प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक) खंड एक
पिछली सभा में हमने मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों से संबंधित पंद्रहवीं मद के बारे में अपनी संगति समाप्त की थी। इन पंद्रह मदों के बारे में संगति करने के बाद क्या तुम लोगों ने मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों और सारों का सारांश निकाला है? क्या तुम्हारे पास उनके बारे में कोई बुनियादी अवधारणा और समझ है? क्या तुम लोग उन व्यक्तियों का भेद पहचान सकते हो जिनमें मसीह-विरोधियों का सार होता है? (मैं अपेक्षाकृत स्पष्ट मामलों का भेद पहचान सकता हूँ, लेकिन मुझे अभी भी अपेक्षाकृत चालाक और कपटी लोगों का भेद पहचानने में कठिनाई होती है।) आओ आज मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों का सारांश दो पहलुओं से निकालते हैं : पहला, मसीह-विरोधियों का चरित्र और दूसरा, उनका स्वभाव सार। क्या इन दो पहलुओं से मसीह-विरोधियों का भेद पहचानना आसान है? (हाँ।) अगर हम कम संगति करते हैं और बहुत सारे उदाहरण नहीं देते तो शायद तुम लोग उनका भेद पहचानने में सक्षम न हो पाओ; अगर हम ज्यादा संगति करते हैं तो शायद तुम लोग समझ पाओ, लेकिन उन्हें बुराई करते देखकर तुम्हें उनकी तुलना मसीह-विरोधियों से करने में शायद अभी भी कठिनाई हो। मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार का सारांश निकालने और इन दो पहलुओं से उनका भेद पहचानने से तुम्हें यह और ज्यादा स्पष्ट हो सकता है।
I. मसीह-विरोधियों का चरित्र
पहला पहलू मसीह-विरोधियों का चरित्र है। विशिष्ट रूप से, यह पहलू इस बात से संबंधित है कि मसीह-विरोधियों में किस तरह की मानवता होती है। मानवता में क्या शामिल होता है? इसमें जमीर, विवेक, सत्यनिष्ठा, गरिमा के साथ ही इंसानी अच्छाई और बुराई शामिल होती है। मसीह-विरोधियों के चरित्र का भेद पहचानने में उनकी मानवता के विभिन्न पहलू शामिल होते हैं। आओ, पहले सामान्य मानवता में मौजूद सामान्य अभिव्यक्तियों की चर्चा करते हैं या उन गुणों की चर्चा करते हैं जो सामान्य मानवता में होने चाहिए। मुझे बताओ, इस श्रेणी में कौन-सी विशिष्ट विषयवस्तु आती है? (ईमानदारी और दयालुता।) इसके अलावा और क्या? (सम्मान की भावना।) सत्यनिष्ठा और सम्मान की भावना रखना दोनों आवश्यक हैं। (साथ ही, दूसरों के प्रति प्रेम, सहनशीलता, विचारशीलता और क्षमाशीलता दिखाना।) ये भी आवश्यक हैं। आओ, इन सबका सारांश निकालते हैं। सबसे पहले तो सामान्य मानवता में ईमानदारी का गुण होता है—क्या यह सकारात्मक है? (हाँ।) इसके अतिरिक्त, इसमें दयालुता और नेकनीयती होती है और नेकनीयती और ईमानदारी के बीच मात्रा के संदर्भ में फर्क होता है। क्या तुम लोगों को लगता है कि करुणा ऐसी चीज है जिसे व्यक्ति के चरित्र में शामिल किया जाना चाहिए? (हाँ।) क्या करुणा को दयालुता के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है? (हाँ।) दयालु हृदय वाले व्यक्ति में निश्चित रूप से करुणा होगी। फिर सादगी और सम्मान की भावना है। सम्मान की भावना में गरिमा, आत्म-जागरूकता और विवेक शामिल हैं। अगला बिंदु है खरापन। खरेपन की क्या अभिव्यक्तियाँ हैं? इनमें न्याय की भावना, बुराई से बेइंतहा नफरत, दुष्टता से घृणा और सकारात्मक चीजों से लगाव शामिल है। अगर व्यक्ति में सिर्फ खरापन है तो यह पर्याप्त नहीं है; अगर उनमें सहनशीलता और धैर्य की कमी है, वे लोगों की दशाओं या परिस्थितियों पर विचार किए बिना रुखाई से बोलते हैं तो यह ठीक नहीं है और उनके चरित्र में कुछ चीजों की कमी है। फिर सहिष्णुता और धैर्य भी हैं जो दोनों ही दयालुता की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं और निश्चित रूप से एक लक्षण माने जा सकते हैं। ये वे लक्षण हैं, जो सामान्य मानवता में होने चाहिए : ईमानदारी, दयालुता, नेकनीयती, सादगी, सम्मान की भावना, खरापन तथा सहिष्णुता और धैर्य—कुल मिलाकर सात लक्षण। सामान्य मानवता में मौजूद रहने वाले इन लक्षणों का उपयोग यह मापने के लिए किया जा सकता है कि क्या किसी व्यक्ति में सामान्य मानवता है। लेकिन आज की संगति उन लक्षणों की विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में नहीं है जो सामान्य मानवता में होनी चाहिए, न ही इसका विषय यह है कि वे लक्षण किन व्यक्तियों में होते हैं। इसके बजाय, हम इस विषय पर संगति करने जा रहे हैं कि “मसीह-विरोधियों का चरित्र वास्तव में क्या होता है।” अभी-अभी उल्लिखित सामान्य चरित्र के विभिन्न पहलुओं की तुलना में क्या मसीह-विरोधियों में इनमें से कोई लक्षण होता है या इनमें से कौन-से लक्षण उनमें होते हैं? (उनमें इनमें से कोई लक्षण नहीं होता।) चूँकि तुम्हारे मन में मसीह-विरोधियों के बारे में ऐसी छवि है तो आओ इस बात का सारांश निकालते हैं कि मसीह-विरोधियों के चरित्र में वे कौन-से तत्त्व होते हैं जिनके कारण लोग उन्हें मसीह-विरोधियों के रूप में निरूपित करते हैं और यह दिखाते हैं कि इन व्यक्तियों में बुरी मानवता है, उनमें सामान्य मानवता का अभाव है और उनमें मसीह-विरोधियों वाली मानवता है। अगर किसी में पहले सारांशित की जा चुकीं सामान्य मानवता की कई अभिव्यक्तियों में से एक-दो अभिव्यक्तियाँ हैं तो उसमें कुछ सामान्य मानवता हो सकती है। अगर उसमें वे सभी हैं तो उसमें सबसे अधिक सामान्य मानवता है। लेकिन मसीह-विरोधियों में इनमें से कोई लक्षण नहीं होता है तो उनकी मानवता में वास्तव में क्या होता है? आओ, पहले इस पहलू पर संगति करते हैं।
क. आदतन झूठ बोलना
सामान्य चरित्र में निहित पहला लक्षण ईमानदारी है। क्या मसीह-विरोधियों के चरित्र में ईमानदारी शामिल होती है? जाहिर है, मसीह-विरोधियों में ईमानदार मानवता नहीं होती; उनकी मानवता निश्चित रूप से ईमानदारी के विपरीत होती है। तो मसीह-विरोधियों की मानवता में ईमानदारी के विपरीत, असामान्य मानवता के कौन-से तत्त्व मौजूद होते हैं? (वे अक्सर झूठ बोलते हैं और लोगों को धोखा देते हैं।) क्या हम कह सकते हैं कि अक्सर झूठ बोलना आदतन झूठ बोलने के समान है? क्या यह सारांश ज्यादा विशिष्ट नहीं है? अगर हम कहते हैं कि यह व्यक्ति हमेशा झूठ बोलता है या बहुत सच्चा नहीं है तो इसमें मात्रा की कमी है। अगर हम उनके चरित्र का वर्णन करने के लिए “झूठ से भरपूर” जैसी अभिव्यक्तियों का उपयोग करते हैं तो यह पर्याप्त रूप से औपचारिक नहीं है। इसलिए उनका वर्णन करने और यह व्यक्त करने के लिए कि मसीह-विरोधियों की मानवता ईमानदार नहीं है, “आदतन झूठे” होने का उपयोग करना ज्यादा उपयुक्त है। “आदतन झूठे” होना पहला लक्षण है—यह कुछ ऐसी चीज है जो मसीह-विरोधियों की मानवता से बार-बार अभिव्यक्त और प्रकट होती है। यह लोगों के सामने आने वाला सबसे आम, आसानी से देखा जा सकने वाला और आसानी से भेद पहचाना जा सकने वाला लक्षण होना चाहिए। अब क्या आदतन झूठ बोलने की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ संगति करने के लायक हैं? (हाँ।)
