प्रकरण दो : कैसे नूह और अब्राहम ने परमेश्वर के वचनों का पालन किया और उसके प्रति समर्पण किया (भाग एक) खंड तीन

III. यह उजागर करना कि आज के लोग परमेश्वर के वचनों से कैसे पेश आते हैं

मेरे द्वारा अभी सुनाई गई कहानियों का विषय-क्षेत्र क्या था? (परमेश्वर के प्रति रवैयों के बारे में और इस बारे में कि चीजों के होने पर कैसे हम परमेश्वर के वचन का पालन कर उसके प्रति समर्पित हो सकते हैं।) इन दो कहानियों ने तुम लोगों को कौन-सी मुख्य बात सिखाई? (आज्ञापालन और समर्पण करना, और परमेश्वर के वचन की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करना।) आज्ञापालन करना और परमेश्वर के वचनों का पालन करने का अभ्यास करना सीखना महत्वपूर्ण है। तुम कहते हो कि तुम परमेश्वर के अनुयायी हो, कि तुम एक सृजित प्राणी हो, कि तुम परमेश्वर की नजर में इंसान हो। लेकिन तुम जो जीते और अभिव्यक्त करते हो, उसमें, परमेश्वर के वचनों को सुनने के बाद आने वाले समर्पण या अभ्यास का कोई संकेत नहीं मिलता। तो क्या तुम पर लागू किए जाने पर “सृजित प्राणी,” “ऐसा व्यक्ति जो परमेश्वर का अनुगमन करता है,” और “परमेश्वर की नजर में इंसान” शब्दों के बाद प्रश्नचिह्न होने चाहिए? और इन प्रश्नचिह्नों को देखते हुए, तुम्हारे पास उद्धार की कितनी बड़ी आशा है? यह अज्ञात है, इसकी संभावनाएँ बहुत कम हैं, और तुम स्वयं यह कहने की हिम्मत नहीं करते। पहले, मैंने परमेश्वर के वचनों का पालन कैसे किया जाए, इस बारे में दो मशहूर कहानियाँ सुनाईं। जिस किसी ने भी बाइबल पढ़ी है और कई वर्षों तक परमेश्वर का अनुसरण किया है, वह इन दोनों कहानियों से पहले से ही परिचित है। लेकिन इन कहानियों को पढ़कर किसी ने भी सबसे महत्वपूर्ण सत्यों में से एक सत्य प्राप्त नहीं किया है : परमेश्वर के वचनों का पालन करना। अब जबकि हमने परमेश्वर के वचनों का पालन कैसे करें, इसकी कहानियाँ सुन ली हैं, तो हम परमेश्वर के वचनों की अवज्ञा करने वाले लोगों की कहानियों की ओर मुड़ते हैं। चूँकि परमेश्वर के वचनों की अवज्ञा करने का उल्लेख हुआ, इसलिए ये आज के लोगों की कहानियाँ होनी चाहिए। मैं जो कुछ कहता हूँ, उसमें से कुछ सुनने में असहज हो सकता है, वह तुम लोगों के गौरव और आत्मसम्मान को चोट पहुँचा सकता है, और उसमें यह दिखाया जाएगा कि तुम लोगों में सत्यनिष्ठा और गरिमा की कमी है।

जमीन का एक टुकड़ा है, जिस पर मैंने कुछ लोगों को सब्जियाँ लगाने के लिए कहा। वह इसलिए कि अपने कर्तव्य का पालन करने वाले लोगों को कुछ जैविक भोजन मिल सके, और उन्हें कीटनाशक छिड़की अजैविक सब्जियाँ न खरीदनी पड़ें। यह एक अच्छी बात थी, है ना? एक तरह से सभी एक बड़े परिवार की तरह एक-साथ रहते हैं, और सभी समाज की प्रवृत्तियों और कलह से दूरी बनाकर एक-साथ परमेश्वर में विश्वास करने में सक्षम हैं। ऐसा परिवेश बनाने से हर कोई अपने कर्तव्य करने पर ध्यान दे पाता है। यह छोटे पैमाने के परिप्रेक्ष्य से है। बड़े पैमाने के परिप्रेक्ष्य से, अपना कर्तव्य करने वालों द्वारा खाई जाने वाली सब्जियाँ लगाना और परमेश्वर का सुसमाचार फैलाने में अपनी भूमिका निभाना भी उपयुक्त है। जब मैं कहता हूँ, “अपने आसपास के अपना कर्तव्य करने वाले लोगों के खाने के लिए कुछ सब्जियाँ लगाओ,” तो क्या इन वचनों को समझना काफी आसान नहीं है? जब मैंने एक व्यक्ति-विशेष को ऐसा करने के लिए कहा, तो वह समझ गया, और उसने कुछ सामान्य रूप से खाई जाने वाली सब्जियाँ लगाईं। मुझे लगता है कि सब्जियाँ लगाने जैसी चीज आसान है। सभी साधारण लोग इसे कर सकते हैं। यह सुसमाचार का प्रचार करने या कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों जितना कठिन नहीं है। इसलिए मैंने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। कुछ समय बाद मैं वहाँ गया और देखा कि वे सभी अपनी लगाई हुई सब्जियाँ खुद खा रहे थे, और सुना कि कभी-कभी कुछ सब्जियाँ बच जाती थीं, जिन्हें वे मुर्गियों को खिला देते थे। मैंने कहा, “तुमने वे सभी सब्जियाँ लगाईं, और अच्छी फसल उगाई। क्या