अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (1) खंड तीन
मद दो : हर तरह के व्यक्ति की स्थितियों से परिचित हो, और जीवन प्रवेश से संबंधित जिन विभिन्न कठिनाइयों का वे अपने वास्तविक जीवन में सामना करते हैं, उनका समाधान करो (भाग एक)
नकली अगुआ हर प्रकार के व्यक्तियों की स्थितियों की असलियत नहीं जान सकते
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की दूसरी जिम्मेदारी है कि वे हर तरह के व्यक्ति की स्थितियों से परिचित हों और उनके वास्तविक जीवन में सामने आने वाली जीवन प्रवेश से जुड़ी विभिन्न कठिनाइयों को हल करें। नकली अगुआ इस कार्य को कैसे अंजाम देते हैं? क्या वे इस कार्य के काबिल हैं? आओ, इस बिंदु का गहन-विश्लेषण करें। हर तरह के व्यक्ति की स्थितियों से परिचित होना—यह किस आधार पर हासिल होता है? यह विभिन्न लोगों के भ्रष्ट स्वभाव और सार उजागर करने वाले परमेश्वर के वचन समझने के आधार पर हासिल होता है। विभिन्न लोगों की स्थितियों को समझने के लिए व्यक्ति को पहले परमेश्वर के उन वचनों को समझना चाहिए जो लोगों की विभिन्न अवस्थाएँ, भ्रष्ट स्वभाव और भ्रष्ट सार उजागर करते हैं और उनकी अपने आप से तुलना करने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर द्वारा उजागर किए गए स्वभावों का प्रकार इस बात को संदर्भित करता है कि लोग किस तरह के हैं, उनकी मानवता कैसी है, उनकी अभिव्यक्तियाँ और खुलासे किस तरह के हैं, और परमेश्वर तथा परमेश्वर के वचनों और उनके कर्तव्य के प्रति उनका रवैया क्या है; इन अवस्थाओं का मिलान परमेश्वर के वचनों से किया जाना चाहिए और ऐसा करने से विभिन्न व्यक्तियों की स्थितियों को समझा जा सकता है। इसलिए, विभिन्न लोगों की स्थितियों से परिचित होना सबसे पहले परमेश्वर के वचन समझने और परमेश्वर के वचन समझने की क्षमता रखने के आधार पर होता है। नकली अगुआओं के पास परमेश्वर के वचन समझने की क्षमता नहीं होती, तो क्या वे परमेश्वर के वचनों द्वारा उजागर किए गए विभिन्न प्रकार के लोगों के बारे में जटिल सत्य, साथ ही उजागर की गई विभिन्न अवस्थाएँ और भ्रष्ट सार समझ सकते हैं? (नहीं।) वे इन्हें नहीं समझते, और इनके बीच के संबंध को नहीं जानते, और इसमें शामिल सत्य नहीं जानते हैं। क्योंकि उनके पास परमेश्वर के वचन समझने की क्षमता नहीं होती, इसलिए विभिन्न लोगों की स्थितियों को समझना—यह बहुत ही महत्वपूर्ण और अहम मामला—नकली अगुआओं के लिए बहुत ही परेशानी भरा और कठिन काम है।
नकली अगुआ विभिन्न लोगों की स्थितियों को कैसे समझते हैं? वे सोचते हैं, “यह व्यक्ति उत्साही है, यह व्यक्ति तुच्छ है, यह सजने-सँवरने का शौकीन है, उसमें बहुत कम आस्था है...।” वे केवल इन सतही घटनाओं को देखते हैं, लेकिन वे नहीं जानते कि परमेश्वर के वचनों और सत्य के प्रति किसी का रवैया वास्तव में कैसा है और उसका प्रकृति सार वास्तव में कैसा है। उदाहरण के लिए, कोई वास्तव में आस्थावान है और वह अपने कर्तव्य करने में ऊर्जावान है, लेकिन उसकी पारिवारिक कठिनाइयाँ और उलझनें उसके कर्तव्यों के परिणामों को प्रभावित करती हैं; यह देखकर नकली अगुआ यह कहते हुए उस पर गलत तरीके से ठप्पा लगाएगा कि “यह व्यक्ति अविश्वासी है। वह अपने परिवार से अलग नहीं हो सकता। वह हमेशा अपने बच्चों के बारे में सोचता रहता है। उसके घर में बचत होती है, लेकिन वह उसे दान नहीं करता। इसलिए यह व्यक्ति बहुत समस्या पैदा करने वाला है, और भविष्य में महत्वपूर्ण कार्यों के लिए उसका उपयोग नहीं किया जा सकता।” वास्तव में, इस व्यक्ति की समस्या गंभीर नहीं है; ऐसा केवल इसलिए है कि वह थोड़े समय से ही परमेश्वर में विश्वास कर रहा है और उसकी सत्य की समझ उथली है, इसलिए वह बहुत-सी चीजों को नहीं देख पाता। वह नहीं जानता कि अपने परिवार और बच्चों के प्रति कैसा रवैया अपनाए, या अपनी संपत्तियों को कैसे संभाले। वह अभी भी प्रार्थना और खोज की अवधि में है, और अभी तक अभ्यास के सटीक सिद्धांतों और तरीकों को नहीं खोज पाया है। उसमें सत्य का अभ्यास करने की इच्छाशक्ति है, लेकिन जब पारिवारिक उलझनों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, तो वह अस्थायी रूप से थोड़ा कमजोर पड़ जाता है और अपना कर्तव्य करने में बहुत सक्रिय नहीं होता। हालाँकि, वह कलीसिया द्वारा सौंपे गए उस तरह के कार्य को ईमानदारी से पूरा कर सकता है जिसे अधिकांश लोग नहीं कर सकते। उसकी क्षमता, मानवता और सत्य के प्रति उसके रवैये के आधार पर निर्णय किया जाए तो वह अच्छा व्यक्ति है। लेकिन नकली अगुआ इसे इस तरह से नहीं देखता क्योंकि वह परमेश्वर के वचन नहीं समझता और यह नहीं जानता कि किसी