अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (10) खंड तीन
अनुभवजन्य गवाही लेख लिखने के कार्य को कार्यान्वित करने में निरीक्षण का एक महत्वपूर्ण चरण शामिल है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास सत्य वास्तविकता है। तुम्हें अपेक्षाकृत खराब काबिलियत वाले और अपेक्षाकृत कमजोर अगुआओं और कार्यकर्ताओं का निरीक्षण करने के अलावा, औसत काबिलियत वाले लोगों के बारे में भी पूछना चाहिए और उन्हें समझना चाहिए। अगर परिवेश उपयुक्त नहीं है, तो तुम पूछताछ करने और परिस्थिति को समझने के लिए किसी को भेज सकते हो, और विस्तृत अभिलेख बना सकते हो। अगर परिवेश अनुमति देता है, तो इस कार्य के पर्यवेक्षक के पास व्यक्तिगत रूप से जाकर बातें करना सबसे अच्छा है; प्रश्न पूछो, जाँच-पड़ताल करो, और इस कार्य की विशिष्ट स्थिति को समझो, और देखो कि कार्य को कितनी अच्छी तरह से कार्यान्वित किया जा रहा है। संक्षेप में, एक बार जब अनुभवजन्य गवाही लेख लिखने के लिए कार्य-व्यवस्था जारी हो जाती है, तो फिर यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे एक या दो महीने में समेटा जा सके। यह कोई अस्थायी कार्य नहीं है, बल्कि दीर्घकालिक कार्य है। ऐसा नहीं है कि कार्य-व्यवस्था जारी हो जाने के बाद अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पहले एक या दो महीने ही सिर्फ मार्गदर्शन प्रदान करके, पर्यवेक्षण, आग्रह और निरीक्षण करके इसे पूरा हो चुका मान लेना चाहिए। बल्कि, उन्हें लंबे समय तक इस कार्य पर लगातार अनुवर्ती कार्रवाई करनी चाहिए। कमजोर कलीसियाई अगुआओं के लिए, उन्हें उनके पास जाकर व्यक्तिगत मार्गदर्शन प्रदान करने की जरूरत होती है। जो कलीसियाई नेता स्वतंत्र रूप से कार्य-व्यवस्था कार्यान्वित कर सकते हैं, उनके लिए उन्हें नियमित निरीक्षणों का अभ्यास करना चाहिए ताकि कार्य की प्रगति को समझा जा सके और उत्पन्न होने वाली समस्याएँ सुलझाई जा सकें। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है। इसलिए, कार्य करने वाले अगुआओं और कार्यकर्ताओं के बारे में एक बात निश्चित है : उनके पास खाली समय कभी नहीं होता है। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता हमेशा सोचते हैं, “कार्य-व्यवस्थाएँ जारी कर दी गई हैं, और मैं उन्हें कार्यान्वित करने के तरीके पर संगति कर चुका हूँ। मैंने अपना कार्य पूरा कर लिया है, अब और कुछ करना बाकी नहीं है। इसलिए मैं कुछ उपयुक्त रोजमर्रा का कार्य करूँगा, जैसे कि खाना पकाने और मेजबानी करने में सहायता करना, या कुछ दैनिक जरूरत का सामान खरीदना जो भाई-बहनों के पास नहीं है।” कार्य-व्यवस्थाएँ जारी करने के बाद वे निठल्ले हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि उन्होंने अपना कार्य पूरा कर लिया है और उनके पास करने के लिए और कुछ नहीं है। इससे पता चलता है कि वे नहीं जानते हैं कि कार्य कैसे करना है या विशिष्ट कार्यों का प्रभार कैसे लेना है। दरअसल, एक बार जब परमेश्वर के घर की विभिन्न कार्य-व्यवस्थाएँ जारी हो जाती हैं, तो जब तक ऊपरवाला इन्हें रोकने का आह्वान नहीं करता है, तब तक कार्य जारी रहना चाहिए और उसे बीच में नहीं रोका जा सकता है। मिसाल के तौर पर, अनुभवजन्य गवाही लेख लिखने का कार्य—क्या ऊपरवाले ने इसे रोकने का आह्वान किया है? क्या इस कार्य को रोकने के लिए कोई सूचना दी गई है? (नहीं।) तो, फिर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह कार्य कैसे करना चाहिए? सिर्फ क्षणिक उत्साह से प्रेरित मत हो। जब कार्य-व्यवस्था पहली बार जारी की जाती है, तो तुम इस कार्य को करने के लिए बहुत उत्साही, अग्रसक्रिय और इच्छुक रहते हो। लेकिन, कुछ समय बाद, अगर ऊपरवाला आग्रह नहीं करता है, नए निर्देश जारी नहीं करता है, या इस कार्य-व्यवस्था