मसीह-विरोधियों की मानवता बेईमान होती है, जिसका अर्थ है कि वे जरा भी सच्चे नहीं होते। वे जो कुछ भी कहते और करते हैं वह मिलावटी होता है, उसमें उनके इरादे और मकसद शामिल होते हैं और इस सबमें छिपी होती हैं उनकी घृणित और अकथनीय चालें और षड्यंत्र। इसलिए मसीह-विरोधियों के शब्द और क्रियाकलाप अत्यधिक दूषित और झूठ से भरे होते हैं। चाहे वे कितना भी बोलें, यह जानना असंभव होता है कि उनकी कौन-सी बात सच्ची है और कौन-सी झूठी, कौन-सी सही है और कौन-सी गलत। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे बेईमान होते हैं और उनके दिमाग बेहद जटिल होते हैं, कपटी साजिशों से भरे और चालों से ओतप्रोत होते हैं। वे एक भी सीधी बात नहीं कहते। वे एक को एक, दो को दो, हाँ को हाँ और ना को ना नहीं कहते। इसके बजाय वे सभी मामलों में गोलमोल बातें करते हैं और चीजों के बारे में अपने दिमाग में कई बार सोचते हैं, परिणामों के बारे में सोच-विचार करते हैं, हर कोण से गुण और कमियाँ तोलते हैं। फिर वे जो कुछ कहना चाहते हैं उसे भाषा का उपयोग करके बदल देते हैं, जिससे वे जो कुछ कहते हैं वह काफी बोझिल लगता है। ईमानदार लोग उनकी बातें कभी समझ नहीं पाते और वे उनसे आसानी से धोखा खा जाते हैं और ठगे जाते हैं, जो भी ऐसे लोगों से बोलता और बात करता है उसका यह अनुभव थका देने वाला और दुष्कर होता है। वे कभी एक को एक और दो को दो नहीं कहते, वे कभी नहीं बताते कि वे क्या सोच रहे हैं और वे चीजों का वैसा वर्णन नहीं करते जैसी वे होती हैं। वे जो कुछ भी कहते हैं, वह अथाह होता है और उनके क्रियाकलापों के लक्ष्य और इरादे बहुत जटिल होते हैं। अगर सच बाहर आ जाता है—अगर दूसरे लोग उनकी असलियत जान जाते हैं और उन्हें समझ लेते हैं—तो वे इससे निपटने के लिए तुरंत एक और झूठ गढ़ लेते हैं। ऐसे व्यक्ति अक्सर झूठ बोलते हैं और झूठ बोलने के बाद उन्हें झूठ कायम रखने के लिए और ज्यादा झूठ बोलने पड़ते हैं। वे अपने इरादे छिपाने के लिए दूसरों को धोखा देते हैं और अपने झूठ की मदद के लिए तमाम तरह के हीले-हवाले और बहाने गढ़ते हैं, ताकि लोगों के लिए यह बताना बहुत मुश्किल हो जाए कि क्या सच है और क्या नहीं, लोगों को पता ही नहीं चलता कि वे कब सच्चे होते हैं और इसका तो बिल्कुल भी पता नहीं चलता कि वे कब झूठ बोल रहे होते हैं। जब वे झूठ बोलते हैं तो वे शरमाते या हिचकते नहीं हैं, मानो सच बोल रहे हों। क्या इसका मतलब यह नहीं कि वे आदतन झूठ बोलते हैं? उदाहरण के लिए, कभी-कभी मसीह-विरोधी सतही तौर पर दूसरों के प्रति अच्छे, ख्याल रखने वाले और गर्मजोशी से बोलते प्रतीत होते हैं, जो दयालु और प्रेरक लगता है। लेकिन जब वे इस तरह बोलते हैं, तब भी कोई नहीं बता सकता कि वे नेकनीयत हैं या नहीं और वे नेकनीयत थे या नहीं इस बात के प्रकट होने के लिए हमेशा कुछ दिनों बाद होने वाली घटनाओं की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता होती है। मसीह-विरोधी हमेशा कुछ निश्चित इरादों और लक्ष्यों के साथ बोलते हैं और कोई यह पता नहीं लगा सकता कि वास्तव में वे क्या चाहते हैं। ऐसे लोग आदतन झूठ बोलते हैं और अपने किसी भी झूठ के परिणाम के बारे में जरा भी नहीं सोचते। अगर उनका झूठ उन्हें लाभ पहुँचाता है और दूसरों की आँखों में धूल झोंकने में सक्षम रहता है, अगर वह उनके लक्ष्य प्राप्त कर सकता है तो वे उसके परिणामों की परवाह नहीं करते। जैसे ही वे उजागर होते हैं, वे बात छिपाना, झूठ बोलना, छल करना जारी रखते हैं। जिस सिद्धांत और तरीके से ये लोग आचरण करते हैं और दुनिया से निपटते हैं, वह झूठ बोलकर लोगों को बरगलाना है। वे दोमुँहे होते हैं और अपने श्रोताओं के अनुरूप बोलते हैं; स्थिति जिस भी भूमिका की माँग करती है, वे उसे निभाते हैं। वे मधुरभाषी और चालाक होते हैं, उनके मुँह झूठ से भरे होते हैं और वे भरोसे के लायक नहीं होते। जो भी कुछ समय के लिए उनके संपर्क में आता है, वह गुमराह या परेशान हो जाता है और उसे पोषण, सहायता या सीख नहीं मिल पाती। ऐसे लोगों के मुँह से निकले शब्द गंदे हों या अच्छे, तर्कसंगत हों या बेतुके, मानवता के अनुकूल हों या प्रतिकूल, अशिष्ट हों या सभ्य, वे सब अनिवार्य रूप से मिथ्या, मिलावटी शब्द और झूठ होते हैं।
