प्रकरण छह : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग तीन) खंड दो
vi. माँग करना
अगली मद यह है कि मसीह-विरोधी परमेश्वर से माँग करते हैं, और इसकी और ज्यादा विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं। मसीह-विरोधियों को उस चीज के द्वारा वर्णित किया जा सकता है, जिसे गैर-विश्वासी “बिना पुरस्कार के कभी कोई काम मत करो” कहते हैं। और कुछ? (वे “जब तक कोई लाभ नहीं दिखता, काम शुरू नहीं करते।”) वे जब तक कोई लाभ नहीं दिखता, काम शुरू नहीं करते—अगर लाभ हो तो वे उसे करेंगे, लेकिन अगर कोई लाभ न हो तो वे नहीं करेंगे। स्थिति चाहे जो भी हो, उन्हें यह सोचते हुए अपने मन में तोलना होता है, “मुझे इसे करने से कितना बड़ा लाभ मिल सकता है? मैं कितना लाभ प्राप्त कर सकता हूँ? क्या इसके लिए इतनी बड़ी कीमत चुकाना उचित है? अगर मैं बड़ी कीमत चुकाता हूँ लेकिन लाभ दूसरों को मिल जाता है और मुझे खुद को दिखाने का मौका नहीं मिलता, तो मैं निश्चित रूप से इसे नहीं करूँगा!” क्या परमेश्वर के आदेश और अपेक्षाओं के प्रति मसीह-विरोधियों का यही रवैया नहीं होता? अगर वे अपने कर्तव्यों के प्रदर्शन में थोड़ा-सा प्रयास करते हैं लेकिन कोई लाभ प्राप्त नहीं करते, और अनुग्रह प्राप्त किए बिना कुछ कष्ट सहते हैं, तो वे यह कहते हुए तुरंत मन ही मन प्रतिक्रिया देते हैं, “मैंने इतना प्रयास किया—मुझे कोई लाभ क्यों नहीं मिला? मेरा पारिवारिक व्यवसाय लाभदायक है या नहीं?” अगर वे गणना करके पाते हैं कि उनकी आय पिछले महीने की तुलना में ज्यादा है, तो वे जोखिमों के बावजूद निडर होकर सुसमाचार प्रचार करना जारी रखते हैं। लेकिन जब पारिवारिक व्यवसाय में कोई समस्या आती है और उनका लाभ पिछले महीने की तुलना में काफी कम होता है, तो वे यह सोचते हुए तुरंत अपने दिल में परमेश्वर के बारे में शिकायत और उस पर संदेह करते हैं, “हे परमेश्वर, मैंने आलसी या चालाक हुए बिना अपना कर्तव्य निभाया, मैंने उसे लापरवाही से भी नहीं किया। इस महीने मैंने पिछले महीने से ज्यादा यात्रा की और ज्यादा काम किया। तुम मेरे परिवार को आशीष क्यों नहीं दे रहे? मेरा पारिवारिक व्यवसाय अच्छा क्यों नहीं चल रहा?” परमेश्वर और उसके आदेश के प्रति उनका रवैया तुरंत बदल जाता है और वे सोचते हैं, “अगर तुम मेरे परिवार को आशीष नहीं देते, तो मुझे अपना कर्तव्य लापरवाही से करने के लिए दोष न देना। अगले महीने मैं इतना प्रयास नहीं करूँगा। अगर मुझसे पाँच बजे उठना अपेक्षित है, तो मैं छह बजे उठूँगा। अगर मुझसे आठ बजे निकलना अपेक्षित है, तो मैं दस बजे निकलूँगा। पहले मैं एक महीने में पाँच सुसमाचार-प्राप्तकर्ताओं को परिवर्तित कर लेता था; इस बार मैं सिर्फ दो को ही परिवर्तित करूँगा। यह पर्याप्त होना चाहिए!” वे क्या गणना कर रहे हैं? यही कि वे जो निवेश और योगदान करते हैं वह, परमेश्वर जो उन्हें देता है, उसके बराबर है या नहीं। इसके अलावा, वे इसे तभी किफायती और कष्ट सहने और कीमत चुकाने योग्य पाते हैं, जब परमेश्वर उन्हें जो देता है वह उनकी माँग और इच्छा से कई गुना ज्यादा होता है। वरना, परमेश्वर के घर द्वारा उन्हें जो भी कार्य या कर्तव्य सौंपा जाता है, वे हर काम को एक ही ढंग से करते हैं—लापरवाही से कार्य करते हैं, जब भी संभव हो बच निकलते हैं, जब संभव हो खानापूरी करते हैं, और कभी जरा भी ईमानदारी नहीं बरतते। यह अभिव्यक्ति माँग और सौदा करना दोनों है; लोग माँग तभी करते हैं जब कोई सौदा करना होता है, और सौदे के बिना उनकी कोई माँग नहीं होती।
मसीह-विरोधियों के दिलों में परमेश्वर के आदेश, परमेश्वर के घर के कार्य या अपने कर्तव्यों के प्रति जरा-सी भी ईमानदारी या वफादारी नहीं होती। वे अपनी बुद्धि, ऊर्जा, समय और शारीरिक कष्ट और जो कीमत वे चुकाते हैं, उसका इस्तेमाल सिर्फ आशीष पाने की अपनी इच्छा पूरी करने के लिए, उन पुरस्कारों के लिए जो वे प्राप्त करना चाहते हैं और निश्चित रूप से देह के सुकून और सुख के लिए, आंतरिक स्थिरता, इस जीवनकाल में पारिवारिक खुशी, यहाँ तक कि अपने आस-पास के माहौल में सहजता के साथ-साथ दूसरे लोगों द्वारा सम्मान, प्रशंसा और सकारात्मक मूल्यांकन के लिए करते हैं। संक्षेप में, मसीह-विरोधी कभी परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य ईमानदारी से नहीं निभाते और वे बिल्कुल भी वफादारी नहीं बरतते। चाहे कठिनाइयाँ सह रहे हों और कीमत चुका रहे हों या लापरवाही से बचकर निकल रहे हों, उनका अंतिम लक्ष्य परमेश्वर से अपनी इच्छाएँ पूरी करने के लिए वही माँगना होता है जो वे