अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (12) खंड चार

II. भेंटों के व्ययों की परवाह या पूछताछ न करना

भेंटों की सुरक्षा के मामले में नकली अगुआओं की एक और अभिव्यक्ति यह है कि वे नहीं जानते कि भेंटों का प्रबंधन कैसे किया जाए। वे केवल इतना जानते हैं कि भेंटों को छुआ नहीं जाना चाहिए, कि मनमाने या गलत तरीके से उनका इस्तेमाल या गबन नहीं किया जाना चाहिए, कि वे पवित्र हैं, पवित्र वस्तु के रूप में अलग रखी गई हैं और उनके बारे में किसी को अनुचित विचार नहीं रखना चाहिए। लेकिन जब यह बात आती है कि भेंटों का एकदम ठीक से प्रबंधन कैसे किया जाए, उनकी सुरक्षा करने में अच्छा प्रबंधक कैसे बना जाए, तो इस काम के लिए उनके पास न तो कोई रास्ता होता है, न कोई सिद्धांत, न ही कोई विशिष्ट योजना या प्रक्रिया होती है। इसलिए भेंटों के पंजीकरण, मिलान और सुरक्षा के साथ ही आवक-जावक खातों की जाँच और व्यय की जाँच जैसे मामलों में ये नकली अगुआ काफी निष्क्रिय होते हैं। जब कोई अनुमोदन के लिए कुछ प्रस्तुत करता है, तो वे उस पर हस्ताक्षर कर देते हैं। जब कोई खर्च की प्रतिपूर्ति के लिए आवेदन करता है, तो वे मंजूर कर देते हैं। जब कोई किसी उद्देश्य के लिए पैसे के लिए आवेदन करता है, तो वे उसे दे देते हैं। वे नहीं जानते कि विभिन्न मशीनों और उपकरणों की सुरक्षा कहाँ की जा रही है। वे यह भी नहीं जानते कि उनका संरक्षक उपयुक्त है या नहीं, न ही यह कि वे कैसे जानें कि वे उपयुक्त हैं या नहीं; वे लोगों के दिलों को गहराई से नहीं समझ सकते और वे लोगों का सार नहीं देख सकते। इसलिए भले ही इन लोगों के प्रबंधन के दायरे में भेंटों की सभी जावकों का लेखा-जोखा होता है, उन खातों में व्यय के विवरण को देखा जाए तो कई व्यय अनुचित और अनावश्यक होते हैं—उनमें से कुछ तो बहुत ज्यादा और फिजूल होते हैं। इन अगुआओं और कार्यकर्ताओं की अनुमति से भेंटें गायब हो जाती हैं। बाहर से देखने में वे विशिष्ट कार्य करते प्रतीत होते हैं, लेकिन वास्तव में वे जो कर रहे होते हैं उसका कोई सिद्धांत नहीं होता। वे जाँच-परख नहीं कर रहे होते हैं—वे केवल औपचारिकताएँ निभा रहे होते हैं और नियमों-विनियमों का पालन कर रहे होते हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं। उनका यह काम भेंटों के प्रबंधन के मानकों पर खरा नहीं उतरता और इसके सिद्धांतों को तो कतई पूरा नहीं करता। इसलिए नकली अगुआओं के कार्य की अवधि में बहुत सारे अनुचित व्यय होते हैं। अगर चीजों की निगरानी और प्रबंधन के लिए कोई व्यक्ति मौजूद है तो ये अनुचित व्यय कैसे होते हैं? ऐसा इसलिए है कि ये अगुआ और कार्यकर्ता अपने कार्य में जिम्मेदारी नहीं लेते। वे औपचारिकता निभाते हैं और चीजों को लापरवाही से निपटाते हैं और वे सिद्धांतों के अनुसार काम नहीं करते। वे दूसरों को नाराज नहीं करते, चापलूसों की तरह काम करते हैं और उचित जाँच-परख नहीं करते। यहाँ तक संभव है कि भेंटों का प्रबंधन करने वालों में एक भी सही मायने में जिम्मेदार व्यक्ति न हो, न ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो सही मायने में जाँच-परख कर सके। नकली अगुआ इस बात पर ध्यान नहीं देते कि भेंटों की सुरक्षा करने वाले लोग उपयुक्त हैं या नहीं या उन लोगों की कलीसियाओं में कोई खतरनाक स्थिति तो नहीं है। उनके लिहाज से जब तक वे खुद सुरक्षित हैं, तब तक सब कुछ ठीक है। जब खतरा पैदा होता है तो वे सबसे पहले यह सोचते हैं कि भाग कर कहाँ जा सकते हैं और क्या उनके अपने धन पर छापा पड़ेगा, जबकि वे न तो भेंटों के ठिकाने के बारे में ध्यान देते हैं और न ही यह पता करते हैं कि भेंटों को कोई खतरा है या नहीं। इस घटना के बाद कुछ महीने या यहाँ तक कि आधा साल बीत जाने पर वे अंतरात्मा के दबाव में इस बारे में पूछ सकते हैं और यह पता चलने पर कि कुछ भेंटों पर बड़े लाल अजगर ने कब्जा कर लिया है, कुछेक को बुरे लोगों ने फिजूल उड़ा दिया है और कुछ अन्य का अता-पता नहीं है, थोड़े समय के लिए उन्हें बुरा लगेगा—वे थोड़ी-सी प्रार्थना करेंगे, अपनी गलती स्वीकार करेंगे और बस इतने पर सब खत्म हो जाएगा। ये लोग किस तरह के प्राणी हैं? क्या इस तरह से कार्य करने में कोई समस्या नहीं है? भेंटों के प्रति ऐसा रवैया रखने वाले व्यक्ति के साथ परमेश्वर कैसा व्यवहार करेगा? क्या वह उन्हें सच्चा विश्वासी मानेगा? (नहीं।) तब वह उन्हें क्या मानेगा? (गैर-विश्वासी।) परमेश्वर जब किसी को गैर-विश्वासी मानता है तो क्या उस व्यक्ति को कोई एहसास होता है? वे आत्मा के स्तर पर जड़ और मंदबुद्धि हो जाते हैं और जब वे कोई कार्य करते हैं, तो उनके पास परमेश्वर का प्रबोधन, मार्गदर्शन या कोई प्रकाश नहीं होता। उनके साथ जब कुछ होता है तो उन्हें परमेश्वर से सुरक्षा नहीं मिलती और वे अक्सर नकारात्मक और कमजोर हो जाते हैं, अंधकार में रहते हैं। यूँ तो वे अक्सर धर्मोपदेश सुनते हैं और अपने कार्य में कष्ट उठा सकते हैं और कीमत चुका सकते हैं, लेकिन वे कोई प्रगति नहीं करते और दयनीय दिखाई देते हैं। ये उनके “नतीजे” हैं। क्या यह सजा सहने से भी ज्यादा मुश्किल नहीं है? मुझे बताओ कि अगर परमेश्वर में किसी के विश्वास का यह नतीजा है तो यह खुशी और उत्सव का कारण है या दुःख और विलाप का? मेरी राय में तो यह अच्छा संकेत नहीं है।

