अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (12) खंड तीन
IV. भेंटों के ठिकाने के साथ-साथ उनके अभिरक्षकों की विभिन्न परिस्थितियों के बारे में तुरंत पता लगाना
भेंटों के व्यय की स्थिति का निरीक्षण करने और अनुचित व्यय को हल करने के अलावा अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास एक और सबसे महत्वपूर्ण कार्य है : उन्हें भेंटों के ठिकाने के साथ ही भेंटों के संरक्षकों की विभिन्न परिस्थितियों के बारे में भी तुरंत पता लगाना होता है। इसका उद्देश्य यह है कि दुष्टों, षड्यंत्रकारी लोगों और लालची हृदय वाले लोगों को असावधानियों का फायदा उठाकर भेंटें हड़पने से रोका जाए। कुछ लोग देखते हैं कि परमेश्वर के घर में बहुत सारी चीजें हैं और कुछ भेंटों पर नजर रखने वाला या उनका रिकॉर्ड रखने वाला कोई नहीं है, इसलिए वे हमेशा इस बारे में सोचते रहते हैं कि कब उन चीजों को अपनी निजी संपत्ति बना लें और अपने इस्तेमाल के लिए रख सकें। ऐसे लोग हर जगह हैं। कुछ लोगों को देखकर लगता है कि वे दूसरों का फायदा नहीं उठाते और भौतिक चीजों या पैसे की बहुत इच्छा नहीं रखते, लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि स्थिति और परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं होतीं—अगर भेंटों को वास्तव में सुरक्षा के लिए उनके हाथों में दिया जाए तो वे उन्हें हड़प सकते हैं। कुछ लोग पूछते हैं, “लेकिन वे पहले बहुत अच्छे व्यक्ति थे : वे लालची नहीं थे और उनका चरित्र ठीक था—तो उनके हाथों में इतनी सी भेंट रखने से वे कैसे बेनकाब हो गए?” ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि तुमने इन लोगों के साथ बहुत समय नहीं बिताया है, तुम उनके बारे में गहराई से नहीं समझते हो, उनके प्रकृति सार को गहराई से नहीं समझ पाए हो। अगर तुम्हें पहले ही पता चल जाता कि वे इस तरह के व्यक्ति हैं, तो भेंटों को बुरे लोगों के हाथ में जाने के दुर्भाग्य से बचाया जा सकता था। इसलिए भेंटों को बुरे लोगों के हाथों में जाने से रोकने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास एक और अधिक महत्वपूर्ण कार्य होता है : भेंट के ठिकानों और उनके संरक्षकों की विभिन्न परिस्थितियों के बारे में तुरंत पता लगाना और उनसे अवगत रहना। मान लो कि किसी के पास कुछ सौ या हजार युआन के प्रबंधन का दायित्व है, अगर उनमें जरा भी अंतरात्मा है, तो वे गबन नहीं करेंगे—लेकिन अगर वे दसियों या सैकड़ों हजार युआन हों, तो ज्यादातर लोगों पर भरोसा नहीं किया जा सकता, यह खतरनाक होगा और उस स्थिति में उनके दिल बदल सकते हैं। उनके दिल बदल कैसे सकते हैं? कुछ सौ या हजार युआन किसी व्यक्ति के दिल को नहीं डोला सकते, लेकिन दसियों या सैकड़ों हजार युआन से उसका दिल आसानी से डोल सकता है। “मैं कई जन्मों में इतना नहीं कमा पाया और अब यह मेरे हाथ में है—अगर यह सब मेरा होता तो मैं कितना ज्यादा मालदार होता!” वे सोचते हैं, “इन विचारों को लेकर मैं अपराधबोध नहीं महसूस करता—तो क्या वास्तव में कोई परमेश्वर है या नहीं? परमेश्वर कहाँ है? क्या ऐसा नहीं है कि किसी को नहीं पता कि मेरे मन में ऐसे विचार आ रहे हैं? कोई नहीं जानता और मैं खुद को दोषी या बुरा महसूस नहीं करता—क्या इसका मतलब है कि कोई परमेश्वर नहीं है? फिर अगर मैं यह पैसा हथिया लूँ, तो क्या मुझे कोई दंड या प्रतिफल नहीं भुगतना पड़ेगा? क्या इसका कोई दुष्परिणाम नहीं होगा?” क्या इस व्यक्ति का हृदय बदलने की प्रक्रिया में नहीं है? क्या उसके हाथ में मौजूद भेंट खतरे में नहीं है? (है।) इसके अलावा भेंटों का प्रबंधन करने वाले कुछ लोग काफी अच्छे होते हैं, परमेश्वर में विश्वास का उनका एक आधार होता है और वे अपने कार्यकलापों में निष्ठावान होते हैं, और भले ही तुम उन्हें कुछ दसियों या सैकड़ों हजार युआन की सुरक्षा करने को दे दो, वे इसे अच्छी