अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (10) खंड चार

कार्य-व्यवस्थाओं के संबंध में नकली अगुआओं का रवैया और अभिव्यक्तियाँ

हमने अभी-अभी इस बारे में संगति की कि जब कार्य-व्यवस्थाओं की बात आती है, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं की क्या जिम्मेदारियाँ हैं। इसके बाद, हम इस बारे में संगति करेंगे कि नकली अगुआओं की क्या अभिव्यक्तियाँ होती हैं। तुम लोग जिन नकली अगुआओं से मिले हो, उनका कार्य-व्यवस्थाओं के प्रति क्या रवैया है? वे कौन-से क्रियाकलाप और अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं? आम तौर पर नकली अगुआ कार्य-व्यवस्थाओं के शब्दों से समझ जाते हैं कि क्या करना चाहिए, ऊपरवाले की विशिष्ट अपेक्षाएँ क्या हैं, और विशिष्ट कार्य परियोजनाएँ क्या हैं, लेकिन वे इसे सिर्फ धर्म-सिद्धांत के संबंध में समझते हैं। वे अब भी कार्य-व्यवस्थाओं को कार्यान्वित करने के लिए विशिष्ट सिद्धांतों, मानकों और अभ्यास के मार्गों को नहीं समझते हैं या पूरी तरह से बूझते नहीं हैं। कार्य-व्यवस्थाएँ मिलने के बाद, इस बारे में संगति करके कि कार्य कैसे करना है और कार्य-व्यवस्थाएँ कैसे जारी और कार्यान्वित करनी हैं, वे औपचारिकताएँ भी निभाते हैं। लेकिन, चाहे वे कितनी भी संगति क्यों ना करें, यह कार्य-व्यवस्थाओं की सिर्फ शाब्दिक, धर्म-सैद्धांतिक समझ ही होती है। जहाँ तक इन पहलुओं की बात है कि कार्य-व्यवस्थाओं को विशिष्ट रूप से कार्यान्वित कैसे किया जाए और क्या परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं, साथ ही, अगर वे कार्य करने के लिए कुछ खास लोगों को चुनते हैं या इसे कार्यान्वित करने के लिए एक खास योजना चुनते हैं, तो कार्यान्वयन कितना प्रभावी होगा, या कार्य-व्यवस्थाओं द्वारा अपेक्षित लक्ष्य और परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं या नहीं, वे इन पहलुओं के बारे में बेखबर और अस्पष्ट होते हैं। जब नकली अगुआ कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित करते हैं, तो आम तौर पर वे बस एक सभा आयोजित करते हैं जहाँ वे कुछ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करते हैं, कार्य सौंपते हैं, परमेश्वर की कुछ अपेक्षाओं का जिक्र करते हैं और फिर सभी से उनका दृढ़ संकल्प व्यक्त करने के लिए कहते हैं। वे इसे अपना कार्य करना मानते हैं। उनका मानना है कि एक बार जब उन्होंने कार्य सौंप दिया है, किसी को प्रभारी के रूप में नियुक्त कर दिया है, और परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित परिणामों का जिक्र कर दिया है, तो उन्होंने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी है। फिर वे पूरी तरह से निश्चिन्त महसूस करते हैं, जैसे यह कार्य पूरा हो गया हो। उन्हें यह बिल्कुल पता नहीं होता है कि कार्य का निरीक्षण कब करना है, कार्य में क्या समस्याएँ और कठिनाइयाँ आ सकती हैं, और कौन-सी समस्याएँ नीचे के लोगों द्वारा सुलझाई जा सकती हैं और कौन-सी नहीं। उन्हें यह भी नहीं पता है कि किन महत्वपूर्ण कार्यों पर अनुवर्ती कार्रवाई की जानी चाहिए और मार्गदर्शन प्रदान किया जाना चाहिए। मिसाल के तौर पर, निगरानी, आग्रह और निरीक्षण करने जैसे महत्वपूर्ण चरणों का विचार नकली अगुआओं के दिमाग में कभी नहीं आता है। थोड़े बेहतर नकली अगुआ, जिनके पास तुलनात्मक रूप से कुछ जमीर होता है और जो मुफ्तखोरी नहीं करना चाहते हैं, वे मानते हैं कि उन्हें कुछ कार्य करना चाहिए। वे कलीसिया का दौरा करेंगे और भाई-बहनों से पूछेंगे कि क्या उन्हें कोई समस्या है। कोई उन्हें बताता है, “हम भाई-बहन जब साथ होते हैं, तो हमारे बीच अक्सर विवाद होते रहते हैं। जब हमारी राय भिन्न होती हैं, तो हम लगातार बहस करते हैं और उग्रता प्रकट करते हैं।” नकली अगुआ कहते हैं, “इसे सुलझाना आसान है,” और फिर वह एक सभा आयोजित करते हैं, जहाँ वे संगति करते हैं : “लोगों को सहिष्णुता और