नकली अगुआ कभी भी भेंटों के प्रबंधन के काम को गंभीरता से नहीं लेते। भले ही वे कहते हैं, “लोगों को परमेश्वर की भेंटें छूनी नहीं चाहिए; किसी को परमेश्वर की भेंटों का गबन नहीं करना चाहिए और ये बुरे लोगों के हाथों में नहीं पड़नी चाहिए” और वे ये नारे बखूबी लगाते हैं, उनके शब्द बहुत नैतिक और सभ्य लगते हैं, लेकिन वे मनुष्यों जैसा कार्य नहीं करते। भले ही वे भेंटों का गबन नहीं करते और उनके मन में भेंटों के बारे में अनुचित विचार नहीं आते या उन्हें हड़पने का कोई इरादा नहीं होता, और उनमें से कुछ तो कभी भी परमेश्वर के घर के पैसे का इस्तेमाल नहीं करते या अपने खर्च के लिए परमेश्वर की भेंटों को छूने की बजाय खुद अपने पैसे खर्च करते हैं, लेकिन अगुआ और कार्यकर्ता के तौर पर जब भेंटों के प्रबंधन की बात आती है तो वे कोई वास्तविक कार्य नहीं करते। वे भेंटों के खर्च की स्थिति के बारे में पूछने या भेंटों के खर्च की जाँच-परख करने जैसे सरल काम भी नहीं करते। ये साफ-साफ नकली अगुआ हैं। भेंटों के प्रति उनका रवैया यह होता है : “मैं उन्हें खर्च नहीं करता और मैं उनका गबन नहीं करता, और मैं इस बात की चिंता भी नहीं करता कि दूसरे लोग उन्हें कैसे खर्च करते हैं या उनका गबन करते हैं।” मैं इन नकली अगुआओं से कहता हूँ कि तुम्हारा यह उदासीन रवैया बहुत समस्याजनक है। भेंटों को खर्च न करना और उनका गबन न करना ही वह काम है जो लोगों को करना चाहिए, लेकिन एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तुम्हें इससे भी आगे जो करना चाहिए वह है भेंटों का अच्छी तरह से प्रबंधन करना, और फिर भी तुम ऐसा करने में विफल रहे हो। इसे जिम्मेदारी की उपेक्षा कहा जाता है। यह एक नकली अगुआ की अभिव्यक्ति है। हो सकता है कि तुमने एक भी पैसा खर्च न किया हो या एक भी भेंट का गबन न किया हो, लेकिन क्योंकि तुम वास्तविक कार्य नहीं करते और भेंटों के संबंध में कोई विशिष्ट प्रबंधन कार्य नहीं करते, इसीलिए तुम्हारा चरित्रांकन नकली अगुआ के रूप में किया जाता है और ऐसा करना उचित और तर्कसंगत है। कुछ अगुआ कभी भी कोई भेंट नहीं लेते या उसका उपयोग नहीं करते—भले ही अन्य सभी अगुआ और कार्यकर्ता उनका उपयोग करते हों, वे नहीं करते और जब परमेश्वर का घर उन्हें कुछ देने की व्यवस्था करता है तो वे उसे मना कर देते हैं। वे काफी साफ-सुथरे और लालच-मुक्त दिखते हैं, लेकिन जब उन्हें भेंटों के प्रबंधन की व्यवस्था दी जाती है, तो वे कोई विशिष्ट कार्य नहीं करते हैं। कोई भी भेंट खर्च करे, वे उस पर हस्ताक्षर कर देते हैं—वे कोई पूछताछ तक नहीं करते और इसके बारे में एक शब्द भी नहीं कहते। हालाँकि ये लोग भेंटों का एक पैसा भी गबन नहीं करते, लेकिन उनके प्रबंधन के दायरे में भेंटें बुरे लोगों के कब्जे में चली जाती हैं और उनकी गैर-जिम्मेदारी और जिम्मेदारी की उपेक्षा के कारण कोई भी भेंटों को फिजूलखर्च और बरबाद कर सकता है। क्या इस फिजूलखर्ची और बरबादी का संबंध उनके कुप्रबंधन से नहीं है? क्या यह उनकी जिम्मेदारी की उपेक्षा के कारण नहीं होता है? (होता है।) क्या लोगों के बुरे कामों में इन अगुआओं का हिस्सा नहीं है? क्या वे उनके लिए जिम्मेदार नहीं हैं? यह एक बड़ी जिम्मेदारी है और वे इससे भाग नहीं सकते! वे बस अपनी बात पर अड़े रहते हैं : “किसी भी तौर पर मैं परमेश्वर की भेंटों का गबन नहीं कर रहा हूँ और ऐसा करने की मेरी इच्छा या योजना भी नहीं है। परमेश्वर की भेंटों को कोई भी खर्च करे, मैं उसे खर्च नहीं करता; चाहे कोई भी उसे ले ले और इस्तेमाल करे, मैं नहीं करता; कोई भी उसका आनंद ले, मैं नहीं लेता। भेंटों के प्रति मेरा यही रवैया है—तुम जो चाहो कर सकते हो!” क्या ऐसे लोग होते हैं? (हाँ।) मसीह-विरोधी भेंटों को महँगे कपड़ों, विलासिता के सामान और यहाँ तक कि कारों पर खर्च करते हैं। मुझे बताओ, क्या इस तरह के नकली अगुआ इस समस्या को पहचान सकते हैं? वे खुद भेंटों का गबन नहीं करते, उनमें यह रवैया होता है, तो क्या वे यह नहीं मानते कि भेंटों का गबन करना बुरा है? (मानते हैं।) तो जब मसीह-विरोधी इतनी बड़ी बुराई करते हैं तो वे इसकी अनदेखी क्यों करते हैं और इसे रोकते क्यों नहीं? वे इसे गंभीरता से क्यों नहीं लेते? (वे किसी को आहत नहीं करना चाहते।) क्या यह कुकर्म नहीं है? (है।) यह उस जिम्मेदारी को न निभाना है जो किसी प्रबंधक को निभानी चाहिए। यदि तुम्हारे प्रबंधन के दौरान भेंटें बुरे लोगों के कब्जे में चली जाती हैं, यदि वे फिजूलखर्च, बरबाद और अनुचित तरीके से खर्च कर दी जाती हैं, यदि वे इस तरह हाथ से फिसल जाती हैं, और फिर भी तुम कोई कार्य नहीं करते या एक शब्द भी नहीं बोलते, तो क्या यह जिम्मेदारी की उपेक्षा नहीं है? क्या यह किसी नकली अगुआ की अभिव्यक्ति नहीं है? यदि तुम वह बात नहीं कहते जो तुम्हें कहनी चाहिए, वह कार्य नहीं करते जो तुम्हें करना चाहिए, वह जिम्मेदारी नहीं निभाते जो तुम्हें निभानी चाहिए और भले ही तुम हर धर्म-सिद्धांत समझते हो, फिर भी वास्तविक कार्य नहीं करते, तो तुम निश्चित रूप से नकली अगुआ हो। तुम मानते हो, “किसी भी हालत में मैं भेंटों का गबन नहीं कर रहा हूँ; यदि दूसरे लोग करते हैं, तो यह उनका मामला है।” तो क्या तुम नकली अगुआ नहीं हो? भेंटों का गबन न करना तुम्हारा व्यक्तिगत मामला है, लेकिन क्या तुमने भेंटों की अच्छी तरह से सुरक्षा की? क्या तुमने भेंटों के संबंध में अपनी जिम्मेदारी निभाई? यदि तुमने नहीं निभाई तो तुम नकली अगुआ हो। यह कहकर बहाने न बनाओ : “किसी भी हालत में मैं भेंटों का गबन नहीं करता, इसलिए मैं नकली अगुआ नहीं हूँ!” भेंटों का गबन न करना यह मापने का मानदंड नहीं है कि कोई अगुआ या कार्यकर्ता मानक पर खरा है या नहीं; वह मानक के अनुरूप है या नहीं, इसका सही मापदंड यह