तरह से करने में सक्षम होंगे, और इस बात की गारंटी है कि वे इसमें गबन नहीं करेंगे। लेकिन उनके परिवारों में कुछ गैरविश्वासी हैं और जब वे लोग धन देखते हैं तो उनकी आँखें ऐसे लाल हो जाती हैं जैसे किसी भेड़िये की आँखें अपने शिकार को देख कर होती हैं। दसियों या सैकड़ों हजार युआन की बात तो छोड़ ही दो—अगर उन्हें एक हजार युआन भी दिख जाएँ तो वे इन्हें अपनी जेब के हवाले कर देंगे। उन्हें इस बात की परवाह नहीं होती कि यह धन किसका है; उन्हें लगता है कि यह उसी का है जो इसे जेब में डाल ले, जो इसे सबसे पहले झपट ले। अगर भेंटों की सुरक्षा कर रहे किसी व्यक्ति के इर्द-गिर्द ऐसे दुष्ट भेड़िये हों, तो क्या भेंटों पर कहीं भी, कभी भी कब्जा कर लिए जाने का खतरा नहीं है? क्या ऐसी स्थिति हो सकती है? (हो सकती है।) क्या यह खतरनाक नहीं है कि अगुआ और कार्यकर्ता लापरवाह हों और उन्हें कोई दायित्वबोध न हो, और वे इस पर ध्यान भी न दें या इसके बारे में पूछताछ करने न जाएँ और जब भेंटें ऐसी खतरनाक स्थिति में हो तो उसकी जाँच भी न करें? कहीं भी, कभी भी कुछ गलत हो सकता है। एक और तरह की स्थिति होती है : कुछ अभिरक्षक धन और कई तरह की चीजें अपने घर में सुरक्षित रखते हैं और वे वहाँ भाई-बहनों और अगुआओं और कार्यकर्ताओं की मेजबानी भी करते हैं। अस्थायी तौर पर तो यह अपेक्षाकृत सुरक्षित हो सकता है, लेकिन क्या लंबे समय तक भेंटें वहाँ रखना उचित है? (नहीं।) भले ही उन्हें सुरक्षित रखने वाला व्यक्ति उपयुक्त हो, लेकिन वातावरण और परिस्थितियाँ बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं हैं। या तो वह जिन लोगों की मेजबानी कर रहा है उन्हें दूसरी जगह भेज देना चाहिए या भेंटों को हटा दिया जाना चाहिए। अगर अगुआ और कार्यकर्ता इस कार्य को समझने की कोशिश नहीं करते और न ही इसके संबंध में अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं तो कहीं भी, कभी भी कुछ गलत हो सकता है; भेंटों को नुकसान हो सकता है और वे कहीं भी, कभी भी राक्षसों के हाथों में पड़ सकती हैं। एक और तरह की स्थिति है : कुछ कलीसियाओं के इर्द-गिर्द शत्रुतापूर्ण वातावरण है जिसमें लोगों को अक्सर गिरफ्तार कर लिया जाता है और इस वजह से जिन घरों में भेंटें सुरक्षित रखी गई हों, उनके साथ गद्दारी होना और बड़े लाल अजगर द्वारा छापामारी और तलाशी लेना बहुत आसान है—भेंटें किसी भी समय राक्षसों द्वारा लूटी जा सकती हैं। क्या ऐसे स्थान भेंटें रखने के लिए उपयुक्त हैं? (नहीं।) ऐसे में अगर वे पहले से ही वहाँ रखी हैं तो क्या करें? उन्हें तुरंत किसी दूसरी जगह भेज दो। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते और वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। वे इन चीजों का अनुमान लगाने या उनके बारे में सोचने में सक्षम नहीं हैं, उन्हें इनके बारे में कोई जानकारी नहीं होती और केवल जब कुछ गलत हो जाता है और राक्षस भेंटों को छीन ले जाते हैं, तो वे सोचते हैं, “हमें उन्हें पहले ही हटा देना चाहिए था,” और बस इस तरह से थोड़ा पश्चात्ताप महसूस करते हैं। लेकिन अगर कुछ भी गलत न हो, तो अगले दस साल बीत जाने पर भी वे भेंटों को वहाँ से नहीं ले जाएँगे। वे नहीं समझ सकते कि इस समस्या के कारण क्या गंभीर परिणाम हो सकते हैं और वे महत्व और तात्कालिकता के आधार पर चीजों को प्राथमिकता नहीं दे पाते। इस स्थिति का सामना करते समय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को स्पष्ट समझ होनी चाहिए, “जिन स्थानों पर भेंटें रखी जा रही हैं उनमें से एक स्थान उपयुक्त नहीं है। वातावरण बहुत खतरनाक है और आसपास के क्षेत्र में कई भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया है, उनका पीछा किया गया है या उन्हें निगरानी में रखा गया है। हमें भेंटों को वहाँ से निकालने का कोई तरीका सोचना होगा। उन्हें वहीं