धैर्य सीखना चाहिए; लोगों को विनम्र होना सीखना चाहिए, उन्हें घमंडी नहीं होना चाहिए, और समर्पण सीखना चाहिए। यह परमेश्वर का इरादा है। जो कोई भी भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करता है, उसे खुद पर विचार करना चाहिए और काट-छाँट स्वीकार करनी चाहिए, अपने भ्रष्ट स्वभाव के अनुसार नहीं जीना चाहिए।” इस सारे धर्म-सिद्धांत के बारे में संगति करने के बाद वह कहता है, “बाकी मुद्दों को तुम लोग खुद ही सँभाल सकते हो। मैं तकनीकी मामलों में ज्यादा कुशल नहीं हूँ। जो भी हो, मैंने यह सभा तुम लोगों के लिए आयोजित की है; तुम लोगों को जैसे ठीक लगे बस वैसे ही यह कार्य करो। यहाँ मुख्य और महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम्हें अपने कर्तव्य करने में वफादार रहना है और अपने खुद के विचारों से चिपके नहीं रहना है।” यह सुनने के बाद, लोग सोच-विचार करते हैं और कहते हैं, “हमारी समस्या सिर्फ भ्रष्टता, उग्रता और स्वार्थी इच्छाएँ प्रकट करना ही नहीं है, बल्कि यह भी है कि हम कुछ तकनीकी मुद्दों के बारे में अनिश्चित और अस्पष्ट हैं और यह नहीं जानते हैं कि सिद्धांतों के अनुसार कैसे कार्य करना है। यह समस्या सुलझी नहीं है!” नकली अगुआ उत्तर देते हैं, “परमेश्वर के वचनों को और पढ़ो। एक बार जब तुम्हारे द्वारा प्रकट किए गए भ्रष्ट स्वभाव सुलझ जाएँगे, तो ये मुद्दे भी सुलझ जाएँगे।” नकली अगुआ जिस कार्य में सबसे ज्यादा माहिर होते हैं, वह है धर्म-सिद्धांत बड़बड़ाना और नारे लगाना। वे उन समस्याओं का अंदाजा नहीं लगाते हैं जो कार्य में बार-बार उत्पन्न हो सकती हैं। जब कोई व्यक्ति कोई मुद्दा उठाता है, तो उनके पास सिर्फ एक ही समाधान होता है, और वह है कुछ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों से समझा देना, फिर कुछ उपदेश या सलाह देना, और यह मान लेना कि यह पूरा हो चुका है। वे कोई खास योजना पेश नहीं कर पाते हैं और सही मार्गदर्शन और सहायता नहीं दे पाते हैं। क्या नकली अगुआओं का कार्य साधारण और आसान नहीं है? वे जहाँ भी जाते हैं वहाँ सिर्फ उपदेश देते हैं, मुख्य रूप से धर्म-सिद्धांत बोलने और नारे लगाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के बीच यह स्थिति काफी आम है, है न? वे विशिष्ट कार्य कार्यान्वित नहीं कर सकते हैं और उन्हें नहीं पता होता है कि जारी की गई कार्य-व्यवस्थाएँ कैसे पूरी करनी हैं, कैसे कार्यान्वित करनी हैं या उन पर अनुवर्ती कार्रवाई कैसे करनी है। उन्हें यह नहीं पता होता है कि उनकी कार्य जिम्मेदारियाँ क्या हैं या उन्हें कौन-से कार्यों का निर्वहन करना चाहिए। जब उनसे विशिष्ट कार्य करने के लिए कहा जाता है, तो वे सिर्फ नारे लगाते हैं। जब कोई व्यक्ति कोई मुद्दा उठाता है, तो वे इसे उपदेश देना शुरू करने के एक अवसर के रूप में लेते हैं। अगर कोई ऐसा महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया जाता है जिसे वे सुलझा नहीं सकते हैं, तो वे लोगों की काट-छाँट करने और उन्हें फटकारने का सहारा लेते हैं। उनके पास कोई दूसरे समाधान नहीं होते हैं और वे कार्य में उत्पन्न होने वाली समस्याओं और विचलनों को बिल्कुल भी सुलझा नहीं पाते हैं। यह नकली अगुआओं की एक मुख्य विशेषता है। ऐसे भी नकली अगुआ होते हैं जिन्हें कोई कार्य-व्यवस्था कार्यान्वित करने और कार्य के दौरान यह निरीक्षण करने के लिए कहा जाता है कि कौन-सी कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं—अगर वे इन कठिनाइयों को सुलझा सकते हैं, तो उन्हें यह तुरंत करना चाहिए; अगर वे ऐसा नहीं कर सकते हैं, तो वे कुछ प्रश्न इकट्ठा करके ऊपर से मार्गदर्शन माँग सकते हैं, और ऊपरवाला उन्हें सुलझा देगा। लेकिन होता यह है कि जब वे इस कार्य में भाग लेने के लिए कार्य स्थल पर जाते हैं, तो वे दिन भर सभी को सभाओं के लिए बुलाते रहते हैं, और यह पता लगाने के अलावा कि किसका किससे विवाद है, कौन हमेशा किससे बहस करता है, किसकी