प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक) खंड दो

ख. कपट और निर्दयता

आदतन झूठ बोलने के अलावा मसीह-विरोधियों में और क्या अभिव्यक्तियाँ होती हैं? हमने अभी-अभी सामान्य मानवता में दयालुता और ईमानदारी के आवश्यक गुणों के बारे में संगति की और यह बिल्कुल स्पष्ट है कि मसीह-विरोधियों में इन गुणों का पूरी तरह से अभाव होता है। सामान्य मानवता में जो कुछ भी निहित होता है, वह मसीह-विरोधियों में निश्चित रूप से अनुपस्थित रहता है; उनमें सिर्फ सामान्य मानवता के विपरीत चीजें, नकारात्मक चीजें होती हैं। तो, दयालुता और ईमानदारी के विपरीत क्या है? (कपट और निर्दयता।) बिल्कुल, तुमने बहुत सही कहा है—वह कपट और निर्दयता ही है। मसीह-विरोधियों में दयालुता और ईमानदारी जैसे लक्षणों का अभाव होता है, इसके बजाय, उनमें दयालुता और ईमानदारी के विपरीत कपटी और निर्दयी होने के तत्त्व होते हैं। क्या कपटी और निर्दयी होने और उस आदतन झूठ बोलने के बीच कोई संबंध है, जिसके बारे में हमने पहले चर्चा की थी? (हाँ, है।) उनके बीच एक निश्चित संबंध है। मसीह-विरोधी अपना कपट और निर्दयता कैसे अभिव्यक्त करते हैं? (झूठ गढ़ने और दूसरों को फँसाने की अपनी क्षमता में।) झूठ गढ़ने और दूसरों को फँसाने में आदतन झूठ बोलना और कपटी और निर्दयी होना दोनों शामिल हैं; ये दोनों लक्षण आपस में घनिष्ठता से जुड़े हैं। उदाहरण के लिए, अगर वे कोई दुष्कर्म करते हैं और जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते तो वे एक मायावी रूप रचते हैं, झूठ बोलते हैं और लोगों को विश्वास दिलाते हैं कि यह किसी और का काम था, उनका नहीं। वे दोष किसी और पर मढ़ देते हैं, जिससे परिणाम उसे भुगतने पड़ते हैं। यह न सिर्फ दुष्टतापूर्ण और घिनौना है, बल्कि उससे भी ज्यादा कपटपूर्ण और निर्दयी है। मसीह-विरोधियों के कपट और निर्दयता की कुछ अन्य अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? (वे लोगों को सता सकते हैं, उन पर हमला कर सकते हैं और उनसे बदला ले सकते हैं।) लोगों को सताने में सक्षम होना निर्दयी होना है। जो कोई उनके रुतबे, प्रतिष्ठा या ख्याति के लिए खतरा पैदा करता है या जो कोई उनके प्रतिकूल होता है, वे उस पर हमला कर उससे बदला लेने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देंगे। कभी-कभी वे लोगों को नुकसान पहुँचाने के लिए दूसरों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं—यह कपट और निर्दयता है। संक्षेप में, “कपटी और निर्दयी” वाक्यांश यह दर्शाता है कि मसीह-विरोधी विशेष रूप से दुर्भावनापूर्ण होते हैं। जिस तरह से वे लोगों के साथ व्यवहार और बातचीत करते हैं, वह जमीर पर आधारित नहीं होता और वे उनके साथ समान स्तर पर सद्भाव में नहीं रहते हैं; इसके बजाय, वे अपने उपयोग के लिए हर मोड़ पर दूसरों का शोषण और नियंत्रण कर उन्हें प्रभावित करना चाहते हैं। दूसरों के साथ बातचीत करने का उनका तरीका सामान्य या सीधा नहीं होता; इसके बजाय, वे लोगों को गुमराह करने, उनका शोषण करने और उनकी जानकारी के बिना सूक्ष्म रूप से उनका अस्त्र के रूप में इस्तेमाल करने के लिए निश्चित साधनों और तरीकों का उपयोग करते हैं। दूसरों से पेश आते समय, चाहे उनका व्यवहार सतह पर अच्छा प्रतीत हो या बुरा, इसमें कोई ईमानदारी