अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (11) खंड तीन

परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं को ठीक से प्रबंधित करना परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों की जिम्मेदारी है

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ समझने के बाद क्या तुमने वे सिद्धांत भी समझे हैं जिन्हें प्रत्येक भाई-बहन को परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं के साथ पेश आते समय समझना चाहिए? हो सकता है तुम लोग अगुआ और कार्यकर्ता न हो, लेकिन फिर भी तुम्हें पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी निभानी चाहिए। यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों का अधिकार है। साथ ही, परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं—तमाम तरह की पुस्तकें और उपकरण; दैनिक भोजन, पेय और वस्तुएँ; इत्यादि—के साथ सभी को प्रेम और परवाह से पेश आना चाहिए। सभी लोग जिन विभिन्न चीजों का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें उनकी नियमित जाँच, मरम्मत और रखरखाव भी करना चाहिए और उन्हें उनका समझदारी से इस्तेमाल करना चाहिए—उन्हें अपने कब्जे में खराब और बर्बाद मत होने दो या उन्हें अविवेकपूर्ण तरीके से नष्ट मत करो। कुछ लोग कहते हैं, “वैसे भी यह चीज मेरी नहीं है। इसे मैंने अपने पैसे से नहीं खरीदा। इसे मुझे परमेश्वर के घर ने जारी किया है—यह सार्वजनिक संपत्ति है। मुझे इस बात की परवाह करने की जरूरत नहीं है कि इसका रखरखाव और मरम्मत कब की जाती है या इसे कहाँ रखा जाता है। मैं इसे इस तरह अपने साथ लिए-लिए नहीं फिर सकता, मानो मैंने इसका अपहरण कर लिया हो।” क्या यह एक समझदारी भरा विचार है? क्या यह पूरी तरह से स्वार्थपूर्ण और मानवता से रहित नहीं है? (हाँ, है।) तो परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं के उपयोग में किन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए? अगर कोई चीज तुम्हारे उपयोग के लिए आवंटित की गई है तो उसका उपयोग करते समय उसकी मरम्मत और देखभाल करना तुम्हारा काम है। तुम पूरी तरह से जिम्मेदार हो; किसी और के आग्रह या पर्यवेक्षण के बिना तुम्हें उस वस्तु के साथ इस तरह पेश आना चाहिए, उसे इस तरह सँजोना चाहिए और उसकी इस तरह रक्षा करनी चाहिए मानो वह तुम्हारी व्यक्तिगत संपत्ति हो। मानवता होने का यही अर्थ है। तुम्हें जारी किए जाते समय उस चीज की हालत चाहे जैसी भी रही हो, जब तुम्हें उसका उपयोग करने की अनुमति न रहे या तुमने उसका उपयोग खत्म कर लिया हो, तो तुम्हें उसे पूरी तरह से सही और मूल हालत में उस व्यक्ति को वापस कर देना चाहिए जो उसे सुरक्षित रखता है। इसे विवेकशील होना कहते हैं; यह चीज मानवता में होनी चाहिए। तुम कहते हो कि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, तुम्हारे पास जमीर और विवेक है, तुम सत्य से प्रेम करते हो, सत्य का अनुसरण करते हो और सत्य के प्रति समर्पण करते हो, लेकिन अगर तुममें वह न्यूनतम मानवता ही नहीं है जो एक भौतिक वस्तु के साथ पेश आने में होनी चाहिए, तो तुम सत्य से प्रेम करने या उसका अभ्यास करने की बात भी कैसे कर सकते हो? क्या यह कुछ ज्यादा ही खोखली बात नहीं है? अगर तुम एक भौतिक वस्तु के साथ पेश आने में भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सकते, तो इसका मतलब है कि तुम्हारी मानवता अच्छी नहीं है—“मानवता नहीं होना” इसे कहने का एक सामान्य तरीका है। इसके अलावा, तुम अपनी चीजों का उपयोग कैसे भी करो, चाहे तुम उनके साथ रुखाई से पेश आओ या सावधानी से, यह तुम्हारा अधिकार है। कोई इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा। लेकिन परमेश्वर के घर के पास अपनी चीजों के उपयोग करने के सिद्धांत हैं। ये तमाम सिद्धांत जमीर और विवेक पर आधारित हैं और भले ही वे सत्य की ऊँचाई तक न पहुँच पाते हों, फिर भी कम से कम वे मानवता के मानकों के अनुरूप हैं। अगर तुम मानवता के इस मानक को भी पूरा नहीं कर सकते, अगर तुम परमेश्वर के घर से तुम्हें जारी किए गए उपकरणों और आपूर्तियों के साथ सही तरह से पेश भी नहीं आ सकते और उनका सही तरीके से उपयोग भी नहीं कर सकते, तो तुम सत्य समझकर उसकी वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हो या नहीं, यह एक समस्या है—इस पर प्रश्नचिह्न लगना लाजमी है। इसलिए जब तुम्हारे इन चीजों के साथ पेश आने की बात आती