अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (12) खंड दो

भेंटों की सुरक्षा के संबंध में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ

I. भेंटों की उचित सुरक्षा करना

अब हम यह देखेंगे कि भेंटों की सुरक्षा के मामले में अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ठीक-ठीक कौन सी जिम्मेदारियाँ निभानी चाहिए। भेंटों के मामले में अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले यह समझना चाहिए कि भेंटें क्या होती हैं। जब लोग अपनी प्राप्तियों का दसवाँ हिस्सा अर्पित करते हैं, तो वह भेंट होती है; जब वे स्पष्ट रूप से बताते हैं कि वे परमेश्वर को पैसे या वस्तुएँ चढ़ा रहे हैं, तो वे भेंटें होती हैं; जब वे स्पष्ट रूप से बताते हैं कि वे कलीसिया और परमेश्वर के घर को कोई वस्तु अर्पित कर रहे हैं, तो वह भेंट होती है। भेंट की परिभाषा और अवधारणा को समझ लेने के बाद अगुआओं और कार्यकर्ताओं को लोगों द्वारा अर्पित की जाने वाली भेंटों की एक निश्चित समझ होनी चाहिए और उन्हें उसका प्रबंधन करना चाहिए, और इस संबंध में उपयुक्तता की उचित जाँच-पड़ताल करनी चाहिए। सबसे पहले उन्हें भरोसेमंद लोगों को ढूँढ़ना चाहिए जिनकी मानवता मानक के अनुरूप हो ताकि वे भेंटों का लेखा-जोखा व्यवस्थित रूप से रखने और उनकी सुरक्षा करने के लिए अभिरक्षक के रूप में कार्य कर सकें। यह उस कार्य का पहला हिस्सा है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना ही चाहिए। भेंटों के ये अभिरक्षक हो सकता है कि वे औसत काबिलियत के हों और अगुआ या कार्यकर्ता बनने में अक्षम हों, लेकिन उन्हें विश्वसनीय होना चाहिए और उन्हें कुछ भी गबन नहीं करना चाहिए, उनके नियंत्रण में रहते हुए भेंटें गायब न हों या उनमें घालमेल न हो और उन्हें ठीक से सुरक्षित रखा जाए। इसके लिए कार्य व्यवस्था में नियम हैं। इस काम के लिए मानक-स्तरीय मानवता वाले भरोसेमंद व्यक्ति से कम कुछ भी नहीं चलेगा। खराब मानवता वाले लोग जब कोई अच्छी चीज देखते हैं, तो वे उसे पाने के लिए लालायित हो जाते हैं और वे हमेशा इसे हथियाने के अवसरों की तलाश में रहते हैं। कुछ भी हो जाए, वे हमेशा लाभ उठाने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोगों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। मानक-स्तरीय मानवता वाले व्यक्ति को कम-से-कम ईमानदार तो होना ही चाहिए, एक ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिस पर लोग भरोसा करते हों। यदि उसे भेंटों की सुरक्षा या कलीसिया की संपत्तियों का प्रबंधन करने का काम सौंपा जाता है, तो वह इसे अच्छी तरह से, ध्यानपूर्वक, लगन से और बहुत सावधानी से करेगा। उसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल होता है और वह इन चीजों का गबन नहीं करेगा, उन्हें उधार नहीं देगा, इत्यादि। संक्षेप में, भेंटें उसे सौंप देने के बाद तुम निश्चिंत हो सकते हो कि उसका एक भी पैसा नहीं खोएगा और एक भी वस्तु नहीं खोएगी। ऐसे व्यक्ति को अवश्य ढूँढ़ा जाना चाहिए। इसके अलावा, परमेश्वर के घर में एक नियम है कि इस तरह के केवल एक व्यक्ति को नहीं ढूँढ़ा जाना चाहिए; सबसे अच्छा होगा कि दो या तीन लोग हों; उनमें से कोई लेखा-जोखा रखेगा और कोई सुरक्षा करेगा। ऐसे लोगों के मिल जाने पर भेंटों को वर्गीकृत किया जाना चाहिए, और उनका व्यवस्थित लेखा-जोखा तैयार किया जाना चाहिए कि कौन किस श्रेणी की चीज की सुरक्षा कर रहा है, और वे कितनी सुरक्षा कर रहे हैं। उपयुक्त लोगों के मिल जाने और चीजों के सुरक्षित और श्रेणियों में पंजीकृत हो जाने पर क्या कहानी खत्म हो जाती है? (नहीं।) तो फिर आगे क्या किया जाना चाहिए? हर तीन से पाँच महीने में आवक-जावक के खातों की जाँच की जानी चाहिए ताकि यह देखा जा सके कि वे सही हैं या नहीं—यानी, क्या लेखा-जोखा रखने वाले ने लेखांकन में सटीकता बरती है, क्या पंजीकरण करते समय कुछ छूट तो नहीं गया है, क्या कुल राशि आवक-जावक के खातों के अनुरूप है, इत्यादि। इस तरह के लेखांकन का काम ध्यानपूर्वक किया जाना चाहिए। जो अगुआ और कार्यकर्ता इस तरह के काम में बहुत पारंगत न हों, उन्हें इसके लिए किसी ऐसे व्यक्ति की व्यवस्था करनी चाहिए जो इस काम में अपेक्षाकृत कुशल हो और फिर खुद नियमित निरीक्षण करना चाहिए और उनकी रिपोर्ट पर ध्यान देना चाहिए। निष्कर्ष यह है कि वे लेखांकन और समग्र योजना के काम को खुद समझते हों या नहीं, वे भेंटों की सुरक्षा का काम बिना रखवाले के नहीं छोड़ सकते, न ही वे इसकी उपेक्षा कर सकते हैं कि इस पर आगे पूछताछ ही न करें। इसके बजाय, उन्हें नियमित निरीक्षण करना चाहिए, यह पूछना चाहिए कि जिन खातों की जाँच की जा चुकी है, वे कैसे हैं और क्या वे मेल खाते हैं, और फिर खर्चों के कुछ लेखे-जोखों की मौके पर जाँच करनी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि हाल ही में खर्च की स्थिति क्या रही है, क्या कोई बरबादी हुई है, बही-खाता किस स्थिति में है, और क्या आवक की राशियों का जावक की राशियों से मिलान हो रहा है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की इन सभी