प्रकरण दो : कैसे नूह और अब्राहम ने परमेश्वर के वचनों का पालन किया और उसके प्रति समर्पण किया (भाग एक) खंड एक

I. नूह ने जहाज बनाया

आज मैं तुम्हें कई कहानियाँ सुनाकर शुरुआत करने जा रहा हूँ। इस विषय को सुनो, जिसके बारे में मैं बात करने वाला हूँ और देखो कि क्या इसका उन विषयों से कोई संबंध है, जिन पर हम पहले बात कर चुके हैं। ये कहानियाँ गहन नहीं हैं, शायद तुम सभी लोग इन्हें समझ जाओ। हमने ये कहानियाँ पहले भी सुनाई हैं, ये पुरानी कहानियाँ हैं। सबसे पहले नूह की कहानी है। नूह के समय में मानवजाति अत्यंत भ्रष्ट थी : लोग मूर्ति-पूजा करते थे, परमेश्वर का विरोध करते थे और सभी प्रकार के बुरे कृत्य करते थे। परमेश्वर ने उनके कुकर्म अपनी आँखों से देखे, उनकी बातें उसके कानों तक पहुँचीं, तो उसने तय किया कि वह इस मानवजाति को बाढ़ से नष्ट कर देगा और इस दुनिया को मिटा देगा। तो क्या सभी लोगों को मिटा दिया जाना था, किसी एक को भी जीवित नहीं रहने देना था? नहीं। एक व्यक्ति भाग्यशाली था, उसने परमेश्वर की नजर में कृपा पाई और वह परमेश्वर के विनाश का लक्ष्य नहीं था : वह व्यक्ति नूह था। परमेश्वर द्वारा बाढ़ से दुनिया को नष्ट किए जाने के बाद भी वह जीवित रहने वाला था। यह तय करने के बाद कि वह इस युग को समाप्त कर देगा और इस मानवजाति को नष्ट कर देगा, परमेश्वर ने कुछ किया। वह क्या था? एक दिन परमेश्वर ने नूह को आकाश से पुकारा। उसने कहा, “नूह, इस मानवजाति की बुराई मेरे कानों तक पहुँच गई है, और मैंने इस संसार को जल-प्रलय से नष्ट करने का निश्चय कर लिया है। तुम्हें गोपर की लकड़ी से एक जहाज बनाना है। मैं तुम्हें जहाज का माप दूँगा, और तुम्हें हर किस्म के जीवित प्राणी को इकट्ठा करके उस जहाज के भीतर लाना होगा। जब जहाज बन जाएगा और परमेश्वर द्वारा बनाए गए प्रत्येक जीवित प्राणी के एक नर और मादा को जहाज के भीतर इकट्ठा कर लिया जाएगा, तो परमेश्वर का दिन आएगा। उस समय मैं तुम्हें एक संकेत दूँगा।” ये वचन कहकर परमेश्वर चला गया। और परमेश्वर के वचन सुनकर नूह ने बिना किसी चूक के परमेश्वर द्वारा कहा गया हर काम करना शुरू कर दिया। उसने क्या किया? उसने गोपर की लकड़ी, जिसके बारे में परमेश्वर ने कहा था, और जहाज के निर्माण के लिए आवश्यक विभिन्न सामग्रियों की खोज की। उसने हर किस्म का जीवित प्राणी इकठ्ठा कर उसके पालन-पोषण की तैयारी भी की। ये दोनों महान उपक्रम उसके दिल पर अंकित हो गए थे। जब से परमेश्वर ने नूह को जहाज निर्माण का काम सौंपा था, तब से नूह ने अपने मन में कभी यह नहीं सोचा, “परमेश्वर कब दुनिया का नाश करने वाला है? वह मुझे ऐसा करने का संकेत कब देगा?” ऐसे मामलों पर विचार करने के बजाय नूह ने परमेश्वर की कही हर बात को गंभीरतापूर्वक अपने दिल में बसाया, और फिर उसे पूरा भी किया। परमेश्वर द्वारा सौंपे गए काम को स्वीकार करने के बाद नूह जरा भी लापरवाही न बरतते हुए परमेश्वर