अपने मार्ग के अंतिम दौर में तुम्हें कैसे चलना चाहिए (भाग एक)
तुम सब अब अपने मार्ग के अंतिम चरण में हो, और यह इसका एक महत्वपूर्ण भाग है। शायद तुमने काफी दुःख सहा है, बहुत कार्य किया है, बहुत से मार्गों पर यात्रा की है, और बहुत उपदेशों को सुना है, और यहाँ तक पहुँचना सरल नहीं रहा है। यदि तुम उस दुःख को सह नहीं सकते जो तुम्हारे सामने है और यदि तुम वही करते रहते हो जो तुमने अतीत में किया था तो तुम सिद्ध नहीं किए जा सकते। यह तुम्हें डराने के लिए नहीं है—यह एक सच्चाई है। पतरस जब परमेश्वर के कार्य में से काफी हद तक होकर गया, तो उसने कुछ अंतर्दृष्टि और बातों को पहचानने की योग्यता प्राप्त की। उसने सेवा के सिद्धांत को भी काफी हद तक समझ लिया, बाद में वह उस कार्य के प्रति पूरी तरह से समर्पित होने में समर्थ हो गया जो यीशु ने उसे सौंपा था। वह महान शोधन जो उसने प्राप्त किया अधिकांशतः इसलिए था कि जो कार्य उसने किए, उनमें उसने अनुभव किया कि वह परमेश्वर के प्रति बहुत अधिक ऋणी है और वह कभी उस तक पहुँच नहीं पाएगा, और उसने पहचाना कि मनुष्यजाति बहुत अधिक भ्रष्ट है, इसलिए उसमें आत्म—ग्लानि की भावना थी। यीशु ने उससे बहुत सी बातें कहीं थीं और उस समय उसके पास थोड़ी सी समझ थी। कई बार उसने फिर भी विरोध और विद्रोह किया। यीशु के क्रूस पर चढ़ा दिए जाने के बाद, अंततः उसमें कुछ जागृति आई और उसने भयंकर रूप से दोषपूर्ण अनुभव किया। अंत में, यह एक ऐसे बिंदु पर पहुँच गया जहाँ अगर उसमें कोई त्रुटिपूर्ण विचार हो तो यह अस्वीकार्य लगता था। वह अपनी दशा को अच्छी तरह से जानता था, और वह प्रभु की पवित्रता को भी अच्छी तरह से जानता था। परिणामस्वरूप, प्रभु के लिए प्रेम से भरा ह्रदय उसमें और अधिक बढ़ गया, और उसने अपने जीवन पर और अधिक ध्यान दिया। इसके कारण, उसने बहुत सी मुश्किलों को सहा, और यद्यपि कई बार यह ऐसा था मानो कि उसे कोई गंभीर बीमारी हो और प्रतीत होता था मानो कि वह मर गया हो, बहुत बार इस प्रकार से शोधन किए जाने के बाद उसे अपने बारे में अधिक समझ प्राप्त हुई, और केवल इस रीति से ही उसने प्रभु के लिए खरे प्रेम को विकसित किया था। ऐसा कहा जा सकता है कि उसका संपूर्ण जीवन शोधन में बीता, और उससे भी अधिक ताड़ना में बीता। उसका अनुभव दूसरे व्यक्ति के अनुभव से भिन्न था, और उसका प्रेम हर उस व्यक्ति से बढ़कर था जो सिद्ध नहीं किया गया था। उसको एक आदर्श के रूप में चुने जाने का कारण यह है कि उसने अपने जीवनकाल में सबसे अधिक पीड़ा का अनुभव किया और उसके अनुभव सबसे अधिक सफल थे। यदि तुम लोग वास्तव में मार्ग के अंतिम चरण में पतरस के समान चलने के योग्य हो, तो ऐसा कोई प्राणी नहीं है जो तुम्हारी आशीषों को छीन सके।