परिस्थितियों पर मजबूत पकड़ होनी चाहिए। भेंटों की सुरक्षा में यह एक काम शामिल है। क्या तुम लोग कहोगे कि यह काम आसान है? क्या इसमें कोई चुनौती है? कुछ अगुआ और कार्यकर्ता कहते हैं, “मुझे संख्याएँ पसंद नहीं हैं; उन्हें देख कर मुझे सिरदर्द होने लगता है।” तो ठीक है, निरीक्षण और पर्यवेक्षण में अपनी मदद करने के लिए एक उपयुक्त व्यक्ति ढूँढ़ो; उससे इन चीजों की जाँच-परख करने में मदद लो। हो सकता है कि तुम्हें यह काम पसंद न हो या तुम्हें यह अच्छी तरह से न आता हो, लेकिन अगर तुम जानते हो कि लोगों का उपयोग कैसे करें और लोगों का उपयोग सही ढंग से कैसे करे, तो भी तुम इस काम को अच्छी तरह से कर लोगे। इसे करने के लिए उपयुक्त लोगों का इस्तेमाल करो और तुम उनकी रिपोर्ट पर गौर कर सकते हो। इससे भी काम चल जाता है। उस काम के प्रभारी व्यक्ति के साथ सभी सुरक्षित संपत्तियों की नियमित रूप से जाँच करने और उनका मिलान करने, और फिर महत्वपूर्ण व्ययों के बारे में कुछ प्रश्न पूछने के सिद्धांत का पालन करो—क्या तुम ऐसा कर सकते हो? (हाँ।) अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह कार्य क्यों करना चाहिए? क्योंकि यह भेंटों की सुरक्षा करना है—यह तुम्हारी जिम्मेदारी है।

लोग परमेश्वर को जो चीजें भेंट करते हैं, वे परमेश्वर के आनंद के लिए होती हैं, लेकिन क्या वह उनका उपयोग करता है? क्या परमेश्वर के लिए इस धन और इन वस्तुओं का कोई उपयोग है? क्या परमेश्वर को अर्पित की जाने वाली ये भेंटें सुसमाचार कार्य फैलाने में लगाने के लिए नहीं हैं? क्या वे परमेश्वर के घर के कार्य के सभी खर्चों के लिए नहीं हैं? चूँकि वे परमेश्वर के घर के कार्य से संबंधित हैं, इसलिए भेंटों का प्रबंधन और व्यय दोनों ही में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ शामिल होती हैं। यह धन कोई भी अर्पित करे या ये वस्तुएँ कहीं से आएँ, जब तक वे परमेश्वर के घर की हैं, तुमको उनका अच्छी तरह से प्रबंधन करना चाहिए और तुमको इसकी खोज-खबर लेनी चाहिए, इसका निरीक्षण करना चाहिए और इसका ध्यान रखना चाहिए। यदि परमेश्वर को अर्पित की गई भेंटों को परमेश्वर के सुसमाचार का कार्य फैलाने के लिए उचित रूप से खर्च न करके उसे अनाप-शनाप फिजूलखर्च और बरबाद किया जाता है, या कि बुरे लोग उसे हड़प लेते हैं या उस पर कब्जा कर लेते हैं, तो क्या यह उचित है? क्या यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा जिम्मेदारी की उपेक्षा नहीं है? (है।) यह उनके द्वारा जिम्मेदारी की उपेक्षा है। इसलिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह कार्य अवश्य करना चाहिए। यह उनका अनिवार्य दायित्व है। भेंटों का अच्छी तरह से प्रबंधन करना और उन्हें सुसमाचार कार्य फैलाने से लेकर परमेश्वर के प्रबंधन से संबंधित किसी भी कार्य में सही ढंग से उपयोग में लाना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है और इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। भाई-बहन बड़ी मेहनत से परमेश्वर को चढ़ाने के लिए थोड़ा पैसा बचा पाते हैं। मान लो कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं की लापरवाही और अपने कर्तव्य न निभाने के कारण यह पैसा बुरे लोगों के हाथों में चला जाता है—बुरे लोग इसे अनाप-शनाप फिजूलखर्च या बरबाद कर देते हैं या यहाँ तक कि इसे हड़प भी लेते हैं। परिणामतः, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास यात्रा-व्यय या जीवन-यापन के खर्चों के लिए पर्याप्त पैसा नहीं होता और जब परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें छापने या आवश्यक उपकरण और औजार खरीदने का समय आता है, तो उनके लिए भी पर्याप्त पैसा नहीं होता है। क्या यह काम में देर करना नहीं है? जब भाई-बहनों का चढ़ाया पैसा उचित उपयोग में लगाने के बजाय दुष्ट लोगों के कब्जे में चला जाता है और परमेश्वर के घर के काम के लिए पैसे खर्च करने की आवश्यकता होती है और पर्याप्त पैसा नहीं होता, तब क्या काम में बाधा नहीं आती? क्या अगुआ और कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल नहीं हुए होते हैं? (होते हैं।) क्योंकि अगुआ और कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहे होते हैं और उन्होंने भेंटों का ठीक से प्रबंधन नहीं किया होता और वे अच्छे प्रबंधक नहीं रहे होते या उन्होंने इस कार्य के संबंध में अपनी जिम्मेदारी पूरी करने में दिल नहीं लगाया होता है, इसलिए भेंटों का नुकसान हुआ होता है और कलीसिया का कुछ कार्य थोड़े समय के लिए पंगु हो जाता है या उसमें ठहराव आ जाता है। क्या इस स्थिति की बहुत बड़ी जिम्मेदारी अगुआओं और कार्यकर्ताओं की नहीं होती? यह अधर्म है। हो सकता है कि तुमने इन भेंटों को न हड़पा हो, फिजूलखर्च या बरबाद न किया हो और हो सकता है कि तुमने उन्हें अपनी जेब में न रखा हो, लेकिन यह स्थिति तुम्हारी लापरवाही और जिम्मेदारी की उपेक्षा करने के कारण आई है। क्या तुमको इसकी जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए? (लेनी चाहिए।) यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है!