छोड़कर छिनने का इंतजार करने से बेहतर कदम होगा अपेक्षाकृत सुरक्षित स्थान पर ले जाना।” जब कोई स्थिति अभी-अभी उत्पन्न हुई हो और वे ताड़ लें कि भेंटें खतरे में है तो उन्हें तुरंत हटा देना चाहिए, ताकि उन्हें बड़े लाल अजगर राक्षस के कब्जे में जाने और हड़पने से बचाया जा सके। भेंटों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और किसी भी तरह की गड़बड़ी या चूक से बचने का यही एकमात्र तरीका है। यह वह काम है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए। जैसे ही खतरे का थोड़ा-सा भी संकेत मिले, जैसे ही किसी को गिरफ्तार किया जाए, जैसे ही कोई स्थिति उत्पन्न हो, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले सोचना चाहिए कि क्या भेंटें सुरक्षित हैं, क्या वे दुष्ट लोगों के हाथों में पड़ सकती हैं या दुष्ट लोग उन पर कब्जा कर सकते हैं, या राक्षस छीनकर ले जा सकते हैं और क्या भेंटों को कोई नुकसान हुआ है। उन्हें भेंटों की सुरक्षा के कदम तुरंत उठाने चाहिए। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता कह सकते हैं, “ये काम करने में हमें जोखिम उठाना होगा। क्या ऐसा हो सकता है कि हम ऐसा न करें? क्या ऐसा नहीं है कि हमारी पहली प्राथमिकता लोग हैं, यानी भेंटों को प्राथमिकता देना आवश्यक नहीं है, लोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए?” तुम उनके सवाल के बारे में क्या सोचते हो? क्या इन लोगों में मानवता है? (नहीं।) भेंटों की अच्छी तरह से सुरक्षा करना, उनका अच्छी तरह से प्रबंधन करना और उनकी अच्छी तरह से देखभाल करना—ये ऐसी जिम्मेदारियाँ हैं जिन्हें किसी भी अच्छे प्रबंधक को पूरा करना चाहिए। अधिक गंभीर शब्दों में, यह काम इस लायक है कि अपने जीवन का बलिदान भी करना पड़े तो कर दो और यह वह काम है जो तुम्हें करना चाहिए। यह तुम्हारी जिम्मेदारी है। लोग हमेशा चिल्लाते रहते हैं, “परमेश्वर के लिए मरना एक सम्मानजनक मृत्यु है।” क्या लोग वास्तव में परमेश्वर के लिए मरने को तैयार हैं? अभी तुमसे परमेश्वर के लिए मरने को नहीं कहा जा रहा है; बस भेंटों की सुरक्षा के लिए तुमसे थोड़ा-सा जोखिम उठाने की अपेक्षा की जा रही है। क्या तुम ऐसा करने के लिए तैयार हो? तुमको खुशी से कहना चाहिए, “मैं तैयार हूँ!” क्यों? क्योंकि यह परमेश्वर का आदेश और मनुष्य से अपेक्षा है, यह तुम्हारी अपरिहार्य जिम्मेदारी है, और तुमको इससे बचने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। तुम्हारे इस दावे के मद्देनजर कि तुम परमेश्वर के लिए मर भी सकते हो, तुम थोड़ी-सी कीमत क्यों नहीं चुका सकते और भेंट की सुरक्षा के लिए थोड़ा-सा जोखिम क्यों नहीं ले सकते? क्या यह वह काम नहीं है जो तुम्हें करना चाहिए? यदि तुम कुछ भी वास्तविक कार्य नहीं करते, लेकिन हमेशा परमेश्वर के लिए मरने के बारे में चिल्लाते रहते हो, तो क्या ये शब्द खोखले नहीं हैं? अगुआओं और कार्यकर्ताओं को भेंटों की सुरक्षा के कार्य की शुद्ध समझ होनी चाहिए और उन्हें यह जिम्मेदारी उठानी ही चाहिए। उन्हें इससे बचना या इसे टालना नहीं चाहिए और अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटना चाहिए। चूँकि तुम अगुआ या कार्यकर्ता हो, इसलिए यह कार्य तुम्हारी एक ऐसी जिम्मेदारी है जिससे तुम मुँह नहीं मोड़ सकते हो। यह महत्वपूर्ण कार्य है—क्या तुम इसे तब भी करने के लिए तैयार हो, जब तुम्हें कुछ जोखिम उठाना पड़े या जब तुम्हारी जान दाँव पर लगी हो? क्या तुम्हें इसे करना चाहिए? (हाँ।) तुम्हें इसे करने का इच्छुक होना चाहिए; तुम्हें इस जिम्मेदारी को त्यागना नहीं चाहिए। यह मनुष्य से परमेश्वर की अपेक्षा है और यह वह आदेश है जो उसने मनुष्य को दिया है। परमेश्वर ने तुमको अपनी सबसे न्यूनतम अपेक्षा और आदेश बताया है—यदि तुम इसे पूरा करने के भी इच्छुक नहीं हो तो तुम क्या करने में सक्षम हो?