चाहते हैं। इसलिए जब भी वे विपत्ति, काट-छाँट या ऐसे लोगों, घटनाओं और चीजों का सामना करते हैं जो उन्हें अप्रिय लगती हैं, तो वे तुरंत सोचते हैं, “क्या इन चीजों के आने से मेरे हितों पर असर पड़ेगा? क्या ये मेरी प्रतिष्ठा को प्रभावित करेंगी? क्या ये मेरी संभावनाओं और भावी विकास को प्रभावित करेंगी?” अपने कर्तव्य निभाने के दौरान उनकी अभिव्यक्तियाँ सकारात्मक हों या नकारात्मक, किसी भी सूरत में वे कभी सत्य-सिद्धांतों के अनुसार काम नहीं करते। उनके दिमाग लेनदेन से भरे होते हैं, वे एक व्यवसायी की तरह जो चुकाते और चढ़ाते हैं उसके मूल्य का आकलन करते रहते हैं, यह आकलन करते रहते हैं कि उनकी लागत से कितना ज्यादा लाभ हासिल किया जा सकता है। कुछ लोग कह सकते हैं, “हम उद्धार प्राप्त करने के उद्देश्य से सत्य और जीवन पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास करते हैं।” लेकिन मसीह-विरोधी यह सोचते हैं, “उद्धार का कितना मूल्य है? सत्य को समझने का कितना मूल्य होगा? इन चीजों का कोई मूल्य नहीं है। वास्तव में कुछ मूल्यवान है, तो इस जीवन में सौ गुना और आने वाली दुनिया में अनंत जीवन पाना है। इस जीवन में दूसरों से आदर-सम्मान प्राप्त होना, परमेश्वर के घर में महान व्यक्ति के रूप में सम्मानित होना और आने वाले संसार में अनगिनत राष्ट्रों पर अधिकार रखना—यह वास्तव में बड़ा लाभ है।” यह मसीह-विरोधियों की महत्वाकांक्षा होती है, एक गणना जो वे अपने कर्तव्य के प्रदर्शन के पीछे अपने दिलों की गहराई में करते हैं। यह गणना लेनदेन और माँगों से भरी होती है। अपने कर्तव्य और परमेश्वर के प्रति उनकी थोड़ी-सी “ईमानदारी” सिर्फ यह सुनिश्चित करने के लिए होती है कि परमेश्वर उन्हें शाश्वत जीवन प्रदान करे, उन्हें आपदा से बचाए, उन्हें आशीष और अनुग्रह प्रदान करे और उनकी तमाम इच्छाएँ पूरी करे। इसलिए मसीह-विरोधियों के दिल परमेश्वर से विभिन्न माँगों से भरे होते हैं, सामूहिक रूप से जिन्हें माँग करना कहा जाता है। सत्य को न चाहने के अलावा मसीह-विरोधी बाकी सब-कुछ चाहते हैं—भौतिक और अभौतिक दोनों चीजें।
कुछ मसीह-विरोधी हैं जिन्होंने कभी भाई-बहनों या कलीसिया के लिए छोटा-मोटा योगदान दिया था। उदाहरण के लिए, उन्होंने कलीसिया में कुछ जोखिम भरे काम किए होंगे या उन भाई-बहनों की मेजबानी की होगी जो घर वापस नहीं आ पाए। परमेश्वर में उनकी आस्था की अपेक्षाकृत लंबी अवधि को जोड़ते हुए, ज्यादातर लोग उन्हें मेधावी और योग्य व्यक्ति मानते हैं। साथ ही, वे खुद भी श्रेष्ठता और अनुकूल स्थिति होने की भावना महसूस करते हैं। वे अपनी वरिष्ठता पर भरोसा करते हैं और इस बारे में शेखी बघारते हुए कहते हैं, “मैंने इतने सालों तक परमेश्वर पर विश्वास किया है और परमेश्वर के घर में कुछ योगदान दिया है। क्या परमेश्वर को मेरे साथ विशेष व्यवहार नहीं करना चाहिए? उदाहरण के लिए, विदेश जाना ऐसा आशीष है, जिसका लोग आनंद लेते हैं। लोगों की वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए क्या मुझे प्राथमिकता नहीं मिलनी चाहिए? चूँकि मैंने परमेश्वर के घर में योगदान दिया है, इसलिए मुझे प्राथमिकता दी जानी चाहिए, मेरी विशेष देखभाल की जानी चाहिए, और मेरा आकलन सिद्धांतों के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए।” कुछ लोगों को तो जेल भी हो चुकी है और रिहा होने के बाद खुद को बेघर पाकर उन्हें लगता है कि परमेश्वर के घर को उनकी विशेष देखभाल करनी चाहिए : उदाहरण के लिए, उन्हें घर खरीदने में मदद करने के लिए कुछ धन आवंटित करना चाहिए, उनके जीवन के उत्तरार्ध में उनकी आजीविका की जिम्मेदारी लेनी चाहिए या उनकी तमाम भौतिक आवश्यकताएँ पूरी करनी चाहिए। अगर उन्हें जरूरत हो, तो परमेश्वर के घर को उन्हें कार मुहैया करानी चाहिए। अगर उन्हें कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हों, तो परमेश्वर के घर को उन्हें स्वास्थ्य संबंधी पूरक पदार्थ खरीदकर देने चाहिए। क्या वे अपनी वरिष्ठता से अनुचित लाभ नहीं उठा रहे और अपनी योग्यताओं पर इतरा नहीं रहे? ये लोग मानते हैं कि उन्होंने योगदान दिया है, इसलिए वे बेशर्मी से और खुलेआम परमेश्वर से माँग करते हैं। वे कारें, घर और शानदार जीवन-शैली की माँग करते हैं। यहाँ तक कि वे भाई-बहनों से उनके सेवक या दास बनकर मुफ्त में उनके लिए चीजें सँभालने और बाहर के काम करने के लिए भी कहते हैं। क्या वे कलीसिया पर पलने वाले व्यक्ति नहीं बन गए हैं? परमेश्वर में तुम्हारी आस्था असल में तुम्हारी अपनी खातिर है और तुम अपनी खातिर