अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (12) खंड एक
अपनी पिछली सभा में हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की दसवीं मद पर संगति की थी : “परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक चीजों (पुस्तकें, विभिन्न उपकरण, अनाज आदि) की उचित रूप से सुरक्षा करो और उनका समझदारी से आवंटन करो, और क्षति और बरबादी कम करने के लिए नियमित निरीक्षण, रखरखाव और मरम्मत करो; साथ ही, बुरे लोगों को उन्हें कब्जे में लेने से रोको।” दसवीं मद की संगति इस बारे में थी कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं के संबंध में क्या कार्य करना चाहिए और क्या जिम्मेदारियाँ निभानी चाहिए, साथ ही इसमें नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों को तुलना के जरिए उजागर किया गया था। यदि अगुआ और कार्यकर्ता परमेश्वर के घर के कार्य की प्रत्येक मद में अपनी वो जिम्मेदारियाँ निभाते हैं जो उन्हें निभानी चाहिए और जो वे निभा सकते हैं, तो वे अगुआ और कार्यकर्ता होने के मानक पर खरे उतरते हैं; यदि वे अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभाते और कोई वास्तविक कार्य नहीं करते तो यह बिल्कुल स्पष्ट है कि वे नकली अगुआ हैं। जहाँ तक दसवीं मद का संबंध है, नकली अगुआ निश्चित रूप से परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं की सुरक्षा और समझदारी से उनका आवंटन करने का कार्य बहुत अच्छी तरह से नहीं करते—उन वस्तुओं की भली-भाँति सुरक्षा नहीं की जाती या संभवतः उनकी सुरक्षा तक बिल्कुल न की जाती हो और नकली अगुआ उनके आवंटन में गड़बड़ी करते हैं। संभव है कि वे इस कार्य को भी गंभीरता से बिल्कुल न लें। हालाँकि यह सामान्य मामलों से संबंधित कार्य है, फिर भी यह एक ऐसी जिम्मेदारी है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को निभानी चाहिए और ऐसा कार्य है जो उन्हें करना चाहिए। वे चाहे स्वयं यह कार्य करें या इसे करने और साथ ही इसका पर्यवेक्षण, निरीक्षण, खोज-खबर वगैरा करने के लिए उपयुक्त लोगों की व्यवस्था करें, किसी भी हाल में यह कार्य अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों से अलग नहीं है—दोनों का सीधा संबंध है। इसलिए जब इस कार्य की बात आती है, तो यदि अगुआ और कार्यकर्ता परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं की उचित सुरक्षा और समझदारी से आवंटन नहीं करते हैं, तो वे अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभा रहे हैं और वे अपना कार्य ठीक से नहीं कर रहे हैं। यह नकली अगुआओं की एक अभिव्यक्ति है। पिछली सभा में हमने सामान्य मामलों से संबंधित कार्य की इस मद को सँभालने में नकली अगुआओं द्वारा प्रदर्शित अभिव्यक्तियों को सरल तरीके से उजागर किया था और इनका गहन-विश्लेषण किया था और हमने कुछ उदाहरण दिए थे। यदि कोई नकली अगुआ है तो उसने इस कार्य में अपनी जिम्मेदारियों को बिल्कुल भी नहीं निभाया है और वह जो कार्य करता है वह मानक के अनुरूप नहीं होता है। ऐसा इसलिए है कि नकली अगुआ वास्तविक कार्य करने के प्रयत्न कभी नहीं करते—एक बार इसके लिए व्यवस्था करने के बाद वे इसकी चिंता नहीं करते और वे कभी भी कार्य की खोज-खबर नहीं लेते या उसमें भागीदारी नहीं करते। दूसरा मुख्य कारण यह है कि नकली अगुआ जो भी कार्य करते हैं उसके सिद्धांतों को नहीं समझते हैं। भले ही वे अपने कार्य में निठल्ले न बैठे रहें, पर वे जो करते हैं वह परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों और नियमों से मेल नहीं खाता या यहाँ तक कि सिद्धांतों से पूरी तरह भटका हुआ होता है। सिद्धांतों से भटका हुआ होने का क्या मतलब है? इसका निहितार्थ यह है कि वे लापरवाही से काम करते हैं, अपनी कल्पनाओं, इच्छा, भावनाओं आदि के आधार पर अनियंत्रित होकर काम करते हैं। इसलिए चाहे जो हो, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की इस मद की बात करें तो नकली अगुआओं की दो मुख्य अभिव्यक्तियाँ हैं : पहली यह कि वे वास्तविक कार्य नहीं करते और दूसरी यह है कि वे सिद्धांतों को पकड़ नहीं पाते, इसलिए वे वास्तविक कार्य नहीं कर सकते। यही बुनियादी अभिव्यक्तियाँ हैं। पिछली सभा में हमने यह संगति की थी और यह उजागर किया था कि इस तरह के सामान्य मामलों का कार्य सँभालने में नकली अगुआओं की मानवता कैसे अभिव्यक्त होती है। इस सरल, एक अदद काम में भी नकली अगुआ अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभा सकते। उनमें यह कार्य करने की क्षमता होती है, लेकिन वे इसे करते नहीं हैं। इसका संबंध ऐसे लोगों के चरित्र और मानवता से है। उनकी मानवता में क्या समस्या है? उनके हृदय सही जगह पर नहीं लगे हैं और उनका चरित्र नीच है। हम दसवीं मद के तहत अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों, सामान्य सिद्धांतों और नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों पर अपनी संगति आम तौर पर पूरी कर चुके हैं। आज हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की ग्यारहवीं मद के बारे में संगति करेंगे।
मद ग्यारह : विशेषकर भेंटों के व्यवस्थित रूप से पंजीकरण, मिलान और सुरक्षा के कार्य के लिए मानक स्तर की मानवता वाले भरोसेमंद लोगों को चुनो; आवक और जावक चीजों की नियमित रूप से समीक्षा और जाँच करो, ताकि फिजूलखर्ची या बरबादी के मामलों के साथ-साथ अनुचित व्यय के मामलों की भी तुरंत पहचान की जा सके—ऐसी चीजों पर रोक लगाओ और उचित मुआवजे की माँग करो; इसके अतिरिक्त, किसी भी तरह से, भेंटों को दुष्ट लोगों के हाथों में पड़ने और उनके कब्जे में जाने से रोको
भेंटें क्या हैं
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की ग्यारहवीं मद की विषयवस्तु है : “विशेषकर भेंटों के व्यवस्थित रूप से पंजीकरण, मिलान और सुरक्षा के कार्य के लिए मानक स्तर की मानवता वाले भरोसेमंद लोगों को चुनो; आवक और जावक चीजों की नियमित रूप से समीक्षा और जाँच करो, ताकि फिजूलखर्ची या बरबादी के मामलों के साथ-साथ अनुचित व्यय के मामलों की भी तुरंत पहचान की जा सके—ऐसी चीजों पर रोक लगाओ और उचित मुआवजे की माँग करो; इसके अतिरिक्त, किसी भी तरह से, भेंटों को दुष्ट लोगों के हाथों में पड़ने और उनके कब्जे में जाने से रोको।” इस कार्य में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की क्या जिम्मेदारियाँ हैं? उन्हें कौन-सा मुख्य कार्य करना होता है? (भेंटों की उचित तरीके से सुरक्षा करना।) दसवीं मद का संबंध परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक चीजों की सुरक्षा और उनका समझदारी से आवंटन करने से था; इस ग्यारहवीं मद का संबंध भेंटों की उचित सुरक्षा से है। परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुएँ और उसकी भेंटें कुछ हद तक समान हैं—लेकिन क्या वे एक ही हैं? (नहीं।) क्या अंतर है? (भेंटों का आशय मुख्य रूप से धन से है।) धन इसका एक पहलू है। परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुएँ और भेंटें प्रकृति में किस प्रकार भिन्न