अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (1) खंड दो
मद एक : परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने और समझने, और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करने में लोगों की अगुआई करो
नकली अगुआओं में परमेश्वर के वचनों को समझने की काबिलियत और क्षमता नहीं होती
नकली अगुआ कौन होता है? निश्चित रूप से, कोई ऐसा व्यक्ति जो वास्तविक कार्य न कर सके, जो एक अगुआ के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन न करता हो। ऐसे लोग कोई वास्तविक या महत्वपूर्ण कार्य नहीं करते; वे केवल कुछ सामान्य मामलों और सतही कार्यों को देखते हैं, जिनका जीवन प्रवेश या सत्य से कोई लेना-देना नहीं होता। इस कार्य को वे चाहे जितना कर लें, लेकिन इसे करने का कोई महत्व नहीं होता। इसलिए ऐसे अगुआओं को नकली करार दिया जाता है। तो वास्तव में नकली अगुआ की पहचान कैसे करें? आओ, अब हम इसका गहन-विश्लेषण शुरू करते हैं। पहले तो यह स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि एक अगुआ या कार्यकर्ता की पहली जिम्मेदारी यह है कि परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने में वह लोगों की अगुवाई करे और सत्य पर इस तरह से संगति करे कि लोग उसे समझकर सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकें। किसी भी अगुआ के नकली या असली होने की जाँच की यह सबसे महत्वपूर्ण कसौटी है। देखो कि क्या वे परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने और सत्य समझने में लोगों की अगुवाई कर सकते हैं और क्या वे समस्याएँ हल करने के लिए सत्य का उपयोग कर सकते हैं। यही एकमात्र कसौटी है जिससे जाँचा जा सकता है कि किसी अगुआ या कार्यकर्ता में परमेश्वर के वचनों को समझने की क्या काबिलियत और योग्यता है और क्या वे सत्य वास्तविकता में प्रवेश के लिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुवाई कर सकते हैं। यदि कोई अगुआ या कार्यकर्ता परमेश्वर के वचनों और सत्य को शुद्धता से समझने में सक्षम है, तो उन्हें परमेश्वर में आस्था के बारे में लोगों की धारणाओं और कल्पनाओं का परमेश्वर के वचनों के अनुसार समाधान करने और लोगों को परमेश्वर के कार्य की व्यावहारिकता समझने में मदद करनी चाहिए। उन्हें परमेश्वर के वचनों के अनुसार उसके चुने हुए लोगों के सामने आने वाली वास्तविक कठिनाइयों को भी हल करना चाहिए, विशेष रूप से जब उनमें अपनी आस्था के बारे में गलत विचार हों या उनमें अपना कर्तव्य करने के बारे में गलतफहमियाँ हों। उन्हें उन समस्याओं के हल के लिए भी परमेश्वर के वचनों का इस्तेमाल करना चाहिए जब लोग विभिन्न परीक्षणों और क्लेशों का सामना कर रहे हों और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य समझने, उसका अभ्यास करने और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश कराने में सक्षम होना चाहिए। साथ ही, उन्हें परमेश्वर के वचनों में प्रकट भ्रष्ट अवस्थाओं के आधार पर लोगों के विभिन्न भ्रष्ट स्वभावों का विश्लेषण करना चाहिए, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग देख सकें कि उनमें से कौन-से वचन उन पर लागू होते हैं और वे अपने बारे में ज्ञान प्राप्त कर शैतान से घृणा करें और उसके विरुद्ध विद्रोह करें ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग अपनी गवाही में अडिग रह सकें और शैतान को हरा सकें, और सभी प्रकार के परीक्षणों के बीच परमेश्वर को महिमा प्रदान कर सकें। यह वह कार्य है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए। यह कलीसिया का सबसे बुनियादी, महत्वपूर्ण और आवश्यक कार्य है। यदि अगुआओं के रूप में सेवा करने वाले लोगों में परमेश्वर के वचनों को समझने की काबिलियत और सत्य समझने की क्षमता है, तो वे न केवल खुद परमेश्वर के वचनों को समझ पाएँगे और उनकी वास्तविकता में प्रवेश कर पाएँगे, बल्कि वे परमेश्वर के वचनों की समझ और उनकी वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए जिन लोगों को राह दिखा रहे हैं, उनका मार्गदर्शन और अगुआई कर उनकी सहायता कर पाएँगे। लेकिन वास्तव में परमेश्वर के वचनों और सत्य को समझने की क्षमता नकली अगुआओं में नहीं होती। वे परमेश्वर के वचनों को नहीं समझते, वे उन भ्रष्ट स्वभावों को नहीं जानते जिन्हें लोग उन अलग-अलग परिस्थितियों में प्रकट करते हैं जो परमेश्वर के वचनों में उजागर की गई हैं या जो परमेश्वर के विरुद्ध प्रतिरोध, शिकायत और विश्वासघात को जन्म देती हैं, इत्यादि। नकली अगुआ आत्मचिंतन करने या परमेश्वर के वचनों को स्वयं से जोड़ पाने में समर्थ नहीं होते, वे परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ से केवल थोड़े से धर्म-सिद्धांत और कुछ विनियमों को समझते हैं। जब वे दूसरों के साथ संगति करते हैं, तो केवल परमेश्वर के कुछ वचनों को सुनाते हैं, फिर उसका शाब्दिक अर्थ समझाते हैं। ऐसा करके वे सोचते