मसीह-विरोधियों के वर्ग के लोगों में आदतन झूठ बोलना उनके मुख्य लक्षणों में से एक है। उनकी भाषा से, उनके बोलने के तरीके से, उनकी अभिव्यक्ति के तरीके से, उनके शब्दों के अर्थ और उनके पीछे के इरादे से व्यक्ति यह देखता है कि इन लोगों में सामान्य मानवता नहीं होती है, उनमें ईमानदार लोगों की मानवता के मानक नहीं होते हैं। मसीह-विरोधी आदतन झूठ बोलते हैं। उनके झूठ और छल अधिकांश लोगों की तुलना में बहुत ज्यादा गंभीर होते हैं; यह कोई साधारण भ्रष्ट स्वभाव नहीं है, बल्कि पहले ही जमीर और विवेक की हानि और मानवता का पूर्ण अभाव बन चुका है। सार में, ये लोग राक्षस हैं; राक्षस अक्सर इसी तरह से झूठ बोलते और लोगों को धोखा देते हैं, उनका कहा कुछ भी सच नहीं होता। जब अधिकांश लोग झूठ बोलते हैं तो उन्हें झूठ गढ़ना पड़ता है, उन्हें उस पर सावधानीपूर्वक विचार करना पड़ता है; लेकिन मसीह-विरोधियों को कुछ भी गढ़ने या उस पर विचार करने की जरूरत नहीं होती : वे अपना मुँह खोलते हैं और झूठ बाहर आ जाता है—और इससे पहले कि तुम इसे जानो, तुम धोखा खा चुके होते हो। उनके झूठ और धोखे ऐसे होते हैं कि मंद प्रतिक्रिया देने वाले लोगों को चीजें समझने में दो-तीन दिन लग सकते हैं; तब जाकर उन्हें एहसास होता है कि इस व्यक्ति का क्या मतलब था। जो लोग सत्य नहीं समझते, वे पहचानने में असमर्थ होते हैं। मसीह-विरोधी आदतन झूठ बोलते हैं : तुम उनके इस चरित्र के बारे में क्या सोचते हो? स्पष्ट रूप से यह ऐसी चीज नहीं है जो सामान्य मानवता का हिस्सा हो। क्या इसमें कुछ राक्षसी नहीं है? सटीक रूप से कहें तो यह एक राक्षसी प्रकृति है। आदतन झूठ बोलना, झूठी बातें करना और लोगों को धोखा देना : काम करने के ये तरीके स्कूल में सीखे गए होते हैं या उनके परिवार के प्रभाव के नतीजे होते हैं? इनमें से कुछ नहीं होता। ये चीजें उनकी जन्मजात प्रकृति होती हैं, वे इन चीजों के साथ पैदा हुए होते हैं। जब माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षित करते हैं तो कोई भी अपने बच्चे को छोटी उम्र से झूठ बोलना और धोखा देना नहीं सिखाता, न ही कोई उन्हें झूठ बोलने या धोखा देने के लिए मजबूर करता है, फिर भी ऐसे बच्चे होते हैं जो बड़े होने पर झूठ के अलावा कुछ नहीं बोलते, वे चाहे जो भी झूठ बोलें, उनके माथे पर शिकन तक नहीं आती और स्वयं द्वारा बोले गए झूठ के बारे में अपने जमीर में कभी पछतावा, पीड़ा या बेचैनी महसूस नहीं करते; इसके बजाय, ये बच्चे खुद को बहुत चतुर, अत्यधिक बुद्धिमान समझते हैं, वे खुश, गर्वित और गुप्त रूप से प्रसन्न महसूस करते हैं कि वे झूठ और अन्य युक्तियों का उपयोग करके दूसरों को मूर्ख बनाने और धोखा देने में सक्षम हैं। यह उनकी जन्मजात प्रकृति है। मसीह-विरोधी स्वाभाविक रूप से ऐसे ही हैं। आदतन झूठ बोलना उनका प्रकृति सार है। भले ही मसीह-विरोधी अक्सर सभाओं में भाग लेते हैं, उपदेश और संगति सुनते हैं, लेकिन वे कभी आत्मचिंतन या खुद को जानने की कोशिश नहीं करते और चाहे उन्होंने दूसरों को धोखा देने के लिए कितने भी झूठ बोले हों, उनका जमीर उन्हें नहीं धिक्कारता और वे किसी समाधान के लिए सत्य खोजने की सक्रिय रूप से कोशिश तो और भी नहीं करते—जो साबित करता है कि सार में मसीह-विरोधी छद्म-विश्वासी होते हैं। चाहे वे लोगों को कितने ही ज्यादा धर्म-सिद्धांतों पर भाषण देने में सक्षम हों, वे उन धर्म-सिद्धांतों को खुद पर कभी लागू नहीं करते, वे अपना गहन-विश्लेषण कभी नहीं करते और चाहे वे कितने ही झूठ बोलें या कितने ही लोगों को धोखा दें, वे इसके बारे में कभी खुलकर नहीं बोलते, बल्कि इसके बजाय ढोंग और दिखावा करते हैं और दूसरों के सामने यह स्वीकारने का साहस नहीं करते कि वे धोखेबाज लोग हैं। इसके अलावा, वे जब भी जरूरत महसूस करते हैं, झूठ बोलकर लोगों को धोखा देते रहते हैं। क्या यह उनकी प्रकृति नहीं है? यह उनकी प्रकृति है और इसे बदलने का कोई उपाय नहीं है। यह प्रकृति सामान्य मानवता की अभिव्यक्ति नहीं है; सही तरह से कहें तो यह एक राक्षसी प्रकृति है, यह शैतान का स्वभाव है, ऐसे लोग दानव हैं, वे देहधारी राक्षस हैं।