हैं? क्या परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें भेंटें हैं? क्या कार्य के लिए उपयोग में लाए जाने वाली विभिन्न मशीनें भेंटें हैं? क्या परमेश्वर के घर द्वारा खरीदी जाने वाली दैनिक आवश्यकता की विभिन्न चीजें भेंटें हैं? (नहीं।) तो फिर ये क्या हैं? परमेश्वर के घर में मौजूद परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें और अपने काम के लिए जरूरी सभी तरह के उपकरण जिनमें कैमरे, ऑडियो रिकॉर्डर, कंप्यूटर और सेल फोन जैसी बहुत सी वे चीजें शामिल हैं जिन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों के दिए धन से खरीदा जाता है—ये सभी परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुएँ हैं। इनके अलावा, मेज, कुर्सियाँ, बेंच, भोजन और दैनिक जरूरत की ऐसी अन्य चीजें भी परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुएँ हैं। इनमें से कुछ वस्तुएँ भाई-बहन खरीदते हैं और अन्य को परमेश्वर का घर भेंटों से खरीदता है; इन सभी को परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। अपनी पिछली सभा में हमने इस विषय पर संगति की थी। अब हम एक महत्वपूर्ण बात पर नजर डालेंगे जिस पर हम ग्यारहवीं मद के तहत संगति करेंगे : भेंटें। भेंट वास्तव में क्या हैं? उनका दायरा कैसे निर्धारित किया जाता है? अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों पर संगति करने से पहले यह स्पष्ट करना जरूरी है कि भेंटें क्या हैं। यद्यपि अतीत में अधिकांश लोग यीशु पर विश्वास करते थे और कई सालों से कार्य के इस चरण को स्वीकार कर रहे हैं, फिर भी भेंटों के बारे में उनकी अवधारणा अस्पष्ट है। वे इस बारे में स्पष्ट नहीं हैं कि भेंटें वास्तव में क्या हैं। कुछ लोग कहेंगे कि परमेश्वर को चढ़ाया जाने वाला धन और भौतिक वस्तुएँ भेंट हैं, जबकि दूसरे लोग कहेंगे कि भेंट का आशय मुख्य रूप से धन है। इनमें से कौन सा कथन सही है? (परमेश्वर को चढ़ाई गई कोई भी चीज, चाहे वह पैसा हो या कोई भी छोटी-बड़ी वस्तु, वह एक भेंट है।) यह अपेक्षाकृत सटीक सारांश है। अब जबकि भेंटों का दायरा और सीमाएँ स्पष्ट हैं, आओ सटीक रूप से परिभाषित करें कि भेंट वास्तव में क्या है, ताकि हर कोई इस अवधारणा के बारे में स्पष्ट हो सके।
भेंटों के विषय में, बाइबल में दर्ज है कि मूलतः परमेश्वर ने मनुष्य से कहा था कि वह परमेश्वर को दशमांश दे—यह भेंट है। भेंट में दी गई राशि चाहे बड़ी रही हो या छोटी, और चाहे भेंट वास्तव में कुछ भी रही हो—चाहे वह धन हो या भौतिक वस्तुएँ—अगर वह लोगों की आय का दसवाँ हिस्सा था, तो वह वास्तविक भेंट थी। परमेश्वर ने मनुष्य से यही माँगा था, और परमेश्वर में विश्वास करने वालों से परमेश्वर को यही अर्पित करना अपेक्षित था। यह जो दशमांश है वह भेंटों का एक पहलू है। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या दसवाँ हिस्सा सिर्फ धन हो सकता है?” ऐसा जरूरी नहीं है। उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति दस एकड़ अनाज की फसल काटता है, तो चाहे उपज कितनी भी रही हो, अंततः परमेश्वर को एक एकड़ भूमि का अनाज दिया जाना चाहिए; यह दसवाँ हिस्सा ही वह है जो लोगों को परमेश्वर के प्रति समर्पित करना चाहिए। इस प्रकार, “दसवें हिस्से” की अवधारणा केवल धन को संदर्भित नहीं करती—इसका मतलब केवल यह नहीं है कि अगर कोई एक हजार युआन कमाता है, तो उसे परमेश्वर को एक सौ युआन अर्पित करना चाहिए, बल्कि इसका मतलब लोगों की सभी प्रकार की प्राप्तियों से है—इसमें भौतिक