के लिए आगे कोई निर्देश नहीं देता है, तो हो सकता है कि तुम यह सोचो कि चूँकि ऊपरवाले ने कुछ नई व्यवस्था नहीं की है, इसलिए तुम इस कार्य को नजरअंदाज कर सकते हो। यह स्वीकार्य नहीं है; यह जिम्मेदारी की उपेक्षा है। इस कार्य को चाहे कितने भी समय से कार्यान्वित किया जा रहा हो, और इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उस दौरान क्या ऊपरवाले ने इसके बारे में पूछताछ की है, आग्रह किया है या इस पर जोर दिया है, जब तक यह कार्य तुम्हें सौंपा गया है, तब तक तुम्हें इसकी जिम्मेदारी उठानी चाहिए और इसे लगातार करते रहना चाहिए, इसे अच्छे तरीके से करना चाहिए। “लगातार” का अर्थ क्या है? इसका अर्थ यह है कि जब तक ऊपरवाला इसे रोकने का आह्वान नहीं करता है, तब तक अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस कार्य के लिए निर्बाध और निरंतर मार्गदर्शन, पर्यवेक्षण, आग्रह, निरीक्षण और अनुवर्ती कार्रवाई करनी चाहिए। जब तक तुम इस्तीफा नहीं देते हो या बर्खास्त नहीं किए जाते हो, जब तक तुम अपने पद पर बने रहते हो, तब तक यह कार्य ऐसा है जिसे अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तुम्हें अच्छी तरह से करना चाहिए। यह एक ऐसा कार्य भी है जिसे तुम्हें निरंतर कार्यान्वित करना चाहिए और जिस पर लगातार अनुवर्ती कार्रवाई करनी चाहिए। इसका अभ्यास कैसे करना चाहिए? हर बार जब तुम किसी कलीसिया में जाते हो, तो तुम्हें स्थानीय अगुआओं और इस कार्य के पर्यवेक्षक से यह पूछना चाहिए : “इस अवधि के दौरान गवाही लेखों का कार्य कैसा चल रहा है? क्या कोई अच्छे, अपेक्षाकृत मार्मिक गवाही लेख आए हैं? क्या कोई विशेष अनुभवों वाले लेख आए हैं?” अगर वे कहते हैं कि हाँ, ऐसे लेख हैं, तो तुम्हें इन लेखों को उलट-पुलटकर देखना चाहिए। अगर उनमें सचमुच व्यावहारिक अनुभव हैं और वे सही मायने में लोगों के लिए शिक्षाप्रद हैं, तो उन्हें तुरंत जमा कर देना चाहिए। हर बार जब तुम किसी कलीसिया में जाते हो, तो तुम्हें सबसे पहले इस मामले के बारे में पूछना चाहिए। यह एक विशिष्ट कार्य है जिसे तुम्हें कार्यान्वित करना चाहिए, यह एक दायित्व है जिससे तुम जी नहीं चुरा सकते—यह तुम्हारी जिम्मेदारी है। चाहे ऊपरवाला इस मामले के लिए आग्रह करे या ना करे या इसके बारे में पूछताछ करे या ना करे, यह कार्य उस कार्य में शामिल है जो तुम्हें करना ही होगा। अगर भाई-बहन अपने कर्तव्य करने में व्यस्त हैं और उनके पास गवाही लेख लिखने का समय नहीं है, तो तुम्हें उनसे आग्रह करना चाहिए, और कहना चाहिए, “अच्छे गवाही लेख लिखना परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के लिए बहुत ही फायदेमंद है, और यह एक महत्वपूर्ण कर्तव्य भी है।” लेकिन, कुछ अगुआ कहते हैं, “भाई-बहनों को लगता है कि उन्होंने अपने सभी अनुभव लिख दिए हैं और अब उनके पास लिखने के लिए और कुछ नहीं है।” क्या यह कथन सही है? दरअसल, कई विस्तृत अनुभवों पर लोगों का ध्यान नहीं जाता है और उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है। दूसरों की लिखी अनुभवजन्य गवाहियाँ पढ़ने के बाद ही उन्हें याद आता है कि उन्हें भी ऐसे अनुभव हो चुके हैं। इसलिए, अनुभवजन्य गवाही लेख लिखने के लिए सावधानी से विचार और चिंतन करने की जरूरत पड़ती है। ऐसी कई अनुभवजन्य समझ हैं जो लिखे जाने योग्य हैं। क्या लिखने के लिए समय नहीं होना एक मान्य कारण है? यह एक ऐसा कर्तव्य है जिसे लोगों को करना चाहिए। चाहे वे कितने भी व्यस्त क्यों ना हों, उन्हें लिखने के लिए समय निकालना चाहिए। अगर उन्हें गवाही लेख लिखना नहीं आता है, तो उन्हें उसे किसी और से बोलकर लिखवाना चाहिए ताकि वह उसकी प्रतिलिपि संपादित कर सके, और इस प्रकार एक अच्छा लेख तैयार हो सके। इस तरीके से, तुम्हारे आग्रह और निर्देशन के जरिए, एक