है कि क्या वह परमेश्वर के सौंपे हुए मामलों में अपनी जिम्मेदारी निभाता है, वह काम करता है जो एक व्यक्ति को करना चाहिए और उस दायित्व को निभाता है जो किसी व्यक्ति को निभाना चाहिए—यही सबसे महत्वपूर्ण है। तो भेंटों के प्रबंधन में तुम्हारा दायित्व और जिम्मेदारी क्या है? क्या तुमने उन सबको पूरा किया है? यह बिल्कुल स्पष्ट है कि तुमने ऐसा नहीं किया है। तुम बस औपचारिकता निभा रहे हो; तुम लोगों को नाराज करने से डरते हो, लेकिन परमेश्वर को नाराज करने से नहीं डरते। तुम भेंटों की उपेक्षा करते हो क्योंकि तुम लोगों को नाराज करने से डरते हो, उनकी नजरों में अपनी अच्छी छवि गिरने से डरते हो—यदि तुम्हारी यह अभिव्यक्ति है तो तुम निश्चित रूप से नकली अगुआ हो। यह तुम पर कोई ठप्पा लगाने वाली बात नहीं है। तथ्य सभी के सामने हैं : तुम अपना दायित्व और जिम्मेदारी भी नहीं निभा सकते—तुम इतने स्वार्थी हो! तुम अपनी चीजों, अपनी निजी संपत्ति का प्रबंधन बहुत अच्छे से, गंभीरता से और सावधानी से करते हो। तुम उन चीजों को मौसम के असर से बचाते हो; किसी को उन्हें ले नहीं जाने देते और तुम किसी को अपना फायदा नहीं उठाने देते। लेकिन भेंटों के मामले में तुम्हारे भीतर जिम्मेदारी का भाव बिल्कुल भी नहीं होता है—अपनी चीजों के प्रबंधन के मामले में जो जिम्मेदारी उठाते हो, भेंटों के मामले में तुम उसका दसवाँ हिस्सा भी नहीं निभाते। तुम्हें अच्छा प्रबंधक कैसे माना जा सकता है? तुम्हें अगुआ या कार्यकर्ता कैसे माना जा सकता है? तुम स्पष्ट रूप से नकली अगुआ हो। यह एक तरह के नकली अगुआ की अभिव्यक्ति है।

III. उचित व्ययों पर रोक लगाना

एक और तरह के नकली अगुआ होते हैं और वे भी काफी घृणास्पद होते हैं। इस तरह के लोग अगुआ बनने के बाद जब देखते हैं कि भेंटों की सुरक्षा कर रहा व्यक्ति बहुत ज्यादा और बहुत ही बरबादी करने वाले तरीके से पैसा खर्च कर रहा है तो वे उसे बर्खास्त कर देते हैं। फिर वे एक ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ना चाहते हैं जो सावधानीपूर्वक योजना बना सके और ध्यान से बजट बना सके, जो वास्तव में मितव्ययी हो और जानता हो कि घर को किफायती तरीके से कैसे चलाया जाए। उन्हें लगता है कि इस तरह का व्यक्ति एक अच्छा प्रबंधक होगा और पता चलता है कि उन्हें कोई भी उपयुक्त नहीं लगता तो आखिरकार वे खुद ही भेंटों की सुरक्षा करने लगते हैं। जब भाई-बहन कहते हैं कि सुसमाचार का प्रचार करने के लिए परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों की कुछ प्रतियाँ छापने की जरूरत है, तो ये अगुआ यह सोचकर ऐसा करने की अनुमति नहीं देते कि पुस्तकें छापने में बहुत ज्यादा खर्च होता है; वे यह परवाह नहीं करते कि कार्य के लिए इसकी तत्काल जरूरत है—उनके लिए जब तक पैसे बचाए जा सकें, तब तक सब ठीक है। वे वास्तव में यह जानते ही नहीं कि परमेश्वर की भेंटों का उपयोग कहाँ परमेश्वर के इरादों के सर्वाधिक अनुरूप होगा; वे केवल इतना ही जानते हैं कि परमेश्वर की भेंटों की रक्षा करनी है और उन्हें बिल्कुल भी नहीं छूना है। जो खर्च किया जाना चाहिए, वे उसे खर्च नहीं करते—वे वास्तव में “अच्छी तरह से” जाँच कर रहे होते हैं, ठीक है! इस तरह कार्य कैसे आगे बढ़ सकता है? क्या इन अगुआओं के पास अपने कार्यकलापों के लिए सिद्धांत हैं? (नहीं।) वे वह कार्य नहीं करने देते जो किया जाना चाहिए, वो किताबें नहीं छापने देते जो छपनी चाहिए या वह पैसा खर्च नहीं करने देते जो खर्च करना जरूरी है—वे किसी भी उचित व्यय की अनुमति नहीं देते। क्या यह प्रबंधन है? (नहीं।) यह क्या है? यह सिद्धांतों की समझ की कमी है। जिन लोगों में सिद्धांतों की समझ नहीं होती, वे कार्य करते समय भेंटों का प्रबंधन करना नहीं जानते हैं। उनका मानना होता है कि उन्हें पैसे पर नजर रखनी चाहिए और इसमें एक पैसा भी घटने नहीं देना चाहिए और चाहे जिस भी चीज के लिए खर्च हो, पैसे को छूना नहीं चाहिए। क्या यह परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) सिद्धांतों के बिना चीजों को नियंत्रित करना और जाँच करना प्रबंधन नहीं है। बेतहाशा खर्च, बरबादी और अपव्यय प्रबंधन नहीं है, लेकिन एक पैसा भी खर्च न होने देना और जाँच-परख के नाम पर उचित व्यय पर रोक लगाना भी प्रबंधन नहीं है। दोनों ही तरीके सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं। क्योंकि कुछ लोग भेंटों का उपयोग करने, उन्हें आवंटित करने और उनका प्रबंधन करने के सिद्धांतों को नहीं समझते, इसलिए सभी प्रकार के तमाशे खड़े होते हैं और सभी प्रकार की अराजकता पैदा होती है। ये अगुआ बाहर से काफी जिम्मेदार और समर्पित दिखते हैं, लेकिन वे जो कार्य कर रहे हैं वह कैसा है? (वह सिद्धांतहीन है।) और क्योंकि यह सिद्धांतहीन कार्य है, इसलिए उनके क्षेत्र में सुसमाचार कार्य में बाधा और रुकावट आती है, और भेंटों के उपयोग की अत्यधिक सख्त जाँच के कारण कुछ पेशेवर कार्य भी रुक जाता है। ऊपर से वे भेंटों की सुरक्षा में बहुत कर्तव्यनिष्ठ और जिम्मेदार दिखाई देते हैं। लेकिन वास्तव में, क्योंकि उनके पास आध्यात्मिक समझ नहीं है और वे केवल अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर कार्य करते हैं और कलीसिया के हित में मितव्ययी होने की आड़ में परमेश्वर के घर के खर्चों की भी जाँच करते हैं, इसलिए वे अनजाने ही कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों की प्रगति को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। क्या ऐसे लोगों को नकली अगुआओं के