ही जेल जाते हो। तुम जो भी कर्तव्य निभाते हो, वह तुम्हारी जिम्मेदारी है। जब तुम अपना कर्तव्य निभाते हो और सत्य प्राप्त करते हो, तो यह तुम्हारी अपनी खातिर ही होता है। परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास स्वैच्छिक है, कोई तुम्हें मजबूर नहीं करता। जीवन प्राप्त करना तुम्हारी अपनी खातिर है, यह कोई दूसरों के लिए नहीं है। अगर तुमने परमेश्वर के घर या कलीसिया के लिए कुछ जोखिम भरे काम किए भी हैं, तो क्या उसे श्रेय कमाने का काम माना जाएगा? यह कोई श्रेय कमाने का काम नहीं है; यह तो तुम्हें करना ही चाहिए। यह परमेश्वर द्वारा तुम्हारा उत्कर्ष कर तुम्हें ऐसा अवसर देना है; यह परमेश्वर का आशीष है। इसका इस्तेमाल तुम कलीसिया पर पलने के लिए पूँजी के रूप में नहीं कर सकते। तो क्या ये लोग मसीह-विरोधी हैं? विशेष रूप से, ये लोग किसी सत्य वास्तविकता पर संगति नहीं कर सकते, और जब ये उन भाई-बहनों के साथ होते हैं जिन्हें विश्वास रखे कम समय हुआ है और जो उम्र में छोटे हैं, तो वे सिर्फ अपने पुराने अनुभवों के बारे में संगति करते हैं और अपनी योग्यताओं का दिखावा करते हैं; वे मूल्यवान जीवन अनुभवों के बारे में किसी संगति या ज्ञान से रहित होते हैं। वे दूसरों को शिक्षित नहीं करते, बल्कि शान बघारते हुए दर्प से चूर रहते हैं। वे परमेश्वर के घर में कोई महत्वपूर्ण कार्य करने में सक्षम नहीं होते, न ही वे कोई वास्तविक कार्य ठीक से कर सकते हैं। फिर भी वे कलीसिया पर पलते रहते हैं और परमेश्वर से माँग करने के लिए अपने हाथ फैलाते हैं। क्या यह बेशर्मी नहीं है? अगर हम योग्यताओं की बात करें, तो क्या मैं तुम लोगों से ज्यादा योग्य नहीं हूँ? क्या मैंने तुम्हारे सामने शान बघारी है? क्या मैंने तुम लोगों से कुछ माँगा है? (नहीं।) तो फिर मसीह-विरोधी ऐसी हरकतें कैसे कर सकते हैं? इसलिए कि वे बेशर्म हैं। जब वे अपने कर्तव्य स्वीकारते हैं, तो उनके दिमाग लेनदेन से भरे होते हैं। जब वे अपने कर्तव्य निभाते हैं, तो उनमें सही दृष्टिकोण का अभाव होता है और वे उन्हें अपने कर्तव्य या दायित्व नहीं मानते, जो कि सृजित प्राणी को मानना चाहिए। हालाँकि वे कुछ कर्तव्य निभा सकते हैं, कुछ कष्ट सह सकते हैं और कीमत चुका सकते हैं, लेकिन वे अपने दिल में क्या सोचते हैं? “यह कार्य ऐसा है, जिसे कोई और नहीं कर सकता। अगर मैं इसे करता हूँ, तो मैं परमेश्वर के घर में प्रसिद्ध हो जाऊँगा, जहाँ भी जाऊँगा मेरा सम्मान किया जाएगा और मैं हर जगह सर्वश्रेष्ठ का आनंद लेने योग्य हो जाऊँगा। मैं परमेश्वर के घर में बड़ी हस्ती बन जाऊँगा, जो चाहूँगा वो पा सकूँगा, और कोई कुछ कहने की हिम्मत नहीं करेगा क्योंकि मेरे पास योग्यताएँ हैं!” अपने चरित्र के आधार पर मसीह-विरोधी परमेश्वर, उसके आदेश या परमेश्वर के घर के कार्य के साथ थोड़ी-सी भी ईमानदारी या तत्परता से पेश नहीं आ सकते। अगर वे कष्ट सहने और कीमत चुकाने के इच्छुक और उसमें सक्षम दिखाई देते भी हों, तो भी इसके तुरंत बाद वे परमेश्वर से माँग करने और पुरस्कार माँगने के लिए अपने हाथ फैलाने को तैयार हो जाते हैं और कलीसिया पर पलकर हर जगह लाभ उठाने की कोशिश करते हैं। इसलिए उनके तरीकों से आँकें तो, उनके मसीह-विरोधी स्वभाव सार को दुष्ट के रूप में परिभाषित करना सबसे उपयुक्त है। अपने कर्तव्यों और परमेश्वर के आदेश के बारे में उनके विचार और दृष्टिकोण दुष्ट होते हैं, सत्य के अनुरूप नहीं होते और जमीर के मानक के अनुरूप तो बिल्कुल नहीं होते।
मसीह-विरोधी जो भी काम करते हैं, उसमें वे अपनी मरजी चलाते हैं, व्यक्तिगत प्रसिद्धि और रुतबा खोजते हैं। वे कभी सत्य नहीं खोजते या आत्मचिंतन नहीं करते। अपने काम में होने वाले किसी विचलन या समस्याओं के सामने उनका रवैया न तो सत्य खोजने का होता है और न ही उसे स्वीकारने का। इसके बजाय, वे हमेशा तथ्यों को छिपाने, अपनी इज्जत और झूठी महिमा बनाए रखने और हर पहलू में खुद को आकर्षक रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं, लोगों का सम्मान हासिल करते हैं। संक्षेप में, उनके दिल दुष्टता, शैतान के फलसफे और इंसानी धारणाओं और कल्पनाओं से भरे रहते हैं, उनमें कुछ भी ऐसा नहीं होता जो सत्य के अनुरूप हो। मसीह-विरोधी जो भी काम करते हैं, उसमें कभी सत्य नहीं खोजते और वे कभी परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने का इरादा नहीं रखते। वे हमेशा काम करने के अपने तरीके से ही चिपके रहते हैं और अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार काम करते हैं। उनके