मानवता बहुत अच्छी नहीं है, किसकी समझ विकृत है, कौन घमंडी है और हमेशा अपने विचारों से चिपका रहता है, कौन पेटू और आलसी है, कौन अविश्वासियों जैसा दिखता है, और कौन कुकर्मी हैं, वे कार्य को कार्यान्वित करने में उत्पन्न होने वाली किसी भी समस्या या कठिनाई की पहचान नहीं कर पाते हैं, और ना ही वे इन मुद्दों को देख पाते हैं। क्या तुम लोगों को लगता है कि ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता अपना कार्य पूरा कर सकते हैं? (नहीं।) तो समस्या कहाँ है? (उनकी काबिलियत बहुत ही खराब है, उनमें भेद पहचानने की बिल्कुल क्षमता नहीं है, और वे समस्याओं की पहचान नहीं कर सकते हैं।) तुम लोगों के आसपास ऐसे कितने अगुआ हैं? क्या तुम लोगों के अगुआ समस्याओं की पहचान कर सकते हैं? अगर कोई कार्य-व्यवस्था जारी की जाती है और अगुआ और कार्यकर्ता कार्य-व्यवस्था को कार्यान्वित करने के लिए किसी विशिष्ट योजना या चरणों के बिना सिर्फ नारे लगाते हैं और उपदेश देते हैं, यह नहीं जानते हैं कि कार्य कैसे करना है, तो कार्य कार्यान्वित नहीं किया जा सकता है। यह प्रभावी रूप से निरर्थक हो जाता है। कलीसिया में कार्य-व्यवस्था कितनी अच्छी तरह से कार्यान्वित की जाती है और उसकी प्रभावशीलता कितनी है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या अगुआ और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य कर सकते हैं। अगर अगुआओं और कार्यकर्ताओं में अच्छी काबिलियत, कार्य क्षमता और निष्ठा है, तो कार्य-व्यवस्था अच्छी तरह से कार्यान्वित की जाएगी। अगर अगुआओं और कार्यकर्ताओं में खराब काबिलियत है, वे भ्रमित हैं, और उनमें कार्य क्षमता का अभाव है, तो चाहे कलीसिया में कार्य के उस क्षेत्र का कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति क्यों ना हो या भाई-बहन अपनी भूमिका निभाने के लिए कितने भी इच्छुक क्यों ना हों, कार्य-व्यवस्था कार्यान्वित नहीं की जा सकती है, परिणाम प्राप्त करने की तो बात ही छोड़ दो।

नकली अगुआओं का कार्य सिर्फ वहीं तक सीमित रहता है जो लोग सतह पर देख पाते हैं। यहाँ तक कि जब वे कार्य-व्यवस्था को कार्यान्वित करते हैं, तो भी यह सिर्फ एक औपचारिकता के रूप में होता है, और उसके बाद किसी भी तरह की अनुवर्ती कार्रवाई या निरीक्षण नहीं किया जाता है। उनका कार्य सिर्फ औपचारिकता निभाने के स्तर पर ही ठहरा रहता है; इसके पीछे कोई वास्तविक शक्ति नहीं होती है और यह कोई भी परिणाम प्राप्त करने में विफल रहता है। मिसाल के तौर पर, अनुभवजन्य गवाही लेख लिखने के कार्य के संबंध में, यह कार्य-व्यवस्था मिलने के बाद, नकली अगुआ संगति करने के उद्देश्य से लोगों को सभाओं के लिए बुलाता है और कार्य-व्यवस्था के बारे में उनके उन विभिन्न प्रश्नों का समाधान करता है जिन्हें वे समझ नहीं पाते हैं। जब वह धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करना समाप्त कर लेता है और ऐसा लगता है कि लोग समझ गए हैं, तो नकली अगुआ सोचता है, “यह कार्य सौंप दिया गया है, तो अब मुझे क्या करना चाहिए? चूँकि परमेश्वर का घर अनुभवजन्य गवाही लेख लिखने की अपेक्षा करता है, इसलिए मुझे भी लिखने की जरूरत है। अगर मैंने नहीं लिखा, तो क्या लोग अगुआ के रूप में मेरे बारे में नकारात्मक राय नहीं बना लेंगे?” वह घर पर इस बारे में सोचता है कि क्या लिखना है और एक दिन गुजर जाने के बाद भी वह कुछ नहीं लिख पाता है। वह सोचता है, “लेख लिखना काफी चुनौतीपूर्ण है। आम तौर पर, मुझे लगता है कि मेरे पास अनुभव हैं, लेकिन जब मैं लिखना शुरू करता हूँ तो वे गायब क्यों हो जाते हैं? वे अनुभव कहाँ चले गए? नहीं, मेरे पास अनुभव बिल्कुल हैं, बस लिखने का तरीका मुझे चक्कर में डाल रहा है। मैं बहुत ज्यादा बाहर जा रहा हूँ और लोगों से बातचीत कर रहा हूँ, जिससे मेरा ध्यान भटक रहा है, और ध्यान देना मुश्किल हो रहा है। मैं हमेशा लोगों के साथ संगति नहीं कर सकता और कार्य पर चर्चा