मसीह-विरोधियों के चरित्र की पहली अभिव्यक्ति आदतन झूठ बोलना है, जिसे हम राक्षसी प्रकृति के रूप में निरूपित करेंगे। इस राक्षसी प्रकृति की अभिव्यक्ति यह है कि चाहे जब भी हो या जहाँ भी हो, चाहे जो भी अवसर हो या वे जिसके भी साथ बातचीत करें, ऐसे लोग जो शब्द कहते हैं वे साँप और राक्षसों के शब्दों के समान होते हैं—वे भरोसे के लायक नहीं होते। ऐसे लोगों के साथ विशेष रूप से सतर्क और विवेकशील होना चाहिए, राक्षसों के शब्दों पर फौरन विश्वास नहीं करना चाहिए। उनके आदतन झूठ बोलने की विशिष्ट अभिव्यक्ति यह है कि वे आसानी से झूठ बोल लेते हैं; उनकी कही हुई बातें विचार-विमर्श, विश्लेषण या विवेकशीलता का सामना नहीं कर सकतीं। वे किसी भी समय झूठ बोल सकते हैं और वे मानते हैं कि वे सभी मामलों में कोई सच नहीं बोल सकते, कि वे जो कुछ भी कहते हैं वह झूठ ही होना चाहिए। यहाँ तक कि अगर तुम उनसे उनकी उम्र के बारे में पूछते हो तो भी वे इस पर विचार करते हैं और यह सोचते हैं, “मेरी उम्र के बारे में पूछने से उनका क्या मतलब है? अगर मैं कहूँ कि मैं बूढ़ा हूँ तो क्या वे मुझे नीची नजर से देखेंगे और विकसित नहीं करेंगे? अगर मैं कहूँ कि मैं जवान हूँ तो क्या वे मुझे नीची नजर से देखकर कहेंगे कि मेरे पास अनुभव की कमी है? मुझे क्या जवाब देना चाहिए?” इतने सरल मामले में भी वे झूठ बोल सकते हैं और तुम्हें सच बताने से मना कर सकते हैं, यहाँ तक कि पलटकर तुम्हीं से सवाल पूछ सकते हैं, “तुम्हें क्या लगता है?” तुम कहते हो, “पचास साल?” “करीब-करीब।” “पैंतालीस?” “लगभग।” क्या वे तुम्हें सही जवाब देते हैं? उनके जवाबों से क्या तुम जान पाते हो कि उनकी उम्र कितनी है? (नहीं।) यह आदतन झूठ बोलना है।
मसीह-विरोधियों की आदतन झूठ बोलने की एक और अभिव्यक्ति है, यानी वे गवाही देते समय भी झूठ बोलते हैं। झूठी गवाही देना एक शापित कार्य है, जो परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचाता है। गवाही देने के मामले में भी वे मनगढ़ंत बातें करने, झूठ बोलने और छल करने की हिम्मत करते हैं, जो वास्तव में परिणामों के प्रति उनकी लापरवाही भरी उपेक्षा और उनकी न बदलने वाली प्रकृति दर्शाता है! जब वे देखते हैं कि दूसरे लोग अनुभव और समझ के आधार पर गवाही देते हैं जबकि वे नहीं दे सकते तो वे उनकी नकल करते हैं, दूसरे लोग जो कहते हैं वही कहते हैं और दूसरों के अनुभवों को अपना बताकर पेश करते हैं। अगर वे कोई ऐसी चीज नहीं समझते जिसे दूसरे लोग समझते हैं तो वे दावा करते हैं कि वे समझते हैं। अगर उनके पास ऐसी अनुभवजन्य समझ और प्रबुद्धता नहीं होती है, तो वे जोर देते हैं कि उनके पास वे हैं। अगर परमेश्वर ने उन्हें अनुशासित नहीं किया होता तो भी वे जोर देते हैं कि उसने उन्हें अनुशासित किया है। इस मामले में भी वे झूठ बोल सकते हैं और जालसाजी कर सकते हैं, इसके परिणाम कितने गंभीर होंगे, इसकी न तो उन्हें चिंता है, न इसमें उन्हें दिलचस्पी है। क्या यह आदतन झूठ बोलना नहीं है? इतना ही नहीं, इस तरह के लोग किसी को भी धोखा दे देंगे। कुछ लोग सोच सकते हैं, “जो भी हो, मसीह-विरोधी फिर भी इंसान हैं : क्या वे अपने सबसे करीबी लोगों, अपनी