चीजों और धन समेत कहीं अधिक चीजें शामिल हैं। बाइबल यही बताती है। बेशक, आजकल परमेश्वर का घर लोगों से अपनी आय का दसवाँ हिस्सा देने की माँग करने में बाइबल जितनी सख्ती नहीं दिखाता। यहाँ मैं केवल “दशमांश” की अवधारणा और परिभाषा के बारे में संगति और इनका प्रसार कर रहा हूँ ताकि लोग जान जाएँ कि यह जो दशमांश है वह भेंटों का एक पहलू है। मैं लोगों से दसवाँ अंश अर्पित करने का आह्वान नहीं कर रहा हूँ; लोग कितना अर्पण करते हैं यह उनकी व्यक्तिगत समझ और इच्छा पर निर्भर करता है और परमेश्वर के घर की इस मामले में कोई अतिरिक्त अपेक्षाएँ नहीं हैं।
भेंटों का एक अन्य पहलू वे चीजें हैं जो लोग परमेश्वर को देते हैं। मोटे तौर पर कहें तो इसमें निश्चित रूप से दशमांश भी शामिल है; विशेष रूप से कहें तो दशमांश के अतिरिक्त लोग जो कुछ भी परमेश्वर को अर्पित करते हैं, वह भी भेंट की श्रेणी में आता है। परमेश्वर को दी जाने वाली भेंटों में कई चीजें शामिल हैं, उदाहरण के लिए भोजन, उपकरण, दैनिक आवश्यकता की चीजें, स्वास्थ्य-अनुपूरक और साथ ही गाय, भेड़ें और अन्य वस्तुएँ जिन्हें पुराने नियम के काल में वेदी पर चढ़ाया जाता था। ये सब भेंटें हैं। कोई चीज भेंट है या नहीं, यह भेंटकर्ता की मंशा पर निर्भर करता है; अगर भेंटकर्ता कहता है कि यह वस्तु परमेश्वर को अर्पित है, तो चाहे यह सीधे परमेश्वर को दी जाए या परमेश्वर के घर की अभिरक्षा में रखी जाए, यह भेंट की श्रेणी में ही आती है और लोग इसे मनमाने तरीके से नहीं छू सकते। उदाहरण के लिए : कोई व्यक्ति ऊँचे स्तर का कंप्यूटर खरीदता है और उसे परमेश्वर को अर्पित करता है, तो यह एक भेंट बन जाता है; जब कोई व्यक्ति परमेश्वर के लिए कार खरीदता है, तो वह एक भेंट बन जाती है; जब कोई व्यक्ति किसी स्वास्थ्य पूरक आहार की दो बोतलें खरीद कर उन्हें परमेश्वर को अर्पित करता है, तो वे बोतलें भेंट बन जाती हैं। परमेश्वर को अर्पित की जाने वाली भौतिक वस्तुओं की कोई विशिष्ट या निश्चित परिभाषा नहीं है। कुल मिलाकर इसका दायरा बहुत व्यापक है—ये वे वस्तुएँ हैं जो परमेश्वर के अनुयायी उसे भेंट करते हैं। कुछ लोग कह सकते हैं, “परमेश्वर ने अब पृथ्वी पर देहधारण किया है और उसे भेंट की जाने वाली चीजें उसकी हैं—लेकिन तब क्या होता जब वह पृथ्वी पर न होता? जब परमेश्वर स्वर्ग में होता है, तो क्या उसे अर्पित की जाने वाली चीजें तब भेंट नहीं होतीं?” क्या यह सही है? (नहीं।) इसका आधार यह नहीं है कि परमेश्वर देहधारण की अवधि में है या नहीं। किसी भी स्थिति में अगर परमेश्वर को कोई चीज अर्पित की जाएगी, तो वह भेंट होगी। दूसरे लोग कह सकते हैं, “परमेश्वर को बहुत सारी चीजें चढ़ाई जाती हैं। क्या वह उन्हें उपयोग में ला सकता है? क्या वह उन सबका उपयोग कर सकता है?” (इसका मनुष्य से कोई मतलब नहीं है।) इसे कहने का यह सही और स्पष्ट तरीका है। ये चीजें मनुष्य परमेश्वर को अर्पित करते हैं; वह उनका उपयोग कैसे करता है और क्या वह उन सभी का उपयोग कर सकता है और वह उन्हें कैसे बाँटता और सँभालता है, इसका मनुष्य से कोई संबंध नहीं है। इसके बारे में तुम्हें चिंता करने या परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। संक्षेप में, जैसे ही कोई व्यक्ति परमेश्वर को कुछ अर्पित करता है, वह चीज भेंटों के दायरे में आ जाती है। वह परमेश्वर की है और इसका किसी व्यक्ति से कोई मतलब नहीं है। कुछ लोग कह सकते हैं, “जिस तरह से तुम यह कह रहे हो, उससे लगता है जैसे परमेश्वर उस चीज पर जबरन अधिकार जता रहा हो।” क्या यही मामला है? (नहीं।) वह चीज परमेश्वर की है, इसलिए उसे भेंट कहा जाता है। लोग उसे न छू सकते हैं, न अपनी इच्छा से आवंटित कर सकते हैं। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “क्या यह बरबादी नहीं है?” भले ही यह बरबादी हो, लेकिन तुम्हारा इससे कोई संबंध नहीं है। दूसरे लोग कह सकते हैं, “जब परमेश्वर स्वर्ग में होता है और देहधारी नहीं होता, तो वह लोगों की चढ़ाई चीजों का आनंद नहीं ले सकता या उपयोग नहीं कर सकता। तब क्या किया जाना चाहिए?” इसका ख्याल आसानी से रखा जा सकता है : परमेश्वर का घर और कलीसिया इन चीजों को सिद्धांतों के अनुसार सँभालने के लिए हैं; तुम्हें इस बारे में चिंता करने या परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। निष्कर्ष यह है कि किसी चीज को कैसे भी सँभाला जाए, जैसे ही वह भेंटों की श्रेणी में आती है, जैसे ही उसे भेंट के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, उसका मनुष्य से कोई लेना-देना नहीं रह जाता। और चूँकि वह चीज परमेश्वर की है, इसलिए लोग उसके साथ अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते—ऐसा करने के दुष्परिणाम होते हैं। पुराने नियम के युग में पतझड़ के मौसम में फसल काटते समय लोग वेदियों पर तरह-तरह की चीजें अर्पित करते थे। कुछ लोग अनाज, फल और कई अन्य फसलें भेंट करते थे, जबकि बहुत से लोग गाय-भेड़ चढ़ाते थे। क्या परमेश्वर उनका आनंद लेता था? क्या वह उन चीजों को खाता है? (नहीं।) तुम कैसे जानते हो कि वह नहीं खाता? क्या तुमने यह देखा? यह तुम्हारी धारणा है। तुम कहते हो कि परमेश्वर उन्हें नहीं खाता—अच्छा, अगर वह एक निवाला खाए, तो तुम्हें कैसे पता लगेगा? क्या यह तुम्हारी धारणाओं और कल्पनाओं के असंगत होगा? क्या कुछ लोग ऐसा नहीं मानते कि चूँकि परमेश्वर उन चीजों को नहीं खाता या उनका आनंद नहीं लेता, इसलिए उन्हें चढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है? तुम इतने आश्वस्त कैसे हो सकते हो? “परमेश्वर उन्हें नहीं खाता,” क्या तुम यह बात यह सोचकर कहते हो कि वह आध्यात्मिक देह है और खा नहीं सकता या फिर यह सोचकर कहते हो कि परमेश्वर की परमेश्वर के रूप में अपनी पहचान है, वह देहयुक्त और नश्वर नहीं है और उसे इन चीजों का आनंद नहीं लेना चाहिए? क्या लोगों की चढ़ाई भेंटों का आनंद लेना परमेश्वर के लिए शर्मनाक है? (नहीं।) तब क्या यह लोगों की धारणाओं के असंगत है या यह परमेश्वर की पहचान के असंगत है? वास्तव में यह कौन सी बात है? (लोगों को इस पर चर्चा नहीं करनी चाहिए।) सही कहा—यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिससे लोगों को सरोकार रखना चाहिए। तुम्हें यह तय करने की जरूरत नहीं है कि परमेश्वर को उन चीजों का आनंद लेना ही चाहिए या उसे उनका आनंद नहीं लेना चाहिए। जो तुम्हें करना चाहिए, वह करो, अपना कर्तव्य और अपने उत्तरदायित्वों और अपने दायित्वों को निभाओ—इतना ही काफी है। यह करके तुम अपना काम पूरा कर चुके होगे। जहाँ तक यह सवाल है कि परमेश्वर उन चीजों को कैसे सँभालेगा, यह उसका काम है। परमेश्वर उन्हें लोगों के साथ बाँटे या उन्हें खराब होने के लिए छोड़ दे या वह उनका थोड़ा-बहुत आनंद ले या उन पर एक नजर डाले, इस पर सवाल नहीं किए जा सकते हैं और यह वैध है। जहाँ तक इन मामलों को सँभालने की बात है, तो परमेश्वर को अपनी स्वतंत्रता है कि वह इसे कैसे करे। यह ऐसी चीज नहीं है जिसके बारे में लोगों को चिंता करनी चाहिए, न ही यह ऐसी चीज है जिस पर उन्हें कोई फैसला