हाथ में जो भी काम हो, वे मन ही मन हिसाब लगाते हैं कि उन्हें कैसे लाभ हो सकता है। वे सिर्फ यह मापते हैं कि कौन-से कर्तव्य करने से उन्हें प्रसिद्धि, लाभ और रुतबा, दूसरे लोगों का आदर और थोड़ा सम्मान मिल सकता है। जब वे अपने कर्तव्य निभाते हैं, तो उम्मीद करते हैं कि उनकी उपलब्धियाँ परमेश्वर की रिकॉर्ड-बुक में दर्ज हो जाएँ, वे उनका मानसिक लेखा-जोखा रखते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि हर योगदान अच्छी तरह से दर्ज हो और कुछ भी अनदेखा न रहे। वे मानते हैं कि जितना ज्यादा वे काम करेंगे और जितना ज्यादा उनका योगदान होगा, उतनी ही ज्यादा उन्हें राज्य में प्रवेश करने और पुरस्कार और मुकुट प्राप्त करने की उम्मीद होगी। मसीह-विरोधी अपने कर्तव्यों के प्रति जो रवैये और दृष्टिकोण रखते हैं, वे बिल्कुल ऐसे ही होते हैं। उनके मन लेनदेन और माँगों से भरे होते हैं—क्या यह उनके प्रकृति सार को प्रकट नहीं करता? उनके मन लेनदेन और परमेश्वर से की जाने वाली माँगों से क्यों भरे रहते हैं? इसका कारण यह है कि उनका स्वभाव सार दुष्ट होता है—यह बिल्कुल सच है। यह उन विचारों और दृष्टिकोणों के माध्यम से देखा जा सकता है, जो मसीह-विरोधी अपने कर्तव्यों के बारे में रखते हैं—वे पूरी तरह से पुष्टि करते हैं कि उनका स्वभाव सार दुष्ट है। चाहे सत्य की कितनी भी संगति कर ली जाए या लोगों के भ्रष्ट स्वभाव कैसे भी उजागर किए जाएँ और उनका कैसे भी गहन-विश्लेषण किया जाए, मसीह-विरोधी अपने स्वभाव सार का कोई ज्ञान नहीं दिखाते। न सिर्फ वे सत्य को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, बल्कि वे अपने दिलों में आक्रोश भी विकसित कर लेते हैं। जब उन्हें लगता है कि आशीष और पुरस्कार पाने की उनकी उम्मीदें टूट गई हैं, तो वे मानते हैं कि परमेश्वर धोखा दे रहा है, और सोचते हैं कि परमेश्वर द्वारा उजागर और गहन-विश्लेषण करना पुरस्कार रोकने का जानबूझकर किया गया प्रयास है, जिससे लोग अंत में कुछ भी हासिल न करते हुए व्यर्थ ही खुद को परमेश्वर के लिए खपाते हैं। उनके दिलों में न सिर्फ परमेश्वर के कार्य और सत्य की सकारात्मक समझ नहीं होती, बल्कि वे धारणाएँ और गलतफहमियाँ भी पाल लेते हैं, जिससे परमेश्वर के प्रति उनका प्रतिरोध और भी बढ़ जाता है। इसलिए जितना ज्यादा भ्रष्ट मानवजाति के शैतानी स्वभाव और सार का गहन-विश्लेषण किया जाता है, जितना ज्यादा शैतान की योजनाओं, प्रेरणाओं और उद्देश्यों को उजागर किया जाता है, उतना ही ज्यादा मसीह-विरोधी सत्य से विमुख होते और उसके प्रति घृणा पैदा कर लेते हैं। ऐसा क्यों होता है? वे मानते हैं कि जितनी ज्यादा सत्य पर संगति की जाती है, आशीष प्राप्त करने की उनकी उम्मीद उतनी ही कम हो जाती है। जितनी ज्यादा सत्य पर संगति की जाती है, उतना ही ज्यादा उन्हें लगता है कि पुरस्कार और मुकुट के लिए कष्ट का आदान-प्रदान करने और कीमत चुकाने का मार्ग अगम हो जाता है, जिससे उन्हें विश्वास हो जाता है कि उन्हें आशीष प्राप्त करने की कोई उम्मीद नहीं है। जितनी ज्यादा इस तरह सत्य की संगति की जाती है और जितना ज्यादा इस तरह का खुलासा होता है, मसीह-विरोधी परमेश्वर में अपनी आस्था में उतनी ही कम दिलचस्पी लेते हैं। यह देखते हुए कि परमेश्वर जो कुछ कहता है, उसमें यह नहीं बताया जाता कि कितना कष्ट सहने और कितनी कीमत चुकाने से उन्हें समतुल्य इनाम मिल सकता है, उसने सिर्फ कड़ी मेहनत के आधार पर स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के बारे में कुछ नहीं कहा है, तो उन्हें लगता है कि परमेश्वर के साथ लेनदेन करने का उनका मार्ग समाप्त हो गया है। मन ही मन उन्हें लगता है कि परमेश्वर उन्हें दंडित करने के लिए दृढ़संकल्प है, वे एक बेचैन कर देने वाले भय और इस भावना का अनुभव करते हैं कि उनके दिन गिने-चुने हैं, मानो उनका अंत समय आ गया हो। मसीह-विरोधियों को उजागर करने वाले धर्मोपदेश पर धर्मोपदेश सुनने के बाद तुम लोगों को कैसा लग रहा है? मैं देख रहा हूँ कि तुम सभी लोग शर्म से अपना सिर झुका रहे हो; क्या तुम लोगों को थोड़ी निराशा हो रही है? क्या तुम लोगों को एहसास हो गया है कि तुम मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल रहे हो? क्या तुम लोगों के विचार भी परमेश्वर के साथ सौदेबाजी के इन दुष्ट विचारों से भरे हुए हैं? क्या अब तुम्हें कोई बोध हुआ है? क्या तुम तुरंत बदलाव ला सकते हो? (मैं भी सोच रहा हूँ कि मुझे तुरंत बदलाव लाने की जरूरत है; मैं इन मसीह-विरोधी स्वभावों के साथ जीते नहीं रह सकता।) हालाँकि