हैं कि वे सत्य पर संगति और वास्तविक कार्य कर रहे हैं। यदि कोई उनकी तरह परमेश्वर के वचनों को पढ़ और सुना सके तो वे सोचेंगे कि ऐसा कर सकने वाले लोग सत्य से प्रेम करते हैं और उसे समझते हैं। नकली अगुआ परमेश्वर के वचनों का केवल शाब्दिक अर्थ समझते हैं; उनमें परमेश्वर के वचनों के सत्य की आधारभूत समझ नहीं होती, इसलिए वे उनसे संबंधित अपने अनुभवात्मक ज्ञान के बारे में बात नहीं कर पाते। नकली अगुआओं में परमेश्वर के वचनों को समझने की योग्यता नहीं होती; वे केवल उनका सतही अर्थ ही समझते हैं, लेकिन विश्वास करते हैं कि यही परमेश्वर के वचनों और सत्य को समझना है। अपने दैनिक जीवन में, वे दूसरों को सलाह देने और उनकी सहायता करने के लिए हमेशा परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ ही समझाते हैं, और मानते हैं कि यह करना ही काम करना है, और वे लोगों को परमेश्वर के वचन खाने और पीने और उनकी वास्तविकता में प्रवेश करने की अगुआई कर रहे हैं। सच्चाई यह है कि यद्यपि नकली अगुआ इस तरह अक्सर दूसरों के साथ परमेश्वर के वचनों के बारे में संगति करते हैं, लेकिन वे थोड़ी-सी भी वास्तविक समस्या का समाधान नहीं कर पाते और परमेश्वर के चुने हुए लोग उसके वचनों का अभ्यास या अनुभव करने में अक्षम रह जाते हैं। वे चाहे जितनी भी सभाओं में उपस्थिति दर्ज करा लें या परमेश्वर के वचनों को खा-पी लें, फिर भी वे सत्य को नहीं समझते, न ही उनके पास जीवन प्रवेश होता है, और उनमें से कोई भी अपने अनुभवात्मक ज्ञान के बारे में बात करने योग्य नहीं होता। यदि कलीसिया में गड़बड़ी पैदा करने वाले दुष्ट और छद्म-विश्वासी लोग हों, तो भी कोई उन्हें पहचान नहीं पाता। नकली अगुआ जब किसी छद्म-विश्वासी या दुष्ट व्यक्ति को बाधा उत्पन्न करते हुए देखता है, तो वह विवेक का प्रयोग नहीं करता, बल्कि वह उनके प्रति प्रेम और प्रोत्साहन व्यक्त करते हुए औरों को भी उनके प्रति सहिष्णु और धैर्यवान होने को कहता है, और इन लोगों को खुश करता है, जबकि वे कलीसिया में गडबड़ियाँ पैदा करते रहते हैं। इससे कलीसिया का हर कार्य एकदम निष्फल हो जाता है। नकली अगुआ के वास्तविक कार्य न करने का यही परिणाम होता है। नकली अगुआ समस्याओं को हल करने के लिए सत्य का उपयोग नहीं कर सकते, इससे साफ जाहिर होता है कि उनमें सत्य वास्तविकता नहीं होती। जब वे बोलते हैं, तो उनके मुख से केवल परमेश्वर के वचन और धर्म-सिद्धांत निकलते हैं और वे लोगों से जिन चीजों का अभ्यास करने को कहते हैं, वे केवल धर्म-सिद्धांत और विनियम होते हैं। उदाहरण के लिए, जब किसी में परमेश्वर के प्रति कोई गलतफहमी पैदा हो जाती है, तो नकली अगुआ उससे कहेंगे कि, “परमेश्वर के वचनों में तो यह सब पहले से ही शामिल है : परमेश्वर जो कुछ भी करता है, वह इंसान का उद्धार होता है, उसका प्रेम होता है। देखो उसके वचन कितने साफ, कितने स्पष्ट हैं। फिर भी उसके बारे में तुम्हारी समझ गलत कैसे हो गई?” नकली अगुआ लोगों को इस प्रकार के निर्देश देते हैं। वे लोगों को प्रोत्साहित करने, उन्हें विवश करने और उनसे विनियमों का पालन कराने के लिए शब्द और धर्म-सिद्धांत बघारते हैं। इसका रत्ती भर फायदा नहीं होता, और इससे किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। नकली अगुआ केवल वचन और धर्म-सिद्धांत बोल पाते हैं जिससे उन लोगों को लगता है कि धर्म-सिद्धांत बोल लेने का मतलब है कि वे सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश कर गए हैं। फिर भी, जब उन पर कोई मुसीबत आती है तो उन्हें नहीं पता होता कि कैसे अभ्यास करें, उनके पास कोई रास्ता नहीं होता और जिन वचनों और धर्म-सिद्धांतों को वे समझते हैं, वे सब किनारे धरे रह जाते हैं। यह क्या दिखाता है? यह दिखाता है कि सिद्धांत समझ लेना जरा भी उपयोगी या मूल्यवान नहीं होता। नकली अगुआओं को मात्र धर्म-सिद्धांत की समझ होती है। वे समस्याएँ हल करने के लिए सत्य पर संगति नहीं कर सकते; उनके कार्यों के कोई सिद्धांत नहीं होते और अपने जीवन में वे सिर्फ कुछ उन विनियमों का पालन करते हैं जिन्हें वे अच्छा समझते हैं। ऐसे लोगों में सत्य वास्तविकता नहीं होती। इसीलिए, जब नकली अगुआ परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने में लोगों की अगुआई करते हैं, तो उसका कोई सच्चा प्रभाव नहीं होता। वे केवल लोगों को परमेश्वर के वचनों का शाब्दिक अर्थ समझा पाते हैं, उन्हें परमेश्वर के वचनों से प्रबोधन पाने में मदद नहीं कर पाते या यह नहीं समझा पाते कि उनके अंदर किस प्रकार का भ्रष्ट स्वभाव है। नकली अगुआ नहीं समझते कि लोगों की स्थितियाँ कैसी हैं या किसी स्थिति-विशेष में लोग कैसा स्वभाव सार प्रकट करेंगे, या इन गलत स्थितियों और भ्रष्ट स्वभावों को दूर करने के लिए परमेश्वर के कौन से वचनों का उपयोग किया जाना चाहिए, परमेश्वर के वचनों में उनके बारे में क्या कहा गया है, परमेश्वर के वचनों की अपेक्षाएँ और सिद्धांत