प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक) खंड चार
घ. स्वार्थी और नीच
मसीह-विरोधियों में कोई जमीर, विवेक या मानवता नहीं होती। वे न केवल शर्म से बेपरवाह होते हैं, बल्कि उनकी एक और खासियत भी होती है : वे असाधारण रूप से स्वार्थी और नीच होते हैं। उनके “स्वार्थ और नीचता” का शाब्दिक अर्थ समझना कठिन नहीं है : उन्हें अपने हित के अलावा कुछ नहीं सूझता। अपने हितों से संबंधित किसी भी चीज पर उनका पूरा ध्यान रहता है, वे उसके लिए कष्ट उठाएँगे, कीमत चुकाएँगे, उसमें खुद को तल्लीन और समर्पित कर देंगे। जिन चीजों का उनके अपने हितों से कोई लेना-देना नहीं होता, वे उनकी ओर से आँखें मूँद लेंगे और उन पर कोई ध्यान नहीं देंगे; दूसरे लोग जो चाहें सो कर सकते हैं—मसीह-विरोधियों को इस बात की कोई परवाह नहीं होती कि कोई विघ्न-बाधा पैदा तो नहीं कर रहा, उन्हें इन बातों से कोई सरोकार नहीं होता। युक्तिपूर्वक कहें तो वे अपने काम से काम रखते हैं। लेकिन यह कहना ज्यादा सही है कि इस तरह का व्यक्ति नीच, अधम और कुत्सित होता है; हम उन्हें “स्वार्थी और नीच” के रूप में निरूपित करते हैं। मसीह-विरोधियों की स्वार्थपरता और नीचता कैसे प्रकट होती हैं? उनके रुतबे और प्रतिष्ठा को जिससे लाभ होता है, वे उसके लिए जो भी जरूरी होता है उसे करने या बोलने के प्रयास करते हैं और वे स्वेच्छा से हर पीड़ा सहन करते हैं। लेकिन जहाँ बात परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित कार्य से संबंधित होती है, या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन के विकास को लाभ पहुँचाने वाले कार्यों से संबंधित होती है, वे पूरी तरह इसे अनदेखा करते हैं। यहाँ तक कि जब बुरे लोग विघ्न-बाधा डाल रहे होते हैं, सभी प्रकार की बुराई कर रहे होते हैं और इसके फलस्वरूप कलीसिया के कार्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहे होते हैं, तब भी वे उसके प्रति आवेगहीन और उदासीन बने रहते हैं, जैसे उनका उससे कोई लेना-देना ही न हो। और अगर कोई किसी बुरे व्यक्ति के बुरे कर्मों के बारे में जान जाता है और इसकी रिपोर्ट कर देता है तो वे कहते हैं कि उन्होंने कुछ नहीं देखा और अज्ञानता का ढोंग करने लगते हैं। लेकिन अगर कोई उनकी रिपोर्ट करता है और यह उजागर करता है कि वे वास्तविक कार्य नहीं करते और सिर्फ प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे का अनुसरण करते हैं तो वे आग बबूला हो जाते हैं। यह तय करने के लिए आनन-फानन में बैठकें बुलाई जाती हैं कि क्या उत्तर दिया जाए, यह पता लगाने के लिए जाँच की जाती है कि किसने गुपचुप यह काम किया, सरगना कौन था और कौन शामिल था। जब तक वे इसकी तह तक नहीं पहुँच जाते और मामला शांत नहीं हो जाता, तब तक उनका खाना-पीना हराम रहता है—उन्हें केवल तभी खुशी मिलती है जब वे अपनी रिपोर्ट करने वाले सभी लोगों को धराशायी कर देते हैं। यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति है, है न? क्या वे कलीसिया का काम कर रहे हैं? वे अपनी सामर्थ्य और रुतबे के लिए काम कर रहे हैं और कुछ नहीं। वे अपने खुद के उद्यम में लगे हुए हैं। मसीह-विरोधी चाहे जो भी कार्य करें, वे कभी परमेश्वर के घर के हितों पर विचार नहीं करते। वे केवल इस बात पर विचार करते हैं कि कहीं उनके हित तो प्रभावित नहीं हो रहे, वे केवल अपने सामने के उस छोटे-से काम के बारे में सोचते हैं, जिससे उन्हें फायदा होता है। उनकी नजर में, कलीसिया का प्राथमिक कार्य बस