व्यक्ति के प्रकृति सार को मापने के लिए परमेश्वर के वचनों का मानक के रूप में कैसे उपयोग किया जाए, या वह यह नहीं जानता कि किसी व्यक्ति की स्थिति उसके प्रकृति सार के कारण है या किसी अस्थायी कमजोरी के कारण, या यह आध्यात्मिक कद की समस्या है; वह इन चीजों को माप नहीं सकता। इस प्रकार का व्यक्ति जिन कठिनाइयों का सामना करता है, वे वास्तविक जीवन में होती हैं और उनका संबंध जीवन प्रवेश से होता है—क्या नकली अगुआ ऐसी समस्याओं को संभाल सकता है? क्या वह इन लोगों की कठिनाइयों को हल कर सकता है? (नहीं।) क्योंकि नकली अगुआ विभिन्न लोगों की स्थितियों को सही ढंग से नहीं समझ सकते और विभिन्न लोगों के प्रकृति सार की अच्छाई और बुराई को सही ढंग से नहीं समझ सकते, इसलिए वे विभिन्न लोगों की कठिनाइयों और समस्याओं को भी सही ढंग से हल नहीं कर सकते। इसके उलट, वे विकसित करने के लिए मुख्य लक्ष्य उन लोगों को मानते हैं जो केवल उत्साह पर निर्भर रहते हैं, खुद को खपा सकते हैं, कठिनाइयाँ सह सकते हैं और कीमत चुका सकते हैं, लेकिन जिनकी काबिलियत कम है और जिनमें समझने की क्षमता नहीं है, और जब इन लोगों के सामने कठिनाइयाँ आती हैं तो वे उनकी समस्याओं को हल करने के लिए संगति करते हैं। लेकिन जिन लोगों में वास्तव में काबिलियत और अच्छी मानवता होती है, जब वे कठिनाइयों का सामना करते हैं और थोड़े कमजोर होते हैं, तो नकली अगुआ उनकी समस्याएँ कैसे हल करते हैं और उन्हें कैसे संबोधित करते हैं? इन लोगों को जब कठिनाइयों का सामना करना पड़े, और वे वास्तव में थोड़े कमजोर हों, तो स्थिति के अनुसार, उन्हें समर्थन और मदद दी जानी चाहिए; उनके साथ परमेश्वर के इरादों के बारे में संगति करनी चाहिए—उन्हें पूरी तरह से खारिज नहीं किया जाना चाहिए, और उन पर ठप्पा तो बिल्कुल नहीं लगाना चाहिए। लेकिन नकली अगुआ ऐसे लोगों की कठिनाइयाँ कैसे हल करते हैं? वे कहते हैं, “परमेश्वर का कार्य पहले ही इस स्तर पर पहुँच चुका है, फिर भी तुम अब तक अपने पति से, अपने बच्चों से चिपकी रहती हो; तुम अपने बच्चों को विश्वविद्यालय में भेजती हो और उनकी संभावनाओं के पीछे लगी रहती हो। जैसे-जैसे आपदाएँ लगातार गंभीर होती जा रही हैं, क्या इस दुनिया में अब भी कोई संभावनाएँ हैं? तुम अपने जीवन का भी ख्याल नहीं रख सकती, फिर तुम उन चीजों की परवाह भला कैसे कर सकती हो? परमेश्वर का कार्य लगभग समाप्त हो चुका है, समय का दबाव कितना ज्यादा है! यदि तुम खुद को पूरी तरह से समर्पित नहीं करती हो, तो क्या तुम्हें अभी भी एक सृजित प्राणी कहा जा सकता है? क्या तुम अभी भी मनुष्य हो?” क्या इन लोगों की कठिनाइयाँ वास्तव में इसी बारे में हैं? (नहीं।) कठिनाइयों का सामना करते हुए इन लोगों के थोड़ा कमजोर होने का कारण सिर्फ उनका छोटा आध्यात्मिक कद है, न कि यह कि वे सत्य से प्रेम नहीं करते या अपना कर्तव्य करने के लिए तैयार नहीं हैं। इसलिए, नकली अगुआ जो कहते हैं वह उनकी स्थिति से मेल नहीं खाता; यह स्पष्ट रूप से गलत ठप्पा लगाने का मामला है, उनकी स्थिति के मर्म या प्रमुख पहलू को न समझने का मामला है, यह न समझने का मामला है कि वे वास्तव में क्या सोच रहे हैं, वे किस प्रकार के व्यक्ति हैं, और उन्हें अपनी कठिनाइयों को हल करने के लिए कैसे मार्गदर्शन और मदद दी जानी चाहिए। नकली अगुआ नहीं जानते कि इन समस्याओं को कैसे हल किया जाए। तो, जब ऐसे मामले सामने आएँ, तो उन्हें कैसे हल करना चाहिए? तुम कह सकते हो कि “जिस मुद्दे का तुम सामना कर रही हो, वह ऐसी समस्या है जिसका सामना बहुत से लोग करते हैं। जो लोग वास्तव में अपने परिवारों को पीछे छोड़ कर पूरे दिल से खुद को परमेश्वर के लिए खपा सकते हैं, वे किसी आवेग में काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि इसके लिए उन्होंने लंबे समय तक तैयारी की है। एक बात यह है कि उन्होंने पर्याप्त सत्य समझ लिया है और उनमें वास्तव में अपने परिवार से मुक्त होने, और पूरे मन से खुद को परमेश्वर के घर में खपाने की इच्छा है, और वे गारंटी दे सकते हैं कि वे बाद में इस पर पछताएँगे नहीं—उन्होंने इस बारे में खूब अच्छी तरह से विचार कर रखा है। इसके अलावा, इस अवधि के दौरान खुद को सत्य से लैस करना जारी रखते हुए वे तैयारी के लिए, और आगे का रास्ता खोलने के लिए भी, परमेश्वर से प्रार्थना करते रहते हैं, खुद को और अधिक सत्य समझने देते हैं, और खुद को पूरी तरह से परमेश्वर के लिए खपाने के लिए सब कुछ एक किनारे रख देने में पहले से अधिक विश्वास करते रहते हैं। इसके लिए समय, प्रार्थना और निश्चित रूप से, परमेश्वर की अगुआई और व्यवस्था की आवश्यकता होती है। यदि तुममें यह इच्छा है, तो चिंतित मत हो। परमेश्वर से प्रार्थना करो और चुपचाप प्रतीक्षा करो, और परमेश्वर तुम्हारे लिए व्यवस्था करेगा। यदि तुम्हारी प्रार्थनाएँ और तुम्हारी इच्छा परमेश्वर के इरादों के अनुरूप हुई और उसे परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त हुई, यदि तुम तैयार हो और परमेश्वर चाहे जो करे तुम उसके प्रति समर्पण करोगी और कोई पछतावा महसूस नहीं करोगी, तो परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे लिए एक रास्ता खोलेगा। इस अवधि के दौरान, लोगों को जो करना चाहिए वह है तैयारी करना और प्रतीक्षा करना; एकमात्र चीज जो वे कर सकते हैं वह है खुद को सत्य से लैस करना, परमेश्वर के इरादों को समझना, और अपने आध्यात्मिक कद को धीरे-धीरे बढ़ने देना। जब परमेश्वर विभिन्न वातावरणों की व्यवस्था करता है, तब यदि तुम बिना किसी शिकायत के परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना चुन सकती हो, तो यह आध्यात्मिक कद का होना है—परमेश्वर चाहे जो करे या कैसे भी व्यवस्था करे, तुम समर्पण करने में सक्षम रहोगी।” इस तरह के मार्गदर्शन के बारे में तुम क्या सोचते हो? (यह अच्छा है।) एक ओर, तुम अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे हो, लोगों को परमेश्वर के इरादों को समझने में मदद कर रहे हो; साथ ही, तुम उन्हें उनकी क्षमताओं के परे जाने के लिए मजबूर नहीं कर रहे हो, बल्कि उनकी वास्तविक स्थिति के अनुसार उनके साथ व्यवहार कर रहे हो। क्या यह परमेश्वर के वचनों के माध्यम से समस्याएँ हल करना नहीं है? क्या यह लोगों के वास्तविक जीवन में उनकी स्थिति के आधार पर आने वाली कठिनाइयों का समाधान करना नहीं है? (हाँ, है।)
अपने कर्तव्यों के निर्वहन में कुछ लोग हमेशा अनमने होते हैं और कोई जिम्मेदारी नहीं दिखाते, साथ ही हमेशा अपने आप को किसी अधिकारी जैसा पेश करते हैं, अहंकारी, आत्मतुष्ट और दूसरों के साथ सहयोग करने में असमर्थ होते हैं, और बिना रत्ती भर भी अपराधबोध के कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचाते हैं। नकली अगुआ, ऐसी स्थिति को देखकर, इस समस्या को संभालने और हल करने के लिए आगे बढ़ता है, और कहता है, “यह व्यक्ति इस कार्य में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसा लगता है कि कोई भी उसकी जगह लेने के उपयुक्त नहीं है, इसलिए हमें उसकी कठिनाइयों को हल करने के लिए उसके साथ संगति करने की आवश्यकता है।” संगति के दौरान, नकली अगुआ को पता चलता है कि वह व्यक्ति अपना कर्तव्य बिल्कुल नहीं करना चाहता। वह सांसारिक चीजें पाने का प्रयास करना चाहता है, अपनी जीवनवृत्ति से पैसा कमाना चाहता है और अच्छा जीवन जीना चाहता है, और मानता है कि अपना कर्तव्य निभाने के लिए बाध्य किया जाना उससे बहुत अधिक की अपेक्षा करना है। उसे लगता है कि परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाने का मतलब है हर दिन व्यस्त रहना, इससे न केवल अपना निजी पारिवारिक जीवन नष्ट हो जाता है बल्कि परिवार के सदस्यों के साथ संबंध बनाए रखना भी असंभव हो जाता है, और अगर अपना कर्तव्य निभाते हुए सिद्धांतों का उल्लंघन होता है तो काट-छाँट भी सहनी पड़ती है। उसे ऐसा जीवन बहुत कड़वा लगता है और वह ऐसे नहीं जीना चाहता। समस्या स्पष्ट है : उसका व्यवहार संकेत करता है कि वह छद्म-विश्वासी है। लेकिन नकली अगुआ इससे कैसे निपटता है? नकली अगुआ सोचता है, “गैर-विश्वासियों के बीच यह व्यक्ति प्रतिभाशाली है; उसके जैसा व्यक्ति मिलना आसान नहीं है। उसकी स्थिति में समस्या है; मुझे जल्दी से अपने सबसे जरूरी काम एक तरफ रखकर उसके साथ संगति करने और इस समस्या को हल करने में उसकी मदद करने की आवश्यकता है। इसे कैसे हल किया जाए? परमेश्वर के वचन सबसे शक्तिशाली हैं; सबसे पहले, मैं उसे परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़कर सुनाऊँगा ताकि अपना कर्तव्य करने के प्रति उसकी अनिच्छा का समाधान हो सके।” नकली अगुआ उससे कहता है, “अब जब आपदाएँ आ गई हैं, तो लोग अच्छा जीवन नहीं जी सकते। तुम अभी भी करियर बना कर पैसा कमाना और एक साधारण पारिवारिक जीवन जीना चाहते हो, लेकिन जल्द ही पूरी दुनिया में अराजकता होगी और कोई भी साधारण परिवार नहीं रहेगा। क्या तुम इन चीजों को नहीं समझ सकते? तुम्हें चाहिए कि परमेश्वर से और अधिक प्रार्थना करो। परमेश्वर से प्रार्थना करने से तुम्हें आस्था मिलेगी। तुम्हें परमेश्वर के वचनों को और अधिक खाने-पीने की भी आवश्यकता है। परमेश्वर के वचनों को कुछ बार खाने-पीने के बाद, तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी।” फिर, वह परमेश्वर के