विजय के कार्यों का आंतरिक सत्य (1)
मनुष्यजाति, जो शैतान के द्वारा अत्यधिक भ्रष्ट कर दी गई है, नहीं जानती कि एक परमेश्वर भी है और इसने परमेश्वर की आराधना करनी बंद कर दी है। आरम्भ में, जब आदम और हव्वा को रचा गया था, तो यहोवा की महिमा और साक्ष्य सर्वदा उपस्थित था। परन्तु भ्रष्ट होने के पश्चात, मनुष्य ने उस महिमा और साक्ष्य को खो दिया, क्योंकि सभी ने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और उसके प्रति श्रद्धा दिखाना पूर्णतया बन्द कर दिया। आज का विजय कार्य उस सम्पूर्ण साक्ष्य और उस सम्पूर्ण महिमा को पुनः प्राप्त करने और सभी मनुष्यों से परमेश्वर की आराधना करवाने के लिए है, जिससे सृजित जीवों के बीच साक्ष्य हो; कार्य के इस चरण के दौरान यही किए जाने की आवश्यकता है। मनुष्यजाति किस प्रकार जीती जानी है? मनुष्य को सम्पूर्ण रीति से कायल करने के लिए इस चरण के वचनों के कार्य का प्रयोग करके; उसे पूर्णत: अधीन बनाने के लिए, खुलासे, न्याय, ताड़ना और निर्मम शाप का प्रयोग करके; मनुष्य के विद्रोहीपन के खुलासे और उसके विरोध का न्याय करके, ताकि वह मानवजाति की अधार्मिकता और मलिनता को जान सके और इस तरह वह इनका प्रयोग परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की विषमता के रूप में कर सके। मुख्यतः, मनुष्य को इन्हीं वचनों से जीता और पूर्णत: कायल किया जाता है। वचन मनुष्यजाति को अन्तिम रूप से जीत लेने के साधन हैं, और वे सभी जो परमेश्वर की जीत को स्वीकार करते हैं, उन्हें उसके वचनों के प्रहार और न्याय को भी स्वीकार करना चाहिए। बोलने की वर्तमान प्रक्रिया, जीतने की ही प्रक्रिया है। और लोगों को किस प्रकार सहयोग देना चाहिए? यह जानकर कि इन वचनों को कैसे खाना-पीना है और उनकी समझ हासिल करके। जहाँ तक लोग कैसे जीते जाते हैं इस की बात है, इसे इंसान खुद नहीं कर सकता। तुम सिर्फ इतना कर सकते हो कि इन वचनों को खाने और पीने के द्वारा, अपनी भ्रष्टता और अशुद्धता, अपने विद्रोहीपन और अपनी अधार्मिकता को जानकर, परमेश्वर के समक्ष दण्डवत हो सकते हो। यदि तुम परमेश्वर की इच्छा को समझकर, इसे अभ्यास में ला सको, और अगर तुम्हारे पास दर्शन हों, और इन वचनों के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो सकते हो, और खुद कोई चुनाव नहीं करते हो, तब तुम जीत लिए जाओगे और ये उन वचनों का परिणाम होगा। मनुष्यजाति ने साक्ष्य क्यों खो दिया? क्योंकि कोई भी परमेश्वर पर विश्वास नहीं करता, क्योंकि लोगों के हृदयों में परमेश्वर के लिए कोई स्थान नहीं है। मनुष्यजाति की जीत लोगों के विश्वास की बहाली है। लोग हमेशा अंधाधुंध लौकिक संसार की ओर भागना चाहते हैं, वे अनेक आशाएँ रखते हैं, अपने भविष्य के लिए बहुत अधिक चाहते हैं और उनकी अनेक अनावश्यक मांगें हैं। वे हमेशा अपने शरीर के विषय में सोचते, शरीर के लिए योजनाएं बनाते रहते हैं, उनकी रुचि कभी भी परमेश्वर में विश्वास रखने के मार्ग की खोज में नहीं होती। उनके हृदय को शैतान के द्वारा छीन लिया गया है, उन्होंने परमेश्वर के लिए अपने सम्मान को खो दिया है, और उनका हृदय शैतान की ओर टकटकी लगाए रहता है परन्तु मनुष्य की सृष्टि परमेश्वर के द्वारा की गई थी। इसलिए, मनुष्य परमेश्वर के साक्ष्य को खो चुका है, अर्थात वह परमेश्वर की महिमा को खो चुका है। मनुष्य को जीतने का उद्देश्य परमेश्वर के लिए मनुष्य की श्रद्धा की महिमा को पुनः प्राप्त करना है। इसे इस प्रकार कहा जा सकता है : ऐसे अनेक लोग हैं जो जीवन की खोज नहीं करते; यदि कुछ हैं भी तो, उनकी संख्या को उँगलियों पर गिना जा सकता है। लोग अपने भविष्य के विषय में चिन्तित रहते हैं और जीवन की ओर ज़रा-सा भी ध्यान नहीं देते। कुछ लोग परमेश्वर से विद्रोह और उसका विरोध करते हैं, उसकी पीठ पीछे उस पर दोष लगाते हैं और सत्य का अभ्यास नहीं करते। इन लोगों को फिलहाल अनदेखा कर दिया गया है; फिलहाल विद्रोह के इन पुत्रों का कुछ नहीं किया जाता है, लेकिन भविष्य में तुम विलाप करते और दाँत पीसते हुए अन्धकार में रहोगे। जब तुम ज्योति में रह रहे होते हो तो उसकी बहूमूल्यता का अनुभव नहीं करते, परन्तु जब तुम अँधेरी रात में रहने लगोगे, तब तुम इसकी बहुमूल्यता को जान जाओगे। तब तुम्हें अफसोस होगा। अभी तुम्हें अच्छा लगता है, परन्तु वह दिन आएगा जब तुम्हें अफसोस होगा। जब वह दिन आएगा और अन्धकार नीचे उतरेगा और रोशनी फिर कभी नहीं होगी, तब तुम्हारे पास अफसोस करने के लिए बहुत देर हो चुकी होगी। क्योंकि तुम अभी भी आज के कार्य को नहीं