अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (13) खंड दो

II. लोगों को गुमराह करने और उनसे सम्मान प्राप्त करने के लिए शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलना

कलीसियाई जीवन में लोगों, घटनाओं और चीजों द्वारा विघ्न-बाधा पैदा किए जाने की दूसरी अभिव्यक्ति तब होती है जब लोग लोगों को गुमराह करने और उनसे सम्मान प्राप्त करने के लिए शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं। आमतौर पर अधिकांश लोग कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत बोल सकते हैं। अधिकांश लोगों ने ऐसा किया है। हमें किसी व्यक्ति द्वारा शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने की सामान्य घटना को उस व्यक्ति के छोटे आध्यात्मिक कद और सत्य की समझ की कमी का परिणाम मानना चाहिए। जब तक वे बहुत अधिक समय नहीं लेते, सोद्देश्य ऐसा नहीं करते, बातचीत पर एकाधिकार नहीं स्थापित करते, सभी से अपनी मर्जी के मुताबिक बोलने की छूट नहीं माँगते, सभी से अपनी बात सुनने की अपेक्षा नहीं करते, और दूसरों को गुमराह करने और उनसे सम्मान प्राप्त करने का प्रयास नहीं करते, तब तक यह विघ्न-बाधा पैदा करना नहीं है। क्योंकि अधिकांश लोगों में सत्य वास्तविकता नहीं होती, इसलिए शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलना बहुत सामान्य घटना होती है। कुछ हद तक अनुपयुक्त रूप से बोलना भी क्षम्य है; इसे माफ किया जा सकता है और इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। परंतु एक अपवाद है, जो तब होता है जब शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने वाला व्यक्ति जानबूझकर ऐसा कर रहा हो। वे जान-बूझकर क्या काम करते हैं? वह यह नहीं है कि वे जानबूझकर शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, क्योंकि उनके पास भी सत्य की वास्तविकता नहीं होती। उनके क्रिया-कलाप जैसे शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलना, नारे लगाना, और सिद्धांतों के बारे में बातें करना दूसरों के जैसा ही होता है। परंतु इसमें एक अंतर है : जब वे शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, तो वे हमेशा चाहते हैं कि दूसरे लोग उनका सम्मान करें, और वे हमेशा अपनी तुलना अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ और सत्य का अनुसरण करने वालों के साथ करने की इच्छा करते हैं। और इससे-भी-ज्यादा बेतुका यह है कि वे चाहे जो बोलें और चाहे जैसे बोलें उनका लक्ष्य लोगों को अपने पक्ष में खींचना और लोगों के दिलों को गुमराह करना होता है, यह सब कुछ सम्मान पाने के लिए होता है। सम्मान की तलाश का उद्देश्य क्या है? वे रुतबा और लोगों के दिलों में प्रतिष्ठा पाना चाहते हैं, भीड़ के बीच विशिष्ट व्यक्ति या अगुआ बनना चाहते हैं, कोई असाधारण या असामान्य व्यक्ति बनना चाहते हैं, विशेष व्यक्ति बनना चाहते हैं, जिनके शब्दों में अधिकार हो। यह स्थिति लोगों के शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने की सामान्य घटनाओं से अलग होती है और विघ्न-बाधा उत्पन्न करती है। वह क्या है जो इन लोगों को सामान्य रूप से शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उच्चारण किए जाने के मामलों से अलग करता है? यह उनकी बोलते रहने की स्थायी इच्छा है; जब भी मौका मिले, वे बोलेंगे। बोलते रहने की विशेष रूप से सबल इच्छा के चलते जब भी कोई सभा या लोगों का समूह एकत्रित होता है—जब तक उनके पास एक भी श्रोता होता है—वे बोलेंगे। बोलने का उनका उद्देश्य अपने अंदर की सोच, अपने लाभ, अनुभव, समझ या अंतर्दृष्टियों को भाई-बहनों के साथ साझा करना नहीं होता, ताकि सत्य की समझ पैदा की जा सके या सत्य का अभ्यास करने का कोई मार्ग तैयार किया जा सके। इसके बजाय, धर्म-सिद्धांतों का उच्चारण करने के अवसर का उपयोग करके वे प्रदर्शन करना चाहते हैं, दूसरों को दिखाना चाहते हैं कि वे कितने विद्वान हैं, दिखाना चाहते हैं कि उनके पास औसत व्यक्ति से ऊपर का दिमाग, ज्ञान और शिक्षा है। वे चाहते हैं कि उन्हें काबिल व्यक्तियों के रूप में जाना जाए, न कि साधारण व्यक्ति के रूप में। वे ऐसा इसलिए चाहते हैं ताकि किसी भी मामले में सब लोग उनकी ओर देखें और उनसे सलाह लें। वे चाहते हैं कि कलीसिया में किसी भी मुद्दे पर या भाई-बहनों के सामने आई किसी भी कठिनाई के समय दूसरों को सबसे पहले उनका ख्याल आए; वे ऐसा इसलिए चाहते हैं ताकि दूसरे लोग उनके बिना कुछ नहीं कर सकें, ताकि बिना उनसे परामर्श लिए वे किसी मामले को सँभालने की हिम्मत न करें और सारे लोग उनका आदेश पाने का इंतजार करें। यही वह प्रभाव है जो वे चाहते हैं। शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने का उनका उद्देश्य लोगों को फँसाना और उन्हें काबू में रखना होता है। उनके लिए, शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलना एक तरीका भर है, एक दृष्टिकोण है; उनके शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने का कारण यह नहीं है कि वे सत्य नहीं समझते, बल्कि इसके माध्यम से वे लोगों को दिल से उनकी प्रशंसा करने, उन्हें बड़ा समझने, और यहाँ तक कि उनसे डरने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं, ताकि वे उनके द्वारा बेबस और उनके वश में हो जाएँ। इसीलिए, इस प्रकार शब्द और धर्म-सिद्धांतों को बोलने से विघ्न-बाधा उत्पन्न होती है। कलीसियाई जीवन में ऐसे व्यक्तियों को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, और शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने के इस व्यवहार को रोका जाना चाहिए, इसे बेरोक-टोक जारी नहीं रहने दिया जाना चाहिए। कुछ लोग कह सकते हैं, “ऐसे लोगों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए; फिर भी क्या उन्हें बोलने का मौका देना चाहिए?” निष्पक्षता के लिहाज से, उन्हें बोलने का मौका दिया जा सकता है, लेकिन जैसे ही वे दिखावा करने के अपने पुराने तरीकों पर वापस लौटें, उनकी महत्वाकांक्षा फिर से फूटने वाली हो तो उन्हें तुरंत रोक देना चाहिए, ताकि वे सुस्पष्ट और शांत हो सकें। अगर वे अक्सर इस तरह से दिखावा करते हों, उनकी महत्वाकांक्षा अभी भी अक्सर प्रकट होती हो और उनकी इच्छाएँ नियंत्रित करना मुश्किल हो तो क्या करना चाहिए? उन्हें पूरी तरह से प्रतिबंधित कर बोलने से रोक देना चाहिए। अगर उनके बोलने पर कोई उन्हें सुनना न चाहे और उनका लहजा और उनकी चाल-ढाल, उनकी आँखों के भाव और उनके हाव-भाव देखने-सुनने में सभी को अरुचिकर लगते हों तो यह एक गंभीर समस्या है। यह उस बिंदु तक पहुँच जाता है जहाँ हर कोई विमुख हो जाता है। क्या ऐसे लोगों को, जो कलीसिया में एक विषमता की भूमिका निभाते हैं, मंच नहीं छोड़ देना चाहिए? यह उनके बाहर निकलने की भूमिका का समय है। क्या इसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने सेवा करना समाप्त कर दिया है? वे अपनी अंतिम सेवा कर चुके हों, तो क्या करना चाहिए? उन्हें दूर कर देना चाहिए। जब वे बोलना शुरू करते हैं तो ये उनकी वही पुरानी बातें होती हैं जिन पर प्रतिबंध लगाने से रोक नहीं लगी। हर कोई उन्हें सुनकर उकता जाता है। उनका घिनौना चेहरा, शैतान का चेहरा, दानव का चेहरा स्पष्ट दिखाई देने लगता है। ये किस तरह के लोग हैं? ये मसीह-विरोधी