अपने मार्ग के अंतिम दौर में तुम्हें कैसे चलना चाहिए (भाग दो)
यीशु को क्रूस पर चढ़ा दिए जाने और उसके प्रस्थान के बाद ही पतरस अपने मार्ग में आगे बढ़ने लगा, उस मार्ग में चलने लगा जिसमें उसे चलना चाहिए था; वह अपनी कमजोरियों और कमियों को देख लेने के बाद ही प्रशिक्षित होना आरंभ हुआ। उसने देखा कि उसमें परमेश्वर के लिए बहुत कम प्रेम था और दुःख सहने की उसकी इच्छा अपर्याप्त थी, कि उसमें कोई अंतर्दृष्टि नहीं थी, और कि उसके विवेक में कमी थी। उसने देखा कि उसमें ऐसी बहुत सी बातें थीं जो यीशु की इच्छा के अनुरूप नहीं थीं, और ऐसी बहुत सी बातें थीं जो विद्रोही और विरोधी थीं और ऐसी भी बहुत सी बातें थीं जो मानवीय इच्छा के साथ मिली हुई थीं। यह उसके बाद ही हुआ कि उसे प्रत्येक पहलू में प्रवेश मिला। जब यीशु उसकी अगुवाई कर रहा था, तो उसने उसकी दशा को प्रकट किया और पतरस ने उसे स्वीकार किया और आसानी से सहमत हो गया, परंतु उस समय से पहले तक उसमें सच्ची समझ नहीं थी। यह इसलिए था क्योंकि उसमें कोई अनुभव नहीं था, और वह अपनी क्षमता को बिलकुल नहीं जानता था। कहने का अर्थ यह है कि मैं तुम लोगों को अगुवाई देने के लिए अब केवल वचनों का प्रयोग कर रहा हूँ, और इतने कम समय में तुम लोगों को सिद्ध बनाना असंभव है, और तुम लोग केवल सत्य को समझ और जान पाओगे। इसका कारण यह है कि तुम पर विजय पाना और तुम्हारे हृदयों में तुम्हें आश्वस्त करना वर्तमान कार्य है, लोगों पर विजय प्राप्त करने के बाद ही उनमें से कुछ लोग सिद्ध किए जाएँगे। इस समय वे दर्शन और वे सत्य जिन्हें तुम समझते हो, वे तुम्हारे भविष्य के अनुभवों की एक नींव की रचना कर रहे हैं; भविष्य के क्लेश में तुम सब इन वचनों के व्यावहारिक अनुभव को प्राप्त करोगे। बाद में, जब परीक्षाएँ तुम्हारे ऊपर आएँगी और तुम क्लेश से होकर जाओगे, तो तुम उन वचनों के बारे में सोचोगे जिन्हें तुम आज कहते हो: चाहे कैसे भी क्लेश, परीक्षाओं, या बड़े कष्टों का मैं अनुभव करूँ, मुझे परमेश्वर को संतुष्ट करना आवश्यक है। पतरस के अनुभव के बारे में सोचें, और अय्यूब के अनुभव के बारे में सोचें—तुम आज के वचनों के द्वारा उत्तेजित हो जाओगे। केवल इस प्रकार से तुम्हारा विश्वास प्रेरित हो सकता है। उस समय, पतरस ने कहा कि वह परमेश्वर के दंड और उसकी ताड़ना को प्राप्त करने के योग्य नहीं था, और तब तक तुम भी सब लोगों को अपने द्वारा परमेश्वर के धर्मी स्वभाव को दिखाने के लिए तैयार हो जाओगे। तुम तत्परता के साथ उसके दंड और उसकी ताड़ना को स्वीकार करने के लिए तैयार हो जाओगे, और उसका दंड, उसकी ताड़ना, और उसका श्राप तुम्हारे लिए राहत का कारण होगा। अब, तुम्हारा सत्य से लैस न होना बिलकुल स्वीकार्य नहीं है। न केवल तुम भविष्य में दृढ़ खड़े रहने में असमर्थ होओगे, बल्कि वर्तमान कार्य में से होकर जाने में भी शायद सक्षम नहीं होओगे। इस रीति से, क्या तुम निष्कासन और सजा के पात्र नहीं होओगे? अभी ऐसी कोई वास्तविकताएँ नहीं हैं जो तुम पर आ पड़ी हों, और जिन किन्हीं पहलुओं में तुममें घटी है, मैंने उनमें तुम्हारी पूर्ति की है; मैं हर पहलू से बात करता हूँ। तुम लोगों ने वास्तव में अधिक दुःख नहीं