तुम सभी लोगों में मसीह-विरोधियों के स्वभाव और परमेश्वर से सौदेबाजी कर आशीष प्राप्त करने का इरादा है, फिर भी तुम लोग अभी मसीह-विरोधी नहीं हो। इसलिए तुम्हें समाधान के लिए तुरंत सत्य खोजना चाहिए, खुद को खाई के किनारे से वापस खींच लेना चाहिए और सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलना चाहिए। क्या तब समस्या हल नहीं हो जाती? मसीह-विरोधियों का स्वभाव होना और उनके मार्ग पर चलना ऐसी समस्या है, जिसका समाधान आसानी से किया जा सकता है। अगर तुम सत्य को स्वीकार सकते हो, आत्मचिंतन कर सकते हो, अपने भीतर के भ्रष्ट स्वभाव को जान सकते हो, प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे दौड़ने की समस्या के सार को समझ सकते हो, और फिर अनुसरण के इस गलत तरीके को त्याग सकते हो, परमेश्वर में आस्था का गलत दृष्टिकोण त्याग सकते हो, आशीष प्राप्त करने का इरादा त्याग सकते हो, सिर्फ सत्य का अनुसरण करने और एक नया व्यक्ति बनने के उद्देश्य से परमेश्वर में विश्वास कर सकते हो, सिर्फ परमेश्वर के प्रति समर्पण करने वाला व्यक्ति बनने का प्रयास कर सकते हो और मनुष्यों का पूजन या अनुगमन न करके सिर्फ परमेश्वर की आराधना कर सकते हो, तो तुम्हारी अवस्था धीरे-धीरे सामान्य हो जाएगी। तुम सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर कदम रखोगे—इसमें कोई संदेह नहीं। अगर तुम सत्य नहीं स्वीकारते, अगर तुम सत्य से विमुख हो और अगर तुम यह जानते हुए भी जिद्दी बने रहते हो कि परमेश्वर के साथ सौदेबाजी करना गलत है और प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे दौड़ना भी गलत है और कभी पश्चात्ताप नहीं करते, तो इस बात से डरना चाहिए। ऐसी सूरत में, तुममें मसीह-विरोधी का प्रकृति सार है और तुम्हें हटा दिया जाना चाहिए। अगर तुम बहुत सारे बुरे काम करते हो, तो तुम्हें दंड भुगतना पड़ेगा।
मसीह-विरोधियों और आम भ्रष्ट मनुष्यों के बीच अंतर इस तथ्य में निहित है कि प्रसिद्धि, लाभ, रुतबे और आशीषों का अनुसरण और परमेश्वर के साथ लेनदेन करना मसीह-विरोधियों की कोई अस्थायी या कभी-कभार की अभिव्यक्ति नहीं है—वे इन्हीं चीजों के सहारे जीते हैं। वे सिर्फ एक ही मार्ग चुनते हैं जो मसीह-विरोधियों का मार्ग है और मसीह-विरोधियों की प्रकृति और शैतानी फलसफों के अनुसार जीते हैं। साधारण भ्रष्ट मनुष्य दूसरे विकल्प पर पहुँच सकते हैं और सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चल सकते हैं, लेकिन मसीह-विरोधियों को सत्य पसंद नहीं है और उन्हें इसकी आवश्यकता भी नहीं है। उनकी प्रकृति शैतानी फलसफों से भरी होती है और वे सही विकल्प नहीं चुनते। मसीह-विरोधी कभी सत्य नहीं स्वीकारते; वे अंत तक अपने गलत कामों में लगे रहते हैं, कभी अपना रास्ता नहीं बदलते, न ही कभी पश्चात्ताप करते हैं। वे जानते हैं कि उन्हें परमेश्वर के साथ भरपूर सौदे करने हैं, हर मोड़ पर उसकी परीक्षा लेनी है और उसका विरोध करना है। लेकिन उनके पास अपने कारण होते हैं और वे सोचते हैं, “इसमें क्या गलत है? कुछ सांसारिक आशीषों के लिए परमेश्वर से माँग करना और रुतबे के कुछ फायदों में लिप्त होना शर्मनाक कार्य नहीं है। मैंने हत्या और आगजनी तो की नहीं है, न ही मैंने सार्वजनिक रूप से परमेश्वर का विरोध किया है। यह सही है कि मैं एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के लिए काम कर रहा हूँ और कुछ हद तक मैंने मनमाने ढंग से काम भी किया है, लेकिन मैंने न तो किसी का नुकसान किया है, न चोट पहुँचाई है, न ही मैंने परमेश्वर के घर के कार्य को प्रभावित किया है या उसे नुकसान पहुँचाया है।” क्या यह कभी न सुधर सकने योग्य नहीं है? चाहे परमेश्वर का घर उनके साथ सत्य के बारे में कैसे भी संगति करे या उन्हें कैसे भी उजागर कर उनकी काट-छाँट करे, वे अपनी गलतियाँ स्वीकार करने से इनकार करते हैं—वे कभी नहीं सुधरते। यही मसीह-विरोधियों का सार है। अगर तुम कहते हो कि वे बुरे या दुष्ट हैं, तो वे परवाह नहीं करते और बुराई और दुष्टता करते रहते हैं। यह दर्शाता है कि मसीह-विरोधी पश्चात्ताप न करने वाले कट्टर व्यक्ति होते हैं। क्या तुम अभी भी ऐसे लोगों के साथ सत्य के बारे में संगति करोगे? वे यह तक नहीं जानते कि कौन-सी चीजें सकारात्मक हैं और कौन-सी नकारात्मक; तुम उनसे क्या कह सकते हो? कहने को कुछ नहीं है। मसीह-विरोधी दुष्ट स्वभाव सार से भरे होते हैं और वे इसी स्वभाव में जीते हैं। परमेश्वर की परीक्षा लेना और उसके साथ लेनदेन करना उनकी अंतर्निहित प्रकृति होती है और कोई उन्हें बदल नहीं सकता—उनमें किसी भी हालत में बदलाव नहीं आता। वे क्यों नहीं बदलते? वे इसलिए नहीं बदलते, क्योंकि उनके साथ चाहे कितने भी सत्यों की संगति की जाए, चाहे वचन कितने भी समझने योग्य और पूरी तरह से उजागर करने वाले क्यों न हों, वे वास्तविक मुद्दे से अवगत नहीं होते। वे सत्य नहीं समझ सकते और नहीं जानते कि सत्य क्या है और नकारात्मक चीजें क्या हैं; यही कारण है।