तुम लोग उनमें से कुछ सब्जियाँ अन्य कलीसियाओं को भेजते हो? क्या अन्य कलीसियाओं के लोगों को हमारे द्वारा उगाई गई सब्जियाँ खाने को मिलीं?” कुछ लोगों ने कहा कि उन्हें नहीं पता। कुछ लोगों ने कहा कि अन्य जगहों पर लोगों ने अपनी ही सब्जियाँ खरीदीं और यहाँ से सब्जियाँ नहीं खाईं। सभी ने अलग-अलग बातें कहीं। किसी ने इसकी परवाह नहीं की; जब तक उनके खुद के पास खाने के लिए कुछ सब्जियाँ थीं, तब तक उन्हें लगता था कि कोई समस्या नहीं है। क्या यह घृणास्पद नहीं है? मैंने बाद में प्रभारी व्यक्ति से कहा, “तुम लोग जो कुछ उगाते हो, उसे खाना तुम्हारे लिए पूरी तरह से उचित है, लेकिन अन्य लोगों को भी खाना होता है। क्या यह सही है कि तुम लोगों ने इतनी सब्जियाँ उगाईं कि सारी खा भी नहीं सके, जबकि अन्य जगहों पर अभी भी सब्जियाँ खरीदनी पड़ती हैं? क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि ये सब्जियाँ केवल तुम लोगों के खाने के लिए ही नहीं लगाई जा रही हैं—तुम्हें इन्हें आसपास की दूसरी कलीसियाओं को भी भेजना है?” क्या तुम लोगों को लगता है कि मुझे उन्हें बताते रहना चाहिए कि क्या करना है और इस छोटे-से मामले में स्पष्ट नियम बनाने चाहिए? क्या मुझे इसके बारे में सभी को सभा के लिए एक-साथ बुलाकर एक उपदेश आयोजित करते हुए कोई बड़ी धूमधाम करने की जरूरत थी? (नहीं।) मुझे भी ऐसा नहीं लगता। क्या यह संभव है कि लोगों में इस छोटी-सी विचारशीलता की भी कमी हो? अगर हाँ, तो वे मनुष्य नहीं होंगे। इसलिए मैंने उस व्यक्ति से फिर कहा, “जल्दी करो और उन्हें अन्य कलीसियाओं में भेज दो। जाओ और इसे पूरा करवाओ।” “ठीक है,” उसने कहा, “मैं देखूँगा।” उसका यही रवैया था। कुछ समय बाद मैं फिर वहाँ गया और खेत में बहुत बड़ी मात्रा में उन सभी किस्मों की सब्जियाँ उगी देखीं, जिनकी कल्पना की जा सकती है। मैंने उन लोगों से पूछा, जिन्होंने उन्हें उगाया था, कि क्या उन्होंने बड़ी फसल काटी है। उन्होंने कहा कि सब्जियाँ इतनी ज्यादा हुई थीं कि वे उन सभी को नहीं खा सकते थे, और उनमें से कुछ सड़ गई थीं। मैंने फिर पूछा कि क्या उन्होंने पास की कलीसियाओं में कुछ सब्जियाँ भेजी थीं। उन्होंने उत्तर दिया कि वे नहीं जानते, उन्हें पक्का नहीं पता। यह बात उन्होंने बहुत अस्पष्टता और अनमने ढंग से कही। यह स्पष्ट था कि किसी ने भी इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया था। जब तक उनके पास खाने के लिए भोजन था, उन्हें किसी और की परवाह नहीं थी। एक बार फिर मैं प्रभारी व्यक्ति की तलाश में गया। मैंने उससे पूछा कि क्या उन्होंने कलीसियाओं को सब्जियाँ भेजी थीं। उसने कहा कि भेजी थीं। मैंने पूछा कि भेजने का काम कैसे हुआ। उसने कहा कि उन्हें भेज दी गई हैं। इस बिंदु पर, क्या यह तुम लोगों को लगता है कि कोई समस्या थी? इन लोगों का रवैया ठीक नहीं था। अपना कर्तव्य करते समय उनमें वफादारी और जिम्मेदारी का रवैया नहीं था, जो कि घृणास्पद है—लेकिन आगे की बात और भी घिनौनी थी। बाद में मैंने आसपास की कलीसियाओं के भाई-बहनों से पूछा कि क्या उन्हें कोई सब्जियाँ मिल गई हैं। “वे भेजी गई थीं,” उन्होंने जवाब दिया, “लेकिन वे बाजार के फर्श पर फेंकी हुई सब्जियों से भी बदतर हालत में थीं। वे रेत और कंकड़ मिले सड़े हुए पत्तों के अलावा कुछ नहीं थीं। वे खाने लायक नहीं थीं।” यह सुनकर तुम लोगों को कैसा महसूस होता है? क्या तुम्हारे दिल में गुस्सा है? क्या तुम क्रोधित हो? (हाँ।) और अगर तुम सभी लोग क्रोधित हो, तो क्या तुम लोगों को लगता है कि मुझे गुस्सा आया होगा? उन्होंने अनिच्छा से कुछ सब्जियाँ भेज दीं, लेकिन खराब तरीके से। और इस खराब प्रदर्शन के लिए कौन जिम्मेदार था? उस जगह एक बुरा व्यक्ति था, जिसने उन सब्जियों को बाहर जाने से रोका। मेरे द्वारा सब्जियाँ पहुँचाने का आदेश दिए जाने के बाद उसने क्या कहा? “चूँकि तुम मुझसे ऐसा करने के लिए कह रहे हो, इसलिए मैं उन्हें भेजने के लिए कुछ सड़े हुए पत्ते और सब्जियाँ एक-साथ रखूँगा, जिन्हें हम नहीं खाना चाहते। इसे