रूप में चिह्नित किया जा सकता है? (हाँ।) यह कृत्य उन्हें नकली अगुआ कहे जाने योग्य बनाता है। एक निश्चित सीमा तक वे पहले ही सुसमाचार कार्य और कलीसिया के कार्य में बाधा और गड़बड़ी पैदा कर चुके होते हैं। ये बाधाएँ और गड़बड़ियाँ उनमें सिद्धांतों की समझ न होने के कारण होती हैं, साथ ही वे अपनी प्राथमिकताओं और धारणाओं के आधार पर लापरवाही से कार्य करते हैं और सत्य सिद्धांत नहीं खोजते, न ही चीजों पर चर्चा या दूसरों के साथ सहयोग करते हैं। उनके पास होने पर भेंटें बरबाद या अपव्यय नहीं होतीं, लेकिन वे सिद्धांतों के अनुसार उचित तरीके से भेंटों का उपयोग नहीं कर सकते और केवल उन भेंटों की सुरक्षा की खातिर उनका इस्तेमाल नहीं होने देते, और परिणामस्वरूप सुसमाचार फैलाने के कार्य में देरी होती है और परमेश्वर के घर के कार्य का सामान्य संचालन प्रभावित होता है। इसलिए इस अभिव्यक्ति के आधार पर उन्हें नकली अगुआ निरूपित करना जरा भी अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है। ऐसे लोगों को भी नकली अगुआ निरूपित क्यों किया जाता है? वे नहीं जानते कि कार्य कैसे करना है और भेंटों के साथ व्यवहार करने को लेकर उनकी समझ और तौर-तरीके बहुत ही विकृत होते हैं, तो क्या वे दूसरा कार्य ठीक से कर सकते हैं? निश्चित रूप से नहीं। क्या इन लोगों की समझ में कोई समस्या नहीं है? (है।) उनकी समझ विकृत है, वे विनियमों से चिपके रहते हैं, ढोंग करते हैं और वे छद्म-आध्यात्मिक होते हैं। वे परमेश्वर के घर के कार्य पर विचार नहीं करते और सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते—वे कार्य करने के लिए सिद्धांत नहीं खोज सकते और वे केवल अपनी क्षुद्र चतुराई और इच्छा से चलते हैं और विनियमों से चिपके रहते हैं। इसी कारण उनका कार्य बाधाओं और गड़बड़ियों के रूप में सामने आता है। उनके कार्य करने का तरीका मूर्खतापूर्ण और बेढंगा होता है—यह घृणित है। ऐसे लोग स्पष्ट रूप से नकली अगुआ हैं। क्या कोई ऐसा है जो कहता हो कि “मैं भेंटों की इतनी अच्छी तरह से सुरक्षा करता हूँ, मैं यह काम इतनी सावधानी से करता हूँ, फिर भी मुझे नकली अगुआ कहा जाता है। आगे से मैं उनका प्रबंधन नहीं करूँगा! जो भी उन्हें खर्च करना चाहे, कर सकता है; जो भी उनका उपयोग करना चाहे, कर सकता है; जो भी उन्हें लेना चाहे, ले सकता है!”? क्या कोई ऐसा है जो इस तरह सोचता है? तो फिर विभिन्न प्रकार के नकली अगुआओं की विभिन्न अवस्थाओं और अभिव्यक्तियों को उजागर करने के पीछे हमारा उद्देश्य क्या है? (लोगों को सिद्धांत समझने देना और नकली अगुआओं के मार्ग पर चलने से बचाना।) सही कहा। इसका उद्देश्य लोगों को सिद्धांत समझाना, सिद्धांतों के अनुसार अपना कार्य अच्छी तरह से करने और अपनी जिम्मेदारी निभाने में सक्षम बनाना, कल्पनाओं और धारणाओं के आधार पर न चलने देना, मानवीय इच्छा या उतावलेपन का आश्रय न लेने देना, सत्य सिद्धांतों को अपने किसी कल्पित सिद्धांत से न बदलने देना, आध्यात्मिक होने का दिखावा न करने देना और जिस चीज को वे आध्यात्मिकता मानते हैं उसका उपयोग सिद्धांतों के प्रतिरूप या प्रतिस्थापन के रूप में न करने देना है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के बीच ऐसे लोग मौजूद हैं और इन बातों को चेतावनी के रूप में लेना उचित है।

IV. भेंटों को हड़पना और उनका आनंद लेना

एक और तरह के नकली अगुआ होते हैं और वे भेंटों के प्रबंधन में जो कार्य करते हैं वह और भी ज्यादा गड़बड़ होता है। वे मानते हैं कि अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में वे हमेशा भेंटों पर नजर नहीं रख सकते या भेंटों पर बहुत बारीकी से ध्यान नहीं रख सकते हैं। उन्हें लगता है कि उनको बस कलीसिया का प्रशासनिक कार्य अच्छी तरह से करना चाहिए और कलीसियाई जीवन के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के कार्य को अच्छी तरह से करना चाहिए, साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्य अच्छी तरह से किए जाएँ। वे मानते हैं कि भेंटों का मतलब परमेश्वर की ओर से कलीसिया को दिए जाने वाला धन और वस्तुएँ हैं, और यह धन और वस्तुएँ अगुआओं और कार्यकर्ताओं के जीवन और कार्य में उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए होती हैं। इसका निहितार्थ यह है कि भेंटें अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए तैयार की जाती हैं, और जब किसी को अगुआ या कार्यकर्ता चुना जाता है तो परमेश्वर उसे इन भेंटों का आनंद लेने की अनुमति देता है, और अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उन्हें आवंटित करने, उनका आनंद लेने और उन्हें खर्च करने में प्राथमिकता मिलती है—और इसलिए जब कोई व्यक्ति अगुआ या कार्यकर्ता बन जाता है तो वह भेंटों का स्वामी बन जाता है, भेंटों का प्रबंधक और मालिक बन जाता है। जब इस तरह के लोग अपने कार्य में भेंटों के संपर्क में आते हैं, तो वे उनका पंजीकरण नहीं करते, उनका मिलान नहीं करते या उनकी सुरक्षा नहीं करते, न ही वे भेंटों के आवक-जावक खातों की जाँच करते हैं, और वे उनके व्यय और आवंटन की स्थिति का निरीक्षण तो और भी नहीं करते। इसके बजाय, वे यह जानने और समझने की कोशिश करते हैं कि कौन-सी भेंटें उपलब्ध हैं और क्या उनमें ऐसा कुछ है जिसका अगुआ और कार्यकर्ता आनंद ले सकते हैं। भेंटों के प्रति इन अगुआओं और कार्यकर्ताओं का ऐसा ही रवैया होता है। उनके विचार में भेंटों को पंजीकृत करने, मिलान करने, सुरक्षित रखने या उनकी आवक-जावक या उनके खर्च की स्थिति