वचनों के पाँच-दस अंश पढ़ता है और उसके साथ संगति करता है। व्यक्ति जवाब देता है, “बहुत संगति हो चुकी। मैं परमेश्वर के इन सभी वचनों को समझता हूँ; मैं तुमसे अधिक शिक्षित हूँ। दिखावा मत करो।” पूरे दिन संगति करने के बाद भी कुछ हल नहीं होता। नकली अगुआ सोचता है, “मैं इतने सालों से कलीसिया का काम कर रहा हूँ; मुझे नहीं लगता कि मैं तुम्हारी समस्या हल नहीं कर सकता।” शाम को, वह जल्दी से संगति को आगे बढ़ाता है, “तुम्हें परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए और उसकी आराधना करनी चाहिए! तुममें एक मानक स्तर का सृजित प्राणी बनने की संभावना है। यह कर्तव्य आसानी से नहीं मिलता; तुम्हें इस अवसर को सँजो कर रखना चाहिए, क्योंकि यदि तुमने इसे गँवा दिया, तो दूसरा अवसर कभी नहीं मिलेगा। तुम्हारी काबिलियत और परिस्थितियाँ इतनी अच्छी हैं, क्या यह तुम्हारे लिए दुर्भाग्यपूर्ण नहीं होगा कि तुम अपना कर्तव्य न निभाओ? तुम्हारे जैसी प्रतिभा वाले व्यक्ति को परमेश्वर के घर में पदोन्नति मिलनी चाहिए और तुम्हारा उपयोग किया जाना चाहिए; यहाँ तुम्हारे लिए बहुत संभावनाएँ हैं!” वह व्यक्ति कहता है, “बातें करना बंद करो। यदि तुम मुझसे मेरा कर्तव्य करने के लिए कहते हो, तो मेरा रवैया वैसा ही रहेगा। यदि मुझे ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जाती, तो मैं तुरंत चला जाऊँगा। ऐसा नहीं है कि मैं यहाँ रहने के लिए मरा जा रहा हूँ!” नकली अगुआ अपने सभी शब्दों का उपयोग करता है, लेकिन उस व्यक्ति को मना नहीं पाता या उसकी समस्या का समाधान नहीं कर पाता। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि नकली अगुआ यह असलियत नहीं जान पाता कि उस व्यक्ति की मूल समस्या क्या है। अपना कर्तव्य करते हुए यह व्यक्ति जब भी मन करे बेपरवाह हो जाता है, जब भी उसका मन करे धोखा देता है, और जब मन करे, तो बस औपचारिकता करता है; चाहे वह कोई भी काम करे, वह गैर-जिम्मेदार रहा है। कुछ समस्याओं को हल करने के लिए थोड़ा अतिरिक्त प्रयास करने या कुछ और शब्द कहने के लिए वह तैयार नहीं होता, उसे यह मुश्किल भरा और परेशान करने वाला लगता है। वह स्पष्ट रूप से जानता है कि अपने कर्तव्य को उस ढंग से कैसे करना है जो मानक स्तर का हो और उचित तरीके से काम कैसे करना है, लेकिन वह इस तरह से अभ्यास करने का अनिच्छुक होता है। फिर भी, वह परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य करना जारी रखता है। इस स्थिति की प्रकृति क्या है? यहाँ समस्या क्या है? (वह आशीष पाने और सौदे करने के इरादे से आया था।) वह ऐसी आशा के साथ आया था; ऐसे लोगों को अवसरवादी कहते हैं। वह कहता है, “मैंने सुना है कि दुनिया जल्द ही खत्म होने वाली है, सर्वनाश हमारे सिर पर है, इसलिए मुझे अब काम पर जाने की जरूरत नहीं है; वैसे भी, मैंने काफी पैसा कमा लिया है। मुफ्त भोजन पाने और अपने लिए एक जगह सुरक्षित करने के लिए मैं परमेश्वर के घर आ सकता हूँ, ताकि मुझे बाद में आशीष पाने की उम्मीद रह सके।” अपना कर्तव्य करने में उसके रवैये और इरादे को देखते हुए कह सकते हैं कि परमेश्वर में उसका विश्वास अवसरवादी है; वह सच्ची आस्था के कारण नहीं, बल्कि मुफ्तखोरी के लिए परमेश्वर के घर आया है। अपना कर्तव्य करते समय उसका रवैया विशेष रूप से उपेक्षापूर्ण होता है। उसका उपयोग करने के लिए कलीसिया को उसे मनाना पड़ता है और उससे समझौते करने पड़ते हैं, फिर भी, वह अपने कर्तव्य का ठीक से निर्वहन नहीं करता। क्या ऐसा व्यक्ति जिसके पास अंतरात्मा तक न हो, वास्तव में अपना कर्तव्य निभा सकता है? वह केवल अवसरवाद और मुफ्तखोरी में लगा रहता है, वह छद्म-विश्वासी होता है। इस समस्या के दो पहलुओं की प्रकृति को देखते हुए, इसे हल करने की कोशिश में क्या नकली अगुआ इसका सार समझ सका? (नहीं।) समस्या के सार की असलियत जानने में विफल होने के कारण वह अभी भी इस व्यक्ति को सच्चा विश्वासी मानता है, एक ऐसा विश्वासी जिसमें बस सत्य की समझ नहीं है, जिसका आध्यात्मिक कद छोटा है, जो अस्थायी रूप से कमजोर है और जिसे सहारे की जरूरत है। इन दृष्टिकोणों से उसने संगति करने और मदद करने का प्रयास किया, जिस पर उसे सुनने को मिला कि “बातें बंद करो। तुम जिन धर्म-सिद्धांतों की चर्चा करते हो, वे बेकार हैं। मैं वह सब जानता हूँ, मैं तुमसे ज्यादा समझता हूँ। तुम वास्तव में कितने धर्म-सिद्धांत समझते हो? तुम कितने शिक्षित हो? जितना तुमने खाना खाया होगा, उससे ज्यादा मैंने किताबें पढ़ी हैं!” उसकी प्रकृति खुद को प्रकट कर चुकी है, है ना? यह महसूस किए बिना कि यह व्यक्ति वास्तव में छद्म-विश्वासी है, नकली अगुआ अभी भी