तो बिल्कुल नहीं होती। वे उन लोगों के करीब जाते हैं जिन्हें वे उपयोगी पाते हैं और उन लोगों से खुद को दूर रखते हैं जिन्हें वे बेकार समझते हैं और उन पर कोई ध्यान नहीं देते। यहाँ तक कि अपेक्षाकृत भोले या कमजोर व्यक्तियों को भी गुमराह करने और फँसाने के लिए वे विभिन्न साधनों और तरीकों का उपयोग करने के उपाय सोचते हैं, जिससे वे उनके लिए उपयोगी बन जाते हैं। लेकिन जब लोग कमजोर होते हैं, कठिनाई में होते हैं या उन्हें मदद की जरूरत होती है तो मसीह-विरोधी बस आँखें मूँद लेते हैं और उनके प्रति उदासीन हो जाते हैं। वे कभी ऐसे लोगों के प्रति प्रेम नहीं दिखाते या उन्हें मदद की पेशकश नहीं करते; इसके विपरीत, वे उन्हें धौंस देने, गुमराह करने, यहाँ तक कि उनका और भी ज्यादा शोषण करने के तरीके सोचने लगते हैं। अगर वे उनका शोषण करने में असमर्थ रहते हैं तो वे उन्हें तिलांजलि दे देते हैं और उनके प्रति कोई प्रेम या सहानुभूति नहीं दिखाते—क्या इसमें दया का कोई निशान है? क्या यह दुर्भावना की अभिव्यक्ति नहीं है? जिस पद्धति और फलसफे के साथ मसीह-विरोधी लोगों के साथ बातचीत करते हैं, वह लोगों का शोषण करने और उन्हें धोखा देने के लिए साजिशों और रणनीतियों का उपयोग करना है, जिससे लोग उन्हें समझने में असमर्थ हो जाते हैं, फिर भी उनके लिए कठिन परिश्रम करने को तैयार रहते हैं और हमेशा उनके इशारे पर काम करते हैं। जो उन्हें पहचान जाते हैं और अब उनसे और शोषित नहीं होते, उन लोगों को वे धमका और सता सकते हैं। यहाँ तक कि वे यूँ ही उन लोगों को दोषी भी ठहरा सकते हैं, जिससे भाई-बहन उन्हें छोड़ देते हैं और फिर वे उन लोगों को निकाल या हटा देते हैं। संक्षेप में, मसीह-विरोधी कपटी और निर्दयी होते हैं, उनमें दया और ईमानदारी बिल्कुल नहीं होती। वे कभी दूसरों की वास्तविक रूप से मदद नहीं करते, जब दूसरे मुश्किलों का सामना करते हैं तो वे कोई सहानुभूति या प्रेम नहीं दिखाते। अपने मेलजोल में वे अपने फायदे और लाभ के लिए षड्यंत्र करते हैं। कठिनाई में चाहे जो भी उनके पास आए या उनकी मदद माँगे, वे हमेशा उस व्यक्ति के बारे में हिसाब-किताब लगाते रहते हैं और अपने दिल में सोचते हैं : “अगर मैं इस व्यक्ति की मदद करता हूँ तो भविष्य में मुझे इससे क्या लाभ मिल सकता है? क्या यह मेरी मदद कर सकता है? क्या यह मेरे काम आ सकता है? मैं इससे क्या हासिल कर सकता हूँ?” क्या हमेशा इन मामलों के बारे में सोचना उनका स्वार्थी और नीच होना नहीं है? (बिल्कुल है।) कलीसिया के चुनावों में, मसीह-विरोधी कौन-से तरीके अपनाएँगे? (वे दूसरों को नीचा दिखाएँगे और खुद को ऊँचा उठाएँगे और अपने से बेहतर लोगों को नीचे गिराएँगे।) दूसरों को नीचा दिखाना और खुद को ऊँचा उठाना भी कपटी और निर्दयी होना है। मसीह-विरोधी सम्मान पाने और वोट हासिल करने के लिए लोगों को अपने साथ मिलाकर अपने योगदानों के बारे में शेखी बघारने के लिए उन पर छोटे-मोटे उपकार भी कर सकते हैं। और क्या? (वे उम्मीदवारों का निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ रूप से मूल्यांकन नहीं कर सकते; वे उसमें अपना पक्षपात और पूर्वाग्रह शामिल करेंगे।) इसमें दूसरों को बदनाम करने के लिए झूठ गढ़ना शामिल है। मसीह-विरोधियों के कपटी और निर्दयी होने की कई विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में पहले संगति की जा चुकी है। कपटी का अर्थ है ढेर सारे षड्यंत्र रचना और आचरण करने, दुनिया से निपटने तथा कुछ भी करने के लिए उनका सिद्धांत है रणनीति पर निर्भर रहना—ईमानदारी से रहित, झूठ और चालाकी के साथ। निर्दयता मुख्य रूप से उनके कार्य करने के तरीकों में निर्दयता और क्रूरता से संबंधित है, वे कोई दया नहीं दिखाते, उनमें इंसानी भावना की कमी होती है, वे दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं और किसी को भी चोट पहुँचाने की कीमत पर अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए तैयार रहते हैं—यह निर्दयता है और यह इंसानी दयालुता के सीधे विपरीत है। अगर व्यक्ति की मानवता में दयालुता होती है तो साधारण मामलों से सामना होने पर वह जहाँ संभव होगा वहाँ दूसरों के प्रति उदार होगा और लोगों को क्षमा कर देगा। ऐसा व्यक्ति दूसरे लोगों की समस्याओं और दोषों के प्रति सहिष्णु होता है, मीनमेख नहीं निकालता और जब भी संभव हो काम चला लेता है। इसके अतिरिक्त, वह दयालु होता है और जब भी दूसरों को कठिनाइयों से गुजरते देखता है तो मदद करने के लिए तैयार रहता है, दूसरों की मदद करने में आनंद पाता है और दूसरों की शिक्षा को व्यक्तिगत जिम्मेदारी मानता है—यह दयालुता है। क्या मसीह-विरोधियों में यह लक्षण होता है? (नहीं।) वे मानते हैं, “अगर तुम कठिनाई में हो और मैं तुम्हारी मदद करता हूँ तो तुम्हें इसकी कीमत चुकानी होगी। अगर मैं तुम्हें लाभ देता हूँ तो मुझे इससे क्या मिलेगा? अगर मैं तुम्हारे साथ सहानुभूति रखूँ तो मेरे साथ कौन सहानुभूति रखेगा? अगर मैं तुम्हारी मदद करूँ तो क्या तुम मेरी अच्छाई याद रखोगे? अगर तुम मुझसे यह कह रहे हो कि मैं तुम्हारी मदद करने के लिए खुद को बलिदान कर दूँ तो तुम सपना देख रहे हो! हमारे बीच क्या रिश्ता है? तुम मुझे क्या लाभ दे सकते हो? क्या तुमने पहले कभी मेरी मदद की है? तुम कौन हो? क्या तुम मदद करने लायक हो? अगर तुम राजा की बेटी या किसी अमीर आदमी के बेटे होते तो शायद तुम्हारी मदद करने से मुझे कुछ यश या लाभ मिलता। लेकिन तुम उनमें से कोई नहीं हो। मैं तुम्हारी मदद क्यों करूँ? तुम्हारी मदद करने से मुझे क्या लाभ है?” किसी को कठिनाई में देखकर, किसी को कमजोर या मदद की जरूरत में देखकर वे ऐसा ही सोचते हैं। क्या यह दयालुता है? जब ये लोग किसी को कमजोर अवस्था में देखते हैं तो न सिर्फ उसका मजाक उड़ाते और उपहास करते हैं, बल्कि अपने दिल में हिसाब-किताब भी लगाते रहते हैं। कुछ लोग तो इसे खुद को आकर्षक रूप में प्रदर्शित करने या उस व्यक्ति का दिल जीतने के अवसर के रूप में भी देखते हैं। इनमें से कुछ भी दयालुता नहीं है। मसीह-विरोधी अक्सर खुद को आकर्षक रूप में प्रदर्शित करने के लिए ऐसे मौकों का लाभ उठाते हैं। वे तब तक काम नहीं करेंगे जब तक कि उसमें लाभ शामिल न हो, जब तक उनका कोई उद्देश्य और प्रेरणा न हो। अगर वे किसी की मदद करते हैं तो वे उसे अपना सहयोगी बनाना चाहते हैं। अगर वे दो लोगों की मदद करते हैं और उनके साथ सहानुभूति रखते हैं तो वे सहयोगियों का जोड़ा पाना चाहते हैं, दो विश्वस्त व्यक्ति पाना चाहते हैं। वरना वे एक उँगली भी नहीं उठाएँगे और निश्चित रूप से उन लोगों के प्रति प्रेम नहीं दिखाएँगे, जिन्हें मदद की जरूरत है।