मदद करने वालों या अपनी मुश्किलें बाँटने वालों को धोखा देने से परहेज नहीं करेंगे? क्या वे परिवार के सदस्यों को धोखा देने से परहेज नहीं करेंगे?” वे आदतन झूठ बोलते हैं, यह कहने का मतलब है कि वे किसी को भी धोखा दे सकते हैं, यहाँ तक कि अपने माता-पिता, बच्चों और निश्चित रूप से भाई-बहनों को भी। बड़े और छोटे दोनों मामलों में वे लोगों को धोखा दे सकते हैं, यहाँ तक कि उन मामलों में भी जहाँ उन्हें सच बोलना चाहिए, जहाँ सच बोलने का कोई परिणाम नहीं होगा या उन पर किसी भी तरह से असर नहीं पड़ेगा और जहाँ बुद्धि का इस्तेमाल करने की कोई जरूरत नहीं है। वे ऐसे छोटे-छोटे मामले सुलझाने के लिए भी लोगों को धोखा देते हैं और झूठ का इस्तेमाल करते हैं, जहाँ बाहरी लोगों को झूठ बोलना जरूरी नहीं लगता, जहाँ उनके लिए सीधे-सीधे सच बोलना आसान होता है, बिल्कुल भी परेशानी नहीं होती। क्या यह आदतन झूठ बोलना नहीं है? आदतन झूठ बोलने को दानवों और शैतान की मुख्य अभिव्यक्तियों में से एक कहा जा सकता है। इस परिप्रेक्ष्य से क्या हम यह नहीं कह सकते कि मसीह-विरोधियों की मानवता न सिर्फ बेईमान होती है, बल्कि आदतन झूठ बोलने से भी पहचानी जाती है, जो उसे गैर-भरोसेमंद बनाता है? (हाँ, हम कह सकते हैं।) अगर ऐसे व्यक्ति कोई गलत काम करते हैं, फिर भाई-बहनों द्वारा काट-छाँट और आलोचना किए जाने के बाद आँसू बहाते हैं, सतही तौर पर परमेश्वर के ऋणी होने का दावा करते हैं और भविष्य में पश्चात्ताप करने का वादा करते हैं तो क्या तुम उन पर विश्वास करने की हिम्मत करोगे? (नहीं।) क्यों नहीं? सबसे अकाट्य सबूत यह है कि वे आदतन झूठ बोलते हैं! भले ही वे बाहरी तौर पर पश्चात्ताप करें, फूट-फूटकर रोएँ, अपनी छाती पीटें और कसम खाएँ, उन पर विश्वास मत करना, क्योंकि वे मगरमच्छ के आँसू बहा रहे होते हैं, लोगों को धोखा देने के लिए आँसू बहा रहे होते हैं। वे जो दुख और पश्चात्ताप भरे शब्द बोलते हैं, वे दिल से नहीं निकलते; वे कपटी तरीकों से लोगों का विश्वास जीतने के लिए सोची गई तिकड़मी चालें होती हैं। लोगों के सामने वे फूट-फूटकर रोते हैं, भूल स्वीकारते हैं, कसम खाते हैं और अपनी स्थिति जाहिर करते हैं। लेकिन जिनके निजी तौर पर उनके साथ अच्छे संबंध होते हैं, जिन पर वे अपेक्षाकृत भरोसा करते हैं, वे एक अलग ही कहानी बताते हैं। सार्वजनिक रूप से भूल स्वीकारना और अपने तौर-तरीके बदलने की कसम खाना ऊपर से तो वास्तविक लग सकता है, लेकिन पर्दे के पीछे वे जो कहते हैं, वह साबित करता है कि उन्होंने जो पहले कहा था, वह सच नहीं था, बल्कि झूठ था, जिसे और ज्यादा लोगों की आँखों में धूल झोंकने के लिए कहा गया था। पर्दे के पीछे वे क्या कहेंगे? क्या वे स्वीकारेंगे कि उन्होंने जो पहले कहा था, वह झूठ था? नहीं, वे नहीं स्वीकारेंगे। वे नकारात्मकता फैलाएँगे, तर्क पेश करेंगे और खुद को सही ठहराएँगे। यह खुद को सही ठहराना और तर्क-वितर्क करना इस बात की पुष्टि करता है कि उनकी स्वीकारोक्तियाँ, पश्चात्ताप और कसमें सब झूठी थीं, जिनका उद्देश्य लोगों को धोखा देना था। क्या ऐसे व्यक्तियों पर भरोसा किया जा सकता है? क्या यह आदतन झूठ बोलना नहीं है? यहाँ तक कि वे स्वीकारोक्तियाँ भी गढ़ सकते हैं, झूठे आँसू बहाकर अपने तरीके बदलने की प्रतिज्ञा कर सकते हैं, यहाँ तक कि उनकी कसम भी झूठ होती है। क्या यह राक्षसी प्रकृति नहीं है? अगर वे यही कहें, “मैं सिर्फ इतना ही समझता हूँ; बाकी मैं नहीं जानता, धीरे-धीरे समझ हासिल करने के लिए मैं परमेश्वर की प्रबुद्धता खोजता हूँ और भाई-बहनों की मदद की आशा करता हूँ” तो यह एक ईमानदार रवैया और कथन होगा। लेकिन मसीह-विरोधी ऐसे सच्चे शब्द बिल्कुल नहीं बोल