वही है, जिसे वे अपने खाली समय में करते हैं। वे उसे बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेते। वे केवल तभी हरकत में आते हैं जब उन्हें काम करने के लिए कोंचा जाता है, केवल वही करते हैं जो वह करना पसंद करते हैं और केवल वही काम करते हैं जो उसके अपने रुतबे और सत्ता को कायम रखने के लिए होता है। उसकी नजर में परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित कोई भी कार्य, सुसमाचार फैलाने का कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों का जीवन प्रवेश महत्वपूर्ण नहीं हैं। चाहे अन्य लोगों को अपने काम में जो भी कठिनाइयाँ आ रही हों, उन्होंने जिन भी मुद्दों को पहचाना और रिपोर्ट किया हो, उनके शब्द कितने भी ईमानदार हों, मसीह-विरोधी उन पर कोई ध्यान नहीं देते, वे उनमें शामिल नहीं होते, मानो इन मामलों से उनका कोई लेना-देना ही न हो। कलीसिया के काम में उभरने वाली समस्याएँ चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, वे पूरी तरह से उदासीन रहते हैं। अगर कोई समस्या उनके ठीक सामने भी हो, तब भी वे उस पर लापरवाही से ही ध्यान देते हैं। जब ऊपरवाला सीधे उनकी काट-छाँट करता है और उन्हें किसी समस्या को सुलझाने का आदेश देता है, तभी वे बेमन से थोड़ा-बहुत काम करके ऊपरवाले को दिखाते हैं; उसके तुरंत बाद वे फिर अपने धंधे में लग जाते हैं। जब कलीसिया के काम की बात आती है, व्यापक संदर्भ की महत्वपूर्ण चीजों की बात आती है तो वे इन चीजों में रुचि नहीं लेते और इनकी उपेक्षा करते हैं। जिन समस्याओं का उन्हें पता लग जाता है, उन्हें भी वे नजरअंदाज कर देते हैं और समस्याओं के बारे में पूछने पर लापरवाही से जवाब देते हैं या आगा-पीछा करते हैं और बहुत ही बेमन से उस समस्या की तरफ ध्यान देते हैं। यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति है, है न? इसके अलावा, मसीह-विरोधी चाहे कोई भी काम कर रहे हों, वे केवल यही सोचते हैं कि क्या इससे वे सुर्खियों में आ पाएँगे; अगर उससे उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती है तो वे यह जानने के लिए अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाते हैं कि उस काम को कैसे करना है, कैसे अंजाम देना है; उन्हें केवल एक ही फिक्र रहती है कि क्या इससे वे औरों से अलग नजर आएँगे। वे चाहे कुछ भी करें या सोचें, वे केवल अपनी प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे से सरोकार रखते हैं। वे चाहे कोई भी काम कर रहे हों, वे केवल इसी स्पर्धा में लगे रहते हैं कि कौन बड़ा है या कौन छोटा, कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है, किसकी ज्यादा प्रतिष्ठा है। वे केवल इस बात की परवाह करते हैं कि कितने लोग उनकी आराधना और सम्मान करते हैं, कितने लोग उनका आज्ञा पालन करते हैं और कितने लोग उनके अनुयायी हैं। वे कभी सत्य पर संगति या वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं करते। वे कभी विचार नहीं करते कि अपना काम करते समय सिद्धांत के अनुसार चीजें कैसे करें, न ही वे इस बात पर विचार करते हैं कि क्या वे निष्ठावान रहे हैं, क्या उन्होंने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर दी हैं, क्या उनके काम में कोई विचलन या चूक हुई है या अगर कोई समस्या मौजूद है तो वे यह तो बिल्कुल नहीं सोचते कि परमेश्वर क्या चाहता है और परमेश्वर के इरादे क्या हैं। वे इन सब चीजों पर रत्ती भर भी ध्यान नहीं देते। वे केवल