का निरीक्षण करने की आवश्यकता नहीं होती—ऐसी चीजों का उनसे कोई लेना-देना नहीं है—उन्हें केवल अगुआओं और कार्यकर्ताओं को भेंटें आवंटित करने की जरूरत है, ताकि भेंटों का आनंद लेने में उन्हें प्राथमिकता दी जा सके। उनके विचार में अगुआ और कार्यकर्ता जो कह दें, वही सिद्धांत होता है—यह निर्णय उन पर निर्भर करता है कि भेंटों को कैसे खर्च करें और कैसे आवंटित करें। उनका मानना है कि अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में चुने जाने का मतलब है कि वह व्यक्ति पहले ही पूर्ण बनाया जा चुका है और किसी याजक की तरह उसे भेंटों का आनंद लेने का विशेषाधिकार है, साथ ही उनके बारे में अंतिम निर्णय लेने, उपयोग करने और आवंटन का अधिकार भी है। कुछ कलीसियाओं में भाई-बहनों की चढ़ाई चीजों का उचित कार्मिकों द्वारा पंजीकरण, मिलान और भंडारण किए जाने से पहले ही अगुआ और कार्यकर्ता उन्हें देख लेते हैं, छान-बीन कर लेते हैं और जिन चीजों का वे उपयोग कर सकते हैं उन्हें रख लेते हैं, जो कुछ भी वे खा सकते हैं उसे खा लेते हैं, उन भेंटों में से जो कुछ भी पहन सकते हैं, उसे पहन लेते हैं और जिस चीज की उन्हें जरूरत नहीं होती, उसे सीधे उन लोगों को आवंटित कर देते हैं जिन्हें इसकी जरूरत है, इस प्रकार वे परमेश्वर के स्थान पर खुद निर्णय लेते हैं। यही उनका सिद्धांत है। यहाँ क्या हो रहा है? क्या वे वास्तव में यह सोचते हैं कि वे याजक हैं? क्या यह अत्यधिक विवेकहीनता नहीं है? (है।) कुछ अन्य अगुआ और कार्यकर्ता ऐसे भी हैं जो देखते हैं कि एक परिवार के पास दो कुर्सियाँ कम हैं, दूसरे के पास चूल्हा नहीं है और किसी का स्वास्थ्य खराब है और उसे स्वास्थ्यपूरकों की जरूरत है, और तब वे परमेश्वर के घर के पैसों का उपयोग ये सब चीजें खरीदने के लिए करते हैं। सभी भेंटों के आवंटन, उपभोग, व्यय और उपयोग का अधिकार इन अगुआओं और कार्यकर्ताओं का है—क्या यह ठीक बात है? क्या यह दृष्टिकोण उनकी संज्ञानात्मक क्षमता में कुछ गड़बड़ होने के कारण उत्पन्न नहीं होता है? वे किस आधार पर निर्णय ले रहे हैं? क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास भेंटों को नियंत्रित करने का अधिकार है? (नहीं।) उनके जिम्मे भेंटों का प्रबंधन करना है, न कि उन्हें नियंत्रित करना और उनका उपयोग करना। उन्हें उनका आनंद लेने का विशेषाधिकार नहीं है। क्या अगुआ और कार्यकर्ता याजकों के बराबर हैं? क्या वे उन लोगों के बराबर हैं जो पूर्ण बनाए जा चुके हैं? क्या वे भेंटों के मालिक हैं? (नहीं।) तो फिर वे बिना अनुमति के इस या उस परिवार के लिए चीजें खरीदने के लिए भेंटों का उपयोग करने का फैसला क्यों करते हैं—उन्हें यह अधिकार क्यों है? उन्हें यह अधिकार किसने दिया? क्या कार्य व्यवस्था में यह निर्धारित है : “अपना पद सँभालने के बाद अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले जो करना चाहिए, वह है परमेश्वर के घर की वित्तीय व्यवस्था पर पूरा नियंत्रण रखना”? (नहीं।) तो फिर अगुआओं और कार्यकर्ताओं का एक हिस्सा ऐसा क्यों मानता है? इसमें क्या समस्या है? जब कोई भाई या बहन कोई महँगा वस्त्र अर्पित करता है और अगले दिन कोई अगुआ या कार्यकर्ता उसे पहने होता है, तो यह क्या चल रहा है? भाई-बहनों की चढ़ाई भेंटें किसी व्यक्ति के हाथ में क्यों पहुँच जाती हैं? यहाँ “व्यक्ति” का मतलब अगुआ या कार्यकर्ता के अलावा किसी और से नहीं है। वे मात्र भेंटों का ठीक से प्रबंधन करने में ही विफल नहीं होते हैं—बल्कि वे उन्हें हथियाने और व्यक्तिगत रूप से उनका आनंद लेने की अगुआई भी करते हैं। यहाँ समस्या क्या है? अगर हम ऐसे अगुआओं या कार्यकर्ताओं को इस नजरिए से देखें कि भेंटों के प्रबंधन के मामले में वे वास्तविक कार्य नहीं करते, इसलिए उन्हें नकली अगुआ के रूप में निरूपित किया जा सकता है—लेकिन अगर हम उन्हें इस नजरिए से देखें कि वे भेंटों को हथियाते हैं और व्यक्तिगत रूप से उसका आनंद लेते हैं तो उन्हें सौ प्रतिशत मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित किया जा सकता है। तो वास्तव में ऐसे व्यक्ति को किस रूप में निरूपित करने में समझदारी है? (मसीह-विरोधी के रूप में।) वह नकली अगुआ और मसीह-विरोधी दोनों होता है। भेंटों का प्रबंधन करने में नकली अगुआ सभी भेंटों को देखता है और उनके प्रबंधन के लिए लोगों को नियुक्त करता है। लेकिन ऐसा करने से पहले वह भेंटों का एक हिस्सा अपने लिए हथिया लेता है और अनधिकृत रूप से एक अन्य हिस्से को आवंटित करने का फैसला करता है। जहाँ तक बची हुई चीजों का सवाल है—जो उसे नहीं चाहिए या जिनकी उसे पहचान नहीं है लेकिन वह किसी को देना नहीं चाहता—वह उन चीजों को फिलहाल एक तरफ रख देता है। जब उन भेंटों के पता-ठिकाने की बात आती है, उन्हें सुरक्षित रखने के लिए किसी उपयुक्त व्यक्ति के होने की बात हो, नियमित रूप से उनका निरीक्षण करने का मामला हो, यह देखने की बात हो कि क्या कोई उन्हें चुरा रहा है या क्या कोई उन पर कब्जा कर रहा है, तो नकली अगुआ इन सभी चीजों के बारे में कभी कोई चिंता नहीं करते। उनका सिद्धांत यह है : “मुझे जिन चीजों का आनंद लेना चाहिए और मुझे जिनकी जरूरत है, उन पर मैंने पहले ही हाथ रख लिया है। बची हुई चीजों को, जिनकी मुझे जरूरत नहीं है, जो भी चाहे ले सकता है; जो भी उनका प्रबंधन करना चाहे, वह कर सकता है। वे चीजें उसी की हैं जो उन्हें पहले हड़प ले—वे जिसके हाथ लग जाएँ वही उनका फायदा ले।” यह कैसा सिद्धांत और तर्क है? ऐसे लोग वास्तव में दानव और जानवर हैं!