हैं। अगर उन्हें बहुत जल्दी बाहर निकाल दिया जाए, तो ज्यादातर लोग धारणाएँ पाल लेंगे और दिल से आश्वस्त नहीं होंगे और कहेंगे, “परमेश्वर के घर में प्रेम नहीं है, व्यक्ति की कुछ समय तक जाँच-परख किए बिना ही उसे बाहर निकाल दिया जाता है, उसे पश्चात्ताप करने का कोई मौका नहीं दिया जाता। उन्होंने बस बाहरी लोगों की कुछ बातें कहीं, थोड़ा भ्रष्ट स्वभाव प्रकट किया और थोड़े अहंकारी रहे, लेकिन उनके इरादे बुरे नहीं थे। उनके साथ इस तरह पेश आना अनुचित है।” लेकिन जब बहुमत बुरे लोगों के सार का भेद पहचानकर उसकी असलियत जान लेता है तो क्या ऐसे बुरे लोगों को कलीसिया में अपने अविवेकपूर्ण दुराचार और विघ्न-बाधाएँ जारी रखने देना उचित है? (नहीं।) यह सभी भाई-बहनों के साथ अन्याय है। ऐसे मामलों में उन्हें बाहर निकालने से समस्या हल हो जाती है। जब वे अपनी अंतिम सेवा कर चुके होते हैं और बहुमत उन्हें पहचान लेता है तो ज्यादातर लोगों को तुम्हारे उन्हें बाहर निकालने पर कोई आपत्ति नहीं होगी—वे शिकायत नहीं करेंगे या परमेश्वर को गलत नहीं समझेंगे। अगर अभी भी ऐसे लोग हों जो उनका बचाव करें तो तुम कह सकते हो : “उस व्यक्ति ने कलीसिया में कई बुरे काम किए थे। उसे मसीह-विरोधी के रूप में परिभाषित कर बाहर निकाला गया है। फिर भी तुम अभी भी उसके साथ इतनी ज्यादा सहानुभूति रखते हो; तुम अभी भी उसके द्वारा तुम्हारे प्रति दिखाई गई दयालुता के बारे में सोचते हो और उसके बचाव में आते हो। तुम बहुत भावुक हो रहे हो और तुममें सिद्धांत बिल्कुल नहीं हैं। इसके क्या दुष्परिणाम हैं? उससे थोड़ी-सी मदद मिल गई और तुम उसे नहीं भूल सकते; वह जो कुछ भी कहता है, तुम ईमानदारी से उसकी बात मानते हो, हमेशा उसके किए का ऋण चुकाना चाहते हो। अब उसे बाहर निकाल दिया गया है। क्या तुम उसके साथ जाना चाहते हो? अगर तुम भी बाहर निकाले जाना चाहते हो तो ऐसा ही सही।” क्या यह स्थिति को सँभालने का उचित तरीका है? इस समय यह उचित है। अगर ऐसे लोग दूसरों को गुमराह करने के लिए लगातार शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, लोगों को इतना असहनीय रूप से परेशान करते हैं कि वे अब सभाओं में नहीं आना चाहते तो क्या इसका कारण यह नहीं है कि अगुआ और कार्यकर्ता सुन्न और मंदबुद्धि हैं, उनमें भेद पहचानने की क्षमता नहीं है और वे इन लोगों से समय पर निपटने में असमर्थ हैं? यह उनकी अपने काम करने में असमर्थता है, अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने में विफलता है।

अब तक ज्यादातर लोगों में उन मसीह-विरोधियों का भेद पहचानने की कुछ हद तक क्षमता हो गई है जो शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं। जब तक वे अपना सिर नीचे रखते हैं तो अलग बात है लेकिन जैसे ही विभिन्न तरीकों से विशिष्ट रूप से पर्याप्त क्रियाकलाप करते हुए वे अपना सिर उठाते हैं और उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियाँ लोगों द्वारा उन्हें मसीह-विरोधियों के रूप में पहचानने के लिए पर्याप्त होती हैं तो और देरी या हिचक नहीं होनी चाहिए। उन्हें तुरंत प्रतिबंधित और अलग-थलग कर देना चाहिए। अगर उनकी सेवा का अब कोई मूल्य न हो तो उन्हें तुरंत बाहर निकाल देना चाहिए। ऐसे पाखंडी मसीह-विरोधियों को पहचानना आसान है, जो शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं क्योंकि ऐसे लोग स्पष्ट रूप से मसीह-विरोधी होते हैं। बात सिर्फ इतनी है कि ऐसा मसीह-विरोधी हमेशा शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने के अवसर का उपयोग करके लोगों को गुमराह करना चाहता है, ताकि सत्ता पर कब्जा करने का अपना लक्ष्य हासिल