मानता है कि वह काम कर रहा है। जब छद्म-विश्वासी परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य करते हैं, तो उनका श्रम भी मानक स्तर का नहीं होता है। क्या ऐसे लोगों को अपने आस-पास रखना चाहिए? (नहीं।) इसलिए, परमेश्वर के घर में इस तरह के व्यक्ति को संभालने का यह सिद्धांत है : यदि वे श्रम कर सकते हैं और करने के लिए तैयार हैं, तो उन्हें रखो; अगर वे अनिच्छुक हैं, तो उन्हें तुरंत दूर कर दो, उन्हें रुकने के लिए मत कहो, न ही उन्हें प्रोत्साहित करो। क्या नकली अगुआ इस सिद्धांत को जानते हैं? वे नहीं जानते। वे मरे हुए लोगों के साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसे वे जीवित हों, उन्हें खाना खिलाते हैं और पानी पिलाते हैं; क्या यह मूर्खतापूर्ण नहीं है? नकली अगुआ ऐसी ही मूर्खतापूर्ण बातें करते हैं।
नकली अगुआ लोगों के जीवन प्रवेश में आने वाली कठिनाइयों और समस्याओं का समाधान नहीं कर पाते
विभिन्न स्थितियों में, जब अलग-अलग लोग अलग-अलग स्थितियाँ और अभिव्यक्तियाँ प्रकट करते हैं, तो नकली अगुआ हमेशा इन खुलासों के सार को समझने में विफल रहते हैं और उनसे उत्पन्न होने वाली समस्याओं को हल नहीं कर पाते। चूँकि वे सत्य नहीं समझते, इसलिए वे गलत तरीके से वर्गीकरण करते हैं और लापरवाही से कदाचार करते हैं, और अस्थायी रूप से कमजोर या कभी-कभार नकारात्मक होने वाले लोगों को परमेश्वर को धोखा देने वाले लोग और छद्म-विश्वासी समझ लेते हैं। जबकि, सतही तौर पर कुछ खूबियाँ रखने वाले उन छद्म-विश्वासियों को जो सरल कार्य कर सकते हैं और कुछ प्रयास कर सकते हैं, समर्थन प्रदान करने का मुख्य लक्ष्य माना जाता है। ये लोग अपना कर्तव्य करने में अनिच्छा को सीधे तौर पर व्यक्त करने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं, फिर भी नकली अगुआ इसे समझने में विफल रहते हैं और उन्हें रुकने के लिए मनाने में लगे रहते हैं। नकली अगुआ मूर्खतापूर्ण काम करने के अलावा कुछ नहीं करते; बुरे लोग कलीसिया को बाधित करते हैं, पर वे इस ओर से आँखें मूँदे रहते हैं और इस समस्या पर ध्यान नहीं देते हैं। क्या यह लापरवाही से कदाचार करना नहीं है? नकली अगुआ दुस्साहसिक कदाचार कैसे करते हैं? उनमें परमेश्वर के वचनों को समझने की क्षमता का अभाव होता है और वे सत्य नहीं समझते हैं, इसलिए जब विभिन्न परिस्थितियों से सामना होता है, तो वे अपनी समझ में आने वाले सबसे सतही धर्म-सिद्धांतों का सहारा लेते हैं, बार-बार उन्हें इस तरह से लागू करते हैं जिससे केवल विघ्न-बाधाएँ पैदा होती हैं। अक्सर, वे न केवल लोगों के जीवन प्रवेश में आने वाली कठिनाइयों का समाधान करने में विफल रहते हैं और लोगों को कमजोरी से मजबूती तक समर्थन देने में विफल रहते हैं, बल्कि वे लोगों में परमेश्वर के बारे में धारणाओं और गलतफहमियों को आश्रय देने का कारण भी बनते हैं, जिससे उन्हें लगता है कि कलीसिया उनकी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए उन्हें भर्ती करने की कोशिश कर रही है, मानो परमेश्वर के घर में प्रतिभाशाली व्यक्तियों की कमी हो और उसे उपयुक्त लोग नहीं मिल पा रहे हों। यह नकली अगुआओं के काम से उत्पन्न नकारात्मक प्रभाव है। यह कैसे होता है? (नकली अगुआ सत्य को व्यापक या व्यवस्थित रूप से नहीं समझ सकते, और जब वे किन्हीं परिस्थितियों का सामना करते हैं, तो केवल विनियम लागू करते हैं।) वे सत्य को व्यापक रूप से नहीं समझ सकते, वे केवल कुछ बंधे-बँधाए शब्दों और कहावतों को याद करने की क्षमता रखते हैं। उनके पास सत्य की वास्तविक अनुभवजन्य समझ और जानकारी नहीं होती। इसीलिए अंततः जब समस्याएँ उठती हैं तो वे केवल कुछ रूखी-सूखी कहावतें, जैसे “परमेश्वर से प्रेम करो”; “ईमानदार बनो”; “परिस्थितियों का सामना करते समय आज्ञाकारी और विनम्र बनो”; “अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाओ”; “तुम्हें वफादार होना चाहिए”; “तुम्हें देह के विरुद्ध विद्रोह करना चाहिए”; “तुम्हें खुद को परमेश्वर के लिए खपाना चाहिए” आदि ही बोल सकते हैं। वे इन खोखले धर्म-सिद्धांतों, नारों और कहावतों का इस्तेमाल खुद को आकर्षक बनाने के लिए करते हैं और इन्हें दूसरों को भी सिखाते हैं, ताकि उन्हें प्रभावित किया जा सके और उन पर सकारात्मक असर डाला जा सके—लेकिन इसका कोई प्रभाव नहीं होता, और कुछ भी नहीं बदलता। इसलिए, नकली अगुआ कोई भी काम पूरा करने में असमर्थ होते हैं। चूँकि वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में आने वाली कठिनाइयों को हल करने में भी सक्षम नहीं होते, तो फिर वे कलीसिया की अगुआई करते हुए अच्छा काम कैसे कर सकते हैं?