मसीह-विरोधियों के कपट और निर्दयता की प्राथमिक अभिव्यक्ति यह है कि वे जो कुछ भी करते हैं, उसका एक खास तौर से स्पष्ट उद्देश्य होता है। सबसे पहले वे अपने हितों के बारे में सोचते हैं; उनके तरीके घृणित, असभ्य, घटिया, नीच और संदिग्ध होते हैं। जिस तरह से वे काम करते हैं, जिस तरह से और जिन सिद्धांतों के अनुसार वे लोगों से व्यवहार करते हैं, उनमें कोई ईमानदारी नहीं होती। जिस तरह से वे लोगों से व्यवहार करते हैं, वह उनका फायदा उठाना और उनके साथ खिलवाड़ करना है और जब लोग उनके लिए लाभदायक मूल्य के नहीं रह जाते तो वे उन्हें फेंक देते हैं। अगर तुम उनके लिए लाभदायक मूल्य रखते हो तो वे तुम्हारी परवाह करने का दिखावा करते हैं : “क्या हाल है? कोई कठिनाई तो नहीं हो रही? मैं तुम्हारी कठिनाइयाँ हल करने में तुम्हारी मदद कर सकता हूँ। अगर तुम्हें कोई समस्या है तो मुझे बताओ। मैं तुम्हारे लिए हाजिर हूँ। हम कितने भाग्यशाली हैं कि हमारे बीच इतना अच्छा रिश्ता है!” वे बहुत ध्यान देने वाले लगते हैं। फिर भी अगर ऐसा दिन आ जाए जब उनके लिए तुम्हारा कोई लाभदायक मूल्य न रहे तो वे तुम्हें छोड़ देंगे, वे तुम्हें एक तरफ फेंक देंगे और तुम्हें अनदेखा कर देंगे, मानो वे तुमसे पहले कभी मिले तक न हों। जब तुम वास्तव में किसी समस्या में होते हो और मदद के लिए उनका मुँह जोहते हो तो अचानक उनका रवैया बदल जाता है, उनके शब्द अब उतने अच्छे नहीं रहते जितने तब होते थे जब उन्होंने पहली बार तुम्हारी मदद करने का वादा किया था—और ऐसा क्यों होता है? ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि उनके लिए तुम्हारा कोई उपयोगी मूल्य नहीं रहता। नतीजतन, वे तुम पर ध्यान देना बंद कर देते हैं। इतना ही नहीं : अगर उन्हें पता चलता है कि तुमने कुछ गलत किया है या उन्हें कुछ ऐसा मिल जाता है जिसका वे लाभ उठा सकते हैं तो वे रुखाई से तुम्हारे दोष निकालने लगते हैं, यहाँ तक कि तुम्हारी निंदा भी कर सकते हैं। तुम इस तरीके के बारे में क्या सोचते हो? क्या यह दयालुता और ईमानदारी की अभिव्यक्ति है? जब मसीह-विरोधी दूसरों के प्रति अपने व्यवहार में ऐसा कपट और निर्दयता प्रकट करते हैं तो क्या इसमें मानवता का कोई निशान शामिल रहता है? क्या उनमें लोगों के प्रति थोड़ी-सी भी ईमानदारी होती है? बिल्कुल नहीं। जो कुछ भी वे करते हैं, अपने लाभ, गौरव और प्रतिष्ठा के लिए करते हैं, दूसरों के बीच खुद को रुतबा और प्रसिद्धि दिलाने के लिए करते हैं। जिस किसी से भी वे मिलते हैं, अगर वे उसका फायदा उठा सकते हैं तो जरूर उठाएँगे। जिनसे वे फायदा नहीं उठा सकते, उनका तिरस्कार करते हैं और उन पर ध्यान नहीं देते; यहाँ तक कि अगर तुम उनसे संपर्क करने का बीड़ा भी उठाते हो तो भी वे तुम्हें अनदेखा करते हैं और तुम्हारी ओर देखते तक नहीं। लेकिन अगर कोई ऐसा दिन आता है, जब उन्हें तुम्हारी जरूरत होती है तो तुम्हारे प्रति उनका रवैया अचानक बदल जाता है और वे बहुत ही ध्यान रखने वाले और मिलनसार हो जाते हैं, जिससे तुम हैरान रह जाते हो। तुम्हारे प्रति उनका रवैया क्यों बदल गया है? (क्योंकि अब तुम उनके लिए लाभदायक मूल्य के हो।) यह सही है : जब वे देखते हैं कि तुम्हारा लाभदायक मूल्य है तो उनका रवैया बदल जाता है। क्या तुम लोगों के आसपास