पतरस विवेक से भरा एक मनुष्य था और उस प्रकार के मनुष्यत्व के साथ भी, जब वह पहले-पहल यीशु का अनुसरण कर रहा था, तो उसके मन में विरोध और विद्रोह के बहुत से विचार अपरिहार्य रूप से आए। परंतु जब वह यीशु का अनुसरण कर रहा था, तो उसने इन बातों को गंभीरता से नहीं लिया, और उसने विश्वास किया कि लोगों को वैसा ही होना चाहिए। इसलिए, पहले-पहल उसने किसी आरोप को महसूस नहीं किया, और न ही उसने उससे कोई व्यवहार किया। यीशु उसकी प्रतिक्रियाओं के विषय में गंभीर नहीं था, और न ही उसने उन पर कोई ध्यान दिया। वह केवल उस कार्य को निरंतर करता रहा जो उसे करना था। उसने कभी पतरस और दूसरों में कमियाँ नहीं निकालीं। तुम ऐसा कह सकते हो: "क्या ऐसा हो सकता था कि यीशु उन विचारों के बारे में जानता ही न हो जिनके साथ उन्होंने प्रतिक्रिया दी थी।" बिलकुल नहीं! इसका कारण यह था कि वह पतरस को वास्तव में समझ गया था—यह कहा जा सकता था कि उसके बारे में उसे बहुत समझ थी—कि उसने पतरस के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाए। उसने मनुष्यजाति से घृणा की परंतु उस पर दया भी की। क्या अब तुम लोगों में ऐसे बहुत से लोग नहीं है जो पौलुस के समान विरोधी हों, और जिनमें पतरस के समान उस समय प्रभु यीशु के प्रति बहुत सी धारणाएँ हों? मैं तुम्हें बता दूँ, अच्छा होगा कि तुम अपने तीसरे इंद्रियज्ञान में विश्वास न करो। तुम्हारी भावना भरोसा करने योग्य नहीं है और बहुत पहले उसे शैतान की भ्रष्टता के द्वारा पूरी तरह से नाश कर दिया गया था। क्या तुम सोचते हो कि तुम्हारी भावना पूर्ण रूप से सिद्ध है? पौलुस ने प्रभु यीशु का बहुत बार विरोध किया परंतु यीशु ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। क्या ऐसा हो सकता था कि वह बीमारों को चंगा करने और दुष्टात्माओं को निकालने में तो समर्थ था, परंतु पौलुस के भीतर की "दुष्टात्मा" को निकालने में समर्थ नहीं था? ऐसा क्यों है कि यीशु के पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण के बाद ही, जब पौलुस ने निर्दयतापूर्वक यीशु के चेलों को गिरफ़्तार करना जारी रखा, यीशु अंततः दमिश्क के मार्ग पर उसके सामने प्रकट हुआ, और उसे नीचे गिरा दिया? क्या ऐसा हो सकता था कि यीशु ने बहुत धीरे प्रतिक्रिया दी हो? या फिर यह इसलिए था कि उसके पास शरीर में कोई अधिकार नहीं था? क्या तुम सोचते हो कि जब तुम मेरी पीठ पीछे गुप्त रूप से विनाशकारी और विरोधी होते हो, तो मुझे पता नहीं चलता? क्या तुम सोचते हो कि पवित्र आत्मा की ओर से तुम्हें मिले प्रबोधन के टुकड़ों का प्रयोग मेरा विरोध करने के लिए किया जा सकता है? जब पतरस अपरिपक्व था, तो उसने यीशु के प्रति बहुत से विचारों को विकसित किया, फिर उसको दोष के अधीन क्यों नहीं रखा गया? इस समय, बहुत से लोग बिना दोष के कार्य कर रहे हैं, और तब भी जब उन्हें स्पष्ट रूप से बताया जाता है कि वैसा करना ठीक नहीं है, वे फिर भी नहीं सुनते। क्या यह पूरी तरह से मनुष्य के विद्रोह के कारण नहीं है? मैं अब बहुत कुछ कह चुका हूँ, परंतु अब भी तुममें विवेक की थोड़ी सी भी समझ नहीं है, फिर तुम मार्ग के अंतिम चरण में अंत तक कैसे चल पाओगे? क्या तुम्हें महसूस नहीं होता कि यह एक महत्वपूर्ण विषय है?
जब लोगों पर विजय प्राप्त कर ली जाती है तब वे परमेश्वर की कार्ययोजना का पालन करने के योग्य हो जाते हैं; वे परमेश्वर से प्रेम करने और उसका अनुसरण करने के लिए अपने विश्वास और अपनी इच्छा पर भरोसा करने के योग्य हो जाते हैं। अतः मार्ग के अंतिम चरण में कैसे चला जा सकता है? क्लेश का अनुभव करने के तुम्हारे दिनों में तुम्हें सभी कठिनाइयों को सहना आवश्यक है, और तुममें दुःख सहने की इच्छा भी होनी चाहिए; केवल इसी रीति से तुम मार्ग के इस चरण में अच्छी तरह से चल पाओगे। क्या तुम सोचते हो कि मार्ग के इस चरण में चलना उतना सरल है? तुम्हें जानना चाहिए कि तुम्हें कौनसा कार्य पूरा करना है, तुम सबको अपनी—अपनी क्षमता बढ़ानी होगी और अपने को पर्याप्त सत्य के साथ लैस करना होगा। यह एक या दो दिनों का कार्य नहीं है—यह उतना सरल भी नहीं जितना तुम सोचते हो! मार्ग के अंतिम चरण में चलना इस बात पर निर्भर करता है कि वास्तव में तुममें किस प्रकार का विश्वास और किस प्रकार की इच्छा है। शायद तुम अपने भीतर पवित्र आत्मा को कार्य करता हुआ नहीं देख सकते, या शायद तुम कलीसिया में पवित्र आत्मा के कार्य को खोज नहीं सकते, इसलिए तुम आगे के मार्ग के विषय में निराशावादी और हताश हो, और मायूसी से भरे हुए हो। विशेष रूप से, जो पहले बड़े—बड़े योद्धा थे वे सब गिर गए हैं—क्या यह सब तुम्हारे लिए आघात नहीं है? तुम्हें इन सब बातों को कैसे देखना चाहिए? क्या तुममें विश्वास है या नहीं? क्या तुम आज के कार्य को पूरी तरह से समझते हो या नहीं? ये बातें निर्धारित कर सकती हैं कि तुम मार्ग के अंतिम चरण में अच्छी तरह से चलने में समर्थ हो या नहीं।
ऐसा क्यों कहा जाता है कि तुम सब अपने अपने मार्ग के अंतिम चरण में हो? यह इसलिए है कि तुम सब वह सब कुछ समझ गए हो जो तुम्हें समझना चाहिए, और मैंने तुम सबको वह सब कुछ बता दिया है जो तुम लोगों को हासिल करना है। मैंने तुम सबको वह सब कुछ भी बता दिया है जो तुम लोगों के भरोसे छोड़ा गया है। अतः, जिसमें अब तुम सब चल रहे हो वह मेरे द्वारा अगुवाई प्राप्त मार्ग का अंतिम चरण है। मैं केवल यही चाहता हूँ कि तुम सब स्वतंत्र रूप से रहने की योग्यता को प्राप्त कर सको, कि चाहे समय कोई भी हो तुम्हारे पास सदैव चलने के लिए एक मार्ग हो, हमेशा के समान अपनी क्षमता को बढ़ाओ, परमेश्वर के वचनों को सामान्य रूप से पढ़ो, और एक सामान्य मानवीय जीवन जीयो। मैं अब तुम्हारी इस प्रकार से जीने में अगुवाई कर रहा हूँ, परंतु भविष्य में मैं जब तुम्हारी अगुआई नहीं करूँगा, क्या तुम तब भी इस प्रकार जी पाओगे? क्या तुम निरंतर आगे बढ़ पाओगे? पतरस का अनुभव यही था। जब यीशु उसकी अगुवाई कर रहा था, तो उसमें कोई समझ नहीं थी; वह हमेशा एक बच्चे के समान बेफिक्र था, और वह उन कार्यों के प्रति गंभीर नहीं था जो उसने किए। यीशु के प्रस्थान के बाद ही उसने अपना सामान्य मानवीय जीवन आरंभ किया। उसका अर्थपूर्ण जीवन यीशु के चले जाने के बाद ही आरंभ हुआ। यद्यपि उसमें सामान्य मनुष्यत्व का थोड़ा सा विवेक था और जो एक सामान्य मनुष्य में होना चाहिए, फिर भी उसका सच्चा अनुभव और अनुसरण यीशु के प्रस्थान तक नए रूप में आरंभ नहीं हुआ। इस समय तुम सबके लिए परिस्थितियाँ कैसी हैं? मैं अभी तुम्हारी अगुवाई इस मार्ग में कर रहा हूँ और तुम सोचते हो कि यह बहुत अच्छा है। कोई ऐसे बुरे वातावरण और कोई परीक्षाएँ नहीं हैं जो तुम पर पड़ती हैं, परंतु इस रीति से ऐसा कोई तरीका नहीं है कि तुम यह देख सको कि वास्तव में तुम्हारी क्षमता कितनी है, और न ही ऐसा कोई तरीका है जिसमें तुम यह देख सको कि क्या तुम वास्तव में एक ऐसे व्यक्ति हो या नहीं जो सत्य का अनुसरण करता है। तुम अपने मुंह से कहते हो कि तुम अपने तत्व को जानते हो, परंतु ये सब व्यर्थ के शब्द हैं। बाद में जब तुम वास्तविकताओं का सामना करोगे, केवल तभी तुम्हारी समझ प्रमाणित होगी। यद्यपि अभी तुम्हारे पास इस प्रकार की समझ है: "मैं समझता हूँ कि मेरा अपना शरीर बहुत ही भ्रष्ट है, और लोगों के शरीर का सार परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करना और उसका विरोध करना है। परमेश्वर के दंड और उसकी ताड़ना को ग्रहण करने के योग्य बनना ही उसकी संपूर्ण उन्नति है। मैं अब यह समझ चुका हूँ, और मैं परमेश्वर के प्रेम का बदला चुकाने के लिए तैयार हूँ," जो कि कहना आसान है, बाद में जब तुम पर क्लेश, परीक्षाएँ और दुःख आएँगे तो उनमें से होकर जाना आसान नहीं होगा। तुम सब प्रतिदिन इस तरीके का अनुसरण करते हो, परंतु तुम सब अब भी अपने अनुभव को निरंतर जारी रखने में असमर्थ हो। यह तब और भी बदतर हो जाएगा यदि मैं तुमको छोड़ दूँ और फिर कभी तुम पर कोई ध्यान न दूँ; अधिकाँश लोग गिर पड़ेंगे और नमक का खंभा, अर्थात् अपमान का प्रतीक बन जाएँगे। ये सब बातें संभव हैं। क्या तुम इनके विषय में चिंतित या व्याकुल नहीं हो? पतरस इस प्रकार के वातावरण से होकर गया और उसने इस प्रकार के दुःख का अनुभव किया, परंतु वह फिर भी दृढ़ खड़ा रहा। यदि ऐसा वातावरण तुम्हारे जीवन में लाया जाए, तो क्या तुम दृढ़ खड़े रह पाओगे? वे बातें जो यीशु ने कहीं और जो कार्य उसने किया जब वह पृथ्वी पर था, उसने पतरस को एक नींव प्रदान की, और इस नींव से वह बाद के मार्ग में चला। क्या तुम सब उस स्तर तक पहुँच सकते हो? जिन मार्गों पर तुम पहले चले हो और वे सत्य जिन्हें तुम समझ चुके हो—क्या वे तुम्हारी नींव बन सकते हैं जिस पर तुम भविष्य में दृढ़ खड़े रह सकते हो? क्या वे बाद में दृढ़ खड़े रहने का तुम्हारा दर्शन बन सकते हैं? मैं तुम लोगों को सत्य बताऊँगा—कोई यह कह सकता है कि जो कुछ लोग वर्तमान में समझते हैं वे सब धर्मसिद्धांत हैं। यह इसलिए है क्योंकि जो वे समझते हैं वे सब ऐसी बातें नहीं हैं जिनका अनुभव उन्होंने किया है। अब तक जिसे तुम निरंतर जारी रख सके वह पूरी तरह से नए प्रकाश की अगुवाई के कारण है। यह नहीं कि तुम्हारी क्षमता एक निश्चित स्तर तक पहुँच गई है, परंतु ये मेरे शब्द हैं जिन्होंने तुम्हारी आज तक अगुवाई की है; यह नहीं कि तुममें एक बड़ा विश्वास है, बल्कि मेरे वचनों की बुद्धि के कारण तुम अब तक मेरा अनुसरण कर पाए। यदि मैं अब नहीं बोलता, अपनी आवाज नहीं निकालता, तो तुम आगे बढ़ने में असमर्थ होते और उसी समय आगे बढ़ने से रुक जाते। क्या यह तुम लोगों की वास्तविक क्षमता नहीं है? तुम लोग बिलकुल नहीं जानते कि किन पहलुओं से भीतर प्रवेश करना है और किन पहलुओं से उनकी पूर्ति करनी है जिनकी तुममें कमी है। तुम लोग नहीं समझते कि एक अर्थपूर्ण मानवीय जीवन को कैसे जीएँ, परमेश्वर के प्रेम का बदला कैसे चुकाएँ, या एक मजबूत या प्रभावशाली गवाही कैसे दें। तुम लोग इन कार्यों को पूरा कर ही नहीं सकते। तुम लोग आलसी और निर्बुद्धि दोनों हो! तुम लोग केवल यह कर सकते हो कि किसी और बात पर निर्भर रहो, और जिस पर तुम लोग निर्भर रहते हो वह नया प्रकाश है, और वह है जो आगे तुम्हारी अगुवाई कर रहा है। आज तक तुम्हारा दृढ़ बने रहना पूरी तरह से नए प्रकाश और ताजा वचनों पर पूरी तरह से निर्भर रहने के द्वारा ही हुआ है। तुम लोग पतरस के समान बिलकुल नहीं हो, जो सच्चे मार्ग का अनुसरण करने में प्रवीण था, या अय्यूब के समान जो भक्ति के साथ यहोवा की आराधना करने और यह विश्वास करने में समर्थ था कि यहोवा ने चाहे कैसे भी उसकी परीक्षा ली हो और चाहे वह उसे आशीष दे या न दे, वह परमेश्वर ही है। क्या तुम ऐसा कर सकते हो? तुम सब पर विजय कैसे पाई गई है? एक पहलू है दंड, ताड़ना और श्राप, और दूसरा पहलू है वे रहस्य जो तुम सब पर विजय प्राप्त करते हैं। तुम सब गधों के समान हो। जो मैं कहता हूँ यदि वह आकर्षित करने वाला न हो, यदि कोई रहस्य न हो, तो तुम सब पर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती। यदि कोई प्रचार करने वाले व्यक्ति हों और वे कुछ समय तक हमेशा एक जैसी बातों का प्रचार करते रहें, तो तुम सब दो सालों से भी कम समय में भाग खड़े होओगे, और तुम लोग आगे नहीं बढ़ पाओगे। तुम लोग नहीं जानते कि गहराई में कैसे जाएँ, न ही तुम लोग समझते हो कि सत्य या जीवन के मार्ग का अनुसरण कैसे करें। तुम लोग केवल उसे ही ग्रहण करने की बात समझते हो जो कुछ नया हो, जैसे कि रहस्यों या दर्शनों को सुनना, या फिर यह सुनना कि परमेश्वर कैसे कार्य करता था, या पतरस के अनुभवों को सुनना, या फिर यीशु के क्रूसीकरण की पृष्ठभूमि को सुनना...। तुम लोग केवल इन बातों को सुनना चाहते हो, और जितना तुम सुनते हो, उतने ही अधिक उत्साहित हो जाते हो। तुम लोग यह सब अपने दुःख और विरक्ति को दूर करने के लिए सुनते हो। तुम्हारे जीवन इन नई बातों के द्वारा ही पूरी तरह से चलाए जाते हैं। क्या तुम सोचते हो कि तुम आज यहाँ तुम्हारे अपने विश्वास के द्वारा पहुंचे हो? क्या यह तुम्हारी उस क्षमता का तुच्छ, दयनीय अंश नहीं है जो तुममे है? तुम्हारी खराई कहाँ है? क्या तुम लोगों में मानवीय जीवन है? सिद्ध किए जाने के लिए तुम लोगों में कितने तत्व हैं? क्या मैं जो कह रहा हूँ वह वास्तविकता नहीं है? मैं इस रीति से बोलता और कार्य करता हूँ परंतु तुम लोग फिर भी कोई ध्यान नहीं देते। जब तुम लोग अनुसरण करते हो तो तुम लोग देखते भी रहते हो। तुम लोग हमेशा उदासीनता का रूप बनाए रखते हो, और तुम सब हमेशा नाक के द्वारा अगुवाई पाते हो। तुम सब लोग ऐसे ही आगे बढ़े हो। आज तक ताड़ना, शुद्धिकरणों और कष्टों ने ही तुम सब की यहाँ तक अगुवाई की है। यदि जीवन के प्रवेश पर आधारित कुछ संदेशों का ही प्रचार किया जाता, तो क्या तुम लोग बहुत पहले ही नहीं भटक गए होते? तुम लोगों में से प्रत्येक दूसरे से अधिक दंभ से भरा हुआ है; वास्तव में तुम सब कुछ और से नहीं बल्कि गंदे पानी से भरे हुए हो! तुमने कुछ रहस्यों को समझ लिया है, और तुमने कुछ ऐसी बातों को समझ लिया है जिन्हें मनुष्यों ने पहले नहीं समझा था, इस प्रकार तुम अब तक मुश्किल से बने रहे हो। तुम लोगों के पास अनुसरण न करने का कोई कारण नहीं है, इसलिए तुमने मुश्किल से ही अपने आपको मजबूत किया है और बहाव के साथ बहे हो। यही वह परिणाम है जो मेरे वचनों के द्वारा प्राप्त किया गया है, परंतु यह निश्चित रूप से तुम्हारी सफलता नहीं है। तुम्हारे पास घमंड करने के लिए कुछ भी नहीं है। अतः कार्य के इस चरण में तुम लोगों की आज तक मुख्य रूप से वचनों के द्वारा अगुवाई की गई है। अन्यथा, तुममें से कौन लोग आज्ञा मानने में सक्षम होंगे? कौन आज तक बने रहने में सक्षम होगा? आरंभ से ही तुम लोग छोड़ देना चाहते थे, परंतु तुमने इसका साहस नहीं किया; तुम लोगों में साहस नहीं था। आज तक तुम लोग आधे—अधूरे मन से अनुसरण कर रहे हो।
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