भी पहुँचाना माना जाता है, है न?” इसका पता चलने पर मैंने आदेश दिया कि शैतानी कचरे के इस टुकड़े को बाहर फेंक दिया जाए। यह कैसी जगह थी, जहाँ वह एक तानाशाह की तरह व्यवहार करने की हिम्मत करे? यह परमेश्वर का घर है। यह समाज नहीं है और यह कोई मुक्त बाजार भी नहीं है। अगर तुम यहाँ गुस्से से भड़ककर तानाशाह की तरह व्यवहार करते हो, तो तुम्हारा यहाँ स्वागत नहीं है और मैं तुम्हारा अपनी नाक के नीचे रहना बरदाश्त नहीं कर सकता, जल्दी से दफा हो जाओ! मुझसे जितनी दूर हो सके चले जाओ, जहाँ से आए हो वापस वहीं चले जाओ! क्या तुम लोगों को लगता है कि मेरा इससे इस तरह निपटना सही था? (हाँ।) क्यों? (इस तरह के व्यक्ति मानवता से बहुत रहित होते हैं।) तो मानवता से रहित कुछ लोगों को चलता क्यों नहीं किया गया? कुछ लोगों में जमीर या विवेक नहीं होता और वे सत्य का अनुसरण नहीं करते, लेकिन वे बुरी चीजें नहीं करते, कलीसिया के काम में बाधा नहीं डालते, दूसरे लोगों के कर्तव्य-प्रदर्शन या कलीसियाई जीवन को प्रभावित नहीं करते। ऐसे लोगों को अभी सेवा प्रदान करने के लिए रख लिया जाना चाहिए, लेकिन जब वे बुरे काम करें और व्यवधान और गड़बड़ी पैदा करें, तो उन्हें दरवाजा दिखाने के लिए अभी भी देर नहीं हुई है। तो मुझे उस कचरे के टुकड़े को क्यों फेंकना पड़ा? वह एक तानाशाह की तरह काम करना और परमेश्वर के घर में हुक्म चलाना चाहता था। उसने भाई-बहनों के सामान्य जीवन को प्रभावित किया और परमेश्वर के घर के काम पर बुरा असर डाला। कुछ लोगों ने कहा कि वह बहुत स्वार्थी, बहुत आलसी था, कि उसने अपना कर्तव्य अनमने ढंग से किया। क्या ऐसा ही था? वह सभी भाई-बहनों का जानबूझकर विरोध करना चाहता था, उन सभी से मुकाबला करना चाहता था जो कोई कर्तव्य करते हैं, और वह परमेश्वर से मुकाबला करना चाहता था। वह परमेश्वर के घर पर अधिकार करना चाहता था। वह परमेश्वर के घर में निर्णायक बनना चाहता था। अगर वह हुक्म चलाना चाहता था, तो उसने कुछ अच्छा किया होता। लेकिन उसने कुछ अच्छा नहीं किया। उसने जो कुछ भी किया, उससे परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान हुआ और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को चोट पहुँची। क्या तुम लोग ऐसे किसी व्यक्ति को बरदाश्त कर सकते हो? (नहीं।) और अगर तुम लोगों में से कोई बरदाश्त नहीं कर सकता, तो क्या तुम्हें लगता है कि मैं बरदाश्त कर सकता था? आज भी ऐसे लोग हैं, जो इस तथ्य से नाखुश हैं कि बुरा व्यक्ति बाहर निकाल दिया गया। वे उसकी असलियत नहीं देख पाते, और फिर भी अपने मन में मुझसे लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। आज भी ऐसे लोग हैं, जो उस व्यक्ति के उल्लेख पर अभी भी नहीं सोचते कि मैंने इस मामले को उचित रूप से सँभाला है, जो सोचते हैं कि परमेश्वर का घर धार्मिक नहीं है। यह कैसा गिरोह है? क्या तुम लोग जानते हो कि इस व्यक्ति ने स्वयं द्वारा उगाई गई चीनी गोभी (बोक चॉय) को खेत से कैसे निकाला? आम तौर पर तुम खाने के लिए पूरे डंठल को बाहर निकालते हो, है ना? क्या कोई सिर्फ पत्तियाँ तोड़ता है? (नहीं।) खैर, इस विचित्र व्यक्ति ने दूसरों को डंठल के साथ पूरा पौधा बाहर नहीं निकालने दिया; उसने उनसे सिर्फ पत्तियाँ तोड़ने के लिए कहा। यह पहली बार था, जब मैंने इस तरह की चीज देखी। तुम लोगों को क्या लगता है कि उसने ऐसा क्यों किया? उसने दूसरों को पूरा पौधा क्यों नहीं निकालने दिया? क्योंकि अगर वे पूरा पौधा बाहर निकाल देते, तो खेत खाली हो जाता, और उसे दोबारा काम करना पड़ता और फिर से पौध लगानी पड़ती। मुसीबत से बचने के लिए उसने दूसरों से केवल पत्तियाँ तोड़ने को कहा। जब उसने लोगों से ऐसा करने को कहा, तो किसी ने भी उसका विरोध करने की हिम्मत नहीं की। वे उसके दासों के समान थे—उन्होंने वह सब किया, जो उसने कहा। उसने वहाँ हुक्म चलाया। तो क्या तुम लोगों को लगता है कि उससे पिंड न छुड़ाना स्वीकार्य होता? (नहीं।) ऐसे व्यक्ति को रहने देना अभिशाप होता। जब वह कभी-कभी कुछ अच्छा भी