जब लोग वास्तविक जीवन में विभिन्न कठिनाइयों का सामना करते हैं और नहीं जानते कि उनका सामना कैसे करें, न ही यह जानते हैं कि सत्य का अभ्यास कैसे करें, तो उन्हें इन मामलों के समाधान के लिए परमेश्वर के वचनों में सत्य की खोज करनी चाहिए। यदि छोटे आध्यात्मिक कद का कोई व्यक्ति नहीं जानता कि परमेश्वर के वचनों में सत्य की खोज कैसे करें, न ही वह यह जानता है कि परमेश्वर के प्रासंगिक वचनों को कैसे खोजें, तो उसे इस समस्या के हल के लिए संगति करने के लिए ऐसे लोगों की तलाश करनी चाहिए जो सत्य समझते हों, साथ ही उन्हें यह भी प्रशिक्षण लेना चाहिए कि परमेश्वर के प्रासंगिक वचन कैसे खोजें और सत्य कैसे समझें। इसका अर्थ परमेश्वर के वचनों में यह खोजना है कि सिद्धांत और परमेश्वर के अपेक्षित मानक क्या हैं, परमेश्वर इस मामले को कैसे परिभाषित करता है और इसके संबंध में वह क्या माँग करता है, और क्या किसी विशिष्ट विवरण की व्याख्या की गई है। यदि इस विषय पर परमेश्वर के वचन थोड़े सरल हैं, केवल सिद्धांतों की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं और विस्तृत उदाहरण नहीं देते, तो तुम्हें चिंतन करना सीखना चाहिए। यदि तुम चिंतन करके इसे समझ नहीं पाते तो अधिक लोगों के साथ संगति करो, सभाओं में संगति करो, और अपने कर्तव्य को करने की प्रक्रिया में इधर-उधर टटोलो और खोजो, प्रबोधन और रोशनी प्राप्त करो, और इस प्रकार धीरे-धीरे समझो कि सामने मौजूद समस्या का सार क्या है। अंत में, इन कठिनाइयों के समाधान पर पहुँचने के लिए परमेश्वर के वचनों के सिद्धांतों के अनुसार आगे बढ़ो। उदाहरण के लिए, कुछ लोग आलसी होते हैं और कभी भी अपना कर्तव्य करने की शक्ति नहीं जुटा पाते; लेकिन खाने-पीने और मौज-मस्ती का जिक्र आते ही वे खुश हो जाते हैं और जोश से भर जाते हैं, मानो अचानक जी उठे हों। नकली अगुआ इस तरह की समस्याओं को कैसे सुलझाते हैं? उनके पास भी एक तरीका है : इन लोगों को अधिक कार्य सौंपना, ताकि उन्हें आलस्य दिखाने का कोई समय न मिले। क्या इस दृष्टिकोण से समस्या हल हो सकती है? कुछ लोग उन्हें दिए गए थोड़े से काम को भी करने से हिचकिचाते हैं; वे बस मुफ्तखोरी करना चाहते हैं, सोचते है कि कोई भी काम न करना ही सबसे बढ़िया है! बेहद आलसी लोगों के साथ क्या समस्या है? सकारात्मक चीजों को पसंद करने या न करने का संबंध उनके प्रकृति सार से, और साथ ही उनकी प्राथमिकताओं और लक्ष्यों से भी होता है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनमें थोड़ी काबिलियत होती है; अगर वे साधारण अनुयायी हैं जिन पर कोई बोझ नहीं डाला जाता है, तो उनमें अपना काम करने की ऊर्जा नहीं होती और वे उसमें कोई रुचि नहीं लेते। परंतु, अगर उनकी क्षमता और उनके द्वारा किए जा सकने वाले कर्तव्य के अनुसार उन्हें पर्यवेक्षक होने का भार दिया जाए, कुछ पद दिया जाए और कुछ दायित्व उठाने दिया जाए, तो काम में उनकी रुचि बढ़ जाती है। कभी-कभी, जब वे अपने काम के प्रति गैर-जिम्मेदार हो जाते हैं या आलसी हो जाते हैं, तो उनकी कटाई-छँटाई की जा सकती है; अन्य अवसरों पर उन्हें कुछ प्रोत्साहन दिया जा सकता है और उनकी प्रशंसा की जा सकती है। इस प्रकार, ये लोग, जो प्रतिष्ठा की परवाह करते हैं, रुतबे का शौक रखते हैं, और चापलूसी में आनंद पाते हैं, अपने कर्तव्य को करने की ऊर्जा पा लेते हैं। जब वे ढिलाई बरतने के बारे में सोचते हैं, तो वे चिंतन करते हैं, “अपने रुतबे और अपने द्वारा उठाए जाने वाले बोझ के लिए मुझे अच्छा प्रदर्शन करना चाहिए।” इस तरह, ऐसे लोगों का आलस्य आंशिक रूप से हल किया जा सकता है। जब नकली अगुआओं को मानवता से संबंधित इस तरह की समस्याओं या कर्तव्य करने की प्रक्रिया में उत्पन्न होने वाली जीवन प्रवेश से जुड़ी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, तो उन्हें इनका समाधान करना बहुत कठिन और चुनौतीपूर्ण लगता है। वे नहीं जानते कि इन स्थितियों और समस्याओं को कैसे हल किया जाए, या किसी लक्षित समाधान के लिए परमेश्वर के किन वचनों का उपयोग किया जाए। ज्यादातर मौकों पर उनका रवैया लोगों को अच्छे तरीके से काम करने के लिए राजी करना या प्रेरित करना होता है; अगर समझाने और प्रेरित करने से काम नहीं बनता, तो वे गुस्सा करने और उनकी काट-छाँट करने का सहारा लेते हैं। अगर उनकी काट-छाँट से काम नहीं बनता, तो वे चेतावनी के तौर पर परमेश्वर के कठोर वचनों के कुछ अंश पढ़ते हैं, जिससे लोगों को पता चले कि उन्हें सुधर जाना चाहिए। अगर इसका भी कोई असर नहीं होता, तो उनका आखिरी उपाय किसी ऐसे व्यक्ति की व्यवस्था करना होता है जो उन पर नजर रखे और उनकी व्यवस्था करे। उनके पास केवल यही कुछ तकनीकें होती हैं, और अगर ये काम नहीं आतीं, तो वे विकल्पहीन हो जाते हैं।
संक्षेप में कहें तो नकली अगुआ काम में चाहे जिस भी समस्या का सामना करते हों, वे समस्या के सार को समझने में असमर्थ होते हैं, विभिन्न लोगों की वास्तविक स्थितियों और पृष्ठभूमि को समझने में उन्हें संघर्ष करना पड़ता है, और इससे भी कम वे यह समझ पाते हैं कि समस्या की जड़ कहाँ है या इसे सबसे उचित तरीके से हल करने के लिए कहाँ से शुरुआत की जाए। समस्याओं से निपटने के इन सिद्धांतों और तरीकों का उनमें अभाव होता है, इसलिए नकली अगुआओं का काम विभिन्न वास्तविक समस्याओं को हल नहीं कर सकता है। वे केवल कुछ धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करने, कुछ नारे लगाने, कुछ विनियमों का पालन करने और औपचारिकताएँ निभाने में सक्षम होते हैं। ऐसे लोग कलीसिया के अगुआई के कार्य करने में सक्षम कैसे हो सकते हैं? वे कितना भी प्रशिक्षण ले लें या कितने भी साल विश्वास करें, वे कलीसिया के अगुआई के कार्य करने में सक्षम नहीं होंगे। क्या तुम लोगों ने ऐसा कोई उदाहरण देखा है? (हमारी कलीसिया में मेजबानी का काम करने वाला एक व्यक्ति हमेशा आलोचनात्मक और आक्रामक टिप्पणियाँ करता था, जिससे हमारा कर्तव्य-पालन प्रभावित होता था और विघ्न-बाधा पैदा होती थी। जब हमने अगुआ को इसकी सूचना दी, तो उसने बिना वास्तविक समस्या को हल किए केवल इस बात पर जोर दिया कि हम खुद को जानें और परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित वातावरण के प्रति समर्पण करें, जिससे कलीसिया का कार्य प्रभावित हुआ। समस्या का समाधान अगुआई में बदलाव के बाद ही हुआ।) यह नकली अगुआओं की एक विशिष्ट अभिव्यक्ति है। नकली अगुआ का यह एक सामान्य प्रकार है : वे जो किसी दुष्ट व्यक्ति या मसीह-विरोधी से सामना होने पर उसे पहचान नहीं पाते हैं और दूसरों को धैर्य और सहनशक्ति रखने, अनुभव से सीखने और दुष्ट व्यक्ति या मसीह-विरोधी की आज्ञा मानने के लिए कहते हैं। वे मसीह-विरोधी या बुरे लोगों को नहीं पहचानते, न ही वे उनके बारे में कुछ करते हैं। मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों के तौर-तरीकों के बारे में इतनी ज्यादा संगतियों के बाद सत्य समझने वाले हर व्यक्ति को उनमें से कुछ लोगों को पहचानने में सक्षम होना चाहिए। लेकिन क्या नकली अगुआ के रूप में ऐसे लोग यह देखने में सक्षम हैं कि वह संगति मसीह-विरोधियों के व्यवहार से कैसे मेल खाती है? क्या वे मसीह-विरोधियों को पहचान सकते हैं? (नहीं।) और, मसीह-विरोधियों को पहचानने में उनकी असमर्थता का क्या परिणाम होता है? संभव है कि कोई मसीह-विरोधी उनसे सत्ता छीन ले, वे उस मसीह-विरोधी को कलीसिया का नियंत्रण करने दें और अंत में, उस मसीह-विरोधी द्वारा स्वतंत्र राज्य स्थापित करने पर वे कुछ न करें। यदि वे मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते, तो उनके पास मसीह-विरोधी को अपना शत्रु मानने और उसे उजागर करने, पहचानने और अस्वीकार करने का कोई तरीका नहीं होगा; यदि वे मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते, तो पूरी संभावना है कि वे मसीह-विरोधी को धैर्य और सहनशीलता के साथ भाई या बहन मानते रहें, जिसके परिणामस्वरूप मसीह-विरोधी कलीसिया में सत्ता में आ जाता है और उसका नियंत्रण करता है। इसलिए, मसीह-विरोधियों को न पहचान पाने के परिणाम अनुमान से भी ज्यादा गंभीर होते हैं। नकली अगुआ सत्य नहीं समझते; वे विभिन्न