द्वारा कहे गए जहाज के निर्माण के कार्यान्वयन को अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण काम मानते हुए इसमें जुट गया। दिन बीतते गए, साल बीतते गए, दिन पर दिन, साल-दर-साल। परमेश्वर ने कभी नूह की निगरानी नहीं की, उसे प्रोत्साहित भी नहीं किया, परंतु इस पूरे समय में नूह परमेश्वर द्वारा सौंपे गए महत्वपूर्ण कार्य में दृढ़ता से लगा रहा। परमेश्वर का हर शब्द और वाक्यांश नूह के हृदय पर पत्थर की पटिया पर उकेरे गए शब्दों की तरह अंकित हो गया था। बाहरी दुनिया में हो रहे परिवर्तनों से बेखबर, अपने आसपास के लोगों के उपहास से बेफिक्र, उस काम में आने वाली कठिनाई या पेश आने वाली मुश्किलों से बेपरवाह, वह परमेश्वर द्वारा सौंपे गए काम में दृढ़ता से जुटा रहा, वह न कभी निराश हुआ और न ही उसने कभी काम छोड़ देने की सोची। परमेश्वर के वचन नूह के हृदय पर अंकित थे, और वह अपने दैनंदिन जीवन में उनका पालन करता था। नूह ने जहाज के निर्माण के लिए आवश्यक हर सामग्री तैयार कर ली, और परमेश्वर ने जहाज के लिए जो रूप और विनिर्देश दिए थे, वे नूह के हथौड़े और छेनी के हर सजग प्रहार के साथ धीरे-धीरे आकार लेने लगे। आँधी-तूफान के बीच, इस बात की परवाह किए बिना कि लोग कैसे उसका उपहास या उसकी बदनामी कर रहे हैं, नूह का जीवन साल-दर-साल इसी तरह गुजरता रहा। परमेश्वर बिना नूह से कोई और वचन कहे उसके हर कार्य को गुप्त रूप से देख रहा था, और उसका हृदय नूह से बहुत प्रभावित हुआ। लेकिन नूह को न तो इस बात का पता चला और न ही उसने इसे महसूस किया; आरंभ से लेकर अंत तक उसने बस परमेश्वर के वचनों के प्रति दृढ़ निष्ठा रखकर जहाज का निर्माण किया और सब प्रकार के जीवित प्राणियों को इकट्ठा कर लिया। नूह के हृदय में परमेश्वर के वचन ही उच्चतम निर्देश थे जिनका उसे पालन और क्रियान्वयन करना था और वे ही उसका लक्ष्य और दिशा थे जिनका उसने पूरे जीवन अनुसरण किया। इसलिए, परमेश्वर ने उससे चाहे जो कुछ भी बोला, उसे जो कुछ भी करने को कहा, उसे जो कुछ भी करने की आज्ञा दी हो, नूह ने उसे पूरी तरह से स्वीकार कर दिल में बसा लिया; उसने उसे अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीज माना और उसे उसी के अनुसार सँभाला। वह न केवल उसे भूला नहीं, उसने न केवल उसे अपने दिल में बसाए रखा, बल्कि उसे अपने दैनिक जीवन में साकार भी किया, जीवन के साथ परमेश्वर के आदेश को स्वीकार कर उसे क्रियान्वित करता रहा। और इस प्रकार, तख्त-दर-तख्त, जहाज बनता चला गया। नूह का हर कदम, उसका हर दिन परमेश्वर के वचनों और उसकी आज्ञाओं के प्रति समर्पित था। भले ही ऐसा न लगा हो कि नूह कोई धरती हिला देने वाली बहुत ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहा था, लेकिन परमेश्वर की दृष्टि में, नूह की हर गतिविधि, यहाँ तक कि हर कदम कुछ हासिल करने के लिए उसके द्वारा किया गया हर प्रयास, उसके हाथ द्वारा किया