ऐसे लोग हैं? जब ये लोग दूसरों से मिलते-जुलते हैं तो यह आसानी से पता नहीं चलता कि वे कोई स्पष्ट रूप से बुरा काम कर रहे हैं। उनकी दैनिक अभिव्यक्तियों, भाषण और व्यवहार से भी कोई स्पष्ट समस्या नहीं दिखती। लेकिन अगर तुम ध्यान से देखो कि वे लोगों के साथ कैसे मिलते-जुलते हैं, खास तौर पर वे अपने सबसे करीबी और सबसे प्रिय लोगों के साथ कैसे मिलते-जुलते हैं, अगर तुम देखो कि वे दूसरों का कैसे शोषण करते हैं और बाद में उनके साथ कैसे व्यवहार करते हैं तो इससे तुम मसीह-विरोधियों के दूसरों के साथ मेलजोल में उनके इरादे, रवैये और तरीके देख सकते हो। वे सब सिर्फ निजी लाभ खोजते हैं, शैतान के फलसफे के अनुसार जीते हैं और किसी भी सामान्य मानवता से रहित होते हैं।

मसीह-विरोधियों की मानवता में कपट और निर्दयता जैसे लक्षण होते हैं। क्या वे उन लोगों के साथ मिलजुलकर रह सकते हैं, जो लोगों और चीजों के साथ अपने व्यवहार में ईमानदार, दयालु और सच्चे होते हैं? क्या वे ऐसे लोगों के करीब आने के इच्छुक होते हैं? (नहीं, वे इसके इच्छुक नहीं होते।) वे इन लोगों को कैसे देखते हैं? वे कहते हैं, “ये तमाम लोग बड़े मूर्ख हैं और ये कुछ ज्यादा ही सीधा-सीधा बोलते हैं। तुम्हें बोलने से पहले सावधानी से सोचना चाहिए—तुम इतनी सच्चाई से क्यों बोलते हो? तुम्हारी बोलचाल हमेशा इतनी स्पष्ट क्यों होती है?” ये लोग मसीह-विरोधियों के लिए दयनीय रूप से मूर्ख होते हैं और मसीह-विरोधी इन्हें हीन समझते हैं। जब ये लोग किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो दयालु है और लोगों के साथ ईमानदारी से पेश आता है तो ये लोग उस समय वास्तव में उस व्यक्ति की मदद करते हैं, जब वह कठिनाइयों का अनुभव करता है और उसे मदद की जरूरत होती है और ये लोग उस व्यक्ति की भलाई की आशा करते हैं और उसे लाभ, सहायता और शिक्षा प्रदान करना चाहते हैं—मसीह-विरोधी इन लोगों को मूर्ख और मूढ़ समझते हैं। मसीह-विरोधी यह नहीं मानते कि मानवता के ये सकारात्मक तत्त्व अच्छी या सुंदर चीजें हैं, जो लोगों में होनी चाहिए। इसके बजाय, अपने दिलों में वे सामान्य मानवता के लिए आवश्यक इन गुणों के प्रति घृणा, विकर्षण और तिरस्कार महसूस करते हैं। वे ईमानदार लोगों को मूर्ख कहते हैं; वे दयालु लोगों को भी मूर्ख ही कहते हैं और ईमानदार लोगों को तो और भी ज्यादा मूर्ख कहते हैं। जो लोग सापेक्ष ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हैं और जो सापेक्ष ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, जिनका दिल दयालु होता है और जो कभी दूसरों को चोट या नुकसान नहीं पहुँचाते, जो दूसरों से प्रेम करते हैं और उनके प्रति सहानुभूति रखते हैं, जो दूसरों की मदद करने के लिए अपने लाभ त्याग सकते हैं और अपनी कठिनाइयों पर विजय पा सकते हैं, जो कमजोर और मदद की जरूरत महसूस करने वाले लोगों को देखकर दायित्वपूर्ण और जिम्मेदार महसूस करते हैं—मसीह-विरोधी उन लोगों का अपने दिल की गहराई में और भी ज्यादा तिरस्कार करते हैं। उन लोगों के संबंध में, जो परमेश्वर में अपने विश्वास में अपेक्षाकृत ईमानदार हैं, जिनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है, जो सभी चीजों में परमेश्वर की जाँच स्वीकारते हैं, जो अपने कर्तव्य ईमानदारी, निष्ठा और जिम्मेदारी