क्या हैं या उनमें क्या सत्य निहित है। नकली अगुआ इन सत्य वास्तविकताओं के बारे में कुछ नहीं समझते। वे लोगों को बस यह कहते हुए सलाह देते हैं कि “परमेश्वर के वचनों को और अधिक खाओ-पियो। उनमें सत्य है। जब तुम उसके और अधिक वचन पढ़ोगे तो तुम समझ जाओगे। यदि उनमें से कुछ को न समझ पाओ, तो बस और अधिक प्रार्थना, खोज और उन पर विचार करो।” वे लोगों को इसी तरह की सलाह देते हैं और ऐसा करते हुए वे उनकी समस्याओं का समाधान करने में अक्षम होते हैं। समस्या लेकर उनके पास हल की खोज में चाहे जो आए, वे बस वही एक बात कहते हैं। बाद में वह व्यक्ति खुद को नहीं जान पाता और न ही उसमें सत्य की समझ पैदा हो पाती है। वे खुद ही अपनी वास्तविक समस्या का समाधान नहीं कर पाते या यह नहीं समझ पाते कि उन्हें परमेश्वर के वचनों का अभ्यास कैसे करना चाहिए, वे बस परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ से और विनियमों से ही चिपके रहते हैं। जब परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने के सत्य सिद्धांतों की बात आती है या यह बात आती है कि उन्हें किन वास्तविकताओं में प्रवेश करना चाहिए, तो वे इन बातों को कभी नहीं समझ पाते। नकली अगुआओं के काम का यही नतीजा होता है : एक भी असल परिणाम नहीं आ पाता।
परमेश्वर चाहता है कि लोग संतों जैसे सलीके से, सादे और शालीन कपड़े पहनें। “संतों जैसे सलीके से, सादे और शालीन कपड़े पहनें”—कुल नौ शब्द, लेकिन क्या तुम लोग समझते हो कि उनका क्या मतलब है? (हम सभी जानते हैं कि धर्म-सैद्धांतिक रूप से, परमेश्वर चाहता है कि लोग संतों जैसे सलीके से, सादे और शालीन कपड़े पहनें, लेकिन जब हम खुद को तैयार करते हैं तो हम नहीं जानते कि सादगी और शालीनता का अनुमान कैसे करें।) इसका संबंध सत्य समझने या न समझने की समस्या से है। यदि तुम इसका आकलन नहीं कर सकते तो साबित होता है कि तुम परमेश्वर के वचन नहीं समझते। तो, परमेश्वर के वचन समझने का क्या मतलब है? इसका मतलब है सादगी और शालीनता के उन मानदंडों को समझना जिनके बारे में परमेश्वर बात करता है या, अधिक विशेष रूप से, कपड़ों के रंग और शैली को समझना। कौन-से रंग और शैलियाँ सादी और शालीन हैं? सत्य की विस्तृत समझ रखने वाले लोग जानते हैं कि सादगी और शालीनता क्या है, और विचित्रता क्या है। यद्यपि कुछ कपड़े सादे और शालीन होते हैं, लेकिन उनकी शैली पुराने जमाने की होती है। परमेश्वर को पुराने जमाने की चीजें पसंद नहीं हैं, और वह लोगों से अतीत की शैलियों की नकल करने या पाखंडी फरीसी बनने के लिए नहीं कह रहा है। “सादा और शालीन” से परमेश्वर का मतलब है एक सामान्य मानवीय समानता रखना, कुलीन, सुरुचिपूर्ण और उच्चस्तरीय दिखना। परमेश्वर लोगों से विचित्र कपड़े पहनने या किसी कंगाल की तरह फटे-पुराने कपड़े पहनने के लिए नहीं कहता है, बल्कि वह लोगों से संतों जैसे सलीके से सादे और शालीन कपड़े पहनने के लिए कहता है। सामान्य लोग ऐसा समझते हैं। लेकिन यह सुनने के बाद, एक नकली अगुआ ने भड़कते हुए कहा : “परमेश्वर के वचन हमें यह बताते हैं कि हमें कैसे कपड़े पहनने चाहिए। ‘संतों जैसे सलीके से, सादे और शालीन कपड़े पहनें’—अगर हम इन नौ शब्दों का पालन करते हैं तो हम परमेश्वर का महिमामंडन करते हैं, उसे शर्मिंदा नहीं करते, और अविश्वासियों के बीच उच्चस्तरीय सम्मान पाते हैं। तो, सादा और शालीन क्या है? यह है कि तुम्हें मानव के समान बोलना और कार्य करना चाहिए, और संतों जैसा सलीका अपनाना चाहिए। संतों की बात करें तो, हम आम तौर पर प्राचीन संतों को संदर्भित करते हैं। अगर हम संतों जैसा सलीका अपनाना चाहते हैं तो हमें प्राचीन संतों की शैली की नकल करनी चाहिए, लेकिन अगर तुम प्राचीन कपड़े पहनकर घूमोगे तो लोग तुम्हें पागल समझेंगे। यह परमेश्वर का सम्मान करने के सिद्धांत के अनुरूप नहीं है, लेकिन हाल के समय में संतों ने जिस तरह के कपड़े पहने थे, उनके कुछ साक्ष्य होने चाहिए जिन्हें हम खोज सकें। कई दशक पहले सामाजिक परिवेश बेहतर था। लोग सरल थे, और अधिक रूढ़िवादी तरीके और उचित ढंग से कपड़े पहनते थे। यदि तुम इस मानक के अनुसार कपड़े पहनते हो तो तुम सादे और शालीन होगे, और संतों जैसे सलीके वाले होगे। यह अभ्यास का मार्ग है।” यह पता लगने पर कि 1970 और 1980 के दशक में लोग सफेद कमीज और नीली पतलून पहनते थे, उसने भाई-बहनों से कहा, “मैंने परमेश्वर के वचनों में प्रकाश देखा है। 