है, तो तुम्हें इनका उपयोग करने का अधिकार है और स्वाभाविक रूप से तुम्हारी जिम्मेदारी भी है कि तुम इनकी मरम्मत, रखरखाव और देखभाल करो। तुम्हें इन चीजों को गंभीरता से लेना चाहिए। अगर तुम गैर-विश्वासियों की तरह कहते हो, “यह वैसे भी मेरी नहीं है। इसे मैंने अपने पैसे से नहीं खरीदा। अगर कोई सार्वजनिक चीज टूटती है तो टूट जाए—बस नई खरीद लो या सबसे खराब स्थिति में उसे ठीक कर लो। फिर भी ऐसा नहीं है कि मेरा कुछ नुकसान हुआ हो।” अगर तुम ऐसे सोचते हो, तो यह परेशानी की बात है—तुम खतरे में हो। तुम्हारा चरित्र ईमानदार नहीं है और तुम्हारे इरादे सही नहीं हैं। अपनी चीजों का संयम से इस्तेमाल करना लेकिन परमेश्वर के घर की चीजों को महत्वहीन समझना, उन्हें सँजोने का ध्यान न रखना—क्या यह ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसके इरादे सही नहीं हैं? क्या परमेश्वर ऐसे लोगों को पसंद करता है जिनके इरादे सही नहीं होते? (नहीं।) मुझे बताओ, क्या परमेश्वर ऐसे लोगों की जाँच करता है जिनके इरादे सही नहीं होते? (हाँ, करता है।) परमेश्वर उन लोगों की जिनके इरादे सही होते हैं और उनकी भी जिनके इरादे सही नहीं होते, समान रूप से जाँच करता है। परमेश्वर की जाँच स्वीकारते हुए अगर तुम पाते हो कि तुम उस तरह से सोच रहे हो तो तुम्हें क्या करना चाहिए? उस पर ध्यान नहीं देना चाहिए? उसे बिना जाँचे छोड़ देना चाहिए? उसकी परवाह नहीं करनी चाहिए? “मैं क्या सोचता हूँ यह मेरा व्यक्तिगत मामला है। इसमें दखल देने वाले तुम कौन होते हो? अगर तुम मुझे कोई चीज इस्तेमाल करने देते हो, तो मुझे उसका इस्तेमाल करने का अधिकार है—और जो भी हो, हर हालत में, जब तक मैं मशीन तोड़ ही नहीं देता तब तक सब ठीक है। तुम इतनी ऊँची और इतनी सारी माँगें क्यों कर रहे हो?” क्या यह सोचने का एक अच्छा तरीका है? (नहीं।) यह “मानवता नहीं होना” है। अगर तुम्हारे ऐसे विचार हैं तो तुम्हें परमेश्वर की जाँच स्वीकारनी चाहिए और कहना चाहिए, “परमेश्वर, मेरा स्वभाव भ्रष्ट है और मेरी मानवता खराब है। मैं सोचता था कि मैं काफी नेक और सम्माननीय हूँ, मुझमें गरिमा है; मैंने नहीं सोचा था कि यह छोटी-सी वस्तु मुझे प्रकट कर देगी : मुझमें स्वार्थपूर्ण इच्छाएँ हैं; मेरे इरादे सही नहीं हैं; मेरे अपने छोटे-छोटे लक्ष्य हैं। मैं तुम्हारी जाँच और अनुशासन स्वीकार कर खुद को बदलने के लिए तैयार हूँ।” तुम्हें परमेश्वर के सामने प्रार्थना और पश्चात्ताप करना चाहिए और उसे अपनी जाँच करने देनी चाहिए। उसकी जाँच स्वीकार कर तुम्हें कैसे बदलना चाहिए? तुम कहोगे, “जैसे मैं पहले सोचता था, मेरा वैसा सोचना अनैतिक था—यह गैर-विश्वासियों की सोच है, छद्म-विश्वासियों की सोच है। मैं अब उस तरह नहीं सोच सकता। मुझे उस रास्ते पर नहीं जाना चाहिए। मैं परमेश्वर का विश्वासी हूँ; मुझे मानवता और गरिमा वाला व्यक्ति बनने की जरूरत है, मुझे वे काम करने की जरूरत है जो परमेश्वर को पसंद हों। मुझे भविष्य में उपकरणों और मशीनों के इस्तेमाल करने का अपना तरीका बदलने की जरूरत है। मुझे उन्हें तब आराम देना चाहिए जब उन्हें आराम देने की जरूरत है और आवश्यकतानुसार उनकी मरम्मत और उनका रखरखाव करना चाहिए। उनका सामान्य इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए मुझे उन्हें अक्सर साफ करना चाहिए और नियमित रूप से उनके विभिन्न पुर्जों की जाँच करनी चाहिए। उनका इस्तेमाल कर लेने के बाद मैं तुरंत उन्हें साफ करके वापस सुरक्षित स्थान पर रख दूँगा ताकि असंबद्ध लोग उनके साथ छेड़छाड़ न कर सकें।” फिर जब तुम भविष्य में दोबारा मशीनों का इस्तेमाल करोगे तो तुम खास तौर से सावधान और चौकस रहोगे। तुम्हारे विचार लगातार बदलते रहेंगे और तुम्हारे तरीके सुधरेंगे, वे तुम्हारे पिछले स्वार्थपूर्ण, घृणित विचारों और क्रियाकलापों से हटकर जिम्मेदारी की भावना, चीजों की देखभाल करने वाले और जिम्मेदारी लेने वाले मन की ओर जाएँगे। तुम्हारी सोच में बदलाव तुम्हारे वास्तव में बदलने की शुरुआत है। जब तुम अपनी सोच और विचारों को अपने अभ्यास में परिणत करते हो तो यह तुम्हारे तरीकों में बदलाव बन जाता है। जब यह इस स्तर पर पहुँचता है तो परमेश्वर देखता है कि तुम वास्तव में बदल रहे हो और पश्चात्ताप कर रहे हो; तुम्हारे द्वारा किए गए ये उलटफेर और बदलाव वास्तव में परमेश्वर को स्वीकार्य होंगे। यह सत्य का अभ्यास करना है। सत्य का अभ्यास करने में व्यक्ति में सबसे बुनियादी चीज