समझते हो, इसलिए तुम अभी तुम्हारे पास जो समय है उसे संजोने में असफल हो। एक बार जब सम्पूर्ण कायनात का कार्य आरम्भ हो जाएगा अर्थात जो कुछ मैं आज कह रहा हूँ, जब वह पूर्ण हो चुका होगा, तो अनेक लोग अपना सर पकड़कर दु:ख के आँसू बहाएँगे। ऐसा करते समय, क्या वे रोते और दांत पीसते हुए अन्धकार में नहीं गिर चुके होंगे? जो लोग वास्तव में जीवन की खोज करते हैं और जिन्हें पूर्ण बना दिया गया है, उनका उपयोग किया जा सकता है, जबकि विद्रोह के समस्त पुत्र, जो उपयोग किए जाने के लिए अनुपयुक्त हैं, अन्धकार में गिरेंगे। उन्हें पवित्र आत्मा का कोई भी कार्य प्राप्त नहीं होगा, और वे किसी भी चीज़ का अर्थ समझने में असक्षम होंगे। रो-रोकर उनका बुरा हाल होगा, वे दंड में झोंक दिये जाएँगे। कार्य के इस चरण में यदि तुम अच्छी तरह से सज्जित हो और तुम जीवन में विकसित हो चुके हो, तब तुम उपयोग किए जाने के उपयुक्त हो। यदि तुम अच्छी तरह से सज्जित नहीं हो, तब अगर तुम्हें कार्य के अगले चरण के लिए बुलाया भी गया है, तो भी इस मुकाम पर इस्तेमाल के लिए अनुपयुक्त ही रहोगे, यदि तुम स्वयं को तैयार करना भी चाहोगे, तो भी तुम्हें दूसरा अवसर नहीं मिलेगा। परमेश्वर जा चुका होगा; तब तुम इस प्रकार का अवसर प्राप्त करने के लिए कहाँ जाओगे, जो अभी तुम्हारे समक्ष है? तब तुम उस अभ्यास को प्राप्त करने कहाँ जाओगे, जो परमेश्वर के द्वारा व्यक्तिगत रूप से उपलब्ध करवाया गया है? उस समय तक, परमेश्वर व्यक्तिगत रूप से बात नहीं करेगा, और न ही अपनी वाणी प्रदान करेगा; तुम मात्र वही पढ़ने के योग्य होगे जो आज कहा जा रहा है; तो फिर सरलता से समझ कैसे मिलेगी? भविष्य का जीवन आज के जीवन से किस प्रकार बेहतर बन पायेगा? उस समय, क्या रोते और दाँत पीसते हुए तुम एक जीवित मृत्यु की पीड़ा नहीं झेल रहे होगे? अभी तुम्हें आशीष प्रदान की जा रही है; परन्तु तुम नहीं जानते कि उसका आनन्द कैसे उठाना है; तुम आशीष में जीवनयापन कर रहे हो; फिर भी तुम अनजान हो। यह प्रमाणित करता है कि तुम पीड़ा उठाने के लिए अभिशप्त हो! आज कुछ लोग विरोध करते हैं, कुछ विद्रोह करते हैं, और कुछ यह या वह करते हैं। मैं बस तुम्हें अनदेखा करता हूँ, लेकिन यह मत सोचना कि मैं तुम सबके कार्यों से अनभिज्ञ हूँ। क्या मैं तुम सबके सार को नहीं समझता? मुझसे लड़ने में क्यों लगे रहते हो? क्या तुम अपने हित की खातिर जीवन और आशीष की खोज के लिए परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते? तुम्हारे अंदर आस्था का होना क्या तुम्हारे अपने हित में नहीं है? फिलहाल मैं केवल बोलकर जीतने का कार्य कर रहा हूँ और जब जीतने का यह कार्य पूरा हो जाएगा, तो तुम्हारा अन्त साफ हो जाएगा। क्या मुझे और स्पष्ट रूप से बताने की आवश्यकता है?
आज का विजय कार्य यह स्पष्ट करने के लिए अभीष्ट है कि मनुष्य का अन्त क्या होगा। मैं क्यों कहता हूँ कि आज की ताड़ना और न्याय, अंत के दिनों के महान श्वेत सिंहासन के सामने का न्याय है? क्या तुम यह नहीं देखते हो? विजय का कार्य अन्तिम चरण क्यों है? क्या यह इस बात को प्रकट करने के लिए नहीं है कि मनुष्य के प्रत्येक वर्ग का अन्त कैसा होगा? क्या यह प्रत्येक व्यक्ति को, ताड़ना और न्याय के विजय कार्य के दौरान, अपना असली रंग दिखाने और फिर उसके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत करने के लिए नहीं है? यह कहने के बजाय कि यह मनुष्यजाति को जीतना है, यह कहना बेहतर होगा कि यह उस बात को दर्शाना है कि व्यक्ति के प्रत्येक वर्ग का अन्त किस प्रकार का होगा। यह लोगों के पापों का न्याय करने के बारे में है और फिर मनुष्यों के विभिन्न वर्गों को उजागर करना और इस प्रकार यह निर्णय करना है कि वे दुष्ट हैं या धार्मिक हैं। विजय-कार्य के पश्चात धार्मिक को पुरस्कृत करने और दुष्ट को दण्ड देने का कार्य आता है। जो लोग पूर्णत: आज्ञापालन करते हैं अर्थात जो पूर्ण रूप से जीत लिए गए हैं, उन्हें सम्पूर्ण कायनात में परमेश्वर के कार्य को फैलाने के अगले चरण में रखा जाएगा; जिन्हें जीता नहीं गया उनको अन्धकार में रखा जाएगा और उन पर महाविपत्ति आएगी। इस प्रकार मनुष्य को उसकी किस्म के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा, दुष्कर्म करने वालों को दुष्टों के साथ समूहित किया जाएगा और उन्हें फिर कभी सूर्य का प्रकाश नसीब नहीं होगा, और धर्मियों को रोशनी प्राप्त करने और सर्वदा रोशनी में रहने के लिए भले लोगों के साथ रखा जाएगा। सभी बातों का अन्त निकट है; मनुष्य को साफ तौर