अगुआओं और कार्यकर्ताओं को भेंटों की सुरक्षा और खर्च का काम यथासंभव सावधानी और ठोस तरीके से करना चाहिए। उन्हें इसमें ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए, इसे किसी दूसरे के काम की तरह नहीं मानना चाहिए और जिम्मेदारी से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को व्यक्तिगत रूप से जाँच-परख करनी चाहिए, इसमें रुचि लेनी चाहिए, इन चीजों के बारे में पूछताछ करनी चाहिए और यहाँ तक कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से सँभालना चाहिए, ताकि बुरे लोगों और घटिया मानवता वाले लोगों को चूक का फायदा उठाने और विनाश करने से दूर रखा जा सके। जितनी अधिक सावधानी से तुम यह काम करोगे, बुरे और खराब लोगों को चूक का फायदा उठाने का उतना ही कम मौका मिलेगा; तुम जितनी अधिक विस्तृत पूछताछ करोगे और तुम्हारा प्रबंधन जितना कठोर होगा, अनुचित खर्च, फिजूलखर्ची और बरबादी के मामले उतने ही कम होंगे। कुछ लोग कहते हैं, “क्या इस क्रियाकलाप का संबंध परमेश्वर के घर का धन बचाने से है? क्या परमेश्वर के घर में धन की कमी है? अगर ऐसा है तो मैं थोड़ा और भेंट दे दूँगा।” क्या यही सब चल रहा है? (नहीं।) यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है, यह मनुष्य से परमेश्वर की अपेक्षा है और यह एक सिद्धांत है जिसका अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस कार्य को करने में पालन करना चाहिए। परमेश्वर के विश्वासी के रूप में, परमेश्वर के घर में प्रबंधक की भूमिका निभाने वाले व्यक्ति के रूप में भेंटों के प्रति तुम्हारा रवैया जिम्मेदारी वाला और सख्त जाँच-परख करने वाला होना चाहिए; अन्यथा तुम यह कार्य करने योग्य नहीं हो। यदि तुम एक ऐसे साधारण विश्वासी होते जिसमें जिम्मेदारी की भावना न होती और जो सत्य का अनुसरण न कर रहा होता तो तुमसे ये चीजें करने की अपेक्षा न की जाती। तुम अगुआ या कार्यकर्ता हो; यदि तुममें जिम्मेदारी की यह भावना नहीं है तो तुम अगुआ या कार्यकर्ता होने लायक नहीं हो और भले ही तुम अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में सेवा करते हो, तुम एक गैर-जिम्मेदार नकली अगुआ या कार्यकर्ता हो और देर-सवेर तुमको हटा दिया जाएगा। वे सभी लोग जिनमें जिम्मेदारी की भावना का पूर्ण अभाव है, वे वही लोग हैं जो परमेश्वर के घर के कार्य का बिल्कुल भी बचाव नहीं करते—उन सभी में थोड़ी-सी भी अंतरात्मा और विवेक नहीं है। ऐसे लोग भला कर्तव्य कैसे निभा सकते हैं? वे सभी विचारहीन कूड़ा हैं—उन्हें तुरंत परमेश्वर का घर छोड़ देना चाहिए और उस दुनिया में वापस चले जाना चाहिए जहाँ के वे हैं!
यदि हम भेंटों के बारे में सामान्य ज्ञान, भेंटों की सुरक्षा में शामिल सत्यों और जिन सिद्धांतों का लोगों को पालन करना चाहिए उन पर इस तरह से संगति न करते, तो क्या तुम लोग इन चीजों के बारे में अस्पष्ट नहीं रहते? (हम अस्पष्ट रहते।) लोग जब सटीक सिद्धांतों के बारे में अस्पष्ट होते हैं, तो क्या वे अपनी कुछ जिम्मेदारी निभा सकते हैं? क्या वे अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं? क्या अधिकांश लोग इस सबसे छिछले सिद्धांत और नियम पर नहीं चल रहे हैं कि “कुछ भी हो, मैं परमेश्वर की भेंटों का लालच नहीं करता, मैं उन्हें हड़पता नहीं हूँ या उनका गबन नहीं करता और मैं उन पर अच्छी निगहबानी रखता हूँ और लोगों को उन्हें मनमाने ढंग से खर्च नहीं करने देता—इतना ही काफी है”? क्या यह सत्य का अभ्यास है? क्या यह अपनी जिम्मेदारी निभाना है? (नहीं।) यदि अधिकांश लोगों का ज्ञान इस मानक से आगे नहीं जाता, तो यह विषय वास्तव में संगति के योग्य है। इस संगति के माध्यम से, क्या अब तुम पहले की तुलना में थोड़ा-सा और अच्छी तरह से जानते और समझते हो कि भेंटों की सुरक्षा कैसे करें और उन्हें सुरक्षित रखने में तुम्हारा दृष्टिकोण और ज्ञान कैसा होना चाहिए? (हाँ।) हम अपनी संगति का समापन भेंटों से संबंधित सत्यों और उन सिद्धांतों से करेंगे जिनका संबंध भेंटों के साथ किए जाने वाले व्यवहार और उनके प्रबंधन के तरीकों से है।
भेंटों के संबंध में नकली अगुआओं के रवैये और अभिव्यक्तियाँ
I. भेंटों को साझा संपत्ति समझना