कर सके। यह एक तरीका है जिससे मसीह-विरोधी खुद को अभिव्यक्त करते हैं और इसे पहचानना आसान है। इस विषय पर पहले ही काफी चर्चा हो चुकी है, इसलिए यहाँ इस पर विस्तार से चर्चा नहीं की जाएगी। संक्षेप में, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ऐसे लोगों पर बारीकी से ध्यान देना चाहिए, उनकी हरकतों, विचारों और दृष्टिकोणों के साथ-साथ उनकी योजनाओं और क्रियाकलापों और उनके द्वारा फैलाई जाने वाली गलत टिप्पणियों को तुरंत और सटीक रूप से समझना चाहिए और उनकी सटीक जानकारी रखनी चाहिए, और तदनुसार उन पर तुरंत ध्यान देना चाहिए। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है। इसलिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कम से कम इस कार्य में आध्यात्मिक रूप से उत्सुक और मानसिक रूप से सावधान रहना चाहिए, न कि सुन्न और सुस्त। अगर कोई मसीह-विरोधी सभाओं के दौरान शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलकर बहुत-से लोगों को गुमराह करता है और कलीसिया के अगुआ अभी भी उसे मसीह-विरोधी के रूप में नहीं पहचानते और उसे तुरंत उजागर कर उससे निपट नहीं सकते तो यह अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने में उनकी विफलता है। अगर बहुत-से लोग पहले से ही मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए जा चुके हों और मसीह-विरोधियों को वहाँ शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हुए न सुन पाने के कारण उन्हें सभाएँ निरर्थक लगती हों और इसलिए वे सभाओं में भाग लेने के अनिच्छुक हों या परमेश्वर के वचन खाने-पीने और धर्मोपदेश सुनने के भी अनिच्छुक हों, बल्कि मसीह-विरोधियों को उपदेश देते सुनना पसंद करते हों—अगर कलीसिया के अगुआओं को तभी स्थिति की गंभीरता का एहसास हो और वे तभी कार्रवाई कर चीजों को सकारात्मक दिशा देना शुरू करें, जब मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को इस हद तक गुमराह और नियंत्रित किया जा चुका हो—तो इससे काफी देरी हो जाएगी! ऐसे नकली अगुआओं के सुन्न और मंदबुद्धि होने के कारण परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से कई लोगों के जीवन प्रवेश पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। जब मसीह-विरोधियों का गहन-विश्लेषण किया जाता है और उन्हें पहचानकर बाहर निकाला जाता है तो कुछ लोग गुमराह होकर उनका अनुसरण कर सकते हैं। कुछ लोग तो यहाँ तक कह सकते हैं, “अगर तुम उन्हें निकालोगे तो हम परमेश्वर में विश्वास नहीं करेंगे। अगर तुम उन्हें जाने पर मजबूर करोगे तो हम सब चले जाएँगे!” इस बिंदु पर यह पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है कि कलीसिया के अगुआ कोई वास्तविक कार्य बिल्कुल नहीं कर रहे हैं, जो कि अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने में उनकी गंभीर विफलता है।

कलीसियाई जीवन में पहली चीज जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करनी चाहिए, वह है विभिन्न व्यक्तियों की अवस्था की सटीक जानकारी रखना। उन्हें मेलजोल के जरिये ध्यानपूर्वक जाँच-परख कर यह समझना चाहिए कि कलीसिया के हर सदस्य ने कौन-सा मार्ग अपनाया है और उसका स्वभाव सार क्या है, और तुरंत और सटीक रूप से पता लगाना और पहचानना चाहिए कि कौन मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रहा है और किसमें मसीह-विरोधी का सार है। फिर उन्हें उन व्यक्तियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, उन पर बारीकी से ध्यान देना चाहिए और उनके द्वारा फैलाए गए दृष्टिकोणों और कथनों को, और इस बात को तुरंत समझना चाहिए कि वर्तमान में