पर उसका अन्त दिखा दिया गया है, और सभी वस्तुओं का वर्गीकरण उनकी किस्म के अनुसार किया जाएगा। तब, लोग इस तरह वर्गीकरण किए जाने की पीड़ा से किस प्रकार बच सकते हैं? जब सभी चीज़ों का अन्त निकट होता है तो मनुष्य के प्रत्येक वर्ग के भिन्न अन्तों को प्रकट कर दिया जाता है, और यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड (इसमें समस्त विजय-कार्य सम्मिलित है जो वर्तमान कार्य से आरम्भ होता है) को जीतने के कार्य के दौरान किया जाता है। समस्त मनुष्यजाति के अन्त का प्रकटीकरण, न्याय के सिंहासन के सामने, ताड़ना के दौरान और अंत के दिनों के विजय-कार्य के दौरान किया जाता है। लोगों को किस्म के अनुसार वर्गीकृत करना, उन्हें उनके वास्तविक वर्ग में लौटाना नहीं है, क्योंकि संसार की रचना के समय जब मनुष्य को बनाया गया था, तब एक ही किस्म के मनुष्य थे, केवल पुरुष और स्त्री का विभाजन था। उस समय विभिन्न प्रकार के वर्ग नहीं थे। यह तो हज़ारों वर्षों की भ्रष्टता के पश्चात ही हुआ कि मनुष्य के अनेक वर्ग उत्त्पन्न हुए, जिसमें कुछ अशुद्ध हैवानों के अंतर्गत आते हैं, कुछ दुष्टात्माओं के अंतर्गत और कुछ जो सर्वशक्तिमान के प्रभुत्व के अधीन जीवन का मार्ग खोजते हैं। इसी रीति से ही धीरे-धीरे लोगों के मध्य वर्ग अस्तित्व में आते हैं और इस तरह ही लोग मनुष्य के विस्तृत परिवारों में से वर्गों में विभाजित होते हैं। समस्त लोगों के "पिता" भिन्न हो गए हैं; ऐसा नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति पूर्णत: सर्वशक्तिमान के अधिकार के अधीन आता है, क्योंकि इंसान बहुत ही विद्रोही है। धार्मिक न्याय प्रत्येक प्रकार के व्यक्ति की वास्तविक किस्म को प्रकट करता है और कुछ भी छिपा नहीं रहने देता। प्रकाश में प्रत्येक व्यक्ति अपना वास्तविक चेहरा दिखाता है। इस बिन्दु पर, मनुष्य वैसा नहीं है जैसा वह वास्तविक रूप में था और उसके पूर्वजों की वास्तविक समानता बहुत पहले ही अन्तर्धान हो चुकी है, क्योंकि आदम और हव्वा के अनगिनत वंशज बहुत पहले से स्वर्ग-सूर्य को पुनः कभी न जानने के लिए शैतान के द्वारा वश में कर लिए गए हैं, और क्योंकि लोग हर प्रकार से शैतान के विष से भर दिए गए हैं। इसीलिए, लोगों के लिए उनकी उपयुक्त मंजिलें हैं। इसके अलावा, उनके विभिन्न प्रकार के विषों के आधार पर उन्हें क़िस्मों में वर्गीकृत किया जाता है, अर्थात आज उन्हें जिस हद तक जीता गया है उसके अनुसार अलग-अलग किया जाता है। मनुष्य का अन्त संसार की सृष्टि के पहले ही निर्धारित नहीं किया गया था। क्योंकि आरंभ में मात्र एक ही वर्ग था, जिसे सामूहिक रूप से "मनुष्यजाति" पुकारा जाता था, और मनुष्य को पहले शैतान के द्वारा भ्रष्ट नहीं किया गया था, सभी लोग परमेश्वर के प्रकाश में जीवनयापन करते थे और उन पर किसी भी प्रकार का अन्धकार नहीं था। परन्तु बाद में जब मनुष्य शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया, तो सभी प्रकार और किस्म के लोग सम्पूर्ण पृथ्वी पर फैल गए—सभी प्रकार और किस्म के लोग, जो उस परिवार से आए थे, जिसे सामूहिक रूप से "मनुष्यजाति" कहा जाता था, जो पुरुषों और स्त्रियॉं से बनी थी। अपने सबसे पुराने पूर्वज—मनुष्यजाति, जो पुरुष और स्त्री से बनी थी (अर्थात मूल आदम और हव्वा, जो उनके सबसे पुराने पूर्वज थे) से अलग होने के लिए उन सभी का मार्गदर्शन उनके पूर्वजों के द्वारा किया गया था। उस समय, इस्राएली वे एकमात्र लोग थे, जिनका पृथ्वी पर जीवनयापन के लिए यहोवा के द्वारा मार्गदर्शन किया जा रहा था। विभिन्न प्रकार के लोग, जो सम्पूर्ण इस्राएल (अर्थात वास्तविक पारिवारिक कुल से) से अस्तित्व में आए थे, उन्होंने बाद में यहोवा की अगुवाई को खो दिया। ये आरम्भिक लोग, जो मानव संसार के मामलों से पूरी तरह से अनभिज्ञ थे, वे उन क्षेत्रों में रहने के लिए अपने पूर्वजों के साथ हो लिए, जिन क्षेत्रों पर उन्होंने अधिकार किया था और आज तक ऐसा ही चला आ रहा है। इस तरह, वे आज भी अनजान हैं कि वे यहोवा से कैसे अलग हो गए और आज तक सभी प्रकार के अशुद्ध हैवानों और दुष्टात्माओं के द्वारा किस प्रकार भ्रष्ट किए गए हैं। जो अब तक अत्यधिक गहन रूप से भ्रष्ट और विष से भरे हुए हैं, जिन्हें अन्तत: बचाया नहीं जा सकता, उनके पास अपने पूर्वजों, अशुद्ध हैवानों, जिन्होंने उन्हें भ्रष्ट किया, उनके साथ जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होगा। वे लोग जिन्हें अन्तत: बचाया जा सकता है, वे मनुष्यजाति की उपयुक्त मंजिल पर पहुँच जाएँगे, अर्थात