के साथ निभाने में सक्षम हैं और जो अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से लेते हैं—मसीह-विरोधी अपने दिलों की गहराई में ऐसे व्यक्तियों से घृणा और उनका तिरस्कार करते हैं, उनसे स्पष्ट रूप से बचते हैं और बाहरी तौर पर उनसे दूर रहते हैं। मसीह-विरोधियों की नजर में ये तमाम सकारात्मक तत्त्व, जो सामान्य मानवता के लिए आवश्यक हैं, कोई सकारात्मक चीजें नहीं हैं : वे प्रशंसा करने या बढ़ावा देने योग्य नहीं हैं। इसके बजाय, मसीह-विरोधी मानते हैं कि उनकी साजिशें, रणनीतियाँ, लोगों से निपटने के आंतरिक तरीके और क्रूरता सराहनीय हैं। चाहे वे कुछ भी करें, हर समय वे अपने मन में अपने तरीकों और साजिशों पर विचार और उनका परिष्कार कर रहे होते हैं। मामला जिस भी पैमाने का हो, वे मानते हैं कि इसी तरह से कार्य करना सार्थक और आवश्यक है; वरना इससे उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान और क्षति होगी। मसीह-विरोधियों की मानवता में इन तत्त्वों की मौजूदगी देखते हुए, क्या वे सत्य स्वीकार सकते हैं? क्या वे सत्य का अभ्यास कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं। चाहे तुम ईमानदारी, दयालुता और अन्य सकारात्मक चीजों पर कितना भी जोर दो, लोगों में इन पहलुओं का होना और इस सकारात्मक मानवता के अनुसार लोगों के साथ पेश आना, अपने कर्तव्यों के साथ पेश आना और विभिन्न मामलों से निपटना, इन चीजों के प्रति मसीह-विरोधियों के दिलों की गहराई में अस्वीकृति, तिरस्कार और शत्रुता रहती है। क्यों? क्योंकि मसीह-विरोधी इन सकारात्मक चीजों से पूरी तरह रहित होते हैं; उनके सार में कपट और निर्दयता का चरित्र होता है, जो राक्षसी प्रकृति का है। क्या इस चरित्र और परमेश्वर द्वारा अपेक्षित ईमानदार, दयालु और निष्कपट होने के बीच कोई दूरी है? इन दोनों के बीच न सिर्फ दूरी है, बल्कि वे एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत हैं—ये दो चरित्र प्रकृति में अलग हैं। क्या मसीह-विरोधियों के कपट और निर्दयता की कोई अभिव्यक्ति और प्रकाशन सामान्य मानवता के अनुरूप है? क्या यह सत्य के अनुरूप है? बिल्कुल नहीं; ये सब शैतान की साजिशें और षड्यंत्र हैं। शैतान की साजिशों और षड्यंत्रों द्वारा अभिव्यक्त प्रकृति वास्तव में कपट और निर्दयता है, ऐसे तत्त्व जो परमेश्वर द्वारा अपेक्षित सामान्य मानवता में मौजूद नहीं होने चाहिए। कपट और निर्दयता की उन विभिन्न अभिव्यक्तियों के आधार पर, जिनके बारे में संगति की गई है, विचार करो कि क्या तुम्हारे आसपास ऐसे लोग हैं जिनमें ऐसी मानवता है। ऐसे कपटी और निर्दयी चरित्र वाले मसीह-विरोधी निस्संदेह कार्रवाई करने में सक्षम होंगे। उनके कार्यकलाप दूसरों के लिए दृश्य, श्रव्य और सुगम्य होंगे। अगर वे सुगम्य हैं तो लोगों को उनके बारे में समझ होनी चाहिए और उन्हें ऐसे व्यक्तियों को पहचानने और समझने में सक्षम होना चाहिए। मसीह-विरोधियों का कपटी और निर्दयी चरित्र एक बहुत ही सामान्य और स्पष्ट अभिव्यक्ति होनी चाहिए। यह कोई छिपा हुआ भाव, सोच या इरादा नहीं है, बल्कि उनकी प्रकाशित मानवता और उनके कार्यकलापों के तरीके, साधन और रणनीतियाँ हैं। लोगों को इस पहलू को समझने में सक्षम होना चाहिए।

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