II. खातों की जाँच

अपने काम में विभिन्न कार्य व्यवस्थाओं को ठीक से लागू करने और समस्याएँ हल करने के लिए सत्य पर संगति कर पाने के अलावा अगुआओं और कार्यकर्ताओं को भेंटों की अच्छी तरह से सुरक्षा करनी होती है। उन्हें परमेश्वर के घर की आवश्यकताओं के अनुसार भेंटों का व्यवस्थित प्रबंधन करने के लिए उपयुक्त लोगों को ढूँढ़ना होता है और समय-समय पर खातों की जाँच करनी होती है। कुछ लोग पूछते हैं, “मैं उनकी जाँच तब कैसे कर सकता हूँ जब परिस्थितियाँ इसकी अनुमति न दें?” “परिस्थितियाँ इसकी अनुमति न दें”—क्या यह खातों की जाँच न करने का एक कारण है? परिस्थितियाँ जब इसकी अनुमति न दें, तब भी तुम उनकी जाँच कर सकते हो; यदि तुम स्वयं न जा सको तो तुम्हें किसी विश्वसनीय, उपयुक्त व्यक्ति को पर्यवेक्षण करने के लिए और यह देखने के लिए अवश्य भेजना चाहिए कि क्या अभिरक्षक भेंटों की उचित तरीके से सुरक्षा कर रहा है, क्या खातों में कोई विसंगति तो नहीं है, क्या संरक्षक विश्वसनीय है, हाल ही में उसकी स्थितियाँ कैसी रही हैं और क्या वह नकारात्मक रहा है, क्या वह कुछ खास स्थितियों का सामना करने पर डरा था और कहीं विश्वासघात की संभावना तो नहीं है। मान लो कि तुम्हें पता चलता है कि उसके परिवार के सामने पैसों की तंगी है—तो क्या यह संभव है कि वह भेंटों का गबन करे? संगति करने और स्थिति की जाँच कर तुम जान सकते हो कि अभिरक्षक काफी विश्वसनीय है, कि वह जानता है कि भेंटों को नहीं छूना चाहिए और उसके परिवार के सामने पैसों की चाहे जितनी भी तंगी क्यों न हो, उसने भेंटों पर हाथ नहीं डाला है, और लंबी अवधि के अवलोकन के माध्यम से साबित हो सकता है कि अभिरक्षक पूरी तरह से विश्वसनीय है। इतना ही नहीं, यह जाँच की जानी चाहिए कि जिस घर में भेंटें रखी जा रही हैं, उसके आस-पास का वातावरण खतरनाक तो नहीं है, बड़े लाल अजगर ने वहाँ किसी भाई-बहन को गिरफ्तार तो नहीं किया है, क्या भेंटों के अभिरक्षक को किसी खतरे का सामना तो नहीं करना पड़ा है, क्या भेंटों को किसी उपयुक्त स्थान पर रखा गया है और उन्हें स्थानांतरित किया जाना चाहिए या नहीं। अभिरक्षकों के घरों के परिवेश और परिस्थितियों का अक्सर निरीक्षण किया जाना चाहिए, ताकि किसी भी समय उचित प्रत्युत्तर और योजनाएँ तैयार की जा सकें। ऐसा करते समय तुमको समय-समय पर यह पूछताछ भी करनी चाहिए कि किस टीम ने हाल ही में नए उपकरण हासिल किए हैं और वे उपकरण कैसे प्राप्त किए गए। यदि उन्हें खरीदा गया था, तो तुमको पूछना चाहिए कि क्या किसी ने उन आवेदनों की समीक्षा की थी और खरीदने से पहले उन पर हस्ताक्षर किए थे, उन्हें ऊँची कीमत पर खरीदा गया था या उचित बाजार मूल्य पर, कहीं धन अनावश्यक रूप से तो खर्च नहीं किया गया है, इत्यादि। मान लो कि खातों की जाँच और समीक्षा के माध्यम से बहीखातों में कोई समस्या नहीं मिलती है, लेकिन यह पता चल जाता है कि खरीदारी करने वाले कुछ लोग भेंटों को अक्सर अनाप-शनाप ढंग से उड़ा रहे हैं। कोई चीज कितनी भी महँगी क्यों न हो, वे उसे खरीद लेते हैं; इसके अलावा, जब उन्हें अच्छी तरह से पता होता है कि कोई उत्पाद छूट पर बिकने वाला है, मतलब कि उसकी कीमत घटेगी, तब भी वे प्रतीक्षा नहीं करते और इसके बजाय वे इसे तुरंत खरीद लेते हैं और वे अच्छी चीजें, उच्च-स्तरीय चीजें और नवीनतम मॉडल की चीजें ही खरीदते हैं। ये खरीदार सिद्धांतहीन और अनाप-शनाप ढंग से पैसा खर्च करते हैं और वे परमेश्वर के घर के लिए चीजें खरीदने में भेंट को ऐसे खर्च करते हैं मानो वे अपने दुश्मन के लिए काम कर रहे हों। वे कभी भी सिद्धांतों के अनुसार व्यावहारिक चीजें नहीं खरीदते हैं, बल्कि किसी भी दुकान से चीजें बेखटके खरीद लेते हैं, उनकी कीमत और गुणवत्ता चाहे जैसी हो। सामान ले आने के बाद वह इस्तेमाल के कुछ दिनों के भीतर टूट जाता है और ये खरीदार उसे ठीक नहीं करवाते, बल्कि नया सामान खरीद लेते हैं। खातों की जाँच और वित्तीय व्ययों की समीक्षा करते समय यदि ऐसा पाया जाता है कि कुछ लोग गंभीर रूप से फिजूलखर्ची कर रहे हैं और भेंटों को बरबाद कर रहे हैं, तो इससे कैसे निपटा जाए? क्या उन लोगों को अनुशासनात्मक चेतावनी जारी की जानी चाहिए या उनसे हर्जाना माँगा जाना चाहिए? बेशक, दोनों ही आवश्यक हैं। यदि पाया जाता है कि उनके हृदय सही जगह पर नहीं लगा है, कि वे गैर-विश्वासी या छद्म-विश्वासी हैं, कि वे शैतान हैं, तो समस्या का समाधान केवल अनुशासनात्मक चेतावनी देने या उनकी काट-छाँट करने से नहीं किया जा सकता। उनके साथ सत्य पर संगति चाहे जैसे की जाए, वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे; उनकी चाहे जितनी काट-छाँट की जाए, वे इसे गंभीरता से नहीं लेंगे। अगर उनसे हर्जाना भरने के लिए कहा जाए तो वे भर देंगे, लेकिन वे भविष्य में भी ऐसे ही काम करते रहेंगे और बदलेंगे नहीं। वे निश्चित रूप से परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार काम नहीं करेंगे; इसके बजाय, वे स्वेच्छाचारी, लापरवाह और सिद्धांतहीन तरीके से काम करते रहेंगे। इस तरह के व्यक्तियों से कैसे निपटा जाए? क्या उन्हें आगे चलकर इस्तेमाल किया जा सकता है? उनका इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए; अगर उनका इस्तेमाल किया जाता है तो अगुआ और कार्यकर्ता बहुत ठस हैं—वे बस निहायत मूर्ख हैं! जब ऐसे छद्म-विश्वासियों का पता चले तो उन्हें तुरंत बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए, हटा दिया जाना चाहिए और कलीसिया से निकाल दिया जाना चाहिए। वे सेवा करने के योग्य भी नहीं हैं—वे ऐसा करने के लिए अनुपयुक्त हैं!