नहीं कर सकता; नहीं तो, मेरा मन भटकता रहेगा, और मैं यह लेख नहीं लिख पाऊँगा। मुझे इसे उचित रूप से लिखने के तरीके के बारे में ध्यान से सोचने के लिए कुछ शांत समय निकालना होगा, उसी के बाद मैं लिख पाऊँगा।” उसने लेख लिखने को अपना मुख्य कार्य बना लिया है और एक अगुआ या कार्यकर्ता को जो कार्य करना चाहिए उसे गौण कार्य मान लिया है। वह सारा दिन घर पर लेख लिखने में बिता देता है, कार्य के कार्यान्वयन पर कोई ध्यान नहीं देता है और यह जानने या समझने का प्रयास नहीं करता है कि विभिन्न कलीसियाओं में कितने लोग लेख लिख सकते हैं या कार्य का निर्देशन और जाँच-परख करने के लिए उपयुक्त लोग हैं या नहीं—उसे इन चीजों के बारे में कोई अंदाजा नहीं होता है। एक महीना गुजर जाता है, और न सिर्फ उसने खुद कोई लेख नहीं लिखा होता है, बल्कि उसे यह भी नहीं पता होता है कि कलीसिया में यह कार्य कैसी प्रगति कर रहा है। यहाँ क्या समस्या है? कार्य-व्यवस्था जारी होने के बाद, खराब काबिलियत वाले कुछ कलीसियाई अगुआ वास्तविक कार्य करना नहीं जानते हैं। इस व्यक्ति की तरह, वे बस कुछ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करते हैं और नारे लगाते हैं, और बस हो गया। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि भाई-बहन लिखने के इच्छुक हैं या नहीं; ये अगुआ उनसे आग्रह नहीं करते हैं या उनका मार्गदर्शन नहीं करते हैं, उन्हें सुधारना तो दूर की बात है। और नकली अगुआ ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं से कोई सरोकार नहीं रखता है। कुछ भाई-बहन एक तरह का और कुछ भाई-बहन दूसरी तरह का लेख लिखते हैं, लेकिन यह जाँच-परख करने के लिए कोई नहीं है कि क्या वे जो लिखते हैं वह व्यावहारिक है और सिद्धांतों के अनुसार है। भाई-बहन सिद्धांतों को नहीं समझते हैं और वे नहीं जानते हैं कि किससे पूछना है; वे सिर्फ इसलिए लिखते हैं क्योंकि उन्हें ऐसा करने के लिए कहा गया है, वे परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करते हैं। कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनके पास अनुभव तो है लेकिन शिक्षा का अभाव है; इन लोगों के पास उनके लेखों की प्रतिलिपि संपादित करने में सहायता करने वाला कोई नहीं है, और कोई भी इस मामले के लिए व्यवस्था नहीं करता है। तमाम किस्म की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, और अगुआ और कार्यकर्ता कहाँ हैं? वे क्या कर रहे हैं? वे “एकांत” में लेख लिख रहे हैं! नकली अगुआ यह नहीं जानते हैं कि उन्हें किस कार्य में व्यस्त रहना चाहिए या उन्हें किन कार्यों का निर्वहन करना चाहिए। कलीसिया में कार्य-व्यवस्थाएँ विभिन्न तरीकों से कार्यान्वित की जाती हैं, इनके साथ पेश आने के तरीके अलग-अलग होते हैं, और वे इसके बारे में कोई पूछताछ नहीं करते हैं। जब भाई-बहन अपने कर्तव्य करते हुए विभिन्न समस्याओं का सामना करते हैं और इन समस्याओं की सूचना उन्हें देते हैं, तो वे उन्हें नहीं सुलझाते हैं। परिणामस्वरूप, बहुत सी समस्याओं और कठिनाइयों का ढेर लग जाता है, और सभी किस्म के अनुभवजन्य गवाही लेख भी जमा हो जाते हैं जिनका प्रतिलिपि संपादन, समीक्षा या जाँच-परख करने वाला कोई नहीं होता है। फिर भी नकली अगुआ इन मुद्दों पर अनुवर्ती कार्रवाई या निरीक्षण नहीं करते हैं, और भाई-बहनों को जब समस्याएँ होती हैं, तो वे उन्हें नहीं ढूँढ़ पाते हैं। नकली अगुआओं को यह एहसास नहीं होता है कि यह कार्य उनकी जिम्मेदारी है और उन्हें इस कार्य पर अनुवर्ती कार्रवाई करनी चाहिए। क्या वे कचरा नहीं हैं? (हाँ, हैं।)