प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के लिए, अपनी महत्वाकांक्षाएँ और जरूरतें पूरी करने का प्रयास करने के लिए कार्य करते हैं। यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति है, है न? यह पूरी तरह से उजागर कर देता है कि उनके हृदय किस तरह उनकी महत्वाकांक्षाओं, इच्छाओं और बेसिर-पैर की माँगों से भरे होते हैं; उनका हर काम उनकी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं से नियंत्रित होता है। वे चाहे कोई भी काम करें, उनकी महत्वाकांक्षाएँ, इच्छाएँ और बेसिर-पैर की माँगें ही उनकी प्रेरणा और स्रोत होती हैं। यह स्वार्थ और नीचता की विशिष्ट अभिव्यक्ति है।
कुछ अगुआ कोई वास्तविक कार्य नहीं करते; ऊपरवाले को रिपोर्ट करने के लिए, काट-छाँट और बर्खास्तगी से बचने के लिए और अपने रुतबे को सुरक्षित करने के लिए वे एड़ी-चोटी का जोर लगाकर भाई-बहनों को उन्हें सेवा प्रदान करने के लिए मजबूर करते हैं। अपने काम में वे सिर्फ शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, सत्य सिद्धांतों पर संगति नहीं करते, वास्तविक मुद्दे हल नहीं करते, प्रेमपूर्ण हृदय से दूसरों की मदद नहीं करते या अन्य लोगों की कठिनाइयों पर विचार नहीं करते और कभी उन वास्तविक कठिनाइयों का समाधान नहीं करते जिनका सामना लोग अपने कर्तव्य निभाते समय और अपने जीवन प्रवेश में करते हैं। वे ऐसे किसी व्यक्ति का समर्थन नहीं करते, जो नकारात्मक होता है। दमन और फटकार के अलावा वे सिर्फ धर्म-सिद्धांत बोलते हैं और अपने नारे लगाते हैं। उनका उद्देश्य क्या होता है? वे परमेश्वर के बोझ के बारे में विचारशील नहीं होते, बल्कि वे खुद को सुशोभित करने और अपने रुतबे को सुरक्षित करने के लिए भाई-बहनों द्वारा निभाए जाने वाले कर्तव्यों के परिणाम का लाभ उठाना चाहते हैं। अगर भाई-बहन कर्तव्य निभाने में अच्छे परिणाम दिखाते हैं तो वे प्रसन्न होते हैं। वे ऊपरवाले के सामने उनका श्रेय लेते हैं, मन ही मन अपने गुणों की प्रशंसा करते हैं और सोचते हैं कि उन्होंने अपने कर्तव्य काफी अच्छे से निभाए हैं। इसके अलावा, वे इस काम को करते समय आने वाली कई कठिनाइयों के बारे में ऊपरवाले को बताते हैं कि कैसे परमेश्वर ने उनके लिए एक रास्ता खोला, कैसे उन्होंने भाई-बहनों को मिलकर कड़ी मेहनत करने और इन कठिनाइयों पर विजय पाने के लिए प्रेरित किया, कैसे उन्होंने इस काम को पूरा करने में उनकी मदद की, कैसे उन्होंने सिद्धांतों का पालन किया और कैसे उन्होंने बुरे लोगों को बाहर निकाला। अपने काम में उन्होंने जो कीमत चुकाई और जो योगदान दिया, उस पर प्रकाश डालने का भी वे खास ध्यान रखते हैं, जिससे ऊपरवाला जान जाए कि उनके प्रयासों के कारण ही काम अच्छी तरह से हुआ। अव्यक्त रूप से वे ऊपरवाले को बताते हैं, “मेरी अगुआई इसके नाम के अनुरूप है और तुम लोगों ने मुझे अगुआ के रूप में चुनकर सही चुनाव किया है।” क्या यह स्वार्थी और नीच होने की अभिव्यक्ति नहीं है? जो लोग स्वार्थी और नीच होने की मानवता अभिव्यक्त करते हैं, उनके पास अक्सर कुछ जुमले होते हैं। उदाहरण के लिए, जब उनके लिए कलीसिया की अगुआई करने की व्यवस्था की जाती है तो वे हमेशा कहते हैं, “मेरी कलीसिया में हमारा कलीसियाई जीवन बहुत अच्छा, बहुत शानदार है। मेरे भाई-बहनों के पास एक अद्भुत और गहन जीवन प्रवेश है, सभी के पास जीवन अनुभव हैं। देखो, वे परमेश्वर से कितना प्रेम करते हैं और हमारा काम कितनी अच्छी तरह से होता है।” ये मसीह-विरोधियों के जुमले हैं। उनके जुमलों से आँके तो, यह स्पष्ट है कि वे अपनी जिम्मेदारी वाली कलीसिया के भाई-बहनों को अपनी भेड़ें समझते हैं और अपने नियंत्रण वाली कलीसिया की हर चीज को अपनी निजी संपत्ति मानते हैं। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? यह शर्म से बेपरवाह होना क्यों है? स्वार्थ और नीचता की कोई भी अभिव्यक्ति शर्म से बेपरवाह होने से ही उपजती है। इसलिए, स्वार्थी और नीच होना शर्म से बेपरवाह होना है। स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्तियाँ दिखाने वाले ये लोग निश्चित रूप से शर्म से बेपरवाह होते हैं। अगुआई सौंपे जाने और कलीसिया के लिए जिम्मेदार होने पर परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अपने कर्तव्य निभाने के लिए अगुआई और विशिष्ट कार्य करते हुए वे इन चीजों को अपनी निजी संपत्ति मानते हैं। कोई भी दखल नहीं दे सकता; हर चीज में उन्हीं की चलती है। मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों, कलीसिया के काम और कलीसिया की सुविधाओं और संपत्ति को अपनी निजी संपत्ति मानते हैं। यह अपने आप में समस्याजनक है : उनका उद्देश्य परमेश्वर के घर की संपत्तियाँ जब्त करना और परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर हावी होना है। इसके अलावा, वे इन चीजों को दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए पूँजी के रूप में देखते हैं, यहाँ तक कि वे परमेश्वर के घर के हितों से विश्वासघात करने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाने से भी नहीं कतराते। क्या तुम लोगों को लगता है कि मसीह-विरोधियों के पास जमीर और विवेक होता है? क्या उनके दिल में परमेश्वर के लिए जगह होती है? क्या उनके पास परमेश्वर का भय मानने और उसके प्रति समर्पण करने वाला दिल होता है? बिल्कुल नहीं। इसलिए मसीह-विरोधियों को शैतान के सेवक या धरती पर बुरे दानव पुकारना किसी भी तरह से अतिशयोक्ति नहीं है। मसीह-विरोधियों के दिल में कोई परमेश्वर या कलीसिया नहीं होती और निश्चित रूप से उनके मन में परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए कोई सम्मान नहीं होता। मुझे बताओ, जहाँ भाई-बहन होते हैं और जहाँ परमेश्वर काम करता है, ऐसे स्थान परमेश्वर का घर कैसे नहीं कहे जा सकते? किस प्रकार वे कलीसियाएँ नहीं हैं? लेकिन मसीह-विरोधी केवल अपने प्रभाव-क्षेत्र के भीतर की चीजों के बारे में ही सोचते हैं। वे अन्य जगहों की परवाह नहीं करते या उनसे सरोकार नहीं रखते। अगर उन्हें किसी समस्या का पता चल भी जाता है तो भी वे परवाह नहीं करते। इससे भी बुरी बात यह है कि जब किसी स्थान पर कुछ गलत हो जाता है और कलीसिया के काम को नुकसान होता है तो वे उस पर ध्यान नहीं देते। यह पूछे जाने पर कि वे इसे अनदेखा क्यों करते हैं, वे यह कहते हुए बेतुकी भ्रांतियाँ पेश करते हैं, “दूसरे के फटे में टाँग मत अड़ाओ।” उनकी बातें तर्कसंगत लगती हैं, वे जो कुछ करते हैं उसमें वे सीमाओं को समझते प्रतीत होते हैं और बाहर से ऐसा प्रतीत नहीं होता कि उनकी कोई समस्या है, लेकिन उनका सार क्या होता है? यह उनके स्वार्थ और नीचता का प्रकटीकरण है। वे केवल अपने लिए, केवल अपनी प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के लिए ही काम करते हैं। वे अपने कर्तव्य बिल्कुल नहीं करते। यह मसीह-विरोधियों की एक और ठेठ विशेषता है—वे स्वार्थी और नीच होते हैं।