खातों और खर्चों की जाँच करते समय हो सकता है कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को फिजूलखर्ची और बरबादी या कुछ अविवेकपूर्ण खर्चों के मामले ही न मिलें—उन्हें यह भी पता चल सकता है कि यह कार्य कर रहे कुछ लोगों का चरित्र निम्नस्तरीय है, कि वे नीच और स्वार्थी हैं और कि उन्होंने कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचाया है। तुमको अगर ऐसी स्थिति का पता चले तो तुम्हें इसे कैसे सँभालना चाहिए? इसे सँभालना आसान है : तुम्हें इसे मौके पर ही निपटाना और हल करना चाहिए—उन लोगों को बर्खास्त कर दो, फिर काम करने के लिए उपयुक्त लोगों को चुनो। उपयुक्त लोगों का मतलब है ऐसे लोग जिनकी मानवता मानक स्तर की हो, जिनके पास अंतरात्मा और विवेक हो और जो परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार चीजों को सँभालने में सक्षम हों। जब वे परमेश्वर के घर के लिए खरीदारी करेंगे, तो ऐसी किफायती चीजें खरीदेंगे जो अपेक्षाकृत व्यावहारिक और टिकाऊ भी हों और जिन्हें खरीदना जरूरी हो। जरूरी नहीं कि वे सस्ती चीजें ही खरीदने पर आमादा हों, लेकिन उन्हें सबसे महंगी चीजें खरीदने की जरूरत भी महसूस नहीं होनी चाहिए; एक समान उत्पादों के समूह में से वे उन उत्पादों को चुनेंगे जिनकी समीक्षाएँ और प्रतिष्ठा अच्छी होंगी, साथ ही मूल्य भी उचित होगा और यदि उनकी वारंटी लंबी होगी, तो निश्चित रूप से यह सोने पर सुहागा होगा। परमेश्वर के घर के वास्ते खरीदारी करने के लिए तुम्हें ऐसे ही लोग ढूँढ़ने चाहिए। उनका हृदय सही जगह लगा होना चाहिए और अपने कार्यकलापों में उन्हें परमेश्वर के घर को ध्यान में रखना चाहिए और उन्हें चीजों के हर पहलू पर गहराई से सोचने वाला होना चाहिए; उन्हें परमेश्वर के घर की आवश्यकताओं के अनुसार चीजों को सँभालना चाहिए और बिना किसी वाक्छल के स्पष्टता से अच्छे व्यवहार के साथ कार्य और आचरण करना चाहिए। जब तुम्हें कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाए तो उसे परमेश्वर के घर के लिए कुछ चीजें सँभालने दो और उसका प्रेक्षण करो। यदि वह अपेक्षाकृत उपयुक्त लगता है, तो उसका उपयोग किया जा सकता है। लेकिन एक बार यह व्यवस्था हो जाने भर से कहानी खत्म नहीं होती—आगे चलकर तुम्हें उससे मिलना चाहिए, उसके साथ संगति करनी चाहिए और उसके कार्य का निरीक्षण करना चाहिए। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या ऐसा इसलिए करना चाहिए कि उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता?” ऐसा पूरी तरह से भरोसा न होने के कारण नहीं है—भले ही उस पर भरोसा किया जा सकता हो, फिर भी कभी-कभी निरीक्षण किया जाना चाहिए। और किस बात का निरीक्षण किया जाना चाहिए? देखो कि क्या जिन स्थितियों में उसने सिद्धांतों को नहीं समझा होता उनमें उसके व्यवहार में कोई विचलन हुआ है या कि उसकी समझ में कोई विकार आ गया है। यह जरूरी है कि जाँच करके उसकी मदद की जाए। उदाहरण के लिए, मान लो कि वह कहता है कि बाजार में कोई वस्तु बहुत लोकप्रिय है, लेकिन उसे नहीं पता कि परमेश्वर के घर में उसका उपयोग है या नहीं, और वह चिंतित है कि यदि वह इसे अभी नहीं खरीदता है तो भविष्य में उसकी बिक्री बंद हो जाएगी। वह तुमसे पूछता है कि इसे कैसे सँभालना है। यदि तुम नहीं जानते, तो तुम्हें उसे किसी ऐसे व्यक्ति से पूछने को भेजना चाहिए जो उस पेशेवर काम में शामिल हो। वह पेशेवर तब कहता है कि वह वस्तु एक तरह की नवीन चीज है जो अधिकांश समय काम नहीं आएगी और उस पर पैसा खर्च करने की कोई आवश्यकता नहीं है। पेशेवर की राय को देखते हुए यह तय किया जाएगा कि उस वस्तु को खरीदने की कोई जरूरत नहीं है, कि उसे खरीदना बेकार होगा और उसे अभी न खरीदने से कोई नुकसान नहीं होगा। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपना काम इस हद तक करना चाहिए। कोई भी चीज चाहे कितनी भी महत्वपूर्ण या तुच्छ क्यों न हो, अगर वे उसे देख सकते हैं, उसके बारे में सोच सकते हैं या उसके बारे में पता लगा सकते हैं, तो उन्हें बराबर खोज-खबर लेनी चाहिए और निरीक्षण करना चाहिए और यह काम परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार निर्धारित तरीके से करना चाहिए। अपनी जिम्मेदारी निभाने का यही मतलब है।

कुछ लोग अक्सर कुछ वस्तुएँ खरीदने के लिए आवेदन करते हैं, परमेश्वर के घर से इन उत्पादों को खरीदने के लिए कहते हैं, और सावधानीपूर्वक समीक्षा और जाँच में आमतौर पर पाया जाता है कि अनुरोध की गई पाँच में से केवल एक चीज खरीदने की आवश्यकता है, अन्य चार खरीदने की कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसे मामलों में क्या किया जाना चाहिए? जिन वस्तुओं के लिए उन्होंने आवेदन किया होता है, उनके बारे में कड़ाई से समीक्षा और विचार किया जाना चाहिए, उन्हें जल्दबाजी में नहीं खरीदना चाहिए। उन्हें सिर्फ इसलिए नहीं खरीदा जाना चाहिए क्योंकि ये लोग कहते हैं कि काम के लिए उनकी आवश्यकता है—लोगों को अपने काम की आड़ में मनमाने ढंग से चीजों के लिए आवेदन करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। ये लोग चाहे कोई भी आड़ लें और कितनी भी अत्यावश्यकता दिखाएँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं या भेंटों के प्रबंधन के प्रभारी लोगों को बिल्कुल स्थिरचित्त रहना चाहिए। उन्हें बड़ी गंभीरता से इन चीजों का निरीक्षण और जाँच करनी चाहिए; थोड़ी सी भी त्रुटि नहीं होनी चाहिए। जिन चीजों को बिल्कुल खरीदा जाना चाहिए, उन पर शोध किया जाना चाहिए और अगुआओं द्वारा उन्हें हरी झंडी दी जानी चाहिए और यदि उन्हें खरीदना वैकल्पिक है, तो उन्हें अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए, स्वीकृति नहीं देनी चाहिए। अगर अगुआ और कार्यकर्ता इस काम को ध्यानपूर्वक, ठोस तरीके से और गहराई से करते हैं, तो इससे भेंटों की फिजूलखर्ची और बरबादी की घटनाएँ कम होंगी, और इससे भी बड़ी बात यह कि इससे अनुचित व्यय निश्चित रूप से कम होगा। यह काम केवल बहीखातों में दर्ज आवक-जावक को ध्यान से देखने का या संख्या जानने भर का मामला नहीं है। यह गौण है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम्हारा हृदय सही जगह पर लगा होना चाहिए और तुम्हें हर खर्च और हर प्रविष्टि को ऐसे देखना चाहिए जैसे कि यह तुम्हारे अपने बैंक खाते की कोई प्रविष्टि हो। तब तुम उन्हें सावधानी से देखोगे तो तुम उन्हें याद रख पाओगे और समझ पाओगे—और अगर कोई गलती या समस्या है, तो उसे बता पाओगे। अगर तुम उन्हें किसी दूसरे व्यक्ति के खाते या सार्वजनिक खाते के रूप में देखते हो, तो निश्चित रूप से तुम्हारी आँखें और दिमाग बंद हो जाएँगे, किसी भी समस्या को खोजने में असमर्थ होंगे। कुछ लोग बैंक में थोड़ा पैसा जमा करते हैं, और हर महीने अपना खाता-विवरण पढ़ते हैं और ब्याज पर नजर डालते हैं, फिर खातों की जाँच करते हैं—वे यह जाँचते हैं कि वे हर महीने कितना खर्च करते हैं, कितनी बार निकासी करते हैं और कितना जमा करते हैं। प्रत्येक प्रविष्टि उनके दिमाग में दर्ज होती है, वे हर संख्या को उतनी अच्छी तरह से जानते हैं जितना कि अपने घर का पता और अपने दिमाग में वे उनके बारे में स्पष्ट होते हैं। कहीं कोई समस्या उत्पन्न होने पर वे उसे एक नजर में पहचान सकते हैं और वे छोटी सी भी गलती को नजरअंदाज नहीं करते। लोग अपने धन के प्रति इतने सावधान हो सकते हैं, लेकिन क्या वे परमेश्वर की भेंटों के प्रति भी इतनी ही चिंता दिखाते हैं? मेरी राय में 99.9% लोग ऐसा नहीं करते, इसलिए जब परमेश्वर की भेंटें सुरक्षा के लिए लोगों को सौंप दी जाती हैं, तो फिजूलखर्ची और बरबादी और विभिन्न प्रकार के अनुचित व्यय के मामले अक्सर होते हैं, फिर भी कोई इसे समस्या नहीं मानता और इस कार्य के लिए जिम्मेदार लोगों की अंतरात्मा भी कभी इसकी पीड़ा महसूस नहीं करती। सौ युआन खोने की तो बात ही छोड़ो, यहाँ तक कि अगर वे हजार, दस हजार भी खो देते हैं, तो भी उन्हें अपने दिल में कोई धिक्कार, अपराध बोध या दोष महसूस नहीं होता। जब यह मामला आता है तो लोग इतने भ्रमित क्यों होते हैं? क्या यह इस बात का संकेत नहीं है कि ज्यादातर लोगों के हृदय सही जगह पर नहीं लगे हैं? ऐसा कैसे होता है कि तुम इस बारे में तो खूब स्पष्ट होते हो कि तुमने बैंक में अपना कितना पैसा जमा किया है? जब परमेश्वर के घर का पैसा अस्थायी रूप से तुम्हारे खाते में जमा किया जाता है, ताकि तुम उसे सुरक्षित रखो, तो तुम इसे गंभीरता से नहीं लेते या इसकी परवाह नहीं करते। यह कैसी मानसिकता है? जब परमेश्वर की भेंटों की सुरक्षा की बात आती है, तो तुम निष्ठावान भी नहीं होते, तो क्या तुम अभी भी परमेश्वर में विश्वास करते हो? भेंटों के प्रति लोगों का रवैया परमेश्वर के प्रति उनके रवैये का सबूत है—भेंटों के प्रति उनका रवैया बहुत कुछ बताता है। लोग भेंटों के प्रति उदासीन होते हैं और उन्हें इसे लेकर कोई चिंता नहीं होती। भेंटें अगर खो जाएँ तो उन्हें दुख नहीं होता; वे जिम्मेदारी नहीं लेते और उन्हें परवाह नहीं होती। तो क्या परमेश्वर के प्रति भी उनका ऐसा ही रवैया नहीं होता है? (होता है।) क्या कोई कहता है कि “परमेश्वर की भेंटें उसी की हैं। जब तक मैं उसके लिए ललचाता नहीं या उसे हड़पता नहीं हूँ तब तक सब ठीक है। जो कोई भी उन्हें हड़पेगा, वह दंडित किया जाएगा—यह उन लोगों का मामला है और वे इसी के लायक हैं। मेरा इससे कोई लेना-देना नहीं है। इस पर चिंता करना मेरा दायित्व नहीं है”? क्या यह कथन सही है? स्पष्टतः यह सही नहीं है। तब इसमें क्या गलत है? (उनके हृदय ठीक नहीं हैं; वे परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा नहीं करते और वे भेंटों की संरक्षा नहीं करते।) इस तरह के व्यक्ति की मानवता कैसी होती है? (यह स्वार्थी और नीच होती है। वह अपनी चीजों की बहुत परवाह करता है और उनकी बहुत अच्छी तरह से रक्षा करता है, लेकिन परमेश्वर की भेंटों की परवाह नहीं करता या उसके बारे में खोज-खबर नहीं रखता। ऐसे लोगों की मानवता इतनी घटिया होती है।) मुख्य रूप से ऐसा व्यक्ति स्वार्थी और नीच है। क्या ऐसे लोग निर्दयी नहीं हैं? वे स्वार्थी और नीच, निर्दयी हैं और मानवीय भावनाओं से रहित हैं। क्या ऐसे लोग परमेश्वर से प्रेम कर सकते हैं? क्या वे उसके प्रति समर्पण कर सकते हैं? क्या उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय हो सकता है? (नहीं।) तो फिर ऐसे लोग परमेश्वर का अनुसरण किस लिए करते हैं? (आशीष पाने के लिए।) क्या यह घोर शर्मनाक नहीं है? कोई व्यक्ति परमेश्वर की भेंटों के साथ कैसा व्यवहार करता है, यह उसकी प्रकृति को सबसे ज्यादा बेनकाब करता है। लोग वास्तव में परमेश्वर के लिए कुछ भी करने में सक्षम नहीं होते। अगर वे थोड़ा-बहुत कर्तव्य करने में सक्षम होते भी हैं, तो वह बहुत सीमित होता है। अगर तुम परमेश्वर की भेंटों के साथ भी ठीक से पेश नहीं आ सकते या उनकी अच्छी तरह से सुरक्षा नहीं कर सकते, अगर तुम उस तरह का दृष्टिकोण और रवैया रखते हो, तो क्या तुममें मानवता का सबसे अधिक अभाव नहीं है? क्या तुम्हारा यह कहना झूठ नहीं है कि तुम परमेश्वर से प्रेम करते हो? क्या यह छलपूर्ण नहीं है? यह बहुत छलपूर्ण है! इस तरह के व्यक्ति में मानवता बिल्कुल भी नहीं होती—क्या परमेश्वर ऐसे घटिया लोगों को बचाएगा?