वे क्या कार्रवाई करने की तैयारी कर रहे हैं। जब वे लोगों को गुमराह कर उन्हें फँसाना और नियंत्रित करना चाहते हैं तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को निष्क्रिय होकर प्रतीक्षा करने के बजाय उन्हें रोकने के लिए तुरंत खड़े होना चाहिए। अगर तुम मसीह-विरोधियों को उजागर करने से पहले परमेश्वर द्वारा उन्हें प्रकट किए जाने या भाई-बहनों को गुमराह किए जाने या भाई-बहनों द्वारा उनके बारे में समझ और भेद पहचानने की क्षमता प्राप्त किए जाने तक प्रतीक्षा करते हो, तो इससे मामलों में पहले ही देरी हो चुकी होगी। इसलिए, मसीह-विरोधियों से सावधान रहने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पहले धावा बोलने और पहले से तैयारी रखने की पहल करनी चाहिए। पहला कदम उन लोगों को बढ़ावा देना और विकसित करना है जो अपेक्षाकृत ईमानदार हों और सत्य का अनुसरण कर सकते हों; यानी उन लोगों को सही ढंग से सींचना और आपूर्ति करना जो कार्य की विभिन्न मदों में अग्रणी भूमिका निभाते हों और उन्हें कलीसिया के स्तंभ बनने के लिए विकसित करना। सिर्फ इसी तरह से कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदें सुचारु रूप से और बिना किसी बाधा के आगे बढ़ सकती हैं और सुसमाचार का कार्य फैलता रह सकता है। चाहे जो भी कार्य हो, अगर उसमें अच्छा अगुआ नहीं है तो उसे करना बहुत मुश्किल हो जाता है। मसीह-विरोधियों की परमेश्वर के प्रति अवज्ञा की मुख्य अभिव्यक्ति परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह करके उनसे अपना अनुसरण करवाना है ताकि परमेश्वर के घर में कार्य की प्रत्येक मद अस्त-व्यस्त की जा सके। कलीसिया में मसीह-विरोधियों का पहला उद्देश्य न्याय की भावना रखने वाले लोगों और कार्य की विभिन्न मदों में अग्रणी भूमिका निभाने वाले लोगों को नुकसान पहुँचाना है। जिन लोगों को वे गुमराह कर नियंत्रित कर सकते हैं उन्हें वे अपने पक्ष में खींच लेते हैं और जिन्हें वे गुमराह या नियंत्रित नहीं कर सकते उन पर झूठे आरोप मढ़कर उन्हें फँसाते, गिराते और अंततः बाहर निकाल देते हैं। इससे मसीह-विरोधियों के लिए कलीसिया को नियंत्रित करने का मार्ग प्रशस्त होता है। वे पहले उन कुछ प्रमुख व्यक्तियों को गिराते हैं जो सत्य का अनुसरण कर सकते हैं; बाकी में से ज्यादातर वे होते हैं जो जिस ओर हवा बहती है उसी ओर रुख कर लेते हैं। इसके बाद उनके लिए विशेष रूप से अगुआओं और कार्यकर्ताओं से निपटना बहुत आसान हो जाता है। सत्य का अनुसरण करने वालों के सहयोग और मदद के बिना अगुआ और कार्यकर्ता अनिवार्य रूप से बिना किसी सहायता के अकेले ही लड़ रहे होते हैं। तुम प्रकाश में हो, जबकि मसीह-विरोधी अँधेरे में घात लगाए रहते हैं, किसी भी क्षण तुम पर गुप्त हमले करने, झूठे आरोप मढ़ने, तुम्हें फँसाने और बदनाम करने के लिए तैयार रहते हैं, तुम्हें इस तरह जमीन पर गिरा देते हैं कि तुम उठ न सको। फिर जब तुम गिरे होते हो, तब मसीह-विरोधी तुम्हें लात मारने के लिए लोगों को ढूँढ़ते हैं, जिससे तुम पूरी तरह से निराश और हताश हो जाते हो। इसलिए अगर सत्य का अनुसरण करने वाले लोग उनके खिलाफ एकजुट नहीं होते तो मसीह-विरोधियों का मुद्दा पूरी तरह से हल करना बहुत मुश्किल है। कलीसियाई जीवन में पहली चीज जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करनी चाहिए, वह है कलीसिया की सामान्य व्यवस्था बनाए रखना। मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने वाले इन बुरे लोगों के रहते कलीसियाई जीवन से कोई अच्छे परिणाम नहीं आएँगे, वह आसानी से सही रास्ते पर नहीं आ पाएगा और ज्यादातर लोग अक्सर परेशान और