उस अन्त पर, जो बचाए गए और जीते गए लोगों के लिए संरक्षित रखा गया है। उन सभी को बचाने के लिए सबकुछ किया जाएगा, जिन्हें बचाया जा सकता है, परन्तु उन असंवेदनशील, असाध्य लोगों के पास अपने पूर्वजों के पीछे-पीछे ताड़ना के अथाह गड्ढ़े में जाना ही एकमात्र विकल्प होगा। यह मत सोचो कि तुम्हारा अन्त, आरम्भ में ही पूर्वनियत कर दिया गया था और इसे अब प्रकट किया गया है। यदि तुम ऐसा सोचते हो, तब क्या तुम भूल गए हो कि मनुष्य की आरम्भिक रचना के दौरान, किसी भी अलग शैतानी वर्ग की रचना नहीं की गई थी? क्या तुम भूल चुके हो कि आदम और हव्वा से बनी मात्र एक ही मनुष्यजाति को रचा गया था (अर्थात मात्र पुरुष और स्त्री ही बनाए गए थे)? यदि तुम आरम्भ में ही शैतान के वंशज होते, तो क्या उसका अर्थ यह न होता कि जब यहोवा ने मनुष्य की रचना की, तब उसने एक शैतानी समूह को भी सम्मिलित कर लिया था? क्या वह ऐसा कुछ कर सकता था? उसने मनुष्य को अपने साक्ष्य के लिए बनाया था; उसने मनुष्य को अपनी महिमा के लिए रचा था। उसने जानबूझ कर अपने विरोध के लिए शैतान की सन्तान के एक वर्ग को स्वेच्छा से क्यों बनाया होता? यहोवा ऐसा कैसे कर सकता था? यदि उसने ऐसा किया होता तो कौन कहता कि वह धार्मिक परमेश्वर है? आज जब मैं यह बात कहता हूँ कि तुम सब में से कुछ लोग अन्त में शैतान के साथ जाएँगे, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि तुम आरम्भ से ही शैतान के साथ थे; बल्कि इसका अर्थ यह है कि तुम इतना गिर चुके हो कि यदि परमेश्वर ने तुम्हें बचाने का प्रयास किया भी है, तब भी तुम वह उद्धार पाने में असफल हो गए हो। तुम्हें शैतान के साथ वर्गीकृत करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। क्योंकि तुम उद्धार के योग्य नहीं हो, इसका कारण यह नहीं है कि परमेश्वर तुम्हारे प्रति अधार्मिक है, अर्थात ऐसा नहीं है कि परमेश्वर ने जानबूझकर तुम्हारी नियति को शैतान की एक अभिव्यक्ति के रूप में तय कर दिया है, और फिर तुम्हें शैतान के साथ वर्गीकृत करके जानबूझकर तुम्हें पीड़ित करना चाहता है। यह विजय-कार्य का अंदरूनी सत्य नहीं है। यदि तुम ऐसा मानते हो तो तुम्हारी समझ बहुत ही एक पक्षीय है! विजय के अन्तिम चरण का उद्देश्य लोगों को बचाना और उनके अन्त को प्रकट करना है। यह न्याय के द्वारा लोगों की विकृति को भी प्रकट करना है और इस प्रकार उनसे पश्चाताप करवाना, उन्हें ऊपर उठाना, जीवन और मानवीय जीवन के सही मार्ग की खोज करवाना है। यह सुन्न और मन्दबुद्धि लोगों के हृदयों को जगाना और न्याय के द्वारा उनके भीतरी विद्रोह को प्रदर्शित करना है। परन्तु, यदि लोग अभी भी पश्चाताप करने के अयोग्य हैं, अभी भी मानव जीवन के सही मार्ग को खोजने में असमर्थ हैं और अपनी भ्रष्टताओं को दूर करने के योग्य नहीं हैं, तो उनका उद्धार नहीं हो सकता, और वे शैतान द्वारा निगल लिए जाएँगे। परमेश्वर के विजय-कार्य के ये मायने हैं : लोगों को बचाना और उनका अन्त भी दिखाना। अच्छे अन्त, बुरे अन्त—वे सभी विजय-कार्य के द्वारा प्रकट किए जाते हैं। लोग बचाए जाएँगे या शापित होंगे, यह सब विजय-कार्य के दौरान प्रकट किया जाता है।
अंत के दिन वे होते हैं जब सभी वस्तुएँ जीतने के द्वारा किस्म के अनुसार वर्गीकृत की जाएँगी। जीतना, अंत के दिनों का कार्य है; दूसरे शब्दों में, प्रत्येक व्यक्ति के पापों का न्याय करना, अंत के दिनों का कार्य है। अन्यथा, लोगों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाएगा? तुम सब में किया जाने वाला वर्गीकरण का कार्य सम्पूर्ण ब्रह्मांड में ऐसे कार्य का आरम्भ है। इसके पश्चात, समस्त देशों को और सभी लोगों में भी विजय-कार्य किया जाएगा। इसका अर्थ यह है कि सृष्टि में प्रत्येक व्यक्ति किस्म के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा, वह न्याय किए जाने के लिए न्याय के सिंहासन के समक्ष आएगा। कोई भी व्यक्ति और कोई भी वस्तु इस ताड़ना और न्याय को सहने से बच नहीं सकती और न ही कोई व्यक्ति और वस्तु ऐसी है जिसका किस्म के अनुसार वर्गीकरण नहीं किया जाता; प्रत्येक को वर्गीकृत किया जाएगा, क्योंकि समस्त वस्तुओं का अन्त निकट आ रहा है और जो भी स्वर्ग में और पृथ्वी पर है, वह अपने अंत पर पहुँच गया है। मनुष्य मानवीय अस्तित्व के अंतिम दिनों से कैसे बच सकता है? और इस प्रकार, तुम सब और कितनी देर तक अपनी अनाज्ञाकारिता के कार्य को जारी रख सकते हो? क्या तुम सब नहीं देखते कि तुम्हारे अन्तिम दिन सन्निकट हैं। वे जो परमेश्वर का सम्मान करते हैं