एक बार एक नकली अगुआ ने कहा कि भंडारघर में बहुत सारा सामान है और मैंने पूछा कि क्या उसने उनका पंजीकरण किया है। उसने कहा, “मुझे यह भी नहीं पता कि उनमें से कुछ चीजें क्या हैं, इसलिए उन्हें पंजीकृत करने का कोई तरीका नहीं है।” मैंने कहा, “यह बकवास है। ऐसा कैसे हो सकता है कि उन चीजों के पंजीकरण का कोई तरीका न हो? जब उन्हें पहली बार यहाँ लाया गया था, तबसे उनका लेखा-जोखा होना चाहिए!” “यह तो बहुत पहले की बात है, उनके बारे में जानने का कोई तरीका नहीं है।” यह किस तरह की बात है? क्या वे जिम्मेदारी ले रहे हैं? (नहीं।) मैंने कहा, “कुछ कपड़े हैं—देखो कि भाई-बहनों में से किसे उनकी जरूरत है और उन्हें कपड़े दे दो।” “उनमें से कुछ पुराने चलन के हैं। उनमें किसी की रुचि नहीं है।” मैंने कहा, “जिन भाई-बहनों को कपड़ों की जरूरत है उन्हें कपड़े दे दो और अगर उन्हें जरूरत नहीं है तो तुम इन्हें उचित तरीके से सँभाल सकते हो।” उसने इसका पालन नहीं किया। क्या वह कर्तव्यनिष्ठ और मेहनती था? जब उससे कोई काम करने के लिए कहा जाता है, तो वह शिकायत करता रहता है, नकारात्मक बातें कहता है और कठिनाइयों की ओर इशारा करता है। वह यह नहीं कहता कि वह सिद्धांतों के अनुसार इन चीजों को अच्छी तरह से सँभाल लेगा। समर्पण करने की उसकी बिल्कुल भी मंशा नहीं है। कोई उससे चाहे जो अपेक्षा करे, वह कठिनाइयों के बारे में बात करता रहता है, मानो इस तरह बोलकर वह उस व्यक्ति को चुप करा देगा, तो जीत जाएगा, भारी पड़ जाएगा और फिर अपना काम पूरा कर लेगा। यह व्यक्ति किस तरह का प्राणी है? तुम्हें अगुआ या कार्यकर्ता इसलिए नहीं बनाया गया कि तुम परेशानी पैदा करो या कठिनाइयाँ और मसले बताते रहो—ऐसा इसलिए किया गया था कि तुम समस्याएँ हल कर सको और मुश्किलों को सँभाल सको। यदि तुम अपने कार्य में वास्तव में सक्षम हो, तो मसलों और कठिनाइयों का जिक्र करने के बाद, इस बारे में बात करोगे कि सिद्धांतों के अनुसार तुम उन्हें कैसे सँभालोगे और हल करोगे। नकली अगुआ केवल नारे लगा सकते हैं, धर्म-सिद्धांतों का उपदेश दे सकते हैं, बड़ी-बड़ी बातें कर सकते हैं और वस्तुनिष्ठ औचित्यों और बहानों के बारे में बात कर सकते हैं—उनके पास कोई वास्तविक कार्य क्षमता नहीं होती, और भेंटों के प्रबंधन के मामले में भी वे उसी तरह सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने या अपनी जिम्मेदारी पूरी करने में असमर्थ होते है। वे इतने कमजोर दिमाग के और अक्षम होते हैं, फिर भी उन्हें लगता है कि अगुआ या कार्यकर्ता होने के कारण उनके पास विशेषाधिकार और रुतबा है, विशिष्ट पहचान है और वे भेंटों के मालिक और उपयोगकर्ता हैं। इस तरह का नकली अगुआ केवल भेंटों को खर्च करने के विशेषाधिकार का आनंद लेना जानता है—वह भेंटों के अनुचित और अविवेकपूर्ण व्यय के किसी भी मामले को देख या खोज नहीं सकता, और हो सकता है कि देख लेने पर भी वह उन्हें सँभालने के लिए कुछ न करे। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वह केवल अगुआ या कार्यकर्ता होने के साथ आने वाले श्रेष्ठताबोध का आनंद लेना जानता है—उसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं से परमेश्वर की अपेक्षाओं की समझ या परमेश्वर के घर के कार्य करने के सिद्धांतों की समझ बिल्कुल भी नहीं होती है। वह एकदम बेकार है, कूड़ा है और कूढ़ मगज है। क्या यह उबकाई आने वाली बात नहीं है कि ऐसे भ्रमित लोग फिर भी रुतबे के लाभों का आनंद लेना चाहते हैं? इस प्रकार के नकली अगुआ को हमारे द्वारा उजागर किए जाने से तुम लोगों ने क्या समझा? इस तरह का व्यक्ति जैसे ही अगुआ या कार्यकर्ता बनता है, वह भेंटों के बारे में षड्यंत्र रचना चाहता है और उसकी नजर भेंटों पर गड़ी होती है। कोई एक ही नजर में बता सकता है कि वह पैसों को अनाप-शनाप उड़ाने और भेंटों को फिजूलखर्च करने के लिए लंबे समय से लालायित था। अंततः अब उसके पास मौका है; वह उस तरीके से मनमाना पैसा खर्च कर सकता है और परमेश्वर की भेंटों का अपनी इच्छानुसार उपयोग कर सकता है, उन चीजों का आनंद ले सकता है जिनके लिए उसने कार्य नहीं किया। इस प्रकार उसके लालची असली रंग पूरी तरह उजागर हो जाते हैं। क्या तुम लोग अतीत और वर्तमान के अगुआओं और कार्यकर्ताओं में शामिल ऐसे लोगों को देखते हो? वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों और परिभाषा की हमेशा गलत व्याख्या करते हैं और अगुआ या कार्यकर्ता बनते ही वे खुद को परमेश्वर के घर का मालिक मानने लगते हैं, खुद को याजकों की श्रेणी में रखते हैं और अपने आप को प्रतिष्ठित व्यक्ति मानने लगते हैं। क्या यह थोड़ी-सी दिमागी कमजोरी नहीं है? क्या ऐसा है कि अगुआ या कार्यकर्ता बनते ही कोई भ्रष्ट मनुष्य नहीं रह जाता? क्या ऐसा है कि वह तुरंत पवित्र व्यक्ति बन जाता है? अगुआ बन जाने के बाद वे भूल जाते हैं कि वे कौन हैं और उन्हें लगता है कि उन्हें भेंटों का आनंद लेना चाहिए—क्या ऐसे लोग कमजोर दिमाग वाले नहीं हैं? ऐसे लोग निश्चित रूप से कमजोर दिमाग वाले होते हैं, उनके पास सामान्य मानवीय विवेक नहीं होता। हमारे इस तरह से संगति करने के बाद भी वे अब तक नहीं जानते कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं के कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ क्या हैं। इस तरह के अगुआ और कार्यकर्ता निश्चित रूप से होते हैं और ऐसे लोगों की अभिव्यक्तियाँ काफी स्पष्ट और प्रकट होती हैं।