सहे हैं; तुम लोग केवल वही ले लेते हो जो उपलब्ध होता है, तुम लोगों ने कोई मूल्य नहीं चुकाया है, और इससे बढ़कर तुम लोगों के पास अपने सच्चे अनुभव और अंतर्दृष्टियाँ भी नहीं हैं। इसलिए, जो तुम समझते हो वह तुम्हारी सच्ची क्षमता नहीं है। तुम लोग केवल समझ, ज्ञान और दृष्टि तक सीमित हो, परंतु तुमने अधिकाँश कटनी नहीं काटी है। यदि मैंने तुम लोगों पर कभी ध्यान नहीं दिया होता बल्कि तुम्हें तुम्हारे अपने घर में अनुभवों से होकर जाने देता, तो तुम बहुत पहले ही निकलकर इस बड़े संसार में वापस चले गए होते। जिस मार्ग पर तुम लोग भविष्य में चलोगे वह दुःख का मार्ग होगा, और यदि तुम लोग मार्ग के वर्तमान चरण में अच्छी तरह से चलते हो, और जब बाद में तुम बड़े क्लेश से होकर जाते हो, तो तुम लोगों के पास एक साक्षी होगी। अगर तुम मानवीय जीवन के महत्व को समझते हो, और तुमने मानवीय जीवन के सही मार्ग को अपनाया है, और अगर भविष्य में परमेश्वर तुमसे जैसा भी व्यवहार करे, तुम बिना किन्हीं शिकायतों या विकल्पों के परमेश्वर की योजनाओं के प्रति समर्पित हो जाओगे, और तुम्हें परमेश्वर से कोई मांगें भी नहीं रहेंगी, इस रीति से तुम महत्व से युक्त एक व्यक्ति होगे। अभी तक तुम क्लेश से होकर नहीं गए हो, इसलिए तुम किसी भी बात का पालन कर सकते हो। तुम कहते हो कि परमेश्वर जैसे भी अगुवाई करता है ठीक है, और कि तुम उसकी सारी योजनाओं के प्रति समर्पित रहोगे। परमेश्वर चाहे तुम्हें ताड़ना देता है या श्राप, तुम उसे संतुष्ट करने के लिए तैयार रहोगे। ऐसा कहकर जो अब तुम कहते हो वह जरुरी नहीं है कि तुम्हारी क्षमता को प्रस्तुत करे। अब तुम जो करने के लिए तैयार हो वह यह नहीं दर्शा सकता कि तुम अंत तक अनुसरण करने में सक्षम हो। जब बड़े क्लेश तुम पर आते हैं या जब तुम किसी सताव या उत्पीड़न से, या फिर बड़ी परीक्षाओं से होकर जाते हो, तो तुम उन शब्दों को नहीं कह पाओगे। यदि तुम उस प्रकार की समझ रख सकते हो तब तुम दृढ़ खड़े रहोगे, केवल यही तुम्हारी क्षमता होगी। उस समय पतरस कैसा था? उसने कहा: "प्रभु, मैं तेरे लिए अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। यदि तू कहे कि मैं मरूँ, तो मैं मर जाऊँगा!" उस समय भी उसने इस रीति से प्रार्थना की थी, और उसने यह भी कहा था, "यदि दूसरे तुझसे प्रेम नहीं भी करते हैं तो भी मैं तुझसे अंत तक अवश्य प्रेम करूँगा। मैं हर समय तेरा अनुसरण करूँगा।" उस समय उसने यह कहा, परंतु जैसे ही परीक्षाएँ उस पर आईं, तो वह टूट गया और रोने लगा। तुम सब जानते हो कि पतरस ने तीन बार प्रभु का इनकार किया, है ना? ऐसे बहुत से लोग हैं जो तब रोएँगे और मानवीय निर्बलताओं को व्यक्त करेंगे जब परीक्षाएँ उन पर आ पड़ती हैं। तुम अपने स्वामी नहीं हो। इसमें, तुम स्वयं को नियंत्रित नहीं कर सकते। शायद आज तुम वास्तव में अच्छा कर रहे हो, परंतु वह इसलिए है क्योंकि तुम्हारे पास एक उपयुक्त वातावरण है। यदि कल यह बदल जाए, तो तुम अपनी कायरता और अयोग्यता को दिखाओगे, और तुम अपनी तुच्छता और अनुपयुक्तता को भी दिखाओगे। तुम्हारी "मर्दानगी" बहुत पहले ही बरबाद हो गई होगी, और कभी—कभी तुम हार मानकर बाहर भी निकल जाओगे। यह दिखाता है कि उस समय जो तुम समझते थे वह तुम्हारी वास्तविक क्षमता नहीं थी। एक व्यक्ति को लोगों की वास्तविक क्षमता को देखना आवश्यक होता है कि वे परमेश्वर से प्रेम करते हैं या नहीं, क्या वे वास्तव में परमेश्वर की योजना के प्रति समर्पित होने के योग्य हैं या नहीं, और क्या वे इस योग्य हैं या नहीं कि अपने सारे बल को वह प्राप्त करने में लगा दें जिसकी माँग परमेश्वर करता है और फिर भी परमेश्वर के प्रति समर्पित रहें और परमेश्वर को अपना सर्वोत्तम दें, फिर चाहे इसका अर्थ उनके द्वारा स्वयं को बलिदान चढ़ाना ही क्यों न हो।
तुम्हें यह याद रखना चाहिए कि वचनों को अब कह दिया गया है: बाद में, तुम बड़े क्लेश और बड़े दुःख से होकर जाओगे! सिद्ध बनना सरल या आसान बात नहीं है। कम से कम तुममें अय्यूब के समान विश्वास होना चाहिए या शायद उसके विश्वास से भी बड़ा विश्वास। तुम्हें जानना चाहिए कि भविष्य में परीक्षाएँ अय्यूब की परीक्षाओं से बड़ी होंगी, और कि तुम्हें फिर भी लम्बे समय की ताड़ना से होकर जाना अवश्य होगा। क्या यह एक सरल बात है? यदि तुम्हारी क्षमता में सुधार नहीं हो सकता, तो समझने की तुम्हारी योग्यता में कमी है, और तुम बहुत कम जानते हो, फिर उस समय तुम्हारे पास कोई साक्षी नहीं होगी, बल्कि तुम उपहास का पात्र बन जाओगे, अर्थात् शैतान के लिए एक खिलौना बन जाओगे। यदि तुम अभी दर्शनों को थामे नहीं रह सकते, तो तुम्हारी कोई नींव नहीं है, और भविष्य में तुम दुत्कार दिए जाओगे! मार्ग का हर भाग चलने के लिए सरल नहीं होता, इसलिए इसे हल्के में न लो। अभी इसे ध्यान से समझो और इस बात की तैयारी करो कि इस मार्ग के अंतिम चरण में उचित रीति से कैसे चलना है। यही वह मार्ग है जिस पर भविष्य में चलना होगा और इसमें सब लोगों को चलना होगा। तुम इस वर्तमान समझ को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकलने की अनुमति नहीं दे सकते, और यह न सोचो कि जो कुछ मैं तुमसे कह रहा हूँ बिलकुल व्यर्थ है। ऐसा दिन आएगा जब तुम इसका सदुपयोग करोगे—शब्दों को व्यर्थ ही नहीं कहा जा सकता। यह अपने आपको तैयार करने का समय है, यह भविष्य का मार्ग तैयार करने का समय है। तुम्हें उस मार्ग को तैयार करना चाहिए जिसमें तुम्हें बाद में चलना है; तुम्हें इस बात के प्रति चिंतित और व्याकुल होना चाहिए कि बाद में तुम कैसे स्थिर खड़े रह पाओगे और भविष्य के मार्ग के लिए कैसे अच्छी तरह से तैयारी कर पाओगे। पेटू और आलसी मत बनो! तुम्हें अपनी जरुरत की सब चीजों को प्राप्त करने हेतु अपने समय का सर्वोत्तम इस्तेमाल करने के लिए सब कुछ करना होगा। मैं तुम्हें सब कुछ दे रहा हूँ ताकि तुम समझ जाओ। तुम लोगों ने अपनी—अपनी आँखों से देखा है कि तीन वर्षों से भी कम समय में मैंने बहुत सी बातें कहीं है और बहुत सा कार्य किया है। इस रीति से कार्य करने का एक पहलू यह है कि लोगों में बहुत घटी है, और दूसरा पहलू यह है कि समय बहुत कम है और इसमें और देरी नहीं की जा सकती। तुम जिस प्रकार से इसकी कल्पना करते हो, उसके आधार पर लोगों को गवाही देने और उपयोग में लाये जाने के पहले पूर्ण आंतरिक स्पष्टता पानी होगी—क्या यह बहुत धीमा नहीं है? अतः मुझे कितनी दूर तुम्हारे साथ चलना होगा? यदि तुम चाहते हो मैं तब तक तुम्हारे साथ चलूँ जब तक कि बूढ़ा न हो जाऊँ, तो यह असंभव है! बड़े क्लेश से होकर जाने के द्वारा सब लोगों के भीतर सच्ची समझ विकसित हो जाएगी। ये कार्य के चरण हैं। एक बार जब तुम उन दर्शनों को समझ लेते हो जो आज पाए जाते हैं और सच्ची क्षमता को प्राप्त कर लेते हो, तो भविष्य में चाहे तुम जैसी भी कठिनाइयों से होकर गुजरो वे तुम पर जयवंत नहीं होंगी—तुम उनका सामना कर पाओगे। जब मैं कार्य के इस अंतिम चरण को पूरा कर लूँगा, और अंतिम वचनों को भी कह लूँगा, तो भविष्य में लोगों को अपने—अपने मार्ग पर चलना होगा। यह पहले कहे वचनों को पूरा करेगा: पवित्र आत्मा के पास हर व्यक्ति के लिए आदेश है और हर व्यक्ति के द्वारा किया जाने वाला कार्य है। भविष्य में, प्रत्येक व्यक्ति पवित्र आत्मा की अगुवाई के द्वारा उस मार्ग पर चलेगा जिस पर उन्हें चलना चाहिए। क्लेश के समय में होकर जाते हुए कौन दूसरों को संभाल पाएगा? हरेक व्यक्ति के अपने दुःख हैं, और हरेक व्यक्ति की अपनी क्षमता है। किसी की क्षमता किसी दूसरे के जैसी नहीं होती। पति अपनी पत्नियों को नहीं संभालेंगे और माता—पिता अपने बच्चों को नहीं संभालेंगे; कोई किसी को नहीं संभाल पाएगा। यह आज के जैसा नहीं है—पारस्परिक संभाल और सहयोग आज भी संभव है। वह हर प्रकार के व्यक्ति का खुलासा किए जाने का समय होगा। कहने का अर्थ यह है कि जब परमेश्वर चरवाहों को मारेगा तो झुंड की भेड़ें तितर—बितर हो जाएँगी, और उस समय तुम लोगों के पास कोई सच्चा अगुवा नहीं होगा। लोगों में फूट पड़ जाएगी—यह आज के जैसा नहीं होगा, जहाँ तुम लोग एक सभा के रूप में एक साथ एकत्रित हो सकते हो। बाद में, जिनके पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं होगा वे अपने वास्तविक रंग को दिखाएँगे। पति अपनी पत्नियों को बेच देंगे, पत्नियाँ अपने पतियों को बेच देंगी, बच्चे अपने माता—पिता को बेच देंगे, माता—पिता अपने बच्चों को सताएँगे—मानवीय हृदय का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता! केवल यह किया जा सकता है कि एक व्यक्ति उसी को थामे रहे जो उसके पास है, और मार्ग के अंतिम चरण में अच्छी तरह से चले। अभी तुम लोग इसे स्पष्टता से नहीं देखते और तुम सब निकटदर्शी हो। कार्य के इस चरण में से सफलतापूर्वक होकर जाना कोई सरल कार्य नहीं है।
क्लेश का समय बहुत अधिक लंबा नहीं होगा—यह एक वर्ष का भी नहीं होगा। यदि यह एक वर्ष जितना हो तो यह कार्य के अगले चरण में विलंब कर देगा, और लोगों की क्षमता अपर्याप्त होगी। यदि यह बहुत अधिक लंबा हो तो वे इसको सहन नहीं कर पाएँगे—उनकी क्षमता की अपनी सीमितताएँ हैं। जब मेरा अपना कार्य समाप्त हो जाएगा, तो अगला चरण लोगों के लिए उस मार्ग पर चलना होगा जिसमें उन्हें चलना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना आवश्यक है कि उन्हें किस मार्ग पर चलना चाहिए—यह दुःख सहने का मार्ग है और दुःख सहने की प्रक्रिया है, और यह परमेश्वर से प्रेम करने की तुम्हारी इच्छा को शुद्ध करने का भी मार्ग है। कौनसे सत्यों में तुम्हें प्रवेश करना है, किन सत्यों को तुम्हें जोड़ना है, तुम्हें कैसे अनुभव करना है, और किस सत्य से तुम्हें प्रवेश करना है—तुम्हें ये सब बातें समझनी आवश्यक हैं। तुम्हें अभी अपने आपको लैस करना है। यदि तुम तब तक प्रतीक्षा करते हो जब क्लेश तुम पर आ पड़ता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्वयं के जीवन के बोझ को सहना आवश्यक है, और सदैव दूसरों की प्रतीक्षा न करो कि वे चेतावनियाँ दें या तुम्हें सदा तुम्हारे कान पकड़कर साथ खींचें। मैं बहुत कुछ कह चुका हूँ पर तुम अभी तक नहीं जानते कि तुम्हें किस सत्य में प्रवेश करना है या किसके साथ स्वयं को लैस करना है। यह दर्शाता है कि तुमने परमेश्वर के वचनों को पढ़ने का प्रयास नहीं किया है। अपने स्वयं के जीवन के लिए कोई बोझ नहीं उठाते हो—यह कैसे ठीक हो सकता है? तुम इस बात के प्रति स्पष्ट नहीं हो कि तुम्हें किसमें प्रवेश करना चाहिए, तुम नहीं समझते कि तुम्हें क्या समझना चाहिए, और तुम इस बारे में अभी-भी अनिश्चित हो कि तुम्हें भविष्य का कौनसा मार्ग लेना चाहिए—क्या तुम समुद्र में बिखरे जहाज के टुकड़ों के समान नहीं हो? तुम किस कार्य के लायक हो? तुम लोग अभी अपने स्वयं के मार्गों का निर्माण कर रहे हो और उन्हें तैयार कर रहे हो। तुम्हें यह जानना आवश्यक है कि लोगों को क्या हासिल करना चाहिए और यह भी कि मनुष्य से परमेश्वर की मांगों का स्तर क्या है। तुममे यह समझ होनी आवश्यक है: चाहे कुछ भी हो, यद्यपि मैं बहुत ही भ्रष्ट हूँ, फिर भी मुझे परमेश्वर के समक्ष इन खराबियों को ठीक करना है। जब परमेश्वर ने मुझे नहीं बताया था, तो मैं नहीं समझता था, परंतु अब उसने मुझे बता दिया है, क्योंकि मैं समझ चुका हूँ तो मुझे इसे ठीक करने के लिए जल्दी करनी चाहिए कि मैं एक सामान्य मनुष्यत्व को जीऊँ, और एक ऐसे स्वरूप में जीऊँ जो परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट करे। यद्यपि मैं पतरस के स्तर तक न भी जी पाऊँ, फिर भी कम से कम मुझे एक सामान्य मनुष्यत्व को जीना चाहिए, और इस रीति से मैं परमेश्वर के हृदय संतुष्ट कर सकता हूँ।
इस मार्ग का अंतिम चरण अब से लेकर भविष्य के क्लेश की समाप्ति तक रहेगा। मार्ग का यह चरण तब होगा जब लोगों की सच्ची क्षमता प्रकट होगी और यह भी प्रकट होगा कि क्या उनमें सच्चा विश्वास है या नहीं। क्योंकि मार्ग का यह चरण अतीत में लिए गए अन्य किसी चरण से कठिन होगा, और यह सड़क पहले से अधिक पथरीली होगी, इसे "मार्ग का अंतिम चरण" कहा जाता है। सत्य यह है कि यह मार्ग का सबसे अंतिम भाग नहीं है; इसका कारण यह है कि क्लेश में से होकर जाने के बाद तुम सुसमाचार को फ़ैलाने के कार्य में से होकर जाओगे और लोगों का एक ऐसा समूह होगा जो प्रयोग किए जाने के कार्य में से होकर जाएगा। अतः "मार्ग के अंतिम चरण" का उल्लेख केवल लोगों का शोधन करने के क्लेश और कठोर वातावरण के संदर्भ में किया गया है। अतीत में लिए गए मार्ग के भाग में, यह मैं था जो तुम्हें तुम्हारी प्रसन्नता भरी यात्रा में व्यक्तिगत रूप से अगुवाई कर रहा था, मैं तुम्हें अपने हाथ में लिए चल रहा था कि तुम्हें सिखाऊँ और मैं तुम्हें भोजन करा रहा था। यद्यपि तुम बहुत बार ताड़ना और दंड से होकर गए हो, फिर भी उन्होंने थोड़ा सा ही कष्ट तुम्हें दिया है। निःसंदेह उसने परमेश्वर पर विश्वास के तुम्हारे दृष्टिकोणों को थोड़ा बदल दिया है; यह तुम्हारे स्वभाव को काफी स्थिर बनाने का भी कारण रहा है, और इसने तुम्हें मेरे बारे में थोड़ी समझ प्राप्त करने भी दी है। परंतु मैं यह कह रहा हूँ, मार्ग के उस भाग में चलने में लोगों के द्वारा चुकाया जाने वाला मूल्य या पीड़ादायक प्रयास काफी कम है—यह मैं हूँ जिसने आज तक तुम्हारी अगुवाई की है। इसका कारण यह है कि मैं तुमसे कुछ भी करने की मांग नहीं करता और तुमसे रखी गई मेरी मांगें अधिक नहीं हैं—मैं केवल तुमसे वही लेने की मांग करता हूँ जो उपलब्ध है। इस समय के दौरान मैंने निरंतर तुम लोगों की आवश्यकताओं को पूरा किया है, और मैंने कभी अनुचित मांगों को नहीं रखा है। तुम लोगों ने बार—बार ताड़ना को सहा है, फिर भी तुम लोगों ने मेरी मूल मांगों को पूरा नहीं किया है। तुम लोग पीछे हट जाते हो और निरुत्साहित हो जाते हो, परंतु मैं इस पर ध्यान नहीं देता क्योंकि यह अब मेरे व्यक्तिगत कार्य का समय है और मैं मेरे प्रति तुम्हारी "भक्ति" को अधिक गंभीरता से नहीं लेता। परंतु यहाँ से बाहर जाने के मार्ग पर मैं न तो कार्य करूँगा और न ही बोलूँगा, और उस समय मैं तुम लोगों को ऐसे उबाऊ तरीके से निरंतर जारी रखने नहीं दूँगा। मैं तुम सबको अनुमति दूँगा कि तुम बहुत से सबक सीखो, और मैं तुम लोगों को केवल वही ले लेने की अनुमति नहीं दूँगा जो उपलब्ध है। जो सच्ची क्षमता तुम लोगों के भीतर आज है उसका खुलासा होना आवश्यक है। वर्षों चले तुम्हारे प्रयास फलदायक रहे हैं या नहीं यह इसमें देखा जाएगा कि तुम लोग मार्ग के अंतिम चरण में कैसे चलते हो। अतीत में, तुम लोगों ने सोचा था कि परमेश्वर पर विश्वास करना बहुत सरल था, और उसका कारण यह था कि परमेश्वर तुम्हारे साथ गंभीर नहीं था। और अब कैसी परिस्थिति है? क्या तुम लोग सोचते हो कि परमेश्वर पर विश्वास करना सरल है? क्या तुम लोग अब भी महसूस करते हो कि परमेश्वर पर विश्वास करना उतना प्रसन्नचित्त और चिंतामुक्त है जितने सड़क पर खेल रहे बच्चे होते हैं? यह सत्य है कि तुम लोग भेड़ें हो, फिर भी तुम लोगों को परमेश्वर के अनुग्रह का मूल्य चुकाने, और उस परमेश्वर को पूरी तरह से प्राप्त करने के लिए जिस पर तुम लोग विश्वास करते हो, उस मार्ग पर चलने के योग्य होना आवश्यक है जिस पर तुम्हें चलना चाहिए। अपने साथ खेल मत खेलो—स्वयं को मूर्ख मत बनाओ! यदि तुम मार्ग के इस चरण को पूरा कर सको, तो तुम मेरे सुसमाचार के कार्य के इस पूरे जगत में फैलने के अभूतपूर्व और विशाल दृश्य को देख पाओगे, और तुम्हें मेरे घनिष्ट बनने और सारे जगत में मेरे कार्य को फ़ैलाने में अपनी भूमिका को अदा करने का सौभाग्य मिलेगा। उस समय तुम बहुत ख़ुशी से उस मार्ग में निरंतर चलते रहोगे जिसमें तुम्हे चलना चाहिए। भविष्य असीमित रूप से उज्ज्वल होगा, परंतु प्राथमिक कार्य अभी मार्ग के इस अंतिम चरण में अच्छी तरह से चलना है। तुम्हें इस कार्य को करने के लिए प्रयास करना है और तैयारी करनी है। तुम्हें यह कार्य अभी करना आवश्यक है—यह अब अत्यावश्यकता का कार्य है!
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