मसीह-विरोधी विभिन्न मामलों में परमेश्वर के साथ लेनदेन और उससे माँग करते हैं। बेशक, वे बहुत-सी चीजों की माँग करते हैं—मूर्त और अमूर्त, भौतिक और अभौतिक, वर्तमान और भावी। अगर वे किसी चीज की कल्पना कर सकते हैं, अगर वे मानते हैं कि वे उसके लायक हैं और अगर वह ऐसी चीज है जिसकी वे इच्छा करते हैं, तो वे यह उम्मीद करते हुए निर्लज्जतापूर्वक परमेश्वर से माँग करते हैं कि वह उन्हें वह चीज प्रदान करेगा। उदाहरण के लिए, जब वे कोई निश्चित कर्तव्य निभा रहे होते हैं, तो अलग दिखने और एक असाधारण हस्ती बनने के लिए, सुर्खियों में आने और ज्यादा लोगों से सम्मान के साथ-साथ अपना इच्छित रुतबा प्राप्त करने का मौका पाने के लिए वे आशा करते हैं कि परमेश्वर उन्हें कुछ विशेष योग्यताएँ प्रदान करेगा। वे उससे प्रार्थना करते हुए कहते हैं, “परमेश्वर, मैं अपना कर्तव्य निष्ठापूर्वक निभाने के लिए तैयार हूँ। तुमसे यह कर्तव्य स्वीकारने के बाद मैं रोज इस बारे में सोचता हूँ कि इसे कैसे अच्छी तरह से निभाऊँ। मैं इसके लिए जीवन भर की ऊर्जा समर्पित करने, तुम्हें अपनी जवानी और अपना सर्वस्व देने के लिए तैयार हूँ; मैं इसके लिए कष्ट सहने को तैयार हूँ। मुझे बोलने के लिए वचन प्रदान करो, मुझे प्रज्ञा और बुद्धि प्रदान करो और मुझे इस कर्तव्य के प्रदर्शन के दौरान अपने पेशेवर कौशल और अपनी क्षमताएँ सुधारने दो।” अपनी निष्ठा व्यक्त करने और अपना दृष्टिकोण बताने के बाद मसीह-विरोधी ये चीजें माँगने के लिए सीधे परमेश्वर के पास पहुँच जाते हैं। हालाँकि ये चीजें अमूर्त हैं और लोग मानते हैं कि परमेश्वर से इन्हें माँगना उचित है, लेकिन क्या यह लेनदेन और माँग करने का एक रूप ही नहीं है? (हाँ, है।) इस लेनदेन का केंद्र-बिंदु क्या है? हम किस सार का गहन-विश्लेषण कर रहे हैं? मसीह-विरोधियों में परमेश्वर द्वारा सौंपे गए कर्तव्यों के प्रति कोई ईमानदारी नहीं होती, न ही वे इस मामले में वफादार होने का इरादा रखते हैं। ऐसा करने से पहले उनके विचार इस धुरी पर घूमते हैं कि अपनी प्रतिभा दिखाने और लोगों के बीच प्रसिद्धि पाने के लिए इस अवसर का लाभ कैसे उठाया जाए, बजाय इसके कि वे इस अवसर का उपयोग अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए और वे सत्य और सिद्धांत खोजने के लिए करें, जो इसके प्रदर्शन में उन्हें समझने और खोजने चाहिए। इसलिए जब मसीह-विरोधी प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर के सामने आते हैं, तो वे पहले उन चीजों के लिए अनुरोध करते हैं जो उनकी प्रतिष्ठा और रुतबे को लाभ पहुँचाती है, जैसे कि प्रज्ञा, बुद्धि, अद्वितीय अंतर्दृष्टियाँ, उत्कृष्ट कौशल, उनकी आध्यात्मिक आँखें खुलना, इत्यादि। वे ये चीजें सत्य को समझने या अपनी ईमानदारी अर्पित कर अपने कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए नहीं चाहते। स्पष्ट रूप से, उनके ये अनुरोध सौदेबाजी और माँगों से भरे हुए होते हैं और फिर भी वे खुद को उचित मानते हैं। जब लोगों द्वारा की जाने वाली ऐसी प्रार्थना और ऐसे लेनदेन की बात आती है, तो भले ही लोग अपने कर्तव्य के पालन में कष्ट उठाते और कीमत चुकाते हों, और भले ही वे कुछ समय और ऊर्जा खर्च करते हों, लेकिन क्या परमेश्वर इसे स्वीकारेगा? परमेश्वर के परिप्रेक्ष्य से, वह किसी के कर्तव्य के ऐसे प्रदर्शन को बिल्कुल नहीं स्वीकारेगा, क्योंकि ऐसे लोगों में कोई ईमानदारी, कोई वफादारी और निश्चित रूप से कोई वास्तविक समर्पण नहीं होता। इस पहलू के आधार पर, व्यक्तिपरक रूप से वे रुतबे और प्रसिद्धि के पीछे भागना चाहते हैं, दूसरों से सम्मान और प्रशंसा पाना चाहते हैं, लेकिन अपने कर्तव्य निभाने के दौरान उनके जीवन-प्रवेश या स्वभावगत बदलाव में कोई सुधार नहीं हुआ होता।