ये मूलतः भेंटों की सुरक्षा के संबंध में विभिन्न प्रकार के नकली अगुआओं की अभिव्यक्तियाँ हैं। अधिक गंभीर समस्याओं वाले लोग नकली अगुआओं की श्रेणी में नहीं आते—वे मसीह-विरोधी होते हैं। इसलिए तुम लोगों को इस दायरे को अच्छी तरह से समझने की जरूरत है। यदि कोई नकली अगुआ है तो वह नकली अगुआ ही है—उसे मसीह-विरोधी नहीं कहा जा सकता। मसीह-विरोधी मानवता, कार्यकलापों, अभिव्यक्तियों और सार के संदर्भ में नकली अगुआओं की तुलना में बहुत अधिक बुरे होते हैं। अधिकांश नकली अगुआओं की काबिलियत कम होती है, वे कमजोर दिमाग वाले होते हैं, उनमें कार्य क्षमता नहीं होती, उनकी समझ विकृत होती है और उनमें आध्यात्मिक समझ नहीं होती, उनका चरित्र घटिया होता है, वे स्वार्थी और नीच होते हैं और उनका हृदय सही स्थान पर नहीं लगा होता है। इसके कारण वे भेंटों की सुरक्षा के संबंध में वास्तविक कार्य करने में सक्षम नहीं होते और न ही कर पाते हैं, और इससे भेंटों के उचित प्रबंधन और सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है। नकली अगुआओं द्वारा अपनी जिम्मेदारियों की उपेक्षा करने, वास्तविक कार्य न करने और परमेश्वर के घर के सिद्धांतों और आवश्यकताओं के अनुसार कार्य न करने के कारण भेंटों का एक हिस्सा बुरे लोगों के हाथ में चला जाता है—इस तरह की समस्या भी काफी बार आती है। भेंटों की सुरक्षा में नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ मूल रूप से इस प्रकार उजागर होती हैं : उनका चरित्र नीच होता है, वे स्वार्थी और नीच होते हैं, उनकी समझ विकृत होती है, उनमें कार्य क्षमता नहीं होती, उनमें बहुत कम काबिलियत होती है, वे सत्य सिद्धांत बिल्कुल भी नहीं खोजते और वे मूर्ख और कमजोर दिमाग वाले लोगों की तरह होते हैं। कुछ लोग कह सकते हैं, “हम उन सभी अन्य अभिव्यक्तियों को स्वीकार करते हैं जिन्हें तुमने उजागर किया, लेकिन अगर वे मूर्ख और कमजोर दिमाग वाले हैं तो वे अगुआ कैसे बन गए?” क्या तुम कुबूल करते हो कि कुछ अगुआ और कार्यकर्ता मूर्ख और कमजोर दिमाग वाले हैं? क्या ऐसे लोग मौजूद हैं? कुछ लोग कह सकते हैं, “तुम हमें बहुत ही तुच्छ समझते हो। हम सब आधुनिक लोग हैं, कॉलेज या हाई स्कूल के स्नातक हैं—हमारे पास इस समाज और इस मानवजाति के बारे में भेद पहचानने की उत्कृष्ट शक्ति है। हम अपने अगुआ के रूप में एक कमजोर दिमाग वाले व्यक्ति को कैसे चुन सकते हैं? ऐसा शायद नहीं हो सकता!” इसमें असंभव क्या है? तुममें से ज्यादातर लोग कमजोर दिमाग वाले हैं और अपर्याप्त बुद्धि वाले भी हैं, इसलिए तुम्हारे लिए बहुत ही आसान है कि तुम किसी कमजोर दिमाग वाले व्यक्ति को अगुआ चुन लो। मैं क्यों कहता हूँ कि तुममें से ज्यादातर लोग कमजोर दिमाग वाले हैं? क्योंकि तुम लोगों में से ज्यादातर लोगों के पास चाहे जितना भी अनुभव हो, वे चीजों के सार को अच्छी तरह नहीं देख सकते और सिद्धांतों को नहीं समझ सकते। तुम सालो-साल सिर्फ विनियमों का पालन करते रह सकते हो, बार-बार बिना बदलाव के एक ही दृष्टिकोण अपनाए रख सकते हो और तुम्हारे साथ सत्य की चाहे जैसी संगति की जाए, तुम सिद्धांत समझने में असमर्थ रह सकते हो। यहाँ समस्या क्या है? तुम्हारी काबिलियत बहुत कम है। तुम समस्याओं के सार या जड़ को अच्छी तरह से समझ नहीं सकते और चीजों के विकास का पैटर्न खोजने में असमर्थ हो, उन सिद्धांतों का पालन करना तो दूर की बात है जो चीजों को करने में होने चाहिए—इसे कमजोर दिमाग का होना कहते हैं। तुम लोगों को अपने कर्तव्यों से संबंधित चीजों के सिद्धांत समझने में कितना समय लगता है? कुछ लोग हैं जो कई सालों से पाठ-आधारित कार्य कर रहे हैं, लेकिन अभी भी वे जो लेख और पटकथा लिखते हैं, उनमें सभी खोखले शब्द होते हैं, वे अभी भी सिद्धांतों को नहीं समझ पाते और नहीं जानते कि वास्तविकता क्या है या कोई वास्तविक बात कैसे कही जाए। यह बहुत कम काबिलियत और बहुत कम बुद्धि का होना है। तुम लोगों के पास जो बुद्धि है, उससे क्या किसी कमजोर दिमाग वाले व्यक्ति को अगुआ के रूप में चुनना बहुत आसान नहीं होगा? और तुम लोग उसे चुनोगे ही नहीं, बल्कि तहेदिल से यह भी चाहोगे कि वह अगुआ बने। जब उसे बर्खास्त किया जा रहा होगा तो तुम लोग ऐसा नहीं चाहोगे। दो साल बाद जब तुम उसकी असलियत जान लोगे और समझ हासिल कर लोगे, तब तुम यह भेद पहचान पाओगे कि वह नकली अगुआ है, लेकिन उसके पहले तुम लोगों को चाहे कुछ भी बताया गया हो, तुम लोग उसे बर्खास्त नहीं होने दोगे। क्या तुम उससे भी ज्यादा कमजोर दिमाग वाले नहीं