कार्य को कार्यान्वित करने के लिए अगुआ या कार्यकर्ता का तरीका, साथ ही उसके कार्य की कुशलता और नतीजे इस बात की परीक्षा हैं कि क्या वह मानक पर खरा उतरता है। इससे उसकी मानवता, उसकी काबिलियत और कार्य क्षमता और इस बात की भी परीक्षा होती है कि क्या उसमें दायित्व की भावना है। जब नकली अगुआ को कोई कार्य-व्यवस्था मिलती है, तो वह इसके बारे में संगति करने के बाद इसे पूरा हो चुका मान लेता है। वह भाग नहीं लेता है, पर्यवेक्षण नहीं करता है, आग्रह नहीं करता है या कार्यान्वयन का निरीक्षण नहीं करता है और न ही वह अनुवर्ती कार्रवाई करता है। वह यह बात नहीं समझता है कि ये वही कार्य हैं जो उसे करने चाहिए; वह यह नहीं समझता है कि अगुआ और कार्यकर्ता के रूप में ये कार्य उसकी जिम्मेदारियाँ हैं। उसका मानना है कि अगुआ या कार्यकर्ता होने के लिए सिर्फ उपदेश देने में समर्थ होने की जरूरत पड़ती है। क्या वह बेवकूफ नहीं है? क्या बेवकूफ लोग अगुआ और कार्यकर्ता के रूप में मानक स्तर के हो सकते हैं? (नहीं।) वे अगुआ और कार्यकर्ता के रूप में मानक स्तर के नहीं हो सकते हैं, लेकिन फिर भी वे सोचते हैं कि वे काफी अच्छे हैं और उनका मानना है कि वे यह कार्य कर सकते हैं। क्या वे बुद्धू नहीं हैं? वे अनुभवजन्य गवाही लेख लिखने जैसे साधारण कार्य को भी कार्यान्वित नहीं कर पाते हैं। यह सबसे आसान कार्यों में से एक है—गवाही लेख लिखने के लिए बस उन लोगों को जुटाओ जिनके पास अच्छी काबिलियत और जीवन अनुभव है, और फिर अनुवर्ती कार्रवाई करो और निर्देश दो। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता औसत काबिलियत और कम पढ़े-लिखे होते हैं और वे पाठ आधारित कार्य में अच्छे नहीं होते हैं, लेकिन वे प्रभार लेने के लिए उपयुक्त लोगों को नियुक्त कर सकते हैं। इस तरह, वे अब भी कुछ वास्तविक कार्य कर सकते हैं। अगर वे इतना भी नहीं जानते हैं कि प्रभार लेने के लिए किस तरह के लोगों को नियुक्त करना है और जाँच-परख करनी है, तो वे यह कार्य नहीं कर सकते हैं और वे नकली अगुआ हैं। कुछ लोग कहते हैं, “हो सकता है कि नकली अगुआ खराब काबिलियत और निम्न शिक्षा के कारण पाठ आधारित कार्य करने में समर्थ ना हो, लेकिन उसे दूसरे कार्य करने में समर्थ होना चाहिए।” क्या यह कथन मान्य है? (नहीं।) यह क्यों मान्य नहीं है? (अनुभवजन्य गवाही लेख लिखना एक सरल कार्य है। अगर वे इसे स्पष्ट रूप से समझा नहीं सकते हैं या कार्य को कार्यान्वित नहीं कर सकते हैं, तो वे यकीनन दूसरे कार्य नहीं सँभाल सकते हैं। उन्हें नहीं पता है कि कार्य कैसे करना है या उस पर अनुवर्ती कार्रवाई कैसे करनी है।) इससे पता चलता है कि उनकी काबिलियत बहुत खराब है। वे बेवकूफ हैं। उन्हें लगता है कि अगुआ या कार्यकर्ता होना बड़े लाल अजगर का अधिकारी होने जैसा है : जब तक वे चापलूसी करना, बड़ी-बड़ी बातें करना, नारे लगाना और धोखाधड़ी करना सीखते हैं, अपने वरिष्ठों को झांसा देते हैं और अपने से नीचे के लोगों से बातें छिपाते हैं, तब तक वे खुद को स्थापित कर सकते हैं और सरकारी वेतन हासिल कर सकते हैं। वे यह बात नहीं समझते हैं कि अगुआ या कार्यकर्ता होने का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है वास्तविक कार्य करना सीखना। वे सोचते हैं कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कार्य बहुत ही सरल है। परिणामस्वरूप, वे कोई वास्तविक कार्य नहीं करते हैं और नकली अगुआ बन जाते हैं।

नकली अगुआओं में और कौन-सी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ होती हैं? क्या नकली अगुआ कार्य-व्यवस्थाओं में अपेक्षित सिद्धांतों और मानकों की असलियत देख सकते हैं और उनकी गहरी समझ प्राप्त कर सकते हैं? (नहीं।) क्यों नहीं कर सकते? वे यह असलियत नहीं देख सकते हैं कि इस कार्य के क्या सिद्धांत हैं और वे इसका पुनरीक्षण नहीं कर सकते। जब कार्य के विशिष्ट कार्यान्वयन के दौरान विशेष परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, तो उन्हें नहीं पता होता कि उनका समाधान कैसे किया जाए। जब भाई-बहन उनसे पूछते हैं कि ऐसी किसी स्थिति में क्या किया जाए, तो वे भ्रमित हो जाते हैं : “कार्य-व्यवस्था में इसका उल्लेख नहीं है, मुझे भला कैसे पता होगा कि इसे कैसे सँभाला जाए?” यदि तुम्हें नहीं पता, तो तुम इस कार्य को कैसे