प्रदर्शित करता है, तो ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इसमें उसके अपने हित शामिल नहीं होते। जो कुछ भी वह करता है, उसे ध्यान से देखो : ऐसी एक भी चीज नहीं होती जो दूसरों के हितों को बाधित न करती हो और उन्हें नुकसान न पहुँचाती हो, ऐसी एक भी चीज नहीं होती जो परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान न पहुँचाती हो। यह व्यक्ति एक दानव के रूप में जन्मा था, वह खुद को परमेश्वर के खिलाफ खड़ा करता है और वह एक मसीह-विरोधी है। क्या ऐसे व्यक्ति को परमेश्वर के घर में रहने दिया जा सकता है? क्या वह कोई कर्तव्य करने के योग्य है? (नहीं।) और फिर भी कुछ लोग ऐसे व्यक्ति का बचाव करने की कोशिश करते हैं। वे कितने भ्रमित हैं? क्या यह घृणास्पद नहीं है? क्या तुम यह दिखाने की कोशिश कर रहे हो कि तुममें प्रेम है? अगर तुममें प्रेम है तो करो उसका भरण-पोषण; अगर तुममें प्रेम है तो उसे पहुँचाने दो तुम्हें हानि—लेकिन उसे परमेश्वर के घर के हितों को हानि मत पहुँचाने दो! अगर तुममें प्रेम है तो जब उसे दूर किया जाए, चले जाओ उसके साथ—तुम अभी भी यहाँ मँडराते हुए क्या कर रहे हो? क्या ये लोग आज्ञाकारी और समर्पित हैं? (नहीं।) वे दानवों के एक गिरोह के रूप में पैदा हुए थे। उस व्यक्ति ने मेरे द्वारा कही गई हर बात की अवज्ञा की। अगर मैंने पश्चिम कहा होता, तो वह पूर्व की ओर जाता, और अगर मैं पूर्व कहता, तो वह पश्चिम की ओर जाता। उसने हर चीज में मेरा विरोध करने पर जोर दिया। उसके लिए मेरा थोड़ा-सा भी आज्ञापालन करना इतना कठिन क्यों था? क्या मेरे द्वारा उसे दूसरे भाई-बहनों को सब्जियाँ भेजने के लिए कहने का मतलब यह था कि वह अपने हिस्से से वंचित रह जाएगा? क्या मैं उसे इन सब्जियों को खाने के अधिकार से वंचित कर रहा था? (नहीं।) तो उसने उन्हें क्यों नहीं भेजा? उसे उन्हें स्वयं तो ले जाना नहीं था, उसे अपनी ओर से तो कोई प्रयास करना नहीं था। लेकिन न केवल उसने दूसरों को कोई अच्छी सब्जी नहीं दी, बल्कि उसने उन्हें सड़ी हुई सब्जियाँ दीं। कितना बुरा होगा वह, जो उसने ऐसा किया? क्या उसे मनुष्य माना जा सकता है? मैंने उससे सब्जियाँ भेजने के लिए कहा था, कचरा नहीं। इतनी सरल, इतनी आसान, हाथ हिलाने भर की बात थी, लेकिन वह इतना भी नहीं कर सका। क्या यह मनुष्य है? अगर ऐसा कुछ भी तुम्हारे वश से बाहर है, तो तुम परमेश्वर के प्रति समर्पण का दावा कैसे कर सकते हो? तुम सींग मारते हो, तुम पलटवार करते हो, और फिर भी तुम परमेश्वर के घर में मुफ्तखोरी करने का प्रयास करते हो। क्या ऐसा कभी हो सकता है? आज भी ऐसे लोग हैं, जो भूले नहीं हैं : “तुमने एक बार हमारी भावनाओं को आहत किया। तुमने एक बार हममें से कई लोगों को बाहर निकाल दिया, लेकिन हम सहमत नहीं हुए; हम चाहते थे कि वे रहें, लेकिन तुमने उन्हें मौका नहीं दिया। क्या तुम एक धार्मिक परमेश्वर हो?” क्या तुम लोगों को लगता है कि दानव कभी कहेंगे कि परमेश्वर धार्मिक है? (कभी नहीं।) वे मुँह से भले ही कहते हों कि परमेश्वर धार्मिक है, लेकिन जब परमेश्वर कार्य करता है, तो यह उन्हें स्वीकार्य नहीं होता; वे खुद को परमेश्वर की धार्मिकता की स्तुति करने के लिए नहीं ला पाते। वे दानव और पाखंडी हैं।

सब्जियाँ देने जैसी छोटी-सी बात भी क्या दिखाती है? क्या लोगों के लिए परमेश्वर के प्रति समर्पित होना और परमेश्वर के वचनों का पालन करना आसान है? (नहीं।) लोग परमेश्वर द्वारा प्रदान किया गया खाना खाते हैं, वे परमेश्वर द्वारा प्रदान किए गए घरों में रहते हैं, वे परमेश्वर द्वारा प्रदान की गई चीजें इस्तेमाल करते हैं, लेकिन जब परमेश्वर उनसे अपनी अतिरिक्त सब्जियाँ दूसरों के साथ साझा करने के लिए कहता है, तो क्या वे समर्पणशील होते हैं? क्या ये वचन उनमें फलीभूत हो सकते हैं? लोगों में वे हो सकते हैं। उन्हें कार्यान्वित किया जा सकता है। लेकिन राक्षसों, शैतानों और मसीह-विरोधियों में वे कभी फलीभूत नहीं होंगे। उस व्यक्ति ने अपने मन में सोचा, “अगर मैं ये सब्जियाँ भेज दूँ, तो