मसीह-विरोधियों के स्वार्थ और नीचता का सार स्पष्ट है; उनकी इस तरह की अभिव्यक्तियाँ विशेष रूप से प्रमुख हैं। कलीसिया उन्हें एक काम सौंपती है, अगर वह प्रसिद्धि और लाभ लाता है और उन्हें अपना चेहरा दिखाने देता है तो वे उसमें बहुत रुचि लेते हैं और उसे स्वीकारने को तैयार रहते हैं। अगर वह ऐसा कार्य है, जिससे सराहना नहीं मिलती या जिसमें लोगों को अपमानित करना शामिल है, या जिसमें उन्हें लोगों के बीच जाने का मौका नहीं मिलता या जिससे उनकी प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे को कोई फायदा नहीं पहुँचता तो उसमें उनकी कोई रुचि नहीं होती और वे उसे स्वीकार नहीं करते, मानो उस काम का उनसे कोई लेना-देना न हो और वह ऐसा कार्य न हो जो उन्हें करना चाहिए। जब वे कठिनाइयों का सामना करते हैं तो इस बात की कोई संभावना नहीं होती कि वे उन्हें हल करने के लिए सत्य की तलाश करेंगे, बड़ी तस्वीर देखने की कोशिश करना और कलीसिया के काम पर ध्यान देना तो दूर की बात है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के घर के कार्य के दायरे में, कार्य की समग्र आवश्यकताओं के आधार पर, कुछ कर्मियों का तबादला हो सकता है। अगर किसी कलीसिया से कुछ लोगों का तबादला कर दिया जाता है तो उस कलीसिया के अगुआओं को समझदारी के साथ इस मामले से कैसे निपटना चाहिए? अगर वे समग्र हितों के बजाय सिर्फ अपनी कलीसिया के हितों से ही सरोकार रखते हैं और अगर वे उन लोगों को स्थानांतरित करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं होते तो इसमें क्या समस्या है? कलीसिया-अगुआ के रूप में, वे परमेश्वर के घर की केंद्रीकृत व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने में असमर्थ क्यों रहते हैं? क्या ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होता है? क्या वह कार्य की बड़ी तस्वीर के प्रति सचेत होता है? अगर वह परमेश्वर के घर के कार्य के बारे में समग्र रूप से नहीं सोचता, बल्कि सिर्फ अपनी कलीसिया के हितों के बारे में सोचता है तो क्या वह बहुत स्वार्थी और नीच नहीं है? कलीसिया-अगुआओं को परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं, परमेश्वर के घर की केंद्रीकृत व्यवस्थाओं और समन्वय के प्रति बिना शर्त समर्पित होना चाहिए। यही सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है। जब परमेश्वर के घर के कार्य को आवश्यकता हो तो चाहे वे कोई भी हों, सभी को परमेश्वर के घर के समन्वय और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना चाहिए और किसी एक अगुआ या कार्यकर्ता द्वारा नियंत्रित नहीं होना चाहिए, मानो वे उसके हों या उसके निर्णयों के अधीन हों। परमेश्वर के चुने हुए लोगों की परमेश्वर के घर की केंद्रीकृत व्यवस्थाओं के प्रति आज्ञाकारिता बिल्कुल स्वाभाविक और उचित है और इन व्यवस्थाओं की किसी के द्वारा अवहेलना नहीं की जा सकती, जब तक कि कोई अगुआ या कार्यकर्ता कोई मनमाना तबादला नहीं करता जो सिद्धांत के अनुसार न हो—उस मामले में इस व्यवस्था की अवज्ञा की जा सकती है। अगर सिद्धांतों के अनुसार सामान्य स्थानांतरण किया जाता है तो परमेश्वर के सभी चुने हुए लोगों को आज्ञापालन करना चाहिए और किसी अगुआ या कार्यकर्ता को किसी को नियंत्रित करने का प्रयास करने का अधिकार या कोई कारण नहीं है। क्या तुम लोग कहोगे कि ऐसा भी कोई कार्य होता है जो परमेश्वर के घर का कार्य नहीं होता? क्या कोई ऐसा कार्य होता है जिसमें परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार फैलाना शामिल नहीं होता? यह सब परमेश्वर के घर