अब हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की ग्यारहवीं मद के संबंध में नकली अगुआओं का एक साधारण प्रकाशन और गहन-विश्लेषण करेंगे। हम देखेंगे कि भेंटों, भेंटों की सुरक्षा और उनके प्रबंधन के प्रति नकली अगुआओं का रवैया और अभिव्यक्तियाँ क्या होती हैं। पहली अभिव्यक्ति यह है कि नकली अगुआओं को भेंटों के बारे में सटीक ज्ञान नहीं होता। वे मानते हैं, “भेंटें केवल नाम के लिए परमेश्वर को अर्पित की जाती हैं, लेकिन वास्तव में वे कलीसिया को दी जाती हैं। हम नहीं जानते कि परमेश्वर कहाँ है, और वैसे भी वह इतनी सारी चीजों का उपयोग नहीं कर सकता। ये भेंटें केवल नाम के लिए परमेश्वर को अर्पित की जा रही हैं; वास्तव में वे कलीसिया और परमेश्वर के घर को अर्पित की जा रही होती हैं, और उन्हें किसी भी व्यक्ति को स्पष्ट रूप से नहीं अर्पित किया जाता है। कलीसिया और परमेश्वर का घर उनसे जुड़े सभी लोगों के पर्याय हैं और इसका निहितार्थ यह है कि भेंटें सबकी हैं और जो सबकी है वह आम संपत्ति है। इसलिए भेंटें आम संपत्ति हैं जो सभी भाई-बहनों की हैं।” क्या यह समझ बिल्कुल ठीक है? स्पष्ट रूप से बिल्कुल भी नहीं। क्या ऐसी समझ रखने वाले लोगों की मानवता में कोई समस्या नहीं है? क्या वे वही लोग नहीं हैं जो भेंटों की लालसा रखते हैं? लालची दिल वाले और भेंटों को हड़पने की इच्छा रखने वाले लोग भेंटों के मामले में यह तरीका और दृष्टिकोण अपनाते हैं। जाहिर है, वे भेंटों पर नजर गड़ाए रखते हैं और उन्हें अपने आनंद के लिए इस्तेमाल करना चाहेंगे। ये किस तरह के प्राणी हैं? क्या वे यहूदा की बिरादरी के नहीं हैं? तो इस तरह के अगुआ या कार्यकर्ता परमेश्वर की भेंटों को कलीसिया की आम संपत्ति मानते हैं। वे अपने दिल में इस तरह का रवैया पालते हैं—वे भेंटों की गंभीरता से सुरक्षा नहीं करते या उचित तरीके और जिम्मेदारी से उनका प्रबंधन नहीं करते, इसके बजाय वे भेंटों का इस्तेमाल अपनी मर्जी से, बेशर्मी से और बिल्कुल अनियंत्रित और सिद्धांतहीन तरीके से करते हैं। वे किसी को भी इन भेंटों का इस्तेमाल करने देते हैं, और जिस किसी का “आधिकारिक पद” बड़ा होता है, जिस किसी का रुतबा ऊँचा होता है, भाई-बहनों के बीच जो कोई प्रतिष्ठित होता है, उसे ही इन पर कब्जा करने और इस्तेमाल में प्राथमिकता मिलती है। यह बिल्कुल समाज की कंपनियों और कारखानों की तरह ही है, जहाँ कंपनी की कारें और अच्छी, उच्चस्तरीय चीजें प्रबंधकों, कारखाने के निदेशकों और अध्यक्षों के उपयोग के लिए होती हैं। उनका मानना है कि परमेश्वर की भेंटों के साथ भी ऐसा ही होना चाहिए, कि जो कोई भी अगुआ या कार्यकर्ता है, उसे ही परमेश्वर के घर की उच्चस्तरीय चीजों का, परमेश्वर को चढ़ाई गई भेंटों का आनंद लेने में प्राथमिकता मिले। इसलिए जो अगुआ और कार्यकर्ता होने के बहाने उच्चस्तरीय कंप्यूटर और सेल फोन खरीदते हैं, साथ ही जो अगुआ और कार्यकर्ता भेंटों को अपने उपयोग के लिए ले लेते हैं, वे सभी मानते हैं कि भेंटें आम संपत्ति हैं और वे जैसे चाहें वैसा इनका उपयोग और अपव्यय होना चाहिए। जब कुछ भाई-बहन सोने और चाँदी के गहने, बैग, कपड़े और जूते अर्पित करते हैं तो वे यह उल्लेख नहीं करते कि वे उन्हें परमेश्वर को अर्पित कर रहे हैं, और इसलिए कुछ नकली अगुआ मानते हैं, “चूँकि उन्होंने यह उल्लेख नहीं किया कि ये वस्तुएँ परमेश्वर को चढ़ाई जा रही हैं, इसलिए उन्हें कलीसिया के उपयोग के लिए होना चाहिए। कलीसिया को जो कुछ भी दिया जाता है वह आम संपत्ति है और अगुआओं और कार्यकर्ताओं को आम संपत्ति का आनंद लेने में प्राथमिकता मिलनी चाहिए।” और इसलिए वे इन चीजों को बेहिचक अपने लिए ले लेते हैं। उनके छाँटने के बाद बची हुई चीजों का उपयोग कोई भी कर सकता है और जो चाहे ले सकता है—हर कोई उन्हें आपस में बाँट लेता है। ये अगुआ और कार्यकर्ता इसे धन साझा करना कहते हैं; उनका अनुसरण करने से लोग अच्छा खा-पी सकते हैं और वास्तव में आनंद ले सकते हैं। हर कोई खुश रहता है और कहता है, “परमेश्वर का धन्यवाद—अगर हम उस पर विश्वास न करते तो क्या हम इन चीजों का आनंद ले पाते? ये भेंटें हैं और हम इनका आनंद लेने के योग्य नहीं हैं!” वे कहते हैं कि वे इनके योग्य नहीं हैं, फिर भी वे उन चीजों को कसकर पकड़े रहते हैं, छोड़ते नहीं। ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता सिर्फ भेंटों को झपटकर उन्हें आपस में बाँट ही नहीं देते और बिना किसी की स्वीकृति के उसका व्यक्तिगत रूप से आनंद ही नहीं लेते—ऐसा करते समय वे भेंटों के प्रबंधन, व्यय और उपयोग पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते, न ही वे उन्हें सँभालने और उनका लेखा-जोखा रखने के लिए उपयुक्त लोगों को चुनते हैं, और खातों की जाँच करने या व्यय की स्थिति की गहन समीक्षा करने की चिंता तो बिल्कुल ही नहीं करते। भेंटों के प्रबंधन के प्रति नकली अगुआओं की उदासीनता अराजकता पैदा करती है, और कुछ भेंटें गायब और फिजूलखर्च हो जाती हैं। नकली अगुआओं के कार्य की सबसे खास बात यह है कि हर कोई मनमर्जी से कार्य करता है। किसी भी टीम का पर्यवेक्षक जो कहता है, वही होता है और जब किसी टीम को कुछ खरीदने की जरूरत होती है तो वे स्वीकृति के लिए आवेदन प्रस्तुत किए बिना खुद ही खरीदने का फैसला कर सकते हैं। कार्य के लिए जरूरी चीजों को वे बिना इस बात की चिंता किए खरीद सकते हैं कि उनकी कीमत कितनी है, वे उन चीजों का इस्तेमाल कर सकते हैं या नहीं या वह चीज जरूरी है या नहीं—हर हाल में वे किसी व्यक्ति का धन नहीं, बल्कि भेंटें खर्च कर रहे होते हैं। नकली अगुआ न इसका पर्यवेक्षण करते हैं, न जाँच-परख करते हैं, सिद्धांतों के बारे में तो बिल्कुल भी संगति नहीं करते। जब कोई चीज खरीद ली जाती है तो नकली अगुआ इस बात पर कभी कोई ध्यान नहीं देते कि उसकी सुरक्षा करने वाला कोई है या नहीं, उसमें कुछ गड़बड़ हो सकती है या नहीं या उस पर जितना खर्च किया गया है, वह उतने खर्च के लायक है या नहीं। वे इन बातों पर कोई ध्यान क्यों नहीं देते? इसलिए कि इन पर लगने वाला धन उनका नहीं होता—उन्हें लगता है कि कोई भी इसे खर्च कर सकता है, क्योंकि किसी भी तरह से उनका पैसा नहीं खर्च हो रहा होता है। भेंटों के प्रबंधन के हर पहलू में अराजकता है। यह कितनी अराजक स्थिति है? यह स्थिति समाजवादी देशों के बड़े, सरकारी कारखानों जैसी ही है, जहाँ हर किसी को बराबर हिस्सा मिलता है, चाहे वह कितना भी काम करे। हर व्यक्ति कारखाने का सामान अपने घर ले जाता है, कारखाने का खाना खाता है और कारखाने से पैसा कमाता है और कारखाने की चीजों का गबन करता है। पूरी अराजकता होती है। नकली अगुआ किसी भी उपकरण या यंत्र को खरीदने में होने वाले खर्च का कोई नियम नहीं बनाते हैं। परमेश्वर का घर नियम बनाता है, लेकिन वे खर्चों की कड़ी समीक्षा, जाँच, खोज-खबर या निरीक्षण नहीं करते। वे इनमें से कोई भी काम नहीं करते। नकली अगुआओं का कार्य पूरी तरह से अराजक होता है, किसी भी चीज में कोई व्यवस्था नहीं होती, और हर जगह गड़बड़ियाँ रहती हैं। हर मोड़ पर बुरे लोगों और उन लोगों को जिनके हृदय गलत जगह लगे होते हैं, चूकों का फायदा उठाने और लाभ लेने के मौके दिए जाते हैं। वे लोग बेरोक-टोक परमेश्वर की भेंटों को फिजूलखर्च और बरबाद कर देते हैं, फिर भी उन्हें किसी भी तरह से दंडित नहीं किया जाता, न प्रतिबंध लगाया जाता है—उन्हें चेतावनी तक नहीं दी जाती है। ये किस तरह के अगुआ और कार्यकर्ता हैं? क्या वे जिस थाली में खा रहे हैं उसी में छेद नहीं कर रहे हैं? क्या वे परमेश्वर के घर के प्रबंधक हैं? वे परमेश्वर के घर के चोर गद्दार हैं!
इन अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कैसे देखा जाना चाहिए जो भेंटों की सुरक्षा का मामला आने पर जिम्मेदारी नहीं लेते? क्या वे नीच चरित्र के नहीं हैं और अंतरात्मा और विवेक से रहित नहीं हैं? ये नकली अगुआ भाई-बहनों द्वारा परमेश्वर और कलीसिया को अर्पित की गई चीजों को परमेश्वर के घर की संपत्ति मानते हैं और कहते हैं कि इन चीजों का प्रबंधन भाई-बहनों को एक समूह के रूप में करना चाहिए। और इसलिए जब समस्याओं से पर्दा हटता है और ऊपरवाला लोगों को जवाबदेह ठहराता है, तो वे अपना बचाव करने की पूरी कोशिश करते हैं और यह स्वीकार नहीं करते कि अगुआ बनने और रुतबा पाने के बाद उनका परमेश्वर की भेंटें चुरा या हड़प लेना कितनी गंभीर प्रकृति का मामला है। क्या ये लोग नीच चरित्र के नहीं हैं? वे निरे बेशर्म हैं! वे नहीं जानते कि भाई-बहन पैसे और वस्तुएँ क्यों चढ़ाते हैं, न