प्रभावित होंगे। इसलिए बुरे लोगों, मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने वालों को खोजना, उन्हें समझना, उनकी सटीक जानकारी रखना और उनका ठीक-ठीक पता लगाना कलीसियाई जीवन के संबंध में अगुआओं और कार्यकर्ताओं का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। इन लोगों को प्रतिबंधित करके या बाहर निकालकर ही कलीसियाई जीवन की सामान्य व्यवस्था बनाए रखी जा सकती है। अगर इन्हें प्रतिबंधित नहीं किया गया और जानबूझकर लापरवाही से काम करने और बाधाएँ डालने की अनुमति दी गई तो कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदें ठप हो जाएँगी। चूँकि ज्यादातर लोग उनका भेद नहीं पहचानते और वे उनके सार की असलियत नहीं जान पाते, यहाँ तक कि उनके विभिन्न भ्रामक विचारों और दृष्टिकोणों से परेशान और गुमराह भी हो जाते हैं, इसलिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए सही रास्ते पर आना और कलीसियाई जीवन में सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना मुश्किल होता है। अगर इस दौरान कलीसियाई जीवन बहुत सामान्य होता है तो परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर के वचन खाने-पीने और सत्य पर संगति करने में लाभ और प्रगति हासिल करते हैं और अंततः उनके पास कुछ जीवन प्रवेश और थोड़ी सत्य वास्तविकता होती है, लेकिन फिर वे मसीह-विरोधियों के शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने से गुमराह और परेशान हो जाते हैं, फिर वे न सिर्फ अभी-अभी प्राप्त की गई थोड़ी शुद्ध समझ और वास्तविक बोध खो देते हैं, बल्कि बहुत सारे मिथ्या पाखंड और भ्रांतियाँ भी ग्रहण कर लेते हैं—वे जल्दी ही फिर से भ्रमित हो जाते हैं, जैसे नाव खेने वाले नाव खेना बंद करते ही धारा द्वारा पीछे धकेल दिए जाते हैं, जो कि बहुत परेशानी वाली बात है। लोगों के लिए जीवन विकास साकार करना आसान नहीं है; थोड़ी-सी प्रगति देखने में भी वर्षों लग सकते हैं, जो बेहद धीमी है। लोगों के लिए वह थोड़ा-सा कद हासिल करना भी मुश्किल है जो उनके पास है—यह आसानी से प्राप्त नहीं होता। मसीह-विरोधियों के गुमराह करने और बाधाएँ डालने के कारण लोगों में जो थोड़ी-बहुत शुद्ध समझ होती है, वह खो जाती है। इससे भी ज्यादा गंभीर बात यह है कि शैतान और मसीह-विरोधियों द्वारा बाधा डालने के बाद लोग शैतान के फलसफे, शैतान के षड्यंत्रों और चालों और शैतान द्वारा उनके भीतर भरे गए जहर से लबालब हो जाते हैं। ये चीजें न सिर्फ लोगों को परमेश्वर को जानने और उसके प्रति समर्पण करने से रोकती हैं, बल्कि उलटे इनसे लोगों में परमेश्वर के बारे में धारणाएँ और गलतफहमियाँ पैदा हो जाती हैं और वे उससे दूर चले जाते हैं, जिससे लोगों का भ्रष्ट स्वभाव और भी गंभीर हो जाता है और वे परमेश्वर के साथ विश्वासघात करने में और अधिक सक्षम हो जाते हैं। इसके परिणाम बहुत गंभीर होते हैं। मुझे बताओ, ऐसे गंभीर परिणाम देखते हुए क्या उन लोगों को रोकना और प्रतिबंधित करना आवश्यक है जो शब्दों और धर्म-सिद्धांतों से लोगों को गुमराह करते हैं? क्या यह एक महत्वपूर्ण कार्य नहीं है जिसे कलीसिया के अगुआओं को करना चाहिए? (हाँ, है।) इसलिए बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों को प्रतिबंधित करना कलीसिया के लिए एक महत्वपूर्ण कार्य है। कुछ लोग कहते हैं, “मुझमें भेद पहचानने की क्षमता नहीं है। मुझे नहीं पता कि यह कैसे करना है।” असल में, अगर तुममें इच्छाशक्ति है, तुम ध्यान से जाँच-परख करते हो और हमेशा लोगों के इरादे और उद्देश्य जाँचते हो, तो तुम धीरे-धीरे भेद पहचानने की क्षमता विकसित कर लोगे। ये अविश्वासी और