अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (10) खंड दो

एक मिसाल देकर कार्य-व्यवस्थाओं को कार्यान्वित करने के तरीके पर संगति करना

ऊपरवाले से प्राप्त कार्य-व्यवस्थाओं को कार्यान्वित करने के संबंध में, आओ हम एक विशिष्ट मिसाल दें। मिसाल के तौर पर, मान लो कि कार्य-व्यवस्था के लिए यह जरूरी है कि लोग अनुभवजन्य गवाहियों के लेख लिखें। यह एक ऐसा विशिष्ट कार्य है जो पहलुओं की एक विस्तृत श्रेणी को शामिल करता है और एक दीर्घकालिक, निरंतर चलने वाला कार्य है, यह कोई अस्थायी कार्य-व्यवस्था नहीं है। तो, इस कार्य-व्यवस्था को जारी करने के बाद, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले क्या करना चाहिए? अगुआओं और कार्यकर्ताओं की नौवीं जिम्मेदारी, जिसके लिए उन्हें मार्गदर्शन, पर्यवेक्षण और आग्रह करने और कार्य-व्यवस्थाओं के कार्यान्वयन की स्थिति का निरीक्षण और अनुवर्ती कार्रवाई करने की जरूरत होती है, उसके अनुसार अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले टीम के अगुआओं और पर्यवेक्षकों के साथ इस बात पर संगति करने की जरूरत है कि इस कार्य को विशेष रूप से उचित तरीके से और ऐसे तरीके से कैसे पूरा किया जाए कि परिणाम हासिल हो सकें, जिससे यह सुनिश्चित हो जाए कि इस कार्य के लिए सभी के पास अनुसरण करने योग्य एक मार्ग और सिद्धांत हैं। सिर्फ इस हद तक संगति करके ही कार्य अच्छी तरह से किया जा सकता है। सबसे पहले, यह सुनिश्चित करो कि हर व्यक्ति गवाही लेख लिखने के लिए ऊपरवाले द्वारा अपेक्षित मानकों को और इस बात को समझता है कि किस तरह के गवाही लेखों की जरूरत है। सबसे पहले, इन लेखों की विशिष्ट सामग्री, सिद्धांत और दायरा स्थापित करो, और सुनिश्चित करो कि सभी अगुआ और कार्यकर्ता इस बारे में जानते हैं। इसके अलावा, लेखों की लंबाई, प्रारूप, विषय-वस्तु और भाषा शैली पर विशिष्ट संगति और मार्गदर्शन करो—मिसाल के तौर पर, उन्हें बताओ कि लेख कथा, दैनिकी, व्यक्तिगत विवरण, गद्य कविता आदि के रूप में लिखे जा सकते हैं। क्या यह मार्गदर्शन प्रदान करना नहीं है? (हाँ, है।) मार्गदर्शन प्रदान करने के बाद, हर व्यक्ति उन गवाही लेखों की विशिष्ट अवधारणा और परिभाषा जान जाएगा जिन्हें उसे लिखने की जरूरत है। उसके बाद, यह निर्धारित करो कि किसके पास अनुभवजन्य गवाही लेख लिखने की काबिलियत और अनुभव है, और किसके पास गहन अनुभव नहीं है और वह सिर्फ औसत गवाही लेख लिखने का प्रशिक्षण ले सकता है। कलीसियाई अगुआओं को इन परिस्थितियों के बारे में तीव्र रूप से जागरूक होने की जरूरत है। ये लेख लिखे जाने के बाद, यह जाँचने के लिए उनकी समीक्षा करो कि क्या वे सच्चे और शिक्षाप्रद हैं। अगर वे मानक के अनुरूप हैं, तो उनका उपयोग नमूना लेख के रूप में उन भाई-बहनों द्वारा पढ़ने और संदर्भ के लिए किया जा सकता है जिन्होंने अभी तक लेख नहीं लिखे हैं या जो उन्हें लिखना नहीं जानते हैं। अगर किसी के पास अनुभव हैं और वह गवाही लेख लिखने का इच्छुक है, तो उसे सिद्धांतों और अपेक्षाओं का पालन करना चाहिए, अपने दिल की सामग्री साझा करनी चाहिए और व्यावहारिक शब्द बोलने चाहिए ताकि वे पाठकों को उन्नत बना सकें। अगर कुछ लोग लेख लिखने में अच्छे नहीं हैं और वे सिर्फ घटनाओं का एक सरल वृत्तांत लिख सकते हैं, तो उनके साथ क्या करना चाहिए? चाहे उनके लेख मानकों को पूरा ना करें, तो भी उन्हें प्रशिक्षण लेना चाहिए। उन्हें परमेश्वर के वचनों का अनुभव करने से प्राप्त अपनी सच्ची समझ और सराहना के बारे में लेख लिखने चाहिए। इन लेखों का प्रतिलिपि संपादन और समीक्षा करने के बाद, अगर यह सामग्री गवाही लेखों के मानकों को पूरा करती है, तो ऐसे लेख मान्य हैं। लेख की लेखन शैली चाहे कैसी भी हो, और उसका स्वरूप चाहे कैसा भी हो—चाहे उसे कथा के रूप में लिखा गया हो या दैनिकी के रूप में—जब तक वह पाठकों के लिए फायदेमंद और उन्नत बनाने वाली है, उसे लिखा जा सकता है। कुछ निम्न शैक्षिक स्तरों वाले लोग भी हैं जिनके पास कुछ अनुभवजन्य गवाहियाँ हैं लेकिन उन्हें गवाही लेख लिखना नहीं आता है। ऐसे मामलों में क्या करना चाहिए? वे मौखिक रूप से अपने अनुभव बयान कर सकते हैं, और कोई ज्यादा शिक्षित व्यक्ति उनके अनुभवों को दर्ज करने में उनकी सहायता कर सकता है और फिर वे व्यक्ति जो कहना चाहते हैं उसके सच्चे