क्या किसी को मेरा यह अच्छा कर्म याद रहेगा? अगर दूसरे लोग इन सब्जियों को खाते हैं और कहते हैं कि यह परमेश्वर का अनुग्रह है, कि परमेश्वर ने मुझसे ऐसा करने के लिए कहा था, अगर वे सभी परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं, तो मुझे कौन धन्यवाद देगा? परदे के पीछे का नायक मैं हूँ, मैं ही था जिसने मेहनत की। वह मैं ही था, जिसने सब्जियाँ लगाई थीं। तुम्हें मुझे धन्यवाद देना चाहिए। और अगर तुम नहीं देते, अगर तुम नहीं जानते कि वह मैं था जिसने यह किया, और फिर भी अगर तुम्हें लगता है कि तुम मेरे द्वारा उगाई गई सब्जियाँ खा सकते हो, तो तुम सपना देख रहे हो!” क्या ऐसा ही नहीं था जो उसने सोचा? और क्या यह बुरी बात नहीं है? यह बहुत बुरी बात है! कोई बुरा व्यक्ति सत्य का अभ्यास और परमेश्वर के वचनों का पालन भला कैसे कर सकता है? यह व्यक्ति एक राक्षस और शैतान के रूप में पैदा हुआ था। वह परमेश्वर के विरोध में खड़ा होता है, सत्य का प्रतिरोध करता है और सत्य का तिरस्कार करता है। वह परमेश्वर के वचनों का पालन करने में असमर्थ है तो क्या उसे उनका पालन करने की कोई आवश्यकता है? नहीं। तो ऐसे मामले से कैसे निपटा जाना चाहिए? उसे बाहर निकालो और उसका स्थान लेने के लिए किसी ऐसे को ढूँढ़ो जो आज्ञापालन कर सके। बस, यह इतना आसान है। चीजें इस तरह से सँभालना उपयुक्त है या नहीं? (यह उपयुक्त है।) मुझे भी ऐसा ही लगता है। अगर वह नहीं जाता, तो वह परेशानी का कारण बनेगा, और बाकी सबको नुकसान पहुँचाएगा। कुछ लोग कहते हैं, “क्या ऐसा है कि तुम इसलिए असंतुष्ट हो, क्योंकि उसने तुम्हारे वचनों का पालन नहीं किया? उसने बस इतना ही किया कि तुम्हारी अवज्ञा की—क्या यह इतनी गंभीर बात थी? तुमने उसे इतनी छोटी-सी बात पर चलता कर दिया, लेकिन उसने वास्तव में कुछ बुरा नहीं किया। उसने बस कुछ सड़ी हुई सब्जियाँ भेजीं, और कई बार ऐसा भी हुआ जब उसने कुछ भी नहीं भेजा और तुम्हारा आज्ञापालन नहीं किया। यह एक छोटी-सी बात है, है न?” क्या यही मामला है? (नहीं।) तो तुम लोगों को क्या लगता है कि मैं इसे कैसे देखता हूँ? इतनी छोटी-सी बात होने पर भी वह आज्ञापालन नहीं कर सका, बल्कि उसने यहाँ अनुचित तरीके से चीजें बाधित करने की कोशिश की। यह परमेश्वर का घर है, यहाँ कुछ भी उस व्यक्ति का नहीं था। यहाँ घास की हर पत्ती, हर पेड़, हर पहाड़ी, हर जलाशय—उसे इनमें से किसी भी चीज पर नियंत्रण करने या हुक्म चलाने का कोई अधिकार नहीं था। उसने हुक्म चलाने, अनुचित तरीके से चीजें बाधित करने की कोशिश की। वह था क्या? उसका कुछ भी नहीं लिया या इस्तेमाल किया जाना था, न ही उसका कुछ भी बाहर भेजा जाना था; उससे सिर्फ अपनी बाँहें हिलाकर अपनी वो जिम्मेदारियाँ पूरी करने के लिए कहा गया था जिन्हें उसे पूरा करना चाहिए था, लेकिन वह यह भी नहीं कर सका। चूँकि वह यह नहीं कर सका, इसलिए मैंने उसे विश्वासी नहीं माना, और उसे परमेश्वर के घर से बाहर जाना पड़ा, उसे हटा दिया गया! क्या मेरा ऐसा करना वाजिब था? (हाँ।) ये परमेश्वर के घर के प्रशासनिक आदेश हैं। अगर मैं ऐसे किसी बुरे आदमी को बुरा काम करते पाऊँ और उसे हटाऊँ नहीं, अगर मैं उसके प्रति कोई रवैया न दिखाऊँ, तो तुम लोगों को क्या लगता है, कितने लोगों को नुकसान पहुँचेगा? क्या इससे परमेश्वर का घर अस्त-व्यस्त नहीं हो जाएगा? और क्या परमेश्वर के घर के प्रशासनिक आदेश खोखले वचन नहीं बन जाएँगे? तो इन उद्दंड मसीह-विरोधियों और बुरे राक्षसों के संबंध में परमेश्वर के घर के प्रशासनिक आदेशों द्वारा क्या निर्धारित किया गया है, जो गड़बड़ी पैदा करते हैं, अनुचित रूप से चीजें बाधित करते हैं और बेशर्मी से कार्य करते हैं? उन्हें परमेश्वर के घर से हटाकर बाहर निकाल दो। उनसे भाई-बहनों का दर्जा छीन लो। वे परमेश्वर के घर के सदस्य नहीं गिने जाते। उनसे इस तरह निपटने के बारे में तुम क्या सोचते हो? ऐसे लोगों का सफाया कर दिए जाने के बाद सारा काम सुचारु रूप से आगे बढ़ेगा। राक्षस और शैतान सब्जियाँ खाने जैसी मामूली चीज का भी लाभ उठाना चाहते हैं। इसके बावजूद वे हुक्म चलाने की कोशिश करते हैं, और जो चाहते हैं वह करते हैं। हमने जो भी बात की है, वह एक छोटी-सी बात है, लेकिन जो भी हो, यह समस्त सत्यों के सबसे मौलिक तत्त्व को छूती है। सबसे बुनियादी सत्य परमेश्वर के वचनों का पालन करना है। जो इतना भी नहीं कर सकते, उनका स्वभाव क्या है? क्या उनमें सामान्य लोगों का जमीर और विवेक होता है? बिल्कुल नहीं। ये वे लोग हैं, जिनमें मानवता नहीं होती।

सब्जियों के साथ-साथ लोगों को अपने दैनिक जीवन में मांस और अंडों का भी सेवन करना चाहिए। इसलिए मैंने कुछ लोगों से कहा कि कुछ मुर्गियाँ पालो, और उन मुर्गियों को अनाज, सब्जियाँ और इसी तरह की चीजें खिलाओ। उनके रहने के लिए खुली जगह होनी चाहिए। इस तरह वे बाजार में बिकने वाले अंडों से बेहतर अंडे देंगी। मुर्गे का मांस भी जैविक होगा; कम से कम उसमें कोई हार्मोन नहीं होंगे, और जब लोग उसे खाएँगे तो वह उनके लिए नुकसानदेह नहीं होगा। मुर्गियाँ ज्यादा अंडे या मांस भले न दें, लेकिन गुणवत्ता की गारंटी होगी। क्या तुम समझते हो कि इससे मेरा क्या मतलब है? (हाँ।) तो फिर मुझे बताओ कि मैंने अभी-अभी जो कहा, उसमें कितनी चीजों की जानकारी है? पहली बात, इस तरह से मुर्गियों को पालने से हमें खाने के लिए कुछ जैविक अंडे मिलेंगे। चाहे हम जितने भी अंडे खा पाएँ, कम से कम हमें ऐसे अंडे नहीं खाने पड़ेंगे जिनमें जीवाणुनाशक हों। अंडों से तो यही अपेक्षित था। दूसरा, मांस से यह अपेक्षित था कि उसमें हार्मोन न हों, ताकि लोगों को उसे खाने में कोई हिचक न हो। क्या इनमें से कोई भी माँग बहुत बड़ी थी? (नहीं।) मैंने जो अनुरोध किए थे, वे न केवल हद से ज्यादा नहीं थे, बल्कि वे व्यावहारिक भी थे, है न? (हाँ।) बाद में चूजे खरीदे और पाले गए। जब उन्होंने अंडे देने शुरू किए, तो हमने अंडे खाए, लेकिन उनमें बहुत-कुछ सुपरमार्केट में खरीदे गए अंडों की तरह जीवाणुनाशकों का हलका-सा स्वाद आ रहा था। मैंने इस पर थोड़ा विचार किया : क्या वे उन्हें ऐसा चारा दे रहे थे, जिसमें जीवाणुनाशक थे? बाद में मैंने मुर्गियों की देखभाल करने वाले लोगों से पूछा कि मुर्गियाँ क्या चारा खा रही थीं, और उन्होंने कहा कि हड्डियों का चूरा। “हमारे लिए यह जरूरी नहीं कि ये मुर्गियाँ जल्दी अंडे देने लगें। उन्हें सामान्य, जैविक, खुली जगह में पालने वाली पद्धतियों से चारा खिलाओ। उन्हें सामान्य रूप से अंडे देने दो,” मैंने कहा। “हम उन्हें बहुत सारे अंडे प्राप्त करने के लिए नहीं पाल रहे, बल्कि केवल इसलिए पाल रहे हैं कि हम जैविक अंडे खा सकें। बस इतना ही अपेक्षित है।” जब मैंने यह कहा, तो मेरा क्या मतलब था? मैं उनसे कह रहा था कि मुर्गियों को ऐसी कोई चीज न खिलाओ, जिसमें जीवाणुनाशक, हार्मोन आदि हों। मुर्गियों को दूसरी जगहों पर मुर्गियों द्वारा खाए जाने वाले चारे से अलग चारा दिया जाना था। दूसरी जगहों पर मुर्गियाँ केवल तीन महीनों में ही पूरी तरह से बड़ी कर दी जाती हैं, वे रोज अंडे देती हैं और उनका ठीक उस दिन तक अंडे देने वाली मशीनों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जब तक कि उनका वध नहीं कर दिया जाता। क्या इससे अच्छे अंडे मिलते हैं? और क्या मांस स्वादिष्ट होता है? (नहीं।) मैंने कहा कि मुर्गियाँ खुली जगह में पाली जाएँ, और उन्हें बाहर निकलकर कीड़े और घास-फूस खाने दिए जाएँ और फिर कुछ अनाज, दाने आदि खिलाए जाएँ। हालाँकि इससे अंडे थोड़े कम मिलेंगे, लेकिन उनकी गुणवत्ता बेहतर होगी; यह मुर्गियों के लिए भी अच्छा होगा और मनुष्यों के लिए भी। क्या मैंने जो कहा, उसे हासिल करना आसान था? (हाँ।) और क्या उसे समझना आसान था? क्या मैंने जो कहा, उसका पालन करने में कोई कठिनाई थी? (उसे समझना आसान था। वह मुश्किल नहीं था।) मुझे नहीं लगा कि इसमें कोई कठिनाई है। यह आसान था। मैंने उत्पादित अंडों की संख्या के बारे में कोई माँग नहीं की थी, केवल उनकी गुणवत्ता के बारे में माँग की थी। सामान्य विवेक रखने वाले और सामान्य तरीके से सोचने वाले लोग इसे सुनते ही समझ गए होते। वे महसूस करते कि यह आसान है, कि यह करने योग्य है, और इसके तुरंत बाद वे इसे पूरा कर लेते। इसे कहते हैं आज्ञाकारी होना। तो क्या मुर्गियाँ पालने वाले लोगों ने यही किया? क्या वे ऐसा करने में सक्षम थे? ऐसा करने में सक्षम होने का अर्थ होगा सामान्य मानवता का विवेक रखना। ऐसा करने में सक्षम न होने का अर्थ होगा कि कोई समस्या है। मेरे यह कहने के बाद जल्दी ही मौसम ठंडा हो गया। प्रकृति के सामान्य नियमों के आधार पर, इससे मुर्गियाँ अंडे देना बंद कर देती हैं। लेकिन एक बात बहुत अर्थपूर्ण थी : जब मौसम ठंडा हो गया, तो मुर्गियों ने कम अंडे नहीं दिए, उन्होंने ज्यादा अंडे दिए। रोज खाने के लिए अंडे होते थे, लेकिन उनकी जर्दी उतनी पीली नहीं थी जितनी पहले हुआ करती थी, और उनकी सफेदी सख्त से सख्त होती जा रही थी। अंडे निरंतर कम स्वादिष्ट होते जा रहे थे। क्या हो रहा था? मैंने कहा : “आखिर हो क्या रहा है? इन मुर्गियों के लिए सर्दी काटना पहले ही काफी मुश्किल है, अब तुम इन्हें लोगों के लिए अंडे देने पर बाध्य करने की कोशिश क्यों कर रहे हो? यह थोड़ा क्रूर है!” बाद में जब मैंने जाकर पूछा, तो पाया कि मुर्गियों को अभी भी वही चारा दिया जा रहा है, जो दूसरी जगहों पर खरीदा जा रहा था—चारा जो गारंटी देता था कि चाहे वसंत हो या गर्मी, शरद ऋतु या सर्दी, मुर्गियाँ अंडे देती रहेंगी। “आम तौर पर मुर्गियाँ इस मौसम में अंडे नहीं देतीं। हम अंडों के बिना रह सकते हैं। बस उनकी देखभाल करते रहो। वसंत ऋतु आने पर वे फिर से अंडे देना शुरू कर देंगी और वे अच्छी गुणवत्ता वाले अंडे होंगे,” मैंने कहा। “पेटू मत बनो। मैंने तुम्हें उन्हें लगातार अंडे देने पर बाध्य करने के लिए नहीं कहा था, न ही यह कहा था कि तुम सर्दियों में भी अंडे उपलब्ध कराओ। जब मैंने तुमसे नहीं कहा था, फिर तुम उन्हें वह चारा क्यों देते रहे जो तुमने खरीदा था? तुम्हें उन्हें दोबारा वह चारा खिलाना मना है।” क्या मेरी बात समझ में आई? पहली बात, मैंने यह माँग नहीं की थी कि खाने के लिए अंडे होने ही चाहिए, चाहे मौसम कोई भी हो। दूसरे, मैंने उनसे कहा था कि मुर्गियों को वह चारा मत दो, उनके अंडे देने की प्रक्रिया तेज मत करो। क्या यह छोटा-सा अनुरोध पूरा करना मुश्किल था? (नहीं।) लेकिन नतीजा यह हुआ कि कुछ समय बाद मैंने कुछ अंडे खाए, जो हमारी मुर्गियों ने फिर से दिए थे। मैंने मन ही मन कहा : यह समूह कितना भ्रमित है, ऐसा कैसे हो सकता है कि इन लोगों ने मेरे कहे का पालन नहीं किया? मुर्गियाँ अभी भी अंडे दे रही थीं, इसलिए उन्होंने निश्चित रूप से चारा नहीं बदला था—यही था जो चल रहा था।

मुर्गी-पालन के मामले में जो कुछ हुआ, उससे तुम लोग क्या समझ सकते हो? (यह कि लोग परमेश्वर के वचनों के प्रति समर्पित नहीं होते या उनका पालन नहीं करते।) कुछ लोगों ने कहा, “परमेश्वर के वचनों का पालन करना—अर्थात् परमेश्वर की इच्छा का पालन करना। जब बड़े और ऊँचे मामलों की बात आती है तो हमें आज्ञापालन करना चाहिए, ये वे मामले हैं जो परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के क्रियान्वयन और उसके प्रमुख कार्य से संबंधित हैं। तुम जिस बारे में बात कर रहे हो, वह रोज़मर्रा की ज़िंदगी के तुच्छ मामलों से संबंधित है, जिसका परमेश्वर की इच्छा का पालन करने से कोई लेना-देना नहीं है—इसलिए हमें वैसा करने की जरूरत नहीं है, जैसा तुम कहते हो। तुम जिसके बारे में बात कर रहे हो, वह हमारे कर्तव्य से संबंधित नहीं है, न ही वह परमेश्वर के वचनों के प्रति हमारे समर्पण और आज्ञाकारिता से संबंधित है, इसलिए हमारा तुम्हारा विरोध करना, यह चुनना कि हम आज्ञापालन करें या नहीं, उचित है। इतना ही नहीं, तुम सामान्य मानव-जीवन के बारे में, पारिवारिक मामलों के बारे में क्या जानते हो? तुम उन्हें नहीं समझते, इसलिए तुम्हें बोलने का कोई अधिकार नहीं है। हम पर बकवास की बौछार मत करो—हमें इसमें तुम्हारा आज्ञापालन करने की जरूरत नहीं है।” क्या वे यही नहीं सोच रहे थे? और क्या ऐसा सोचना सही था? (नहीं।) गलती कहाँ थी? (परमेश्वर की इच्छा का पालन करना बड़े या छोटे मामलों में अंतर नहीं करता। अगर वे परमेश्वर के वचन हैं, तो लोगों को उनका पालन करना चाहिए और उन्हें समर्पित होकर उन्हें अमल में लाना चाहिए।) कुछ लोगों ने कहा, “मैं परमेश्वर के उन वचनों का पालन करता हूँ जो सत्य हैं। मुझे उन वचनों का पालन करने की आवश्यकता नहीं है जो सत्य नहीं हैं। मैं केवल सत्य के प्रति समर्पित होता हूँ। ‘परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करने’ का अर्थ है परमेश्वर के मुख से निकले वचनों के उस भाग का अनुसरण, पालन और उसके प्रति समर्पण करना जो सत्य है। उसके जो वचन लोगों के जीवन से संबंधित हों, और जिनका सत्य से कोई संबंध न हो, उन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है।” क्या यह समझ सही है? (नहीं।) तो तुम लोग सत्य और परमेश्वर के वचनों को कैसे देखते हो? क्या उन्होंने परमेश्वर के वचनों और सत्य के बीच अंतर नहीं किया? और क्या इसने सत्य को महज पुतला नहीं बना दिया? क्या उन्होंने सत्य को बहुत खोखला नहीं समझा? परमेश्वर द्वारा सभी चीजों की रचना, पेड़ों पर पत्तियों के आकार और रंग, फूलों के आकार और रंग, सभी चीजों का अस्तित्व और प्रसार—क्या इन सबका सत्य से कोई लेना-देना है? क्या इसका मनुष्य के उद्धार से कोई लेना-देना है? क्या मानव-शरीर की संरचना सत्य से जुड़ी है? इनमें से कोई भी सत्य से नहीं जुड़ा है, लेकिन ये सभी परमेश्वर से आते हैं। अगर इनमें से कोई भी सत्य से संबंधित नहीं है, तो क्या तुम उनके सही होने को स्वीकार नहीं कर सकते? क्या तुम उनके सही होने को नकार सकते हो? क्या तुम अपनी मर्जी से परमेश्वर की सृष्टि के नियम नष्ट कर सकते हो? (नहीं।) तो तुम्हारा रवैया क्या होना चाहिए? तुम्हें इसके कानूनों का पालन करना चाहिए। जब ऐसी चीजें होती हैं जिन्हें तुम नहीं समझते, तो परमेश्वर द्वारा अपने मुख से कही गई बातों पर भरोसा करना सही है। तुम्हें उनका अध्ययन करने या उन्हें बहुत गहराई से समझने की कोशिश करने की आवश्यकता नहीं है—तुम्हें केवल उनके कानूनों का उल्लंघन न करने की आवश्यकता है। भरोसा और समर्पण करने का यही अर्थ है। जब लोगों के दैनिक जीवन में परमेश्वर द्वारा अपेक्षित आदतों, सामान्य ज्ञान और दैनिक जीवन के नियमों आदि की बात आती है, जो मनुष्य के उद्धार का स्पर्श नहीं करते, भले ही वे सत्य के स्तर या कोटि के न हों, लेकिन फिर भी वे सभी सकारात्मक चीजें हैं। सभी सकारात्मक चीजें परमेश्वर से आती हैं, इसलिए लोगों को उन्हें स्वीकारना चाहिए—ये वचन सही हैं। इसके अलावा, मनुष्य होने के नाते उनमें क्या विवेक और जमीर पाया जाना चाहिए? पहला तो यह कि उन्हें यह सीखना चाहिए कि आज्ञापालन कैसे करना है। किसके वचनों का पालन करना है? दानवों और शैतान के वचनों का? लोगों के वचनों का? महान लोगों, उत्कृष्ट लोगों के वचनों का? मसीह-विरोधियों के वचनों का? इनमें से किसी के वचनों का नहीं। उन्हें परमेश्वर के वचनों का पालन करना चाहिए। परमेश्वर के वचनों का पालन करने के सिद्धांत और विशिष्ट अभ्यास क्या हैं? तुम्हें यह विश्लेषण करने की आवश्यकता नहीं है कि वे सही हैं या गलत, और तुम्हें यह पूछने की आवश्यकता नहीं है कि क्यों। उन्हें अभ्यास में लाने से पहले तुम्हें उन्हें समझने तक प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है। इसके बजाय, तुम्हें पहले सुनना, लागू करना, क्रियान्वित करना और पालन करना चाहिए, जो तुम्हारा पहला रवैया भी होना चाहिए। केवल तभी तुम एक सृजित प्राणी, और एक योग्य और उचित इंसान होगे। अगर मनुष्य होने के ये सबसे प्राथमिक मानक भी तुम्हारी क्षमता से परे हैं, और परमेश्वर यह नहीं स्वीकारता कि तुम मानव हो, तो क्या तुम उसके सामने आ सकते हो? क्या तुम परमेश्वर के वचन सुनने के योग्य हो? क्या तुम सत्य सुनने के योग्य हो? क्या तुम उद्धार के योग्य हो? तुम इनमें से किसी भी चीज के योग्य नहीं हो।

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