सकते। उन्हें लगता है कि “सच बोलने से लोग मेरा अपमान करेंगे : मैं अपना सम्मान खो दूँगा और अपमानित महसूस करूँगा—क्या मेरी प्रतिष्ठा पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाएगी? मैं कौन हूँ? क्या मैं हार मान सकता हूँ? अगर मैं समझ नहीं पाता तो भी मुझे बहुत अच्छी तरह से समझने का दिखावा करना चाहिए; मुझे लोगों को धोखा देकर पहले उनके दिलों में अपनी स्थिति मजबूत करनी चाहिए।” क्या यह मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्ति नहीं है? जिस स्रोत और तरीके से मसीह-विरोधी बोलते हैं, साथ ही वे जो शब्द बोलते हैं, उससे यह स्पष्ट है कि ऐसे लोग कभी ईमानदार नहीं होंगे; यह उनसे परे की बात है। चूँकि आदतन झूठ बोलना उनके चरित्र में निहित है, इसलिए वे लोगों को धोखा देना चाहते हैं और हर चीज में मामले छिपाना चाहते हैं, वे नहीं चाहते कि कोई सही तथ्यों या वास्तविक स्थिति को जाने या देखे। उनका अंतरतम अस्तित्व बहुत अंधकारमय होता है। मसीह-विरोधियों के चरित्र के इस पहलू को मानवता की कमी और राक्षसी प्रकृति होने के रूप में विश्वासपूर्वक निरूपित किया जा सकता है। झूठ उनकी जुबान से बिना किसी प्रयास के आसानी से निकलता है, इस हद तक कि नींद में बोलने पर भी वे कोई बात सच नहीं बोलते—वह सब छल होता है, झूठ होता है। यह आदतन झूठ बोलना है।
मसीह-विरोधियों के चरित्र में ईमानदारी नहीं होती। यहाँ तक कि जब वे बोल नहीं रहे होते, तब भी वे अपने दिल में यही सोच रहे होते हैं कि लोगों को कैसे धोखा दें, उनकी आँखों में कैसे धूल झोंकें और उन्हें कैसे गुमराह करें—किसे गुमराह करें, जब वे उसे गुमराह करना चाहें तब क्या कहें, बातचीत शुरू करने के लिए कौन-से तरीके इस्तेमाल करें और लोगों को विश्वास दिलाने के लिए कौन-से उदाहरण इस्तेमाल करें। वे चाहे जो भी कहें या सोचें, उनके दिल में ईमानदार रवैया, ईमानदार राय या ईमानदार विचार नहीं होते। उनके जीवन का हर पल, हर सेकंड लोगों को धोखा देने और उनके साथ खिलवाड़ करने की चाहत में ही व्यतीत होता है। हर सेकंड और पल वे इसी बारे में सोचते रहते हैं कि दूसरों को कैसे धोखा दिया जाए, कैसे उन्हें गुमराह किया जाए और कैसे उनकी आँखों में धूल झोंकी जाए, ये विचार उनके पूरे दिलो-दिमाग पर कब्जा कर लेते हैं। क्या यह उनकी प्रकृति नहीं है? क्या इस तरह के लोग उपदेश सुनकर या परमेश्वर के वचन पढ़कर सत्य समझ सकते हैं? अगर वे समझ भी लें तो भी क्या वे उसे अभ्यास में ला सकते हैं? (नहीं।) उनके अंतरतम हृदयों और चरित्र से आँकते हुए, ऐसे व्यक्ति निश्चित रूप से उद्धार प्राप्त नहीं करते, क्योंकि अपने मन और आंतरिक दुनिया में वे जिस चीज से भी प्रेम करते हैं और जिस चीज के बारे में भी सोचते हैं उस सबमें राक्षसी प्रकृति समाई होती है, वह सत्य और सकारात्मक चीजों के विरुद्ध होती है और उसका एक भी हिस्सा सराहनीय नहीं होता। तो क्या मसीह-विरोधियों की मानवता में आदतन झूठ बोलने का लक्षण निश्चित है? (हाँ।) जो लोग आदतन झूठ बोलते हैं, वे किसी सत्य का अभ्यास नहीं करते। इसके क्या परिणाम होते हैं? जो व्यक्ति किसी सत्य का अभ्यास नहीं करता, उसकी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ क्या होती हैं? क्या वह लापरवाही से पेश आ सकता है? क्या वह स्वेच्छाचारी और खुद में एक कानून हो सकता है? क्या वह स्वतंत्र राज्य स्थापित कर सकता है? क्या वह चढ़ावे बरबाद कर सकता है? क्या वह लोगों को गुमराह कर सकता है? क्या वह लोगों के दिल जीत सकता है? वह ये सब कर सकता है। यह एक ठेठ मसीह-विरोधी है—वह आदतन झूठ बोलता है। जब तथ्य उजागर होते हैं तो चाहे जितनी भी जोड़ी आँखें उसे देख रही हों, चाहे जितने भी लोग