जब मसीह-विरोधियों पर कोई मुसीबत आती है, तो वे तुरंत अपने दिलों में षड्यंत्र करना, हिसाब-किताब लगाना और योजना बनाना शुरू कर देते हैं। वे मुनीम की तरह होते हैं, जो हर चीज में परमेश्वर के साथ लेनदेन करते हैं, परमेश्वर से बहुत-सी चीजें चाहते हैं और बहुत-सी माँगें करते हैं। संक्षेप में, ये सभी अपेक्षाएँ परमेश्वर की नजर में अनुचित हैं; ये वे चीजें नहीं हैं जो परमेश्वर लोगों को देना चाहता है, न ही ये वे चीजें हैं जो लोगों को प्राप्त करनी चाहिए, क्योंकि ये चीजें लोगों के स्वभावगत बदलाव या उद्धार की प्राप्ति के प्रयास में जरा-सा भी लाभ नहीं पहुँचातीं। भले ही अपने कर्तव्यों के प्रदर्शन के दौरान परमेश्वर तुम्हें तुम्हारे पेशे के बारे में कुछ प्रकाश या कुछ नए विचार देता हो, लेकिन यह परमेश्वर से माँग करने की तुम्हारी इच्छा पूरी करने के लिए नहीं होता, लोगों के बीच तुम्हारी लोकप्रियता या प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए तो यह बिल्कुल नहीं होता। परमेश्वर से ऐसा प्रकाश और प्रबुद्धता प्राप्त करने के बाद सामान्य व्यक्ति उन्हें अपने कर्तव्य में लागू करता है, अपने कर्तव्य को बेहतर ढंग से निभाता है, सिद्धांतों को ज्यादा सटीक रूप से समझने के लिए प्रेरित होता है, और धीरे-धीरे प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करता है कि कैसे उसे अपने कर्तव्यों के प्रदर्शन के दौरान परमेश्वर से बहुत ज्यादा प्रबुद्धता, रोशनी और अनुग्रह प्राप्त होता है—यह सब परमेश्वर द्वारा किया जाता है। जितना ज्यादा वे अनुभव करते हैं, उतना ही ज्यादा उन्हें लगता है कि परमेश्वर जो करता है वह महान होता है, और उतना ही ज्यादा उन्हें एहसास होता है कि उनके पास शेखी बघारने के लिए कुछ नहीं है, यह सब परमेश्वर का अनुग्रह और मार्गदर्शन है। यह ऐसी चीज है जिसे सामान्य व्यक्ति महसूस कर सकता है और इसके बारे में जागरूक हो सकता है। लेकिन मसीह-विरोधी अलग होते हैं, चाहे परमेश्वर उन्हें कितनी भी प्रबुद्धता और रोशनी दे दे, वे इसका सारा श्रेय खुद को ही देते हैं। एक दिन, जब वे अपने योगदानों का हिसाब लगाते हैं और पुरस्कार माँगने के लिए परमेश्वर के पास पहुँचते हैं, जब वे परमेश्वर से हिसाब-किताब करते हैं, तो वह अपनी प्रबुद्धता और रोशनी वापस ले लेता है और मसीह-विरोधी उजागर हो जाते हैं। पहले वे जो कुछ भी करने में सक्षम थे, वह पवित्र आत्मा के कार्य और परमेश्वर के मार्गदर्शन के कारण था। वे अन्य लोगों से अलग नहीं हैं : परमेश्वर की प्रबुद्धता और रोशनी के बिना वे अपने गुण, प्रज्ञा, बुद्धि, अच्छे भाव और अच्छे विचार खो देते हैं—वे बेकार और मूर्ख बन जाते हैं। जब मसीह-विरोधी ऐसी चीजों का सामना करते हैं और इस हद तक चले जाते हैं, तब भी वे इस तथ्य से बेखबर रहते हैं कि उनका मार्ग गलत है, और इस बात से अनजान रहते हैं कि वे परमेश्वर के साथ लेनदेन और उससे अनुचित माँगें कर रहे हैं। उन्हें अभी भी लगता है कि वे किसी भी चीज के लिए सक्षम और योग्य हैं, दूसरों द्वारा उच्च सम्मान दिए जाने, प्रशंसा, आदर, समर्थन और उन्नत किए जाने के पात्र हैं। अगर उन्हें ये चीजें न मिलें, तो वे स्थिति को निराशाजनक समझते हैं और, और भी ज्यादा लापरवाही से कार्य करते हैं, परमेश्वर और भाई-बहनों दोनों के प्रति आक्रोश से भर जाते हैं। वे यह कहते हुए मन ही मन परमेश्वर को कोसते और उसके बारे में शिकायत करते हैं कि परमेश्वर अधार्मिक है, भाई-बहनों को अंतरात्मा न होने और काम निकल जाने पर ठोकर मार देने के लिए कोसते हैं, यहाँ तक कि परमेश्वर के घर पर उनका उपयोग कर लेने के बाद उनसे छुटकारा पाने का प्रयास करने का आरोप भी लगाते हैं। यह क्या है? एक बेशर्म व्यक्ति! क्या सभी मसीह-विरोधी ऐसे ही नहीं होते? क्या वे अक्सर ऐसी चीजें नहीं कहते? वे कहते हैं, “जब मैं उपयोगी था और मुझे महत्वपूर्ण पद पर रखा गया था, तो हर कोई मेरे इर्द-गिर्द चक्कर लगाता था। अब जब मैं महत्वपूर्ण पद पर नहीं हूँ, तो कोई भी मेरी ओर ध्यान नहीं देता, हर कोई मुझे नीची निगाह से देखता है और तुम सब मुझसे बात करते समय मुझे ऐंठ दिखाते हो।” ये शब्द कहाँ से आते हैं? क्या इनके मूल में मसीह-विरोधियों का दुष्ट स्वभाव नहीं है? उनका दुष्ट स्वभाव लोगों और परमेश्वर के साथ सौदेबाजी करने, परमेश्वर और लोगों से अपेक्षाएँ करने से भरा होता है, मानो कह रहे हों, “मैं तुम लोगों के लिए चीजों का ध्यान रखता हूँ, खुद को खपाता हूँ, कीमत चुकाता हूँ और तुम्हारी एवज में चिंता करता हूँ, इसलिए तुम लोगों को मेरे पास सम्मान के साथ आना चाहिए और मुझसे विनम्रता से बात करनी चाहिए। चाहे मेरे पास रुतबा हो या न हो, तुम लोगों को हमेशा वह सब याद रखना चाहिए जो मैंने किया है, मुझे हमेशा अपने दिमाग में रखना चाहिए और मुझे कभी भूलना नहीं चाहिए—मुझे भूलने का मतलब है कि तुममें जमीर नहीं है। जब भी तुम लोग अच्छी चीजें खाओ या इस्तेमाल