गया हर श्रम—वे सभी कीमती, याद रखने योग्य और इस मानवजाति द्वारा अनुकरणीय थे। परमेश्वर ने नूह को जो कुछ सौंपा था, उसने उसका पालन किया। वह अपने इस विश्वास पर अडिग था कि परमेश्वर द्वारा कही हर बात सत्य है; इस बारे में उसे कोई संदेह नहीं था। और परिणामस्वरूप, जहाज बनकर तैयार हो गया, और उसमें हर किस्म का जीवित प्राणी रहने में सक्षम हुआ। दुनिया को नष्ट करने से पहले परमेश्वर ने नूह को एक संकेत दिया, जिसने नूह को बताया कि जल-प्रलय निकट है, और उसे तुरंत जहाज में चढ़ जाना चाहिए। नूह ने ठीक वैसा ही किया, जैसा परमेश्वर ने कहा था। जब नूह जहाज में चढ़ा, तब आकाश से एक प्रचंड धारा बही, तो नूह ने देखा कि परमेश्वर के वचन सच हो गए हैं, उसके वचन साकार हो गए हैं : परमेश्वर का क्रोध संसार पर टूट चुका है, और कोई भी इसे बदल नहीं सकता।

नूह को जहाज बनाने में कितने वर्ष लगे? (120 वर्ष।) आज के लोगों के लिए 120 वर्ष क्या दर्शाते हैं? यह एक सामान्य व्यक्ति के जीवन-काल से अधिक लंबा समय है, शायद दो लोगों के जीवन-काल से भी अधिक लंबा। और फिर भी 120 वर्षों तक नूह ने एक ही काम किया, और उसने हर दिन वही काम किया। उस पूर्व-औद्योगिक समय में, सूचना-संचार से पहले के उस युग में, जब सब-कुछ लोगों के दो हाथों और शारीरिक श्रम पर निर्भर था, नूह ने हर दिन वही काम किया। 120 सालों तक उसने काम नहीं छोड़ा, न ही वह रुका। एक सौ बीस साल : हम इसकी कल्पना भी कैसे कर सकते हैं? क्या मानवजाति में से कोई और 120 साल तक एक ही काम करने के लिए प्रतिबद्ध रह पाता? (नहीं।) 120 साल तक कोई भी एक ही काम करने के लिए प्रतिबद्ध नहीं रह सकता था, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। और फिर भी एक व्यक्ति था, जो 120 वर्षों तक, बिना किसी फेर-बदल के, परमेश्वर ने उसे जो सौंपा था, उसमें दृढ़ता से लगा रहा, उसने न कभी कोई शिकायत की और न ही कभी हार मानी, वह किसी भी बाहरी परिवेश से अप्रभावित रहा, और अंततः उसने ठीक उसी तरह कार्य संपन्न कर दिया, जैसा परमेश्वर ने कहा था। यह किस प्रकार का मामला था? मानवजाति में यह दुर्लभ था, असामान्य—यहाँ तक कि यह अद्वितीय था। मानव-इतिहास के लंबे प्रवाह में, उन सभी मानवजातियों में जिन्होंने परमेश्वर का अनुसरण किया, इसकी कोई मिसाल नहीं मिलती। इसमें लगी इंजीनियरिंग की विशालता और जटिलता, इसके लिए अपेक्षित शारीरिक बल और परिश्रम, और इसमें लगी अवधि को देखते हुए यह कोई आसान काम नहीं था, इसलिए जब नूह ने यह कार्य संपन्न किया, तो यह मानवजाति के बीच अद्वितीय कार्य था, और वह उन सभी के लिए एक आदर्श और मिसाल है, जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं। नूह ने केवल कुछ ही संदेश सुने थे, और उस समय परमेश्वर ने ज्यादा वचन व्यक्त नहीं किए थे, इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि नूह ने बहुत-से सत्य नहीं समझे थे। उसे न आधुनिक