III. सभी प्रकार के खर्चों पर अनुवर्ती पूछताछ करना, उन पर ध्यान देना और निरीक्षण करना, कड़ी जाँच-परख करना

परमेश्वर के घर का अच्छा प्रबंधक होने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जो पहला काम अच्छी तरह से करना चाहिए, वह है भेंटों का उचित प्रबंधन करना। भेंटों की उचित सुरक्षा करने के अलावा उन्हें भेंटों से होने वाले व्ययों के संबंध में कड़ी जाँच-परख करनी चाहिए। कड़ी जाँच-परख करने का क्या मतलब है? मुख्य रूप से इसका मतलब है अनुचित व्ययों को पूरी तरह से समाप्त करना और भेंटों की फिजूलखर्ची या बरबादी होने देने की बजाय हर खर्च को उचित और प्रभावी बनाने का प्रयास करना। अगर फिजूलखर्ची या बरबादी के मामले मिलें, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को न केवल उन्हें तुरंत रोकना चाहिए, बल्कि उसकी जवाबदेही भी तय करनी चाहिए और काम करने के लिए उपयुक्त लोगों की पहचान भी करनी चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ठीक-ठीक पता होना चाहिए कि प्रत्येक खर्च कहाँ हो रहा है और उनके प्रबंधन के दायरे में प्रत्येक व्यय किस चीज के लिए है—उन्हें इन चीजों की कड़ाई से समीक्षा करनी चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर किसी कमरे में पंखा नहीं है, तो उन्हें ये मापदंड निर्धारित करने चाहिए कि इसे कौन खरीदेगा, इस पर कितना खर्च किया जाएगा और इसमें किन क्रियात्मक-सुविधाओं का होना सबसे उपयुक्त होगा। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता कहते हैं, “हम व्यस्त हैं; हम इसे खरीदने का समय नहीं निकाल सकते।” तुमसे इसे स्वयं खरीदने के लिए नहीं कहा जा रहा है। तुम्हें इस कार्य को सँभालने के लिए एक अच्छे व्यक्ति, एक काबिल व्यक्ति को लाना चाहिए। इसे खरीदने के लिए किसी ऐसे मूर्ख या बुरे व्यक्ति को मत लाओ जिसका हृदय सही जगह न लगा हो। सामान्य मानवता के लोग जानते हैं कि उन्हें ऐसी चीजें खरीदनी हैं जिनमें उचित क्रियात्मक-सुविधाएँ हों और उनका मूल्य भी उचित हो—उनमें बहुत ज्यादा क्रियात्मक सुविधाओं का होना बेमतलब है और उनकी कीमत भी काफी अधिक होती है। इसके विपरीत आनंद की तलाश में रहने वाले जिन लोगों के हृदय सही जगह नहीं लगे होते, वे ऐसी अव्यावहारिक चीजें खरीदते हैं जिनमें विभिन्न प्रकार की क्रियात्मक सुविधाएँ होती हैं और जिनकी कीमत अधिक होती है। खरीदारों के पास विवेक होना चाहिए; उन्हें सिद्धांतों की समझ होनी चाहिए। खरीदी गई वस्तुएँ व्यावहारिक और किफायती होनी चाहिए और सबको लगना चाहिए कि ये उपयुक्त हैं। अगर तुम्हें कोई ऐसा गैर-जिम्मेदार व्यक्ति मिलता है जो इसे खरीदने के लिए अनाप-शनाप खर्च करते हुए फिजूलखर्ची पसंद करता है तो वह एक पंखे की कीमत पर खर्च होने वाली रकम से दस गुना ज्यादा कीमत पर एक बेहतरीन एयर कंडीशनर खरीदेगा। वह मानता है कि हालाँकि इसमें थोड़ा ज्यादा पैसा खर्च होता है, लेकिन पहली प्राथमिकता लोगों को दी जानी चाहिए—एयर कंडीशनर न केवल हवा को साफ करता है, बल्कि यह नमी और तापमान को भी समायोजित कर सकता है और इसमें कई तरह के टाइमर और सेटिंग हैं। क्या यह बरबादी नहीं है? यह बरबादी और फिजूलखर्ची है। वह व्यक्ति केवल मौज-मस्ती पर आमादा है और वह रोमांच के लिए, दिखावे के लिए पैसे खर्च कर रहा है, व्यावहारिक चीजें खरीदने के लिए नहीं। ऐसे लोगों के हृदय गलत जगह पर लगे होते हैं। अगर वे अपने लिए खरीदारी करते हैं, तो वे पैसे बचाने के तरीके खोजते हैं, छूट वाली चीजें ढूँढ़ते हैं और मोल-भाव करने की कोशिश करते हैं। वे जितने पैसे बचा सकते हैं, उतने बचाते हैं—जितना सस्ता मिले, उतना अच्छा। लेकिन जब वे परमेश्वर के घर के लिए खरीदारी करते हैं, तो वे चाहे जितना पैसा खर्च कर दें, उन्हें कोई परवाह नहीं होती। वे सस्ती चीजों को देखने का भी कष्ट नहीं करते; वे सिर्फ महँगी, उच्च-स्तरीय और अत्याधुनिक चीजें खरीदना चाहते हैं। इसका मतलब है कि उनके हृदय सही जगह पर नहीं लगे होते हैं। क्या ऐसे लोगों का इस्तेमाल किया जा सकता है जिनके हृदय गलत जगह पर लगे होते हैं? (नहीं।) जिन लोगों के हृदय गलत जगह पर लगे होते हैं वे परमेश्वर के घर के लिए काम करते समय सिर्फ बेतुके और बेकार काम करते हैं। वे सही चीजों पर पैसा खर्च नहीं करते; वे भेंटों का केवल अपव्यय और बरबादी करते हैं और उनका हर खर्च अनुचित होता है।

कुछ अन्य लोगों की दरिद्र मानसिकता होती है और उनका मानना होता है कि परमेश्वर के घर के लिए खरीदारी करते समय उन्हें सबसे सस्ती चीजें खरीदनी चाहिए—कोई चीज जितनी सस्ती होगी, उतना अच्छा रहेगा। उन्हें लगता है कि इससे परमेश्वर के घर का पैसा बच रहा है, इसलिए वे केवल अप्रचलित और घटे दामों वाली चीजें खरीदते हैं। नतीजतन वे सबसे सस्ती मशीनें खरीदते हैं जो घटिया होती हैं। ये मशीनें इस्तेमाल होते ही टूट जाती हैं और उनकी मरम्मत नहीं हो सकती और वे इस्तेमाल के लायक नहीं रह जातीं। फिर ऐसी दूसरी मशीनें खरीदनी पड़ती हैं जो पर्याप्त गुणवत्ता वाली हों और जिनका सामान्य रूप से इस्तेमाल किया जा सके और इस तरह एक और रकम खर्च हो जाती है। क्या यह मूर्खता नहीं है? ऐसे लोगों को कंजूस और दरिद्र मानसिकता वाला कहा जाना चाहिए। वे हमेशा परमेश्वर के घर का पैसा बचाना चाहते हैं, और उनकी सारी कंजूसी और बचत का क्या नतीजा निकलता है? यह पैसों की बरबादी, फिजूलखर्ची साबित होती है। वे अपने पक्ष में बहाने भी बनाते हैं : “मैंने यह जानबूझकर नहीं किया। मेरे इरादे नेक थे—मैं बस परमेश्वर के घर का पैसा बचाने की कोशिश कर रहा था—मैं अंधाधुँध तरीके से पैसा खर्च नहीं करना चाहता था।” क्या उनका ऐसा न करना चाहना उपयोगी है? वास्तव में वे अंधाधुँध तरीके से पैसा खर्च कर रहे हैं, उनकी वजह से बरबादी भी होती है और इसमें धन और जनशक्ति भी जाया होती है। ऐसे लोगों का भी उपयोग नहीं किया जा सकता है—वे मंदबुद्धि