सामूहिक रूप से उसकी गवाही दें और उसे उजागर करें, वह इसे स्वीकारने से मना कर देता है। अंत में वह तुमसे निपटने के लिए एक रणनीति का सहारा लेता है और यह दावा करता है कि वह भूल गया है और वह अनभिज्ञता का ढोंग करता है। इस बिंदु पर, इस स्थिति में, वह एक भी सच्चा शब्द नहीं बोल सकता, न ही वह यह कहते हुए हामी में सिर हिलाते हुए इसे स्वीकार सकता है, “वह मैं ही था, मैं गलत था, मैं अगली बार बदल जाऊँगा और निश्चित रूप से फिर से वही गलती नहीं करूँगा।” यह एक मसीह-विरोधी है, जो कभी अपराध स्वीकार नहीं करता, कभी किसी भी समय एक सच्चा शब्द नहीं बोलता। क्या ऐसी मानवता वाले लोग बचाए जा सकते हैं? क्या वे सत्य हासिल कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं। अगर वे सत्य समझते भी हों तो भी उसे हासिल नहीं कर सकते क्योंकि वे सत्य को नकारते हैं, उसका प्रतिरोध और विरोध करते हैं। ईमानदारी से बोलने और अपनी गलतियाँ स्वीकारने के सबसे बुनियादी स्तर पर वे इस सबसे सरल सत्य का अभ्यास तक नहीं कर सकते या इसे अमल में नहीं ला सकते। उनसे अपना रुतबा छोड़ने, अपनी संभावनाएँ और नियति छोड़ने और अपने इरादे छोड़ने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? क्या वे उन्हें छोड़ सकते हैं और उनके खिलाफ विद्रोह कर सकते हैं? वे ऐसा बिल्कुल नहीं कर सकते। अगर वे एक सच्ची बात तक नहीं कह सकते तो उनसे इससे ज्यादा कठिन काम करने की उम्मीद करना और भी ज्यादा अयथार्थपरक है।
क्या तुम लोगों के आसपास ऐसे लोग हैं, जो आदतन झूठ बोलते हैं? कुछ लोग कह सकते हैं, “मेरा अभी तक किसी ऐसे व्यक्ति से सामना नहीं हुआ है जो आदतन झूठ बोलता हो, लेकिन मुझे लगता है कि मैं खुद ऐसा हो सकता हूँ।” मैं तुम्हें सच बता दूँ; तुम एक खतरनाक स्थिति में हो। क्या आदतन झूठ बोलने वाले लोगों में मानवता का कोई अंश बचा रहता है? क्या वे राक्षसों से कोई अलग होते हैं? क्या तुम लोगों में से कोई आदतन झूठ बोलता है? मान लो, चाहे जो भी परिवेश या पृष्ठभूमि हो, चाहे कुछ भी हो जाए, झूठ बोलना किसी व्यक्ति के लिए बहुत सहज है, झूठ बोलते हुए उसका चेहरा लाल नहीं होता या उसका दिल तेजी से नहीं धड़कता और वह झूठ से सब-कुछ सँभाल सकता है और हल कर सकता है। आचरण करते समय और दुनिया से निपटते समय और जीवन के हर पहलू में, अगर बोलने का अवसर मिलता है तो वह जो कुछ भी कहता है वह झूठ होता है, उसका एक भी वाक्य सच नहीं होता। इन सबमें इरादे और उद्देश्य होते हैं और शैतान की साजिशें भी इनमें शामिल होती हैं। यह कोई ईमानदार व्यक्ति नहीं है। किसी भी स्थिति में, यहाँ तक कि जब व्यक्ति के सिर पर तलवार लटक रही हो तब भी, झूठ बोलने में सक्षम होना—क्या यह व्यक्ति आशा से परे नहीं है? मसीह-विरोधियों में आदतन झूठ बोलने की विभिन्न अभिव्यक्तियों से आँकें तो उनके झूठ बहुत ज्यादा हैं। उनके भाषण का उद्देश्य लोगों को धोखा देना, उन्हें गुमराह करना और उनकी आँखों में धूल झोंकना है। उनके तमाम शब्द शैतान की योजनाओं और इरादों से भरे होते हैं, जिनमें सामान्य मानवता से संबंधित ईमानदारी की कोई अभिव्यक्ति नहीं होती। यह कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधियों में उस ईमानदारी के लक्षण का पूरी तरह से अभाव होता है, जो सामान्य मानवता का एक हिस्सा है। जिन लोगों में ईमानदारी नहीं होती और जो आदतन झूठ बोलने में सक्षम होते हैं, उन्हें राक्षसी प्रकृति वाले लोगों के रूप में निरूपित किया जाता है—वे राक्षस हैं। ऐसे लोगों को आसानी से बचाया नहीं जा सकता, क्योंकि वे सत्य नहीं स्वीकारते और उसे स्वीकारना उन्हें चुनौतीपूर्ण लगता है।
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