और अच्छा अनुभवजन्य गवाही लेख लिखा जाता है। क्या तुम्हें पता है कि यह लेख कितने लोगों के लिए शिक्षाप्रद हो सकता है? कितने लोगों को इससे सहायता और फायदा मिल सकता है? अगर तुम पर्यवेक्षण नहीं करते हो और निर्देश नहीं देते हो, और स्थानीय कलीसियाई अगुआओं में भी दायित्व की भावना नहीं है, वे सोचते हैं कि भाई-बहन अपनी सभी अनुभवजन्य गवाहियाँ लिख चुके हैं और अब लिखने के लिए और कोई लेख नहीं है, तो इस अच्छे अनुभवजन्य गवाही लेख की रचना कभी नहीं होगी। कभी-कभी जब तुम किसी कलीसिया में जाते हो, तो कुछ भाई-बहन तुमसे गपशप करते हैं और कहते हैं, “मैंने अपने जीवन में सभी किस्म के कष्ट सहे हैं। परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद, मुझे भी बहुत सताया गया है। हर कदम पर, परमेश्वर ही मेरी अगुवाई करता रहा है। मैंने परमेश्वर के अद्भुत कर्मों को देखा है, और मुझे यह एहसास हुआ है कि सब कुछ परमेश्वर द्वारा नियत है और परमेश्वर सही मायने में सभी पर संप्रभु है—यह पूरी तरह से सच है!” जब वे तुम्हें अपना अनुभव बता देते हैं, तो फिर तुम पूछते हो कि क्या उन्होंने इसे एक लेख के रूप में लिखा है, और वे कहते हैं, “नहीं, मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं हूँ और मैं लिख नहीं सकता। इसके अलावा, दूसरे लोग कहते हैं कि यह अनुभव मूल्यवान नहीं है।” “ऐसा अद्भुत अनुभव बिना मूल्य वाला कैसे हो सकता है?” तुम उनसे कहते हो। “अपने अनुभव के हर चरण के बाद, तुमने परमेश्वर की संप्रभुता, परमेश्वर की अगुवाई और परमेश्वर की नियति को गहराई से महसूस किया। कौन-सा अनुभव इससे मूल्यवान हो सकता है? ऐसे अनुभवों को लिख लेना चाहिए और इन्हें छूटने नहीं देना चाहिए।” फिर तुम जल्दी से ज्यादा शिक्षित भाई-बहनों की व्यवस्था करते हो ताकि वे इसकी प्रतिलिपि संपादित करने में उसकी सहायता कर सकें। तीन दिनों में, एक अच्छा और उत्कृष्ट गवाही लेख लिखा जाता है और फिर उस पर एक अनुभवजन्य गवाही वीडियो बनाया जाता है। जो भी इसे देखता है वह कहता है, “इसके मुख्य किरदार का अनुभव शानदार है! इसे देखना कितना शिक्षाप्रद है! यह सही मायने में दिखाता है कि परमेश्वर हर चीज पर संप्रभु है—यह बात बिल्कुल ऐसी ही है! अब इसकी और ज्यादा हद तक पुष्टि हो गई है, और परमेश्वर में हमारी आस्था बढ़ गई है।” दूसरे लोग कहते हैं, “यह अनुभवजन्य गवाही लेख बहुत ही व्यावहारिक रूप से लिखा गया है और बहुत ही मार्मिक है। अगर इस पर एक फिल्म बनाई जाए तो यह और भी बेहतर होगा!” कई भाई-बहन बेसब्री से इस बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि इस पर जल्द ही एक फिल्म बनाई जाएगी। इसलिए, क्योंकि अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने कलीसिया का कार्य जिम्मेदारी और निष्ठा से किया, एक हल्की-फुल्की बातचीत से एक अच्छा लेख और फिल्म के लिए अच्छी सामग्री निकल कर आ गई। यह परमेश्वर की संप्रभुता और नियति की गवाही देने के लिए सबसे अच्छी गवाही और सबसे अच्छी विषय-वस्तु है। ऐसी कहानियाँ बहुत-से लोगों की आस्था बढ़ा सकती हैं और बहुत-से लोगों के लिए शिक्षाप्रद भी हो सकती हैं! तुम इस तरह से कार्य करने वाले अगुआओं और कार्यकर्ताओं के बारे में क्या सोचते हो? वे अपने कार्य में किसी औपचारिकता का पालन नहीं करते हैं। वे जहाँ भी जाते हैं, वहाँ प्रश्न पूछते हैं, जाँच-पड़ताल करते हैं और भाई-बहनों से बातचीत करते हैं, बिना रौब जमाए उनसे घुलमिल जाते हैं। उनके दिल में न सिर्फ एक बोझ की भावना होती है, बल्कि जिम्मेदारी की भी तीव्र भावना होती है। लगातार ऐसा करने से, वे स्वाभाविक रूप से परिणाम हासिल कर लेते हैं। क्या परमेश्वर इसे याद नहीं रखेगा? ये अच्छे कर्म हैं, है न? मुझे बताओ, क्या इतना-सा कार्य करना श्रमसाध्य है? क्या इसके लिए कष्ट करने की जरूरत पड़ती है? क्या इसके लिए तलवार की नोक वाले पहाड़ों पर चढ़ने या आग के समुंदर में गोता लगाने की जरूरत पड़ती है? नहीं। यह मुश्किल नहीं है। इसके लिए बस तुम्हें अपना दिल लगाने की जरूरत है। जब तुम्हारे दिल में यह कार्य होता है, तो तुम जहाँ भी जाते हो, वहाँ सवाल पूछते हो और जाँच-पड़ताल करते हो : “कार्य कैसी प्रगति कर रहा है? क्या इस अवधि के दौरान अच्छे गवाही लेख हुए हैं? जिन भाई-बहनों के पास अनुभव हैं लेकिन उन्होंने अभी तक लेख नहीं लिखे हैं, क्या तुम्हें मालूम है कि उनका कैसे मार्गदर्शन करना है ताकि वे अपने अनुभवों का वर्णन कर सकें? क्या तुम्हें मालूम है कि खुद को व्यक्त करने में उनकी कैसे मदद करनी है और लिखने के लिए उनका मार्गदर्शन कैसे करना है?” तुम जहाँ भी जाते हो, वहाँ तुम्हें हमेशा इस मामले के बारे में संगति करनी है, इस कार्य से संबंधित चीजें करनी हैं, और इस कार्य से संबंधित शब्द बोलने हैं। क्या इस तरीके से अभ्यास करने से अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कार्य और भरपूर नहीं हो जाता है? क्या ऐसी कोई परिस्थिति हो सकती है जिसमें तुम निठल्ले हो, तुम्हारे पास करने के लिए कोई कार्य नहीं हो? (नहीं।) क्या इस तरह से कार्य करने वाले अगुआ और कार्यकर्ता थक सकते हैं या थकावट से मर सकते हैं? (नहीं।) वे नहीं थकेंगे या थकावट से नहीं मरेंगे, कार्य के परिणाम आएँगे, और परमेश्वर इसे याद रखेगा। अगर तुम इस तरह से कार्य करते हो, तो कई लोगों की आध्यात्मिक उन्नति होगी और भाई-बहन यह महसूस करेंगे कि अनुभवजन्य गवाही लेख लिखना मूल्यवान और अर्थपूर्ण है। इससे पहले, उन्हें लगता था कि उनके अनुभवों का कोई मूल्य नहीं है, लेकिन तुम्हारे मार्गदर्शन के जरिए, वे समझ गए कि अनुभवजन्य गवाही लेख कैसे लिखने हैं। इससे उनके जीवन प्रवेश को भी फायदा होता है। जब तुम इस तरीके से कार्य करते हो, सिर्फ तभी तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी कर रहे होते हो।
इस बात पर संगति करके कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कार्य का निरीक्षण कैसे करना चाहिए, क्या तुम लोगों ने कार्य का निरीक्षण करना सीख लिया है? कार्य का निरीक्षण करना गलतियाँ ढूँढ़ने या नुक्ताचीनी करने के बारे में नहीं है, बल्कि यह देखने के बारे में है कि कार्य कैसे किया गया है, क्या इसे व्यवस्थित किया गया है, क्या कोई व्यक्ति कार्य का प्रभार ले रहा है, कार्य कैसे प्रगति कर रहा है, यह प्रगति कैसी है, क्या यह सुचारू रूप से चल रहा है, क्या कार्य सिद्धांतों के अनुसार किया जा रहा है, क्या यह परिणाम देता है, वगैरह-वगैरह। साथ ही, तुम्हें कार्य की प्रभावशीलता का पर्यवेक्षण, समीक्षा और मूल्यांकन करने की जरूरत है, और फिर इससे कार्य को कार्यान्वित करने के लिए बेहतर और ज्यादा उपयुक्त तरीके ढूँढ़ने होंगे। अनुभवजन्य गवाही लेख लिखने की व्यवस्था जैसी किसी कार्य-व्यवस्था के लिए, जब तक ऊपरवाले ने इसे रोकने का आह्वान नहीं किया है, तब तक इस कार्य पर लगातार अनुवर्ती कार्रवाई करने और इसे कार्यान्वित करने की जरूरत है, और यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के लिए फायदेमंद है। अगर कुछ लोगों को लगता है कि पहले से ही पर्याप्त अनुभवजन्य गवाहियाँ मौजूद हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोग उन सभी को नहीं पढ़ सकते हैं, तो फिर क्या इस कार्य को रोका जा सकता है? इसे नहीं रोका जा सकता है। अनुभवजन्य गवाहियाँ जितनी ज्यादा हों, उतना ही बेहतर है; ये जितनी ज्यादा होंगी, उतनी ही भरपूर होंगी—यही चीज परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में सबसे ज्यादा सहायता करती है। कुछ नए विश्वासी इन अनुभवजन्य गवाहियों को पढ़ने के बाद जान जाएँगे कि परमेश्वर के कार्य का अनुभव कैसे करना है। अनुभव की एक अवधि से गुजरने और परिणाम प्राप्त करने के बाद, वे स्वाभाविक रूप से अनुभवजन्य गवाही लेख लिखने में समर्थ हो जाएँगे। उथले अनुभवों वाले कुछ लोग भी अपेक्षाकृत गहरी अनुभवजन्य गवाहियाँ पढ़कर नैतिक उन्नति कर सकते हैं और वे गहरे अनुभव प्राप्त कर सकते हैं और बेहतर गवाही लेख लिख सकते हैं। इन गवाहियों से धर्म के लोगों और परमेश्वर के घर में परमेश्वर के चुने हुए लोगों दोनों को ही फायदा होता है। इसलिए, अनुभवजन्य गवाही लेख लिखने का कार्य कभी नहीं रुक सकता है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस कार्य पर लगातार अनुवर्ती कार्रवाई करनी चाहिए और इसे किसी भी कारण या बहाने से नहीं रोकना चाहिए। यह कलीसिया में कार्य की एक महत्वपूर्ण मद है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अनुभवजन्य गवाही लेख लिखने में अगुवाई करनी चाहिए। यह अभ्यास इस बात को सबसे अच्छी तरह से प्रकट करता है कि उनके पास सत्य वास्तविकता है या नहीं। अगर वे अनुभवजन्य गवाही लेख नहीं लिख सकते हैं, तो वे अगुआओं या कार्यकर्ताओं के रूप में मानक स्तर के नहीं हैं और वास्तविक कार्य नहीं कर सकते हैं; उन्हें बर्खास्त कर देना चाहिए और हटा देना चाहिए। यह कार्य अच्छी तरह से करने के बाद, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कार्य की प्रगति के बारे में पूछताछ करने के लिए लगातार विभिन्न कलीसियाओं का दौरा करने की जरूरत है। वे प्रश्न पूछ सकते हैं और कार्य के बारे में जान सकते हैं : “तुम लोगों की कलीसिया में कई भाई-बहन जो अपने अनुसरण के बारे में अपेक्षाकृत गंभीर हैं, उन सभी के पास कुछ अनुभव हैं—क्या वे कुछ गवाही लेख लिख सकते हैं?” उन्हें उन लोगों से भी पूछना चाहिए जिन्होंने अभी-अभी सच्चा मार्ग स्वीकार किया है कि कैसे उन्होंने इसकी जाँच की और इसे स्वीकार करना शुरू कर दिया, और क्या वे इस बारे में अपने विचार लिख सकते हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को न सिर्फ इस कार्य के बारे में लगातार पूछताछ करने, जानने, इस पर अनुवर्ती कार्रवाई करने और इसे कार्यान्वित करने की जरूरत है, बल्कि उन्हें यह भी निरीक्षण करने की जरूरत है कि कार्यान्वयन कितनी अच्छी तरह से किया जा रहा है : “इस अवधि के दौरान, क्या तुम लोगों ने इस कार्य को करने के लिए लोगों की नियुक्ति की है? कितने अनुभवजन्य गवाही लेख लिखे गए हैं? कितने लेख मानक स्तर के हैं? मानक स्तर के लेखों का अनुपात क्या है?” पर्यवेक्षक उत्तर देता है : “पिछली संगति के बाद, हमारी कलीसिया में पहले से ही कुछ अनुभवजन्य गवाही लेख लिखे जा चुके हैं, और कुछ लेख जो मानक स्तर के हैं, उन्हें जमा कर दिया गया है। हम यह कार्य लगातार किए जा रहे हैं।” यह अच्छा है; इसका अर्थ यह है कि तुमने यह कार्य उचित रूप से किया है। इस बात का ध्यान रखते हुए, क्या किसी कलीसिया के सच्चे अनुभवजन्य गवाही लेखों की रचना कर पाने और अगुआओं और कार्यकर्ताओं की भूमिका के बीच कोई सीधा संबंध है? एक लिहाज से, तुम्हें कार्य के इस पहलू पर लगातार संगति करने की जरूरत है; दूसरे लिहाज से, तुम्हें खुद एक मिसाल बनकर अगुवाई करने, कार्य के बारे में लगातार पूछताछ करने और कार्य में भाग लेने और उसका अनुसरण करने की भी जरूरत है। एक अवधि तक अनुवर्ती कार्रवाई करने और फिर इस कलीसिया से चले जाने के बाद, तुम्हें कार्यान्वयन का निरीक्षण करने के लिए बाद में वापस आना चाहिए। क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ऐसा ही नहीं करना चाहिए? यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है।
परमेश्वर के घर द्वारा जारी की गई हर कार्य-व्यवस्था के साथ अगुआओं और कार्यकर्ताओं को गंभीरता से पेश आना चाहिए और इसे गंभीरता से कार्यान्वित करना चाहिए। अपने द्वारा किए गए तमाम कार्य की तुलना और निरीक्षण करने के लिए तुम्हें कार्य-व्यवस्थाओं का बार-बार उपयोग करना चाहिए। तुम्हें यह भी जाँचना चाहिए और विचार करना चाहिए कि इस अवधि के दौरान तुमने कौन-से कार्य अच्छी तरह से नहीं किए हैं या उचित रूप से कार्यान्वित नहीं किए हैं। कार्य-व्यवस्थाओं द्वारा सौंपे गए और अपेक्षित किसी भी कार्य के प्रति लापरवाही की गई है, तो तुम्हें उसकी तुरंत भरपाई करनी चाहिए और उसके बारे में पूछताछ करनी चाहिए। अगर तुम किसी विशिष्ट कार्य में व्यस्त हो और समय नहीं निकाल सकते, तो तुम दूसरों को उस कार्य का निरीक्षण करने और उस पर अनुवर्ती कार्रवाई करने की जिम्मेदारी सौंप सकते हो जिसे अच्छी तरह से नहीं किया गया है। तुम्हें सिर्फ आदेश जारी करके यह नहीं सोचना चाहिए कि कार्य सौंपने और व्यवस्थित करने के बाद कार्य पूरा हो गया है और फिर बस चुपचाप देखते नहीं रहना चाहिए। अगुआ होने के नाते, तुम सिर्फ एक कार्य विशेष के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण कार्य के लिए जिम्मेदार हो। अगर तुम देखते हो कि एक खास कार्य विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, तो तुम उस कार्य की देखरेख कर सकते हो, लेकिन तुम्हें दूसरे कार्यों का निरीक्षण करने, निर्देश देने और अनुवर्ती कार्रवाई करने के लिए भी समय निकालना होगा। अगर तुम सिर्फ एक कार्य अच्छी तरह से करके संतुष्ट हो जाते हो और फिर चीजों को पूरा हो चुका मान लेते हो, और दूसरे कार्यों की परवाह किए या उनके बारे में पूछे बिना उन्हें दूसरे लोगों को सौंप देते हो, तो यह गैर-जिम्मेदार व्यवहार है और जिम्मेदारी की उपेक्षा है। अगर तुम एक अगुआ हो, तो फिर चाहे तुम कितने भी कार्यों के लिए जिम्मेदार क्यों न हो, यह तुम्हारी जिम्मेदारी है कि तुम लगातार उनके बारे में प्रश्न पूछो और जाँच-पड़ताल करो, साथ ही चीजों का निरीक्षण भी करो और समस्याएँ उत्पन्न होने पर उन्हें तुरंत हल करो। यह तुम्हारा कार्य है। और इसलिए, चाहे तुम कोई क्षेत्रीय अगुआ हो या जिला अगुआ, कलीसिया अगुआ या कोई टीम अगुआ या निरीक्षक, एक बार जब तुम अपनी जिम्मेदारियों के दायरे के बारे में जान जाते हो, तो तुम्हें बार-बार जाँच करनी चाहिए कि क्या तुम वास्तविक कार्य कर रहे हो, क्या तुमने वे जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं जो एक अगुआ या कार्यकर्ता को पूरी करनी चाहिए, साथ ही—तुम्हें सौंपे गए कार्यों में से—तुमने कौन से कार्य नहीं किए हैं, कौन से तुम नहीं करना चाहते हो, किन कार्यों ने खराब परिणाम दिए हैं और किन कार्यों के सिद्धांतों की गहरी समझ प्राप्त करने में तुम विफल रहे हो। तुम्हें इन सभी चीजों की अक्सर जाँच करनी चाहिए। साथ ही, तुम्हें अन्य लोगों के साथ संगति करना और उनसे प्रश्न पूछना, और परमेश्वर के वचनों और कार्य-व्यवस्थाओं में कार्यान्वयन के लिए एक योजना, सिद्धांतों और अभ्यास के लिए एक मार्ग की पहचान करना सीखना चाहिए। किसी भी कार्य व्यवस्था के संबंध में, चाहे वह प्रशासन, कर्मियों, या कलीसियाई जीवन से, या फिर किसी भी किस्म के पेशेवर कार्य से संबंधित क्यों ना हो, अगर यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों का जिक्र करता है, तो यह एक ऐसी जिम्मेदारी है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पूरी करनी पड़ेगी, और यह उसी के दायरे में आती है जिसके लिए अगुआ और कार्यकर्ता जिम्मेदार हैं—यही वे नियत कार्य हैं जो तुम्हें सँभालने चाहिए। स्वाभाविक रूप से, प्राथमिकताएँ परिस्थिति के आधार पर नियत की जानी चाहिए; कोई भी कार्य पिछड़ नहीं सकता है। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता कहते हैं, “मेरे पास तीन सिर और छह हाथ नहीं हैं। कार्य-व्यवस्था में बहुत सारे नियत कार्य हैं; अगर मुझे उन सभी का प्रभार दे दिया गया, तो मैं बिल्कुल भी सँभाल नहीं पाऊँगा।” अगर कुछ ऐसे नियत कार्य हैं जिनमें तुम व्यक्तिगत रूप से शामिल नहीं हो सकते हो, तो क्या तुमने उन्हें करने के लिए किसी और की व्यवस्था की है? यह व्यवस्था करने के बाद, क्या तुमने अनुवर्ती कार्रवाई की और पूछताछ की? क्या तुमने उनके कार्य का पुनरीक्षण किया? यकीनन तुम्हारे पास पूछताछ करने और पुनरीक्षण करने का समय था? तुम्हारे पास बिल्कुल था! कुछ अगुआ और कार्यकर्ता कहते हैं, “मैं एक समय में सिर्फ एक ही कार्य कर सकता हूँ। अगर तुम मुझसे पुनरीक्षण करने के लिए कहते हो, तो मैं एक समय में सिर्फ एक ही कार्य का पुनरीक्षण कर पाऊँगा; इससे ज्यादा करना असंभव है।” अगर ऐसी बात है, तो तुम निकम्मे हो, तुम्हारी काबिलियत बेहद खराब है, तुम्हारे पास कार्य क्षमता नहीं है, तुम अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए उपयुक्त नहीं हो, और तुम्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। बस कुछ ऐसा कार्य करो जो तुमसे मेल खाता है—कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन विकास में देरी मत करवाओ क्योंकि तुम्हारी काबिलियत कार्य करने के लिए बहुत ही खराब है; अगर तुम्हारे पास यह सूझ-बूझ नहीं है, तो इसका मतलब है कि तुम स्वार्थी और घिनौने हो। अगर तुम साधारण काबिलियत वाले हो लेकिन तुम परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील हो सकते हो, तुम प्रशिक्षण लेने के लिए तैयार हो, और तुम्हें इस बारे में यकीन नहीं है कि तुम कार्य को अच्छी तरह से कर सकते हो, तो फिर तुम्हें अच्छी काबिलियत वाले कुछ लोगों की तलाश करनी चाहिए जो कार्य में तुम्हारा सहयोग कर सकें। यह एक अच्छा दृष्टिकोण है, और इसे सूझ-बूझ का होना माना जाता है। अगर तुम्हारी काबिलियत बहुत ही खराब है और तुम सचमुच इस कार्य की जिम्मेदारी उठाने में असमर्थ हो, और फिर भी इस पद पर बैठे रहना और इसके फायदों का आनंद लेते रहना चाहते हो, तो तुम स्वार्थी और नीच हो। अगुआओं और कर्मियों में जमीर और सूझ-बूझ होनी चाहिए—यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। अगर उनमें इतनी भी मानवीयता न हो, तो वे अगुआ या कार्यकर्ता बिल्कुल नहीं बन सकते हैं, और अगर वे थोड़ा सा कार्य कर भी लेते हैं, तो भी वे नकली अगुआ ही होंगे जो सिर्फ परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाएँगे और कलीसिया के कार्य को खतरे में डालेंगे। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के इरादों का ध्यान रखना चाहिए; उन्हें बिल्कुल भी तानाशाही नहीं करनी चाहिए और सभी चीजों की जिम्मेदारी अपने ऊपर नहीं लेनी चाहिए, ऐसा करने से अंत में वे कोई भी कार्य अच्छी तरह से नहीं कर पाएँगे और कलीसिया के पूरे कार्य, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में भी देरी हो जाएगी। क्या यह बहुत बड़ा अपराध नहीं होगा? इसलिए, बहुत खराब काबिलियत वाले लोग अगुआ और कार्यकर्ता बिल्कुल नहीं बन सकते हैं। जिन लोगों के पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं है और जो परमेश्वर के इरादों पर विचार नहीं कर सकते हैं, वे तो और भी अगुआ और कार्यकर्ता नहीं बन सकते हैं; उन्हें किसी भी कार्य का प्रभारी नहीं बनाया जा सकता है। अगुआ और कार्यकर्ता होने के नाते, आत्म-जागरूकता का होना महत्वपूर्ण है। अगर तुम वास्तविक कार्य नहीं कर सकते हो, लेकिन फिर भी सभी चीजों की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेना चाहते हो, और रुतबे के फायदों का आनंद लेना पसंद करते हो, तो यह एक नकली अगुआ की सटीक परिभाषा है, और तुम्हें बर्खास्त कर देना चाहिए और हटा देना चाहिए।
परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं के संबंध में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों पर संगति करने के बाद, क्या अब तुम लोगों के पास इस बात का कोई मार्ग है कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कार्य-व्यवस्थाओं को कैसे सँभालना चाहिए और उन्हें कैसे कार्यान्वित करना चाहिए? (हाँ।) क्या इसमें कोई कठिनाइयाँ हैं? अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिन जिम्मेदारियों के बारे में हमने संगति की है, कुछ लोग उनमें नियत विभिन्न कार्यों के शायद सिर्फ एक या दो पहलुओं पर ही ध्यान केंद्रित कर पाएँ, जबकि दूसरे लोग शायद एक या दो पहलुओं को भी पूरा करने में समर्थ ना हों। जो अगुआ और कार्यकर्ता कार्य के एक या दो पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, अगर उनमें पर्याप्त काबिलियत है और वे कार्य के दूसरे पहलुओं पर अनुवर्ती कार्रवाई करना भी सीख सकते हैं, तो वे मूल रूप से मानक स्तर के हैं। लेकिन, अगर वे सिर्फ धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करने और सभाएँ आयोजित करने के स्तर पर ही ठहरे रहते हैं, और विशिष्ट कार्य नहीं कर सकते हैं, और जब उनसे विशिष्ट कार्यों का निरीक्षण करने और अनुवर्ती कार्रवाई करने में भाग लेने के लिए कहा जाता है, तो वे चिंतित हो जाते हैं, उनके पास अनुसरण करने के लिए कोई योजना, चरण, या मार्ग नहीं होता है, वे नहीं जानते हैं कि क्या करना है, तो यह खराब काबिलियत दर्शाता है। क्या खराब काबिलियत वाले लोग कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित कर सकते हैं? (नहीं।) ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता मानक स्तर के नहीं हैं। तुम लोगों को ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं से कैसे निपटना चाहिए? उनसे कहो, “कार्य-व्यवस्थाएँ जारी कर दी गई हैं, और हमें इस बात की स्पष्ट समझ है कि किन कार्यों का निर्वहन करना है और कौन-से सिद्धांत कायम रखने हैं, लेकिन तुम्हें यह नहीं पता है कि क्या करना है और तुम्हारे पास अनुसरण करने के लिए कोई मार्ग नहीं है। और फिर भी तुममें संगति करने और हमें धर्मोपदेश देने की बेशर्मी है। तुम्हें तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए! तुम अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लायक नहीं हो, तुम यह जिम्मेदारी पूरी नहीं कर सकते हो। जल्दी से इसे किसी योग्य व्यक्ति को सौंप दो! यहाँ नारे लगाना बंद करो, कोई सुनना नहीं चाहता है!” क्या इसे सँभालने का यह उचित तरीका है? (हाँ।) अगर तुम कार्य नहीं कर सकते हो, तो आँख मूँदकर नारे लगाने का क्या अर्थ है! हर व्यक्ति कार्य-व्यवस्थाओं में दिए गए शब्दों को पढ़ सकता है; हर व्यक्ति धर्म-सिद्धांत बोल सकता है—यह पूरी तरह से इस बारे में है कि तुम वास्तव में इसे कैसे करते हो। अगर तुम इसे नहीं कर सकते हो, तो तुम अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए उपयुक्त नहीं हो। कोई भी कार्य एक जमा एक बराबर दो होने जितना आसान नहीं होता है। हर कार्य के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को विशिष्ट परिस्थिति के आधार पर सिद्धांतों के दायरे में विशिष्ट कार्यान्वयन योजनाएँ बनाने की जरूरत होती है। साथ ही, उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि कार्य को उचित रूप से कार्यान्वित करने, कार्य-व्यवस्थाओं की अपेक्षाएँ पूर्ण रूप से पूरी करने, उनके सफल होने और परिणाम देने तक पर्यवेक्षण, निरीक्षण और अनुवर्ती कार्रवाई कैसे करनी है। सिर्फ तभी वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी कर चुके होते हैं; सिर्फ तभी वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में मानक पर खरे उतरते हैं।
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