ही यह जानते हैं कि वे उन चीजों को किसे चढ़ाते हैं। अगर परमेश्वर नहीं होता, तो कौन अपनी पसंद की चीजें आसानी से अर्पित करता? यह इतना सीधा तर्क है, फिर भी ये तथाकथित “अगुआ” इसे नहीं जानते या समझते। इन नकली अगुआओं का पसंदीदा जुमला है : “परमेश्वर के घर की भेंटें।” क्या इस अभिव्यक्ति में सुधार की आवश्यकता नहीं है? सही अभिव्यक्ति क्या होनी चाहिए? “भेंटें” या “परमेश्वर की भेंटें।” यदि तुम कोई विशेषण जोड़ रहे हो, तो तुम्हें “परमेश्वर” जोड़ना चाहिए—भेंटें केवल परमेश्वर की हैं। यदि तुम कोई विशेषण नहीं जोड़ते, तो यह केवल “भेंट” है—लोगों को अब भी पता होना चाहिए कि भेंटों का स्वामी सृष्टिकर्ता, परमेश्वर है, न कि मनुष्य। मनुष्य भेंटें रखने के योग्य नहीं है, और यहाँ तक कि याजक भी यह नहीं कह सकते कि भेंटें उनकी हैं—वे परमेश्वर की अनुमति से भेंटों का आनंद ले सकते हैं, लेकिन वे उनकी हैं नहीं। “भेंटों” के लिए विशेषण कभी भी कोई व्यक्ति नहीं होगा—यह केवल परमेश्वर हो सकता है, कोई और नहीं। तो यह बिल्कुल स्पष्ट है कि नकली अगुआओं द्वारा अक्सर बोली जाने वाली अभिव्यक्ति “परमेश्वर के घर की भेंटें” गलत है और इसे सही किया जाना चाहिए। “परमेश्वर के घर की भेंटें” या “कलीसिया की भेंटें” जैसा कोई वाक्यांश नहीं होना चाहिए। कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि “हमारी भेंटें” और “हमारे परमेश्वर के घर की भेंटें।” ये सभी अभिव्यक्तियाँ गलत हैं। परमेश्वर को भेंटें सृजित मानवजाति चढ़ाती है, परमेश्वर का अनुसरण करने वाले चढ़ाते हैं। केवल परमेश्वर को ही उनका स्वामी, उपयोगकर्ता और उपभोगकर्ता होने का अनन्य अधिकार है। भेंटें आम संपत्तियाँ नहीं हैं; वे मनुष्य की नहीं होतीं, कलीसिया और परमेश्वर के घर की तो बिल्कुल भी नहीं होतीं, इसके बजाय वे परमेश्वर की होती हैं। कलीसिया और परमेश्वर के घर को उनका उपयोग करने की अनुमति परमेश्वर देता है—यह उसका आदेश है। इसलिए “परमेश्वर के घर की भेंटें,” “कलीसिया की भेंटें” और “हमारी भेंटें” जैसी सभी अभिव्यक्तियाँ गलत हैं और इससे भी बढ़कर, वे गुप्त उद्देश्यों वाले लोगों की अभिव्यक्तियाँ हैं, इन अभिव्यक्तियों का उद्देश्य लोगों को गुमराह करना और उन्हें जड़ बना देना है, और इससे भी अधिक, लोगों को भ्रमित करना है। ये लोग भेंटों को कलीसिया, परमेश्वर के घर या सभी भाई-बहनों की आम संपत्ति के रूप में वर्गीकृत करते हैं। यह सब समस्यामूलक और दोषपूर्ण है और इसे ठीक किया जाना चाहिए। यह एक तरह के नकली अगुआओं की अभिव्यक्ति है। ऐसे लोग भेंटों को आम संपत्ति समझते हैं और उनका मनचाहा इस्तेमाल करते हैं; या वे मानते हैं कि अगुआ होने के नाते उन्हें इन चीजों को आवंटित करने का अधिकार है और इसलिए वे अपनी पसंद के लोगों को या सभी को ये चीजें समान रूप से आवंटित कर देते हैं। वे किस तरह का परिदृश्य रचने की कोशिश कर रहे होते हैं? ऐसा परिदृश्य जहाँ हर कोई समान हो, जहाँ हर कोई परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद ले सके, जहाँ हर कोई इन भेंटों को साझा करे। परमेश्वर के घर के संसाधनों का उदारता से प्रयोग करते हुए वे लोगों का समर्थन खरीदना चाहते हैं। क्या यह घृणित नहीं है? यह नीचतापूर्ण, बेशर्म व्यवहार है! ऐसे लोगों का चरित्रांकन कैसे किया जाना चाहिए? ऐसे नकली अगुआ भेंटों के लिए ललचाते हैं और लोगों को उनकी निगरानी करने, उन्हें उजागर करने और भेद पहचानने से रोकने के लिए वे अपने उपयोग से बची वस्तुओं को भाई-बहनों को आवंटित करते हैं, उनका समर्थन खरीदते हैं और ऐसा परिदृश्य रचते हैं जिसमें हर कोई समान होता है और जो हर किसी को उनके साथ जुड़कर फायदा लेने में सक्षम बनाता है, ताकि कोई उन्हें उजागर न करे। यदि तुम लोग ऐसे किसी अगुआ से मिलो जो तुम लोगों को कुछ फायदा लेने दे और जिसके साथ तुम लोग कुछ “साझा संपत्ति” का आनंद ले सको—यदि तुम्हारे पास यह अधिकार हो और तुम इस प्रकार का लाभ उठाते हो तो क्या तुम लोगों को इससे खुशी मिलेगी? क्या तुम लोग इसे अस्वीकार कर पाओगे? (हम अस्वीकार करेंगे।) यदि तुम लोग लालची हो, तुम्हारे पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल न हो और तुम परमेश्वर से नहीं डरते तो तुम