करो, तुम्हें मेरे बारे में सोचना चाहिए और मुझे हमेशा प्राथमिकता देनी चाहिए।” क्या मसीह-विरोधी अक्सर ऐसी अपेक्षाएँ नहीं करते? (हाँ, करते हैं।) ऐसे लोग होते हैं जो कहते हैं, “तुम लोग जो परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें पढ़ते हो, उन्हें किसने छापा? उन्हें तुम्हारे हाथों में किसने दिया? अगर मैं जोखिम न उठाता और गिरफ्तार होने, कैद होने या मौत की सजा सुनाए जाने के खतरों का सामना न करता, तो क्या तुम लोग ये पुस्तकें पढ़ पाते? अगर मैं तुम लोगों का सिंचन करने के लिए कष्ट न सहता और कीमत न चुकाता, तो क्या तुम लोग कलीसियाई जीवन जी पाते? अगर मैं सुसमाचार प्रचार करने के लिए कष्ट न सहता और कीमत न चुकाता, तो क्या कलीसिया इतने सारे लोगों को प्राप्त कर पाती? अगर मैं पूरे दिन तुम लोगों के साथ परमेश्वर के वचनों के बारे में संगति न करता, तो क्या तुम लोगों की आस्था इतनी गहरी होती? अगर मैं तुम लोगों को लॉजिस्टिक सहायता प्रदान करने के लिए भाग-दौड़ न करता, तो क्या तुम लोग अब शांति से अपने कर्तव्य निभा पाते? अगर मैं अगुआई न कर रहा होता, तो क्या कलीसिया का कार्य इतना विकसित हो पाता, जितना अब है?” क्या तुम्हारा ऐसे लोगों से सामना हुआ है? उनकी बातें सुनकर ऐसा लगता है, मानो उनके बिना परमेश्वर के घर का काम आगे नहीं बढ़ सकता और धरती घूमना बंद कर देगी। क्या यह मसीह-विरोधियों की मानसिकता नहीं है? चिल्ला-चिल्लाकर ये शब्द बोलने का उनका क्या उद्देश्य है? वे चीजों का श्रेय ले रहे हैं या अफसोस और शिकायत कर रहे हैं? वे मानते हैं कि परमेश्वर के घर को अब उनकी जरूरत नहीं है, भाई-बहनों ने उन्हें उपेक्षित कर दिया है, परमेश्वर का घर लोगों के साथ अन्याय करता है, परमेश्वर का घर उनका पोषण नहीं करता, सम्मान नहीं करता या उन्हें वहाँ बुढ़ापा नहीं गुजारने देता। क्या उनके चिल्लाने में शाप का तत्त्व भी नहीं है? वे दूसरों को कोसते हैं, कहते हैं कि उनमें जमीर नहीं है। मसीह-विरोधी वास्तव में क्या सेवा प्रदान करते हैं? जो कुछ भी वे करते हैं, वह विघ्नकारी और विघटनकारी होता है, और जो कुछ भी वे कहते हैं वह गुमराह करने वाला होता है। उनमें मानवता नहीं होती; वे दानव हैं। व्यक्ति को उनके प्रति जमीर क्यों इस्तेमाल करना चाहिए? क्या ऐसा करना उपयोगी है? (नहीं।) यह उपयोगी क्यों नहीं है? क्या व्यक्ति उनका अनुगमन करके सत्य समझ सकता है? (नहीं।) मसीह-विरोधियों की आराधना और अनुगमन करने वाले हर व्यक्ति को क्या लाभ होता है? वे सब इन मसीह-विरोधियों के साथ मिलकर परमेश्वर को धोखा देते हैं और उनके द्वारा नरक में ले जाए जाते हैं। मसीह-विरोधी खुद को क्या मानते हैं? (वे खुद को परमेश्वर मानते हैं।) यह एक बेशर्मी भरा विचार है। लोगों में परमेश्वर के प्रति जमीर होना चाहिए, लेकिन परमेश्वर कभी लोगों से ऐसा करने की अपेक्षा नहीं करता; वह सिर्फ लोगों से सत्य समझने, सत्य का अभ्यास कर उद्धार प्राप्त करने में सक्षम होने और ऐसे सृजित प्राणी होने की अपेक्षा करता है जो मानक स्तर के हों। मैंने तुम लोगों से कब कहा है कि जब तुम अच्छा खाना खा रहे हो तो मेरे बारे में सोचो और मेरे लिए कुछ बचाओ, या जब तुम किसी अच्छी जगह पर रह रहे हो तो मेरे बारे में सोचो? जब तुम लोग अच्छा खा रहे होते हो, अच्छी तरह से रह रहे होते हो और खुश होते हो, तो मुझे कब ईर्ष्या हुई है? मैंने कब कहा है कि तुम लोगों में जमीर नहीं है? लेकिन मसीह-विरोधी ऐसी बातें कहने और जमीर न होने के लिए लोगों को कोसने का दम रखते हैं—क्या यह बेशर्मी नहीं है? जब परमेश्वर का घर उन्हें बर्खास्त कर देता है, जब भाई-बहन उनके प्रति पहले की तरह उत्साहित नहीं रहते, तो वे ऐसी बातें कहने, अपनी शिकायतों का रोना रोने और लोगों और परमेश्वर को कोसने की जुर्रत करते हैं। उनके मुँह से तमाम तरह की बातें निकल सकती हैं और उनकी राक्षसी प्रकृति पूरी तरह से उजागर हो जाती है। ये मसीह-विरोधियों के दुष्ट स्वभाव द्वारा प्रकट की जाने वाली विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं। चूँकि उनके दिल परमेश्वर के साथ सौदे करने से भरे होते हैं, इसलिए यह उससे विभिन्न अपेक्षाएँ और माँगें करने की ओर ले जाता है। जब मसीह-विरोधियों को पदोन्नत या बर्खास्त किया जाता है, जब परमेश्वर का घर उन्हें किसी महत्वपूर्ण पद पर रखता है या नहीं रखता, तो उनमें से उभरने वाली तमाम विभिन्न अभिव्यक्तियाँ उनके दुष्ट सार से संबंधित होती हैं—यह पूरी तरह से सच है।
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