का ही कार्य होता है, हर कार्य समान होता है और उसमें कोई “तेरा” और “मेरा” नहीं होता। अगर तबादला सिद्धांत के अनुरूप और कलीसिया के कार्य की आवश्यकताओं पर आधारित है तो इन लोगों को वहाँ जाना चाहिए जहाँ इनकी सबसे ज्यादा जरूरत है। फिर भी, जब इस तरह की परिस्थिति का सामना करना पड़े तो मसीह-विरोधियों की प्रतिक्रिया क्या होती है? वे इन उपयुक्त लोगों को अपने साथ रखने के लिए तरह-तरह के कारण और बहाने ढूँढ़ते हैं और केवल दो साधारण लोगों की पेशकश करते हैं और फिर तुम पर शिकंजा कसने के लिए कोई बहाना ढूँढ़ते हैं, या तो यह कहते हुए कि उनके पास काम बहुत है या यह कि उनके पास लोग कम हैं, लोगों का मिलना मुश्किल होता है, यदि इन दोनों को भी स्थानांतरित कर दिया गया तो इसका काम पर असर पड़ेगा। और वे तुमसे ही पूछते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए और तुम्हें यह महसूस कराते हैं कि लोगों को स्थानांतरित करने का मतलब है कि तुम उनके एहसानमंद हो। क्या शैतान इसी तरह काम नहीं करते? गैर-विश्वासी इसी तरह काम करते हैं। जो लोग कलीसिया में हमेशा अपने हितों की रक्षा करने का प्रयास करते हैं—क्या वे अच्छे लोग होते हैं? क्या वे सिद्धांत के अनुसार कार्य करने वाले लोग होते हैं? बिल्कुल नहीं। वे गैर-विश्वासी और छद्म-विश्वासी हैं। और क्या यह काम स्वार्थी और नीच नहीं है? अगर किसी मसीह-विरोधी के अधीनस्थ किसी अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति को दूसरा काम करने के लिए स्थानांतरित किया जाता है तो अपने दिल में मसीह-विरोधी इसका हठपूर्वक विरोध करता और इसे नकार देता है—वह काम छोड़ देना चाहता है और उसमें अगुआ या टीम प्रमुख होने का कोई उत्साह नहीं रह जाता। यह क्या समस्या है? उनमें कलीसिया की व्यवस्थाओं के प्रति आज्ञाकारिता क्यों नहीं होती? उन्हें लगता है कि उनके “दाएँ-हाथ जैसे व्यक्ति” का तबादला उनके काम के परिणामों और प्रगति को प्रभावित करेगा, परिणामस्वरूप उनके रुतबे और प्रतिष्ठा पर असर पड़ेगा, जिससे उन्हें परिणामों की गारंटी देने के लिए कड़ी मेहनत करने और ज्यादा कष्ट उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा—जो आखिरी चीज है, जिसे वे करना चाहते हैं। वे सुविधाभोगी हो गए हैं और ज्यादा मेहनत करना या अधिक कष्ट उठाना नहीं चाहते, इसलिए वे उस व्यक्ति को जाने नहीं देना चाहते। अगर परमेश्वर का घर तबादले पर जोर देता है तो वे बहुत शिकायत करते हैं, यहाँ तक कि अपना काम भी छोड़ देना चाहते हैं। क्या यह स्वार्थी और नीच होना नहीं है? परमेश्वर के घर द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को केंद्रीय रूप से आवंटित किया जाना चाहिए। इसका किसी अगुआ, टीम प्रमुख या व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है। सभी को सिद्धांत के अनुसार कार्य करना चाहिए; यह परमेश्वर के घर का नियम है। मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते, वे लगातार अपने रुतबे और हितों के लिए साजिशें रचते हैं और अपनी शक्ति और रुतबे को मजबूत करने के लिए अच्छी क्षमता वाले भाई-बहनों से अपनी सेवा करवाते हैं। क्या यह स्वार्थी और नीच होना नहीं है? बाहरी तौर पर, अच्छी क्षमता वाले लोगों को अपने पास रखना और परमेश्वर के घर द्वारा उनका तबादला न होने देना ऐसा प्रतीत होता है, मानो वे कलीसिया के काम के बारे में सोच रहे हों, लेकिन वास्तव में वे सिर्फ अपनी शक्ति और रुतबे के बारे में सोच रहे होते