कार्यान्वित कर सकते हो? तुम्हें पता तक नहीं, फिर भी दूसरों से उसे कार्यान्वित करने के लिए कहते हो—क्या यह यथार्थपरक है? क्या यह उचित है? जब नकली अगुआ और नकली कार्यकर्ता कार्य-व्यवस्थाओं को कार्यान्वित करते हैं, तो एक बात तो यह है कि उन्हें कार्य-व्यवस्थाओं को कार्यान्वित करने के चरणों और योजनाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं होती। दूसरी बात यह है कि जब समस्याओं से सामना होता है, तो वे कार्य-व्यवस्थाओं द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार पुनरीक्षण नहीं कर सकते। इसलिए जब कार्य-व्यवस्थाओं के कार्यान्वयन के दौरान तमाम तरह के मुद्दे पैदा होते हैं, तो वे उनका समाधान करने में पूरी तरह से असमर्थ होते हैं। चूँकि नकली अगुआ शुरुआती चरणों में समस्याओं की पहचान नहीं कर सकते या उनका पूर्वानुमान नहीं लगा सकते और पहले से संगति नहीं कर सकते, और बाद के चरणों में जब समस्याएँ पैदा होती हैं तो वे उनका समाधान नहीं कर सकते, बल्कि केवल खोखले धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देते हैं और विनियमों को सख्ती से लागू करते हैं, इसलिए समस्याएँ बार-बार पैदा होती रहती हैं और बनी रहती हैं जिसके कारण कुछ कार्य के कार्यान्वयन में देरी होती है, और दूसरा कार्य पर्याप्त रूप से कार्यान्वित नहीं हो पाता। उदाहरण के लिए, लोगों को बाहर निकाल देने और निष्कासित करने के लिए परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्था के बारे में, जब नकली अगुआ यह कार्य करते हैं, तो वे केवल उन स्पष्ट रूप से बुरे लोगों, मसीह-विरोधियों और दुष्टात्माओं को बाहर निकालते हैं जो विघ्न-बाधाएँ पैदा करते हैं, साथ ही उन छद्मविश्वासियों को, जिन्हें सारे भाई-बहन अप्रिय और घृणास्पद समझते हैं। परंतु इसके बाद भी कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन्हें बाहर निकाला जाना चाहिए, यानी वे छिपे हुए, धूर्त, चालाक दुष्ट लोग और मसीह-विरोधी। भाई-बहन उनकी असलियत नहीं देख पाते हैं और न ही नकली अगुआ ये देख पाते हैं। वास्तव में, परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार, ये लोग पहले ही हटाए जाने के स्तर पर पहुँच चुके होते हैं। परंतु चूँकि नकली अगुआ उनकी असलियत नहीं देख पाते, इसलिए वे उन्हें अभी भी अच्छा मानते हैं, यहाँ तक कि उन्हें पदोन्नत, विकसित और महत्वपूर्ण कार्यों के लिए इस्तेमाल भी करते हैं और उन्हें कलीसिया में सत्ता पाने और महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होने देते हैं। क्या तब लोगों को बाहर निकाल देने और निष्कासित करने की परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्था कार्यान्वित की जा सकती है? क्या विभिन्न समस्याओं का पूरी तरह से समाधान किया जा सकता है? क्या सुसमाचार फैलाने का कार्य सामान्य रूप से आगे बढ़ सकता है? साफ है कि परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ पूरी तरह से कार्यान्वित नहीं की जा सकतीं, और बहुत सारा महत्वपूर्ण कार्य अच्छी तरह से नहीं किया जा सकता। चूँकि नकली अगुआओं द्वारा इस्तेमाल किए गए लोगों में कोई सत्य वास्तविकता नहीं होती और वे कुकर्म भी कर सकते हैं, जिससे कलीसिया के कार्य के विभिन्न मदों के अच्छी तरह से होने में रुकावट आती है। नकली अगुआ इन बुरे लोगों का उपयोग करते हैं, उन्हें कलीसिया में महत्वपूर्ण कर्तव्य और महत्वपूर्ण कार्य करने देते हैं, यहाँ तक कि वे इन दुष्ट लोगों को चढ़ावों का प्रबंधन भी करने देते हैं। क्या इससे कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा आएगी? क्या इससे परमेश्वर को मिलने वाले चढ़ावों का नुकसान होगा? (हाँ।) यह बहुत ही गंभीर परिणाम होगा। चूँकि नकली अगुआ इन लोगों की असलियत नहीं समझ पाते, उनका पृथक्करण नहीं कर पाते और इन दुष्ट लोगों को महत्वपूर्ण काम करने देते हैं, इसलिए काम पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है। ये