हैं, पर्याप्त समझदार नहीं हैं। संक्षेप में, जिन लोगों के हृदय गलत जगह लगे रहते हैं उनका और मंदबुद्धि लोगों का उपयोग परमेश्वर के घर की खरीदारी करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। जिनका इस्तेमाल किया जाना चाहिए उन्हें समझदार होना चाहिए और उनके पास खरीदारी का एक निश्चित अनुभव और एक निश्चित काबिलियत हो और वे बिना किसी विकृत तरीके से हर चीज देख सकते हों। जो भी खरीदा जा रहा हो, वह व्यावहारिक होना चाहिए और उसकी कीमत उचित होनी चाहिए, और अगर वह टूटे भी, तो उसे ठीक करना आसान होना चाहिए और उसके पुर्जे आसानी से मिल जाने चाहिए। यही उचित है। कुछ लोग कोई चीज खरीदने के बाद देखते हैं कि उसे एक महीने में वापस किया जा सकता है और वे उसका परीक्षण करने के लिए दौड़ पड़ते हैं और उन्हें एक महीने के भीतर ही परिणाम मिल जाते हैं। अगर कोई चीज थोड़ी खराब है और ठीक से काम नहीं करती, तो वे उसे तुरंत वापस कर देते हैं और कोई दूसरी चीज खरीद लेते हैं, जिससे नुकसान कम होता है। इन लोगों की मानवता अपेक्षाकृत अच्छी होती है। मानवताहीन लोग कोई चीज खरीदते हैं और फिर उसे एक ओर फेंक देते हैं। वे उसे आजमा कर यह भी नहीं देखते कि उसमें कुछ गड़बड़ है या नहीं या वह टिकाऊ है या नहीं, न ही वे यह देखते हैं कि उसकी वारंटी कितनी लंबी है या कितने समय के भीतर उसे वापस किया जा सकता है—उन्हें इनमें से किसी की भी बात की परवाह नहीं होती। जब किसी दिन अचानक उन्हें उस वस्तु में दिलचस्पी होती है, तो वे उसे लेते हैं और आजमाते हैं, लेकिन पाते हैं कि वह तो टूटी पड़ी है। तब वे रसीद देखते हैं और पाते हैं कि वापसी की अवधि बीत चुकी है और उस वस्तु को अब वापस नहीं किया जा सकता। फिर वे कहते हैं, “तो फिर दूसरा खरीद लेते हैं।” क्या यह बरबादी नहीं है? “चलो दूसरा खरीद लेते हैं”—इस वाक्यांश के साथ ही परमेश्वर के घर को एक और धनराशि चुकानी पड़ती है। दूसरी वस्तु खरीदने के लिए आवेदन करना ऊपरी तौर पर कलीसिया के काम की खातिर और एक उचित खर्च लगता है, जबकि वास्तव में यह सब उनके द्वारा वस्तु खरीदने के तुरंत बाद जाँच न करके अपने कर्तव्यों में बेख्याली की वजह से होता है। भेंटों की एक राशि बरबाद हो जाती है, और दूसरी राशि का भुगतान किया जाता है, और नई वस्तु की सुरक्षा के लिए अभी भी कोई जिम्मेदार नहीं है, इसलिए यह भी थोड़े समय तक इस्तेमाल के बाद टूट जाती है। यह आश्चर्यजनक है कि इन चीजों पर निगाह रखने वाला कोई नहीं है, पैदा होने वाली समस्याओं को सँभालने वाला कोई नहीं है—अगुआ और कार्यकर्ता क्या कर रहे हैं? इस कार्य के संबंध में उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों की पूरी तरह से उपेक्षा की है—उन्होंने पर्यवेक्षण, निरीक्षण और जाँच-परख करने का अपना काम नहीं किया है और इसलिए भेंटें इस तरह से फिजूलखर्च और बरबाद हुईं। यदि खरीदारी करने वाले लोगों में जिम्मेदारी की भावना हो तो वे खरीदी गई चीजें व्यावहारिक नजर न आने पर तुरंत वापस कर देंगे। इससे नुकसान और बरबादी कम होती है। अगर वे ऐसे गैर-जिम्मेदार लोग हैं जिनके हृदय गलत जगह पर लगे हैं, तो वे घटिया चीजें खरीदेंगे, जिससे भेंटों की बरबादी होगी। तो धन की इस हानि के लिए वास्तव में किसे जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए? क्या खरीदार और अगुआ और कार्यकर्ता सभी इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं? अगर अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने इस मामले को गंभीरता से, ठोस तरीके से और सावधानी से सँभाला होता, तो क्या ये समस्याएँ खोज न ली गई होतीं? क्या इन खामियों को ठीक नहीं कर लिया गया होता? (उन्हें ठीक कर लिया गया होता।) अगर अगुआ और कार्यकर्ता अक्सर विभिन्न स्थानों पर कलीसियाओं में जाकर भेंटों के व्यय की स्थिति का निरीक्षण करें, तो वे समस्याएँ पता लगा लेंगे और इस तरह की फिजूलखर्ची और बरबादी को खत्म कर पाएँगे। अगर अगुआ और कार्यकर्ता आलसी और गैरजिम्मेदार हों, तो अनुचित खर्चों, फिजूलखर्ची और बरबादी के ये मामले बार-बार सामने आएँगे—वे बढ़ते रहेंगे। इस बढ़ोतरी का क्या कारण है? क्या इसका कुछ संबंध अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा वास्तविक कार्य न करने और इसके बजाय खुद को दूसरों से ऊपर रखने और अप्रभावी अधिकारियों की तरह काम करने से नहीं है? (है।) ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास अंतरात्मा या विवेक नहीं होता और उनमें कोई मानवता नहीं होती। क्योंकि कलीसिया द्वारा खर्च किया जाने वाला सारा पैसा परमेश्वर के घर का होता है और यह सब परमेश्वर को मिली भेंटें हैं और उन्हें लगता है कि इसका उनसे कोई लेना-देना नहीं है, इसलिए वे न तो इसकी परवाह करते हैं और न ही इसके बारे में पूछते हैं और इसकी उपेक्षा करते हैं। ज्यादातर लोगों का मानना है कि परमेश्वर के घर का पैसा खर्च किया जाना चाहिए और इसे किसी भी तरह से खर्च करना ठीक है, यदि वे इसे जेब में न डालें या गबन न करें, तब तक इसकी बरबादी से कोई फर्क नहीं पड़ता, और ऐसा करके लोग सिर्फ अनुभव खरीदते हैं और अपने क्षितिज को व्यापक बनाते हैं। अगुआ और कार्यकर्ता इस पर आँखें मूँद लेते हैं : “कोई भी उस पैसे को जैसे चाहे खर्च कर सकता है और जो चाहे खरीद सकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितनी बरबादी हुई है—जो भी धन की बरबादी करता है, वही इसके लिए जिम्मेदार है और उसे भविष्य में प्रतिफल और दंड का सामना करना पड़ेगा—इसका मुझसे कोई मतलब नहीं है। आखिरकार मैं तो इसे खर्च नहीं कर रहा हूँ और मेरा पैसा तो खर्च नहीं हो रहा है।” क्या यह वही दृष्टिकोण और रवैया नहीं है जो गैर-विश्वासी लोग सार्वजनिक धन के खर्च के प्रति रखते हैं? यह वैसे ही है जैसे वे अपने दुश्मनों के पैसे खर्च कर रहे हों। गैर-विश्वासी लोग किसी कारखाने में काम करते हों और अगर प्रबंधन ढीला हो, तो सामुदायिक सामान हमेशा चोरी हो जाता है और लोगों के घरों में पहुँच जाता है या लापरवाही से बरबाद कर दिया जाता है और अगर कुछ टूट जाता है तो वे कारखाने से नया सामान खरीदने को कहते हैं। जब वे कारखाने के लिए खरीदारी करते हैं तो वे विशेष रूप से अच्छी और महँगी चीजें खरीदते हैं। कुछ भी हो, बिना किसी ऊपरी सीमा के पैसा मनमाने ढंग से खर्च किया जाता है। अगर परमेश्वर में विश्वास करने वाले भी भेंटों के प्रति ऐसी मानसिकता रखते हैं तो क्या उन्हें बचाया जा सकता है? क्या परमेश्वर ऐसे लोगों के समूह पर काम करेगा? (नहीं।) अगर परमेश्वर की भेंटों के प्रति लोगों का ऐसा रवैया है तो मेरे बताए बिना ही तुम्हें जान लेना चाहिए कि उन लोगों के प्रति परमेश्वर का रवैया कैसा है।