प्रकार के लोगों के सार को नहीं समझ सकते। वे केवल शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करते हैं और सभी के लिए प्रेम के साथ विनियम लागू करते हैं, सभी को पश्चात्ताप करने देते हैं और हर किसी को, चाहे वह कोई भी हो, एक मौका देते हैं। क्या यह धार्मिक पादरियों का तरीका नहीं है? क्या यह फरीसियों का तरीका नहीं है? नकली अगुआ, जब मसीह-विरोधियों का सामना करते हैं, तो आमतौर पर समझौता करना और उन्हें निकलने देने का विकल्प चुनते हैं, यहाँ तक कि वे यह दावा करने का बहाना या कारण भी ढूँढ़ लेते हैं कि वे दूसरों के साथ प्रेम से पेश आ रहे हैं। यह जानते हुए भी कि कोई व्यक्ति समस्या पैदा करने वाला और मसीह-विरोधी है, वे न तो उसका सामना करने की हिम्मत करते हैं और न ही उसे पहचानने और उजागर करने का साहस रखते हैं; यही वह काम है जो नकली अगुआ करते हैं। यहाँ तक कि जब कुछ भाई-बहन समझ चुके होते हैं कि कोई व्यक्ति दुष्ट या मसीह-विरोधी है, तब भी नकली अगुआ कहेंगे, “हम हल्के ढंग से लोगों के बारे में राय नहीं बना सकते या उनकी निंदा नहीं कर सकते। वह व्यक्ति खुद को खपाने के लिए इतना उत्साही है और कीमत चुकाने का बहुत इच्छुक है—वह मसीह-विरोधी या दुष्ट व्यक्ति नहीं है। सिर्फ इसलिए कोई दुष्ट नहीं हो जाता कि वह कुछ कठोर शब्द कहता है, है ना?” नकली अगुआ लोगों के सार को नहीं देख सकते, न ही वे मसीह-विरोधियों के कार्यों के परिणामों को देख सकते हैं, फिर भी वे मसीह-विरोधियों के प्रति प्रेम, सहिष्णुता और धैर्य दिखाते हैं, यहाँ तक कि मसीह-विरोधियों को आत्मचिंतन करने, खुद को जानने और सच्चा पश्चात्ताप करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। मसीह-विरोधी खुद को जानने की कितनी भी कोशिश करें, क्या उनकी प्रकृति बदल सकती है? क्या वे सच में खुद को जान सकते हैं? बिल्कुल नहीं। यद्यपि मसीह-विरोधी कुछ चीजों को त्यागते और सतही तौर पर खुद को थोड़ा खपाते हुए दिखाई दे सकते हैं, लेकिन अपने अंदर वे महत्वाकांक्षाएँ और बड़ी योजनाएँ रखते हैं। नकली अगुआ ऐसे लोगों को मसीह-विरोधियों के रूप में नहीं देख पाते, क्योंकि वे सत्य नहीं समझते, न ही वे विभिन्न प्रकार के लोगों को पहचान सकते हैं। वे विभिन्न लोगों के प्रकृति सार की असलियत नहीं देख सकते हैं, न ही वे विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ व्यवहार करना या उन्हें संभालना जानते हैं। जब वे दूसरों को मसीह-विरोधियों को उजागर करते हुए देखते हैं, तब भी वे इसमें शामिल होने की हिम्मत नहीं करते, और वे इस डर से मसीह-विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई करने से और अधिक डरते हैं कि अगर मसीह-विरोधियों को अपमानित किया गया तो वे बदला लेंगे। मसीह-विरोधियों के प्रति उनका रवैया धर्म-सिद्धांतों और उपदेशों के प्रचार तक ही सीमित होता है। बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को पहचानने में असमर्थ होने के अलावा, नकली अगुआ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच मौजूद विभिन्न समस्याओं को भी हल नहीं कर सकते। यह साबित करता है कि नकली अगुआओं को सत्य की बिल्कुल भी समझ नहीं होती; वे वास्तविक समस्याओं को हल करने में असमर्थ होते हैं और संभवतः परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य वास्तविकता में नहीं ले जा सकते। नकली अगुआ चाहे जो कुछ भी कहें या करें, तुम उनसे पवित्र आत्मा के ज्ञान से प्रेरित प्रकाश के किसी भी शब्द को नहीं सुनोगे, और यह तो बिलकुल भी नहीं देखोगे कि उनके पास कोई सत्य वास्तविकता है। इसलिए, नकली अगुआ लोगों के जीवन प्रवेश के मामले में कोई लाभ या मदद नहीं दे पाते हैं; वे जो थोड़ा बहुत काम करते हैं, उसमें शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करना, नारे लगाना और औपचारिकताएँ निभाना शामिल है। वे उस भूमिका को निभाने में पूरी तरह विफल होते हैं जो एक अगुआ को निभानी चाहिए।
आज की संगति में बस इतना ही। अलविदा!
9 जनवरी 2021
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