विज्ञान की समझ थी, न आधुनिक ज्ञान की। वह एक अत्यंत सामान्य व्यक्ति था, मानवजाति का एक मामूली सदस्य। फिर भी एक मायने में वह सबसे अलग था : वह परमेश्वर के वचनों का पालन करना जानता था, वह जानता था कि परमेश्वर के वचनों का अनुसरण और पालन कैसे करना है, वह जानता था कि मनुष्य का उचित स्थान क्या है, और वह परमेश्वर के वचनों पर वास्तव में विश्वास कर उनके प्रति समर्पित होने में सक्षम था—इससे अधिक कुछ नहीं। नूह को परमेश्वर द्वारा सौंपे गए काम को क्रियान्वित करने देने के लिए ये कुछ सरल सिद्धांत पर्याप्त थे, और वह इसमें केवल कुछ महीनों, कुछ वर्षों या कुछ दशकों तक नहीं, बल्कि एक शताब्दी से भी अधिक समय तक दृढ़ता से जुटा रहा। क्या यह संख्या आश्चर्यजनक नहीं है? नूह के अलावा इसे और कौन कर सकता था? (कोई नहीं।) और क्यों नहीं कर सकता था? कुछ लोग कहते हैं कि इसका कारण सत्य को न समझना है—लेकिन यह तथ्य के अनुरूप नहीं है! नूह ने कितने सत्य समझे थे? नूह यह सब करने में सक्षम क्यों था? आज के विश्वासियों ने परमेश्वर के बहुत-से वचन पढ़े हैं, वे कुछ सत्य समझते हैं—तो ऐसा क्यों है कि वे ऐसा करने में असमर्थ हैं? अन्य लोग कहते हैं कि यह लोगों के भ्रष्ट स्वभाव के कारण है—लेकिन क्या नूह का स्वभाव भ्रष्ट नहीं था? क्यों नूह इसे हासिल करने में सक्षम था, लेकिन आज के लोग नहीं हैं? (क्योंकि आज के लोग परमेश्वर के वचनों पर विश्वास नहीं करते, वे न तो उन्हें सत्य मानते हैं और न ही उनका पालन करते हैं।) और वे परमेश्वर के वचनों को सत्य मानने में असमर्थ क्यों हैं? वे परमेश्वर के वचनों का पालन करने में असमर्थ क्यों हैं? (उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय नहीं है।) तो जब लोगों में सत्य की समझ नहीं होती और उन्होंने बहुत-से सत्य नहीं सुने होते, तो उनमें परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय कैसे उत्पन्न होता है? (उनमें मानवता और जमीर होना चाहिए।) यह सही है। लोगों की मानवता में दो सबसे कीमती चीजें मौजूद होनी चाहिए : पहली चीज है जमीर और दूसरी है सामान्य मानवता का विवेक। इंसान होने के लिए जमीर और सामान्य मानवता का विवेक होना न्यूनतम मानक है; यह किसी व्यक्ति को मापने के लिए न्यूनतम, सबसे बुनियादी मानक है। लेकिन यह आज के लोगों में नदारद है, और इसलिए चाहे वे कितने ही सत्य सुन और समझ लें, परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय रखना उनकी क्षमता से परे है। तो आज के लोगों और नूह के बीच मूलभूत अंतर क्या है? (उनमें मानवता नहीं है।) और मानवता की इस कमी का सार क्या है? (वे जानवर और राक्षस हैं।) “जानवर और राक्षस” कहना बहुत अच्छा नहीं लगता, लेकिन यह तथ्यों के अनुरूप है; इसे कहने का एक और विनम्र तरीका यह होगा कि उनमें कोई मानवता नहीं होती। बिना मानवता और विवेक के लोग, लोग नहीं होते, वे जानवरों से भी नीचे होते हैं। नूह