अर्थ में उन्हें सटीक रूप से व्यक्त कर सकता है, उन्हें मानक के अनुरूप गवाही लेख में प्रतिलिपि संपादित कर सकता है। ऐसे लेख भी मान्य हैं। यह कार्य शुरू करने के लिए, सबसे पहले इस बात पर संगति करो कि गवाही लेख क्या है और इसका प्रारूप क्या है। फिर, विभिन्न शैक्षिक स्तरों, विभिन्न आयु समूहों और विभिन्न अनुभवों और आध्यात्मिक कदों के लोगों के लिए विशिष्ट जरूरतें और व्यवस्थाएँ तैयार करो। सबसे पहले अनुभवी लोगों से कुछ लेख लिखवाओ। इस बीच, कलीसिया में ऐसे व्यक्तियों की पहचान करो जो लेख लिखने में भाई-बहनों का मार्गदर्शन करने के लिए उपयुक्त हैं और जो इन विशिष्ट कार्यों को पूरा करने के लिए लेखों का प्रतिलिपि संपादन और संशोधन करने के लिए उपयुक्त हैं। इससे इस कार्य के लिए एक शुरुआती व्यवस्था मिल जाती है। क्या इसे इस तरीके से व्यवस्थित करने का यह अर्थ है कि इस प्रकार कार्य पूर्ण रूप से कार्यान्वित हो गया है और तुम इसे अकेला छोड़ सकते हो? नहीं, यह सिर्फ कार्य-व्यवस्था की अपेक्षाओं के आधार पर विशिष्ट निर्देश, सहायता और कार्यान्वयन योजनाएँ प्रदान करना है। इसके बाद अगुआओं और कार्यकर्ताओं को क्या करना चाहिए? तुम्हें कार्य का पर्यवेक्षण करना चाहिए। क्या इस पर्यवेक्षण का कोई लक्ष्य होना चाहिए? पर्यवेक्षण करना बिना सोचे-समझे मौके पर की जाने वाली जाँच नहीं है; इसके लिए एक प्राथमिक लक्ष्य की जरूरत है। तुम्हें इस बात की स्पष्ट समझ होनी चाहिए कि किसका पर्यवेक्षण करने की जरूरत है और किस कार्य चरण के लिए पर्यवेक्षण करना जरूरी है। मिसाल के तौर पर, अगर कोई बहन एक ऐसी कलीसियाई अगुआ है जो आम तौर पर अपने कार्य में तत्पर नहीं रहती है, शेखी बघारना पसंद करती है, उच्च लक्ष्य तो रखती है लेकिन अयोग्य है, उसे अपने वरिष्ठों को धोखा देने और अपने से नीचे के लोगों से बातें छिपाने की आदत है, वह मधुर तरीके से बात करती है, और अपने कार्य में लापरवाह रहती है, तो यह अनिवार्य है कि उसके कार्य का पर्यवेक्षण किया जाए। तुम उस पर पूर्ण रूप से विश्वास नहीं कर सकते हो। तो, फिर पहला कदम उसके कार्य का निरीक्षण करना और यह देखना है कि कार्य-व्यवस्थाओं का उसका कार्यान्वयन कैसा चल रहा है। क्या यह सिर्फ लोगों का मनमाने तरीके से पर्यवेक्षण करना है? (नहीं।) यह कार्य के लिए जरूरी है क्योंकि यह कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण है और जो लोग इस तरह का कार्य पूरा करते हैं, वे भरोसेमंद होने चाहिए। अगर वे विशिष्ट कार्यों का निर्वहन नहीं करते हैं और विश्वसनीय नहीं हैं, तो उन पर आँख मूँदकर विश्वास करने से कलीसिया के कार्य में देरी होगी और तुम भी अपनी जिम्मेदारी की उपेक्षा करोगे। ऐसे लोगों के संबंध में, तुम इस बात से प्रभावित नहीं हो सकते हो कि उनके शब्द सुनने में कितने अच्छे लगते हैं या वे कितने जोरों से अपनी प्रतिबद्धता का ऐलान करते हैं; दरअसल वे सिर्फ अच्छी बातें करते हैं लेकिन दृष्टि से ओझल होने के बाद कोई अर्थपूर्ण कार्य नहीं करते हैं। ऐसे लोग ही पर्यवेक्षण के एकदम सही लक्ष्य हैं। पर्यवेक्षण के जरिए ध्यान से देखो कि क्या उन्होंने पश्चात्ताप किया है। अगर उन्होंने नहीं किया है, तो उन्हें तुरंत बर्खास्त कर दो और उन पर प्रयास बर्बाद करना बंद कर दो। दरअसल, तुम्हें ज्यादातर अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ अनुवर्ती कार्रवाई करने, पर्यवेक्षण करने, और निर्देश देने का अभ्यास करना चाहिए। जो लोग वास्तविक कार्य कर सकते हैं और जिनमें जिम्मेदारी की भावना है, उनके लिए अगर यह कार्य ऐसा है जिसे वे करना जानते हैं, तो पर्यवेक्षण करने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन, नए या महत्वपूर्ण कार्य के लिए, अनुवर्ती कार्रवाई करना, पर्यवेक्षण करना, और निर्देश देना अब भी जरूरी है। यह कह सकते हैं कि इस तरह से कार्य का पर्यवेक्षण करना और उस पर अनुवर्ती कार्रवाई करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कार्य है। अनुवर्ती कार्रवाई करना, पर्यवेक्षण करना और निर्देश देना अविश्वास करने के बारे में नहीं है, बल्कि कार्य की सुचारू प्रगति को सुनिश्चित करने के बारे में है। क्योंकि लोगों में विभिन्न कमियाँ होती हैं और, यही नहीं, उनमें विभिन्न भ्रष्ट स्वभाव भी होते हैं, इसलिए इस तरह से अभ्यास किए बिना, यह आश्वासन देना असंभव है कि कार्य अच्छी तरह से किया जाएगा। जिन्हें अभी-अभी कार्य पर पदोन्नत किया गया है, उन्हें अनुवर्ती कार्रवाई, पर्यवेक्षण और निर्देशन की और ज्यादा जरूरत है। यह एक विशिष्ट कार्य है जिसका निर्वहन अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए। अगर तुम अनुवर्ती कार्रवाई करने, पर्यवेक्षण करने और निर्देश देने का अभ्यास नहीं करते हो, तो कई कार्य अच्छी तरह से नहीं किए जा सकेंगे, और कुछ कार्य तो गड़बड़ भी हो सकते हैं या ठप्प भी पड़ सकते हैं। यह एक बहुत ही सामान्य घटना है। विशेष रूप से, जो अगुआ और कार्यकर्ता सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं, उन्हें पर्यवेक्षण की और ज्यादा जरूरत होती है। दूसरे लोगों के साथ, कार्य को काफी अच्छी तरह से कार्यान्वित किया जा सकता है, लेकिन ऐसे लोगों के साथ, यह अनिश्चित रहता है कि कार्य कार्यान्वित किया जा सकेगा या नहीं, या इसे कितनी अच्छी तरह से कार्यान्वित किया जाएगा, और यह कहना तो और भी मुश्किल है कि इसे कार्य-व्यवस्था के अनुसार कार्यान्वित किया जाएगा या नहीं। ऐसे लोग अपने कार्य में बहुत भरोसेमंद नहीं होते हैं। अगर तुम उनके कार्य का पर्यवेक्षण किए बिना उन पर विश्वास करते हो, तो यह वास्तव में कार्य के प्रति लापरवाह और गैर-जिम्मेदार होना है। ऐसे लोगों के लिए, तुम्हें उनकी कलीसिया के कार्य पर अनुवर्ती कार्रवाई करने और उसका पर्यवेक्षण करने, और उसमें शामिल होने की जरूरत है। अगर वे तुम्हें आने नहीं देना चाहते या तुम्हारा स्वागत नहीं करते हैं, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? हो सकता है कि तुम कहो, “मैं अपना अभिमान भुला दूँगा और वहाँ से चला जाऊँगा।” क्या ये शब्द सही हैं? (नहीं।) यह उनका निजी क्षेत्र नहीं है; यह एक कलीसिया है, और यह तुम्हारी जिम्मेदारी के दायरे में आता है। तुम मुफ्तखोरी के लिए उनके घर में अपने ठहरने की अवधि नहीं बढ़ा रहे हो; तुम एक कलीसिया में कार्य करने के लिए जा रहे हो। यह अभिमान भुलाने के बारे में नहीं है। वैसे तो वे अगुआ हैं, लेकिन परमेश्वर के चुने हुए लोग उनके नहीं हैं। क्योंकि वे अपने कार्य में गैर-जिम्मेदार और निष्ठाहीन हैं, इसलिए तुम्हें उनके कार्य पर अनुवर्ती कार्रवाई करने और उसका पर्यवेक्षण करने की जरूरत है। तो, वहाँ जाने पर तुम्हें क्या करना चाहिए? सबसे पहले, उनसे पूछो कि कलीसिया में किसके पास जीवन अनुभव हैं और कौन अनुभवजन्य गवाही लेख लिख सकता है, कौन सत्य का अनुसरण करने पर अपेक्षाकृत ज्यादा ध्यान केंद्रित करता है, कौन दैनिकियाँ और आध्यात्मिक भक्ति से संबंधित टिप्पणियाँ लिखने पर अपेक्षाकृत ज्यादा ध्यान केंद्रित करता है, कौन सभाओं में अपने अनुभवों को साझा करने पर ध्यान केंद्रित करता है, और किसके पास सबसे ज्यादा अनुभवजन्य गवाहियाँ हैं। उन्हें पहले इन लोगों की पहचान करने दो। अगर वे कई भाई-बहन प्रदान करते हैं, और कहते हैं कि ये वही लोग हैं जो परमेश्वर के वचनों को पढ़ने पर अपेक्षाकृत ज्यादा ध्यान केंद्रित करते हैं, उनके पास पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी है, वे अक्सर आध्यात्मिक भक्ति से संबंधित टिप्पणियाँ लिखते हैं, परिस्थितियों का सामना करते समय सत्य का अभ्यास करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और अक्सर अनुभवजन्य गवाहियाँ साझा करते हैं जिन्हें दूसरे लोग सुनने के इच्छुक रहते हैं, तो तुम्हें इन भाई-बहनों से मिलना चाहिए और उनके साथ संगति करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, कलीसिया में यकीनन कुछ निम्न शैक्षिक स्तरों वाले लोग हैं जो लेख नहीं लिख सकते हैं, लेकिन उनके पास व्यावहारिक अनुभव हैं। इन लोगों को मार्गदर्शन और प्रशिक्षण की जरूरत है, और तुम ऐसे लोगों से कुछ समय तक उनकी सहायता करने के लिए कह सकते हो जो लेख लिखना जानते हैं। साथ ही, एक जिम्मेदार व्यक्ति चुनो जो अनुभवजन्य गवाही लेख लिखने वाले परमेश्वर के चुने हुए लोगों के विशिष्ट कार्य को कार्यान्वित करेगा। यह व्यक्ति पूरे हो चुके लेखों को इकट्ठा करने, उनकी प्रतिलिपि संपादित करने, समीक्षा करने और फिर उन्हें प्रस्तुत करने का प्रभारी होगा। और कलीसिया के अगुआ को क्या करना चाहिए? उससे इन कार्यों का पर्यवेक्षण और अनुवर्ती कार्रवाई करने के लिए कहो। कुछ लोग कह सकते हैं, “चूँकि एक कलीसियाई अगुआ मौजूद है, फिर हमें प्रभारी के तौर पर किसी को चुनने की क्या जरूरत है? क्या यह अनावश्यक नहीं है?” क्या यह अनावश्यक है? (नहीं।) क्यों नहीं? वह इसलिए क्योंकि यह कलीसियाई अगुआ वास्तविक कार्य नहीं करता है और इतना ज्यादा गैर भरोसेमंद है कि तुम्हें इस कार्य की विशेष रूप से जिम्मेदारी लेने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को चुनना होगा। अगर कलीसियाई अगुआ भरोसेमंद होता, तो वह कार्य-व्यवस्था मिलने के बाद तेजी से कार्य को पूरा कर पाता, और तुम्हें इस तरह से उसका पर्यवेक्षण करने की जरूरत नहीं पड़ती। किसी को प्रभारी के तौर पर चुनना कलीसियाई अगुआ को दरकिनार करने के बारे में नहीं है, बल्कि बेहतर कार्य परिणाम हासिल करने के बारे में है। अगर तुम इस व्यक्ति को नहीं चुनोगे, तो कार्य विफल हो सकता है, और यह कब पूरा होगा या कब परिणाम देगा, यह अनिश्चित हो जाएगा।

कलीसियाई कार्य में भाग लेने वाले अगुआओं और कार्यकर्ताओं का उद्देश्य परमेश्वर के चुने हुए लोगों की परमेश्वर के कार्य का व्यावहारिक रूप से अनुभव करने में अगुआई करना है। उन्हें न सिर्फ अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करना चाहिए, बल्कि कार्य-व्यवस्थाओं द्वारा अपेक्षित मानकों के अनुसार कलीसिया का समस्त कार्य पूरा करने में परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सहायता और अगुवाई भी करनी चाहिए। जो अगुआ और कार्यकर्ता ऐसा करते हैं, सिर्फ वे ही परमेश्वर के इरादों के अनुरूप होते हैं। लेकिन अगर तुम कार्य में विशिष्ट रूप से भाग नहीं लेते हो, और वास्तविक कार्य नहीं करने वाले अगुआओं और कार्यकर्ताओं का पर्यवेक्षण करने का अभ्यास नहीं करते हो, तो इन कलीसियाई कार्यों के परिणाम शून्य हो सकते हैं, क्योंकि नकलीअगुआ उन्हें बर्बाद कर चुके होते हैं। अगर तुम किसी खास कलीसिया की स्थिति को स्पष्ट रूप से समझते हो और तुम्हें अपने दिल में पता है कि इस कलीसिया के अगुआ गैर-जिम्मेदार हैं, लेकिन तुम समय पर अनुवर्ती कार्रवाई नहीं करते हो और निर्देश नहीं देते हो, तो क्या यह जिम्मेदारी की उपेक्षा नहीं है? इस प्रकार के कार्य पर अगर तुमने विशिष्ट रूप से अनुवर्ती कार्रवाई की है और इसमें भाग लिया है, और इसके लिए पर्यवेक्षक और कार्य करने के लिए लोगों की नियुक्ति कर दी है, तो क्या तुम तुरंत वहाँ से चले जा सकते हो? (नहीं।) कुछ समय तक अनुवर्ती कार्रवाई करना सबसे अच्छा है। अनुवर्ती कार्रवाई के दौरान, पहली बात यह है कि तुम कलीसियाई अगुआओं से इस कार्य में सक्रिय रूप से काम करने का आग्रह कर सकते हो और उनका मार्गदर्शन कर सकते हो। इसके अलावा, तुमने जिन लोगों की व्यवस्था की है उनकी कार्य स्थिति के बारे में सटीक समझ हासिल कर सकते हो, और साथ ही तुम किसी भी समय उनके सामने आने वाली किसी भी समस्या में समय पर सुधार कर सकते हो और मदद कर सकते हो। अगर तुम वहाँ से बहुत जल्दी चले जाते हो, और फिर समस्याएँ उत्पन्न होने पर उन्हें सँभालने और सुलझाने के लिए वापस आते हो, तो इससे कार्य में देरी हो जाएगी। संक्षेप में, इस विशिष्ट कार्य के लिए, कर्मियों और पर्यवेक्षक की व्यवस्था करने में भाग लेने के अलावा, कुछ समय तक अनुवर्ती कार्रवाई करना सबसे अच्छा है ताकि यह देखा जा सके कि उनके कार्य के दौरान कौन-सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। पहली बात, यह पर्यवेक्षण करो कि क्या कलीसियाई अगुआ अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं या नहीं; दूसरी बात, यह देखो कि कर्मी किस तरह से कार्य का निर्वहन कर रहे हैं। क्योंकि ज्यादातर लोगों ने पहले यह कार्य नहीं किया है और जो समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं वे अज्ञात हैं, इसलिए इस कार्य में भाग लेने के दौरान तुम लगातार कुछ अज्ञात मुद्दे ढूँढ़कर निकालते रहोगे। निस्संदेह, समय पर समाधान प्रदान करना भी सबसे अच्छा है। कार्य स्थल पर मौजूद रहना, पर्यवेक्षण और अनुवर्ती कार्रवाई करना सबसे अच्छे अभ्यास हैं। बस लापरवाही से खानापूर्ति करके आज का कार्य बंद मत कर दो। यह एक विशेष परिस्थिति के लिए किया जाने वाला कार्य है, जिसमें कुछ सहायता और मार्गदर्शन दिया जाता है। समस्याएँ सुलझाने के बाद, कुछ समय तक उनके कार्य पर अनुवर्ती कार्रवाई करो। तुम देखते हो कि कुछ लेख पहले से ही लिखे जा चुके हैं, और वहाँ कई प्रकार के लेख हैं, जो विभिन्न मुद्दों को संबोधित करते हैं और विभिन्न विषयों को शामिल करते हैं—कुछ सीसीपी उत्पीड़न के अनुभवों के बारे में हैं, कुछ पारिवारिक उत्पीड़न के अनुभवों के बारे में हैं, कुछ इस बारे में हैं कि लोग अपने प्रकट किए हुए भ्रष्ट स्वभावों को कैसे समझने लगते हैं, या अपने कर्तव्यों का पालन करते समय लोग जो विभिन्न भ्रष्ट अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं, उनका समाधान कैसे किया जाता है, वगैरह-वगैरह। इन सभी गवाही लेखों की समीक्षा की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो जाए कि वे पूरी तरह से तथ्यों के अनुरूप हैं और लोगों के लिए सही मायने में शिक्षाप्रद हैं और उसके बाद ही उन्हें स्वीकृत किया जाना चाहिए और उनके वीडियो बनाए जाने चाहिए। कार्य के इस स्तर पर पहुँचने पर, तुम पहले ही परिणाम देख चुके होगे। इससे यह साबित होता है कि, प्रारंभिक तौर पर, इस कार्य के लिए तुमने जिन कर्मियों और पर्यवेक्षक की व्यवस्था की थी वे अपेक्षाकृत उपयुक्त हैं। इसके बाद, अगर वे इस कार्य को अपने आप पूरा कर सकते हैं, तो तुम्हारे लिए वहाँ से आ जाना उचित है। क्या इस तरह से कार्य करने वाले अगुआ और कार्यकर्ता भी नैतिक और बौद्धिक उन्नति प्राप्त करते हैं? क्या यह दिन भर सिर्फ सिद्धांतों के बारे में बकबक करने और समय बर्बाद करने से ज्यादा फायदेमंद है? (हाँ।) इस किस्म के कार्य से बड़े पुरस्कार हासिल होते हैं। पहली बात, तुम वास्तविक समस्याएँ सुलझाना सीख जाते हो। दूसरी बात, तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी करते हो। इसके अलावा, सत्य के बारे में तुम्हारी समझ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के स्तर पर रुक नहीं जाती है; बल्कि, तुम वास्तविक जीवन में सत्य ज्यादा लागू करते हो। इस तरीके से, लोग व्यावहारिक अनुभव हासिल करते हैं, और सत्य की उनकी समझ ज्यादा ठोस और व्यावहारिक हो जाती है।

कलीसिया की पायलट कार्य परियोजना का इस हद तक मार्गदर्शन करने और प्रारंभिक परिणाम हासिल करने के बाद, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को आगे क्या कार्य करना चाहिए? क्या पायलट परियोजना पूरी हो जाने के बाद तुम्हारा कार्य पूरा हो जाता है? क्या तुम्हारे करने के लिए और भी कार्य हैं? अभी भी बहुत सारा कार्य बाकी है! इस कलीसिया के कार्य का मार्गदर्शन करने के बाद, देखो कि किस दूसरी कलीसिया के कार्य को संकेंद्रित मार्गदर्शन की जरूरत है, और फिर उस कलीसिया में जाओ और मार्गदर्शन प्रदान करना जारी रखो। चूँकि तुम्हारे पास पहले से ही कुछ कार्य अनुभव है और तुमने कुछ सत्य सिद्धांतों की गहरी समझ प्राप्त कर ली है, इसलिए फिर से मार्गदर्शन करना काफी आसान होगा। निस्संदेह, कार्य के पहले चर्चा किए गए चरणों के अनुसार, तुम्हें सबसे पहले यह देखना चाहिए कि चुने गए कर्मी मानक पर खरे उतरते हैं या नहीं, क्या वे इस कार्य के लिए उपयुक्त हैं, और दूसरी चीजों के साथ-साथ, क्या उनकी काबिलियत, मानवता, शैक्षिक स्तर, सत्य का अनुसरण करने की मात्रा, अपने कर्तव्य के प्रति रवैया और सत्य की समझ अपेक्षाकृत आदर्श हैं, और क्या वे अपेक्षाकृत उच्च कोटि के व्यक्ति हैं। कुछ समय तक कार्य का पर्यवेक्षण और निरीक्षण करने से, तुम्हें यह पता लगाने का अवसर मिलेगा कि कुछ अगुआ और कार्यकर्ता या पर्यवेक्षक मानक पर खरे नहीं उतरते हैं। मिसाल के तौर पर, कुछ लोग खराब काबिलियत वाले होते हैं और वे कार्य नहीं कर सकते हैं। दूसरे लोग विकृत समझ वाले होते हैं, उनके दृष्टिकोण गलत होते हैं, उनमें सामान्य सोच की कमी होती है, और आध्यात्मिक समझ नहीं होती है। वे अपने शैक्षिक ज्ञान के आधार पर सिर्फ लेखों की प्रूफरीडिंग कर सकते हैं, लेकिन जब विशिष्ट आध्यात्मिक शब्दों की उपयुक्तता और परमेश्वर के वचनों को उद्धृत करने की उपयुक्तता की बात आती है, तो वे अज्ञानी होते हैं; वे इन चीजों की असलियत देखने में बिल्कुल असमर्थ होते हैं, जिससे पता चलता है कि उन्हें चुनना अनुपयुक्त था और उन्हें तुरंत बदल देना चाहिए। इस बीच, कुछ दूसरे लोगों को पर्यवेक्षक के रूप में चुना जाता है, और वैसे तो वे कुछ कार्य कर सकते हैं, लेकिन