हो? मैं क्यों कहता हूँ कि कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अपर्याप्त बुद्धि वाले हैं? ऐसा इसलिए कि वे केवल सबसे आसान कार्य करना जानते हैं। जब थोड़ा जटिल कार्य आता है, तो वे नहीं जानते कि उसे कैसे किया जाए, जब उन्हें थोड़ी सी कठिनाई होती है, तो वे नहीं जानते कि इसे कैसे सँभालना है, और जब उन्हें कोई अतिरिक्त कार्य दिया जाता है तो वे किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं। क्या यह उनकी बुद्धि से जुड़ी समस्या नहीं है? क्या ऐसे अगुआओं को तुम्हीं लोग नहीं चुनते हो? और तुम लोग उनकी प्रशंसा में बिछे जाते हो : “वे किसी रोमांटिक साथी की तलाश किए बिना परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और उन्होंने बीस से अधिक वर्षों तक खुद को परमेश्वर के लिए खपाया है। उनमें कष्ट सहने की इच्छा है, ठीक है, और वे अपने कार्य के प्रति वास्तव में गंभीर हैं।” “तो भी, क्या वे अपने कार्य में लागू होने वाले सिद्धांतों को समझते हैं?” “अगर वे नहीं समझते तो फिर कौन समझता है?” और जब उनके कार्य का निरीक्षण किया जाता है तो पता चलता है कि यह पूरी तरह से गड़बड़ है—वे किसी भी कार्य को लागू करने में सक्षम नहीं हैं। उन्हें उनके कार्य के सिद्धांत बताए जाते हैं, लेकिन वे कभी नहीं जान पाते कि उसे कैसे करना है। वे बस सवाल पूछते रहते हैं, और जब तक उन्हें साफ-साफ नहीं बताया जाता, तब तक उन्हें नहीं पता होता कि क्या करना है। उन्हें सिद्धांत बताना कुछ न कहने जैसा है; भले ही सिद्धांतों को एक-एक करके सूचीबद्ध किया जाए, फिर भी वे नहीं जान पाते कि उस कार्य को कैसे लागू किया जाए। क्या इस तरह के अगुआ होते हैं? उन्हें चाहे जैसे सिद्धांत बता दिए जाएँ, वे उन्हें नहीं समझते और कार्य को क्रियान्वित नहीं कर पाते। उनके साथ संगति करो या उन्हें एक ही शब्द या चीज के बारे में कई बार निर्देश दो, फिर भी वे समझते नहीं हैं और इसके बाद भी समस्या पूरी तरह अनसुलझी रह जाती है—फिर भी वे पूछते हैं कि क्या करना है और अगर एक भी पँक्ति छूट गई तो काम नहीं चलेगा। क्या वे कमजोर दिमाग वाले नहीं हैं? क्या ये कमजोर दिमाग वाले अगुआ तुम्हीं लोगों ने नहीं चुने हैं? (चुने हैं।) तुम इससे इनकार नहीं कर सकते, है न? पक्की बात है कि ऐसे अगुआ हैं।

नकली अगुआओं की जिन विभिन्न अभिव्यक्तियों पर हम आज संगति कर रहे हैं, वे मुख्य रूप से भेंटों के प्रबंधन कार्य से संबंधित हैं। नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों को हमारे द्वारा उजागर किए जाने से लोगों को जान लेना चाहिए कि भेंटों का प्रबंधन अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण कार्य है और उन्हें इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। भले ही सामान्य मामलों का यह कार्य दूसरे कार्य से अलग है, पर इसका संबंध परमेश्वर के घर के अन्य कार्यों के सामान्य संचालन से है। इसलिए भेंटों का प्रबंधन करना बहुत ही महत्वपूर्ण, आवश्यक कार्य है। यह महत्वपूर्ण कैसे है? भेंटों के प्रबंधन कार्य में सुरक्षित रखी गई चीजें परमेश्वर की होती हैं—इसे थोड़ा अनुचित तरीके से कहें तो वे चीजें परमेश्वर की निजी संपत्ति होती हैं, इसलिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस कार्य के संबंध में और भी अधिक पूरे दिल से, कर्तव्यनिष्ठा और मेहनत से काम करना चाहिए। यदि हम इस कार्य को इसकी प्रकृति के संदर्भ में देखें, तो मुझे नहीं लगता कि इसे प्रशासनिक कार्य के अंतर्गत सूचीबद्ध करना कोई अतिशयोक्ति होगी। हम इसे प्रशासनिक कार्य की श्रेणी में इसलिए डाल रहे हैं क्योंकि यह कार्य करना परमेश्वर और उसकी संपत्तियों के प्रति लोगों के रवैयों से संबंधित है। इसलिए इस कार्य को करने में लोगों के लिए सही दृष्टिकोण रखना और सही सिद्धांतों को समझना आवश्यक है। हम इसे प्रशासनिक कार्य की श्रेणी में इसलिए डाल रहे हैं ताकि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह समझ में आ जाए कि यह कार्य करना बहुत महत्वपूर्ण है, यह बहुत भारी कार्य दायित्व है और बहुत भारी बोझ है। इसका उद्देश्य उन्हें यह समझाना है कि उन्हें इसे सामान्य मामलों के कार्य की तरह नहीं देखना चाहिए—कि उन्हें इस कार्य के महत्व का सटीक और गहरा ज्ञान होना चाहिए और फिर इसके प्रति पूरे दिल, कर्तव्यनिष्ठा और मेहनत से लगना चाहिए। लोग दूसरे लोगों के प्रति असावधान हो सकते हैं—भले ही गलतियाँ हो जाएँ, यह कोई बड़ी समस्या नहीं है। लेकिन मैं लोगों से आग्रह करता हूँ कि वे परमेश्वर के साथ पेश आने में भ्रमित न रहें, बेपरवाह न रहें और “केवल बातें और कोई काम नहीं” का रवैया न रखें। भेंटों का अच्छी तरह से प्रबंधन करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए परमेश्वर का एक महत्वपूर्ण आदेश है।

8 मई 2021

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

संबंधित सामग्री

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें