्षित होते हैं। लेकिन कुछ नए विश्वासी, अभी तक जिनका आधार स्थापित नहीं हुआ है या जिनकी परमेश्वर के वचनों में रुचि विकसित नहीं हुई है, उन्हें ऐसे विषय उत्तेजक लगते हैं, वे मानते हैं कि उन्हें बातचीत करने और व्यक्तिगत संबंध बनाने की जगह मिल गई है। सभाओं के दौरान वे आपस में बात करते हैं और धीरे-धीरे दोनों लोग एक-दूसरे को अपने अनुरूप पाते हैं और एक संबंध बना लेते हैं और इस तरह उनमें एक निजी संबंध विकसित हो जाता है। सभा-स्थल लेनदेन का स्थान, लोगों के लिए बेकार की बकबक करने, व्यक्तिगत संबंध बनाने, व्यावसायिक सौदे करने और वाणिज्यिक कार्यों में शामिल होने का स्थान बन गया है। यही वे मुद्दे हैं जिन्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं को तुरंत पहचानकर रोकना चाहिए।

कुछ लोग अपने लिए कोई अच्छी नौकरी खोजने के उद्देश्य से सभाओं में आते हैं तो कुछ अपने पतियों की पदोन्नति में मदद करने के लिए, कुछ अपने बच्चों के लिए अच्छी नौकरी खोजने के लिए तो कुछ सस्ते दाम पर सामान खरीदने के लिए। कुछ अन्य लोग अपने परिवार में बीमार व्यक्ति के लिए कोई अच्छा मुख्य चिकित्सक खोजने आते हैं जिसके लिए उन्हें बहुत सारे उपहार नहीं देने पड़ते। संक्षेप में, ये छद्म-विश्वासी जो सत्य का अनुसरण नहीं करते और जिनके छिपे हुए इरादे होते हैं, कलीसिया की सभाओं के समय को व्यक्तिगत संबंध बनाने और व्यक्तिगत मामले सँभालने के लिए सर्वोत्तम समय पाते हैं। अक्सर परमेश्वर के वचनों पर संगति करने या इस दुष्ट दुनिया को और इस भ्रष्ट मानवजाति के सार को जानने की आड़ में वे अपनी कठिनाइयाँ और वे मामले उठाते हैं जिन पर वे चर्चा करना चाहते हैं और अंततः अपने छिपे हुए स्वार्थपूर्ण इरादे और वे व्यक्तिगत मामले थोड़ा-थोड़ा करके उजागर करते हैं जिन्हें वे पूरा करने का उद्देश्य रखते हैं। वे अपने इरादे उजागर करते हैं और दूसरों को यह गलत विश्वास दिलाते हैं कि वे कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, जिसका घुमा-फिराकर मतलब यह है कि सभी को बेशर्त और बदले में कोई उम्मीद किए बिना उनके प्रति प्रेम दिखाना चाहिए और उनकी मदद करनी चाहिए। वे परमेश्वर में विश्वास करने का झंडा फहराकर विभिन्न खामियों का फायदा उठाते हैं, सभा-स्थलों में ऐसे लोगों की तलाश करते हैं जिन्हें वे दोस्त बनाना चाहते हैं और उनकी भी जो उनके काम कर सकें। आंतरिक कीमत पर कार खरीदने के इच्छुक कुछ लोग भाई-बहनों के बीच कार की डीलरशिप में काम करने वाला या कार की डीलरशिप के मालिक से संबंध रखने वाला कोई व्यक्ति तलाशते हैं। जब वे अपने लक्ष्य की पहचान कर लेते हैं तो नजदीक जाकर उसके साथ घुलमिल जाते हैं और संबंध बना लेते हैं। अगर उस व्यक्ति को परमेश्वर के वचन पढ़ना पसंद हो तो वे अक्सर परमेश्वर के वचन साथ पढ़ने के लिए उसके घर चले जाते हैं और सभाओं में उसकी बगल में बैठते हैं और अपने संपर्क-सूत्रों का आदान-प्रदान करते हैं। फिर वे यह दृढ़ निश्चय करते हुए अपना आक्रामक अभियान शुरू करते हैं कि जब तक उनका उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता वे हार नहीं मानेंगे। ये सब वे समस्याएँ हैं जो अक्सर कलीसिया के भीतर और लोगों के बीच उभरती हैं। अगर ये समस्याएँ सभा-स्थलों और सभाओं के समय उठती हैं तो वे वस्तुतः कलीसियाई जीवन में विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करेंगी, जिससे कलीसियाई जीवन प्रभावित होगा। अगर किसी कलीसिया में लंबे समय तक कोई कलीसियाई जीवन नहीं होता, तो वह कलीसिया एक सामाजिक समूह बन जाती है, लेन-देन करने, व्यक्तिगत संबंध बनाने, पिछले दरवाजे से मदद प्राप्त करने और व्यक्तिगत मामले सँभालने का स्थान बन जाती है। इस स्थान की प्रकृति बदल जाती है, और इसके परिणाम क्या होते हैं? कम से कम, इससे कलीसियाई जीवन को नुकसान पहुँचता है, जिसका अर्थ है भाई-बहनों के साथ प्रार्थना करते हुए परमेश्वर के वचन पढ़ने और सत्य समझने के कीमती समय का नुकसान। इसके अलावा, और सबसे महत्वपूर्ण बात, इससे पवित्र आत्मा के कार्य करने, लोगों को सत्य समझने के लिए प्रबुद्ध करने के कीमती अवसर का नुकसान होता है। यह सब लोगों के जीवन प्रवेश को नुकसान पहुँचाता है। इसलिए, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लाभ और जीवन प्रवेश के लिए और सभी के जीवन के प्रति जिम्मेदार होने के लिए ऐसे व्यक्तियों को रोकना और प्रतिबंधित करना आवश्यक है; यह वह काम है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए। बेशक, अगर आम भाई-बहन इन लोगों और इनके क्रियाकलापों की असलियत देख सकें तो उन्हें भी उन्हें मना करने और “नहीं” कहने के लिए खड़े होना चाहिए। खास तौर पर कलीसियाई जीवन जीते हुए, जो लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण समय होता है, अगर कोई इन मामलों के बारे में बात करने और उन्हें सँभालने के लिए सभाओं का समय लेता है तो भाई-बहनों को उन्हें अनदेखा करने का अधिकार है, और इससे भी बढ़कर, ऐसी चीजों को रोकने और मना करने का अधिकार है। क्या ऐसा करना सही है? (हाँ।) कुछ लोगों को लगता है कि परमेश्वर के घर का ऐसा करना इंसानी गर्मजोशी की कमी दर्शाता है। क्या इंसानी गर्मजोशी सामान्य मानवता है? क्या इंसानी गर्मजोशी सत्य के अनुरूप है? अगर तुममें इंसानी गर्मजोशी है और तुम अपने व्यक्तिगत मामलों के लिए सभा का समय लेते हो, यहाँ तक कि ज्यादातर लोगों को तुम्हारा साथ देने और समर्थन करने को बाध्य करते हो और अपने व्यक्तिगत मामले सँभालने का अपना उद्देश्य हासिल करते हो और परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा परमेश्वर के वचन पढ़ने और सत्य पर संगति करने की सामान्य व्यवस्था में व्यवधान डालते हो जिससे उनका यह बहुमूल्य समय नष्ट होता है, तो क्या यह उनके लिए न्यायसंगत है? क्या यह इंसानी गर्मजोशी होने के अनुरूप है? यह सबसे अमानवीय और अनैतिक नजरिया है और लोगों को खड़े होकर इसकी निंदा करनी चाहिए। अगर अगुआ और कार्यकर्ता कमजोर, निकम्मे लोग हैं और ऐसे व्यवहार तुरंत रोकने और प्रतिबंधित करने में असमर्थ हैं, वास्तविक कार्य में संलग्न नहीं होते तो न्याय की भावना रखने वाले भाई-बहनों को ऐसा व्यवहार और यह माहौल कलीसिया में फैलने से रोकने के लिए एकजुट हो जाना चाहिए। अगर तुम परमेश्वर के वचन पढ़ने और सत्य पर संगति करने का अपना कीमती समय खोना नहीं चाहते, नहीं चाहते कि तुम्हारा जीवन प्रवेश बाधित हो और उसे नुकसान पहुँचे जिससे तुम्हारे उद्धार का मौका बर्बाद हो जाए तो तुम्हें इन घटनाओं को अस्वीकार करने, रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए खड़े होना चाहिए। ऐसा करना उचित और परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है। तुममें से कुछ लोग ऐसा करने में शर्मिंदा होते हैं; तुम शर्मिंदा हो सकते हो, लेकिन बुरे लोग नहीं होते। वे तुम्हारा सभा का कीमती समय—पवित्र आत्मा के कार्य करने और परमेश्वर द्वारा तुम्हें प्रबुद्ध करने का समय—ले लेने की हिम्मत रखते हैं। अगर तुम्हें उन्हें मना करना शर्मनाक लगता है तो तुम इसी लायक हो कि तुम्हारे जीवन को नुकसान पहुँचे! अगर तुम शैतानों, दानवों और छद्म-विश्वासियों के प्रति प्रेम दिखाने, उनकी मदद करने, दूसरों के लिए अपना बलिदान करने और सिद्धांतों की अवहेलना करने के इच्छुक हो तो तुम अपने जीवन के नुकसान के लिए किसे दोषी ठहरा सकते हो? इसलिए व्यक्तिगत संबंध बनाने और व्यक्तिगत मामले सँभालने के तमाम उदाहरण कलीसियाई जीवन से पूरी तरह से मिटा दिए जाने चाहिए। अगर कोई अपने ही ढर्रे पर चलता रहता है और सभा के दौरान अपने घरेलू मामलों के बारे में बकबक करने, बेकार की बातें करने, व्यक्तिगत मामले सँभालने या दूसरों के लिए नौकरी और रोमांटिक साथी खोजने और इस तरह से समय बिताने के लिए विभिन्न बहाने खोजने पर जोर देता है, तो ऐसे व्यक्ति से कैसे निपटना चाहिए? पहले, उसे रोकना चाहिए; अगर वह फिर भी न सुने तो उसे अलग-थलग करना चाहिए और उस पर प्रतिबंध लगाने चाहिए। अगर वह पर्दे के पीछे बाधाएँ डालता रहे, जिससे भी संभव हो साँठ-गाँठ करता रहे और हर जगह भाई-बहनों के सामान्य जीवन में परेशानी खड़ी करता रहे तो उसे बाहर निकाल देना चाहिए और उसे भाई या बहन नहीं मानना चाहिए। वह कलीसियाई जीवन जीने और सभाओं में भाग लेने योग्य नहीं है। ऐसे लोगों को प्रतिबंधित और अस्वीकृत कर देना चाहिए। बेशक यह भी एक महत्वपूर्ण कार्य है जिसे सभी स्तरों के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए। जब ऐसे मामले और परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले खड़े होकर उन्हें रोकना चाहिए। तुम्हें उन्हें कैसे रोकना चाहिए? तुम्हें उनसे कहना चाहिए, “क्या तुम जानते हो कि तुम्हारा यह व्यवहार पहले ही कलीसियाई जीवन में विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न कर चुका है? यह ऐसी चीज है जो सभी भाई-बहनों को घिनौनी लगती है और वे इससे घृणा करते हैं और परमेश्वर भी इसकी निंदा करता है। तुम्हें यह व्यवहार बंद कर देना चाहिए। अगर तुम अनुनय-विनय नहीं सुनते हो और अपने तरीके से चलते रहे तो तुम्हारा कलीसियाई जीवन बंद कर दिया जाएगा, तुम्हारी परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें छीन ली जाएँगी और कलीसिया फिर तुम्हें स्वीकार नहीं करेगी!” बेशक, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने छोटे आध्यात्मिक कद और सत्य की समझ की कमी के कारण कभी-कभार घरेलू मामलों के बारे में बात कर सकते हैं, किसी से संबंध बना सकते हैं या कोई छोटा-मोटा मामला सँभाल सकते हैं और स्थिति ज्यादा गंभीर नहीं होती। क्या यह ठीक है? (हाँ।) ऐसी परिस्थितियों में, जो सभी के लिए कोई बाधा पैदा नहीं करतीं, भाई-बहनों का एक-दूसरे की मदद करना और एक-दूसरे के प्रति थोड़ा प्रेम दिखाना स्वीकार्य है। लेकिन हम किस बारे में संगति कर रहे हैं? उस बारे में, जब ऐसे व्यवहार और क्रियाकलाप सामान्य कलीसियाई जीवन में पहले ही विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न कर चुके हों; ऐसे मामलों में शामिल लोगों को रोकना और प्रतिबंधित करना चाहिए। हमें उन्हें कलीसियाई जीवन को लगातार अस्त-व्यस्त करने नहीं देना चाहिए। ये कार्रवाइयाँ करना भाई-बहनों के जीवन प्रवेश के लिए लाभदायक है। कुछ लोग इसी तरह का व्यवहार प्रदर्शित करते हैं, लेकिन स्थिति गंभीर नहीं होती और इससे विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न नहीं होतीं; यह भाई-बहनों के बीच सामान्य बातचीत मात्र होती है, एक-दूसरे की मदद करने और सामान्य रूप से जानकारी के लिए परामर्श करने या उस सामान्य ज्ञान के बारे में पूछताछ करने के लिए होती है जिसे कोई नहीं समझता। अगर यह सभाओं का समय नहीं लेती और अगर दोनों पक्ष खुद को एक-दूसरे पर थोपे बिना इसके लिए सहमत और इच्छुक होते हैं और यह मेलजोल सामान्य मानवता के दायरे में आता है तो यह अनुमति योग्य है और कलीसिया इसे प्रतिबंधित नहीं करेगी। लेकिन बस एक बात है : अगर कलीसियाई जीवन में किसी के अविवेकपूर्ण भाषण और क्रियाकलाप से भाई-बहनों को परेशानी होती है या उनके लिए बाधा उत्पन्न होती है और कुछ लोगों को इससे घृणा महसूस हुई है और अपनी आपत्तियाँ जताई हैं तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह समस्या हल करने के लिए आगे आना चाहिए। या अगर दूसरे