बुरे लोग जैसे ही खुद को दिखाते हैं, तो उनके इरादे और उद्देश्य होते हैं और उन सबका मकसद लोगों से अपना सम्मान करवाना, खुद को पुजवाना और लोगों को अपनी बातें सुनने के लिए प्रेरित करना होता है। अगर तुम उनके इरादे और उद्देश्य समझ सकते हो, तो यह पहले से ही कुछ विवेक का होना है। अगर तुम अनिश्चित रहते हो तो तुम इस मामले के बारे में कुछ ऐसे लोगों के साथ संगति कर सकते हो जो अपेक्षाकृत सत्य समझते हों। संगति के दौरान एक तो तुम सभी के द्वारा समझे गए सत्य और तथ्यात्मक साक्ष्य के विभिन्न अंशों के जरिये कोई निश्चय कर सकते हो। दूसरे, तुम—परमेश्वर के प्रबोधन और मार्गदर्शन तथा संगति के दौरान परमेश्वर द्वारा दिए गए प्रकाश के जरिये इस मामले की पुष्टि कर सकते हो, यह पुष्टि कर सकते हो कि क्या संबंधित व्यक्ति वास्तव में मसीह-विरोधी है और क्या वह वास्तव में ऐसा व्यक्ति है जिसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। संगति के जरिये अगर सभी को पुष्टि हो जाती है और वे सर्वसम्मति से सहमत हो जाते हैं और कहते हैं कि यह व्यक्ति वास्तव में मसीह-विरोधी है जिसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए—भाई-बहनों के साथ आम सहमति बनने और सभी के एक साझा परिप्रेक्ष्य पर पहुँचने के बाद—अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए अगला कदम सत्य सिद्धांतों के अनुसार इस व्यक्ति से जल्दी से निपटकर उसे बाहर निकाल देना है। यह सिद्धांत है। इस सिद्धांत को समझने के बाद लोगों को वास्तविक कार्य करना चाहिए, जिसका अर्थ है अपनी जिम्मेदारी पूरी करना और वफादार होना। सिद्धांतों को समझना धर्मोपदेश देने या उनसे अपना दिमाग भरने के लिए नहीं होता, बल्कि उन्हें अपने कर्तव्य के वास्तविक कार्य में लागू करने के लिए होता है। वास्तविक कार्य के दौरान, सिद्धांतों को समझना तुम्हें अपनी जिम्मेदारियाँ और दायित्व बेहतर और ज्यादा अच्छी तरह से पूरे करने देता है। इस प्रकार यह भी अगुआओं और कार्यकर्ताओं के कार्य का हिस्सा है। जब शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने वाले मसीह-विरोधी प्रकट होते हैं तो, कलीसियाई जीवन की सामान्य व्यवस्था बनाए रखने और भाई-बहनों को कलीसियाई जीवन सामान्य रूप से जीने और परमेश्वर द्वारा अपेक्षित सभी सत्यों में प्रवेश करने देने के लिए अगुआ और कार्यकर्ता उन मसीह-विरोधियों को रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए खड़े होने वाले पहले व्यक्ति होने चाहिए। उन मसीह-विरोधियों के लिए जो शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, यह उन्हें इसलिए प्रतिबंधित करने के बारे में नहीं होता कि उन्होंने कुछ गलत बातें कही होती हैं। अगर दीर्घकालिक जाँच-परख या बहुमत की प्रतिक्रिया और उनकी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ यह निर्धारित करने के लिए पर्याप्त हैं कि वे वाकई मसीह-विरोधी किस्म के लोग हैं तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उन्हें रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए आगे आना चाहिए और उन्हें बेरोकटोक आगे नहीं बढ़ने देना चाहिए। उन्हें खुली छूट देना दानवों, शैतानों, गंदे राक्षसों और बुरी आत्माओं को कलीसिया में बेलगाम छोड़ देने के बराबर है, जिसका अर्थ है कि ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारियों की उपेक्षा कर रहे हैं, अनिवार्य रूप से शैतान के लिए काम कर रहे हैं। कलीसियाई जीवन में विघ्न-बाधाओं के बारे में दूसरे प्रकार के मुद्दे पर संगति अब समाप्त होती है।

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