परमेश्वर के प्रति किसी व्यक्ति का रवैया जिस तरीके से सबसे प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होता है, वह है भेंटों के प्रति उसका रवैया। भेंटों के प्रति तुम्हारा जो भी रवैया होता है, वही रवैया तुम्हारा परमेश्वर के प्रति भी होता है। यदि तुम भेंटों के साथ वैसा ही व्यवहार करते हो, जैसे तुम अपने बैंक खाते की प्रविष्टियों के साथ करते हो—पूरे ध्यान से, सावधानी से, सतर्कता से, कठोरता से, जिम्मेदारी से और सजगता से—तो परमेश्वर के प्रति तुम्हारा रवैया कमोबेश ऐसा ही होता है। यदि भेंटों के प्रति तुम्हारा रवैया सार्वजनिक संपत्ति के प्रति या बाजार में सब्जियों के बारे में तुम्हारे रवैये जैसा है—अपनी जरूरत की कुछ सब्जियाँ लापरवाही से खरीद लेना और जो सब्जियाँ तुमको पसंद नहीं हैं उनकी ओर देखना भी नहीं, वे चाहे जहाँ कहीं रखी हों उन्हें अनदेखा करना और इस बात की परवाह न करना कि कोई उन्हें ले जाएगा और इस्तेमाल करेगा, जब वे जमीन पर गिरी थीं और किसी ने उन पर पैर रखा था तो ऐसा दिखावा करना कि तुमने देखा ही नहीं, यह मानना कि इन सब बातों का तुमसे कोई संबंध नहीं है—तो यह तुम्हारे लिए मुश्किल खड़ी करेगा। यदि भेंटों के प्रति तुम्हारा रवैया ऐसा ही है, तो क्या तुम जिम्मेदार व्यक्ति हो? क्या तुम जैसा व्यक्ति किसी कर्तव्य को ठीक से निभा सकता है? यह स्पष्ट है कि तुममें कैसी मानवता है। संक्षेप में, भेंटों के प्रबंधन कार्य में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की मुख्य जिम्मेदारी उन्हें अच्छी तरह से सुरक्षित रखने के अलावा यह है कि उन्हें बाद के कार्य की खोज-खबर लेनी चाहिए—सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें नियमित रूप से खातों की जाँच करनी चाहिए, साथ ही सभी प्रकार के खर्चों पर अनुवर्ती पूछताछ करना, उन पर ध्यान देना और निरीक्षण करना, कड़ी जाँच-परख करनी चाहिए। उन्हें अनुचित व्ययों को पूरी तरह से खत्म कर देना चाहिए ताकि वे फिजूलखर्ची और बरबादी का कारण न बनें; और यदि अनुचित व्यय पहले से ही ऐसी चीजों को जन्म दे चुके हैं तो उन्हें इसके लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराना चाहिए, उन्हें चेतावनी देनी चाहिए और उनसे हर्जाना वसूलना चाहिए। यदि तुम यह काम भी अच्छी तरह से नहीं कर सकते तो फौरन इस्तीफा दे दो—अगुआ या कार्यकर्ता का पद न कब्जाए रखो, क्योंकि तुम यह काम नहीं कर सकते। यदि तुम इस काम का प्रभार भी नहीं सँभाल सकते और इसे अच्छी तरह से नहीं कर सकते, तो तुम कौन सा काम कर सकते हो? मुझे व्यवस्थित रूप से बताओ कि भेंटों के संबंध में कुल कितने कार्य हैं जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करने चाहिए? (पहला है उन्हें सुरक्षित रखना। दूसरा है खातों की जाँच करना। तीसरा है सभी प्रकार के व्ययों की अनुवर्ती कार्रवाई करना, उनकी जाँच करना और उनका निरीक्षण करना और कड़ाई से जाँच-परख करना; अनुचित व्ययों को समाप्त किया जाना चाहिए और जो कोई भी फिजूलखर्ची या बरबादी करे, उसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए और उससे हर्जाना वसूला जाना चाहिए।) क्या इन चरणों के अनुसार काम करना आसान है? (हाँ।) यह काम करने का एक स्पष्ट रूप से चिह्नित तरीका है। यदि तुम इतना सरल काम भी नहीं कर सकते, तो अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में—परमेश्वर के घर के प्रबंधक के रूप में तुम क्या कर सकते हो? हर मोड़ पर भेंटों की बरबादी और फिजूलखर्ची के उदाहरण हैं, और यदि अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तुम्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है और तुम इसके बारे में जरा भी बुरा महसूस नहीं करते, तो क्या तुम्हारे दिल में परमेश्वर है भी—क्या वहाँ उसकी कोई जगह है? यह संदिग्ध है। तुम कहते हो कि तुम्हारा परमेश्वर-प्रेमी हृदय बड़ा है और तुम्हारा हृदय वास्तव में परमेश्वर का भय मानने वाला है, फिर भी जब उसकी भेंटों की इस तरह से फिजूलखर्ची और बरबादी होती है, तो तुम्हें किसी तरह इसकी कोई जानकारी नहीं होती और तुम्हें इससे बिल्कुल भी बुरा नहीं लगता—क्या यह तुम्हारे परमेश्वर के प्रति प्रेम और भय पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाता? (लगाता है।) परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम और भय की तो बात ही छोड़ो, तुम्हारी तो आस्था भी संदिग्ध है। परमेश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम और भय की बात पुष्ट नहीं होती—यह टिकने योग्य नहीं है! भेंटों की अच्छी तरह से सुरक्षा करना एक ऐसा दायित्व है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को निभाना चाहिए और यह उनकी अपरिहार्य जिम्मेदारी भी है। यदि भेंटों की अच्छी तरह से सुरक्षा नहीं की जाती, तो यह उनकी ओर से जिम्मेदारी की उपेक्षा है—कहा जा सकता है कि जो लोग भेंटों की सुरक्षा खराब तरीके से करते हैं वे नकली अगुआ और नकली कार्यकर्ता हैं।

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