सुनाना चाहिए। लोगों को इन मामलों के बारे में मनमानी कल्पना नहीं करनी चाहिए, उन पर मनमाने तरीके से निर्णय सुनाने या हड़बड़ी में निष्कर्षों पर पहुँचने की बात तो और भी दूर रही। क्या अब तुम समझ गए? परमेश्वर को लोगों की चढ़ाई भेंटों को कैसे सँभालना चाहिए? (वह जैसे चाहेगा, उन्हें वैसे ही सँभालेगा।) सही कहा। जो लोग इस बात को ऐसे समझते हैं, उनमें सामान्य तर्क होता है। परमेश्वर इन चीजों को जैसे चाहेगा वैसे ही सँभालेगा। हो सकता है कि वह उन पर नजर डाल ले या उन्हें बस देखे ही नहीं या उन पर बिल्कुल भी ध्यान न दे। जब समय आए तो केवल जो भेंट करना चाहते हो, उसकी चिंता करो और जब तुम्हारी इच्छा हो तब परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार और मनुष्य की जिम्मेदारी पूरी करते हुए भेंट देने की चिंता करो। इस बारे में चिंता मत करो कि परमेश्वर ऐसे मामलों को कैसे सँभालता है और उनसे कैसे पेश आता है। संक्षेप में, तुम जो कुछ भी करते हो यदि वह परमेश्वर की अपेक्षाओं के दायरे में है, अंतरात्मा के मानक के अनुरूप है और मानवजाति के कर्तव्य, दायित्व और उत्तरदायित्व के अनुरूप है, तो इतना ही पर्याप्त है। जहाँ तक यह बात है कि परमेश्वर इन चीजों को कैसे सँभालता है और उनसे कैसा बरताव करता है, यह उसका अपना मामला है, और लोगों को इस मामले पर निर्णय या फैसला बिल्कुल नहीं सुनाना चाहिए। कुछ ही सेकंडों में तुम लोगों ने बहुत बड़ी गलती कर दी। मैंने तुम लोगों से पूछा था कि क्या परमेश्वर इन चीजों का आनंद लेता है या खाता है, तो तुमने कहा कि वह इन्हें नहीं खाता, न ही इनका आनंद लेता है। तुम्हारी गलती क्या थी? (परमेश्वर के बारे में फैसला सुनाना।) यह जल्दबाजी में सीमांकन करना और जल्दबाजी में निर्णय देना था और इससे साबित होता है कि लोग अंदर ही अंदर अभी भी परमेश्वर से माँग करते हैं। उनकी मानें तो परमेश्वर का इन चीजों का आनंद लेना गलत है और उसका आनंद न लेना भी गलत है। अगर वह आनंद लेता है तो वे कहेंगे, “तुम एक आध्यात्मिक शरीर हो, न कि देहयुक्त, नश्वर शरीर। तुम इन चीजों का आनंद क्यों लोगे? यह तो बहुत अकल्पनीय है!” और अगर परमेश्वर इन चढ़ावे की चीजों पर ध्यान नहीं देता तो लोग कहेंगे, “हमने अपना हृदय तुम्हें अर्पित करने के लिए कठोर श्रम किया है, लेकिन तुम हमारे द्वारा भेंट की गई इन चीजों पर नजर भी नहीं डालते। क्या तुम्हारे मन में हमारे लिए थोड़ी सी भी जगह है?” यहाँ भी लोग कुछ कहने से नहीं चूकते। यह विवेकहीनता है। संक्षेप में, लोगों को इस मामले में किस रवैये के साथ पेश आना चाहिए? (लोगों को परमेश्वर को वह भेंट करना चाहिए जो उन्हें करना चाहिए, और जहाँ तक यह सवाल है कि परमेश्वर इन चीजों को किस तरह से सँभालेगा, तो लोगों को इस बारे में कोई धारणा या कल्पना नहीं पालनी चाहिए, न ही उन्हें इस पर कोई फैसला सुनाना चाहिए।) हाँ—यही वह विवेक है जो लोगों में होना चाहिए। इसका संबंध उन वस्तुओं से है जो परमेश्वर को चढ़ाई जाती हैं, जो भेंटों का एक पहलू हैं। परमेश्वर को चढ़ाई जाने वाली भौतिक वस्तुओं में कई तरह की चीजें शामिल हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग भौतिक दुनिया में रहते हैं, और पैसे, सोने, चाँदी और जवाहरात के अलावा ऐसी कई और चीजें हैं जिन्हें वे बहुत अच्छी और मूल्यवान मानते हैं, और जब कुछ लोग परमेश्वर या परमेश्वर के प्रेम के बारे में सोचते हैं तो वे जिस वस्तु को बहुमूल्य और मूल्यवान मानते हैं उसे परमेश्वर को अर्पित करने के इच्छुक होते