दुष्ट लोग अपने कर्तव्य हमेशा बेमन से निभाते हैं, अपने से ऊपर के लोगों को धोखा देते हैं और नीचे के लोगों से चीजें छिपाते हैं, और कोई वास्तविक काम नहीं करते; वे जानबूझकर लापरवाही से काम करते हैं, लोगों को गुमराह करते हैं और सभी तरह के बुरे काम करते हैं। किंतु नकली अगुआ उनकी असलियत नहीं समझ पाते और जब तक वे समस्याओं पर ध्यान देते हैं, तब तक कोई बड़ी आपदा आ चुकी होती है। उदाहरण के लिए, हेनान के पादरी-क्षेत्र में अगुआ बने कुछ दुष्ट लोगों ने परमेश्वर का चढ़ावा चुराने के लिए विभिन्न घृणित तरीकों का इस्तेमाल किया; उन्होंने बड़ी धनराशियाँ चुराईं और वे धनराशियाँ कभी बरामद नहीं हुईं। क्या इसका संबंध अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा गलत लोगों को चुनकर उनका उपयोग करने से है? (हाँ, ऐसा ही है।) कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार, यदि कोई चुने गए लोगों की असलियत न देख पाए, तो उन्हें पहले कुछ साधारण काम करने के लिए नियुक्त किया जा सकता है और उनके काम का कुछ समय तक जायजा लिया जा सकता है और अवलोकन किया जा सकता है। जिन लोगों की असलियत बिल्कुल भी न देखी जा सके, उन्हें कोई महत्वपूर्ण काम बिल्कुल नहीं सौंपा जाना चाहिए, खासकर अगर उसमें जोखिम शामिल हो। लंबे समय तक प्रेक्षण करने और उनके सार की असलियत देखने के बाद ही इस बारे में निर्णय लिया जाना चाहिए कि उनके साथ कैसे पेश आना है और उन्हें कैसे सँभालना है। नकली अगुआ कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार काम नहीं करते और सिद्धांतों को नहीं समझ सकते; इतना ही नहीं, वे लोगों की असलियत नहीं देख पाते और गलत लोगों का उपयोग करते हैं। इससे कलीसिया के काम और परमेश्वर के चढ़ावों, दोनों का नुकसान होता है। यह नकली अगुआओं द्वारा लाई गई आपदा है। मसीह-विरोधी जानबूझकर कुकर्मियों का उपयोग करते हैं, जबकि नकली अगुआ भ्रमित होते हैं, किसी की असलियत नहीं जान पाते हैं, और वे जो भी समस्याएँ पहचान लेते हैं, उनके सार की असलियत नहीं जान पाते हैं। वे लोगों का उपयोग और उनकी नियुक्ति पूरी तरह से अपनी भावनाओं के आधार पर करते हैं। नकली अगुआओं द्वारा व्यवस्थित किए गए ज्यादातर लोग अनुपयुक्त होते हैं; वे कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचाते हैं, जिसके परिणाम बिल्कुल वही होते हैं जो मसीह-विरोधी द्वारा जानबूझकर कुकर्मियों का उपयोग करने से होते हैं। खराब काबिलियत वाले और कार्य करने में अक्षम नकली अगुआ भी काफी गंभीर परिणाम लाते हैं, है न? (हाँ।) इसलिए ऐसा मत सोचो कि सिर्फ मसीह-विरोधी ही कार्य-व्यवस्थाओं का उल्लंघन करते हैं; नकली अगुआ भी कार्य-व्यवस्थाओं का उल्लंघन कर सकते हैं। भले ही यह जानबूझकर नहीं किया गया हो, लेकिन फिर भी अंत में इसकी प्रकृति कार्य-व्यवस्थाओं का उल्लंघन ही होती है। नकली अगुआ सत्य सिद्धांत नहीं समझने और लोगों या मामलों की असलियत नहीं जान पाने के कारण, अंत में कार्य-व्यवस्थाओं का उल्लंघन करते हैं और वास्तविक कार्य का निर्वहन करने में असमर्थ होते हैं। इससे कलीसिया के कार्य में देरी होती है और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचता है। उनके कार्यों की प्रकृति और परिणाम वही होते हैं जो कार्य करने वाले मसीह-विरोधियों के कार्यों के होते हैं, जिसके कारण कलीसिया के कार्य को नुकसान होते हैं और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश को हानि पहुँचती है।

नकली अगुआ कार्य करते समय और कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित करते समय सिर्फ औपचारिकता निभाते हैं और चीजों को पूरी तरह से गड़बड़ कर देते हैं। वे काफी आत्मतुष्ट होते हैं और कभी भी तलाश या संगति नहीं करते हैं, वे मूर्खतापूर्वक सोचते हैं कि उनके पास अच्छी काबिलियत है; वे क्रियाकलाप करने की हिम्मत करते हैं, और वाक्पटुता से बोल सकते हैं। चूँकि भाई-बहन उन्हें चुनते हैं या परमेश्वर का घर अस्थायी रूप से उन्हें पदोन्नत करता है और उन्हें विकसित करता है, इसलिए उन्हें लगता है कि वे अगुआ के रूप में मानक पर खरे उतरते हैं और अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर सकते हैं। उन्हें यह बिल्कुल नहीं पता होता है कि वे कुछ भी नहीं हैं और अगुआओं और कार्यकर्ताओं की कोई भी जिम्मेदारी पूरी नहीं कर सकते हैं। उनके पास अपनी अयोग्यताओं की कोई जानकारी नहीं होती है; वे बस बेशर्मी से चीजें करने की हिम्मत करते हैं। परिणामस्वरूप, विभिन्न कार्य-व्यवस्थाएँ जारी होने के बाद वे उनमें से किसी को भी ऊपरवाले की अपेक्षाओं के अनुसार कार्यान्वित नहीं कर पाते हैं। वे जो भी कार्य-व्यवस्था सँभालते हैं, वह अंत में पूरी तरह से गड़बड़ और बिल्कुल अव्यवस्थित हो जाती है। उनका प्रशासनिक कार्यों का कार्यान्वयन खराब होता है; वे इस बारे में अस्पष्ट होते हैं कि सुसमाचार के प्रचार के माध्यम से कितने नए विश्वासी प्राप्त हुए, कलीसियाओं की स्थापना कैसे करनी है, अगुआओं और उपयाजकों को कैसे चुनना है, और कलीसियाई जीवन कैसे संचालित करना है। जहाँ तक ये प्रश्न हैं कि सुसमाचार कार्य का प्रभार लेने पर सबसे ज्यादा परिणाम किसे मिले हैं, कौन सबसे प्रभावी ढंग से गवाही देता है, कौन कलीसिया की सिंचाई के लिए सबसे उपयुक्त है, गैर-जिम्मेदार होने के कारण कौन-से टीम अगुआओं के कर्तव्य में बदलाव कर देना चाहिए और कौन-से टीम अगुआओं को बर्खास्त कर देना चाहिए, और कार्य के कुछ पहलुओं में उत्पन्न होने वाली समस्याओं को कैसे सुलझाना है, तो नकली अगुआ इन सभी विशिष्ट कार्यों के बारे में अस्पष्ट होते हैं, और वे अपना कार्य पूरी तरह से गड़बड़ कर देते हैं। कलीसिया में जो विभिन्न पेशेवर कार्य हैं जिनके लिए उच्च स्तर की तकनीकी विशेषज्ञता की जरूरत होती है, उन्हें भी नकली अगुआ पूरी तरह से गड़बड़ कर देते हैं। उन्हें बिल्कुल नहीं पता होता है कि इन कार्यों को विशिष्ट रूप से कैसे पूरा करना है। अगर वे इनके बारे में पूछताछ करना भी चाहें तो उन्हें यह नहीं पता होता है कि यह कैसे करनी है। वे ऊपरवाले से पूछना चाहते हैं कि इन कार्यों को कैसे सँभालना है, लेकिन उन्हें यह तक नहीं पता होता है कि उन्हें अपने प्रश्न कैसे तैयार करने हैं। परिणामस्वरूप, कार्य करना असंभव हो जाता है। यहाँ तक कि कार्य-व्यवस्थाओं में अपेक्षित परिसंपत्तियों का प्रबंधन—यानी परिसंपत्तियों को सुरक्षित रखने और आवंटित करने के लिए उपयुक्त लोगों को नियुक्त करने, और विभिन्न प्रणालियाँ स्थापित करने—जैसा सरल कार्य भी नकली अगुआ नहीं सँभाल पाते हैं। वे इसे पूरी तरह से गड़बड़ कर देते हैं। नकली अगुआ जो भी कार्य सँभालते हैं उसे लेकर पूरी तरह से असमंजस में रहते हैं। जब उनसे पूछा जाता है कि क्या उन्होंने कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित कर दी हैं, तो वे गर्व महसूस करते हैं और आत्मविश्वास से कहते हैं, “हाँ, मैंने कर दी हैं। सभी के पास कार्य-व्यवस्थाओं की एक प्रति है, और सभी को पता है कि परमेश्वर के घर को किस कार्य की जरूरत है।” अगर तुम उनसे यह पूछो कि उन्होंने यह कैसे किया, उनसे विशिष्ट कार्य चरण समझाने के लिए कहो, यह पूछो कि कौन-से कार्य अपेक्षाकृत खराब तरीके से किए गए, कौन से कार्य ज्यादा सुचारू रूप से किए गए, क्या हर कार्य उचित रूप से किया गया, किन कार्यों के लिए लगातार अनुवर्ती कार्रवाई और निरीक्षण की जरूरत है, और क्या निरीक्षण करने के बाद कोई समस्या पाई गई, तो वे इन सभी के बारे में बेखबर होते हैं। कुछ नकली अगुआ, अगुआ बनने के बाद, यह तक नहीं जानते हैं कि उन्हें कौन-से कार्य करने की जरूरत है या उनकी जिम्मेदारी का दायरा क्या है। क्या यह और भी ज्यादा परेशानी वाली बात नहीं है? क्या फिलहाल ज्यादातर अगुआओं और कार्यकर्ताओं में अलग-अलग मात्रा में यह समस्या है? (हाँ, है।)

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