परमेश्वर की आज्ञा पूरी करने में सक्षम इसलिए था, क्योंकि जब नूह ने परमेश्वर के वचन सुने, तो वह उन्हें दृढ़ता से अपने दिल में बसाए रखने में सक्षम था; उसके लिए परमेश्वर की आज्ञा एक जीवन भर की जिम्मेदारी थी, उसकी आस्था अटूट थी, उसकी इच्छा सौ वर्षों तक अपरिवर्तित रही। चूँकि उसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय था, वह एक वास्तविक व्यक्ति था, और उसमें इस बात का अत्यधिक विवेक था इसलिए परमेश्वर ने उसे जहाज के निर्माण का काम सौंपा है। नूह जितनी मानवता और विवेक रखने वाले लोग बहुत दुर्लभ हैं, दूसरा नूह खोजना बहुत मुश्किल होगा।

नूह वास्तव में केवल एक ही काम करने में सक्षम था। यह बहुत ही आसान था : परमेश्वर के वचनों को सुनकर उसने उन्हें क्रियान्वित किया, और ऐसा उसने बिना किसी समझौते के किया। उसमें कभी कोई संदेह नहीं थे, न ही उसने कभी हार मानी। परमेश्वर ने उससे जो कुछ भी करने को कहा, वह करता रहा, उसने उसे उसी तरह से किया जिस तरह से करने के लिए परमेश्वर ने उससे कहा, बिना किसी समझौते के, बिना किसी कारण या अपने लाभ या हानि का विचार किए। उसने परमेश्वर के ये वचन याद रखे : “परमेश्वर दुनिया को नष्ट करने जा रहा है। तुझे बिना देरी किए एक जहाज बनाना है, और जब वह बन जाएगा और बाढ़ का पानी आएगा, तो तुम सभी लोग जहाज पर चढ़ जाओगे, और जो जहाज पर नहीं चढ़ेंगे, वे सभी नष्ट हो जाएँगे।” उसे नहीं पता था कि जो कुछ परमेश्वर ने कहा है, वह कब पूरा होगा, वह तो बस इतना जानता था कि परमेश्वर ने जो कहा है, वह पूरा होगा, कि परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं, उनमें से एक भी वचन झूठा नहीं है, और यह कि वे कब फलीभूत होंगे, वे किस समय साकार होंगे, यह परमेश्वर पर निर्भर है। वह जानता था कि उस समय उसका एकमात्र कार्य परमेश्वर द्वारा कही गई हर बात को दृढ़ता से दिल में बसाए रखना और फिर बिना समय बरबाद किए उसे क्रियान्वित करना था। ऐसे विचार थे नूह के। उसने यही सोचा और यही किया, और ये तथ्य हैं। तो, तुम लोगों और नूह के बीच मूलभूत अंतर क्या है? (जब हम परमेश्वर का वचन सुनते हैं, तो हम उसका अभ्यास नहीं करते।) यह व्यवहार है, मूलभूत अंतर क्या है? (हममें मानवता नहीं है।) बात यह है कि नूह में ऐसी दो न्यूनतम चीजें थीं जो हर मनुष्य में होनी चाहिए—जमीर और सामान्य मानवता का विवेक। तुम लोगों में ये चीजें नहीं हैं। क्या यह कहना उचित है कि नूह को इंसान कहा जा सकता है और तुम लोग इंसान कहे जाने के योग्य नहीं हो? (हाँ।) मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? तथ्य सामने हैं : नूह ने जो किया उसके संदर्भ में, आधा तो भूल जाओ, तुम लोग उसका एक छोटा-सा हिस्सा भी नहीं कर सकते। नूह 120 साल तक टिके रहने में सक्षम था। तुम लोग कितने साल तक टिके रह सकते हो? 100? 50? 