हैं। जब ये चीजें परमेश्वर को अर्पित की जाती हैं, तो वे भेंटों के दायरे में आ जाती हैं; वे भेंट बन जाती हैं। और साथ ही, उन वस्तुओं के भेंट बनते ही उन्हें सँभालना परमेश्वर पर निर्भर करता है—तब लोग उन्हें छू नहीं सकते, वे लोगों के नियंत्रण में नहीं रह जातीं और लोगों की नहीं रह जातीं। जब तुम परमेश्वर को एक बार कुछ अर्पित कर देते हो, तो वह परमेश्वर का हो जाता है, इसे सँभालना तुम्हारा काम नहीं रह जाता और इस मामले में तुम अब कोई हस्तक्षेप भी नहीं कर सकते। परमेश्वर उस चीज को चाहे जैसे सँभाले या उसके साथ चाहे जो बरताव करे, उससे मनुष्य का कोई लेना-देना नहीं होता। परमेश्वर को अर्पित की जाने वाली भौतिक वस्तुएँ भी भेंटों का एक पहलू हैं। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या केवल पैसा और सोना, चाँदी और जवाहरात जैसी कीमती चीजें भेंट हो सकती हैं? मान लो कि किसी ने परमेश्वर को एक जोड़ी जूते, एक जोड़ी मोजे या एक जोड़ी इनसोल अर्पित किए हैं—क्या उन्हें भेंट माना जाएगा?” अगर हम भेंट की परिभाषा के अनुसार देखें, तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई चीज कितनी बड़ी या छोटी है, या कितनी कीमती या सस्ती है—वह चाहे कलम या कागज का एक टुकड़ा ही हो—यदि वह परमेश्वर को चढ़ाया गया है, तो वह भेंट है।
भेंटों का एक अन्य पहलू भी है : परमेश्वर के घर या कलीसिया को दी जाने वाली वस्तुएँ। ये वस्तुएँ भी भेंटों की श्रेणी में आती हैं। ऐसी भौतिक वस्तुओं में क्या शामिल है? उदाहरण के लिए, मान लो, किसी ने एक कार खरीदी और कुछ समय तक चलाने के बाद उसे लगा कि यह थोड़ी पुरानी हो गई है, इसलिए दूसरी खरीद ली और पुरानी कार परमेश्वर के घर को दे दी, ताकि परमेश्वर का घर उसे अपने कार्य में इस्तेमाल कर सके। यह कार अब परमेश्वर के घर की हो गई। परमेश्वर के घर से संबंधित चीजें भेंटों के रूप में वर्गीकृत की जाएँ—यह उचित है। निस्संदेह कलीसियाओं और परमेश्वर के घर को उपकरण ही नहीं दिए जाते, बल्कि अन्य चीजें भी दी जाती हैं; यह दायरा काफी बड़ा है। कुछ लोग कहते हैं, “लोग अपनी कुल प्राप्तियों का जो दशमांश देते हैं, वह एक प्रकार की भेंट है, उसी प्रकार परमेश्वर को दिया गया धन और वस्तुएँ भी भेंटें होती हैं; उन्हें भेंटों के रूप में वर्गीकृत किए जाने पर हमें कोई आपत्ति नहीं है, इसमें कोई शंका नहीं है। लेकिन जो वस्तुएँ कलीसिया और परमेश्वर के घर को दी जाती हैं, उन्हें भी भेंटों में क्यों गिना जाता है? यह तर्कसंगत नहीं है।” मुझे बताओ कि क्या उन्हें भेंटों के रूप में वर्गीकृत किया जाना तर्कसंगत है? (हाँ।) और तुम लोग ऐसा क्यों कहते हो? (कलीसिया का अस्तित्व केवल परमेश्वर के अस्तित्व के कारण है और इसलिए जो कुछ कलीसिया को दिया जाता है, वह भी परमेश्वर को दी जाने वाली भेंट है।) सही कहा। कलीसिया और परमेश्वर का घर परमेश्वर के हैं, इनका अस्तित्व केवल इसलिए है, क्योंकि परमेश्वर का अस्तित्व है; केवल कलीसिया होने के कारण ही भाई-बहनों के पास इकट्ठा होने और रहने की कोई जगह है; और केवल परमेश्वर का घर होने के कारण ही सभी भाई-बहनों की समस्याएँ हल होने की कोई जगह है, और भाई-बहनों का एक सच्चा घर है—यह सब केवल परमेश्वर के अस्तित्व की नींव पर मौजूद है। लोग कलीसिया और परमेश्वर के घर को केवल इसलिए नहीं दान करते कि कलीसिया में रहने वाले लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं और वे परमेश्वर के घर के हैं—यह सही कारण नहीं है। लोग परमेश्वर की वजह से ही कलीसिया और