70 और 80 के दशक में लोग ऐसे कपड़े पहनते थे जो काफी उचित और सीधे-सादे थे। उन्हें गरिमापूर्ण नहीं कहा जा सकता था, लेकिन ऐसा लगता है कि वे परमेश्वर के वचन की अपेक्षाओं के अनुरूप हैं, इसलिए हम इस मानक के अनुसार कपड़े पहनेंगे।” अगुआ ने ऐसे कपड़े पहनने की शुरुआत की, और सभी को लगा कि यह अच्छा, काफी बढ़िया और सरल लग रहा है। अगुआ ने कहा : “परमेश्वर ने कहा कि विचित्र कपड़े मत पहनो। सबसे पहले, कमीज की घुंडियाँ गर्दन तक होनी चाहिए, और कलाइयों की सभी घुंडियाँ भी बंद होनी चाहिए। कलाई खुली नहीं होनी चाहिए, कमीज पतलून में अंदर की ओर खोंसा गया होना चाहिए, और सब कुछ कसकर ढका होना चाहिए, छाती या पीठ खुली न रहे। देखो, यह कितना सादा और बढ़िया है! क्या यह सादा और शालीन नहीं है, और क्या यह परमेश्वर की अपेक्षा के अनुरूप संतों जैसे सलीके का नहीं है?” उस समय पहनी पोशाक में अगुआ को विशेष आनंद आया, और साथ ही उसने दूसरों से भी अपेक्षा की, “तुम लोगों के कपड़े बहुत आधुनिक, बहुत फैशनेबल हैं। वे परमेश्वर को शर्मिंदा करते हैं, और वह उन्हें पसंद नहीं करता है। जल्दी करो और जो मैं पहन रहा हूँ उसे पहनो, और बिल्कुल मेरे जैसे बनो!” विवेकहीन लोगों ने भी ऐसा ही करते हुए तथाकथित सादी और शालीन पोशाक ढूंढ़ी जो संतों जैसे सलीके के अनुरूप थी, और अधिकांश लोगों ने तो इसे अच्छा भी माना। लेकिन कुछ लोग अपने हृदय में पुराने जमाने की इन चीजों से घृणा करते थे, और महसूस करते थे कि ऐसा करना अनुचित था, और परमेश्वर के वचनों की यह समझ विकृत थी। अगुआ की बात सुनना सही है या गलत, स्पष्ट रूप से यह न कह पाने और निष्कर्ष निकालने की हिम्मत न होने के बावजूद, इन लोगों ने आँख मुँदकर भीड़ के पीछे न चलने की वकालत की। उनका मानना था कि अगुआ ने जो कहा वह पूरी तरह से ठीक नहीं था, और उन्होंने उसका पालन नहीं किया। केवल वे मूर्ख, जिनमें परमेश्वर के वचन समझने की क्षमता नहीं है, जिन्होंने स्वयं परमेश्वर के वचन नहीं पढ़े, नकली अगुआ की कही हर बात पर चलते रहे, और जो कुछ भी करने के लिए कहा गया, वही करते रहे। उन्होंने नकली अगुआ का अनुसरण किया और उसकी नकल की, बाहर जाते समय उसी तरह के कपड़े पहने। जब भी वे बाहर भीड़ के बीच जाते, तो वे काफी प्रसन्न होते, और सोचते कि “हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और मेरे पहनावे में संतों जैसा सलीका है। तुम लोग क्या पहने हुए हो? कितना भड़कीला, कितना आधुनिक, कितना दुष्टतापूर्ण! हमें देखो, हमारा कोई अंग नहीं दिखता!” उन्हें लगता था कि वे अद्भुत हैं। नकली अगुआ न केवल यह समझने में विफल रहा कि यह परमेश्वर के वचनों की गलत व्याख्या है, बल्कि वास्तव में उसने सोचा कि वह परमेश्वर के वचनों का अभ्यास कर रहा है और उनकी वास्तविकता में प्रवेश कर रहा है। नकली अगुआ यही करते हैं। क्योंकि लोगों के लिए परमेश्वर की अपेक्षाएँ समझने में सबसे सरल और आसान होने के बावजूद, नकली अगुआ सचमुच नहीं समझ सकते कि परमेश्वर के वचन किस बारे में हैं और उनके अपेक्षित मानक या सिद्धांत क्या हैं। तब क्या वे समझ सकते हैं कि परमेश्वर मानवजाति के भ्रष्ट स्वभाव या सभी प्रकार की मानवीय स्थितियों के बारे में क्या कहता है? क्या वे ठीक से जान सकते हैं कि यहाँ सत्य क्या है? बिल्कुल नहीं।
नकली अगुआओं के पास परमेश्वर के वचनों को समझने की क्षमता नहीं होती; वे परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ से केवल यह जानते हैं कि परमेश्वर ने क्या कहा है, लेकिन यह नहीं समझते हैं कि परमेश्वर के वचन कौन-से सत्य व्यक्त करते हैं, परमेश्वर लोगों से क्या अपेक्षा करता है, या लोगों को कौन-से सत्य सिद्धांतों को समझना चाहिए। इसलिए, जब वे परमेश्वर के वचनों के बारे में संगति करते हैं, तो वे बस उनकी कुछ शाब्दिक व्याख्या करते हैं और लोगों को कुछ विनियम, पालन करने के कुछ नियम बताते हैं और इनका उपयोग यह साबित करने के लिए करते हैं कि वे भी परमेश्वर के वचनों को समझते हैं और उन्होंने भी कुछ कार्य किया है। कुछ नकली अगुआ यह भी सोचते हैं कि परमेश्वर के वचन तो पहले से ही स्पष्ट हैं, बस इतना है कि लोग उन्हें खाने-पीने या उन्हें ग्रहण करने का प्रयास करने में हमेशा असफल रहते हैं। यह देखकर कि हर किसी के हाथ में परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें हैं, वे परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने में लोगों की अगुआई करने को अनावश्यक समझते हैं। इसलिए, जब सभाओं के दौरान या अपने कर्तव्य करते समय उनके सामने समस्याएँ आती हैं, तो वे लोगों को केवल परमेश्वर के वचनों के कुछ चुनिंदा अंश भेजते हैं और उनसे कुछ ऐसी बातें कहते हैं, “परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ो”; “परमेश्वर के वचनों का वह अंश पढ़ो”; या “इस पहलू के बारे में परमेश्वर के वचन ऐसा कहते हैं, और उस पहलू के बारे में वैसा कहते हैं।” वे लोगों को परमेश्वर के वचनों के केवल चयनित अंश भेजते हैं, लोगों को परमेश्वर के वचन पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने की प्रेरणा देने वाले तरीकों का उपयोग करते हैं, और मानते हैं कि परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने में लोगों की अगुआई करने का यही तरीका है और वे अगुआ की जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं। इन वचनों को देखने पर लोग कहते हैं, “मैंने भी परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ा है; क्या तुम्हारा मेरे लिए इन वचनों को इकट्ठा करना अनावश्यक नहीं है?” परंतु, नकली अगुआ सोचते हैं, “मैं अगर इन वचनों को तुम्हें न भेजूँ तो तुम यह भी नहीं खोज पाओगे कि ये वचन किस अध्याय में हैं या किस पृष्ठ पर हैं। तुम यह भी नहीं जानते कि परमेश्वर ने ये वचन किस संदर्भ में कहे थे। अगुआ के रूप में मुझे यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि मैं तुम्हें कभी भी, कहीं भी परमेश्वर के वचन भेजूँ।” प्रेम की भावना से ओतप्रोत कुछ नकली अगुआ, किसी-किसी को एक दिन में परमेश्वर के वचनों के 10 से 20 अंश भेज देते हैं ताकि वे अपने कार्य के प्रति निष्ठा और लोगों को परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में ले जाने के अपने दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन कर सकें। वे परमेश्वर के ये वचन तो लोगों को भेजते हैं, लेकिन क्या लोगों की समस्याएँ हल होती हैं? क्या वे उस भूमिका को निभाते हैं जो किसी अगुआ को निभानी चाहिए? अक्सर, वे इस भूमिका को नहीं निभाते क्योंकि अगर लोग इन वचनों को अपने आप समझ पाते तो उन्हें अगुआ की जरूरत नहीं होती। नकली अगुआओं द्वारा भेजे गए परमेश्वर के वचनों के अंश वास्तव में उन लोगों को अच्छी तरह से ज्ञात होते हैं जो अक्सर परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, लेकिन लोगों में किस चीज की कमी होती है? उनकी कठिनाइयाँ और समस्याएँ क्या हैं? उनकी कठिनाइयाँ और समस्याएँ ये हैं कि जब इन सत्यों से जुड़े मुद्दों की बात आती है, जब कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, तो वे इन समस्याओं के सार को नहीं समझ पाते हैं, वे नहीं जानते कि उन्हें हल करने के लिए कहाँ से शुरुआत करें, और नहीं जानते कि इन सत्यों में कैसे प्रवेश करें—और यह नकली अगुआ भी नहीं जानते। तो, क्या उन्होंने इस मामले में अपनी जिम्मेदारी पूरी की है? क्या वे अगुआई के कार्य में सक्षम हैं? स्पष्टतः, उन्होंने इस जिम्मेदारी को पूरा नहीं किया है। उदाहरण के लिए, जब लोग परमेश्वर के वचनों में ईमानदार व्यक्ति होने के बारे में पढ़ते हैं, तो चूँकि नकली अगुआ परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने का तरीका नहीं जानता, और उसमें सत्य को बूझने और समझने की क्षमता का अभाव है, इसलिए वह कहेगा : “परमेश्वर की अपेक्षाएँ अधिक नहीं हैं। परमेश्वर हमसे ईमानदार बनने के लिए कहता है, और ईमानदार होने का अर्थ है सच बोलना। क्या परमेश्वर के वचनों में यह सब नहीं कहा गया है : ‘तुम्हारी बात “हाँ” की “हाँ,” या “नहीं” की “नहीं” हो’ (मत्ती 5:37)? परमेश्वर के वचन कितने स्पष्ट हैं! सिर्फ वही कहो जो तुम अपने दिल में सोचते हो; यह कितना सरल है! तुम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? परमेश्वर का वचन सत्य है, हमें इसका अभ्यास करना चाहिए। अभ्यास न करना विद्रोह करना है, और क्या परमेश्वर उन लोगों को बचाता है जो उसके विरुद्ध विद्रोह करते हैं? नहीं बचाता।” यह सुनकर लोग जवाब देते हैं, “तुम जो कुछ कहते हो वह सही है, लेकिन हम अब तक नहीं जानते कि ईमानदार कैसे बनें। क्योंकि कई बार झूठ अपने आप निकल जाता है, या कोई ऐसा तब करता है जब उसके पास कोई और विकल्प न हो, और इसका कोई कारण हो। इसका समाधान कैसे किया जाना चाहिए?” नकली अगुआ क्या कहेगा? “क्या इससे निपटना आसान नहीं है? क्या परमेश्वर के वचनों में इसे स्पष्ट नहीं किया गया है? ईमानदार व्यक्ति होना किसी बच्चे की तरह होना है; यह कितना सरल है! तुम्हारी उम्र चाहे जो हो, क्या तुम किसी बच्चे जैसे नहीं हो सकते? बस यह देखो कि बच्चे कैसे व्यवहार करते हैं।” फिर श्रोता सोचती है : “बच्चे के व्यवहार के मुख्य लक्षण भोलापन और जीवंतता, इधर-उधर उछलना, अपरिपक्व होना और बहुत-सी चीजों को न समझना है। चूँकि अगुआ ने ऐसा कहा है, तो मैं ऐसा ही करूँगी।” तीस से चालीस साल की यह व्यक्ति अगले दिन अपने बालों की दो छोटी चोटियाँ बना लेती है, उनमें गुलाबी रंग का फीता और हेयर क्लिप लगाती है, गुलाबी कमीज, जूते और मोजे पहनती है, पूरी तरह से गुलाबी कपड़े पहन लेती है। यह देखकर, अगुआ कहता है, “यह सही है! थोड़ा और बच्चों की तरह चलो, इधर-उधर उछलो। और अधिक बच्चों जैसी मासूमियत से बोलो, आँखों में दुष्टता न हो, और तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान हो—क्या यह बच्चों के तौर-तरीकों की ओर लौटना नहीं है? ईमानदार व्यक्ति का आचरण यही है!” अगुआ काफी प्रसन्न होता है, जबकि दूसरे लोग इसे मूर्खतापूर्ण, असामान्य व्यवहार के रूप में देखते हैं। यह नकली अगुआ न केवल समस्या को हल करने में विफल रहा, बल्कि यह भी नहीं जानता था कि सत्य सिद्धांतों की खोज कैसे करें, और लोगों को बेतुकेपन के रास्ते पर ले जा रहा था। नकली अगुआ ईमानदार होने के सबसे सरल सत्य के बारे में भी नहीं जानता कि इसे सही और शुद्ध रूप से कैसे समझा जाए, वह आँख मुँदकर विनियमों को लागू करने का सहारा लेता है, और इसे इतने विकृत रूप से समझता है कि सुनने वालों को भी घृणा होती है। नकली अगुआ यही करते हैं।
नकली अगुआ परमेश्वर के वचनों को हर तरह से समझते हैं, और कई तरह के विचित्र और सनक भरे दृष्टिकोण सामने रखते हैं। वे परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और पालन करने का भी झंडा लहराते फिरते हैं, और दूसरों से माँग करते हैं कि वे उनकी समझ को स्वीकारें और उसका पालन करें। संक्षेप में, इन नकली अगुआओं जैसे लोगों में अक्सर परमेश्वर के वचनों की उथली और विकृत समझ होती है। इसे परिभाषित करने के लिए आध्यात्मिक शब्द का उपयोग करते हुए हम कहेंगे कि उनमें “आध्यात्मिक समझ नहीं है।” न केवल परमेश्वर के वचनों की उनकी समझ विकृत होती है, बल्कि वे अक्सर दूसरों से भी इन विकृत धर्म-सिद्धांतों और विनियमों का उन्हीं की तरह पालन करने की माँग करते हैं। इसी बीच, वे अपनी विकृत समझ का उपयोग उन लोगों की निंदा करने के लिए करते हैं जिनमें सत्य की शुद्ध समझ होती है। आध्यात्मिक समझ न रखने वाले ये नकली अगुआ परमेश्वर के वचनों की जाँच और विश्लेषण मसीह विरोधियों की तरह नहीं करते। बाहर से, ऐसा लगता है जैसे वे परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने और स्वीकार करने को श्रद्धापूर्ण रवैये के साथ देखते हैं। परंतु, उनकी निम्नस्तरीय काबिलियत और परमेश्वर के वचनों को समझने में असमर्थता के कारण वे परमेश्वर के वचनों को ऐसे मानते हैं मानो वे कोई पाठ्यपुस्तक हों और मानते हैं कि परमेश्वर के वचनों में “एक और एक दो, दो और दो चार” के तर्क का पालन होता है। वे नहीं जानते कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए यह समझना होता है कि उनमें कहे गए सत्य क्या प्रदर्शित करते हैं और उन सत्यों में कौन-सी विभिन्न स्थितियाँ और विषयवस्तु शामिल हैं। जब दूसरे लोग परमेश्वर के वचनों को बहुत ठोस और व्यावहारिक तरीके से समझते हैं, तो वे उन वचनों को सतही और न सुनने लायक मानते हैं, और कहते हैं, “मैं यह सब समझता हूँ, मैं सब जानता हूँ। तुम जो बात कर रहे हो, उसे परमेश्वर के वचनों में पहले से ही स्पष्ट रूप से समझाया गया है, फिर तुम्हें इसे कहने की क्या जरूरत है?” वास्तव में, वे इस बात से अनजान हैं कि दूसरे लोग जो चर्चा कर रहे हैं उसमें परमेश्वर के वचनों के सत्य से संबंधित विशिष्ट विषयवस्तु शामिल है। चूँकि इन नकली अगुआओं में आध्यात्मिक समझ नहीं होती और उनमें परमेश्वर के वचनों को समझने की क्षमता नहीं होती इसलिए उन्हें लगता है कि सभी सत्य कमोबेश एक जैसे हैं, और ये सत्य जिन मुद्दों से संबंधित हैं उनमें कोई विशेष अंतर नहीं है; उनका मानना है कि इन चीजों के बारे में अंतहीन बात किए जाने के बावजूद, इन सब का मुद्दा मूलतः एक ही है। ऐसा विश्वास एक गंभीर समस्या को इंगित करता है और ऐसे लोगों के लिए सत्य को कभी भी न समझ पाने का दुर्भाग्य लाता है।
नकली अगुआ लोगों को सत्य वास्तविकता में नहीं ले जा सकते
अब, अच्छी काबिलियत और समझने की क्षमता वाले ऐसे लोग हैं जिन्होंने पहले से ही परमेश्वर के मूल वचनों का कुछ अनुभव और उनमें प्रवेश प्राप्त कर लिया है और जिनमें कुछ सत्य वास्तविकता है, लेकिन उन्हें अधिक विशिष्ट मार्गदर्शन और अगुआई की आवश्यकता है जिससे उनका प्रवेश बेहतर और ज्यादा विस्तृत हो सके। केवल नकली अगुआ ही यह समझने में विफल रहते हैं कि सत्य के विशिष्ट विवरण क्या संदर्भित करते हैं या उन्हें इस तरह से क्यों बोला जाता है, और सोचते हैं कि इससे चीजों को अनावश्यक रूप से जटिल बनाया जा रहा है या शब्दों के साथ खेला जा रहा है। वे सत्य में शामिल विभिन्न पहलुओं को समझना या अनुभव करना नहीं जानते। इसलिए, अगुआ बनने के बाद वे जो कर सकते हैं वह केवल आम तौर पर संगति में प्रयुक्त परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने में लोगों की अगुआई करना, फिर कुछ धर्म-सिद्धांतों की बात करना, और नियमों का पालन करने के अभ्यास की कुछ विधियों का सारांश देना है, और लोगों को उनसे जो कुछ मिलता है वह केवल कुछ सतही आध्यात्मिक शब्द और आम तौर पर बोले जाने वाले शब्द और धर्म-सिद्धांत, विनियम और नारे हैं। जो लोग नए विश्वासी हैं, उनके लिए नकली अगुआओं के उपदेश मुश्किल से एक या दो साल तक ही पर्याप्त हो सकते हैं, लेकिन एक या दो साल के बाद, कुछ सत्यों को समझ चुके लोग नकली अगुआओं के कथनों और दृष्टिकोणों को पहचानना शुरू कर देंगे। जहाँ तक उन लोगों की बात है, जिनमें मूल रूप से समझने की क्षमता नहीं है, तो नकली अगुआ चाहे जितने उपदेश दें, उन्हें कुछ भी महसूस नहीं होता, कोई जागृति नहीं होती, और वे यह समझने में विफल रहते हैं कि ये अगुआ जो उपदेश दे रहे हैं, वे केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत हैं, और वे जो समझते हैं, वह सब केवल थोड़े-से खोखले सिद्धांत, नारे और विनियम हैं, जो सत्य बिल्कुल नहीं हैं। इन अभिव्यक्तियों के आधार पर क्या नकली अगुआ “परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने और उन्हें समझने, और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करने में लोगों की अगुआई” करने की जिम्मेदारी पूरी कर सकते हैं? क्या वे इस भूमिका को पूरा कर सकते हैं? क्या वे अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर सकते हैं? (नहीं।) वे ऐसा क्यों नहीं कर सकते? इसमें मुख्य समस्या क्या है? (ऐसे लोगों में आध्यात्मिक समझ नहीं होती है और वे सत्य नहीं समझ सकते।) उनमें आध्यात्मिक समझ नहीं होती और वे सत्य नहीं समझ सकते, फिर भी वे दूसरों की अगुवाई करना चाहते हैं—यह पूर्णतः असंभव है! नकली अगुआओं से लोगों को परमेश्वर के वचन समझने और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करने में अगुआई की अपेक्षा करना जेली को दीवार पर चिपकाने की कोशिश करने जैसा है—ऐसा हो नहीं सकता! जैसे, ईमानदार व्यक्ति होने का उदाहरण लें : इस बिंदु पर परमेश्वर के वचन काफी सरल हैं, वे केवल कुछ वाक्य हैं, जो जटिल नहीं हैं। थोड़ा-सा शिक्षित व्यक्ति भी जानता है कि इन शब्दों का क्या अर्थ है। लेकिन नकली अगुआ यह साबित करने के लिए कि वे कार्य करने में सक्षम हैं और लोगों की अगुआई कर सकते हैं, परमेश्वर के वचनों के आधार पर विस्तार से बताते हैं कि “लोगों से ईमानदार होने की परमेश्वर की अपेक्षा का क्या महत्व है? इसका महत्व यह है कि ईमानदार होना ही परमेश्वर को प्रिय है। गैर-विश्वासी ईमानदार नहीं होते, वे सच नहीं बोलते और जो कुछ वे कहते हैं वह सब झूठ और धोखा देने वाले शब्द होते हैं; पूरी दुनिया झूठ का एक बड़ा-सा राष्ट्र है। इसलिए, आज जब परमेश्वर आएगा तो वह जिस चीज की माँग सबसे पहले करेगा, वह है लोगों का ईमानदार होना। अगर तुम ईमानदार व्यक्ति नहीं हो, तो परमेश्वर तुमसे प्रेम नहीं करेगा; यदि तुम ईमानदार व्यक्ति नहीं हो, तो तुम्हें बचाया नहीं जा सकता, न ही तुम राज्य में प्रवेश कर सकते हो; यदि तुम ईमानदार व्यक्ति नहीं हो, तो तुम सत्य का अभ्यास नहीं कर सकते और तुम निश्चित रूप से धोखेबाज व्यक्ति हो; यदि तुम ईमानदार व्यक्ति नहीं हो, तो तुम एक मानक स्तर के सृजित प्राणी नहीं हो।” क्या तुम लोग अब समझते हो कि एक ईमानदार व्यक्ति कैसे बनें? (नहीं।) इतना सब होने के बाद भी, यह स्पष्ट नहीं है। नए विश्वासियों को, यह सुनकर लगता है कि ये शब्द बहुत बढ़िया हैं, कुछ ऐसा जो उन्होंने धर्म में अपने 20 या 30 वर्षों में नहीं सुना था। कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं, “ये शब्द बहुत शक्तिशाली हैं, हर वाक्य इस लायक है कि आमीन कहा जाए। यह उपदेश वाकई बहुत अच्छा है, यह वास्तव में राज्य के युग का उपदेश है!” फिर नकली अगुआ आगे कहते हैं : “परमेश्वर हमसे ईमानदार बनने के लिए कहता है, तो क्या हम ईमानदार लोग हैं?” कुछ लोग इस पर विचार करते हैं : “चूँकि परमेश्वर हमसे ईमानदार लोग बनने के लिए कहता है, इसका मतलब है कि हम अभी भी ईमानदार लोगों में नहीं हैं।” कुछ लोग चुप रहते हैं, सोचते हैं, “मैं मानता हूँ कि मैं निष्कपट हूँ। मैं कभी दूसरों से नहीं लड़ता, और व्यापार करते समय, मैं किसी को धोखा देने की हिम्मत नहीं करता। कभी-कभी, अगर मैं थोड़ा-सा फायदा उठा लेता हूँ, तो मैं रात को सो भी नहीं पाता। क्या मैं ईमानदार व्यक्ति हूँ? मुझे लगता है कि मैं निष्कपट व्यक्ति हूँ, और क्या इसका मतलब ईमानदार व्यक्ति होने के समान नहीं है?” दूसरे कहते हैं, “मैं स्वाभाविक रूप से झूठ नहीं बोल सकता। जब भी मैं कुछ असत्य कहता हूँ, तो मेरा चेहरा लाल हो जाता है, इसलिए मुझे ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए, है ना?” फिर नकली अगुआ आगे कहते हैं, “इससे कोई मतलब नहीं कि तुम ईमानदार व्यक्ति हो या नहीं, चूँकि परमेश्वर का वचन हमें ईमानदार होने के लिए कहता है, तो तुम्हारे लिए ईमानदार व्यक्ति होना अनिवार्य है। यदि तुम परमेश्वर के वचनों के अनुसार कार्य करते हो, तो तुम ईमानदार व्यक्ति हो। तब तुम छल-कपट से, शैतान के अंधकारमय प्रभाव के बंधनों से मुक्त हो जाते हो। जब तुम ईमानदार व्यक्ति बन जाते हो, तभी तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश करते हो, अपने कर्तव्यों को पूरा कर सकते हो और परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकते हो।” क्या तुम लोग अब समझे कि ईमानदार कैसे बनें? (नहीं।) फिर भी, कुछ लोग प्रसन्न हैं : “ये शब्द शक्तिशाली हैं। आमीन! हर वाक्य सही है। इन वाक्यों में सीधे-सीधे परमेश्वर के वचनों से कुछ नहीं लिया गया है, बल्कि इन सभी को परमेश्वर के वचनों से समझा गया है। यह समझ अद्भुत है! मैं इसे इस तरह क्यों नहीं समझ पाता? ऐसा लगता है कि यह अगुआ वास्तव में इस उपाधि के योग्य है, वह वास्तव में अगुआई के लिए बना है!” यह सुनने के बाद काबिल और चतुर लोग विचार करते हैं : “तुमने यह तो बताया नहीं कि ईमानदार व्यक्ति क्या होता है। वास्तव में कोई व्यक्ति ईमानदार किस तरह बन सकता है?” नकली अगुआ आगे कहते हैं : “ईमानदार व्यक्ति होने का मतलब है झूठ नहीं बोलना। उदाहरण के लिए, यदि तुमने पहले व्यभिचार किया है, तो तुम परमेश्वर से प्रार्थना करो और कबूल करो कि तुमने यह कितनी बार और किसके साथ किया है। अगर तुम्हें लगता है कि तुम परमेश्वर को देख या छू नहीं सकते, तो तुम्हें अगुआ के सामने अपनी सारी बातें स्पष्ट करते हुए कबूल करनी चाहिए। ईमानदार व्यक्ति होने की सबसे बुनियादी आवश्यकता है खुलकर कबूल करना। इसके अलावा, इसका संबंध किसी भी चीज में झूठ की मिलावट किए बिना अपने दिल की बात कहने से है। तुम किसी चीज के बारे में कैसे सोचते हो, तुम्हारे इरादे क्या हैं, तुम किस तरह की भ्रष्टता प्रकट करते हो, तुम किससे नफरत करते हो या अपने मन में किसे कोसते हो, तुम किसे नुकसान पहुँचाना चाहते हो या किसके खिलाफ साजिश करना चाहते हो—इन सभी को उन व्यक्तियों के सामने कबूल किया जाना चाहिए। ऐसा करने से तुम खुले और स्पष्टवादी बन जाते हो, प्रकाश में रहते हो। यही ईमानदार व्यक्ति होने का मतलब है। ईमानदार व्यक्ति को अहंकार त्याग देना चाहिए; उसे अपने दिल के सबसे बुरे और सबसे अँधेरे हिस्सों को प्रदर्शित करने और उनका विश्लेषण करने में सक्षम होना चाहिए।” यह सुनकर, क्या अब तुम लोग समझ गए कि ईमानदार व्यक्ति कैसे बनें? (अभी भी नहीं।) सुनने के बाद भी, किसी को केवल धर्म-सिद्धांत ही समझ में आते हैं, विशिष्ट अभ्यास नहीं। परमेश्वर के वचनों की ऐसी समझ के साथ, नकली अगुआ यह सोचते हुए कि वे परमेश्वर के वचनों को सबसे अधिक समझते हैं, परमेश्वर के वचनों को समझने की क्षमता रखते हैं और लोगों को परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में ले जा सकते हैं, वे लोगों को परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने के लिए इस तरह से प्रेरित करते हैं और इसी तरह से संगति भी करते हैं। वास्तव में, वे जो समझते हैं और संगति करते हैं, वे सब केवल धर्म-सिद्धांत और नारे हैं, जो सत्य वास्तविकता की खोज करने और सत्य सिद्धांतों को समझने के इच्छुक लोगों की कोई मदद नहीं करते। फिर भी, नकली अगुआ मानते हैं कि उनमें समझने की बहुत जबरदस्त क्षमता है, उनके पास परमेश्वर के वचनों के बारे में अद्वितीय अंतर्दृष्टि है, और वे सामान्य लोगों से श्रेष्ठ हैं। वे इन धर्म-सिद्धांतों और नारों का प्रचार करते घूमते हैं, यहाँ तक कि दूसरों के साथ तुलना भी करते हैं, अक्सर इन धर्म-सिद्धांतों और नारों का इस्तेमाल करते हुए मौखिक विवादों में उलझते हैं, और यहाँ तक कि अक्सर लोगों को व्याख्यान देने, उनकी काट-छाँट करने, उनके प्रति राय बनाने और उनकी निंदा करने के लिए भी इनका इस्तेमाल करते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करके वे काम कर रहे हैं, परमेश्वर के वचनों को वास्तविक जीवन में ला रहे हैं और परमेश्वर के वचनों को लागू कर रहे हैं। क्या यह एक परेशान करने वाली बात नहीं है? नकली अगुआ परमेश्वर के वचनों को नहीं समझ सकते, वे लोगों को परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में नहीं ले जा सकते। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, वे केवल कुछ वचनों और सिद्धांतों पर संगति कर सकते हैं, और फिर भी वे उनका प्रचार और दिखावा करते फिरते हैं। हालाँकि, वास्तविकता में, वे परमेश्वर के वचनों का कोई सत्य नहीं समझते हैं। उदाहरण के लिए, वे कुछ एक जैसे आध्यात्मिक शब्दों या अभिव्यक्तियों को नहीं समझते, न ही वे उनके बीच के अंतरों को जानते हैं, न ही यह जानते हैं उन्हें वास्तविक स्थितियों के अनुकूल कैसे ढालें। विनियमों से बँधे रहने और शब्द तथा धर्म-सिद्धांत बड़बड़ाने के अलावा, उनमें परमेश्वर के वचनों की सच्ची समझ नहीं होती और वे वास्तव में उनका अभ्यास नहीं करते हैं। इसलिए, यह स्पष्ट है कि नकली अगुआ स्वयं सत्य नहीं समझते हैं, न ही वे परमेश्वर के वचन समझने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए लोगों की अगुआई करने में सक्षम हैं। हमने इस बात को ईमानदार व्यक्ति होने के उदाहरण के साथ स्पष्ट किया है। नकली अगुआ यह नहीं जानते कि ईमानदार व्यक्ति होने के सत्य को कैसे समझा जाए, वे शब्द और धर्म-सिद्धांत झाड़ते हैं और नारों का उपदेश देने का सहारा लेते हैं, और आध्यात्मिक समझ नहीं रखने वाले मूर्खों और भ्रमित लोगों को गुमराह करते हैं जिससे वे भटक जाते हैं। इन शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को सुनने के बाद, वे विशेष रूप से नकली अगुआओं को आदर्श बनाते हैं और कई वर्षों तक उनका अनुसरण करने के बाद भी सबसे बुनियादी सत्य नहीं समझ पाते हैं, उनमें प्रवेश ही नहीं कर पाते हैं। हम इस विषय पर अपनी संगति यहीं समाप्त करेंगे।
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