10? पाँच? दो? आधा साल? तुममें से कौन आधे साल तक टिका रह सकता है? बाहर जाकर उस लकड़ी की तलाश करना जिसके बारे में परमेश्वर ने कहा था, उसे काटना, उसकी छाल अलग करना, लकड़ी सुखाना, फिर उसे विभिन्न आकार-प्रकारों में काटना—क्या तुम लोग आधे साल तक यह करते रह सकते हो? तुममें से अधिकतर लोग अपना सिर हिलाकर मना कर रहे हैं—तुम आधे साल भी यह सब नहीं कर सकते। तो, तीन महीने तक करने के बारे में क्या विचार है? कुछ लोग कहते हैं, “मेरा खयाल है, तीन महीने तक करना भी कठिन होगा। मैं तो छोटा और नाजुक हूँ। जंगल में मच्छर और अन्य कीड़े-मकोड़े होते हैं, चींटियाँ और पिस्सू भी होते हैं। अगर उन सबने मुझे काट लिया, तो मैं सहन नहीं कर पाऊँगा। और फिर, हर दिन लकड़ी काटना, वह गंदा, थका देने वाला काम करना, बाहर झुलसा देने वाली धूप और थपेड़े मारने वाली हवा में, तो मुझे धूप से झुलसने में दो दिन भी नहीं लगेंगे। यह इस तरह का काम नहीं है, जो मैं करना चाहता हूँ—क्या कोई आसान काम है, जिसे करने का मुझे आदेश दिया जा सके?” क्या तुम यह चुन सकते हो कि परमेश्वर तुम्हें क्या करने का आदेश दे? (नहीं।) यदि तुम इसे तीन महीने तक भी नहीं कर सकते, तो क्या तुममें सच्चा समर्पण है? क्या तुममें समर्पण की वास्तविकता है? (नहीं।) तुम तीन महीने तक भी नहीं टिक सकते। तो, क्या कोई ऐसा है, जो आधा महीना टिक सके? कुछ लोग कहते हैं, “मुझे गोपर की लकड़ी की पहचान नहीं है या मैं पेड़ नहीं काट सकता। मुझे तो यह भी नहीं पता कि जब मैं पेड़ काटूँगा तो वह किस ओर गिरेगा—अगर वह मुझ पर ही गिर पड़ा तो क्या होगा? इसके अलावा, पेड़ों को काटने के बाद मैं अधिक से अधिक एक या दो पेड़ों के तने ही उठाकर ले जा सकता हूँ। इससे अधिक उठाए, तो मेरी पीठ और कंधे जवाब दे जाएँगे, है ना?” तुम आधे महीने तक भी नहीं कर सकते। तो, तुम लोग क्या कर सकते हो? अगर तुम लोगों से परमेश्वर के वचनों का पालन करने, परमेश्वर के वचनों के प्रति समर्पण करने और उन्हें कार्यान्वित करने के लिए कहा जाए, तो तुम लोग क्या हासिल कर सकते हो? कंप्यूटरों का इस्तेमाल करने और आदेश देने के अलावा तुम लोग क्या करने में सक्षम हो? यदि यह नूह का समय होता, तो क्या परमेश्वर तुम लोगों को पुकारता? बिल्कुल नहीं! तुम लोग वे न होते जिन्हें परमेश्वर पुकारता; तुम वे न होते जिन पर परमेश्वर अपनी कृपादृष्टि डालता। क्यों? क्योंकि तुम वह नहीं हो, जो परमेश्वर के वचनों को सुनने के बाद उनके प्रति समर्पण करने में सक्षम होता है। और अगर तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो, तो क्या तुम जीने लायक हो? बाढ़ आने पर क्या तुम जीवित रहने योग्य हो? (नहीं।) यदि नहीं हो, तो तुम नष्ट हो जाओगे। यदि तुम आधे महीने तक भी परमेश्वर के वचनों का कार्यान्वयन नहीं कर सकते, तो तुम किस तरह के इंसान हो? क्या तुम ऐसे इंसान हो, जो सच में परमेश्वर में विश्वास रखता है? यदि परमेश्वर के वचन सुनकर तुम उनका क्रियान्वयन करने में असमर्थ रहते