क्या होनी चाहिए? लोगों में जमीर और विवेक होना चाहिए। और क्या स्वार्थी, घृणित व्यक्ति में जमीर और विवेक होता है? (नहीं।) हो सकता है धर्म-सिद्धांत के तौर पर तुम जानते हो कि तुम परमेश्वर के घर की वस्तुएँ इधर-उधर पड़ी नहीं छोड़ सकते या उन्हें नुकसान पहुँचाकर बर्बाद नहीं कर सकते या उनके साथ गैर-जिम्मेदार नहीं हो सकते—लेकिन तुम्हारे दिल और विचारों में तुम्हारा रवैया क्या होता है? “इन चीजों की परवाह करने का क्या मतलब है? ये चीजें मेरी हैं ही नहीं।” ऐसी सोच तुम्हारे व्यवहार को संचालित करेगी और क्या तब जो धर्म-सिद्धांत तुम जानते हो वह किसी काम का होगा? नहीं—वह सिर्फ धर्म-सिद्धांत ही होगा जिसका कोई फायदा नहीं होगा। जब तुम्हारी सोच और विचार बदल जाएँगे और तुम सच में बदल जाओगे और परमेश्वर के सामने पश्चात्ताप करोगे, तभी तुम्हारा व्यवहार और तुम्हारे व्यावहारिक क्रियाकलाप बदलने शुरू होंगे। तभी तुम जो जिओगे उसमें मानवता आनी शुरू होगी; तभी तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना शुरू करोगे। ऐसी छोटी-सी बात व्यक्ति की मानवता प्रकट करती है, साथ ही यह भी कि क्या वह व्यक्ति सच में सत्य से प्रेम करता है।

परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं का प्रबंधन करना ऐसी जिम्मेदारी है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को निभानी चाहिए और परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से प्रत्येक को सामूहिक रूप से पर्यवेक्षण, सहायता और अधिकतम सहयोग प्रदान करना चाहिए। यह हर किसी की जिम्मेदारी है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मिसाल पेश करनी चाहिए। उन्हें खुद से शुरुआत करनी चाहिए—जब वे खुद अच्छा कार्य करते हैं, तभी वे दूसरों का निरीक्षण और यह आकलन करने के योग्य होते हैं कि दूसरे जो करते हैं वह उपयुक्त और सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं। यह ऐसा मामला है जिसमें हर कोई शामिल है, यह छोटी-सी बात लोगों की मानवता और साथ ही सत्य के प्रति उनका रवैया प्रकट कर देती है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह कार्य अच्छी तरह से और अत्यधिक जोश के साथ, परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार करना चाहिए और हर आम भाई-बहन को भी इस मामले में सख्ती और सावधानी से पेश आना चाहिए। तुम्हें अक्सर आत्मचिंतन कर इस बात पर विचार करना चाहिए कि कहीं तुम्हारी मानवता और सोच में कोई समस्या तो नहीं है और इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि तुम्हारा रवैया कैसा है। जब तुम्हें पता लगे कि तुम्हारे रवैये और सोच में कोई समस्या है, तो तुम्हें तुरंत प्रार्थना करनी चाहिए और खुद को बदलना चाहिए—और परमेश्वर के घर की चीजों का प्रबंधन या इस्तेमाल करते समय तुम्हें कुछ हद तक यह प्रयास करना चाहिए कि न तो तुम्हारा जमीर तुम्हें फटकारे, न ही परमेश्वर तुमसे निराश हो, और कुछ हद तक यह कि दूसरे तुम्हारी प्रशंसा करें और जो कुछ तुम करते हो उसे स्वीकार करें और कहें कि तुममें मानवता है जो सभी को दिखाई देती है। मुख्य बात यह है कि ऐसा करते समय लोगों को सिद्धांत बनाए रखने चाहिए। यह वह दायित्व है जिसे लोगों को पूरा करना चाहिए, ऐसी चीज है जिसे परमेश्वर के घर के किसी भी सदस्य को हासिल करना चाहिए। यह सिर्फ अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी नहीं है।

क्या अब तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की दसवीं मद के बारे में कमोबेश स्पष्ट हो? सिद्धांतों को समझने के बाद लोगों को यह कार्य करने में ज्यादा चौकस और सावधान रहना चाहिए और उन्हें इसके लिए ज्यादा मेहनत करनी चाहिए और आलसी नहीं होना चाहिए—तब वे मूल रूप से परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं की क्षति और बर्बादी कम कर पाएँगे और उन्हें बुरे लोगों द्वारा कब्जा किए जाने से बचा पाएँगे। यह प्राप्य है। मैं क्यों कहता हूँ कि इसे हासिल करना आसान है? ये ऐसे मामले हैं जो घर पर हर किसी के दैनिक जीवन से संबंधित हो सकते हैं। अपने घर की चीजों का प्रबंधन करने में चौकस रहना आसान है, इसलिए अगर तुम परमेश्वर के घर की चीजों की सुरक्षा वैसे ही करते हो मानो वे तुम्हारी अपनी हों, परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार उन्हें समझदारी से आवंटित करते हो और उनकी क्षति और बर्बादी कम कर देते हो और बुरे लोगों को उन पर कब्जा नहीं करने देते तो तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी पूरी कर रहे होते हो। यह कार्य अपनी प्रकृति से एक सामान्य मामले का कार्य प्रतीत होता है। हम इसे सामान्य मामले का कार्य क्यों कह रहे हैं? इसमें भौतिक वस्तुओं का प्रबंधन शामिल है। उनका अच्छी तरह से प्रबंधन और आवंटन करके तुम अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे होते हो। साथ ही इस कार्य का सिद्धांत काफी सरल है—इसमें सिर्फ एक ही सिद्धांत शामिल है और इसमें जटिल सत्य शामिल नहीं हैं। अगर किसी के पास दायित्व है और उसके इरादे सही हैं तो वह इस कार्य को अच्छी तरह से कर सकता है, इसके लिए बहुत ज्यादा सत्य समझने और बहुत ज्यादा सत्य पर संगति किए जाने की जरूरत नहीं है। इसलिए यह एक एकल कार्य है और एक सामान्य कार्य है। यह ऐसा कार्य है जिसे करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए आसान है। अगर तुम थोड़े ज्यादा मेहनती हो, ज्यादा सवाल पूछते हो, ज्यादा पूछताछ करते हो, ज्यादा दिलचस्पी लेते हो और सही इरादे रखते हो तो तुम इसे कर सकते हो। यह बिल्कुल भी जटिल नहीं है। हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की दसवीं मद पर अपनी संगति समाप्त कर ली है। यह बहुत आसान है।

परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं के प्रति नकली अगुआओं का रवैया और अभिव्यक्तियाँ

अब जबकि तुमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की यह जिम्मेदारी समझ ली है तो इसके संबंध में हम उन अभिव्यक्तियों का विश्लेषण करेंगे जो नकली अगुआ इस कार्य को करते समय प्रदर्शित करते हैं और इस बात का भी विश्लेषण करेंगे कि वे ऐसी कौन-सी चीजें करते हैं जिनका अर्थ ये होता है कि उन्हें नकली अगुआ के रूप में चित्रित किया जा सकता है। पहली, जब नकली अगुआ यह कार्य करते हैं तो वे विभिन्न वस्तुओं की समुचित सुरक्षा करने में सक्षम नहीं होते। जब तमाम तरह की भौतिक वस्तुओं की बात आती है, तो उनकी सुरक्षा करना महत्वपूर्ण कार्य की पहली मद है। नकली अगुआ अपने हर कार्य में गड़बड़ करते हैं; जिस तरह सत्य और उससे जुड़े विभिन्न सिद्धांतों की बात आने पर वे दलदल में फँस जाते हैं, उसी तरह परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं की सुरक्षा करने के मामले में भी वे इसी तरह गड़बड़ करते हैं। वे नहीं जानते कि उन भौतिक वस्तुओं का प्रबंधन करने के लिए किस तरह के लोग ढूँढ़ने चाहिए या उन्हें किस तरीके से सुरक्षित रखना चाहिए। उनके पास इस कार्य को करने के लिए कोई सटीक लक्ष्य और कोई विशिष्ट योजना नहीं होती, सोपानवार विस्तृत योजना होना तो दूर की बात है। अगर कोई परेशानी उठाने को तैयार हो तो इन वस्तुओं की सुरक्षा की जा सकती है; अगर न हो तो नकली अगुआ इन वस्तुओं को लापरवाही से अलग रख देता है। उसे उन वस्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए कोई उपयुक्त व्यक्ति या उनका भंडारण करने के लिए कोई उपयुक्त स्थान नहीं मिलता, उन्हें सुरक्षित रखने के विशिष्ट सिद्धांतों के बारे में संगति तो वह बिल्कुल नहीं करता। साथ ही वह इन भौतिक वस्तुओं के भविष्य में स्थान निर्धारण, मरम्मत और रखरखाव के लिए कोई व्यवस्था नहीं करता। कुछ नकली अगुआ तो इस बात से भी पूरी तरह से अनभिज्ञ होते हैं कि परमेश्वर के घर में क्या-क्या वस्तुएँ हैं—वे न तो इसकी परवाह करते हैं और न ही इसके बारे में पूछते हैं। उदाहरण के लिए मान लो परमेश्वर के घर ने परमेश्वर के वचनों की नई पुस्तकें छापी हैं। वितरित किए जाने के बाद उनमें से कितनी पुस्तकें बची हैं, उन्हें संगृहीत करने के लिए किसे नियुक्त किया गया है, उन्हें कैसे संगृहीत किया जा रहा है और क्या उन्हें सही स्थान पर संगृहीत किया जा रहा है—नकली अगुआ इनमें से कुछ भी नहीं जानता, न ही वह इनके बारे में पता लगाता है या पूछताछ करता है। वह पूछताछ क्यों नहीं करता? उसे लगता है कि परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं की सुरक्षा करना एक छोटा मामला है, और वह एक अगुआ है, ऐसा व्यक्ति जो महत्वपूर्ण कार्य करता है, जो सिर्फ उपदेश देता है। वह इन “छोटे मामलों” पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता, बल्कि उन्हें ऐसे लोगों को करने के लिए सौंप देता है जो कुछ नहीं समझते और उसे परवाह नहीं होती कि वे अच्छे से किए जा रहे हैं या बुरे तरीके से। इसलिए वह परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं की सुरक्षा के कार्य को बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेता। यह एक कारण है। दूसरा कारण यह है कि कुछ नकली अगुआ भ्रमित होते हैं—उनके दिमाग में उथल-पुथल मची रहती है। उनमें चीजों की सुरक्षा के लिए सामान्य सोच या जागरूकता नहीं होती और उनके पास परमेश्वर के घर की वस्तुओं की सुरक्षा करने के लिए कोई प्रक्रिया या मार्ग नहीं होता। इसलिए वे नहीं जानते कि उनमें से कितनी चीजें क्षतिग्रस्त हो गई हैं और यह भी नहीं जानते कि क्या उनके बर्बाद होने के मामले भी हैं। जब कुछ चीजें बुरे लोगों द्वारा ले ली जाती हैं, तो नकली अगुआ कहता है, “उन्हें ले लेने दो—वैसे भी सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है।” कुछ महत्वपूर्ण वस्तुएँ व्यक्तियों द्वारा बिना किसी की स्वीकृति के इस्तेमाल की जाती हैं; वे लोग उन चीजों को ले लेते हैं और दूसरे लोग उन्हें अपने कार्य में इस्तेमाल नहीं कर पाते और कोई उन्हें माँगने की हिम्मत नहीं करता। नकली अगुआ कहता है, “यह कोई बड़ी बात नहीं है। बस नई खरीद लो। उन्होंने वह चीज ले ली है, इसलिए उन्हें पहले उसका इस्तेमाल करने दो। वह एक चीज ही तो है—चाहे जो भी उसका इस्तेमाल करे, एक ही बात है। अगर वे उसका समझदारी से इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं तो यह उनके और परमेश्वर के बीच का मामला है। हमें इसमें हस्तक्षेप करने की कोई जरूरत नहीं है।” देखो वे मुद्दे को “सँभालने” के लिए एक भव्य धर्म-सिद्धांत का किस तरह प्रचार करते हैं, बड़े मुद्दों को छोटे मुद्दों में बदल देते हैं और छोटे मुद्दों को मुद्दे ही नहीं रहने देते। जब परमेश्वर के घर की विभिन्न वस्तुओं की सुरक्षा की बात आती है तो नकली अगुआ अपनी कोई जिम्मेदारी पूरी नहीं करते। वे उसकी परवाह नहीं करते या उसके बारे में नहीं पूछते और वे किसी भी समस्या का समाधान या प्रबंधन नहीं करते। अगर ऊपरवाला भी उनके कार्य की जाँच करता है तो भी वे सिर्फ बहाने बनाकर टाल-मटोल करते हैं, और कुछ नहीं।

कुछ भाई-बहन परमेश्वर के घर के उपयोग के लिए उपकरण, कपड़े और दवाइयाँ खरीदते हैं और जब कोई नकली अगुआ उन वस्तुओं को देखता है तो वह उनमें से अच्छे कपड़े, जूते और बैग अपने लिए छाँट लेता है और दूसरों को सिर्फ वही बचा हुआ सामान लेने देता है जिसकी उसे खुद जरूरत नहीं होती। जिन मूर्खों की वह अगुआई करता है, वे इसे देखकर कहते हैं, “हमारे अगुआ को जो चाहिए, वह उसने चुन लिया है—अब हमारी बारी है। जब हम भी चुन लेंगे तब जो बेकार सामान बचेगा उसे अपने नीचे के भाई-बहनों की ओर ठेल देंगे।” जिसके भी हाथ ये चीजें लगती हैं वे उसी की हो जाती हैं और बची हुई चीजें जो किसी को पसंद नहीं आतीं, फेंक दी जाती हैं और कोई उनकी सुरक्षा नहीं करता। इसलिए परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं की सुरक्षा के लिए नाममात्र के स्थान होते तो हैं, लेकिन वास्तव में उनकी सुरक्षा बिल्कुल नहीं की जाती—वे स्थान कूड़े के ढेर होते हैं जिनका प्रबंधन कोई नहीं करता। वे बस चीजों को किसी जगह फेंक देते हैं और उनका ढेर लगने देते हैं। वहाँ कपड़े, जूते, जुराब, दवाएँ, इलेक्ट्रॉनिक्स और साथ ही रोजमर्रा का सामान और रसोई के बर्तन होते हैं—यह एक गड़बड़झाला होता है जिसमें तमाम तरह का कबाड़ होता है, यहाँ तक कि लोगों का भोजन और कुत्तों का भोजन भी आपस में मिल जाता है। अगर तुम पूछो कि इन चीजों का प्रबंधन कौन करता है और क्या वह इनकी छँटाई करता है; या क्या इन चीजों के लिए निर्देश हैं और इन्हें कैसे सुरक्षित रखने की जरूरत है; या क्या ये चीजें परमेश्वर के घर के कार्य के लिए आवश्यक नहीं हैं, क्या भाई-बहनों को इनकी जरूरत है—तो कोई इनका जवाब नहीं जानता। भाई-बहनों का जवाब न जानना काफी सामान्य है, लेकिन अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास भी इनमें से किसी भी सवाल का जवाब नहीं होता—वे इन चीजों की जिम्मेदारी से पूरी तरह बचते हैं और या तो यह कहकर कि “मुझे नहीं पता” या यह कहकर कि “कोई इसका खयाल रख रहा है,” तुम्हें टाल देते हैं और परमेश्वर के घर को धोखा देते हैं। इससे ये समस्याएँ अनसुलझी रह जाती हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं का प्रबंधन करने के लिए उपयुक्त लोगों को ढूँढ़ना मुश्किल नहीं है, है ना? नकली अगुआ इन चीजों की उचित सुरक्षा करने, उनका रिकॉर्ड दुरुस्त रखने और उन्हें अच्छी तरह से छाँटकर रखने के लिए किसी वफादार व्यक्ति को खोजने का सरल कार्य भी नहीं करते। तो फिर वे क्या करते हैं? जब भाई-बहन परमेश्वर के घर को कपड़े या रोजमर्रा की जरूरत की चीजें चढ़ाते हैं तो नकली अगुआ उन चीजों को देखकर उनके चारों ओर झुंड बना लेते हैं, जैसे भूखे भेड़ियों का झुंड इकट्ठे मांस खा रहा हो। जो भी कपड़े उन्हें जँचते हैं वे उन्हें बार-बार पहनकर देखते हैं और अपने लिए लगातार चीजें चुनते रहते हैं। जब परमेश्वर का घर विभिन्न प्रकार की महत्वपूर्ण और महँगी मशीनरी और उपकरण खरीदता है, तो वे पहले अपने लिए अच्छी चीजें चुनने दौड़ते हैं। वे अच्छी चीजें क्यों चुनते हैं? उन्हें लगता है कि अगुआ या कार्यकर्ता के तौर पर उन्हें परमेश्वर के घर की चीजों के उपयोग का विशेषाधिकार प्राप्त है। परमेश्वर का घर जो भी चीजें जारी करता है, वे हमेशा सबसे अच्छी चीजें पहले चुन लेते हैं। परमेश्वर के घर की चीजों के साथ वे इसी तरह पेश आते हैं। क्या यह कार्य करना है? क्या यह नकली अगुआओं की अभिव्यक्ति नहीं है? जब अवधि समाप्ति की तिथि वाली चीजों—जैसे कि भोजन और दवाओं—की बात आती है तो नकली अगुआ उनकी परवाह ही नहीं करते। वे उनका प्रबंधन करने के लिए उपयुक्त कर्मचारी नहीं ढूँढ़ते, न ही वे कर्मचारियों से यह कहते हैं, “इनमें से कुछ चीजों की अवधि समाप्ति की तिथि होती है, इसलिए इनका तुरंत रिकॉर्ड बना लो। इनकी अवधि समाप्ति की तिथि से पहले इन्हें जल्दी से भाई-बहनों को आवंटित कर दो, ताकि इनका समझदारी से उपयोग किया जा सके—इनकी अवधि समाप्त होने का इंतजार मत करो; इन्हें बर्बाद मत होने दो।” नकली अगुआ कभी ये काम नहीं करते। जब किसी चीज की अवधि समाप्त हो जाती है तो वे बस उसे फेंक देते हैं। जब अगुआ और कार्यकर्ता परमेश्वर के घर में कार्य करते हैं, तो असल में उन्हें परमेश्वर के घर का प्रबंधक होना चाहिए। पहली चीज जो उन्हें करनी चाहिए, वह है परमेश्वर के घर की वस्तुओं की समझदारी से सुरक्षा करना, उन पर कड़ी निगरानी रखना और इस संबंध में उनकी उचित जाँच करना। यह भी परमेश्वर के घर का एक बुनियादी कार्य है, फिर भी नकली अगुआ ऐसा बुनियादी कार्य भी नहीं कर सकते। क्या वे भ्रमित, खराब काबिलियत वाले और मंदबुद्धि होते हैं—या उनके इरादे सही नहीं होते? अगर वे मंदबुद्धि और भ्रमित होते, तो अपने लिए अच्छी चीजें चुनना कैसे जानते? वे अपनी चीजें क्यों नहीं छोड़ देते या दूसरों को क्यों नहीं दे देते? वे अपनी चीजें क्यों नहीं खराब या क्षतिग्रस्त करते? और परमेश्वर के घर की चीजों के प्रति उनका यह रवैया क्यों रहता है? स्पष्ट रूप से उनमें नैतिकता नहीं होती और उनके इरादे सही नहीं होते। जब अगुआ और कार्यकर्ता हैसियत प्राप्त कर लेते हैं और परमेश्वर के घर के कार्य के बड़े दायरे के संपर्क में आ जाते हैं, तो उन्हें परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं और सार्वजनिक संपत्ति तक पहुँच का विशेषाधिकार प्राप्त हो जाता है और वे इन चीजों के बारे में सबसे ज्यादा जानकारी रखते हैं। फिर भी वे उन्हें अनदेखा करते हैं, उन्हें ठीक से सुरक्षित नहीं रखते और किसी को भी उनका इस्तेमाल करने और उन्हें ले जाने देते हैं, जो कोई भी उनकी देखभाल करने को तैयार होता है उसी को करने देते हैं और अगर कोई उनकी देखभाल करने को तैयार नहीं होता और गैर-जिम्मेदार होता है तो वे इसका बुरा नहीं मानते और भले ही उन्हें पता चले कि किसी को कोई समस्या है, वे उसका समाधान नहीं करते। ये नकली अगुआ होते हैं। इस बिंदु पर हमने निष्कर्ष निकाला है कि नकली अगुआ न सिर्फ खराब काबिलियत वाले और दायित्व न उठाने वाले होते हैं, बल्कि गलत इरादे भी रखते हैं और खराब चरित्र के होते हैं। चूँकि ये अगुआ खराब काबिलियत वाले होते हैं और उनमें समझ की कमी होती है, इसलिए उनका सत्य और जीवन प्रवेश से जुड़ा कार्य खराब तरीके से करना समझ में आता है। और चूँकि वे खराब काबिलियत वाले होते हैं और उनमें कार्य क्षमता नहीं होती, इसलिए उनका प्रशासन से जुड़ा कार्य खराब तरीके से करना भी बर्दाश्त किया जा सकता है। लेकिन उनका परमेश्वर के घर की विभिन्न वस्तुओं के प्रबंधन से जुड़ा कार्य करने में भी सक्षम न होना—जो कि सबसे न्यूनतम, सरल कार्य है—कुछ और भी स्पष्ट रूप से दर्शाता है : कुछ नकली अगुआओं की समस्या खराब काबिलियत होने और दायित्व न उठाने जितनी सरल नहीं होती, इससे भी बढ़कर वे खास तौर से घटिया चरित्र और खराब मानवता