लोगों ने पहले ही किसी व्यक्ति की रिपोर्ट करके कहा है कि यह व्यक्ति सभा के दौरान परमेश्वर के वचनों पर संगति नहीं करता, बल्कि अपने घरेलू मामलों के बारे में बकबक करता है और व्यक्तिगत संबंध बनाता है, सभा-स्थल का उपयोग व्यक्तिगत संबंध बनाने और व्यक्तिगत मामले सँभालने, दूसरों से एहसान माँगने और जिनका भी शोषण कर सकता हो उनका शोषण करने के स्थान के रूप में करता है; और उन्होंने कहा है कि यह व्यक्ति निम्न चरित्र का, स्वार्थी, घृणित और नीच है और सत्य का अनुसरण नहीं करता बल्कि हर जगह लाभ खोजता है, अपने लाभ के लिए विभिन्न अवसर तलाशता है तो ऐसे व्यक्ति को अलग-थलग कर देना चाहिए।

कुछ लोग अपने काम करवाने के लिए कुछ धनी और प्रभावशाली भाई-बहनों का शोषण करते हैं और अगर उनके अनुरोध पूरे नहीं किए जाते तो वे अक्सर पीठ पीछे उनकी आलोचना करते हैं, वे दावा करते हैं कि इन लोगों में प्रेम नहीं है और ये सच्चे विश्वासी नहीं हैं, यहाँ तक कि वे उनकी रिपोर्ट भी करना चाहते हैं। क्या तुम लोगों का ऐसे व्यक्तियों से सामना हुआ है? क्या ऐसे लोगों पर ध्यान नहीं देना चाहिए? ऐसी परिस्थितियाँ सामने आने पर क्या करना चाहिए? अगुआओं और कार्यकर्ताओं को दखल देकर यह समस्या हल करनी चाहिए, सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भाई-बहन परेशान न किए जाएँ। क्या उनके लिए कुछ करने से किसी का इनकार करना गलत है? क्या उनकी मदद करने से इनकार करना सत्य का अभ्यास न करने या परमेश्वर के प्रति प्रेम न रखने के समान है? (नहीं।) किसी की मदद करना या नहीं करना उनकी स्वतंत्रता है; उन्हें चुनने का अधिकार है। परमेश्वर का घर यह निर्धारित नहीं करता कि भाई-बहनों को कलीसियाई जीवन के भीतर पारिवारिक कठिनाइयाँ हल करने में एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए। कलीसियाई जीवन पारिवारिक समस्याएँ हल करने का स्थान नहीं है, बल्कि परमेश्वर के वचन खाने-पीने और जीवन में बढ़ने का सभा-स्थल है। कुछ लोग कलीसियाई जीवन का उपयोग अपनी समस्याएँ हल करने के लिए करते हैं—इसके क्या परिणाम हो सकते हैं? क्या यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों के परमेश्वर के वचन खाने-पीने और खुद को सत्य से लैस करने को प्रभावित नहीं करता? अपनी निजी जीवन की समस्याएँ भाई-बहनों के साथ निजी तौर पर सुलझाई जा सकती हैं; समाधान के लिए उन्हें कलीसियाई जीवन में लाने की कोई जरूरत नहीं है। हर किसी को पता होना चाहिए कि जब व्यक्तिगत मामले सँभालना परमेश्वर के चुने हुए लोगों के कलीसियाई जीवन जीने में दखल देता है तो क्या परिणाम होते हैं। जब अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ऐसे मामलों का पता चलता है तो उन्हें इन मामलों को हल करने के लिए आगे आना चाहिए। उन्हें कलीसिया में उन लोगों की रक्षा करनी चाहिए जो सामान्य रूप से अपने कर्तव्य निभा सकते हैं, उन लोगों की रक्षा करनी चाहिए जो वास्तव में सत्य का अनुसरण करते हैं, बुरे लोगों को प्रतिबंधित करना चाहिए और उन्हें अपने लक्ष्य हासिल करने से रोकना चाहिए। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है। तीसरे मुद्दे के सामान्य मामलों से कैसे निपटा जाए, कौन-सी अभिव्यक्तियाँ गंभीर प्रकृति या परिस्थिति की हैं और कौन-से प्रकार और अभिव्यक्तियों से विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न होती हैं, इस बारे में स्पष्ट भेद करने चाहिए। जब किसी परिस्थिति की गंभीरता स्पष्ट रूप से पहचान ली जाए तो उससे उसकी प्रकृति के अनुसार निपटना चाहिए। यह ऐसी चीज है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को समझने की जरूरत है और यह ऐसी चीज भी है जिसे सभी को समझना चाहिए।

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