हैं, कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते। वे डरते हैं कि वे कलीसिया का काम खराब तरह से करेंगे, बर्खास्त कर दिए जाएँगे और अपना रुतबा खो देंगे। मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के व्यापक कार्य के बारे में कोई विचार नहीं करते, सिर्फ अपने रुतबे के बारे में सोचते हैं, परमेश्वर के घर के हितों को होने वाले नुकसान के लिए जरा भी खेद न करके अपने रुतबे की रक्षा करते हैं और कलीसिया के कार्य को हानि पहुँचाकर अपने रुतबे और हितों की रक्षा करते हैं। यह स्वार्थी और नीच होना है। जब ऐसी स्थिति आए तो कम से कम व्यक्ति को अपने विवेक से सोचना चाहिए : “ये सभी परमेश्वर के घर के लोग हैं, ये कोई मेरी निजी संपत्ति नहीं हैं। मैं भी परमेश्वर के घर का सदस्य हूँ। मुझे परमेश्वर के घर को लोगों को स्थानांतरित करने से रोकने का क्या अधिकार है? मुझे केवल अपनी जिम्मेदारियों के दायरे में आने वाले काम पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय परमेश्वर के घर के समग्र हितों पर विचार करना चाहिए।” जिन लोगों में जमीर और विवेक होता है, उन लोगों के विचार ऐसे ही होने चाहिए और जो परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उनमें ऐसा ही विवेक होना चाहिए। परमेश्वर का घर समग्र के कार्य में संलग्न है और कलीसियाएँ हिस्सों के कार्य में संलग्न हैं। इसलिए, जब परमेश्वर के घर को कलीसिया से कोई विशेष आवश्यकता हो तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करना सबसे महत्वपूर्ण है। नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों में ऐसा जमीर और विवेक नहीं होता। वे सब बहुत स्वार्थी होते हैं, वे सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं और वे कलीसिया के कार्य के बारे में नहीं सोचते। वे सिर्फ अपनी आँखों के सामने के लाभों पर विचार करते हैं, वे परमेश्वर के घर के व्यापक कार्य पर विचार नहीं करते, इसलिए वे परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करने में बिल्कुल अक्षम रहते हैं। वे बेहद स्वार्थी और नीच होते हैं! परमेश्वर के घर में उनकी हिम्मत इतनी बढ़ जाती है कि वे विनाशकारी हो जाते हैं, यहाँ तक कि वे अपने मनसूबों से बाज नहीं आते; ऐसे लोग मानवता से बिल्कुल शून्य होते हैं, दुष्ट होते हैं। मसीह-विरोधी इसी प्रकार के लोग हुआ करते हैं। वे हमेशा कलीसिया के काम को, भाइयों और बहनों को, यहाँ तक कि परमेश्वर के घर की सारी संपत्ति को जो उनकी जिम्मेदारी के दायरे में आती है, निजी संपत्ति के रूप में ही देखते हैं। मानते हैं कि यह उन पर है कि इन चीजों को कैसे वितरित करें, स्थानांतरित करें और उपयोग में लें और कि परमेश्वर के घर को दखल देने की अनुमति नहीं होती। जब वे चीजें उनके हाथों में आ जाती हैं तो ऐसा लगता है कि वे शैतान के कब्जे में हैं, किसी को भी उन्हें छूने की अनुमति नहीं होती। वे बड़ी तोप चीज होते हैं, वे ही सबसे बड़े होते हैं और जो कोई भी उनके क्षेत्र में जाता है उसे उनके आदेशों और व्यवस्थाओं का पालन शिष्ट और कोमल तरीके से करना होता है और उनकी अभिव्यक्तियों से इशारा लेना होता है। यह मसीह-विरोधियों के चरित्र के स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति होती है। वे परमेश्वर के घर के कार्य पर कोई ध्यान नहीं देते, वे सिद्धांतों का जरा भी पालन नहीं करते और केवल निजी हितों और अपने ही रुतबे के बारे में सोचते हैं—जो मसीह-विरोधियों के स्वार्थ और नीचता के हॉल्मार्क हैं।