जब वे खुद लेख लिखते हैं तो बेहतर परिणाम हासिल होते हैं। जब उन्हें पर्यवेक्षकों के रूप में कार्य करने के लिए कहा जाता है तो वे अपने कार्य में व्यस्त हो जाने पर लिखने का समय नहीं निकाल पाते हैं, और वे पर्यवेक्षक का कार्य बहुत अच्छी तरह से नहीं कर पाते हैं। वे मार्गदर्शन प्रदान करने, कार्य का निरीक्षण करने या समस्याओं को सुधारने में निपुण नहीं होते हैं, लेकिन एक विशिष्ट कार्य करने में बेहतर होते हैं। इसलिए, ऐसे व्यक्ति को पर्यवेक्षक के रूप में चुनना उचित नहीं है, और किसी दूसरे उम्मीदवार का चयन करना चाहिए। इसलिए, जब अगुआ और कार्यकर्ता किसी विशिष्ट कार्य का निरीक्षण और उस पर अनुवर्ती कार्रवाई कर रहे हों, तो सिर्फ प्रश्न पूछना और यह जाँच-पड़ताल करना पर्याप्त नहीं है कि क्या पर्यवेक्षक सिद्धांतों को समझता है। तुम्हें इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि इस व्यक्ति की मानवता वास्तव में कैसी है, और क्या उसकी काबिलियत, समझने की क्षमता और आध्यात्मिक कद इस कर्तव्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। अगर निरीक्षण से ऐसे कर्मियों का खुलासा होता है जो मानक पर खरे नहीं उतरते हैं, तो समय पर सुधार किए जाने चाहिए। कार्य का निरीक्षण करने में यही शामिल है।

गवाही लेख लिखने का कार्य कार्यान्वित करने के लिए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस बात का निरीक्षण तो करना ही चाहिए कि इस कार्य का पर्यवेक्षक उपयुक्त है या नहीं, इसके अलावा, उन्हें लेखों की जाँच करना और लेख लिखने के कार्य के लिए कुछ निर्देश देना और जाँच-परख करना भी सीखना चाहिए। विशिष्ट रूप से और व्यावहारिक रूप से लिखे गए लेखों का उपयोग मिसालों के तौर पर किया जा सकता है। खोखले और अव्यवहारिक तरीके से लिखे गए लेख मूल्यहीन और लोगों को शिक्षित नहीं करने वाले होते हैं, उन्हें सीधे हटा देना चाहिए। इस तरीके से, भाई-बहन जान जाएँगे कि किस प्रकार के लेख मूल्यवान हैं और किस प्रकार के नहीं, और भविष्य में, वे मूल्यहीन लेख नहीं लिखेंगे, और इस प्रकार ऊर्जा और समय की बर्बादी से बचेंगे। इस तरीके से, तुम्हारा कार्य मूल्यवान होगा। जब तुम कार्य का निरीक्षण करने के लिए जाते हो, तो तुम्हें उनके द्वारा लिखे गए सभी प्रकार के अनुभवजन्य गवाही लेखों को जाँचना चाहिए ताकि यह पता चल सके कि उनमें कोई मिलावट नहीं की गई है या झूठ नहीं जोड़ा गया है और लेख शिक्षाप्रद हैं या नहीं। सबसे पहले तुम्हें इन चीजों की जाँच-परख करने की जरूरत है। जाँच-परख करते समय क्या तुम भी सीख नहीं रहे होते हो? (हाँ।) जैसे-जैसे तुम सीखते रहोगे, इस कार्य को ज्यादा से ज्यादा बेहतर तरीके से करने लगोगे। मान लो कि तुम निरीक्षण नहीं करते हो, चीजों को गंभीरता से नहीं लेते हो, और गैर-जिम्मेदार हो, और बस खानापूर्ति करते हो, सिर्फ कार्य को जैसे-तैसे पूरा करने का और फिर अपने से ऊपर के लोगों को यह सूचना देने का लक्ष्य रखते हो कि यह पूरा हो चुका है, और यह सोचते हो, “चाहे जो हो, हमारी कलीसिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो गवाही लेख लिख सकते हैं। वे लिखना समाप्त कर लेंगे तो मैं उन सभी लेखों को जमा कर दूँगा। किसे परवाह है कि वे मानक पर खरे उतरते हैं या नहीं? जब तक उच्च-स्तरीय अगुआओं को यह पता है कि मैंने बहुत सारा कार्य किया है, कार्य व्यवस्थाएँ कार्यान्वित की हैं, और व्यस्त रहा हूँ, तब तक यह काफी है!” क्या यह जिम्मेदारी वाला रवैया है? (नहीं।) यह गैर-जिम्मेदार होना है। अगर तुम जिम्मेदारी लेते हो तो तुम्हें पहले अपनी तरफ से चीजों की जाँच-परख करनी चाहिए। तुम्हारे जरिए जमा किया गया हर लेख मानक पर खरा उतरना चाहिए; यह ऐसा होना चाहिए कि इसे पढ़ने वाला हर व्यक्ति कहे कि यह शिक्षाप्रद है और वह इसे पढ़ने का इच्छुक होना चाहिए। सिर्फ यही अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी पूरी करना कहलाता है। कार्य का निरीक्षण करना खानापूर्ति करने, नारे लगाने, धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करने या मनमाने ढंग से लोगों को डाँटने के बारे में नहीं है। यह कार्य की कुशलता और परिणामों का निरीक्षण करने के बारे में है, यह इस बात का निरीक्षण करने के बारे में है कि तुमने जो कार्य किया है क्या वह मानक स्तर का है, क्या यह कार्य-व्यवस्थाओं को कार्यान्वित करने के परिणाम प्राप्त करता है, क्या यह परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करता है, कौन-से क्षेत्र मानक स्तर के हैं और कौन-से नहीं—इन्हीं चीजों का निरीक्षण करना चाहिए। इसमें विशिष्ट कार्य करना शामिल है, और यह लोगों की काबिलियत से और इस बात से संबंधित है कि क्या उनमें आध्यात्मिक समझ है, वे कितना सत्य समझते हैं, उनके पास कितनी सत्य वास्तविकता है, और यह चीजों को देखने की उनकी क्षमता से संबंधित है। अगर तुम्हें कार्य का निरीक्षण करना आता है, और कार्य का निरीक्षण करते समय तुम समस्याओं का पता लगा सकते हो, समस्याओं की जड़ पहचान सकते हो, समस्याओं के सार को समझ सकते हो, और समस्याओं को सुलझा सकते हो, और गवाही लेख जमा करने से पहले तुम सिद्धांतों के अनुसार उनकी जाँच-परख कर सकते हो, जिससे यह आश्वासन मिलता है कि तुम जो भी लेख जमा करते हो वे सभी मानक पर खरे उतरते हैं और उन्हें पढ़ने वालों के लिए शिक्षाप्रद होते हैं, तो फिर तुम एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में मानक पर खरे उतरते हो, और तुमने अपना कार्य उचित रूप से किया है।

ज्यादातर लोग मार्गदर्शन, पर्यवेक्षण और आग्रह करने का कार्य कर सकते हैं। लेकिन, जब निरीक्षण और जाँच-परख करने की जरूरत पड़ती है, तो यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की काबिलियत की और इस बात की परीक्षा है कि क्या उनके पास सत्य वास्तविकता है। कुछ लोग मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं, कार्य का पर्यवेक्षण कर सकते हैं, और अनुपयुक्त कर्मियों की काट-छाँट कर सकते हैं या उन्हें बर्खास्त कर सकते हैं और उनसे निपट सकते हैं, लेकिन वे यह नहीं जानते हैं कि उन्होंने जो कार्य व्यवस्थित किया है उसकी कुशलता और परिणामों का आकलन कैसे करना है, क्या यह कार्य-व्यवस्थाओं के अनुरूप है, और अगर नहीं है तो इसे कैसे सुलझाना है। ज्यादातर अगुआ और कार्यकर्ता, ज्यादा-से-ज्यादा, मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं, पर्यवेक्षण और आग्रह कर सकते हैं, लेकिन जब कार्य का निरीक्षण करने की बात आती है, तो उन्हें यह नहीं पता होता है कि क्या करना है, उनके पास कोई सिद्धांत नहीं होता है और वे हैरान-परेशान हो जाते हैं। वे सोचते हैं, “कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित कर दी गई हैं तो अब निरीक्षण करने के लिए क्या है? हर व्यक्ति कार्य कर रहा है, कोई भी निठल्ला नहीं है, गड़बड़ियाँ और विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करने वाले लोगों से निपटा जा चुका है, और जिन्हें बर्खास्त या दूर करने की जरूरत थी, उन्हें भी उसी हिसाब से सँभाला जा चुका है। तो, निरीक्षण करने के लिए और क्या बचा है?” वे बस बेखबर हैं। कार्य का निरीक्षण करने के लिए जाँच-परख करने की जरूरत होती है। जाँच-परख करने का अर्थ क्या है? इसका अर्थ है कि तुम्हें एक निष्कर्ष निकालने की जरूरत है। मिसाल के तौर पर, अनुभवजन्य गवाही लेख लिखने के कार्य का एक पर्यवेक्षक तुम्हारे पास एक लेख लेकर आता है और कहता है कि इसकी लेखन शैली काफी अच्छी है, भाषा सहज है, और भाषा शैली और लेख की विषय-वस्तु दोनों ही अच्छी हैं। लेकिन, उसे लगता है कि इसमें शायद व्यावहारिक सामग्री की कमी है और यह लोगों को शिक्षित नहीं कर सकता है, इसमें और जोड़ने और सुधार करने की जरूरत है, लेकिन वह खुद इस मामले को ठीक से समझ नहीं पा रहा है, इसलिए वह तुमसे इस पर नजर डालने के लिए कहता है। उसका तुमसे इस पर नजर डालने के लिए कहने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि वह चाहता है कि तुम उसकी जाँच-परख करो। तुम उसकी जाँच-परख कैसे करते हो और क्या तुम उसकी जाँच-परख अच्छी तरह से करते हो, यह तुम्हारे वास्तविक आध्यात्मिक कद की परीक्षा है। वास्तविक आध्यात्मिक कद का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि क्या तुम सत्य सिद्धांतों को समझते हो। अगर यह पर्यवेक्षक गवाही लेख लिखने के सिद्धांतों को नहीं समझता है, वह यह आकलन नहीं कर पाता है कि लेख व्यावहारिक और सच्चा है या नहीं, और उसे यह मालूम नहीं है कि फैसला कैसे लेना है, और तुम भी वैसे ही हो, फैसला लेने या निष्कर्ष पर पहुँचने में असमर्थ हो, तो इससे एक बात साबित होती है : तुम्हारी काबिलियत लगभग उसकी जैसी ही है और तुम लेखों की जाँच-परख करने में असमर्थ हो। क्या यही बात नही है? तुम जो सत्य समझते हो वह लगभग उसके सत्य जैसा ही है और तुम उन समस्याओं की असलियत नहीं देख पाते हो जिनकी असलियत वह नहीं देख पाता है—यह एक मुद्दे की तरफ इशारा करता है। अगर तुम उन समस्याओं की असलियत देख पाते हो जिनकी असलियत वह नहीं देख पाता है और तुम निरीक्षण के जरिए उन समस्याओं का पता लगा पाते हो जिनका पता वह नहीं लगा पाता है तो इससे यह साबित होता है कि तुम लेखों की जाँच-परख कर सकते हो। मिसाल के तौर पर, वह मानता है कि ज्यादातर लेख मानक स्तर के हैं और उनमें कोई महत्वपूर्ण समस्या नहीं है, लेकिन तुम्हें अपने निरीक्षण और जाँच-परख के जरिए एक छोटा-सा भाग मिल जाता है जो मानक स्तर का नहीं है। तुम गहन-विश्लेषण और संगति के जरिए इन लेखों में मौजूद समस्याओं को समझाते हो; हर व्यक्ति इस बात से सहमत है कि तुम्हारे बिंदु तर्कसंगत हैं, सिद्धांतों के अनुरूप हैं, और यह नुक्स निकालना नहीं हैं, बल्कि उसमें सचमुच वास्तविक समस्याएँ हैं, और इन्हें ठीक किया जाना चाहिए। कुछ लेख खोखले हैं और उनमें व्यावहारिक अनुभवजन्य समझ की कमी है; कुछ लेखों में व्यावहारिक अनुभवजन्य समझ तो है, लेकिन उन्हें पर्याप्त ठोस रूप से व्यक्त नहीं किया गया है; कुछ लेखों में परमेश्वर के वचनों को अनुपयुक्त तरीके से उद्धृत किया गया है, परमेश्वर के वचनों के ज्यादा उपयुक्त अंशों को नहीं चुना गया है, जिससे बदतर परिणाम हुए हैं; कुछ लेखों में गलत दृष्टिकोण हैं, विकृत समझ है और सत्य की समझ पर संगति की कमी है, जिससे पाठकों की आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती है और उनमें आसानी से नकारात्मकता और गलतफहमियाँ हो सकती हैं; वगैरह-वगैरह। तुम इन सभी मुद्दों का पता लगा सकते हो और उनकी असलियत देख पाते हो। अपनी संगति के जरिए, तुम सिद्धांतों को गहराई से समझने में उनकी सहायता करते हो, जिससे अनुभवी लोग वास्तविक अनुभवजन्य गवाहियाँ लिखने में सक्षम होते हैं। तुम वे लेख चुनते हो जो अनुभवजन्य गवाहियों के रूप में लोगों के लिए शिक्षाप्रद और मूल्यवान हैं, जो मानक स्तर की हैं, ताकि जब परमेश्वर के चुने हुए लोग उन्हें पढ़ें, तो वे शिक्षित हो जाएँ। इस बीच, जिन लेखों में सच्ची अनुभवजन्य समझ की कमी है या विकृत समझ है, उन्हें हटा दिया जाता है। अगर तुम ऐसा करते हो, तो क्या तुम जाँच-परख नहीं कर रहे हो? अगर तुम्हारे पास मामलों को समझने और कार्य करने की ऐसी क्षमता है, तो क्या तुम्हारी काबिलियत पर्याप्त नहीं है? क्या तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं कर रहे हो? (हाँ।) अगर उसे लगता है कि ज्यादातर लेख स्वीकार्य हैं और वह उनकी जाँच-परख करने के लिए उन्हें तुम्हारे पास लेकर आता है, और तुम्हें भी लगता है कि उनमें से ज्यादातर लेख अच्छे हैं, जबकि वास्तव में उनमें से कुछ लेखों में समस्याएँ हैं और उन्हें आगे चयन, प्रतिलिपि संपादन और समस्याओं के सुधार की जरूरत है, लेकिन तुम उन्हें ठीक से समझ नहीं पाते हो—जब तुम उन्हें ऊपरवाले के पास जमा करते हो, और ऊपरवाला कुछ लेखों को मानक स्तर का नहीं पाता है और उन्हें हटा देता है—तो क्या इसका अर्थ यह नहीं है कि तुमने ठीक से जाँच-परख नहीं की? एक बात यह है कि कार्य का निरीक्षण करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की काबिलियत की परीक्षा है, और दूसरी बात यह है कि यह सत्य की उनकी समझ की सीमा की परीक्षा है। कुछ लोग जाँच-परख नहीं कर पाते हैं क्योंकि उनकी काबिलियत खराब होती है और इसलिए वह उन्हें ऐसा नहीं करने देती है, वे इस क्षेत्र में सत्य नहीं समझते हैं, और वे समस्याओं की असलियत देख नहीं पाते हैं। उनके निरीक्षण सिर्फ खानापूर्ति करना होते हैं, वे यह नहीं जानते हैं कि क्या निरीक्षण करना है। कुछ लोगों में पर्याप्त काबिलियत होती है, लेकिन क्योंकि सत्य की उनकी समझ उथली होती है, इसलिए वे समस्याओं को पहचान तो पाते हैं, लेकिन उन्हें सुलझाने का तरीका नहीं जानते हैं। इन लोगों में अब भी सुधार की गुंजाइश है। लेकिन, अगर लोग समस्याओं को पहचान ही नहीं पाते हैं, तो उनके पास प्रगति करने का कोई तरीका नहीं होता है।

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