और उसके प्रकट होने की प्रतीक्षा करते हैं, वे परमेश्वर की धार्मिकता के प्रकटन के दिन को कैसे नहीं देख सकते? वे नेकी के लिए अन्तिम पुरस्कार कैसे नहीं प्राप्त कर सकते? क्या तुम वह व्यक्ति हो, जो भला करता है या वह जो बुरा करता है? क्या तुम वह हो जो धार्मिक न्याय को स्वीकार करता है और फिर आज्ञापालन करता है या तुम वह हो जो धार्मिक न्याय को स्वीकार करता है फिर शापित किया जाता है? क्या तुम न्याय के सिंहासन के समक्ष प्रकाश में जीते हो या तुम अधोलोक के अन्धकार के बीच जीते हो? क्या तुम्हीं साफ तौर पर नहीं जानते हो कि तुम्हारा अंत पुरस्कार पाने का होगा या दंड? क्या तुम बहुत साफ तौर पर एवं गहराई से नहीं समझते हो कि परमेश्वर धार्मिक है? तो तुम्हारा आचरण और तुम्हारा हृदय किस प्रकार का है? आज जब मैं तुम्हें जीतता हूँ, तो क्या मुझे तुम्हें वास्तव में यह बताने की आवश्यकता है कि तुम्हारा आचरण भला है या बुरा? तुमने मेरे लिए कितना त्याग किया है? तुम मेरी आराधना कितनी गहराई से करते हो? क्या तुम स्वयं अच्छी तरह से नहीं जानते कि तुम मेरे प्रति कैसा व्यवहार करते हो? किसी और से ज़्यादा खुद तुम्हें अच्छी तरह ज्ञात होना चाहिए कि आखिरकार तुम्हारा अन्त क्या होगा! मैं तुम्हें सच कहता हूँ : मैंने ही मनुष्यजाति को सृजा है और मैंने ही तुम्हें सृजा है; परन्तु मैंने तुम लोगों को शैतान के हाथों में नहीं दिया; और न ही मैंने जानबूझकर तुम्हें अपने विरुद्ध किया या मेरा विरोध करने दिया और इस प्रकार तुम्हें दण्डित किया। क्या ये सब विपत्तियाँ और पीड़ाएँ तुमने इसलिए नहीं सहीं हैं, क्योंकि तुम्हारे हृदय अत्यधिक कठोर और तुम्हारा आचरण अत्यधिक घृणित है। अत:, क्या तुम सबने अपना अन्त स्वयं निर्धारित नहीं किया है? क्या तुम अपने हृदय में, इस बात को दूसरों से बेहतर नहीं जानते कि तुम सब का अंत कैसा होगा? मैं लोगों को इसलिए जीतता हूँ, क्योंकि मैं उन्हें प्रकट करना और तुम्हारा उद्धार करना चाहता हूँ। यह तुम से बुरा करवाने या जानबूझकर तुम्हें विनाश के नरक में ले जाने के लिए नहीं है। समय आने पर, तुम्हारी समस्त भयानक पीड़ाएँ, तुम्हारा रोना और दाँत पीसना—क्या यह सब तुम्हारे पापों के कारण नहीं होगा? इस प्रकार, क्या तुम्हारी अपनी भलाई या तुम्हारी अपनी बुराई ही तुम्हारा सर्वोत्तम न्याय नहीं है? क्या यह उसका सर्वोत्तम प्रमाण नहीं है कि तुम्हारा अन्त क्या होगा?
आज, मैं चीन में परमेश्वर के चुने हुए लोगों में इसलिए काम करता हूँ ताकि उनके सारे विद्रोही स्वभावों को प्रकट करके उनकी समस्त कुरूपता को बेनकाब करूँ, और इससे मुझे वो सब बातें कहने के लिए संदर्भ मिलता है जो मुझे कहने की ज़रूरत है। तत्पश्चात, जब मैं सम्पूर्ण कायनात को जीतने के कार्य के अगले चरण पर काम करूँगा, तो मैं पूरी कायनात के लोगों की धार्मिकता का न्याय करने के लिए तुम लोगों के प्रति अपने न्याय का प्रयोग करूँगा, क्योंकि तुम्हीं लोग मनुष्यजाति में विद्रोहियों के प्रतिनिधि हो। जो लोग ऊपर नहीं उठ पाएँगे, वे सिर्फ विषमता और सेवा करने वाली चीज़ें बन जाएँगे, जबकि जो लोग ऊपर उठ पाएँगे, उनका प्रयोग किया जाएगा। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि वे जो लोग नहीं उठ पाएँगे, वे केवल विषमता के रूप में कार्य करेंगे? क्योंकि मेरे वर्तमान वचन और कार्य, तुम लोगों की पृष्ठभूमि को निशाना बनाते हैं और इसलिए कि तुम सब समस्त मनुष्यजाति में विद्रोही लोगों के प्रतिनिधि और साक्षात प्रतिमान बन चुके हो। बाद में, मैं इन वचनों को, जो तुम सबको जीतते हैं, विदेशों में ले जाऊँगा और वहाँ के लोगों को जीतने के लिए उनका प्रयोग करूँगा, फिर भी तुम उन्हें प्राप्त नहीं कर पाओगे। क्या वह तुम्हें एक विषमता नहीं बनाएगा? समस्त मनुष्यजाति का भ्रष्ट स्वभाव, मनुष्य के विद्रोही कार्य, मनुष्य की भद्दी छवियाँ और चेहरे, आज ये सभी उन वचनों में दर्ज होते हैं, जिनका प्रयोग तुम लोगों को जीतने के लिए किया गया था। तब मैं इन वचनों का प्रयोग प्रत्येक राष्ट्र और सम्प्रदाय के लोगों को जीतने के लिए करूँगा, क्योंकि तुम सब आदर्श और उदाहरण हो। हालाँकि, मैंने तुम लोगों को जानबूझकर नहीं त्यागा; यदि तुम अपने अनुसरण में असफल होते हो और इस प्रकार तुम असाध्य होना प्रमाणित करते हो, तो क्या तुम सब मात्र सेवा करने वाली वस्तु और विषमता नहीं होगे? मैंने एक बार कहा था कि शैतान की युक्तियों के आधार पर मेरी बुद्धि प्रयुक्त की जाती है। मैंने ऐसा क्यों कहा था? क्या वह उसके पीछे का