एक और स्थिति है। चाहे भाई-बहनों द्वारा चढ़ाया गया पैसा हो या सामान, सामान्य परिस्थितियों में, चाहे वह कितनी भी मात्रा में हो, उसे परमेश्वर के घर को सौंप दिया जाना चाहिए। लेकिन कुछ मसीह-विरोधी गलत ढंग से यह मान लेते हैं कि “हमारी कलीसिया में भाई-बहनों द्वारा चढ़ाया गया पैसा हमारी कलीसिया का है और उसे हमारी कलीसिया को ही रखना और इस्तेमाल करना है। हम उसे कैसे इस्तेमाल या वितरित करते हैं, इसमें किसी को भी हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है और निश्चित रूप से उनके पास इसे ले लेने की योग्यता नहीं है।” इसलिए अगर तुम उनसे पूछो कि कलीसिया को कितना चढ़ावा मिला है तो वे डरेंगे कि तुम उसे ले जा सकते हो और वे तुम्हें वास्तविक मात्रा नहीं बताएँगे। कुछ लोग सोच सकते हैं, “इसका क्या मतलब है कि वे उसे ले जाए जाने से डरते हैं? क्या वे इसे खुद खर्च करना चाहते हैं?” जरूरी नहीं है। वे सोचते हैं, “हमारी कलीसिया को भी पैसे की जरूरत है। अगर इसे ले लिया गया तो हम अपना काम कैसे करेंगे?” इन मामलों के लिए ऊपरवाले के पास सिद्धांत हैं तो तुम उन्हें सँभालते समय सिद्धांतों का पालन क्यों नहीं करते? वे तुम्हारे काम के लिए पर्याप्त राशि अलग रखते हैं और बाकी राशि परमेश्वर के घर द्वारा समान रूप से व्यवस्थित की जाती है। ये संसाधन कलीसिया के अगुआओं की निजी संपत्ति नहीं हैं; वे परमेश्वर के घर के हैं। लेकिन अपनी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरी करने और अपने कार्य की खातिर और अपने प्रभाव-क्षेत्र के भीतर संसाधनों की गारंटी देने के लिए कुछ मसीह-विरोधी ये चीजें अपने पास रख लेते हैं, अपनी चीजों की तरह उनका उपयोग करते हैं और किसी और को उनका उपयोग नहीं करने देते। क्या यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति नहीं है? यह भी मसीह-विरोधियों के चरित्र की एक ठेठ और विशिष्ट अभिव्यक्ति है।
ये मसीह-विरोधी खराब और बुरे, कुरूप, दुष्ट, नीच और अधम हैं। उनके बारे में बात करना ही घिनौना और क्रोध दिलाने वाला है। वे बाहर से इंसानों जैसे दिख सकते हैं और मीठा बोल सकते हैं, सभी तरह के धर्म-सिद्धांतों को समझते और उनमें महारत हासिल किए हुए प्रतीत हो सकते हैं, लेकिन जैसे ही वे कार्य करते हैं, उनकी कुरूप और बुरी मानवता उजागर हो जाती है जो देखने में अप्रिय लगती है। चूँकि प्रत्येक मसीह-विरोधी के चरित्र में ये कुरूप और बुरे गुण होते हैं, इसलिए वे ऐसे बुरे कर्म करने में सक्षम होते हैं। इसीलिए उन्हें मसीह-विरोधी कहा जाता है। क्या यह तर्क समझ में आता है? (बिल्कुल।) दूसरे शब्दों में, यह उनके चरित्र में उन शातिर और दुष्ट स्वभावों की उपस्थिति ही है जो उन्हें मसीह-विरोधियों के बुरे कर्म करने देती है, जिससे वे इस रूप में निरूपित किए जाते हैं। यही हकीकत है। अगर कोई व्यक्ति मसीह-विरोधी है तो क्या उसकी मानवता को दयालु, सत्यनिष्ठ, ईमानदार और निष्कपट के रूप में वर्णित करना सही होगा? निश्चित रूप से नहीं। अगर कोई व्यक्ति आदतन झूठ बोलता है तो उसमें मसीह-विरोधी का गुण है। अगर कोई व्यक्ति कपटी और निर्दयी है तो उसमें भी मसीह-विरोधी का गुण है। अगर कोई व्यक्ति स्वार्थी, नीच, सिर्फ व्यक्तिगत लाभ से प्रेरित, बेलगाम होकर बुरी चीजें करने वाला और शर्म से बेपरवाह है तो वह एक बुरा व्यक्ति है। अगर ऐसा बुरा व्यक्ति सत्ता में आ जाता है तो वह मसीह-विरोधी बन जाता है।
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