वाले होते हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की दसवीं जिम्मेदारी पर हमारी संगति के जरिये नकली अगुआओं की एक और अभिव्यक्ति प्रकट हुई है : वे न सिर्फ खराब काबिलियत वाले, कोई बोझ नहीं उठाने वाले और दैहिक सुख में लिप्त रहने वाले होते हैं—बल्कि वे खराब चरित्र के भी होते हैं और उनके इरादे सही नहीं होते। जो चीजें उनकी नहीं होतीं वे उनके लिए चिंता का विषय नहीं होतीं—वे उनकी सुरक्षा तक नहीं करते। तुम्हें परमेश्वर के घर का प्रबंधक बनाया गया है, फिर भी तुम जिस पत्तल में खाते हो उसी में छेद करते हो और परमेश्वर के घर पर निर्भर रहने के बावजूद उसके हितों की रक्षा नहीं करते; परमेश्वर के घर की चीजें लापरवाही से एक तरफ फेंक देते हो मानो वे बाहरी लोगों की हों, और उनकी सुरक्षा नहीं करते, तुम्हें लगता है कि वे कोई बड़ी चीजें नहीं हैं। यह सिर्फ अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने में विफलता नहीं है—यह तुम्हारी मानवता के साथ समस्या है, यह नैतिकता की एक बड़ी कमी है! जिन चीजों की सुरक्षा करने की उनसे अपेक्षा की जाती है उनकी खराब तरीके से सुरक्षा करना या उनकी सुरक्षा ही नहीं करना इस बात का द्योतक है कि नकली अगुआओं में मानवता नहीं होती और उनके इरादे सही नहीं होते। वे परमेश्वर के घर की वस्तुओं की सुरक्षा तक अच्छी तरह से नहीं कर सकते, इसलिए अगर उन्हें उन वस्तुओं को आवंटित करना हो तो क्या वे ऐसा समझदारी से कर सकते हैं? वे सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने में तो और भी पीछे रह जाते हैं। वे परमेश्वर के घर की वस्तुएँ लापरवाही से फेंके जाते, क्षतिग्रस्त और बर्बाद होते देखते हैं, जिनका प्रबंधन करने वाला कोई अच्छा व्यक्ति नहीं होता और वे अपने दिलों में अच्छी तरह जानते हैं कि ऐसा करना सही नहीं है—फिर भी वे इसे नहीं सँभालते। यह इरादे सही नहीं होना है। क्या वे कमीने, जिनके इरादे सही नहीं होते, परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुएँ समझदारी से आवंटित कर सकते हैं? वे ऐसा करने में और भी कम सक्षम होते हैं—अगर तुम उनसे ये चीजें आवंटित करवाओगे तो वे ऐसे काम करेंगे जिनमें नैतिकता की और भी कमी होगी।

एक फार्म कलीसिया में, जहाँ कुत्ते पाले जाते हैं, उन्हें पालने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति नवजात पिल्लों का बहुत ध्यान रखता है। उसे डर लगा कि पिल्लों को उनकी जरूरत के हिसाब से पोषण नहीं मिलेगा, इसलिए उसने कुत्तों के खाने के लिए जैविक अंडों के लिए आवेदन किया। वहाँ के नकली अगुआ ने तुरंत अनुरोध का अनुमोदन कर दिया; उसने इस बारे में नहीं सोचा कि जैविक अंडे कितने दुर्लभ हैं। वे लोगों के खाने के लिए भी पर्याप्त नहीं हैं तो वे कुत्तों को कैसे देंगे? क्या यह इस मामले को सँभालने का बेतुका तरीका नहीं है? उस नकली अगुआ के इस व्यवहार की प्रकृति क्या है? इसका वर्णन कैसे किया जाए? क्या उस नकली अगुआ का यह अभ्यास बेतुका नहीं है? वह नकली अगुआ हर समय जब भी अपना मुँह खोलकर कुछ बोलता है वे लोगों की रुचि के अनुरूप धर्म-सिद्धांत होते हैं, लेकिन असल में वह सत्य सिद्धांतों को जरा भी नहीं समझता, इसलिए जब कुछ होता है तो वह उसे इंसानी कल्पनाओं, प्राथमिकताओं और व्यक्तिपरक इच्छाओं के अनुसार देखता और सँभालता है—और अंततः वह कुत्तों को जैविक अंडे खिलाने जैसा घिनौना काम कर डालता है। क्या उस नकली अगुआ द्वारा परमेश्वर के घर की वस्तुओं का इस तरह से आवंटन समझदारी भरा माना जा सकता है? (नहीं।) वह समझदारी से आवंटन क्यों नहीं कर सकता? ऊपर से ऐसा लगता है कि नकली अगुआ इस बहुत छोटे मामले में भी शामिल हो रहा था, उसका ध्यान रख रहा था, उसकी प्रगति की जानकारी ले रहा था और उसके पास इस आवेदन का समर्थन करने के लिए पर्याप्त कारण और आधार थे—लेकिन क्या वह सिद्धांतों के अनुरूप कार्य कर रहा था? क्या वह परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार कार्य कर रहा था? नहीं। तो उसके इस कार्य की प्रकृति को देखते हुए यह सत्कर्म है या दुष्कर्म? यह उसकी जिम्मेदारी का निर्वाह है या उपेक्षा? यह जिम्मेदारियों की उपेक्षा करना है—यह असैद्धांतिक है, लापरवाही से बुरे काम करना है! इस मामले के जरिये तुम इस नकली अगुआ की मानवता का सार क्या देखते हो? क्या यह विनियमों की विकृत समझ और उनका अंधा अनुप्रयोग नहीं है? हर सांस के साथ वह जो कुछ भी कहता है, वे सही धर्म-सिद्धांत होते हैं और ऐसा लगता है जैसे उसमें कोई गलत वाक्यांश नहीं होता, फिर भी असल में वह विकृत होता है। ऐसे लोग नकली आध्यात्मिक होते हैं और उनकी समझ विकृत होती है—वे कचरे के टुकड़े होते हैं जिनमें आध्यात्मिक समझ नहीं होती। हमने अभी उल्लेख किया कि नकली अगुआओं की मानवता ऐसी होती है कि वे घटिया चरित्र के होते हैं और उनके इरादे सही नहीं होते। जब परमेश्वर के घर की वस्तुएँ आवंटित करने का समय आता है तो उनमें सिद्धांत नहीं होते और वे उन्हें आँख मूँदकर आवंटित करते हैं, जिससे पता चलता है कि नकली अगुआओं की समझ विकृत होती है और वे आँख मूँदकर विनियमों को लागू करते हैं और अपने क्रियाकलापों में सिद्धांतहीन होते हैं—वे बस आँख मूँदकर और बेतरतीब ढंग से काम करते हैं। नकली अगुआ ऊपर से बहुत उदार और दयालु लगते हैं, जबकि असल में यह झूठी उदारता और झूठी दयालुता होती है। उदाहरण के लिए, जब एक कुतिया ने पिल्लों को जन्म दिया तो कुत्ता-पालक ने कहा कि उन्हें कुत्तों को वह कंबल देना चाहिए जो लोगों को दिया जाता है। तब किसी ने कहा, “कुत्तों को नया कंबल देना अफसोस की बात होगी—इसके बजाय उसे भाई-बहनों को देना बेहतर होगा और हमारा पुराना कंबल जानवरों को दे देना।” तुम इस सुझाव के बारे में क्या सोचते हो? नई चीजें लोगों को और पुरानी चीजें जानवरों को देना काफी समझदारी है। यही सिद्धांत है; यही समझदारी भरा आवंटन है। नकली अगुआओं का सामना जब ऐसी चीजों से होता है तो वे उनसे कैसे निपटते हैं? यह सुनने के बाद वहाँ मौजूद नकली अगुआ ने सोचा : “जानवरों को कभी नई चीजें इस्तेमाल करने को नहीं मिलतीं। वे हमेशा पुरानी, गंदी चीजें इस्तेमाल करते रहते हैं। हम लोगों को हमेशा नई चीजें इस्तेमाल करने को मिलती हैं। परमेश्वर के वचनों में कहा गया है कि कभी-कभी हम सूअरों या कुत्तों से भी गए-बीते होते हैं। इसलिए चीजों के लिए सूअरों और कुत्तों से मत लड़ो। यह मानवता की कमी है।” लिहाजा उसने उन जानवरों को नया कंबल दे दिया। वहाँ मौजूद लोगों को पुराना कंबल इस्तेमाल करने से कोई नुकसान नहीं हुआ होगा, लेकिन जिस तरह से इस चीज को सँभाला गया वह इस मुद्दे का बहुत अच्छा उदाहरण है। इस मामले में नकली अगुआ ने क्या भूमिका निभाई? क्या तुम लोग कहोगे कि सामान्य लोग ऐसा कर पाएँगे? (नहीं।) तो इस मामले को सँभालते समय किस तरह के लोग चीजों को इस हद तक पहुँचने देते हैं? (बेतुके लोग जिनमें सामान्य लोगों जैसी समझ या सोच नहीं होती।) ये सभी उत्तर सही हैं—वे लोग नाकारा हैं। जब सामान्य लोग ऐसी किसी चीज का सामना करते हैं तो वे जानते हैं कि उसे समझदारी से कैसे सँभालना है, लेकिन विकृत समझ वाले झूठ-मूठ के आध्यात्मिक नकली अगुआ नहीं जानते कि इसे कैसे सँभालना है। इसे सँभालने के उनके तरीके का भी एक आधार प्रतीत होता है और वह परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुरूप और प्रचुर, समझदारी भरे औचित्यों द्वारा समर्थित भी प्रतीत होता है—फिर भी लोग इसे सुनने के बाद यह नहीं जान पाते कि हँसें या रोएँ, यह इतना हास्यास्पद होता है। ऐसा कैसे है कि वे इतना सरल, स्पष्ट तर्क भी नहीं समझ पाते? वे इसे इतने विकृत तरीके से कैसे सँभालते हैं? यह घिनौना है। अगर तुम उनसे फार्म के प्रबंधकों के रूप में कार्य करवाओगे तो वे कुत्तों से चूहे पकड़वाएँगे, बिल्लियों से घर की रखवाली करवाएँगे और सूअरों को बिस्तरों पर सुलाएँगे—सब-कुछ गड़बड़ हो जाएगा। क्या नकली अगुआ परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुएँ समझदारी से आवंटित करने में सक्षम होते हैं? (नहीं।) वे एक अलग तरह के उलझे हुए और बेतुके किस्म के लोग होते हैं। खास तौर से विकृत समझ और गलत इरादे रखने वाले नकली अगुआओं के अलावा, ज्यादातर नकली अगुआ भी इस तरह के कार्य को गड्ड-मड्ड और अस्त-व्यस्त कर देते हैं, हालाँकि उनमें थोड़ी काबिलियत होती है और उनकी समझ विकृत नहीं होती। वे सबसे मामूली जिम्मेदारियाँ भी नहीं निभा पाते जो उन्हें निभानी चाहिए। इसलिए जब तुम उनसे इस कार्य के बारे में पूछते हो, तो उनका हमेशा एक ही जवाब होता है : “फलाँ-फलाँ आदमी इस पर काम कर रहा है। फलाँ-फलाँ आदमी जानता है। अगर तुम्हारा कोई सवाल है, तो मुझे फलाँ-फलाँ से पूछना होगा।” और यही वह आखिरी बात है जो तुम इसके बारे में सुनोगे। नकली अगुआ इस कार्य को करते समय यही अभिव्यक्ति प्रदर्शित करते हैं।

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