सत्य नहीं है, जो मैं अभी कह और कर रहा हूँ? यदि तुम आगे नहीं बढ़ सकते, यदि तुम पूर्ण नहीं किए जाते, बल्कि दण्डित किए जाते हो, तो क्या तुम विषमता नहीं बन जाओगे? हो सकता है तुम ने अपने समय में अत्यधिक पीड़ा सही हो, परन्तु तुम अभी भी कुछ नहीं समझते; तुम जीवन की प्रत्येक बात के विषय में अज्ञानी हो। यद्यपि तुम्हें ताड़ना दी गई और तुम्हारा न्याय किया गया; फिर भी तुम बिलकुल भी नहीं बदले और तुम ने भीतर तक जीवन ग्रहण ही नहीं किया है। जब तुम्हारे कार्य को जाँचने का समय आएगा, तुम अग्नि जैसे भयंकर परीक्षण और उस से भी बड़े क्लेश का अनुभव करोगे। यह अग्नि तुम्हारे सम्पूर्ण अस्तित्व को राख में बदल देगी। ऐसा व्यक्ति जिसमें जीवन नहीं है, ऐसा व्यक्ति जिसके भीतर एक रत्ती भी शुद्ध स्वर्ण न है, एक ऐसा व्यक्ति जो अभी भी पुराने भ्रष्ट स्वभाव में फंसा हुआ है, और ऐसा व्यक्ति जो विषमता होने का काम भी अच्छे से न कर सके, तो तुम्हें क्यों नहीं हटाया जाएगा? किसी ऐसे व्यक्ति का विजय-कार्य के लिए क्या उपयोग है, जिसका मूल्य एक पाई भी नहीं है और जिसके पास जीवन ही नहीं है? जब वह समय आएगा, तो तुम सब के दिन नूह और सदोम के दिनों से भी अधिक कठिन होंगे! तब तुम्हारी प्रार्थनाएँ भी तुम्हारा कुछ भला नहीं करेंगी। जब उद्धार का कार्य पहले ही समाप्त हो चुका है तो तुम बाद में वापस आकर नए सिरे से पश्चाताप करना कैसे आरम्भ कर सकते हो? एक बार जब उद्धार का सम्पूर्ण कार्य कर लिया जाएगा, तो उद्धार का और कार्य नहीं होगा; तब जो होगा, वह मात्र बुराई को दण्ड देने के कार्य का आरम्भ होगा। तुम विरोध करते हो, तुम विद्रोह करते हो, और तुम वो काम करते हो, जो तुम जानते हो कि बुरे हैं। क्या तुम कठोर दण्ड के लक्ष्य नहीं हो? मैं आज यह तुम्हारे लिए स्पष्ट रूप से बोल रहा हूँ। यदि तुम अनसुना करते हो, तो जब बाद में तुम पर विपत्ति टूटेगी, यदि तुम तब विश्वास और पछतावा करना आरम्भ करोगे, तो क्या इसमें तब बहुत देर नहीं हो चुकी होगी? मैं तुम्हें आज पश्चाताप करने का एक अवसर प्रदान कर रहा हूँ, परन्तु तुम ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हो। तुम और कितनी प्रतीक्षा करना चाहते हो? ताड़ना के दिन तक? मैं आज तुम्हारे पिछले अपराध याद नहीं रखता हूँ; मैं तुम्हें बार-बार क्षमा करता हूँ, मात्र तुम्हारे सकारात्मक पक्ष को देखने के लिए मैं तुम्हारे नकारात्मक पक्ष को अनदेखा करता हूँ, क्योंकि मेरे समस्त वर्तमान वचन और कार्य तुम्हें बचाने के लिए हैं। तुम्हारे प्रति मैं कोई बुरा इरादा नहीं रखता। फिर भी तुम प्रवेश करने से इन्कार करते हो; तुम भले और बुरे में अंतर नहीं कर सकते और नहीं जानते कि दयालुता की प्रशंसा कैसे की जाती है। क्या ऐसे लोग बस दण्ड और धार्मिक प्रतिफल की प्रतीक्षा नहीं कर रहे हैं?
जब मूसा ने चट्टान पर प्रहार किया, और यहोवा द्वारा प्रदान किया गया पानी उसमें से बहने लगा, तो यह उसके विश्वास के कारण ही था। जब दाऊद ने—आनंद से भरे अपने हृदय के साथ—मुझ यहोवा की स्तुति में वीणा बजायी तो यह उसके विश्वास की वजह से ही था। जब अय्यूब ने अपने पशुओं को जो पहाड़ों में भरे रहते थे और सम्पदा के गिने ना जा सकने वाले ढेरों को खो दिया, और उसका शरीर पीड़ादायक फोड़ों से भर गया, तो यह उसके विश्वास के कारण ही था। जब वह मुझ यहोवा की आवाज़ को सुन सका, और मुझ यहोवा की महिमा को देख सका, तो यह उसके विश्वास के कारण ही था। पतरस अपने विश्वास के कारण ही यीशु मसीह का अनुसरण कर सका था। उसे मेरे वास्ते सलीब पर चढ़ाया जा सका था और वह महिमामयी गवाही दे सका था, तो यह भी उसके विश्वास के कारण ही था। जब यूहन्ना ने मनुष्य के पुत्र की महिमामय छवि को देखा, तो यह उसके विश्वास के कारण ही था। जब उसने अंत के दिनों के दर्शन को देखा, तो यह सब और भी उसके विश्वास के कारण था। इतने सारे तथाकथित अन्य-जाति राष्ट्रों ने मेरा प्रकाशन प्राप्त कर लिया है, और जान गए हैं कि मैं मनुष्यों के बीच अपना कार्य करने के लिए देह में लौट आया हूँ, यह भी उनके विश्वास के कारण ही है। वे सब जो मेरे कठोर वचनों के द्वारा मार खाते हैं और फिर भी वे उनसे सांत्वना पाते हैं, और बचाए जाते हैं—क्या उन्होंने ऐसा अपने विश्वास के कारण ही नहीं किया है? लोग अपने विश्वास के कारण बहुत कुछ पा चुके हैं और वो हमेशा आशीष नहीं होता। उन्हें शायद उस तरह की प्रसन्नता और आनन्द का अनुभव न हो, जो दाऊद ने अनुभव किया था, या यहोवा के द्वारा प्रदान किया गया वैसा जल प्राप्त न हो, जैसा मूसा ने प्राप्त किया था। उदाहरण के लिए, अय्यूब को उसके विश्वास की वजह से यहोवा द्वारा आशीष प्रदान किया गया था, लेकिन वह विपत्ति से भी पीड़ित हुआ। चाहे तुम्हें आशीष प्राप्त हो, या तुम किसी आपदा से पीड़ित हो, दोनों ही आशीषित घटनाएँ हैं। विश्वास के बिना, तुम यह विजय-कार्य प्राप्त नहीं कर सकते, आज अपनी आँखों से यहोवा के कार्य को देख पाना तो दूर की बात है। तुम देख भी नहीं पाओगे, प्राप्त करना तो दूर की बात है। ये विपत्तियाँ, ये आपदाएँ, और ये समस्त न्याय-यदि ये तुम पर न टूटते, तो क्या तुम आज यहोवा के कार्य को देखने में समर्थ होते? आज, यह विश्वास ही है, जो तुम्हें जीत लिए जाने देता है, और यह तुम्हारा जीता जाना ही है जो तुम्हें यहोवा के प्रत्येक कार्य पर विश्वास करने देता है। यह मात्र विश्वास के कारण ही है कि तुम इस प्रकार की ताड़ना और न्याय पाते हो। इस ताड़ना और न्याय के द्वारा तुम जीते और पूर्ण किए जाते हो। आज, जिस प्रकार की ताड़ना और न्याय तुम पा रहे हो, उसके बिना तुम्हारा विश्वास व्यर्थ होगा, क्योंकि तुम परमेश्वर को नहीं जान पाओगे; इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम उसमें कितना विश्वास करते हो, तुम्हारा विश्वास फिर भी वास्तव में एक निराधार खाली अभिव्यक्ति ही होगी। जब तुम इस प्रकार के विजय कार्य को प्राप्त कर लेते हो, जो तुम्हें पूर्णत: आज्ञाकारी बनाता है, तभी तुम्हारा विश्वास सच्चा और विश्वसनीय बनता है और तुम्हारा हृदय परमेश्वर की ओर फिर जाता है। भले ही तुम "आस्था", इस शब्द के कारण न्याय और शाप झेलो, फिर भी तुम्हारी आस्था सच्ची है, और तुम सबसे वास्तविक और सबसे बहुमूल्य वस्तु प्राप्त करते हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि न्याय के इस मार्ग में ही तुम परमेश्वर की सृष्टि की अन्तिम मंजिल को देखते हो; इस न्याय में ही तुम देखते हो कि सृष्टिकर्ता से प्रेम करना है; इस प्रकार के विजय-कार्य में तुम परमेश्वर के हाथ को देखते हो; इसी विजय-कार्य में तुम मानव जीवन को पूरी तरह समझते हो; इसी विजय-कार्य में तुम मानव-जीवन के सही मार्ग को प्राप्त करते हो, और "मनुष्य" के वास्तविक अर्थ को समझ जाते हो; इसी विजय में तुम सर्वशक्तिमान के धार्मिक स्वभाव और उसके सुन्दर, महिमामय मुखमण्डल को देखते हो; इसी विजय-कार्य में तुम मनुष्य की उत्पत्ति को जान पाते और समस्त मनुष्यजाति के पूरे "अनश्वर इतिहास" को समझते हो; इसी विजय में तुम मनुष्यजाति के पूर्वजों और मनुष्यजाति के भ्रष्टाचार के उद्गम को समझते हो; इसी विजय में तुम आनन्द और आराम के साथ-साथ अनन्त ताड़ना, अनुशासन और उस मनुष्यजाति के लिए सृष्टिकर्त्ता की ओर से फटकार के वचन प्राप्त करते हो, जिसे उसने बनाया है; इसी विजय-कार्य में तुम आशीष प्राप्त करते हो और तुम वे आपदाएँ प्राप्त करते हो, जो मनुष्य को प्राप्त होनी चाहिए...। क्या यह सब तुम्हारे थोड़े से विश्वास के कारण नहीं है? और इन चीज़ों को प्राप्त करने के पश्चात क्या तुम्हारा विश्वास बढ़ा नहीं है? क्या तुमने बहुत कुछ प्राप्त नहीं कर लिया है? तुम ने मात्र परमेश्वर के वचन को ही नहीं सुना और परमेश्वर की बुद्धि को ही नहीं देखा, अपितु तुम ने उसके कार्य के प्रत्येक चरण को भी व्यक्तिगत रूप से अनुभव किया है। हो सकता है तुम कहो कि यदि तुम्हारे पास विश्वास नहीं होता, तो तुम इस प्रकार की ताड़ना और न्याय से पीड़ित न होते। परन्तु तुम्हें जानना चाहिए कि बिना विश्वास के, न केवल तुम इस प्रकार की ताड़ना और सर्वशक्तिमान से इस प्रकार की देखभाल प्राप्त करने में अयोग्य होते, अपितु तुम सृष्टिकर्ता से मिलने के सुअवसर को भी सर्वदा के लिए खो देते। तुम मनुष्यजाति के उद्गम को कभी भी नहीं जान पाते और न ही मानव-जीवन की महत्ता को समझ पाते। चाहे तुम्हारे शरीर की मृत्यु हो जाती, और तुम्हारी आत्मा अलग हो जाती, फिर भी तुम सृष्टिकर्ता के समस्त कार्यों को नहीं समझ पाते, तुम्हें इस बात का ज्ञान तो कभी न हो पाता कि मनुष्यजाति को बनाने के पश्चात सृष्टिकर्ता ने इस पृथ्वी पर कितने महान कार्य किए। उसके द्वारा बनाई गई इस मनुष्यजाति के एक सदस्य के रूप में, क्या तुम इस प्रकार बिना-सोचे समझे अन्धकार में गिरने और अनन्त दण्ड की पीड़ा उठाने के लिए तैयार हो। यदि तुम स्वयं को आज की ताड़ना और न्याय से अलग करते हो, तो अंत में तुम्हें क्या मिलेगा? क्या तुम सोचते हो कि वर्तमान न्याय से एक बार अलग होकर, तुम इस कठिन जीवन से बचने में समर्थ हो जाओगे? क्या यह सत्य नहीं है कि यदि तुम "इस स्थान" को छोड़ते हो, तो जिससे तुम्हारा सामना होगा, वह शैतान के द्वारा दी जाने वाली पीड़ादायक यातना और क्रूर अपशब्द होंगे? क्या तुम असहनीय दिन और रात का सामना कर सकते हो? क्या तुम सोचते हो कि सिर्फ इसलिए कि आज तुम इस न्याय से बच जाते हो, तो तुम भविष्य की उस यातना को सदा के लिए टाल सकते हो? तुम्हारे मार्ग में क्या आएगा? क्या तुम किसी स्वप्न-लोक की आशा करते हो? क्या तुम सोचते हो कि वास्तविकता से तुम्हारे इस तरह से भागने से तुम भविष्य की उस अनन्त ताड़ना से बच सकते हो, जैसा कि तुम आज कर रहे हो? क्या आज के बाद, तुम कभी इस प्रकार का अवसर और इस प्रकार की आशीष पुनः प्राप्त कर पाओगे? क्या तुम उन्हें खोजने के योग्य होगे, जब घोर विपत्ति तुम पर आ पड़ेगी? क्या तुम उन्हें खोजने के योग्य होगे, जब सम्पूर्ण मनुष्यजाति विश्राम में प्रवेश करेगी? तुम्हारा वर्तमान खुशहाल जीवन और तुम्हारा छोटा-सा मैत्रीपूर्ण परिवार—क्या वे तुम्हारी भविष्य की अनन्त मंजिल की जगह ले सकते हैं? यदि तुम सच्चा विश्वास रखते हो, और तुम्हारे विश्वास के कारण यदि तुम्हें बहुत अधिक प्राप्त होता है, तो यह सबकुछ तुम्हें, एक सृजित प्राणी को, प्राप्त होना चाहिए और यह सब तुम्हारे पास पहले ही हो जाना चाहिए था। तुम्हारे विश्वास और तुम्हारे जीवन के लिए इस विजय से अधिक लाभकारी और कुछ नहीं है।
आज तुम्हें समझने की आवश्यकता है कि परमेश्वर उनसे क्या चाहता है, जो जीते जाते हैं उनके प्रति उसका क्या दृष्टिकोण है, जो पूर्ण बनाए जाते हैं और वर्तमान में तुम्हें किसमें प्रवेश करना चाहिए। कुछ बातों को तुम्हें कम ही समझने की आवश्यकता है। तुम्हें परमेश्वर के कुछ रहस्यों की जाँच करने की आवश्यकता नहीं है; वे जीवन के लिए अधिक सहायक नहीं हैं, और उन्हें मात्र एक बार ही देखने की ही ज़रूरत है। तुम आदम और हव्वा के उन रहस्यों के बारे में पढ़ सकते हो : उस समय आदम और हव्वा जो कुछ थे और परमेश्वर आज क्या काम करना चाहता है। तुम्हें समझने की आवश्यकता है कि मनुष्य को जीतने और पूर्ण बनाने में, परमेश्वर मनुष्य को वैसा ही बना देना चाहता है, जैसे आदम और हव्वा थे। तुम्हें अपने दिल में, पूर्णता के उस स्तर का पता होना चाहिए जो परमेश्वर के मानकों पर खरा उतरने के लिए प्राप्त किया जाना चाहिए और फिर तुम्हें उसे हासिल करने का प्रयास करना चाहिए। यह तुम्हारे अभ्यास से संबंधित है और इसे तुम्हें समझना चाहिए। इन मामलों के विषय में परमेश्वर के वचनों के अनुसार तुम्हें प्रवेश करने का प्रयास करना ही तुम्हारे लिए पर्याप्त है। जब तुम पढ़ते हो कि "मनुष्यजाति के विकास का इतिहास दसियों हज़ार वर्ष पुराना है", तो तुम जिज्ञासु हो जाते हो, और तुम भाइयों और बहनों के साथ इसका उत्तर जानने का प्रयत्न करते हो। "परमेश्वर कहता है कि मनुष्यजाति का विकास छह हज़ार वर्ष पुराना है, ठीक है न? यह दसियों हज़ार वर्ष क्या हैं?" इसका उत्तर जानने का प्रयास करने से क्या लाभ है? चाहे परमेश्वर दसियों हज़ार वर्षों से कार्य कर रहा हो या लाखों वर्षों से, क्या वह वास्तव में चाहता है कि तुम यह सब जानो? एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्हें यह सब जानने की आवश्यकता नहीं है। तुम इस प्रकार की वार्तालाप पर बस थोड़ा-सा विचार कर लो; लेकिन इसे एक दर्शन की तरह समझने का प्रयत्न न करो। तुम्हें केवल इतना जानने की आवश्यकता है कि आज तुम्हें किसमें प्रवेश करना है और क्या समझना और फिर उस पर अच्छी पकड़ बनानी है। तभी तुम्हें जीता जा सकेगा। उपरोक्त लेख को पढ़कर, तुममें एक सामान्य प्रतिक्रिया होनी चाहिए : परमेश्वर अत्यधिक उत्सुक है। वह हमें जीतकर महिमा और साक्ष्य प्राप्त करना चाहता है, तो हमें उसका सहयोग कैसे करना चाहिए? उसके द्वारा पूरी तरह जीत लिए जाने और उसका साक्ष्य बनने के लिए हमें क्या करना चाहिए? परमेश्वर को महिमा प्राप्त करने के समर्थ बनाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? हमें शैतान के अधीन नहीं बल्कि परमेश्वर के अधिकार में जीने के लिए क्या करना चाहिए? लोगों को इसी बारे में सोचना चाहिए। तुम सब को परमेश्वर की विजय की महत्ता के विषय में स्पष्ट होना चाहिए। यह तुम्हारा उत्तरदायित्व है। इसकी स्पष्टता पाने के पश्चात ही, तुम्हें प्रवेश प्राप्त होगा, तुम सब इस चरण के कार्य को समझोगे और तुम पूर्णत: आज्ञाकारी बन जाओगे। अन्यथा, तुम लोग सच्ची आज्ञाकारिता प्राप्त नहीं कर पाओगे।
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