हो, यदि तुम आधे महीने भी नहीं टिक सकते, दो सप्ताह की कठिनाई भी नहीं झेल सकते, तो तुम पर उस थोड़े-से सत्य का क्या प्रभाव होता है, जिसे तुम समझते हो? यदि वह तुम्हें काबू में रखने का जरा-सा भी प्रभाव नहीं डालता, तो तुम्हारे लिए सत्य केवल कुछ शब्द हैं, और यह बिल्कुल बेकार है। यदि तुम उन सारे सत्यों को समझते हो, फिर भी अगर तुमसे परमेश्वर के वचनों को कार्यान्वित करने और 15 दिनों की कठिनाई का सामना करने के लिए कहा जाए और तुम यह बरदाश्त न कर पाओ, तो तुम किस तरह के इंसान हो? परमेश्वर की दृष्टि में क्या तुम मानक-स्तर के सृजित प्राणी हो? (नहीं।) नूह के कष्टों और उसकी 120 वर्षों की दृढ़ता को देखते हुए, तुम लोगों के बीच सिर्फ एक छोटी-सी दूरी नहीं है—दोनों में कोई तुलना ही नहीं है। परमेश्वर द्वारा नूह को बुलाकर उसे वह सब, जो वह कराना चाहता था, सौंपने का कारण यह था कि परमेश्वर की दृष्टि में नूह उसके वचनों को मानने में सक्षम था, वह एक ऐसा व्यक्ति था जिसे बड़ा कार्य सौंपा जा सकता था, वह भरोसेमंद था, और ऐसा व्यक्ति था जो वह काम साकार कर सकता था जो परमेश्वर चाहता था; परमेश्वर की दृष्टि में वह एक सच्चा इंसान था। और तुम लोग? तुम लोग इन चीजों में से कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। परमेश्वर की दृष्टि में तुम सभी लोग क्या हो, इसकी कल्पना करना कठिन नहीं है। क्या तुम मनुष्य हो? क्या तुम मनुष्य कहलाने लायक हो? उत्तर स्पष्ट है : तुम मनुष्य नहीं हो! मैंने जितना संभव हो सका, समय कम करके 15 दिन कर दिए, सिर्फ दो हफ्ते, और फिर भी तुम लोगों में से किसी ने नहीं कहा कि तुम यह कर सकते हो। यह क्या दर्शाता है? यही कि तुम लोगों की आस्था, निष्ठा और समर्पण सब शून्य के बराबर है। तुम लोग जिसे आस्था, निष्ठा और समर्पण मानते हो, मैं उसे कुछ नहीं समझता! तुम लोग शेखी बघारते हो कि तुम बहुत अच्छे हो, लेकिन मेरी दृष्टि में तुम लोगों में बहुत कमियाँ हैं!

नूह की कहानी में जो सबसे अविश्वसनीय, सबसे प्रशंसनीय और सबसे अनुकरणीय है, वह है उसकी 120 सालों की दृढ़ता, उसका 120 सालों का समर्पण और निष्ठा। देखो, क्या परमेश्वर ने व्यक्ति के चुनाव में गलती की थी? (नहीं।) परमेश्वर वह परमेश्वर है जो मनुष्य के अंतरतम अस्तित्व का निरीक्षण करता है। लोगों के उस विशाल सागर में से उसने नूह को चुना, उसने नूह को पुकारा, तो परमेश्वर ने अपने चुनाव में कोई गलती नहीं की थी : नूह उसकी अपेक्षाओं पर खरा उतरा, उसने सफलतापूर्वक उस कार्य को संपन्न किया, जो परमेश्वर ने उसे सौंपा था। यह गवाही है। परमेश्वर यही चाहता था, यह गवाही है! लेकिन क्या तुम लोगों में इसका कोई संकेत या लक्षण है? नहीं है। स्पष्ट रूप से, तुम लोगों में ऐसी गवाही नदारद है। तुम लोगों में जो उजागर होता है, जो परमेश्वर देखता है, वह शर्मिंदगी का चिह्न है; तुममें कोई एक भी चीज ऐसी नहीं है, जिसके बारे