ऐसा नहीं कर पाओगे। जिस किसी के पास थोड़ी-सी भी सत्यनिष्ठा, थोड़ा-सा भी विवेक और परमेश्वर का भय मानने वाला थोड़ा-सा भी दिल होगा, वह इसे अस्वीकार कर देगा और उस अगुआ को फटकारने, उसकी काट-छाँट करने और रोकने के लिए भी खड़ा हो जाएगा और कहेगा : “अगुआ के रूप में तुम्हें जो काम सबसे पहले करना चाहिए वह है भेंटों का अच्छी तरह से प्रबंधन करना, उनका गबन न करना और अपनी इच्छा के आधार पर उन्हें सभी को अनधिकृत रूप से आवंटित करने का निर्णय तो बिल्कुल भी न करना। तुम्हारे पास यह अधिकार नहीं है; परमेश्वर ने तुम्हें यह आदेश नहीं दिया है। भेंटें परमेश्वर के उपयोग के लिए हैं और कलीसिया द्वारा उनका उपयोग किए जाने के कुछ सिद्धांत हैं—उन पर किसी का भी अंतिम अधिकार नहीं है। तुम अगुआ हो सकते हो लेकिन तुम्हारे पास वह विशेषाधिकार नहीं है। परमेश्वर ने तुम्हें यह प्रदान नहीं किया है। तुम्हें परमेश्वर की चीजें इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं है—परमेश्वर ने तुम्हें यह कार्य नहीं सौंपा है। इसलिए भाई-बहनों द्वारा परमेश्वर को चढ़ाए गए सोने-चाँदी के गहने तुरंत उतारो और वे कपड़े भी उतारो जो उन्होंने परमेश्वर को अर्पित किए थे। जल्दी करो और उन चीजों को चट कर जाने का हर्जाना चुकाओ जो तुम्हें नहीं खानी चाहिए थीं। अगर तुम अभी भी एक इंसान हो और तुममें थोड़ी-सी भी शर्म है, तो यह काम तुरंत करो। यही नहीं, तुमने समर्थन पाने के लिए इन भेंटों को चाहे जिसे दिया हो या तुमने चाहे जिसे उन पर अधिकार जमा कर उनका आनंद लेने दिया हो, उनसे उन भेंटों को तुरंत वापस लो। अगर तुम ऐसा नहीं करते तो मैं सभी भाई-बहनों को सूचित कर दूँगा और तुम्हारे साथ यहूदा की तरह व्यवहार किया जाएगा!” क्या तुम लोग ऐसा करने की हिम्मत करोगे? (हाँ।) भेंटों के मामले में हर किसी की यह जिम्मेदारी होती है और सभी को ऐसी ही अंतरात्मा और इसी तरह के रवैये के साथ व्यवहार करना चाहिए। बेशक, सभी लोगों का यह भी दायित्व है कि वे इस बात की निगरानी करें कि दूसरे लोग भेंटों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, क्या वे उनकी अच्छी तरह से सुरक्षा कर रहे हैं और क्या वे सिद्धांतों के अनुसार उनका प्रबंधन कर रहे हैं। ऐसा मत सोचो कि इसका तुमसे कोई संबंध नहीं है और फिर यह कहते हुए जिम्मेदारी से बचो, “वैसे भी, मैं कोई अगुआ या कार्यकर्ता नहीं हूँ, यह मेरी जिम्मेदारी नहीं है। अगर मुझे इसका पता भी चल जाए, तो मुझे इसके बारे में परेशान होने या कुछ कहने की जरूरत नहीं है—यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं का मामला है। जो कोई भी मनमाने तरीके से पैसे खर्च करता है और भेंटों का गबन करता है वह यहूदा है, और समय आने पर परमेश्वर उसे सजा देगा। जो कोई भी किसी परिणाम का कारण बनेगा, वह उसके लिए जिम्मेदार होगा। मुझे इस बारे में परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। इस बारे में बेमौके मेरे बोलने से क्या फायदा होगा?” इस तरह के व्यक्ति के बारे में तुम लोग क्या सोचते हो? (उसमें अंतरात्मा नहीं है।) अगर तुम्हें पता चल जाए कि जिन कुछ क्षेत्रों में अगुआ और कार्यकर्ता ध्यान नहीं देते, वहाँ ऐसे लोग हैं जो भेंटों का अपव्यय कर रहे हैं और उन्हें हड़प रहे हैं, तो इस कार्य में शामिल लोगों को तुम्हें व्यक्तिगत रूप से चेतावनी देनी चाहिए और इस बारे में फौरन अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सूचना देनी चाहिए। तुम लोगों को कहना चाहिए, “हमारे दल का मुखिया और हमारे अगुआ अक्सर भेंटों को अपने लिए रख लेते हैं। वे मनमाने ढंग से भेंटें खर्च करते हैं और दूसरों के साथ चर्चा किए बिना बस खुद ही तय कर लेते हैं कि कोई भी चीज खरीदनी है या नहीं। उनके ज्यादातर खर्च सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं। क्या परमेश्वर का घर इससे निपट सकता है?” परमेश्वर के चुने हुए लोगों की जिम्मेदारी है कि वे जो भी समस्याएँ देखें, उनके बारे में रिपोर्ट करें और सूचना दें। हमारी पिछली संगति एक तरह के नकली अगुआ की अभिव्यक्ति के बारे में रही है—भेंटों के प्रति उनका रवैया उन्हें साझा संपत्ति मानने का है।
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