परमेश्वर के घर को दान देते हैं। और इसका निहितार्थ क्या है? अगर परमेश्वर न हो तो कौन कलीसिया को यूँ ही चीजें दे देगा? परमेश्वर के बिना कलीसिया का अस्तित्व नहीं होगा। जब लोगों के पास ऐसी चीजें होती हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती या जो आवश्यकता से अधिक होती हैं, तो वे उन्हें फेंक सकते हैं या अप्रयुक्त पड़ा रहने दे सकते हैं; कुछ सामान बिक भी सकता है। ये सभी उन सामानों से निपटने के तरीके हैं, है ना? तो लोग उनसे इस तरह क्यों नहीं निपटते—उन्हें कलीसिया को क्यों देते हैं? क्या यह परमेश्वर की वजह से नहीं है? (हाँ।) चूँकि परमेश्वर है, इसीलिए लोग कलीसिया को चीजें भेंट करते हैं और इसलिए जो कुछ कलीसिया या परमेश्वर के घर को दिया जाता है, उसे भेंट के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “मैं अपनी यह चीज कलीसिया को देता हूँ।” वह चीज कलीसिया को देना परमेश्वर को देने के बराबर है और कलीसिया और परमेश्वर के घर को ऐसी चीजों को सँभालने का पूरा अधिकार है। जब तुम कोई चीज कलीसिया को देते हो, तो उसका तुमसे संबंध नहीं रह जाता; परमेश्वर का घर और कलीसिया इन वस्तुओं को परमेश्वर के घर द्वारा परिभाषित सिद्धांतों के अनुसार समझदारी से आवंटित करेंगे, इस्तेमाल करेंगे और सँभालेंगे। और ये सिद्धांत कहाँ से आते हैं? परमेश्वर से। मूल रूप से इन वस्तुओं के उपयोग का सिद्धांत यह है कि इनका उपयोग परमेश्वर की प्रबंधन योजना के लिए और परमेश्वर के सुसमाचार कार्य को फैलाने के लिए किया जाना चाहिए। वे किसी व्यक्ति के अनन्य उपयोग के लिए नहीं हैं, किसी समूह के उपयोग के लिए तो बिल्कुल भी नहीं हैं, बल्कि वे सुसमाचार के प्रसार-कार्य और परमेश्वर के घर के विभिन्न कार्यों में इस्तेमाल करने के लिए हैं। इसलिए किसी के पास भी इन चीजों का इस्तेमाल करने का विशेष अधिकार नहीं है; उनके उपयोग और आवंटन का एकमात्र सिद्धांत और आधार परमेश्वर के घर के अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार है। यह उचित और उपयुक्त है।
भेंट की परिभाषा के ये तीन भाग हैं, जिनमें से प्रत्येक भाग भेंटों के एक पहलू की परिभाषा है और उसके दायरे का एक पहलू है। अब तुम सबको स्पष्ट हो गया है कि भेंट क्या है, है ना? (हाँ।) पहले कुछ लोग थे जिन्होंने कहा था कि “यह चीज पैसा नहीं है और जिस व्यक्ति ने इसे चढ़ाया उसने यह नहीं कहा कि यह परमेश्वर के लिए है। उसने बस इतना कहा था कि वह इसे भेंट कर रहा है। इसलिए यह परमेश्वर के घर के उपयोग के लिए नहीं हो सकता, और इसे परमेश्वर को तो बिल्कुल भी नहीं दिया जा सकता।” और इसीलिए उन्होंने इसका कोई लेखा-जोखा नहीं रखा और उस चीज का गुप्त रूप से अपनी इच्छानुसार उपयोग किया। क्या यह उचित है? (नहीं।) उन्होंने जो कहा वह अपने आप में अनुचित है; उन्होंने यह भी कहा कि “कलीसिया और परमेश्वर के घर को मिलने वाली भेंटें आम संपत्ति हैं—कोई भी उनका उपयोग कर सकता है,” जो स्पष्ट रूप से अनुचित बात है। अधिकतर लोग भेंटों की परिभाषा और अवधारणा के बारे में थोड़ी धुँधली और अस्पष्ट समझ रखते हैं और वास्तव में यही वजह है कि कुछ नीच खलनायक और लालची और अनुचित आकांक्षाएँ रखने वाले कुछ लोग स्थिति का लाभ उठा कर उन चीजों को हड़प लेने के बारे में सोचते हैं। अब जब तुम लोग भेंटों की सटीक परिभाषा और अवधारणा के बारे में स्पष्ट हो, तो भविष्य में ऐसी घटनाओं और लोगों का सामना करने पर तुम्हारे पास पारखी समझ होगी।
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