में बात करने पर लोगों की आँखों में आँसू आ जाएँ। नूह की विभिन्न अभिव्यक्तियों के संबंध में, विशेषकर परमेश्वर के वचनों में उसका दृढ़ विश्वास जो एक शताब्दी तक बिना किसी संदेह या परिवर्तन के बना रहा, और जहाज बनाने के प्रति उसकी दृढ़ता जो एक शताब्दी तक नहीं डगमगाई, और उसकी इस आस्था और दृढ़ संकल्प के संबंध में, आधुनिक समय में कोई उससे तुलना नहीं कर सकता, कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकता। और फिर भी कोई नूह की निष्ठा और समर्पण की परवाह नहीं करता, कोई नहीं मानता कि इसमें ऐसा कुछ है, जो लोगों द्वारा सँजोने और अनुकरण के योग्य है। इसके बजाय, अब लोगों के लिए क्या अधिक महत्वपूर्ण है? नारे लगाना और धर्म-सिद्धांतों के बारे में बोलना। ऐसा दिखता है कि वे बहुत-से सत्य समझते हैं और उन्होंने सत्य पा लिया है—लेकिन नूह के कार्य की तुलना में उन्होंने उसका सौवाँ, हजारवाँ हिस्सा भी हासिल नहीं किया है। उनमें कितनी कमियाँ है! जमीन-आसमान का अंतर है। नूह के जहाज बनाने से क्या तुम लोगों ने जाना है कि परमेश्वर किस तरह के लोगों से प्रेम करता है? परमेश्वर के प्रिय लोगों में किस तरह का गुण, हृदय और सत्यनिष्ठा पाई जाती है? क्या तुम लोगों में वे सभी चीजें हैं, जो नूह में थीं? यदि तुम्हें लगता है कि तुममें नूह की आस्था और चरित्र है, तो तुम्हारा परमेश्वर के सामने शर्तें रखना, और उससे सौदेबाजी करना कुछ हद तक क्षम्य होगा। अगर तुम्हें लगता है कि वे चीजें तुममें पूरी तरह से नदारद हैं, तो मैं तुमसे सच कहता हूँ : अपने मुँह मियाँ मिट्ठू मत बनो—तुम कुछ नहीं हो। परमेश्वर की नजर में तुम्हारी औकात एक कीड़े से भी कम है। और फिर भी तुममें इतनी हिम्मत है कि तुम परमेश्वर के सामने शर्तें रखने और उससे सौदेबाजी करने की कोशिश करते हो? कुछ लोग कहते हैं, “अगर मेरी औकात एक कीड़े से भी कम है, तो मेरा परमेश्वर के घर में एक कुत्ते के रूप में सेवा करना कैसा रहेगा?” नहीं, तुम इस लायक भी नहीं हो। क्यों? तुम परमेश्वर के घर के दरवाजे पर ठीक से नजर तक नहीं रख सकते, इसलिए मेरी नजर में तुम एक पहरेदार कुत्ते के बराबर भी नहीं हो। क्या ये वचन तुम लोगों को आहत करते हैं? क्या यह सुनना तुम लोगों के लिए अप्रिय है? इसका उद्देश्य तुम लोगों के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाना नहीं है; यह एक तथ्य-आधारित मूल्यांकन है, एक तथ्य-आधारित कथन है, और जरा भी झूठा नहीं है। तुम लोग ठीक इसी तरह व्यवहार करते हो, यह ठीक वही है जो तुम लोगों में प्रदर्शित होता है; तुम लोग ठीक इसी तरह परमेश्वर के साथ बरताव करते हो, और इसी तरह तुम लोग उन तमाम कार्यों के साथ भी पेश आते हो, जो परमेश्वर तुम्हें सौंपता है। मैंने जो कुछ भी कहा है, वह सच है और दिल से निकला है। हम नूह की कहानी पर चर्चा यहीं समाप्त करेंगे।

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें