विजय के कार्य का आंतरिक सत्य (2)

तुम लोग राजाओं की तरह राज करना चाहा करते थे, और तुम लोगों को आज भी इससे पूर्णतः छुटकारा पाना बाकी है; तुम अभी भी राजाओं की तरह राज करना, स्वर्ग को सँभालना और पृथ्वी को सहारा देना चाहते हो। अब, इस प्रश्न पर विचार करो : क्या तुम ऐसी योग्यताएँ रखते हो? क्या तुम पूरी तरह से बुद्धिहीन नहीं हो रहे? क्या तुम लोग जो चाहते हो और जिस पर अपना ध्यान समर्पित करते हो, वह वास्तविक है? तुम लोगों में तो सामान्य मानवता भी नहीं है—क्या यह दयनीय नहीं? इसलिए आज मैं केवल जीत लिए जाने, गवाही देने एवं अपनी क्षमता बढ़ाने और पूर्ण बनाए जाने के मार्ग में प्रवेश करने की बात करता हूँ, और इसके अलावा कुछ नहीं कहता। कुछ लोग शुद्ध सत्य से घबराते हैं, और वे जब सामान्य मानवता और लोगों की क्षमता बढाने की ये सब बातें होती देखते हैं, तो वे अनिच्छुक हो जाते हैं। जो सत्य से प्रेम नहीं करते, उन्हें पूर्ण बनाना आसान नहीं है। जब तक तुम लोग आज प्रवेश करते हो, और कदम-दर-कदम परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करते हो, तब तक क्या तुम्हें हटाया जा सकता है? परमेश्वर द्वारा चीन के मुख्य भूभाग में इतना कार्य—इतने बड़े पैमाने का कार्य—कर चुकने और उसके द्वारा इतने वचन कहे जा चुकने के बाद, क्या वह इसे बीच रास्ते में छोड़ सकता है? क्या वह लोगों की अगुवाई करके उन्हें अतल कुंड में ले जा सकता है? आज महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम सब मनुष्य के सार को जानो, और यह जानो कि तुम लोगों को किसमें प्रवेश करना चाहिए; तुम्हें जीवन में प्रवेश, और स्वभाव में परिवर्तनों, वास्तव में कैसे विजित होना है, और परमेश्वर की आज्ञा का कैसे पूरी तरह से पालन करना है, परमेश्वर को अंतिम गवाही कैसे देनी है और मृत्युपर्यंत आज्ञाकारी कैसे बने रहना है, इन बातों की चर्चा करनी चाहिए। तुम्हें इन बातों पर केंद्रित होना चाहिए, और जो बात वास्तविक या महत्वपूर्ण न हो, पहले उसे किनारे कर नज़रंदाज कर देना चाहिए। आज तुम्हें पता होना चाहिए कि विजित कैसे हुआ जाए, और विजित होने के बाद लोग अपना आचरण कैसा रखें। तुम कह सकते हो कि तुम पर विजय पा ली गई है, पर क्या तुम मृत्युपर्यंत आज्ञाकारी रह सकते हो? इस बात की परवाह किए बिना कि इसमें कोई संभावना है या नहीं, तुम्हें बिलकुल अंत तक अनुसरण करने में सक्षम होना चाहिए, और कैसा भी परिवेश हो, तुम्हें परमेश्वर में विश्वास नहीं खोना चाहिए। अतंतः तुम्हें गवाही के दो पहलू प्राप्त करने चाहिए : अय्यूब की गवाही—मृत्युपर्यंत आज्ञाकारिता; और पतरस की गवाही—परमेश्वर से परम प्रेम। एक मामले में तुम्हें अय्यूब की तरह होना चाहिए : उसने समस्त भौतिक संपत्ति गँवा दी और शारीरिक पीड़ा से घिर गया, फिर भी उसने यहोवा का नाम नहीं त्यागा। यह अय्यूब की गवाही थी। पतरस मृत्युपर्यंत परमेश्वर से प्रेम करने में सक्षम रहा। जब उसे क्रूस पर चढ़ाया गया और उसने अपनी मृत्यु का सामना किया, तब भी उसने परमेश्वर से प्रेम किया, उसने अपनी संभावनाओं का विचार नहीं किया या सुंदर आशाओं अथवा अनावश्यक विचारों का अनुसरण नहीं किया, और केवल परमेश्वर से प्रेम करने और परमेश्वर की व्यवस्थाओं का पूरी तरह से पालन करने की ही इच्छा की। इससे पहले कि यह माना जा सके कि तुमने गवाही दी है, इससे पहले कि तुम ऐसा व्यक्ति बन सको जिसे जीते जाने के बाद पूर्ण बना दिया गया है, तुम्हें यह स्तर हासिल करना होगा। आज यदि लोग वास्तव में अपने सार और स्थिति को जानते, तो क्या वे तब भी संभावनाएँ और आशाएँ खोजते? तुम्हें जो जानना चाहिए, वह यह है : परमेश्वर मुझे पूर्ण करे या न करे, मुझे परमेश्वर का अनुसरण करना चाहिए; अभी वह जो कुछ करता है, वह अच्छा है और वह मेरे लिए करता है, ताकि हमारा स्वभाव परिवर्तित हो सके और हम शैतान के प्रभाव से छुटकारा पा सकें, मलिन धरती पर पैदा होने के बावजूद अशुद्धता से मुक्त हो सकें, और गंदगी और शैतान के प्रभाव को झटककर उसे पीछे छोड़ सकें। निश्चित रूप से तुमसे यही अपेक्षा है, किंतु परमेश्वर के लिए यह विजय मात्र है, जो इसलिए की जाती है कि लोग आज्ञाकारी होने का संकल्प करें और स्वयं को परमेश्वर के समस्त आयोजनों के प्रति समर्पित कर सकें। इस तरह से चीज़ें संपन्न होंगी। आज ज्यादातर लोगों पर विजय पाई जा चुकी है, परंतु उनके अंदर अभी भी बहुत-कुछ है, जो विद्रोही और अवज्ञाकारी है। लोगों का वास्तविक आध्यात्मिक कद अभी भी बहुत छोटा है, और वे तभी जोश से भरते हैं, जब आशाएँ और संभावनाएँ होती हैं; आशाओं और संभावनाओं के अभाव में वे नकारात्मक हो जाते हैं, यहाँ तक कि परमेश्वर को छोड़ देने की सोचने लगते हैं। इतना ही नहीं, लोगों में सामान्य मानवता को जीने की कोई बड़ी इच्छा नहीं है। यह अस्वीकार्य है। इसलिए मुझे अब भी विजय की बात करनी चाहिए। दरअसल, पूर्णता विजय के वक़्त ही प्रकट होती है : जैसे ही तुम पर विजय पाई जाती है, पूर्ण किए जाने के पहले प्रभाव भी हासिल हो जाते हैं। जहाँ विजय पाने और पूर्ण किए जाने में अंतर होता है, तो वह लोगों में होने वाले परिर्वतन की मात्रा के अनुसार होता है। विजित होना पूर्ण किए जाने का प्रथम चरण है, परंतु उसका यह अर्थ नहीं है कि वे पूरी तरह से पूर्ण बना दिए गए हैं, न ही वह यह साबित करता है कि परमेश्वर ने उन्हें पूरी तरह से प्राप्त कर लिया है। लोगों को जीते जाने के बाद उनके स्वभाव में कुछ परिवर्तन आते हैं, किंतु ये परिवर्तन उन लोगों की तुलना में बहुत कम होते हैं, जिन्हें परमेश्वर द्वारा पूरी तरह से प्राप्त कर लिया गया है। आज जो किया जा रहा है, वह लोगों को पूर्ण बनाने का आरंभिक कार्य है—उन पर विजय पाना—और अगर तुम पर विजय नहीं पाई जाती, तो तुम्हारे पास परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने और उसके द्वारा पूरी तरह से प्राप्त किए जाने का कोई उपाय नहीं होगा। तुम सिर्फ ताड़ना और न्याय के कुछ वचन ही पाओगे, किंतु वे तुम्हारा हृदय पूरी तरह से परिवर्तित करने में असमर्थ होंगे। इस तरह, तुम उनमें से एक होगे, जिन्हें हटा दिया जाता है; यह मेज पर शानदार को दावत देखने किंतु उसे खा न पाने से अलग नहीं होगा। क्या यह तुम्हारे लिए एक दुखदायी परिदृश्य नहीं है? और इसलिए तुम्हें बदलाव खोजने चाहिए : जीत लिया जाना हो या पूर्ण बनाया जाना, दोनों का संबंध इस बात से है कि तुम्हारे अंदर बदलाव आए हैं या नहीं और तुम आज्ञाकारी हो या नहीं, और यह निश्चित करता है कि तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जा सकते हो या नहीं। जान लो कि "विजित होना" और "पूर्ण किया जाना" केवल तुम्हारे अंदर आए बदलाव और आज्ञाकारिता की मात्रा पर निर्भर करते हैं, साथ ही इस बात पर कि परमेश्वर के प्रति तुम्हारा प्रेम कितना सच्चा है। आज जरूरत इस बात की है कि तुम्हें पूरी तरह से पूर्ण किया जा सके, परंतु शुरुआत में तुम्हारा विजित होना आवश्यक है—तुम्हें परमेश्वर की ताड़ना और न्याय का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए, अनुसरण करने का विश्वास होना चाहिए, और तुम्हें ऐसा व्यक्ति बनना चाहिए, जो बदलाव और परमेश्वर का ज्ञान खोजता हो। केवल तभी तुम ऐसे व्यक्ति होगे, जो पूर्ण बनाए जाने की खोज करता है। तुम लोगों को यह समझना चाहिए कि पूर्ण किए जाने के दौरान तुम लोगों को जीता जाएगा, और जीते जाने के दौरान तुम लोगों को पूर्ण बनाया जाएगा। आज तुम पूर्ण बनाए जाने का प्रयास कर सकते हो या अपने बाहरी मनुष्यत्व में बदलाव और क्षमता में विकास के लिए कोशिश कर सकते हो, परंतु प्रमुख महत्व की बात यह है कि तुम यह समझ सको कि जो कुछ आज परमेश्वर कर रहा है, वह सार्थक और लाभकारी है : यह तुम्हें, जो गंदगी की धरती पर पैदा हुए हो, उस गंदगी से बच निकलने और उसे झटक देने में सक्षम बनाता है, यह तुम्हें शैतान के प्रभाव से पार पाने और शैतान के अंधकारमय प्रभाव को पीछे छोड़ने में सक्षम बनाता है। इन बातों पर ध्यान देने से तुम इस अपवित्र भूमि पर सुरक्षा प्राप्त करते हो। आखिरकार तुम्हें क्या गवाही देने को कहा जाएगा? तुम एक गंदगी की भूमि पर पैदा होते हो किंतु पवित्र बनने में, पुन: कभी गंदगी से ओतप्रोत न होने के लिए, शैतान के अधिकार-क्षेत्र में रहकर भी अपने आपको उसके प्रभाव से छुड़ा लेने के लिए, शैतान द्वारा न तो ग्रसित किए जाने के लिए और न ही सताए जाने के लिए, और सर्वशक्तिमान के हाथों में रहने के योग्य हो। यही गवाही और शैतान से युद्ध में विजय का साक्ष्य है। तुम शैतान को त्यागने में सक्षम हो, अपने जीवन में अब और शैतानी स्वभाव प्रकट नहीं करते, इसके बजाय उस स्थिति को जीते हो, जिसे परमेश्वर ने मनुष्य के सृजन के समय चाहा था कि मनुष्य प्राप्त करे : सामान्य मानवता, सामान्य विवेक, सामान्य अंतर्दृष्टि, परमेश्वर से प्रेम करने का सामान्य संकल्प, और परमेश्वर के प्रति निष्ठा। यह परमेश्वर के प्राणी द्वारा दी जाने वाली गवाही है। तुम कहते हो, "हम गंदगी की भूमि पर पैदा हुए हैं, परंतु परमेश्वर की सुरक्षा के कारण, उसकी अगुआई के कारण, और क्योंकि उसने हम पर विजय प्राप्त की है इसलिए, हमने शैतान के प्रभाव से मुक्ति पाई है। हम आज आज्ञा मान पाते हैं, तो यह भी इस बात का प्रभाव है कि परमेश्वर ने हम पर विजय पाई है, और यह इसलिए नहीं है कि हम अच्छे हैं, या हम स्वभावत: परमेश्वर से प्रेम करते थे। चूँकि परमेश्वर ने हमें चुना और हमें पूर्वनिर्धारित किया, इसीलिए आज हम पर विजय पाई गई है, और इसीलिए हम उसकी गवाही देने में समर्थ हुए हैं, और उसकी सेवा कर सकते हैं, ऐसा इसलिए भी है कि उसने हमें चुना और हमारी रक्षा की, इसी कारण हमें शैतान के अधिकार-क्षेत्र से बचाया और छुड़ाया गया है, और हम गंदगी को पीछे छोड़, लाल अजगर के देश में शुद्ध किए जा सकते हैं।" इसके अतिरिक्त, जिसे आज तुम बाहरी रूप से जीते हो, वह यह प्रकट करेगा कि क्या तम्हारे अंदर सामान्य मानवता है, तुम्हारे कहने का कोई अर्थ है, और क्या तुम एक सामान्य व्यक्ति के सदृश जीते हो। जब दूसरे तुम्हें देखें, तो तुम्हें उन्हें यह कहने का मौका नहीं देना चाहिए, "क्या यह बड़े लाल अजगर का स्वरूप नहीं है?" बहनों का आचरण बहनों के लिए शोभनीय नहीं है, भाइयों का आचरण भाइयों के लिए शोभनीय नहीं है, और तुममें संतों जैसा ज़रा भी शिष्टाचार नहीं है। फिर लोग कहेंगे, "कोई आश्चर्य नहीं कि परमेश्वर ने कहा कि वे मोआब के वंशज हैं, वह बिल्कुल सही था!" अगर लोग तुम लोगों को देखें और कहें, "हालाँकि परमेश्वर ने कहा था कि तुम मोआब के वंशज हो, परंतु जिस तरह का जीवन तुम जीते हो, उसने यह साबित कर दिया कि तुमने शैतान के प्रभाव को पीछे छोड़ दिया है; हालाँकि ये चीज़ें अभी भी तुम लोगों के अंदर हैं, लेकिन तुम लोग उनकी ओर से मुँह मोड़ने में सक्षम हो, यह दिखाता है कि तुम लोगों पर पूरी तरह से विजय प्राप्त कर ली गई है।" तुम लोग, जो जीत लिए गए और बचा लिए गए हो, कहोगे, "यह सत्य है कि हम मोआब के वंशज हैं, परंतु हमें परमेश्वर द्वारा बचा लिया गया है, और हालाँकि अतीत में मोआब के वंशज त्यागे और शापित किए गए थे, और इस्राएल के लोगों द्वारा अन्यजातियों में निर्वासित कर दिए गए थे, किंतु आज परमेश्वर ने हमें बचा लिया है। यह सच है कि हम सभी लोगों में सबसे भ्रष्ट हैं—यह परमेश्वर की आज्ञानुसार था, यह सत्य है, और सबके द्वारा मान्य है। परंतु आज हम उस प्रभाव से बच निकले हैं। हम अपने पुरखे का तिरस्कार करते हैं, हम अपने पुरखे से पीठ फेरने को तैयार हैं, उसे पूर्णतः त्यागकर परमेश्वर की समस्त व्यवस्थाओं का पालन करना चाहते हैं, परमेश्वर की इच्छानुसार चलना चाहते हैं और वह हमसे जिन बातों की अपेक्षा करता है, उन्हें हासिल करना चाहते हैं और परमेश्वर की इच्छा पूरी करना चाहते हैं। मोआब ने परमेश्वर को धोखा दिया, उसने परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य नहीं किया और परमेश्वर ने उससे घृणा की। परंतु हमें परमेश्वर के हृदय का ख्याल रखना चाहिए, और आज चूँकि हम परमेश्वर की इच्छा को समझते हैं, इसलिए हम परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकते, और हमें अपने पुरखे को त्याग देना चाहिए!" पहले मैंने बड़े लाल अजगर को त्यागने के बारे में बात की, और यह मुख्य रूप से लोगों के पुराने पुरखे को त्यागने के बारे में है। यह लोगों पर विजय पाने की एक गवाही है, और बिना इस पर ध्यान दिए कि आज तुम कैसे प्रवेश करते हो, इस क्षेत्र में तुम्हारी गवाही में कमी नहीं होनी चाहिए।

लोगों की क्षमता बहुत ख़राब हैं, उनमें सामान्य मानवता की बेहद कमी है, उनकी प्रतिक्रिया बहुत धीमी और बहुत सुस्त है, शैतान की भ्रष्टता ने उन्हें सुन्न और मंदबुद्धि बनाकर छोड़ दिया है, और हालाँकि वे एक-दो वर्षों में पूरी तरह से परिवर्तित नहीं हो सकते, फिर भी उनमें सहयोग करने का संकल्प होना चाहिए। कहा जा सकता है कि यह भी शैतान के समक्ष गवाही है। आज की गवाही विजय के वर्तमान कार्य से प्राप्त परिणाम है, साथ ही वह भावी अनुयायियों के लिए एक नमूना और आदर्श भी है। भविष्य में यह सभी राष्ट्रों में फैल जाएगा; चीन में जो कार्य किया जा रहा है, वह सब राष्ट्रों में फैल जाएगा। मोआब के वंशज विश्व में सब लोगों से निम्न हैं। कुछ लोग पूछते हैं, "क्या हाम के वंशज सबसे निम्न नहीं हैं?" बड़े लाल अजगर की संतानें और हाम के वंशज भिन्न-भिन्न प्रातिनिधिक महत्व के हैं, और हाम के वंशज एक अलग मामला हैं : भले ही उन्हें किसी भी प्रकार शापित किया जाता हो, वे फिर भी नूह के वंशज हैं; इस बीच, मोआब की उत्पत्ति शुद्ध नहीं थी : मोआब व्याभिचार से आया था, और इसी में अंतर निहित है। हालाँकि दोनों को शाप दिया गया था, पर उनकी हैसियत समान नहीं थी, और इसलिए मोआब के वंशज सब लोगों से निम्न हैं—और सबसे निम्न लोगों पर विजय से अधिक ठोस तथ्य कुछ नहीं हो सकता। अंत के समय का कार्य सारे नियमों से अलग है, और चाहे तुम शापित हो या दंडित, जब तक तुम मेरे कार्य में सहायता करते हो और विजय के कार्य में लाभप्रद हो, और चाहे तुम मोआब के वंशज हो या बड़े लाल अजगर की संतान, जब तक तुम कार्य के इस चरण में परमेश्वर के प्राणी का कर्तव्य निभा सकते हो और यथासंभव सर्वोत्तम कार्य करते हो, तब तक उचित परिणाम प्राप्त होगा। तुम बड़े लाल अजगर की संतान हो, और तुम मोआब के वंशज हो; कुल मिलाकर, जो कोई भी रक्त-मांस से बने हैं, वे सभी परमेश्वर के प्राणी हैं, और वे सृष्टिकर्ता द्वारा बनाए गए थे। तुम परमेश्वर के प्राणी हो, तुम्हारी अपनी कोई पसंद नहीं होनी चाहिए, और यही तुम्हारा कर्तव्य है। निस्संदेह, आज सृष्टिकर्ता का कार्य समस्त ब्रह्मांड पर निर्देशित है। तुम किसी भी वंश के क्यों न हो, सबसे पहले तुम परमेश्वर के प्राणियों में से एक हो, तुम लोग—मोआब के वंशज—परमेश्वर के प्राणियों का अंग हो, अंतर सिर्फ़ यह है कि तुम्हारा मूल्य निम्नतर है। चूँकि आज परमेश्वर का कार्य समस्त प्राणियों में किया जा रहा है और समस्त ब्रह्मांड उसका लक्ष्य है, इसलिए सृष्टिकर्ता अपना कार्य करने के लिए किसी भी व्यक्ति, पदार्थ या वस्तु का चयन करने को स्वतंत्र है। वह इस बात की चिंता नहीं करता कि तुम किसके वंशज हो, जब तक तुम उसके एक प्राणी हो, और जब तक तुम उसके कार्य—विजय और गवाही के कार्य—के लिए लाभदायक हो, तब तक वह बिना किसी हिचक के तुम्हारे भीतर अपना कार्य करेगा। यह लोगों की परंपरागत धारणाओं को खंड-खंड कर देता है, जैसे यह है कि परमेश्वर कभी अन्यजातियों के मध्य कार्य नहीं करेगा, विशेषकर उनमें, जो शापित और निम्न हैं, क्योंकि जो शापित हैं, उनकी आगामी समस्त पीढ़ियाँ भी सदा के लिए शापित रहेंगी, उन्हें कभी उद्धार का कोई अवसर प्राप्त नहीं होगा; परमेश्वर कभी अन्यजाति की भूमि पर उतरकर कार्य नहीं करेगा, और कभी मलिनता की भूमि पर अपने कदम नहीं रखेगा, क्योंकि वह पवित्र है। ये सभी धारणाएँ अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य द्वारा चकनाचूर कर दी गई हैं। जान लो कि परमेश्वर समस्त प्राणियों का परमेश्वर है, वह स्वर्ग, पृथ्वी और समस्त वस्तुओं पर प्रभुत्व रखता है, और केवल इस्राएल के लोगों का परमेश्वर नहीं है। इसलिए चीन में यह कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है, और क्या यह समस्त राष्ट्रों में नहीं फैलेगा? भविष्य की महान गवाही चीन तक सीमित नहीं रहेगी; यदि परमेश्वर केवल तुम लोगों को जीतता है, तो क्या दानवों को कायल किया जा सकता है? वे जीते जाने या परमेश्वर के सामर्थ्य को नहीं समझते, और केवल जब समस्त ब्रह्मांड में परमेश्वर के चुने हुए लोग इस कार्य के चरम परिणामों का अवलोकन करेंगे, तभी सब प्राणी जीते जाएँगे। कोई भी मोआब के वंशजों से अधिक पिछड़ा और भ्रष्ट नहीं है। केवल यदि इन लोगों पर विजय पाई जा सके—जो कि सबसे अधिक भ्रष्ट हैं, जिन्होंने परमेश्वर को स्वीकार नहीं किया, या इस बात पर विश्वास नहीं किया कि परमेश्वर है, वे जब जीत लिए जाएँगे और वे अपने मुख से परमेश्वर को स्वीकार करेंगे, उसकी स्तुति करेंगे और उससे प्रेम करने में समर्थ होंगे—तो यह विजय की गवाही होगी। हालाँकि तुम लोग पतरस नहीं हो, पर तुम पतरस की छवि को जीते हो, तुम पतरस की गवाही धारण करने योग्य हो, और अय्यूब की भी, और यह सबसे महान गवाही है। अंततः तुम कहोगे : "हम इस्राएली नहीं हैं, बल्कि मोआब के त्यागे हुए वंशज हैं, हम पतरस नहीं, उसकी जैसी क्षमता पाने में हम सक्षम नहीं, न ही हम अय्यूब हैं, और हम पौलुस के परमेश्वर के लिए कष्ट सहने और खुद को परमेश्वर के प्रति समर्पित करने के संकल्प से तुलना भी नहीं कर सकते, और हम इतने पिछड़े हुए हैं, और इसलिए हम परमेश्वर के आशीषों का आनंद लेने के अयोग्य हैं। परमेश्वर ने फिर भी आज हमें उन्नत किया है; इसलिए हमें परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए, और हालाँकि हमारी क्षमता और योग्यताएँ अपर्याप्त हैं, लेकिन हम परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए तैयार हैं—यह हमारा संकल्प है। हम मोआब के वंशज हैं, और हम शापित हैं। यह परमेश्वर की आज्ञा से था, और हम इसे बदलने में असमर्थ हैं, परंतु हमारा जीवन और हमारा ज्ञान बदल सकता है, और हम परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए संकल्पित हैं।" जब तुम्हारे पास यह संकल्प होगा, तो यह साबित करेगा कि तुमने जीते जाने की गवाही दी है।

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